27/02/2025 : डिलिमिटेशन का सवाल, खर्च करने से पहले ठिठकता हुआ देश, थरूर के लक्षण पर कयास, अमेरिकी नागरिकता बिकेगी, जेएनयू में शिक्षक निशाने पर, बॉलीवुड क्यों पिछड़ रहा दक्षिण से, रुपया फिर गिरा..
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
ट्रम्प ने कहा - यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी यूरोप देगा, हम नहीं!
तालिबान के लिए कालीन क्यों बिछा रहा है नई दिल्ली
भारतीय जेनेरिक दवाओं से गंभीर दुष्प्रभाव का खतरा 54% अधिक
गोडसेवादी प्रोफेसर को एनआईटी-कालीकट में डीन की पोस्ट
मुस्लिम कारोबारियों का बहिष्कार
भारत विरोधी नारे लगाने पर नाबालिग मुस्लिम के मां-बाप गिरफ्तार
हाईवे खराब तो टोल लेना अनुचित : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
केंद्र पांच साल से अधिक सजा पाए दोषियों पर प्रतिबंध के खिलाफ
यूरोप की राजनीति में मस्क की नाक घुसेड़ने का नुकसान उठा रही टेस्ला
पोप के करीबी पुजारी की जासूसी का आरोप
साढ़े चार करोड़ रुपये में पूरा कर लो अमेरिकी सपना!
अपूर्वानंद : प्रशासन के निशाने पर हैं जेएनयू के असहमत शिक्षक
1000 करोड़ क्लब में पिछड़ते बॉलीवुड के लिए दक्षिण से 5 सबक
दक्षिण के डिलिमिटेशन : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा राज्य की सभी पंजीकृत पार्टियों के साथ परिसीमन डिलिमिटेशन को लेकर बैठक बुलाने के एक दिन बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि मोदी सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि दक्षिणी राज्य "अनुपातिक आधार पर भी एक भी सीट न खोएं". कोयंबटूर में एक कार्यक्रम के दौरान शाह ने कहा, "अगर सीटों की संख्या बढ़ती है, तो दक्षिणी राज्यों को उनका उचित हिस्सा मिलेगा. इसको लेकर किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है." हालांकि, शाह का बयान भ्रमित करने वाला है. दक्षिणी राज्यों को चिंता सीटों की पूर्ण संख्या (जो वास्तव में थोड़ी बढ़ भी सकती है) से नहीं, बल्कि हिंदी भाषी राज्यों की तुलना में उनके प्रतिनिधित्व के सापेक्ष आकार से है. परिसीमन की प्रक्रिया जनसंख्या आधारित होती है, और दक्षिण के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर के राज्यों की तुलना में कम है. इससे संसद में दक्षिण का प्रभाव कमजोर होने का खतरा है. स्टालिन ने परिसीमन को दक्षिण पर "लटकी तलवार" बताते हुए कहा था कि यह प्रक्रिया क्षेत्र के हितों को नुकसान पहुंचा सकती है. उन्होंने सभी दक्षिणी राज्यों को इस मुद्दे पर एकजुट होने का आह्वान किया था. शाह के बयान का उद्देश्य इन आशंकाओं को शांत करना प्रतीत होता है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि जनसंख्या के आधार पर सीटों का बंटवारा दक्षिण के राजनीतिक वजन को लंबे समय में कम कर देगा.
भारत विरोधी नारे लगाने पर नाबालिग मुस्लिम के मां-बाप गिरफ्तार : चैंपियंस ट्रॉफी में भारत-पाकिस्तान मैच के बाद महाराष्ट्र के तटीय शहर मालवण में एक नाबालिग मुस्लिम लड़के के नारे लगाने के आरोप में उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके पिता द्वारा संचालित कबाड़ की दुकान तोड़ दी गई. “द इंडियन एक्सप्रेस” ने सिंधुदुर्ग के पुलिस अधीक्षक के हवाले से बताया कि एक राहगीर ने 15 वर्षीय लड़के को उसके घर से “राष्ट्र-विरोधी” नारे लगाते हुए सुना तो उसकी और लड़के के पड़ोसियों की परिवार से तकरार हुई. बाद में लड़के को नाबालिग होने के कारण एक “संप्रेक्षण गृह” भेज दिया गया. एक स्थानीय पुलिस अधिकारी के अनुसार लड़के ने कथित तौर पर “अफगानिस्तान जिंदाबाद”, “इंडिया गया भाड़ में” और “हिंदुस्तान मुर्दाबाद” का नारा लगाया था. हालांकि ‘द हिंदू’ के मुताबिक इस घटना का वीडियो या कोई अन्य सबूत सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नहीं है. मामले में कुदाल के विधायक नीलेश राणे ने आक्रामक रवैया अपनाते हुए “एक्स” पर कहा कि “एक उपाय के रूप में, हम इस अप्रवासी दुर्जन को जिले से बाहर निकालेंगे, लेकिन उससे पहले उसका कबाड़ी का धंधा खत्म करेंगे.” उन्होंने मालवण लॉयर्स बार एसोसिएशन को भी बधाई दी कि उसने भारत के खिलाफ नारे लगाने वाले मुस्लिम आरोपी को वकालतनामा जारी नहीं किया.”
मुस्लिम कारोबारियों का बहिष्कार : इस बीच महाराष्ट्र के अहिल्यानगर के मढ़ी गांव में ग्राम सभा ने वार्षिक मेले के लिए आने वाले मुस्लिम कारोबारियों का बहिष्कार करने का प्रस्ताव पारित किया है. सुकन्या शांता की रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों के हस्ताक्षर इस प्रस्ताव पर हैं, उनमें से कई ने दावा किया है कि उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जबकि कुछ अन्य ने इसका समर्थन किया है. अभी तक सरपंच और कनिफनाथ देवस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष संजय मरकड या इस प्रस्ताव को पारित करने में शामिल अन्य लोगों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई है. मरकड ने कहा कि यह निर्णय पिछले मेलों में कई मुस्लिम व्यापारियों द्वारा की गई “अवैध गतिविधियों” को देखते हुए लिया गया है. हालांकि उन्होंने अपनी बात के पक्ष में कोई सबूत देने के बजाय दावा किया कि “हमने हमारी बेटियों और माताओं को बचाने के लिए यह कदम उठाया है.”
मढ़ी का मेला लगभग 700 वर्ष पुराने कनिफनाथ मंदिर इलाके में लगता है. शांता ने मानवविज्ञानी रॉबर्ट हेडन का हवाला देते हुए कहा है कि मुसलमानों के लिए यह मुस्लिम संत शाह रमजान माही सवार चिश्ती की दरगाह है, जबकि हिंदुओं का कहना है कि यह हिंदू संत कनिफनाथ की समाधि है. ध्यान दें कि संत ऐतिहासिक रूप से एक ही व्यक्ति हैं, लेकिन दोनों समूह एक-दूसरे द्वारा उपयोग की जाने वाली पहचान को वैध नहीं मानते हैं.”
तालिबान के लिए कालीन क्यों बिछा रहा है नई दिल्ली : ‘द हिंदू’ की खबर है कि नई दिल्ली के तालिबान द्वारा नियुक्त एक दूत को स्वीकार करने के कथित फैसले ने विशेषज्ञों में आक्रोश पैदा कर दिया है, जो चेतावनी देते हैं कि इससे भारत की वैश्विक विश्वसनीयता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचेगा. इधर, प्रमुख अफगान निर्वासितों के एक सम्मेलन में वक्ताओं ने नई दिल्ली से काबुल में शासन के साथ अपने संबंधों को "सामान्य" न करने का आग्रह किया है. विदेश सचिव विक्रम मिसरी के तालिबान के "कार्यवाहक" विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से मिलने के हफ्तों बाद, रिपोर्ट्स से पता चलता है कि भारत उस शासन को वैधता दे रहा है, जो उत्पीड़न और आतंकवाद से जुड़े होने के लिए कुख्यात है. आलोचकों का तर्क है कि ऐसा कदम भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और रणनीतिक हितों के विपरीत है, जो कट्टरपंथी ताकतों के प्रति खतरनाक तुष्टीकरण का संकेत देता है.
बिहार कैबिनेट विस्तार | भाजपा के बड़े भाई होने पर मोहर : नीतीश के नेतृत्व वाली बिहार की एनडीए सरकार ने बुधवार को मंत्रिमंडल विस्तार में एक तरह से सरेंडर करते हुए भाजपा के बड़े भाई के तमगे को स्वीकार कर लिया. इस विस्तार में भाजपा के सात विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई और एक भाजपा मंत्री दिलीप जायसवाल ने एक व्यक्ति एक पद का हवाला देते हुए मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. वह बिहार भाजपा अध्यक्ष भी हैं. इसी के साथ 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में मंत्रियों की संख्या अधिकतम निर्धारित 36 पर पहुंच गई. इससे पहले प्रदेश मंत्रिमंडल में 30 मंत्री थे. इनमें 15 भाजपा, 13 जदयू और शेष दो छोटे सहयोगी दलों से थे, लेकिन इस विस्तार के बाद भाजपा के मंत्रियों की संख्या 21 हो गई, जबकि जदयू के 13 ही रहे. बता दें कि बिहार में जब से एनडीए गठबंधन में नीतीश कुमार हैं, वहां बड़े भाई और छोटे भाई की लड़ाई हमेशा से है. अभी तक भाजपा नीतीश के दल को बड़ा भाई मानती आई थी. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में प्रतीकात्मक बदलाव आया और प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 17 और जदयू ने 16 सीट से चुनाव लड़ा था. बिहार मंत्रिमंडल में भी भाजपा का एक मंत्री होना इसी का प्रतीक था, मगर अब बात प्रतीकों से आगे बढ़ गई है. बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले संभवत: आखिरी मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा के मंत्रियों की संख्या जदयू के मंत्रियों से काफी ज्यादा हो गई है. नए मंत्रियों में जिबेश कुमार मिश्र, सुनील कुमार, संजय सरावगी, राजू कुमार सिंह, कृष्ण कुमार मंटू, विजय कुमार मंडल और मोती लाल प्रसाद हैं.
आप भी चली ‘बुलडोजर जस्टिस’ की राह : दिल्ली विधानसभा चुनाव हार के बाद लगता है आम आदमी पार्टी ने भी भाजपा के ‘बुलडोजर जस्टिस’ को अपना लिया है. लुधियाना पुलिस कमिश्नर कुलदीप सिंह चहल के नेतृत्व में एक टीम ने सोमवार रात तलवंडी गांव में सोनू और बुधवार सुबह उसके भाई हिम्मत सिंह नगर में राहुल हंस के अवैध निर्माण को ध्वस्त कर दिया और दोनों नशा तस्करों की संपत्ति जब्त कर ली.
त्रिभाषा फॉर्मूला थोपने के विरोध में भाजपा से इस्तीफा : अभिनेत्री से राजनेता बनीं रंजना नचियार ने मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने त्रिभाषा फॉर्मूले पर भाजपा के विरोध से असहमति का हवाला दिया. अपने इस्तीफे में नचियार ने लिखा कि कई भाषाओं को थोपना एक गलती है.
तेलंगाना ने छात्रों के लिए तेलुगु भाषा अनिवार्य की : तेलंगाना में 2025-26 शैक्षणिक वर्ष से सभी सीबीएसई, आईसीएसई, आईबी और अन्य बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में कक्षा 9 के छात्रों के लिए तेलुगु को अनिवार्य विषय के रूप में लागू किया जाएगा. इसकी जानकारी सचिव योगिता राणा ने दी. मंगलवार को एक आदेश में उन्होंने अधिसूचित किया कि 2026-27 शैक्षणिक वर्ष से कक्षा 10 के छात्रों के लिए भी यह अनिवार्य होगा.
पाठकों से अपील
87.21 पर लुढ़का रुपया
रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.21 पर बंद हुआ, जो पिछले सत्र के 86.6950 के मुकाबले कम है. सिद्धि नायक ने ‘रायटर्स’ में अपने लेख में लिखा है कि रुपये की गिरावट "क्षेत्रीय मुद्राओं में कमजोरी, आयातकों द्वारा हेजिंग और गैर-वितरण योग्य फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स की समाप्ति से जुड़ी डॉलर की मांग" से प्रभावित थी. घरेलू मुद्रा में दिन भर में 0.6% की गिरावट दर्ज की गई, जो 5 फरवरी के बाद से इसकी सबसे बड़ी एक दिन की गिरावट है. हालांकि, रुपये ने कुछ नुकसान की भरपाई की, क्योंकि केंद्रीय बैंक ने मुद्रा को सहारा देने के लिए हस्तक्षेप किया, जो डेरिवेटिव्स की समाप्ति से जुड़ी डॉलर की मांग के कारण गिर गया था.
गोडसेवादी प्रोफेसर को एनआईटी-कालीकट में डीन की पोस्ट : एनआईटी कालीकट की प्रोफेसर शैलजा अंदावन को संस्थान में योजना और विकास की डीन नियुक्त किया गया है. शैलजा ने पिछले साल एक फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह "गोडसे पर गर्व करती हैं कि उन्होंने भारत को बचाया". 'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ वरिष्ठ फैकल्टी का आरोप है कि एनआईटी ने उन्हें डीन नियुक्त करने में वरिष्ठता के मानदंडों का उल्लंघन किया है, लेकिन संस्थान के अधिकारी इन आरोपों को खारिज कर रहे हैं और नियुक्ति को नियमपूर्वक हुआ बता रहे हैं.
हाईवे खराब तो टोल लेना अनुचित : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने निर्माण पूरा होने तक राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर दो टोल प्लाजा पर टोल शुल्क में 80% की कटौती का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत बहुत खराब है. इसलिए टोल वसूली अनुचित है. अदालत ने कहा कि ‘यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि टोल का संग्रह उपयोगकर्ताओं को अच्छी तरह से बनाए गए बुनियादी ढांचे का लाभ प्रदान करने के लिए किया जाता है. यदि यह राजमार्ग खराब स्थिति में है और गाड़ी चलाना असुविधाजनक है तो यात्रियों के लिए टोल का भुगतान करना अनुचित है, बल्कि यह निष्पक्ष सेवा का उल्लंघन है. निश्चित रूप से, यात्री और ड्राइवर इस विशेष राजमार्ग की खराब स्थिति से निराश महसूस कर रहे होंगे, जिसके लिए वे भुगतान कर रहे हैं.
एचडी कुमारस्वामी के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान भूमि विमुद्रीकरण मामले में केंद्रीय भारी उद्योग और इस्पात मंत्री एचडी कुमारस्वामी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में 2018 के संशोधन के तहत खारिज की मांग करने वाली उनकी याचिका में कोई योग्यता नहीं पाई और मुकदमे को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ कर दिया.
यह मामला बनशंकरी के हलगी वडेराहल्ली गांव में 2 एकड़ और 24 गुंटा भूमि की अधिसूचना रद्द करने से जुड़ा है, जिसे 1997 में बैंगलोर विकास प्राधिकरण (बीडीए) ने अधिग्रहित किया था. बीडीए की आपत्तियों के बावजूद, तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने 2007 में भूमि की अधिसूचना रद्द करने का आदेश दिया था. इसके बाद 2010 में इसे निजी पक्षों को ₹4.14 करोड़ में बेच दिया गया.
अप्रैल से 4-5 महीने के लिए दिल्ली एयरपोर्ट का टी-2 बंद रहेगा : दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (DIAL) ने बुधवार 26 फरवरी को घोषणा की कि इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (आईजीआईए) का टर्मिनल-2 (टी-2) अप्रैल से चार से पांच महीने के लिए अस्थायी रूप से बंद रहेगा. इस दौरान इसका नवीनीकरण किया जाएगा. तब तक टी-2 के यात्रियों को टी-1 स्थानांतरित कर दिया जाएगा.
केंद्र पांच साल के अधिक सजा पाए दोषियों पर प्रतिबंध के खिलाफ : केंद्र की भाजपा सरकार ने शीर्ष अदालत में हलफनामा डालकर दोषी राजनेताओं पर चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध किया. कहा, ‘पांच साल से ज्यादा सजा वालों की अयोग्यता को भी छह साल तक सीमित करने में ‘कुछ भी असंवैधानिक नहीं है’. केंद्र ने यह भी कहा कि आजीवन प्रतिबंध उचित होगा या नहीं, यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. यह हलफनामा अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया था. अधिनियम की धारा 8 में कहा गया है कि प्रावधान में निर्दिष्ट अपराधों के लिए कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को जेल से रिहा होने के छह साल बाद तक चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाएगा. धारा 9 के अनुसार, भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के लिए बर्खास्त किए गए लोकसेवकों के लिए अयोग्यता बर्खास्तगी की तारीख से पांच साल के लिए होगी. याचिका में तर्क दिया गया कि अयोग्यता को समय तक सीमित करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है और आग्रह किया गया कि ऐसे मामलों में अयोग्यता आजीवन होनी चाहिए.
डोमिनोज पिज़्ज़ा के भारतीय फ्रेंचाइज़ी पर बलात्कार का आरोप : पुलिस ने व्यवसायी श्याम एस भरतिया और तीन अन्य लोगों के खिलाफ एक मामला दर्ज किया है, जिसमें एक उभरती हुई बॉलीवुड अभिनेत्री के साथ आपराधिक धमकी और बलात्कार के आरोप लगाए गए हैं. भरतिया जुबिलेंट भरतिया ग्रुप के संस्थापक और अध्यक्ष हैं. इसकी सहायक कंपनी जुबिलेंट फूडवर्क्स अमेरिका के बाहर डोमिनोज पिज़्ज़ा के लिए सबसे बड़ी फ्रेंचाइज़ी है. पीड़ित महिला ने भरतिया पर आरोप लगाया है कि उन्होंने सिंगापुर में उसे नशे में धुत करके फिर "बर्बरतापूर्वक" बलात्कार किया. भरतिया ने मंगलवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में दायर एक फाइलिंग में इन आरोपों को "बेबुनियाद, झूठा और अपमानजनक" बताते हुए खारिज कर दिया है.
उपभोक्ता बाज़ार
सौ करोड़ लोगों के पास खर्च के लिए पैसा नहीं, 30 करोड़ लोग सोचते हैं खर्च करने से पहले
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 1.4 अरब आबादी में से लगभग 1 अरब लोगों के पास "अतिरिक्त खर्च" करने की क्षमता नहीं है. वेंचर कैपिटल फर्म ब्लूम वेंचर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 'उपभोक्ता वर्ग' (जो स्टार्टअप या व्यवसायों के लिए संभावित बाज़ार है) की संख्या मेक्सिको जितनी, यानी सिर्फ 13-14 करोड़ है. इनके अलावा 30 करोड़ लोग 'उभरते' या 'आकांक्षी' उपभोक्ता हैं, लेकिन वे खर्च में संकोच करते हैं और डिजिटल पेमेंट की सुविधा के बावजूद सीमित ही खरीदारी करते हैं.
बीबीसी के निखिल ईनामदार रिपोर्ट का हवाला देकर बताते हैं कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में अमीरों की संख्या बढ़ने के बजाय उनकी संपत्ति में इजाफा हो रहा है. इसका मतलब है कि देश का धनवान वर्ग आकार में नहीं, बल्कि समृद्धि में गहरा रहा है. यह प्रवृत्ति बाज़ार को 'प्रीमियमाइजेशन' की ओर धकेल रही है, जहां कंपनियां महंगे और अपग्रेडेड उत्पादों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. इसका असर आवास और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में साफ दिख रहा है :
लक्ज़री हाउसिंग और प्रीमियम फोन की बिक्री बढ़ी है, जबकि किफायती विकल्पों की मांग घटी है.
5 साल पहले किफायती घर बाज़ार का 40% हिस्सा थे, जो अब घटकर 18% रह गया है.
कोल्डप्ले और एड शीरन जैसे कलाकारों के महंगे कॉन्सर्ट के टिकटों की बिक्री भीड़ खींच रही है.
रिपोर्ट के लेखक सजीत पई के अनुसार, जिन कंपनियों ने इस बदलाव को समझा, वे फल-फूल रही हैं. लेकिन जो बड़े बाज़ार पर निर्भर हैं, उनकी हिस्सेदारी घटी है. यह निष्कर्ष इस विचार को मजबूत करता है कि भारत में कोविड के बाद की रिकवरी 'K-आकार' की रही, जहां अमीर और अधिक अमीर हुए, जबकि गरीबों की क्रय शक्ति सिकुड़ी.
आय असमानता : 1990 में देश के शीर्ष 10% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 34% हिस्सा था, जो अब बढ़कर 57.7% हो गया है. निचले 50% की हिस्सेदारी 22.2% से गिरकर 15% रह गई है.
मध्यम वर्ग पर संकट : मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में मध्यम वर्ग की आय वास्तविक रूप से (मुद्रास्फीति समायोजित) आधी रह गई है. घरेलू बचत भी 50 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है.
रोज़गार का संकट : एआई और ऑटोमेशन के कारण शहरी सफेदपोश नौकरियां घट रही हैं. विनिर्माण इकाइयों में पर्यवेक्षकों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है.
हालांकि सरकार ने हाल के बजट में ग्रामीण मांग बढ़ाने के लिए रिकॉर्ड फसल उत्पादन और 12 अरब डॉलर के टैक्स राहत का रास्ता अपनाया है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह उपाय "नाटकीय" बदलाव नहीं लाएंगे. लंबी अवधि में, असंगठित क्षेत्र पर निर्भरता, घटती बचत और बढ़ता कर्ज़ बड़ी चुनौतियां बने हुए हैं. सरकारी आर्थिक सर्वेक्षण ने भी चेतावनी दी है कि तकनीकी बदलाव से रोज़गार छिनने और मध्यम वर्ग के सिकुड़ने से उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका लग सकता है.
विश्लेषण
शशि थरूर के बदलते लक्षण पर लगते कयास
केरल से चार बार के कांग्रेस सांसद शशि थरूर अपनी इस ताज़ा टिप्पणी के कारण इन दिनों सुर्खियों में बने हुए हैं कि, “यदि कांग्रेस को मेरी जरूरत नहीं है, तो मेरे पास और भी काम हैं.” जाहिर है, कांग्रेस के लिए इससे साफ और कड़ा संदेश क्या होगा? इसीलिए, उनके इस कथन ने राजनीतिक गलियारों में ‘कयासनुमा’ सवालों का शोर पैदा कर दिया है. मसलन, वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? उनके इरादे क्या हैं? क्या उनका कांग्रेस से मोह भंग हो रहा है? या फिर, गृह राज्य केरल में अपनी मौजूदा पार्टी से जो वह मांग रहे हैं, मोदी-शाह की बीजेपी ने उनको वो ऑफर कर दिया है? और कांग्रेस चूंकि उन्हें देने की स्थिति में नहीं है- बीजेपी को केरल में एक चेहरा चाहिए- लिहाजा थरूर ‘माहौलबंदी’ में लगे हैं? राहुल गांधी को पीड़ा बताए 8 दिन (18 फरवरी) हो चुके हैं, लेकिन अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि पार्टी में उनकी कोई चिंता की जा रही हो. यद्यपि, थरूर ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह किसी अन्य पार्टी में शामिल होने के “इच्छुक” नहीं हैं. मगर, इच्छा का क्या है? कब बलबला जाए? आज नहीं है, कल हो गई “रसमलाई” की. और फिर, सत्ता रूपी अप्सराओं से तपस्या भंग कराई जा सकती है, तो क्या नहीं कराया जा सकता?
बहरहाल, उनके पिछले कुछ बयानों और सोशल मीडिया की पोस्टों ने कांग्रेस को खासा परेशान किया है. बुधवार 26 फरवरी को प्रसारित “द इंडियन एक्सप्रेस” के मलयालम पॉडकास्ट ‘वर्थमानम’ में थरूर ने कहा है, “अगर कांग्रेस मुझे रखना चाहती है, तो मैं पार्टी के लिए उपलब्ध रहूंगा. यदि नहीं, तो मेरे पास अपने काम करने के लिए बहुत कुछ है. आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि मेरे पास समय बिताने के लिए कोई विकल्प नहीं हैं. मेरे पास विकल्प हैं- मेरी किताबें, भाषण, दुनिया भर से व्याख्यान के लिए निमंत्रण.” कांग्रेस छोड़के भाजपा या केरल के वामपंथी गठबंधन में शामिल होने के कयासों के बारे में उनका कहना है कि वह पार्टी बदलने पर विचार नहीं कर रहे हैं. क्योंकि कुछ मुद्दों से असहमत होने के कारण ऐसा करना सही नहीं होगा. बजाय इसके किसी को भी पार्टी से बाहर रहकर स्वतंत्र रूप से काम करने की आजादी है. तो क्या यह समझा जाए कि भले वह ही किसी का नाम नहीं ले रहे हों, लेकिन उन्होंने भी असंतुष्ट समूह जी-23 के अपने पुराने साथी कपिल सिब्बल की तरह ही निर्दलीय के बतौर नई भूमिका में आने का फैसला कर लिया है? क्योंकि राहुल गांधी से मुलाकात के बाद उन्होंने दो ऐसे काम किए, जो दर्शाते हैं कि वह अब परहेज या लिहाज नहीं कर रहे हैं. इसीलिए, संभवतः उन्होंने एक बार फिर यह दिखाया कि उन्हें जब जो ठीक लगेगा, वह करेंगे. कांग्रेस चाहे तो अनुशासनात्मक कार्रवाई का नोटिस देकर उनके खिलाफ एक्शन ले ले. यही कारण है कि किसी की परवाह किए बिना मंगलवार को उन्होंने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ एक सेल्फ़ी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी. दूसरा, शनिवार को “एक्स” पर एक पोस्ट में उन्होंने थॉमस ग्रे की पंक्ति में आज का विचार लिखा- “जहां अज्ञानता सुख हो, वहां बुद्धिमान होना मूर्खता है.” प्रश्न है कि कहां है अज्ञानता, किस स्तर पर है, किसके लिए उन्होंने थॉमस ग्रे को कोड किया? क्या कांग्रेस नेतृत्व? या, खुद राहुल गांधी के लिए? इसी बीच, महत्वपूर्ण सवाल यह भी कि यदि थरूर अपनी पार्टी की लीडरशिप से इतना ही नाखुश हैं तो पीएम मोदी को लिखी प्रियंका गांधी वाड्रा की चिट्ठी का समर्थन उन्होंने क्यों किया? या, कांग्रेस के मौजूदा ढांचे में सबसे ताकतवर केरल के केसी वेणुगोपाल को पटखनी देने के लिए वह किसी के “टूल” भर हैं?
भारतीय जेनेरिक दवाओं से गंभीर दुष्प्रभाव का खतरा 54% अधिक
ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारतीय दवाओं पर 25% आयात शुल्क की आशंका के बीच, द ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के एक ताज़ा अध्ययन ने भारतीय फार्मा कंपनियों को झटका दिया है. प्रोडक्शन एंड ऑपरेशन्स मैनेजमेंट जर्नल में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, अमेरिका में निर्मित जेनेरिक दवाओं की तुलना में भारत में बनी दवाओं से गंभीर दुष्प्रभाव (हॉस्पिटलाइजेशन, विकलांगता, मृत्यु) का जोखिम 54% अधिक है. अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों में पाया गया कि 2,443 दवाओं के विश्लेषण में भारतीय दवाओं को अमेरिकी समकक्षों के मुकाबले अधिक खतरनाक पाया गया. अमेरिका को निर्यात होने वाली 93% जेनेरिक दवाएं भारत से आती हैं. पुरानी दवाओं (लंबे समय से बाज़ार में मौजूद) में गुणवत्ता समझौता और दुष्प्रभावों की दर सबसे अधिक है.
भारत के लिए अमेरिकी बाज़ार का महत्व बहुत है क्योंकि 2023-24 में अमेरिका को 8.7 अरब डॉलर (कुल फार्मा निर्यात का 31%) का निर्यात था. अमेरिका में 47% जेनेरिक दवाएं भारतीय कंपनियों की हैं. 603 भारतीय फार्मा यूनिट्स FDA-अनुमोदित, जो अमेरिका के बाहर सर्वाधिक हैं.
भारतीय फार्मा एलायंस के सुधीर जैन ने कहा, "अमेरिका को निर्यात में गुणवत्ता में सुधार हुआ है," लेकिन अध्ययन को नहीं देखा. पिछले वर्षों में गाम्बिया, उज़्बेकिस्तान में भारतीय दवाओं से जुड़ी मौतों ने सवाल खड़े किए थे. अध्ययन में एफडीए से जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता निगरानी बढ़ाने की सिफारिश की गई है. भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाज़ार में विश्वास बहाली चुनौतीपूर्ण होगी, खासकर टैरिफ की आशंका के बीच.
यूरोप की राजनीति में मस्क की नाक घुसेड़ने का नुकसान उठा रही टेस्ला
यूरोप की राजनीति में इलोन मस्क की नाक घुसेड़ने का नुकसान उनकी कंपनियां उठा रही हैं. टेस्ला की नई कारों की बिक्री यूरोप में पिछले महीने लगभग आधी हो गई. इस अमेरिकी कार निर्माता की गाड़ियों की मांग में कमी लगातार बनी हुई है. यूरोपीय ऑटोमोबाइल निर्माताओं के संघ (ACEA) के आंकड़ों के अनुसार टेक्सस स्थित कार निर्माता ने जनवरी में यूरोप में 9,945 वाहन बेचे, जो पिछले साल की 18,161 से 45% कम है. 'द गार्डियन' के मुताबिक मस्क का यूरोपीय राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप और डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन में उनकी भूमिका, जिसमें उन्होंने अमेरिकी सरकार के फंडिंग को घटाया और उसकी सहायता कार्यक्रमों को बंद किया, उपभोक्ताओं से विरोध का कारण बन रहा है. टेस्ला ने जनवरी में जर्मनी में 1,277 नई कारें बेचीं, जो जुलाई 2021 के बाद से इसकी सबसे कम मासिक बिक्री थी, जैसा कि ब्लूमबर्ग के आंकड़ों से पता चलता है. फ्रांस में इस ब्रांड की बिक्री 63% गिर गई, जो अगस्त 2022 के बाद से देश में इसका सबसे खराब प्रदर्शन था. कंपनी ने यूके में भी अपने चीनी इलेक्ट्रिक कार प्रतिद्वंदी बीवायडी से कम वाहन पंजीकृत किए, यह पहली बार था. टेस्ला की बिक्री पिछले महीने इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार में लगभग 8% गिर गई, जबकि यह बाजार 42% बढ़ा.
पोप के करीबी पुजारी की जासूसी का आरोप : ‘द गार्डियन’ की खबर है कि पोप फ्रांसिस के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले एक इतालवी पुजारी फेरारी को मेटा के माध्यम से पता चला कि उसकी जासूसी की जा रही थी. फेरारी को फरवरी 2024 में मेटा ने सूचित किया कि वह "एक उन्नत हमले का शिकार हुए हैं, जिसका समर्थन अज्ञात सरकारी संस्थाओं द्वारा किया गया था." हालांकि फेरारी को और कोई जानकारी नहीं दी गई. स्पाईवेयर हमले की यह सूचना उस समय के कुछ महीने बाद आई जब फेरारी कुछ महत्वपूर्ण लोगों के साथ पोप से उनके वेटिकन स्थित घर में मिले थे. यह मुलाकात उस व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए थी जो जुलाई 2023 में ट्यूनीशियाई अधिकारियों द्वारा ट्यूनीशिया और लीबिया के बीच रेगिस्तान में अपनी पत्नी और बच्चे को खो चुका था.
फेरारी और पोप के काफी घनिष्ठ संबंध हैं और पोप फेरारी की सार्वजनिक तारीफें भी कर चुके हैं. फेरारी ने पोप से कई बार व्यक्तिगत रूप से भी मुलाकात की थी, संभवतः उस समय के दौरान जब उनकी जासूसी की जा रही थी. फ्रांसिस ने फेरारी की किताब के लिए भी भूमिका लिखी थी. फेरारी ने कहा, "लोगों के लिए अच्छा करना, जरूरतमंदों की मदद करना, अब एक विद्रोही कार्य बन गया है जिसे दंडित किया जाना चाहिए. यह एक गंभीर मामला है और मुझे उम्मीद है कि कोई इस बात की स्पष्टता लाएगा कि क्या हुआ. हम अब पारदर्शिता और सत्य की मांग करते हैं." विपक्ष के नेताओं ने मेलोनी से, जिनकी सरकार ने यह दावा किया है कि घरेलू खुफिया सेवाओं या सरकार का इस कथित निगरानी हमले में कोई हाथ नहीं है, संसद में इस मुद्दे पर चर्चा करने की मांग की है. इस मामले में इस्लामिक दुनिया के लिए बनाए गए पारागन स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया, जो अपराधियों पर निगरानी रखने के लिए था.
ट्रम्प ने अमेरिकी नागरिकता बेचने का एलान किया
आपके पास 44 करोड़ रुपए (5 मिलयन डॉलर) हैं क्या? आपका अमेरिकी सपना भी हिलोरे मार रहा है? तब आपके लिए दिलचस्प खबर अमेरिका में मची बहुत-सी और कई-कई किस्म की भसड़ के बीच से छनकर आई है. खबर है कि ट्रम्प एक गोल्ड कार्ड पेश करने की योजना बना रहे हैं. ये कुछ हद तक ग्रीन कार्ड की तरह ही होगा, लेकिन सिर्फ रसूखदारों के लिए. कई देशों के पास 'गोल्डन वीजा' होते हैं. खैर, ट्रम्प इससे भयानक योजना बुधवार को सोशल मीडिया में पहले ही पेश कर चुके हैं... आगे पढ़िए, उस दिलचस्प योजना के बारे में.
'ट्रम्प का गाजा' वेगास की तरह है!
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टुथ सोशल पर अपने हैंडल से एक एआई जेनरेट वीडियो जारी किया है, जो दुनियाभर की मीडिया में सुर्खियां पा रहा है. इस वीडियो में ट्रम्प ने अपने गाजा को लेकर भविष्य की योजनाओं की काल्पनिक झलक पेश की है. ये ठीक वैसी ही है, जैसे डोनाल्ड ट्रम्प ने गाजा से लोगों को भगाकर 'गाजा रिवेरा' के अपने सपने को लेकर कहा था. वेगास शहर की तरह चमकदार दुनिया. आलीशान जिंदगी, बीच और लड़कियों पर पैसे लुटाते ट्रम्प, नेतन्याहू ओर इलोन मस्क! जी हां, जारी किए गए वीडियो में यही सब है. वीडियो युद्ध से बर्बाद हुए गाजा से शुरू होता है और फिर एकदम से ठीक वैसा दिखने लगता है, जैसे वेगास या कोई और शहर. पूरे वीडियो में डोनाल्ड ट्रम्प की सुनहरी आदम कद छवियां हैं. वो गाजा की वेगास, मियामी या फिर सउदी की तरह कल्पना कर रहे हैं, जो अमीरों की ऐशगाह बन सके. इसे नाम दिया गया है 'ट्रम्प गाजा'.
यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी यूरोप देगा, हम नहीं: ट्रम्प
'रायटर्स' की खबर है कि राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेन्स्की ने बुधवार को कहा कि वाशिंगटन के साथ यूक्रेन के खनिज समझौते की सफलता उनके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से होने वाली बातचीत पर निर्भर करती है, क्योंकि समझौते के मसौदे से यह स्पष्ट हुआ कि अमेरिकियों ने कोई ठोस सुरक्षा गारंटी नहीं दी है. रायटर्स ने सूत्रों के हवाले से खबर की है कि मसौदे में कोई अमेरिकी सुरक्षा गारंटी या हथियारों की निरंतर आपूर्ति का उल्लेख नहीं है, लेकिन इसमें यह कहा गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन "स्वतंत्र, संप्रभु और सुरक्षित" हो. भविष्य में हथियारों की आपूर्ति पर वॉशिंगटन और कीव के बीच अब भी चर्चा हो रही है. ट्रम्प ने संवाददाताओं से कहा कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेन्स्की शुक्रवार को वॉशिंगटन आना चाहते हैं ताकि वे "बहुत बड़ा सौदा" साइन कर सकें. यह बयान दोनों नेताओं के बीच पिछले सप्ताह हुई कटु टिप्पणियों के बाद आया है.
'द गार्डियन' की खबर है कि ट्रम्प ने कहा है कि अमेरिका, यूक्रेन को कोई सुरक्षा गारंटी नहीं देगा और वह यह काम यूरोप से करवाएंगे. डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में कहा कि उन्हें विश्वास है कि अमेरिका रूस और यूक्रेन के साथ "बहुत सफलतापूर्वक" वार्ता कर रहा है. ट्रम्प ने कहा कि एक सीजफायर समझौता नजदीक है. "हम रूस और यूक्रेन के साथ एक समझौता करेंगे, ताकि लोग मारे न जाएं."
जब उनसे पूछा गया कि क्या वह समझौते के हिस्से के रूप में सुरक्षा गारंटी देने के लिए तैयार हैं, तो ट्रम्प ने जवाब दिया— "मैं बहुत अधिक से परे सुरक्षा गारंटी नहीं देने वाला... हम यह काम यूरोप से करवाएंगे, क्योंकि यूरोप अगला पड़ोसी है." उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका यूक्रेन के साथ "रियर अर्थ" के मामले में साझेदारी करेगा. "हमें रियर अर्थ की बहुत आवश्यकता है, उनके पास शानदार रियर अर्थ है," ट्रम्प ने कहा. ट्रम्प ने कहा कि यह "यूक्रेन के लिए भी एक शानदार सौदा है, क्योंकि वे हमें वहां लाकर हमारे साथ काम करेंगे."
मॉस्को, जिसने तीन साल पहले यूक्रेन पर आक्रमण किया था, उसने नाटो बलों की तैनाती को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. कुछ यूरोपीय देशों ने कहा है कि वे यूक्रेन में शांति सेना भेजने के लिए तैयार हैं. ट्रम्प ने सोमवार को कहा था कि मॉस्को इस तरह के शांति सैनिकों को स्वीकार करेगा, लेकिन क्रेमलिन ने मंगलवार को इसका खंडन किया.
ट्रम्प का रूस के साथ युद्ध समाप्त करने की जल्दी और मॉस्को के प्रति उनका झुकाव यूक्रेन और यूरोप में सुरक्षा पर गंभीर कर्जों के लिए अमेरिकी स्वीकृतियों की चिंता पैदा कर रहा है और भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है.
इस्तांबुल में मिलेंगे रूसी और अमेरिकी : रूसी और अमेरिकी राजनयिक गुरुवार को इस्तांबुल में मिलेंगे. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा, ताकि द्विपक्षीय विवादों को हल करने पर चर्चा की जा सके, जो वे यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण व्यापक संवाद का हिस्सा मानते हैं. लावरोव ने कहा कि वार्ता का मुख्य ध्यान अमेरिकी राजनयिकों के लिए रूस में और रूस के राजनयिकों के लिए अमेरिका में बेहतर परिस्थितियां बनाने पर होगा.
रूस में खुलेगा अमेरिका का नया बाजार : इधर अमेरिका और रूस के साथ आने से नया बाजार भी दोनों देशों में खुलने जा रहा है. ‘रायटर्स’ की ही खबर है कि वाशिंगटन की यूक्रेन में संघर्ष को जल्दी समाप्त करने की कोशिशों ने इस बात की अटकलें बढ़ा दी हैं कि पश्चिमी ब्रांड रूस में वापस लौटना चाह सकते हैं. हालांकि, चुनौती फैशन से लेकर कारों तक, जिन बाजारों को उन्होंने छोड़ दिया था, उनमें मौजूद प्रतिस्पर्धा है. मॉस्को ने पश्चिमी माल के ग्रे आयात को वैध कर दिया है. हालांकि, रूसी और चीनी ब्रांड्स ने पश्चिमी कंपनियों द्वारा छोड़े गए स्थान को पहले ही भर लिया है.
फिर शुरू हुई लापता एमएच 370 विमान की खोज : ‘द गार्डियन’ की खबर है कि मलेशिया एयरलाइंस की फ्लाइट एमएच 370 की खोज मारिटाइम एक्सप्लोरेशन फर्म ओशन इन्फिनिटी ने एक दशक से अधिक समय बाद फिर से शुरू की गई है. ये विमानन के सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक है. मलेशियाई परिवहन मंत्री एंथनी लोके ने इसकी जानकारी दी है. लोके ने संवाददाताओं से कहा कि ओशन इन्फिनिटी ने अपने जहाजों को तैनात करके विमान की खोज शुरू कर दी है, जो मार्च 2014 में गायब हो गया था. एमएच 370 विमान मार्च 2014 में कुआलालंपुर हवाईअड्डे से बीजिंग के लिए उड़ान भरने के बाद रडार से गायब हो गया था, जिसमें 12 क्रू सदस्य और 227 यात्री सवार थे.
टिप्पणी
अपूर्वानंद : प्रशासन के निशाने पर हैं जेएनयू के असहमत शिक्षक
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने भाषाविद् प्रोफेसर आयशा किदवई को सैबेटिकल (अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश) देने की स्वीकृति दी है. यह खबर क्यों महत्वपूर्ण है? क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन को उनकी छुट्टी मंजूर करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप का सहारा लेना पड़ा. इससे पहले, विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके अनुरोध को यह कहकर ठुकरा दिया था कि कार्यकारी परिषद के एक निर्णय के अनुसार, दो सैबेटिकल के बीच सात साल का अंतराल अनिवार्य है. हालांकि, जेएनयू के अपने अध्यादेशों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के मुताबिक, यह अंतराल पांच साल है, सात नहीं. चूंकि किदवई ने पिछला सैबेटिकल पांच साल पहले लिया था, इसलिए यह छुट्टी पाने का उनका पूरा अधिकार था. फिर भी, प्रशासन ने एक मनमाने कार्यकारी परिषद के निर्णय का हवाला देते हुए उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेएनयू से पूछा कि क्या वह कार्यकारी परिषद के निर्णय के आधार पर अपने ही अध्यादेशों और यूजीसी के नियमों को नज़रअंदाज़ कर सकता है. अपने कार्यों का कोई तर्क न दे पाने के कारण, जेएनयू ने झुकते हुए किदवई को सैबेटिकल देना स्वीकार किया. यह घटना विश्वविद्यालय प्रशासन और शिक्षकों के बीच संवाद की गंभीर कमी को उजागर करती है, जहां शिक्षकों को अपने बुनियादी अधिकारों के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की शरण लेनी पड़ रही है. न्यायालय द्वारा प्रशासन को दी गई फटकार यह इंगित करती है कि नियमों का पालन अनिवार्य है.
दुर्भाग्य से, यह कोई अकेली घटना नहीं है. पिछले एक दशक में, जेएनयू प्रशासन अक्सर अपने शिक्षकों के साथ कानूनी लड़ाइयों में उलझा रहा है. उदाहरण के लिए, अंग्रेजी के प्रोफेसर उदय कुमार को बिना किसी स्पष्टीकरण के एक शोध परियोजना के लिए छुट्टी देने से इनकार कर दिया गया. जब उन्होंने न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, तो प्रशासन को उन्हें छुट्टी देनी पड़ी.
शिक्षकों की ज़िम्मेदारी केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं है. उन्हें शोध, प्रशासनिक कार्य और सेमिनारों में भाग लेने का दायित्व भी निभाना होता है. सैबेटिकल का उद्देश्य उन्हें शोध और शैक्षणिक विकास के लिए समय देना है, जो अंततः विश्वविद्यालय और शैक्षणिक समुदाय के लिए लाभदायक होता है. ऐसे अवसरों को नकारना उच्च शिक्षा के मूल उद्देश्य को ही कमज़ोर करता है.
किदवई का मामला इसलिए और भी चिंताजनक है, क्योंकि इसमें नियमों का चुनिंदा इस्तेमाल होता दिखता है. उनकी दो सहयोगियों को सात साल के अंतराल का पालन किए बिना ही सैबेटिकल दिया गया, जिससे लगता है कि उन्हें निशाना बनाया गया. किदवई कुलपति और प्रशासन की मुखर आलोचक रही हैं, और यही उनके खिलाफ प्रतिकार का कारण बना.
पिछले दस सालों में, जेएनयू ने असहमत शिक्षकों के खिलाफ कई दंडात्मक कदम उठाए हैं. प्रशासन विरोधी विरोध करने के आरोप में 45 शिक्षकों के खिलाफ आरोपपत्र जारी किए गए. कुछ सेवानिवृत्त शिक्षकों को पेंशन और देय राशि से वंचित रखा गया, जिसके बाद उन्हें न्यायालय जाना पड़ा. प्रशासन ने शिक्षकों को मामले वापस लेने के लिए "उदारता" का प्रस्ताव देकर दबाव डालने की कोशिश की, लेकिन बाद में माफी मांगने और 'पीएम केयर फंड' में योगदान जैसी नई शर्तें थोप दीं. ये कार्य न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि संस्थान में गहरे पैठे रोग का संकेत देते हैं.
प्रमोशन, जो शिक्षकों का मूल अधिकार है, वर्षों से लंबित है. कुछ तो सेवानिवृत्ति के बाद भी प्रमोशन पाने से वंचित रह गए. एक मामले में, न्यायालय ने जेएनयू को प्रमोशन हेतु साक्षात्कार आयोजित करने का आदेश दिया, लेकिन योग्यता पूरी होने के बावजूद उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर दिया गया. वरिष्ठता और योग्यता की इतनी खुली अवहेलना के चलते नए शिक्षकों को नेतृत्वकारी भूमिकाएं दी जा रही हैं, जिससे विश्वविद्यालय का शैक्षणिक माहौल और बिगड़ रहा है.
जेएनयू प्रशासन और शिक्षकों के बीच तनाव संस्थान की पहचान बन चुका है. प्रमोशन रोकने, छुट्टी न देने और दंडात्मक कार्रवाइयों के ज़रिए शिक्षकों को निशाना बनाने से मनोबल गहराई से टूटा है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का जेएनयू के प्रति दीर्घकालिक विरोध कोई रहस्य नहीं है. हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री नियुक्त भाजपा नेता रेखा गुप्ता ने एक बार विश्वविद्यालय को बंद करने की मांग करते हुए इसके निवासियों को "परजीवी" और "राष्ट्रविरोधी" कहा था. हालांकि जेएनयू बंद नहीं हुआ, लेकिन इसे अंदर से व्यवस्थित रूप से खोखला कर दिया गया है. यह संस्थान, जो कभी शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रतीक था, अब छोटी राजनीति और प्रशासनिक प्रतिशोध के चलते अपने पुराने स्वरूप का साया मात्र रह गया है.
जेएनयू का पतन एक चेतावनी भरी कहानी है कि कैसे संस्थागत गिरावट विश्वास, संवाद और नियमों के प्रति सम्मान के क्षरण से शुरू होती है. यदि तत्काल सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो विश्वविद्यालय अपनी विरासत को पूरी तरह खो देगा.
चलते चलते
1000 करोड़ क्लब में पिछड़ते बॉलीवुड के लिए दक्षिण से 5 सबक
‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ में सत्येन बोरदोलोइ एक चौंकाने वाले तथ्य की तरफ ध्यान देने की बात कहते हैं. 1000 करोड़ रुपये के जादुई आंकड़े को पार करने वाली 8 भारतीय फिल्मों में से केवल दो – दंगल और पठान शुद्ध बॉलीवुड निर्माण हैं. बाकी 6 में 5 दक्षिण की फिल्में (बाहुबली, पुष्पा 2, आरआरआर, केजीएफ 2, कल्कि 2898 एडी) हैं, जबकि छठी जवान एक दक्षिणी निर्देशक की बनाई फिल्में हैं. सवाल है : दक्षिण सिनेमा क्या सही कर रहा है और बॉलीवुड कहाँ चूक रहा है? स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन (SWA) के एक पैनल चर्चा में दक्षिण के फिल्मकारों ने बॉलीवुड के लिए 5 गेम-चेंजिंग सबक साझा किए:
1. जड़ों से जुड़ाव : 'पैन-इंडिया' के चक्कर में न खोएं असलियत : तेलुगू फिल्मों के निर्देशक विवेक अथ्रेया (सारिपोदा सनीवारम) कहते हैं, "दक्षिण की फिल्में अपनी मिट्टी से जुड़ी होती हैं. पुष्पा और केजीएफ का जादू स्केल नहीं, बल्कि पात्रों की स्थानीय भावनाओं में है." उदाहरण के लिए, पुष्पा की कहानी – एक गाँव के लड़के का लाल चंदन की तस्करी का सफर – बॉलीवुड को "छोटा" लगता, लेकिन इसने 2000 करोड़ रुपये कमाए! बॉलीवुड 'सबको खुश करने' की कोशिश में अपनी पहचान खो रहा है. 2024 के हिट्स (स्त्री 2, मंजुम्मल बॉयज़) भी स्थानीय कहानियों की ताकत दिखाते हैं.
2. सिंगल प्रोड्यूसर सिस्टम : कॉर्पोरेट नोट्स का जाल नहीं : कन्नड़ फिल्मकार हेमंत एम राव (सप्त सागरदाचे एलो) बताते हैं, "दक्षिण में एक प्रोड्यूसर को पिच करो, अगर पसंद आई तो फिल्म बन जाती है." जबकि बॉलीवुड के कॉर्पोरेट ऑफिस में स्क्रिप्ट 6 महीने 'नोट्स' के चक्कर में फँस जाती है. तमिल निर्देशक सी प्रेम कुमार (96) का अनुभव : "एक मीटिंग में अजनबी व्यक्ति ने फीडबैक दिया, मुझे पूछना पड़ा – 'आप हैं कौन?'"
3. फीडबैक फ़ैक्टर : 'पोस्टमॉर्टम पैनल' से बचें : बॉलीवुड में 'नोट्स' का भूत स्क्रिप्टराइटर्स को डराता है. विवेक कहते हैं, "कॉर्पोरेट की बेमतलब टिप्पणियाँ क्रिएटिव उत्साह को मार देती हैं." हेमंत इसे 'पोस्टमॉर्टम पैनल' कहते हैं – फिल्म जन्म लेने से पहले ही उसकी शव परीक्षा! उदाहरण : एक प्रोडक्शन हाउस फिल्म स्कूल के छात्रों से स्क्रिप्ट की समीक्षा करवाता है. कल्पना करें, राजमौली या हिरानी को 19 साल के नौसिखिए के 'नोट्स' मिलें!
4. एल्गो फिल्ममेकिंग : फॉलोअर्स बनाम टैलेंट : बॉलीवुड में कलाकारों का चयन सोशल मीडिया फॉलोअर्स के आधार पर हो रहा है. विडंबना यह कि बेहतरीन एक्टर्स भूमिकाएँ नहीं पाते, जबकि फॉलोअर्स वाले 'लकड़ी के एक्टर्स' फिल्में लूट रहे हैं. यह ट्रेंड दक्षिण में कम है, जहाँ भूमिका के अनुकूल कलाकार चुने जाते हैं.
5. मार्केटिंग की आलसी रणनीति : 'पैन-इंडिया' का झांसा : हेमंत मानते हैं, "फिल्में सभी के लिए नहीं बनतीं. हमें 10 में से 8 दर्शकों को टारगेट करना चाहिए." लेकिन बॉलीवुड की मार्केटिंग टीमें फिल्मों को इतना साधारण बना देती हैं कि वे किसी को भी पसंद नहीं आतीं. ‘बड़े मियाँ छोटे मियाँ’ जैसे फ्लॉप इसका उदाहरण हैं.
दक्षिण सिनेमा की सफलता का मंत्र स्पष्ट है : सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव, क्रिएटिव स्वतंत्रता, और दर्शकों की बुद्धिमत्ता पर भरोसा. जब तक बॉलीवुड कॉर्पोरेट नोट्स, एल्गोरिदम और आलसी मार्केटिंग के जाल में फँसा रहेगा, तब तक दक्षिण का दबदबा बना रहेगा. सवाल यह है – क्या मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री अपने 'नंगे राजा' को आईना दिखाने का साहस कर पाएगी?
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.