27/06/2025: विमान हादसे की जांच ढीली | महाराष्ट्र की प्रेतछाया कहीं बिहार की मतदाता सूची पर तो नहीं | हिमाचल में 20 मजदूर बहे | नौजवान और आत्महत्याएं | ब्रिक्स को ईरान पर चिंता, हमलावरों पर चुप्पी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
हिमाचल में भारी बारिश, 4 मरे, 20 बहे
न प्रमुख जाँचकर्ता नियुक्त, न जाँच प्रक्रिया को लेकर पारदर्शिता
मतदाता सूची पर महाराष्ट्र जैसी प्रेतछाया?
तेलंगाना: तीन माह में पंचायत चुनाव कराने का आदेश
भारत में बनी कीमो दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल
ईरान पर हमले को लेकर भारत का गड्डमड्ड रवैया, एससीओ के बयान मेें शामिल होने से इंकार, ब्रिक्स में हमले पर चिंता, पर हमलावर की निंदा नहीं
कश्मीर में नशे की समस्या से जूझती महिलाएं
काउंसलिंग की जरूरत श्रीनगर में किसे?
नौजवान और इतनी आत्महत्याएँ
हेमा कमेटी की रिपोर्ट, सभी मामलों की जांच बंद
ट्रम्प और कंगना रनौत में कौन सी बात समान है… ममदानी से नफ़रत!
उल्टा दाँव: भाजपा के पोल में 74.2% ने कहा कांग्रेस फिर इमरजेंसी नहीं लगा सकती
खामेनेई की चेतावनी, अमेरिका ने दोबारा हमला किया तो मिडिल ईस्ट में बेस पर हमला करेंगे
ट्रम्प ने फिर लिया भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम का श्रेय, मोदी को भद्र व्यक्ति बताया
आमिर की फिल्म में 'मोदी' का जलवा
हिमाचल में भारी बारिश, 4 मरे, 20 बहे
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और कांगड़ा जिलों में मंगलवार शाम भारी बारिश के चलते अलग-अलग घटनाओं में चार लोगों की मौत हो गई है, जबकि 20 मजदूरों के बह जाने की आशंका है. ये मजदूर इंदिरा प्रियदर्शिनी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. भारी बारिश के कारण काम रोक दिया गया था और मजदूर अस्थायी शेल्टर में थे, तभी अचानक पानी का स्तर बढ़ गया और मजदूर बह गए. इसी दौरान, कुल्लू जिले के रेहला बिहाल में तीन लोग अपने घरों से सामान निकालने की कोशिश में बाढ़ में बह गए, जो अब भी लापता हैं. मनाली-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे का एक हिस्सा भी ब्यास नदी के उफान के कारण क्षतिग्रस्त हो गया है, हालांकि पीटीआई के अनुसार, अभी भी वाहनों की आवाजाही जारी है.
कार्टून
अहमदाबाद एयर इंडिया विमान दुर्घटना
न प्रमुख जाँचकर्ता नियुक्त, न जाँच प्रक्रिया को लेकर पारदर्शिता
अहमदाबाद में एक एयर इंडिया विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने और उसमें 274 लोगों के मारे जाने के लगभग दो सप्ताह बाद भी, विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) ने अभी तक दुर्घटना की जांच के लिए एक प्रमुख जांचकर्ता नियुक्त नहीं किया है, जैसा कि द इकोनॉमिक टाइम्स ने रिपोर्ट किया है. अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, यह देरी “जांच प्रक्रिया की दक्षता पर सवाल उठाती है जिसे आवश्यक रूप से समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाना है”.
कांग्रेस द्वारा जांच में योजनाबद्ध देरी का मुद्दा उठाने के एक दिन बाद, नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) के प्रमुख के नेतृत्व में एक बहु-विषयक टीम अहमदाबाद में एयर इंडिया AI 171 विमान दुर्घटना की जांच कर रही है और बोइंग ड्रीमलाइनर विमान के ब्लैक बॉक्स से डेटा निकाला जा रहा है. यह सरकारी घोषणा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा 275 लोगों की जान लेने वाली दुर्घटना की जांच में देरी का मुद्दा उठाए जाने के बाद आई. नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने मंगलवार को एक बयान में कहा, “टीम, जिसे अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल के अनुसार गठित किया गया है, का नेतृत्व डीजी AAIB कर रहे हैं, और इसमें एक विमानन चिकित्सा विशेषज्ञ, एक एटीसी अधिकारी, और राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (NTSB) के प्रतिनिधि शामिल हैं, जो निर्माण और डिजाइन वाले देश (संयुक्त राज्य अमेरिका) की सरकारी जांच एजेंसी है, जैसा कि ऐसी जांचों के लिए आवश्यक है”.
क्रैश हुए एयर इंडिया फ्लाइट 171 के दोनों ब्लैक बॉक्स अब दिल्ली लाए जा चुके हैं और उनका डेटा निकालकर विश्लेषण किया जा रहा है. हालांकि, 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि दो हफ्ते बाद भी AAIB (एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो) ने अब तक औपचारिक रूप से जांच टीम गठित नहीं की है, जिससे सवाल उठ रहे हैं. 13 दिन बाद पहला ब्लैक बॉक्स और 8 दिन बाद दूसरा बॉक्स IAF विमान से पूरी सुरक्षा के साथ दिल्ली लाया गया. पहले टेल सेक्शन से मिला ब्लैक बॉक्स लाया गया, फिर कॉकपिट से मिला बॉक्स लाया गया. दोनों में से हर एक में दो यूनिट होती हैं. सीवीआर (कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर) और एफडीआर (फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर). 24 जून की शाम को डेटा निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई जिसमें भारत और अमेरिका (NTSB) के तकनीकी विशेषज्ञ शामिल थे. 25 जून को पुष्टि हुई कि डेटा सुरक्षित था और डैमेज नहीं हुआ, यानी ब्लैक बॉक्स सही स्थिति में मिला.
जांच टीम को लेकर भी विवाद है. एएआईबी ने दावा किया कि एक “मल्टीडिसिप्लिनरी टीम” 13 जून को बनाई गई थी, जिसमें एएआईबी के डीजी, एविएशन मेडिसिन विशेषज्ञ, एटीसी अफसर और एनटीएसबी के प्रतिनिधि शामिल थे, लेकिन यही टीम पहले “गो(Go) टीम” कहलाती थी. यानी केवल पहली प्रतिक्रिया देने वाली टीम जो मौके पर जाकर सबूत सुरक्षित करती है.
इस दुर्घटना के बाद कई आम नागरिक बोइंग विमानों में या यहाँ तक कि सामान्य रूप से उड़ान भरने को लेकर भी सतर्क हो गए हैं. कारगिल युद्ध के पूर्व सैनिक दिनेश, जो उड़ान से डरने वालों को थेरेपी देते हैं, ने कहा कि जहाँ उन्हें आम तौर पर प्रति माह दस इंक्वायरी मिलती थीं, वहीं दुर्घटना के दिन से उन्हें प्रतिदिन 100 से अधिक पूछताछ मिली हैं. मनोवैज्ञानिक पंक्ति गोहेल ने बताया कि उन्होंने लोगों से सुना कि वे उन रिश्तेदारों की सुरक्षा को लेकर डरे हुए थे जिनकी उड़ान निर्धारित थी, "इस हद तक कि वे अपने दैनिक कामों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे”. हृतम मुखर्जी और ध्वनि पंड्या की रिपोर्ट के मुताबिक पांच मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों ने कहा कि इस चिंता के पीछे दुर्घटना का फुटेज एक मुख्य कारण है.
पूर्व जांचकर्ताओं के मुताबिक - डीजी एएआईबी को खुद जांच नहीं करनी चाहिए बल्कि जांच का आदेश देना चाहिए. जांचकर्ता प्रमुख द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट बाद में डीजी को सौंपी जाती है.
बिहार
मतदाता सूची पर महाराष्ट्र जैसी प्रेतछाया?
इंडिया टुमारो में समी अहमद ने पटना से दिलचस्प ख़बर लिखी है. उन्होंने राहुल गांधी के चुनाव आयोग पर लगाए गये आक्षेपों और बिहार में मतदाता सूची को लेकर किये जा रहे फैसलों को जोड़ कर देखने की कोशिश की है.
7 जून को, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, ‘चुनाव कैसे चुराएं.’ और आगे जोड़ा, ‘...महाराष्ट्र की मैच-फिक्सिंग अब बिहार आएगी’. दैनिक जागरण में (दिनांक 23-06-2025) छपी एक खबर, जिसका शीर्षक था, ‘बिहार की मतदाता सूची से बाहर होंगे बांग्लादेशी घुसपैठिये व अप्रवासी मतदाता’, राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं के लिए एक चेतावनी की तरह लगती है. यह खबर का शीर्षक कहता है कि 'बांग्लादेशी घुसपैठियों और गैर-निवासियों को बिहार की मतदाता सूची से बाहर कर दिया जाएगा'.
इस खबर में कोई आधिकारिक उद्धरण नहीं है, लेकिन यह बड़ी चतुराई से राहुल गांधी की चिंताओं को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से जोड़ती है.
दिल्ली डेटलाइन वाली यह खबर चालाकी से बताती है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में धोखाधड़ी के आरोपों पर सावधानी के तौर पर एक 'बड़ा फैसला' लिया है. और वह 'बड़ा फैसला' क्या है. चुनाव आयोग राज्य की मतदाता सूची का घर-घर जाकर सत्यापन करेगा. और इसका विवादास्पद हिस्सा कहता है, “सत्यापन के दौरान, बांग्लादेशी और (अन्य) विदेशी घुसपैठियों और उन लोगों की पहचान की जाएगी जो राज्य के बाहर रहकर नौकरी या व्यवसाय कर रहे हैं, और उनके नाम मतदाता सूची से काट दिए जाएंगे.”
कहा जाता है कि चुनाव आयोग 21 साल बाद इतने बड़े पैमाने पर सत्यापन करेगा. कथित तौर पर यह अगले महीने शुरू होगा. हालाँकि मतदाता सूची का पुनरीक्षण नियमित रूप से किया जाता है, लेकिन तथाकथित बांग्लादेशी घुसपैठियों पर विशेष जोर देकर मतदाता सूची के सत्यापन का यह निर्णय एक चेतावनी है क्योंकि यह एक गढ़ा हुआ मुद्दा लगता है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं के एजेंडे पर रहा है.
यह याद किया जा सकता है कि पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान, तथाकथित बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा भाजपा नेतृत्व द्वारा जोर-शोर से उठाया गया था, लेकिन यह हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को हटाने में विफल रहा. बिहार में स्थिति और भी गंभीर है क्योंकि चुनाव आयोग स्वयं 'घुसपैठिया मतदाताओं की पहचान' का यह काम करेगा.
यह खबर दो वजहों से सवाल खड़े करती है. एक, ऐसे फैसले का समय, क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा बस लगभग तीन महीने दूर है. तो, इतने कम समय में घुसपैठियों को 'बाहर करने' का यह काम कैसे पूरा होगा और प्रभावित लोगों को इस तरह अचानक और मनमाने ढंग से सूची से नाम हटाने के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए कितना समय मिलेगा. यह याद किया जा सकता है कि देश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में, कई मुस्लिम मतदाताओं के नाम गायब पाए गए थे और इसकी व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई थी.
दूसरी बात यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री ने राज्य में तथाकथित बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा कभी नहीं उठाया. लेकिन सवाल यह है कि क्या ढलान की ओर जाते नीतीश कुमार सत्तारूढ़ व्यवस्था के ऐसे विभाजनकारी एजेंडे का विरोध करेंगे. यह भी उत्सुकता से देखा जाएगा कि अगर यह 'बांग्लादेशी घुसपैठिया' मुद्दा मतदाता सूची को बड़े पैमाने पर प्रभावित करना शुरू कर देता है तो नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) कैसे प्रतिक्रिया देती है.
अखबार ने 'सूत्रों' के हवाले से दावा किया कि भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने मतदाता सूची के सत्यापन का यह निर्णय 'बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी की रिपोर्ट मिलने' के बाद लिया. विपक्षी नेताओं को पूछना चाहिए कि अखबार किस रिपोर्ट का हवाला दे रहा है या चुनाव आयोग के पास ऐसी कौन सी रिपोर्ट है. नीतीश कुमार सरकार के लिए यह बहुत शर्मनाक होगा अगर भाजपा या चुनाव आयोग के पास बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी की कोई ऐसी रिपोर्ट है.
यह याद किया जा सकता है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने नवंबर 2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की अखंडता पर महत्वपूर्ण चिंताएं जताई थीं, जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग की मिलीभगत से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा रचित "औद्योगिक पैमाने पर धांधली" का आरोप लगाया था. उनकी आपत्तियों का विवरण "मैच-फिक्सिंग महाराष्ट्र" शीर्षक वाले एक लेख में द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था.
राहुल गांधी ने मुख्य रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों (जून 2024) और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों (नवंबर 2024) के बीच मतदाताओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि पर प्रकाश डाला था, जो केवल पांच महीनों में 39 लाख (3.9 मिलियन) मतदाता बढ़ गए थे.
राहुल गांधी ने बताया था कि अधिकांश 'अतिरिक्त मतदाता' उन 85 निर्वाचन क्षेत्रों में जोड़े गए थे जहाँ भाजपा ने लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन किया था, जो भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन के पक्ष में लक्षित हेरफेर का सुझाव देता है.
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने में विफल रहने का भी आरोप लगाया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि बड़ी संख्या में मतदाता, विशेष रूप से दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों से, या तो चुनावी सूचियों से हटा दिए गए या स्थानांतरित कर दिए गए, जिससे संभावित रूप से विपक्षी समर्थकों को मताधिकार से वंचित किया गया. जैसा कि राहुल गांधी ने संकेत दिया था कि 'महाराष्ट्र की मैच-फिक्सिंग' बिहार आएगी, ऐसा लगता है कि उनकी आशंकाओं का कोई ठोस आधार है. लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल की पार्टी और उनके सहयोगी, विपक्षी समर्थकों, विशेष रूप से बंगाली या सुरजापुरी (सीमांचल की स्थानीय भाषा) बोलने वाले मुस्लिम मतदाताओं के इस तरह के अनुमानित 'मताधिकार से वंचित' किए जाने का सामना करने के लिए तैयार हैं. स्पष्ट रूप से, सीमांचल के मुस्लिम मतदाताओं को मतदाता सूची से नाम हटाने जैसी इस कार्रवाई का सामना महत्वपूर्ण रूप से करना पड़ सकता है, जहाँ मुस्लिम उम्मीदवार आम तौर पर बेहतर प्रदर्शन करते हैं.
कांग्रेस पार्टी ने भी लाखों मतदाताओं के नाम हटाने और 47 लाख नए मतदाता जोड़ने (हालांकि चुनाव आयोग ने 39 लाख की सूचना दी) पर चिंता जताई, और महाराष्ट्र में इन बदलावों की वैधता पर सवाल उठाया. राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग "स्पष्ट रूप से समझौता कर चुका था" और भाजपा के प्रति पक्षपाती था. राहुल ने सुझाव दिया था कि महाराष्ट्र में कथित तौर पर जोड़े गए 39 लाख "फ्लोटिंग वोटर" को चुनाव परिणाम को प्रभावित करने के लिए रणनीतिक रूप से बिहार में स्थानांतरित किया जा सकता है. कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बिहार में संभावित कदाचार को रोकने के लिए विपक्ष की सतर्कता और सार्वजनिक जांच महत्वपूर्ण होगी.
तेलंगाना: तीन माह में पंचायत चुनाव कराने का आदेश
तेलंगाना हाईकोर्ट ने राज्य में ग्राम पंचायतों के चुनाव अगले तीन महीनों के भीतर कराने का आदेश दिया है. ग्राम पंचायतों का कार्यकाल पिछले साल की शुरुआत में समाप्त हो गया था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने वित्तीय संकट, अपने संगठन को फिर से मजबूत करने की इच्छा और साथ ही पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों के लिए 42% आरक्षण सुनिश्चित करने वाले विधेयकों (यह मामला फिलहाल केंद्र सरकार के पास लंबित है) को ध्यान में रखते हुए इन चुनावों को टाल रखा था. हालांकि, सरपंच संघ के एक नेता ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार पंचायतों को पैसा जारी करने में इसलिए हिचक रही है, क्योंकि उसे संदेह है कि भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से जुड़े सरपंच इन पैसों का इस्तेमाल अपनी पार्टी के हित में करेंगे. पूरी खबर यहां एन. राहुल की रिपोर्ट में है.
भारत में बनी कीमो दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल
भारतीय फर्मों द्वारा निर्मित महत्वपूर्ण कीमोथेरेपी दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गई हैं, जिससे 100 से अधिक देशों में कैंसर रोगियों के लिए उपचार प्रभावहीन होने और संभावित रूप से घातक साइड इफेक्ट्स का खतरा पैदा हो गया है, यह जानकारी ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म ने एक अध्ययन रिपोर्ट में दी है.
जिन दवाओं की बात की जा रही है, वे कई सामान्य कैंसर- जैसे स्तन, डिम्बग्रंथि (ओवरी) और ल्यूकेमिया के उपचार की रीढ़ हैं. कुछ दवाओं में उनके मुख्य घटक की मात्रा इतनी कम पाई गई कि फार्मासिस्टों ने कहा कि इन्हें मरीजों को देना, न देने के बराबर है. वहीं, कुछ दवाओं में सक्रिय घटक की मात्रा बहुत अधिक थी, जिससे मरीजों को गंभीर अंग क्षति या यहां तक कि मृत्यु का भी खतरा था. एक फार्मासिस्ट ने कहा, “दोनों ही स्थितियां भयानक हैं.”
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में कैंसर की दवाओं की कीमतें अपेक्षाकृत कम हैं, जिससे इनकी मांग बढ़ गई है, लेकिन गुणवत्ता नियंत्रण की कमी के कारण मरीजों को नुकसान पहुंच सकता है. रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि दवा नियामक संस्थाओं को निरीक्षण और परीक्षण की प्रक्रिया को और सख्त करना चाहिए, ताकि मरीजों को सुरक्षित और प्रभावी दवाएं मिल सकें. इस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर, मरीजों और डॉक्टरों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है और सरकार से मांग की गई है कि वह दवा निर्माण और वितरण की प्रक्रिया पर कड़ी निगरानी रखे, ताकि कैंसर के मरीजों को उच्च गुणवत्ता की दवाएं मिल सकें.
ईरान पर हमले को लेकर भारत का गड्डमड्ड रवैया, एससीओ के बयान मेें शामिल होने से इंकार, ब्रिक्स में हमले पर चिंता, पर हमलावर की निंदा नहीं
भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के साझा बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसमें पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद पर नई दिल्ली की चिंताओं को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया था. हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का स्पष्ट ज़िक्र नहीं था, बल्कि बलूचिस्तान का ज़िक्र कर भारत पर आरोप लगाए गए थे.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हस्ताक्षर करने से इनकार के बाद एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक बिना साझा बयान के ही समाप्त हो गई. समाचार एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया कि भारत को लगा कि साझा बयान में आतंकवाद से निपटने, खासकर सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं था. अपने संबोधन में राजनाथ सिंह ने कहा कि आतंकवाद से लड़ने में “दोहरे मापदंड” नहीं होना चाहिए. यह भी कहा कि कुछ देश आतंकवाद को अपनी नीति के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं और आतंकवादियों को शरण देते हैं.
एससीओ सदस्य देशों में पाकिस्तान के अलावा चीन, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान भी शामिल हैं. 2025 के लिए एससीओ की अध्यक्षता चीन के पास है.
पर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) द्वारा ईरान पर इज़राइल के हमलों की निंदा करने वाले एक बयान से खुद को अलग करने के एक सप्ताह से कुछ अधिक समय बाद, भारत ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं के दस-सदस्यीय ब्रिक्स ब्लॉक के साथ मिलकर ईरान पर सैन्य हमलों और मध्य पूर्व में सुरक्षा स्थिति के बिगड़ने पर "गंभीर चिंता" व्यक्त की. इन हमलों को अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन बताया गया. बुधवार को ब्राजील के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में, ब्रिक्स ने सभी पक्षों से राजनयिक बातचीत और तनाव कम करने का आह्वान किया. दिलचस्प बात यह है कि ब्रिक्स के बयान में ईरान के खिलाफ सैन्य हमलों का जिक्र करते हुए अमेरिका या इज़राइल का कोई उल्लेख नहीं किया गया, जिससे यह समझ में आता है कि भारतीय पक्ष इस बयान पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी कैसे हुआ. बयान में परमाणु हथियारों और अन्य जनसंहार के हथियारों से मुक्त पश्चिम एशिया की स्थापना के लिए अपने समर्थन को भी दोहराया गया.
उधर ईरान ने भारत द्वारा इज़राइल और अमेरिका के ईरान पर हमलों की निंदा न करने के बावजूद, अमेरिका समर्थित इज़राइल के खिलाफ तेहरान के '12-दिवसीय युद्ध' के दौरान नैतिक समर्थन और एकजुटता के संदेशों के लिए "भारत के महान और स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों" के प्रति अपना गहरा आभार व्यक्त किया है. हालिया सैन्य संघर्ष में जीत का दावा करते हुए, नई दिल्ली में ईरानी दूतावास ने राजनीतिक नेतृत्व, आम नागरिकों, और कार्यकर्ताओं सहित अन्य लोगों का धन्यवाद किया, जिनके बारे में उसने कहा कि वे दृढ़ता और मुखरता से तेहरान के साथ खड़े रहे. जहाँ एक ओर प्रधानमंत्री मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन से बात की और चिंताएं व्यक्त कीं, वहीं पूर्व पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी सहित कई कांग्रेस नेताओं ने तेहरान के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त की और उस पर हुए हमलों की निंदा की. भारत में ईरानी मिशन ने आगे कहा, “एकजुटता के संदेश, नैतिक समर्थन, सार्वजनिक बयान, और शांति-उन्मुख सभाओं और पहलों में सक्रिय भागीदारी, एक ऐसे समय में जब ईरानी लोग कब्जा करने वाले ज़ायोनी शासन द्वारा क्रूर सैन्य हमले के अधीन थे, गहरे प्रोत्साहन का स्रोत रहे हैं. ये भाव स्पष्ट रूप से राष्ट्रों की जाग्रत अंतरात्मा और न्याय तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं”.
संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' को हटाया जाए : होसबोले
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता दत्तात्रेय होसबोले ने गुरुवार को संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्दों को हटाने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया कि ये शब्द आपातकाल के दौरान "जबरदस्ती" जोड़े गए थे.
होसबोले ने कांग्रेस से 50 साल पहले लगाए गए आपातकाल के लिए माफी की मांग की. उन्होंने कहा कि 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' जैसे शब्द, जो भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांत माने जाते हैं, उन्हें उस समय जबरन संविधान में डाला गया था. आज हमें विचार करना चाहिए कि क्या ये शब्द बने रहने चाहिए. जिन्होंने ऐसा किया, वे आज संविधान की बात करते हैं, लेकिन अब तक माफी नहीं मांगी. राहुल गांधी पर परोक्ष हमला करते हुए होसबोले ने आगे कहा, "आपके पूर्वजों ने यह किया. आपको देश से माफी मांगनी चाहिए."
कश्मीर में नशे की समस्या से जूझती महिलाएं
जम्मू-कश्मीर में नशे की लत एक गंभीर सामाजिक समस्या बनती जा रही है. हाल के वर्षों में, खासकर युवाओं के बीच, नशे के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है. इस संकट का सबसे बड़ा असर महिलाओं पर पड़ रहा है, चाहे वे स्वयं नशे की शिकार हों, या परिवार में किसी सदस्य के नशे की वजह से पीड़ित हों.
“आर्टिकल-14” में तौसीफ अहमद और सुहैल खान की रिपोर्ट कहती है कि महिलाएं, हालांकि नशे की बढ़ती समस्या का डटकर सामना कर रही हैं. लेकिन, नशे की लत तेजी से बढ़ रही है, जिससे कई परिवार बर्बाद हो रहे हैं. महिलाएं नशे के खिलाफ जागरूकता फैला रही हैं, सहायता समूह बना रही हैं और नशा मुक्ति केंद्रों से जुड़कर दूसरों की मदद कर रही हैं. समाज में महिलाओं को नशे की समस्या के कारण कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव. इसके बावजूद, कई महिलाएं आगे आकर नशा मुक्ति के लिए प्रेरणा बन रही हैं और दूसरों को भी इस लड़ाई में शामिल कर रही हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 10 से 17 वर्ष की आयु के 1,68,700 बच्चे नशे का सेवन करते हैं. दो महिलाएं, जो स्कूल के समय हेरोइन की लत में फंस गई थीं, ने “आर्टिकल-14” को बताया कि किस तरह उन्होंने क्षेत्र के पहले महिला-प्रबंधित नशा मुक्ति केंद्र की मदद से नशा छोड़ने का सफर तय किया. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र की 10% आबादी किसी न किसी रूप में नशे की आदी है.
काउंसलिंग की जरूरत श्रीनगर में किसे?
श्रीनगर के पुराने शहर में, इमामबाड़ा ज़ादीबल के गेट के पास एक ग्रैफिटी से घटनाओं का एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो जल्द ही एक राजनीतिक विवाद में बदल गया. कथित तौर पर इज़रायली झंडे जैसी दिखने वाली यह ग्रैफिटी सड़क पर बनाई गई थी, जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और इसे "सांप्रदायिक सद्भाव और सार्वजनिक व्यवस्था" के नाम पर मिटा दिया गया. इसके बाद की जांच में तीन स्थानीय किशोरियों की संलिप्तता की पहचान हुई. औपचारिक आरोप लगाने के बजाय, पुलिस ने उनके माता-पिता को बुलाया और नाबालिगों को "परामर्श" और सेंसिटाइजेशन के लिए भेज दिया. लेकिन इस घटना की श्रीनगर के सांसद आगा रुहुल्लाह मेहदी ने तीखी आलोचना की, जिन्होंने एक्स पर अपना गुस्सा व्यक्त किया: "जब किशोर लड़कियां एक नरसंहार का विरोध करती हैं, तो काउंसेलिंग की उन्हें नहीं, बल्कि उन्हें रोकने वालों को इसकी ज़रूरत होती है. यहाँ एकमात्र सांप्रदायिक सद्भाव जो भंग हो रहा है, वह हमारा है, हम कश्मीरियों का...". लंबे समय से प्रतिबंधों के आदी क्षेत्र में, मेहदी की टिप्पणियों ने युवाओं की अभिव्यक्ति के लिए सिकुड़ती जगह पर बढ़ती बेचैनी को उजागर किया.
नौजवान और इतनी आत्महत्याएँ
रमा नागराजन की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 और 2022 के बीच 18-29 वर्ष की आयु के भारतीयों के लिए मौत का प्रमुख कारण आत्महत्या थी (मौतों का 17.1% हिस्सा). पिछले दो दशकों में यह इस आयु वर्ग में या तो शीर्ष या दूसरे नंबर का कारण रहा है. वे बताती हैं कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया भर में इस आयु वर्ग के लिए आत्महत्या तीसरा सबसे बड़ा कारण है. वे यह भी पाती हैं कि 2020-22 में 18-29 आयु वर्ग की महिलाओं में आत्महत्या का हिस्सा (18.2%) पुरुषों (16.3%) की तुलना में अधिक था, लेकिन 2010-13 की तुलना में यह अंतर कम हो गया था.
हेमा कमेटी की रिपोर्ट, सभी मामलों की जांच बंद
हेमा समिति की रिपोर्ट के आधार पर मलयालम फिल्म उद्योग में यौन दुर्व्यवहार के मामलों की जांच के लिए गठित विशेष जांच टीम ने सभी 35 मामलों को बंद कर दिया है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति रिकॉर्ड पर आकर जांचकर्ताओं के सामने बयान देने के लिए तैयार नहीं था. इस बात की जानकारी कल केरल हाईकोर्ट को दी गई.
ट्रम्प और कंगना रनौत में कौन सी बात समान है… ममदानी से नफ़रत!
ट्रम्प ने ज़ोहरान ममदानी के प्रति अपनी नापसंदगी को भी नहीं छिपाया है. ज़ोहरान भारत में जन्मी फिल्म निर्माता मीरा नायर और युगांडा के भारतीय विद्वान महमूद ममदानी के बेटे हैं, जो अब न्यूयॉर्क शहर के मेयर बनने की कगार पर हैं, जहाँ वे किराया फ्रीज करने और बसों को मुफ्त करने का वादा करते हैं. ट्रम्प ने 33 वर्षीय ज़ोहरान को "100% कम्युनिस्ट सनकी" कहा है. और जैसे ही मेयर चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक प्राइमरी में उनकी घोषित जीत की खबर आई है, यह स्पष्ट हो गया है कि मोदी के आलोचक ममदानी के भारत में भी निंदक हैं. अभिनेत्री से भाजपा की सांसद बनीं कंगना रनौत, जो हमेशा अपनी हिंदुत्व साख को चमकाने के लिए तैयार रहती हैं, ने कहा है कि ममदानी "भारतीय से ज़्यादा पाकिस्तानी लगते हैं", और आगे कहा कि "उनकी हिंदू पहचान या वंश का क्या हुआ और अब वह हिंदुत्व को मिटाने के लिए तैयार हैं". 'पाकिस्तान' का आरोप कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने भी लगाया, जिन्होंने कहा है कि जब "ममदानी अपना मुँह खोलते हैं, तो पाकिस्तान की पीआर टीम छुट्टी ले लेती है".
उल्टा दाँव: भाजपा के पोल में 74.2% ने कहा कांग्रेस फिर इमरजेंसी नहीं लगा सकती
एक ऐसे कदम में जिसका उद्देश्य डर पैदा करना और एक पुराने चुनावी हौवे को फिर से जीवित करना था, भाजपा ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली - वह भी 2.32 करोड़ फॉलोअर्स के सामने. पार्टी के आधिकारिक एक्स हैंडल ने बुधवार को एक पोल शुरू किया, जिसमें उपयोगकर्ताओं से एक सवाल पूछा गया: क्या सत्ता में लौटने पर कांग्रेस फिर से आपातकाल लगाएगी. शायद इसे एक जोरदार 'हाँ' की उम्मीद थी. वास्तविक परिणाम. 70% से अधिक ने "नहीं" कहा. यह सिर्फ एक पोल का गलत होना नहीं है. यह एक नैरेटिव (कथानक) का ध्वस्त होना है. भाजपा की दशकों पुरानी डराने वाली रणनीति उलटी पड़ गई, और उपयोगकर्ताओं ने जवाबों में उन सुर्खियों और छवियों की बाढ़ ला दी, जिनमें मोदी सरकार पर "वास्तविक आपातकाल" का अपना संस्करण चलाने का आरोप लगाया गया था - जिसमें मीडिया नियंत्रण, अल्पसंख्यकों पर हमले, असहमति का दमन और केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का हवाला दिया गया. पार्टी का बहुप्रचारित आईटी सेल अपनी पकड़ खोता हुआ दिख रहा है.
खामेनेई की चेतावनी, अमेरिका ने दोबारा हमला किया तो मिडिल ईस्ट में बेस पर हमला करेंगे
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने पहली बार युद्धविराम के बाद सार्वजनिक बयान में चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने दोबारा हमला किया, तो ईरान मिडिल ईस्ट में मौजूद उसके सैन्य अड्डों पर जवाबी हमला करेगा. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि 86 वर्षीय खामेनेई ने यह बयान एक पूर्व-रिकॉर्डेड वीडियो में दिया जो सरकारी टीवी पर प्रसारित हुआ. इसमें उन्होंने सोमवार को क़तर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर ईरान द्वारा किए गए मिसाइल हमले को "अमेरिका के मुंह पर तमाचा" बताया. यह हमला प्रतीकात्मक रहा, किसी को हानि नहीं हुई थी. उन्होंने कहा - "इस्लामी गणराज्य के पास क्षेत्र में महत्वपूर्ण अमेरिकी केंद्रों तक पहुंच है और जब चाहे उन पर कार्रवाई कर सकता है. यह कोई छोटी बात नहीं है."
खामेनेई ने दावा किया कि अमेरिका को सीधे युद्ध में इसलिए कूदना पड़ा क्योंकि उसे डर था कि अगर उसने हस्तक्षेप नहीं किया तो इजरायल पूरी तरह नष्ट हो जाएगा. उन्होंने ट्रम्प पर यह कहकर हमला बोला कि “संघर्ष की शुरुआत में ईरान से बिना शर्त आत्मसमर्पण की मांग से अमेरिका की असली मंशा उजागर हो गई.” ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका-इजरायल के संयुक्त हमलों को खारिज करते हुए खामेनेई ने कहा कि वे "कुछ खास हासिल नहीं कर सके" और ट्रम्प इन हमलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं.
इस बीच, ईरान की संसद द्वारा पारित और गार्जियन काउंसिल द्वारा मंजूर विधेयक के अनुसार, ईरान ने आईएईए (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के साथ सहयोग तत्काल निलंबित कर दिया है. सहयोग दोबारा तभी शुरू होगा जब यह साबित हो जाए कि ईरानी परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है और सुरक्षित है. इधर, ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बगाई ने अल जज़ीरा को दिए इंटरव्यू में स्वीकार किया कि "हमारे परमाणु केंद्र गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं". उन्होंने यह भी कहा कि देश के भीतर बहस चल रही है कि क्या ईरान को परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से बाहर निकल जाना चाहिए.
एक ओर ईरान यह दावा कर रहा है कि उन्हें बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन दूसरी ओर अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने ईरान के परमाणु संवर्धन केंद्रों पर अमेरिका के हालिया हमलों का पुरज़ोर बचाव किया है. उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को “तबाह कर दिया है”, भले ही शुरुआती खुफिया रिपोर्टें यह संकेत दें कि प्रमुख संवर्धन केंद्रों को पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सका है और वे कुछ ही महीनों में फिर से चालू हो सकते हैं. हालांकि हेगसेथ और जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल डैन केन ने अपनी बात का आधार मुख्य रूप से एआई मॉडलिंग को बनाया, जिसमें बंकर बस्टर बमों के परीक्षण वीडियो भी दिखाए गए. फ़ोर्दो स्थल पर हुई क्षति की विस्तृत जानकारी के लिए उन्होंने खुफिया एजेंसियों की ओर इशारा किया. पेंटागन से बोलते हुए हेगसेथ ने डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA) की शुरुआती आकलन रिपोर्ट पर संदेह जताया और कहा कि यह "प्रारंभिक" थी और इसे किसी ने "राजनीतिक उद्देश्य से लीक किया ताकि इस ऐतिहासिक हमले को विफल दिखाया जा सके." उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है जिससे यह पता चले कि ईरान ने अपने 60% संवर्धित यूरेनियम को कहीं और स्थानांतरित किया हो. जबकि आईएईए ने कहा है कि ईरान के पास मौजूद 400 किलोग्राम संवर्धित यूरेनियम अब हिसाब में नहीं है.
ट्रम्प ने फिर लिया भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम का श्रेय, मोदी को भद्र व्यक्ति बताया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम का श्रेय खुद को दिया है. ट्रम्प ने नाटो शिखर सम्मेलन के बाद दावा किया कि उनके एक फोन कॉल और व्यापार समझौते की धमकी के चलते दोनों देशों के बीच युद्ध टल गया था.
ट्रम्प ने कहा, “मैंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष को ट्रेड पर फोन कॉल की एक सीरीज के साथ खत्म करवा दिया. मैंने कहा- देखिए अगर आप एक दूसरे से लड़ने जा रहे हैं, तो यह बहुत बुरा होने जा रहा है. हम कोई व्यापार सौदा नहीं करने जा रहे हैं.”
ट्रम्प ने पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर का जिक्र करते हुए आगे कहा, “पाकिस्तान के जनरल पिछले हफ्ते मेरे कार्यालय में थे. आप जानते हैं, प्रधानमंत्री मोदी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं. वह एक भद्र व्यक्ति हैं. मैंने उनसे कहा, अगर आप एक दूसरे से लड़ने जा रहे हो तो मैं व्यापार सौदा नहीं कर रहा हूं. और आप जानते हो क्या? उन्होंने (मोदी) कहा, ‘नहीं, मैं व्यापार सौदा करना चाहता हूं. और इस तरह हमने परमाणु युद्ध रोक दिया.”
हालांकि भारत ने स्पष्ट रूप से और लगातार कहा है कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी. यह संघर्ष विराम पूरी तरह से भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत के बाद हुआ था. जी7 शिखर सम्मेलन के बाद ट्रम्प के साथ फोन पर बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्रम्प को यही बात कही थी कि इस संघर्ष विराम में अमेरिका का कोई योगदान नहीं है और व्यापार का कोई जिक्र नहीं हुआ था. इसके बावजूद ट्रम्प लगातार संघर्ष विराम का श्रेय ले रहे हैं.
चलते-चलते :
आमिर की फिल्म में 'मोदी' का जलवा
आमिर खान की फिल्म 'सितारे जमीन पर' सिनेमाघारों में आखिरकार रिलीज हो गई है. ये फिल्म पिछले दिनों सेंसर बोर्ड की ओर से निर्माताओं के सामने रखी गई अजीब डिमांड के चलते सुर्खियों में आ गई थी. डिमांड थी फिल्म की शुरुआत में साल 2047 को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण के एक अंश को जोड़ने की. ये डिमांड मान ली गई, लेकिन अब फिल्म अपनी रिलीज के बाद इसी डिमांड के चलते सरकार की आलोचना की वजह बन रही है. एक यूजर रोशन रॉय ने अपने एक्स पर एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा - ''यह #SitaareZameenPar के थिएटर में शुरू होने वाले टाइटल रोल आउट की शुरुआत से लिया गया है. जो उद्धरण आप स्क्रीन पर देखते हैं, वह नरेंद्र मोदी द्वारा कहा गया था. अब दिलचस्प बात जानिए - सीबीएफसी (सेंसर बोर्ड) ने आमिर ख़ान को यह उद्धरण फ़िल्म में शामिल करने के लिए मजबूर किया, तभी जाकर फ़िल्म को रिलीज़ की मंज़ूरी मिली. यहां तक कि किम जोंग उन में भी इससे कम आत्ममुग्धता (narcissism) है.''
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