27/10/2025: एमपी ग़ज़ब है | बिहार चुनाव पर श्रवण गर्ग | तेजस्वी की नियति | चिराग़ की पारी | उमर खालिद और बाकी की जमानत सुनवाई फिर टली | बेड़ियां पहन हरियाणा लौटे अमेरिका से | बेवकूफ बनती प्रदूषण मशीन
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
एमपी गज़ब है, दो वाकये, स्त्रीविरोधी, दोनों में भाजपा के चेहरे!
बीजेपी नेता ने किसान को पीट-पीटकर मार डाला, थार से कुचला, बेटियों को भी नहीं बख्शा
छेड़छाड़ पर मंत्री जी की बेशर्म नसीहत, पीड़ितों को ही ठहराया कसूरवार
जस्टिस सूर्यकांत होंगे देश के अगले चीफ जस्टिस, सीजेआई गवई ने की सिफारिश
तेजस्वी यादव का नारा, नौकरियां, नौकरियां, नौकरियां, बिहार को यही चाहिए
मैं यहां छोटी दौड़ के लिए नहीं, चिराग पासवान की लंबी सियासत
अब अदालत भी कह रही है, ‘पांच साल बीत चुके हैं’, उमर खालिद की ज़मानत पर SC की फटकार
बीजेपी नेता बोला, मुस्लिम लड़कियों को लाने वाले हिंदू को इनाम में मिलेगी नौकरी
बेड़ियां पहनकर अमेरिका से हरियाणा भेजे गए 50 जवान, टूटा सपना, चढ़ा कर्ज
50 साल पुराने घर, पक्के कागज़, फिर भी बाटला हाउस पर बुलडोजर का खतरा
प्रदूषण नापने की मशीन को ही धोखा, आंकड़ों की बाजीगरी पर आप-बीजेपी में जंग
बिहार के बाद अब यूपी, एमपी समेत 12 राज्यों में वोटर लिस्ट की ‘सफाई’
एक अंग्रेज ने पूछा, भारत का म्यूजियम खाली क्यों है, जवाब मिला, सारा सामान तो लंदन में है
एमपी गज़ब है: दो वाकये, स्त्रीविरोधी, दोनों में भाजपा के चेहरे!
मध्य प्रदेश दो अलग-अलग घटनाओं को लेकर सुर्खियों में है, जिनके केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता हैं और दोनों ही मामले राज्य में महिला सुरक्षा और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं. एक ओर गुना में, जहां एक स्थानीय भाजपा नेता पर एक किसान की बेरहमी से हत्या करने और उसकी बेटियों के साथ मारपीट व बदसलूकी करने का गंभीर आरोप है. वहीं दूसरी ओर, इंदौर में ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेटरों से छेड़छाड़ की घटना पर राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने पीड़ितों को ही नसीहत देकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है.
बीजेपी नेता ने किसान को पीट-पीटकर मार डाला, थार से कुचला, बेटियों को भी नहीं बख्शा
मध्यप्रदेश के गुना में बीजेपी के एक नेता और उसके साथियों ने 40 वर्षीय किसान रामस्वरूप धाकड़ की बेरहमी से हत्या कर दी और उसके परिवार पर धारदार हथियारों से हमला कर घायल कर दिया. रामस्वरूप को पहले बुरी तरह पीटा गया और फिर उस पर एमयूवी ‘थार’ चढ़ा दी. यह वारदात रविवार 26 अक्टूबर की है. मुख्य आरोपी महेंद्र नागर बीजेपी का बूथ अध्यक्ष है और वह ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थक बताया जाता है. उसके खुद सिंधिया के अलावा भाजपा सरकार के कई मंत्रियों और पार्टी के बड़े नेताओं के साथ तमाम फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट के मुताबिक, मृतक किसान रामस्वरूप धाकड़ को पहले लाठियों और रॉड से बेरहमी से पीटा गया और फिर रविवार दोपहर कथित तौर पर एक एमयूवी से कुचल दिया गया. यह बर्बरता, जो कथित तौर पर राजस्थान के सटे हुए बारन जिले में छह बीघा जमीन को लेकर हुए विवाद से जुड़ी थी, यहीं समाप्त नहीं हुई. इतना ही नहीं, बंदूक लिए हुए आरोपियों ने करीब एक घंटे तक गांव में किसी को भी गंभीर रूप से घायल किसान को अस्पताल नहीं ले जाने दिया, जिससे उसकी मौत सुनिश्चित हो गई. महेंद्र नागर के साथ आए बंदूकधारी लोगों के डर से गांव वाले चुपचाप तमाशबीन बने रहे, वहीं किसान की बेटियों, जो उन्हें बचाने दौड़ी थीं, के साथ भी मारपीट की गई और उन्हें अपमानित किया गया.
मृतक किसान की बेटी ने बताया, “जब मैं अपने पिता को बचाने गई, तो उन्होंने मुझे धक्का देकर नीचे गिरा दिया, मेरे ऊपर बैठ गए, मेरे कपड़े फाड़ दिए, और हमें डराने के लिए गोलियां चलाईं. मेरी माँ और पिताजी खेत पर जा रहे थे, तभी महेंद्र, हरीश और गौतम ने उन पर हमला कर दिया. फिर उन्होंने थार गाड़ी से मेरे पिताजी को कुचल दिया. वह चीखते रहे, लेकिन हमलावर बंदूक से लैस थे, इसलिए किसी की भी मदद करने की हिम्मत नहीं हुई.”
नागर का आतंक, 25 किसान गांव छोड़ चुके स्थानीय लोगों के अनुसार, महेंद्र नागर— जो भाजपा की स्थानीय बूथ समिति प्रमुख और गुना जिले में पार्टी के किसान मोर्चा का पूर्व पदाधिकारी रहा है— फतेहगढ़ पुलिस थाना क्षेत्र के गणेशपुरा गांव में लंबे समय से आतंक का राज चला रहा है. एक ग्रामीण ने बताया, “वह बरसों से जमीन पर कब्जा कर रहा है. कम से कम 25 किसान अपनी जमीन कौड़ियों के दाम बेचकर गांव छोड़ चुके हैं. जिसने भी विरोध करने की हिम्मत की, उसके साथ या तो मारपीट की गई या उसे भगा दिया गया. रामस्वरूप ने नागर के आतंक के आगे झुकने से इनकार कर दिया और गणेशपुरा में अपनी दस बीघा जमीन पर कब्जा बनाए रखा, जबकि उसके रिश्तेदार राजस्थान के सटे हुए पाचलावाड़ा गांव में रहते हैं. इस विरोध की कीमत आखिरकार उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी.”
एसडीओपी (बमोरी) विवेक अस्थाना ने घटना की पुष्टि की और कहा कि मृतक किसान और भाजपा नेता नागर के एक रिश्तेदार के बीच चल रहा लंबे समय का जमीन का झगड़ा ही इस क्रूर हत्या के पीछे का मकसद था.
अस्थाना ने कहा, “रामस्वरूप धाकड़ का राजस्थान में छह बीघा जमीन को लेकर कन्हैया नागर से विवाद था. पाचलावाड़ा का रहने वाला कन्हैया, महेंद्र का रिश्तेदार है. महेंद्र, कन्हैया और कुछ महिलाओं सहित 13-14 अन्य ने रामस्वरूप पर हमला किया. उसके पूरे शरीर पर कई फ्रैक्चर आए. उसकी बेटियों के साथ भी मारपीट की गई. उन सभी को गुना जिला अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर रामस्वरूप को नहीं बचा पाए.”
महेंद्र नागर, उसके बेटे नीतेश और देवेंद्र, पत्नी कमलेश बाई नागर, भतीजे जितेंद्र, और नागर परिवार की दो अन्य महिलाओं सहित 14 व्यक्तियों के खिलाफ हत्या, आपराधिक षड्यंत्र, मारपीट और महिलाओं की मर्यादा भंग करने से संबंधित भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. मुख्य आरोपी महेंद्र नागर फरार है, लेकिन उसके बड़े भाई हुकुम सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है.
भाजपा ने निष्कासन की मांग की : इस बीच, गुना जिला भाजपा अध्यक्ष धर्मेंद्र सिकरवार ने नागर के पार्टी से जुड़े होने की पुष्टि करते हुए उसे तत्काल निष्कासित करने की मांग की है. सिकरवार ने कहा, “महेंद्र नागर पार्टी कार्यकर्ता और स्थानीय बूथ प्रमुख है. हमने उसे तुरंत हटाने के लिए वरिष्ठ पार्टी नेताओं को लिखा है.” बता दें कि गुना ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के उन तीन जिलों में से एक है, जो गुना लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसका प्रतिनिधित्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया करते हैं.
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों से छेड़छाड़ पर मंत्री जी के बयान से विवाद, ‘विक्टिम ब्लेमिंग’ का आरोप लगा
मध्य प्रदेश के एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के उस बयान पर विवाद खड़ा हो गया है जिसमें उन्होंने कहा कि दो ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेटरों को, जिनके साथ पिछले हफ़्ते “अनुचित तरीके से छेड़छाड़” की गई थी, होटल से बाहर निकलने से पहले अधिकारियों को सूचित करना चाहिए था. बीबीसी न्यूज़ में गीता पांडेय की रिपोर्ट के अनुसार, कई लोग उन पर ‘विक्टिम ब्लेमिंग’ यानी पीड़ित को ही दोषी ठहराने का आरोप लगा रहे हैं.
यह घटना इंदौर में गुरुवार को हुई जब खिलाड़ी एक कैफे में जा रही थीं. पुलिस ने कहा है कि उन्हें परेशान करने वाले व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया गया है. भारत के क्रिकेट बोर्ड (BCCI) ने इस घटना की निंदा की है, जिस पर दुनिया भर में गुस्सा देखा जा रहा है. लेकिन, राज्य सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि यह “अधिकारियों के साथ-साथ खिलाड़ियों के लिए भी एक सबक है” जिन्हें बाहर जाने से पहले सुरक्षा या प्रशासन को सूचित करना चाहिए था.
विजयवर्गीय ने रविवार को संवाददाताओं से कहा, “खिलाड़ियों को भी यह महसूस होगा कि भविष्य में अगर हम बाहर निकलें, तो हमें सुरक्षा या स्थानीय प्रशासन को बताना चाहिए.” उन्होंने आगे कहा कि खिलाड़ियों को बाहर निकलते समय सतर्क रहना चाहिए क्योंकि उनके बहुत सारे प्रशंसक होते हैं.
उनके इस बयान की भारत में व्यापक आलोचना हो रही है. विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेता अरुण यादव ने उनके बयानों को “घृणित और प्रतिगामी” बताया, जबकि गायिका चिन्मयी श्रीपदा ने उन पर पीड़ित को दोषी ठहराने का आरोप लगाया. एक सोशल मीडिया यूज़र ने लिखा कि “ऐसे समय में जब इस शर्मनाक घटना से भारत की छवि को पहले ही धक्का लगा है, एक जनप्रतिनिधि की ओर से इस तरह के पीड़ित-दोषी बयान केवल शर्मिंदगी को बढ़ाते हैं.” बाद में विजयवर्गीय ने इस घटना को “शर्मनाक” बताया और कहा कि सख़्त कार्रवाई की गई है, लेकिन साथ ही यह भी दोहराया कि खिलाड़ियों को बाहर जाने से पहले अपने सुरक्षा अधिकारी को सूचित करना चाहिए था.
बिहार
श्रवण गर्ग: राहुल, सोनिया और प्रियंका को चुनाव तक बिहार जाकर बैठ जाना चाहिए
राजनीति की बिसात पर कुछ लड़ाइयां सिर्फ़ चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदलने के लिए लड़ी जाती हैं. बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव एक ऐसी ही लड़ाई बनता जा रहा है. यह सिर्फ़ मुख्यमंत्री की कुर्सी का सवाल नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि भारत में क्षेत्रीय दलों और राष्ट्रीय विपक्ष का भविष्य क्या होगा.
‘हरकारा डीप डाइव’ के नए एपिसोड में, वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने इसी जटिल तस्वीर का विश्लेषण किया. उनकी बातों से साफ़ है कि नीतीश कुमार, जो कभी नरेंद्र मोदी को बिहार में मंच देने से कतराते थे, आज अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बेबस मोड़ पर खड़े हैं. ऐसा लगता है कि बीजेपी ने बिहार में अपनी वही रणनीति लागू कर दी है जो उसने महाराष्ट्र में शिवसेना को दो-फाड़ करने के लिए अपनाई थी- पहले पार्टी तोड़ो, फिर नेता को ख़त्म करो. श्रवण गर्ग कहते हैं, “पॉलिटिकली नीतीश कुमार इज़ डेड.” बीजेपी अब बस जाने भी दो यारों के उस किरदार की तरह उन्हें ज़िंदा दिखाकर घुमा रही है.
यह चुनाव सिर्फ़ नीतीश के लिए ही नहीं, बल्कि विपक्ष के लिए भी एक अग्निपरीक्षा है. एक तरफ़ तेजस्वी यादव एक नई पीढ़ी के नेता के तौर पर उभर रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस और राहुल गांधी का रवैया महागठबंधन के लिए ही सवाल खड़े कर रहा है. ऐसा लग रहा है मानो विपक्ष, विपक्ष से ही लड़ रहा है.
इस पूरी उठापटक में बिहार के असली मुद्दे- बेरोज़गारी, पलायन, और विकास- कहीं ग़ायब हो गए हैं. यह चुनाव अब किरदारों, रणनीतियों और अहंकारों की लड़ाई बन गया है, जिसके नतीजे बिहार की सीमाओं से बहुत दूर, दिल्ली तक महसूस किए जाएंगे.
सीजेआई गवई ने जस्टिस सूर्यकांत को अपना उत्तराधिकारी बनाने की सिफारिश की
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) भूषण आर. गवई ने सोमवार को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश, जस्टिस सूर्यकांत, के नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी है.
वरिष्ठता के आधार पर इस पद के लिए अगली पंक्ति में जस्टिस कांत हैं, जो 23 नवंबर को जस्टिस गवई की सेवानिवृत्ति के बाद पदभार ग्रहण करने के योग्य हो जाएंगे. एक बार सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने के बाद, वह भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे और 9 फरवरी, 2027 को अपनी सेवानिवृत्ति तक सेवा करने की उम्मीद है — यह लगभग 14 महीने का कार्यकाल होगा.
“हिंदुस्तान टाइम्स” को दिए अपने वक्तव्य में, सीजेआई गवई ने जस्टिस कांत को “कमान संभालने के लिए हर पहलू में उपयुक्त और सक्षम” बताया. उन्होंने आगे कहा कि उनके उत्तराधिकारी “संस्था के प्रमुख के रूप में एक मूल्यवान संपत्ति साबित होंगे.” अपनी साझा पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए, जस्टिस गवई ने कहा, “मेरी तरह, जस्टिस कांत भी समाज के उस वर्ग से आते हैं जिसने जीवन के हर चरण में संघर्ष देखे हैं, जो मुझे विश्वास दिलाता है कि वह उन लोगों के दर्द और पीड़ा को समझने के लिए सबसे उपयुक्त होंगे, जिन्हें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका की आवश्यकता है.”
तेजस्वी यादव : ‘नौकरियां, नौकरियां और नौकरियां. बिहार को इसी की ज़रूरत है’
महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे तेजस्वी यादव ने द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक विस्तृत इंटरव्यू में बिहार के लिए अपने दृष्टिकोण, चुनावी रणनीतियों और राजनीतिक विरोधियों पर अपने विचार साझा किए. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनका मुख्य एजेंडा ‘नौकरियां, नौकरियां और नौकरियां’ है, क्योंकि बिहार को इसी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. तेजस्वी ने कहा कि रोज़गार सृजन को वे लागत के तौर पर नहीं, बल्कि एक निवेश के रूप में देखते हैं. उन्होंने कहा, “जब आप रोज़गार पैदा करते हैं, तो यह लोगों की आजीविका को स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र विकास से जोड़ता है. हम स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा कर सकते हैं, जिससे न केवल लोगों को नौकरियां मिलेंगी बल्कि हमारे स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, और बिजली-पानी की आपूर्ति भी मज़बूत होगी. इसका एक गुणक प्रभाव (multiplier effect) होगा.”
वित्तीय योजनाओं और कर्ज़ के बोझ पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में तेजस्वी ने कहा कि वे इन्हें ‘रेवड़ी’ नहीं मानते. उन्होंने कहा, “जब लोग अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हों, तो आप उनसे बड़े सुधारों के फल का इंतज़ार करने के लिए नहीं कह सकते. हमें उन्हें अंतरिम राहत देनी होगी. यह बुनियादी मानवीय गरिमा और तत्काल अस्तित्व का सवाल है.” उन्होंने एनडीए सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वे हमारी योजनाओं को ‘रेवड़ी’ कहते हैं, लेकिन चुनाव आते ही ख़ुद मतदाताओं को लुभाने के लिए अपना खज़ाना खोल देते हैं. तेजस्वी ने अपनी ‘माई बहन मान योजना’ के तहत हर महिला को 2,500 रुपये की टिकाऊ सहायता देने का वादा किया, जिसे उन्होंने एनडीए के वादों से बेहतर बताया.
महागठबंधन के भीतर 11 सीटों पर ‘दोस्ताना मुकाबले’ के सवाल पर तेजस्वी ने कहा कि बिहार एक जटिल राज्य है और हर निर्वाचन क्षेत्र की अपनी अलग गतिशीलता है. उन्होंने स्पष्ट किया, “हमारा बड़ा उद्देश्य इस सरकार को हटाना है और हम इसमें एकजुट हैं. लेकिन इस एकता के भीतर, स्थानीय कारकों पर विचार करने की गुंजाइश है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम असली दुश्मन से एक साथ लड़ रहे हैं, एक-दूसरे से नहीं.”
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर पर टिप्पणी करने से बचते हुए उन्होंने कहा, “उनके बारे में कहने को क्या है? वह सिर्फ़ मीडिया की देन हैं, कोई जन नेता नहीं. वह एक सलाहकार हैं जो पैसे लेकर किसी के लिए भी पर्दे के पीछे काम करते हैं.” आईआरसीटीसी मामले में आरोप तय होने पर तेजस्वी ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताया और कहा कि केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल उन्हें राजनीतिक रूप से हराने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वे इससे डरने वाले नहीं हैं और उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.
सत्ता में आए तो वक़्फ़ एक्ट को कूड़ेदान में फेंक देंगे: तेजस्वी यादव
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और बिहार में इंडिया ब्लॉक के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने एक चुनावी रैली में घोषणा की है कि अगर उनकी पार्टी राज्य में सत्ता में आई तो वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम को “कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा”. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, कटिहार के सीमांचल क्षेत्र में अपनी पहली चुनावी रैली को संबोधित करते हुए, तेजस्वी ने कहा कि राजद ने अपनी विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया और उनके पिता व पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद “सांप्रदायिक ताकतों” के सामने कभी नहीं झुके.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पाला बदलने को लेकर निशाना साधते हुए तेजस्वी ने कहा कि उन्होंने बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को जगह दी है. उन्होंने कहा, “जब मेरे माता-पिता मुख्यमंत्री थे, तो भाजपा और आरएसएस की दंगा भड़काने की हिम्मत नहीं हुई. लालू जी ने हमेशा भाजपा के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी है और आज भी हम मज़बूती से उनके ख़िलाफ़ खड़े हैं.” प्राणपुर विधानसभा क्षेत्र में भारी भीड़ के बीच उन्होंने कहा, “मैं आपको बताना चाहता हूं कि जब हमारी पार्टी सरकार बनाएगी, तो हम वक़्फ़ एक्ट को कूड़ेदान में फेंक देंगे.”
इस बयान की भाजपा ने तीखी आलोचना की है. बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि यह तेजस्वी के “अराजक, असंसदीय और असंवैधानिक आचरण” को दर्शाता है. उन्होंने कहा, “यह विधेयक देश की संसद द्वारा पारित किया गया था... अगर विपक्ष में रहते हुए उनका व्यवहार ऐसा है, तो सत्ता में आने पर वे अराजकता और आतंक फैलाने के अलावा कुछ नहीं करेंगे.” सिन्हा ने यह भी कहा कि वक़्फ़ एक्ट धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करता है और इसमें किए गए बदलाव केवल प्रशासनिक प्रकृति के थे.
तेजस्वी ने अपनी रैली में कहा कि बिहार की जनता बदलाव का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है. उन्होंने वादा किया, “आपने एनडीए को 20 साल दिए, मुझे सिर्फ़ 20 महीने दीजिए. हम मिलकर एक नया बिहार बनाएंगे और सत्ता में आने पर इस क्षेत्र के विकास के लिए सीमांचल विकास प्राधिकरण का गठन करेंगे.”
चिराग पासवान: मैं यहां एक छोटी दौड़ के लिए नहीं
लोक जन शक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रमुख चिराग पासवान ख़ुद को एक ‘बहुजन नेता’ के रूप में पेश कर रहे हैं और बिहार की जटिल राजनीतिक परिदृश्य में एक लंबी पारी खेलने के लिए तैयार हैं. द हिंदू में प्रकाशित एक प्रोफाइल के अनुसार, चिराग पासवान का राजनीतिक सफ़र किसी बॉलीवुड फिल्म की पटकथा जैसा है, जिसमें उतार-चढ़ाव, पारिवारिक कलह और फिर से उठ खड़े होने की कहानी है. उनका बाहरी रूप भी बदला है, पहले के सुनहरे बालों और रंगीन सूटों की जगह अब माथे पर सिंदूर का टीका, कलाई पर धागे और सफ़ेद कुर्ते ने ले ली है, जो उनके राजनीतिक परिवर्तन को दर्शाता है.
जून 2021 में जब उनके चाचा पशुपति नाथ पारस चार सांसदों के साथ पार्टी से अलग हो गए, तो चिराग के पास पार्टी का एक टूटा हुआ हिस्सा ही बचा था. लेकिन आज वे एक कैबिनेट मंत्री हैं और बिहार की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी माने जाते हैं. उन्होंने एनडीए के भीतर आगामी चुनावों के लिए 29 सीटें हासिल की हैं, जो उनकी बातचीत की कुशलता को दर्शाता है. यह जद(यू) की पेशकश से कहीं ज़्यादा था और गठबंधन के लगभग सभी सहयोगियों ने लोजपा को दिए गए इस बड़े हिस्से पर असंतोष भी व्यक्त किया था.
चिराग के लिए सबसे बड़ी चुनौती नीतीश कुमार के साथ मिलकर प्रचार करना होगा, क्योंकि उनके पिता रामविलास पासवान और ख़ुद वे भी नीतीश कुमार की नीतियों के आलोचक रहे हैं. पासवान, जो लोजपा का मुख्य वोट बैंक हैं, को नीतीश के उस फ़ैसले से नाराज़गी रही है, जिसमें उन्होंने महादलित समूह बनाकर पासवानों को उससे बाहर रखा था.
द हिंदू की रिपोर्ट बताती है कि चिराग पासवान ख़ुद को सिर्फ़ ‘दलित नेता’ के टैग तक सीमित नहीं रखना चाहते. वे ख़ुद को एक ‘बहुजन’ नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, ताकि वे जातियों और समुदायों के एक बड़े वर्ग से अपील कर सकें. कैबिनेट में शामिल होने के बाद सरकार ने दो प्रमुख मुद्दों पर उनके रुख का समर्थन भी किया. चिराग अक्सर कहते हैं, “मैं यहां एक छोटी दौड़ के लिए नहीं हूं. मेरे सामने 30 साल का राजनीतिक करियर है,” जो उनके लंबी अवधि के इरादों को स्पष्ट करता है.
वीवीपी शर्मा : विरासत और वैधता के चौराहे पर
वह पूरी शिद्दत से एक आज्ञाकारी बेटा बनना चाहते हैं, जो अपने माता-पिता के नक्शेकदम पर चले. हालांकि, तेजस्वी प्रसाद यादव को 2020 में यह एहसास हो गया कि बिहार के मतदाता उनकी इस पितृभक्ति से प्रभावित नहीं थे. अपने पिता और मां की तरह मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना करीब तो आया, लेकिन इतना भी करीब नहीं कि पूरा हो सके. पांच साल बाद, कहानी में एक नया मोड़ है — इंडिया ब्लॉक ने उन्हें, भले ही हिचकिचाहट के साथ, अपना मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया है. उनके गठबंधन सहयोगी, कांग्रेस ने यह घोषणा उस मेहमान की तरह की जिसे मेज़बान के ज़ोर देने पर मुस्कुराना पड़ता है.
तेजस्वी के लिए, यह आधी-अधूरी मान्यता एक जीत भी है और एक तंज भी. उन्होंने पिछला दशक लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की छाया से बाहर निकलने की कोशिश में बिताया है, लेकिन उनका सामूहिक बोझ उनका पीछा छोड़ने से इनकार करता है. हर चुनावी भाषण, भाजपा का हर हमला, महागठबंधन के भीतर से आती हर कानाफूसी उन्हें 1990 के दशक में वापस खींच ले जाती है — “जंगल राज” की ओर, भ्रष्टाचार की ओर, और वंशवादी विशेषाधिकार की ओर.
भाजपा ने इस अतीत को एक हथियार बनाने में महारत हासिल कर ली है. उसके नेता राजद शासन के तहत “लूट, भय और भ्रष्टाचार” की याद दिलाने का कोई मौका नहीं चूकते. यह कहानी सरल, प्रभावी और गहरी ध्रुवीकरण करने वाली है. यह तेजस्वी के मुख्य वोट बैंक — यादवों और मुसलमानों — को अलग-थलग करती है, और उन्हें अपनी अपील का दायरा बढ़ाने से रोकती है. वहीं, कांग्रेस इस पर कोई बचाव पेश नहीं करती. वह उन सवर्ण मतदाताओं को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकती, जिनका समर्थन वह अब भी वापस पाने की उम्मीद करती है.
यहां तक कि उनका परिवार भी कोई राहत नहीं देता. उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव, जिन्हें उनके पिता ने राजद से निष्कासित कर दिया था, अब अपना खुद का संगठन चलाते हैं और महुआ से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वह पार्टी में “लौटने से बेहतर मौत चुनेंगे”. उनके बयान विपक्ष के लिए एक तोहफे की तरह हैं, जो यादव परिवार को सत्ता के भूखे लोगों के सर्कस के रूप में चित्रित करने में खुशी महसूस करता है.
फिर एक वाइल्डकार्ड भी है — प्रशांत किशोर. राजनीतिक रणनीतिकार से सुधारक बने प्रशांत ने तेजस्वी के निर्वाचन क्षेत्र राघोपुर को अपने अभियान का मंच बना लिया है. किशोर ने हाल ही में कहा, “यह वही जगह है जिसने उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी तक भेजा. यहां एक ढंग का स्कूल तक नहीं है.” उनका आरोप इसलिए विनाशकारी है क्योंकि यह सच की तरह चुभता है. किशोर ख़ुद को वंशवाद के ख़िलाफ़ विकास की आवाज़ के रूप में पेश करते हैं. उनके शब्द — शांत, आंकड़ों से भरे, और आरोप लगाने वाले — मतदाताओं को यह याद दिलाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं कि तेजस्वी ने अभी तक क्या हासिल नहीं किया है.
इंडिया ब्लॉक के भीतर भी हालात उतने ही जटिल हैं. सीट-बंटवारे की बातचीत में लालू प्रसाद के कथित हस्तक्षेप ने छोटे सहयोगियों को नाराज़ कर दिया है. उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने लालू प्रसाद पर आरोप लगाया है कि वे अपने बेटे का पद पक्का करने के लिए गठबंधन सहयोगियों पर दबाव डाल रहे हैं. इस बेचैनी को दूर करने के लिए, महागठबंधन ने विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी को अपने उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा नामित किया. यह एक हिचकिचाहट भरा समझौता था — तेजस्वी के नेतृत्व को स्वीकार तो किया गया, लेकिन उस पर विश्वास अनिश्चित बना रहा.
तेजस्वी के लिए, राजनीति कभी भी घर से दूर नहीं थी. स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने के बाद, क्रिकेट में एक संक्षिप्त और साधारण पारी के बाद वे लगभग डिफ़ॉल्ट रूप से इसमें शामिल हो गए. 2008 और 2012 के बीच, वह दिल्ली डेयरडेविल्स की बेंच पर बैठे रहे, और मुट्ठी भर प्रथम श्रेणी के खेलों में सिर्फ़ 37 रन बना पाए. तीन साल बाद, 26 साल की उम्र में, उन्होंने बिहार के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. उस समय उनके साथ काम करने वाले लोग उन्हें एक ऐसे युवा मंत्री के रूप में याद करते हैं जो बोलने से ज़्यादा सुनता था, जो सड़कों और पुलों का दौरा एक इंजीनियर की जिज्ञासा से करता था, न कि एक नेता के अहंकार से. जब नीतीश कुमार ने 2017 में भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए गठबंधन तोड़ दिया, तो तेजस्वी की राजनीतिक शिक्षा पूरी हो गई.
इन सालों में, वह एक तेज़ और अधिक आत्मविश्वासी प्रचारक के रूप में उभरे हैं. 2020 में दस लाख सरकारी नौकरियों का उनका वादा बिहार के युवाओं की कल्पना को छू गया और राजद को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया, भले ही महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से सिर्फ़ एक दर्जन सीटों से चूक गया. जो लोग उन्हें करीब से देख रहे थे, उनका कहना है कि शपथ ग्रहण के लिए उनकी शेरवानी तैयार थी, जब आंकड़े हाथ से फिसल गए. इस करीबी हार ने उन्हें और मज़बूत बना दिया, जिससे उनकी समझ और संकल्प दोनों तेज़ हो गए. उन्होंने शासन के बारे में ज़्यादा और जाति के बारे में कम, रोज़गार के बारे में ज़्यादा और अन्याय के बारे में कम बोलना शुरू कर दिया.
फिर भी, बिहार की राजनीति माफ़ नहीं करती. “जंगल राज” का भूत आज भी हर राजद रैली पर मंडराता रहता है. एनडीए यादों पर ज़िंदा है; तेजस्वी सुधार की गुहार लगाते हैं. उनका काम मतदाताओं को यह विश्वास दिलाना है कि वह सिर्फ़ अपने पिता के बेटे नहीं हैं, बल्कि एक अलग तरह के यादव हैं — जो उस राज्य में विकास की भाषा बोलते हैं जो लंबे समय से सिर्फ़ गुज़ारा करने का आदी रहा है.
अंत में, उनकी सबसे बड़ी चुनौती शायद भाजपा या नीतीश कुमार नहीं, बल्कि ख़ुद इतिहास है. बिहार राजवंशों पर शायद ही कभी मेहरबान रहा है. तेजस्वी को विरासत में भीड़ का एक हिस्सा तो मिला है, लेकिन अभी तक सभी का भरोसा नहीं. वह जिस सिंहासन की तलाश में हैं, वह सिर्फ़ वंश से ज़्यादा की मांग करता है. यह प्रायश्चित की मांग करता है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं जिनकी बिहार में लंबी पारी रही है.
अब अदालत भी कह रही है, ‘पांच साल बीत चुके हैं’: उमर ख़ालिद और अन्य की ज़मानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के ‘बड़ी साज़िश’ मामले में उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा और मीरान हैदर की ज़मानत याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने में दिल्ली पुलिस की विफलता पर सोमवार को सख़्त रुख अपनाया. द वायर और द टेलीग्राफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये सभी आरोपी पांच साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं. सुनवाई के दौरान, जब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सूर्यप्रकाश वी. राजू ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा, तो जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच ने कहा कि पुलिस के पास जवाब देने के लिए पर्याप्त समय था.
जस्टिस कुमार ने कहा, “पिछली बार, अगर आपको याद हो, तो हमने खुली अदालत में कहा था कि हम इस मामले को सुनेंगे और इसका निपटारा करेंगे. साफ़ तौर पर कहें तो ज़मानत के मामलों में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का कोई सवाल ही नहीं उठता.” बेंच ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आरोपियों ने जेल में पांच साल गुज़ार दिए हैं. कोर्ट ने कहा, “यह सिर्फ़ ज़मानत पर विचार करने के बारे में है. देखिए, पांच साल पहले ही ख़त्म हो चुके हैं.”
उमर ख़ालिद की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और सी.यू. सिंह पेश हुए, जबकि अभिषेक मनु सिंघवी ने फातिमा और सिद्धार्थ दवे ने इमाम का प्रतिनिधित्व किया. सभी वकीलों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आरोपियों को जेल में लंबा इंतज़ार करना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को तय की है.
इन सभी को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा दर्ज की गई एफआईआर 59/2020 के तहत भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ़्तार किया गया था. इन कार्यकर्ताओं ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ज़मानत याचिका ख़ारिज किए जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.
पाँच साल और अनगिनत सवाल: शरजील इमाम के बहाने इंसाफ़ का इंतज़ार
एक चेहरा है, जो IIT और JNU जैसे संस्थानों की मेधा का प्रतीक था. एक आवाज़ है, जो CAA-NRC के विरोध में उठी और फिर ख़ामोश कर दी गई. और एक नाम है - शरजील इमाम, जो पिछले पाँच सालों से UAPA जैसे कठोर क़ानून के तहत जेल की सलाखों के पीछे है. लेकिन यह कहानी सिर्फ़ शरजील की नहीं है. यह उस प्रक्रिया की कहानी है, जो ख़ुद एक सज़ा बन चुकी है.
हरकारा डीपडाइव में, शरजील के छोटे भाई मुज़म्मिल इमाम ने निधीश त्यागी के साथ बातचीत में इस ‘प्रोसेस इज़ पनिशमेंट’ के दर्द को परत-दर-परत खोला. यह सिर्फ़ एक क़ानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि एक परिवार का हर दिन का संघर्ष है. एक माँ का संघर्ष, जो पाँच साल से किसी ख़ुशी के मौके पर इसलिए नहीं गईं क्योंकि उनका एक बेटा घर पर नहीं है. एक छोटे भाई का संघर्ष, जिस पर अचानक बड़े भाई की सारी ज़िम्मेदारियाँ आ गईं. मुज़म्मिल बताते हैं कि जब परिवार का एक सदस्य जेल जाता है, तो पूरी ज़िंदगी थम जाती है. यह बातचीत हमें उस दुनिया में ले जाती है, जहाँ इंसाफ़ तारीख़ों में उलझा है. जिस दिल्ली दंगे के मामले में शरजील आरोपी हैं, वो दंगा होने से एक महीने पहले से वो पुलिस हिरासत में थे. मामले का ट्रायल आज तक शुरू नहीं हुआ है, और गवाहों की संख्या 1000 से ज़्यादा है. अगर हर महीने 3-4 गवाहों की भी सुनवाई हो, तो फ़ैसला आने में 20 साल लग जाएँगे. तब तक एक इंसान अपनी ज़िंदगी का सबसे कीमती वक़्त सलाखों के पीछे गुज़ार चुका होगा. यही ‘प्रोसेस इज़ पनिशमेंट’ है. मुज़म्मिल की बातों में सियासत की ख़ामोशी का दर्द भी झलकता है. वो कहते हैं कि सेक्युलर पार्टियाँ भी मुस्लिम मुद्दों पर, ख़ासकर UAPA के क़ैदियों पर, बोलने से डरती हैं कि कहीं उनका ‘हिंदू वोट’ न खिसक जाए. यह ख़ामोशी उस खाई को और गहरा करती है, जहाँ एक पूरा समुदाय अपनी नुमाइंदगी के लिए आवाज़ खोज रहा है.
इन सबके बीच, उम्मीद की एक किरण किताबों से आती है. शरजील ने जेल में पाँच सालों में 1000 से ज़्यादा किताबें पढ़ी हैं. अरबी, फ़ारसी, जर्मन, बंगाली - अलग-अलग ज़बानों में. शायद यही किताबें उन्हें उस अंधेरे में रौशनी देती हैं, जिसका ज़िक्र मुज़म्मिल करते हैं - “अंधेरा छटेगा, रोशनी आएगी.” देखिये पूरा वीडियो.
हेट स्पीच
बीजेपी नेता बोला- मुस्लिम लड़कियों को लाने वाले को इनाम में नौकरी मिलेगी
उत्तरप्रदेश के डुमरियागंज के पूर्व भाजपा विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह की हेट स्पीच का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. जिसमें वह भीड़ से कह रहे हैं कि मुस्लिम लड़कियों को ‘लाने’ वाले हिंदू युवाओं को नौकरी से पुरस्कृत किया जाएगा.
‘मकतूब मीडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “जो हिंदू लड़का मुस्लिम लड़की को लाएगा, हम उसके लिए नौकरी की व्यवस्था करेंगे.” स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस टिप्पणी पर भीड़ ने तालियां बजाईं. आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह ने फुटेज पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, और कथित टिप्पणी को “अपराध के लिए उकसावे” वाली बताते हुए तत्काल पुलिस कार्रवाई की मांग की. “ज़ी न्यूज” के मुताबिक राघवेंद्र प्रताप सिंह हिंदू लड़कों से मुस्लिम लड़कियों का अपहरण करने के लिए कह रहे हैं. साथ ही शहर के बड़े मौलाना और मुसमलानों को धमकी भी दे रहे हैं. पूर्व विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह के मुताबिक, एक महीने के भीतर दो हिंदू लड़कियों ने मुस्लिम लड़कों से शादी कर ली है. इसी सिलसिले में एक बैठक बुलाई गई थी. बैठक में यह तय हुआ कि इन दोनों लड़कियों के बदले दस मुस्लिम लड़कियों का अपहरण किया जाएगा.
बेड़ियां पहना कर वापस भेजा अमेरिका से हरियाणा
“बेहतर जीवन का वादा करने वाले एजेंटों पर भरोसा करके, जमीन बेचकर और घर गिरवी रखकर, वे अमेरिकन ड्रीम का पीछा करने निकले थे. रविवार तड़के, हरियाणा के 50 पुरुष, जिनकी उम्र 25 से 40 वर्ष के बीच थी, निराश, निर्वासित और, जैसा कि उनमें से कई का दावा है, कर्ज में डूबे हुए घर लौटे हैं. ये सभी अमेरिका में अवैध अप्रवासियों पर हुई कार्रवाई में पकड़े गए थे.
हरियाणा के अधिकारियों के अनुसार, निर्वासित किए गए इन लोगों में से 16 करनाल से, 14 कैथल से, पांच कुरुक्षेत्र से और एक पानीपत से हैं. उन्होंने बताया कि उन सभी ने अमेरिका में घुसने के लिए ‘डोंकी’ या ‘डंकी’ रूट लिया था — जो दक्षिण और मध्य अमेरिका से होकर गुजरने वाले मानव तस्करी के रास्तों की एक श्रृंखला है. कुछ ने वहां कई साल बिताए थे, जबकि अन्य केवल कुछ महीनों के लिए रहे. निर्वासन से पहले उनमें से कई को जेल में भी रखा गया था.
फ्लाइट में शामिल लोगों में करनाल के राहरा गांव के निवासी अंकुर सिंह (26) भी थे, जो बताते हैं कि उन्होंने अक्टूबर 2022 में अमेरिका पहुंचने के लिए ₹29 लाख खर्च किए थे. उनकी यात्रा, जो “कई दक्षिण अमेरिकी देशों” से होकर गुजरी, उसमें “लगभग चार महीने” लगे. अंकुर ने “द इंडियन एक्सप्रेस” को बताया, “मैंने डंकी रूट लिया था और फरवरी इस साल तक सब ठीक चल रहा था, जब मुझे जॉर्जिया में एक शराब की दुकान पर काम करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया.” कैथल के निवासी नरेश कुमार ने बताया कि वह एक साल से अधिक समय तक अमेरिकी डिटेंशन सेंटर में रहे. एक अन्य व्यक्ति हुसन (21), जिसके परिवार ने ₹45 लाख दिए थे, को तो यूएस में घुसते ही गिरफ्तार कर लिया गया था. निर्वासितों ने बताया कि दिल्ली एयरपोर्ट पर आने पर उन्हें हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां लगाई गई थीं, जिससे वे सदमे में थे.
विदेश मंत्रालय के अनुसार, जनवरी 2025 से अब तक लगभग 2,500 भारतीयों को अमेरिका से निर्वासित किया जा चुका है. हरियाणा पुलिस ने पुष्टि की है कि ये सभी 50 लोग अवैध ‘डोंकी’ रूट से गए थे. कुल मिलाकर, सुखबीर सिवाच की यह रिपोर्ट अवैध ‘डंकी’ रूट के खतरों और धोखेबाज एजेंटों के जाल को उजागर करती है, जहां लोग अपना सब कुछ दांव पर लगाकर निराशा और कर्ज के साथ वापस लौट रहे हैं.
50 साल बाद, सेल डीड्स और टैक्स रिकॉर्ड वाले घर दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके में विध्वंस के ख़तरे का सामना कर रहे हैं
दिल्ली के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में स्थित मुस्लिम बहुल इलाके बाटला हाउस में, दशकों से रह रहे परिवार अपने घरों पर विध्वंस के ख़तरे का सामना कर रहे हैं, जबकि उनके पास बिक्री विलेख (sale deeds), टैक्स रिकॉर्ड और नगर निगम के दस्तावेज़ जैसे सभी क़ानूनी प्रमाण मौजूद हैं. आर्टिकल-14 के लिए मसरत नबी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 74 वर्षीय हमीदा बेगम, जो 60 से अधिक वर्षों से यहां रह रही हैं, उन सैकड़ों लोगों में से हैं जिनके घरों को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग (IDUP) द्वारा “अतिक्रमण” के रूप में चिह्नित किया गया है.
मई में, डीडीए और आईडीयूपी ने खसरा नंबर 277 और 279 में स्थित भूखंडों के लिए विध्वंस नोटिस जारी किए. आईडीयूपी का दावा है कि ये भूखंड ऐतिहासिक यमुना बाढ़ क्षेत्र के भीतर आते हैं और क़ानूनी रूप से उनके हैं. इन नोटिसों के बाद कम से कम 150 घरों पर लाल क्रॉस के निशान लगा दिए गए या नोटिस चिपका दिए गए, जिससे निवासियों में दहशत फैल गई. हमीदा बेगम कहती हैं, “मैं समझ नहीं पाई, एक पल में उन्होंने सब कुछ ख़त्म कर दिया. इस घर की हर दीवार में यादें हैं. यह घर मेरी पूरी दुनिया है.”
हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने बाद में विध्वंस पर रोक लगा दी, लेकिन यह राहत अस्थायी है. अदालती सुनवाई बार-बार स्थगित हो रही है और कोई अंतिम समाधान नहीं निकला है, जिससे परिवार बेदखली के लगातार ख़तरे में जी रहे हैं. आर्टिकल-14 ने चार निवासियों के दस्तावेज़ों की समीक्षा की, जिनमें 1971, 1980, 1983 और 1984 के बिक्री विलेख, संपत्ति सर्वेक्षण, टैक्स रिकॉर्ड और नगर निगम के पानी के रिकॉर्ड शामिल थे.
डीडीए के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी, 75 वर्षीय सईद नासिर-उल-हसन, जिनके घर पर भी विध्वंस का ख़तरा है, ने कहा कि उनका घर 1957 में डीडीए के गठन से बहुत पहले उनकी मां ने बनवाया था. उन्होंने 1983 से संपत्ति कर रसीदें दिखाईं और सवाल किया, “डीडीए इतने सालों से कहां था?” यह मामला देश भर में, विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में, मुस्लिम संपत्तियों के ख़िलाफ़ सरकारी कार्रवाइयों के एक पैटर्न को दर्शाता है. बटला हाउस के निवासी न्याय के लिए अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन अंतहीन स्थगनों के चक्र में फंस गए हैं, जिससे वे लगातार डर और अनिश्चितता में जीने को मजबूर हैं.
प्रदूषण नापने की मशीन को बेवकूफ़ बनाने के लिए भाजपा सरकार का इंतजाम
दिल्ली में वायु प्रदूषण के राजनीतिक विवाद के बीच, रविवार को भी एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों (एक्यूआई) के आस-पास नियमित अंतराल पर पानी का छिड़काव (वाटर स्प्रिंकलर) जारी रहा, जिससे शहर की हवा ‘खराब’ श्रेणी के ऊपरी स्तर पर बनी रही.
आम आदमी पार्टी (आप) ने शनिवार को आरोप लगाया था कि आनंद विहार आईएसबीटी स्टेशन पर मॉनिटरिंग के लिए हवा खींची जाने वाली जगह पर प्रदूषण को “कृत्रिम रूप से कम” दिखाने के लिए रात में पानी का छिड़काव किया गया. हालांकि, भाजपा ने इस आरोप को “मूर्खतापूर्ण” और “राजनीतिक” कहकर खारिज कर दिया.
सोफिया मैथ्यू और दृष्टि जैन की रिपोर्ट है कि आनंद विहार और आर.के. पुरम एक्यूआई स्टेशनों के पास स्प्रिंकलर से पानी का छिड़काव किया गया.
आनंद विहार में छिड़काव के समय, दोपहर 1:10 बजे से 3 बजे के बीच, पीएम2.5 का स्तर लगभग 400 से 180 µg/m³ तक और पीएम10 का स्तर 500 से 200 µg/m³ से नीचे आ गया.
विशेषज्ञों का कहना है कि छिड़काव हवा में नमी की मात्रा को बढ़ाता है और धूल के कणों को अस्थायी रूप से बैठा देता है, जिससे मॉनिटरिंग रीडिंग में वे हल्के दर्ज होते हैं.
एक विशेषज्ञ ने बताया कि मॉनिटरिंग स्टेशन के 20 मीटर के भीतर कोई भी अवरोध नहीं होना चाहिए. आनंद विहार में स्प्रिंकलर का स्थान भीड़भाड़ वाले बस टर्मिनल के निकास द्वार के पास है, जो प्रदूषकों को पकड़ने की क्षमता को प्रभावित करता है. त्योहारों के बाद, प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए यह गतिविधि जारी है. कुलमिलकर, प्रदूषण की रीडिंग को प्रभावित करने के लिए एक्यूआई स्टेशनों के पास पानी का छिड़काव जारी है, जिस पर आप और भाजपा के बीच राजनीतिक विवाद चल रहा है.
यूपी, एमपी, तमिलनाडु, केरल, बंगाल समेत 12 राज्यों में कल से ‘एसआईआर’
चुनाव आयोग ने सोमवार को कहा कि चुनाव वाले बिहार के बाद, वह 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों के विवादास्पद विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दूसरे चरण का संचालन करेगा.
मंगलवार 28 अक्टूबर को शुरू होने वाले राष्ट्रव्यापी एसआईआर का पहला चरण, चुनाव वाले राज्यों तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल को कवर करेगा.
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए दावा किया, “हमने बिहार में मतदाता सूचियों को शुद्ध करने के अभ्यास को सफलतापूर्वक पूरा किया. और परिणाम आपके सामने है... शून्य अपीलें दर्ज हुई हैं.”
कुमार ने कहा, “दूसरा चरण 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयोजित किया जाएगा. एसआईआर यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी योग्य मतदाता छूटे नहीं और कोई भी अयोग्य मतदाता चुनावी सूची में शामिल न हो.”
उन्होंने आगे कहा, “ एसआईआर के दूसरे चरण में 51 करोड़ मतदाता शामिल होंगे. जबकि गणना प्रक्रिया 4 नवंबर को शुरू होगी, प्रारूप सूचियां 9 दिसंबर को प्रकाशित की जाएंगी और अंतिम मतदाता सूचियां 7 फरवरी को प्रकाशित की जाएंगी. “
पहले चरण में शामिल होने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, गोवा, मध्यप्रदेश और राजस्थान शामिल हैं. अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप और पुडुचेरी के केंद्र शासित प्रदेश भी पहले चरण में शामिल होंगे.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रव्यापी एसआईआर के पहले चरण में शामिल होने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मतदाता सूचियां आज सोमवार आधी रात को फ्रीज कर दी जाएंगी.
एक ब्रिटिश व्यक्ति ने राष्ट्रीय संग्रहालय का दौरा किया और उपनिवेशवाद पर बहस छेड़ दी
भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय से एक ब्रिटिश व्यक्ति का वीडियो वायरल हो गया है, जिसमें उसने मज़ाक में कहा कि संग्रहालय में बहुत कम कलाकृतियां प्रदर्शित हैं. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस वायरल क्लिप ने एक बार फिर इस बहस को हवा दे दी है कि भारत आज भी औपनिवेशिक लूट के प्रभाव को कैसे महसूस कर रहा है.
वीडियो में, ट्रैवल इन्फ्लुएंसर एलेक्स और अमीना नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में घूमते हुए दिखाई देते हैं. एलेक्स पूछता है, “अमीना, क्या तुम जानती हो कि भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में मुश्किल से ही कोई कलाकृतियां क्यों हैं?” अमीना जवाब देती है, “मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सब लंदन में हैं.” इस जवाब ने ऑनलाइन भारतीयों की काफ़ी प्रशंसा बटोरी है. “भारत के संग्रहालय ख़ाली क्यों हैं” शीर्षक वाले इस वीडियो को इंस्टाग्राम पर 33,000 से ज़्यादा लाइक्स और 5 लाख से ज़्यादा व्यूज़ मिले हैं. एक लोकप्रिय टिप्पणी में लिखा है, “लंदन में भारत से ज़्यादा भारतीय चीज़ें हैं.”
राष्ट्रीय संग्रहालय की वेबसाइट के अनुसार, यहां पांच हज़ार वर्षों से अधिक की भारतीय और विदेशी सांस्कृतिक विरासत को कवर करने वाली 2,00,000 से अधिक कलाकृतियां हैं. संग्रहालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अंग्रेज़ों ने भारत के कई अमूल्य ख़ज़ाने छीन लिए, लेकिन हमारे पास भारतीय संग्रहालयों में भी लाखों कलाकृतियां हैं - जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत तो प्रदर्शन के लिए भी नहीं रखी गई हैं और उन्हें संरक्षित रखा गया है.”
अधिकारी ने कहा, “भले ही हमारे पास कोहिनूर नहीं है, लेकिन ‘भारत’ और ‘कोहिनूर’ का नाम हमेशा एक साथ लिया जाता है - जो ख़ुद दिखाता है कि यह वास्तव में कहां का है.” रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 से अब तक 640 चोरी हुई पुरावशेषों को भारत वापस लाया गया है और सरकार दुनिया भर से भारतीय पुरावशेषों और कलाकृतियों को वापस लाने के लिए लगातार काम कर रही है.
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