28 नवंबर 2024: अडानी की सफाई, पर संसद फिर भी ठप, सूचना आयोग के खाली पद, दलित की हत्या, जुबैर पर कायम रहेगी एफआईआर, आरक्षण के लिए धर्म बदलना गलत, मार्केल ने खोले पुतिन के राज, नोबेल विजेता का 'छौंक'
हिंदी भाषियों का क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज्यादा ;
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
सुर्खियां : अडानी समूह ने फिर से निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए सफाई पेश की है. अडानी समूह ने आज कहा कि अमेरिकी न्याय विभाग के अभियोग में रिश्वत कांड में पाँच मामले शामिल हैं, लेकिन पहले और पांचवें मामले एफसीपीए का उल्लंघन करने की साजिश और न्याय में बाधा डालने की साजिश में तीन निदेशकों, गौतम अडानी, सागर अडानी और विनीत जैन का उल्लेख नहीं है. साथ ही कहा गया है कि उन पर स्टॉक्स और वायर धोखाधड़ी सहित तीन अन्य आरोप लगाए गए हैं, जो जुर्माना भरकर खत्म हो जाते हैं. अडानी के हिसाब से मामले इतने संगीन नहीं हैं, जितने बताये जा रहे हैं. सफाई के बाद बुधवार के कारोबार में अडानी समूह की 10 लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में तेजी दर्ज की गई. अडानी ग्रुप के शेयरों में दोबारा 20% तक की तेज़ी देखी गई. इसमें अडानी टोटल गैस सबसे अधिक लाभ में रहा, जिसके शेयरों में 15% की बढ़ोतरी हुई, जबकि अडानी ग्रीन एनर्जी के शेयर 13% बढ़े. हाल की विवादित घटनाओं और अस्थिरता के बावजूद, निवेशक अडानी ग्रुप की दीर्घकालिक संभावनाओं को लेकर सकारात्मक बने हुए हैं. रिश्वतखोरी के आरोप में गौतम अडानी और 7 अन्य पर हाल ही में अमेरिकी अभियोग के बाद बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर अडानी समूह के दो शेयरों को दीर्घकालिक अतिरिक्त निगरानी उपायों (एएसएम) के पहले चरण के तहत रखा है. अडानी पर अरबों डॉलर की रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी योजना में उनकी भूमिका को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत में मामला चल रहा है. गौतम अडानी के खिलाफ अरेस्ट वारंट भी जारी किया गया है.
अडानी की सफाई पर खोजी पत्रकार सुचेता दलाल का कहना है कि जब गौतम और सागर अडानी पर कोई आरोप ही नहीं है और उनका नाम भी नहीं लिया गया, तो मामा - भांजा अमेरिका जाकर जांच में क्यों नहीं शामिल होते और अपनी स्थिति स्पष्ट करते. इस बीच रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, "श्रीलंका अमेरिकी रिश्वतखोरी के आरोपों पर विचार कर रहा है, जो अदानी समूह के खिलाफ लगाए गए हैं और फिच ने अडानी समूह की कुछ कंपनी बॉंड्स को वॉच लिस्ट में डाल दिया है." बुधवार को फिर से अडानी अभियोग पर बात करने की विपक्ष ने मांग की और संसद नहीं चली. विपक्ष ने सम्भल पर भी बात करने की मांग रखी.
दूसरी बड़ी ख़बरों में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सरकार से पूछा है कि केंद्रीय सूचना आयोग के 11 में से 8 पद खाली क्यों है. सरकार ने जवाब देने के लिए 10 दिन का वक़्त मांगा है.
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने एनडीटीवी के संस्थापकों प्रणव और राधिका रॉय के खिलाफ अपने भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामले को सबूतों की कमी के कारण बंद नहीं किया, बल्कि इसलिए मामला खत्म करना पड़ा क्योंकि कोई मामला बना ही नहीं. हालांकि इस दौरान उनके हाथ से उनका खड़ा किया गया महत्वपूर्ण मीडिया संस्थान 'एनडीटीवी' निकल गया. 'द वायर' के मुताबिक सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि आईसीआईसीआई बैंक ने प्रणव रॉय की फर्म ‘मेसर्स आरआरपीआर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड’ को 375 करोड़ रुपये का लोन मंजूर करने में कोई गड़बड़ी नहीं की थी. एनडीटीवी अब अडानी समूह के पास है.
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से सवाल किया है कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में अपराध सिद्धि की दर (कन्विक्शन रेट) इतनी कम क्यों है? पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बिना ट्रायल के लंबे समय तक हिरासत में रखने पर चिंता जताई. पूछा कि आखिर चटर्जी को कब तक जेल में रखा जा सकता है. बता दें कि चटर्जी को “कैश फॉर स्कूल जॉब” घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था.
नरसिंहानंद को हेटमॉन्गर कहने पर आस्था आहत : उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद पुलिस ने ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की है, जिसमें उन पर भारत की संप्रभुता और एकता को खतरे में डालने का आरोप है. एक ट्वीट से संबंधित इस मामले में आरोप है कि जुबैर ने यति नरसिंहानंद और अन्य हिंदुत्ववादी नेताओं को "हेटमॉन्गर्स" (घृणा फैलाने वाले) कहकर उनकी टिप्पणियों की आलोचना की थी. यह ट्वीट एक टीवी डिबेट से जुड़ा था, जिसमें विवादास्पद विषयों पर चर्चा की जा रही थी. शिकायतकर्ता ने दावा किया कि इस ट्वीट से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची और यह हिंसा भड़काने की कोशिश थी. इस पर जुबैर ने हाई कोर्ट में एफआईआर को रद्द करने की याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि इस मामले की पूरी जांच के लिए एफआईआर बरकरार रहनी चाहिए. मामले में अगली सुनवाई 3 दिसंबर को होगी.
पहलवान बजरंग पुनिया पर 4 साल का बैन: डोप परीक्षण के लिए नमूना न देने के कारण ओलंपिक पदक विजेता पहलवान बजरंग पुनिया 4 साल के लिए निलंबित कर दिये गए. वहीं बुधवार को पुनिया ने कहा कि यह बदले की कार्रवाई है. वह भाजपा में शामिल होंगे तो प्रतिबंध हटा लिया जाएगा. नाडा ने जानकारी दी कि राष्ट्रीय टीम के लिए चयन ट्रायल के दौरान पुनिया ने 10 मार्च को सैंपल देने से इनकार कर दिया था. इसी आरोप में उनको 23 अप्रैल को पहले निलंबित किया था. अब 4 साल का प्रतिबंध लगा दिया गया है. वहीं पुनिया का कहना है कि उन्होंने नाडा को सैंपल देने से कभी इनकार नहीं किया. नाडा डोप टेस्ट करने के लिए उनके घर एक्सपायरी किट (दिसंबर, 2023 में) लेकर आई थी.
दलित युवक को पीट-पीट कर मार डाला: दबंगों ने 30 साल के दलित नारद जाटव को रॉड्स और डंडों से इतनी बुरी तरह पीटा कि उसकी मौके पर ही सांसें उखड़ गईं. मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के इंदरगढ़ गांव की इस घटना का वायरल वीडियो दिल दहलाने वाला है. वीडियो में दिख रहा है कि नारद के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही है और वह बेजान पड़ा है, बावजूद इसके पिटाई करने वाले उसे बेखौफ डंडों और रॉड्स से मारे जा रहे हैं. पुलिस ने बुधवार को बताया कि नारद जाटव मंगलवार की शाम अपनी मामी विद्या जाटव के घर इंदरगढ़ आया था. उसके नाना और दो मामाओं का पहले ही निधन हो चुका है, इसलिए वह अकसर खेत में पानी देने के लिए आया करता था. जानकारी के अनुसार उसके मामा और गांव के सरपंच पदम धाकड़ ने संयुक्त रूप से एक बोरवेल लगवाया था. दोनों के बीच तय हुआ था कि नारद के मामा खेत के लिए पानी लेंगे और धाकड़ अपने होटल के लिए. लेकिन सरपंच के परिवार ने खेत से ही पाइप लाइन डाल दी और होटल तक पानी लेने लगे. विवाद इसी को लेकर हुआ. नारद ने पाइप उखाड़ दिया तो सरपंच समेत 8 लोगों ने नारद की ताबड़तोड़ पिटाई शुरू कर दी और उसे मारते ही रहे. पुलिस ने सरपंच पदम धाकड़ और उसके भाई मोहनपाल धाकड़, पुत्र अंकेश, जसवंत तथा दाखा बाई समेत 8 के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. बुधवार को मृतक के परिजनों के साथ स्थानीय लोगों ने एनएच 46 पर एक घंटा चक्काजाम किया. उनकी मांग थी कि पीड़ित परिवार को शस्त्र लाइसेंस, आर्थिक मदद और एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए. हत्या की वारदात सामने आने के बाद कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा पर तीखा हमला बोला है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्विटर यानी एक्स पर लिखा कि एक बार फिर साबित हो गया है कि मध्यप्रदेश में दलित सुरक्षित नहीं है. कोई दिन ऐसा नहीं जाता कि दलितों पर अत्याचार की घटना न होती हो. उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से दलितों और आदिवासियों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध करने की मांग की है.
आरक्षण के लिए धर्म परिवर्तन धोखा : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सिर्फ आरक्षण का लाभ लेने की खातिर बिना वास्तविक आस्था के धर्म परिवर्तन करना संविधान के साथ धोखा है. यह रवैया आरक्षण की नीति के मौलिक सामाजिक उद्देश्यों को कमजोर करेगा. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें ईसाई धर्म मानने वाली महिला सी सेल्वरानी को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया गया था. न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने यह फैसला सुनाया. महिला ने पुडुचेरी में अपर डिवीजन क्लर्क की नौकरी के लिए प्रमाण पत्र मांगते समय हिंदू होने का दावा किया था. अदालत से कहा था कि वह हिंदू धर्म को मानती है और वल्लुवन जाति की है. वह एक हिंदू पिता और एक ईसाई मां की बेटी थी. मां ने शादी के बाद हिंदू धर्म को अपनाना शुरू कर दिया था. उनके दादा-दादी और परदादा-परदादी वल्लुवन जाति के थे. उसने यह भी दावा किया कि विद्यार्थी जीवन में उन्हें अनुसूचित जाति का माना गया. स्थानांतरण प्रमाण पत्र में भी उनका संप्रदाय स्पष्ट है. उसके पिता और उसके भाई के पास अजा प्रमाण पत्र हैं और उनका बपतिस्मा जब हुआ था, तब वह महज दो महीने की थीं. वह निर्णय लेने की हालत में नहीं थीं. हालांकि तथ्यों को देखने वाली पीठ ने कहा कि ग्राम प्रशासनिक अधिकारी की ओर से विस्तृत जांच और प्रस्तुत दस्तावेजी साक्ष्य से पता चलता है कि उनके पिता अनुसूचित जाति के थे और मां ईसाई थीं. उनका विवाह ईसाई रीति-रिवाज से हुआ था और जो साक्ष्य पेश किया गया है, वो साफ तौर पर बताता है कि याचिकाकर्ता ईसाई धर्म का पालन करती है और नियमित तौर पर चर्च जाती है.
मेले से 5 करोड़ साल पुराना जीवाश्म चोरी: इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर (IITF) 2024 में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) के स्टॉल से पांच करोड़ साल पुराना ‘गैस्ट्रोपॉड जीवाश्म’ चोरी करने के आरोप में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है. आरोपी का नाम मनोज कुमार मिश्रा है. 49 साल का यह व्यक्ति नोएडा सेक्टर 22 में रहता है. गैस्ट्रोपॉड जीवाश्म’ एक प्राचीन घोंघे का संरक्षित अवशेष है.
राहुल ने टाला सम्भल दौरा : लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने फिलहाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले का दौरा टाल दिया है. सम्भल में मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा भड़क गई थी. सूत्र बताते हैं कि वह जल्द ही जिले का दौरा करेंगे.
सम्भल में हाल ही में हुई हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट की बात कहकर फिर से प्रशासन ने दंगा फैलाने के आरोप में 59 वर्षीय सोशल पॉलिटिकल एक्टिविस्ट जावेद मोहम्मद उर्फ पंप को पहले गिरफ्तार किया, लेकिन बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया. जावेद मोहम्मद की पूरी कहानी आप 'हरकारा' के 20 नवंबर के अंक में पढ़ सकते हैं.
करीमगंज जिले का नाम अब श्रीभूमि : असम की भाजपा सरकार ने करीमगंज जिले का नाम बदलकर श्रीभूमि रख दिया है. कांग्रेस ने इस फैसले की आलोचना की और भाजपा पर हिंदुत्व की राजनीति करने का आरोप लगाया है. वहीं मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य सरकार उन जगहों के नाम बदलती रहेगी, जिनका कोई शब्दकोष संदर्भ या ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है. 100 साल से भी पहले करीमगंज की यात्रा के दौरान नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने इस जगह को श्रीभूमि बताया था.
इजरायल और लेबनान के हिजबुल्लाह के बीच बुधवार को 60 दिनों के लिए संघर्ष विराम पर सहमति बनी. हालांकि क्षेत्र में संशय है कि संघर्ष विराम जारी रहेगा या नहीं. इसे इजरायल और हमास के बीच गाजा में करीब 14 महीने से चल रही लड़ाई को खत्म करने की दिशा में उठाया गया शुरुआती कदम माना जा रहा है. हालांकि युद्ध विराम में गाजा में चल रहे विनाशकारी युद्ध का कोई जिक्र नहीं है, जहां हमास ने अब भी दर्जनों बंधकों को पकड़ रखा है. संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय पैनल की निगरानी में दोनों सीमा क्षेत्र से पीछे हटेंगे.
विपक्ष का नारा ‘लोकतंत्र खतरे में है’ मतदाताओं को क्यों नहीं आ रहा रास
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रताप भानु मेहता लिखते हैं कि भारत और अमेरिका दोनों जगह विपक्ष के ‘लोकतंत्र खतरे में है’ या ‘संविधान खतरे में है’ जैसे चुनावी मुद्दे काम नहीं कर रहे हैं. इसकी वजह यह है कि चुनाव परिणाम हमेशा कई कारकों पर निर्भर होते हैं. इसमें मैक्रो नैरेटिव निर्माण से लेकर माइक्रो स्ट्रैटेजी मैनेजमेंट तक शामिल होता है. भारत के संदर्भ में ‘संविधान खतरे में है’ का उपयोग लोकतंत्र बचाने को लेकर नहीं, बल्कि आरक्षण बचाने के बारे में लगता है. वह कहते हैं कि ‘लोकतंत्र’ कोई चुनावी नारा नहीं है. इस तथ्य पर विचार करना चाहिए.
यहां कई संभावनाएं हैं. पहली, मतदाताओं को बताया जा रहा है कि लोकतंत्र खतरे में है. लेकिन मतदाताओं को भरोसा है कि लोकतंत्र के बारे में हमारी चिंताएं चाहे जो भी हों, मगर उसमें सैन्य शासन जैसे तानाशाही के शास्त्रीय गुण नहीं दिखाई देते हैं.
उदार लोकतंत्र के अन्य संवैधानिक तत्वों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जांच और संतुलन, प्रक्रियाओं के प्रति सम्मान इत्यादि जैसे अधिकारों को लेकर लोकतंत्र में सत्तावादियों की ओर से खतरे सबसे अधिक स्पष्ट है. फिर भी ये चिंताएं कम हो गई हैं. भारत में कांग्रेस या अमेरिका में डेमोक्रेट्स के लिए खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के एकमात्र चैंपियन के रूप में स्थापित करना कठिन है.
दक्षिणपंथी मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब रहे हैं कि यदि इन संवैधानिक अधिकारों पर मतभेद हैं, तो ये सिर्फ डिग्री का अंतर है, न कि प्रकार का. यह भी कि सामाजिक नियंत्रण के रूपों में जिसे आप ‘सांख्यिकीय निर्दोषता’ कह सकते हैं, उसके लिए जगह है. अब भी सामूहिक दमन नहीं है.
आधुनिक लोकतंत्र व्यक्तिगत अधिकारों जैसे संवैधानिक संरक्षणों पर निर्भर करता है, मगर प्रतिनिधित्व और एजेंसी का भी वादा करता है. पहला तत्व है- प्रतिनिधित्व का वादा. यह पहले से मौजूद जातीय या सामाजिक विभाजन के आधार पर सत्ता का विभाजन नहीं है, बल्कि किसी नेता या पार्टी के साथ पहचान बनाने की क्षमता है. वह अजीब केमिस्ट्री है. इससे कोई नेता ‘हमारा’ हो जाता है या सरकार ‘मेरी’ हो जाती है. लोकतंत्र में यह पहचान बनाई जाती है. ट्रम्प या मोदी जैसे चुनावी रूप से प्रभावशाली नेता इस पहचान को बनाते हैं.
दूसरा तत्व है- एजेंसी. कामयाब लोग मिल कर काम करते हैं. सामाजिक रूप से लोग बहुल होते हैं. हर समाज में सभी तरह के समूह होते हैं. लेकिन किसी उद्देश्य के लिए कार्य करने के लिए उनमें एकता होनी चाहिए. तथाकथित लोक-लुभावन सत्तावादी एजेंसी की इस भावना का वादा करते हैं. वे एजेंसी को सशक्त बनाने के नाम पर जांच और संतुलन को खत्म कर देते हैं.
वहीं यह भी आंशिक रूप से सच है कि सामाजिक विभाजन को केंद्रीय मानने वाली मध्यमार्गी और वामपंथी राजनीति विफल हो रही है. ऐसा नहीं है कि दक्षिणपंथी सामाजिक इंजीनियरिंग नहीं करते हैं. भाजपा जाति गठबंधन में माहिर रही है. लेकिन मध्यमार्गियों और वामपंथियों के विपरीत, इसने इस विचार को नहीं छोड़ा है कि भारत जातियों या क्षेत्रों के संग्रह से कहीं अधिक है. कांग्रेस को जाति जनगणना और डेमोक्रेट्स को जिस तरह की जाति पर राजनीति करते देखा गया, उसे विघटनकारी के रूप में देखा जा रहा है. इसे लोगों को शक्तिहीन करने, उनकी इच्छा को कई छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने के रूप में देखा जा रहा है.
दक्षिणपंथ लोकतंत्र की पहचान और एजेंसी के आयामों को अपने साथ लेकर चल रहा है. लेकिन इनमें सबसे बड़ा खतरा यह है कि इसमें विकास या राष्ट्रीय सत्ता जैसे दीर्घकालिक लक्ष्यों पर नहीं, बल्कि ‘स्पष्ट दुश्मनों’ को लक्ष्य बना कर एकजुट एजेंसी की भावना पैदा करना आसान होता है. वह ‘एकता’ कहां प्रकट होती है? भारत के मामले में, भाजपा ने निष्कर्ष निकाला है कि हिंदुत्व के ज़रिये एजेंसी को एकजुट किया जा सकता है. एजेंसी और पहचान की एकजुट भावना की शर्त मुसलमानों जैसे एक विशेष अल्पसंख्यक को हाशिये पर रखना है. इसके लिए लगातार राष्ट्र के दुश्मनों का आविष्कार करना पड़ सकता है, जिसे वह खत्म करने को तैयार हैं.
अमेरिका में, राजनीति ज्यादा जटिल है. लेकिन दोनों में जो बात समान है, वह यह कि एकता की राजनीति के लिए लगातार किसी लक्ष्य के खिलाफ प्रदर्शन की जरूरत होती है. भारत में इसका परिणाम खतरनाक रूप से सांप्रदायिक है, जैसा हम यूपी में देख रहे हैं. पूरा लेख यहां पढ़ें.
महाराष्ट्र चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के एनसीपी (शरद पवार) नेता सुप्रिया सुले और कांग्रेस के नाना पटोले पर न्यूज लाँड्री के अतुल चौरसिया की टिप्पणी मुख्यधारा कहे जाने वाले मीडिया चैनलों की कलई अच्छे से खोलती है.
एंजेला मर्केल का मेमॉयर: पुतिन ने कुत्ता छोड़कर, मेरी दहशत के मजे लिए!
एक जमाने में यूरापीय संघ की बॉस माने जाने वाली, पूर्व जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की नई किताब आ गई है, जिसका नाम है 'फ्रीडम: मेमोरीज़ 1954-2021'. किताब के मुताबिक मर्केल सबसे ज्यादा किसी नेता से प्रताड़ित रही, तो वो थे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन. अपनी किताब में मर्केल ने पुतिन को ऐसा व्यक्ति बताया है जो हमेशा सम्मान की मांग करता था और तैयार रहता था कि अगर उसका सम्मान नहीं हुआ, तो जवाबी कार्रवाई करेगा. उन्होंने पुतिन की 'बच्चों जैसी' और 'अवरोधक' प्रवृत्तियों पर भी इसमें टिप्पणी की है, मर्केल ने पुतिन के बारे में अपने मेमॉयर में लिखा है- 'मैं तब दंग रह गईं, जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2014 में क्रीमिया पर कब्ज़ा करने के बारे में उनसे झूठ बोला और इस बात से इनकार किया कि प्रायद्वीप पर हमला करने वाले और सरकारी इमारतों पर कब्ज़ा करने वाले तथाकथित छोटे हरे लोग रूसी सैनिक थे.' उन्होंने लिखा है, 'जब मैंने अगले दिन पुतिन से फोन पर बात की... तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया.' उन्होंने दावा किया कि यह पहली बार था जब पुतिन ने 'मुझसे झूठ बोला' और इससे बर्लिन और मॉस्को के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए और पुतिन के साथ उनके कई कार्यक्रम रद्द हुए.
मर्केल अपनी निजी जिंदगी को प्राइवेट रखने के लिए मशहूर रही हैं, लेकिन 1995 में कुत्तों के काटने के बाद उनका कुत्तों से डर जगजाहिर रहा है. असल में पुतिन ने साल 2006 में मर्केल के लिए एक तोहफा भेजा, लेकिन वह एक बड़ा कुत्ता था. फिर एक अन्य बैठक में पुतिन अपने लैब्राडोर को लेकर पहुंच गए. मर्केल लिखती हैं कि मैंने उस वक्त पुतिन के चेहरे के भावों को देखा, जो कि मेरे डर का मजा ले रहे थे.
पुतिन के बर्ताव से मर्केल 2015 में भी खफा हुई, जब उन्हें और अन्य तत्कालीन G8 नेताओं को जिनके साथ उन्हें एक आयोजन में शामिल होना था, 45 मिनट तक इंतजार करने के लिए कहा गया. मर्केल ने लिखा- 'हमने इंतजार किया और इंतजार किया और अगर कोई एक चीज है जिसे मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती, तो वह है देरी. वह ऐसा क्यों कर रहा था? वह किसे कुछ साबित करने की कोशिश कर रहा था? या क्या उसे कोई वास्तविक समस्या थी? मर्केल ने लिखा. "बाहर से मैं दूसरों के साथ आराम से बातें कर रही थी, लेकिन अंदर से मैं उबल रही थी. जब पुतिन आख़िरकार आये, तो उन्होंने बिना किसी खेद के कहा कि उन्होंने राडेबर्गर पी रखी थी. शिखर सम्मेलन से पहले उनके जर्मन मेजबानों द्वारा उनके अनुरोध पर बियर का एक टोकरा उन्हें तोहफे में मिला था.”
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में तो मर्केल की राय बेहद साफ है कि वो आदमी ठीक नहीं. डोनाल्ड ट्रम्प को मर्केल ने 'रियल एस्टेट डेवेलपर की मानसिकता' वाला बताया है. उन्होंने कहा कि ट्रम्प हर चीज को 'जीतने और हारने' के दृष्टिकोण से देखते हैं. उन्होंने लिखा है- ट्रम्प तानाशाहों और ताकतवर लोगों, खासकर व्लादिमीर पुतिन की ओर हमेशा मुग्ध होकर देखते हैं. इस किताब में और भी कई अन्य मसलों और राजनेताओं के लेकर एंजेला मर्केल ने लिखा है. भारत के प्रधानमंत्री के बारे में मर्केल की क्या राय रही, इसके बारे में अभी कुछ पता नहीं चल पाया है.
एंजेला मर्केल ने बीबीसी को बताया है कि उन्होंने रूस के साथ जो गैस सौदे किए थे, उनका उद्देश्य जर्मन कंपनियों की मदद करना और मॉस्को के साथ शांति बनाए रखना था. क्या वह मॉस्को को लेकर बहुत नरम थी? कीव की मदद करने में बहुत धीमे? यदि उसने 2008 में यूक्रेन की नाटो सदस्यता को अवरुद्ध नहीं किया होता, तो क्या अब वहां युद्ध होता? बर्लिन में बीबीसी से बात करते हुए मर्केल ने कहा कि उनका मानना है कि अगर कीव ने 2008 में नाटो सदस्यता की राह शुरू की होती तो यूक्रेन में युद्ध पहले ही शुरू हो गया होता और संभवतः इससे भी बदतर होता. उन्होंने कहा- 'हमने सैन्य संघर्ष पहले भी देखा होगा. मेरे लिए यह पूरी तरह से स्पष्ट था कि राष्ट्रपति पुतिन चुपचाप खड़े होकर यूक्रेन को नाटो में शामिल होते नहीं देखते. एंजेला मर्केल ने 16 वर्षों तक जर्मनी का नेतृत्व किया. वह वित्तीय संकट, 2015 के प्रवासी संकट और, महत्वपूर्ण रूप से रूस के 2014 में यूक्रेन पर आक्रमण के दौरान पद पर थीं.
मिलिए प्रदीप दास से, जो फुटबॉल सुनते ही नहीं, गुणते भी हैं
प्रदीप दास. पश्चिम बंगाल कलकत्ता के उत्साही फुटबॉल प्रशंसक. मगर वे जन्म से ही दृष्टिहीन हैं. इसलिए उन्होंने वर्षों से फुटबॉल ‘सुनने’ का रियाज किया. कमाल यह है कि वह न सिर्फ मैदान पर और उसके बाहर की आवाजों को सुनकर फुटबॉल का अनुसरण करते हैं, बल्कि वंचित बच्चों के लिए एक फुटबॉल कोचिंग सेंटर भी चलाते हैं. वह दो टीमों अर्जेंटीना और ईस्ट बंगाल के प्रशंसक हैं. . 55 साल के हो चुके दास ईस्ट बंगाल के सभी मैचों में शामिल होते हैं. वह 1997 से ही कमेंट्री सुन रहे हैं. मगर इससे पहले करीब 8 साल तक उन्होंने खुद को कमरे में कैद कर रखा था. फिर एक दिन वे बाहर निकले और संयोग से पहुंच गए ईस्ट बंगाल के मैदान पर. साल 1997 था. फिर उनकी जिंदगी बदल गई. टेलीग्राफ ऑनलाइन ने उनसे ईस्ट बंगाल के एक मैच के दौरान मुलाकात की. ये है उनकी प्रेरक कहानी. देखें वीडियो
चलते-चलते: नोबेल लॉरेट का छौंक
छौंक किताब नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी की है. इसका चित्रांकन शायान ओलिविये ने किया है. इस पर ‘द टेलीग्राफ’ के लिए पारोमिता सेन ने स्टोरी की है. ‘छौंक’ में व्यंजन विधियां तो हैं, मगर यह सामान्य रेसिपी बुक नहीं है. यह खाने के बारे में है. खाने के पीछे की कहानियों के बारे में है. अर्थशास्त्र के बारे में है. सिर्फ अर्थशास्त्र के बारे में भी नहीं है. समाजशास्त्र के बारे में भी है. यह पाठक को सिर्फ जुबान का ‘जायका’ नहीं चखाता, बल्कि सोचने के लिए भी ‘स्वाद’ देता है. किताब का नाम फिर ‘छौंक’ क्यों? बनर्जी कहते हैं, ‘मुझे लगा कि यह ठीक रहेगा. यह छोटा, तीखा और चटपटा है.’ छौंक का हिंदी में अर्थ तड़का लगाने से है. ‘छौंक’ में लेख व्यंजन के साथ कई चीजों पर टिप्पणी करते भी चलती है. जैसे- भारत में कार्यबल में महिलाओं की सबसे कम भागीदारी पर. देश में अकेले रहने वाले बुज़ुर्गों की संख्या पर, जो सन 2000 से 2010 के बीच दोगुनी हो गई है. उपहार देने के मुद्दे पर. एक साल में भारतीयों के बिस्किट पर करीब एक बिलियन डॉलर (84.4 अरब रुपये) खर्च करने पर. इसमें मार्क्स की पूंजीवाद की अवधारणा जैसे बड़े विचारों और खिचड़ी की ही रिश्तेदार मिस्र के कोशारी पर भी बात है. इसमें भारतीय-चीनी व्यंजन पर, चीन के रमजान पर और साझा भोजन के अटूट बंधन पर भी मजेदार टिप्पणियां है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.