26/04/2025 : सर्वदलीय बैठक में सच नहीं | नज़ाकत न होता तो | नीरज पर हेट अटैक | पाकिस्तान के 'गंदे काम' | वक़्फ़ पर केंद्र का हलफनामा | राहुल गांधी और कामरा को राहत | शिमला समझौता पाक ने स्थगित किया
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा!
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
पाकिस्तान को पानी की एक बूंद भी नहीं : जल शक्ति मंत्री
शिंदे ले उड़े निजी चार्टर्ड जहाज से कश्मीर
पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने माना कि आतंकवादी समूहों को समर्थन करता रहा है जो पश्चिम देशों के लिए "गंदा काम" था
पाकिस्तान ने शिमला समझौते को स्थगित किया
केंद्र ने 1332 पेज के हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से वक़्फ़ बिल पर दायर सभी याचिकाएं खारिज करने की अपील की
छत्तीसगढ़ : मुठभेड़ में तीन नक्सली मारे गए
दिल्ली कोर्ट के दूसरे जज को मिली जान से मारने की धमकी
पहलगाम आतंकी हमला
हमले पर सर्वदलीय बैठक में सच नहीं बताया गया?
शाह ने कहा था कि पहलगाम में होटल और रिसॉर्ट मालिकों को जिम्मेदार होना चाहिए था और पर्यटकों को वहां भेजने से पहले सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए था.
बैसरन घाटी वर्षों से पर्यटकों के लिए खुली रही है
2020 के बाद से, यह स्थान लगभग पूरे साल खुला रहता है, और
प्रतिदिन 1,000 से अधिक पर्यटक यहां आते हैं
पर्यटन स्थल के लिए कभी भी पुलिस प्राधिकरण की अनुमति नहीं मांगी गई
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकवादी हमले के बाद, सुरक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक अनुमति और सरकारी दावों को लेकर कई गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय (गृह मंत्रालय) और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बयानों में विरोधाभास ने स्थिति को और जटिल बना दिया है. आइए, इस पूरी घटना और उसके बाद उभरे विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से नज़र डालते हैं. इस पर द हिंदू में विजेता सिंह ने और द प्रिंट में अनन्या भारद्वाज ने रिपोर्ट लिखी हैं.
हमले के एक दिन बाद, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने एक सर्वदलीय बैठक में जानकारी दी कि बैसरन घाटी को खोलने के लिए पुलिस से अनुमति नहीं ली गई थी. हालांकि, जम्मू-कश्मीर सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने 'द हिंदू' को बताया कि इस पर्यटन स्थल के लिए कभी पुलिस प्राधिकरण की अनुमति नहीं मांगी गई है. यह स्थान बर्फीले महीनों को छोड़कर लगभग पूरे साल पर्यटकों के लिए खुला रहता है. अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अभी तक केंद्र शासित प्रदेश (UT) प्रशासन से परमिट मुद्दे पर औपचारिक रूप से कोई संवाद नहीं किया है. उन्होंने जोर देकर कहा, "बैसरन घाटी वर्षों से पर्यटकों के लिए खुली रही है." स्थल के गेट पर लगे एक पोस्टर के अनुसार, इसका संचालन अनंतनाग जिले में पहलगाम विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाता है, और प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क ₹35 है.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर को राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के बाद, कानून और व्यवस्था, पुलिस और सुरक्षा ग्रिड की जिम्मेदारी उपराज्यपाल कार्यालय और गृह मंत्रालय के पास है, जबकि पर्यटन यूटी के निर्वाचित प्रशासन के दायरे में आता है.
गृह मंत्री का बयान और सुरक्षा प्रोटोकॉल : गुरुवार को हुई सर्वदलीय बैठक में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सांसदों को बताया कि 20 से 22 अप्रैल के बीच लगभग एक हजार पर्यटकों ने बैसरन घाटी का दौरा किया था. बैठक में शामिल सांसदों के अनुसार, अमित शाह ने कहा कि पहलगाम में होटल और रिसॉर्ट मालिकों को जिम्मेदार होना चाहिए था और पर्यटकों को वहां भेजने से पहले सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए था. खुफिया ब्यूरो (IB) के एक अधिकारी ने सांसदों को सूचित किया कि हमले को पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और उसके प्रॉक्सी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के ढीले-ढाले समूहों द्वारा अंजाम दिए जाने का संदेह है, जो "ऊंचाई वाले इलाकों में सक्रिय" हैं. शाह ने यह भी बताया कि सुरक्षा बलों ने सीमा पर सात सुरंगों का पता लगाया है जिनका इस्तेमाल आतंकवादियों ने पाकिस्तान से घुसपैठ के लिए किया था, और अब तक लश्कर के 35 आतंकवादियों को मार गिराया है. गृह मंत्रालय की प्रस्तुति में कहा गया कि जून 2014 और मई 2024 के बीच एक दशक में, 1,643 आतंकवादी-प्रेरित घटनाएं हुईं, 1,925 घुसपैठ के प्रयास हुए (जिनमें 726 सफल रहे), और इस अवधि के दौरान 576 सुरक्षाकर्मी और 1,607 आतंकवादी मारे गए.
सुरक्षा बलों की तैनाती केवल यात्रा के दौरान? बैठक में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि हमले वाले क्षेत्र में सीआरपीएफ कर्मियों की कोई स्थायी तैनाती नहीं है. बैसरन घाटी तक केवल पैदल या टट्टू द्वारा ही पहुंचा जा सकता है. मंगलवार के हमले के बाद पहला प्रतिक्रिया देने वाला एक सीआरपीएफ अधिकारी था, जिसे घटनास्थल पर पहुंचने और रिपोर्ट भेजने में एक घंटा लगा. अन्य सुरक्षा बल डेढ़ घंटे से अधिक समय के बाद मौके पर पहुंचे.
अधिकारी ने आगे कहा कि पर्यटक आमतौर पर अमरनाथ यात्रा की अवधि (इस वर्ष 3 जुलाई से 9 अगस्त) के दौरान इस क्षेत्र में आते हैं. उन्होंने बताया कि सेना का निकटतम स्थायी शिविर 20 किमी दूर है, और बैसरन ऊंची पहाड़ियों की पृष्ठभूमि के साथ एक उच्च ऊंचाई वाला स्थान है. केवल अमरनाथ यात्रा के दौरान ही सुरक्षा बल ऊंचाई वाले इलाकों पर तैनात होते हैं. उन्होंने यह भी सूचित किया कि अरु और दूधपथरी जैसे अन्य समान स्थान, जहां अक्सर इज़राइली पर्यटक आते हैं, अब पर्यटकों के लिए बंद कर दिए गए हैं, जबकि जिन स्थानों पर पर्यटकों को अभी भी जाने की अनुमति है, वहां सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं.
"सामान्य स्थिति" का प्रचार बनाम सुरक्षा चिंताएं : सुरक्षा प्रतिष्ठानों के सूत्रों के अनुसार, सरकार पहले किसी भी ऐसे स्थान तक पहुंच को बंद करने के लिए "इच्छुक नहीं" थी, क्योंकि यह कश्मीर घाटी में "सामान्य स्थिति" के प्रचार के विरुद्ध जाता. हालांकि, पहलगाम हमले के बाद, अब इन स्थानों पर पर्यटकों की पहुंच को सीमित करने पर सहमति बन गई है. एक सूत्र ने कहा कि इन स्थानों को बाद में "सोच-समझकर" खोले जाने की संभावना है. दिलचस्प बात यह है कि बैसरन घाटी, जहां प्रतिदिन सैकड़ों पर्यटक घोड़े पर चढ़कर जाते हैं, परंपरागत रूप से केवल यात्रा के मौसम (मध्य मई से जुलाई) के दौरान लगभग ढाई महीने के लिए खुलती थी. लेकिन, कई सूत्रों ने पुष्टि की कि 2020 के बाद से, यह स्थान लगभग पूरे साल खुला रहता है, और प्रतिदिन 1,000 से अधिक पर्यटक यहां आते हैं.
यह बात मोदी सरकार द्वारा गुरुवार शाम को सर्वदलीय बैठक में विपक्षी नेताओं को बताई गई जानकारी के विपरीत है, जिसमें कहा गया था कि स्थानीय टूर ऑपरेटरों ने "प्रशासन को सूचित किए बिना" पर्यटकों के लिए मार्ग खोल दिया था, "जिसके कारण क्षेत्र में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती नहीं थी". बैठक में विपक्षी नेताओं ने हमले वाली जगह पर सुरक्षा कर्मियों की गैर-मौजूदगी पर सरकार से सवाल किया था.
एक सुरक्षा सूत्र ने कहा, "पिछले कुछ वर्षों से सरकार उदार रही है, इस बात पर जोर देते हुए कि सभी स्थान पर्यटकों के लिए खुले और सुलभ रहने चाहिए क्योंकि किसी भी स्थान को बंद करने से गलत संदेश जाएगा. इनमें ऐसे स्थान भी शामिल हैं जहां पर्याप्त सुरक्षा तैनाती नहीं है, जो तब आवश्यक होती है जब पर्यटक बड़ी संख्या में आ रहे हों." सूत्र ने यह भी बताया कि कई मौकों पर सरकार को इन स्थानों को बंद करने की चिंता व्यक्त की गई थी, क्योंकि इन सभी स्थानों पर केवल मौसमी तैनाती होती है.
आतंकियों ने क्यों चुना बैसरन? वर्तमान में कश्मीर घाटी में 120 से अधिक आतंकवादी मौजूद होने का अनुमान है, जिनमें से साठ विदेशी आतंकवादी (मुख्य रूप से लश्कर) हैं. एक दूसरे सूत्र ने कहा कि आतंकवादियों की मौजूदगी को देखते हुए, पर्यटकों के लिए दूरदराज के असुरक्षित स्थानों पर जाना वैसे भी उचित नहीं है. "पिछले कुछ वर्षों में आतंक की कोई घटना न होने का मतलब यह नहीं है कि यह हो नहीं सकता. क्षेत्र में आतंकवादियों की मौजूदगी के साथ, हमेशा एक जोखिम बना रहता है. वे हमेशा हमला करने के अवसर की तलाश में रहते हैं और यही पहलगाम में हुआ." सूत्र ने बताया कि बैसरन को इसलिए चुना गया क्योंकि वहां महत्वपूर्ण सुरक्षा उपस्थिति नहीं थी.
"आतंकवादियों ने अच्छी पर्यटक उपस्थिति और बिना सुरक्षा वाले स्थान की पहचान करने के लिए रेकी (निगरानी) की. उन्होंने कुछ हफ्तों तक जगह का निरीक्षण किया और इस तरह उन्होंने बैसरन घाटी पर अपना निशाना साधा." सूत्र ने आगे कहा, "आम तौर पर, अगर सुरक्षा उपस्थिति होती है, तो यह उन्हें दूर रखने में मदद करती है. आतंकवादी जानते थे कि यह एक परफेक्ट स्पॉट है क्योंकि वहां कोई सुरक्षा उपस्थिति नहीं है और किसी भी मदद के पहुंचने में इलाके के कारण कम से कम एक घंटा लग जाएगा."
छत्तीसिंहपोरा नरसंहार और एसओपी का उल्लंघन? एक तीसरे सूत्र ने बताया कि मार्च 2000 में छत्तीसिंहपोरा नरसंहार के बाद (जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर 35 सिख पुरुषों की हत्या कर दी गई थी) घाटी में सुरक्षा तैनाती के लिए स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) स्थापित की गई थी. किसी भी वीवीआईपी यात्रा के दौरान पूरे क्षेत्र में हाई अलर्ट घोषित किया जाता है. दूसरे सूत्र ने कहा, "यह निश्चित रूप से एक चूक है कि बैसरन घाटी जैसे व्यस्त पर्यटक स्थल पर कोई ऐसी व्यवस्था नहीं की गई, खासकर जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेन्स भारत की यात्रा पर थे." सूत्र ने कहा, "छत्तीसिंहपोरा नरसंहार के बाद से, प्रमुख स्थानों पर विशेष सुरक्षा तैनाती के स्पष्ट निर्देश हैं, जिसमें घाटी में प्रमुख पर्यटक स्थल भी शामिल हैं... यह निश्चित रूप से एक चूक थी कि इस क्षेत्र में तैनाती नहीं की गई थी, यह देखते हुए कि प्रतिदिन 1,000 से अधिक लोग इस स्थल पर आते हैं."
आपबीती
“नज़ाकत न होता तो पता नहीं मेरी फैमिली का क्या होता”
छत्तीसगढ़ भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकर्ता अरविंद अग्रवाल, जो आतंकवादी हमले के दौरान दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में थे, ने स्थानीय गाइड नज़ाकत अहमद शाह को अपने परिवार को बचाने का श्रेय दिया है.
नज़ाकत ने इस हमले में अपना रिश्तेदार को खो दिया, जो पर्यटकों को घोड़े पर लेकर जाता था. वह स्थानीय व्यक्ति नज़ाकत का चचेरा भाई सैयद आदिल हुसैन शाह (30) था, जिसे आतंकवादियों को रोकने की कोशिश करने पर गोली मार दी गई थी.
अरविंद अग्रवाल (35) ने कहा कि सब कुछ शांत था और मैं फोटो खींच रहा था. मेरी चार साल की बेटी और पत्नी मुझसे थोड़ी दूर थीं, तभी अचानक गोलीबारी शुरू हो गई. “मेरा गाइड, नज़ाकत (28), उनके साथ था और एक और दंपती और उनके बच्चे के साथ भी,” चिरिमिरी शहर के अग्रवाल ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया.
उन्होंने कहा कि “जब गोलीबारी शुरू हुई, तो नज़ाकत ने सभी को नीचे लेटने के लिए कहा और मेरी बेटी और मेरे दोस्त के बेटे को गले लगाकर उनकी जान बचाई. फिर वह उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले गया और उसके बाद मेरी पत्नी को बचाने के लिए वापस लौटा.”
उन्होंने कहा कि एक घंटे तक उन्हें यह नहीं पता था कि उनका परिवार सुरक्षित है या नहीं. बाद में अस्पताल में जाकर ही उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को देखा.
“मुझे नहीं पता कि अगर नज़ाकत वहां नहीं होता तो क्या होता... मेरी पत्नी के कपड़े फट गए थे, लेकिन स्थानीय लोगों ने उन्हें पहनने के लिए कपड़े दिए,” अग्रवाल ने कहा.
इस घटना को याद करते हुए नज़ाकत ने “द इंडियन एक्सप्रेस” को बताया, "ज़िपलाइन के पास, जहाँ हम खड़े थे उससे लगभग 20 मीटर दूर गोलीबारी हो रही थी. मैंने सबसे पहले आसपास के लोगों को ज़मीन पर लेटने को कहा. फिर मैंने बाड़ में एक गैप देखा और बच्चों को उसकी ओर ले गया. आतंकवादियों के पास आने से पहले हम वहां से भाग गए. "
नज़ाकत ने कहा कि उन्हें सुरक्षित निकालने के बाद, "मैं अग्रवाल जी की पत्नी को ढूँढने लौटा, जो दूसरी दिशा में भाग गई थीं. मैंने उन्हें लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर पाया और अपनी कार में वापस लाया. मैं उन्हें सुरक्षित श्रीनगर ले गया. "
इसके बाद उन्हें एक दुखद खबर का फोन आया. "मुझे बताया गया कि मेरा (चचेरा) भाई, आदिल, जो घुड़सवार था, इस हमले में मारा गया."
हमले की निंदा करते हुए नज़ाकत ने कहा, "पर्यटन हमारी रोज़ी-रोटी है. इसके बिना हम बेरोज़गार हैं और हमारे बच्चों की शिक्षा इसी पर निर्भर है... यह आतंकी हमला हमारे दिलों पर हमला है. हमने अपनी दुकानों और व्यवसायों के दरवाज़े बंद कर दिए हैं और विरोध कर रहे हैं. हम अपनी मेहमाननवाज़ी के लिए जाने जाते हैं और मुझे विश्वास है कि पर्यटक आएंगे. सुरक्षा बलों को और सतर्क रहना चाहिए."
हेट अटैक
अरशद को बुलाने पर नीरज चोपड़ा, “नफ़रत और गाली-गलौज में मेरे परिवार को भी नहीं छोड़ा”
ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा ने शुक्रवार को अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक नोट साझा किया, जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी भाला फेंक एथलीट अरशद नदीम को 24 मई को बेंगलुरु में होने वाले ‘नीरज चोपड़ा क्लासिक’ में आमंत्रित करने पर हो रही आलोचना का जवाब दिया.
"मेरे फैसले—अरशद नदीम को ‘नीरज चोपड़ा’ क्लासिक में प्रतिस्पर्धा के लिए आमंत्रित करने—को लेकर बहुत बातें हो रही हैं, और इनमें से ज्यादातर नफरत और गाली-गलौज ही है. उन्होंने मेरे परिवार को भी नहीं छोड़ा," चोपड़ा ने लिखा.
उन्होंने आगे कहा, "मैं आमतौर पर कम बोलता हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जब मुझे कुछ गलत दिखे तो मैं चुप रहूं, खासकर जब मेरे देश के प्रति मेरे प्यार और मेरे परिवार की इज्जत पर सवाल उठाए जा रहे हों."
चोपड़ा ने स्पष्ट किया कि यह निमंत्रण सिर्फ एक खिलाड़ी से दूसरे खिलाड़ी के लिए था, इससे ज्यादा कुछ नहीं. उनका उद्देश्य भारत में विश्व स्तरीय खेल आयोजनों के लिए बेहतरीन एथलीट्स को लाना था. उन्होंने यह भी बताया कि सभी खिलाड़ियों को निमंत्रण सोमवार को भेजा गया था, जो पहलगाम आतंकी हमले से दो दिन पहले था. "पिछले 48 घंटों में जो कुछ भी हुआ है, उसके बाद अरशद का इस इवेंट में आना अब पूरी तरह से असंभव है. मेरे लिए देश और उसके हित हमेशा पहले रहेंगे," नीरज चोपड़ा ने लिखा.
पाकिस्तान को पानी की एक बूंद भी नहीं : जल शक्ति मंत्री
पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है. शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने जोर देकर कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए रणनीति पर काम कर रही है कि भारत से पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान में न जाए. पाटिल ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संबंध में कई निर्देश दिए थे और यह बैठक आगे की कार्रवाई के लिए बुलाई गई थी. बैठक में गृह मंत्री शाह ने प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई सुझाव दिए. पाटिल ने बैठक के बाद कहा, "हम सुनिश्चित करेंगे कि भारत से पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान में न जाए." हालांकि भारत के इस ऐलान के अमल को लेकर बहुत से राजनैतिक और व्यावहारिक सवाल हैं.
सिंधु जल संधि पर निर्णय के बारे में विश्व बैंक को जानकारी नहीं दी गई
सूत्रों ने द हिंदू को जानकारी दी है कि सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को स्थगित करने के अपने फैसले के बारे में भारत ने विश्व बैंक को सूचित नहीं किया है. आईडब्ल्यूटी में निर्धारित जल बंटवारे के समझौतों पर भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई है. गुरुवार 24 अप्रैल को जल संसाधन मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष सैयद अली मुर्तजा को लिखा कि भारत इस संधि को ‘तत्काल प्रभाव’ से स्थगित कर रहा है.
एक सरकारी सूत्र ने द हिंदू को बताया कि, चूंकि पाकिस्तान को संधि पर भारत की स्थिति के बारे में सूचित किया गया था, इसलिए विश्व बैंक को सूचित करने की ‘कोई आवश्यकता नहीं’ थी. विश्व बैंक के प्रवक्ता ने द हिंदू के सवालों के जवाब में संधि का समर्थन करते हुए कहा, “सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता है, जो 60 से अधिक वर्षों से अत्यंत महत्वपूर्ण और सफल रहा है.”
1960 से लागू सिंधु जल संधि को ‘स्थगित’ रखने का सतही तौर पर अर्थ यह है कि भारत सिंधु नदियों पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने के लिए पाकिस्तान के साथ अपने आवधिक संचार को रोक देगा या उन्हें चिनाब, झेलम और सिंधु मुख्य, जिसे पश्चिमी नदियों के रूप में भी जाना जाता है, में जलविद्युत परियोजनाओं पर बुनियादी ढांचे के काम से अवगत कराएगा.
आईडब्ल्यूटी की शर्तों के तहत, भारत पश्चिमी नदियों - सिंधु, झेलम, चिनाब - पर महत्वपूर्ण जलविद्युत भंडारण नहीं बना सकता है और उसे निर्धारित स्तरों पर जल स्तर बनाए रखना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पाकिस्तान की कृषि में कोई अप्रिय बाढ़ या व्यवधान न हो. हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में जलविद्युत परियोजनाओं के विकास के बारे में लगभग सभी विवादों में, पाकिस्तान ने भारत पर नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने में सक्षम होने के लिए संरचनाओं के डिज़ाइन को संशोधित करने का आरोप लगाया है, जबकि भारत ने तब स्पष्ट किया कि उसका इरादा केवल परियोजनाओं को इष्टतम स्थितियों में चालू रखना था. पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि पश्चिमी नदियों के पानी पर निर्भर करती है.
सेना प्रमुख और राहुल गांधी का कश्मीर दौरा : पहलगाम हमले (जिसमें 26 नागरिक मारे गए) के बाद बढ़े तनाव के बीच, थल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी श्रीनगर पहुंचे और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात की. राजभवन के प्रवक्ता के अनुसार, श्री सिन्हा ने न केवल पहलगाम हमले के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने, बल्कि आतंकवाद के बुनियादी ढांचे और उसके इकोसिस्टम को कुचलने के प्रयासों को तेज करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का आह्वान किया. सेना प्रमुख ने उत्तरी कमान मुख्यालय, उधमपुर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और नियंत्रण रेखा (LoC) पर पुंछ-राजौरी जिलों तथा पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के दक्षिण के अन्य क्षेत्रों में सुरक्षा स्थिति का जायजा लिया.
इस बीच लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी शुक्रवार को श्रीनगर स्थित सेना के अस्पताल में इलाज करा रहे पर्यटक से मुलाकात की. उन्होंने पत्रकारों से कहा कि "जो कुछ हुआ है उसके पीछे की मंशा समाज को बांटना है, भाई को भाई से लड़ाना है और यह बहुत आवश्यक है कि हर एक भारतीय एकजुट रहे, साथ खड़ा रहे, ताकि हम आतंकवादियों की मंशा को नाकाम कर सकें.”
आतंकवादियों के मकान उड़ाए : इसके अलावा, पहलगाम हमले के पीछे होने के संदिग्ध लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के दो आतंकवादियों - पुलवामा के त्राल निवासी आसिफ शेख और अनंतनाग के बिजबेहरा निवासी आदिल ठोकर - के घरों को कथित तौर पर विस्फोटकों का उपयोग करके ध्वस्त कर दिया गया. पुलिस के अनुसार, ठोकर सीधे हमले में शामिल था और उस पर 20 लाख रुपये का इनाम घोषित किया गया था. माना जा रहा है कि शेख ने हमले की साजिश रची थी. सुरक्षा बलों द्वारा जारी किए गए वीडियो में एक घर धमाके में आग के गोले में बदलता दिखा. इन अभियानों के दौरान कोई नागरिक हताहत नहीं हुआ. पुलिस और सेना ने घरों को गिराए जाने पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है. यह पहली बार है जब किसी आतंकी हमले के बाद कश्मीर में स्थानीय सक्रिय आतंकवादियों के घरों को इस तरह क्षतिग्रस्त किया गया है.
कुछ ही दिन पहले गुलमर्ग में निशिकांत दुबे ने मनाई थी शादी की 25वीं वर्षगांठ : पहलगाम आतंकी हमले की छाया में गुलमर्ग में करीब 10 दिन पहले भाजपा के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे के एक हाई-प्रोफाइल पारिवारिक समारोह की चर्चा भाजपा हलकों में हो रही है. दुबे ने गुलमर्ग में अपनी 25वीं शादी की सालगिरह मनाई और इसमें सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया था. हालांकि कार्यक्रम स्थल पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर में निजी कार्यक्रमों में वीआईपी लोगों की सुरक्षा के पहलू पर भाजपा हलकों में चर्चा हो रही है.
शिंदे ले उड़े निजी चार्टर्ड जहाज से कश्मीर : इस बीच, पहलगाम आतंकी हमले ने महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन के घटक दलों के बीच "श्रेय लेने की लड़ाई" छेड़ दी है. फंसे हुए पर्यटकों की बचाव और राहत के समन्वय के लिए प्रत्येक पार्टी के नेता अपने-अपने दल के सदस्यों के साथ अलग-अलग काम कर रहे हैं. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हमले में जान गंवाने वाले छह परिवारों में से प्रत्येक को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है. घायलों को अतिरिक्त 50,000 रुपये दिए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र के पर्यटकों को कश्मीर से वापस लाने के लिए एक विशेष उड़ान की व्यवस्था की जा रही है, जिसका खर्च राज्य सरकार वहन करेगी. दूसरी ओर, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अलग राजनीतिक व्यवस्थाओं के बीच, बुधवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ एक बैठक छोड़ दी और अपने शहरी विकास विभाग की बैठकें रद्द कर दीं. वह ठाणे में रहे और बाद में एक मराठी समाचार चैनल द्वारा आयोजित समारोह में शामिल हुए. इसके बाद शिंदे फंसे हुए पर्यटकों को घर वापस लाने के उद्देश्य से बचाव कार्यों का नेतृत्व करने के लिए एक निजी चार्टर्ड विमान से कश्मीर के लिए रवाना हो गए. उनके कार्यालय से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि शिंदे किसी भी आपात स्थिति में सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले हैं.
कश्मीरियों को लेकर सुवेंदु अधिकारी का दावा गलत निकला : पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने जिस “नैनोबीम 2 एसी कॉम्पैक्ट और हाई-परफॉर्मेंस वायरलेस नेटवर्क ब्रिज” को कोलकाता के पास एक फ्लैट में 'संदिग्ध गतिविधि' का सबूत बताया था, असल में वह एक आउटडोर जियोफाइबर डिवाइस है. सुवेंदु ने पहलगाम हमले के दो दिन बाद दावा किया था कि उस फ्लैट में रहने वाले लोग कश्मीरी हैं, लेकिन बरुईपुर पुलिस ने कहा है कि दोनों लोग मध्यप्रदेश के हैं. इनमें से एक हिंदू और दूसरा मुस्लिम है. दोनों ने अपने कारोबार के सिलसिले में तीन हफ्ते पहले ही फ्लैट किराए पर लिया था.
पाक सैनिकों ने ‘एलओसी’ पर भारतीय चौकियों को टारगेट किया : “द इंडियन एक्सप्रेस” में अरुण शर्मा ने एक सेना अधिकारी के हवाले से यह जानकारी दी है कि पाकिस्तानी सैनिकों ने कल देर रात “लाइन ऑफ कंट्रोल” (एलओसी) पर “कई जगहों पर भारतीय चौकियों पर छोटे हथियारों से गोलीबारी की, और भारतीय सैनिकों ने “प्रभावी रूप से” जवाबी कार्रवाई की. वहीं “एपी” में एजाज हुसैन और राजेश रॉय ने भारतीय सेना के सूत्रों के हवाले से बताया कि भारतीय पक्ष ने भी जवाबी फायरिंग की. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उधमपुर में एलओसी पर फायरिंग में शहीद झंटू अली शेख के गांव से “द जॉयदीप सरकार ने रिपोर्ट दी है. शहीद सैनिक के कमजोर पिता ने कहा, “मेरे बेटे ने अपनी जान दी और अपने वतन की मिट्टी के प्रति अपनी वफादारी साबित कर दी.”
पुलवामा की तरह ये दाग हम जिंदगी भर ढोएंगे : पुलवामा की तरह, इस हमले ने पहलगाम को हमेशा के लिए बदल दिया है. पुलवामा के लोगों की तरह हम भी यह दाग़ अपनी ज़िंदगी भर ढोएंगे," पहलगाम के कक्षा 11 के छात्र सरताज अशरफ ने कहा. “द वायर” के जहांगीर अली ने इस खूबसूरत कस्बे का दौरा किया – जो मंगलवार के हमले के बाद अब सुनसान और डरावनी खामोशी में डूबा हुआ है – और पाया कि स्थानीय लोग, होटल कर्मचारी और छोटे व्यापारी जानमाल के नुकसान से गुस्से में हैं और अपने पर्यटन के लिए प्रसिद्ध शहर के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने माना कि आतंकवादी समूहों को समर्थन करता रहा है जो पश्चिम देशों के लिए "गंदा काम" था
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अपने देश द्वारा आतंकवादी संगठनों को समर्थन, प्रशिक्षण और वित्तपोषण देने के इतिहास को "पश्चिम के लिए गंदा काम" करार दिया है. उन्होंने कहा कि यह एक गलती थी जिसके लिए पाकिस्तान को भुगतना पड़ा.
स्काई न्यूज़ के साक्षात्कार में, जब पत्रकार यालदा हकीम ने आतंकवाद पर पाकिस्तान के रुख के बारे में पूछा, तो आसिफ ने कहा, "हम पिछले तीन दशकों से अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए यह गंदा काम कर रहे थे. यह एक गलती थी, और हमें इसके लिए भुगतना पड़ा."
उन्होंने आगे कहा, "अगर हम सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध में और फिर 9/11 के बाद शामिल नहीं होते, तो पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड निर्दोष होता." पाकिस्तान के मंत्री ने लश्कर-ए-तैयबा के बारे में कहा कि यह संगठन "पाकिस्तान में अब मौजूद नहीं है" और इसलिए द रेज़िस्टेंस फ्रंट जैसी शाखाओं का जन्म वहां नहीं हो सकता.
मंगलवार को पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी द रेज़िस्टेंस फ्रंट ने ली है, जो प्रतिबंधित पाकिस्तान-आधारित लश्कर-ए-तैयबा का एक प्रॉक्सी है.
पाकिस्तान ने शिमला समझौते को स्थगित किया
पाकिस्तान ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया के जवाब में कई जवाबी कार्रवाइयों के तहत 1972 के शिमला समझौते को निलंबित कर दिया है. शिमला समझौता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हस्ताक्षरित एक महत्वपूर्ण शांति संधि है.
1972 का शिमला समझौता क्या है : शिमला समझौते का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच मैत्रीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना और शांति स्थापित करना था. 2 जुलाई, 1972 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस पर हस्ताक्षर किये थे. इस समझौते के तहत भारत के हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश का बना था. इसने 1971 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों के एक नए युग की शुरुआत करने में मदद की थी.
समझौते में कहा गया है : “भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि दोनों देश अपने संबंधों को खराब करने वाले संघर्ष और टकराव को समाप्त करें तथा उपमहाद्वीप में मैत्रीपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने और स्थायी शांति की स्थापना के लिए काम करें, ताकि दोनों देश अपने संसाधनों और ऊर्जा को अपने लोगों के कल्याण को आगे बढ़ाने के महत्वपूर्ण कार्य में लगा सकें.”
भारत ने पाकिस्तान को युद्ध विराम रेखा का नाम बदलकर नियंत्रण रेखा (एलओसी) करने के लिए राजी करने में कामयाबी हासिल की. इस प्रकार इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1949 में लागू की गई युद्ध विराम रेखा से अलग कर दिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि कश्मीर अब भारत और पाकिस्तान के बीच एक विशुद्ध द्विपक्षीय मामला है. यह भारत की बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत थी. इतना ही नहीं, इस समझौते का ही नतीजा था कि पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से बांग्लादेश को एक संप्रभु राष्ट्र की मान्यता दे दी.
भारत ने पश्चिमी सीमा पर युद्ध में ली गई लगभग 13,000 वर्ग किलोमीटर भूमि वापस कर दी, लेकिन स्थायी शांति स्थापित करने के लिए कुछ रणनीतिक क्षेत्रों को अपने पास बरकरार रखा.
वक़्फ़ बिल
केंद्र ने 1332 पेज के हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से बिल पर दायर सभी याचिकाएं खारिज करने की अपील की
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर 1332 पेज का एक हलफ़नामा दायर करते हुए केंद्र सरकार ने कहा, “वक़्फ़ अधिनियम के खिलाफ दायर की गईं सभी याचिकाएं खारिज की जानी चाहिए, क्योंकि संसद में बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है. अदालतें वैधानिक प्रावधानों पर रोक नहीं लगा सकतीं. वे समीक्षा कर सकती हैं और फैसला दे सकती हैं. विधायिका द्वारा लागू की गई विधायी व्यवस्था को बदलना स्वीकार्य नहीं है. याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल को 7 दिन के अंदर केंद्र से वक़्फ़ मामले में जवाब पेश करने के लिए कहा था. अब इस मामले पर अगली सुनवाई 5 मई को होना है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह अधिनियम "मजबूत संवैधानिक आधार पर खड़ा है" और इसकी "विधायी संरचना यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी व्यक्ति को न्यायालयों तक पहुंच से वंचित नहीं किया जाएगा, और संपत्ति अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक धर्मार्थता से जुड़े निर्णय निष्पक्षता और वैधता की सीमाओं के भीतर लिये जाएंगे."
अपने जवाबी हलफनामे में केंद्र ने कहा कि इन बदलावों के माध्यम से अधिनियम "न्यायिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्षता लाता है, जो संविधान के मूल्यों और जनहित के अनुरूप हैं."
सरकार ने कहा कि यह अधिनियम "संविधान के भाग-III के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता" और "मुस्लिम समुदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करता है, क्योंकि आस्था और पूजा के मामलों को छुआ नहीं गया है. वक़्फ़ प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष, प्रशासनिक पहलुओं को संविधान द्वारा अधिकृत रूप में वैध रूप से नियंत्रित किया गया है."
'वक़्फ़ बाय यूज़र' जैसी पुरानी संपत्तियों के बारे में पूछे गए सवालों पर, जो 2025 के संशोधन लागू होने से पहले पंजीकृत नहीं हुई हैं, केंद्र सरकार ने कहा कि पंजीकरण 1923 से अनिवार्य था, लेकिन ऐसे पंजीकरण के लिए "किसी भी दस्तावेजी प्रमाण" की आवश्यकता नहीं थी.
सरकार ने कहा, "जानबूझकर, उद्देश्यपूर्ण और इरादतन भ्रामक नैरेटिव बहुत शरारती ढंग से गढ़ा जा रहा है, जिससे आभास मिलता है कि वे वक़्फ़ (जिसमें 'वक़्फ़ बाय यूज़र' भी शामिल है) जिनके पास अपने दावे के समर्थन में दस्तावेज़ नहीं हैं, प्रभावित होंगे. यह न केवल असत्य और झूठा है, बल्कि जानबूझकर और उद्देश्यपूर्ण ढंग से इस माननीय न्यायालय को गुमराह करने वाला है."
सरकार ने आगे कहा, "प्रावधान 3(1)(r) के तहत 'वक़्फ़ बाय यूज़र' के रूप में संरक्षित होने के लिए, किसी ट्रस्ट, वसीयतनामा या किसी भी दस्तावेजी प्रमाण की संशोधन में या इससे पहले कभी आवश्यकता नहीं रही है. प्रावधान के तहत संरक्षित होने की एकमात्र अनिवार्य शर्त यह है कि ऐसी 'वक़्फ़ बाय यूज़र' संपत्ति 8 अप्रैल 2025 तक पंजीकृत हो, क्योंकि वक़्फ़ से संबंधित कानून के तहत पिछले 100 वर्षों से पंजीकरण हमेशा अनिवार्य रहा है. जिन्होंने जानबूझकर या बचने के लिए 'वक़्फ़ बाय यूज़र' का पंजीकरण नहीं कराया (जबकि गैर-पंजीकरण कानून के तहत दंडनीय था), वे प्रावधान का लाभ नहीं ले सकते."
कानून में केंद्रीय वक़्फ़ परिषद और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने के प्रावधान पर, केंद्र ने वक़्फ़ के धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष पहलुओं के बीच अंतर करने की कोशिश की और कहा कि "वक़्फ़ अधिनियम मूल रूप से वक़्फ़ की धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करता है."
केंद्र की ओर से कहा गया कि “हिंदू धर्मादा (एंडोमेंट्स) या अन्य धर्मादा और उन्हें नियंत्रित करने वाले कानून केवल संबंधित समुदाय से जुड़े होते हैं, और इन एंडोमेंट्स का अन्य समुदायों के सदस्यों से बहुत कम या कोई संपर्क नहीं होता,” लेकिन “इसके विपरीत, वक़्फ़ की व्यापक प्रकृति यह सुनिश्चित करती है कि उसकी स्थापना, प्रबंधन, विनियमन और रखरखाव के दौरान मुसलमानों के अलावा अन्य समुदायों के सदस्यों के साथ भी संपर्क होता है.”
हलफनामे में आगे कहा गया, “ऐसी स्थिति में, वक़्फ़ बोर्डों की तुलना राज्य कानूनों के तहत हिंदू धर्मादा से संबंधित आयुक्तों/बोर्डों से करना उचित नहीं होगा. वक़्फ़ की प्रकृति अद्वितीय है और इसके लिए उपयुक्त रूप से अनुकूलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है.”
गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व को उचित ठहराते हुए सरकार ने यह भी कहा कि “कुछ राज्यों में हिंदू संप्रदाय से संबंधित धार्मिक एंडोमेंट्स या संस्थानों के विपरीत, वक़्फ़ गैर-धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए भी हो सकता है. दूसरा, किसी भी वक़्फ़ (आमतौर पर गैर-धार्मिक वक़्फ़) का लाभार्थी गैर-मुस्लिम भी हो सकता है. तीसरा, धारा 72 (1)(v)(f) के तहत किसी भी मुस्लिम को वक़्फ़ के धर्मार्थ उद्देश्य में योगदान करने की अनुमति है. ”
केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिनियम वक़्फ़ के धार्मिक पहलुओं में हस्तक्षेप नहीं करता और “मुतवल्ली, जो वक़्फ़ का वास्तविक प्रबंधक होता है, वह धार्मिक व्यक्ति ही रहता है.” इसमें यह भी जोड़ा गया कि याचिकाकर्ताओं ने “अधिनियम के तहत नियामक बोर्डों को संपत्तियों के प्रबंधकों के साथ भ्रमित कर दिया है. बोर्डों के पास बनाए गए वक़्फ़ों पर कोई प्रबंधकीय अधिकार नहीं है और न ही यह कहा जा सकता है कि बनाए गए वक़्फ़ किसी भी तरह से बोर्डों में निहित हैं.”
सावरकर मामले पर राहुल को राहत, नसीहत भी
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा हिंदुत्व विचारक वीडी सावरकर के खिलाफ की गई टिप्पणियों पर कड़ी आपत्ति जताई, हालांकि इस मामले में लखनऊ की एक अदालत में उनके खिलाफ चल रही आपराधिक मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई. जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने राहुल गांधी से कहा, "आप स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते.” चेतावनी भी दी कि यदि भविष्य में उन्होंने ऐसी टिप्पणियां दोहराईं तो कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगी. जस्टिस दत्ता ने राहुल गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी से कहा कि महात्मा गांधी ने भी उस समय के वायसराय को पत्र लिखते हुए "आपका वफादार सेवक" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था, तो क्या उन्हें भी "ब्रिटिशों का सेवक" कहा जाएगा? पीठ ने यह भी कहा, "स्वतंत्रता सेनानियों पर गैर-जिम्मेदाराना बयान न दें... आपने कानून के मुद्दे पर अच्छा तर्क रखा है और आपको स्थगन का हक है."
अडानी एक्सपोज़े के लिए राहुल से कभी नहीं मिला, हिंडनबर्ग रिसर्च के प्रमुख का दावा
हिंडनबर्ग रिसर्च के नाथन एंडरसन ने ‘पीटीआई’ और ‘स्पूतनिक’ की उन रिपोर्टों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, जिनमें आरोप लगाया गया था कि अब बंद हो चुकी अमेरिकी रिसर्च फर्म ने राहुल गांधी के साथ मिलकर अडानी को निशाना बनाया. एंडरसन ने पीटीआई के उस हालिया रिपोर्ट की भी आलोचना की, जिसमें कहा गया था कि अडानी ने इज़राइल की खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ के एजेंटों के साथ मिलकर उन्हें “बेनकाब” किया. एंडरसन ने इसे “घटिया जासूसी कहानी” बताते हुए कहा कि यह “हवा में गढ़ी गई” लगती है.
“कुछ दिन पहले, पीटीआई के अम्मार जैदी ने एक स्टोरी प्रकाशित की, जिसमें दावा किया गया कि अडानी ने दर्जनों मोसाद एजेंटों के साथ मिलकर हमें ‘एक्सपोज’ किया. यह लेख घटिया जासूसी कहानी जैसा लगता है और हवा में गढ़ा गया प्रतीत होता है,” एंडरसन ने “एक्स” (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा. “रिपोर्टर ने हमसे टिप्पणी के लिए संपर्क करने की भी जहमत नहीं उठाई, जो किसी भी विश्वसनीय पत्रकार का सबसे बुनियादी कर्तव्य है. अगर वह हमसे संपर्क करता, तो हम आसानी से बता देते कि इनमें से कोई भी घटना घटी ही नहीं.” एंडरसन ने आगे कहा कि उन्होंने या उनकी टीम के किसी सदस्य ने कभी किसी भारतीय राजनेता से मुलाकात या बात नहीं की है, न ही वे कभी पालो आल्टो गए हैं, जैसा कि रिपोर्ट में दावा किया गया. उन्होंने पीटीआई और स्पूतनिक की रिपोर्टिंग को पूरी तरह से मनगढ़ंत और तथ्यहीन बताया. अम्मार जैदी की वह स्टोरी आप यहां पढ़ सकते हैं.
कुणाल कामरा की गिरफ्तारी नहीं होगी
बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर कथित टिप्पणी को लेकर कुणाल कामरा के खिलाफ पुलिस जांच जारी रह सकती है, लेकिन कॉमेडियन को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. जस्टिस सारंग कोतवाल और एस. एम. मोदक की बेंच ने कामरा की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों से जुड़े बड़े और गंभीर मुद्दों पर विचार करने की जरूरत है."
भूस्खलन के बाद सिक्किम के लाचेन, लाचुंग में 1,000 पर्यटक फंसे, 1,500 को बचाया गया : एक वरिष्ठ जिला पुलिस अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि उत्तरी सिक्किम के दो ऊंचे पर्वतीय स्टेशनों लाचेन और लाचुंग में करीब 1,000 पर्यटक गुरुवार से भूस्खलन के कारण फंसे हुए हैं. मंगन के पुलिस अधीक्षक (एसपी) सोनम देचू भूटिया ने बताया कि भूस्खलन के कारण सड़क पर फंसे करीब 1,500 से अधिक पर्यटकों को गुरुवार रात को पास के गांवों में ठहराया गया और शुक्रवार को उन्हें बचा लिया गया.
अब चीन में नहीं, भारत में बनेंगे आईफोन : एप्पल 2026 तक अमेरिका में बिकने वाले सभी आईफोन भारत से मंगाने की योजना बना रहा है. ‘द फाइनेंशियल टाइम्स’ ने मामले से परिचित लोगों के हवाले से बताया कि एप्पल अगले साल से ही अमेरिका में बिकने वाले सभी आईफोन की असेंबलिंग भारत में करने की योजना बना रहा है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर के कारण टेक दिग्गज को चीन से दूर जाना पड़ रहा है. इस लक्ष्य का मतलब है कि एप्पल को भारत में अपने आईफोन का उत्पादन लगभग दोगुना करना होगा. हालांकि भारत में एप्पल के प्रतिनिधियों ने इस पर मांगी गई टिप्पणी का जवाब नहीं दिया.
भारत परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में 49% विदेशी हिस्सेदारी की अनुमति देने पर कर रहा है विचार : रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव पर विचार कर रहा है, जो विदेशी कंपनियों को अपने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में 49% तक इक्विटी रखने की अनुमति देगा. यह कदम देश के सबसे कड़े नियंत्रण वाले क्षेत्रों में से एक के लिए संभावित मोड़ को चिह्नित करता है, क्योंकि नई दिल्ली अपने स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को तेज कर रही है और आने वाले दशकों में परमाणु क्षमता का नाटकीय रूप से विस्तार करने का लक्ष्य रखती है. सरकार 2023 से अपने परमाणु विदेशी निवेश ढांचे में बदलाव पर विचार कर रही है, लेकिन भारत द्वारा कोयले को कम उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोतों से बदलने के प्रयासों के बीच इसकी तात्कालिकता बढ़ गई है. अधिकारियों का कहना है कि इस क्षेत्र को संभावित रूप से खोलने से अमेरिका के साथ रणनीतिक व्यापार वार्ता के लिए एक नया रास्ता भी मिल सकता है, हालांकि उन्होंने आगामी व्यापार समझौतों से किसी भी सीधे संबंध की पुष्टि करने से परहेज किया.
छत्तीसगढ़ : मुठभेड़ में तीन नक्सली मारे गए : छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच चल रही मुठभेड़ में अब तक तीन नक्सली के मारे जाने की खबर है. यह मुठभेड़ बीजापुर और तेलंगाना की सीमा से लगे पुजारी कांकेर क्षेत्र की कर्रेगुट्टा पहाड़ियों में हो रही है. सुरक्षाबलों का दावा है कि उन्हें वहां माओवादियों के कई शीर्ष नेताओं की उपस्थिति की जानकारी मिली है. करीब दो सौ से अधिक प्रमुख माओवादी के यहां छिपे हुए हैं.
स्मोक कैनिस्टर का इस्तेमाल आतंकवादी कृत्य है? दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को सवाल उठाया कि गैर-घातक स्मोक कैनिस्टर के इस्तेमाल को ‘आतंकवादी कृत्य’ कैसे कहा जा सकता है, जिसके लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए जाने चाहिए? अदालत ने कहा कि अगर बाजार में आसानी से उपलब्ध गैर-घातक स्मोक कैनिस्टर यूएपीए को आकर्षित कर सकता है, तो जो लोग होली जैसे त्योहारों या यहां तक कि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) मैचों के दौरान ऐसे स्मोक कैनिस्टरों का उपयोग करते हैं, वे आतंकवाद विरोधी कानून को आकर्षित करेंगे. जस्टिस सुब्रह्मयम प्रसाद और हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने 2023 संसद सुरक्षा उल्लंघन मामले में आरोपी नीलम आज़ाद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को यह टिप्पणी की.
दिल्ली कोर्ट के दूसरे जज को मिली जान से मारने की धमकी
दिल्ली की एक अदालत के जज को इस महीने की शुरुआत में द्वारका के ककरोला गांव में दो लड़कों से जान से मारने की धमकी मिली थी.
16 अप्रैल को दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार जज ने आरोप लगाया कि जब वह अपने घर से एक पब्लिक स्कूल की ओर पैदल जा रहे थे, तभी एक वैगनआर कार में सवार दो लड़कों ने उनकी गाड़ी को रोक दिया और धमकी देते हुए स्थानीय भाषा में कहा, "तू बच कर रह ले. हम गोली मार दिया करें. कम बोला कर अगर जीना चाहता है तो." पुलिस आरोपियों की तलाश के लिए सीसीटीवी फुटेज की जांच की जा रही है. इसके पहले पिछले दिनों ही दिल्ली की एक अदालत में छह साल पुराने चेक बाउंस मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद, एक सेवानिवृत्त सरकारी स्कूल शिक्षक और उसके वकील ने महिला जज को कोर्टरूम के अंदर धमकाया और गालियां दी थीं. सेवानिवृत्त शिक्षक ने जज शिवांगी मंगल से कहा था, "तू है क्या चीज… तू बाहर मिल, देखते हैं कैसे जिंदा घर जाती है."
लक्ष्मी पुरी मामले में गोखले की सैलरी कुर्क करने का आदेश : दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले की मासिक सैलरी का एक हिस्सा तब तक कुर्क किया जाए, जब तक वह मानहानि मामले में पूर्व राजनयिक लक्ष्मी पुरी को हर्जाने के बतौर 50 लाख रुपये की राशि कोर्ट में जमा नहीं कर देते. 1 जुलाई 2024 को हाईकोर्ट ने गोखले को निर्देश दिया था कि वह पुरी के वित्तीय मामलों और जिनेवा में एक अपार्टमेंट को लेकर किए गए सोशल मीडिया पोस्ट्स के लिए पुरी से माफी मांगें और 50 लाख रुपये हर्जाने के तौर पर अदा करें.
गिरफ्तारी के बाद मेधा पाटकर को रिहा किया : 24 साल पुराने एक मामले में शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद दिल्ली की एक अदालत ने उनकी रिहाई का आदेश भी जारी कर दिया. क्या है पूरा मामला, यहां पढ़ा जा सकता है.
भाजपा संगठनात्मक चुनाव पर अस्थायी रोक : पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद के घटनाक्रम ने भाजपा के संगठनात्मक चुनावों पर अस्थायी रोक लगा दी है. न केवल इसलिए कि नेता चर्चा और रणनीति बैठकों में व्यस्त हैं, बल्कि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि हत्याओं की छाया में कुछ दिनों तक कोई नई घोषणा या नियुक्ति नहीं होगी. उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश में नए राज्य अध्यक्षों के चुनाव नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही संपन्न होने की उम्मीद है, इसलिए पूरे संगठनात्मक पुनर्गठन में और देरी होने की संभावना है.
चलते चलते
पूर्व इसरो प्रमुख के कस्तूरीरंगन का निधन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष कस्तूरी रंगन का शुक्रवार को 84 साल की उम्र में बेंगलुरु में निधन हो गया. पोखरण-2 के एक साल बाद, जब कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन दिल्ली में पहला राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस व्याख्यान दे रहे थे, तो उन्होंने अपने भाषण के अंत में कुछ स्लाइड्स जोड़ दीं. पहली बार दुनिया को इसरो के अंतरिक्ष सपने के बारे में पता चला. उन्हें अंतरिक्ष एजेंसी को आर्थिक विकास से संबंधित अपने मूल कार्यों से समझौता किए बिना, अंतरग्रहीय मिशन को ऊंचाई पर ले जाने के लिए याद किया जाएगा. उन स्लाइडों में इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के शुरुआती कार्य थे कि कैसे पीएसएलवी और जीएसएलवी का उपयोग चंद्रमा, मंगल और शुक्र तक पहुंचने के लिए किया जा सकता है. इस विचार को नीति निर्माताओं और वैज्ञानिक समुदाय से समर्थन मिला. इसके परिणामस्वरूप सरकार ने उनकी सेवानिवृत्ति के कुछ महीनों के भीतर 2003 में चंद्रयान -1 मिशन को मंजूरी दी. उन्होंने मिशन के लिए महत्वपूर्ण पेलोड बनाने के लिए नासा और ब्राउन विश्वविद्यालय यूएसए के वैज्ञानिकों को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. एक युवा वैज्ञानिक के रूप में वे पहली पीढ़ी के रोहिणी और भास्कर उपग्रहों के निर्माण में शामिल थे. बाद के नौ वर्षों में उन्होंने इसरो का नेतृत्व किया. कस्तूरीरंगन ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान – भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए वर्तमान कार्यबल – के सफल प्रक्षेपण और संचालन की एक सीरीज की देखरेख की और भारी उपग्रहों को अधिक ऊंचाई तक ले जाने के लिए भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) की पहली उड़ान की.
वह योजना आयोग में सलाहकार भी थे, इसके अलावा उन्होंने विभिन्न सरकारी पैनलों का नेतृत्व किया और कई शैक्षणिक संस्थानों की शासी परिषद का हिस्सा रहे. अपने इसरो सहयोगियों के लिए, वह एक साउंडिंग बोर्ड थे, जो धैर्यपूर्वक सभी नए विचारों को सुनते थे. सम्मानित वैज्ञानिक होने के नाते संसद में मनोनीत सांसद के तौर पर उनके द्वारा बिताए गए वर्ष भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर बहस के साथ मेल खाते थे, कि कैसे यह सौदा - जिसका भाजपा और वामपंथी दल विरोध करते हैं - न केवल भारत के परमाणु कार्यक्रम को लाभान्वित करेगा, बल्कि अन्य महत्वपूर्ण तकनीकों के लिए भी दरवाजे खोलेगा. भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा अंतरिक्ष के सैन्य उपयोग पर खुलने से कई साल पहले, मार्च 2008 में राज्यसभा में उन्होंने कहा, “मैं राष्ट्रीय रक्षा में अंतरिक्ष प्रणाली की भूमिका की गहन जांच के बारे में एक बयान देना चाहूंगा... आने वाले वर्षों में हमें किस तरह की एकीकृत अंतरिक्ष कमान स्थापित करने की आवश्यकता है.” उन्होंने ‘नई अंतरिक्ष नीति’, ‘अंतरिक्ष अधिनियम’ और दीर्घकालिक वैज्ञानिक लक्ष्यों के साथ भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने के बारे में भी तर्क दिया. यह विडंबना है कि कस्तूरीरंगन दूसरे भारतीय अंतरिक्ष यात्री के अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरने से कुछ हफ़्ते पहले ही दुनिया छोड़ गए.
पाठकों से अपील
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.