26/07/2025: प्रवासी बिहारी मज़दूर और केंचुआ | सरकार का मन नहीं संसद में बिहार पर बात करने का | बहुत बांग्ला बोलते हो? | 7 बच्चे गये तो पढ़ने थे, लौटे नहीं | नीट फेल एमबीबीएस? | चीन के आगे लल्लोचप्पो
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
सर्वे में 68% मजदूरों को ‘एसआईआर’ के दस्तावेजों की सही जानकारी नहीं थी
संसद में गतिरोध जारी
बिना तैयारी के चालू की योजना केंचुआ ने
राबड़ी को बेटे तेजस्वी की जान का ख़तरा
“बांग्ला बोलते हो, इसलिए तुम बांग्लादेशी हो”
मनरेगा रिपोर्ट से बंगाल गायब?
स्कूल की इमारत का हिस्सा गिरा, 7 बच्चों की मौत, 28 घायल
मैंने ओबीसी की समस्याओं को नहीं समझा, यह मेरी गलती : राहुल गांधी
नीट 2024 में फेल छात्र कैसे बन गए डॉक्टर?
आईसीएआर में साइबर अटैक से संवेदनशील डेटा गायब, जांच समिति अब तक निष्क्रिय
बॉम्बे हाईकोर्ट को गाज़ा के समर्थन में कम्युनिस्टों का विरोध नागवार गुज़रा
गुजरात में शिक्षकों को मंदिर में भोजन परोसने के काम में लगाने का आदेश वापस
यूपी के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में ज़मीन पर लेटी महिला और नवजात का वीडियो वायरल
निजी अस्पतालों के लिए मरीज एटीएम की तरह : हाईकोर्ट
हिंदू समूह ने जाति भेदभाव को धार्मिक आज़ादी के नाम पर सही बताया, अमेरिका अदालत ने कहा ग़लत
उपग्रह तो 11 हैं, सिर्फ 4 खटारा नहीं..
ट्रम्प के झूठे दावों का मुंहतोड़ जवाब देने की बजाय संसद में भी सरकार चुप रही
ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट: जो रूट का शतक, इंग्लैंड ने भारत पर बनाई 75 रनों की बढ़त
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में परिसीमन की मांग खारिज
संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' हटाने का विचार नहीं
रूस को भारत से विस्फोटक सप्लाई
चीन के आगे इतनी लल्लोचप्पो क्यों?
बिहार / विशेष गहन पुनरीक्षण
सर्वे में 68% मजदूरों को ‘एसआईआर’ के दस्तावेजों की सही जानकारी नहीं थी
स्टैंडर्ड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (SWAN) ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जिन मजदूरों की सहायता की थी, उनसे बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर बात कर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें, बिहार के 338 प्रवासी मजदूरों के अनुभव और चुनौतियां साझा की गई हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रवासी श्रमिक दस्तावेजों की कमी के कारण भारी समस्याओं का सामना कर रहे थे.
रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष हैं, जैसे कि अधिकांश मजदूर पुरुष हैं, 75% मजदूरों की मासिक आय 17,000 रुपये से कम है, और 68% मजदूरों को ‘एसआईआर’ के लिए आवश्यक दस्तावेजों की सही जानकारी नहीं थी. कई मजदूरों ने ऑनलाइन फॉर्म के बारे में नहीं सुना था.
यह रिपोर्ट बताती है कि ‘एसआईआर’ प्रक्रिया लाखों मजदूरों को निर्वासित कर सकती है और इसे बिना देरी के रद्द करना आवश्यक है. नेटवर्क ने अपने डेटाबेस से 338 प्रवासी मजदूरों का सर्वेक्षण किया, इनमें 72 सर्वेक्षण के समय बिहार में मौजूद थे जबकि 261 देशभर में फैले हुए थे. पुरुष 95% थे और उनकी औसत उम्र 34 वर्ष थी. लगभग 80 प्रतिशत मजदूरों ने हिंदू और 19 प्रतिशत ने खुद को मुस्लिम बताया. 333 उत्तरदाताओं में से लगभग 53% ने कहा कि कुछ अधिकारी उनके घर बिहार में आए थे. 23% ने कहा कि कोई अधिकारी उनके घर नहीं आया जबकि 24% को पता नहीं था कि कोई अधिकारी उनके घर आया था या नहीं.
संसद में गतिरोध जारी
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ है. सरकार ने पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए समय दिया है, लेकिन SIR पर चुप्पी बनाए रखी है. विपक्ष का कहना है कि यह संवैधानिक और मानवीय अधिकारों से जुड़ा मुद्दा है, और उस पर बहस होना आवश्यक है.
'द वायर' के लिए श्रावस्ती दासगुप्ता की रिपोर्ट है कि संसद के मानसून सत्र का पहला सप्ताह गतिरोध की भेंट चढ़ गया है. कारण है बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया, जिसे लेकर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव जारी है. विपक्ष इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि अगले सप्ताह इस पर चर्चा कराई जाएगी या नहीं.
बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा की जा रही विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर विपक्ष चिंतित है. विपक्ष का कहना है कि यह अभ्यास मुस्लिम और बंगाली भाषी नागरिकों को लक्षित कर रहा है. विपक्ष ने इस मुद्दे के साथ-साथ पहलगाम आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर भी चर्चा की मांग की थी.
सरकार ने पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की अनुमति दे दी है. सोमवार और मंगलवार को लोकसभा और राज्यसभा में 16-16 घंटे की चर्चा तय की गई है, लेकिन बिहार SIR पर कोई स्पष्टता नहीं दी गई है.
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “पहले ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा होगी, फिर अन्य मुद्दों पर निर्णय लिया जाएगा. हर चर्चा एक साथ नहीं हो सकती. हमने दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं से मुलाकात की है. हमारी मंशा है कि संसद सुचारू रूप से चले.”
शुक्रवार को विपक्षी इंडिया गठबंधन ने चौथे दिन भी संसद परिसर में गांधी प्रतिमा से मकर द्वार तक मार्च निकाला. सांसदों ने ‘SIR’ लिखी कागज़ की पुर्जियां फाड़कर एक कूड़ेदान में फेंकीं. राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में राहुल गांधी ने भी इस विरोध में भाग लिया. खड़गे ने संसद परिसर में कहा, “हमने बार-बार SIR पर चर्चा की मांग की, लेकिन सरकार टालमटोल कर रही है. यह लोकतंत्र का अपमान है.”
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सभी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, उसमें भी सरकार ने SIR पर चर्चा को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया. बैठक में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के उस फैसले का हवाला दिया गया जिसमें उन्होंने निर्वाचन आयोग पर चर्चा की अनुमति नहीं दी थी. विपक्ष का तर्क था कि यह एक सामान्य चर्चा हो सकती है, जिसमें सभी अपनी बात रख सकते हैं.
तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने तो यहां तक कह दिया कि यदि इतनी बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी भारत में घुस आए हैं, तो गृह मंत्री अमित शाह को इस्तीफा दे देना चाहिए. उन्होंने कहा, “यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार हो रहा है. मुख्य चुनाव आयुक्त ऐसी भाषा बोल रहे हैं, मानो वह भाजपा के प्रवक्ता हों. अगर केंद्र सरकार मानती है कि 56 लाख लोग बिहार में घुसपैठ कर चुके हैं, तो गृह मंत्रालय क्या कर रहा था? यह गृह मंत्री का दायित्व है, उन्हें इस्तीफा देना चाहिए.” यह 56 लाख का आंकड़ा चुनाव आयोग ने दिया है.
सरकार की "तैयारी", पर कोई कार्यवाही नहीं
लोकसभा में दोपहर 2 बजे कार्यवाही शुरू हुई तो भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने सदस्यों से सदन की गरिमा बनाए रखने की अपील की. उन्होंने कहा, “जब सरकार कह रही है कि वह सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है, तो यह व्यवधान क्यों?” पाल ने कहा, “लोग आपसे पूछेंगे कि संसद में आपने क्या किया. जनता ने आपको उनकी परेशानियों को उठाने के लिए चुना है.”
इसके बाद केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी कहा, “सरकार चर्चा के लिए तैयार है.” लेकिन SIR पर कुछ नहीं कहा गया और कार्यवाही स्थगित कर दी गई.
राज्यसभा में नए सदस्यों ने शपथ ली, लेकिन बिहार SIR और बंगाली भाषी प्रवासी श्रमिकों के साथ भेदभाव जैसे मुद्दों पर चर्चा की मांग संबंधी स्थगन प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए गए. दोपहर 12 बजे प्रश्नकाल शुरू होते ही सदन मात्र चार मिनट में दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया.
बिना तैयारी के चालू की योजना केंचुआ ने
चुनाव आयोग ने गहन पुनरीक्षण के विरोध के जवाब में कई अन्य आंकड़े भी पेश किए हैं, जैसे- कितने लोगों के पास बिहार में पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र या जाति प्रमाणपत्र है. ये वे दस्तावेज़ हैं जिनसे नागरिक संशोधित वोटर लिस्ट में शामिल होने के पात्र बनते हैं. लेकिन “स्क्रॉल” में आयुष तिवारी ने बताया है कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में आयोग ने माना है कि उसने ये आंकड़े बिहार सरकार से पुनरीक्षण अभियान घोषित करने के बाद ही लिए थे, जिससे लगता है कि उसने यह कवायद इन आंकड़ों के बिना ही शुरू कर दी थी. आयोग के हलफनामे में कुछ और भी रोचक बातें हैं, जैसे बिहार में 2011 से 2025 के बीच जारी किए गए निवास प्रमाणपत्रों की गणना राज्य की अनुमानित जनसंख्या से भी अधिक है; यह स्वीकारोक्ति कि ‘एसआईआर’ के लिए वह संशोधित प्रक्रिया अपना रहा है; और इस अभ्यास का एक नया औचित्य भी पहली बार बताया गया, जिसे 24 जून को दिए कारण में नहीं जोड़ा गया था.
सुप्रीम कोर्ट के बाहर भी चुनाव आयोग ‘एसआईआर’ की आलोचना का जवाब देता रहा है, जैसे कि पत्रकारों के साथ वॉट्सऐप मैसेज के ज़रिए. एक संदेश में आयोग ने सवाल किया कि क्या उसे डर और भ्रामक प्रचार के आगे झुक जाना चाहिए और “मृत मतदाताओं, प्रवासी मतदाताओं या दो जगह दर्ज मतदाताओं के नाम पर फर्जी वोट डालने देना चाहिए” या फिर “फर्जी या विदेशी मतदाताओं” को सूचीबद्ध करना चाहिए? आयोग ने पूछा, क्या प्रामाणिक सूची तैयार करना एक मजबूत लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की नींव नहीं है? आयोग ने इसी तरह कर्नाटक की एक सीट में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा लगाए गए धोखाधड़ी के आरोपों को भी चुनौती दी है.
राबड़ी को बेटे तेजस्वी की जान का ख़तरा
बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि सत्ताधारी जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने विधानसभा चुनावों से पहले उनके बेटे तेजस्वी यादव की हत्या की "साजिश" रच रखी है. “पीटीआई” वीडियो से बात करते हुए, विधान परिषद में विपक्ष की नेता ने यह भी दावा किया कि युवा नेता की जान लेने की पहले भी, "कम-से-कम दो, तीन या चार बार" कोशिश की जा चुकी है. जब राबड़ी देवी से हाल ही में हुई विधानसभा की घटना को लेकर सवाल किया गया, जहां सत्ता पक्ष के कुछ सदस्य विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की ओर लपके थे, तो उन्होंने कहा, "तेजस्वी की हत्या की साजिश रची जा रही है. बिहार में इतनी सारी हत्याएं हो रही हैं, तो एक और सही. जेडीयू-बीजेपी वाले ही इस साजिश में शामिल हैं. चाहते हैं कि उसे रास्ते से हटा दें, ताकि चुनाव में वह उन्हें चुनौती न दे सके."
धरपकड़
“बांग्ला बोलते हो, इसलिए तुम बांग्लादेशी हो”
दिल्ली की बवाना की झुग्गी बस्ती जे.जे. कॉलोनी के निवासी 54 वर्षीय साजन कहते हैं, “जब मंदिर जाओ तो प्रसाद चढ़ाना ही पड़ता है.” मगर यह धार्मिक बात नहीं है - उनके लिए ‘प्रसाद चढ़ाना’ मतलब पुलिस से पिटाई और अपमान झेलना है. पिछले कुछ महीनों में दिल्ली और आसपास के शहरी इलाकों में झुग्गियों में रहने वाले लोगों के खिलाफ तेज़ी से निष्कासन की कार्रवाइयां हो रही हैं. ‘अवैध प्रवासी’ बताकर बंगाली बोलने वाले मुसलमानों को चिन्हित कर ‘होल्डिंग सेंटरों’ में भेजा जा रहा है, जिससे यह कार्रवाई भयावह रूप ले चुकी है. ये वे लोग हैं जो शहर की बुनियादी ढांचे की रीढ़ हैं, लेकिन अब अचानक उनकी नागरिकता ही शक के घेरे में है.
“बंगाली बोलते हो, मतलब बांग्लादेशी हो” : बवाना की जे.जे. कॉलोनी में कई कम आमदनी वाले मुस्लिम परिवार, जो खुद को पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड से दिल्ली काम की तलाश में आया बताते हैं, कहते हैं कि पुलिस केवल उनकी भाषा के आधार पर उन्हें बांग्लादेशी समझती है, भले ही उनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी, पैन कार्ड, ज़मीन के काग़ज़ और पासपोर्ट तक मौजूद हैं. 28 वर्षीय शबनम, जो ई-ब्लॉक में अपने परिवार के साथ रहती हैं, बताती हैं कि वे झारखंड के गोड्डा ज़िले के हरिपुर गांव से हैं और पिछले 15 सालों से दिल्ली में बसी हुई हैं. उनके पिता दिहाड़ी मज़दूर हैं और रिक्शा चलाते हैं, मां घरेलू काम करती हैं, और बच्चे दिल्ली में पढ़े-लिखे हैं. 5 जुलाई की सुबह दिल्ली पुलिस उनके घर 'वेरिफिकेशन' के लिए आई और पिता को थाने बुलाया. बोला गया कि "बस साइन कर दीजिए और चले आइए", लेकिन वहां पहुंचने पर पुलिस ने पैसे की मांग की. जब परिवार ने देने से इनकार किया, तो पुलिस ने व्यवहार बदल लिया और धमकाना शुरू कर दिया.
“काग़ज़ दिखाए, फिर भी बोले – तुम बांग्लादेशी हो” : शबनम बताती हैं, “हमने सभी कागज़ दिखाए. आधार, वोटर कार्ड, राशन कार्ड, ज़मीन के कागज़. लेकिन पुलिस का बस एक जवाब था: ‘तुम बंगाली बोलते हो, तुम बांग्लादेशी हो.’ यह हमारे लिए सबसे बड़ा अपमान था.” पुलिस ने उनकी मां की तस्वीर खींचकर सभी थानों में भेज दी है. अब कोई भी पुलिस वाला घर आकर मां को बाहर बुलाता है, रात में टॉर्च चेहरे पर मारता है और गाली-गलौज करता है. वे अब डर के साये में जी रहे हैं, नींद नहीं आती. पुलिस ने उन्हें लगातार तीन दिन (5 से 8 जुलाई) तक थाने बुलाकर पूछताछ की और मानसिक उत्पीड़न किया.
80 वर्षीय मोहम्मद ज़फ़र ने अपने झारखंड के ज़मीन के दस्तावेज़ दिखाए तो पुलिस ने उन्हें नकली बता दिया. साजन बताते हैं कि पहले भी उन्हें पुलिस ने उठाया था और इतनी बुरी तरह पीटा था कि कान का पर्दा फट गया.
कई लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस उनके मूल दस्तावेज़ जैसे आधार और वोटर कार्ड ज़ब्त कर चुकी है और अब तक वापस नहीं किए हैं. उन्हें कभी भी थाने बुला लिया जाता है और 2-3 दिन तक बिना वजह रोका जाता है.
सीपीआई (एम) नेता वृंदा करात ने 11 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा कि बांग्ला बोलने वाले नागरिकों को अवैध प्रवासी बताकर निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने द वायर से कहा: “हमने बवाना की कई कॉलोनियों में जाकर खुद देखा. लोगों के पास सारे दस्तावेज़ हैं. फिर भी पुलिस उन्हें पकड़कर कहती है, ‘तुम्हें बांग्लादेश भेज देंगे.’ यह एक सुनियोजित राष्ट्रीय अभियान है जो गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में चलाया जा रहा है. दिल्ली पुलिस सीधे गृह मंत्रालय के अधीन है और पुलिसकर्मी समझते हैं कि ऊपर से आदेश है - जितना ज़्यादा करेंगे, उतने ‘स्टार’ मिलेंगी. यही सच्चाई है.”
पत्रकार अजीत अंजुम नें भी इस पर रिपोर्ट की है.
9147727666 बंगाल से बाहर काम करने गए श्रमिकों के लिए राज्य पुलिस की हेल्पलाइन शुरू
लगातार दिल्ली से लेकर असम तक बंगाल से अन्य राज्यों में काम करने गए कई लोग विभिन्न समस्याओं और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं. जिन परिवारों के सदस्य इन परिस्थितियों के शिकार हो रहे हैं, उन्हें अक्सर यह पता नहीं होता कि इस स्थिति में किससे और कैसे संपर्क किया जाए. इसलिए पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण पहल की गई है. यदि कोई व्यक्ति जो बंगाल से बाहर काम करने गया है, किसी भी प्रकार की मुसीबत में फंसता है, तो उसका परिवार या स्थानीय व्यक्ति तुरंत स्थानीय थाना को इसकी सूचना दें. इसके अलावा, जिले के कंट्रोल रूम में भी यह जानकारी दी जा सकती है. सुविधा को और बेहतर बनाने के लिए राज्य पुलिस ने एक विशेष हेल्पलाइन नंबर – 9147727666 शुरू किया है. यह नंबर केवल व्हाट्सएप के लिए है. इस नंबर पर मैसेज करके आवश्यक जानकारी भेजी जा सकती है— जैसे पीड़ित व्यक्ति का नाम, पता, किस राज्य या शहर में काम कर रहा है, किस तरह की समस्या हो रही है, और संपर्क विवरण. राज्य पुलिस की टीम हर सूचना को सत्यापित करेगी और संबंधित राज्य की पुलिस या प्रशासन से संपर्क कर ज़रूरी कार्रवाई करेगी.
मनरेगा रिपोर्ट से बंगाल गायब?
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शुक्रवार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत राज्य-वार लंबित देनदारियों का विवरण देने वाले राज्यसभा के जवाब से पश्चिम बंगाल को बाहर करने के केंद्र के फैसले पर सवाल उठाया. एक्स पर इस चूक को "असाधारण, अभूतपूर्व और अस्वीकार्य" बताते हुए, रमेश ने ग्रामीण रोजगार योजना के तहत लंबित धन के संबंध में तृणमूल कांग्रेस सांसद डेरेक ओ'ब्रायन द्वारा उच्च सदन में उठाए गए एक तारांकित प्रश्न की ओर इशारा किया. ओ'ब्रायन ने यह जानना चाहा था कि क्या वित्तीय वर्ष 2023-24 और 2024-25 के बीच मनरेगा के तहत पंजीकृत परिवारों की संख्या में 8.6% की वृद्धि हुई, जबकि प्रति परिवार औसत रोजगार दिवस में 7.1% की गिरावट आई और प्रति व्यक्ति औसत कार्य दिवस में 43% की कमी आई.
स्कूल की इमारत का हिस्सा गिरा, 7 बच्चों की मौत, 28 घायल
राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में शुक्रवार सुबह एक सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय की इमारत का हिस्सा गिरने से कम से कम 7 नाबालिग छात्रों की मौत हो गई और 28 अन्य घायल हो गए. यह हादसा उस वक्त हुआ, जब बच्चे सुबह की प्रार्थना के लिए इकट्ठा हो रहे थे. घटनास्थल पर अफरातफरी का माहौल बन गया, जहां माता-पिता, ग्रामीण और शिक्षक मलबे के नीचे दबे बच्चों को बाहर निकालने के लिए जूझते रहे. कई घायलों को सरकारी सहायता पहुंचने से पहले ही निजी वाहनों से अस्पताल ले जाया गया. जिला अस्पताल में नौ छात्र आईसीयू में भर्ती हुए. अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी हंसराज मीना ने बताया कि मूल इमारत 1994 में पंचायत राज विभाग द्वारा बनाई गई थी और उसमें मरम्मत नहीं कराई गई थी. घटना के बाद नाराज़ ग्रामीणों ने मनोहर्थाना-अकेलरा सड़क को जाम कर मुआवजे और मुख्यमंत्री के आने की मांग की. ग्रामीणों का आरोप है कि स्कूल की जर्जर स्थिति को लेकर दी गई चेतावनियों को अधिकारियों ने नज़रअंदाज कर दिया था.
मैंने ओबीसी की समस्याओं को नहीं समझा, यह मेरी गलती : राहुल गांधी
राहुल गांधी ने शुक्रवार को दिल्ली में कांग्रेस के 'भागीदारी न्याय सम्मेलन' में अपनी राजनीतिक यात्रा पर चिंतन करते हुए माना कि उन्होंने पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की समस्याओं को गहराई से समझने में असफलता के कारण उनकी रक्षा नहीं की, जो उनकी "गलती" थी. उन्होंने कहा, "मैं 2004 से राजनीति में हूं, पीछे देखते हुए मुझे लगता है कि मैंने एक गलती की. मैंने ओबीसी की उतनी रक्षा नहीं की जितनी करनी चाहिए थी, इसका कारण यह था कि मैं उस समय आपकी समस्याओं को अच्छी तरह से समझ नहीं पाया था." उन्होंने बताया कि यदि उन्हें ओबीसी के इतिहास और मुद्दों की थोड़ी भी बेहतर समझ होती, तो वे उसी समय जातिगत जनगणना करवा लेते. यह गलती कांग्रेस पार्टी की नहीं, बल्कि उनकी व्यक्तिगत गलती है, जिसे वे सुधारेंगे.
इसके अलावा, उन्होंने मोदी सरकार पर बहुजनों (एससी, एसटी, ओबीसी) को उच्च शिक्षा में जानबूझ कर हाशिए पर डालने का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित फैकल्टी पदों की बड़ी संख्या खाली रखी गई है, जिससे बहुजनों को शिक्षा, शोध और नीति निर्माण से बाहर रखा जा रहा है.
नीट 2024 में फेल छात्र कैसे बन गए डॉक्टर?
भारत में नीट (NEET) मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया को लेकर बड़ा खुलासा सामने आया है. मशहूर शिक्षा पोर्टल 'करियर्स 360' के संस्थापक महेश्वर पेरि के मुताबिक कम से कम 16 ऐसे छात्र एमबीबीएस (एमबीबीएस) सीट हासिल कर चुके हैं, जो नीट यूजी 2024 परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुए थे. इनमें से कुछ छात्रों को तो सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी प्रवेश मिल गया है.
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के अनुसार, भारत में किसी भी एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश के लिए नीट पास करना अनिवार्य है. नीट 2024 में करीब 13.15 लाख छात्र पास हुए थे, जबकि सिर्फ 1,09,145 एमबीबीएस सीटें उपलब्ध थीं, यानि 1 सीट के लिए लगभग 12 छात्र. इसके बावजूद, GMCH बलांगीर (ओडिशा) में एक सामान्य वर्ग का छात्र मात्र 55 अंक (720 में से) पाकर MBBS सीट हासिल करने में सफल हो गया, जो नीट कट-ऑफ (162 अंक) से काफी नीचे है. यह छात्र 26 अक्टूबर 2024 को दाखिल हुआ और उसने ₹41,450 फीस जमा की. रिपोर्ट के मुताबिक, 8 छात्र ऐसे हैं जिनकी NEET रैंक 20 लाख से ऊपर थी. एक छात्र की रैंक 22.26 लाख थी, जबकि पूरे भारत में 23 लाख अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी थी. फिर भी उसे MBBS सीट मिल गई.
महेश्वर पेरि का कहना है कि यह मामला पारदर्शिता और योग्यता की पूरी तरह अनदेखी का प्रतीक है. इस घोटाले से यह भी साफ होता है कि मेडिकल शिक्षा में न्यूनतम मानकों को ताक पर रखकर कुछ छात्रों को गलत तरीके से दाखिला दिया गया है.
आईसीएआर में साइबर अटैक से संवेदनशील डेटा गायब, जांच समिति अब तक निष्क्रिय
इस साल अप्रैल में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पर एक गंभीर साइबर हमला हुआ, जिसके चलते संस्था का महत्वपूर्ण डेटा गायब हो गया. 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हमले में न केवल ICAR की मुख्य वेबसाइट, बल्कि दिल्ली स्थित उसका प्राइमरी सर्वर और हैदराबाद का रिप्लिकेशन सर्वर भी प्रभावित हुआ. इस डेटा में भर्ती प्रक्रिया, वित्तीय लेनदेन, वैज्ञानिक शोध और प्रशासनिक रिकॉर्ड से जुड़ी अहम जानकारियाँ शामिल थीं. घटना के तुरंत बाद छह सदस्यों वाली एक जांच समिति का गठन किया गया ताकि हमले की जांच कर रोकथाम के उपाय सुझाए जा सकें, लेकिन विडंबना यह है कि जुलाई 31 तक रिपोर्ट सौंपने की समय-सीमा के बावजूद, अब तक इस समिति की एक भी बैठक नहीं हुई है.
बॉम्बे हाईकोर्ट को गाज़ा के समर्थन में कम्युनिस्टों का विरोध नागवार गुज़रा
‘बार एंड बेंच’ की रिपोर्ट है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को गाज़ा में हो रही हिंसा के खिलाफ मुंबई के आज़ाद मैदान में प्रदर्शन की अनुमति मांगने वाली याचिका को खारिज करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीआई(एम) को फटकार लगाई है. अदालत ने कहा कि पार्टी "देशभक्ति से परे" जाकर विदेशी मुद्दों पर ध्यान दे रही है, जबकि देश में खुद के निपटाने के लिए कई समस्याएं मौजूद हैं.
न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और गौतम अंखाड की पीठ ने टिप्पणी की - “हमारे देश में पहले से ही काफी समस्याएं हैं. हमें इस तरह की चीजें नहीं चाहिए. माफ कीजिए, लेकिन आप सब दूरदर्शी नहीं हैं. आप गाज़ा और फिलिस्तीन के मुद्दों को देख रहे हैं, पहले अपने देश को देखिए. देशभक्त बनिए. यह देशभक्ति नहीं है…” कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत सरकार की विदेश नीति के रुख से सीपीआई(एम) का स्टैंड मेल नहीं खाता और इसके चलते ऐसा विरोध और भी अनुचित हो जाता है. कोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज की कि सीपीआई(एम) मूल रूप से प्रदर्शन की अनुमति के लिए पुलिस से आवेदनकर्ता नहीं थी. लेकिन सवाल यह उठता है कि जब भारत में लोग बांग्लादेश या दूसरे देशों के मामलों में सड़कों पर उतरते हैं, तब ऐसी 'देशभक्ति की सीख' किसी अदालत द्वारा नहीं दी जाती. गाज़ा के मामले में अदालत की यह टिप्पणी दोहरी मानदंड (double standards) को उजागर करती है कि कौन-से विदेशी मुद्दे "स्वीकार्य" हैं और कौन-से नहीं, यह सत्ता की मर्ज़ी से तय होता है.
गुजरात में शिक्षकों को मंदिर में भोजन परोसने के काम में लगाने का आदेश वापस
गुजरात सरकार ने राजकोट के जसदन तालुका में 48 स्कूली शिक्षकों को उनकी कक्षा से हटाकर मंदिर मेले में वीवीआईपी व्यक्तियों को भोजन परोसने का आदेश दिया था. दिलीप सिंह क्षत्रिय के अनुसार, राज्य में पहले से ही 12,500 शिक्षकों और 700 प्रिंसिपलों की भारी कमी के बावजूद ये आदेश जारी किया गया था, जिसमें शिक्षकों को श्रावण मास के दौरान घेला सोमनाथ मंदिर में भोजन की व्यवस्था संभालनी थी. लेकिन, इस आदेश का विरोध और राजनीतिक आलोचना के बाद इसे तत्काल वापस ले लिया गया. शिक्षा मंत्री कुबेर डिंडोर ने इसे “गलती” बताया और स्पष्ट किया कि शिक्षक खाने-पीने की व्यवस्था के लिए जबरदस्ती नहीं लगाए जा सकते, वे स्वेच्छा से सेवा दे सकते हैं.
यूपी के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में ज़मीन पर लेटी महिला और नवजात का वीडियो वायरल
उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के एक सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) का एक चिंताजनक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. पत्रकार पीयूष राय ने इस वीडियो को 'X' (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया है, जिसमें एक महिला और उसका नवजात शिशु अस्पताल में ज़मीन पर लेटे हुए दिखाई दे रहे हैं. वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि महिला प्रसव के तुरंत बाद अपने शिशु के साथ फर्श पर पड़ी है, जबकि अस्पताल के आसपास चिकित्सा कर्मी मौजूद हैं. इस दृश्य ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और संसाधनों की कमी को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. पियूष राय द्वारा साझा की गई पोस्ट में कहा गया है कि यह दृश्य सीतापुर के एक सरकारी-प्रशासित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है. वीडियो सामने आने के बाद राज्य स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर आलोचना शुरू हो गई है. अब तक प्रशासन की ओर से इस मामले में कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन सोशल मीडिया पर लोग इस घटना को "सरकारी लापरवाही" का एक और उदाहरण बता रहे हैं.
निजी अस्पतालों के लिए मरीज एटीएम की तरह : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि निजी अस्पताल के लिए मरीज सिर्फ एटीएम की तरह होते हैं, यह टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने एक डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई के केस को रद्द करने से इनकार कर दिया. दरअसल, एक नर्सिंग होम के मालिक डॉ. अशोक कुमार ने एक गर्भवती महिला को सर्जरी के लिए भर्ती किया था, बावजूद इसके कि उनके नर्सिंग होम में एनेस्थेटिस्ट उपलब्ध नहीं था. बाद में एनेस्थेटिस्ट आया, मगर तब तक भ्रूण मृत हो चुका था. “बार एंड बेंच” के अनुसार, जस्टिस प्रशांत कुमार ने कहा कि यह सामान्य प्रथा बन गई है कि निजी अस्पताल मरीजों को भर्ती कर लेते हैं और बाद में डॉक्टर को बुलाते हैं, जिससे मरीजों का शोषण सिर्फ पैसे निकालने के लिए किया जाता है.
हिंदू समूह ने जाति भेदभाव को धार्मिक आज़ादी के नाम पर सही बताया, अमेरिका अदालत ने कहा ग़लत
'स्क्रोल' की रिपोर्ट है कि अमेरिका की एक संघीय अदालत ने कैलिफ़ोर्निया राज्य में जातिगत भेदभाव के मामलों को चुनौती देने वाली हिंदू संगठन की याचिका को खारिज कर दिया है. हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) ने दलील दी थी कि जाति आधारित मुकदमे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं. हालांकि, जज डेल ड्रोज़ड ने कहा कि HAF खुद ही कहता है कि जातिगत भेदभाव हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है, ऐसे में वे यह कैसे कह सकते हैं कि कानून उनके धर्म में हस्तक्षेप कर रहा है?
जज ने पूछा, "जब आप खुद कहते हैं कि जाति भेदभाव आपका धार्मिक विश्वास नहीं है, तो ऐसे कानून से आपको कैसे चोट पहुंच सकती है, जो उसी भेदभाव पर रोक लगाता है?" यह मामला कैलिफ़ोर्निया सरकार द्वारा 2020 में दायर उस मुकदमे से जुड़ा है जिसमें टेक कंपनी सिस्को पर एक दलित इंजीनियर के साथ कार्यस्थल पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया गया था.
जाति विरोधी कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को ऐतिहासिक जीत बताया है, जबकि HAF का कहना है कि इससे हिंदू और दक्षिण एशियाई समुदायों को अमेरिका में गलत तरीके से संदेह की निगाह से देखा जाएगा. अदालत ने यह भी कहा कि HAF अमेरिका भर के हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि उसके पास केवल 815 दानदाता और 5000 सब्सक्राइबर हैं.
यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब अमेरिका में जाति को कानूनी रूप से भेदभाव के खिलाफ एक संरक्षित श्रेणी बनाने की मांग तेज़ हो रही है. सिएटल पहला अमेरिकी शहर बन चुका है जिसने जाति भेदभाव पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाया है और हार्वर्ड व ब्राउन जैसे विश्वविद्यालयों ने भी अपने नीतियों में इसे शामिल किया है.
हालांकि, 2023 में कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर ने एक विधेयक को वीटो कर दिया था जो राज्य में जातिगत भेदभाव को कानूनी रूप से प्रतिबंधित करता.
उपग्रह तो 11 हैं, सिर्फ 4 खटारा नहीं..
भारत की नौवहन प्रणाली के 11 उपग्रहों में से केवल चार ही काम कर रहे हैं. भारत का घरेलू सेटेलाइट नेविगेशन सिस्टम, NAVIC (Navigation with Indian Constellation), अस्थिर स्थिति में है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 11 उपग्रहों में से केवल चार सक्रिय हैं, जिनमें से दो अपने निर्धारित जीवनकाल के अंत की ओर हैं और एक आंशिक रूप से खराब हो चुका है. NAVIC को इसरो द्वारा सैन्य और नागरिक उपयोग के लिए भारत के जीपीएस, ग्लोनास, बाइडू और गैलिलियो के समान बनाया गया था. लेकिन इसके उपग्रहों की खराब हालत भारत की रणनीतिक क्षमताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय है. उपग्रहों की विफलता के चलते तत्काल नए उपग्रहों की जरूरत बढ़ गई है.
‘जंग मैंने रुकवाई’
ट्रम्प के झूठे दावों का मुंहतोड़ जवाब देने की बजाय संसद में भी सरकार चुप रही
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को संसद में इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हस्तक्षेप के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम (सीजफायर) हुआ था? उल्लेखनीय है कि ट्रम्प 25 बार दावा कर चुके हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम उन्होंने कराया था.
दरअसल, विदेश मंत्रालय से पूछा गया था कि क्या यह तथ्य है कि "भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम अमेरिकी हस्तक्षेप के दबाव में संपन्न हुआ था, जबकि भारतीय सशस्त्र बल पाकिस्तान पर बढ़त बनाए हुए थे." लोकसभा में पूछे गए प्रश्न के लिखित उत्तर में विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने कहा, “हमारे सभी वार्ताकारों को समान संदेश दिया गया कि भारत का दृष्टिकोण लक्ष्य केंद्रित, नपा-तुला था और संघर्ष को बढ़ाने वाला नहीं था.”
उन्होंने जवाब में बताया कि 10 मई को दोनों देशों के सैन्य अभियानों के महानिदेशकों (डीजीएमओ) के "सीधे संपर्क" के परिणामस्वरूप गोलाबारी और सैन्य गतिविधियों को रोकने पर सहमति व्यक्त की गई थी, और इसकी पहल पाकिस्तान ने की थी.
ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट: जो रूट का शतक, इंग्लैंड ने भारत पर बनाई 75 रनों की बढ़त
मैनचेस्टर में खेले जा रहे चौथे टेस्ट के तीसरे दिन चाय तक इंग्लैंड ने 4 विकेट पर 433 रन बना लिए हैं और अब उसे पहली पारी में 75 रनों की बढ़त मिल चुकी है. जो रूट ने शानदार बल्लेबाज़ी करते हुए न सिर्फ अपना 38वां टेस्ट शतक लगाया, बल्कि रिकी पोंटिंग को पीछे छोड़कर टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ों की सूची में दूसरे नंबर पर पहुंच गए. अब उनसे आगे सिर्फ सचिन तेंदुलकर हैं. रूट 121 रन बनाकर क्रीज़ पर हैं जबकि कप्तान बेन स्टोक्स 36 रन पर उनका साथ दे रहे हैं. इससे पहले, रूट और ओली पोप (70) ने लंच तक 135 रनों की अहम साझेदारी की. भारतीय गेंदबाज़ों ने हालांकि कसी हुई गेंदबाज़ी की, लेकिन उन्हें ज़रूरी सफलताएं नहीं मिल सकीं.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में परिसीमन की मांग खारिज
“लाइव लॉ” के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में परिसीमन प्रक्रिया कराने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने यह तर्क अस्वीकार कर दिया कि पिछले वर्ष केवल जम्मू-कश्मीर में ही यह प्रक्रिया कराना और दक्षिणी राज्यों में न करना "मनमाना या संविधान का उल्लंघन" है. गुरुवार को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में परिसीमन प्रक्रिया की अनुमति दी जाती है, तो "सभी राज्य समानता की मांग लेकर आ जाएंगे." बेंच ने यह भी कहा कि राज्यों में परिसीमन से जुड़े प्रावधान केंद्र शासित प्रदेशों से अलग हैं. केंद्र शासित प्रदेश संसद द्वारा बनाए गए कानूनों द्वारा शासित होते हैं.
संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' हटाने का विचार नहीं
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' के समावेश को "नासूर" और "सनातन की आत्मा की विकृति" बताने के कुछ सप्ताह बाद, केंद्र सरकार ने शुक्रवार को स्पष्ट किया है कि वर्तमान में उसके पास इन शब्दों पर पुनर्विचार या उन्हें हटाने की कोई योजना या इच्छा नहीं है. राज्यसभा को बताया गया कि सरकार ने प्रस्तावना से इन दो शब्दों को हटाने के लिए कोई आधिकारिक कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लिखित उत्तर में कहा कि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक वर्गों में चर्चा हो सकती है, लेकिन सरकार ने इस बारे में कोई औपचारिक निर्णय या प्रस्ताव नहीं दिया है.
उपराष्ट्रपति का चुनाव मानसून सत्र के बाद : जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद, अगले उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के मौजूदा मानसून सत्र के बाद ही होगा. ऐसा “प्रक्रिया में शामिल” कारणों से है. संविधान के अनुसार चुनाव कराने के लिए कोई अनिवार्य समयसीमा निर्धारित नहीं है, केवल यह तय है कि इसे “जितनी जल्दी हो सके” किया जाना चाहिए. हालांकि चुनाव आयोग ने निर्वाचन प्रक्रिया शुरू कर दी है.
रूस को भारत से विस्फोटक सप्लाई
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक भारतीय कंपनी ने पिछले दिसंबर में रूस को 1.4 मिलियन डॉलर मूल्य के सैन्य विस्फोटक वितरित किए, और इस दौरान अमेरिकी प्रतिबंधों की चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया. नई दिल्ली ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ रुख बनाए रखा है, और मॉस्को के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देते हुए शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया है. यूक्रेनी सुरक्षा सेवा के एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि विस्फोटक पदार्थ ऑक्टोजन, जिसे एचएमएक्स के नाम से भी जाना जाता है, प्राप्त करने वाली रूसी कंपनियों में प्रोमसिंतेज़ भी शामिल है, जो एक विस्फोटक उत्पादक है और रूसी सेना से संबंध रखता है. पेंटागन के रक्षा तकनीकी सूचना केंद्र और संबंधित रक्षा अनुसंधान कार्यक्रमों के अनुसार, ऑक्टोजन का उपयोग आमतौर पर मिसाइल और टॉरपीडो वॉरहेड, रॉकेट इंजन, विस्फोटक गोले और उन्नत सैन्य प्रणालियों के लिए प्लास्टिक विस्फोटक में किया जाता है.
एलेसेंड्रो का नायरा से इस्तीफा
रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि भारत की दूसरी सबसे बड़ी रिफाइनर नायरा एनर्जी के सीईओ एलेसेंड्रो डेस डोरिडेस ने इस्तीफा दे दिया है. यह कंपनी आंशिक रूप से रूसी तेल प्रमुख रॉसनेफ्ट के स्वामित्व में है, और यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस के खिलाफ अपने प्रतिबंध पैकेज के हिस्से के रूप में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. बुधवार को हुई एक बोर्ड बैठक के बाद, मुंबई स्थित नायरा ने कंपनी के अनुभवी सर्गेई डेनिसोव को डोरिडेस की जगह मुख्य कार्यकारी के रूप में नियुक्त किया है.
विश्लेषण
चीन के आगे इतनी लल्लोचप्पो क्यों?
'द टेलिग्राफ' में सुशांत सिंह ने भारत-चीन के द्धिपक्षीय संबंधों की उत्साहजनक खबरों के बीच भारत की वास्तविक स्थितियों का आंकलन किया है. उन्होंने लिखा है कि साल 1962 में हार के बावजूद नेहरू ने चीन की किसी मांग को नहीं स्वीकारा, लेकिन मोदी के 12वें वर्ष में भारत आंतरिक रूप से कमज़ोर, बाहरी समर्थन से वंचित, और बीजिंग की शर्तों पर संबंध सामान्य बनाने को मजबूर है. साफ-साफ कहें तो मोदी का प्रधानमंत्री काल भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति को सिकोड़ चुका है. भारत अब न तो शर्तें तय करता है, न ही दबाव झेलने की ताक़त रखता है. सीमाएं समझौते में चली गईं, कूटनीतिक प्रभाव खत्म हो गया और भारत एक अधीन, मजबूर राष्ट्र की तरह चीन की श्रेष्ठता को मौन स्वीकृति देता दिखता है.
उन्होंने लिखा है कि जब सरकार चीन के प्रति सीमा पर सख़्ती का घरेलू आख्यान गढ़ने में मशगूल है, ज़मीनी सच्चाई इससे ठीक उलट है. भारत-चीन सीमा न तो सामान्य है और न ही विवादमुक्त. 'चीन और भारत' को मिलाकर 'चिंडिया' (Chindia) शब्द 2004 के आसपास पश्चिमी मीडिया में दिखने लगा था, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे. कुछ ही वर्षों में यह एशिया में साझी प्रगति का प्रतीक बन गया. दो प्राचीन सभ्यताओं के साथ उभरने की उम्मीदें जताई जाने लगीं, लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और उनकी बहुचर्चित 'मसल डिप्लोमेसी' की शुरूआत के बाद ये तस्वीर उलट गई.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद तो स्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं. आज भारत चीन का प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि इस्लामाबाद के साथ एक कमज़ोर और असहज पड़ोसी की तरह देखा जाने लगा है. भारत-चीन की साझेदारी की बात अब असंतुलन और अधीनता की चर्चा में बदल गई है. चीन अब अमेरिका का समकक्ष बन चुका है.
हाल के महीनों में भारत सरकार ने एक के बाद एक मंत्री और अधिकारी बीजिंग भेजे हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और राजदूत विक्रम मिस्री. यह दौरे अगस्त-सितंबर में मोदी की संभावित चीन यात्रा की भूमिका बताकर पेश किए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि अक्टूबर 2023 में लद्दाख सीमा विवाद पर जो 'समझ' बनी थी, उसी पर आगे बढ़ा जा रहा है, लेकिन इन यात्राओं का कूटनीतिक भाव ऐसा है जो आत्मविश्वास से नहीं, बल्कि घबराहट और दबाव से उपजा प्रतीत होता है.
सरकार एक ओर जनता के बीच चीन के खिलाफ सख़्ती का ढोल पीटती है, लेकिन ज़मीनी हालात बताते हैं कि भारत अब घटनाओं को नियंत्रित करने की स्थिति में नहीं है. एस. जयशंकर का 2020 वाला यह सिद्धांत कि जब तक सीमा सामान्य नहीं, संबंध सामान्य नहीं हो सकते, अब खोखला लगता है. सीमा की स्थिति आज भी गलवान से पहले की स्थिति तक नहीं लौट पाई है. लद्दाख में कई बफर ज़ोन भारतीय गश्त से बाहर हैं. पूर्वी लद्दाख में सेना की तैनाती जारी है, जबकि थलसेना खुद सैनिकों की भारी कमी से जूझ रही है.
अरुणाचल प्रदेश में भी चीन के गश्ती दलों के आने की खबरें मिलती रही हैं, जिनका सरकार ने खंडन भी नहीं किया. जब जनवरी में सेना प्रमुख से इस पर पूछा गया, तो उन्होंने इसे स्थानीय कमांडरों पर छोड़ा, मानो भारत की सीमाओं की रक्षा कोई स्थानीय मुद्दा हो, राष्ट्रीय नेतृत्व का नहीं.
चीन की ज़मीनी बढ़त मोदी सरकार की आक्रामक टीवी बयानबाज़ी को बौना बना देती है. अब तो भारतीय अधिकारियों का बीजिंग दौड़ना यह दिखाता है कि भारत किसी भी शर्त पर संबंधों में 'सामान्यता' चाहता है, भले ही वह चीन की शर्तों पर हो.
अर्थव्यवस्था और तकनीक में भी चीन की पकड़ : सीमा विवाद केवल एक आयाम है. व्यापार और तकनीक में भारत की रणनीतिक निर्भरता चीन पर बहुत गहरी हो चुकी है, जो मोदी सरकार के 'आत्मनिर्भर भारत' के नारे को मज़ाक बना देती है. चीन ने इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में जरूरी रेयर अर्थ मटीरियल्स की आपूर्ति रोक दी है. बुलेट ट्रेन के लिए टनल-बोरिंग मशीनें, खाद्य उर्वरक जैसे DAP और यहां तक कि एप्पल जैसी कंपनियों की उत्पादन श्रृंखला में काम करने वाले विशेषज्ञ, सब कहीं न कहीं चीन पर निर्भर हैं.
भारत की चीनी निवेशों को रोकने और आयात को सीमित करने की कोशिशें विफल रही हैं - बल्कि इससे भारत की कमज़ोर मोल-भाव की स्थिति और उजागर हुई है.
दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती पैठ : दक्षिण एशिया में भी भारत की पकड़ ढीली पड़ चुकी है. अफगानिस्तान-पाकिस्तान और पाकिस्तान-बांग्लादेश के साथ चीन की त्रिपक्षीय पहलें दिखाती हैं कि बीजिंग अब भारत के प्रभाव क्षेत्र में भी अपने पैर पसार रहा है.
मोदी सरकार ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए सार्क (SAARC) को अप्रासंगिक बना दिया, लेकिन बिम्सटेक (BIMSTEC) भी बांग्लादेश में हाल की घटनाओं के बाद अप्रभावी हो चला है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली सितंबर में भारत आएंगे, लेकिन वह पहले बीजिंग जा चुके हैं. ऐसा पहली बार हुआ कि कोई नेपाली प्रधानमंत्री पहले चीन गया और भारत बाद में. भूटान भी चीन के साथ सीमा समझौते के लिए बेचैन है और सिर्फ भारत के दबाव से अब तक रुका हुआ है, कब तक रुकेगा, कहना मुश्किल है. मोदी का 'पड़ोसी प्रथम' का नारा अब खोखला लगने लगा है.
चीन की मनमानी और भारत की चुप्पी : इतना ही नहीं, बीजिंग ने एकतरफा फैसला लेते हुए कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली कर दी, बिना भारत से विमर्श किए. वह भारत को यह कहने की हिम्मत भी रखता है कि पवित्रगामियों पर हुए पहलगाम हमले को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में उठाना ‘अनुचित’ है.
चीन ने दलाई लामा के जन्मदिन पर भारत को चेताया और हालिया सैन्य संघर्षों में पाकिस्तान को खुला समर्थन दिया यानी वह अब बातचीत के नियम भी तय करता है और भारत की प्रतिक्रिया या तो प्रतीकात्मक है या फिर गैर-मौजूद.
"कॉमन सेंस" नहीं, आत्मसमर्पण : 2023 में जयशंकर ने कहा था- "वे (चीन) बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, हम क्या कर सकते हैं?" यह बयान भू-राजनीतिक विश्लेषण नहीं, बल्कि एक राजनैतिक समर्पण की स्वीकृति था. चीन ने मोदी की हिम्मत को परखा और मोदी हार गए.
भारत ने न तो आंतरिक क्षमता को मजबूत किया, न ठोस प्रतिरोध तैयार किया. जो हो रहा है, वह 'डैमेज कंट्रोल' से ज़्यादा कुछ नहीं. दो बातें इस नीति को संचालित करती हैं.
भारत की भीतरी ताकत का अभाव - रक्षा आधुनिकीकरण बिखरा हुआ है, संसाधनों की कमी है और राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है. आर्थिक ढांचा झटकों के प्रति बेहद संवेदनशील है.
अमेरिका पर एकतरफा निर्भरता - ट्रम्प जैसे नेता, मोदी की दो जनसभाओं की परवाह नहीं करते. वे भारत से इंडो-पैसिफिक में भूमिका चाहते हैं, लेकिन भारत की सुरक्षा की गारंटी नहीं देते.
चीन के साथ रिश्तो में गर्माहट की खबरें... यह ताकत नहीं, आत्मसमर्पण की हैं.
गुप्ता जी की हवेलियां नीलाम
दक्षिण अफ्रीका ने भारतीय मूल के तीन गुप्ता बंधुओं की हवेलियों की नीलामी पूरी कर ली है. ये भाई देश के 'स्टेट कैप्चर' घोटाले के केंद्र में थे, जिसके कारण जैकब जुमा की सरकार गिर गई थी. हालांकि अतुल, अजय और राजेश गुप्ता के 22 मिलियन रैंड और 37 मिलियन रैंड मूल्य के दो घर नहीं बिक सके – शायद इस तिकड़ी से जुड़े कलंक के कारण – लेकिन उनके अंदर का सामान कुल 160,000 रैंड में बेच दिया गया. एक तीसरी हवेली, जिसके बारे में माना जाता है कि उसका इस्तेमाल कर्मचारी करते थे, 3.3 मिलियन रैंड में बेची गई. इससे कुल मिलाकर 3.46 मिलियन रैंड यानी 1.68 करोड़ रुपये की वसूली हुई.
ट्रम्प का टेक कंपनियों पर निशाना, भारत से भर्ती रोकने को कहा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी टेक कंपनियों द्वारा भारत से कर्मचारियों को नियुक्त करने और चीन में कारखाने स्थापित करने की आलोचना की है. उन्होंने कंपनियों से आग्रह किया है कि वे अपनी भविष्य की व्यावसायिक गतिविधियों के लिए अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करें. वाशिंगटन में एक एआई शिखर सम्मेलन में, ट्रम्प ने तकनीकी उद्योग की 'वैश्विक मानसिकता' पर तीखा हमला बोला. उन्होंने दावा किया कि कुछ शीर्ष टेक कंपनियों ने अमेरिकी स्वतंत्रता का उपयोग करके मुनाफा तो कमाया है, लेकिन देश के बाहर भारी निवेश किया है. मनी कंट्रोल के अनुसार, यह 'पहली बार नहीं है जब ट्रम्प ने टेक आउटसोर्सिंग को लेकर भारत को निशाना बनाया है'. मई में, उन्होंने एप्पल को चेतावनी दी थी कि अगर वह अमेरिका के बाहर आईफोन का निर्माण जारी रखता है तो उसे भारी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा. उनकी हालिया टिप्पणियां भारत के तकनीकी क्षेत्र पर दबाव को और बढ़ाती हैं, जो पहले से ही भारत में नौकरी के कम अवसरों और शिक्षित लोगों के बीच बढ़ती बेरोजगारी दर के बोझ से दबा हुआ है.
WWE दिग्गज और अभिनेता हल्क होगन का 71 वर्ष की उम्र में निधन, दिल का दौरा पड़ा
विश्व प्रसिद्ध WWE रेसलर और अभिनेता हल्क होगन (वास्तविक नाम टेरी जीन बोलेया) का निधन हो गया है. वे 71 वर्ष के थे. उनके मैनेजर क्रिस वोलो ने एनबीसी लॉस एंजेलिस को जानकारी दी कि होगन को फ्लोरिडा स्थित अपने घर में दिल का दौरा पड़ा और वे अपने परिवार की मौजूदगी में इस दुनिया को अलविदा कह गए.
अपने सुनहरे बालों और प्रतिष्ठित मूंछों के लिए पहचाने जाने वाले हल्क होगन 1980 के दशक में रेसलिंग के सबसे लोकप्रिय सितारों में से एक बने. 6 फीट 7 इंच लंबा और 145 किलो वज़न के साथ उनका कद-काठी और रंगमंचीय शैली 'Hulkamania' के नाम से मशहूर हुई. वे आठ बार रेसलमैनिया जैसे WWE के सबसे बड़े इवेंट के प्रमुख चेहरे बने. 1987 में उन्होंने एंद्रे द जाइंट के साथ ऐतिहासिक मुकाबला किया था, जिसे देखने के लिए 93,000 से ज्यादा दर्शक आए थे. हल्क होगन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रबल समर्थक रहे. उन्होंने 2024 में रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन में WWE स्टाइल में अपनी शर्ट फाड़कर ‘Trump 2024’ टी-शर्ट का प्रदर्शन किया था. उन्होंने फिल्मों में भी अभिनय किया.
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