25/12/2025: मोदी के मुंह में शांति, संघ के लोगों का गुंडाराज | अरावली के असमंजस | शिक्षा के कुएं में मूर्खता की अफ़ीम | ढाका में फिर लिंचिंग | अरुणाचल में मस्जिदों पर विवाद | गोदी मीडिया का मोदी काल
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
एक देश, दो क्रिसमस: दिल्ली में पीएम की मोमबत्तियां, राज्यों में ‘भक्तों’ का गुंडाराज
अरावली की ‘नई परिभाषा’ या बर्बादी का परमिट? 100 मीटर के खेल में पहाड़ गायब करने की तैयारी
बीड़ी, आधार और ‘बांग्लादेशी’ का ठप्पा: ओडिशा में भीड़तंत्र की भेंट चढ़ा एक और मजदूर
“सामान समेटो और भागो”: देवभूमि उत्तराखंड में कश्मीरी शॉल वाले पर नफरती हमला
इम्तिहान में ‘सच’ पूछना मना है: जामिया के प्रोफेसर पर गिरी गाज, शिक्षा या प्रचार?
योगी की पीठ थपथपाने के चंद घंटों बाद... एएमयू कैंपस में शिक्षक को गोलियों से भूना
जंगल में ढेर हुआ 1 करोड़ का इनामी: ओडिशा पुलिस की गोली ने गिराया माओवाद का बड़ा स्तंभ
“उम्रकैद का मतलब पूरी उम्र”: कुलदीप सेंगर की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दस्तक
आपकी हर खबर अब ‘उनकी’ नज़र में: नैटग्रिड से जुड़ा एनपीआर, 119 करोड़ लोगों का डेटा एक क्लिक दूर
लॉटरी खत्म, अब पैसा और रुतबा बोलेगा: अमेरिका के H-1B वीजा नियमों में बड़ा फेरबदल
दहेज का फंड बनी सरकारी मदद? बंगाल में कैश ट्रांसफर के बावजूद क्यों नहीं थम रहे बाल विवाह
“कागज़ दिखाओ, नारे लगाओ”: अरुणाचल में बंद कराई जा रहीं मस्जिदें, निशाने पर कौन?
ढाका में ‘घर वापसी’ पर समावेशी बोल, मगर सड़कों पर लिंचिंग जारी: बांग्लादेश का नया अध्याय?
‘गोदी मीडिया’ कोई हादसा नहीं: मोदी ने बस पहले से ‘जंग लगी तलवार’ को धार दी है
क्रिसमस 2025
इधर मोदी शांति के कबूतर उड़ा रहे थे, उधर संघ के गुंडों का ईसाइयों से नफ़रत, हिंसा का नंगा नाच
इस साल भारत में क्रिसमस का त्यौहार गहरे विरोधाभास और दो बिल्कुल विपरीत छवियों के बीच मना. एक तरफ देश की राजधानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक चर्च जाकर मोमबत्तियां जलाईं और प्रभु यीशु के शांति संदेश को साझा किया, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों ने “धर्मांतरण” और “हिंदू राष्ट्र” के नाम पर क्रिसमस समारोहों में जमकर बवाल काटा, तोड़फोड़ की और आम नागरिकों को भयभीत किया.
सुबह करीब 7 बजे, प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली के ‘कैथेड्रल चर्च ऑफ द रिडेम्पशन’ पहुंचे. वहां उन्होंने पादरियों और आम श्रद्धालुओं से गर्मजोशी से मुलाकात की और क्वायर (choir) के साथ वक्त बिताया. बाद में उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर मोमबत्ती जलाते हुए अपनी तस्वीरें साझा कीं और लिखा, “सभी को शांति, करुणा और आशा से भरा क्रिसमस मुबारक हो. ईसा मसीह की शिक्षाएं हमारे समाज में सद्भाव को मजबूत करें.” चर्च के पादरी रेवरेंड डॉ. मनोज जेसुदासन ने पीएम की मौजूदगी को “भारत की बहुलवादी संस्कृति का प्रतीक” बताया.
छत्तीसगढ़: मॉल में घुसकर ‘जय श्री राम’ के नारे और तोड़फोड़
पीएम के शांति संदेश के ठीक उलट, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हिंसा की खबरें आईं. यहां विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल से जुड़े संगठनों ने कथित “जबरन धर्मांतरण” के विरोध में राज्यव्यापी बंद बुलाया था. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दोपहर के वक्त करीब 80-90 लोगों की भीड़ रायपुर के ‘मैग्नेटो मॉल’ में घुस गई. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में हमलावर “जय श्री राम” के नारे लगाते हुए सांता क्लॉज की मूर्तियों को ज़मीन पर पटकते, क्रिसमस ट्री को तोड़ते और सजावटी सामान को फाड़ते हुए देखे गए. रायपुर के एसएसपी लाल उम्मेद सिंह के अनुसार, पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है.
असम: स्कूल में आगजनी और “नलबाड़ी का बजरंग दल”
असम के नलबाड़ी जिले में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने क्रूरता की हदें पार कर दीं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बुधवार दोपहर करीब 2:30 बजे युवाओं के एक समूह ने सेंट मैरी इंग्लिश स्कूल में घुसकर “जय श्री राम” और “जय हिंदू राष्ट्र” के नारे लगाते हुए क्रिसमस की सजावट और झालरों को आग के हवाले कर दिया. उन्होंने ईसा मसीह के जन्म की झांकी को भी नष्ट कर दिया. वीडियो में उपद्रवियों को यह कहते सुना गया, “नलबाड़ी का बजरंग दल आया है.” असम क्रिश्चियन फोरम ने इसे “दिन-दहाड़े गुंडागर्दी” बताया है.
ओडिशा: “यह हिंदू राष्ट्र है, क्रिश्चियन का नहीं चलेगा”
ओडिशा के पुरी में, जहां हाल ही में भाजपा सरकार सत्ता में आई है, अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत की एक और बानगी देखने को मिली. टेलीग्राफ के पत्रकार शुभाशीष मोहंती की रिपोर्ट के अनुसार, श्री जगन्नाथ मंदिर के पास सांता क्लॉज की टोपी और तस्वीरें बेच रहे एक बुजुर्ग जोड़े और अन्य विक्रेताओं को एक एसयूवी सवार समूह ने धमकाया. पीले कपड़े पहने एक व्यक्ति ने विक्रेताओं से कहा, “यह हिंदू राष्ट्र है, यहां क्रिश्चियन का चलेगा नहीं.” जब विक्रेताओं ने कहा कि वे गरीब हैं, तो जवाब मिला, “गरीब आदमी है तो जगन्नाथ का बेच.” पुलिस ने अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं किया है.
केरल: बच्चों के कैरोल समूह पर हमला
केरल के पलक्कड़ में भी माहौल तनावपूर्ण रहा. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार रात एक आरएसएस कार्यकर्ता अश्विन राज ने कथित तौर पर नशे की हालत में बच्चों के एक क्रिसमस कैरोल समूह पर हमला किया और उनके वाद्ययंत्र तोड़ दिए. भाजपा पदाधिकारी सी. कृष्णकुमार ने यह कहकर हिंसा का बचाव किया कि “बच्चे शराब पी रहे थे,” जिसे अभिभावकों ने झूठा करार दिया. विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने कहा कि जो लोग केरल में केक और वाइन के साथ क्रिसमस मनाते हैं, वही देश भर में ईसाइयों पर हमला कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश और राजस्थान: प्रार्थना में बाधा और सरकारी फरमान
मध्य प्रदेश के जबलपुर में भाजपा नेता अंजू भार्गव पर चर्च में प्रार्थना करने गई एक नेत्रहीन महिला के साथ बदसलूकी का आरोप लगा. वहीं, राजस्थान के श्रीगंगानगर में शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किया कि स्कूलों में बच्चों को सांता क्लॉज बनने के लिए मजबूर न किया जाए क्योंकि यह क्षेत्र “सनातन बहुल” है.
मणिपुर: विस्थापितों का सूना क्रिसमस
इन सबके बीच, मणिपुर हिंसा के कारण विस्थापित कुकी-जो समुदाय के लिए क्रिसमस सिर्फ यादों का त्यौहार बनकर रह गया. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में रह रहे विस्थापित मैरी और जॉन (बदले हुए नाम) के लिए यह लगातार तीसरा क्रिसमस है जब वे अपने घर से दूर हैं. जॉन कहते हैं, “सरकार की शांति की बातें खोखली हैं. भरोसा पूरी तरह टूट चुका है.” उनके लिए क्रिसमस अब उत्सव नहीं, बल्कि अस्तित्व बचाने का संघर्ष है. इन घटनाओं पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भाजपा को घेरते हुए इसे “राज्य-प्रायोजित कट्टरता” कहा. सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी ईसाई ब्लॉगर मिकी गिल ने पीएम मोदी को टैग करते हुए लिखा, “उम्मीद है कि जिस शांति की कामना आपने की है, वह आप अपने समर्थित आरएसएस के गुंडों द्वारा सताए जा रहे भारत के ईसाइयों को भी दे पाएंगे.”
अरावली की ‘नई परिभाषा’ पर सियासी संग्राम, 50 नई माइनिंग लीज पर सवाल
राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखला की परिभाषा बदलने और खनन की अनुमति को लेकर सियासी और कानूनी विवाद गहराता जा रहा है. एक तरफ केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि अरावली में कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी, वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की उस परिभाषा (100 मीटर ऊंचाई) को स्वीकार कर लिया है, जिसे वह 15 साल पहले खारिज कर चुका था. विपक्ष का आरोप है कि ‘संरक्षण’ के दावों के बीच अरावली को खनन माफियाओं के लिए खोला जा रहा है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में राजेश असनानी की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने केंद्र के फैसले को “ऐतिहासिक” बताया है. उन्होंने ‘एक्स’ पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पिछली सरकारों ने दशकों तक अवैध खनन माफिया को संरक्षण दिया और अब वे जनता को गुमराह कर रहे हैं.
इसके जवाब में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मोर्चा संभालते हुए कहा कि केंद्र की घोषणाओं और राज्य सरकार के कार्यों में भारी विरोधाभास है. गहलोत ने आरोप लगाया कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के “सस्टेनेबल माइनिंग प्लान” (एमपीएसएम) बनने तक खनन न होने के दावों के बावजूद, भाजपा नीत राज्य सरकार ने अरावली क्षेत्र में 50 नई खनन लीज नीलाम कर दी हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है.
आंकड़ों में भारी अंतर: 277 बनाम 4000 वर्ग किमी
विवाद का एक बड़ा कारण सरकारी आंकड़ों में विसंगति है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने हाल ही में कहा था कि अरावली की संशोधित परिभाषा के बाद केवल 277.9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही खनन के योग्य होगा.
हालांकि, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की 2024 की रिपोर्ट से जुड़े दस्तावेज अलग कहानी बयां करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान की अरावली पहाड़ियों में मौजूदा खनन क्षेत्र ही 2,339 वर्ग किलोमीटर है. इससे भी चिंताजनक बात यह है कि राजस्थान सरकार के ‘ड्राफ्ट विजन डॉक्यूमेंट-2047’ में आर्थिक विकास के नाम पर खनन क्षेत्र को 2,339 से बढ़ाकर 4,000 वर्ग किलोमीटर करने का प्रस्ताव है.
इस मुद्दे पर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने 19 जिलों में विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है. एनएसयूआई शुक्रवार को “अरावली बचाओ, जीवन बचाओ” अभियान के तहत मार्च निकालेगी, जिसमें पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के शामिल होने की संभावना है.
कानूनी पेंच: 2010 की ‘ना’ अब 2025 की ‘हां’ बन गई
द इंडियन एक्सप्रेस की लीगल रिपोर्ट इस विवाद के एक महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करती है. रिपोर्ट बताती है कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को सरकार की उस सिफारिश को स्वीकार कर लिया, जिसमें अरावली को केवल “जमीन से 100 मीटर ऊंची” पहाड़ियों के रूप में परिभाषित किया गया है.
हैरानी की बात यह है कि 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इसी “100 मीटर परिभाषा” को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इससे अरावली का बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाएगा. उस समय कोर्ट ने ‘फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया’ (एफएसआई) को सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करने का निर्देश दिया था. 2010 में एफएसआई ने “3 डिग्री ढलान” के आधार पर अरावली को परिभाषित किया था, जिससे राजस्थान के 15 जिलों में लगभग 40,481 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अरावली के दायरे में आया था.
लेकिन अब, 15 साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ही पुरानी आपत्तियों और सीईसी की असहमति को दरकिनार करते हुए सरकार के “100 मीटर फॉर्मूले” पर मुहर लगा दी है. यह फैसला 2018 की उस चिंता के बिल्कुल विपरीत है, जब जस्टिस मदन लोकुर ने राजस्थान में 128 में से 31 पहाड़ियों के गायब होने पर सरकार से पूछा था, “क्या लोग हनुमान बन गए हैं जो पहाड़ियां उठाकर ले जा रहे हैं?”
फिलहाल, पर्यावरणविदों को डर है कि परिभाषा में इस बदलाव से अरावली का एक बड़ा हिस्सा खनन के लिए खुल जाएगा, जिससे उत्तर भारत में पर्यावरणीय संकट और गहरा सकता है.
ओडिशा: ‘बांग्लादेशी’ होने के शक में पश्चिम बंगाल के प्रवासी मजदूर की लिंचिंग
ओडिशा के संबलपुर में भीड़ द्वारा पश्चिम बंगाल के एक प्रवासी मजदूर की पीट-पीटकर हत्या करने का मामला सामने आया है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मृतक की पहचान मुर्शिदाबाद निवासी जुवेल शेख के रूप में हुई है. परिवार और सहकर्मियों का आरोप है कि हमलावरों ने आधार कार्ड मांगने के बाद उन्हें ‘बांग्लादेशी’ बताकर पीटा.
घटना बुधवार देर शाम की है जब जुवेल काम से लौट रहे थे. पुलिस के अनुसार, बीड़ी मांगने को लेकर विवाद शुरू हुआ था. हालांकि, मृतक की मां नगीना बीबी का कहना है कि उनके बेटे को सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि वह बंगाली बोलता था और उसे बांग्लादेशी समझा गया. ओडिशा पुलिस ने इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन पुलिस का दावा है कि यह एक आपसी विवाद था, न कि पूर्व नियोजित हेट क्राइम. तृणमूल कांग्रेस ने इसे भाजपा शासित राज्य में “राज्य प्रायोजित गुंडागर्दी” बताया है.
उत्तराखंड में बजरंग दल कार्यकर्ताओं द्वारा कश्मीरी शॉल विक्रेता पर हमला
उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा एक कश्मीरी शॉल विक्रेता के साथ कथित तौर पर मारपीट, लूटपाट करने के बाद उसे वहां से चले जाने की धमकी दी गई. इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर छात्र संघ (जेकेएसए) ने उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर तत्काल कार्रवाई की मांग की है.
देहरादून से नरेंद्र सेठी की रिपोर्ट है कि इस घटना ने पहाड़ी राज्य में मौसमी व्यापार करने वाले कश्मीरी व्यापारियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं. पीड़ित की पहचान कश्मीर के कुपवाड़ा निवासी बिलाल अहमद गनी के रूप में हुई है, जो पिछले लगभग एक दशक से उधम सिंह नगर में बिना किसी विवाद के शॉल बेच रहे थे.
जेकेएसए के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुहामी ने घटना के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “बिलाल अहमद की लंबे समय से मौजूदगी और शांतिपूर्ण आचरण के बावजूद, उन पर बेरहमी से हमला किया गया, उनके शॉल का स्टॉक लूट लिया गया, उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई और तुरंत क्षेत्र खाली कर राज्य छोड़ने का निर्देश दिया गया.”
इस कथित जबरन निष्कासन ने न केवल विक्रेता की आजीविका छीन ली है, बल्कि क्षेत्र में रह रहे अन्य कश्मीरी व्यवसायी समुदाय के बीच भी डर पैदा कर दिया है. पत्र में आरोप लगाया गया है कि हमले का नेतृत्व स्थानीय बजरंग दल नेता अंकुर सिंह ने किया था. एसोसिएशन ने बताया कि पीड़ित ने पहले ही प्रतापपुर (गौशाला) पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.
खुहामी ने कहा कि कश्मीरी भारत में बाहरी नहीं बल्कि समान नागरिक हैं. निर्दोष कश्मीरी व्यापारियों को निशाना बनाना और उन्हें शहरों से बाहर निकालना केवल अलगाव और अविश्वास को गहरा करता है, जो भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने वाली ताकतों के हाथों में खेलने जैसा है.”
हरकारा डीपडाइव
शिक्षा के कुएं में घुलती मूर्खता की अफ़ीम
जामिया मिलिया इस्लामिया में बीए ऑनर्स सोशल वर्क की परीक्षा के एक सवाल ने पूरे देश में बहस छेड़ दी. परीक्षा पेपर में आया यह सवाल था कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ अत्याचारों पर चर्चा करें. परीक्षा के बाद सोशल मीडिया पर उठे विवाद के बीच विश्वविद्यालय ने प्रश्न पत्र सेटर प्रोफेसर को निलंबित कर दिया, उनका नाम सार्वजनिक किया गया है और जांच में एफआईआर की बात भी सामने आयी है.
हरकारा डीप डाइव के इस एपिसोड में निधीश त्यागी के साथ प्रोफेसर अपूर्वानंद इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझाते हैं. बातचीत में यह सवाल उठता है कि जब प्रश्न सिलेबस के भीतर था, परीक्षा शांतिपूर्वक हो चुकी थी और किसी छात्र या विभाग की शिकायत नहीं थी, तो कार्रवाई किस आधार पर हुई.
यह चर्चा सिर्फ जामिया तक सीमित नहीं है. मेरठ, शारदा यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल और दिल्ली यूनिवर्सिटी के उदाहरण बताते हैं कि कैसे कक्षा, सिलेबस और शोध लगातार संकुचित किए जा रहे हैं. सवाल पूछना, तथ्य पढ़ाना और समाज की आलोचनात्मक समझ विकसित करना अब जोखिम भरा होता जा रहा है.
वीडियो में इस बात पर भी गहराई से चर्चा है कि कैसे गोपनीयता तोड़ी गई, शिक्षक–छात्र के भरोसे को नुक़सान पहुंचा और विश्वविद्यालय धीरे-धीरे ज्ञान के केंद्र से प्रचार तंत्र में बदलते जा रहे हैं. यह बातचीत शिक्षा, लोकतंत्र और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा एक ज़रूरी दस्तावेज़ है.
अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में स्कूल शिक्षक की गोली मारकर हत्या, योगी ने थपथपाई थी अपनी पीठ
बुधवार रात अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) परिसर के अंदर अज्ञात हमलावरों ने एक स्कूल शिक्षक की गोली मारकर हत्या कर दी. इस घटना से छात्रों और कर्मचारियों के बीच दहशत फैल गई. पुलिस ने जांच शुरू कर दी है. “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, यह हत्या उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा राज्य विधानसभा में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर दिए गए भाषण के कुछ घंटों बाद हुई. मुख्यमंत्री ने कहा था, “हर व्यक्ति के लिए सुरक्षा का माहौल आवश्यक है. आज हर व्यक्ति कह सकता है कि बेहतर सुरक्षा वातावरण के कारण ही यूपी में निवेश आ रहा है.”
मृतक की पहचान राव दानिश अली के रूप में हुई है, जो एएमयू के एबीके यूनियन हाई स्कूल में कंप्यूटर विज्ञान के शिक्षक थे. वे पिछले 11 वर्षों से वहां पढ़ा रहे थे.
पुलिस के अनुसार, यह घटना केंद्रीय पुस्तकालय के पास स्थित ‘लाइब्रेरी कैंटीन’ के निकट हुई. दानिश अपने दो सहकर्मियों के साथ बैठे थे और टहल रहे थे, तभी स्कूटर पर दो व्यक्ति आए और उन्हें पिस्तौल दिखाकर धमकाया. हमलावरों ने दानिश पर कम से कम तीन गोलियां चलाईं, जिनमें से दो उनके सिर में लगीं. कथित तौर पर गोली चलाने से पहले एक हमलावर ने कहा, “दानिश, अब तुम मुझे जान जाओगे.”
ओडिशा में मुठभेड़: 1.1 करोड़ रुपये के इनामी शीर्ष माओवादी नेता गणेश उइके सहित 4 ढेर
एक बड़े नक्सल विरोधी अभियान में, ओडिशा पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की एक संयुक्त टीम ने गुरुवार को कंधमाल जिले के चकापाड़ा पुलिस सीमा के भीतर एक मुठभेड़ के दौरान शीर्ष सीपीआई (माओवादी) नेता गणेश उइके सहित चार माओवादियों को मार गिराया.
69 वर्षीय उइके, प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सदस्य और इसके ओडिशा संचालन का प्रमुख था. पूर्वी और मध्य भारत में कई घातक हमलों में उसकी भूमिका के लिए उस पर 1.1 करोड़ रुपये से अधिक का इनाम था. माना जा रहा है कि उसकी मौत से इस क्षेत्र में माओवादी नेटवर्क काफी कमजोर हो जाएगा. अभियान के बाद, सुरक्षा बलों ने पुष्टि की कि चार माओवादी मारे गए हैं, जिनमें से दो महिलाएं थीं और सभी वर्दी में थे. अभी तक केवल उइके की पहचान हो पाई है.
आशीष मेहता की रिपोर्ट है कि मूल रूप से तेलंगाना के नलगोंडा जिले के चेन्दूर मंडल के पुल्लेमाला गांव का रहने वाला उइके, भारत के सबसे वांछित माओवादी नेताओं में से एक था और ओडिशा में संगठन का नेतृत्व कर रहा था. वामपंथी उग्रवाद के उभार में उइके की भूमिका इतनी बड़ी थी कि उस पर छत्तीसगढ़ द्वारा 40 लाख रुपये, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश द्वारा 25-25 लाख रुपये और ओडिशा में 1.1 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था.
बलात्कारी पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत को चुनौती: दो वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
दो वकीलों ने उन्नाव बलात्कार मामले में दोषी और भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की जेल की सजा को निलंबित करने और दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है.
सुचित्रा कल्याण मोहंती ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वकील अंजलि पटेल और पूजा शिल्पकार ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड संजीव मल्होत्रा के माध्यम से शीर्ष अदालत का रुख किया है. वे दिल्ली हाईकोर्ट के दो दिन पहले 23 दिसंबर के उस आदेश से व्यथित हैं, जिसमें सेंगर की जेल की सजा को निलंबित कर दिया गया था. सेंगर 2017 के उन्नाव बलात्कार मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.
याचिका में कहा गया है, “यह अपराध की गंभीरता और जघन्य प्रकृति को दर्शाता है, और क्या हाईकोर्ट ने निचली अदालत के निष्कर्षों और टिप्पणियों की पर्याप्त सराहना किए बिना और अपराध की गंभीरता को नजरअंदाज करते हुए ऐसी राहत देने में गलती की है.” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह आपराधिक न्याय प्रणाली की पवित्रता बनाए रखने और न्याय प्रशासन में जनता का विश्वास सुरक्षित रखने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करे.
वकीलों ने अपनी याचिका में कहा, “ट्रायल कोर्ट ने न केवल आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, बल्कि यह भी टिप्पणी की थी कि दोषी को अपने शेष प्राकृतिक जीवन तक न्यायिक हिरासत में रहना चाहिए. इसका अर्थ है कि उसे बिना किसी उचित न्यायिक कारण के जीवन भर जेल से रिहा नहीं किया जाना चाहिए.” याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि हाईकोर्ट द्वारा जमानत देना अनुचित था, विशेष रूप से तब जब निचली अदालत ने सभी साक्ष्यों पर विचार करने के बाद स्पष्ट रूप से उसे उम्रकैद की सजा दी थी.
सरकार ने नैट ग्रिड को एनपीआर से जोड़ा, अब 119 करोड़ निवासियों का ब्यौरा एजेंसियों के पास
सरकारी अधिकारियों के अनुसार, नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (नैट ग्रिड) को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) से जोड़ दिया गया है. नैट ग्रिड पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए एक सुरक्षित मंच है, जिसके माध्यम से वे सरकारी और निजी डेटाबेस तक वास्तविक समय में पहुंच प्राप्त करती हैं, जबकि एनपीआर में भारत के 119 करोड़ निवासियों का परिवार वार विवरण मौजूद है.
“द हिंदू” में विजयेता सिंह की रिपोर्ट है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय, राज्य पुलिस और अन्य केंद्रीय कानून एवं सुरक्षा एजेंसियों द्वारा खुफिया जानकारी जुटाने और आपराधिक मामलों में त्वरित जांच के लिए स्वदेशी और सुरक्षित प्लेटफार्मों के माध्यम से नैट ग्रिड के व्यापक उपयोग पर जोर दे रहा है.
अब तक नैटग्रिड की पहुंच केवल दस केंद्रीय एजेंसियों (जैसे आईबी, रॉ, एनआईए, ईडी आदि) तक सीमित थी, लेकिन अब इसे पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारियों के लिए भी उपलब्ध करा दिया गया है.
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, नैट ग्रिड के उन्नत उपकरण, विशेष रूप से ‘गांडीव’, बहु-स्रोत डेटा संग्रह और विश्लेषण में सहायता कर रहे हैं. इसका उपयोग संदिग्धों के पारिवारिक विवरणों तक पहुंचने और चेहरा पहचानने के लिए किया जा सकता है.
एजेंसियां ड्राइविंग लाइसेंस, वाहन पंजीकरण, आधार, एयरलाइन डेटा, बैंक रिकॉर्ड, फास्टैग, पासपोर्ट, आव्रजन विवरण और सोशल मीडिया पोस्ट से डेटा निकाल और विश्लेषण कर सकती हैं.
गोपनीयता संबंधी चिंताओं पर अधिकारियों का कहना है कि सिस्टम में प्रत्येक क्वेरी का रिकॉर्ड (लॉग) रखा जाता है. सूचना मांगने का कारण बताना अनिवार्य है और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इसकी निगरानी करते हैं. एनपीआर को देशव्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की दिशा में पहला कदम माना जाता है. इसमें डेटा आखिरी बार 2015 में अपडेट किया गया था.
अमेरिका में ‘वेटेड’ एच-1बी सिस्टम लागू, 100,000 डॉलर वीजा फीस को अदालत की मंजूरी
“द वायर” के मुताबिक, अमेरिका ने अपने एच-1बी वीज़ा नियमों में बड़े बदलाव की दिशा में एक और कदम उठाया है. मंगलवार को घोषणा की गई कि फरवरी से रैंडम लॉटरी सिस्टम (पर्ची निकालकर चयन) को खत्म कर एक ‘वेटेड’ (भारित) चयन प्रणाली शुरू की जाएगी. यह नई व्यवस्था उन उम्मीदवारों को प्राथमिकता देगी, जिन्हें अधिक वेतन मिलता है और जो अधिक कुशल हैं. इसी के साथ, एक संघीय अदालत ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें नई एच-1बी वीज़ा याचिकाओं के लिए 100,000 डॉलर की भारी फीस (जो पहले सामान्यतः 2,000 से 5,000 डॉलर थी) के फैसले को चुनौती दी गई थी.
इससे पहले, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने इन नीतियों का बचाव करते हुए कहा कि अमेरिका ‘हमेशा एक ईसाई राष्ट्र रहेगा.’ उन्होंने कहा, “सच्ची ईसाई राजनीति केवल अजन्मे बच्चों की सुरक्षा या परिवार को बढ़ावा देने के बारे में नहीं हो सकती... हमने कांग्रेस की मदद के बिना एच-1बी वीज़ा को प्रतिबंधित करने के लिए काम क्यों किया? क्योंकि हम मानते हैं कि कंपनियों के लिए केवल तीसरी दुनिया (थर्ड वर्ल्ड) से सस्ते विकल्प खोजने के लिए अमेरिकी श्रमिकों की उपेक्षा करना गलत है.”
पश्चिम बंगाल: कैश ट्रांसफर योजनाओं से बाल विवाह में कमी नहीं आई
पश्चिम बंगाल सरकार ने 13-18 वर्ष की अविवाहित लड़कियों और उच्च शिक्षा लेने वाली युवतियों के लिए नकद हस्तांतरण (डायरेक्ट कैश ट्रांसफर) योजनाओं का विस्तार किया है, जिसका उद्देश्य बाल विवाह को हतोत्साहित करना है. लेकिन, जॉयदीप सरकार लिखते हैं कि यह बाल विवाहों को रोकने में नाकामयाब रही है.
हालांकि, आंकड़े एक बड़ी खामी की ओर इशारा करते हैं. उदाहरण के लिए, 2019-21 में राज्य में 18-24 वर्ष की 41.6% महिलाओं का विवाह नाबालिग उम्र में ही हो गया था. एक अर्थशास्त्री ने बताया कि यह नकद हस्तांतरण अक्सर दहेज के लिए एक आरक्षित निधि के रूप में काम करता है और इसका उपयोग लड़की की शिक्षा के खर्च के लिए नहीं होता है. बंगाल में 18 से 20 वर्ष के बीच विवाह करने वाली महिलाओं की संख्या भी सबसे अधिक दर्ज की गई, जो यह बताता है कि कई परिवारों के लिए सामाजिक लक्ष्य ‘बाल विवाह’ से बदलकर ‘जल्द से जल्द कानूनी विवाह’ हो गया है.
अरुणाचल प्रदेश में मस्जिदों को बंद करने का लक्ष्य
ईटानगर और उसके आसपास की आठ मस्जिदों में से दो को अक्टूबर से बंद कर दिया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘अरुणाचल प्रदेश इंडिजिनस यूथ ऑर्गेनाइजेशन’ (एपीआईवाईओ) नामक संगठन ने इन मस्जिदों का दौरा शुरू किया और वहां के अधिकारियों से इमारत की अनुमति दिखाने की मांग की. आरोप है कि उन्होंने मस्जिद अधिकारियों को ‘बांग्लादेशी’ कहा और उनसे ‘भारत माता की जय’ के नारे लगवाने की कोशिश की.
“स्क्रॉल” की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस और मस्जिद अधिकारियों का कहना है कि ‘एपीआईवाईओ’के इस अभियान की जड़ें असम सरकार द्वारा बंगाली भाषी मुसलमानों के खिलाफ चलाए गए बेदखली अभियान में हो सकती हैं. साथ ही, स्थानीय लोगों में यह डर भी है कि यह जातीय समूह उत्तर-पूर्वी राज्य में नौकरियों पर ‘कब्जा’ कर रहा है.
बांग्लादेश में एक और हिंदू की लिंचिंग
बांग्लादेश के राजबाड़ी जिले में जबरन वसूली के आरोप में भीड़ ने एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी. यह घटना मैमनसिंह में कथित ईशनिंदा के आरोप में एक हिंदू गारमेंट फैक्ट्री कर्मचारी दीपू चंद्र दास की पीट-पीटकर हत्या किए जाने के कुछ दिनों बाद हुई है. ‘द डेली स्टार’ के अनुसार, मृतक की पहचान अमृत मंडल के रूप में हुई है, जिसे ‘सम्राट’ के नाम से भी जाना जाता था. उसके खिलाफ हत्या सहित कम से कम दो मामले दर्ज थे.
बांग्लादेश मुसलमानों, ईसाइयों, बौद्धों और हिंदुओं का है: 17 साल बाद घर वापसी पर तारिक रहमान
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान गुरुवार को बांग्लादेश लौट आए. इसके साथ ही उनका 17 साल का स्व-निर्वासित वनवास समाप्त हो गया. उन्होंने वादा किया कि यदि उनकी पार्टी अगले साल का चुनाव जीतती है, तो वे सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करेंगे.
रहमान ने कहा, “अब समय आ गया है कि हम मिलकर एक देश का निर्माण करें. यह देश पहाड़ों और मैदानों के लोगों का है, मुसलमानों, बौद्धों, ईसाइयों और हिंदुओं का है.”
तारिक रहमान, जिन्हें बांग्लादेश में तारिक जिया के नाम से भी जाना जाता है, भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तारी और राजनीतिक उत्पीड़न के बाद 2008 में लंदन चले गए थे. पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में, रहमान 12 फरवरी को होने वाले आम चुनावों में बीएनपी का नेतृत्व करेंगे.
“एएफपी” के अनुसार, विद्रोह के बाद से ढाका के अपने ऐतिहासिक सहयोगी नई दिल्ली के साथ राजनयिक संबंध खराब हुए हैं, क्योंकि अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत में शरण ली है. भारत ने कहा है कि वह हसीना के प्रत्यर्पण के बांग्लादेश के अनुरोध पर विचार कर रहा है, जिन्हें विद्रोह के दौरान घातक दमन की साजिश रचने के लिए उनकी अनुपस्थिति में मौत की सजा सुनाई गई है.
मुस्लिम बहुल इस राष्ट्र में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ने के बीच, 18 दिसंबर को एक हिंदू गारमेंट कर्मचारी पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया और भीड़ द्वारा उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. बीएनपी की पूर्व सांसद जहां पन्ना ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि रहमान की वापसी से “अराजकता का चक्र” समाप्त हो जाएगा. 55 वर्षीय पन्ना ने ‘एएफपी’ को बताया, “रहमान इस देश के लिए आशा का प्रतीक हैं.”
‘गोदी मीडिया’ रातों-रात नहीं बना, मोदी ने बस पहले से सड़े हुए सिस्टम को ‘हथियार’ बना लिया
भारतीय पत्रकारिता का मौजूदा संकट, जिसे अक्सर ‘गोदी मीडिया’ के नाम से पुकारा जाता है, वह 2014 में अचानक घटी कोई घटना नहीं है. यह दशकों से चले आ रहे उस स्ट्रक्चरल पतन का नतीजा है, जिसने मीडिया को अंदर से खोखला कर दिया था. ‘द कैरेवन लॉन्गव्यू’ के ताज़ा एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार और ‘द कैरेवन’ के एग्जीक्यूटिव एडिटर हरतोष सिंह बल और कंसल्टिंग एडिटर सुशांत सिंह ने भारतीय मीडिया के इस पतन पर एक बेबाक और विस्तृत चर्चा की है. उनका साफ कहना है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने मीडिया को बर्बाद नहीं किया, बल्कि उसने मीडिया की पहले से मौजूद कमजोरियों को पहचाना और उसे अपने फायदे के लिए एक अनुशासित ‘प्रोपेगेंडा मशीन’ में बदल दिया.
इस बातचीत में हरतोष सिंह बल ने इतिहास के पन्नों को पलटते हुए याद दिलाया कि भारतीय मीडिया का मालिकाना ढांचा शुरू से ही दोषपूर्ण रहा है. आज़ादी के बाद जिसे ‘जूट प्रेस’ कहा जाता था—क्योंकि मीडिया के मालिक जूट मिलों के मालिक भी थे—वही ढांचा उदारीकरण के बाद बड़े कॉर्पोरेट्स में बदल गया. मीडिया संस्थानों का रेवेन्यू मॉडल हमेशा से विज्ञापनों और सरकारी फंडिंग पर निर्भर रहा. सुशांत सिंह ने तर्क दिया कि 2014 से पहले कोई ‘सुनहरा दौर’ नहीं था. उस समय भी मीडिया मालिकों के अन्य धंधे थे, जिसके कारण वे सत्ता से समझौता करने के लिए मजबूर थे. बस फर्क इतना था कि तब नियंत्रण ‘अपूर्ण’ था, जिसे मोदी सरकार ने ‘पूर्ण नियंत्रण’ में बदल दिया.
चर्चा का सबसे विस्फोटक हिस्सा वह था जब ‘हीरेन जोशी’ का जिक्र आया. सुशांत और हरतोष ने सवाल उठाया कि आखिर मुख्यधारा का मीडिया उस व्यक्ति के बारे में खामोश क्यों है जो कथित तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में बैठकर देश के पूरे मीडिया नैरेटिव को कंट्रोल करता है?
रिपोर्ट के मुताबिक, हिरेन जोशी को अनौपचारिक रूप से “सुपर एडिटर” या मीडिया का “डिक्टेटर” माना जाता है, जो यह तय करते हैं कि चैनलों पर क्या चलेगा और क्या नहीं. चर्चा में सवाल उठाया गया कि जो मीडिया दूसरों की जवाबदेही तय करने का दावा करता है, वह अपने ही ‘बॉस’ या अपने ही पेशे को नियंत्रित करने वाले व्यक्ति पर एक शब्द भी बोलने से क्यों डरता है? हरतोष ने कहा कि “हर कोई जानना चाहता है कि हिरेन जोशी कौन हैं और उनका क्या हुआ, लेकिन औपचारिक रूप से कोई बात नहीं करना चाहता.” यह चुप्पी ही बताती है कि डर किस हद तक फैल चुका है.
इस एपिसोड का एक अहम निष्कर्ष यह था कि मीडिया को अब केवल सरकार पर ही नहीं, बल्कि खुद मीडिया पर भी रिपोर्टिंग करनी होगी. राजदीप सरदेसाई जैसे बड़े एंकर्स या मीडिया मालिकों की जवाबदेही तय करना अब लोकतंत्र के लिए अनिवार्य हो गया है. चर्चा में कहा गया कि पत्रकारिता का काम ‘बैलेंस’ बनाना नहीं है, बल्कि सत्ता (चाहे वह सरकार हो या कॉर्पोरेट मीडिया) के हर रूप पर सवाल उठाना है. आज का मीडिया ‘विपक्ष’ की भूमिका निभाने के बजाय सत्ता का एक विस्तार बन गया है, और जब तक इस स्ट्रक्चरल समस्या को ठीक नहीं किया जाता, तब तक सिर्फ एंकर्स बदलने से कुछ नहीं होगा. ‘द कैरेवन’ की यह रिपोर्ट एक चेतावनी की तरह है. यह बताती है कि अगर हमने मीडिया के मालिकाना हक, फंडिंग और उसके अंदरूनी पॉवर स्ट्रक्चर पर सवाल नहीं उठाए, तो हम एक ऐसे लोकतंत्र में बदल जाएंगे जहां खबर और दुष्प्रचार के बीच का फर्क पूरी तरह मिट जाएगा.
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