27/01/2025: चीन के खिलाफ भारत-इंडोनेशिया लामबंद, संघ को संविधान चाहिए या मनुस्मृति, ट्रम्प ने गाज़ा खाली करने और ग्रीनलैंड हड़पने की पेशकश की, सैफ का पेचीदा होता मामला, 'फिट्जी' की गहरी होती गुत्थी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां | 27 जनवरी 2025
समुद्री विवादों पर भारत और इंडोनेशिया में सहमति : भारत और इंडोनेशिया ने रविवार को एक बयान जारी किया, जिसमें दक्षिण चीन सागर में समुद्री विवादों को अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार हल करने की बात कही गई. इस बयान को चीन के लिए एक संदेश के रूप में देखा जा रहा है. इंडोनेशियाई राष्ट्रपति 23 से 26 जनवरी तक भारत की राजकीय यात्रा पर थे और 76वें गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि भी थे. दोनों नेताओं ने क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समुद्री सुरक्षा बनाए रखने पर जोर दिया. उन्होंने दक्षिण चीन सागर में आचरण की घोषणा को पूरी तरह से लागू करने और आचार संहिता को जल्द से जल्द पूरा करने का भी समर्थन किया. यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रवैये के कारण तनाव बढ़ रहा है. चीन के "नौ-डैश लाइन" के भीतर के दावे, इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया और ब्रुनेई दारुस्सलाम के विशेष आर्थिक क्षेत्रों के साथ ओवरलैप होते हैं. फिलीपींस ने 2016 में इस क्षेत्र में चीन के अधिकांश दावों को अमान्य करने वाला एक फैसला जीता था, जिसे चीन ने खारिज कर दिया था. हाल ही में, इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों को सार्वजनिक रूप से खारिज कर दिया था. भारत भी लगातार इस क्षेत्र में आचार संहिता पर बातचीत पूरी करने की बात कहता रहा है. पिछले साल, भारत ने फिलीपींस के प्रयासों का समर्थन किया था ताकि वह अपने विवादित जल में संप्रभुता बनाए रख सके. भारत और इंडोनेशिया दोनों ही चाहते हैं कि सभी देश समुद्र के लिए संयुक्त राष्ट्र के कानून का पालन करें, जिसे "समुद्र का संविधान" माना जाता है. इस संयुक्त बयान से स्पष्ट है कि दोनों देश इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित हैं और समुद्री विवादों को अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार हल करने के लिए एक साथ काम कर रहे हैं.

सैफ पर हमला : मौक़ा ए वारदात पर उंगलियों के निशान आरोपी के नहीं
“मिड डे” के अनुसार सैफ अली खान पर 16 जनवरी की रात हुए हमले के मामले में मुंबई पुलिस को बड़ा झटका लगा है. राज्य अपराध विभाग (सीआईडी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि घटनास्थल से लिये गए 19 फिंगरप्रिंट आरोपी मोहम्मद शरीफुल इस्लाम शहजाद के नमूनों से मेल नहीं खाते हैं. बता दें कि मुंबई पुलिस और क्राइम ब्रांच की 40 टीमों ने 72 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद बांग्लादेशी नागरिक शरीफुल इस्लाम को गिरफ्तार किया था. लेकिन सीआईडी की निगेटिव रिपोर्ट के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि मुंबई पुलिस ने कहीं गलत व्यक्ति को तो गिरफ्तार नहीं कर लिया है? याद रहे कि तीन दिन पहले आरोपी के पिता मोहम्मद रूहउल अमीन फकीर ने भी यह दावा किया था कि टीवी फुटेज में उसने जो चेहरा देखा है, वह उसके बेटे से मेल नहीं खाता है. इस बारे में सोशल मीडिया पर भी दावा किया जा रहा है कि सैफ अली की बिल्डिंग के सीसीटीवी फुटेज में दिख रहे चेहरे और गिरफ्तार आरोपी के चेहरे में अंतर है. लेकिन पुलिस ने इन सवालों और चिंताओं पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है. मिड डे के अनुसार आरोपी शरीफुल की सभी दस उंगलियों के निशान राज्य की सीआईडी के फिंगरप्रिंट ब्यूरो को भेजे गए थे.
एफआईआर की छूट, 25 लाख का कैशलेस इलाज भी तुरंत मंजूर
14 हजार से अधिक चिकित्सा पेशेवरों का प्रतिनिधित्व करने वाली एसोसिएशन ऑफ मेडिकल कंसल्टेंट्स (एएमसी) ने बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान के लीलावती अस्पताल में भर्ती होने के बाद ₹25 लाख के कैशलेस उपचार दावे की त्वरित मंजूरी पर चिंता जताई है. दरअसल, जमा करने के कुछ ही घंटों के भीतर मंजूर किए गए सैफ के बीमा दावे ने मशहूर हस्तियों के लिए विशेष उपचार की सुविधा के आरोपों को जन्म दिया है. यही कारण है कि एएमसी ने भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) से इस मामले की जांच की मांग की है. एएमसी ने आईआरडीएआई को लिखे एक पत्र में अपना असंतोष जाहिर करते हुए दावा प्रक्रिया को फुर्ती के साथ पूरा करने की आलोचना की है. एसोसिएशन ने बताया कि इस तरह की त्वरित मंजूरी साधारण पॉलिसीधारकों के लिए दुर्लभ होती है और कहा कि पक्षपातपूर्ण शर्तों और उपचार से मशहूर हस्तियों और हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों को ही लाभ होता है. उसका तर्क है कि इससे स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में असमानता पैदा होती है.
स्वास्थ्य बीमा विशेषज्ञ निखिल झा ने भी एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर दावा अनुमोदन प्रक्रिया की असमान प्रकृति पर जोर देते हुए इन चिंताओं को दोहराया है. उन्होंने कहा, आमतौर पर किसी भी पॉलिसीधारक के मामले में बीमा कंपनी को दावे का अनुमोदन करने के पहले कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों की जरूरत होती है. जैसे कि मेडिकोलीगल के मामलों में एफआईआर. लेकिन बीमा कंपनी ने मेडिकोलीगल केस होने के बावजूद एफआईआर की “छूट” प्रदान कर दी और बिना देर किए सैफ अली खान के इलाज के लिए लीलावती अस्पताल को ₹25 लाख की मंजूरी दे दी.
उत्तराखंड निकाय चुनाव : बीजेपी ने 11 में से 10 मेयर पद जीते
उत्तराखंड में नगर निकाय चुनावों में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की है. शनिवार को आए नतीजों में बीजेपी ने 11 में से 10 मेयर सीटें जीतकर नगर निगमों, नगर परिषदों और नगर पंचायतों में अपना दबदबा कायम किया. बाकी बची एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती, जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. गुरुवार को 11 नगर निगमों, 43 नगर परिषदों और 46 नगर पंचायतों के लिए मतदान हुआ था, जिसमें 65.4 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. कुल 5,405 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें 11 मेयर पदों के लिए 72, नगर परिषद अध्यक्ष के लिए 445 और नगर पार्षदों और सदस्यों के लिए 4,888 उम्मीदवार शामिल थे. बीजेपी ने जिन मेयर सीटों पर जीत हासिल की, उनमें देहरादून (सौरभ थपलियाल), ऋषिकेश (शंभू पासवान), काशीपुर (दीपक बाली), हरिद्वार (किरण जायसवाल), रुड़की (अनीता देवी), कोटद्वार (शैलेंद्र रावत), रुद्रपुर (विकास शर्मा), अल्मोड़ा (अजय वर्मा), पिथौरागढ़ (कल्पना देवलाल) और हल्द्वानी (गजराज बिष्ट) शामिल हैं.
आईआईटी का सपना, लाखों का धोखा, फिट्जी कठघरे में
द क्विंट हिंदी के लिए विकास कुमार और अविनाश कुमार ने कई शहरों में उन अभिभावकों से बात की, जिनके बच्चे फिट्जी में जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम यानी आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने के लिए भर्ती हुए. पर सबको लग रहा है कि उनके साथ धोखा हुआ. लेकिन करीब 8 महीने पहले इंदौर के सेंटर को अचानक से बंद कर दिया गया. वहां एफआईआर भी दर्ज हुई. उसके बाद अब प्रयागराज, गाजियाबाद, दिल्ली, वाराणसी, पुणे, भोपाल, थाणे और पटना के सेंटर को बंद करने की शिकायत आ रही है. बच्चे और अभिभावक परेशान हैं. रिपोर्ट में पटना के संजय कुमार का कहना है,’ उन्होंने ही पटना में फिट्जी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है.
उन्होंने बताया, "लगातार शिक्षकों की कमी थी, लेकिन संस्थान झूठा वादा कर फीस लेता रहा. फिर एक दिन अचानक सभी परिजनों को बुलाकर कहा कि अब संस्थान बंद हो रहा है. आपलोग अपने बच्चों को दूसरे संस्थान में ले जाइए. हमने नामांकन के समय 3 लाख 33 हजार रूपये फीस दी. फिट्जी ने अपने गुडविल और प्रचार माध्यम का प्रयोग करके छात्रों को अच्छी तैयारी का प्रलोभन देकर सभी का पैसा हड़प लिया.
फिलिस्तीनियों को गाज़ा, डेनमार्क को ग्रीनलैंड छोड़ने की पेशकश, ट्रम्प का दोनों जगह विरोध
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में दो विवादास्पद बयान दिए हैं, जिनसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंताएं बढ़ गई हैं. पहला बयान गाज़ा पट्टी में रहने वाले फ़िलिस्तीनियों के बारे में है. ट्रम्प ने सुझाव दिया है कि बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनियों को गाज़ा छोड़कर पड़ोसी देशों में चले जाना चाहिए ताकि "उस पूरे क्षेत्र को साफ़ किया जा सके". उन्होंने यह भी कहा कि वह अरब देशों के साथ मिलकर एक नई जगह पर फ़िलिस्तीनियों के लिए आवास बनाने में मदद करना चाहेंगे. ट्रम्प ने जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला से इस मुद्दे पर बात की और उनसे अधिक फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को स्वीकार करने का अनुरोध किया. हालांकि, फ़िलिस्तीनी नेताओं ने ट्रम्प के इस बयान को "जातीय सफ़ाई" के प्रयास के रूप में ख़ारिज कर दिया है.
ट्रम्प ने गाज़ा से लोगों को निकालने के बाद की योजना का खुलासा नहीं किया है, लेकिन कहा कि इस क्षेत्र को "पुनः अलग तरीके से बनाना" होगा. उन्होंने यह भी कहा कि वह गाजा को एक रियल एस्टेट संभावना के रूप में देखते हैं.
इसके अलावा, ट्रम्प प्रशासन ने इज़राइल को 2,000 पाउंड के बमों की खेप फिर से भेजने का आदेश दिया है. बाइडेन प्रशासन ने इन बमों की डिलीवरी को रोक दिया था, क्योंकि वे गाजा में नागरिकों के हताहत होने को लेकर चिंतित थे.
ट्रम्प का दूसरा विवादास्पद बयान ग्रीनलैंड पर नियंत्रण के बारे में है. उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि अमेरिका ग्रीनलैंड पर नियंत्रण कर लेगा और द्वीप के 57,000 निवासी "हमारे साथ रहना चाहते हैं." उन्होंने यह भी कहा कि ग्रीनलैंड का अधिग्रहण "दुनिया की स्वतंत्रता" के लिए ज़रूरी है. ट्रम्प ने डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन के साथ एक फोन कॉल के दौरान ग्रीनलैंड को खरीदने की कोशिश की और यूरोपीय अधिकारियों का कहना है कि ट्रम्प ने डेनमार्क को व्यापारिक बाधाओं से भी धमकाया था. ग्रीनलैंड के प्रधान मंत्री मुते एगेडे ने कहा है कि ग्रीनलैंड बिक्री के लिए नहीं है, लेकिन वे अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बनाने के लिए तैयार हैं. ग्रीनलैंड रणनीतिक रूप से अमेरिका और यूरोप के बीच स्थित है और जलवायु परिवर्तन के कारण इसके प्राकृतिक संसाधनों में दिलचस्पी बढ़ रही है.
पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में 4 को फांसी : 'द टेलिग्राफ' की खबर है कि एक पाकिस्तानी अदालत ने चार लोगों को फेसबुक पर ईशनिंदा सामग्री अपलोड करने के मामले में मौत की सजा सुनाई है. अदालत में बताया गया था कि दोषियों ने चार अलग-अलग आईडी से फेसबुक पर ईशनिंदा सामग्री अपलोड की थी. न्यायाधीश ने अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने और गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद उन्हें विभिन्न आरोपों पर मौत की सजा और प्रत्येक को 80 साल की कैद सुनाई. चारों पर 52 लाख पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी साइबर अपराध प्रकोष्ठ ने एक नागरिक, शिराज फारूकी, की शिकायत पर पीईसीए (इलेक्ट्रॉनिक अपराधों की रोकथाम अधिनियम) और पाकिस्तान दंड संहिता के तहत यह मामला दर्ज किया था. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, पाकिस्तान के ईशनिंदा कानूनों का अक्सर धार्मिक अल्पसंख्यकों और अन्य लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है, जो झूठे आरोपों का शिकार होते हैं, और यह कानून भीड़ को आरोपियों को धमकाने या मारने के लिए प्रेरित करता है.
एआई की जंग हुई तेज़ : द टेलिग्राफ' की खबर है कि मार्क जुकरबर्ग ने पूरे 2024 में निवेशकों को बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) उनकी कंपनी मेटा के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा. 2025 में, उन्होंने इस दिशा में बड़ा निवेश करने की योजना बनाई है. हाल ही में जुकरबर्ग ने कहा कि कंपनी को उम्मीद है कि 2025 में उसका पूंजीगत व्यय (कैपिटल एक्सपेंडिचर) लगभग ₹4.92 लाख करोड़ से ₹5.33 लाख करोड़ तक होगा, जो 2024 में किए गए लगभग₹3.12 लाख करोड़ से ₹3.28 लाख करोड़ खर्च की तुलना में एक बड़ी बढ़ोतरी है.
जेनिन में इजरायली गोलियां बच्चों को : इधर, 'अलजजीरा' की एक रपोर्ट के मुताबिक वेस्ट बैंक के जेनिन में इजरायली सैनिकों द्वारा गोली मारने से एक 2 साल की बच्ची की मौत हो गई. फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, बच्ची को सिर में गोली लगी. इजरायली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने कहा कि उसके सैनिकों ने आतंकवादियों को निशाना बनाते हुए एक इमारत पर गोलीबारी की. आईडीएफ ने एक बयान में कहा- "आईडीएफ को ऐसे दावों की जानकारी है कि इस गोलीबारी से गैर-लड़ाके भी प्रभावित हुए. घटना की समीक्षा की जा रही है."
गाजा लौटने की कोशिश कर रहे हजारों फिलिस्तीनियों को रोका : हमास ने इजरायल पर संघर्षविराम समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. संगठन का कहना है कि इजरायल ने सैकड़ों हजारों फिलिस्तीनियों को गाजा के उत्तरी हिस्से में उनके घरों में लौटने से रोक दिया है. इधर दक्षिण लेबनान में भी तनाव जारी है. संघर्षविराम समझौते के तहत इजरायली सेना को अपनी वापसी पूरी करनी थी, लेकिन इसी दौरान गोलीबारी में कम से कम तीन नागरिक और एक लेबनानी सैनिक मारा गया है.
ऑस्ट्रेलियन ओपन 2025 : सिनर और कीज को ताज : इटली के 23 साल के युवा जेनिक सिनर ने लगातार दूसरे साल ऑस्ट्रेलियन ओपन का खिताब अपने नाम किया. रविवार को विश्व नंबर एक खिलाड़ी सिनर ने नंबर दो खिलाड़ी एलेक्जेंडर ज्वेरेव को लगातार सीधे सेट में 6-3, 7-6 (7-4), 6-3 से मात दी. अमेरिका की मैडिसन कीज़ ने शनिवार को मेलबर्न में ऑस्ट्रेलियन ओपन के फाइनल में दो बार की गत चैंपियन आर्यना सबालेंका को 6-3, 2-6, 7-5 से हराकर अपना पहला ग्रैंड स्लैम खिताब जीता.
फुटबॉल महासंघ अध्यक्ष भाजपा नेता कल्याण चौबे पर अविश्वास
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) अध्यक्ष और भाजपा पदाधिकारी कल्याण चौबे के खिलाफ संघ के अधिकारी अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बना रहे हैं. यह पूरी योजना भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के दो वरिष्ठ राजनेताओं के दबाव पर निर्भर हैं. इनमें से एक राजनेता एआईएफएफ के पूर्व अध्यक्ष प्रफुल पटेल हैं, जबकि दूसरे वरिष्ठ भाजपा नेता और उत्तर भारत में एक फुटबॉल संघ के पदाधिकारी हैं. एआईएफएफ के पूर्व महासचिव शाजी प्रभाकरन भी इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. नवंबर 2023 में प्रभाकरन को उनके पद से बेवजह हटा दिया गया था. महासंघ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘द टेलिग्राफ’ को बताया, “हां, हम अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं. इसने गति पकड़ ली है और हमें कम से कम 24 संघों का समर्थन प्राप्त है.”
अधिकारियों ने ‘द टेलिग्राफ’ को बताया कि पूर्व गोलकीपर व अध्यक्ष चौबे से उनका कोई निजी विरोध नहीं है. वे व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे हैं. चौबे की वजह से फुटबॉल को नुकसान हो रहा है. महासंघ में व्याप्त सभी गड़बड़ियों के लिए उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. आलोचकों का आरोप है कि फीफा की ताजा रैंकिंग में 126वें स्थान पर मौजूद भारतीय फुटबॉल बद से बदतर होती जा रही है. वहीं चौबे खेमे का कहना है कि अध्यक्ष को हटाने की योजना बेकार की बात है.
वर्तमान में एआईएफएफ में 36 सदस्य संघ हैं. दो संबद्ध इकाइयों (तमिलनाडु और जम्मू और कश्मीर) के पास आंतरिक कलह के कारण मतदान अधिकार नहीं है.
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल पर राजद्रोह का आरोप
दक्षिण कोरियाई अभियोजकों ने महाभियोग का सामना कर रहे राष्ट्रपति यून सुक येओल पर उनके अल्पकालिक मार्शल लॉ लगाने के संबंध में रविवार को राजद्रोह का अभियोग लगाया. अगर दोषी ठहराया जाता है, तो उन्हें मौत या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है. यून पर 3 दिसंबर को मार्शल लॉ लगाने के कारण महाभियोग लगाया गया और गिरफ्तार किया गया था. देश में भारी राजनीतिक उथल-पुथल मच गई, जिससे दक्षिण कोरियाई राजनीति, वित्तीय बाजार और इसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि हिल गई. आपराधिक न्यायिक कार्यवाही से अलग, संवैधानिक न्यायालय अब इस बात पर विचार कर रहा है कि यून को औपचारिक रूप से राष्ट्रपति के रूप में बर्खास्त किया जाए या बहाल किया जाए. योंहाप समाचार एजेंसी सहित दक्षिण कोरियाई मीडिया आउटलेट्स ने बताया कि सियोल सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट अभियोजक कार्यालय ने यून पर विद्रोह का अभियोग लगाया है. 40 से अधिक वर्षों में दक्षिण कोरिया में पहली बार, मार्शल लॉ केवल छह घंटे तक चला. हालाँकि, इसने 1960 के दशक से 80 के दशक तक के पिछले तानाशाही नियमों की दर्दनाक यादें ताजा कर दीं, जब सैन्य-समर्थित शासकों ने विरोधियों को दबाने के लिए मार्शल लॉ और आपातकालीन आदेशों का उपयोग किया था.
टिप्पणी | जवाहर सरकार
संविधान या मनुस्मृति : आरएसएस को साफ करना चाहिए वह किस तरफ है
जवाहर सरकार राज्यसभा के पूर्व सांसद और भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं. उनका यह लेख ‘स्क्रोल’ में यहाँ प्रकाशित हुआ है. उसके कुछ चुनिंदा हिस्से
26 जनवरी, हमेशा से ही देश के लिए एक खास दिन रहा है. दिल्ली के राजपथ पर सरकार की शक्ति और वैभव का प्रदर्शन एक शानदार नज़ारा होता है. लेकिन इस चमक-दमक और भव्यता में अक्सर यह भूल जाते हैं कि हम यह दिन क्यों मनाते हैं.
26 जनवरी, 1950 को, भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के संविधान को लागू किया था और 1935 के ब्रिटिश काल के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट को बदला था. वैसे तो संविधान को 26 नवंबर, 1949 को स्वतंत्र भारत की संविधान सभा ने अपनाया था, लेकिन इसे 26 जनवरी, 1950 से लागू किया गया.
इस दिन को 21 तोपों की सलामी और देश के पहले राष्ट्रपति, राजेंद्र प्रसाद द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराकर मनाया गया था. 26 जनवरी की यह ऐतिहासिक तारीख 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में अपनाए गए पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की घोषणा को सम्मानित करने के लिए चुनी गई थी.
यह तीन महीने का समय भारतीय संविधान के लिए बहुत खास है, क्योंकि यह इसकी स्वीकृति और कार्यान्वयन के 75वें वर्ष को दर्शाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 नवंबर को पुराने संसद भवन के अचानक से चमकाए गए सेंट्रल हॉल में इस कार्यक्रम को पूरी गंभीरता के साथ मनाया. यह वही जगह थी जहाँ संविधान सभा ने संविधान बनाया था.
इस मौके पर बी.आर. आंबेडकर पर बहुत ध्यान दिया गया और उन्हें संविधान को आगे बढ़ाने के लिए खूब सराहा गया. इस अतिरिक्त प्रशंसा की ज़रूरत इसलिए थी, ताकि गृह मंत्री अमित शाह के पिछले महीने दिए गए उस भड़काऊ बयान पर पर्दा डाला जा सके जिसमें उन्होंने कहा था कि आंबेडकर का नाम लेना एक "फैशन" बन गया है.
लेकिन जहाँ यह मुद्दा शांत हो गया है, वहीं एक और विवाद को भी इतिहास के पर्दे के पीछे धकेलने की कोशिश की जा रही है. हम संघ परिवार की हमारी संविधान को मनुस्मृति या मनु के कानूनों से बदलने की इच्छा की बात कर रहे हैं - एक कानूनी पाठ जो पहली शताब्दी ईस्वी और तीसरी शताब्दी ईस्वी के बीच का माना जाता है.
यह जांचना ज़रूरी है कि हिंदुत्व संगठनों का शक्तिशाली परिवार - जिसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भी शामिल है - भारतीय संविधान पर क्या कहता है जिसका उसकी सरकार सार्वजनिक रूप से जश्न मना रही है.
मुस्लिम लीग की तरह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा ने भी मोहनदास गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की लगातार आलोचना की थी, अक्सर बहुत तीखी आलोचना की थी. ये समूह या तो इससे दूर रहे थे या इसका विरोध किया था. जब भारत को अंततः स्वतंत्रता मिली, तो आरएसएस ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज और संविधान का विरोध करना शुरू कर दिया.
17 जुलाई, 1947 को, स्वतंत्रता से ठीक एक महीने पहले, आरएसएस के प्रकाशन, ऑर्गनाइज़र ने राष्ट्रीय ध्वज के चयन पर संविधान सभा के फैसले की निंदा की. इसमें कहा गया था, "तिरंगे का सम्मान हिंदुओं द्वारा कभी नहीं किया जाएगा और इसे कभी अपनाया नहीं जाएगा." इसमें आगे कहा गया, “तीन शब्द अपने आप में एक बुराई है, और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित रूप से एक बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करेगा और देश के लिए हानिकारक है.”
इसने 31 जुलाई के अपने अंक और 14 अगस्त को स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भी इसी बात को दोहराया और जोर देकर कहा कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज के लिए हिंदू भगवा रंग चुना जाना चाहिए. सरदार पटेल, जो उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, ने हजारों आरएसएस कार्यकर्ताओं को 18 महीनों के लिए सलाखों के पीछे डाल दिया था. संविधान के विषय पर, आरएसएस और हिंदू महासभा दोनों ने और अधिक कटुता दिखाई. 30 नवंबर, 1949 को, संविधान सभा द्वारा भारत के नए संविधान को अपनाने के सिर्फ चार दिन बाद, ऑर्गनाइज़र ने घोषित किया कि "हमारे संविधान में, प्राचीन भारत में उस अद्वितीय संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है", यानी मनुस्मृति का कोई उल्लेख नहीं है.
इसमें आगे कहा गया कि आज भी, “मनुस्मृति में प्रतिपादित कानूनों की दुनिया प्रशंसा करती है और सहज आज्ञाकारिता और अनुरूपता प्राप्त होती है. लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है." ऑर्गनाइज़र के 6 फरवरी, 1950 के अंक में यह ऐलान किया गया था कि "मनु हमारे दिलों पर राज करते हैं." इसने मनुस्मृति के प्रति आरएसएस की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि यह "एक तथ्य है कि हिंदुओं का दैनिक जीवन आज भी मनुस्मृति और अन्य स्मृतियों में निहित सिद्धांतों और नियमों से प्रभावित है."
'इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है'
वीडी सावरकर, हिंदू महासभा के नेता, जिनकी मोदी सार्वजनिक रूप से पूजा करते हैं (और उनकी प्रचार मशीनरी इसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती है) ने भी सहमति व्यक्त की कि "भारत के नए संविधान के बारे में सबसे खराब बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है".
वे समझाते हैं, “मनुस्मृति वह ग्रंथ है जो हमारे हिंदू राष्ट्र के लिए वेदों के बाद सबसे अधिक पूजनीय है और जो प्राचीन काल से हमारी संस्कृति, रीति-रिवाजों, विचारों और आचरण का आधार बन गया है. यह पुस्तक सदियों से हमारे राष्ट्र के आध्यात्मिक और दिव्य मार्च को संहिताबद्ध करती रही है. आज भी करोड़ों हिंदुओं द्वारा अपने जीवन और आचरण में पालन किए जाने वाले नियम मनुस्मृति पर आधारित हैं. आज मनुस्मृति ही हिंदू कानून है.” (सावरकर के हिंदी में लेखन के संग्रह, खंड 4, प्रभात, दिल्ली में पृष्ठ 426).
स्वतंत्रता के दो दशक बाद भी, आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर ने अपनी पुस्तक ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में संविधान की आलोचना की थी. उन्होंने लिखा, "हमारा संविधान भी पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों से विभिन्न अनुच्छेदों को जोड़कर बनाया गया एक बोझिल और विषम जोड़ है." "इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हम अपना कह सकें. क्या हमारे राष्ट्रीय मिशन और जीवन का हमारा मुख्य स्वर क्या है, इस बारे में इसके मार्गदर्शक सिद्धांतों में एक भी शब्द का संदर्भ है? नहीं!"
क्या कहती है मनुस्मृति?
मनुस्मृति और महिलाओं के बारे में इसकी कुछ अपमानजनक टिप्पणियों पर एक संक्षिप्त नज़र डालते हैं. पुस्तक 2 के श्लोक 213, 214 और 215 में, यह महिलाओं को असाध्य बहकाने वाली बताती है और बुद्धिमान पुरुषों को उनसे बचने की चेतावनी देती है.
पुस्तक 3 के श्लोक 3 से 18 तक महिलाओं को वस्तुओं के रूप में बात करते हैं, उन्हें खुले तौर पर शरीर को शर्मसार करते हैं और सभी निचली जातियों की महिलाओं पर ब्राह्मण पुरुषों के अधिकारों को स्थापित करते हैं, लेकिन यह कहता है कि उन्हें निश्चित रूप से शूद्र महिलाओं से बचना चाहिए.
पुस्तक 3, श्लोक 340 "एक चांडाल [अछूत], एक सुअर, एक मुर्गा, एक कुत्ता और एक मासिक धर्म वाली महिला" को बराबर बताता है. पांचवीं पुस्तक पुरुषों की संपत्ति के रूप में महिलाओं को निर्दयता से नीचा दिखाती है और (श्लोक 157 में) घोषणा करती है कि भले ही पुरुषों में गुण न हों या वे यौन विकृत, अनैतिक और किसी भी अच्छे गुणों से रहित हों, महिलाओं को लगातार अपने पतियों की पूजा और सेवा करनी चाहिए.
हिंदुत्व समर्थकों द्वारा मनाई जाने वाली मनुस्मृति क्रूर जातिगत भेदभाव से भरी हुई है. कुछ उदाहरण ही काफी होंगे. पुस्तक 1, श्लोक 91 में घोषित किया गया है कि "भगवान ने कहा कि एक शूद्र का कर्तव्य है कि वह भक्ति के साथ और बिना बड़बड़ाए उच्च वर्णों की ईमानदारी से सेवा करे".
पुस्तक 3, श्लोक 156 उन लोगों को अयोग्य ठहराता है जो शूद्र छात्रों को निर्देश देते हैं जबकि पुस्तक 4 के श्लोक 78 से 81 तक स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शूद्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए अयोग्य हैं. इस निषेध का उल्लंघन करने वाला कोई भी शिक्षक नरक में जाएगा.
हमें इन दंडात्मक धाराओं और मनुवादी सिद्धांतों द्वारा लगाए गए सामाजिक वास्तविकताओं को याद रखना चाहिए जब हम अक्सर यह सुनते हैं कि प्राचीन पूर्व-इस्लामिक भारत में सर्वश्रेष्ठ विद्वान, वैज्ञानिक, दार्शनिक और शिक्षक थे, साथ ही अद्वितीय शिक्षण संस्थान भी थे - क्योंकि भारी बहुमत (शूद्रों और अछूतों) के पास उन तक बिल्कुल भी पहुंच नहीं थी.
"ब्राह्मणों को शूद्रों की उपस्थिति में वेदों का पाठ नहीं करना चाहिए." मनु पुस्तक 4, श्लोक 99 कहता है. कानून पर एक ग्रंथ के रूप में, मनुस्मृति में शूद्रों द्वारा ज्ञान के अवैध अधिग्रहण के लिए सजा का विस्तार से वर्णन किया गया है, जैसे कि उनके मुंह में उबलता तेल डालना (पुस्तक 8, श्लोक 72). उसी पुस्तक के श्लोक 270 और 271 में शूद्र द्वारा ब्राह्मण को चुनौती देने पर उसके मुंह में लाल-गरम लोहे की छड़ डालने या उसकी जीभ काटने जैसे दंड निर्धारित किए गए हैं.
मनु की पुस्तक 8 के श्लोक 50, 56 और 59 में कहा गया है कि शूद्रों को ब्राह्मणों की सेवा करने के लिए बनाया गया है, जो उन्हें हमेशा के लिए गुलाम बना सकते हैं और कोई भी उन्हें कभी मुक्त नहीं कर सकता है.
संघ की अपने घोषित लक्ष्यों को काफी निर्दयता से और कई दशकों तक बिना किसी समझौते के आगे बढ़ाने की एक दृढ़ नीति है. उदाहरण के लिए, 1980 के दशक के अंत में, इसने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने और उसी स्थान पर एक राम मंदिर बनाने की कसम खाई थी और इसने ठीक वैसा ही किया - मौतों, विनाश और एक सहयोजित न्यायपालिका की परवाह किए बिना. इससे पहले भी, परिवार ने संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध घोषित किया था, जिसने कम से कम सैद्धांतिक रूप से कश्मीरियों को कुछ विशेष ऐतिहासिक लाभ दिए थे. परिवार ने 70 वर्षों तक युद्ध लड़ा जब तक कि उसने अपना उद्देश्य प्राप्त नहीं कर लिया.
यह अपने तीसरे लक्ष्य, यानी सभी भारतीयों पर एक समान नागरिक संहिता लागू करने को लगातार आगे बढ़ा रहा है. इसने सफलतापूर्वक घोषणा की है कि एक पुरुष द्वारा तीन तलाक के माध्यम से अपनी पत्नी को तलाक देने की मुस्लिम शॉर्टकट विधि अवैध है. यह उचित समय है कि संघ परिवार स्पष्ट करे कि क्या भारतीय संविधान को मनुस्मृति से बदलने की उसकी मांग अब भी बनी हुई है.
चलते-चलते : राजाओं के पास महल होते हैं, लोगों के पास गाने!
तरुण भारतीय ने अपनी बातें हिंदी में कविताओं के ज़रिए कहीं, वहीं उनकी डॉक्यूमेंट्रीज़ में पर्यावरण और मानवाधिकार जैसे मुद्दों को उठाया गया. बिहार से होने के बावजूद, उन्होंने मेघालय को अपना घर बनाया. उनकी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें मेघालय की जटिल सामाजिक-सांस्कृतिक तस्वीर को पूरे देश तक पहुंचाती थीं.
तरुण ने कई पुरस्कृत फिल्मों का संपादन भी किया था. 2009 में, उन्हें रंजन पालिथ द्वारा निर्देशित फिल्म 'इन कैमरा, डायरीज़ ऑफ अ डॉक्यूमेंट्री कैमरामैन' के संपादन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. 2015 में, उन्होंने देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपना सिल्वर लोटस पुरस्कार वापस कर दिया था. इस दौरान, तरुण ने अपने काम के ज़रिए सरकार के खिलाफ खुलकर अपनी बात रखी. तरुण, ऑल्ट-स्पेस के संस्थापक सदस्य भी थे, जहां उन्होंने स्वतंत्र विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक जगह बनाई और सांस्कृतिक और राजनीतिक चर्चाओं को बढ़ावा दिया. पिछले तेरह वर्षों में, तरुण ने 'नियाम/फेथ/ह्यनित्रेप' फोटोग्राफी प्रोजेक्ट को समर्पित किया, जिसमें उन्होंने खासी-जैंतिया समुदाय की आस्था, पहचान और राष्ट्र निर्माण से जुड़ी जटिलताओं को तलाशने की कोशिश की. हाल ही में, तरुण ने शिलांग ह्यूमनिस्ट्स की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई, जो आलोचनात्मक सोच और बौद्धिक चर्चा को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक संगठन है.
तरुण का शनिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. मेघालय मॉनिटर ने उनके दोस्तों के हवाले से बताया है कि 55 वर्षीय तरुण को शिलांग के वुडलैंड अस्पताल में ले जाया गया था, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. उनके परिवार में उनकी पत्नी एंजेला रांगड और तीन बच्चे हैं - एक बेटी और दो बेटे.
ये उनकी डॉक्यूमेंट्री है - एक गुम चुके गाने को फिर से जिंदा करने की कोशिश.
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