27/04/2025 : आतंकवाद और आप | कश्मीरी छात्रों को धमकियां | संदिग्धों की सजा परिवारों को | देशभक्ति की कमी | भारत क्या करे | पाकिस्तान जाँच के पक्ष में | बालाकोट की नाकामयाबी | गांधी क्या करते?
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
आतंकी हमले से टीआरएफ का अब इंकार
मुस्लिम मरीज का डॉक्टर ने इलाज से मना किया
हमले का कारण कमज़ोर देशभक्ति : पीयूष गोयल
भागवत ने अहिंसा को हमारा स्वाभाव बताया पर गुंडों को सबक सिखाना धर्म
लंदन में आमने-सामने भारत-पाकिस्तान के नागरिक
पूरा देश हर नागरिक के लिए घर है : गवई
नेशनल हेराल्ड : सोनिया, राहुल को नोटिस जारी करने से कोर्ट का इनकार
स्टालिन सरकार और राजभवन के बीच ‘रार’ बढ़ी
पांच साल बाद फिर कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होगी
पोप फ्रांसिस को विदाई
ट्रम्प और ज़ेलेंस्की के वेटिकन में 15 मिनट
ईरान के बंदरगाह पर भीषण विस्फोट, 516 लोग घायल
दलित दूल्हे पर घोड़ी चढ़ने पर बरसाए पत्थर
क्या आप आतंकवादियों के साथ हैं?
निधीश त्यागी
ज़ाहिर है, इस वक़्त पूरा देश ही एक तरह के भावनात्मक उफान पर है. परिवारों के साथ पहलगाम गये लोगों को जिस नृशंसता के साथ मारा गया, वह बहुत दुखद है. आतंकवाद खत्म होना ही चाहिए. आतंकवादियों को सज़ा मिलनी ही चाहिए. पर इसके साथ ही यह कुछ सोचने, सवाल करने का भी समय है. यह देखने का भी कि हमारा निजी और सामूहिक बर्ताव कैसा है. कहीं आप तो कुछ ऐसा नहीं कर रहे, जिसकी वजह से आतकंवादियों का मिशन कामयाब हो रहा हो. पहलगाम की घटना के बाद भी. क्या आपके जीने, सोचने, महसूस करने का एजेंडा आतंकवादी तय कर रहे हैं? अगर आप पहलगाम हमले के आतंकवादियों के साथ नहीं हैं तो आपको इन 12 बातों पर विचार करना चाहिए.
पहली बात तो ये कि आप उन आतंकवादियों को किस तरह से देखते हैं. क्या वे ऐसे नौजवान हैं, जिनके दिमाग में नफरत, गुस्सा, हिंसा, बदले की भावना भरी गई है या आई है. ऐसा क्या हुआ है उनके साथ कि वे अपनी जान को जोखिम में डाल कर, अपनी जिंदगी, रिश्ते, करियर ताक पर रख कर अजनबियों को अपनी गोलियों का शिकार बनाने निकल पड़े. किसकी बंदूक है उनके हाथ में. किसके हित सधने हैं इससे. इसमें मजहब का भी हाथ है. वे अपनी ही कौम के ज्यादातर लोगों से अलग होकर इतने कट्टर हुए हैं. उनके बारे में आप कितना सोच पाए हैं. क्या वे पढ़े लिखे हैं, क्या उनके दिमाग और दिल खुल सके हैं? क्या वे धर्म और राजनीति के गड्डमड्ड का शिकार हैं. इनके ज्यादातर जवाब हां में हैं. पर सवाल ये है कि क्या यही प्रवृत्तियां किसी तरह से हमारे भी भीतर जड़ें जमा रही हैं. क्या हमारे दिमागों में ऐसे ही शोर होने लगे हैं.
कहीं आप इस शोर के शिकार तो नहीं बन रहे? हर तरफ शोर मचा हुआ है. चैनलों में. राजनीति में. मुहल्लों में. आपके और मेरे डिजिटल डिवाइस में. व्हाट्स एप ग्रुप में. हर दिन औसत भारतीय करीब पाँच घंटे मोबाइल पर लगा हुआ है. इतने सारे मैसेज आए जा रहे हैं, जो ट्रिगर करते हैं, उकसाते हैं. इससे पहले कि आप उन्हें सोच–समझ, प्रोसेस कर पाएं, नये आ जाते हैं. हर दिन हर घंटे आपकी सब तरफ यही चल रहा है. क्या आप उन्हें देख, सुन अपनी समझ बना पा रहे हैं? क्या आप देख–परख पा रहे हैं, कि कोई इस तरह का शोर क्यों कर रहा है. तथ्य क्या है. व्यावहारिक धरातल पर सच्चाई कैसी है. क्या आपका इस्तेमाल किया जा रहा है आतंकवाद के मूल में छिपे एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए.
अगर आपमें भी नफरत और हिंसा का भाव आ रहा है, तो शायद आप इन्हीं के एजेंडे पर चल रहे हैं. उनका मकसद लोगों को मारकर कुछ और हासिल करना भी था. वह आपको भड़काना चाह रहे थे और आप भड़क गये. आपका भड़कना उनकी कामयाबी है.
मैंने ऐसी खबरें पढ़ीं, जहां महिला डॉक्टर ने उन मरीजों का इलाज करने से इंकार कर दिया, जो मुस्लिम थे. जाहिर है, ये मरीज न तो सरहद पार से आये थे, न बंदूकें लेकर वे किसी को मारने आये थे. न ही वे आतंकवादी थे. वे तकलीफ में थे, जिसके लिए उन्हें डॉक्टरी सहायता चाहिए थी. ये आतंकवादियों की कामयाबी है कि हम अपनी डॉक्टरी की शपथ, अपनी इंसानियत, अपनी करुणा भूल कर वह करना ही बंद कर दें, जिसके लिए खुद हमने, हमारे देश, सरकार, समाज, परिवार ने हमें इस हुनर के लायक बनाया है. ये पहली बार नहीं हो रहा है. इस तरह की प्रतिक्रिया बताती है कि हम किस कदर सुन्न होते जा रहे हैं. और हम किसी भी हद तक जा सकते हैं.
अगर आप चुप्पी साध लेते हैं, जब आप या आप में से ही कोई किसी कमजोर व्यक्ति को तकलीफ दे रहा होता है. जब कोई किसी को पीट रहा होता है. नीचा दिखा रहा होता है. उनकी संपत्तियों पर हमले कर रहा होता है. उनसे वे नारे कहने को कह रहा होता है, जो उनके यकीन के नहीं हैं. उनकी हत्या कर रहा होता है. अगर आपको इसमें मज़ा आने लगा है, तो ये आतंकवादियों की कामयाबी है.
आतंकवादी तब सफल हैं, जब हम बंदूकधारी हत्यारों का बदला कमजोर, मामूली, असहाय लोगों, बच्चों, औरतों और बुजुर्गों से ले रहे हों. हर मुसलमान, जो हिंदू के साथ ऐसा करता हो, और हर हिंदू मुसलमान के साथ. जब हम दूसरों के बच्चों के साथ ऐसा बर्ताव करने लगें, जो हम अपनों के साथ नहीं चाहते.
उन नेताओं और मीडिया से अगर आप सावधान नहीं हैं, जो आतंकवादियों की ही नफरत, हिंसा, बंटवारे का जहर मेरे और आपके दिमाग में भर रहे हों. जिनकी जनपक्षधरता संदिग्ध हो. जो एक को दूसरे से ज्यादा महत्व देते हों. जो अमन के नहीं, बल्कि बदले के भाव को तूल देते हों. बदला, जो सबको अंधा कर देगा, कर रहा है. जब हम सच को उसकी अपनी रोशनी, वजन, अनुपात, प्राथमिकता नहीं देख पाते.
अगर आप अराजकता के तरफदार हों. जब आप देश के संविधान, अदालत, कानून, मनुष्यता को दरकिनार कर सब कुछ अपनी भावनात्मक उत्तेजना से तय कर लेना चाहते हों. जब आपका प्रोसेस पर यकीन उठ चुका हो. जब आप एक की सजा दूसरे को देने के तरफदार हों. जब आप दीवारें खड़ी करने के पक्ष में हों, न कि दरवाजे खोलने के.
जब आपने नौ में सारे रस छोड़कर सिर्फ झूठे वीर रस को अपना लिया है, जो दरअसल वीभत्स ज्यादा है. जो आपको दिखलाई नहीं दे रहा. अगर आप बहादुरी और मजबूती की असली और प्रामाणिक परिभाषाएं जानने के बजाय मीडिया और राजनीति की नकली नूराकुश्तियों के नशेड़ी हो चुके हों. आप खबरों में एंटरटेनमेंट हासिल करने लगे हों. जैसा डबल्यू डबल्यू एफ के नकली और फिक्सड मुकाबलों में होता है. अगर आप बिना तथ्य की जाँच किये, दूसरा पक्ष देखे–सुने, बिना उसका इरादा समझे, जो मिला उसी को सच मान रहे हों. अफीम जैसा भी हो, असल का, धर्म का या वीडियो गेम का, हमें बतौर व्यक्ति, नागरिक, और देश कमजोर ही करता है.
जब आप अपनी सरकार और नेता के कामकाज और रिकॉर्ड पर सवाल करना बंद कर देते हों. ऐसा करके आप इस देश को चलाने में अपनी हिस्सेदारी को तो छोड़ ही रहे हैं, बल्कि अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं. आप उस अराजकता को बढ़ाने के हिस्सेदार हैं.
अगर आप अपनी डिजिटल जिंदगियों के असर के बारे में लापरवाह हैं. अगर आपने कभी ब्रेन फॉग या ब्रेन रॉट के बारे में नहीं जानना चाहा. 'ब्रेन रॉट' का मतलब है, "किसी व्यक्ति की मानसिक या बौद्धिक स्थिति का कथित ह्रास, विशेष रूप से तुच्छ या अनचैलेंजिंग समझी जाने वाली सामग्री (अब विशेष रूप से ऑनलाइन सामग्री) के अत्यधिक उपभोग के परिणामस्वरूप देखा जाता है. साथ ही: ऐसी कोई चीज जिसे इस तरह के ह्रास की ओर ले जाने वाला माना जाता है." ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के लिए यह 2024 का ‘वर्ड ऑफ द इयर’ था.
जब आपको क्रिकेट और बॉलीवुड से लेकर कश्मीर तक, पड़ोस से लेकर चुनाव आयोग तक, अदालत से लेकर पुलिस थाने तक मजहब के अलावा कुछ भी नहीं दीख रहा हो. जब आपको नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, रोजी–रोटी के सवाल गौण लगने लगे हों. जब आप अच्छे संगीत की दाद चाह कर भी नहीं दे पा रहे हों तो. आप देख ही नहीं पा रहे कि कश्मीर के कितने लोग, कितने नौजवान वहां आने वाले लोगों की मदद के लिए, अमन के लिए और इंसानियत के लिए खड़े होते आये हैं.
अगर इन 12 बातों पर आपका जवाब नहीं में है, तो यकीन मानिये, आप आतंकवाद की तरफ नहीं हैं. और अगर हां में है तो आतंकवाद की कामयाबी में आपका भी हाथ है. आप खुद को बधाई दे सकते हैं.
पहलगाम हमला
कश्मीरी छात्रों को धमकियां, अलगाव का सामना
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद कम से कम चार उत्तरी राज्यों में रह रहे कश्मीरी छात्रों को धमकियों और अलगाव का सामना करना पड़ रहा है. आर्टीकल 14 के लिए मसरत नबी ने रिपोर्ट की है.
चंडीगढ़ में रहने वाली 22 वर्षीय कश्मीरी छात्रा अरीबा ने बताया कि उसकी एक दोस्त को कैब से बाहर खींचकर अजनबियों ने धमकाया. "आप कश्मीरी ही पहलगाम जैसे हमलों के लिए जिम्मेदार हो," उन्होंने चिल्लाकर कहा. अरीबा अब अपने किराए के कमरे में खुद को बंद कर के डरी हुई है.
उत्तराखंड में हिंदू रक्षा दल के सदस्यों ने देहरादून में कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को धमकाया और राज्य छोड़ने या "परिणाम भुगतने" को कहा. सोशल मीडिया पर कश्मीरियों के खिलाफ नफरत बढ़ गई है.
फ़ैजान शफ़ी, देहरादून के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के 21 वर्षीय छात्र, ने हमले के बाद डर के मारे रात भर नींद नहीं आने की बात बताई. "मैंने हेडलाइन देखते ही जान लिया कि हमें इसके लिए भुगतना पड़ेगा," उन्होंने कहा. "कोई और अपराध करता है, और हम सभी संदिग्ध बन जाते हैं."
कश्मीरी छात्रों ने बताया कि उनके कमरों को निशाना बनाया गया, देर रात दरवाजों पर जोर से दस्तक दी गई और धमकी भरे नोट दरवाजों के नीचे से फिसलाए गए.
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में, कश्मीरी छात्रों और पेशेवरों को मकान मालिकों से तुरंत खाली करने या हिंसक परिणामों का सामना करने की धमकियां मिलीं.
जम्मू के जानीपुर में प्रदर्शन हुए, जिनमें कश्मीरी मुस्लिमों के खिलाफ नफरत भड़काने वाले नारे लगाए गए. कश्मीरी छात्रों को निशाना बनाया गया और कुछ को पीटा भी गया.
जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुहामी ने कहा कि वे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू से रोजाना 600-700 सहायता के फोन कॉल प्राप्त कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि इस बार 2019 के पुलवामा हमले के बाद के मुकाबले कम हिंसा है, क्योंकि कश्मीरियों ने पर्यटकों की हत्या की निंदा की है और अधिकारी अब उनकी मदद के लिए तत्पर हैं.
"बस एक बार, मैं चाहता हूँ कि कोई कहे, 'यह तुम्हारी गलती नहीं थी'," फ़ैजान शफ़ी ने कहा. "लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा. क्योंकि हमें दोष देना हमेशा आसान होता है."
आतंकी संदिग्धों की सजा उनके परिवारों को
पहलगाम आतंकी हमले के बाद, बीते दो दिनों में दक्षिणी कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों में लश्कर-ए-तैयबा के संदिग्ध सदस्यों के परिवारों के कम से कम सात आवासीय घरों को अधिकारियों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया है. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, पुलवामा, शोपियां, कुलगाम और अनंतनाग जिलों में गुरुवार (24 अप्रैल) और शुक्रवार (25 अप्रैल) को 48 घंटों के भीतर सात लश्कर सदस्यों के परिवारों के घरों को गिरा दिया गया. लक्षित किए गए संदिग्धों की पहचान अहसान उल हक शेख (मुरान गांव), हरीस अहमद (दोनों पुलवामा जिले में), जाकिर अहमद गनी, जाहिद अहमद (कुलगाम के मटलहामा निवासी), शाहिद अहमद कुटे (शोपियां निवासी), आसिफ अहमद शेख (त्राल) और आदिल ठोकर (अनंतनाग के बिजबेहरा) के रूप में की गई है.
शेख और ठोकर पर पहलगाम हमले में सीधी भागीदारी का आरोप है, जिसमें 26 नागरिक, अधिकतर पर्यटक, मारे गए थे. कुछ संदिग्ध 2018 में वैध पासपोर्ट पर पाकिस्तान जाकर लश्कर में शामिल हुए माने जाते हैं. सभी मामलों में, केवल लक्षित इमारतों को नुकसान पहुंचाने के लिए नियंत्रित विस्फोटों का उपयोग किया गया.
इन कार्रवाइयों पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन, सेना या पुलिस की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में संदिग्धों के घरों को नोटिस दिए बिना गिराने की निंदा की थी, यह कहते हुए कि आश्रय का अधिकार संविधान के बुनियादी ढांचे के हिस्से के रूप में एक मौलिक अधिकार है. आसिफ शेख की बहन यासमीना ने कहा, "भले ही मेरा भाई पहलगाम हमले में शामिल था, लेकिन हमारे परिवार का इससे क्या लेना-देना? बिना किसी गलती के हमारे माता-पिता को क्यों सजा दी जा रही है?"
आदिल ठोकर की मां शहजादा बानो ने बताया कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया था. "अगर वह हमले में शामिल था, तो विध्वंस शायद उचित है. लेकिन अगर वह निर्दोष निकला तो हमें कौन मुआवजा देगा?" उन्होंने पूछा.
पीएम शहबाज़ ने हमले की स्वतंत्र जाँच का सुझाव दिया : पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 पर्यटकों की मौत वाले आतंकी हमले की "निष्पक्ष और पारदर्शी" जाँच में सहयोग का प्रस्ताव रखा. उन्होंने खैबर-पख्तूनख्वा के काकुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में कहा, "यह दुखद घटना आरोप-प्रत्यारोप का हिस्सा है. पाकिस्तान किसी भी विश्वसनीय जाँच में शामिल होने को तैयार है."
हालाँकि, भारत ने अतीत में तीसरे पक्ष की भूमिका को हमेशा खारिज किया है. शहबाज़ ने 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक का ज़िक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तानी सेना "देश की संप्रभुता की रक्षा में सक्षम" है. इस बीच, पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में लश्कर-ए-तैयबा को "निष्क्रिय" बताया और कहा कि उसके सदस्य "नज़रबंद" हैं. भारत का दावा है कि हमले की ज़िम्मेदारी लेने वाला संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (टीआरएफ) लश्कर और हिज़बुल का ही छद्म रूप है.
आतंकी हमले से टीआरएफ का अब इंकार : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी लेने के बाद प्रतिबंधित आतंकी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (टीआरएफ) ने अपने बयान को वापस लेते हुए हमले में शामिल होने से इनकार कर दिया है. सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, यह कदम पाकिस्तान प्रशासन के दबाव और घाटी भर में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद उठाया गया. टीआरएफ, जिसे 2023 में भारत सरकार ने अवैध गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के तहत "आतंकी संगठन" घोषित किया था, ने अपनी वेबसाइट पर जारी बयान में कहा, "पहलगाम घटना का टीआरएफ से कोई संबंध नहीं है. यह आरोप झूठे और साज़िशन हैं."
संगठन ने दावा किया कि हमले की ज़िम्मेदारी लेने वाला संदेश उनके डिजिटल प्लेटफॉर्म से "साइबर घुसपैठ" के ज़रिए डाला गया, जिसमें भारतीय साइबर एजेंसियों का हाथ हो सकता है. हालांकि, सुरक्षा अधिकारियों ने इस दावे को खारिज करते हुए इसे टीआरएफ और पाकिस्तान की "मजबूरी" बताया.
गौरतलब है कि हमले के बाद घाटी में पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ़ ज़बरदस्त प्रदर्शन हुए. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, पाकिस्तान के विरुद्ध वैश्विक राय मजबूत करने की भारत की कूटनीतिक पहल भी टीआरएफ के इस पलटवार का कारण हो सकती है.
राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में रक्षा ऑपरेशन्स के लाइव कवरेज पर रोक : सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने शनिवार को सभी मीडिया संस्थानों, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को एक एडवाइजरी जारी कर रक्षा अभियानों और सुरक्षा बलों की गतिविधियों की लाइव कवरेज करने से बचने का निर्देश दिया. मंत्रालय ने कहा कि ऐसी संवेदनशील जानकारी का प्रसारण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा कर सकता है. एडवाइजरी के अनुसार, मीडिया को "स्रोतों पर आधारित" रिपोर्टिंग, रियल-टाइम विजुअल्स या सेना की गतिविधियों के प्रसारण से बचना चाहिए. इससे आतंकी तत्वों को फायदा हो सकता है, ऑपरेशन प्रभावित हो सकते हैं और जवानों की जान खतरे में पड़ सकती है. मंत्रालय ने करगिल युद्ध, 26/11 मुंबई हमले और कंधार हाइजैकिंग जैसे उदाहरण देते हुए बताया कि अतीत में बिना प्रतिबंध की मीडिया कवरेज से राष्ट्रहित को नुकसान हुआ था. साथ ही, केबल टीवी नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2021 के तहत मीडिया को याद दिलाया गया कि आतंकवाद-रोधी ऑपरेशन्स की लाइव कवरेज नहीं दिखाई जा सकती. ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी के ब्रीफिंग तक ही रिपोर्टिंग सीमित रखनी होगी. मंत्रालय ने सभी हितधारकों से संयम, संवेदनशीलता और जिम्मेदारी बरतने की अपील की है.
मुस्लिम मरीज का डॉक्टर ने इलाज से मना किया
क्योंकि वह मुस्लिम है, यह कहकर कोलकाता के एक डॉक्टर ने सात महीने की गर्भवती महिला का इलाज करने से इनकार कर दिया. यह घटना पहलगाम में आतंकी हमले के बाद की है. महानगर के महेशतला पुलिस थाने और पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत में आरोप लगाया गया कि डॉक्टर पिछले सात महीनों से महिला का इलाज कर रही थीं और उन्हें उसके पहले नाम-कोंकणा-से जानती थीं. जब डॉक्टर ने उसका उपनाम-खातून-देखा, तो उन्होंने कथित तौर पर कहा कि वह मुस्लिम मरीज का इलाज नहीं करेंगी, हमलों का जिक्र किया और धार्मिक पक्षपात के आरोप लगाए.
हालांकि, आरोपी डॉक्टर ने अपनी शिकायत में कहा कि यह मरीज द्वारा उनके तीन दशक पुराने करियर को निजी कारणों से नुकसान पहुंचाने की कोशिश है. डॉक्टर ने कहा, "मैं कानून का सहारा लूंगी." उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि टीवी पर खबरें देखते समय उन्होंने अपने स्टाफ से कुछ बातें कही हों, लेकिन मरीज से कोई टिप्पणी नहीं की. डॉक्टर ने शुक्रवार को मानहानि का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई और धर्म पर कोई टिप्पणी करने से इनकार किया.
विश्लेषण | राधा कुमार
भारत क्या कर सकता है हमले के बाद?
हाल ही में पहलगाम में हुए सांप्रदायिक आतंकी हमले में 26 लोगों की जानें गईं, जिनमें 24 भारतीय पर्यटक, एक नेपाली नागरिक और एक कश्मीरी गाइड शामिल थे जिन्होंने अपने ग्राहकों को बचाने में जान दे दी. इस जघन्य कृत्य की जम्मू-कश्मीर, पूरे भारत और विश्व भर में व्यापक निंदा हुई है. विशेष रूप से कश्मीर में, लोगों ने प्रदर्शन कर दुख जताया और आतंकवादियों के खिलाफ रोष प्रकट किया, यह कहते हुए कि "वे हमारे मेहमान थे" और "यह मेरे नाम पर नहीं".
राधा कुमार एक नीति विशेषज्ञ हैं और पहले कश्मीर मे सरकारी मध्यस्थ रह चुकी हैं. द वायर में प्रकाशित उनके लेख में इस बात पर खेद जताया गया है कि भारतीय मीडिया ने इन कश्मीरी विरोध प्रदर्शनों को रिपोर्ट करने में 36-48 घंटे लगा दिए और जब किया भी तो सतही तौर पर, कश्मीरी प्रतिरोध के इतिहास के प्रति अज्ञानता दर्शाते हुए. यह गलत धारणा है कि कश्मीरियों ने पहली बार आतंकवाद का विरोध किया है; उन्होंने 1948-49 में भी विरोध किया था और 1990 के दशक में भी अधिकांश लोग उग्रवाद के खिलाफ थे. नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों ने आतंकवाद में भारी कीमत चुकाई है.
राधा कुमार के मुताबिक 2002-2013 के बीच हिंसा में कमी काफी हद तक कश्मीरियों की शांति प्रक्रिया में भागीदारी और समर्थन के कारण आई थी. 2019 में स्वायत्तता और राज्य का दर्जा छीने जाने के बाद भी वे संयमित रहे, और हालिया हमले में स्थानीय लोगों ने ही घायलों की मदद की. इसके बावजूद, भारत के अन्य हिस्सों में कश्मीरी छात्रों को धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसा कि 2010 में हुआ था. लेखक सवाल करते हैं कि क्या गृह मंत्री अमित शाह उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएंगे, जैसा तत्कालीन गृह मंत्री चिदंबरम ने किया था.
लगभग 1500 लोगों को एहतियातन हिरासत में लेने पर भी सवाल उठाए गए हैं, क्योंकि यह संभावना नहीं है कि इतने सारे लोगों के पास आतंकियों के बारे में जानकारी हो, और इससे असंतोष बढ़ सकता है. लेखक का तर्क है कि यह एकजुटता का क्षण सांप्रदायिक तनाव कम करने, मानवाधिकार व राजनीतिक अधिकार बहाल करने और कश्मीर-केंद्रित शांति प्रक्रिया शुरू करने का एक दुर्लभ अवसर है. कश्मीरियों द्वारा हमले की निंदा मोदी सरकार को न केवल उनका विश्वास जीतने का, बल्कि देशव्यापी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रोकने का भी मौका देती है.
मानवाधिकार बहाली के तहत हिरासत में लिए गए निर्दोष लोगों को रिहा करने और कानूनी सहायता सुनिश्चित करने का सुझाव दिया गया है. साथ ही, सुरक्षा और लोकतांत्रिक विश्वास बहाली के लिए मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, सेना और पुलिस प्रमुखों को शामिल कर एक समन्वय समिति बनाने का प्रस्ताव है. राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी को एक गलती माना गया है, जो आतंकवादियों के मंसूबों को ही पूरा करेगा. सुरक्षा का तर्क कमजोर है क्योंकि यह वर्तमान में केंद्र और उपराज्यपाल के अधीन है, और हालिया चूक उनकी जिम्मेदारी है.
गंभीर सुरक्षा चूकों पर प्रकाश डाला गया है, जैसे खुफिया चेतावनी के बावजूद पहलगाम जैसे संवेदनशील इलाके को असुरक्षित छोड़ना और वहां से सीआरपीएफ पोस्ट हटाना. इन चूकों की जांच की मांग की गई है. भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सिंधु जल संधि को निलंबित करने जैसे कदम उठाए हैं, जिनकी प्रभावशीलता संदिग्ध है. पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की है. सीमा पार आतंकवाद समाप्त करने के लिए पाकिस्तान का सहयोग आवश्यक है, लेकिन पिछला अनुभव निराशाजनक रहा है.
अंत में, राधा कुमार ने उम्मीद जताई है कि मोदी सरकार सांप्रदायिक भाषणों पर लगाम लगाएगी, कश्मीरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, जम्मू-कश्मीर प्रशासन को सशक्त बनाएगी और शांति प्रक्रिया शुरू करेगी.
विश्लेषण | सुशांत सिंह
बालाकोट मिशन अगर कामयाब होता, तो पहलगाम क्यों हुआ?
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सिंह के अनुसार, यह सवाल है कि क्या भारत फिर से बालाकोट जैसी कार्रवाई कर सकता है. उन्होंने बताया कि बालाकोट भविष्य के आतंकी हमलों को रोकने में विफल रहा. यह सैन्य सफलता नहीं, बल्कि (चुनावों से ठीक पहले हुई) एक राजनीतिक सफलता थी, जिसका फायदा भाजपा ने उठाया. इसने परमाणु तनाव (जैसा कि अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पिओ ने बताया था) और सैन्य टकराव (जैसे भारतीय पायलट अभिनंदन का पकड़ा जाना) को बढ़ाया था. उन्होंने द स्क्रोल के शोएब दानियल से इस बारे में बातचीत की है.
भारत सरकार के बयानों को देखते हुए पाकिस्तान के खिलाफ सीधी सैन्य कार्रवाई की संभावना मौजूद है, लेकिन इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं.
सरकार पर अपने समर्थकों को संतुष्ट करने और पिछली कार्रवाइयों (2016 सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 बालाकोट) से कुछ 'बड़ा' करने का दबाव है. पर सुशांत के मुताबिक बालाकोट की कथित सैन्य विफलता और उसके बाद बढ़े तनाव को ध्यान में रखना होगा. मुख्य सवाल यह है कि कार्रवाई के बाद पाकिस्तान जवाबी हमला करेगा, तो भारत कैसे स्थिति को संभालेगा और दो परमाणु शक्तियों के बीच तनाव कैसे कम करेगा ? सेना की अपनी सीमाएं (सैनिकों, आधुनिक उपकरणों की कमी, चीन सीमा पर तैनाती) भी एक महत्वपूर्ण कारक हैं.
सुशांत सिंह के अनुसार, यह हमला निश्चित रूप से एक बड़ी विफलता थी: पहली तो सुरक्षा विफलता रही इलाके से CRPF बटालियन हटाई गई थी, और हमले के दौरान प्रतिक्रिया बेहद धीमी थी (पीड़ितों को 90 मिनट तक मदद नहीं मिली). दूसरी खुफिया विफलता, जिसकी वजह से खुफिया तंत्र स्थानीय समर्थन वाले हथियारबंद आतंकवादियों की मौजूदगी का पता लगाने में नाकाम रहा.
इसके पीछे यह मानने की गलती थी कि 'सामान्य स्थिति' लौट आई है, पर्यटक सुरक्षित रहेंगे और पर्यटन पर हमला नहीं होगा.यह हमला (और पहले पुंछ-राजौरी की घटनाएं) अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में 'सामान्य स्थिति' लौटने और आतंकवाद खत्म होने के मोदी सरकार के दावों को गलत साबित करता है. हिंसा 90 के दशक जैसी नहीं है, लेकिन यह 2019 से पहले ही कम हो चुकी थी. अनुच्छेद 370 हटाने से सुरक्षा बेहतर नहीं हुई है.
दिल्ली की दमनकारी नीतियों, हिन्दुत्व राजनीति और कश्मीरी विरोधी प्रचार ने स्थानीय समर्थन और खुफिया स्रोतों को नष्ट कर दिया है. गुस्सा बरकरार है, जो आतंकवाद के लिए जमीन तैयार करता है (भले ही पाकिस्तान का हाथ साबित न हो).
पर्यटन अर्थव्यवस्था के लिए अहम है, लेकिन कुछ मैदानी इलाकों के पर्यटकों का व्यवहार (मौजूदा इस्लामोफोबिक माहौल से प्रभावित) अक्सर आपत्तिजनक होता है, जिससे यह कश्मीरियों के लिए अपमान का अनुभव बन गया है. यदि भारत कोई प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई करता है, जिसका पाकिस्तान खंडन नहीं कर सकता, तो पाकिस्तान निश्चित रूप से जवाबी कार्रवाई करेगा (उनकी QPQ+ नीति के अनुसार - यानी बराबर से कुछ ज़्यादा). पाकिस्तानी सेना अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए ऐसा करने को बाध्य होगी. इससे तनाव और बढ़ने का खतरा है.
पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर का हालिया भड़काऊ भाषण (कश्मीर को 'शह रग' बताना) कोई नई बात नहीं है. इस भाषण और पहलगाम हमले के बीच सीधा संबंध स्थापित करना मुश्किल है. संभवतः यह एक आसान और असुरक्षित लक्ष्य पर किया गया हमला था.
सुशांत सिंह का कहना है विशेषज्ञ का मानना है कि भारत का मुख्यधारा (कॉर्पोरेट-स्वामित्व वाला) मीडिया सरकार या गृह मंत्रालय से कोई कठिन सवाल नहीं पूछेगा, जैसा कि पुलवामा, मणिपुर आदि के बाद भी नहीं हुआ. केवल कुछ विश्लेषक और स्वतंत्र मीडिया प्लेटफॉर्म ही सवाल उठाएंगे. सरकार से जवाबदेही की मांग न करना देश को कमजोर करता है और भविष्य की आपदाओं के लिए जमीन तैयार करता है. लोकतंत्र में जवाबदेही भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
विश्लेषण | टीएम कृष्णा
गांधी क्या करते?
मशहूर संगीतज्ञ और एक्टिविस्ट टीएम कृष्णा ने ‘द टेलीग्राफ’ में प्रकाशित अपने लेख में आतंकवादी हमले के बाद पहलगाम के दुःखद घटनाक्रम पर विचार करते हुए गहरे मानवीय संबंधों की वकालत की है. वे सोचते हैं कि यदि महात्मा गांधी आज होते, तो वे निश्चित रूप से पहलगाम जाते और पीड़ितों से मिलते, उनके साथ प्रार्थना करते और उन्हें सांत्वना देते.
लेखक इस बात पर चिंता व्यक्त करते हैं कि आज हम घटनाओं को धार्मिक पहचान के आधार पर देखते हैं. हालांकि पहलगाम में हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाया गया और एक मुस्लिम टट्टू चालक भी मारा गया, लेखक का मानना है कि जीवन की हानि को धर्म के आधार पर नहीं मापा जाना चाहिए. वे कहते हैं - "आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता. उनका धर्म सिर्फ़ आतंक है."
लेखक यह भी बताते हैं कि आजकल हर निंदा का मूल्यांकन किया जाता है और लोगों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने समुदाय के अनुसार प्रतिक्रिया दें. उनका मानना है कि शोक एक शक्तिशाली मानवीय अनुभव है जो सामाजिक विभाजनों को मिटा सकता है. जब लोग साथ दुःख महसूस करते हैं, तो उनके बीच की सीमाएं कम हो जाती हैं और वे एक-दूसरे को सांत्वना देते हैं.
वे चिंतित हैं कि हम अपने आघात के साथ क्या कर रहे हैं - क्रोध और नफरत प्रकट करते हैं, समूहों और वर्गों से अपनी पहचान बनाते हैं, जबकि हमें जीवन की हानि को सार्वभौमिक रूप से महसूस करना चाहिए.
अंत में, लेखक जे. कृष्णमूर्ति का उद्धरण देते हैं: "प्रेम सोच नहीं है, प्रेम स्मृति नहीं है... हमें वह सब नकारना होगा जो प्रेम नहीं है, जैसे ईर्ष्या, नफरत, हिंसा, और बाकी सब." इसके माध्यम से वे सुझाव देते हैं कि हमें धार्मिक विभाजन से ऊपर उठकर मानवता और प्रेम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
हमले का कारण कमज़ोर देशभक्ति : पीयूष गोयल
कुछ ही दिन पहले केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय आईटी स्टार्टअप उद्यमियों पर तंज किया था, जिस पर खासा बखेड़ा खड़ा हुआ था और विरोध भी. अब उसके बाद पहलगाम आतंकी हमले के बाद पीयूष गोयल ने 26 अप्रैल को मुंबई में कहा कि "जब तक 140 करोड़ भारतीय राष्ट्रवाद और देशभक्ति को अपना परमधर्म नहीं बनाएंगे, तब तक ऐसी घटनाएं देश को परेशान करती रहेंगी." गोयल ने कहा, "भारत की शक्ति विश्व में बढ़ रही है, जिससे कुछ लोग परेशान हैं. यह ऐसी शक्तियों का अंतिम प्रयास है. लेकिन भारत में ऐसा कोई स्थान नहीं बचेगा जहां आतंकवादियों को शरण मिले. जिस तरह नक्सलवाद समाप्त किया जा रहा है, उसी तरह पिछले छह वर्षों में आतंकवाद भी समाप्त हो रहा है."
24 अप्रैल को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में केंद्र सरकार ने पहलगाम हमले को "चूक" बताया था और कहा था कि स्थानीय अधिकारियों को सूचित नहीं किया गया था कि पर्यटकों को घटनास्थल पर ले जाया जाएगा. विपक्षी नेताओं ने सरकार पर "बैठक को गुमराह करने" का आरोप लगाया है, क्योंकि एक वरिष्ठ जम्मू-कश्मीर सरकारी अधिकारी के अनुसार, "बैसरण घास के मैदान के लिए कभी भी पुलिस अनुमति की आवश्यकता नहीं पड़ी, जो बर्फीले महीनों को छोड़कर पूरे वर्ष खुला रहता है." विपक्ष ने गोयल के बयान की आलोचना की है. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, "किरण रिजिजू ने कहा कि कुछ गलतियां हुई हैं, पीयूष गोयल कहते हैं कि कोई गलती नहीं हुई, भारत के 140 करोड़ लोगों में देशभक्ति की कमी है."
टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने कहा, "क्या पीयूष गोयल अब पहलगाम आतंकवादी हमले के लिए भारत के नागरिकों को दोष दे रहे हैं? मोदी सरकार पहले नागरिकों की सुरक्षा में विफल रहती है, फिर सीमा पार आतंकवाद के शिकार होने के लिए नागरिकों को दोष देती है. शर्मनाक!"
भागवत ने अहिंसा को हमारा स्वभाव बताया पर गुंडों को सबक सिखाना धर्म : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को पहलगाम हमले पर पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा, 'अहिंसा हमारा स्वभाव है, हमारा मूल्य है, लेकिन कुछ लोग नहीं बदलेंगे, चाहे कुछ भी कर लो, वे दुनिया को परेशान करते रहेंगे, तो उनका क्या करें?' उन्होंने कहा, “राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना है, राजा को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए.” भागवत नई दिल्ली में स्वामी विज्ञानंद की पुस्तक 'हिंदू मेनिफेस्टो' के विमोचन समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि अहिंसा हमारा धर्म है, लेकिन गुंडों को सबक सिखाना भी हमारा धर्म है. हम अपने पड़ोसियों का कभी नुकसान या अपमान नहीं करते, पर इसके बावजूद कोई बुराई पर उतर आए तो दूसरा विकल्प क्या है?
लंदन में आमने-सामने भारत-पाकिस्तान के नागरिक
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि 25 अप्रैल को लंदन में पाकिस्तान उच्चायोग के बाहर भारतीय समुदाय के सदस्यों ने पहलगाम आतंकवादी हमले की निंदा करते हुए विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान भारतीय प्रवासी समूहों और पाकिस्तान समर्थक विरोधकारियों के बीच आमना-सामना हुआ. भारतीय समुदाय द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियो में, एक पाकिस्तानी अधिकारी को मिशन भवन की बालकनी से प्रदर्शनकारियों को चिढ़ाते हुए देखा गया. वह अधिकारी एक पोस्टर पकड़े हुए था, जिसमें भारतीय वायुसेना के पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वद्र्धमान की तस्वीर और “चाय बहुत बढ़िया है” लिखा था, जो फरवरी 2019 में उनकी गिरफ्तारी के दौरान प्रसिद्ध हुआ था. वही अधिकारी “पाकिस्तान कश्मीरियों के साथ है” वाला बड़ा बैनर लिए खड़ा था और भारतीय प्रदर्शनकारियों की ओर गला काटने जैसा धमकी भरा इशारा करता हुआ नजर आया. बताया जा रहा है कि यह व्यक्ति पाकिस्तान सेना का रक्षा अटैशे, कर्नल तैमूर रहत था. पुलिस ने दोनों पक्षों के प्रदर्शनकारियों के बीच खड़ी होकर स्थिति को नियंत्रित किया. भारतीय प्रदर्शनकारी हाथों में “कश्मीर में आतंक बंद करो” और भारतीय झंडे लिए हुए थे.
पूरा देश हर नागरिक के लिए घर है : गवई
मणिपुर में संघर्षग्रस्त क्षेत्रों के पुनर्वास शिविरों का दौरा करने के अनुभव को याद करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि "पूरा देश भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले प्रत्येक निवासी का घर है." उन्होंने बताया कि शिविरों का दौरा करते हुए उन्होंने यह महसूस किया कि देश का हर कोना, हर नागरिक के लिए घर है, चाहे वह कहीं भी रहता हो.
नेशनल हेराल्ड : सोनिया, राहुल को नोटिस जारी करने से कोर्ट का इनकार
दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कहा, पहले आप चार्जशीट में पाई गई कमियों को पूरा करें. चार्जशीट में कुछ दस्तावेज या तो फाइल नहीं किए गए हैं या सही क्रम में नहीं हैं, जिसे ईडी को अगली सुनवाई से पहले ठीक करना होगा. विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने कहा, “जब तक मैं संतुष्ट नहीं हो जाता, तब तक ऐसा आदेश (नोटिस जारी करने का) पारित नहीं कर सकता.” इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 2 मई तय की गई है.
स्टालिन सरकार और राजभवन के बीच ‘रार’ बढ़ी
तमिलनाडु की स्टालिन सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच तकरार का असर दिखने लगा है. शुक्रवार को ऊटी में राजभवन द्वारा आयोजित वार्षिक कुलपति सम्मेलन से अधिकतर कुलपतियों ने दूरी बना ली. हफ्तों से इसकी तैयारी चल रही थी और व्यापक पैमाने पर निमंत्रण भेजे गए थे. तमिलनाडु के राज्य, केंद्रीय और निजी विश्वविद्यालयों के इस दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया. लेकिन, आमंत्रित 56 उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों में से केवल 18 ही सम्मेलन में शामिल हुए. यह सम्मेलन 2022 से हर साल आयोजित होता रहा है, पर इस बार बेहद कम उपस्थिति के कारण राज्य सरकार और राजभवन के बीच जारी राजनीतिक तनाव का केंद्र बन गया है. इसे राज्यपाल रवि के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि तमिलनाडु सरकार और राजभवन के बीच टकराव और बढ़ सकता है. क्योंकि राज्यपाल रवि ने स्टालिन सरकार पर कुलपतियों को डराने-धमकाने का आरोप लगाया है, ताकि वे उनके वार्षिक कुलपति सम्मेलन में भाग न लें. माना जा रहा है कि डीएमके के प्रतिद्वंद्वी एआईएडीएमके और बीजेपी के लिए, रवि-डीएमके विवाद का यह नया अध्याय अपनी राजनीतिक जटिलताएं लेकर आएगा.
चूंकि, कुछ ही कुलपति शुक्रवार को ऊटी में आयोजित सम्मेलन में पहुंचे, लिहाजा राजभवन के लिए असहज स्थिति निर्मित होना स्वाभाविक था. इसके बाद ही राज्यपाल ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य पुलिस की स्पेशल ब्रांच का इस्तेमाल कर कुलपतियों को सम्मेलन में न आने के लिए डराया-धमकाया. राज्यपाल रवि ने कहा, "हमारे एक कुलपति आज पुलिस स्टेशन में हैं. एक कुलपति ऊटी पहुंचे, लेकिन कुछ अभूतपूर्व हुआ - आधी रात को उनके दरवाज़े पर दस्तक दी गई, जहां राज्य की स्पेशल ब्रांच, खुफिया पुलिस गई और उनसे कहा कि अगर वे इस कार्यक्रम में भाग लेंगे तो वे घर नहीं जा पाएंगे."
राज्यपाल के इन आरोपों पर डीएमके के राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि ऐसी "झूठी बातें जो राज्य सरकार के खिलाफ उपद्रवी गतिविधियों को उकसाती हैं, एक गंभीर अपराध है."
बहरहाल, इस विवाद के चलते तमिलनाडु की राजनीति में और भी उथल-पुथल की संभावना है, क्योंकि डीएमके और राज्यपाल के बीच पहले से ही विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति सहित कई मुद्दों पर तनातनी चल रही है. प्रेक्षकों का मानना है कि यह दूसरा मौका है जब राज्यपाल के प्रभुत्व को चुनौती मिली है. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को राज्यपाल के अधिकारों पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए रवि द्वारा लंबित 10 विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने के निर्णय को अवैध और कानून की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण करार दिया था. यह फैसला डीएमके के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत के रूप में देखा गया. इसके बाद डीएमके ने राज्यों के अधिकारों की रक्षा और संघीय ढांचे को संतुलित करने के लिए एक समिति गठित की. इसके जरिए उसने अगले साल होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले “संघवाद” को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की है. यह स्थिति एआईएडीएमके के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी है और अब फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन में है. क्योंकि अतीत में एआईएडीएमके के नेताओं ने भी राज्य की वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता तथा केंद्र के हस्तक्षेप पर चिंता जताई है. संक्षेप में, एआईएडीएमके कभी भी डीएमके को राज्य की स्वायत्तता के लिए संघर्ष करने वाले दल की छवि अकेले हासिल करने नहीं देना चाहेगी.
पांच साल बाद फिर कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होगी : पांच साल बाद फिर शुरू होगी कैलाश मानसरोवर यात्रा. इस साल जून में उत्तराखंड और सिक्किम के रास्ते यात्रियों का जत्था कैलाश मानसरोवर जाएगा. कैलाश मानसरोवर चीन के कब्जे वाले तिब्बत में है. पिछले पांच सालों से चीन कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए इजाजत नहीं दे रहा था.
उद्धव की शिवसेना ने राज से सुलह के संकेत दिए : महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने शनिवार को राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) से गठबंधन के संकेत दिए हैं. पार्टी ने “एक्स” पर लिखा- मुंबई और महाराष्ट्र के हित के लिए एकजुट होने का समय आ गया है. पार्टी कार्यकर्ता मराठी गौरव की रक्षा के लिए तैयार हैं.
पोप फ्रांसिस को विदाई
'द गार्डियन' के लिए एंजेला जिउफ्रीडा की रिपोर्ट है कि जब 14 सफेद दस्ताने पहने पालबियरर्स ने 16वीं सदी के सेंट पीटर्स बेसिलिका की वेदी से पोप के लकड़ी के ताबूत को उठाया, जहां उनके शव को तीन दिनों तक सार्वजनिक दर्शन के लिए रखा गया था और उसे खुले मैदान में अंतिम संस्कार के लिए ले गए, तो भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से उन्हें विदाई दी. पोप फ्रांसिस को उनके अंतिम संस्कार के दौरान "जनता के बीच रहने वाले, सभी के प्रति खुले हृदय वाले पोप" के रूप में श्रद्धांजलि दी गई. इस अवसर पर तीर्थयात्रियों और शरणार्थियों से लेकर विश्व नेताओं और राजघरानों तक, विभिन्न वर्गों के शोकाकुल लोग एकत्रित हुए. 88 वर्षीय फ्रांसिस का सोमवार को स्ट्रोक और उसके बाद हृदयगति रुकने के कारण निधन हो गया था, जिससे सदियों पुराने रस्मों और एक विशाल, सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध सुरक्षा और लॉजिस्टिक संचालन की प्रक्रिया शुरू हुई, जो कि अप्रैल 2005 में जॉन पॉल द्वितीय के अंतिम संस्कार के बाद इटली में पहली बार देखने को मिली.
ट्रम्प और ज़ेलेंस्की के वेटिकन में 15 मिनट
'द गार्डियन' के लिए विलियम क्रिस्टू की रिपोर्ट है कि डोनाल्ड ट्रम्प और वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में भाग लेने के दौरान वेटिकन में मुलाकात कर रूस के साथ संभावित संघर्षविराम पर चर्चा की. यूक्रेनी राष्ट्रपति ने सेंट पीटर्स बेसिलिका में हुई इस बातचीत की एक तस्वीर भी साझा की है. व्हाइट हाउस ने इस मुलाकात को "बहुत उपयोगी" बताया, जबकि ज़ेलेंस्की ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ यह बातचीत बहुत प्रतीकात्मक रही और "यदि हम मिलकर परिणाम प्राप्त कर सके तो यह ऐतिहासिक बन सकती है." यह पहला मौका था जब ज़ेलेंस्की और ट्रम्प आमने-सामने मिले थे, फरवरी में व्हाइट हाउस में हुई एक कड़वी मुलाकात के बाद. उस समय ट्रम्प और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने ज़ेलेंस्की को अमेरिकी सहायता के लिए "अकृतज्ञ" कहकर फटकार लगाई थी. यूक्रेन और रूस के बीच 2022 में रूस के आक्रमण के बाद से जारी युद्ध को समाप्त करने के प्रयास में वाशिंगटन सक्रिय मध्यस्थता कर रहा है. शुक्रवार को, ट्रम्प के दूत स्टीव विटकॉफ़ ने मास्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से तीन घंटे तक मुलाकात की और वाशिंगटन की शांति योजना पर चर्चा की. ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म "ट्रुथ सोशल" पर कहा कि "ज्यादातर प्रमुख मुद्दों पर सहमति बन गई है," हालांकि उन्होंने विवरण साझा नहीं किया. उन्होंने कीव और मास्को के नेताओं के बीच संघर्षविराम समझौते पर हस्ताक्षर के लिए बैठक बुलाने का आह्वान किया, और कहा कि समझौता "बहुत करीब" है. हालांकि इसी बीच, बातचीत के साथ-साथ युद्ध भी जारी है. क्रेमलिन ने शुक्रवार को मास्को के पास एक वरिष्ठ रूसी जनरल की कार बम से मौत के लिए यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराया. एक दिन पहले, रूस ने यूक्रेन पर महीनों का सबसे घातक हमला किया, जिसमें उसने कीव की ओर 70 मिसाइलें और 145 ड्रोन दागे. इस हमले के बाद ट्रम्प ने सोशल मीडिया "ट्रुथ सोशल" पर पोस्ट किया - "मैं कीव पर रूसी हमलों से खुश नहीं हूं. यह आवश्यक नहीं था और बहुत खराब समय पर हुआ. व्लादिमीर, बस करो! हर हफ्ते 5000 सैनिक मारे जा रहे हैं. आइए शांति समझौता पूरा करें!"
ईरान के बंदरगाह पर भीषण विस्फोट, 750 लोग घायल : ईरान के दक्षिणी बंदरगाह शाहिद राजाई में हुए भीषण विस्फोट में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई और 750 से अधिक लोग घायल हो गए हैं. राज्य मीडिया के अनुसार, एक अधिकारी ने संकेत दिया है कि यह विस्फोट कंटेनरों में रखे रसायनों के कारण हुआ. ईरान की संकट प्रबंधन एजेंसी के प्रवक्ता ने खराब भंडारण व्यवस्था को इस विस्फोट का कारण बताया है. हालांकि, ईरानी सरकार ने अभी तक विस्फोट के सटीक कारण की पुष्टि नहीं की है, लेकिन उनका संदेह है कि ज्वलनशील रसायन इसके पीछे हो सकते हैं.
दलित दूल्हे पर घोड़ी चढ़ने पर बरसाए पत्थर
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ ज़िले के मोखरा गांव में शुक्रवार को एक दलित दूल्हे पर इसलिए पत्थर फेंके गए क्योंकि वह अपनी शादी की बारात में घोड़ी पर सवार था. यह घटना उस समय सामने आई जब एक वीडियो में दिखा कि "राच" (शादी से पहले का जुलूस) के दौरान दूल्हे को निशाना बनाया गया. जितेंद्र अहिरवार अपनी शादी की बारात के साथ गांव से गुजर रहे थे, जब आरोप है कि भान कुंवर राजा परमार ने उन्हें गालियां दीं और यह कहते हुए अपमानित किया कि "निचली जाति" का व्यक्ति उनकी बस्ती से घोड़ी पर सवार होकर नहीं गुजर सकता. इसके बाद भान कुंवर ने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए और दो अन्य लोग सूर्य पाल और द्रीगपाल भी उसके साथ जुड़ गए. इस घटना में चार लोग घायल हो गए. अपने दर्दनाक अनुभव को याद करते हुए जितेंद्र ने कहा - "यह मेरी शादी का दिन था, मेरे और मेरे परिवार के लिए खुशी का मौका. हम जब एक मुहल्ले से गुजर रहे थे, तभी हमें रोका गया, हम पर पत्थर फेंके गए और कहा गया कि घोड़ी से उतरकर नंगे पांव चलो. हमें जलील किया गया, कहा गया कि हम उनके घरों के पास चप्पल पहनकर भी न जाएं." जितेंद्र और उनके परिवार ने बदगांव धसान पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर आरोपियों भान कुंवर राजा परमार, सूर्य पाल और द्रीगपाल के खिलाफ मारपीट और जाति-आधारित भेदभाव की धाराओं में प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई है. बदगांव धसान थाना प्रभारी नरेंद्र वर्मा ने बताया कि महिला आरोपी को हिरासत में ले लिया गया है और अन्य दो आरोपियों की तलाश जारी है.
चलते-चलते
आईसीसी अब एक इवेंट कंपनी से ज्यादा कुछ नहीं रह गई है
विजडन के संपादक लॉरेंस बूथ ने विश्व क्रिकेट की स्थिति पर अपनी वार्षिक राय दी. इस दौरान उन्होंने आईसीसी के अध्यक्ष और पूर्व बीसीसआई सचिव जय शाह पर भी सख्त टिप्पणी की. पूरा आलेख यहां पढ़ सकते हैं. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के सचिव से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष बनने वाले जय शाह ने 2024 में क्रिकेट की दुनिया में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व किया. 30 नवंबर की रात 11:59 बजे तक, शाह बीसीसीआई के मानद सचिव थे, जो फरवरी में पाकिस्तान में होने वाले आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम भेजने से इनकार कर रहे थे. और मध्यरात्रि होते ही, वे आईसीसी के अध्यक्ष बन गए - वही आईसीसी, जो बीसीसीआई द्वारा पैदा की गई समस्या को हल करने की कोशिश कर रहा था.
यह स्थिति इतनी विचित्र थी कि सोशल मीडिया पर एक मीम वायरल हुआ, जिसमें एक व्यक्ति दो फोन पकड़े हुए था : "जय शाह (बीसीसीआई) जय शाह (आईसीसी) को सूचित कर रहे हैं". क्रिकेट प्रशासन, जो कभी हास्य का विषय नहीं रहा, अब चुटकुला बन गया था.
शाह के पदोन्नति पर प्रतिक्रियाएँ बहुत कहानी बताती हैं. बीसीसीआई से एक उत्साहित ईमेल आया जिसमें उनकी "शीर्ष तक की यात्रा जो प्रेरणादायक रही है" का वर्णन किया गया - जैसे यह सिंड्रेला की कहानी हो या फिर जैसी कोई गरीबी से अमीरी तक की कहानी हो. इसका कहीं जिक्र नहीं था कि उनके पिता, भारत के दूसरे सबसे शक्तिशाली राजनेता हैं. न ही बीसीसीआई और भारत की भाजपा सरकार के साथ रिश्तों का, जो पाकिस्तान के साथ संबंधों को बहाल करने के खिलाफ थी.
शाह के पूर्ववर्ती न्यूजीलैंड के ग्रेग बार्कले ने क्रिकेट को "भारत के जुए" के अधीन न होने देने का आग्रह किया था. जो बहुत देर से महसूस हुआ. बाकी सबसे, वास्तव में, कुछ खास नहीं आया. आखिरकार, भारतीय प्रशासक और प्रसारक पहले से ही खेल चला रहे थे. कमाई का मुख्य हिस्सा ले रहे थे. यह सुनिश्चित कर रहे थे कि विश्व कप उनके विशाल टीवी दर्शकों के अनुकूल हों. भले ही टूर्नामेंट दुनिया के दूसरी तरफ हो. कोई भारत को छेड़ना नहीं चाहता था.
समुदायिक स्वीकृति एक दुखद सत्य की पुष्टि करता है: 2024 वह वर्ष था जब क्रिकेट ने उचित प्रशासन का दावा छोड़ दिया, जिसमें नियंत्रण, संतुलन और कुछ के लिए नहीं बल्कि बहुतों के लिए होता है. भारत के पास पहले से ही एकाधिकार था: अब उनके पास पार्क लेन और मेफेयर पर होटल हैं.
अक्सर कहा जाता है कि आईसीसी अब एक इवेंट कंपनी से ज्यादा कुछ नहीं रह गई है. चैंपियंस ट्रॉफी का कायर पुनर्गठन, जिसमें भारत के खेल 11वें घंटे में पाकिस्तान से खाड़ी देशों में स्थानांतरित कर दिए गए - जिसका कार्यक्रम तीन साल पहले सभी के द्वारा, शाह के बीसीसीआई सहित, स्वीकार किया गया था - वह उस निम्न स्तर को भी पार नहीं कर सका. और देरी से पुनर्गठन के कारण, टिकट बिक्री शुरुआत से केवल तीन सप्ताह पहले शुरू हुई. पहली बार नहीं, पर नुकसान प्रशंसक का हुआ.
जो अन्य देश इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया, जिनके पास थोड़ा बहुत असर था, ने मुश्किल से ही विरोध किया. शाह का राज्याभिषेक - स्वाभाविक रूप से, निर्विरोध - एक बड़े हिस्से में भारत को जवाबदेह ठहराने से इनकार करने का परिणाम था. एक दशक या उससे पहले, बात बिग थ्री के अधिग्रहण की थी. अब, क्रिकेट ने एकमात्र चाबी सौंप दी है जो पहले से ही भारत के पास नहीं थी.
शाह अब भी हमें आश्चर्यचकित कर सकते हैं, और उन्होंने आईसीसी के साथ आमतौर पर जुड़े न होने वाले संघर्ष के बयानों के साथ शुरुआत की, "सहयोगी प्रयासों से भरपूर कार्यकाल" का वादा किया, और "प्रतिकूलता को विजय में बदलने" का संकल्प लिया. वे क्रिकेट की संपत्ति का पुनर्वितरण कर सकते हैं, गरीब देशों को बेहतर समर्थन देने के लिए और खेल के विकास के बारे में आईसीसी के मिशन स्टेटमेंट को पूरा करने के लिए. वे भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को आपसी पीठ खुजाने के अंतहीन त्रिकोण में शामिल करने की योजनाओं को हतोत्साहित कर सकते हैं.
लेकिन ऐसा कर के वे बीसीसीआई में अपने काम को पलट रहे होंगे, जिन्होंने 2023 में आईसीसी के वार्षिक भुगतान का बड़ा हिस्सा खुशी-खुशी स्वीकार किया था. और वे यात्रा की दिशा के खिलाफ जा रहे होंगे: स्वार्थ अब वैश्विक खेल में घुस गया है, क्योंकि टी20 टूर्नामेंट सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के लिए संघर्ष करते हैं, और क्रिकेट खुद एक-आयामी होता जा रहा है, भले ही बोर्ड निरंतर विकास के छलावे का पीछा करते हों.
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