26/05/2025: गाय के नाम इंसानों पर हमले जारी | तेजप्रताप लालू परिवार, पार्टी से बाहर | जीडीपी में जापान पीछे, फिर भी गरीब | बूढ़े बीमार छोड़ते नहीं राजनीति | व्यवस्थागत दमन का रास्ता | कंपनी आर्ट
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
अलीगढ़ में गाय के नाम पर वसूली, आगजनी, बेरहम पिटाई, 4 में से 3 मुस्लिम गंभीर
तेज प्रताप की बेदखली एक बाप के सब्र का जवाब देना है
भारत जीडीपी में जापान को पीछे छोड़ चौथा तो हुआ, पर प्रति व्यक्ति जीडीपी में 124वां रहा
अमेरिकी एजेंसी के मुताबिक पाकिस्तान को भारत से वज़ूद का ख़तरा
आदिवासी महिला के साथ बलात्कार के बाद हत्या
अखबार ने 41 हिंदुओं के पलायन की गलत ख़बर छाप दी, लोगों ने विरोध में प्रतियां जलाईं
श्रवण गर्ग | बूढ़े, बीमार, लड़खड़ाते, हकलाते बुजुर्ग राजनीति छोड़ते क्यों नहीं
आकार पटेल | लोकतंत्र का मकसद लोगों को आज़ाद करना है या राज्य का बंधक बनाना
चलते चलते कंपनी आर्ट: रंग अंग्रेजों के, कला भारतीयों की
अलीगढ़ में गाय के नाम पर वसूली, आगजनी, बेरहम पिटाई, 4 में से 3 मुस्लिम गंभीर
उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में हिंदुत्ववादी भीड़ ने गो-मांस के शक में चार मुस्लिम पुरुषों को घेरकर बेरहमी से पीटा. इनमें से तीन की हालत गंभीर है. इन चारों की पहचान अरबाज़, अकील, कदीम और मुन्ना खान के रूप में हुई है, ये सभी अलीगढ़ के अतरौली कस्बे के निवासी हैं. यह घटना शनिवार 24 मई की है.
हमले के वीडियो कई बार सोशल मीडिया पर साझा किए गए हैं. आरोप है कि भीड़ ने चारों को कपड़े उतरवाकर नंगा किया और फिर तेज़ हथियारों, ईंटों, डंडों और रॉड से पीटा.
“द वायर” के मुताबिक स्थानीय पुलिस ने उन्हें गंभीर रूप से घायल अवस्था में बचाया. तीन की हालत नाजुक बताई जा रही है और वे अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. अकील के पिता सलीम खान ने कहा, “मैं चोटों का वर्णन नहीं कर सकता. आप वीडियो देख सकते हैं. मेरा बेटा अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है.” सलीम द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के मुताबिक, चारों 24 मई को अलीगढ़ के अल-अम्मार फ्रोजन फूड्स मीट फैक्ट्री से मांस लेकर अतरौली लौट रहे थे. सुबह करीब 8:30 बजे साधु आश्रम के पास, हरदुआगंज थाना क्षेत्र में, उनकी पिकअप गाड़ी को रोका गया. हिंदुत्व संगठनों ने दावा किया कि उन्हें बीफ तस्करी की सूचना मिली थी. एफआईआर में वीएचपी नेता राजकुमार आर्य और बीजेपी नेता अर्जुन सिंह समेत 13 आरोपियों के नाम दर्ज हैं.
सलीम ने आरोप लगाया कि चारों को जबरन गाड़ी से बाहर निकाला गया. खरीदे गए मांस का बिल फाड़कर फेंक दिया गया. उन्हें छोड़ने के लिए पैसे मांगे गए. “जब अकील और उसके चचेरे भाई ने पैसे देने से इनकार किया, तो उनकी कार को तोड़फोड़ कर पलटा दिया गया और उसमें आग लगा दी गई.” हमलावरों ने चारों के मोबाइल फोन और पैसे भी लूट लिये. मांस को सड़क पर फेंक दिया गया, जैसा कि वीडियो में दिखता है. सलीम के अनुसार, तीन को लगभग मरणासन्न हालत में छोड़ दिया गया. हमलावर पुलिस के पहुंचने के बाद ही वहां से हटे, हालांकि कुछ वीडियो में दिखता है कि पुलिस के आने के बाद भी हमला जारी रहा.
एसपी अमृत जैन ने बताया कि मांस के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं. पुलिस ने चारों को बचाकर दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया और सभी आरोपों की जांच की जा रही है.
एफआईआर पर एफआईआर “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार इस घटना के एक दिन बाद, पुलिस ने रविवार को पहले एक नोटिस जारी किया और फिर हमले को अंजाम देने वाले तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. “इंडियन एक्सप्रेस” से बात करते हुए एक अधिकारी ने बताया कि चारों पीड़ितों को अलीगढ़ के जेएनएमसी अस्पताल में भर्ती कराया गया है. "वे घायल हुए थे, लेकिन उनकी चोटें जानलेवा नहीं थीं," उन्होंने कहा. इस मामले में शनिवार को हरदुआगंज थाने में दो एफआईआर दर्ज की गईं। पहली एफआईआर यूपी गोवध निवारण अधिनियम, 1955 की धाराओं के तहत विजय बजरंगी की शिकायत पर दर्ज की गई. बजरंगी, 35, ने कहा है कि शनिवार को लगभग सुबह 8:40 बजे सूचना मिलने पर उसने अल्हाददपुर गांव के पनैठी रोड पर एक मैक्स वाहन का पीछा किया. “उन्हें रोकने के लिए मैंने अपनी बाइक उनकी गाड़ी के बगल में लगा दी. वाहन के ड्राइवर ने मुझे कुचलने की कोशिश की, जिससे मेरी बाइक का संतुलन बिगड़ गया,” उसकी एफआईआर में लिखा है.
“यह देखकर पास के खेतों में काम कर रहे मजदूर और किसान मौके की ओर दौड़े, और वाहन में बैठे चार लोगों ने उन पर हमला कर दिया. जब मैंने ट्रक के अंदर देखा, तो मुझे सात गायों के कटे हुए सिर मिले,” उन्होंने अपनी शिकायत में आगे कहा. शिकायतकर्ता ने पुलिस पर भी आरोप लगाए हैं. "जब इन चार लोगों को पकड़ा गया और पूछताछ की गई, तो उन्होंने कहा कि वे पुलिस को 3 लाख रुपये की रिश्वत देकर गौमांस की तस्करी कर रहे थे," उन्होंने कहा. बजरंगी ने अपनी शिकायत में आगे कहा है कि लगभग 15 दिन पहले भी इसी वाहन के जरिए बीफ ले जाने की सूचना हरदुआगंज थाने को दी गई थी.
हरदुआगंज के स्टेशन हाउस ऑफिसर, धीरज कुमार ने कहा कि बजरंगी की उस इलाके में ज़मीन है, लेकिन उन्होंने हिंदुत्व संगठनों से किसी भी संबंध से इनकार किया है. "हम उनके सभी आरोपों की जांच कर रहे हैं," उन्होंने जोड़ा. शनिवार को करीब पांच घंटे बाद, एक और एफआईआर सलीम खान (पीड़ितों में से एक के पिता और दूसरे के चाचा) द्वारा दर्ज कराई गई. इसमें बीएनएस की धाराओं 191(2) (दंगा), 191(3) (गैरकानूनी जमावड़ा), 190 (अपराध करने के लिए गैरकानूनी जमावड़ा), 109 (हत्या का प्रयास), 308 (जबरन वसूली), 310(2) (डकैती), 3(5) (संयुक्त आपराधिक जिम्मेदारी) के तहत 13 नामजद और 20-25 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.
चौथ वसूलने भेजा, पंद्रह दिन पहले भी 50 हजार मांगे थे खान ने अपनी शिकायत में पुलिस को बताया कि चारों पीड़ित अलीगढ़ के अल-अंबर स्थित फैक्ट्री से मांस बेचने जा रहे थे. "जैसे ही वाहन पनैठी रोड पहुंचा, राम कुमार आर्य और अर्जुन ने साजिश के तहत अन्य लोगों—चेतन लोधी, शिवम हिंदू लोधी, लवकुश, अनुज भूरा, विजय, गिरीश कुमार, अंकित (महमूदपुर निवासी), राणा (अल्हाददपुर निवासी), और विजय कुमार गुप्ता—को चौथ वसूलने के लिए भेजा. (चौथ वह 25 प्रतिशत वार्षिक कर था, जो मुग़ल नियंत्रण वाले क्षेत्रों में मराठा साम्राज्य द्वारा लगाया जाता था.) "उन्होंने चारों को वाहन से बाहर खींच लिया और 50,000 रुपये की मांग की. जब उन्हें पैसे देने से मना किया गया, तो उन्हें लकड़ी, लोहे की छड़ों से बेरहमी से पीटा गया और उनके मोबाइल फोन और पैसे भी लूट लिए," खान ने पुलिस को बताया. "पंद्रह दिन पहले भी ऐसा ही एक मामला हुआ था, जब इन लोगों ने 50,000 रुपये चौथ की मांग की थी, लेकिन अकराबाद थाने की वजह से हमारा वाहन छोड़ दिया गया था," खान ने कहा.
फैक्ट-चेक : कंपनी भैंस के मांस के लिए पंजीकृत फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर ने अल-अम्मार फ्रोजन फूड्स एक्सपोर्ट्स के निर्यात विवरण—जिसमें फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) का रजिस्ट्रेशन और अन्य प्रमाणपत्र शामिल हैं—भी साझा किए और बताया कि यह कंपनी भैंस के मांस के निर्यात के रूप में पंजीकृत है. उन्होंने अल-अम्मार फैक्ट्री के गेट पास की एक फोटो भी पोस्ट की, जिसमें विवरण कॉलम में "buffalo bone in meat" (भैंस की हड्डी सहित मांस) लिखा है. गेट पास पर दर्ज समय और वाहन नंबर एफआईआर में दिए गए विवरण से मेल खाते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि इस पर कादिम, जो चार व्यक्तियों में से एक है, के हस्ताक्षर हैं.
विश्लेषण
समी अहमद | तेज प्रताप की बेदखली एक बाप के सब्र का जवाब देना है
ऐसा लगता है कि 2018 से लालू प्रसाद अपने बड़े बेटे तेज प्रताप की हरकतों की वजह से सब्र का जो बांध बनाए हुए थे वह आज टूट गया. ध्यान रहे कि 2018 में तेज प्रताप की शादी ऐश्वर्या राय से हुई थी जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पोती हैं लेकिन यह शादी कुछ ही महीनों तक चली और तेज प्रताप ने तलाक की जो अर्जी दी है, उसका मामला अदालत में है.
एक दिन पहले तेज प्रताप यादव ने अपनी नई रिलेशनशिप के बारे में जब सोशल मीडिया पर जानकारी दी तो हंगामा मच गया. इसके कुछ ही देर बाद उन्होंने दावा किया कि उनके सोशल मीडिया हैंडल को हैक कर लिया गया था लेकिन इसके बाद इस पर कोई और जानकारी नहीं दी. साफ बात यह है कि लालू ने इस सफाई को नहीं माना और आज इस मामले को सामाजिक पटल पर लाकर तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से निकलने की घोषणा कर दी.
तेज प्रताप पिछले कुछ महीनों से, या उससे पहले से भी अपने निजी जीवन में जो कुछ कर रहे थे उससे लालू प्रसाद का परिवार उनसे शायद दूर हो चुका था. इस बात का अंदाजा छोटे भाई तेजस्वी प्रसाद के बयान से भी लगता है. तेजस्वी ने इस मामले में मीडिया से कहा, “तेजप्रताप की निजी जिंदगी के बारे में उन्हें भी जानकारी मीडिया के जरिए ही मिलती है. 'वो अपनी निजी जिंदगी में क्या कर रहे हैं, ये वो किसी से पूछकर नहीं करते. हमें भी आपके (मीडिया) माध्यम से ही पता चला.”
लालू और तेजस्वी दोनों ने इस बात की कोशिश की है कि इसे एक वयस्क का मामला बताते हुए उनकी निजी जिंदगी के बारे में ज्यादा टिप्पणी करने से बचें. तेजस्वी ने कहा, “जहां तक मेरी बात है, मुझे ये सब न तो पसंद है और न ही बर्दाश्त है. मैं अपना काम कर रहा हूं. जहां तक मेरे बड़े भाई की बात है, वो एडल्ट हैं और उन्हें अपने निजी फैसले लेने का पूरा अधिकार है.”
इसके बावजूद लालू ने जैसे ही तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से निकलने का फैसला सार्वजनिक किया, यह बहस बहुत तेज हो गई कि क्या लालू ने तेज प्रताप के व्यक्तिगत मामले को राजनीतिक वजह से पार्टी और परिवार से निकलने का मुद्दा बना लिया. लेकिन ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि लालू प्रसाद ने तंग आकर यह फैसला किया क्योंकि इससे उनके छोटे बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव के राजनीतिक करियर पर भी असर पड़ता दिख रहा था.
लालू ने कहा, “निजी जीवन में नैतिक मूल्यों की अवहेलना करना हमारे सामाजिक न्याय के लिए सामूहिक संघर्ष को कमज़ोर करता है. ज्येष्ठ पुत्र की गतिविधि, लोक आचरण तथा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हमारे पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों के अनुरूप नहीं है. अतएव उपरोक्त परिस्थितियों के चलते उसे पार्टी और परिवार से दूर करता हूँ. अब से पार्टी और परिवार में उसकी किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी. उसे पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित किया जाता है.”
लालू प्रसाद ने यह बातें बहुत सोच समझ कर लिखी हैं ताकि उन पर यह आरोप ना लगे कि वह तेज प्रताप के प्यार में बाधक बन रहे हैं. लालू ने लिखा, “अपने निजी जीवन का भला -बुरा और गुण-दोष देखने में वह स्वयं सक्षम है. उससे जो भी लोग संबंध रखेंगे वो स्वविवेक से निर्णय लें. लोकजीवन में लोकलाज का सदैव हिमायती रहा हूँ. परिवार के आज्ञाकारी सदस्यों ने सावर्जनिक जीवन में इसी विचार को अंगीकार कर अनुसरण किया है. धन्यवाद.”
दक्षिण की राजनीति में पारिवारिक कारणों से राजनीतिक फैसले लिए जाने की बात तो देखी गई है लेकिन बिहार में शायद ऐसे मामले कम हों जब किसी के निजी जीवन के फैसलों की वजह से उसे न केवल परिवार से निकाला गया बल्कि पार्टी से भी निकाला गया.
तेज प्रताप ने जब ऐश्वर्या राय को तलाक देने का फैसला किया तो भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड ने इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया और लालू प्रसाद के परिवार को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि तेज प्रताप के ससुर और लालू के पुराने साथी चंद्रिका राय ने राजद से इस्तीफा दे दिया और उनसे राजनीतिक और कानूनी तौर पर बदला लेने की घोषणा करते हुए जदयू ज्वाइन कर लिया. तेज प्रताप की पत्नी ऐश्वर्या राय ने अपनी सास राबड़ी देवी पर प्रताड़ना का आरोप लगाया और इसका इस्तेमाल भी राजनीतिक तौर पर किया गया. लालू प्रसाद की बड़ी बेटी और इस समय पाटलिपुत्र सीट से लोकसभा की सदस्य मीसा भारती पर भी ऐश्वर्या को सताने का आरोप लगा था.
1988 में गोपालगंज में जन्म लेने वाले लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप दूसरी वजह से भी विवादों में रहे हैं. तेज प्रताप स्वास्थ्य और वन एवं पर्यावरण मंत्री भी रहे हैं और इस बात की काफी चर्चा रही है कि उन्होंने अपनी हरकतों से न केवल सरकार को बल्कि अपने पिता लालू प्रसाद को भी कई बार परेशानी में डाला. तेज प्रताप की अजीबोगरीब हरकत को भारतीय जनता पार्टी ने बराबर लालू प्रसाद के परिवार और उनकी पार्टी पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया. कई बार यह लगता था कि भारतीय जनता पार्टी तेज प्रताप को यह एहसास दिलाना चाहती है कि उनका भाव तेजस्वी प्रसाद से कम है और उन्हें बगावत करनी चाहिए. एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘कृष्ण कन्हैया’ कहकर भी संबोधित किया था जिसे उसे समय एक मजाक के तौर पर लिया गया था. इस समय यह सवाल भी है कि क्या परिवार और पार्टी से निकाले जाने के बाद तेज प्रताप भारतीय जनता पार्टी में अपनी संभावना देख सकते हैं.
मीडिया में इससे पहले कई बार यह चर्चा चली थी कि तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाने के लालू प्रसाद के फैसले से तेज प्रताप खुश नहीं हैं और उन दोनों भाइयों के बीच बराबर अनबन भी की भी खबर चलाई जाती रही. हालांकि तेजस्वी प्रसाद ने इस मामले को काफी हद तक संभाला और इसे आगे बढ़ने नहीं दिया लेकिन ऐसा लगता है कि अब इसकी जरूरत बाकी नहीं है क्योंकि लालू के बयान के बाद तेजस्वी और उनकी बहन रोहिणी आचार्य के भी बयान सामने आए, इसमें दोनों ने अपने पिता के फैसले का समर्थन किया.
इस बारे में छपरा से लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं और पिता लालू प्रसाद को किडनी देने वाली रोहिणी आचार्य ने तेज प्रताप का नाम लिए बिना कहा, “जो परिवेश, परंपरा, परिवार और परवरिश की मर्यादा का ख्याल रखते हैं, उन पर कभी सवाल नहीं उठते हैं, जो अपना विवेक त्याग कर मर्यादित आचरण व परिवार की प्रतिष्ठा की सीमा को बारम्बार लांघने की गलती-धृष्टता करते हैं, वो खुद को आलोचना का पात्र खुद ही बनाते हैं …हमारे लिए पापा देवतुल्य हैं, परिवार हमारा मंदिर व् गौरव और पापा के अथक प्रयासों - संघर्षों से खड़ी की गयी पार्टी व् सामाजिक न्याय की अवधारणा हमारी पूजा .. इन तीनों की प्रतिष्ठा पर किसी की वजह से कोई आंच आए ये हमें कदापि स्वीकार्य नहीं.”
भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड दोनों पार्टियां लालू परिवार में इस उथल-पुथल पर जरूर गहरी नजर बनाए होगी. यह भी देखने की बात होगी कि इस मुद्दे पर तेज प्रताप की मां राबड़ी देवी और उनकी बहन मीसा भारती क्या सोचती हैं. लालू प्रसाद ने जरूर तेज प्रताप से तंग आकर और तेजस्वी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया होगा लेकिन भारतीय जनता पार्टी और जदयू लालू और तेजस्वी पर इसी बहाने हमले करे तो किसी को शायद ताज्जुब न हो. यह भी मुमकिन है कि दोनों पार्टियों तेज प्रताप को इस बात के लिए उकसाएं कि वह तेजस्वी के खिलाफ बयानबाजी करें. कुल मिलाकर लालू प्रसाद ने तेज प्रताप को पार्टी से निकाल कर एक खतरा मोल लिया है लेकिन शायद यह खतरा उन्हें बड़े खतरे से बचा ले.
समी अहमद वरिष्ठ पत्रकार हैं
भारत जीडीपी में जापान को पीछे छोड़ चौथा तो हुआ, पर प्रति व्यक्ति जीडीपी में 124वां रहा
आज की हैडलाइन तो यही है कि भारत शनिवार को आधिकारिक तौर पर जापान को पछाड़ कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी हो गया है. ये ऐलान नीति आयोग के सीईओ बी वी आर सुब्रह्मण्यम ने शनिवार को किया. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, 2025 में जापान को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. भारत का नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 4.187 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, जो जापान के अनुमानित 4.186 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक है.
हालांकि, प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत अभी भी वैश्विक स्तर पर काफी पीछे है. 2025 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 2,880 अमेरिकी डॉलर (करीब 2.4 लाख रुपये) है, जिसके साथ भारत विश्व प्रति व्यक्ति जीडीपी रैंकिंग में 124वें स्थान पर है. तुलना के लिए, जापान की प्रति व्यक्ति जीडीपी 33,900 डॉलर है, जो वहां के नागरिकों के उच्च जीवन स्तर को दर्शाती है. विश्लेषकों का कहना है कि भारत की विशाल जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति आय कम रहती है, लेकिन पिछले एक दशक में इसमें 188% की वृद्धि हुई है, जो 2015 में 86,647 रुपये से बढ़कर 2024 में 1.8 लाख रुपये हो गई.
आईएमएफ के विश्व आर्थिक परिदृश्य (अप्रैल 2025) के अनुसार, भारत अगले दो वर्षों तक विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा, जिसमें 2025 और 2026 में 6.2% की वृद्धि दर का अनुमान है. इसके विपरीत, जापान की अर्थव्यवस्था 2025 में केवल 0.6% की दर से बढ़ेगी. भारत की यह आर्थिक प्रगति न केवल इसके बढ़ते घरेलू बाजार और युवा कार्यबल के कारण है, बल्कि सूचना प्रौद्योगिकी, सेवा, कृषि और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निरंतर सुधारों के कारण भी है.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की यह उपलब्धि वैश्विक मंच पर इसके बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है. आने वाले वर्षों में, भारत के 2027 तक जर्मनी को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है, जिसका अनुमानित जीडीपी 5.58 ट्रिलियन डॉलर होगा. हालांकि, प्रति व्यक्ति आय में सुधार के लिए भारत को शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में और निवेश करने की आवश्यकता है.
अमेरिकी एजेंसी के मुताबिक पाकिस्तान को भारत से वज़ूद का ख़तरा
चीन के सैन्य और आर्थिक समर्थन से पाकिस्तान अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण कर रहा है, जिसमें युद्धक्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले परमाणु हथियारों का विकास भी शामिल है. उसका उद्देश्य भारत की पारंपरिक सैन्य बढ़त का मुकाबला करना है. यह जानकारी अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए) द्वारा रविवार को जारी नवीनतम वर्ल्ड थ्रेट असेसमेंट रिपोर्ट में दी गई है.
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत को अस्तित्व के लिए खतरा मानकर पाकिस्तान व्यापक सैन्य आधुनिकीकरण रणनीति अपना रहा है. वह भारत की पारंपरिक सैन्य बढ़त को संतुलित करने के लिए अपने सैन्य आधुनिकीकरण के प्रयासों को जारी रखेगा. आगामी वर्ष में, पाकिस्तानी सेना की प्राथमिकताओं में क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ सीमा पार झड़पें, आतंकवाद विरोधी अभियान और परमाणु हथियार क्षमताओं के विकास को जारी रखना शामिल है.
पाकिस्तान अपने परमाणु कार्यक्रम के आधुनिकीकरण में न केवल हथियार प्रणालियों, बल्कि परमाणु सामग्री की सुरक्षा और कमांड-एंड-कंट्रोल तंत्र को मजबूत करने पर ध्यान दे रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के वेपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन (सामूहिक विनाश के हथियार) कार्यक्रमों के लिए विदेशी सामग्री और प्रौद्योगिकियां मुख्य रूप से चीन के आपूर्तिकर्ताओं से हासिल की जाती हैं, और कभी-कभी हांगकांग, सिंगापुर, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात के माध्यम से.
हालांकि यह सहयोग रणनीतिक है, लेकिन यह बिना चुनौतियों के नहीं है. पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर काम कर रहे चीनी नागरिकों, विशेष रूप से चीनी कर्मियों पर आतंकवादी हमलों की एक श्रृंखला दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बनी है. 2024 में पाकिस्तान में सात चीनी नागरिकों की हत्या की गई.
फिर भी, चीन पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान करता रहता है, जो अपनी रक्षा और बुनियादी ढांचे की जरूरतों को पूरा करने के लिए बीजिंग पर अत्यधिक निर्भर है.
रिपोर्ट चेतावनी देती है कि क्षेत्रीय संघर्षों में उपयोग के लिए पाकिस्तान द्वारा टैक्टिकल परमाणु हथियारों की खोज दक्षिण एशिया के पहले से ही अशांत सुरक्षा माहौल में एक और जोखिम जोड़ती है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में जयंत जैकब के अनुसार डीआईए की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि पाकिस्तान ने “नो फर्स्ट यूज” (पहले इस्तेमाल न करने) की परमाणु नीति को नहीं अपनाया है और वह भारत की बड़ी पारंपरिक सेनाओं का मुकाबला करने के लिए टैक्टिकल या बैटलफील्ड न्यूक्लियर हथियारों पर लगातार ध्यान केंद्रित कर रहा है.
सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड नॉन-प्रोलिफरेशन के अनुसार 2024 तक, पाकिस्तान के पास लगभग 170 परमाणु हथियार होने का अनुमान है, जो 1999 में डीआईए द्वारा अनुमानित 60-80 हथियारों की तुलना में तेज़ वृद्धि है. अपने वर्तमान विस्तार की गति को देखते हुए, पाकिस्तान का परमाणु जखीरा 2025 तक 200 परमाणु हथियारों तक पहुंच सकता है. भारत के विपरीत, पाकिस्तान अपने परमाणु शस्त्रागार के आकार या संरचना का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं करता, जिससे उसकी क्षमताओं का पूरा आकलन करना कठिन हो जाता है.
जहां इस्लामाबाद का ध्यान मुख्य रूप से भारत पर केंद्रित है, वहीं नई दिल्ली चीन को प्राथमिकता दे रही है. रिपोर्ट के अनुसार, “भारत चीन को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानता है और पाकिस्तान को एक द्वितीयक सुरक्षा समस्या के रूप में देखता है, जिसे प्रबंधित किया जाना है.”
डीआईए (डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी) ने पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुई हालिया सैन्य झड़पों का भी उल्लेख किया है. चेतावनी दी है कि अस्थायी शांति के बावजूद, दोनों पक्षों के बीच सतत संवाद की कमी और सैन्य क्षमताओं के विस्तार के कारण भविष्य में तनाव बढ़ने का खतरा बना हुआ है. रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि पाकिस्तान के चीन के साथ गहरे होते संबंध और परमाणु हथियारों के विकास पर उसका फोकस, क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरण को और जटिल बना देता है.
जैसे-जैसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है, ‘डीआईए’ का निष्कर्ष है कि दक्षिण एशिया परमाणु जोखिम, सीमा पार तनाव और भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच बदलते शक्ति संतुलन के कारण संभावित संघर्ष का केंद्र बना रहेगा.
आदिवासी महिला के साथ बलात्कार के बाद हत्या: मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के खालवा थाना क्षेत्र में 45 वर्षीय आदिवासी महिला के साथ दो पड़ोसियों द्वारा अकल्पनीय बर्बरता की घटना सामने आई है. उसके साथ पड़ोसियों ने बलात्कार किया. उसके गुप्तांग में किसी कठोर वस्तु (संभवतः लोहे की छड़) को डाला, जिससे उसके आंतरिक अंगों को गंभीर क्षति पहुंची. उसकी बच्चादानी निकली पड़ी थी. खून बह रहा था. उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां कुछ घंटों बाद उसकी मृत्यु हो गई. पड़ोसियों की दरिंदगी की शिकार हुई महिला दो युवा बेटों की मां थी. दोनों आरोपी, जो उसी कोरकू जनजाति के हैं जिससे महिला भी संबंध रखती थी, को गिरफ्तार कर हत्या और सामूहिक बलात्कार के आरोप में मामला दर्ज किया गया है. महिला और आरोपी दोनों पड़ोसी थे और एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते थे.
फेक़ न्यूज | हेट अलर्ट
अखबार ने 41 हिंदुओं के पलायन की गलत ख़बर छाप दी, लोगों ने विरोध में प्रतियां जलाईं
20 मई 2025 को, एक प्रमुख हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने मध्यप्रदेश के सागर शहर के निवासियों द्वारा "प्रोपेगेंडा" करार दी गई एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसे एक खोजी रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत किया गया था. इस रिपोर्ट में झूठा दावा किया गया कि बुंदेलखंड क्षेत्र के ऐतिहासिक घनी आबादी वाले इलाके सागर (भोपाल से 170 किमी दूर एक जिला) से 41 हिंदू परिवारों ने पलायन किया है.
यह रिपोर्ट कथित तौर पर एक आरएसएस नेता के हवाले से प्रकाशित की गई थी, जिसने इलाके और सागर शहर, दोनों की सामाजिक एकता को खतरे में डालते हुए सांप्रदायिक तनाव भड़का दिया. इस भड़काऊ रिपोर्ट ने इलाके को जनसांख्यिकीय संघर्ष का केंद्र बताया, जिससे दशकों से चली आ रही शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की छवि को नुकसान पहुंचा. इलाके के हिंदू और मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल ने आपसी एकता का परिचय देते हुए, एसपी और कलेक्टर को शिकायत देकर समाचार पत्र के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. आरोप लगाया कि अखबार ने समाज में फूट डालने के लिए भ्रामक खबर प्रकाशित की है. शिकायत में कहा गया कि यह झूठी खबर मुस्लिमों को दूरदराज के इलाकों में खतरे में डाल रही है, जहां उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है.
प्रतिनिधिमंडल ने अखबार के सागर कार्यालय में पहुंचकर संपादकीय टीम से जवाब मांगा और दावे के समर्थन में ठोस सबूत देने की मांग की. प्रतिनिधियों के अनुसार, संपादक ने स्वीकार किया कि रिपोर्ट बिना पत्रकारिता मानकों का पालन किए प्रकाशित की गई थी और मौखिक रूप से सार्वजनिक माफी देने का वादा किया. दो दिन बाद भी अखबार ने न तो माफी छापी, न ही खंडन, जिससे नाराज स्थानीय लोगों ने विरोध तेज कर दिया. 22 मई 2025 को, निवासियों ने अखबार की प्रतियां सार्वजनिक रूप से जलाईं और पूरे शहर में बहिष्कार की अपील की, ताकि गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग के लिए अखबार को जवाबदेह ठहराया जा सके.
यह कोई अकेला मामला नहीं है. पिछले महीने भी इस अखबार ने भोपाल के पुराने शहर से हिंदुओं के पलायन का दावा करते हुए इसी तरह की रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें फिर से आरएसएस को स्रोत बताया गया था. इस बारे में पत्रकार काशिफ काकवी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “एक्स” पर विस्तार से जानकारी दी है.
विश्लेषण
श्रवण गर्ग | बूढ़े, बीमार, लड़खड़ाते, हकलाते बुजुर्ग राजनीति छोड़ते क्यों नहीं
नागरिकों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि देश की औसत आयु से लगभग दो गुना उम्र के जो लोग इस समय सत्ता पर क़ाबिज़ हैं या उसे हासिल करने के लिये संघर्षरत हैं वे किसी न किसी गंभीर या गंभीर बन जाने वाली बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं. यह भी कि उन्हें उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा के नाम पर उपलब्ध कराए गए लौह आवरण की आड़ में वे जितने आश्वस्त नज़र आते हैं हक़ीक़त में उतने होंगे नहीं .
देश की आधी से ज़्यादा आबादी 28.8 से कम आयु की है. मोदी जी के मंत्रिमंडल की औसत उम्र 58 साल है. यानी जिस औसत आयु के लोग मंत्रिमंडल में हैं उनकी कुल जनसंख्या पंद्रह करोड़ के लगभग ही है . इसी तरह सांसदों की औसत आयु भी 56 साल है . हमारे 52 प्रतिशत सांसद 55 से ऊपर के हैं. पवित्र नदियों में भी धवल अथवा भगवा वस्त्र धारण कर स्नान करने वाली इन आत्माओं के शरीरों की अंदरूनी वास्तविकता बहुत मुमकिन है इनकी सेवा में चौबीसों घंटे तैनात रहने वाले चिकित्सकों को भी या तो पता नहीं हो या उन्हें बताई ही नहीं गई हो.
सत्ताओं में क़ाबिज़ नेताओं की औसत नींद को लेकर भी कई तरह के दावे किए जाते हैं. आकलन यही है कि उनकी कुल जमा नींद चार-पाँच घंटों से ज़्यादा की नहीं होती . शीर्ष पर पहुँचने या शीष को बचाए रखने की चिंता या प्रतिस्पर्धा के कारण भी नींद नहीं हो पाती है. सत्ता में सालों की संख्या जैसे-जैसे बढ़ती जाती है नींद के घंटे भी उतने ही कम होते जाते हैं और बीमारियां बढ़ती जाती हैं. हमारे देखते-देखते के ऐसे कई उदाहरण हैं कि शीर्ष से बिदा होते ही सारे समर्थक एक साथ ग़ायब हो जाते हैं और सारी बीमारियां इस तरह प्रकट होने लगती हैं कि देश-सेवा का ज़्यादा वक्त नहीं मिल पाता.
जिज्ञासा हो सकती है कि एक ऐसे कठिन समय जब कि देश युद्धकालीन परिस्थितियों से गुज़र रहा है इस तरह के अपशकुनी विषय चर्चा में क्यों लाए जाने चाहिए ? कारण यह है कि ऐसे ही नाज़ुक मौक़ों पर नेतृत्व कर रहे लोग सबसे ज़्यादा तनावग्रस्त पाए जाते हैं और अलग तरह की ज़ुबानें बोलने और अनपेक्षित व्यवहार करने लगते हैं. इस सबसे उनकी असली मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के संकेत जनता को प्राप्त होते हैं.
विषय को चर्चा में लाने के पीछे एक और बड़ा कारण दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश ने प्राप्त कराया है. अमेरिका जैसे ताकतवर और सुविधा संपन्न मुल्क के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान सूंघ तक नहीं पड़ने दी कि उनका प्रोस्टेट कैंसर फोर्थ स्टेज तक पहुँच गया है.
पूरा अमेरिका इस बात पर आश्चर्य व्यक्त कर रहा है कि जिस राष्ट्राध्यक्ष को दुनिया की श्रेष्ठतम चिकित्सा सुविधा निजी स्तर पर उपलब्ध थी वह इतनी गंभीर बीमारी के साथ पद पर कैसे बना रहा और दूसरी बार भी चुनाव लड़ने के लिए राज़ी हो गया ? आरोप है कि बाइडन की शारीरिक (मानसि.)कमज़ोरियों पर पर्दा डाला गया. बाइडन द्वारा मैदान से हटने की घोषणा के बाद कमला हैरिस को ट्रम्प से मुक़ाबले के लिए सिर्फ़ सौ दिन ही मिल पाए थे .उनकी पराजय तो बाइडन ने ही तय कर दी थी. ट्रम्प ने तो सिर्फ़ अपनी मोहर ही लगाई .
पूछा जा रहा है कि चार साल के शासनकाल के दौरान उनके सत्तर साल से अधिक की उम्र के होने के बावजूद प्रोस्टेट कैंसर की जाँच क्यों नहीं की गई ? बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति पद सँभालने के सात साल पहले 2014 में इस बीमारी के संबंध में खून की जाँच आख़िरी जाँच हुई थी. राष्ट्रपति-पद पर बने रहने के दौरान उनकी हर साल संपूर्ण मेडिकल जाँच होती थी. बाइडन इस समय 82 साल के हैं और बताया जाता हैं कैंसर हड्डियों में फैल गया है जिसे दवाओं के ज़रिए केवल नियंत्रित किया जा सकता है. समाप्त नहीं .
अमेरिका के मुक़ाबले हमारे यहाँ योग्य चिकिसक ज़्यादा हो सकते हैं पर सुविधाएँ तो वहाँ जैसी निश्चित ही नहीं होंगी . कहा जाता है कि किसी समय हमारे एक ताकतवर मुख्यमंत्री अपने दांतों के इलाज के लिए भी अमेरिका जाते थे. हमारे यहाँ के सक्षम राजपुरुष और उद्योगपति अपने घुटनों और रीढ़ की हड्डियों के इलाज के लिए अभी भी जाते ही होंगे. देश की ग़रीब जनता को राजनीति के अपने सिद्ध पुरुषों की बीमारियों का तब तक पता नहीं चलता जब तक कि गिरफ़्तारी के किसी अदालती आदेश के चलते अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ जाए या सत्ता से उनकी बेदख़ली नहीं हो जाए.
श्रवण गर्ग वरिष्ठ पत्रकार और संपादक हैं.
लोकतंत्र
आकार पटेल | लोकतंत्र का मकसद लोगों को आज़ाद करना है या राज्य का बंधक बनाना
लोकतंत्र का प्रोजेक्ट असल में व्यक्ति की आज़ादी के बारे में है. सामाजिक रीति-रिवाजों और कल्चरल वैल्यूज़ के पालन की दुहाई किसी भी तरह की सरकार में दी जा सकती है. लोकतंत्र, इसकी संस्कृति, इसका अभ्यास, इसकी भावना को एक राष्ट्र को ऊपर उठाना है तो उसके व्यक्तियों को सशक्तिकरण के जरिए से उठाना चाहिए. यही इसका मकसद है.
अपने एक निबंध में, सी.एस. लेविस बताते हैं कि किसी भी कारीगरी को परखने की पहली क्वालिफिकेशन, एक कॉर्कस्क्रू (बोतल के कॉर्क खोलने वाला पेंच) से लेकर कैथेड्रल तक, यह जानना है कि वो क्या है. उसे किस काम के लिए बनाया गया था और उसे कैसे इस्तेमाल करना है. यह पता लगने के बाद, नशेबंदी का प्रचारक तय कर सकता है कि कॉर्कस्क्रू गलत मकसद से बना था. और कम्युनिस्ट कैथेड्रल के बारे में ऐसा ही सोच सकता है. लेकिन ऐसे सवाल बाद में आते हैं. पहली चीज़ है कि आपके सामने जो चीज़ है उसे समझा जाए. जब तक आपको लगता है कि कॉर्कस्क्रू टिन खोलने के लिए था या कैथेड्रल सैलानियों के मनोरंजन के लिए, आप उनके बारे में कोई काम की बात नहीं कह सकते.
लोकतंत्र को महज़ चुनावों की एक सीरीज समझना, फॉर्म (आकार) को सब्सटेंस (तत्व) समझने की गलती है. यह उत्तराधिकार और सत्ता के कब्ज़े के लिए कबीलाई लड़ाइयों से ज़्यादा है. एक तानाशाही और एक चुनी हुई ऑटोक्रैसी में कोई फर्क नहीं है. अगर भीतरी हालात यह है कि दोनों में सरकार व्यक्ति को दबाती है. उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगाकर. उनकी राय और उनकी स्वायत्तता को सीमित करके. और सोच की एकरूपता थोपकर. सरकार के खिलाफ़ फैसला देने वाले जज की असहमति लोकतंत्रों में ज़रूरी है. क्योंकि जज को राज्य का सामना करने और व्यक्ति की रक्षा करने का अधिकार है. यह ज्यादती लग सकती है. लेकिन लोकतांत्रिक सिस्टम्स में जज को, व्यक्ति को स्टेट की तानाशाही से आज़ाद करना चाहिए. यह इस सही धारणा से आता है कि राज्यसत्ता के सभी रूप व्यक्ति को बांधने की कोशिश करते हैं. क्योंकि वह मशीनरी के आसान प्रक्रिया में एक बाधा है.
आप ऊपर लिखे शब्दों का मतलब हमारे देश की किसी भी घटना में देख सकते हैं. और किसी खास घटना की बात करना ध्यान बंटाना होगा. बतौर लेखक हमारी दिलचस्पी दिशा और बदलाव की संभावनाओं में होती है, अगर कोई हैं तो. यह भी देखा जाता है कि राज्य सत्ता द्वारा लाए गए बदलावों पर आम जनता की प्रतिक्रिया किस तरह की होती है.
इन बदलावों की बारीकियों पर विस्तार से बात करना खासकर या ज़रूरी नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे काफी समय से सामने हैं. (हम इस दौर के अब 12वें साल में हैं). और चुनावों के ज़रिए उन्हें एंडोर्स मिला है. लेकिन हेडलाइंस देखना इंस्ट्रक्टिव है. और फिर, अगर दिलचस्पी हो, तो रीडर डिटेल्स देख सकता है. और आंकलन कर सकता है कि यहां जो हो रहा है, वो व्यक्ति का इम्पावरमेंट और लोकतंत्र का गहरा होना है या इसका उल्टा.
राज्य सत्ता हमें एक खास दिशा की तरफ ले जा रही है. और यह देखते हुए कि मौजूदा मैनेजमेंट के तहत यह कितने समय से ऐसा कर रही है, अब यह सिर्फ हलका या सतही मामला नहीं रहा है. यह दिशा उसने हमें कानूनों को लाकर हमें दिखाई है.
कानूनों का एक सेट यह है. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018. हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2019. उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020. मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021. गुजरात धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021. कर्नाटक धर्म स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण अधिनियम 2022. हरियाणा विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन निवारण अधिनियम 2022.
दूसरा सेट यह है. महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम 2015. हरियाणा गौवंश संरक्षण और गोसंवर्धन अधिनियम 2015. गुजरात पशु परिरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2017. कर्नाटक मवेशी वध निवारण और संरक्षण अधिनियम 2017.
तीसरा सेट इस तरह है. गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम 2019. सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम 2019. उत्तर प्रदेश लोक और निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम 2020. दूरसंचार सेवाओं का अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम 2017. आधार और अन्य कानून (संशोधन) अधिनियम 2019.
ये साल ज़रूरी हैं क्योंकि इनसे पता चलता है कि ये बदलाव किस तरह लाये गये हैं. ये हमें यहां तक लेकर आये हैं, जहां हम आज हैं. उन घटनाओं के पीछे, जो न्यूज़ स्टोरीज में छाई रहती हैं, यह स्ट्रक्चर है जो अब कानून के ज़रिए लागू है. जिसका हर दांत कसा हुआ है और मजबूती से जकड़ा हुआ.
आपके पास एक बढ़िया इंतज़ाम वाली तानाशाही हो सकती है. और दुनिया भर में इसके उदाहरण हैं. खासकर हमारे आस-पास. यहां का इंतज़ाम पूरी तरह से आर्थिक तरीके का है. और व्यक्ति को अपनी स्वायत्तता और आज़ादी सरेंडर करनी पड़ती है. चाहे वो चाहे या न चाहे.
दुर्भाग्य से, ऐसे लोकतंत्र का एक भी उदाहरण नहीं मिलता जो व्यवस्था गत दमन के तहत फलता-फूलता हो. लोकतंत्र के रिवॉर्ड और फल आज़ादी को आगे बढ़ा करके हासिल होते हैं, दमन से नहीं. यह माना जाता है कि आज़ाद व्यक्ति ज़्यादा उत्पादक, ज़्यादा रचनात्मक और ज़्यादा सक्षम होगा.
यह रास्ता जो इससे दूर ले जाता है, वह कामयाबी की तरफ नहीं जाता. बेशक, अगर कामयाबी को ऐसे परिभाषित किया जाए कि यह व्यक्तियों और समुदायों को व्यवस्थागत तरीके से और फालतू में अपाहिज करना हो और ऐसा करने से मिलने वाली खुशी मिलती है.
चलते चलते
कंपनी आर्ट: रंग अंग्रेजों के, कला भारतीयों की

1600 में व्यापार करने आए अंग्रेज जब 18वीं सदी के अंत तक भारत के शासक बन गए, तो उन्हें एक अजीब समस्या का सामना करना पड़ा. इस विशाल और विविधताओं से भरे देश को समझना उनके लिए किसी पहेली से कम नहीं था. यहां के फूल-पत्ती, पेड़-पौधे, जानवर, इमारतें, त्योहार, रीति-रिवाज - सब कुछ उनके लिए बिल्कुल नया था. फोटोग्राफी के जमाने से पहले इन सब चीजों को रिकॉर्ड करने का एक ही तरीका था - चित्रकारी. इसके लिए रंग, ब्रश और कागज़ यूरोप से आये और हुनर भारतीय कलाकारों का चला.
ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों ने एक दिलचस्प राह निकाली. उन्होंने उन भारतीय कलाकारों को काम पर रखा जो मुगल दरबारों के पतन के बाद बेरोजगार हो गए थे. ये कुशल चित्रकार अब नए आकाओं के लिए काम करने लगे और इस तरह जन्म हुआ 'कंपनी पेंटिंग' का - एक अनूठी कला शैली का जो भारतीय परंपरा और यूरोपीय जरूरतों का मिश्रण थी. बीबीसी के लिए सुधा तिलक ने इस पर लिखा है.
दिल्ली आर्ट गैलरी में चल रही प्रदर्शनी "ए ट्रेजरी ऑफ लाइफ" इसी कंपनी चित्रकला का भारत का सबसे बड़ा प्रदर्शन है. 200 से ज्यादा बेमिसाल चित्रों के जरिए ये प्रदर्शनी बताती है कि कैसे भारतीय कलाकारों ने अपनी मुगल मिनिएचर की बारीकी को यूरोपीय रियलिज्म और परस्पेक्टिव के साथ मिलाकर कुछ बिल्कुल नया रच दिया.
इन चित्रों के तीन मुख्य विषय थे. पहला था प्राकृतिक इतिहास - यानी वो सभी फूल, पत्ती, पेड़-पौधे और जानवर जो यूरोपीय लोगों के लिए बिल्कुल अनजाने थे. दूसरा था स्थापत्य कला, जिसमें ताजमहल, आगरा का किला, जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा, फतेहपुर सीकरी का शेख सलीम चिश्ती का मकबरा, दिल्ली की कुतुब मीनार और हुमायूं का मकबरा जैसे मुगल स्मारक शामिल थे. तीसरा विषय था भारतीय रीति-रिवाज और पेशे - नर्तकियां, जजमेंट, सिपाही, ताड़ी निकालने वाले, सपेरे और अलग-अलग जातियों के लोग अपने काम के औजारों के साथ.
सीता राम नाम के एक कलाकार की कहानी बेहद दिलचस्प है. 1814 से 1815 तक उसने गवर्नर जनरल फ्रांसिस रॉडन के साथ पूरे भारत की यात्रा की और अद्भुत चित्र बनाए. पटना के सेवक राम ने मुहर्रम के त्योहार की नमाज का जीवंत चित्र बनाया था. एक और चित्र में दक्षिण भारत के तिरुनल्लूर मंदिर का जुलूस दिखाया गया है जहां शिव की मूर्ति को सजे हुए मंच पर ले जाया जा रहा है.
दिलचस्प बात ये है कि सिर्फ अंग्रेज ही इस कला के संरक्षक नहीं थे. दक्षिण भारत में फ्रांसीसी 1727 से ही भारतीय कलाकारों से काम करवा रहे थे. पांडिचेरी के 48 चित्रों में समुद्री तूफान में नाव चलाते कुशल मछुआरे दिखाए गए हैं जो यूरोपीय व्यापार के लिए अहम थे. लुईसा पार्लबी नाम की एक अंग्रेज महिला ने बंगाल के मुर्शिदाबाद में रहते हुए स्थानीय पेड़-पौधों का एक खूबसूरत संग्रह तैयार कराया था.
आज कंपनी पेंटिंग को भारतीय आधुनिक कला की शुरुआत माना जाता है क्योंकि यही वो पहला मौका था जब दरबारी कलाकारों ने दरबार और मंदिर से बाहर निकलकर नए संरक्षकों के लिए काम किया था.
पाठकों से अपील-
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