26/09/2025: सुलगते लद्दाख पर नाकाम सरकार का भड़काऊ रवैया | 'आई लव मोहम्मद' पर पुलिस रवैये पर सवाल | बिहार भाजपा में कलह | फिलीस्तीन की तरफदारी में सोनिया गाँधी | चंद्रचूड़ का अयोध्या पर हैरतअंगेज बयान
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
सुलगता लद्दाख: सरकार नाकाम, ठीकरा वांगचुक पर
काशीपुर बवाल: ‘आई लव मोहम्मद’ जुलूस पर झड़प, पुलिस पर सवाल
गरबा पर विवाद: मुस्लिमों के प्रवेश पर रोक की मांग, धर्मगुरुओं की अपील
बिहार बीजेपी: अंदरूनी कलह उजागर, नेतृत्व में गहरी दरारें
इतिहास की वापसी: कोलकाता से बांग्लादेश लौटने की तैयारी में अवामी लीग
केरल का नया पाठ: किताबों में अब राज्यपाल के अधिकार और कर्तव्य
अजीब स्कीम: ‘भुजिया जिहाद’ वाले चैनल में सरकारी इंटर्नशिप
राष्ट्रीय क्षति: असुरक्षा के कारण घटती कामकाजी महिलाएं
असली ताकत कौन: दावा - मोदी नहीं, अमित शाह ही ‘सरकार’ हैं
पारंजॉय गुहा ठाकुरता पर लगा गैग ऑर्डर हटा
अमानवीय निर्वासन: 30 साल बाद पंजाबी दादी को अमेरिका ने निकाला
सरकोजी को जेल: लीबिया से अवैध धन लेने में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति दोषी
सुलगता लद्दाख
केंद्र ने अपनी नाकामयाबी का ठीकरा सोनम वांगचुक पर फोड़ा, कर्फ्यू, सीबीआई भेजी
अपनी नाकामयाबियोंं को देखने, अपने गिरेबान में झांकने, अपनी गलती मानने और सुधारने की बजाय केंद्र सरकार ने लद्दाख में हुई हिंसा पर वही किया, जैसा उसने कश्मीर और मणिपुर मे, किसानों और सीएए के समय किया था. पंद्रह दिन से चल रहे आंदोलन के दौरान सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी और अब जब वह हिंसक हो गया, तो सरकार ने उसी शख्स पर ठीकरा फोड़ा जो भूख हड़ताल कर रहा था. केंद्र नें दूसरा निशाना विपक्षी दल कांग्रेस को बनाया. उनका आईटी सेल पूरी तरह से लद्दाख के लोगों, सोनम वांगचुक और आंदोलनकारियों के पीछे पड़ गया. सरकारी कार्रवाई से साफ है कि लद्दाख का मामला इनसे न संभलने का.
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन बुधवार, 24 सितंबर, 2025 को हिंसक हो गया, जिसने शांत समझे जाने वाले इस क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया. लेह में हुए अभूतपूर्व हिंसक प्रदर्शनों में चार लोगों की मौत हो गई और दर्जनों अन्य घायल हो गए, जिसके बाद पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया. इस हिंसा के बाद केंद्र सरकार और लद्दाख के प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव की स्थिति और गहरी हो गई है. केंद्र ने न केवल हिंसा के लिए प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता और आंदोलन के प्रमुख चेहरे, सोनम वांगचुक को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया है, बल्कि एक दिन बाद ही उनके द्वारा स्थापित एक प्रमुख गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) का विदेशी फंडिंग लाइसेंस (FCRA) भी रद्द कर दिया. इस कार्रवाई ने क्षेत्र में राजनीतिक तापमान को और बढ़ा दिया है, जहां अब विश्वास की कमी और गुस्सा साफ़ नज़र आ रहा है.
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने लद्दाख के शिक्षाविद् और कार्यकर्ता सोनम वांगचुक द्वारा स्थापित संस्थान ‘एचआईएएल’ (हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख) के खिलाफ़ विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन की जांच शुरू कर दी है. अधिकारियों के अनुसार, अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, लेकिन सीबीआई टीमें लद्दाख में 2022 से 2024 तक प्राप्त विदेशी फंडों की जांच कर रही हैं.
“पीटीआई” के अनुसार, वांगचुक ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उनके संस्थान ने विदेशी फंड नहीं लिया, बल्कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को ज्ञान निर्यात किया, जिसके लिए सेवा समझौतों के तहत भुगतान मिला और टैक्स भी चुकाया गया. उन्होंने आरोप लगाया है कि सीबीआई टीमें अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर 2022 से पहले के खाते मांग रही हैं. वांगचुक का कहना है कि पहले उन पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया, फिर ‘एचआईएएल’ की ज़मीन वापस लेने का आदेश आया, और अब सीबीआई की कार्रवाई तथा आयकर समन आ रहे हैं. उन्होंने इसे “हम पर चारों तरफ़ से हमला” बताया है.
द हिंदू की एक विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार, लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन (एलबीए) के अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरुक ने दावा किया कि बुधवार के हिंसक प्रदर्शनों के दौरान मारे गए चारों प्रदर्शनकारियों की मौत गोली लगने से हुई है. उन्होंने इसे “पुलिस द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी” का नतीजा बताया. प्रशासन द्वारा जारी जानकारी के मुताबिक, मृतकों की पहचान त्सेवांग थारचिन (46), जिग्मेत दोरजे (25), स्टैनज़िन नामग्याल (23) और रिनचेन दादुल (20) के रूप में हुई है. इनमें से एक, थारचिन, लद्दाख स्काउट्स के एक सेवानिवृत्त सैनिक थे.
लद्दाख के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एस.डी. सिंह जमवाल ने मौतों की पुष्टि करते हुए बताया कि हिंसा में 15 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जिनमें से एक को बेहतर इलाज के लिए दिल्ली एयरलिफ्ट किया गया है. इसके अतिरिक्त, 30 लोगों को मामूली चोटें आईं और लगभग 30 सुरक्षाकर्मी भी घायल हुए. पुलिस ने इस मामले में दंगा भड़काने और अन्य गंभीर धाराओं के तहत एक प्राथमिकी (FIR) दर्ज की है और अब तक 42 लोगों को गिरफ़्तार किया है. डीजीपी ने यह भी बताया कि एफआईआर में कुछ संदिग्धों के नाम हैं और पुलिस सोनम वांगचुक की तलाश कर रही है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, लेह में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लागू कर दिया गया है और सभी शिक्षण संस्थानों को बंद करने का आदेश दिया गया है. लेह के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए, लद्दाख के दूसरे प्रमुख शहर कारगिल में भी पूर्ण बंद का पालन किया गया, जहां सभी दुकानें, कार्यालय और स्कूल बंद रहे.
सरकार की त्वरित कार्रवाई और वांगचुक पर आरोप
लेह में हिंसा भड़कने के 24 घंटे के भीतर ही, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक बड़ा कदम उठाते हुए सोनम वांगचुक द्वारा स्थापित संगठन ‘स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख’ (SECMOL) का विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) पंजीकरण तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया. इंडियन एक्सप्रेस और द हिंदू की रिपोर्टों के अनुसार, मंत्रालय ने अपने आदेश में एफसीआरए नियमों के कई कथित उल्लंघनों का हवाला दिया.
मंत्रालय के अनुसार, SECMOL पर आरोप है कि उसने वांगचुक से 3.5 लाख रुपये की राशि “विदेशी चंदे” के रूप में अपने एफसीआरए खाते में जमा की, जो नियमों का उल्लंघन है. एक अन्य गंभीर आरोप यह है कि संगठन ने एक स्वीडिश संस्था से “राष्ट्रीय संप्रभुता” जैसे संवेदनशील विषय पर अध्ययन करने के लिए विदेशी फंड प्राप्त किया. इसके अलावा, संगठन पर स्थानीय फंड को एफसीआरए खाते में जमा करने और वित्तीय रिकॉर्ड ठीक से न रखने का भी आरोप लगाया गया है.
एफसीआरए लाइसेंस रद्द करने के साथ-साथ, गृह मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी कर हिंसा के लिए सीधे तौर पर सोनम वांगचुक को ज़िम्मेदार ठहराया. मंत्रालय ने कहा, “सोनम वांगचुक के भड़काऊ बयानों से निर्देशित एक अनियंत्रित भीड़ ने सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट कर दिया और पुलिस पर हमला किया.” मंत्रालय ने यह भी संकेत दिया कि कुछ “राजनीतिक रूप से प्रेरित व्यक्ति” सरकार और लद्दाख के प्रतिनिधिमंडलों (लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस) के बीच चल रही बातचीत को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे, जबकि 26 सितंबर को एक बैठक पहले से ही निर्धारित थी.
वांगचुक का पलटवार और स्थानीय नेताओं की प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार के इन आरोपों पर सोनम वांगचुक ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. द हिंदू से बात करते हुए, उन्होंने सरकार के रवैये को “बचकाना” बताया और कहा कि उन्हें “बलि का बकरा” बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा, “यह एक घाव को भरने का तरीका नहीं है, यह स्थिति को और खराब करेगा, यह युवाओं को और अधिक क्रोधित करेगा... छह साल की बेरोज़गारी, अधूरे वादों के बाद, अब वे हर चीज़ के लिए मुझे दोष दे रहे हैं.”
वांगचुक ने 3.5 लाख रुपये के आरोप पर सफ़ाई देते हुए कहा कि यह राशि स्कूल की एक पुरानी बस की बिक्री से प्राप्त हुई थी. चूंकि उन्होंने नई बस खरीदने के लिए 17 लाख रुपये का बड़ा दान दिया था, इसलिए उन्होंने यह छोटी राशि वापस लेने से इनकार कर दिया था. वांगचुक ने चेतावनी देते हुए कहा कि वह गिरफ़्तारी से नहीं डरते, लेकिन “उनकी गिरफ़्तारी से और अधिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं.” उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी आवाज़ को दबाने के लिए उन्हें परेशान किया जा रहा है ताकि “बड़ी भूमि पार्सल कॉर्पोरेट्स को दी जा सकें.”
इस बीच, लद्दाख के अन्य नेताओं ने भी हिंसा और उसके बाद की सरकारी प्रतिक्रिया की निंदा की है. लद्दाख के सांसद हाजी हनीफ़ा ने घटना की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा, “शांतिप्रिय माने जाने वाली आबादी के खिलाफ़ अत्यधिक बल का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए था.” कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सह-अध्यक्ष असगर अली करबलाई ने भी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने की आलोचना की.
यह पूरा घटनाक्रम 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से उपजी चिंताओं और मांगों की पृष्ठभूमि में हुआ है. स्थानीय लोग अपनी अनूठी संस्कृति, भूमि, पर्यावरण और नौकरियों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं. तनावपूर्ण माहौल के बीच, लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और केडीए के प्रतिनिधियों की गृह मंत्रालय के साथ 27 या 28 सितंबर को एक प्रारंभिक बैठक होने की उम्मीद है, जिस पर अब पूरे क्षेत्र की निगाहें टिकी हैं.
काशीपुर में ‘आई लव मोहम्मद’ जुलूस के दौरान हिंसा, एपीसीआर के पुलिस के रोल पर सवाल
21 सितंबर 2025 को उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में ‘आई लव मोहम्मद’ जुलूस के दौरान पुलिस और भीड़ के बीच हिंसक झड़प हो गई. पुलिस का दावा है कि यह जुलूस बिना अनुमति के निकाला गया था और इसमें 400-500 लोगों ने हिस्सा लिया, जिन्होंने पुलिसकर्मियों पर हमला किया, सरकारी वाहनों को नुकसान पहुंचाया और पथराव किया. वहीं, स्थानीय समुदाय के सदस्यों का कहना है कि यह शांतिपूर्ण धार्मिक जुलूस था, जो पुलिस द्वारा नाबालिगों को परेशान करने के बाद हिंसक हो गया. उनके अनुसार, जुलूस समाप्त होने के बाद 20-30 नाबालिग लड़के मौके पर रुके थे, जब पुलिस की 112 गाड़ी आई और उन पर लाठीचार्ज किया गया, गाली-गलौज की गई, जिससे प्रतिरोध हुआ और झड़प बढ़ गई.
सिविल राइट्स की सुरक्षा के लिए एसोसिएशन (एपीसीआर) ने ‘आई लव मोहम्मद’ बैनर विवाद से जुड़ी घटनाओं पर गंभीर चिंता जताई है और मुसलमानों के खिलाफ दर्ज मामलों में निष्पक्ष जांच की मांग की है. एपीसीआर के अनुसार, देशभर में 21 एफआईआर में 1,324 मुसलमानों को आरोपी बनाया गया है, जिसमें 38 गिरफ्तारियां हुई हैं, और यह धार्मिक अभिव्यक्ति को अपराध बनाने का प्रयास है. संगठन के राष्ट्रीय सचिव नदीम खान ने कहा कि पैगंबर के प्रति प्यार और सम्मान व्यक्त करना मौलिक अधिकार है, और इसे अपराध बनाना संविधान का उल्लंघन है. उन्होंने काशीपुर सहित सभी मामलों में तत्काल निष्पक्ष जांच की अपील की है, ताकि मुसलमानों को अनुचित अभियोजन से बचाया जा सके और उनके अधिकारों की रक्षा हो. एपीसीआर ने पुलिस कार्रवाई को अतिरंजित बताते हुए शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति की रक्षा पर जोर दिया है.
पुलिस की एफआईआर में एसएसआई अनिल जोशी ने बताया कि जुलूस का नेतृत्व नदीम अख्तर, हनीफ गांधी और दानिश चौधरी कर रहे थे. पुलिसकर्मियों को धक्का दिया गया, गालियां दी गईं और हमला किया गया. डायल 112 वाहन की कांच टूट गई, जबकि पुलिस स्टेशन की गाड़ी का बोनट क्षतिग्रस्त हुआ. घटना के बाद 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें नदीम अख्तर शामिल हैं, और लगभग 500 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. समुदाय का आरोप है कि यह सब पुलिस की उकसाहट से हुआ और कोई भड़काऊ नारे या साजिश नहीं थी.
घटना के बाद प्रशासन ने मुस्लिम बहुल इलाके में सख्त कार्रवाई शुरू की, जिसे स्थानीय लोग ‘हल्द्वानी मॉडल’ की सामूहिक सजा बता रहे हैं. 22 सितंबर से बुलडोजर से 20-25 दुकानों और स्टॉलों को ध्वस्त किया गया, स्मार्ट बिजली मीटर जबरन लगाए गए, राशन कार्ड की घर-घर जांच की गई और हाउस टैक्स नोटिस जारी किए गए. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने चालान जारी किए, जबकि 10-12 साल के बच्चों को हिरासत में लिया गया और रुद्रपुर के बाल सुधार गृह में भेजा गया. परिवारों का कहना है कि बच्चों को हिरासत में पीटा गया, लेकिन वे पुलिस के सामने इनकार करते हैं.
पुलिस ने चेहरे पहचान सॉफ्टवेयर से आरोपियों की तलाश की और 163 धारा लागू कर सभाओं पर रोक लगा दी. समाजवादी पार्टी ने नदीम अख्तर को निष्कासित कर दिया. मुस्लिम समुदाय एफआईआर वापस लेने की मांग कर रहा है और पुलिस पर विफलता का आरोप लगा रहा है, जबकि भाजपा ने कानून व्यवस्था बिगाड़ने वालों पर सख्ती का समर्थन किया.
एपीसीआर के मुताबिक यह घटना पुलिस और समुदाय के बीच विश्वास की कमी को उजागर करती है. दोनों पक्षों के अलग-अलग बयानों से निष्पक्ष जांच की जरूरत है, ताकि मौलिक अधिकारों की रक्षा हो. स्थानीय लोग डर के माहौल में हैं और मीडिया से बात करने से कतरा रहे हैं. उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल करने पर विचार हो रहा है, लेकिन नामित पीड़ित के बिना यह मुश्किल है.
सोनिया गांधी
फ़िलिस्तीन पर भारत की चुप्पी और अलगाव
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गाँधी का ये लेख हिंदू में प्रकाशित हुआ है. उसके मुख्य अंश
फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया के साथ फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने में शामिल हो गया है. यह लंबे समय से पीड़ित फ़िलिस्तीनी लोगों की वैध आकांक्षाओं की पूर्ति की दिशा में पहला कदम है. संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 150 से अधिक ने अब ऐसा कर लिया है. फ़िलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को वर्षों तक समर्थन देने के बाद भारत ने 18 नवंबर, 1988 को फ़िलिस्तीनी राज्य को औपचारिक रूप से मान्यता दी थी और इस संबंध में एक अग्रणी देश रहा है. भारत का निर्णय मौलिक रूप से एक नैतिक निर्णय था और हमारे विश्व दृष्टिकोण के अनुरूप था.
एक आवाज़ जो अतीत में बुलंद थी
आज़ादी से पहले भी, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रंगभेदी दक्षिण अफ़्रीका का मुद्दा उठाया था और रंगभेदी शासन के साथ व्यापार संबंध तोड़ दिए थे. अल्जीरिया के स्वतंत्रता संग्राम (1954-62) के दौरान, भारत एक स्वतंत्र अल्जीरिया के लिए सबसे मज़बूत आवाज़ों में से एक था, जिसने यह सुनिश्चित किया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ उस निर्णायक युद्ध के मैदान को भूल न सके. 1971 में, भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार को रोकने के लिए दृढ़ता से हस्तक्षेप किया, जिससे आधुनिक बांग्लादेश का जन्म हुआ. जब वियतनाम में रक्तपात के बीच दुनिया का अधिकांश हिस्सा चुपचाप खड़ा रहा, तब भारत नैतिक स्पष्टता की आवाज़ था, जो शांति की मांग कर रहा था और वियतनामी लोगों के ख़िलाफ़ विदेशी क्रूरता का विरोध कर रहा था. आज भी, भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सबसे बड़े दस्तों में से एक का योगदान देता है. ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा’ को बढ़ावा देना भारत के संविधान में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में से एक है.
इज़राइल-फ़िलिस्तीन के महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर भी, भारत ने लंबे समय तक एक नाजुक लेकिन सैद्धांतिक स्थिति बनाए रखी है, जिसमें शांति और मानवाधिकारों की सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया गया है. भारत 1974 में पीएलओ को मान्यता देने वाले पहले देशों में से था और उसने लगातार दो-राज्य समाधान का समर्थन किया है जो इज़राइल के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करते हुए फ़िलिस्तीन के आत्मनिर्णय के अधिकार की गारंटी देता है. पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने फ़िलिस्तीनी अधिकारों की पुष्टि करने और वेस्ट बैंक में कब्ज़े और बस्तियों के विस्तार की निंदा करने वाले कई संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों का समर्थन किया है. साथ ही, भारत ने इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध बनाए रखे हैं. संयुक्त राष्ट्र, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) पर्यवेक्षक मंचों जैसे बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से, भारत ने बातचीत से समाधान, अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन और हिंसा की समाप्ति का आग्रह किया है. भारत ने फ़िलिस्तीन को मानवीय और विकास सहायता भी प्रदान की है, जिसमें छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के लिए समर्थन और गाज़ा और वेस्ट बैंक में संस्थानों के लिए क्षमता-निर्माण शामिल है.
आज भारत का रुख़
अक्टूबर 2023 में इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच शत्रुता फैलने के बाद से पिछले दो वर्षों में, भारत ने अपनी भूमिका लगभग छोड़ दी है. 7 अक्टूबर, 2023 को इज़राइली नागरिकों पर क्रूर और अमानवीय हमास के हमलों के बाद इज़राइल की प्रतिक्रिया हुई जो नरसंहार से कम नहीं रही है. जैसा कि मैंने पहले भी उठाया है, 17,000 बच्चों सहित 55,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं. गाज़ा पट्टी के आवासीय, स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर दिया गया है, जैसा कि कृषि और उद्योग को भी नष्ट कर दिया गया है. गाज़ावासियों को अकाल जैसी स्थिति में मजबूर किया गया है, इज़राइली सेना क्रूरतापूर्वक बहुत ज़रूरी भोजन, दवा और अन्य सहायता के वितरण में बाधा डाल रही है - निराशा के सागर के बीच सहायता की ‘ड्रिप-फीडिंग’. अमानवीयता के सबसे घृणित कृत्यों में से एक में, भोजन प्राप्त करने की कोशिश करते समय सैकड़ों नागरिकों को गोली मार दी गई है.
दुनिया ने प्रतिक्रिया देने में धीमी गति दिखाई है, जिससे इज़राइली कार्रवाइयों को परोक्ष रूप से वैध बनाया गया है. कई देशों द्वारा फ़िलिस्तीन को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने के हालिया क़दम निष्क्रियता की नीति से एक स्वागत योग्य और लंबे समय से प्रतीक्षित प्रस्थान हैं. यह एक ऐतिहासिक क्षण है, और न्याय, आत्मनिर्णय और मानवाधिकारों के सिद्धांतों का एक दावा है. ये क़दम केवल राजनयिक संकेत नहीं हैं; वे उस नैतिक ज़िम्मेदारी की पुष्टि हैं जो राष्ट्रों को लंबे समय तक अन्याय के सामने उठानी पड़ती है. यह एक याद दिलाता है कि आधुनिक दुनिया में, चुप्पी तटस्थता नहीं है - यह मिलीभगत है. और यहाँ, भारत की आवाज़, जो कभी स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा के कारण इतनी अटूट थी, आज स्पष्ट रूप से खामोश है.
मोदी सरकार की प्रतिक्रिया एक गहरी चुप्पी और मानवता और नैतिकता दोनों के परित्याग की विशेषता रही है.[7] इसकी कार्रवाइयां मुख्य रूप से इज़राइली प्रमुख और श्री मोदी के बीच व्यक्तिगत दोस्ती से प्रेरित लगती हैं, न कि भारत के संवैधानिक मूल्यों या इसके रणनीतिक हितों से. व्यक्तिगत कूटनीति की यह शैली कभी भी टिकाऊ नहीं होती है और भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक नहीं हो सकती है. दुनिया के अन्य हिस्सों में - विशेष रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका में - ऐसा करने के प्रयास हाल के महीनों में सबसे दर्दनाक और अपमानजनक तरीकों से विफल हुए हैं.भारत की विश्व मंच पर स्थिति किसी एक व्यक्ति के व्यक्तिगत गौरव-प्राप्ति के तरीकों में नहीं सिमट सकती, न ही यह अपने ऐतिहासिक गौरव पर टिकी रह सकती है. इसके लिए निरंतर साहस और ऐतिहासिक निरंतरता की भावना की आवश्यकता है.
इस बीच, यह भयावह है कि केवल दो हफ़्ते पहले, भारत ने न केवल नई दिल्ली में इज़राइल के साथ एक द्विपक्षीय निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किए, बल्कि अपने अत्यधिक विवादास्पद धुर-दक्षिणपंथी वित्त मंत्री की मेज़बानी भी की, जिन्होंने कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में फ़िलिस्तीनी समुदायों के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए बार-बार उकसाने के लिए वैश्विक निंदा को आमंत्रित किया है.
अभी कार्रवाई करें
सबसे मौलिक बात यह है कि भारत को फ़िलिस्तीन के मुद्दे को केवल विदेश नीति का मामला नहीं मानना चाहिए, बल्कि इसे भारत की नैतिक और सभ्यतागत विरासत की परीक्षा के रूप में देखना चाहिए. फ़िलिस्तीन के लोगों ने दशकों से विस्थापन, लंबे समय तक कब्ज़ा, बस्तियों का विस्तार, आंदोलन पर प्रतिबंध और अपने नागरिक, राजनीतिक और मानवाधिकारों पर बार-बार हमलों का सामना किया है. उनकी दुर्दशा उन संघर्षों की प्रतिध्वनि है जिनका भारत ने औपनिवेशिक युग के दौरान सामना किया था - एक ऐसा देश जो अपनी संप्रभुता से वंचित था, एक राष्ट्र से वंचित था, अपने संसाधनों के लिए शोषित था, और सभी अधिकारों और सुरक्षा से वंचित था. हम फ़िलिस्तीन के प्रति उसकी गरिमा की तलाश में एक ऐतिहासिक सहानुभूति के ऋणी हैं, और हम उस सहानुभूति को सैद्धांतिक कार्रवाई में बदलने का साहस भी फ़िलिस्तीन के ऋणी हैं.
भारत का ऐतिहासिक अनुभव, इसका नैतिक अधिकार और मानवाधिकारों के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को इसे बिना किसी देरी या हिचकिचाहट के न्याय के पक्ष में बोलने, वकालत करने और कार्य करने के लिए सशक्त बनाना चाहिए. उम्मीद इस संघर्ष में पक्षपात की नहीं है, इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच चयन करने की नहीं है. उम्मीद उन मूल्यों के अनुरूप सैद्धांतिक नेतृत्व की है जिन्होंने लंबे समय तक भारत, हमारे राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है, और जिस पर हमारा स्वतंत्रता आंदोलन टिका था.
पूर्व सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ : अयोध्या और ज्ञानवापी पर विवादित फ़ैसलों का बचाव
अयोध्या में मस्जिद का निर्माण ही अपवित्रीकरण का मौलिक कृत्य था
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि अयोध्या के राम मंदिर का फैसला आस्था पर नहीं, बल्कि साक्ष्य (सबूत) पर आधारित था. जब उनसे पूछा गया कि 1949 में हिंदुओं द्वारा बाबरी मस्जिद को अपवित्र किया जाना, हिंदू पक्षों के ख़िलाफ़ क्यों नहीं गया, तो उन्होंने चौंकाने वाला तर्क दिया कि मस्जिद का निर्माण ही “अपवित्रीकरण का मौलिक कृत्य” था. यह तर्क तब दिया गया जब सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में ख़ुद ही यह नोट किया गया था कि ऐसा कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है, जो यह सुझाए कि मस्जिद बनाने के लिए किसी पहले की संरचना को ध्वस्त किया गया था. श्रीनिवासन जैन के साथ एक इंटरव्यू में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने कुछ सबसे विवादास्पद फ़ैसलों की आलोचना पर अपनी बात रखी.
ज्ञानवापी पर: ‘धार्मिक चरित्र का मुद्दा खुला है’
जब उनसे यह सवाल किया गया कि पूजा स्थल अधिनियम के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाने के बावजूद उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति क्यों दी, तो चंद्रचूड़ ने कहा कि साइट का धार्मिक चरित्र कोई बंद मुद्दा नहीं था. उन्होंने दावा किया कि हिंदुओं ने मस्जिद के तहखाने में “निस्संदेह सदियों से” पूजा की है, और इस दावे को “अविवादित” बताया, जबकि मुस्लिम पक्ष ने लगातार इस दावे को चुनौती दी है.
गरबा विवाद : मुस्लिम धर्मगुरुओं का युवाओं से आग्रह- गरबा से दूर रहें
मध्यप्रदेश में गरबा स्थलों पर मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की हिंदू संगठनों और कई भाजपा नेताओं की बढ़ती मांगों के बीच, दो प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरुओं ने अपने समुदाय के युवाओं से हिंदू त्योहार के कार्यक्रमों में शामिल होने से परहेज करने का आग्रह किया है.
रतलाम, जो पश्चिमी मध्यप्रदेश के सबसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहरों में से एक है, में शहर काजी मौलवी सैय्यद काजी अहमद अली ने मुस्लिम बुज़ुर्गों से लिखित अपील जारी कर युवाओं, लड़कों और लड़कियों दोनों को गरबा आयोजनों में भाग लेने से रोकने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि ऐसा करने से हिंदू आयोजकों की भावनाएं आहत हो सकती हैं और यह इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप भी नहीं है.
अली ने कहा, “नवरात्रि और गरबा अभिन्न हिंदू त्योहार हैं, और कई आयोजक नहीं चाहते कि मुसलमान इसमें शामिल हों. सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए, मुस्लिम परिवारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके युवा इसमें भाग न लें.”
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, भोपाल में भी शहर नायब काजी मौलाना अली क़ादर ने इसी तरह की अपील की. क़ादर ने कहा, “अगर कोई मुस्लिम गरबा में भाग लेता हुआ दिखाई देता है, तो अधिकारियों को उन्हें रोकना चाहिए. मूर्ति पूजा से जुड़े आयोजनों में भागीदारी इस्लाम में स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने भाजपा सांसद और भोपाल के पूर्व महापौर आलोक शर्मा के बयान का भी समर्थन किया, जिन्होंने हाल ही में गरबा पंडालों में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया था.
ये टिप्पणियां तब आई हैं, जब हिंदू जागरण मंच और भोपाल हिंदू उत्सव समिति जैसे हिंदू संगठनों ने गरबा स्थलों में गैर-हिंदुओं, विशेष रूप से मुसलमानों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की अपनी मांगों को दोहराया है, जिससे तनाव बढ़ गया है. भोपाल के अवधपुरी इलाके में एक गरबा पंडाल ने तो एक पोस्टर भी लगाया है जिस पर लिखा है, “गरबा में जिहादियों को अनुमति नहीं है.”
अन्य स्थानों पर गैर-हिंदू होने के संदेह वाले उपस्थित लोगों के लिए “आस्था परीक्षण” की योजना बनाई जा रही है — जैसे कि तिलक लगाना, कलावा बांधना, गंगाजल पिलाना, गौमूत्र छिड़कना, और यहां तक कि उन्हें भगवान विष्णु के वराह (सूअर) अवतार की छवि के सामने झुकने की आवश्यकता होगी.
इस विवाद ने राजनीतिक गति भी पकड़ ली है, जिसमें मोहन यादव सरकार के मंत्री विश्वास सारंग, पूर्व मंत्री उषा ठाकुर, विधायक रामेश्वर शर्मा और सांसद आलोक शर्मा और अनिल फिरोजिया सहित कई भाजपा नेताओं ने गरबा में गैर हिंदुओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने की मांग का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया है.
ठीक दो दिन पहले, भोपाल जिला प्रशासन ने नए दिशा निर्देश जारी किए, जिनमें सभी गरबा आयोजकों को प्रवेश देने से पहले उपस्थित लोगों के पहचान प्रमाणों को सत्यापित करने की आवश्यकता होगी, इस कदम को कई लोग त्योहार के इर्द-गिर्द सांप्रदायिक विभाजन को मजबूत करने के रूप में देखते हैं.
सौहार्द की एक तस्वीर ये भी...
गरबा में प्रवेश के मुद्दे पर सांप्रदायिक विभाजन की सियासत के बीच ही इंदौर में एक दुकानदार बलवंत सिंह राठौर (40), ऐसे भी हैं, जो शहर के ऐतिहासिक शीतला माता बाजार से मुस्लिम दुकानदारों और विक्रेताओं को जबरन बेदखल किए जाने का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “हिंदू और मुसलमानों के बीच के सौहार्द को टूटने नहीं देना चाहिए, और उन्हें आजीविका कमाने के लिए समान अवसर दिए जाने चाहिए.” पत्रकार काशिफ़ काकवी ने “एक्स” पर पोस्ट किया, “बलवंत जैसे कुछ ही लोग इंदौर में हैं. धमकियों के कारण कारोबार में बलवंत के मुस्लिम पार्टनर को भी बेदखली का सामना करना पड़ रहा है.”
बिहार : बीजेपी के भीतर कलह, नेतृत्व की गहरी दरारें उजागर
बिहार में सत्तारूढ़ भाजपा एक विवाद से दूसरे विवाद में उलझती नज़र आ रही है, जिससे उसके नेतृत्व की गहरी दरारें उजागर हो रही हैं. पार्टी की अंदरुनी कलह से कई सवाल उठ रहे हैं.
अभय कुमार की खबर के अनुसार, जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर के बिहार भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और जद (यू) के मंत्री अशोक चौधरी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के विस्फोटक आरोपों की धूल अभी ठीक से बैठी भी नहीं थी, कि बीजेपी को एक और झटका लगा. इस बार, यह झटका पार्टी के अंदर से ही आया. अबकी आवाज़ पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता आर.के. सिंह ने उठाई. सिंह, जो अपनी ईमानदारी और बेबाक सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं, ने सार्वजनिक रूप से घेरे में आए उप-मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों से सच्चाई बताने का आह्वान किया. सिंह ने स्पष्ट रूप से सम्राट चौधरी से यह समझाने की मांग की कि क्या वह वास्तव में, जैसा कि प्रशांत किशोर ने दावा किया है, सिर्फ़ सातवीं कक्षा पास हैं? पूर्व केंद्रीय गृह सचिव और बेदाग रिकॉर्ड वाले व्यक्ति आर.के. सिंह का पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व के ख़िलाफ़ जाकर सवाल उठाना दर्शाता है कि आरोप कितने गंभीर हैं. और, आरोपों का सही और स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया तो आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
दोहराता इतिहास : कोलकाता कैफ़े से बांग्लादेश वापसी की योजना बना रही है अवामी लीग
1971 में, जब पूर्वी पाकिस्तान युद्ध की चपेट में था, तब अवामी लीग ने कलकत्ता में एक अंतरिम सरकार की स्थापना की थी. यह सरकार 8, थिएटर रोड से काम करती थी, जहां अब अरबिंदो भवन स्थित है. लगता है, 50 साल से अधिक समय के बाद, इतिहास खुद को दोहराता दिख रहा है.
आज, एक क्रांति द्वारा अपनी सरकार को सत्ता से हटा दिए जाने के बाद, अवामी लीग ने एक बार फिर कलकत्ता (अब कोलकाता) में शरण ली है. ‘न्यू टाउन’ के साधारण फ़्लैटों और शहर के शांत कैफ़े में होने वाली मुलाक़ातों से, पूर्व मंत्री और सांसद अपनी वापसी की रणनीति बना रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे उनके पूर्ववर्तियों ने आधी सदी पहले किया था.
पिछले महीने ढाका में उस समय एक तूफ़ान खड़ा हो गया, जब “बीबीसी” की एक रिपोर्ट में पार्टी द्वारा कोलकाता में अपना कार्यालय फिर से खोले जाने का संकेत दिया गया. पूछने पर, अवामी लीग के चार नेताओं ने इस बात से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया. फिर भी, शहर में उनकी उपस्थिति और उनकी योजनाएं अस्वीकार्य नहीं हैं. उसी यात्रा के दौरान, जब “स्क्रॉल” के अनंत गुप्ता ने ग़लत तरीक़े से बांग्लादेश निर्वासित किए गए भारतीय नागरिकों से मुलाक़ात की, तो उन्होंने इन निर्वासित राजनेताओं से भी बात की, जिन्हें अब भारत में रहने की अनुमति है. कोलकाता के किनारे से, अवामी लीग एक बार फिर अपनी घर वापसी के रास्ते की योजना बना रही है.
ज़ुबीन गर्ग का सहयोगी हिरासत में
असम के संगीत जगत के दिग्गज ज़ुबीन गर्गकी मौत की जांच कर रही एसआईटी (विशेष जांच दल) ने उनके लंबे समय से सहयोगी रहे शेखर ज्योति गोस्वामी को हिरासत में लिया है और चौथे पूर्वोत्तर भारत महोत्सव के आयोजकश्यामकानु महंत और गायक के मैनेजर सिद्धार्थ सरमा के घरों पर छापेमारी की है. सरमा के आवास पर बड़ी संख्या में भीड़ ने धावा बोलने की कोशिश की. एसआईटी ने सरमा के घर से एक लैपटॉप सहित दस्तावेज़ ज़ब्त किए हैं.
बांग्लादेश को हराकर पाकिस्तान फ़ाइनल में
पाकिस्तान-बांग्लादेश के मुकाबले में गुरुवार को आख़िरी क्षण हास्यास्पद थे. बांग्लादेश की बल्लेबाज़ी के अंतिम जोड़ी के साथ, बल्ले के किनारे से लगकर गेंदें बाउंड्री तक गईं, डीप में एक कैच छूटा, और रिशाद हुसैन ने ज़ोरदार हिट लगाए. लेकिन कोई भी भाग्य का फेर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ साज़िश नहीं रच सका; यह एक ऐसा मैच था, जिसमें उन्होंने ख़ुद भाग्य को जीत लिया. हारिस रऊफ ने सुनिश्चित किया कि उनकी दूसरी अंतिम गेंद छक्का न बने, तो पाकिस्तान ने सिर्फ़ 11 रनों से 135 के कम स्कोर का सफलतापूर्वक बचाव करते हुए, एशिया कप के फ़ाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली.
संदीप जी के अनुसार, यह जीत अपने निहितार्थों के कारण बहुत मायने रखती है. इसका सबसे बड़ा परिणाम भारत और पाकिस्तान के बीच बहुप्रतीक्षित फ़ाइनल है, जो रविवार को होने वाला है.
केरल की पाठ्यपुस्तकों में राज्यपाल के अधिकार और कर्तव्य पर मॉड्यूल शामिल
केरल सरकार ने 10वीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तक में राज्यपाल की शक्तियों और कर्तव्यों पर एक भाग (मॉड्यूल) शामिल किया है. यह खंड पाठ्यपुस्तक के दूसरे भाग में “लोकतंत्र: एक भारतीय अनुभव” नामक अध्याय के तहत आता है. इसमें कहा गया है कि राज्यपाल एक चुना हुआ प्राधिकारी नहीं, बल्कि नाममात्र का मुखिया होता है. वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद के पास होती है.
अनीसा पीए के मुताबिक, केरल में राज्य सरकार और राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर के बीच, और इससे पहले उनके पूर्ववर्ती आरिफ मोहम्मद खान के साथ भी लगातार टकराव रहा है. टकराव का एक और मुद्दा सरकारी कार्यक्रमों में राजभवन द्वारा ‘भारत माता’ की तस्वीर प्रदर्शित किया जाना है.
भुजिया जिहाद वाले ‘न्यूज़ चैनल’ में इंटर्न बनना चाहते हैं?
शिक्षा मंत्रालय “सुदर्शन न्यूज़” में 2025-26 के लिए अपनी भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) के तहत 100 इंटर्न को फंड देने के लिए एक अभिनव, लेकिन बेहद अजीबोगरीब योजना लेकर आया है.
प्रत्यूष दीप के अनुसार, यह वही चैनल है, जिसने पहले “भुजिया जिहाद” और “यूपीएससी जिहाद” जैसे कई अन्य ‘षड्यंत्र सिद्धांत’ सामने रखे थे. यह कार्यक्रम, जिसका शीर्षक “प्रसारण और प्रिंट के माध्यम से स्वदेशी ज्ञान परंपरा की रिपोर्टिंग पर एक महीने की पत्रकारिता इंटर्नशिप” है, के तथाकथित “एडुटेंनमेंट विज्ञान” थीम के तहत आता है. इस योजना के तहत, प्रत्येक इंटर्न को 1000 रुपये मिलेंगे और सुदर्शन न्यूज़ को ‘परिचालन लागत’ के लिए प्रति इंटर्न 5000 रुपये मिलेंगे, जिसका कुल योग 15 लाख होता है. ‘सुदर्शन न्यूज़’ इस इंटर्न योजना का हिस्सा बनने वाला एकमात्र ‘न्यूज़ चैनल’ बन गया है.
कामकाजी महिलाओं की संख्या घटेगी तो भारत कैसे तरक्की करेगा
“द टेलीग्राफ” में सुकन्या सरखेल ने एक अध्ययन के हवाले से लिखा है कि जहां भी बलात्कार, अपहरण और किडनेपिंग जैसे अपराधों की दर अधिक है, वहां कम महिलाएं काम करती हैं.
वह लिखती हैं, “2005 और 2010 के बीच, श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में तेज़ी से गिरावट आई. ग्रामीण भारत में यह 33.3% से गिरकर 26.5% हो गई, और शहरी क्षेत्रों में 17.8% से गिरकर 14.6% हो गई. यह गिरावट 2020 के दशक में भी जारी रही. उच्च आर्थिक विकास का लक्ष्य रखने वाले देश के लिए यह एक ‘रेड फ़्लैग’ है.” संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यदि महिलाएं कार्यबल में बराबर भाग लें, तो भारत की जीडीपी 60% तक बढ़ सकती है. कामकाजी महिलाओं का डर सिर्फ ग्रामीण या परंपरावादी परिवारों तक सीमित नहीं है. शहरों में भी अनेक शिक्षित महिलाएं सुरक्षा के अभाव में नौकरियां ठुकरा देती हैं. यह दिखाता है कि पितृसत्ता आज भी आधुनिक भारत को आकार दे रही है. भारत को असली तरक्की चाहिए तो महिलाओं के सामने सुरक्षा और अवसर के बीच चयन करने की मजबूरी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि, जब महिलाएं कार्यबल से ग़ायब हो जाती हैं, तो यह “राष्ट्रीय क्षति” होती है.
नरेंद्र मोदी के पीछे की असली ताकत अमित शाह? श्रवण गर्ग का दावा- शाह ही ‘सरकार’ हैं
हरकारा डीपडाइव पर हुई एक अहम बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने दावा किया है कि नरेंद्र मोदी सरकार में सत्ता का असली केंद्र गृह मंत्री अमित शाह हैं, और प्रधानमंत्री मोदी की ताकत पूरी तरह से शाह पर निर्भर है. गर्ग ने तर्क दिया कि अपनी भूमिका में अमित शाह ही देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं, जबकि मोदी जी नंबर दो पर हैं. उन्होंने शाह को सरकार और भाजपा का ‘चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर’ बताया, जो पर्दे के पीछे से सारे ऑपरेशन संभालते हैं.
श्रवण गर्ग ने कहा कि मोदी और शाह के बीच कामों का एक अघोषित बंटवारा है. मोदी जी अंतरराष्ट्रीय छवि बनाने और विदेश दौरों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि देश के भीतर पार्टी, सरकार, चुनावी रणनीति, और राज्यों में राजनीतिक उठापटक जैसे सारे महत्वपूर्ण काम अमित शाह देखते हैं. उन्होंने कहा, “क्या हम मोदी जी की कल्पना अमित शाह के बिना कर सकते हैं? यह संभव नहीं है.” गर्ग के अनुसार, शाह ने पार्टी संगठन पर इस कदर नियंत्रण कर लिया है कि अध्यक्ष जे.पी. नड्डा केवल एक चेहरा हैं, और पार्टी को असल में अमित शाह ही चलाते हैं.
इस बातचीत में एक दिलचस्प पहलू यह भी उभरा कि विपक्ष और मीडिया भी अमित शाह पर सीधा हमला करने से डरते हैं. गर्ग ने कहा, “विपक्षी दल मोदी, अंबानी और अडानी पर तो हमला करते हैं, लेकिन अमित शाह का नाम लेने से बचते हैं. बीजेपी के साथ-साथ विपक्ष में भी उनका खौफ है.” उन्होंने शाह की भूमिका की तुलना इंदिरा गांधी के दौर में संजय गांधी से की, जिन्हें एक ‘अतिरिक्त-संवैधानिक सत्ता’ माना जाता था. हालांकि शाह संवैधानिक पद पर हैं, लेकिन वे अपने मंत्रालय के दायरे से बहुत आगे बढ़कर काम करते हैं.
गर्ग का निष्कर्ष है कि जो लोग मोदी को सत्ता से हटाना चाहते हैं, उन्हें पहले अमित शाह के बारे में बात करनी होगी, क्योंकि मोदी की ताकत खुद उनमें नहीं, बल्कि अमित शाह में निहित है. शाह पिछले 25 वर्षों से मोदी के रक्षक की भूमिका निभा रहे हैं और सारे राजनीतिक हमलों को खुद पर झेलते रहे हैं. इसलिए, भारत की मौजूदा सत्ता को समझने के लिए अमित शाह की भूमिका को समझना बेहद ज़रूरी है.
दिल्ली अदालत ने पारंजॉय गुहा ठाकुरता पर लगे गैग ऑर्डर को हटाया
दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को पत्रकार पारंजॉय गुहा ठाकुरता पर अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) पर रिपोर्टिंग करने से रोकने वाले गैग ऑर्डर को हटा दिया है. रोहिणी कोर्ट के जिला न्यायाधीश सुनील चौधरी ने फैसला सुनाया कि नए आदेश पारित होने तक ठाकुरता अब रिपोर्टिंग करने के लिए स्वतंत्र हैं. इस फैसले पर खुशी जताते हुए ठाकुरता ने एक्स पर लिखा कि “संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है.”
यह गैग ऑर्डर 6 सितंबर को एकतरफा फैसले में लगाया गया था, जिसमें कथित मानहानिकारक सामग्री को हटाने का निर्देश दिया गया था. ठाकुरता के अलावा, न्यूज़लॉन्ड्री और पत्रकार रवीश कुमार ने भी अदालत के इस निषेधाज्ञा को चुनौती दी है. मामले की अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी.
30 साल बाद पंजाबी दादी को अमेरिका से किया गया निर्वासित
अमेरिका में तीन दशकों से अधिक समय तक रहने वाली 73 वर्षीय हरजीत कौर को भारत निर्वासित कर दिया गया है. आप्रवासी अधिकार समूहों ने इस कार्रवाई को “क्रूर और अमानवीय” बताया है. कौर के परिवार का आरोप है कि निर्वासन के दौरान उनके साथ कठोर व्यवहार किया गया और उन्हें अपने परिवार से मिलने तक नहीं दिया गया.
कौर 1992 में अमेरिका आई थीं और उनकी शरण की अर्जी खारिज हो गई थी, लेकिन वह नियमित रूप से आप्रवासन अधिकारियों के पास चेक-इन करती थीं. उनकी अचानक हिरासत और निर्वासन के खिलाफ कैलिफोर्निया में विरोध प्रदर्शन भी हुए. वहीं, अमेरिकी आप्रवासन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) ने अपनी कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि कौर अपनी सभी कानूनी अपीलें हार चुकी थीं, इसलिए कानून के अनुसार उन्हें निर्वासित किया गया. अधिकार समूहों का कहना है कि यह मामला आप्रवासी परिवारों पर होने वाली प्रणालीगत क्रूरता को उजागर करता है.
लीबिया मामला: फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति सरकोजी को पांच साल की जेल
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी को लीबिया के पूर्व नेता मुअम्मर गद्दाफी से अवैध रूप से धन लेने से जुड़े एक मामले में पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई है. पेरिस की एक अदालत ने उन्हें आपराधिक साजिश का दोषी पाया, हालांकि उन्हें भ्रष्टाचार और अवैध अभियान वित्तपोषण जैसे अन्य आरोपों से बरी कर दिया गया.
70 वर्षीय सरकोजी ने इस फैसले को “कानून के शासन के लिए बेहद गंभीर” बताते हुए इसके खिलाफ अपील करने की बात कही है. उन पर आरोप था कि उन्होंने 2007 के अपने चुनाव अभियान के लिए गद्दाफी से वित्तीय मदद ली थी. सरकोजी, जो 2007 से 2012 तक फ्रांस के राष्ट्रपति थे, ने हमेशा इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया है. यह मामला उनके खिलाफ चल रहे कई कानूनी मामलों में से एक है.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.