26/03/2025 : मोदी की ईदी | अमेरिका के चैट पर वॉर लीक | रूस-यूक्रेन में पहला राजीनामा | टेस्ला को ओवरटेक किया चीनी कार ने | ग्रीनविच नहीं उज्जैन से शुरु होगा समय | कनाडा का भारत पर फिर आरोप |
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा !
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
सुधीर चौधरी की भर्ती को लेकर संसद में सवाल
हरियाणा एससी/एसटी और ओबीसी छात्रों की 40,000 छात्रवृत्तियाँ लंबित
केंद्र ने मनरेगा जॉब कार्डों में से नाम हटाने की उच्च दर से निबटने के लिए दिशा–निर्देश जारी किए
नेपाल में राजशाही की वापसी को लेकर भारत पर उंगली
भारत की अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन डॉलर पार, पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी
खेलो इंडिया की फंडिंग में गैर भाजपा राज्यों से भेदभाव?
अमेरिकी दबाव के बीच भारत ने ‘गूगल टैक्स’ हटाने का लिया फैसला
चीनी कार कंपनी ने मस्क की टेस्ला को पीछे छोड़ा
आकार पटेल : अमेरिका और 10% दुनिया के हाथ से फिसलता रसूख और घटता असर
ऑस्कर विजेता फिलीस्तीनी निर्देशक की इजरायलियों ने उनके गांव में घुस कर दी पिटा
नफ़रत, हिक़ारत और हिंसा के बुलडोजरों के बीच, इस बार ईद पर मुसलमानों को ‘सौग़ात ए मोदी’
यह कोई पाखंड नहीं, अपितु मीडिया की सुर्खियों की एक खास खबर है कि सरकारी ठेकों में कथित तौर पर मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण का विरोध करने वाली भाजपा इस बार ईद पर देश के 32 लाख मुस्लिम परिवारों को सौग़ात देने जा रही है. बल्कि मंगलवार से उसने “सौग़ात-ए-मोदी” नामक अपने इस अभियान की शुरुआत भी कर दी है. इसके तहत वंचित तबके के मुसलमानों को ईद मनाने के लिए जरूरी सामानों की एक किट दी जाएगी, जिसमें महिलाओं-को सूट और पुरुषों के लिए कुर्ता-पायजामा का कपड़ा, दाल, चावल, सेवईं, सरसों तेल, चीनी, मेवे, खजूर आदि शामिल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर अभियान भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के नेतृत्व में चलाया जा रहा है. मोर्चे के 32 हजार कार्यकर्ता देश की 32 हजार मस्जिदों के सहयोग से जरूरतमंदों तक यह किट पहुंचाएंगे. हर मस्जिद से 100 लोगों को मदद का लक्ष्य रखा गया है. मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने कहा कि ईद के दिन 31 मार्च को देश के 32 लाख गरीब मुस्लिम परिवारों को यह सौग़ात मिल जाएगी.
लेकिन, “सौग़ात-ए-मोदी” के बरक्स एक और तस्वीर है, जो असलियत के धरातल पर दूसरी ही कहानी बयां करती है. मसलन :
बुलडोजर न्याय से अदालत को झटका : “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा "मनमाने" तरीके से घरों को तोड़े जाने पर नाराजगी जताई है. कोर्ट ने टिप्पणी की, “नोटिस देने के 24 घंटे के भीतर जिस तरह से घरों को ध्वस्त किया गया, उससे कोर्ट की अंतरात्मा को झटका लगा है.” न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा, "जिस तरीके से पूरी प्रक्रिया की गई, वह चौंकाने वाला है. अदालतें इस तरह की प्रक्रिया को सहन नहीं कर सकतीं. अगर हम इसे एक मामले में सहन करते हैं, तो यह जारी रहेगा." दरअसल याचिकाकर्ताओं, जिनमें वकील ज़ुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद, दो विधवाएं और एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं, ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विध्वंस के खिलाफ याचिका खारिज किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
नवरात्रि में मांस वर्जित करने की मांग, ईद पर न काटे बकरा : दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में भाजपा नेताओं ने नवरात्रि के दौरान मांस की दुकानों को बंद करने की मांग की है. उनका दावा है कि ये दुकानें हिंदू भावनाओं को आहत करती हैं. दिल्ली के भाजपा विधायक रविंद्र नेगी ने कहा, "नवरात्रि के दौरान मंदिरों के सामने भी मांस की दुकानें लगाई जाती हैं. यह एक हिंदू त्योहार है, और मांस की दुकानों को देखकर हमारी भावनाएं आहत होती हैं. मीठी ईद पर सिवइयां खाई जा सकती हैं. बकरा काटने की कोई आवश्यकता नहीं है."
मदरसों की फंडिंग की जाँच करेंगे धामी : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को राज्य में मदरसों के फंडिंग स्रोतों की जांच करने का निर्देश दिया. इसके बाद 136 गैर-पंजीकृत संस्थान बंद कर दिए गए. सरकारी अनुमान के अनुसार, राज्य में लगभग 450 मदरसे पंजीकृत हैं, जबकि लगभग 500 बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं. हालांकि, ये संस्थान सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के तहत काम कर रहे हैं.
स्कूलों में ईद समारोह रद्द : हिमाचल प्रदेश के एक निजी स्कूल ने दक्षिणपंथी समूह देवभूमि संघर्ष समिति द्वारा विरोध प्रदर्शन की धमकी के बाद ईद समारोह से जुड़े अपने कार्यक्रमों को रद्द कर दिया. स्कूल ने शुरू में छात्रों से कुर्ता-पायजामा पहनने और ईद के पारंपरिक भोज्य पदार्थ लाने के लिए कहा था, लेकिन समूह ने दावा किया कि यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.
निर्वाचित विधायक भी अपमान के निशाने पर : गुजरात विधानसभा में एकमात्र मुस्लिम विधायक ने सोमवार को भाजपा विधायकों द्वारा कथित तौर पर उनके प्रति अपमानजनक टिप्पणियों के खिलाफ स्पीकर से सुरक्षा की मांग की. इसके जवाब में, स्पीकर शंकर चौधरी ने सभी विधायकों से व्यक्तिगत संदर्भ न देने का आग्रह किया. यह घटना तब हुई जब कांग्रेस के विधायक इमरान खेडावाला ने भाजपा विधायकों द्वारा उन्हें "एक विशेष समुदाय से" संबोधित करने पर आपत्ति जताई. प्रश्नकाल के दौरान, खेडावाला ने पूछा कि अहमदाबाद में विशाल सर्कल और सरखेज क्रॉसरोड्स के बीच प्रस्तावित पुल का निर्माण कब शुरू होगा और इसे कब तक पूरा किया जाएगा? यह सड़क अहमदाबाद के मुस्लिम बहुल इलाकों जुहापुरा और सरखेज से होकर गुजरती है. इस पर, राज्य मंत्री जगदीश विश्वकर्मा ने जवाब दिया कि निर्माण शुरू करने और इसे पूरा करने का निर्णय कई बातों पर निर्भर करता है, जिनमें मार्ग पर अतिक्रमण की संख्या भी शामिल है.
नागपुर हिंसा : हाई कोर्ट ने फहीम और युसूफ के घर को गिराने को अत्याचार बताया, बुलडोजर चलाने पर लगाई रोक
नागपुर नगर निगम (एनएमसी) अधिकारियों ने सोमवार 24 मार्च को नागपुर हिंसा मामले के दो प्रमुख आरोपियों फहीम खान और युसूफ शेख के आवास पर बुलडोजर चला दिया था. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना की और इसे अत्याचार करार दिया, साथ ही आगे इस तरह की किसी भी कार्रवाई पर रोक लगा दी. निगम ने 17 मार्च की सांप्रदायिक हिंसा के प्रमुख आरोपी फहीम खान के दो मंजिला आवास के निर्माण को अनधिकृत बताकर ध्वस्त कर दिया था. वहीं महल क्षेत्र में भड़की अशांति से जुड़े एक अन्य व्यक्ति यूसुफ शेख के आवास के एक हिस्से को अवैध निर्माण बताकर गिरा दिया था. न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति वृषाली जोशी की खंडपीठ ने निगम से यह भी पूछा, “घर के मालिकों को यह नोटिस क्यों नहीं दिया गया कि घर अवैध है? संपत्ति के विध्वंस से पहले उन्हें सुनवाई का मौका क्यों नहीं दिया गया?”
अदालत खान की मां की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि निर्माण योजनाओं को 2003 में निगम ने ही बिना किसी आपत्ति के मंजूरी दी गई थी. अदालत ने इस पर एनएमसी अधिकारियों से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई 15 अप्रैल को तय की है. खान अल्पसंख्यक डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के शहर अध्यक्ष हैं. हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए 100 से अधिक लोगों में से वह भी एक हैं. उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है.
एनएमसी अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने खान को “कुछ दिन पहले” बिल्डिंग प्लान के उल्लंघन और औपचारिक मंजूरी की कमी के लिए नोटिस जारी किया था. लोक सेवकों ने भी इस बात की पुष्टि की कि खान की मां के नाम पर पंजीकृत संपत्ति का निर्माण नागपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट (एनआईटी) के लीजहोल्ड प्लॉट पर किया गया था. इसका पट्टा 2020 में समाप्त हो गया था और कार्रवाई से 24 घंटे पहले नोटिस दिया गया था. अलग से लोक सेवकों की एक टीम ने महल के जोहरीपुरा इलाके में शेख के आवास पर एक अनधिकृत बालकनी को ध्वस्त कर दिया था.
सुधीर चौधरी की भर्ती को लेकर संसद में सवाल
पत्रकार से तृणमूल कांग्रेस की सांसद बनीं सागरिका घोष ने दूरदर्शन द्वारा न्यूज़ एंकर सुधीर चौधरी के साथ कथित अनुबंध की आलोचना की है. मंगलवार को राज्यसभा में घोष ने अपने भाषण में चौधरी का नाम नहीं लिया, लेकिन अपने “एक्स” हैंडल पर भाषण की एक वीडियो क्लिप साझा करते हुए लिखा, “आज संसद में मैंने @sudhirchaudhary और नफरत व झूठ की टीवी समाचार फैक्ट्री को आड़े हाथों लिया.” सागरिका ने चौधरी का नाम लिये बिना कहा, “दुर्भाग्य से, ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि दूरदर्शन ने एक ऐसे व्यक्ति के साथ अनुबंध किया है, जो टेलीविजन पर अत्यधिक विभाजनकारी, भड़काऊ और घृणा फैलाने वाली भाषा का प्रयोग करता है और जो जबरन वसूली के आरोपों में दो बार जेल जा चुका है. अपराधी एंकर पत्रकारिता के लिए एक कलंक हैं. यह अत्यंत परेशान करने वाली बात है कि इन घातक रिकॉर्ड्स वाले व्यक्तियों को हमारे गौरवशाली राष्ट्रीय प्रसारक का हिस्सा बनने दिया जा सकता है.” उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद बॉलीवुड अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के खिलाफ मीडिया के व्यवहार का उल्लेख करते हुए कहा कि चार साल पहले, समाचार चैनल्स ने उसके खिलाफ एक प्रेरित अभियान चलाया. आज उसे निर्दोष साबित किया गया है. सभी आरोप निराधार साबित हुए हैं. लेकिन कौन रिया चक्रवर्ती को उस अपमान के वर्षों को लौटा देगा, जो उन्होंने मीडिया के हाथों सहा? “हरकारा” ने 21 मार्च 2025 के अपने अंक में “14 करोड़ रु. में डीडी न्यूज़ को रोज सुधीर चौधरी का घंटा” शीर्षक से इस खबर को प्रकाशित किया था.
हरियाणा एससी/एसटी और ओबीसी छात्रों की 40,000 छात्रवृत्तियाँ लंबित : हरियाणा विधानसभा की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के कल्याण संबंधी समिति ने राज्य के कल्याण कार्यक्रमों में गंभीर कमियों को उजागर किया है. अपनी 48वीं रिपोर्ट में, इसने एससी/एसटी और ओबीसी छात्रों के लिए लंबित 40,000 छात्रवृत्तियों के खतरनाक बैकलॉग का खुलासा किया है. इस कारण इन वर्गों के छात्रों की शिक्षा खतरे में पड़ गई है. इसके अलावा, भाजपा विधायक भगवान दास की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकारी नौकरियों और पदोन्नति में आरक्षित श्रेणी की रिक्तियों के लगातार बैकलॉग को भी उजागर किया है.
केंद्र ने मनरेगा जॉब कार्डों में से नाम हटाने की उच्च दर से निबटने के लिए दिशा–निर्देश जारी किए : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत श्रमिकों को जारी किए गए जॉब कार्डों के नाम हटाने की उच्च दर से निपटने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इनमें ग्राम सभा से सत्यापन और नाम हटाने के लिए लक्षित जॉब कार्डों की सूची को सार्वजनिक डोमेन में रखने और अपील प्रक्रिया को अनिवार्य करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं, ताकि कॉर्डधारी आपत्तियां उठा सकें. पिछले चार वर्षों में 10.43 करोड़ श्रमिकों को इस कार्यक्रम से हटा दिया गया है. सरकार इससे पहले तक जॉब कॉर्ड से नाम हटाने से इनकार करती रही है. अब भी वह यही कह रही है कि नाम हटाने और एबीपीएस अनिवार्य बनाने के बीच कोई संबंध नहीं है.
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर जेपीसी का कार्यकाल बढ़ा : लोकसभा ने मंगलवार 25 मार्च को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर गठित संयुक्त संसदीय समिति का कार्यकाल मानसून सत्र, 2025 के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने लोकसभा में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक 2024 और संघ राज्य क्षेत्र कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पर रिपोर्ट पेश करने के लिए समय बढ़ाने के संबंध में प्रस्ताव पेश किया था.
कनाडाई खुफिया एजेंसी ने कहा कि भारत उनके चुनावों में दखलंदाजी कर रहा है
कनाडा के अखबार द ग्लोब एंड मेल की एक रिपोर्ट के अनुसार, कनाडाई सुरक्षा खुफिया सेवा (सीएसआईएस) ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि भारतीय एजेंटों और उनके प्रॉक्सी ने 2022 में कंजर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व चुनाव में पियरे पॉलिवियर के समर्थन को संगठित करने में भूमिका निभाई. एक गोपनीय सूत्र के हवाले से कहा गया है, "भारतीय एजेंटों ने दक्षिण एशियाई समुदाय के भीतर पॉलिवियर के लिए धन जुटाने और संगठित करने में भाग लिया." हालांकि, इस प्रयास को "व्यापक और अत्यंत संगठित" ऑपरेशन नहीं बताया गया. सूत्र ने यह भी स्पष्ट किया कि "सीएसआईएस के पास कोई सबूत नहीं है कि पॉलिवियर या उनके भीतरी लोगों को इन कथित कार्यों की जानकारी थी."
सीएसआईएस की डिप्टी डायरेक्टर वेनेसा लॉयड ने चेतावनी देते हुए कहा, "हमने देखा है कि भारत सरकार के पास कनाडाई समुदायों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने का इरादा और क्षमता है, ताकि वह अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को थोप सके." उन्होंने आगे बताया, "भारत सरकार की विदेशी हस्तक्षेप गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कनाडा स्थित प्रॉक्सी और उनके नेटवर्क पर निर्भरता बढ़ रही है."
रॉयटर्स के अनुसार, सीएसआईएस ने सोमवार को कहा कि चीन और भारत 28 अप्रैल को होने वाले कनाडाई आम चुनाव में हस्तक्षेप की कोशिश कर सकते हैं, जबकि रूस और पाकिस्तान की भी संभावना बनी हुई है. यह बयान ऐसे समय आया है, जब ओटावा के भारत और चीन के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं. चीन और भारत ने हस्तक्षेप के आरोपों को खारिज किया है. जनवरी में जारी एक आधिकारिक जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि कनाडा ने 2019 और 2021 के चुनावों में चीन और भारत के हस्तक्षेप के प्रयासों पर धीमी प्रतिक्रिया दी, लेकिन चुनाव परिणामों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. पियरे पॉलिवियर ने 2022 में कंजर्वेटिव पार्टी के नेता के रूप में पहले ही मतदान में 68% वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी.
नेपाल में राजशाही की वापसी को लेकर भारत पर उंगली
नेपाल में राजतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के बीच, कुछ नागरिकों ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर भारतीय धार्मिक कट्टरपंथियों के सहयोग से राजशाही पुनर्स्थापित करने का आरोप लगाते हुए बयान जारी किया. बयान में कहा गया कि ज्ञानेंद्र का यह कदम नेपाल की संवैधानिक मूल्यों—लोकतांत्रिक गणतंत्र, संघवाद और धर्मनिरपेक्षता—के लिए खतरा है. ज्ञानेंद्र भारत की राजनीतिक ताकतों से समर्थन मांग रहे हैं, जो 2015 में नेपाल को आर्थिक नाकेबंदी कर चुकी हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने खुले तौर पर नेपाल में राजतंत्र की वापसी की इच्छा जताई है. 2005 में ज्ञानेंद्र ने सेना की मदद से लोकतंत्र को ध्वस्त कर सीधा शासन स्थापित किया था, जिसे जनआंदोलन ने गिरा दिया. नागरिकों ने कहा कि राजशाही की वापसी से नेपाल की संप्रभुता कमजोर होगी और अर्थव्यवस्था अस्थिर होगी. उन्होंने ज्ञानेंद्र को "अराजकता फैलाने" की योजना बताया. 9 मार्च को काठमांडू में हुए राजतंत्र समर्थक प्रदर्शनों ने अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचा, जहां ज्ञानेंद्र को हज़ारों समर्थकों ने स्वागत किया.
लोकसभा ने 35 संशोधनों के साथ वित्त विधेयक 2025 पारित किया : लोकसभा ने मंगलवार को 35 संशोधनों के साथ वित्त विधेयक, 2025 पारित कर दिया. सीतारमण ने एक फरवरी को 50.65 लाख करोड़ रुपये के कुल व्यय के साथ केंद्रीय बजट पेश किया था, जो चालू वित्त वर्ष 2024-25 के संशोधित अनुमान 47.16 लाख करोड़ रुपये से 7.4 प्रतिशत अधिक है. वित्त वर्ष 2026 के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के लिए 5,41,850.21 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि वित्त वर्ष 2025 के लिए यह 4,15,356.25 करोड़ रुपये था. वित्त विधेयक अब विचार के लिए राज्यसभा में जाएगा. वित्त मंत्री ने संसद को बताया कि नए आयकर विधेयक पर जुलाई में शुरू होने वाले मानसून सत्र में चर्चा की जाएगी.
भारत की अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन डॉलर पार, पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी : भारतीय अर्थव्यवस्था ने 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को छू लिया. इसी के साथ भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. नवीनतम अनुमानों के अनुसार, भारत का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 2025 में 4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होगा, जो जापान के 4.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और जर्मनी के 4.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से थोड़ा पीछे है. विकास के अनुमान को देखते हुए, भारत 2025 में जापान और 2027 तक जर्मनी से आगे निकल जाएगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत ने पिछले एक दशक में अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को दोगुना कर दिया है, जो 2015 में 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 105 प्रतिशत बढ़कर 2025 में 4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है.
इन-हाउस कमेटी ने जस्टिस यशवंत वर्मा प्रकरण की जांच शुरू की : दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से नकदी बरामद होने के आरोपों की जांच के लिए भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति ने मंगलवार 25 मार्च से अपनी जांच शुरू कर दी. समिति के सदस्य जांच के सिलसिले में दोपहर करीब एक बजे न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर पहुंचे और वहां करीब 45 मिनट तक रुके.
दिल्ली के प्रियांश आर्य ने आते ही दिल जीता
मंगलवार को हर किसी की जुबान पर प्रियांश आर्य का नाम है. 24 साल के बाएं हाथ के बल्लेबाज प्रियांश ने पंजाब किंग्स की तरफ से डेब्यू आईपीएल में 200 से ज्यादा के स्ट्राइक रेट से रन बनाए. वह भी तब जब उनके सामने कगिसो रबाडा, मोहम्मद सिराज, प्रसिद्ध कृष्णा, राशिद खान जैसे विश्व स्तरीय गेंदबाज थे, जिनके सामने अच्छे-अच्छे बल्लेबाज पानी मांगते हैं. हालांकि वह अपने अर्धशतक (23 गेंद पर 47 रन) से चूक गए. दिल्ली के मध्यमवर्गीय परिवार का यह लड़का पिछले साल दिल्ली प्रीमियर लीग (डीपीएल) में चर्चा में आया था, जब उसने एक ओवर में छह छक्के लगाए थे. प्रियांश के माता-पिता सरकारी शिक्षक हैं और वह भी उन्हीं की तरह शिक्षक बनना चाहता था. यहां उनके बारे में, उनके करियर ग्राफ समेत सबकुछ जान सकते हैं.
खेलो इंडिया की फंडिंग में गैर भाजपा राज्यों से भेदभाव?
नई दिल्ली में चल रहे खेलो इंडिया पैरा गेम्स में तमिलनाडु ने अब तक 24 स्वर्ण पदक जीते हैं. राज्य स्वर्ण पदकों और कुल पदकों दोनों में दूसरे स्थान पर है. 2024 ओलंपिक में, तमिलनाडु के छह एथलीटों ने 4 x 400 मीटर रिले में सीज़न का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, जो किसी भी राज्य से सबसे अधिक संख्या थी. 'द क्विंट' के लिए लास्या शेखर की रिपोर्ट है कि बावजूद इसके केंद्र सरकार से राज्य को मिलने वाली धनराशि निराशाजनक रूप से कम है. 2017 में खेलो इंडिया योजना शुरू होने के बाद से राज्यों को वितरित 2,168.78 करोड़ रुपये में से तमिलनाडु को मात्र 20.4 करोड़ रुपये ही मिले. यह तब है, जब राज्य ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में शानदार प्रदर्शन किया है. डेटा से पता चलता है कि भौगोलिक रूप से बड़े और गैर-भाजपा शासित राज्यों को फंडिंग में भारी असमानता का सामना करना पड़ रहा है. खेलो इंडिया योजना के तहत तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, केरल, पंजाब, झारखंड और छत्तीसगढ़ को क्रमशः 20.4 करोड़, 22.22 करोड़, 17.77 करोड़, 50 करोड़, 78.02 करोड़, 9.63 करोड़ और 19.66 करोड़ रुपये मिले. वहीं, भौगोलिक रूप से सबसे बड़े भाजपा शासित राज्यों मसलन राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश को क्रमशः 107.33 करोड़, 94.06 करोड़, 87.43 करोड़ और 438.27 करोड़ रुपये मिले. तमिलनाडु किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक शीर्ष एथलीट पैदा करता है. फिर भी, राज्य में बुनियादी ढांचे की कमी है.
रूस-यूक्रेन का युद्ध विराम की तरफ पहला कदम
ब्लैक सी में युद्ध विराम और ऊर्जा हमलों पर प्रतिबंध पर सहमत
अमेरिकी मध्यस्थता में रूस और यूक्रेन ने मंगलवार को काला सागर में सुरक्षित नौवहन सुनिश्चित करने तथा एक-दूसरे की ऊर्जा सुविधाओं पर हमले रोकने पर अलग-अलग समझौतों पर हस्ताक्षर किए. ये करार, यदि लागू हुए, तो व्यापक युद्ध विराम की दिशा में अब तक की सबसे बड़ी प्रगति मानी जाएगी. अमेरिका इसे तीन साल से जारी युद्ध को समाप्त करने वाली शांति वार्ता की पहली सीढ़ी मान रहा है.
रॉयटर्स के मुताबिक दोनों देशों ने कहा कि वे इन समझौतों के पालन के लिए वाशिंगटन पर निर्भर रहेंगे. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने कीव में संवाददाताओं से कहा, "अगर रूस इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो मेरा सीधा सवाल राष्ट्रपति ट्रम्प से होगा. हम प्रतिबंधों और हथियारों की मांग करेंगे." वहीं, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा, "हमें स्पष्ट गारंटी चाहिए. कीव के साथ पिछले अनुभवों को देखते हुए, यह गारंटी केवल अमेरिका के आदेश से ही संभव है."
ये करार सऊदी अरब में हुई वार्ता के बाद हासिल किए गए, जिसकी शुरुआत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने की. ट्रम्प ने युद्ध जल्द खत्म करने का वादा करते हुए कीव के समर्थन से मॉस्को के प्रति नरम रुख अपनाया है. रूस के साथ समझौते के तहत, अमेरिका ने रूसी कृषि और उर्वरक निर्यात के लिए बाजार पहुंच बहाल करने में मदद का वादा किया. क्रेमलिन के अनुसार, इसके लिए कुछ प्रतिबंध हटाने होंगे. यूक्रेनी रक्षा मंत्री रुस्तेम उमेरोव ने चेतावनी दी कि काले सागर के पूर्वी हिस्से से बाहर रूसी युद्धपोतों की कोई भी गतिविधि "उल्लंघन" मानी जाएगी, जिसके जवाब में यूक्रेन आत्मरक्षा का अधिकार इस्तेमाल करेगा.
युद्ध के दौरान रूस ने यूक्रेन के बिजली ग्रिड पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए, जबकि यूक्रेन ने हाल में रूसी तेल और गैस लक्ष्यों पर दूरगामी हमले तेज किए. 2022 में रूस ने यूक्रेन पर नौसैनिक नाकाबंदी लगा दी थी, जिससे वैश्विक खाद्य संकट गहराने की आशंका पैदा हो गई थी. हालांकि, 2023 में यूक्रेनी हमलों के बाद रूस ने अपने नौसैनिक बलों को पीछे हटा लिया, जिससे कीव ने अपने बंदरगाह फिर से खोले.
ट्रम्प दोनों पक्षों पर युद्ध जल्द समाप्त करने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन यूक्रेन और यूरोपीय सहयोगियों को डर है कि वह पुतिन के साथ कोई जल्दबाजी में समझौता कर सकते हैं. इससे यूक्रेन की नाटो की सदस्यता की महत्वाकांक्षाएं धूमिल हो सकती हैं, और रूस द्वारा दावा किए गए चार क्षेत्रों पर उसकी मांगें मान ली जा सकती हैं. यूक्रेन ने इसे "आत्मसमर्पण" करार देते हुए खारिज किया है.
अमेरिका-रूस तालमेल के बीच ट्रम्प व्यापारिक अवसरों की तलाश में हैं, लेकिन यूरोपीय नेता इसे सुरक्षा के लिए खतरा मान रहे हैं. शांति वार्ता की दिशा में यह समुद्री युद्धविराम एक संवेदनशील कदम है, पर इसकी सफलता दोनों देशों के परस्पर विश्वास और अमेरिकी निगरानी पर निर्भर करेगी.
अमेरिकी रक्षा मंत्री ने अपने ही वार प्लान का भंडाफोड़ किया चैट पर पत्रकार के साथ
व्हाइट हाउस ने सोमवार को पुष्टि की कि रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने यमन में हूथी विद्रोहियों पर अमेरिकी हमलों से दो घंटे पहले एक एन्क्रिप्टेड ग्रुप चैट में युद्ध योजनाएं साझा कीं, जिसमें गलती से 'द अटलांटिक' पत्रिका के एडिटर इन चीफ जेफ्री गोल्डबर्ग भी शामिल थे. यह अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के इतिहास में एक गंभीर सुरक्षा भंग की घटना है. पूरी दुनिया इस वाकये से स्तब्ध है.
हेगसेथ, जो हवाई की यात्रा पर थे, ने गोल्डबर्ग को "तथाकथित पत्रकार" बताते हुए कहा, "किसी ने युद्ध योजनाएं नहीं भेजीं." लेकिन व्हाइट हाउस ने चैट की प्रामाणिकता स्वीकार करते हुए जाँच शुरू कर दी है. हिलेरी क्लिंटन ने इस घटना को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा, "यह मज़ाक नहीं है!" उल्लेखनीय है कि हेगसेथ ने 2016 में क्लिंटन के निजी ईमेल सर्वर के इस्तेमाल को "देशद्रोह" बताया था.
15 मार्च की सुबह, हेगसेथ ने सिग्नल ऐप पर बने एक ग्रुप चैट में यमन हमले की "ऑपरेशनल जानकारियाँ" पोस्ट कीं, जिसमें लक्ष्य, हथियारों के प्रकार और हमले के क्रम का विवरण शामिल था. यह चैट राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज़ द्वारा बनाई गई थी, जिसमें गलती से गोल्डबर्ग को जोड़ दिया गया. गोल्डबर्ग ने लिखा कि उन्होंने दो दिनों तक राष्ट्रपति ट्रंप के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों—उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, विदेश मंत्री मार्को रुबियो और हेगसेथ—की बातचीत को पढ़ा.
हेगसेथ ने चैट में लिखा : "पूर्वी समयानुसार 1:45 बजे यमन में पहला विस्फोट होगा." गोल्डबर्ग ने बताया कि उन्होंने सुपर मार्केट पार्किंग में कार में बैठकर इसकी पुष्टि का इंतज़ार किया. 1:55 बजे, यमन की राजधानी सना के आसपास हूथी नेताओं के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू हो गए.
रक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा कि संवेदनशील युद्ध योजनाएं सिग्नल जैसे वाणिज्यिक ऐप पर साझा करना 'जासूसी अधिनियम' का उल्लंघन हो सकता है. पूर्व सुरक्षा अधिकारियों ने चेतावनी दी कि अगर चैट में निजी फ़ोन के इस्तेमाल हुए हैं तो फिर चीनी हैकर्स द्वारा जानकारी चुराने का जोखिम बढ़ जाता है.
चैट ग्रुप में खिल्ली उड़ाने से यूरोप के नेता नाराज़
वेंस ने लिखा, "यूरोपियों को बार-बार बचाने से मुझे नफरत है," जबकि हेगसेथ ने जवाब दिया, "यूरोपीय फ्रीलोडिंग से अपनी घृणा साझा करता हूं... यह दयनीय है."
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी अधिकारियों द्वारा यूरोप को "दयनीय" और "फ्रीलोडर" बताने वाले लीक संदेशों ने अटलांटिक गठजोड़ में गहरी दरार को उजागर कर दिया है. *द अटलांटिक* में सामने आए सिग्नल ग्रुप चैट के मुताबिक, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने यमन पर अमेरिकी हमले की योजना पर चर्चा के दौरान यूरोपीय देशों के प्रति घृणा जताई. यूरोप अब अमेरिका से स्वतंत्र रक्षा रणनीति बनाने पर जोर दे रहा है. ईयू ने 800 अरब यूरो के रक्षा कोष की घोषणा की है, जबकि नाटो देशों ने सैन्य खर्च बढ़ाने का संकल्प लिया है. हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिकी सैन्य क्षमता का विकल्प ढूंढ़ना चुनौतीपूर्ण होगा.
वेंस ने लिखा, "यूरोपियों को बार-बार बचाने से मुझे नफरत है," जबकि हेगसेथ ने जवाब दिया, "यूरोपीय फ्रीलोडिंग से अपनी घृणा साझा करता हूं... यह दयनीय है." चैट में 'एसएम' (माना जा रहा है कि यह ट्रंप के सलाहकार स्टीफन मिलर हैं) ने सुझाव दिया कि यूरोप और मिस्र को अमेरिकी सैन्य अभियान का "आर्थिक मुआवजा" देना चाहिए.
यूरोपीय नेताओं ने इन टिप्पणियों को "अपमानजनक" बताते हुए चिंता जताई कि ट्रंप प्रशासन न केवल नाटो गठजोड़ को कमजोर कर रहा है, बल्कि यूरोपीय लोकतंत्र और मूल्यों पर भी सवाल उठा रहा है. फ्रांसीसी विश्लेषक फ्रांस्वा हेइसबर्ग ने कहा, "वेंस के म्यूनिख भाषण और ये लीक संदेश साबित करते हैं कि अब हमारे मूल्य साझा नहीं हैं." यूरोपीय संघ के पूर्व सलाहकार नताली तोच्ची के अनुसार, "ट्रंप प्रशासन यूरोप को कमजोर करने की सक्रिय कोशिश कर रहा है." यूरोपीय नेताओं को डर है कि अमेरिका की यह रवैया वैश्विक व्यापार और सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है, खासकर जब चीन जैसे देशों को इसका फायदा मिले.
लीक चैट ने अमेरिका की सुरक्षा प्रक्रियाओं पर भी सवाल खड़े किए हैं. संवेदनशील सैन्य योजनाओं को एन्क्रिप्टेड ऐप पर चर्चा करना "असामान्य और संभवत: अवैध" बताया जा रहा है. पूर्व अमेरिकी सेना कमांडर बेन होजेस ने चेतावनी दी कि इससे सहयोगी देश खुफिया जानकारी साझा करने से कतराएंगे. ईयू संसद सदस्य क्रिस्टेल शाल्डेमोसे ने कहा, "क्या हम दुश्मनों की बजाय सहयोगियों की तरह बातचीत शुरू कर सकते हैं?" जबकि यूरोपीय नेता पेरिस और नाटो बैठकों में इस संकट पर चर्चा करने की तैयारी कर रहे हैं.
लीक हुए संदेशों ने साबित कर दिया है कि ट्रंप प्रशासन के लिए यूरोप सिर्फ एक "लेन-देन" है, न कि मूल्यों वाला साझेदार. 1945 के बाद से अटलांटिक गठजोड़ जितना कमजोर आज कभी नहीं रहा. यूरोप के सामने अब एक कड़वा सवाल है: क्या अमेरिका अभी भी विश्वसनीय सहयोगी है?
यूके में बैठकर रूस के लिए चल रही थी जासूसी
बीबीसी की एक जांच में दो महिलाओं की पहचान हुई है, जो यूके से संचालित एक रूसी जासूसी नेटवर्क का हिस्सा थीं. ये दोनों महिलाएं बुल्गारिया की नागरिक हैं, जिनका नाम है स्वेतलीना जेन्चेवा और त्वेतांका डोंचेवा. इस नेटवर्क को रूस के लिए काम करने वाले ऑस्ट्रियाई नागरिक यान मार्सलेक चला रहे थे. इस सेल का निशाना रूसी जासूसी कार्यक्रमों की की जांच करने वाले पत्रकार और यूक्रेन समर्थक लोग थे. बीबीसी ने 80,000 से अधिक टेलीग्राम संदेशों का विश्लेषण किया, जिनमें नेटवर्क के ऑपरेशन्स का खुलासा हुआ है. यूके में इस नेटवर्क के छह सदस्यों को दोषी ठहराया गया है, लेकिन जेंचेवा और डोंचेवा पर अभी कोई आरोप नहीं लगा है. ऑस्ट्रिया में पुलिस ने डोंचेवा को गिरफ्तार किया था, लेकिन कोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया. कई पत्रकारों और अधिकारियों को डर है कि इस नेटवर्क की गतिविधियां अब भी जारी हैं.
स्वेतलीना जेन्चेवा एयरलाइन इंडस्ट्री में काम करती हैं और अपनी नौकरी का इस्तेमाल करके जासूसी नेटवर्क के लिए उड़ान से जुड़ी गोपनीय जानकारी निकालती थीं. इन जानकारियों के ज़रिए, जासूस विमानों में लक्ष्यों के पास बैठते, उनके फोन की स्क्रीन तक देखते और यहां तक कि पिन नंबर तक हासिल कर लेते थे. त्वेतांका डोंचेवा ने वियना में एक पत्रकार की जासूसी उसके घर के सामने फ्लैट लेकर की. डोंचेवा ने पत्रकार पर नजर रखी और एक प्रोपेगेंडा अभियान में भी हिस्सा लिया, जिसका मकसद यूक्रेन समर्थकों को बदनाम करना था.
अमेरिकी दबाव के बीच भारत ने ‘गूगल टैक्स’ हटाने का लिया फैसला
केंद्र सरकार ने ऑनलाइन विज्ञापनों पर समानीकरण शुल्क समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है, जो वित्त विधेयक, 2025 में किये गए 35 संशोधनों का एक हिस्सा है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सरकार का यह कदम अमेरिका के साथ व्यापार तनाव कम करने के लिए उठाया है, क्योंकि नई दिल्ली दोनों देशों के बीच संभावित व्यापार सौदे पर चर्चा के दौरान खुद को अधिक उदार रुख दिखाना चाहती है.
समानीकरण शुल्क क्या है : परिभाषा के अनुसार, समानीकरण शुल्क एक निवासी ई-कॉमर्स कंपनी के साथ-साथ एक गैर-निवासी ई-कॉमर्स कंपनी के कर घटक को 'समान' करने के लिए लगाया जाने वाला शुल्क है. ऑनलाइन विज्ञापनों के लिए अनिवासी सेवा प्रदाताओं को प्रति वर्ष 1 लाख रुपये से अधिक के भुगतान पर 6% समतुल्यकरण शुल्क (ईएल) देना पड़ता है. इसे आम बोलचाल की भाषा में ‘गूगल टैक्स’ भी कहा जाता है. यह गूगल, मेटा और अमेज़ॅन जैसी अपतटीय प्रौद्योगिकी फर्मों द्वारा प्रदान की जाने वाली ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं को प्रभावित करता है.
परिवर्तन क्यों : 2016 से 6% टैक्स लागू है. 2020 में केंद्र सरकार ने भारत में डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने वाली ई-कॉमर्स साइटों पर और 2% समानीकरण कर लगाया. इस कर की मुखर आलोचना संयुक्त राज्य अमेरिका ने की थी और इसे ‘भेदभावपूर्ण और अनुचित’ करार दिया था. अमेरिका का तर्क यह था कि इससे घरेलू कंपनियों को छूट दी गई है. इस कारण भारत ने 2024 में 2% ईएल को निरस्त कर दिया था, जबकि 6% कर जारी रहा.
अक्टूबर 2021 में, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और OECD/G20 समावेशी ढांचे के साथी सदस्यों ने डिजिटल अर्थव्यवस्था के तेज़ विकास से उत्पन्न कर जटिलताओं से निपटने के लिए दो-स्तंभ दृष्टिकोण स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की, जिसका उद्देश्य एक निष्पक्ष और सुसंगत वैश्विक ढांचा बनाना था. अमेरिका ने इससे पहले जून 2020 में डिजिटल सेवा करों की एक साल लंबी जांच की थी. इसमें कहा गया था कि ये टैक्स एप्पल, अमेज़ॅन, गूगल और फेसबुक जैसी तकनीकी कंपनियों के खिलाफ हैं और भारत, ऑस्ट्रिया, इटली, स्पेन, तुर्की और यूनाइटेड किंगडम द्वारा अपनाए गए डिजिटल सेवा कर अमेरिकी डिजिटल कंपनियों के साथ भेदभाव करते हैं. यह अंतरराष्ट्रीय कराधान के सिद्धांतों के साथ असंगत हैं और अमेरिकी कंपनियों पर बोझ डालते हैं.
चीनी कार कंपनी ने मस्क की टेस्ला को पीछे छोड़ा
सीएनएन के मुताबिक चीनी ऑटोमोबाइल कंपनी बीवाईडी ने 2024 में पहली बार $107 बिलियन (लगभग 8.9 लाख करोड़ रुपये) का राजस्व हासिल कर टेस्ला को पीछे छोड़ दिया है. बीवाईडी का यह कारनामा ऐसे समय आया है, जब टेस्ला ग्लोबल बाजार में संकट का सामना कर रही है. टेस्ला के मालिक इलोन मस्क अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के साथ मिलकर अमेरिका और बाकी दुनिया में जो कुछ कर रहे हैं, कार ग्राहक उसका गुस्सा टेस्ला की कारों पर निकाल रहे हैं.
2011 में एलन मस्क ने बीवाईडी को चुनौती देने से इनकार करते हुए तंज किया था, "क्या आपने उनकी कार देखी है?" आज बीवाईडी ने न केवल टेस्ला को राजस्व में पीछे छोड़ा है, बल्कि वैश्विक ईवी बाजार को ही पलट दिया है. अमेरिकी टैरिफ के बिना, बीवाईडी टेस्ला के लिए बड़ा खतरा बन सकती है.
यूरोप में चीनी ब्रांड्स की बिक्री फरवरी में 82% बढ़ी, जबकि टेस्ला 44% गिरी.
बीवाईडी ने हाल ही में एक नई चार्जिंग तकनीक पेश की है, जो मात्र 5 मिनट में 400 किमी की रेंज देती है. कंपनी के शेयर इस साल 50% से अधिक चढ़ चुके हैं. बीवाईडी की नई इलेक्ट्रिक सेडान 'किन एल ईवी' टेस्ला मॉडल 3 जैसी सुविधाएं आधी कीमत (16,500 डॉलर) में देता है.
उधर टेस्ला की वैश्विक बिक्री पिछले साल पहली बार घटी. यूरोप में फरवरी में बिक्री 44% गिरी. टेस्ला के मुख्य उत्पाद और पुराने मॉडल (मॉडल 3, Y) में वर्षों से बड़े अपडेट नहीं हुए. ट्रम्प प्रशासन से जुड़ाव और जर्मनी में नाजी-समर्थक पार्टी को बैकिंग ने ब्रांड इमेज को नुकसान पहुंचाया. सेल्फ ड्राइविंग में जो वादा किया गया था, उससे पिछड़े. गूगल की वेमो से पीछे.
बीवाईडी ने चीन में $10,000 (लगभग 8.3 लाख रुपये) से शुरू होने वाली इलेक्ट्रिक कारें लॉन्च की हैं, जबकि टेस्ला का सबसे सस्ता मॉडल 3 $32,000 (26.6 लाख रुपये) में उपलब्ध है. प्लग-इन हाइब्रिड तकनीक और स्मार्ट फीचर्स ने बीवाईडी को यूरोप-एशिया में बाजार का नेता बना दिया है. टेस्ला 2026 तक सस्ता मॉडल वाई लॉन्च करने की योजना बना रही है, लेकिन बीवाईडी के मुकाबले देरी खतरनाक है.
विश्लेषण
आकार पटेल : अमेरिका और 10% दुनिया के हाथ से फिसलता रसूख और घटता असर
20वीं सदी की शुरुआत से लेकर अमेरिकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्था का इकट्ठा हिस्सा विश्व अर्थव्यवस्था के 50% से अधिक था. 2009 तक यह 51% था, जिसके बाद से इसमें गिरावट आ रही है. पिछले साल यह 43% था और आगे और भी गिरेगा. यूरोप आर्थिक रूप से स्थिर है. यूरोपीय संघ की संयुक्त जीडीपी पिछले साल और उससे पिछले साल 1% से भी कम बढ़ी. इस साल यह 1% की दर से बढ़ सकती है, लेकिन लम्बे दौर में किसी छलांग की संभावना नहीं है. यूनाइटेड किंगडम में 2023 में 1% से कम, 2024 में 1% से कम वृद्धि हुई और इस साल 1% की दर से बढ़ सकती है.
अमेरिका में पिछले साल 2% की वृद्धि हुई और इस साल उसे मंदी का सामना करना पड़ रहा है. इसका मतलब है इसकी अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है. अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में एक साथ दुनिया की आबादी का 10% लोग रहते हैं. इसका मतलब है कि 2009 तक "पश्चिम" कहे जाने वाले हिस्से की तुलना में 90% दुनिया के पास अर्थव्यवस्था का छोटा हिस्सा था. लेकिन यह तेजी से बदल रहा है.
और इस बदलाव का चैंपियन बाकी दुनिया में निश्चित रूप से चीन है. वैश्विक जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 1990 में 1%, 2000 में 3%, 2010 में 9% और आज 17% है. 1990 में भारत की हिस्सेदारी चीन के समान थी और आज यह 3.6% है (लगभग 108 ट्रिलियन डॉलर की कुल वैश्विक जीडीपी में).
भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन पिछले 30 वर्षों से वैश्विक विकास का असली इंजन हमारा पड़ोसी रहा है. चीन के शानदार और तेजी से हुए उदय ने पश्चिम में चिंताएं पैदा कर दी हैं, जो दुनिया पर अपने कुल रसूख़ को फिसलते हुए देख रहा है. पश्चिमी मीडिया द्वारा अफ्रीका और लेटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया में चीन की इंफ्रा परियोजनाओं पर लगातार हमले करता रहा है. और उस तरफ से पिछले 20 वर्षों से हर साल आने वाली रिपोर्टें जो कहती हैं कि चीन की आर्थिक सफलता जल्द ही खत्म होने वाली है, इसी को दर्शाती हैं.
ये चिंताएं यूरोपीय और संयुक्त राज्य अमेरिका की राजनीति में भी दिखलाई दे रही हैं. अमेरिका का डोनाल्ड ट्रम्प के प्रति प्रेम अनिवार्य रूप से दो मुद्दों पर आधारित है. पहला, गैर-श्वेत राष्ट्रों से माइग्रेशन को रोकना और पहले से ही अमेरिका में मौजूद लोगों को निर्वासित करना; और दूसरा, गरीब देशों द्वारा अमेरिका को माल निर्यात करके "लूटे" जाने को रोकना. अमेरिकियों की प्रति व्यक्ति जीडीपी पड़ोसी मैक्सिकनों की तुलना में छह गुना अधिक और कनाडाई लोगों की तुलना में 30,000 डॉलर प्रति वर्ष अधिक है, लेकिन वे फिर भी खुद को दुखी महसूस करते हैं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, इस साल अमेरिकी प्रति व्यक्ति जीडीपी 90,000 डॉलर से थोड़ी कम रहने की संभावना है. इसे परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 3,000 डॉलर प्रति वर्ष से भी कम है. अमेरिका में पूर्ण रोजगार भी है, जिसका अर्थ है कि लगभग हर कोई जो नौकरी चाहता है उसे नौकरी मिल सकती है.
किसी भी पैमाने पर, अमेरिकी दुनिया के सबसे सफल और सबसे विशेषाधिकार प्राप्त लोगों में से हैं, और फिर भी वे दूसरों के आगे बढ़ने से नाराज़ हैं. चीन उनका मुख्य निशाना है. डोनाल्ड ट्रम्प उन नौकरियों को अमेरिका में लाना चाहते हैं जो चीनी कर रहे हैं, खासकर मैन्युफैक्चरिंग में. 1990 में, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 16% थी. आज यह 10% है. मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन 1990 में लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर आज 3 ट्रिलियन डॉलर हो गया. इसलिए, मैन्युफैक्चरिंग में वृद्धि हुई, लेकिन अर्थव्यवस्था के बाकी हिस्सों की तुलना में धीमी गति से. मैन्युफैक्चरिंग में नौकरियां लगभग 1.8 करोड़ से घटकर लगभग 1.2 करोड़ हो गईं.
ऑटोमेशन और दक्षता बढ़ने से अमेरिकी उत्पादन तो 1990 की तुलना में तीन गुना बढ़ गया, पर वहाँ रोजगार घटा. अमेरिका आज लगभग उतना ही स्टील बनाता है, जितना 1990 में बनाता था.. यानी लगभग 8 करोड़ टन. हालांकि, स्टील संयंत्रों में काम करने वाले अमेरिकियों की संख्या 1980 में 512,000 से घटकर 1990 में 270,000 और पिछले साल 70,000 हो गई है.
बदले की कार्रवाई के तहत अमेरिका अगर चीनी फैक्ट्रियों की नौकरियाँ छीन कर अपने यहां मैन्युफैक्चरिंग में नौकरियां बढ़ाता है, तो वह आर्थिक उत्पादन में गिरावट देखेगा. लोगों को अधिक उत्पादक काम करने की जगह कम उत्पादक काम करने की तरफ भेजा जाएगा.
डोनाल्ड ट्रम्प यही कर रहे हैं. यह दो तरह से किया जा रहा है. पहला, सभी तरह की स्पर्धा को अवरुद्ध करना है. मसलन चीनी इलेक्ट्रिक कारों पर अमेरिका में आयात करने पर 100% कर लगता है, जिसका अर्थ है कि उनकी कीमत दोगुनी होगी. यदि कोई अमेरिकी उस कर का भुगतान करता भी है तो भी वह चीनी कार सॉफ्टवेयर पर प्रतिबंध के कारण अपनी चीनी कार नहीं चला पाएगा. अमेरिकी वाणिज्य विभाग का कहना है कि "कारों में कैमरे, माइक्रोफोन, जीपीएस ट्रैकिंग और अन्य प्रौद्योगिकियां हैं जो इंटरनेट से जुड़ी हैं... और वाणिज्य विभाग अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने और विदेशियों को इन तकनीकों में हेरफेर करके संवेदनशील या व्यक्तिगत जानकारी तक पहुंचने से रोककर अमेरिकियों की गोपनीयता की रक्षा करने के लिए एक आवश्यक कदम उठा रहा है."
यह प्रतिबंध अमेरिकी फर्मों की रक्षा करने और चीन को वंचित करने दोनों का काम करता है. दूसरा तरीका सार्वभौमिक शुल्क के माध्यम से है, और हम देखेंगे कि 2 अप्रैल को इसका अनावरण होने पर इसका क्या मतलब है. इससे पूरी दुनिया प्रभावित होगी, जिसमें यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अमेरिका के सहयोगी भी शामिल हैं, जो हैरान हैं क्योंकि उन्होंने इस जनवरी तक खुद को अमेरिका का भागीदार माना था. बाकी दुनिया के आगे बढ़ने में ये अड़ंगे पैदा कर रहा हैं.
क्या अमेरिका की प्रतिक्रिया यह सुनिश्चित करेगी कि वह गरीब देशों के सापेक्ष और न फिसले? बिल्कुल नहीं. चीन, भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का विकास जारी रहेगा. अमेरिका और यूरोप का रसूख और असर कम होता रहेगा, क्योंकि उन्हें सत्ता साझा करने के लिए मजबूर किया जाएगा. पश्चिम 100 साल पहले जो कर सकता था, वह अब नहीं कर सकता. अब हमने मानव इतिहास में एक नए युग में प्रवेश किया है.
लेखक एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के अध्यक्ष हैं.
बीमार पोप से लाइफ सपोर्ट हटाने पर सोचा था डॉक्टरों ने : 88 वर्षीय पोप फ्रांसिस के लंबे श्वसन रोग के दौरान उनके डॉक्टरों ने इलाज बंद कर उन्हें मृत्यु के लिए छोड़ने पर विचार किया. रोम के जेमेली अस्पताल के प्रोफेसर सर्जियो अल्फिएरी ने इतालवी अखबार को बताया कि 28 फरवरी को पोप का सांस लेने का संकट चरम पर था, जब उन्होंने अपनी उल्टी सांस के साथ अंदर खींच ली.अल्फिएरी के अनुसार, "हमें चुनाव करना था—इलाज रोक दें या जोखिम उठाते हुए दवाओं से प्रयास जारी रखें. नर्स मास्सिमिलियानो स्ट्रापेटी के कहने पर हमने दूसरा रास्ता चुना." पोप 23 मार्च को 38 दिन बाद अस्पताल से डिस्चार्ज हुए थे.
ऑस्कर विजेता फिलीस्तीनी निर्देशक की इजरायलियों ने उनके गांव में घुस कर दी पिटाई
'द गार्डियन' की खबर है कि ऑस्कर विजेता फिलीस्तीनी निर्देशक हमदान बल्लाल, जिन पर यहूदियों ने हमला कर घायल कर दिया और बाद में इज़रायली बलों ने हिरासत में ले लिया था, उन्हें अब रिहा कर दिया गया है. हमदान बल्लाल और दो अन्य फिलीस्तीनी मंगलवार को वेस्ट बैंक की किरयात अरबा बस्ती में एक पुलिस स्टेशन से बाहर आए, जहां उन्हें हिरासत में रखा गया था. बल्लाल के चेहरे पर चोटों के निशान थे और उनके कपड़े खून से सने हुए थे. बल्लाल के वकील, लिया त्सेमेल के अनुसार, इन तीनों ने हमले में गंभीर चोटें झेलने के बाद सेना के एक अड्डे में फर्श पर रात बिताई. इस महीने की शुरुआत में, बल्लाल और 'नो अदर लैंड' के अन्य निर्देशक लॉस एंजेलेस में 97वें एकेडमी अवॉर्ड्स में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए पुरस्कार ग्रहण करने मंच पर पहुंचे थे. सभी तीन फिलीस्तीनियों को हेब्रोन शहर के एक अस्पताल ले जाया गया. 'नो अदर लैंड' एक डॉक्यूमेंट्री है, जो इज़रायली कब्जे के तहत जीवन के संघर्ष को दिखाती है. फिल्म के सह-निर्देशक युवाल अब्राहम ने एक्स पर पोस्ट किया- "हमले के बाद, हमदान को हथकड़ी पहनाकर और आंखों पर पट्टी बांधकर पूरी रात सेना के अड्डे में रखा गया, जहां दो सैनिकों ने उन्हें फर्श पर पीटा,".
चलते चलते
प्रदेश का बदलाव हो न हो, मोहन यादव अब वक़्त को बदलना चाहते हैं..
प्रधान मध्याह्न रेखा वह देशांतर रेखा है, जिससे विश्व भर में समय का निर्धारण होता है. वर्तमान में यह ग्रीनविच, लंदन से होकर गुजरती है. जीएमटी वह माप है, जिससे दुनिया में हर कहीं लोग अपनी घड़ियां मिलाते हैं. पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की मानें तो वक़्त लंदन के इस गांव से नहीं, बल्कि उज्जैन से शुरू होता है. डेकन क्रॉनिकल के मुताबिक मध्य प्रदेश सरकार यूके के ग्रीनविच की जगह उज्जैन को वैश्विक प्रधान मध्याह्न रेखा के रूप में स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. यादव ने सोमवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह जानकारी साझा की. शहरी विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बैठक के बाद पत्रकारों को बताया, "उज्जैन कभी प्रधान मध्याह्न रेखा का केंद्र था. हम इसे फिर से स्थापित करना चाहते हैं. इसके लिए वैज्ञानिक प्रमाण जुटाए जा रहे हैं."
सरकारी सूत्रों के मुताबिक प्राचीन हिंदू खगोलशास्त्रियों के हवाले से बताया जा रहा है कि उज्जैन ही वह बिंदु है, जहां कर्क रेखा और शून्य मध्याह्न रेखा एक-दूसरे को काटती हैं. मुख्यमंत्री यादव के मुताबिक, पहले विश्व समय उज्जैन के अनुसार चलता था, लेकिन बाद में पेरिस और फिर ब्रिटेन ने ग्रीनविच को प्रधान मध्याह्न रेखा घोषित कर दिया. यादव के मुताबिक न सिर्फ 30 मार्च को पड़ने वाले गुड़ी पड़वा को पूरे प्रदेश में 'हिंदू नव वर्ष' के रूप में मनाने का निर्णय लिया जा रहा है, बल्कि इस अवसर पर ऐतिहासिक विक्रम संवत् कैलेंडर (57 ईसा पूर्व से प्रचलित) को बढ़ावा दिया जाएगा.
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