26/11/2025: किसानों ने फिर उठाई मांग | निठारी के बच्चों को मारा किसने ? | कामरा की टीशर्ट पर पुलिस कार्रवाई की धमकी | एचवनबी स्कैम | हसीना का क्या करना है? | रक्षा स्वायत्तता पर सुशांत सिंह
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
भारत ने माना- बांग्लादेश ने मांगा पूर्व पीएम का प्रत्यर्पण, कानूनी दांव-पेच शुरू.
किसानों की हुंकार: दिल्ली चलो के 5 साल, अधूरे वादों पर केंद्र को घेरा,
निठारी का दर्द: बिलखते मां-बाप का सवाल- ‘फिर हमारे बच्चों को किसने मारा?’
फर्जी खबर पर फजीहत: पूर्व डीजीपी ने विसर्जन को बताया ‘बांग्लादेशी घुसपैठ’
कुणाल कामरा ने उड़ाया आरएसएस का मज़ाक, भड़की बीजेपी ने दी पुलिसिया कार्रवाई की धमकी.
सीजेआई बोले- ‘बाहर टहलना भी हुआ मुहाल’, प्रदूषण के चलते वर्चुअल सुनवाई पर विचार.
अमेरिका में एच-1बी का ‘बड़ा खेल’, एक ही भारतीय जिले को मिले 2 लाख वीज़ा, उठे सवाल.
भारत से तल्खी के बीच पाकिस्तान-बांग्लादेश में अगले महीने से सीधी उड़ानें.
कॉलेजियम ख़त्म कर एनजेएसी लाने की तैयारी? सुप्रीम कोर्ट सुनेगा याचिका.
‘मुसलमान वोट नहीं देते, इसलिए कोई मुस्लिम मंत्री नहीं’’
इंडिया गेट पर छात्रों के प्रदर्शन में ‘नक्सली लिंक’ का आरोप, पुलिस की पिटाई पर सवाल.
जाति का जहर: मध्य प्रदेश में पुलिस के पहरे में निकली दलित दुल्हन की बिंदोली
सबरीमाला में मौत का साया: तेज़ चढ़ाई से श्रद्धालुओं को आ रहे हार्ट अटैक, प्रशासन चिंतित.
ट्रंप के गुर्गे का रूसी प्रेम: पुतिन के करीबियों को पढ़ा रहे थे दोस्ती का पाठ, कॉल लीक होने से अमेरिका में हड़कंप.
डीयू में प्रोफेसर पर छात्र नेता के हाथ उठाने पर अपूर्वानंद के सवाल
सुशांत सिंह: ‘आत्मनिर्भरता’ के नाम पर खोखले दावे, देसी हथियारों में विदेशी कलपुर्जों की भरमार.
दिल्ली चलो मार्च की 5वीं बरसी: किसान संगठनों ने केंद्र को याद दिलाए अधूरे वादे
विवादित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ ‘दिल्ली चलो’ मार्च की पांचवीं बरसी पर, पंजाब भर से हजारों किसान बुधवार को केंद्र सरकार को उसके अधूरे वादों की याद दिलाने के लिए चंडीगढ़ पहुंचे. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने भारत के राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा है. इसमें 9 दिसंबर, 2021 को केंद्र द्वारा किसानों को दिए गए लिखित आश्वासनों को पूरा न करने का मुद्दा उठाया गया है, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून, गारंटीकृत खरीद, व्यापक ऋण माफी और लेबर कोड (श्रम संहिताओं) को रद्द करना शामिल है.
एसकेएम, जिसमें लगभग 30 किसान संगठन शामिल हैं, के प्रतिनिधियों ने सेक्टर 43 के दशहरा ग्राउंड में भारी सुरक्षा के बीच रैली को संबोधित किया. ज्ञापन में कहा गया, “ऐतिहासिक किसान संघर्ष की शुरुआत की पांचवीं बरसी पर, देश भर के किसान और मजदूर एक बार फिर सामूहिक विरोध प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हैं.” इसमें याद दिलाया गया कि 380 दिनों तक चले उस आंदोलन में 736 किसानों ने अपनी जान गंवाई थी, जिसके बाद सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लिया था और एमएसपी (C2+50%) पर समिति बनाने का लिखित आश्वासन दिया था.
एसकेएम के वरिष्ठ नेता हरिंदर सिंह लखोवाल ने कहा कि उन्होंने संसद और राज्य विधानसभाओं में सभी फसलों के लिए C2+50% के फॉर्मूले पर एमएसपी कानून बनाने की मांग की है. बेमौसम बारिश और बाढ़ को देखते हुए उन्होंने नमी के स्तर की छूट को 17% से बढ़ाकर 22% करने की मांग की. इसके अलावा, गन्ने का भाव 500 रुपये प्रति क्विंटल करने, बकाया भुगतान ब्याज सहित चुकाने और किसानों व खेतिहर मजदूरों के लिए पूर्ण कर्ज माफी की मांग भी रखी गई है.
किसानों ने बिजली विधेयक 2025 को वापस लेने, बिजली के निजीकरण को रोकने और स्मार्ट मीटर न लगाने की भी मांग की है. उन्होंने हाल ही में अधिसूचित चार लेबर कोड को रद्द करने और मनरेगा के तहत 200 दिन का काम व 700 रुपये दिहाड़ी सुनिश्चित करने की बात कही. साथ ही, बाढ़ और भूस्खलन को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने और हिमालयी क्षेत्रों में बिना पर्यावरण अध्ययन के कॉर्पोरेट संसाधनों की लूट पर सुप्रीम कोर्ट के जज से न्यायिक जांच की मांग की गई है.
निठारी कांड:
‘हमारे बच्चों को किसने मारा?’ - मुख्य आरोपियों के बरी होने पर माता-पिता का सवाल
नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड के लगभग 20 साल बाद, जब पुलिस ने ‘हाउस ऑफ हॉरर्स’ कहे जाने वाले एक बंगले के पास 19 महिलाओं और बच्चों के शव बरामद किए थे, यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में है. इसका कारण यह है कि इस जघन्य अपराध के लिए दोषी ठहराए गए आखिरी व्यक्ति, सुरेंद्र कोली को भी बरी कर दिया गया है. 12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कोली को उनके खिलाफ लंबित अंतिम मामले में यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनका इकबालिया बयान यातना देकर लिया गया था. इससे पहले, उनके नियोक्ता मोनिंदर सिंह पंधेर को भी 2023 में सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया था.
बीबीसी की रिपोर्टर गीता पांडेय ने निठारी का दौरा किया, जहां पीड़ितों के परिवारों का दर्द अब भी ताजा है. दो लोग, जो अब भी पड़ोस में रहते हैं, कोर्ट के आदेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं और पूछ रहे हैं- “अगर पंधेर और कोली ने नहीं मारा, तो हमारे बच्चों को किसने मारा?” यह मामला दिसंबर 2006 का है, जब नोएडा के एक अमीर इलाके में स्थित कोठी नंबर डी-5 के पास नाले से मानव कंकाल मिले थे. इस घटना ने भारत में अमीर और गरीब के बीच की गहरी खाई को उजागर किया था, क्योंकि पीड़ित मुख्य रूप से पास की निठारी झुग्गियों के गरीब प्रवासी परिवारों के बच्चे थे.
10 साल की बेटी ज्योति को खोने वाली सुनीता कनौजिया कहती हैं, “अगर वे निर्दोष हैं, तो वे 18 साल तक जेल में क्यों थे? भगवान उन्हें माफ नहीं करेगा जिन्होंने मेरी बेटी को मारा.” सुनीता के पति झब्बु लाल कनौजिया, जिन्होंने इन हत्याओं को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई थी, कोली के बरी होने की खबर से इतने निराश हुए कि उन्होंने केस से जुड़े वे सभी कागजात जला दिए जो उन्होंने सालों से जमा किए थे. वे कहते हैं, “मैं एक टूटा हुआ बूढ़ा आदमी हूं.”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में पुलिस और जांच एजेंसियों की कड़ी आलोचना की है. कोर्ट ने कहा कि जांच में “लापरवाही और देरी” हुई, जिससे असली अपराधी की पहचान नहीं हो सकी. कोर्ट ने यह भी कहा कि जांचकर्ताओं ने “घर के एक गरीब नौकर को फंसाकर और उसे राक्षस बताकर आसान रास्ता चुना” और अंग-व्यापार जैसे पहलुओं की जांच नहीं की.
पप्पू लाल, जिनकी आठ साल की बेटी रचना भी पीड़ितों में शामिल थी, कहते हैं कि जब वह लापता हुई थी तो पुलिस ने कहा था कि वह किसी प्रेमी के साथ भाग गई होगी. अब वह कोठी नंबर डी-5 वीरान पड़ी है. पप्पू लाल कहते हैं, “अब हमारी लड़ाई सरकार से है. क्या हमारे बच्चे भारत के बच्चे नहीं हैं?” हालांकि, कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अब पीड़ितों के पास बहुत कम विकल्प बचे हैं.
बंगाल में एसआईआर को लेकर पूर्व डीजीपी की फर्जी खबर, बांग्लादेशियों से जोड़ा
“ऑल्ट न्यूज़” के मोहम्मद ज़ुबैर ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) एसपी वैद की एक सोशल मीडिया पोस्ट का फैक्ट चैक कर दावा किया है कि वैद ने झूठी खबर दी थी. वैद ने पिछले दिनों अपने “एक्स” हैंडल पर एक वीडियो साझा करते हुए लिखा था, “पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का भारत-बांग्लादेश सीमा पर असर दिखाई पड़ता हुआ.” ज़ुबैर ने फ़ैक्ट चैक करते हुए “एक्स” पर लिखा-“जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी की फर्जी खबर. इस वीडियो का एसआईआर से कोई लेना-देना नहीं है. वीडियो में दिख रहे लोग बांग्लादेशी नहीं हैं. तथ्य यह है कि बंगाल के नदिया जिले में बांग्लादेश सीमा के पास एक गांव के लोगों का यह वीडियो, जिसमें वे माथाभांगा नदी में काली प्रतिमा विसर्जन में शामिल हो रहे हैं. जबकि इसे अवैध अप्रवासियों के राज्य से सामूहिक रूप से बाहर निकलने के रूप में साझा किया जा रहा है.”
आरएसएस का मज़ाक उड़ाने वाली कामरा की टी-शर्ट पर विवाद, तमतमाई बीजेपी ने दी चेतावनी
स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं. इस बार एक टी-शर्ट पहने हुए अपनी एक फोटो ऑनलाइन साझा करने को लेकर, जिसमें कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मज़ाक उड़ाया गया है. इस पोस्ट ने बीजेपी के भीतर इतना आक्रोश पैदा कर दिया कि भगवा पार्टी ने पुलिस कार्रवाई की चेतावनी दे डाली है.
“द टाइम्स ऑफ इंडिया” की खबर के अनुसार, यह विवाद तब भड़का जब कामरा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर संबंधित टी-शर्ट में अपनी एक फोटो पोस्ट की. उन्होंने फोटो का कैप्शन दिया ‘नॉट क्लिक्ड एट ए कॉमेडी शो’ (किसी कॉमेडी शो में क्लिक नहीं की गई), जो पिछले विवाद की ओर इशारा करता है, जिसने शिवसेना को नाराज़ कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप उनके कॉमेडी शो के स्थल को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था.
महाराष्ट्र के मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि सरकार ऐसी पोस्ट को नज़रअंदाज़ नहीं करेगी. उन्होंने कामरा की उस तस्वीर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चेतावनी दी, जिसमें बीजेपी के वैचारिक जनक आरएसएस के संदर्भ के साथ एक कुत्ते की छवि दिखाई गई थी, कि “पुलिस ऐसे आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करेगी.”
शिवसेना के कैबिनेट मंत्री संजय शिरसाट - जिनकी पार्टी बीजेपी की सहयोगी है - ने इस बार भगवा पार्टी को मज़बूती से जवाब देने के लिए कहा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दोनों पर कामरा के पिछले कटाक्षों को याद किया. शिरसाट ने कहा, “पहले, कामरा ने प्रधानमंत्री मोदी और एकनाथ शिंदे को निशाना बनाया था, और अब उन्होंने सीधे आरएसएस पर हमला करने की हिम्मत की है. बीजेपी को इसका जवाब देने की ज़रूरत है.”
उन्होंने आगे कहा, “हमने (शिवसेना ने) इसका जवाब दिया था (इस साल की शुरुआत में शिंदे पर कामरा की आलोचनात्मक टिप्पणियों का). अब, उन्होंने आरएसएस के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने की हिम्मत जुटाई है.”
राजनीतिक नेताओं के साथ कामरा का यह पहला टकराव नहीं है. मार्च में, उन्होंने एक लोकप्रिय हिंदी फिल्म गीत के बोल बदलकर एक शो के दौरान शिंदे का मज़ाक उड़ाया था, जिसके बाद एक तूफान खड़ा हो गया था. उनकी टिप्पणियों से नाराज़ होकर, शिवसेना कार्यकर्ताओं ने बाद में मुंबई के खार में हैबिटेट कॉमेडी क्लब - वह स्थल जहां कामरा ने शो किया था- के साथ-साथ उस होटल की इमारत में भी तोड़फोड़ की थी जिसमें वह स्थित है.
दिल्ली की जहरीली हवा: सीजेआई बोले, ‘बाहर टहलना भी मुश्किल हुआ’, वर्चुअल सुनवाई पर विचार का आश्वासन
देश की राजधानी दिल्ली की जहरीली हवा में अब भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को भी भारी दिक्कत हो रही है. लिहाजा सीजेआई सूर्यकांत ने बुधवार को टिप्पणी की कि दिल्ली के वायु प्रदूषण ने बाहर टहलना भी मुश्किल कर दिया है. उन्होंने कहा कि एक दिन पहले 55 मिनट टहलने के बाद उन्हें काफी बेचैनी महसूस हुई.
“लाइव लॉ” के मुताबिक, सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी द्वारा खराब स्वास्थ्य के कारण एसआईआर संबंधित सुनवाई से छूट मांगने पर सीजेआई सूर्यकांत ने यह टिप्पणी की. सीजेआई ने पूछा कि क्या उनकी स्थिति दिल्ली के मौसम से जुड़ी है, तो द्विवेदी ने सहमति व्यक्त की.
सीजेआई ने कहा, “मैं केवल टहलने का ही व्यायाम करता हूं. लेकिन अब वह भी मुश्किल है. कल मैं 55 मिनट तक चला, और सुबह तक मुझे परेशानी थी.”
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने इस चिंता का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने टहलना बंद कर दिया है. सिब्बल ने टिप्पणी की, “हमारी उम्र में यह दूषित हवा सांस लेना...” द्विवेदी ने जोड़ा कि उनकी स्वास्थ्य समस्याएं टहलने जाने के बाद शुरू हुईं.
जब सीजेआई ने सुझाव दिया कि शाम को टहलना आसान हो सकता है, तो सिब्बल ने इसके खिलाफ सलाह दी, यह देखते हुए कि शाम को भी वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 300-350 बना रहता है.
द्विवेदी ने तब अनुरोध किया कि सुनवाई को वर्चुअल मोड में स्थानांतरित कर दिया जाए. सिब्बल ने इस अनुरोध का समर्थन करते हुए कहा कि इसी तरह की याचिका पहले पूर्व सीजेआई बी. आर. गवई के समक्ष भी की गई थी.
सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि वह इस सुझाव पर विचार करेंगे, लेकिन बार से परामर्श करने के बाद ही. सीजेआई ने कहा, “अगर ऐसा कोई फैसला लिया जाता है, तो मैं बार को विश्वास में लेना चाहूंगा. द्विवेदी ने सुझाव दिया कि 60 वर्ष से अधिक आयु के वकीलों को, कम से कम प्रदूषण के स्तर में सुधार होने तक, भौतिक रूप से उपस्थित होने से छूट दी जाए. हाल ही में, जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने दिल्ली की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के मद्देनज़र वकीलों को वर्चुअल उपस्थिति का विकल्प चुनने की सलाह दी थी.
एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी, भारत के एक जिले को 220,000 एच-1बी वीज़ा मिले
संयुक्त राज्य अमेरिका के एक पूर्व कांग्रेसमैन और अर्थशास्त्री, डॉ. डेव ब्रैट ने एच- बी वीज़ा कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. उन्होंने दावा किया है कि एक भारतीय कांसुलर ने वीज़ा श्रेणी के लिए वार्षिक वैधानिक सीमा से दोगुने से भी अधिक का हिसाब दिया. स्टीव बैनन के “वॉर रूम” पॉडकास्ट पर की गई उनकी ये टिप्पणियां ऐसे समय में आई हैं, जब डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन कुशल-श्रमिक वीज़ा की अपनी जांच को बढ़ा रहा है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” की ऑनलाइन डेस्क के अनुसार, डॉ. ब्रैट ने तर्क दिया कि यह कार्यक्रम “औद्योगिक-स्तरीय धोखाधड़ी द्वारा कब्जा” कर लिया गया है, और उन्होंने भारत से आवेदकों की असंगत हिस्सेदारी की ओर इशारा किया.
उन्होंने कहा, “एच-1बी वीज़ा का 71 प्रतिशत भारत से आता है और केवल 12 प्रतिशत चीन से. यह आंकड़ा आपको तुरंत कुछ बता देता है.” उन्होंने आगे कहा, “एच-1बी वीज़ा की सीमा केवल 85,000 है, फिर भी भारत के एक ज़िले, मद्रास (चेन्नई) को 220,000 प्राप्त हुए. यह कांग्रेस द्वारा निर्धारित सीमा का ढाई गुना है. यही घोटाला है.”
रिपोर्टों के अनुसार, चेन्नई में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास ने 2024 में लगभग 220,000 एच-1बी वीज़ा और 140,000 एच-4 आश्रित वीज़ा संसाधित किए. यह वाणिज्य दूतावास तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना के आवेदकों को सेवा प्रदान करता है, जिससे यह विश्व स्तर पर सबसे व्यस्त एच-1बी प्रक्रिया केंद्रों में से एक बन गया है.
इस मुद्दे को संयुक्त राज्य अमेरिका में रोजगार से जोड़ते हुए, ब्रैट ने दावा किया कि कार्यक्रम का दुरुपयोग अमेरिकी श्रमिकों के लिए खतरा पैदा करता है. उन्होंने आरोप लगाया, “जब मैं एच-1बी वीज़ा कहता हूं, तो आपको अपने चचेरे भाइयों, अपनी चाची और चाचाओं, अपने दादा-दादी के बारे में सोचने की ज़रूरत है. इनमें से कोई एक आता है और दावा करता है कि वे कुशल हैं; वे नहीं हैं, यही धोखाधड़ी है.” पूर्व अमेरिकी राजनयिक ने ‘औद्योगीकृत’ वीज़ा धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए दावा किया, “उन्होंने बस आपके परिवार की नौकरी और आपकी गिरवी संपत्ति छीन ली.”
ब्रैट के दावे महवश सिद्दीकी के पहले के आरोपों की गूंज हैं, जो भारतीय मूल की एक अमेरिकी विदेश सेवा अधिकारी थीं, जिन्होंने लगभग दो दशक पहले चेन्नई वाणिज्य दूतावास में सेवा की थी. एक पॉडकास्ट पर बोलते हुए, सिद्दीकी ने एच-1बी कार्यक्रम में व्यापक और व्यवस्थित धोखाधड़ी का आरोप लगाया, यह दावा करते हुए कि भारतीय आवेदकों को जारी किए गए अधिकांश कामकाजी वीज़ा धोखाधड़ी से प्राप्त किए गए थे.
सिद्दीकी, जिन्होंने 2005 और 2007 के बीच इस पद पर कार्य किया, ने दुनिया के सबसे बड़े एच-1बी प्रक्रिया केंद्रों में से एक में अपने अनुभव को याद किया. उन्होंने उन दावों का हवाला दिया कि अकेले 2024 में मिशन ने आश्रित परिवार के सदस्यों के लिए 220,000 एच-1बी वीज़ा और 140,000 एच-4 वीज़ा का न्यायिक रूप से निर्णय किया.
उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीयों को जारी किए गए 80-90% वीज़ा, मुख्य रूप से एच-1बी, में जाली दस्तावेज़ीकरण शामिल था, जिसमें गढ़े गए शैक्षणिक प्रमाण-पत्र या ऐसे आवेदक शामिल थे, जो अत्यधिक कुशल रोजगार की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते थे. उन्होंने कहा, “एक भारतीय-अमेरिकी के रूप में, मुझे यह कहते हुए नफरत है, लेकिन भारत में धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी सामान्य हो गई है.”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ आवेदकों ने अमेरिकी अधिकारियों द्वारा लिये जाने वाले साक्षात्कार से बचने की कोशिश की, जिससे कभी-कभी वास्तविक आवेदकों के स्थान पर प्रॉक्सी उम्मीदवार उपस्थित होते थे, और यह कि भारत में कुछ भर्ती प्रबंधकों ने वीज़ा आवेदनों का समर्थन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले नौकरी के प्रस्तावों के बदले में पैसे की मांग की.
बरसों बाद पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच अगले माह से सीधी उड़ानें
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच अगले महीने से सीधी उड़ानें शुरू होंगी, जो दोनों देशों के बीच संपर्क (कनेक्टिविटी) मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, “यह जानकारी ढाका के शीर्ष राजनयिक ने बुधवार (26 नवंबर, 2025) को दी.
‘पीटीआई’ के अनुसार, अधिकारी ने आगे कहा, “पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच कोई सीधी उड़ान नहीं थी. चूंकि इस वर्ष [2025 में] दोनों देशों के बीच संबंध सुधरे हैं, इसलिए हाल ही में दो पाकिस्तानी निजी एयरलाइनों को सीधी उड़ानों के लिए मंज़ूरी मिली है.”
सीजेआई ने कहा, ‘एनजेएसी’ को पुनर्जीवित कर कॉलेजियम को समाप्त करने की याचिका पर विचार करेंगे
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत ने बुधवार (26 नवंबर, 2025) को मौखिक रूप से कहा कि अदालत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को पुनर्जीवित करने और देश की संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने की मांग वाली एक याचिका पर विचार करेगी.
उल्लेखनीय है कि, ‘एनजेएसी’ ने संक्षेप में संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका के साथ-साथ सरकार को भी समान भूमिका दी थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था.
“द हिंदू” के अनुसार, याचिका, जिसमें केंद्र सरकार और कई राजनीतिक दलों के साथ-साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम को भी प्रतिवादी बनाया गया है, में यह प्रस्तुत किया गया है कि शीर्ष अदालत द्वारा ‘एनजेएसी’ को रद्द करना “एक बड़ी गलती थी क्योंकि इसका मतलब था कि चार न्यायाधीशों की राय से लोगों की इच्छा का प्रतिस्थापन हो गया.”
लाल किला विस्फोट: डॉ. नबी को पनाह देने वाला भी गिरफ्तार
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने लाल किला विस्फोट मामले के मुख्य आरोपी डॉ. उमर उन नबी को कथित तौर पर पनाह और लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करने के आरोप में फरीदाबाद में अल फलाह विश्वविद्यालय के पास धौज निवासी सोयब को गिरफ्तार किया है. यह विस्फोट 10 नवंबर को हुआ था.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, ‘व्हाइट-कॉलर’ आतंकी मॉड्यूल के हिस्से के रूप में, वह इस मामले में गिरफ्तार किया गया सातवां आरोपी है. सूत्रों ने दावा किया कि सोयब ने हमले से ठीक पहले उमर को कथित तौर पर शरण दी थी और उसकी आवाजाही में मदद की थी.
प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, “एनआईए बम विस्फोट के संबंध में विभिन्न सुरागों का पता लगाने में जुटी है, और हमले में शामिल अन्य लोगों की पहचान करने के प्रयास में संबंधित पुलिस बलों के समन्वय से राज्यों में तलाशी ले रही है.”
केरल बीजेपी के अध्यक्ष ने कहा, ‘मुसलमान हमें वोट नहीं देते, इसलिए कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है’
केरल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मंगलवार को कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में मुस्लिम प्रतिनिधित्व नहीं है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देता है. कोझिकोड में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चंद्रशेखर ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में मुस्लिमों की अनुपस्थिति के लिए बीजेपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. उन्होंने तर्क दिया कि यह स्थिति सीधे तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी को चुनावी समर्थन न देने वाले समुदाय का परिणाम है.
“मकतूब मीडिया” के मुताबिक, वर्तमान में हिंदू राष्ट्रवादी बीजेपी के पास संसद के किसी भी सदन में कोई मुस्लिम सांसद नहीं है, और नतीजतन, केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है.
चंद्रशेखर ने कहा, “मुस्लिम हमें वोट नहीं दे रहे हैं. यदि समुदाय हमारा समर्थन नहीं कर रहा है तो हम क्या कर सकते हैं? केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई मंत्री नहीं है, क्योंकि समुदाय से कोई सांसद नहीं है.” उन्होंने दावा किया कि अविश्वास बीजेपी की किसी भी गलती के कारण पैदा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, “वह विश्वास नहीं रहा है. इसका क्या कारण है? यह वह नहीं है, जो हमने किया. हमने किसी को ठेस नहीं पहुंचाई है.” चंद्रशेखर ने आगे मुस्लिमों के मतदान विकल्पों पर सवाल उठाया, “अगर मैं पूछूं कि मुस्लिम हमें वोट क्यों नहीं दे रहे हैं? वे कांग्रेस को वोट क्यों दे रहे हैं? क्या कांग्रेस को वोट देने से कोई फायदा है?” उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि बीजेपी और एनडीए में अतीत में मुस्लिम प्रतिनिधित्व था, उन्होंने शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नक़वी जैसे नेताओं का हवाला दिया, और जोड़ा कि पार्टी में अभी भी कश्मीर से प्रतिनिधित्व है.
दिल्ली प्रदूषण प्रदर्शन पर ‘नक्सल लिंक’ का आरोप, पुलिस कार्रवाई पर सवाल
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के ख़िलाफ़ इंडिया गेट पर हुआ एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन अचानक कैसे आपराधिक मुक़दमों, पुलिस हिंसा के आरोपों और “माओवादी लिंक” के दावे वाले विवाद में बदल गया, इस पर ‘स्क्रॉल’ में लंबी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. रिपोर्ट के अनुसार, यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन एक घंटे बाद तब हिंसक हो गया जब कुछ लोगों ने सीपीआई (माओवादी) कमांडर मदवी हिडमा की मौत को लेकर नारे लगाने शुरू कर दिए. हालांकि, हिरासत में लिए गए छात्रों के वकील ने पुलिस पर प्रदूषण विरोधी प्रदर्शन को “नक्सल समर्थक” बता कर मुद्दे को भटकाने का आरोप लगाया है.
यह प्रदर्शन ‘दिल्ली फॉर क्लीन एयर’ बैनर के तहत किया गया और एक घंटे तक सिर्फ दिल्ली की ख़राब होती हवा पर केंद्रित था, लेकिन स्थिति तब बदली जब कुछ लोगों ने बैरिकेड पार कर हिडमा की मौत को लेकर नारे लगाए. इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया. एक नाबालिग समेत कुल 23 लोगों को हिरासत में लिया गया. इस मामले में दो एफआईआर दर्ज की गईं. एक में आरोप है कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने “प्रो-नक्सल” नारे लगाए, और दूसरी में कहा गया कि प्रदर्शनकारियों ने “आतंकवाद और नक्सलवाद समर्थक नारे” लगाए और पुलिस का रास्ता रोका.
वकीलों का आरोप है कि पुलिस हिरासत में छात्रों को मारा-पीटा गया. अदालत में पेश किए गए एक छात्र अक्षय ई.आर. के चेहरे, नाक, सीने, पीठ और हाथों पर चोट के निशान थे. उन्होंने बताया कि चोटें इतनी गंभीर थीं कि छात्र चल भी मुश्किल से पा रहा था. सोशल मीडिया पर उसकी पिटाई की तस्वीरें वायरल हो गईं. न तो परिवारों को सूचना दी गई और न ही हिरासत का कारण बताया गया, जिससे सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ. संगठनों का कहना है कि कथित “गोदी मीडिया” ने पूरे विरोध को नक्सल समर्थक बताकर गलत तरीके से पेश किया.
मध्यप्रदेश में पुलिस सुरक्षा में निकली दलित दुल्हन की बिंदोली, राजपूतों को रास्ते पर दिक्कत थी
द ऑब्ज़र्वर पोस्ट के मुताबिक़, मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के लक्ष्मा खेड़ी गांव में सोमवार रात एक दलित दुल्हन की बिंदोली (पारंपरिक बारात) को पुलिस सुरक्षा में निकालना पड़ा. आरोप है कि राजपूत समाज के कुछ लोगों ने रास्ता रोक दिया और परिवार को जातिसूचक गालियां दीं.
जानकारी के अनुसार, सब्ज़ी बेचकर परिवार चलाने वाले सुरेश कटारिया अपनी बेटी ऋतु की बिंदोली निकाल रहे थे. जैसे ही बिंदोली राजपूत समाज से ताल्लुक़ रखने वाले बापू सिंह के घर के पास पहुंची, उसने इसका विरोध किया. और कुछ ही देर में इसी समाज के अन्य लोगों ने कथित तौर पर दलित परिवार को गालियां देते हुए रास्ता रोक दिया.
सूचना मिलते ही पुलिस ने सुरक्षा घेरा बनाकर दुल्हन की बिंदोली तय रास्ते से आगे बढ़ाई.
अपनी शिकायत में सुरेश कटारिया ने कहा, “हम बेटी की बिंदोली निकाल रहे थे, तभी कुछ लोगों ने रास्ता रोक दिया और हमारे साथ बदतमीज़ी की और हमारे लिए जातिसूचक अपशब्दों का उपयोग किया.” पुलिस ने आरोपियों के ख़िलाफ़ भारतीय न्याय संहिता की धारा 176 और एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है.
सबरीमाला यात्रा में बढ़ते हार्ट अटैक: तेज़ चढ़ाई और पुरानी बीमारियां बड़ी वजह
“द हिंदू” की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ केरल के सबरीमाला तीर्थ यात्रा के दौरान इस वर्ष असामान्य रूप से तेज़ी से दिल से जुड़ी बीमारी की वजह से हुईं मौतों ने स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन दोनों को गंभीर चिंता में डाल दिया है. अधिकारियों के अनुसार, हर साल लगभग दो महीने चलने वाली इस यात्रा में दिल का दौरा पड़ने की औसतन 150 घटनाएं और इनमें से लगभग 40 से 42 मौतें दर्ज होती हैं. लेकिन इस बार रफ्तार काफी तेज है. यात्रा शुरू होने के सिर्फ आठ दिनों में ही आठ श्रद्धालुओं की हृदय संबंधी वजहों से मौत हो चुकी है, साथ ही एक व्यक्ति की डूबने से मौत हुई है.
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बिपिन गोपाल के अनुसार, ज़्यादातर मामलों में लोगों को पहले से ही बीपी, शुगर या अन्य पुरानी बीमारियां होती हैं, और उनकी उम्र भी आमतौर पर 40 से 60 साल के बीच होती है. लगभग सभी हार्ट अटैक अचानक तब होते हैं जब लोग तेज़ी से चढ़ाई करते हैं और शरीर पर ज़्यादा ज़ोर पड़ता है. कई श्रद्धालु रास्ते में ही गिर पड़ते हैं और अस्पताल पहुँचने से पहले उनकी मौत हो जाती है. इसके बावजूद, हर साल जितनी मौतें होती हैं, स्वास्थ्य विभाग उतने लोगों की तुलना में लगभग दो गुना लोगों की जान बचाने में भी कामयाब होता है.
कार्डियोलॉजिस्ट बताते हैं कि जिन लोगों की जीवनशैली सामान्य हो और वे अचानक कठिन चढ़ाई जैसे भारी शारीरिक परिश्रम करें, उन्हें हार्ट अटैक या हृदय गति रुकने का ख़तरा बढ़ जाता है. नीलिमला–अप्पाचीमेडु क्षेत्र की चढ़ाई विशेष रूप से कठिन है, और कई श्रद्धालु बिना रुके इसे पूरा करने की कोशिश करते हैं, जो ख़तरनाक साबित होता है. स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि श्रद्धालुओं को बीच-बीच में पर्याप्त ब्रेक लेना चाहिए और अपनी नियमित दवाएं नहीं छोड़नी चाहिए.
ट्रंप के सहयोगी विटकॉफ की क्रेमलिन के साथ कॉल किसने लीक की?
ब्लूमबर्ग की एक विशेष रिपोर्ट ने यह खुलासा किया है कि कैसे डोनाल्ड ट्रंप के सहयोगी स्टीव विटकॉफ ने क्रेमलिन (रूसी सरकार) को ट्रंप के करीब आने के तरीके सिखाए. यह लीक न केवल विटकॉफ की संदिग्ध वफादारी को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि इतनी संवेदनशील कॉल लीक किसने की. द गार्जियन के रिपोर्टर शॉन वॉकर इस मामले का विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि ब्लूमबर्ग की कहानी दो इंटरसेप्ट की गई फोन कॉल्स पर आधारित है: एक विटकॉफ और पुतिन के शीर्ष सहयोगी यूरी उशाकोव के बीच, और दूसरी उशाकोव और किरिल दिमित्रिएव के बीच.
दिलचस्प बात यह है कि उशाकोव ने बुधवार को इन रिकॉर्डिंग्स की प्रामाणिकता की पुष्टि की, हालांकि उन्होंने दावा किया कि इसका कुछ हिस्सा “फर्जी” है. उन्होंने संकेत दिया कि ये कॉल व्हाट्सएप पर की गई हो सकती हैं. सवाल यह है कि इस संवेदनशील ऑडियो को लीक करने का अत्यधिक असामान्य कदम किसने उठाया?
पूर्व सीआईए मॉस्को स्टेशन प्रमुख डैनियल हॉफमैन के अनुसार, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. रूस द्वारा इसे लीक करने की संभावना कम है क्योंकि विटकॉफ उनके लिए एक मित्रवत वार्ताकार हैं. यूक्रेन के पास इसे सार्वजनिक करने का मकसद हो सकता है ताकि विटकॉफ की स्थिति कमजोर की जा सके, लेकिन अगर वे पकड़े गए तो अमेरिका के साथ उनके संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है.
एक वरिष्ठ पूर्व खुफिया अधिकारी का मानना है कि सबसे अधिक संभावना यह है कि यह लीक अमेरिकी तंत्र के भीतर से आया है. अधिकारी ने कहा, “मेरा दृढ़ संदेह है कि यह अमेरिकी पक्ष से आया है, और यदि ऐसा है, तो सीआईए (CIA) और एनएसए (NSA) जैसी दो संस्थाएं ऐसा करने में सक्षम हैं.” अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के भीतर कई लोग वर्तमान प्रशासन और विटकॉफ की रूस समर्थक स्थिति से नाखुश हो सकते हैं. ब्लूमबर्ग को कॉल का ऑडियो मिलना (केवल ट्रांसक्रिप्ट नहीं) यह सुझाव देता है कि स्रोत या तो सीधे खुफिया संग्रह में शामिल था या काफी वरिष्ठ था.
अमेरिकी सीनेटर ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों पर चिंता जताई
अमेरिका के एक प्रमुख सीनेटर ने पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार, दमन और भेदभावपूर्ण नीतियों को लेकर गंभीर चिंता जताई है. द हिन्दू ने अपनी एक आर्टिकल में बताया कि पाकिस्तान की मानवाधिकार संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हिंसा, जबरन धर्मांतरण और हिंदू व ईसाई नाबालिग लड़कियों की जबरन शादी के मामलों में ख़तरनाक बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
अमेरिकी सीनेट की विदेशी संबंध समिति के अध्यक्ष सीनेटर जिम रिश ने मंगलवार (25 नवंबर 2025) को सोशल मीडिया पर लिखा, “पाकिस्तानी सरकार अल्पसंख्यकों पर ब्लास्फेमी क़ानून और भेदभावपूर्ण नीतियाँ लागू कर धार्मिक स्वतंत्रता को दबा रही है.
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की अगस्त में जारी रिपोर्ट स्ट्रीट ऑफ़ फियर :फ़्रीडम ऑफ़ रिलिजन और बिलीफ इन 2024/25’ में अहमदिया, हिंदू और ईसाई समुदायों के ख़िलाफ़ दमन, मॉब लिंचिंग और ब्लास्फेमी के आरोपों पर भीड़ द्वारा हत्या के मामलों की बढ़ती घटनाओं को उजागर किया गया है.
रिश ने कहा कि पाकिस्तान में “असहिष्णुता का माहौल, मॉब लिंचिंग, नफरत फैलाने वाले भाषण, मनमानी तरीके से गिरफ्तारी और जबरन धर्मांतरण जैसे मामले अक्सर नज़र आते रहते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में नागरिक स्वतंत्रता लगातार घट रही है और कट्टरपंथी तत्व अधिक सक्रिय हो गए हैं, जिसके कारण मुख्य न्यायाधीश और जनप्रतिनिधियों तक के ख़िलाफ़ धमकी भरे भाषण बढ़े हैं.
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने पाकिस्तान सरकार से मांग की है कि ब्लास्फेमी के झूठे मामलों में फँसाए जाने की जाँच के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों के आधार पर एक जाँच आयोग बनाया जाए.
विश्लेषण दिल्ली यूनवर्सिटी
अपूर्वानंद : छात्र नेता द्वारा शिक्षक पर हमले के प्रति दिल्ली विश्वविद्यालय की कमज़ोर प्रतिक्रिया
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में एक शिक्षक पर हमला किया गया—प्रिंसिपल के दफ़्तर के अंदर, पूरी तरह सार्वजनिक नज़र में. इसके लिए आरोपी दीपिका झा को दो महीने के लिए निलंबित कर दिया गया है. वह कोई आम छात्रा नहीं हैं. दीपिका झा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्य हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की पदाधिकारी हैं. प्रशासन द्वारा अपना फ़ैसला घोषित करने के बाद कैंपस एक अजीब सी ख़ामोशी में डूब गया है. फिर भी आप शिक्षकों के एक वर्ग में बेचैनी महसूस कर सकते हैं जो शांत होने से इनकार कर रहा है.
यह बेचैनी इस एहसास से आती है कि प्रशासन ने महज़ एक रस्म अदायगी की है, कि यह सज़ा प्रतीकात्मक है, एक इशारा जो यह दिखाने के लिए है कि कोई दंडात्मक क़दम उठाया गया है. दो महीने के निलंबन का वास्तव में क्या मतलब है? कई लोग कहते हैं कि जो अपराध किया गया है वह कहीं ज़्यादा गंभीर है और इसकी तुलना में सज़ा बहुत मामूली है. जिस शिक्षक पर हमला हुआ, उनके लिए तो यह तथाकथित सज़ा और भी अपमानजनक है. और हम यह नहीं भूल सकते कि हमला पूरी कहानी नहीं था. जब इसकी ख़बर फैली तो दीपिका ने शिक्षक के ख़िलाफ़ आरोप लगाकर अपने कृत्य को सही ठहराने की कोशिश की—ऐसे आरोप जो उनकी ओर से यौन दुराचार की सीमा को छूते हैं. और आरोप जोड़े गए, शायद इस उम्मीद में कि शिक्षक की कोई कथित “नैतिक विफलता” का इस्तेमाल करके हिंसा को समझाया जा सके. उसने और छात्र संघ में एक सहयोगी ने खुलकर शिक्षक के चरित्र पर हमला किया. तो हम केवल एक शारीरिक हमले से नहीं निपट रहे हैं; चरित्र हनन या मानहानि का सार्वजनिक अपराध भी है. इसके लिए उचित सज़ा क्या है? दीपिका एक शक्तिशाली छात्र संगठन से संबंधित हैं. उनके प्रति सहानुभूति रखने वाले शिक्षकों ने भी इस अभियान में अपनी आवाज़ दी. क्या अब शिक्षक को सम्मान के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना होगा?
यह घटना मेरी याद में एक और घटना ले आई जो दशकों पहले हुई थी, दिल्ली से बहुत दूर, सीवान के डीएवी कॉलेज में. मेरे पिता वहाँ वनस्पति विज्ञान पढ़ाते थे. उन पर कैंपस में शहाबुद्दीन के गुंडों ने हमला किया था. हमले के पीछे की कहानी लंबी है और यहाँ प्रासंगिक नहीं है. जो मायने रखता है वह यह है कि यह कॉलेज के अंदर हुआ. प्रशासन ने उन्हें प्राथमिक उपचार भी नहीं दिया. वे अकेले ख़ून से लथपथ घर आए. कॉलेज ने एफ़आईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया. दीपिका के हमले के बाद भी प्रशासन ने कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की.
दोनों घटनाओं में निश्चित रूप से अंतर है. मेरे पिता के सिर पर पिस्तौल के बट से वार किया गया था. उनका इरादा उन्हें मारने का नहीं था. फिर भी घाव गहरा था; उनके कपड़े ख़ून में भीग गए थे. विचार शिक्षकों को आतंकित करने का था. वर्तमान मामले में कोई ख़ून नहीं बहा. बस एक हाथ उठाया गया. शिक्षक को कोई गंभीर शारीरिक चोट नहीं आई. तो फिर समानुपातिक सज़ा क्या होनी चाहिए?
ऐसे पलों में शिक्षक ख़ुद को नैतिक दुविधा में पाते हैं. क्या वे इतने क्रूर हैं कि एक छात्र के ख़िलाफ़ पुलिस रिपोर्ट दर्ज करें? क्या छात्र उनके बराबर हैं? क्या शिक्षकों को ही एक युवा व्यक्ति का भविष्य बर्बाद करना चाहिए? क्या दीपिका कुछ नरमी की हक़दार नहीं हैं?
ये सभी सवाल उचित हैं. कुछ ही शिक्षक, यदि कोई हैं, छात्रों को दंडात्मक व्यवस्थाओं के हवाले करना चाहेंगे. वे उम्मीद करते हैं कि छात्र आत्मचिंतन करेगा, कि उसके भीतर की हिंसा को संबोधित किया जाएगा. सज़ा शायद ही कभी ऐसे आत्मचिंतन को पोषित करती है. विश्वविद्यालयों से अपेक्षा की जाती है कि वे छात्रों को आत्म-परीक्षण के उपकरण प्रदान करें. क्या सज़ा वह काम कर सकती है?
यह सब ठीक है. फिर भी इस ख़ास मामले में क्या हम इसे एक शिक्षक और छात्र के बीच का मामला भी कह सकते हैं? दीपिका इस शिक्षक की छात्रा नहीं हैं. यहाँ तक कि उस कॉलेज की भी छात्रा नहीं. और उनकी शक्ति उनसे कहीं अधिक है. वह छात्र संघ की पदाधिकारी हैं और सत्ताधारी पार्टी के छात्र विंग के साथ उनका जुड़ाव उन्हें अतिरिक्त शक्ति देता है. कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दिखाई गई नरमी, कई शिक्षकों का मानना है, इसी संबद्धता से आती है. यहाँ शिक्षक ही कमज़ोर हैं.
चाहे कोई पुलिस रिपोर्ट या सख़्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात करे या न करे, विश्वविद्यालय प्रशासन को स्पष्ट रूप से यह कहना था कि ऐसे आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. वह संदेश कैसे दिया जाना चाहिए था? अब तक भेजे गए संकेत से बहुत कम विश्वास पैदा होता है. हालांकि, अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि इसने शिक्षकों के बीच जो विभाजन उजागर किया है. आरएसएस से जुड़े लोगों का मानना प्रतीत होता है कि मामला गंभीर नहीं है—कि इसे अपराध कहना ही अतिशयोक्ति है. अन्य शिक्षक अपना ग़ुस्सा निगलने के अलावा और क्या कर सकते हैं?
शिक्षक संघ ने अपना विरोध दर्ज किया है. लेकिन कई लोगों को लगता है कि चूंकि इसका नेतृत्व वैचारिक रूप से वर्तमान छात्र संघ के क़रीब है, इसलिए यह अपनी नाराज़गी व्यक्त करने की औपचारिकता से आगे नहीं बढ़ेगा. कैंपस में नतीजतन आप महसूस कर सकते हैं कि बेचैनी है. मुझे फिर से डीएवी कॉलेज की याद आ रही है. तब भी बिहार शिक्षक संघ ने शिक्षकों के ख़िलाफ़ हिंसा के विरुद्ध मज़बूत रुख़ लेने से इनकार कर दिया था. मेरे पिता पर हमले के बाद कॉलेज छह हफ़्ते के लिए बंद हो गया. जब यह दोबारा खुला तो यह वही संस्थान नहीं रहा.
लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा है.
अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाते हैं और यह लेख इंडिया केबल से लिया गया.
विश्लेषण | रक्षा
सुशांत सिंह : खोखली स्वायत्तता
जब तक भारतीय उस राजनीतिक नेतृत्व को नहीं चुनते जिसके वे हक़दार हैं, रक्षा विनिर्माण—दिल्ली के प्रदूषण की तरह—देश की सबसे स्पष्ट शासन विफलता बनी रहेगी
लेफ़्टिनेंट-जनरल राहुल आर. सिंह, सेना के उप प्रमुख, जुलाई 2025 में “नई युग की सैन्य प्रौद्योगिकियों” पर फ़िक्की सेमिनार में रक्षा उद्योग के सामने खड़े थे, ऑपरेशन सिंदूर समाप्त होने के कुछ हफ़्ते बाद. उन्होंने अप्रैल से एक रोचक प्रसंग का वर्णन किया, इससे पहले कि ऑपरेशन सामने आता. उन्होंने भारत के ड्रोन निर्माताओं से एक सीधा सवाल पूछा था. आप में से कितने निर्धारित समय के भीतर उपकरण प्रदान कर सकते हैं? कई हाथ आत्मविश्वास से ऊपर उठे. फिर उन्होंने एक सप्ताह बाद उन्हें वापस बुलाया. कुछ भी नहीं आया, उन्होंने कहा. एक भी उपकरण नहीं.
कारण यह था कि भारत के निर्माता महत्वपूर्ण घटकों के लिए देश के बाहर से आयात पर निर्भर थे. जब वे आयात नहीं हुए तो कुछ भी नहीं दिया जा सका. अप्रैल में जो हाथ उठे थे, एक हफ़्ते बाद ख़ाली हाथ नीचे आ गए. इस बहरा कर देने वाली ख़ामोशी ने आज निजी क्षेत्र में भारत की स्वदेशी रक्षा विनिर्माण क्षमताओं की स्थिति के बारे में सब कुछ बता दिया.
रक्षा स्टाफ़ के प्रमुख, जनरल अनिल चौहान, इस महीने रक्षा उद्योग के सामने एक विचार-मंथन सत्र में खड़े हुए और बिना किसी माफ़ी या अस्पष्टता के आत्मनिर्भरता की बयानबाज़ी को तीखेपन से काट दिया. जब सेना ने हाल ही में आपातकालीन ख़रीद आदेशों की तलाश की तो उन्होंने पाया, उन्होंने उद्योग नेताओं से स्पष्ट रूप से कहा, कि “ज़्यादातर लोगों ने चीज़ों का अत्यधिक वादा किया है और वे उस समय सीमा में देने में विफल रहे हैं. रक्षा सुधार एक तरफ़ा रास्ता नहीं है. उद्योग को हमारे प्रति अपनी क्षमताओं के बारे में सच्चा होना होगा. आप हमें मुसीबत में नहीं छोड़ सकते. आप एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करते हैं और आप उस विशेष समय पर नहीं देते. यह एक क्षमता है जो खो रही है.” संदेश स्पष्ट और तीखा था.
सबसे घातक स्वदेशी सामग्री के झूठे दावों पर उनकी टिप्पणी थी. “बहुत से उद्योग कहते हैं कि यह 70 प्रतिशत स्वदेशी है, लेकिन वास्तव में, यदि आप पता लगाएँ तो ऐसा नहीं है. आपको अपनी स्वदेशी क्षमताओं के बारे में सच्चा होना होगा. सुरक्षा से संबंधित मुद्दे हो सकते हैं,” उन्होंने स्पष्ट निराशा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गहरी चिंता के साथ कहा. उनका संदेश स्फटिक स्पष्ट और असंदिग्ध था. भारत का निजी रक्षा क्षेत्र केवल अकुशल या धीमा नहीं है. यह मूलभूत रूप से बेईमान है, जिसके भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए गंभीर निहितार्थ हैं.
ऐसा नहीं कि सार्वजनिक क्षेत्र का रक्षा विनिर्माण कोई बेहतर है. एयर चीफ़ मार्शल एपी सिंह ने एरो इंडिया 2025 में तेजस लड़ाकू विमान के निर्माता हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बारे में तीखी निराशा व्यक्त की थी. “कोई विश्वास नहीं,” उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा. तेजस एमके 1ए जेट्स, जिन्हें फ़रवरी 2025 तक दिया जाना था, महीनों बाद भी लंबित हैं. सिंह ने उस लापरवाह ‘हो जाएगा’ रवैये से घृणा व्यक्त की जो एचएएल की संगठनात्मक संस्कृति और कार्य दर्शन में व्याप्त है. उन्होंने कहा कि एचएएल मिशन मोड में काम नहीं कर रहा था. 1984 से चार दशक के प्रयास और भारत की चौथी पीढ़ी की लड़ाकू परियोजना अभी भी समय से बहुत पीछे है. इस निराशाजनक रिकॉर्ड की तुलना चीन से करें, जिसने पिछले साल उन्नत क्षमताओं वाले अपने छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के प्रोटोटाइप उड़ाए.
ये प्रसंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुप्रचारित आत्मनिर्भर भारत की बयानबाज़ी और भारत के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र की देखी गई वास्तविकता के बीच बढ़ते अंतर को उजागर करते हैं. 2014 से बयानबाज़ी लगातार रही है. आत्मनिर्भरता. स्व-निर्भरता. मेक इन इंडिया. स्थानीयकरण. स्वदेशी सामग्री. फिर भी प्रत्येक सैन्य ऑपरेशन और प्रत्येक विनिर्माण देरी अधूरी आकांक्षाओं और बार-बार टूटे वादों की एक बिल्कुल अलग कहानी बताती है.
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ब्रह्मोस मिसाइल और एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की भारत की तैनाती का बहुत प्रचार किया गया. इन हथियारों को भारतीय सैन्य कौशल और तकनीकी उपलब्धि के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया गया. वास्तविकता मूलभूत रूप से अलग है. ब्रह्मोस रूसी घटकों के बिना दागा नहीं जा सकता. रूस ब्रह्मोस एयरोस्पेस में 49.5% हिस्सेदारी रखता है और रैमजेट इंजन सहित महत्वपूर्ण घटकों की आपूर्ति करता है. एस-400 प्रणाली जिसने भारत की वायु रक्षा छतरी प्रदान की, पूरी तरह से रूसी है. दिल्ली मॉस्को को पहले से अनुबंधित बैटरियाँ समय पर देने के लिए भी नहीं उकसा सकता.
फिर भी ऑपरेशन सिंदूर की कथा से एक और अधिक रोचक अनुपस्थिति थी. भारत के स्वदेशी रूप से निर्मित तेजस लड़ाकू को किसी सार्थक हमले की भूमिका में तैनात नहीं किया गया. यह भारत के स्वदेशी लड़ाकू कार्यक्रम का केंद्रबिंदु है. जब सैन्य योजनाकारों को परिणामों की ज़रूरत थी तो उन्होंने फ़्रांसीसी राफ़ेल, रूसी सु-30 एमकेआई और ब्रह्मोस की ओर रुख़ किया. उन्होंने तेजस की ओर रुख़ नहीं किया.
इसका 21 नवंबर को दुबई एयर शो में जो हुआ उससे कोई लेना-देना नहीं है जब एक तेजस एरोबैटिक युद्धाभ्यास के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और लड़ाकू पायलट की मृत्यु हो गई. एचएएल की विनिर्माण और रखरखाव उत्कृष्टता के बारे में उठाए गए सवालों का जवाब दुर्घटना के बाद इतनी जल्दी नहीं दिया जा सकता जब तक कि विस्तृत जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती. तेजस की क्षमताएँ जो हैं वे हैं और वे सभी हितधारकों को ज्ञात हैं. बात परियोजना में देरी और एचएएल की अपने शेड्यूल पर टिके रहने में असमर्थता के बारे में है.
तेजस अपने पूरे एयरफ़्रेम और सिस्टम में महत्वपूर्ण आयातित घटकों पर निर्भर करता है. यह विशेष रूप से अमेरिकी जनरल इलेक्ट्रिक एफ़404-आईएन20 इंजन का उपयोग करता है, जो उन्नत प्रशिक्षकों और हल्के लड़ाकू विमानों के लिए विकसित एफ़404 इंजन का एक संस्करण है. भारत ने कभी भी आधुनिक लड़ाकू जेट विमानों के लिए अपना स्वयं का युद्ध-योग्य टर्बोफ़ैन इंजन विकसित नहीं किया है. कावेरी परियोजना, जो 1986 में शुरू हुई थी, आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रही और 2008 में आधिकारिक तौर पर तेजस कार्यक्रम से अलग कर दी गई.
जेट इंजन का विकास एक जटिल प्रक्रिया है. वर्तमान में केवल चार देशों के पास अवधारणा से उड़ान तक आधुनिक सैन्य जेट इंजन डिज़ाइन और उत्पादन करने की सिद्ध क्षमता है. यहाँ तक कि एक शीर्ष स्तरीय जेट इंजन विकसित करने के बारे में चीन के दावों पर भी विवाद है. अधिक देशों के पास परमाणु हथियार हैं बजाय आधुनिक जेट इंजन विकसित करने की क्षमता के. इसके बारे में एक पल के लिए सोचें. इसीलिए कोई भी देश, चाहे वह कितना भी दोस्ताना हो, भारत को पूर्ण इंजन विनिर्माण प्रौद्योगिकी कभी हस्तांतरित नहीं करने वाला.
लेकिन भारत की परेशानियाँ एक वस्तु या एक मंच से परे जाती हैं. सैन्य अधिकारियों के इन हालिया बयानों ने रेखांकित किया है कि रक्षा स्वदेशीकरण एक कठिन समस्या है. यह प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण, संगठनात्मक क्षमता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और भू-राजनीतिक बाधाओं से उभरता है, सभी निरंतर तनाव में. कोई सरल समाधान उपलब्ध नहीं है. डींगें मारने वाली घोषणाएँ, आकर्षक नारे और पीआर चालबाज़ियों ने केवल इस मुद्दे को नुकसान पहुँचाया है.
भारत को डिज़ाइन और उत्पादन जवाबदेही को अलग करना चाहिए, अनुसंधान और विकास में बड़े पैमाने पर निवेश करना चाहिए, व्यवस्थित रूप से ख़रीद को तर्कसंगत बनाना चाहिए, व्यापक रूप से औद्योगिक आधार का निर्माण करना चाहिए और कठोरता से संस्थागत अनुशासन विकसित करना चाहिए. जब तक ये संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होते, मोदी के आत्मनिर्भर भारत और भारत की रक्षा विनिर्माण वास्तविकता के बीच का अंतर बना रहेगा.
जब मोदी के तहत भारत के जीडीपी में विनिर्माण का हिस्सा ही कम हो गया है तो रक्षा विनिर्माण कैसे आगे बढ़ सकता है? जब तक भारतीय उस राजनीतिक नेतृत्व को नहीं चुनते जिसके वे हक़दार हैं, रक्षा विनिर्माण—दिल्ली के प्रदूषण की तरह—देश की सबसे स्पष्ट शासन विफलता बनी रहेगी.
सुशांत सिंह येल विश्वविद्यालय में व्याख्याता हैं. यह लेख टेलीग्राफ में प्रकाशित हुआ.
भारत ने पुष्टि की, शेख हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध मिला, कानूनी प्रक्रियाओं के तहत हो रही है जांच
जयंत जैकब के मुताबिक, भारत ने बुधवार को इस बात की पुष्टि की कि उसे पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण के लिए बांग्लादेश से अनुरोध मिला है और कहा कि इस मामले की जांच न्यायिक और आंतरिक कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से की जा रही है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हम बांग्लादेश के लोगों के सर्वोत्तम हितों के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें उस देश में शांति, लोकतंत्र, समावेश और स्थिरता शामिल है, और इस संबंध में सभी हितधारकों के साथ रचनात्मक रूप से जुड़े रहेंगे.” उल्लेखनीय है कि हिंसक छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के बाद पिछले साल 5 अगस्त को उनकी सरकार के गिरने के बाद से हसीना भारत में निर्वासित जीवन जी रही हैं.
पिछले सप्ताह, ढाका में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने “मानवता के खिलाफ अपराधों”के लिए उन्हें मौत की सज़ा सुनाई थी. इस फैसले के बाद, बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने नई दिल्ली को एक औपचारिक पत्र में हसीना की वापसी का औपचारिक रूप से अनुरोध किया था. उन्हें “भगोड़ा आरोपी”बताते हुए द्विपक्षीय प्रत्यर्पण समझौते का हवाला दिया था.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.






