27/05/2025 : ऑपरेशन सिंदूर का नेतृत्व अक्षम? | परसेप्शन वॉर में पिछड़े | गोरक्षा के नाम पर हिंसा आतंकवाद नहीं? | ब्रजभूषण पर पोक्सो मामला बंद | ओवैसी महागठबंधन की तरफ | जफ़र पनाही की वापसी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
अजय साहनी : ऑपरेशन सिंदूर को जिस तरह से राजनेताओं ने संभाला, वह अक्षम और गैर-जिम्मेदार था
बंगाल में आरएसएस की मौजूदगी पाँच गुना
शीर्ष अदालत के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तीन जजों के नामों की अनुशंसा की
कलबुर्गी की डिप्टी कमिश्नर को पाकिस्तानी बताने के लिए भाजपा एमएलसी पर मामला दर्ज
सीटों में बड़े हिस्से पर रहेगा दावा, चिराग ने दिखाए तेवर
नीतीश ने नौकरशाह के सिर पर गमला रखा
केरल तट पर मालवाहक जहाज पलटा
हैदराबाद पुलिस पंहुची मिस वर्ल्ड कॉंटेस्ट में शोषण की जांच करने
अजय साहनी : ऑपरेशन सिंदूर को जिस तरह से संभाला गया, वह अक्षम और गैर-जिम्मेदार था
संघर्ष प्रबंधन संस्थान के कार्यकारी निदेशक और आतंकवाद के विशेषज्ञ डॉक्टर अजय साहनी ने द वायर पर करन थापर को दिये गये इंटरव्यू में कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर को जिस तरह से राजनेताओं ने संभाला, वह अक्षम और गैर-जिम्मेदार था. उन्होंने कहा कि हर काम का श्रेय लेने की लगातार जरूरत हमारी बर्बादी का कारण बनेगी. डॉक्टर साहनी ने कहा कि 4 दिन के संघर्ष के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों हारे हैं, क्योंकि इससे अस्थिरता का माहौल बना है. उन्होंने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को कोई स्थायी नुकसान नहीं हुआ है और उनके मुख्यालय आसानी से दोबारा बन सकते हैं. उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना के ढांचे के 20% नष्ट होने के दावों को बेतुका बताया. उनका मानना है कि पाकिस्तान सेना और ISI इन आतंकी समूहों की क्षमता बढ़ा सकते हैं, जिससे आतंकवाद की समस्या बिगड़ सकती है.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार में सैन्य मामलों की समझ की कमी है और इसे गंभीरता से नहीं लिया गया. उन्होंने श्रेय लेने की भूख को सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी बताया, जिससे पाकिस्तान को तैयारी करने या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुद्दे उठाने का मौका मिल जाता है. उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान को रोकने में सफल नहीं हुआ है और पाकिस्तान चीन के सहयोग से अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाएगा. इससे भारत आर्थिक रूप से भी नुकसान उठाएगा और एक अस्थिर देश के रूप में देखा जाएगा. डॉक्टर साहनी ने सुझाव दिया कि भारत को सार्वजनिक बयानबाजी के बजाय गुप्त या कोवर्ट ऑपरेशन पर ध्यान देना चाहिए और अपनी सैन्य क्षमता को चीन के मुकाबले काफी मजबूत करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत की मुख्य समस्या रणनीतिक सोच और योजना की कमी है, जिसके लिए राजनेता जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे हमेशा चुनावी मोड में रहते हैं.
ऑपरेशन सिंदूर का राजनीतिक संचालन अक्षम और गैर-जिम्मेदार था : उनका मानना है कि सरकार में सैन्य मामलों और रणनीति की कोई खास समझ नहीं है, और इस ऑपरेशन को जितनी गंभीरता से लेना चाहिए था, उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया.
हर काम का श्रेय लेने की लगातार जरूरत हमारी बर्बादी का कारण बनेगी : सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह हर काम का प्रचार करती है और श्रेय लेती है, जिससे दुश्मनों को तैयारी करने का मौका मिलता है और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का खतरा बढ़ता है. पहले की सरकारें गुप्त रूप से भी काम करती थीं.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों हारे हैं : जो माहौल बना है, वह दोनों देशों के लिए स्थायी अस्थिरता लाने वाला है. यह संघर्ष घरेलू दर्शकों के लिए ज्यादा था, सैन्य या रणनीतिक जीत के पैमाने पर इसका कोई खास मतलब नहीं है.
लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को कोई स्थायी नुकसान नहीं हुआ है : उनके मुख्यालयों को नुकसान पहुंचाना या कुछ निचले/मध्यम स्तर के लोगों को मारना उनके लिए कोई बड़ा झटका नहीं है. उनके पास पैसे और लोग आसानी से उपलब्ध हैं. पाकिस्तान सेना और आईएसआई उनका समर्थन करते रहेंगे.
ऑपरेशन के बाद आतंकी समूहों की क्षमता और बढ़ सकती है : पाकिस्तान सेना और ISI जवाबी कार्रवाई या भविष्य की भारतीय कार्रवाई का सामना करने के लिए इन समूहों को और मजबूत कर सकते हैं. इससे आतंकवाद की समस्या और बिगड़ सकती है.
पाकिस्तान वायुसेना के ढांचे के 20% नष्ट होने का दावा बेतुका : जो नुकसान हुआ भी है (जैसे रनवे पर) वह कोई बहुत महंगा या निर्णायक नुकसान नहीं है. यह भविष्य की नीतियों या रणनीतियों को प्रभावित करने के लिए काफी नहीं है.
पाकिस्तान के डीजीएमओ द्वारा सीज़फायर के लिए फोन करने और आतंक रोकने का वादा करने की बात विश्वसनीय नहीं है : डीजीएमओ पाकिस्तान की दीर्घकालिक रणनीतियों पर कोई फैसला नहीं ले सकता. यह फैसला पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व का होता है. ऐसे दावों में सच्चाई होने की संभावना नहीं है.
भारत पाकिस्तान को रोकने में सफल नहीं हुआ है : असली समस्या आतंकी समूह नहीं, बल्कि उन्हें समर्थन देने वाली पाकिस्तानी सेना है. पाकिस्तान सेना जवाबी क्षमता बढ़ाने पर काम कर रही है, खासकर चीन के सहयोग से.
चीन पाकिस्तान का समर्थन करके बहुत फायदा उठा रहा है : वह अपने हथियार टेस्ट कर रहा है, दिखावा कर रहा है, भारत को आर्थिक रूप से रोक रहा है और पैसा कमा रहा है. पाकिस्तान चीन का जागीरदार बनता जा रहा है. भारत को आर्थिक और रणनीतिक नुकसान हो रहा है.
आतंकवाद के हर कार्य को युद्ध की घोषणा मानना भारत को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाएगा : यह भारत को एक उत्तेजित और अविश्वसनीय देश के रूप में दिखाता है, जिससे विदेशी निवेश और आर्थिक विकास प्रभावित होता है.
भारत की नई 'रोकथाम सिद्धांत' बिना क्षमता के बेकार है : रणनीति को क्षमता का समर्थन चाहिए. ऑपरेशन सिंदूर में सैन्य ठिकानों पर हमला न करने की पाबंदी लगाना और पाकिस्तान को पहले से बताना (जैसा कि लगता है हुआ) गंभीर गैर-जिम्मेदारी थी, जिससे हमारे अपने सैनिकों का जोखिम बढ़ा.
भारत को सार्वजनिक बयानबाजी के बजाय गुप्त/कोवर्ट ऑपरेशनों पर ध्यान देना चाहिए : पाकिस्तान की कमजोरियों का फायदा उठाना, आर्थिक, राजनीतिक और सूचना युद्ध लड़ना अधिक प्रभावी होगा बजाय इसके कि सब कुछ सार्वजनिक कर उन्हें सतर्क किया जाए.
भारत को पाकिस्तान के मुकाबले अपनी सैन्य क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ानी चाहिए, खासकर चीन को ध्यान में रखते हुए : केवल पाकिस्तान के साथ रक्षात्मक समानता रखना बेतुका है. अपनी कमजोरी के कारण भारत हमेशा दूसरों की रणनीतियों का शिकार बनता है.
भारत की मुख्य समस्या रणनीतिक सोच और योजना की कमी है : यह राजनेताओं की विफलता है, जो हमेशा चुनाव मोड में रहते हैं और सुरक्षा के मूलभूत मुद्दों पर ध्यान नहीं देते. हम अपनी समस्याओं के लिए खुद जिम्मेदार हैं.
सिंदूर के परसेप्शन वॉर में पिछड़ा कैसे भारत
स्क्रोल के लिए अनंत गुप्ता ने पश्चिमी मीडिया रिपोर्टिंग को देखा और विशेषज्ञों से बात की. उन्हें पता चला कि इन्फॉर्मेशन वॉर में में पाकिस्तान का पलड़ा भारत से भारी था. चार दिवसीय भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद, नई दिल्ली ने कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खतरों के बारे में दुनिया को बताने के लिए एक आक्रामक जनसंपर्क अभियान शुरू किया है. सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष दोनों के सांसदों तथा सेवानिवृत्त राजनयिकों के सात प्रतिनिधिमंडल वर्तमान में भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए दुनिया भर में यात्रा कर रहे हैं. उन्होंने न्यूयॉर्क, मॉस्को, दोहा और सियोल जैसे शहरों में पत्रकारों, नागरिक समाज के सदस्यों और नीति निर्माताओं से मुलाकात की है. लेकिन जबकि इन दौरों का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को प्रदर्शित करना है, कांग्रेस पार्टी के जयराम रमेश ने इन्हें मोदी सरकार के "डैमेज कंट्रोल" मोड में काम करने का संकेत माना. "विश्वगुरु की कथा ध्वस्त हो गई है और भारत-पाकिस्तान को फिर हाइफन से जोड़ दिया गया है," विपक्षी पार्टी के संचार प्रमुख ने 17 मई को स्क्रोल से कहा. "दुनिया आतंकवाद के बारे में नहीं, कश्मीर के बारे में बात कर रही है."
जहां तक विदेशी प्रेस का संबंध था, तथाकथित कश्मीर विवाद संघर्ष की शुरुआत से ही इसके केंद्र में था - एक कथा जिससे भारत हमेशा बचने की कोशिश करता रहा है. पहलगाम आतंकी हमले के बाद से, द वाशिंगटन पोस्ट ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बारे में 21 कहानियां प्रकाशित की हैं. कश्मीर 10 बार हेडलाइन में था. आतंकवाद एक बार भी सामने नहीं आया.
भारत को इस बात से सांत्वना मिल सकती है कि द न्यूयॉर्क टाइम्स ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के बारे में एक कहानी प्रकाशित की, जो दो आतंकवादी समूह हैं जिन्हें भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान निशाना बनाने का दावा किया था. लेकिन फिर भी, नई दिल्ली को मायूसी ही होगी कि अमेरिका के रिकॉर्ड के अखबार ने लड़ाई का परिणाम कैसे देखा: एक ड्रॉ, भारतीय जीत नहीं. युद्धविराम की घोषणा के बाद अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट की हेडलाइन थी: "भारत और पाकिस्तान ने बड़ी बात कही, लेकिन सैटेलाइट इमेजरी सीमित नुकसान दिखाती है." ऑपरेशन सिंदूर के बारे में अखबार की पहली कहानी की हेडलाइन और भी नुकसानदायक थी. "भारत ने पाकिस्तान पर हमला किया, लेकिन कहा जा रहा है कि विमान खो गया," इसमें पाकिस्तानी दावे को उजागर किया गया था, जिसकी नई दिल्ली ने अब तक पुष्टि नहीं की है. द न्यूयॉर्क टाइम्स अकेला नहीं था. सीएनएन और रॉयटर्स जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने पांच भारतीय लड़ाकू जेट गिराने के पाकिस्तानी दावों का पीछा किया, जिनमें अत्याधुनिक फ्रांसीसी राफेल भी शामिल थे. भारत ने अब तक किसी भी विमान के नुकसान को सार्वजनिक रूप से स्वीकार या इनकार करने से इनकार कर दिया है. इस गहरे मौन ने विदेशी पत्रकारों को अन्य भारतीय दावों के बारे में भी सावधान कर दिया.
शीर्ष अदालत के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तीन जजों के नामों की अनुशंसा की
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सोमवार 26 मई को दो हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और बॉम्बे हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के नामों की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए सिफारिश की. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और ए.एस. ओका की सेवानिवृत्ति के साथ सुप्रीम कोर्ट बेंच की कार्यरत शक्ति 31 हो गई है. 9 जून को न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की सेवानिवृत्ति के साथ यह और घटकर 30 हो जाएगी. शीर्ष अदालत की कुल स्वीकृत न्यायिक शक्ति 34 है. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी अंजारिया, गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस विजय बिश्नोई और बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एएस चंदुरकर का नाम अनुशंसित किया है. न्यायमूर्ति अंजारिया का मूल हाई कोर्ट गुजरात है और न्यायमूर्ति बिश्नोई का राजस्थान हाई कोर्ट है. न्यायमूर्ति चंदुरकर ने अपना करियर बॉम्बे उच्च न्यायालय से ही शुरू किया था. यह मुख्य न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम द्वारा पारित पहला प्रस्ताव है.
कलबुर्गी की डिप्टी कमिश्नर को पाकिस्तानी बताने के लिए भाजपा एमएलसी पर मामला दर्ज
कलबुर्गी समुदाय के अध्यक्ष दत्तात्रेय इक्कालाकी की शिकायत के आधार पर कलबुर्गी पुलिस ने कलबुर्गी की डिप्टी कमिश्नर बी. फौजिया तरन्नुम के खिलाफ अपमानजनक बयान देने को लेकर भाजपा एमएलसी एन. रविकुमार के खिलाफ मामला दर्ज किया है. शनिवार 24 मई को भाजपा नेताओं द्वारा आयोजित ‘कलबुर्गी चलो’ रैली के दौरान रविकुमार ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, “कलबुर्गी की डिप्टी कमिश्नर, जो सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के प्रभाव में काम कर रही थीं, पाकिस्तान से लगती हैं.” इस बीच, सोमवार 26 मई को एक विज्ञप्ति में रविकुमार ने आईएएस अधिकारी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफ़ी मांगी है.
बंगाल में आरएसएस की मौजूदगी पाँच गुना
ममता बनर्जी द्वारा 2011 में वामपंथियों को सत्ता से बाहर करने के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने दावा किया है कि बंगाल में उसकी उपस्थिति पांच गुना बढ़ गई है और वह धीरे-धीरे सीपीएम के घटते प्रभाव के कारण खाली हुई जगह में अपनी पकड़ बना रहा है. उसका लक्ष्य अब अगले साल गर्मियों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य की 3,354 ग्राम पंचायतों में अपनी ईकाईयां स्थापित करने का है.
“द टेलीग्राफ” में स्नेहमॉय चक्रबर्ती की रिपोर्ट है कि अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संघ धार्मिक और ‘सांस्कृतिक’ कार्यक्रमों की एक शृंखला तैयार कर चुका है, खासकर सरसंघ चालक मोहन भागवत की फरवरी में हुई 10 दिवसीय बंगाल यात्रा के बाद. पूर्वी क्षेत्र के लिए संघ के प्रचार और अभियान प्रमुख, जिष्णु बसु ने कहा, “आरएसएस इस वर्ष अपनी शताब्दी मना रहा है और बंगाल में हमारा लक्ष्य है कि हम सभी ग्राम पंचायतों तक पहुंचें और वहां ईकाईयां बनाएं.”
इस मुहिम का विस्तार मुस्लिम-बहुल इलाकों तक किया जाएगा. "हमारे पास कालीगंज, जो उत्तर दिनाजपुर का एक अल्पसंख्यक क्षेत्र है, में कोलकाता के किसी भी हिंदू-बहुल इलाके की तुलना में अधिक संगठनात्मक ईकाईयां हैं,” बसु ने कहा.
संघ की ईकाइयां तीन श्रेणियों में आती हैं — शाखा, मिलन और मंडली, यानी दैनिक, साप्ताहिक और मासिक सभाएं. तीनों श्रेणियों को मिलाकर राज्य में आरएसएस की कुल 4,540 ईकाइयां हैं. यदि संघ शताब्दी वर्ष का लक्ष्य हासिल कर लेता है, तो विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में उसकी कम से कम 8 हजार ईकाइयां होंगी.
2011 में बंगाल में आरएसएस की सिर्फ 830 ईकाइयां थीं; 2006 से पहले यह संख्या 500 से भी कम थी. 2016 के विधानसभा चुनावों के बाद संगठन ने राज्य पर अपना ध्यान केंद्रित किया, और जनवरी 2017 तक इसकी इकाइयों की संख्या बढ़कर 1,496 हो गई.
संघ अपने कई सहयोगी संगठनों के माध्यम से पूरे बंगाल में अपना एजेंडा चला रहा है, जो विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं. यह स्कूल और सांस्कृतिक संस्थान भी चलाता है, जो हिंदुत्व की शैक्षिक और सांस्कृतिक विचारधारा का प्रचार करते हैं. जैसे-जैसे भाजपा बंगाल में अपनी हिंदुत्व राजनीति को तेज कर रही है, आरएसएस द्वारा किए गए जमीनी काम ने राज्य में हिंदू वोट को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि संघ के माइक्रो-स्तर के प्रयासों के कारण ही पार्टी ने 2019 में बंगाल की 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीत लीं. आरएसएस ने ममता के खिलाफ ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ का आरोप हिंदू मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए लगातार उठाया. हालांकि, यह नैरेटिव 2021 के विधानसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता नहीं दिला सका. यही वजह है कि एक नई रणनीति की आवश्यकता पड़ी है.
संघ के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि बांग्लादेश में उथल-पुथल और हालिया मुर्शिदाबाद हिंसा, 2026 के चुनावों से पहले हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण में मदद कर सकते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, जैसे-जैसे वामपंथ ने अपनी जमीन खोई, एक बड़ा तबका, जिसे कभी धर्मनिरपेक्ष और उदार हिंदू मतदाता माना जाता था, अब हिंदुत्व के नैरेटिव का समर्थन करने लगा है.
राजनीतिक जानकार बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि पहले जो लोग बहुलवाद और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के मूल्यों का समर्थन करते थे, उनमें एक मौलिक वैचारिक बदलाव आया है. अब इनमें से कई लोग कट्टर या नरम हिंदुत्व के समर्थक बन गए हैं. "यह बदलाव शिक्षित वर्गों में आसानी से देखा जा सकता है. उच्च शिक्षा — कॉलेजों और विश्वविद्यालयों — के शिक्षक, जो कभी बहुलवाद के पक्षधर थे, अब खुलेआम हिंदुत्व का समर्थन कर रहे हैं," चक्रवर्ती ने कहा.
चक्रवर्ती ने कहा कि यह विचार में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है, जिसे आरएसएस और व्यापक भगवा इकोसिस्टम ने वामपंथ द्वारा छोड़े गए वैचारिक शून्य का लाभ उठाकर सफलतापूर्वक गढ़ा है. चक्रवर्ती ने यह भी देखा कि हिंदू ध्रुवीकरण से न केवल भाजपा को लाभ हुआ है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से तृणमूल को भी फायदा हुआ है, क्योंकि इससे वह अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट कर पाई है. आरएसएस के प्रयासों का लाभ तृणमूल अल्पसंख्यक वोटों को पक्का कर उठा रही है.
राज्य भाजपा का मानना है कि तृणमूल के हिंदू वोटों में चार प्रतिशत की शिफ्ट पार्टी को अगले साल बंगाल जिताने में मदद कर सकती है, भले ही पार्टी आंतरिक कलह और संगठनात्मक कमजोरियों से जूझ रही हो. तृणमूल के सूत्र भी ऐसी बातों को दिवास्वप्न मानकर हंसी में उड़ा देते हैं.
मणिपुर : बस साइनेज विवाद को लेकर प्रदर्शनकारी और सुरक्षा बल में झड़प, 7 घायल
रविवार को इंफाल में राजभवन की ओर मार्च कर रहे प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा आंसू गैस और धुएं के गोले दागे जाने से कम से कम सात लोगों के घायल होने की खबर है. नॉर्थईस्ट टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, एक प्रमुख नागरिक समाज समूह मणिपुर इंटीग्रिटी (COCOMI) पर समन्वय समिति के नेतृत्व में यह विरोध प्रदर्शन मणिपुर राज्य परिवहन (एमएसटी) बस से मणिपुर शब्द हटाने के कथित आदेश के बाद पनपे आक्रोश के बाद हुआ. इसका इस्तेमाल राज्य के उखरुल जिले में शिरुई महोत्सव के दौरान किया गया था. प्रदर्शनकारियों ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से माफ़ी की मांग की और उन पर इस मुद्दे की अनदेखी करने का आरोप लगाया. इधर, “न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में खबर है कि बढ़ते विरोध प्रदर्शनों के बीच, राज्यपाल भल्ला को इम्फाल एयरपोर्ट से राजभवन तक मात्र 7 किलोमीटर की दूरी हेलीकॉप्टर से तय करनी पड़ी. राज्यपाल 'राइजिंग नॉर्थईस्ट इन्वेस्टर्स समिट' में भाग लेकर दिल्ली से इम्फाल लौटे थे. इम्फाल में लैंडिंग के बाद, एक आर्मी हेलीकॉप्टर ने उन्हें ऐतिहासिक कांगला फोर्ट पहुंचाया, जहां से कड़ी सुरक्षा के बीच सड़क मार्ग से लगभग 300 मीटर की दूरी तय कर वह राजभवन पहुंचे.
महमूदाबाद पर उछल रही रेणु भाटिया की भाजपा सांसद के बयान पर आश्चर्यजनक चुप्पी
भाजपा नेतृत्व ने अभी तक हरियाणा के उस पार्टी सांसद की आलोचना या निंदा नहीं की है, जिन्होंने हाल ही में पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा विधवा की गई महिलाओं को जवाबी कार्रवाई न करने के लिए कायर बताया था, न ही हरियाणा महिला आयोग की प्रमुख रेणु भाटिया ने सांसद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए खुद को तैयार किया है, जिन्होंने अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ एक काल्पनिक 'महिला विरोधी' बयान के लिए मामला दर्ज करने में इतनी जल्दबाजी की थी.
बिहार
सीटों में बड़े हिस्से पर रहेगा दावा, चिराग ने दिखाए तेवर
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, एलजेपी (रामविलास) ने एनडीए के भीतर कड़ी सौदेबाजी के संकेत दिए हैं. पार्टी सांसद अरुण भारती, जिन्हें चिराग पासवान की आवाज़ के रूप में देखा जाता है, ने “एक्स” पर पोस्ट किया कि एलजेपी एनडीए में रहते हुए भी "अपनी स्वतंत्र पहचान रखती है" और इसे किसी बड़ी पार्टी की छाया में काम करने वाला नहीं समझा जाना चाहिए.
इस कदम को सीटों की संख्या के लिहाज से गठबंधन में मजबूत हिस्सेदारी सुरक्षित करने के लिए शुरुआती रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. इससे एक दिन पहले ही चिराग ने मीडिया से कहा था कि सीट बंटवारे पर चर्चा उचित समय पर ही होगी और संयुक्त रूप से इसकी घोषणा की जाएगी.
भारती की पोस्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि चिराग की अपील सिर्फ पासवान समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं और युवाओं के बीच भी है, और एलजेपी की छवि में इस व्यापक आधार का प्रतिबिंब होना चाहिए.
चिराग ने हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की, यह स्पष्ट करते हुए कि एनडीए में शीर्ष पद के लिए "कोई जगह नहीं है", जो फिलहाल एकजुटता का संकेत है. एनडीए के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, पार्टियों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए ऐसे बयान जारी रहेंगे.
महागठबंधन से जुड़ना चाहते हैं ओवैसी, आरजेडी पर दारोमदार
अभी तक विपक्षी इंडिया गठबंधन से दूरी बनाए रखने के बाद, असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) अब बिहार में राज्य विधानसभा चुनाव के लिए आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश कर रही है. महागठबंधन में अभी आरजेडी के अलावा कांग्रेस और वामपंथी दल भी शामिल हैं.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में लालमणि वर्मा के अनुसार बिहार में एआईएमआईएम के नेता आरजेडी नेताओं के संपर्क में हैं. एआईएमआईएम के राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हसन ने कहा, “हम महागठबंधन के साथ गठबंधन करने में रुचि रखते हैं. हम इसे लेकर बहुत सकारात्मक हैं. हमारी विचारधारा भाजपा को हराना और बिहार को सशक्त बनाना है. भाजपा के साथ हमारी लड़ाई कांग्रेस जैसी ही है. हम चाहते हैं कि महागठबंधन एआईएमआईएम को साथ ले.
एआईएमआईएम ने आगामी बिहार चुनाव में 243 में से 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई है, लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक अगर आरजेडी और कांग्रेस उसे साथ लेते हैं तो वह कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने को तैयार है.
दरअसल, एआईएमआईएम 2020 के विधानसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन से उत्साहित है, जब उसने बसपा और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ तीसरा मोर्चा बनाया था. तब एआईएमआईएम ने 20 में से 5 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था और इन 20 सीटों पर 14.28% वोट हासिल किए थे. वहीं, बसपा 78 में से सिर्फ एक सीट जीत सकी थी और आरएलएसपी 99 सीटों पर चुनाव लड़कर भी खाता नहीं खोल पाई थी.
एआईएमआईएम के नेताओं ने माना है कि अभी तक आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर कोई औपचारिक चर्चा नहीं हुई है. लेकिन जब विधानसभा में ये नेता मिलते हैं तो सुझाव देते हैं कि साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए. एआईएमआईएम भी कहती है कि वह तैयार है, लेकिन अंतिम फैसला आरजेडी को लेना होगा.
विधानसभा के पिछले चुनाव में एआईएमआईएम ने जिन पांच सीटों को जीता था, वे मुस्लिम-बहुल सीमांचल क्षेत्र में आती हैं. यह इलाका पूर्वी बिहार के चार जिलों—अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज—को शामिल करता है. हालांकि, जून 2022 में एआईएमआईएम को झटका लगा था, जब उसके पांच में से चार विधायक— मुहम्मद इज़हार अस्फी (कोचाधामन), शहनवाज़ आलम (जोकीहाट), सैयद रुकनुद्दीन (बैसी) व अज़हर नईमी (बहादुरगंज)— आरजेडी में शामिल हो गए थे.
आदिल हसन ने कहा, "हम इस गठबंधन को बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है, तो इसके लिए आरजेडी जिम्मेदार होगी. उस स्थिति में हम बिहार के मुस्लिम संगठनों से संपर्क करेंगे.”
जहां तक एआईएमआईएम की राज्य में बढ़ती सक्रियता का सवाल है तो महागठबंधन पहले ही पार्टी को "भाजपा की बी टीम" बता चुका है. उसका आरोप है कि ओवैसी की पार्टी महागठबंधन के लिए "वोटकटवा" और "स्पॉइलर" की भूमिका निभा रही है.
नीतीश ने नौकरशाह के सिर पर गमला रखा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को एक कार्यक्रम के दौरान उन्हें भेंट किए गए एक गमले को एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के सिर पर रख दिया, जिसके बाद विपक्षी राजद ने उनकी ‘मानसिक स्थिति’ पर सवाल उठाया है. यह घटना पटना के एलएन मिश्रा संस्थान में हुई, जहां मुख्यमंत्री ने लगभग 10 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास किया और 20 नवनियुक्त फैकल्टी सदस्यों को नियुक्ति पत्र सौंपे. अपर मुख्य सचिव (शिक्षा) एस सिद्धार्थ ने कुमार को एक गमला भेंट किया, जिसे कुमार ने लेते ही अधिकारी के सिर पर रख दिया, यह देखकर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. सिद्धार्थ ने फौरन उसे हटा लिया और चले गए, जबकि दर्शक मुस्कुरा रहे थे. इस पूरे वाकये का वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्या ने वीडियो शेयर करते हुए “एक्स” पर लिखा- “दिमाग पर हो चुका विक्षिप्तपन का हमला. चाचा रख दे रहे हैं अपने अधिकारी के माथे पर गमला.” राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि यह घटना चौंकाने वाली और शर्मनाक है. उन्होंने दावा किया, "उनकी गतिविधियां राज्य को शर्मसार कर रही हैं. यह दर्शाता है कि उनका दिमाग उनके नियंत्रण में नहीं है. वह नौकरशाहों के एक समूह द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हैं. वह बिहार के अब तक के सबसे कमजोर मुख्यमंत्री हैं." मार्च में, पटना में सेपक टकरा वर्ल्ड कप के उद्घाटन के दौरान राष्ट्रगान शुरू होने से ठीक पहले कुमार अचानक मंच छोड़कर चले गए थे. पिछले साल नवंबर में, दरभंगा में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूने की कोशिश की थी.
न्यूज़लॉन्ड्री मामला : हाइकोर्ट का अभिजीत अय्यर-मित्रा को समन
दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को टिप्पणीकार अभिजीत अय्यर-मित्रा को डिजिटल समाचार आउटलेट न्यूज़लॉन्ड्री की महिला कर्मचारियों द्वारा दायर मानहानि के मामले में समन जारी किया. यह मामला कर्मचारियों पर उनकी कथित यौन दुर्व्यवहार वाली सोशल मीडिया टिप्पणियों से संबंधित है. नौ महिला कर्मचारियों और न्यूज़लॉन्ड्री ने खुद भी यह मुकदमा दायर किया है. उन्होंने अय्यर-मित्रा से सार्वजनिक माफी और 2 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा है. याचिका में कहा गया है कि अय्यर-मित्रा ने सोशल मीडिया पोस्ट की एक शृंखला के माध्यम से 'झूठे और दुर्भावनापूर्ण' तरीके से महिला कर्मचारियों को लक्षित किया, जिसमें अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया. कर्मचारियों का तर्क है कि ये टिप्पणियां 'फ्री स्पीच या पत्रकारिता आलोचना का पहलू नहीं हैं', बल्कि महिलाओं का अपमान करने के उद्देश्य से 'सेक्सिस्ट स्लर' हैं. कोर्ट ने सोमवार को संक्षिप्त सुनवाई के बाद समन जारी करने का फैसला किया. इससे पहले 21 मई को हुई सुनवाई में कोर्ट की फटकार के बाद अय्यर-मित्रा ने आपत्तिजनक पोस्ट हटा दिए थे. पिछली सुनवाई में, जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने चेतावनी दी थी कि यदि वह पोस्ट नहीं हटाते हैं तो उनके खिलाफ FIR का आदेश दिया जाएगा. सोमवार को सुनवाई के दौरान, अय्यर-मित्रा के वकील ने बताया कि पोस्ट हटा दिए गए हैं. हालांकि, न्यूज़लॉन्ड्री के पत्रकारों की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि उनमें 'बिल्कुल भी पछतावा नहीं' है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मामला केवल अय्यर-मित्रा के सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित है.
केरल तट पर मालवाहक जहाज पलटा
केरल के तट के पास अरब सागर में एक जहाज के पलटने और डूबने से उसमें से खतरनाक सामान लीक होने के बाद राज्य में अलर्ट जारी किया गया है. यह लाइबेरियाई झंडे वाला जहाज रविवार को कोच्चि तट के पास पलटा था. जहाज में तेल और अन्य खतरनाक सामग्री थी, जिसके लीक होने से समुद्री जीवन और तट पर रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो गया है. जहाज के कुछ कंटेनर भी तट की ओर बह रहे हैं. अधिकारियों ने तटीय इलाकों में रहने वालों को बहकर आई किसी भी वस्तु या तेल को न छूने की सलाह दी है और मछुआरों को डूब क्षेत्र से दूर रहने को कहा है. रिसाव को नियंत्रित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण उपाय तेज कर दिए गए हैं. जहाज पर सवार सभी 24 चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित बचा लिया गया है.
जासूसी के आरोप में सीआरपीएफ जवान गिरफ्तार : राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दिल्ली में सीआरपीएफ के एक जवान को पाकिस्तान के खुफिया अधिकारियों के साथ संवेदनशील जानकारी साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया है. आतंकवाद निरोधी एजेंसी ने एक बयान में कहा कि मोती राम जाट पाकिस्तान के लिए जासूसी गतिविधियों में शामिल था और 2023 से पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी गोपनीय जानकारी साझा कर रहा था और इसके एवज में पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों से धन प्राप्त कर रहा था. मोती राम जाट को 6 जून तक एनआईए की हिरासत में भेज दिया गया है.
इस महीने, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से जासूसी के आरोप में कम से कम 12 लोगों को पकड़ा गया है, जिसमें जांच से पता चला है कि उत्तर भारत में कथित तौर पर पाकिस्तान से जुड़े जासूसी नेटवर्क संचालित हो रहे हैं.
बृजभूषण के खिलाफ पोक्सो का केस बंद : दिल्ली की एक अदालत में भाजपा नेता और भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के एक मामले में शहर की पुलिस ने साक्ष्यों की कमी का हवाला देकर क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया. इस मामले में उस समय नाबालिग रही महिला पहलवान ने आरोप लगाया था. यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पोक्सो) मामले में आरोप के आधार पर न्यूनतम तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान है. शिकायतकर्ता द्वारा पुलिस के निष्कर्षों पर कोई आपत्ति नहीं जताए जाने के बाद इसे बंद कर दिया गया. हालांकि, छह वयस्क महिला पहलवानों द्वारा दायर एक अन्य मामले में उन पर यौन उत्पीड़न और पीछा करने के अलग-अलग आरोप लगे हैं. उस मामले में, 21 मई, 2024 को सिंह और डब्ल्यूएफआई के पूर्व सहायक सचिव विनोद तोमर के खिलाफ औपचारिक आरोप तय किए गए थे. 1,599 पन्नों के व्यापक दस्तावेज में 44 गवाहों के बयान और फोटोग्राफिक साक्ष्य शामिल हैं.
हैदराबाद पुलिस पंहुची मिस वर्ल्ड कॉंटेस्ट में शोषण की जांच करने

“द वायर” के मुताबिक हैदराबाद में चल रही मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता से हटने वाली मिस इंग्लैंड 2024, मिला मैगी, के 'शोषण और अनादर' के आरोपों के बाद तेलंगाना सरकार ने तीन वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारियों को जांच सौंपी है. मिला ने ब्रिटिश मीडिया को बताया कि उन्हें "अमीर पुरुषों का मनोरंजन करने के लिए मजबूर किया गया" और प्रतियोगिता को "पुराने मूल्यों वाली" बताया. 24 वर्षीय मिला ने दावा किया कि प्रतिभागियों को लगातार मेकअप और गाउन पहनने को कहा गया. एक डिनर में उन्हें "धन्यवाद" के रूप में प्रायोजकों के साथ बैठाया गया : "छह मेहमानों की प्रत्येक मेज पर दो लड़कियां थीं. हमसे उम्मीद थी कि हम उनका मनोरंजन करें. मैंने खुद को वेश्या जैसा महसूस किया." उन्होंने एक अधिकारी द्वारा सार्वजनिक डांट को भी अपमानजनक बताया.
मिस वर्ल्ड संगठन की चेयरपर्सन जूलिया मोर्ले ने आरोपों को "निराधार" बताते हुए कहा कि मिला ने पारिवारिक आपात स्थिति का हवाला देकर प्रतियोगिता छोड़ी थी. संगठन ने मिला के हैदराबाद प्रवास के सकारात्मक वीडियो जारी किए, जिनमें वह राज्य के आतिथ्य की प्रशंसा करती दिखीं. तेलंगाना प्रशासन ने चौमहल्ला पैलेस डिनर की सीसीटीवी फुटेज जांची, जिसमें मिला एक आईएएस अधिकारी और उनके परिवार के साथ बैठी थीं. पर्यटन सचिव जयेश रंजन ने कहा, "मिला केवल 8 दिन रहीं. अन्य 50 प्रतिभागियों ने कोई शिकायत नहीं की." मिस वेल्स समेत अन्य प्रतिभागियों ने भी आरोपों को खारिज किया. बीआरएस नेता के.टी. रामाराव ने निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए सरकार पर पीड़िता को दोषी ठहराने का आरोप लगाया. उन्होंने एक अन्य घटना का भी उल्लेख किया, जहां एक स्थानीय लड़की ने प्रतिभागी के पैर धोए, जिसे महिला अपमान बताया गया. जबकि मिस वर्ल्ड सेमीफाइनल सोमवार को होने हैं, यह विवाद प्रतियोगिता की प्रतिष्ठा को चुनौती दे रहा है. मिस इंडिया समेत 109 प्रतिभागी अब भी मुकाबले में हैं, लेकिन मिला के आरोपों ने सौंदर्य प्रतियोगिताओं में महिलाओं के सम्मान पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
विश्लेषण
निधीश त्यागी : गोरक्षा के नाम पर की गई हिंसा आतंकवाद से अलग या कम है?
अलीगढ़ में शनिवार को चार मुसलमानों को कथित तौर पर खुद को गौरक्षक कहने वाले गुंडों ने न सिर्फ पीटा और जलील किया, उनकी गाड़ी को पलट दिया और आग लगा दी. जो तस्वीरें और वीडियो सामने आईं वे विचलित करने वाली थीं. पिछले दस सालों में इस तरह की घटनाएं अब आम हो चली हैं. एक रैकेट की तरह गोरक्षा के नाम पर धंधा चल रहा है. हत्याएँ लगातार हो रही हैं. एक धर्म की दुहाई देकर दूसरे को निशाना बनाया जा रहा है. वसूली हो रही है. पुलिस अक्सर अपना काम मुस्तैदी से नहीं करती है. अदालतें ढीली हैं. लोग कत्ल करके भी पकड़े नहीं जाते. या फिर छूट जाते हैं. ज्यादातर जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं. ये संगठित लोगों का गिरोह है.
शायद ही किसी मामले में साबित हो पाया हो कि मांस वाकई गाय का था. गोमांस को लेकर एक अनुमानित निष्कर्ष निकाला जा चुका है. जिसके लिए कानून, पुलिस, कोर्ट, प्रयोगशालाओं, सरकारी रेगुलेशन एजेंसियों की प्रासंगिकता नहीं रह गई है. अगर और कभी वे कुछ करते भी हैं, तब तक दो-चार वारदातें और हो चुकी होती हैं. मॉबलिंचिंग इस मुल्क में तभी मुमकिन है, जब राज्य की सत्ता उसमें शामिल हो. खास तौर पर तब, जब वह एक अपवाद की तरह नहीं, एक पैटर्न की तरह हो रही है.
सवाल ये है कि क्या गोरक्षा के नाम पर की जा रही मॉब लिंचिंग क्या किसी आतंकवादी वारदात से कम या अलग है.
दोनों में एंगल धार्मिक है. दोनों में हिंसा का सहारा लिया जा रहा है. दोनों में संगठित तौर पर कार्रवाई की जाती है. दोनों में मोबाइल वीडियो और सोशल मीडिया के जरिये तमाशा बनाने की तिकड़में अपनाई जाती हैं. दोनों में आमफहम नागरिकों/व्यक्तियों को शिकार बनाया जाता है. दोनों में ईश्वर, विचारधारा या यकीन के नाम पर उन लोगों पर कार्रवाई की जाती है, जो उसके दायरे से बाहर हैं. दोनों में कानून को हाथ में लिया जाता है. दोनों में आतंक पैदा करने की कोशिश है. एक छोटी-सी घटना से एक बड़े वर्ग को डराने की. और उससे भी बड़े वर्ग को ये बताने की कि वे कितने खतरे में हैं, जिससे बचाने के लिए हिंसा और आतंक की यह कार्रवाई करनी कितनी जरूरी और महत्वपूर्ण है. आतंकवादी वारदातों की तरह ही मॉब लिंचिंग की घटनाएं भी ख़ास समुदायों को यह बताने के लिए हैं कि उनकी जान, माल, कारोबार, गरिमा कुछ भी सुरक्षित नहीं है, और उन पर कभी भी शिकंजा डाला जा सकता है. जिसके लिए वजह की जरूरत नहीं है. और उनकी तरफ उनके नागरिक और कानूनी अधिकार कागज़ों पर होंगे, पर व्यवहार में काम न आने के.
पुलिस पहले मारपीट, हत्या की वारदात को रोकने के बजाय मीट की कैमिकल टेस्टिंग की रिपोर्ट का इंतजार करने की बात करती है. आप समझ सकते हैं कि वे अपनी नौकरी कर रहे हैं या बचा रहे हैं. एक सरल-सा फार्मूला हम सबके लिए यही हो सकता है कि बंदूक और उसके निशाने पर एक इंसान में हम किसकी तरफ खड़े हैं. हिंसा करने वाले की तरफ या फिर जिसके साथ हिंसा हो रही है, उसकी तरफ. गोरक्षा के नाम पर कानून लगातार बदले गये हैं राज्यों में. पर गौहत्या के सबूत मिल रहे हों या नहीं, लोगों को मौत के घाट जरूर उतारा जा रहा है.
भय जरूरी होता है, वसूली के रैकेट चलाने के लिए. इसलिए यह एक गोरखधंधा है.
जो डाटा हमें मिला, उसके हिसाब से 2010 से 2017 के बीच कम से कम 63 गाय संबंधी हमले हुए, जिनमें से 97% 2014 के बाद हुए. मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच ही ह्यूमन राइट्स वॉच ने 20 राज्यों में 100 से अधिक हमलों में 44 मौतों का दस्तावेजीकरण किया, जिनमें से 36 मुस्लिम थे. 280 से अधिक लोग घायल हुए. यह आँकड़ा सिर्फ रिपोर्ट किए गए मामलों का है और वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है, क्योंकि अक्सर आधिकारिक आँकड़े अधूरे होते हैं या अलग से ट्रैक नहीं किए जाते. 2010 से 2017 के बीच मारे गए लगभग 86% लोग मुस्लिम थे. दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाया गया. यह स्पष्ट करता है कि यह हिंसा अपने आप और गैर इरादतन नहीं है, बल्कि इसका एक विशिष्ट सांप्रदायिक और जातिगत निशाना है. यह केवल पशुओं की रक्षा नहीं है, बल्कि विशिष्ट समुदायों को डराने, आतंकित करने और आर्थिक रूप से कमजोर करने का एक सुनियोजित प्रयास है.
इसके शिकार कौन हैं? मांस की सप्लाई एक से दूसरी जगह ले जाते ड्राइवर, उनके सहयोगी. मजदूर. छोटे कारोबारी. अख़लाक को अफवाह के आधार पर घर में घुसकर पीट-पीटकर मार डाला गया. झारखंड में मासूम इम्तेयाज खान (12) और मोहम्मद मज़लूम अंसारी को पीटकर पेड़ से लटका दिया गया. पहलू खान, जिनके पास वैध दस्तावेज थे, को भी बेरहमी से मार डाला गया. अलीमुद्दीन अंसारी को भीड़ ने पीटकर मार डाला और उनकी गाड़ी में आग लगा दी. नासिर और जुनैद को तो ज़िंदा जला दिया गया. हाल के मामलों में, आर्यन मिश्रा जैसे एक हिंदू छात्र को भी गौ-रक्षकों ने पशु तस्कर समझकर मार डाला. लेकिन प्राथमिक निशाना हमेशा से मुस्लिम और दलित समुदाय रहे हैं.
यह हिंसा केवल शारीरिक क्षति पहुँचाने तक सीमित नहीं है; इसका मुख्य उद्देश्य भय और आतंक फैलाना है. भीड़ द्वारा की जाने वाली लिंचिंग (पीट-पीटकर हत्या) अपने आप में आतंकवादी कृत्य है, जिसका लक्ष्य सिर्फ पीड़ित को मारना नहीं, बल्कि पूरे समुदाय को संदेश देना है कि वे असुरक्षित हैं और उन्हें कभी भी निशाना बनाया जा सकता है. घटनाओं के वीडियो बनाना और उन्हें वायरल करना इसी आतंक को फैलाने की रणनीति का हिस्सा है. 50% से अधिक हमले केवल अफवाहों पर आधारित होते हैं, जैसा सबीर मलिक और मोहम्मद अख़लाक के मामलों में देखा गया.
यह हिंसा केवल उग्र भीड़ का सहज आक्रोश नहीं है. डाटा में विहिप, बजरंग दल, गौ रक्षा दल, गौ रक्षा समिति और लिव फॉर नेशन जैसे समूहों का स्पष्ट उल्लेख है. ये समूह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी जैसे संगठनों के वैचारिक परिवार (संघ परिवार) से जुड़े हुए हैं या उनसे प्रेरित हैं. झारखंड हत्याओं में बजरंग दल और भाजपा युवा मोर्चा के सदस्यों का शामिल होना, पहलू खान मामले में विहिप और बजरंग दल की संलिप्तता, अलीमुद्दीन अंसारी लिंचिंग में गौ रक्षा समिति के सदस्यों और एक भाजपा नेता का दोषी ठहराया जाना - ये सब इस हिंसा के पीछे संगठित समूहों की भूमिका को दर्शाते हैं.
कहने को ये समूह एक विशिष्ट विचारधारा - हिंदू राष्ट्रवाद और गाय की सुरक्षा को सर्वोपरि मानने वाली आस्था - से प्रेरित हैं. वे कानून को अपने हाथ में लेते हैं और खुद को न्यायपालिका और पुलिस से ऊपर मानते हैं. 2023 में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के सदस्यों द्वारा सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए खुद गाय काटकर मुसलमानों को फंसाने का मामला इस बात का सबूत है कि यह केवल "सुरक्षा" नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक और सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया जाने वाला संगठित अपराध है. यह संगठनात्मक ढांचा और विचारधारा से प्रेरित लक्ष्य इसे पारंपरिक अपराधों से अलग करते हैं और आतंकवाद के करीब लाते हैं, जहाँ हिंसा का उद्देश्य केवल व्यक्ति को नुकसान पहुँचाना नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक या राजनीतिक उद्देश्य हासिल करना होता है.
कई मामलों में पुलिस ने हत्या की जाँच में देरी की, पीड़ितों के खिलाफ ही गौ-संरक्षण कानूनों के तहत मामला दर्ज किया या गवाहों को डराया. अकबर खान मामले में पीड़ित को अस्पताल पहुँचाने में पुलिस ने घंटों की देरी की, जबकि अस्पताल केवल 20 मिनट दूर था. मोहम्मद क़ासिम मामले में, पुलिस ने पहले झूठी रिपोर्ट दर्ज कर दुर्घटना का बहाना बनाया. झारखंड मामले में, पुलिस ने पहले गौ-हत्या के आरोप को हत्या की जाँच से ज़्यादा प्राथमिकता दी. हरियाणा में एक अदालत ने तो यहाँ तक नोट किया कि पुलिस गौ-रक्षकों को "आतंक फैलाने" की अनुमति दे रही थी.
2015-2018 के बीच 66% हमले भाजपा-शासित राज्यों में हुए. कुछ मामलों में, स्थानीय राजनेताओं ने आरोपियों का बचाव किया या उन्हें बरी करने की मांग की. भले ही प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष नेताओं ने यदा-कदा इन घटनाओं की निंदा की हो, लेकिन ज़मीनी स्तर पर अक्सर राजनीतिक बयानबाजी ने सतर्कता समूहों को प्रोत्साहन दिया है या कम से कम उन्हें यह भरोसा दिलाया है कि उनके कृत्यों के गंभीर परिणाम नहीं होंगे. दंडमुक्ति का यह माहौल सतर्कता समूहों को और अधिक हिंसक होने के लिए प्रेरित करता है और न्याय प्रणाली में विश्वास को कम करता है. यह दर्शाता है कि यह गोरखधंधा अक्सर राजनीतिक संरक्षण या निष्क्रियता के तहत पनपता है.
सिर्फ मुसलमानों और दलितों के कारण ही क्या भारत दुनिया में बीफ़ का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के बाद. गौ-रक्षा सतर्कता का आर्थिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण है. इसने मवेशियों के व्यापार को बाधित किया है, जिससे डेयरी, चमड़ा और मांस उद्योगों से जुड़े लाखों लोगों, विशेष रूप से मुस्लिम और दलित समुदायों की आजीविका प्रभावित हुई है. किसान मवेशियों को एक से दूसरे स्थान पर ले जाने से डरते हैं, जिससे बाज़ार अस्थिर हो गए हैं. यह आर्थिक व्यवधान भी आतंक फैलाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसका लक्ष्य निशाना बनाए गए समुदायों को आर्थिक रूप से कमजोर करना है. उनके पेट पर लात मारना है.
"गोरखधंधा" शब्द का प्रयोग यहाँ इस संगठित हिंसा के पीछे छिपे लाभ या नियंत्रण के तत्वों को उजागर करता है. यह केवल धार्मिक भावना का विस्फोट नहीं है. इसमें अक्सर जबरन वसूली, मवेशी व्यापार मार्गों पर नियंत्रण और अन्य अवैध गतिविधियां शामिल हो सकती हैं, जो धार्मिक आवरण के नीचे छिपी होती हैं. संगठित समूहों का शामिल होना और कानून के उल्लंघन को राज्य की निष्क्रियता या संरक्षण मिलना इसे एक "रैकेट" का रूप देता है - एक ऐसा अवैध या अनैतिक व्यापार जो संगठित तरीके से चलाया जाता है. बिना सरकारी प्रश्रय के यह मुमकिन नहीं है.
कहा जा सकता है कि ये कृत्य आतंकवाद की पारंपरिक परिभाषा में फिट नहीं होते, खासकर यदि आतंकवाद को केवल गैर-राज्य अभिनेताओं द्वारा राज्य को अस्थिर करने के प्रयास के रूप में परिभाषित किया जाए. हालाँकि, घरेलू आतंकवाद की परिभाषा अक्सर ऐसे कृत्यों को शामिल करती है, जो किसी राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए नागरिकों के खिलाफ हिंसा का उपयोग करते हैं, ताकि भय फैलाया जा सके और सरकार या जनता को प्रभावित किया जा सके. पर गौ-रक्षा सतर्कता इस परिभाषा के कई मानदंडों को पूरा करती है. यह एक तरह का "नीचे से ऊपर" (बॉटम अप) आतंकवाद है, जो विचारधारा से प्रेरित होकर समाज के एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के खिलाफ चलाया जा रहा है, और जिसे अक्सर राज्य मशीनरी की निष्क्रियता या मिलीभगत का लाभ मिलता है. यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं है; यह एक विशिष्ट समुदाय को आतंकित करने और उनकी स्वतंत्रता तथा सुरक्षा को कमज़ोर करने का अभियान है.
क्या हम गाय के नाम पर देश में आतंकवाद को फैलने देने के लिए अभिशप्त हैं?
गौ-रक्षा के नाम पर की गईं प्रमुख हत्याएं (2015-2024)
सितंबर 2015 में, उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अख़लाक (50 वर्ष) को बीफ खाने की अफवाह पर भीड़ ने घर में घुसकर पीट-पीटकर मार डाला. बाद में फॉरेंसिक जांच में पुष्टि हुई कि मांस मटन का था. इस निर्मम घटना में स्थानीय हिंदू भीड़ शामिल थी और मामले में 12 आरोपी गिरफ्तार हुए थे, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई, जिसने न्याय प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए.
मार्च 2016 में झारखंड के लातेहार में, मोहम्मद मज़लूम अंसारी (35 वर्ष) और मात्र 12 वर्षीय इम्तेयाज खान, जो मुस्लिम मवेशी चरवाहे थे, उन्हें पशु मेले में मवेशी ले जाते समय गौ हत्या के इरादे के आरोप में पीटकर पेड़ से लटका दिया गया. इस जघन्य कृत्य में स्थानीय गौ रक्षा समूह, बजरंग दल और भाजपा युवा मोर्चा के सदस्य शामिल थे. पुलिस ने शुरुआत में हत्या के बजाय गौ हत्या मामले को प्राथमिकता दी, जिस पर भारी आलोचना हुई.
उसी महीने, हरियाणा के कुरुक्षेत्र में मुस्तैन अब्बास (27 वर्ष) नामक मुस्लिम व्यक्ति को भैंस ले जाते समय गौ सतर्कता समूहों ने मार डाला. इसमें स्थानीय गौ रक्षा समिति के सदस्य शामिल थे. हरियाणा उच्च न्यायालय ने पुलिस की निष्क्रियता पर गंभीर टिप्पणी करते हुए CBI जांच का आदेश दिया, लेकिन 2018 तक मामले लंबित थे.
अप्रैल 2017 में, राजस्थान के अलवर में पहलू खान (55 वर्ष) की गौ सतर्कता समूहों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. वे डेयरी किसान थे और वैध दस्तावेज के साथ मवेशी ले जा रहे थे. हमलावर विहिप और बजरंग दल से जुड़े थे. हमलावरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बावजूद, पुलिस ने पीड़ित के साथियों के खिलाफ ही गौ तस्करी का काउंटर केस दर्ज किया, जिससे न्याय बाधित हुआ.
जून 2017 में झारखंड के रामगढ़ में अलीमुद्दीन अंसारी (55 वर्ष) को मांस ले जाते समय भीड़ ने लिंच कर मार डाला और उनकी वैन में आग लगा दी. इस घटना का वीडियो वायरल हुआ और इसमें गौ रक्षा समिति के कथित सदस्य शामिल थे, जिनमें एक भाजपा जिला मीडिया अधिकारी भी था. इस मामले में 11 लोगों को हत्या और आपराधिक साजिश के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जो कुछ मामलों में न्याय मिलने का दुर्लभ उदाहरण था.
उसी महीने, हरियाणा में जुनैद खान (15 वर्ष) नामक मुस्लिम किशोर को ट्रेन में सीट विवाद के बाद बीफ खाने के आरोप में करीब 20 लोगों की भीड़ ने चाकू मारकर मार डाला. हमलावर हिंदू सतर्कता समूह के बताए गए, और इस घटना ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया, हालांकि विशिष्ट परिणाम स्पष्ट नहीं हैं.
जून 2018 में उत्तर प्रदेश के हापुड़ में, मोहम्मद क़ासिम (45 वर्ष), एक मुस्लिम मवेशी व्यापारी, को गौ हत्या के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला. जब समेदीन नामक व्यक्ति ने हस्तक्षेप करने का प्रयास किया, तो उसे भी बेरहमी से पीटा गया. इसमें स्थानीय गौ रक्षा समूह के सदस्य शामिल थे. पुलिस ने शुरुआत में दुर्घटना का झूठा मामला बनाकर घटना को छुपाने की कोशिश की, लेकिन विरोध प्रदर्शनों के बाद 9 आरोपी गिरफ्तार हुए.
जुलाई 2018 में राजस्थान के अलवर में अकबर खान (28 वर्ष) को गाय ले जाते समय पीट-पीटकर मार डाला गया. उन पर गौ तस्करी का संदेह था. हमला करने वाले स्थानीय गौ रक्षा समूह के सदस्य और हिंदू राष्ट्रवादी समूह से जुड़े थे. पुलिस पर पीड़ित को अस्पताल ले जाने में तीन घंटे की देरी करने का आरोप लगा, जो केवल 20 मिनट दूर था. 8 आरोपी गिरफ्तार हुए, लेकिन पुलिस ने पहले गौ तस्करी के आरोप को प्राथमिकता दी.
दिसंबर 2018 में, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में गौ मौतों पर दंगा कर रही हिंदू कट्टरपंथी भीड़ ने ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी. इस दुखद घटना के बाद भी, राज्य के मुख्यमंत्री ने इसे 'दुर्घटना' बताया और गौ हत्या के मामलों को पुलिस अधिकारी की हत्या की जांच से ऊपर रखा, जो राजनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है. कालांतर में सुबोध ने अखलाक़ मामले की जांच भी की थी.
फरवरी 2023 में हरियाणा के भिवानी में, नासिर (25 वर्ष) और जुनैद (35 वर्ष) को गौ तस्करी के संदेह में गौ सतर्कता समूहों ने कथित तौर पर अपहरण कर, पीटकर और फिर एक गाड़ी में ज़िंदा जला दिया. परिजनों ने बजरंग दल के सदस्यों की संलिप्तता का आरोप लगाया, और पुलिस जांच जारी है.
मई 2023 में गुजरात के बनासकांठा में, मिश्री खान बलूच (40 वर्ष) को पशु मेले में भैंस ले जाते समय गौ सतर्कता समूहों ने लिंच कर मार डाला. पुलिस ने घटना की पुष्टि की, लेकिन आगे के विवरण उपलब्ध नहीं हैं.
जून 2023 में महाराष्ट्र के नासिक में, अफान अंसारी नामक एक मुस्लिम व्यक्ति को मुंबई मांस ले जाते समय गौ सतर्कता समूहों ने बीफ तस्करी के संदेह में पीट-पीटकर मार डाला. इस मामले में 11 आरोपी गिरफ्तार हुए.
अगस्त 2024 में हरियाणा के फरीदाबाद में, आर्यन मिश्रा (19 वर्ष), जो एक हिंदू छात्र था, उसे SUV में दोस्तों के साथ जाते समय गौ सतर्कता समूहों ने पशु तस्कर समझकर गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई. इस घटना में लिव फॉर नेशन नामक गौ रक्षा संगठन से जुड़ा मुख्य संदिग्ध और अन्य शामिल थे, और 5 आरोपी गिरफ्तार हुए.
उसी महीने, हरियाणा में सबीर मलिक नामक एक मुस्लिम प्रवासी मज़दूर को बीफ खाने के संदेह में गौ सतर्कता समूहों ने लिंच किया. फोरेंसिक जांच में बाद में पुष्टि हुई कि मांस बीफ नहीं था, लेकिन यह घटना अफवाहों पर आधारित हिंसा के खतरे को रेखांकित करती है. इस मामले में भी 10 गौ सतर्कता समूह सदस्य गिरफ्तार हुए.
ये फेहरिस्त पूरी नहीं है. न ही आखिरी है. कुछ साल पहले द गार्डियन और पुलित्ज़र सेंटर के लिए ये फिल्म ‘द आवर ऑफ लिंचिंग’ हाथ लगी. शर्ली अब्राहम और अमित मधेसिया ने बनाई है. शायद आप देखना चाहें.
चलते-चलते
छिप कर बनाई गई ईरानी फिल्म के सजायाफ्ता निर्देशक जफ़र पनाही को कान फिल्म फेस्टिवल का सर्वोच्च पुरस्कार
ईरानी फिल्म निर्देशक जफर पनाही को पहले उनके देश में जेल भेजा गया था और फिर उनके फिल्म निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. पर इस बार फ्रांस के कान फिल्म फेस्टिवल में सर्वोच्च पुरस्कार जीतने के बाद ईरान में शासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ खुलकर बात की. पनाही ने अपनी फिल्म 'इट वाज जस्ट एन एक्सीडेंट' के लिए प्रतिष्ठित पाल्मे डी'ओर पुरस्कार जीता. बीबीसी कल्चर ने इस फिल्म को 'एक उग्र लेकिन मजेदार बदला लेने वाला थ्रिलर बताया है जो दमनकारी शासनों को निशाना बनाता है'. ये फिल्म छिप कर बनाई गई थी.
पुरस्कार जीतने के बाद पनाही ने दर्शकों की तालियों के बीच साथी ईरानियों से मतभेदों और समस्याओं को 'एक तरफ रखने' का आग्रह किया. उन्होंने कहा, "अब सबसे महत्वपूर्ण बात हमारा देश और हमारे देश की स्वतंत्रता है. आइए हम एकजुट हों. किसी को भी हमें यह बताने की हिम्मत नहीं करनी चाहिए कि हमें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए, हमें क्या करना चाहिए, या हमें क्या नहीं करना चाहिए." पनाही को हॉलीवुड अभिनेत्रियों जूलियट बिनोचे और केट ब्लैंचेट ने पुरस्कार प्रदान किया.
पनाही पिछली बार जेल से 2023 में रिहा किये गये थे, दो साथी फिल्म निर्माताओं की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए थी, जो ईरानी सरकार के आलोचक थे. कान की उनकी यात्रा 15 सालों में पहली बार किसी भी अंतरराष्ट्रीय फेस्टिवल में उनकी पहली उपस्थिति थी. उन पर लंबे समय से यात्रा प्रतिबंध लगा हुआ था.
'इट वाज जस्ट एन एक्सीडेंट' गुप्त रूप से शूट की गई थी और आंशिक रूप से पनाही के जेल के अपने अनुभवों पर आधारित है. पनाही का कहना था, "जेल जाने से पहले और वहां जिन लोगों से मैं मिला और उनकी कहानियों, उनके पृष्ठभूमि को जानने से पहले, मेरी फिल्मों में मैं जिन मुद्दों से निपटता था, वे पूरी तरह से अलग थे. यह वास्तव में इसी संदर्भ में है (...) जेल में महसूस की गई इस नई प्रतिबद्धता के साथ ही मुझे इस कहानी का विचार, प्रेरणा मिली."
हॉलीवुड रिपोर्टर के अनुसार, यह फिल्म "धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से सत्ता के दुरुपयोग की घोर निंदा" बन जाती है. फिल्म पांच आम ईरानियों की कहानी बताती है, जिनका सामना एक ऐसे व्यक्ति से होता है, जिनके बारे में वे मानते हैं कि उसने उन्हें जेल में प्रताड़ित किया था. किरदार अन्य कैदियों के साथ हुई बातचीत और "उनकी कहानियों से प्रेरित थे, जो उन्होंने ईरानी सरकार की हिंसा और क्रूरता के बारे में बताईं", निर्देशक ने जोड़ा. पनाही ने छह साल की सजा में से सात महीने जेल में बिताए, इससे पहले उन्हें फरवरी 2023 में रिहा किया गया. उन्हें पहले 2010 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का समर्थन करने और 'व्यवस्था के खिलाफ प्रचार' करने के आरोप में छह साल की सजा सुनाई गई थी. उन्हें दो महीने बाद सशर्त जमानत पर रिहा कर दिया गया था, और फिल्म बनाने या विदेश यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. देखिये फिल्म की क्लिप और यहां पुरस्कार समारोह की.
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