27/09/2025: 'आई लव मुहम्मद' कहने पर पुलिस की लाठियां | वांगचुक गिरफ़्तार | चार धाम परियोजना रोकने की मांग | खाली हाल में नेतन्याहू का नफ़रती भाषण | अमेरिकी देसियों की पोल खोल
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
लद्दाख की आवाज पर NSA का शिकंजा: सोनम वांगचुक गिरफ्तार, जोधपुर जेल भेजे गए.
एक तरफ गिरफ्तारी, दूसरी तरफ बातचीत: हिंसा के बाद केंद्र ने लद्दाख के नेताओं को दिल्ली बुलाया.
‘फेक नैरेटिव’ फेल? लद्दाख पुलिस ने अमित मालवीय के दावे को किया खारिज.
“भाजपा हिंदू नहीं, नींव झूठ पर टिकी है”: सोनम वांगचुक की पत्नी का सरकार पर तीखा हमला.
धर्मगुरु या शैतान? गर्ल्स हॉस्टल के बाथरूम तक थी पहुंच, 19 छात्राओं से यौन शोषण का आरोप.
एक तरफ फूलों की बारिश, दूसरी तरफ लाठीचार्ज? यूपी में ‘आई लव मुहम्मद’ के पोस्टर पर बवाल.
‘बहन को किस’ पर बवाल: कैलाश विजयवर्गीय के बचाव में उतरे विवादित मंत्री विजय शाह.
क्या PM मोदी की रैली में ‘किराए’ की भीड़ थी? स्थानीय व्लॉगर के दावे से मचा हड़कंप.
अमेरिका का सपना टूटा: इस साल अब तक 2,417 भारतीय अमेरिका से निकाले गए.
हिमालय का खतरा बढ़ा: जोशी और कर्ण सिंह की CJI से अपील- चार धाम परियोजना का फैसला वापस लें.
भारत-अमेरिका रिश्तों में नया मोड़? ट्रंप ने ओवल ऑफिस में पाक पीएम और सेना प्रमुख का किया स्वागत.
भारतीय दवा कंपनियों में हड़कंप: ट्रंप के 100% टैरिफ के ऐलान से फार्मा शेयर गिरे.
नेतन्याहू के भाषण के दौरान दर्जनों देशों ने किया वॉकआउट.
माइक्रोसॉफ्ट ने फिलिस्तीनियों की जासूसी में इस्तेमाल हो रही अपनी तकनीक पर लगाई रोक.
सुशांत सिंह: मोदी की विदेश नीति फेल? भारतीय प्रवासियों के समर्थन के दावों की खुली पोल.
सोनम वांगचुक लद्दाख में हिंसक विरोध प्रदर्शन के दो दिन बाद गिरफ्तार, जोधपुर जेल ले गए
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को शुक्रवार को लद्दाख पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. यह गिरफ्तारी लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर लेह में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के दो दिन बाद हुई है. वांगचुक के खिलाफ लोगों को हिंसा के लिए भड़काने के आरोप में गुरुवार को एफआईआर दर्ज की गई थी. बशारत मसूद के मुताबिक, उनकी गिरफ्तारी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत की गई है और उन्हें राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल ले जाया गया है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, वांगचुक को शुक्रवार (26 सितंबर 2025) को दोपहर 2:30 बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करना था, लेकिन मीडिया से बात करने से पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. बुधवार को हिंसक प्रदर्शन में चार लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई अन्य घायल हुए थे. एक दिन बाद, सरकार ने अशांति के लिए वांगचुक को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि उनके “भड़काऊ बयानों” और अधिकारियों तथा लद्दाखी प्रतिनिधियों के बीच चल रही बातचीत से नाखुश “राजनीतिक रूप से प्रेरित” समूहों की कार्रवाइयों ने प्रदर्शनकारियों को उकसाया. गृह मंत्रालय का आरोप है कि वांगचुक द्वारा अरब स्प्रिंग और नेपाल जेन जेड विरोध प्रदर्शनों का हवाला देने से भीड़ में आक्रोश भड़का. सरकार के इस बयान पर प्रतिक्रिया में वांगचुक ने कहा, “यह घटना जितनी दुखद है, उतनी ही दुखद यह बात भी है कि जिस तरह से सरकार के अधिकारी इस मुद्दे से निपट रहे हैं, वह बचकाना है.” उन्होंने कहा कि अधिकारी दोषारोपण का खेल खेल रहे हैं और उन्हें “बलि का बकरा” बना रहे हैं. वांगचुक ने कहा, “यह घाव भरने का तरीका नहीं है; यह स्थिति को और बिगाड़ेगा और युवाओं को गुस्सा दिलाएगा. छह साल की बेरोजगारी और अधूरे वादों के बाद, अब वे हर चीज़ के लिए सिर्फ मुझे ही दोष दे रहे हैं.”
यह गिरफ्तारी गृह मंत्रालय द्वारा वांगचुक के गैर-लाभकारी संगठन ‘स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख’ (एसईसीएमओएल) का विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत विदेशों से धन प्राप्त करने के लिए पंजीकरण रद्द करने के एक दिन बाद हुई है. इस मामले में सीबीआई भी जांच करने उनके पास पहुंची थी.
गृह मंत्रालय ने लेह अपेक्स बॉडी से संपर्क साधा
इस बीच फ़ैयाज़ वानी की खबर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लेह अपेक्स बॉडी (एलएबी) से संपर्क साधा है. केंद्र और लद्दाख के नेताओं के बीच 6 अक्टूबर को होने वाली बातचीत से पहले, लद्दाख के नेताओं का सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल आज शनिवार (27 सितंबर 2025) को नई दिल्ली में गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ एक तैयारी बैठक करेगा. हिंसा के बाद से, लेह ज़िले में कर्फ्यू और पड़ोसी कारगिल में धारा 163 के तहत प्रतिबंध लागू किए हैं. इंटरनेट सेवाएं भी ठप हैं. पुलिस ने लगभग 50 लोगों को हिरासत में लिया है.
अमित मालवीय ने गलत खबर फैलाई
इधर, बिस्मी टासकिन के अनुसार, लद्दाख पुलिस ने बुधवार को लेह में हुई हिंसा में कांग्रेस पार्षद फुंटसोग स्टैंज़िन त्सेपाग की सीधे संलिप्तता से इनकार किया है, जिसमें पुलिस फायरिंग में चार लोगों की मौत हुई थी. दरअसल, हिंसा फैलने के तुरंत बाद, बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मलवीय ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए “एक्स” पर एक वीडियो और तस्वीरें साझा करते हुए लिखा था, “लेह में दंगे मचाने वाला यह व्यक्ति फुंटसोग स्टैंज़िन त्सेपाग है, जो अपर लेह वार्ड के कांग्रेस पार्षद हैं. उन्हें भीड़ को उकसाते और बीजेपी कार्यालय और हिल काउंसिल पर हमले में भाग लेते देखा जा सकता है. क्या यही अशांति है जिसके बारे में राहुल गांधी सोचते रहे हैं?” खुद त्सेपाग ने एक वीडियो साझा कर कहा है कि वे इस मामले में मानहानि का मुकदमा करेंगे.
पत्नी गीतांजलि बोलीं, ‘यह लोकतंत्र का सबसे बुरा रूप’ : भाजपा हिंदू नहीं है, इसकी नींव झूठ पर टिकी
सोनम वांगचुक को गिरफ्तार किए जाने के बाद, उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो और विपक्षी नेताओं ने केंद्र सरकार पर लद्दाख की पहचान, पर्यावरण और संवैधानिक अधिकारों की वकालत करने वाली एक शांतिपूर्ण आवाज़ को दबाने का आरोप लगाया है. गीतांजलि ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके घर की तलाशी ली और उनके पति को “राष्ट्र-विरोधी” के रूप में गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. उन्होंने इस कार्रवाई को “लोकतंत्र का सबसे बुरा रूप” बताते हुए कहा, “बिना किसी मुकदमे, बिना किसी कारण के, उन्हें (सोनम को) एक अपराधी की तरह उठा लिया है.” अंगमो ने एफसीआरए और सीबीआई जांच सहित वांगचुक के खिलाफ सभी आरोपों पर राष्ट्रीय टेलीविजन पर केंद्र को बहस की चुनौती भी दी.
स्वयं को एक अभ्यासरत हिंदू और वेदों तथा वेदांत की शिक्षिका बताते हुए उन्होंने कहा कि सत्ताधारी दल को खुद को हिंदू नहीं कहना चाहिए. उन्होंने टिप्पणी की, “भाजपा हिंदू नहीं है, क्योंकि इसकी नींव झूठ पर टिकी है. यह वह भारत नहीं है जिसका सपना श्रीअरबिंदो ने देखा था और यह वह हिंदुत्व नहीं है, जिसकी बात वेद और वेदांत करते हैं.” गिरफ्तारी को लेकर बढ़ती आलोचना पर भाजपा की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.
2019 में 3 मंत्रालयों ने लद्दाख को जनजातीय दर्जा देने पर सहमति दी थी
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2019 में केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के निर्माण के कुछ हफ़्तों बाद, केंद्र सरकार के तीन मंत्रालयों ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) को लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक जनजातीय क्षेत्र के रूप में शामिल करने की सिफारिश के लिए हरी झंडी दे दी थी. यह जानकारी 11 सितंबर, 2019 को हुई NCST की बैठक के मिनट्स से सामने आई है.
यह खुलासा ऐसे समय में हुआ है जब हाल ही में लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई. छह साल पहले, जब केंद्र सरकार ने तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया था, तब NCST ने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग पर स्वतः संज्ञान लिया था. 11 सितंबर, 2019 की बैठक में, आयोग ने “सावधानीपूर्वक विचार” के बाद सिफारिश की थी कि “केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत लाया जाए”.
बैठक के मिनट्स के अनुसार, पैनल ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 4 सितंबर, 2019 को गृह मंत्रालय, जनजातीय मामलों के मंत्रालय और कानून एवं न्याय मंत्रालय के साथ परामर्श किया था. इस बैठक में, विचार-विमर्श के बाद, “मंत्रालयों की राय थी कि यदि आयोग संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने की सिफारिश करता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है.”
हालांकि, बाद में केंद्र सरकार का रुख बदल गया. दिसंबर 2022 में, गृह मंत्रालय ने एक संसदीय पैनल को जवाब देते हुए कहा था कि लद्दाख को पांचवीं/छठी अनुसूची में शामिल करने का मुख्य उद्देश्य उनका समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है, जिसका ध्यान केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन अपने निर्माण के बाद से ही रख रहा है. मंत्रालय ने कहा था कि लद्दाख को उसके समग्र विकास की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जा रहा है. यह 2019 में दिए गए मंत्रालयों के शुरुआती आश्वासन के ठीक विपरीत था, जिसने क्षेत्र के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की उम्मीद जगाई थी. NCST के रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2019 की यह सिफारिश तब आई थी जब पैनल भाजपा नेता नंद कुमार साय की अध्यक्षता में था.
‘आई लव मुहम्मद’ पर यूपी पुलिस को भारी कष्ट, बरेली, मऊ में प्रदर्शनकारियों से हिंसा, लाठीचार्ज
उत्तरप्रदेश के बरेली और मऊ में शुक्रवार को “आई लव मुहम्मद” के बैनर लिए प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस की झड़प हुई, जो बाद में हिंसा में बदल गई. कानून-व्यवस्था बहाल करने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठियां भांजीं.
“न्यूज़18” के अनुसार, शुक्रवार की नमाज़ के बाद एक बड़ी भीड़ मौलवी के आवास के बाहर और मस्जिद के पास सरकार को ज्ञापन सौंपने के लिए जमा हुई थी. स्थानीय प्रशासन द्वारा अनुमति न दिए जाने के कारण विरोध प्रदर्शन को आखिरी समय में स्थगित किए जाने को लेकर लोगों ने अपना गुस्सा व्यक्त किया.
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव भी किया, और सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में प्रदर्शनों के हिंसक होने पर लोगों को घसीट कर ले जाते हुए दिखाया गया. यह इस साल की शुरुआत में ‘आई लव मुहम्मद’ विवाद शुरू होने के बाद से लखनऊ, बरेली, कौशांबी, उन्नाव, काशीपुर और हैदराबाद जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला में नवीनतम घटना है.
बरेली की घटना के बाद, मऊ कस्बे में और अधिक हिंसा की सूचना मिली, जहां एक बड़ी भीड़ ने ‘आई लव मुहम्मद’ के पोस्टर लेकर मार्च निकाला. पुलिस ने यहां भी व्यवस्था बहाल करने के लिए प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा.
जहां पुलिस कांवड़ियों पर तो गुलाब की पंखुड़ियां बरसाती है...
‘एनडीटीवी’ के मुताबिक, सहारनपुर में इन दिनों “आई लव महादेव” और “आई लव मुहम्मद” को लेकर पोस्टरबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है. ताज़ा मामला सहारनपुर की जामा मस्जिद का है, जहां जुमे की नमाज के बाद एक युवक ने मस्जिद से निकलते ही न सिर्फ “आई लव मुहम्मद” का पोस्टर दिखाया, बल्कि वह नारे लगाने लगा. सुरक्षा के मद्देनजर पहले से तैनात पुलिस ने युवक को हिरासत ले लिया. पुलिस पकडे गए युवक को थाने ले गई. इस पर मोहम्मद आसिफ़ खान नामक एक यूज़र ने “एक्स” पर लिखा, “यह वही देश है, जहां पुलिस कांवड़ियों पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाती है.”
मोदी की अरुणाचल रैली के पीछे की सच्चाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिन पहले अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर में एक रैली थी. स्थान था आईजी पार्क. एक स्थानीय व्लॉगर ने लोगों से बात करके यह दावा किया है कि रैली में अधिकांश लोग पैसों के लिए आए थे, न कि मोदी के समर्थन में. वे कहते हैं कि ईटानगर के लोगों को 500 से 1000 रुपये मिले थे और बीजेपी कार्यकर्ता भी 1000 रुपये में बिके हुए थे. रैली स्थल पर लोगों को चेकिंग पोस्ट पर कई असुविधाओं का सामना करना पड़ा. उनसे सनस्क्रीन, स्कार्फ (दुपट्टा) और लिप बाम ले लिया गया. @UnfilteredNyishi मुख्य रूप से यह दिखाता है कि कैसे एक राजनीतिक रैली के आयोजन ने शहर के सामान्य जीवन को प्रभावित किया और इस बात पर संदेह व्यक्त करता है कि क्या यह समर्थन वास्तविक था या प्रायोजित?
19 छात्राओं का ‘यौन शोषण’: धर्मगुरु चैतन्यानंद के पास गर्ल्स हॉस्टल और वॉशरूम से सीसीटीवी फुटेज तक पहुंच थी
शिकागो विश्वविद्यालय से एमबीए और पीएचडी की डिग्रियां, रामकृष्ण मिशन के साथ जुड़ाव, और एक लेखक जिसकी रचनाओं का समर्थन स्टीव जॉब्स, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद जैसे लोगों ने किया है – ये वे दावे हैं, जो स्वयंभू धार्मिक गुरु (गॉडमैन) चैतन्यानंद सरस्वती ने अपनी लिखी किताबों और वसंत कुंज में स्थित श्री शारदा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन मैनेजमेंट (एसआरआईआईएसएम) को सौंपे गए दस्तावेज़ों में किए थे. कथित तौर पर, जब वह वहां का कुलपति था, तब उसने 19 छात्राओं का यौन शोषण किया था.
कर्नाटक के श्रृंगेरी में स्थित धार्मिक समूह श्री श्री जगद्गुरु शंकराचार्य महासंस्थानम दक्षिणाम्नाय श्री शारदा पीठम द्वारा संचालित इस संस्थान के एक सूत्र ने बताया कि चैतन्यानंद – जिसे डॉ. स्वामी पार्थसारथी के नाम से भी जाना जाता है – द्वारा जमा किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि उसने अपनी “धार्मिक” यात्रा रामकृष्ण मिशन से शुरू की थी.
“द इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चैतन्यानंद द्वारा लेखों और किताबों में किए गए दावों की फिलहाल पुष्टि की जा रही है. अधिकारी ने कहा कि संस्था द्वारा चैतन्यानंद पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगाने के बाद पुलिस ने यह जांच शुरू की थी.
चैतन्यानंद फिलहाल फरार है. दिल्ली पुलिस ने उसकी बीएमडब्ल्यू कार भी जब्त कर ली है, जिसे उसने कई बार कथित छेड़छाड़ के लिए इस्तेमाल किया. एक पीड़िता ने आरोप लगाया कि चैतन्यानंद ने उसे बीएमडब्ल्यू में ऋषिकेश ले जाकर गाड़ी के अंदर ही दुष्कर्म किया. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह अपना हुलिया बदल रहा है.
चैतन्यानंद ने लड़कियों के हॉस्टल की सीसीटीवी फुटेज अपने मोबाइल पर उपलब्ध कर रखी थी. बाथरूम में छुपा हुआ कैमरा लगाने के आरोप भी सामने आए. साथ ही डीवीआर सिस्टम से छेड़छाड़ कर संभवतः सबूत मिटा दिया गया. लॉबी और वॉशरूम क्षेत्रों की निगरानी फुटेज ने भी कई सवाल खड़े किए हैं.
एमपी में ‘बहन को किस’ वाली टिप्पणी पर विवाद, सोफिया कुरैशी के बारे में गटरछाप भाषा वाले विजय शाह का समर्थन
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा अपनी छोटी बहन को सार्वजनिक चौराहे पर चूमने (किस करने) वाली टिप्पणी को लेकर खासा विवाद खड़ा हो गया है. उनकी तीखी आलोचना की जा रही है. लेकिन, इसी बीच मध्यप्रदेश के एक और मंत्री विजय शाह ने विजयवर्गीय की बात का समर्थन कर आग में घी डालने का काम किया. ये विजय शाह वही हैं, जिन्होंने गटरछाप भाषा (हाईकोर्ट के अनुसार) का इस्तेमाल कर कर्नल सोफिया कुरैशी को पहलगाम आतंकियों की बहन बताया था. शाह का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
हालांकि, पूर्व भाजपा राष्ट्रीय महासचिव ने शुक्रवार को अपने बयान पर सफाई देने की कोशिश की. पत्रकारों से कहा कि उन्होंने भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता पर सवाल नहीं उठाया है, बल्कि वह पश्चिमी संस्कृति का जिक्र कर रहे थे. दरअसल, विजयवर्गीय ने गुरुवार को शाजापुर में कहा था, “’हम पुरानी संस्कृति के लोग हैं. हमारी बहनों के गांव जीरापुर में पानी तक नहीं पीते हैं. आज के हमारे प्रतिपक्ष के नेता ऐसे हैं कि अपनी जवान बहन को बीच चौराहे पर चुंबन करते हैं. वह प्रधानमंत्री को भी तू तड़ाक करके बात करते हैं.”
इस टिप्पणी ने राज्य कांग्रेस प्रमुख जीतू पटवारी की ओर से तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया, जिन्होंने विजयवर्गीय पर भाई-बहन के बंधन को अपमानित करने वाले बयान देने का आरोप लगाया. पटवारी ने कहा कि ये टिप्पणियां विशेष रूप से आपत्तिजनक हैं, क्योंकि ये नवरात्रि के दौरान आई हैं, जब पूरे राज्य के घरों में देवी दुर्गा की पूजा की जा रही है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विजयवर्गीय, जो अब 70 वर्ष के करीब हैं, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की उनकी अधूरी महत्वाकांक्षा से प्रभावित लग रहे हैं. उन्हें मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए.
जनवरी से अब तक 2,417 भारतीय अमेरिका से निर्वासित
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जनवरी से अब तक संयुक्त राज्य अमेरिका से 2,417 भारतीयों को निर्वासित या प्रत्यावर्तित किया गया है. यह जानकारी विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में सामने आई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक सवाल का जवाब देते हुए यह जानकारी दी. आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2009 से अब तक 15,000 से ज़्यादा भारतीयों को अमेरिका से वापस भेजा जा चुका है.
जायसवाल ने कहा कि भारत हमेशा से कानूनी तरीकों से प्रवास को बढ़ावा देने का पक्षधर रहा है. उन्होंने जोर देकर कहा, “हम प्रवासन के लिए कानूनी रास्ते को बढ़ावा देना चाहते हैं. साथ ही, भारत अवैध प्रवासन के खिलाफ़ है.” यह बयान भारत सरकार के उस रुख को स्पष्ट करता है जो वैध चैनलों के माध्यम से लोगों की आवाजाही का समर्थन करता है, लेकिन अवैध तरीकों का पुरज़ोर विरोध करता है. अमेरिका द्वारा भारतीयों को निर्वासित करने के मामले अक्सर अवैध रूप से देश में प्रवेश करने या वीज़ा शर्तों का उल्लंघन करने से जुड़े होते हैं.
चार धाम परियोजना पर फैसले की ‘समीक्षा और वापसी’ हो: एमएम जोशी और कर्ण सिंह की सीजेआई से अपील
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी और कर्ण सिंह ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से चार धाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट के 2021 के फैसले की “समीक्षा करने और उसे वापस लेने” की अपील की है. इस याचिका का समर्थन इतिहासकार शेखर पाठक और लेखक रामचंद्र गुहा सहित 57 प्रतिष्ठित लोगों ने किया है. याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड के संवेदनशील क्षेत्र में सड़कों को चौड़ा करने से यह इलाका और भी ज़्यादा आपदा-प्रवण हो गया है.
जोशी और सिंह ने अपनी चिट्ठी में कहा कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के 2020 के एक सर्कुलर को रद्द किया जाना चाहिए, जिसने सड़क को चौड़ा करने की अनुमति दी थी. उन्होंने पहले चर्चा की गई 5.5 मीटर की मध्यवर्ती सड़क चौड़ाई को अपनाने का आग्रह किया. उनका कहना है कि उत्तरकाशी से गंगोत्री तक के प्राचीन मार्ग पर डबल-लेन पेव्ड-शोल्डर सड़क बनाने से इस नाजुक क्षेत्र में भारी नुकसान होगा, जो इस साल पहले से ही “अभूतपूर्व आपदा की घटनाओं” का गवाह बन रहा है. पत्र में कहा गया है, “अगर इस फैसले की समीक्षा नहीं की गई, तो इसके तत्काल और अपरिवर्तनीय प्रभाव होंगे. भागीरथी पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (BESZ), जो राष्ट्रीय नदी गंगा का उद्गम स्थल है, हाल ही में धारली आपदा का स्थल भी है.”
14 दिसंबर, 2021 को जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र की तीन राष्ट्रीय राजमार्गों - ऋषिकेश से माना, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ - को चीन के पास सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए “रणनीतिक फीडर सड़कों” के रूप में चौड़ा करने की योजना को बरकरार रखा था. इस फैसले में रक्षा मंत्रालय की दलीलों को स्वीकार करते हुए डबल-लेन पेव्ड-शोल्डर (DL-PS) विन्यास की अनुमति दी गई थी.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 10 मीटर चौड़ी पक्की सड़क और 12 मीटर की फॉर्मेशन चौड़ाई को अपनाना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के 2018 के सर्कुलर का उल्लंघन है, जिसमें पहाड़ी सड़कों के लिए विशेष रूप से 5.5 मीटर की मध्यवर्ती चौड़ाई की सिफारिश की गई थी. पत्र में कहा गया है कि 2021 का फैसला “हिमालयी क्षेत्र के लिए उल्टा और खतरनाक” साबित हुआ है. उन्होंने यह भी बताया कि बद्रीनाथ, गंगोत्री और पिथौरागढ़ जैसे सभी रणनीतिक मार्ग मानसून में अक्सर अवरुद्ध हो जाते हैं और साल भर भूस्खलन-प्रवण बने रहते हैं. पत्र में चेतावनी दी गई है कि इस परियोजना के निर्माण के बाद से, ये स्थिर मार्ग भी बड़े पैमाने पर और पुराने भूस्खलन की चपेट में आ रहे हैं.
ट्रम्प ने ओवल ऑफिस में पाक पीएम और सेना प्रमुख का किया स्वागत, अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में नई शुरुआत
द टेलीग्राफ में परन बालकृष्णन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर की व्हाइट हाउस में मेज़बानी की और उन्हें “महान लोग” (great guys) कहकर संबोधित किया. इसे वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच वर्षों के अविश्वास के बाद संबंधों को फिर से स्थापित करने का सबसे स्पष्ट संकेत माना जा रहा है. गुरुवार देर रात हुई ओवल ऑफिस की यह बैठक शरीफ़ के पिछले साल पद संभालने के बाद व्हाइट हाउस में उनका पहला स्वागत था, जो रिश्तों में एक बड़े बदलाव को रेखांकित करता है.
विश्लेषकों का कहना है कि यह उच्च-स्तरीय निमंत्रण दक्षिण एशिया में वाशिंगटन के बदलते समीकरणों को दर्शाता है, क्योंकि वह अफ़गानिस्तान में बगराम हवाई अड्डे तक फिर से पहुंच चाहता है. वहीं, इस्लामाबाद भी अपनी रणनीतिक स्थिति का अधिकतम लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है. वाशिंगटन स्थित दक्षिण एशिया विश्लेषक माइकल कुगेलमैन कहते हैं, “पाकिस्तान वैश्विक भू-राजनीति में अपनी अहमियत का फायदा उठा रहा है. यह अमेरिका-भारत संबंधों में गिरावट और अमेरिका-पाक संबंधों में सुधार से मिले अवसरों का लाभ उठा रहा है.”
ट्रम्प के लिए एक बड़ा लक्ष्य काबुल के पास बगराम हवाई अड्डे तक अमेरिकी पहुंच की वापसी है, जिसे 2021 में अमेरिकी सैनिकों के निकलने पर खाली कर दिया गया था. यह अड्डा चीन की परमाणु संपत्तियों से निकटता के कारण वाशिंगटन के लिए महत्वपूर्ण है. चूंकि तालिबान ने अड्डे को सौंपने की अमेरिकी मांग को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया है, इसलिए पाकिस्तान इस क्षेत्र में अमेरिकी रणनीतिक लक्ष्यों के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है. शरीफ़ और सेना प्रमुख मुनीर की मेज़बानी यह संकेत देती है कि पेंटागन की इच्छा सूची विदेश नीति को आकार दे रही है. मुनीर जून से अब तक दो बार अमेरिका का दौरा कर चुके हैं, जिसमें व्हाइट हाउस में एक निजी दोपहर का भोजन भी शामिल है. उनकी उपस्थिति पाकिस्तानी विदेश मामलों में सेना के स्थायी प्रभुत्व को दर्शाती है.
यह बदलाव पाकिस्तान की सेना द्वारा भारत को अपने यहां की आतंकी हिंसा के पीछे की प्रेरक शक्ति के रूप में चित्रित करने के एक आक्रामक अभियान के साथ आया है. वहीं, अमेरिका-भारत संबंधों में खटास आई है, जहां वाशिंगटन ने एच-1बी वीज़ा पर भारी शुल्क लगाया है और भारतीय आयातों पर 50 प्रतिशत का शुल्क लगाया है. इसके विपरीत, पाकिस्तान को अपने अमेरिकी निर्यातों पर 19 प्रतिशत का टैरिफ मिला है, जो पहले 25 प्रतिशत था. शरीफ़ के लिए व्हाइट हाउस का निमंत्रण आर्थिक जीवन रेखा के बारे में भी था. पाकिस्तान ने हाल ही में विश्व बैंक से 40 बिलियन डॉलर के ऋण के लिए मंजूरी हासिल की है, और एक व्यापार पैकेज पर बातचीत चल रही है.
ट्रम्प के 100% टैरिफ के ऐलान के बाद भारतीय फार्मा शेयरों में गिरावट, उद्योग ने कहा-जेनेरिक दवाओं पर असर नहीं
द टेलीग्राफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ब्रांडेड दवा आयातों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद शुक्रवार को भारतीय फार्मा शेयरों में भारी गिरावट आई. हालांकि, उद्योग निकायों ने इसके प्रभाव को कम करके आंकते हुए जोर दिया कि भारत के जेनेरिक निर्यात - जो अमेरिका की लगभग आधी आपूर्ति करते हैं - इस शुल्क से बाहर हैं.
बीएसई हेल्थकेयर इंडेक्स 2.14 प्रतिशत गिरकर 43,046.69 पर आ गया. प्रमुख कंपनियों में वोकहार्ट 9.4 प्रतिशत, इंडोको रेमेडीज 5.35 प्रतिशत, जायडस लाइफसाइंसेज 4.21 प्रतिशत, ग्लेनमार्क फार्मा 2.99 प्रतिशत और सन फार्मा 2.55 प्रतिशत गिरे. ल्यूपिन, डॉ. रेड्डीज और अरबिंदो फार्मा में भी गिरावट देखी गई.
ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा कि यह टैरिफ सभी ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर लागू होगा, जब तक कि कंपनियां संयुक्त राज्य अमेरिका में कारखाने नहीं बना रही हों. उन्होंने लिखा, “1 अक्टूबर, 2025 से, हम किसी भी ब्रांडेड या पेटेंटेड दवा उत्पाद पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जब तक कि कोई कंपनी अमेरिका में अपना फार्मास्युटिकल विनिर्माण संयंत्र नहीं बना रही हो.”
हालांकि इस घोषणा ने निवेशकों को चिंतित कर दिया, लेकिन भारतीय दवा निकायों ने इसके प्रभाव को कम महत्व दिया. इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (IPA), जो सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज और ल्यूपिन सहित 23 प्रमुख दवा निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करता है, ने कहा कि यह उपाय जेनेरिक दवाओं को कवर नहीं करता है, जो अमेरिका में भारत के निर्यात का मुख्य आधार है. IPA के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, “यह जेनेरिक दवाओं पर लागू नहीं है.”
सरकार समर्थित निर्यात संवर्धन परिषद, फार्मएक्सिल ने कहा कि भारत अमेरिका की लगभग 47 प्रतिशत दवा आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है, जो बड़े पैमाने पर सस्ती जेनेरिक दवाओं के माध्यम से होती है. विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अगर भविष्य में वाशिंगटन जेनेरिक आयातों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है तो जोखिम बना रह सकता है. जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के डॉ. वी.के. विजयकुमार ने कहा कि भारत अभी के लिए सुरक्षित है, “लेकिन शायद राष्ट्रपति का अगला लक्ष्य जेनेरिक दवाएं हो सकती हैं.”
संयुक्त राष्ट्र में नेतन्याहू के भाषण के दौरान दर्जनों देशों का वॉकआउट, फिलिस्तीनी राज्य को किया खारिज
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक चुनौतीपूर्ण भाषण दिया, जिसमें उन्होंने फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण को खारिज कर दिया और हमास के खिलाफ सैन्य अभियान को “काम पूरा करने तक” जारी रखने का संकल्प लिया. उनके भाषण शुरू करने से ठीक पहले, दर्जनों देशों के प्रतिनिधियों ने विरोध स्वरूप हॉल से वॉकआउट कर दिया, जो गाज़ा में युद्ध को समाप्त करने की मांग करने वाले विश्व नेताओं के दर्शकों की ओर से इज़राइल का नवीनतम सार्वजनिक विरोध था.
लगभग खाली हॉल को संबोधित करते हुए, नेतन्याहू ने कहा कि इज़राइली फिलिस्तीनी राज्य को अनुमति देकर “राष्ट्रीय आत्महत्या नहीं करेंगे”. उन्होंने उन देशों की तीखी आलोचना की जिन्होंने हाल ही में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी है. नेतन्याहू ने अपने भाषण के दौरान अपने लैपल पर एक बड़ा पिन लगाया हुआ था जिसमें एक क्यूआर कोड था. यह कोड एक वेबसाइट से जुड़ा था, जिसमें 7 अक्टूबर, 2023 को दक्षिणी इज़राइल पर हुए हमलों की वीभत्स तस्वीरें थीं. उन्होंने दावा किया कि उनका भाषण गाज़ा में लाउडस्पीकरों के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा था ताकि बंधकों तक उनका संदेश पहुंच सके. उन्होंने हिब्रू में कहा, “हम तुम्हें भूले नहीं हैं.”
नेतन्याहू, जिन पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय द्वारा युद्ध अपराधों का आरोप लगाया गया है, देश और विदेश में भारी दबाव का सामना कर रहे हैं. इस सप्ताह, फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा सहित लगभग 10 देशों ने संघर्ष के दो-राज्य समाधान को आगे बढ़ाने के प्रयास के तहत फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी.
गाज़ा में बंधकों के परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक समूह ने नेतन्याहू के भाषण की आलोचना की. उन्होंने एक बयान में कहा कि नेतन्याहू ने केवल 20 जीवित बंधकों के नाम पढ़े, जबकि लगभग 28 लोगों के अवशेषों को छोड़ दिया जो अभी भी गाज़ा में हैं. समूह ने कहा, “गाज़ा में 48 बंधक हैं, 20 नहीं.” उन्होंने नेतन्याहू पर युद्धविराम समझौते तक पहुंचने और बंधकों को घर लाने के अवसरों को बर्बाद करने का आरोप लगाया.
माइक्रोसॉफ्ट ने फिलिस्तीनियों की सामूहिक निगरानी में अपनी तकनीक के इस्तेमाल पर लगाई रोक: द गार्डियन की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
लंदन: द गार्डियन में हैरी डेविस और युवाल अब्राहम की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रोसॉफ्ट ने इज़राइली सेना को अपनी उस तकनीक तक पहुंच समाप्त कर दी है जिसका उपयोग वह एक शक्तिशाली निगरानी प्रणाली को संचालित करने के लिए कर रही थी. इस प्रणाली के तहत गाज़ा और वेस्ट बैंक में हर दिन लाखों फिलिस्तीनी नागरिकों की फोन कॉल्स को एकत्र किया जाता था. यह कदम द गार्डियन की एक जांच के बाद उठाया गया है, जिसमें इस गुप्त जासूसी परियोजना का खुलासा किया गया था.
सूत्रों के मुताबिक, माइक्रोसॉफ्ट ने पिछले हफ्ते के अंत में इज़राइली अधिकारियों को बताया कि सेना की विशिष्ट जासूसी एजेंसी, यूनिट 8200, ने अपने एज़्योर (Azure) क्लाउड प्लेटफॉर्म में विशाल निगरानी डेटा संग्रहीत करके कंपनी की सेवा की शर्तों का उल्लंघन किया है.
द गार्डियन ने इज़राइली-फिलिस्तीनी प्रकाशन +972 मैगज़ीन और हिब्रू भाषा के आउटलेट लोकल कॉल के साथ एक संयुक्त जांच में खुलासा किया था कि कैसे एज़्योर का उपयोग बड़े पैमाने पर निगरानी कार्यक्रम में फिलिस्तीनी संचार के खजाने को संग्रहीत और संसाधित करने के लिए किया जा रहा था. रिपोर्ट के अनुसार, एज़्योर की असीमित भंडारण क्षमता और कंप्यूटिंग शक्ति से लैस, यूनिट 8200 ने एक ऐसी प्रणाली बनाई थी, जो उसके खुफिया अधिकारियों को पूरी आबादी की सेलुलर कॉल्स को एकत्र करने, सुनने और विश्लेषण करने की अनुमति देती थी.
इस जांच के जवाब में, माइक्रोसॉफ्ट ने यूनिट 8200 के साथ अपने संबंधों की समीक्षा के लिए एक तत्काल बाहरी जांच का आदेश दिया. इसके शुरुआती निष्कर्षों के बाद अब कंपनी ने यूनिट की कुछ क्लाउड स्टोरेज और एआई सेवाओं तक पहुंच रद्द कर दी है. यह पहली ज्ञात घटना है जिसमें किसी अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनी ने गाज़ा पर युद्ध शुरू होने के बाद से इज़राइली सेना को प्रदान की जाने वाली सेवाएं वापस ले ली हैं.
माइक्रोसॉफ्ट के वाइस-चेयर और अध्यक्ष, ब्रैड स्मिथ ने कर्मचारियों को एक ईमेल में सूचित किया कि कंपनी ने “इज़राइल के रक्षा मंत्रालय के भीतर एक इकाई के लिए सेवाओं का एक सेट बंद और अक्षम कर दिया है”, जिसमें क्लाउड स्टोरेज और एआई सेवाएं शामिल हैं. स्मिथ ने लिखा, “हम नागरिकों की सामूहिक निगरानी की सुविधा के लिए तकनीक प्रदान नहीं करते हैं. हमने इस सिद्धांत को दुनिया के हर देश में लागू किया है.”
विश्लेषण
सुशांत सिंह : अमेरिकी प्रवासी भारतीयों ने नरेंद्र मोदी की विदेश नीति को धोखा दिया है
हिल पर भारत ने जो देखा है वह उसकी उदारवाद-विरोधी दिशा में गिरावट के साथ बढ़ती अधीरता है. मोदी और जयशंकर ने जिस समर्थन का दावा किया था, वह उदासीनता और विरोध में बदल गया है. टेलीग्राफ में प्रकाशित इस लेख के मुख्य अंश.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा भारतीय-अमेरिकी समुदाय की शक्ति के बारे में उत्साहपूर्ण रहे हैं. न्यू यॉर्क के नासाउ कॉलिज़ियम में प्रशंसकों की भीड़ से बात करते हुए, उन्होंने घोषणा की, “मैंने हमेशा भारतीय प्रवासी समुदाय की क्षमताओं को समझा है... मेरे लिए, आप सभी भारत के मज़बूत ब्रांड एंबेसेडर रहे हैं. यही कारण है कि मैं आपको राष्ट्रदूत कहता हूं.” मोदी ने कभी भी प्रवासी समुदाय को भारत की सॉफ्ट पावर और पहुंच के जीवंत प्रमाण के रूप में प्रदर्शित करने का मौक़ा नहीं छोड़ा. हर बड़े विदेशी कार्यक्रम में, वे भारतीय-अमेरिकियों को दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच सेतु बताते, दर्शकों से कहते: “आप सभी सात समुद्र पार से आए हैं, लेकिन कुछ भी आपके दिलों और आत्माओं से भारत का प्रेम नहीं छीन सकता... यही भावना हमें एकजुट रखती है, और यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है, चाहे हम दुनिया में कहीं भी जाएं.”
ऐसी बयानबाज़ी महज़ भावना नहीं थी. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी का राजनीतिक उदय और प्रधानमंत्री बनने का उनका अभियान इसी नींव पर बना था. 2014 के बाद, यह उनकी विदेश नीति का आधार भी बन गया. भव्य तमाशे — मैडिसन स्क्वेयर गार्डन, हाउडी मोदी, नमस्ते ट्रंप — भारतीय-अमेरिकियों के बड़ी संख्या में आने पर निर्भर थे. हर तालियां, अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मोदी का हर हाथ मिलाना, इस बात का प्रमाण माना जाता था कि भारत पहुंच गया है, कि उसका प्रवासी समुदाय कोई साधारण, अप्रवासी समूह नहीं बल्कि एक रणनीतिक संपत्ति है, वाशिंगटन डी.सी. में शक्ति का भावनात्मक और आर्थिक सेतु है. दुनिया को बताया गया कि भारतीय-अमेरिकी अब सबसे अमीर, सबसे शिक्षित अल्पसंख्यक हैं, जितना वे सिलिकॉन वैली में होने की संभावना रखते हैं उतना ही व्हाइट हाउस़ में भी. घरेलू स्तर पर संदेश यह था कि भारत का अमेरिका में प्रभाव है क्योंकि उसके लोग वहां हैं, और मोदी वह उत्प्रेरक थे जो इस शक्ति को राष्ट्र के लिए सक्रिय कर रहे थे.
उतना ही महत्वपूर्ण था हिल पर भारत के समर्थन में, पार्टी की सीमाओं से परे विश्वास. कुछ लोगों ने कांग्रेसी स्नेह के विचार को बाहरी मामलों के मंत्री एस. जयशंकर जितनी निरंतरता से घर-घर पहुंचाया है. वे नियमित रूप से कैपिटल हिल पर भारत के द्विदलीय समर्थन की प्रशंसा करते थे, इस बात की ओर इशारा करते हुए कि कैसे लगातार अमेरिकी राष्ट्रपति, चाहे डेमोक्रेट हों या रिपब्लिकन, अमेरिका-भारत संबंधों के महत्व की चर्चा करते थे. बेल्टवे के अंदर की कहानी, थिंक-टैंक पैनलों से लेकर दूतावास की पार्टियों तक दोहराई जाती थी, यह थी कि भारत के मुद्दे को कांग्रेस में हमेशा मित्र मिलेंगे.
उदाहरण प्रचुर मात्रा में थे. भारत और भारतीय-अमेरिकियों पर कांग्रेसी कॉकस कैपिटल हिल के सबसे बड़े विदेश नीति कॉकस में से एक था. भारतीय त्योहार हर साल शक्ति के गलियारों के अंदर मनाए जाते थे. लगातार प्रस्तावों में, नई दिल्ली दोनों पार्टियों के विधायकों की एक व्यापक श्रृंखला पर भरोसा कर सकती थी कि वे अमेरिकी संबंधों को पटरी पर रखें, भले ही व्हाइट हाउस़ डगमगाए.
आज, यह पूरी नीति बिखर गई है. भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाने के डोनाल्ड ट्रंप के फ़ैसले ने इस बात को उजागर कर दिया है कि भारत के वास्तविक प्रभाव के दावे कितने खोखले हैं. फिर एच-1बी वीज़ा आवेदकों पर अत्यधिक शुल्क लगाने का फ़ैसला आया, जो भारतीय आईटी कर्मचारियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है. धनी भारतीय-अमेरिकी बड़े पैमाने पर चुप्पी साधे खड़े रहे हैं, भले ही व्यावसायिक और रणनीतिक हितों को सीधे नुक़सान पहुंचाया जा रहा हो. वही कॉर्पोरेट दिग्गज — सुंदर पिचाई, सत्या नडेला, अरविंद कृष्णा — जिन्हें कभी सभ्यतागत भारत की बढ़ती शक्ति के चेहरे के रूप में प्रदर्शित किया गया था, उन्होंने ट्रंप के सिलिकॉन वैली डिनर में भाग लिया लेकिन अपनी जन्मभूमि पर उनके दंडात्मक टैरिफ का विरोध नहीं किया. बल्कि, वे ट्रंप की प्रशंसा में उत्साहपूर्ण थे. कांग्रेस के गलियारे भारत के साथ ट्रंप के व्यापारिक युद्ध पर आक्रोश से गूंजे नहीं हैं. अधिकतर ने बस मुंह मोड़ लिया है या, इससे भी बदतर, भारत के लोकतांत्रिक प्रक्षेपवक्र पर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं.
कुछ अपवाद केवल नियम को साबित करते हैं. डेमोक्रेट रो खन्ना, जो स्वयं भारतीय मूल के हैं, ने टैरिफ के विरुद्ध बोला, भारतीय-अमेरिकी ट्रंप समर्थकों की चुप्पी के लिए उन्हें तीखी फटकार लगाई. प्रगतिशील विधायक प्रमिला जयपाल जैसे लोगों ने भारत के साथ एकजुटता के लिए कम और मोदी के घरेलू रिकॉर्ड की निरंतर आलोचना के लिए अधिक सुर्खियां बटोरी हैं: प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले, धार्मिक अल्पसंख्यकों का व्यवहार, और न्यायिक स्वतंत्रता का क्षरण. द्विदलीय एकजुटता के बजाय, हिल पर भारत ने जो देखा है वह उसकी उदारवाद-विरोधी दिशा में निरंतर गिरावट के साथ बढ़ती अधीरता है. मोदी और जयशंकर ने जिस समर्थन का दावा किया था, वह उदासीनता में और कोनों में विरोध में बदल गया है.
भारतीय प्रवासी समुदाय का कथित प्रभाव सारा चकाचौंध और कम सार निकला है. स्टेडियम कार्यक्रमों में भीड़ का आकार, सामुदायिक समूहों के माध्यम से व्यवस्थित उच्च-प्रोफ़ाइल मीटिंग्स, कोई नीतिगत बदलाव नहीं ला सकीं. जब ट्रंप के टैरिफ आए, तो कोई संगठन नहीं हुआ, विधायकों तक कोई समन्वित पहुंच नहीं हुई, कोई खुले पत्र नहीं आए, कोई प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं हुई, या भारतीय-अमेरिकी व्यावसायिक या सांस्कृतिक नेताओं से कोई सेलिब्रिटी सक्रियता नहीं हुई. पिछले संकटों में देखी गई अनौपचारिक लॉबिंग भी नहीं हुई. यहूदी-अमेरिकी समुदाय के विपरीत, जो संगठित करने, धन जुटाने और बहसों को फ़्रेम करने की अपनी क्षमता के लिए प्रसिद्ध है, भारतीय-अमेरिकी एक सामूहिक के रूप में मुख्यतः परोपकार और व्यवसाय के मामलों में जनहितकारी साबित हुए हैं, कठिन राजनीति में नहीं.
मोदी की महान रणनीति क्यों असफल हुई? आंशिक रूप से, यह हमेशा कल्पना थी. पिछले दशक में, मोदी सरकार ने प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व को वास्तविक प्रभाव समझ लिया. कई सीईओ और डॉक्टरों का होना अमेरिका में नीतिगत परिणामों को आकार देने में सक्षम शक्ति नेटवर्क होने के समान नहीं है. कई भारतीय-अमेरिकी या तो नागरिक नहीं हैं, मुख्य जि़लों में मतदाता नहीं हैं, या बस विवादास्पद मामलों पर भारत सरकार के लिए लॉबिंग में रुचि नहीं रखते. वे शायद ट्रंप के गुस्से और इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एंफ़ोर्समेंट के ऑपरेशन से डरते हैं; यह बहुत मुखर हिंदुत्व संगठनों के मामले में लगता है. भारतीय मूल के विधायक अपने मतदाताओं और पार्टी गठबंधनों के प्रति जवाबदेह हैं, भारतीय दूतावास के प्रति नहीं.
हिल पर, दीवाली समारोहों में हर साल प्रस्तुत द्विदलीय सौहार्द्र ने गहरी दरारों को छुपाया. डेमोक्रेट्स भारत की बहुसंख्यकवादी राजनीति में गिरावट से तेज़ी से असहमत हैं. प्रगतिशील डेमोक्रेट राशिदा तलीब ने खुलकर कश्मीर में भारत की कार्रवाइयों और मुसलमानों के साथ उसके व्यवहार पर सवाल उठाए हैं. राष्ट्रीयता कानून और कश्मीर पर अपने बयानों के बाद जयशंकर द्वारा जयपाल का बहिष्कार किया गया था. दूसरी ओर रिपब्लिकन, चीन के विरुद्ध शतरंज के खेल में भारत को उपयोगी मानते हैं लेकिन उसकी घरेलू चालों के लिए कोई विशेष स्नेह नहीं रखते. और ट्रंप का भीतरी मंडल कच्चे बातचीत को महत्व देता है, भावना को नहीं.
इससे भी बदतर, राजनीति के परे मोदी ने जिस पारिस्थितिकी तंत्र पर भरोसा किया था — थिंक टैंक, शिक्षा जगत, नागरिक समाज — उसने भी पीछे हटना शुरू कर दिया है. जब ट्रंप द्वारा भारत पर हमला किया गया तो अमेरिका के शीर्ष थिंक टैंक ने केवल सबसे हल्की फटकार दी. अधिकांश अमेरिकी मानवाधिकार समूह नई दिल्ली के अपनी रिपोर्टों को नज़रअंदाज़ करने या यहां तक कि उनके शोधकर्ताओं को परेशान करने से तंग आ गए हैं. अंतर्राष्ट्रीय दमन और सिख कार्यकर्ताओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों की कहानियों के कारण उन्हें भारत के दुश्मन के रूप में माना जाने लगा, उनके ओसीआई कार्ड रद्द किए गए या भारत में उनके परिवारों को परेशान किया गया. यह बेहद असंभावित था कि वे अब मोदी के लिए बोलेंगे.
इसकी तुलना इज़राइल से करें, जो हिंदुत्व कल्पनावादी अक्सर आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं. इज़राइली लॉबी न केवल पैसे और कार्यक्रमों के माध्यम से काम करती है बल्कि पार्टी, पेशेवर और ज़मीनी स्तर की लाइनों में दशकों की संरचित सहभागिता के माध्यम से भी. कैपिटल हिल पर प्रतिक्रिया देने के लिए हमेशा एक तंत्र तैयार होता है. इसके विपरीत हिंदुत्व प्रयासों ने संस्थानों पर प्रकाशनों को, मूल्यों पर धर्म को, और भारत पर मोदी को प्राथमिकता दी है. इस नाज़ुक समय में, वे केवल अजीब चुप्पी प्रदान करते हैं.
ट्रंप भारत को एक विशेषाधिकार प्राप्त साझेदार के रूप में नहीं, बल्कि एक और बातचीत प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है. कैपिटल हिल भारत को एक और देश के रूप में देखता है जिसमें तानाशाही की लकीर है, हंगरी या तुर्की से अलग नहीं. भारतीय-अमेरिकी सफल, धनी और दिखाई देने वाले हैं, लेकिन अपनी जन्मभूमि के लिए एक वास्तविक राजनीतिक शक्ति के रूप में संगठित होने के लिए तैयार नहीं हैं. मोदी की शोरगुल वाली रैलियों और भव्य सामुदायिक कार्यक्रमों ने संपत्ति-निर्माण की सुर्खियों का नेतृत्व किया हो सकता है लेकिन उन्होंने कुछ ठोस नहीं बनाया है. प्रवासी और द्विदलीय बंधन पर आधारित विदेश नीति के लिए, यह एक बहुत सार्वजनिक हिसाब-किताब है. मोदी ने जिन संपत्तियों पर इतनी ज़ोर से भरोसा किया था, उनका पहले कभी परीक्षण नहीं हुआ था. जब समय आया, तो वे असफल हो गईं.
सुशांत सिंह येल यूनिवर्सिटी में व्याख्याता हैं. रक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं.
सुपर ओवर में भारत ने श्रीलंका को हराया
दुबई में खेले गए एशिया कप 2025 के 18वें मैच में पथुम निसंका ने शतक जड़कर श्रीलंका को भारत के 202 रन के लक्ष्य की बराबरी (20 ओवर में) करने में मदद की, लेकिन अंततः सुपर ओवर की सहायता से भारत ने श्रीलंकाई टीम को हरा दिया.टूर्नामेंट के दृष्टिकोण से यह मैच महत्वहीन था, क्योंकि फाइनल मुकाबला रविवार को भारत और पाकिस्तान के बीच होना तय हो चुका है.
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