26 नवंबर 2024: अडानी पर संसद में हल्ला, अमेरिका में एक और जाँच, स्टॉक फिसले, मणिपुर पर मंशा का सवाल, संविधान में भारत अभी भी सेक्यूलर, प्रोपोगेंडा के सौ साल, मरवा दिया गूगल मैप ने
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र का पहला ही दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया. लोकसभा में विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक ने अडानी समूह के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों और मणिपुर हिंसा पर चर्चा की मांग उठाई, पर अनसुनी रह गई. 20 दिसंबर तक चलने वाले इस सत्र में वक्फ (संशोधन) विधेयक सहित 16 विधेयक आने हैं. राज्यसभा में भी सभापति जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को गौतम अडानी के मसले पर अपनी बात रखने की इजाजत नहीं दी और रिकॉर्ड से अडानी के जिक्र को हटाने के निर्देश दिए. खड़गे ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अडानी को बचा रहे हैं. जगदीप धनकड़ ने विपक्ष के सभी 13 नोटिसों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे सभापति के निर्देशों के अनुरूप नहीं हैं. इसी में गौतम अडानी से जुड़ा मामला भी था.
एक अमेरिकी एजेंसी इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (DFC) ने अडानी ग्रुप के तकरीबन 5000 करोड़ रुपये के श्रीलंका प्रोजेक्ट पर अड़ंगा लगा दिया है. श्रीलंका में अडानी समूह समर्थित बंदरगाह विकास के लिए गौतम अडानी समेत 8 लोगों पर रिश्वतखोरी के आरोपों के बाद अमेरिकी एजेंसी अडानी की परियोजनाओं की जांच में जुट गई हैं. ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि एक अधिकारी ने ईमेल के जरिए बताया कि अभी तक इस प्रोजेक्ट के लिए लोन को लेकर कोई अंतिम समझौता नहीं हुआ है और फंडिंग से पहले परियोजना की पारदर्शिता, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर ध्यान दिया जा रहा है. अडानी ग्रुप को श्रीलंका के कोलंबो में वेस्ट कंटेनर टर्मिनल के विकास का ठेका मिला है. यह प्रोजेक्ट भारत और श्रीलंका के बीच रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी का हिस्सा है.
बांग्लादेश सरकार अडानी पावर प्रोजेक्ट्स की समीक्षा के लिए एक बाहरी फर्म को नियुक्त करने जा रही है. भारत इस समय बांग्लादेश को 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का ऊर्जा निर्यात कर रहा है, जो भारत के कुल निर्यात का लगभग 10% है. एक तरफ बांग्लादेश में अडानी की महंगी बिजली का मुद्दा गरमा रहा है, दूसरी ओर श्रीलंका ने भी अडानी को झटका देना शुरू कर दिया है. अडानी समूह के प्रोजेक्ट्स पर अब श्रीलंका की कैबिनेट निर्णय लेगी, जिसमें पोर्ट्स और ग्रीन एनर्जी के प्रोजेक्ट शामिल हैं.
इधर एक और खबर आई है कि फ्रेंच कंपनी टोटल एनर्जीज ने अमेरिकी जांच के बीच अडानी की कंपनियों में निवेश रोक दिया है. फ्रांसीसी ऊर्जा प्रमुख टोटल एनर्जीज़ के पेरिस मुख्यालय वाली कंपनी ने कहा कि उसे अमेरिका में अडानी समूह के अधिकारियों की जांच के बारे में अवगत नहीं कराया गया था. हालांकि एक अन्य प्रमुख अडानी निवेशक जीक्यूजी अब भी बहादुरी दिखा रहा है. जीक्यूजी का कहना है कि 'हम व्यक्तियों और कंपनियों के खिलाफ आरोपों के बीच अंतर को पहचानते हैं. हमारा मानना है कि जिन कंपनियों में हमने निवेश किया है, उनकी बुनियादी बातें मजबूत बनी हुई हैं.' 'हरकारा' के 22, 23, 24 और 25 नवंबर के अंक में अडानी प्रकरण पर विस्तार से पढ़ सकते हैं.
इस बीच, अडानी ग्रीन एनर्जी भी कथित बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) के उल्लंघन के लिए अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आयोग (यूएसआईटीसी) की जांच के दायरे में आ गई है. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार यूएसआईटीसी ने कंपनी और उसके सहयोगियों के खिलाफ जांच शुरू की है, जिसमें उन पर अमेरिका में सौर सेल, मॉड्यूल और पैनल की बिक्री के संबंध में आईपीआर का उल्लंघन करने का आरोप है.
इधर, तेलांगना सरकार ने भी अडानी ग्रुप के 100 करोड़ रुपए डोनेशन का ऑफर ठुकराकर हेडलाइन मैनेज कर ही ली है. कुछ रोज पहले तेलांगना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने यह कहकर गौतम अडानी के साथ राज्य के अनुबंधों का बचाव किया था कि मैं अडानी की जेब से पैसे निकालता हूं. यह डोनेशन यंग इंडिया स्किल यूनिवर्सिटी के लिए दिया जा रहा था, लेकिन अब रिश्वत कांड से चौतरफा घिरे अडानी का हाथ रेवंत ने भी छोड़ दिया है.
मंगलवार को मुजफ्फरनगर में अडानी के स्मार्ट बिजली मीटर टेंडर के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन होना है. किसान इस मामले में पश्चिमी उत्तरप्रदेश के तीन जिलों में पहले भी प्रदर्शन कर चुके हैं.
महाराष्ट्र में महायुति की जीत से शेयर बाजार में भी जोरदार तेजी देखने को मिली, लेकिन इस बीच सोमवार को अडानी ग्रुप के शेयरों में गिरावट का सिलसिला जारी रहा. अडानी ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशन का भाव सोमवार को गिरकर 622 रुपये तक पहुंच गया. सालभर में इसका दाम आधे पर आ गया है. इसके अलावा अडानी टोटल गैस लिमिटेड के शेयर गिरकर 596 रुपये पर पहुंच गए. यानी शेयर करीब 60% करेक्ट हो चुका है. अडानी पावर का शेयर सोमवार को कारोबर के अंत में 450 रुपये तक फिसल गया. अडानी ग्रीन एनर्जी में निवेश करने वालों निवेशकों का भी बुरा हाल है. अडानी ग्रीन का शेयर पिछले एक महीने से संभल नहीं रहा है. शेयर का भाव गिरकर 955 रुपये तक पहुंच गया है. ये शेयर अपने एक साल के हाई से 60 फीसदी तक फिसल चुका है. इस बीच भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अडानी हिंडनबर्ग मामले में सभी 24 जांचें पूरी कर ली हैं और वह जल्द ही अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपने के लिए तैयार है.
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में मौजूद 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्दों को सही ठहराते हुए कहा कि ये शब्द भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं. कोर्ट ने कहा कि 'समाजवाद' का मतलब कल्याणकारी राज्य से है. यह सरकार को जनकल्याण के लिए किसी भी आर्थिक सिद्धांत को अपनाने से नहीं रोकता. कोर्ट ने 'धर्मनिरपेक्षता' को भारतीय संविधान का प्रमुख आधार बताया. यह सुनिश्चित करता है कि राज्य सभी धर्मों का सम्मान करे और किसी विशेष धर्म को बढ़ावा न दे.
सम्भल मस्जिद सर्वे हिंसा : यूपी के सम्भल में हुई हिंसा में मरने वालों की संख्या तीन से बढ़कर 5 हो गई है. समाजवादी पार्टी के सांसद ज़िया-उर-रहमान बर्क और एक सपा विधायक के बेटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. इन पर भड़काऊ भाषण देकर भीड़ को उकसाने का आरोप है. कांग्रेस, सपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने हिंसा के लिए सीधे तौर पर सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
मणिपुर: न बचाने की मंशा है, न जतन?
टेलीग्राफ में प्रकाशित लेख में सुशांत सिंह कहते हैं कि बीते कुछ दिनों से भारत सरकार के लिए अच्छी खबरें नहीं रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी समझे जाने वाले कॉर्पोरेट दुनिया के दिग्गज गौतम अडानी पर अमेरिका के न्याय विभाग ने धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. कुछ दिनों से देश की राजधानी जहरीली हवा में सांस ले रही है, क्योंकि वायु प्रदूषण स्तर सभी विषाक्त सीमाओं को पार कर चुके हैं. लेकिन, इनमें से कोई भी बात अपने में मगन सरकार और प्रधानमंत्री का ध्यानाकर्षित नहीं कर पाई. मोदी तीन देशों की छह दिवसीय विदेश यात्रा पर थे लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनावों के नतीजों के लिए समय पर लौट आए. चुनाव हमेशा उनकी प्राथमिकता रहे हैं ; गवर्नेंस नहीं.
यदि नई दिल्ली की जहरीली हवा और अडानी पर लगे आरोपों की गंभीरता मोदी के हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त नहीं है, तो मणिपुर में चल रही हिंसा के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. पिछले कुछ दिनों के भीतर भड़की हिंसा में 20 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ और बैठकों का औपचारिक कदम उठाया है, जिसमें नौकरशाहों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के साथ चर्चा की गई. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इन बैठकों को सार्वजनिक किया है, ताकि हुकूमत का मीडिया आम जनमानस को यह दिखा सके कि कुछ ठोस कार्रवाई की गई है. मणिपुर में केन्द्रीय सशस्त्र बलों की लगभग 90 कंपनियों को भेजा गया है ; जो राज्य सरकार के अधीन काम करेंगी. अतिरिक्त सुरक्षा बलों को भेजना लगभग 19 महीनों से जारी हिंसा के बाद कोई अर्थ नहीं रखता. खासकर जब केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें राज्य के शस्त्रागारों से लूटे गए 5 हजार से अधिक घातक हथियारों को वापस लाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं, जो अब भी बहुसंख्यक मिलिशिया समूह के कब्जे में हैं.
यदि अमित शाह संकट से निपटने में सक्षम होते, तो पिछले मई में जब वह मणिपुर गए थे तब ही इसे हल कर लिया होता. यह स्पष्ट है कि वह असफल रहे हैं और अब जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर है. अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स कहते थे, केवल सबसे बुरी समस्याएं ही शीर्ष पर आती हैं. क्योंकि आसान तो कड़ी में कोई नीचे का व्यक्ति ही इसे हल कर लेता. गेट्स की बात मणिपुर की समस्या पर लागू होती है, जिसे वास्तव में राजनीतिक समाधान की आवश्यकता है. इस संकट को मई 2023 से नई दिल्ली और इम्फाल में उठाए गए कदमों ने बढ़ा दिया है, लेकिन असली समस्या मोदी की मणिपुर के प्रति उदासीनता रही है. एक ऐसा राज्य जो 'हीलिंग टच' के लिए तरस रहा है और जिसे प्रधानमंत्री द्वारा अनावश्यक और अवांछनीय महसूस कराया गया है. उन्होंने अब तक एक बार राज्य का दौरा नहीं किया है.
अनुसुइया उइके, जो फरवरी 2023 से जुलाई 2024 तक मणिपुर की गवर्नर थीं, ने एक इंटरव्यू में कहा कि राज्य के लोग मोदी से मिलने की मिन्नतें कर रहे थे. “राज्य के लोगों ने पीएम से मिलने की अपील की और वे लगातार अनुरोध करते रहे, जिन्हें मैंने पीएमओ को भेजा, लेकिन मुझे नहीं पता कि वह क्यों नहीं आए,” उइके ने कहा. यहां तक कि वह भी कहती हैं कि “हिंसा का एकमात्र समाधान दोनों समुदायों (मैतेई और कुकी-ज़ो) के बीच आपसी विश्वास की बहाली है और केंद्र सरकार को इसके लिए कदम उठाने चाहिए.” यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है लेकिन मोदी सरकार पक्षपात की राजनीति और बहुसंख्यक वोट बैंक निर्माण को भारत के राष्ट्रीय हित के ऊपर रख रही है.
जादू जो महाराष्ट्र में चला, झारखंड में नहीं ?
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव नतीजों पर अर्थशास्त्री और राजनीतिक टिप्पणीकार पराकला प्रभाकर की एक टिप्पणी की सोशल मीडिया में चर्चा हो रही है. वित्त मंत्री निर्मल सीतारमण के पति पराकला प्रभाकर ने मतदान के रिकॉर्ड और नतीजों के बीच के रिश्तों के रेखांकित किया है. उन्होंने अपने “X” अकाउंट पर लिखा, “महाराष्ट्र का जादू क्या है? 20 नवंबर को शाम 5 बजे वोट प्रतिशत था 58.22, जो रात 11 बजे 65.02 हो गया. मतगणना के पहले अंतिम आंकड़ा 66.05 प्रतिशत बताया. इस प्रकार अंतर हो गया 7.83 प्रतिशत. लिहाजा, यही महाराष्ट्र का जादू है! और उसी के बाद दूसरे ट्वीट में : “झारखंड में जादू क्यों नहीं?” पहले चरण की वोटिंग में शाम 5 बजे मतदान का प्रतिशत 64.86 रहा, जो रात 11.30 बजे 66.48 प्रतिशत बताया. कुल वृद्धि हुई 1.79 प्रतिशत. एनडीए ने 43 में से जीती 17 सीटें. दूसरे चरण में शाम 5 बजे वोटिंग प्रतिशत रहा 67.59, जो रात 11.30 बजे हो गया 68.45 प्रतिशत. कुल वृद्धि हुई 0.86 प्रतिशत. लिहाजा 38 सीटों में से एनडीए ने जीतीं 7. कम वृद्धि, कम जादू?
राज ठाकरे की पार्टी पर मान्यता खोने का खतरा
एक वक्त था कि फायरब्रांड नेता राज ठाकरे को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता था. मगर शिवसेना से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी नई पार्टी “मनसे” बना ली, जिसका इस बार विधानसभा चुनाव में बुरा हाल हुआ है. खुद ठाकरे का बेटा माहिम सीट पर तीसरे नंबर पर रहा और उनकी पार्टी की मान्यता खतरे में पड़ गई है. पार्टी को महाराष्ट्र में सिर्फ 1.55% वोट मिले हैं और उसका एक भी उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुआ है.
गूगल मैप पर सड़क थी, हकीकत में नहीं
गूगल मैप पर रास्ता लगाया, नेविगेशन चालू हुआ और एक तेज रफ्तार कार अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगी, लेकिन रास्ता बीच में ही खत्म हो गया और फिर कार सीधे नदी में जा गिरी. आगे कोई रास्ता ही नहीं था. ये हादसा यूपी में हुआ है जहां एक निर्माणाधीन पुल से नदी में कार गिरने से 3 लोगों की मौत हो गई. निर्माणाधीन पुल पर कोई सुरक्षा अवरोधक या चेतावनी संकेत नहीं थे.
उत्तराखंड निर्माण के आंदोलन से जुड़े रहे उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के पूर्व अध्यक्ष त्रिवेन्द्र सिंह पंवार की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई है. ये हादसा देहरादून में रविवार रात को हुआ, जब एक सीमेंट से भरे ओवर स्पीड डंपर ने कई वाहनों को चपेट में ले लिया.
खुद की मूर्ति का अनावरण कर मुस्काए राज्यपाल : राज्यपाल वीसी आनंद बोस पश्चिम बंगाल की सियासत के केन्द्र में आ गए हैं. हाल ही में उनकी एक तस्वीर वायरल हुई है, जिसमें राज्यपाल एक कार्यक्रम में खुद की ही मूर्ति का अनावरण करते हुए नजर आ रहे हैं. आलोचनाओं में घिरने के बाद राजभवन की ओर से सफाई भी दी गई है.
पश्चिम के खिलाफ पुतिन का छाया युद्ध
पिछले हफ्ते रूस के सैन्य ठिकानों पर ब्रिटेन में बनी लंबी दूरी की स्टॉर्म शैडो मिसाइलों से यूक्रेनी हमले का मतलब है कि अब रूस अमेरिका के साथ-साथ ब्रिटेन से भी बदला लेने की सोच सकता है. व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि हमने पहली बार यूक्रेनी दनिप्रो शहर को निशाना बनाते हुए एक मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल दागी थी. रूस अब मानता है कि उसे उन देशों में ‘सैन्य सुविधाओं’ पर हमला करने का ‘हक’ है, जो यूक्रेन को हथियार देते हैं. पुतिन ने हालांकि अपने इस बयान में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका सीधा अर्थ ब्रिटेन और अमेरिका पर हमले से था.
मुंबई की झुग्गियों पर बुलडोज़र और फुटपाथ पर जिंदगी: 'आर्टिकल 14' के लिए अपने एक लेख में निकिता जैन लिखती हैं कि मुंबई के जय भीम नगर (जेबीएन) में तीन महीने पहले सरकार ने दशकों से बसे घरों को ध्वस्त कर दिया. यह इलाका एक कामकाजी वर्ग की बस्ती थी, जहां रहने वाले कई लोग वही मजदूर थे जिन्होंने पवई के इलाके में पॉश हाउसिंग टावर्स खड़े किए. वो लिखती हैं कि जय भीम नगर का मामला दिखाता है कि कैसे राजनीतिक दलों से जुड़े बिल्डरों को निम्न-आय वाले क्षेत्रों में पुनर्विकास के अधिकार मिलते हैं और उसके बाद कैसे लोग सड़कों पर आ जाते हैं. अक्सर ऐसे पुनर्विकास के चलते गरीब परिवारों को विस्थापन और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. वह लिखती हैं कि जेबीएन का हाल भी काफी हद तक धारावी के पुनर्विकास परियोजना जैसा ही है, जिसका ठेका ताकतवर अडानी समूह को दिया गया है.
उजाड़ीकरण विरोध दिवस: 'द मूकनायक' ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि उदयपुर शहर में स्ट्रीट वेंडर्स के विस्थापन के विरोध में 'उजाड़ीकरण विरोध दिवस' मनाया गया. ठेला यूनियन के संरक्षक राजेश सिंघवी ने कहा कि देश में विकास के नाम पर बड़े पैमाने पर गरीबों का विस्थापन किया जा रहा है. नेशनल हॉकर फेडरेशन के याकूब मोहम्मद ने बताया कि पथ विक्रेताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए वर्ष 1999 से हम लगातार यह दिवस मनाते हैं.
कैंसर के इलाज की ओर बढ़ी दुनिया
नोबेल पुरस्कार विजेता शोध माइक्रोआरएनए (miRNA) ने कैंसर की जांच और इलाज में नई उम्मीदें जगाई हैं. माइक्रोआरएनए दो प्रकार से काम कर सकता है. कुछ ट्यूमर को दबाते हैं, जबकि कुछ ट्यूमर को बढ़ावा देते हैं. अनोना दत्त ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के लिए की गई रिपोर्ट में लिखा है कि वैज्ञानिक अब ऐसा उपचार विकसित कर रहे हैं, जो नुकसानदेह माइक्रोआरएनए को अवरुद्ध करें या फायदेमंद माइक्रोआरएनए को बढ़ावा दें. माइक्रोआरएनए छोटे आरएनए अणु हैं जो जीन एक्सप्रेशन को नियंत्रित करते हैं. इनकी खोज वैज्ञानिक विक्टर एम्ब्रोज़ और गैरी रूवकन ने की थी. शुरुआत में इसे एक विशिष्ट कीड़े में पाया गया था, लेकिन बाद में यह पता चला कि माइक्रोआरएनए का कामकाज सभी बहुकोशिकीय जीवों में होता है और यह जैविक प्रक्रियाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. माइक्रोआरएनए आधारित तकनीकों से कैंसर का जल्दी पता लगाना संभव हो रहा है. इसके अलावा, माइक्रोआरएनए का उपयोग अल्जाइमर और वायरल संक्रमण जैसी बीमारियों के इलाज में भी किया जा रहा है.
कैसी दिखती है प्रोपोगेंडा के 100 साल की तस्वीर
ब्रैडली डेविस की किताब 'प्रोप्रोगैंडोपोलिस: ए सेंचुरी ऑफ प्रोपेगेंडा फ्रॉम अराउंड द वर्ल्ड' में पिछले 100 वर्षों के दौरान प्रचार (प्रोपोगेंडा) के इस्तेमाल का विश्लेषण किया गया है. इसमें दिखाया गया है कि कैसे डर, भावनाओं और विश्वासों को भड़काकर जनमत को प्रभावित और नियंत्रित किया गया. इस किताब में विभिन्न दौर और विचारधाराओं से प्रेरित चित्रों और अभियानों को प्रस्तुत किया गया है, मसलन सद्दाम हुसैन के घोड़े पर बैठे भित्तिचित्र, सोवियत अंतरिक्ष उपलब्धियों को दर्शाने वाले कालीन, उत्तर कोरिया के मिसाइल परेड की तस्वीरें, युगांडा में एड्स जागरूकता अभियान, जिसमें सैनिकों को ‘कंडोम फायर’ करते हुए दिखाया गया है. पाकिस्तान में ‘जेहाद’ के लिए आह्वान करने वाले विज्ञापन भी इस किताब में शामिल किए गए हैं.. यह किताब दिखाती है कि कैसे विरोधाभासी विचारधाराओं ने प्रोपोगेंडा का इस्तेमाल किया, चाहे वह युद्ध हो, राजनीति, स्वास्थ्य अभियान, या सामाजिक मुद्दे.
चलते-चलते : भोपाल की वह बाग़ी शहज़ादी

बीबीसी में चेरीलन मोलन ने आज़ादी के पहले के भोपाल की एक ऐसी शहजादी के बारे में लिखा है, जो अपनी बाग़ी तबियत के कारण जानी गई. उसने परदा नामंजूर किया, अपने बाल काट कर रखे, शिकार किये, पोलो खेला, हवाई जहाज उड़ाए और अपने पिता के कैबिनेट का हिस्सा रही और गोल मेज सम्मेलनों में भोपाल की नुमाइंदगी करते हुए महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के साथ बातचीत में शामिल हुई. दस साल चली शादी के बाद हुए बच्चे के साथ विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गई. आबिदा सुलतान (1913 - 2002) के बेटे का नाम शहरयार खान था, जो बाद में पाकिस्तान के विदेश सचिव रहे औऱ बाद में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के चेयरमैन भी. आबिदा सुलतान की जीवनी 2004 में आई, जिसमें वह मुश्किल शादी औऱ सेक्स के बारे में बात करती हैं. लेखक शम्सुर रहमान अलवी जिनका काम भोपाल की महिला शासकों पर है कहते हैं, लोग आज भी आबिदा सुल्तान को बिया हुज़ूर के नाम से याद करते हैं.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.