28/01/2025: लिंचिंग थोड़ी घटी, पर दंगे 84% बढ़े! मुस्लिम मुख्य निशाने पर, ऑशविट्ज़ के 80 साल, वक़्फ़ पर विपक्षी दलों के सारे सुझाव खारिज, नीतीश की बिसात पर बेटा उतरेगा? अरुणा रॉय का निजी और राजनीतिक..
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आज की सुर्खियां | 28 जनवरी 2025
सांप्रदायिकता पर रिपोर्ट : सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्यूलरिज्म (सीएसएसएस) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2024 में कुल 59 सांप्रदायिक दंगे हुए. यानी 2023 के मुकाबले 84% की वृद्धि दर्ज की गई. 2023 में 32 सांप्रदायिक घटनाएं दर्ज की गई थीं. रिपोर्ट के मुताबिक -
2024 में भारत में 59 सांप्रदायिक दंगे हुए, जो 2023 में 32 घटनाओं की तुलना में 84% की वृद्धि है.
सबसे अधिक सांप्रदायिक दंगे महाराष्ट्र में हुए - कुल 59 में से 12.
उत्तर प्रदेश और बिहार में 7-7 दंगे हुए.
मृत्यु और पीड़ित : दंगों में 13 लोगों की मौत हुई, जिनमें 10 मुस्लिम और 3 हिंदू थे.
दंगों के कारण : 2024 में सांप्रदायिक दंगों में वृद्धि का एक कारण अप्रैल/मई 2024 में हुए आम चुनाव हो सकते हैं.
अधिकांश दंगे (59 में से 26) धार्मिक त्योहारों या जुलूसों के दौरान हुए.
जनवरी 2024 में अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के दौरान 4 दंगे हुए. सरस्वती पूजा के मूर्ति विसर्जन के दौरान 7, गणेश उत्सव के दौरान 4 और बकरीद के दौरान 2 दंगे हुए.
विवादित पूजा स्थल : 6 घटनाएं विवादित पूजा स्थलों से संबंधित थीं, जिनमें हिंदुत्ववादी समूहों ने दावा किया कि मस्जिदें और दरगाहें अवैध हैं या हिंदू धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई हैं.
वर्तमान में, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और जौनपुर में अटाला मस्जिद सहित 10 मस्जिदों और मंदिरों से संबंधित कम से कम 18 मुकदमे अदालतों में लंबित हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हाल के वर्षों में सरकार ने सांप्रदायिक दंगों के मामलों में "मुस्लिम समुदाय को असंगत रूप से लक्षित" किया है.
इसमें मुसलमानों के स्वामित्व वाली संपत्तियों को बुलडोजर से ध्वस्त करना शामिल है, जिससे आर्थिक नुकसान हुआ है.
राज्य ने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों पर मामले दर्ज किए हैं, भले ही वे सांप्रदायिक दंगों के दौरान हिंसा के शिकार हुए हों.
2024 में मॉब लिंचिंग की 13 घटनाएं हुईं, जिनमें 11 मौतें हुईं (1 हिंदू, 1 ईसाई और 9 मुस्लिम). 2023 में 21 घटनाओं की तुलना में यह एक गिरावट है, लेकिन इस तरह के हमले अब भी गंभीर चिंता का विषय हैं. मॉब लिंचिंग के 7 मामले गोहत्या या गो-तस्करी के आरोपों से संबंधित थे.
बाकी मामले अंतरधार्मिक संबंधों के आरोपों और मुसलमानों को उनकी धार्मिक पहचान के लिए लक्षित करने से संबंधित थे.
वक़्फ़ बिल : भाजपा के सभी 14 संशोधन स्वीकार, विपक्ष का एक नहीं
वक़्फ़ विधेयक का परीक्षण कर रही संयुक्त संसदीय समिति ने सोमवार को अपनी बैठक में भाजपा सांसदों द्वारा दिए गए सभी संशोधनों को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन विपक्षी सदस्यों के सभी संशोधन अस्वीकार कर दिए गए. विपक्ष के सांसदों ने वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक के सभी 44 खंडों में संशोधन प्रस्तावित कर मौजूदा कानून के प्रावधानों को ही बहाल करने की मांग की, लेकिन उनका एक भी संशोधन नहीं माना गया. विपक्ष के सांसदों का दावा है कि अपनी रिपोर्ट में संयुक्त संसदीय समिति द्वारा प्रस्तावित कानून, विधेयक के क्रूर चरित्र को बरकरार रखेगा और मुसलमानों के धार्मिक मामलों में दखल देने का प्रयास भी करेगा. संसद का बजट सत्र 31 जनवरी से शुरू हो रहा है. आगामी बुधवार 29 जनवरी को समिति की रिपोर्ट संसद में पेश करने के लिए तैयार हो जाएगी.
कैलाश और हवाई यात्राओं का रास्ता खुला : भारत और चीन ने सोमवार को 2020 से बंद पड़ी कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने का फैसला किया है. यह निर्णय विदेश सचिव विक्रम मिसरी और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बैठक में लिया गया. विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, "प्रासंगिक तंत्र मौजूदा समझौतों के अनुसार ऐसा करने के तौर-तरीकों पर चर्चा करेगा. वे सीमा पार नदियों से संबंधित जल विज्ञान संबंधी डेटा और अन्य सहयोग के प्रावधान को फिर से शुरू करने पर चर्चा करने के लिए भारत-चीन विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र की जल्द बैठक आयोजित करने पर भी सहमत हुए." दोनों पक्ष सैद्धांतिक रूप से सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने पर भी सहमत हुए. भारत और चीन लोगों के बीच संपर्क, खासकर मीडिया और थिंक टैंक के बीच, को बढ़ावा देने और सुविधाजनक बनाने पर भी सहमत हुए. विक्रम मिसरी भारत और चीन के बीच विदेश सचिव-उप मंत्री तंत्र की बैठक के लिए दो दिवसीय यात्रा पर बीजिंग में हैं.
मनरेगा वेतन भुगतान के लिए 4,315 करोड़ रुपये कम : ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास मनरेगा मजदूरी का भुगतान करने के लिए 4,315 करोड़ रुपये कम हैं, जिसके लिए फंड ट्रांसफर आदेश पहले ही जारी किए जा चुके हैं. इस बीच, योजना के आवंटन में कोई वृद्धि नहीं देखी गई है, जैसा कि शोभना के नायर ने सूत्रों के हवाले से बताया है. इसके अलावा, योजना के सामग्री घटकों के लिए 5,715 करोड़ रुपये का भुगतान भी बाकी है - जिसे मंत्रालय और राज्य सरकारें 60:40 के अनुपात में साझा करती हैं. नायर ने बताया कि सामग्री घटकों के पैसे के वितरण में लंबे समय तक देरी के कारण विक्रेता कच्चे माल की आपूर्ति करने में हिचकिचाते हैं और बदले में योजना के तहत काम का चक्र टूट जाता है.
रिपब्लिक डे के दिन अमृतसर में अंबेडकर की प्रतिमा तोड़ी गई, सीएम सख़्त : रिपब्लिक डे के दिन अमृतसर में अराजक तत्वों ने अंबेडकर की प्रतिमा के साथ तोड़फोड़ की थी. इस पर सोमवार को मुख्यमंत्री भागवंत मान ने एक्स पर कहा कि इस घटना के लिए किसी भी दोषी को माफ नहीं किया जाएगा. उन्हें गंभीर सजा दी जाएगी. शिरोमनी अकाली दल (एसएडी) नेता सुखबीर सिंह बादल ने भी इस की निंदा की है. पंजाब पुलिस ने रविवार को जानकारी दी थी कि इस सिलसिले में कुछ बदमाशों को गिरफ्तार किया है.
बिना आवेदन के मंदिर को एफसीआरए लाइसेंस : पिछले शुक्रवार को वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर को विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के तहत पंजीकरण प्रदान किया गया था, लेकिन इसके पुजारियों ने एफसीआरए लाइसेंस के लिए कभी आवेदन करने से इनकार किया. एक पुजारी ने बताया कि उनका मंदिर एक सिविल जज द्वारा गठित एक समिति द्वारा चलाया जाता है, जबकि मंदिर के पुजारी समिति में शामिल हैं, उन्होंने एफसीआरए लाइसेंस नहीं मांगा. उन्होंने यह भी कहा कि मंदिर के तीन मुख्य फंडिंग स्रोत हैं: आगंतुकों द्वारा पुजारियों को सीधे दान, मंदिर के दान बॉक्स में जमा किया गया पैसा, और चेक और डिजिटल भुगतान के माध्यम से जारी किया गया पैसा. एक अन्य पुजारी ने आरोप लगाया कि एफसीआरए की मंजूरी एक साजिश का नतीजा है:
"उन्होंने हमसे कभी नहीं पूछा कि हमें एफसीआरए चाहिए या नहीं. एक दिन, इस खाते में कुछ अनियमित अवैध जमा होगा और सरकार हमें इसके लिए जवाबदेह ठहराएगी. यह मंदिर को बदनाम करने का एक जाल है."
यूजीसी के प्रस्तावित नियमों की निंदा : तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र के प्रस्तावित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों की निंदा करते हुए उन्हें संविधान और संघवाद पर हमला बताया. रेड्डी ने मोदी सरकार पर विश्वविद्यालयों पर से राज्य के नियंत्रण को छीनने की साजिश रचने का आरोप लगाया, ताकि उन्हें कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा "झूठे प्रचार" के मंच में बदला जा सके और उन्होंने आरोप लगाया कि यूजीसी के लिए नए नियम पेश करने के प्रस्ताव के पीछे एक साजिश थी. तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने इस मामले पर तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के अपने समकक्षों के साथ "समन्वय" किया है और जल्द ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के साथ भी इस विषय पर चर्चा करने का प्रयास करेंगे.
एससी/एसटी उम्मीदवारों से 'प्रोसेसिंग फीस' : बाबासाहेब अम्बेडकर नेशनल एसोसिएशन ऑफ इंजीनियर्स (बीएएनएई) ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) से प्रशिक्षु इंजीनियरों और पर्यवेक्षकों के लिए भर्ती अभियान के लिए एससी और एसटी उम्मीदवारों पर लगाए गए 472 रुपये के 'प्रोसेसिंग शुल्क' को वापस लेने के लिए कहा है. द मूकनायक के मुताबिक बीएएनएई ने कहा कि केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के 1985 के एक कार्यालय ज्ञापन में एससी और एसटी उम्मीदवारों को भर्ती परीक्षा या चयन प्रक्रियाओं के लिए शुल्क का भुगतान करने से छूट दी गई है. गीता सुनील पिल्लई ने बताया कि जहां भेल की भर्ती अधिसूचना में एससी और एसटी उम्मीदवारों से परीक्षा शुल्क के रूप में 0 रुपये लिए जाते हैं, वहीं वे 472 रुपये का प्रोसेसिंग शुल्क लेते हैं. एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि यह शुल्क छूट नियम को दरकिनार करने का प्रयास है.
गिरफ्तारी के कारण नौकरी छूटी, रिश्ता टूटा : सैफ़ अली खान पर हमले वाले मामले में पहले आकाश कनोजिया को छत्तीसगढ़ से हिरासत में लिया गया था, लेकिन शहजाद को गिरफ्तार किए जाने पर रिहा कर दिया गया था. पीटीआई के मुताबिक कनोजिया ने अब कहा कि गिरफ्तारी के कारण उसकी नौकरी चली गई और उसकी शादी टूट गई.
सिद्धारमैया की पत्नी को ईडी के नोटिस पर रोक : प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती और राज्य के शहरी विकास मंत्री बी. सुरेश को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) जमीन घोटाला मामले में पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया था. लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार 27 जनवरी की शाम ईडी के नोटिस पर रोक लगा दी. ईडी के नोटिस के मुताबिक पार्वती को मंगलवार 28 जनवरी को बेंगलुरु कार्यालय में पूछताछ के लिए उपस्थित होना था. याद रहे कि ईडी ने 17 जनवरी को सिद्धारमैया सहित अन्य लोगों की करीब 300 करोड़ रुपए कीमत की संपत्तियां अटैच की थीं. ये नोटिस कथित मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अनियमितताओं की जांच के चलते दिए गए थे.
अमेरिका में 956 गिरफ्तार, गुरुद्वारों की जांच : रविवार को अमेरिकी इमिग्रेशन एंड कस्टम इंफोर्समेंट (आईसीई) के अधिकारियों ने 956 अवैध अप्रवासियों को गिरफ्तार भी किया. इन सभी को उनके देश भेजने की तैयारी की जा रही है. अमेरिका के होम लैंड सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने अवैध अप्रवासियों का पता लगाने के लिए रविवार को न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी के गुरुद्वारों की जांच की. यद्यपि कुछ सिख संगठनों ने अमेरिकी प्रशासन की इस कार्रवाई को धर्म की पवित्रता के लिए खतरा बताया है.
हरियाणा में आयुष्मान भारत योजना सेवाएं 600 निजी अस्पतालों में निलंबित : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की हरियाणा इकाई ने घोषणा की है कि राज्य के 600 निजी अस्पताल 3 फरवरी से आयुष्मान भारत योजना के तहत चिक्त्सिा सेवाएं नहीं दे पाएंगे. यह निर्णय ₹400 करोड़ के लंबित बिलों के भुगतान के कारण लिया गया है. आईएमए हरियाणा ने लंबे समय से लंबित रिइम्बर्समेंट को लेकर सरकार पर दबाव बनाया था. आईएमए के अनुसार, जब तक भुगतान की प्रक्रिया सामान्य नहीं होती, सेवाएं निलंबित रहेंगी.
केंद्र बंद होने पर फिट्जी की सफाई, बताया अस्थायी : उत्तर भारत में जेईई कोचिंग फिट्जी केंद्रों के बंद होने के विवादों के बीच संस्थान प्रमुख ने कहा है कि उसने किसी भी केंद्र को बंद नहीं किया है. शनिवार को जारी बयान में संस्थान ने वर्तमान स्थिति को ‘अस्थायी’ बताया और जोर देकर कहा कि यह संस्थान का निर्णय नहीं था. यह पूरी कहानी ‘निहित स्वार्थ वालों’ ने रची है. सच जल्द ही सामने आएगा. सैकड़ों शिक्षकों ने फिट्जी पर आरोप लगाया था कि वह वेतन देने में कटौती और देरी कर रहा है.
विधायक के दरवाज़े पर बंदूक लेकर पहुंचा, गिरफ्तार : उत्तराखंड के खानपुर के विधायक उमेश कुमार से विवाद के बाद पूर्व विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन और चार अन्य को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. चैम्पियन की पत्नी रानी देवयानी ने भी खानपुर के मौजूदा विधायक उमेश कुमार एवं अन्य लोगों के खिलाफ सिविल लाइन कोतवाली रुड़की में मुकदमा दर्ज कराया है. इसके अनुसार, शनिवार की देर शाम विधायक उमेश कुमार अपने लोगों के साथ उनके आवास पर आए और फायरिंग की. इसके बाद उनके आवास का गेट तोड़ने का भी प्रयास किया. दरअसल, मामला खानपुर विधायक उमेश शर्मा के ऑफिस पर फायरिंग का है. ये फायरिंग पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने गणतंत्र दिवस के दिन की है. इसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. उमेश कुमार के दफ्तर के बाहर कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन एक वीडियों में गाली गलौच करते और बंदूक में फायर लोड करते हुए भी नजर आ रहे हैं.
आयकर सुधार और एमएसएमई क्षेत्र को समर्थन संभावित : आगामी बजट में भारत सरकार का फोकस आर्थिक सुस्ती को ध्यान में रखते हुए आयकर सुधार और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को समर्थन देने पर हो सकता है. वैश्विक और घरेलू आर्थिक सुस्ती के कारण बजट में वित्तीय नीतियों को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया जा सकता है. सरकार का फोकस निवेश बढ़ाने, रोजगार सृजन और घरेलू मांग को मजबूत करने पर होगा. 'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि एमएसएमई क्षेत्र को समर्थन देना सरकार की प्राथमिकता होगी, क्योंकि यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करता है और भारत के श्रम-प्रधान निर्यात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हालांकि फिलहाल, इस सेक्टर की हालत भी खराब ही है. एमएसएमई सेक्टर भारत के औद्योगिक उत्पादन और रोजगार सृजन का प्रमुख हिस्सा है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि आयकर ढांचे में सुधार के लिए कुछ नई घोषणाएं हो सकती हैं. इसके अलावा व्यक्तिगत करदाताओं और छोटे व्यवसायों को राहत देने के लिए कर स्लैब में बदलाव की उम्मीद भी है. टैक्स प्रक्रियाओं को और सरल बनाने पर जोर दिया जा सकता है.
बुमराह ‘पुरुष टेस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर : सोमवार को भारतीय टीम के स्टार गेंदबाज जसप्रीत बुमराह को 2024 का सर्वश्रेष्ठ टेस्ट क्रिकेटर चुना गया. इसके लिए उन्हें इंग्लैंड के बल्लेबाज जो रूट, हैरी ब्रूक और श्रीलंका के कामिंदु मेंडिस के साथ नामित किया गया था. उन्होंने इन सभी को पछाड़कर पुरस्कार जीता. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सलामी बल्लेबाज स्मृति मंधाना को साल 2024 की ‘सर्वश्रेष्ठ महिला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर’ चुना.
पिता को दफनाने की फरियाद पर सुप्रीम कोर्ट का बंटा हुआ फैसला : सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने सोमवार को छत्तीसगढ़ के एक ईसाई व्यक्ति रमेश बघेल की याचिका पर बंटा हुआ फैसला दिया. बघेल के पिता ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे. बघेल पिता को ईसाई रीति-रिवाज से गांव में ही दफनाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट गए थे. पीठ की एक सदस्य जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बघेल को अपने पिता को परिवार की निजी भूमि में दफनाने के लिए कहा तो जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि उन्हें गांव से 20 किमी दूर करकपाल में स्थित ईसाई कब्रिस्तान में जाना चाहिए. हालांकि बंटे फैसलों के बावजूद जस्टिस नागरत्ना और शर्मा ने निर्देश दिया कि बघेल को करकपाल गांव कब्रिस्तान में दफनाया जाए, क्योंकि याचिकाकर्ता के पिता का शव लगभग तीन सप्ताह से मुर्दाघर में है. इसके अतिरिक्त, पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार को दफनाने के लिए सहायता और सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया. इसके लिए अफसोस भी जाहिर किया कि उन्हें अपने पिता को दफनाने के लिए अदालत आना पड़ा. बघेल के पिता पादरी, जो महार जाति में पैदा हुए थे कि लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई. उनके बेटे रमेश बघेल गाँव के कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में पिता को दफनाना चाहते थे. स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के कारण उन्हें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा. हाईकोर्ट ने कहा कि गाँव में दफनाने से 'अशांति' और 'असहमति' हो सकती है. इसलिए बघेल को कहा कि वह अपने पिता को निकटतम कब्रिस्तान (करकपाल में) में दफनाएं. बघेल ने तब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर गांव के कब्रिस्तान में ही दफनाने की अनुमति देने को कहा. उन्होंने कहा कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी गाँव के कब्रिस्तान में ही दफनाया गया है.
क्या नीतीश कुमार के बेटे राजनीति में कदम रखने जा रहे हैं? जेडीयू नेताओं ने दिए संकेत, कहा- 'होली के बाद संभव है'
'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने की चर्चा तेज हो गई है. जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि वह पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार दिख रहे हैं और इस पर अंतिम फैसला नीतीश कुमार को लेना है. निशांत कुमार, जो आमतौर पर सार्वजनिक जीवन से दूर रहते हैं, इस महीने की शुरुआत में एक दुर्लभ सार्वजनिक उपस्थिति में देखे गए. इसके बाद जेडीयू के नेताओं ने उनके राजनीति में आने के संकेत दिए. जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "वह तैयार दिख रहे हैं. अब केवल उनके पिता नीतीश कुमार की अंतिम स्वीकृति का इंतजार है." निशांत कुमार एक इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं और अब तक राजनीति से दूर रहे हैं. पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा- "होली के बाद वह औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल हो सकते हैं. पार्टी को उनकी युवा दृष्टि और नेतृत्व की जरूरत है." एक अन्य जेडीयू नेता ने संकेत दिया कि अगर निशांत सक्रिय राजनीति में आते हैं, तो इससे पार्टी में नई ऊर्जा का संचार होगा. हालांकि, नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर अब तक कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है. कई लोगों का मानना है कि यह जेडीयू में एक नई पीढ़ी को सामने लाने का संकेत है.
क्या वारंट के बाद भी नेतन्याहू को यूरोप में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा?
नेतन्याहू के खिलाफ आईसीसी का वारंट, पोलैंड का उन्हें सुरक्षित यात्रा की अनुमति देना ‘गंभीर गलती’ हो सकती है
'द इंटरसेप्ट' के लिए आर्थर नेसलन की रिपोर्ट है कि इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, जिन पर अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) ने युद्ध अपराधों के आरोप लगाए हैं, उन्हें पोलैंड द्वारा सुरक्षित यात्रा की अनुमति देने का वादा यूरोपीय संघ (यूरोपीय यूनियन) के प्रति आईसीसी की प्रतिबद्धता का मजाक बना सकता है. यह बात यूरोपीय संघ के पूर्व विदेश मामलों के प्रमुख जोसेप बोरेल ने कही है. नेतन्याहू पर आरोप हैं कि उन्होंने गाजा में 16 महीने के युद्ध के दौरान युद्ध अपराध किए, जिनमें भूख को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना, नागरिकों पर जानबूझकर हमले करना, हत्या, और उत्पीड़न शामिल हैं. उनके पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलंट पर भी यही आरोप हैं. आईसीसी के सदस्य देश के रूप में, पोलैंड पर नेतन्याहू को गिरफ्तार करने की कानूनी जिम्मेदारी है. इसके बावजूद पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने नेतन्याहू को 27 जनवरी को होने वाले ऑशविट्ज़ होलोकॉस्ट मेमोरियल सर्विस में भाग लेने के लिए सुरक्षित यात्रा की अनुमति दी है. नेतन्याहू पर गाजा में हुए खून-खराबे और मानवाधिकारों के हनन के लिए हेग स्थित आईसीसी में नरसंहार के आरोप लगे हैं. अगर पोलैंड उन्हें अनुमति देता है, तो यह आईसीसी की वैधता को नुकसान पहुंचा सकता है. दूसरी ओर, अगर नेतन्याहू पोलैंड की यात्रा नहीं करते हैं, तो यह दर्शाएगा कि वह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर "अवांछित व्यक्ति" बन गए हैं.
जोसेप बोरेल ने इस फैसले को यूरोपीय यूनियन की प्रतिबद्धता के खिलाफ बताते हुए कहा कि अगर पोलैंड नेतन्याहू जैसे आईसीसी के वांछित व्यक्ति का स्वागत करता है, तो यह अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रति सम्मान को कमजोर करेगा. उन्होंने चेतावनी दी कि यह कदम यूरोपीय यूनियन की संधि प्रतिबद्धताओं को भी नुकसान पहुंचा सकता है. यूरोपीय यूनियन के मध्यपूर्व शांति दूत स्वेन कूपमन्स ने बिना नाम लिए पोलैंड के कदम की आलोचना करते हुए कहा- "यूरोपीय यूनियन और इसके सभी 27 सदस्य राज्य आईसीसी का समर्थन करते हैं. इसका उल्लंघन एक खतरनाक उदाहरण पेश करेगा."
नेतन्याहू की यात्रा को लेकर अभी तक अनिश्चितता बनी हुई है. रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके स्थान पर इज़राइल के शिक्षा मंत्री योआव किश ऑशविट्ज़ सेवा में शामिल हो सकते हैं. पोलैंड में इस कदम का व्यापक विरोध हो रहा है. वकीलों ने चेतावनी दी है कि अगर नेतन्याहू पोलैंड आते हैं, तो "तत्काल और सख्त कानूनी कार्रवाई" की जाएगी.
इधर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने आईसीसी के खिलाफ पहले से ही आक्रामक रुख अपनाया हुआ है. ट्रम्प ने आईसीसी को बंद करने की पहले भी कोशिश की है. अगर पोलैंड नेतन्याहू को सुरक्षित यात्रा की अनुमति देता है, तो यह आईसीसी के प्रति वैश्विक विश्वास को और कमजोर कर सकता है.
सोशल नेटवर्किंग, शॉपिंग और एंटरटेनमेंट
अमरीकी बाज़ार को निगल रहे चीनी सोशल मीडिया ऐप्स
सिल्क रूट और बंदरगाहों के विस्तार के जरिए ही नहीं, बल्कि तकनीक के जरिए बाजार कब्जाने के मामले में भी चीनियों ने दुनिया को दिखा दिया है कि कैसे एक कदम आगे बढ़कर टेक के जरिए मार्केट का पूरा खेल ही बदला जा सकता है. चीनी सोशल मीडिया ऐप्स अपने एल्गोरिदम के जरिए सोशल नेटवर्किंग, शॉपिंग और एंटरटेनमेंट को एक साथ जोड़ते हैं, जिससे उपयोगकर्ता घंटों तक इनसे जुड़े रहते हैं. 'रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड' की खबर है कि चीनी ऐप्स ने सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स का ऐसा संयोजन बनाया है जिसे "शॉपर्टेनमेंट" कहा जाता है. ये प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ताओं को न केवल मनोरंजन और नेटवर्किंग का अनुभव देते हैं, बल्कि खरीदारी के अवसर भी प्रदान करते हैं. इसे इंडस्ट्री में "शॉपर्टेनमेंट" कहा जाता है.
मसलन शियाओहोंगशू (रेड) को शॉपिंग गाइड के रूप में शुरू किया गया था और अब यह चीन का सबसे लोकप्रिय लाइफस्टाइल सोशल नेटवर्क बन गया है. ऐसे ही डौयिन (टिकटॉक का चीनी संस्करण) ने अकेले साल 2023 में ₹23 लाख करोड़ ($2 बिलियन) का बाजार निगल लिया.
अमरीका में 19 जनवरी की टिकटॉक बैन की समय सीमा से पहले ही अमेरिकी उपयोगकर्ता विकल्प खोजने में जुट गए थे. हालांकि यूट्यूब, इंस्टाग्राम या एक्स (पूर्व में ट्विटर) के बजाय, उपयोगकर्ता शियाओहोंगशू और लेमन 8 (Lemon8) जैसे चीनी ऐप्स की ओर आकर्षित हुए. ये ऐप टिकटॉक के समान सिफारिशी एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं. टिकटॉक की दीवानगी का अंदेशा आप इसी से लगा सकते हैं कि एक अमेरिकी उपयोगकर्ता ने कहा- 'टिकटॉक एक समुदाय जैसा लगता है, जहां लोग आपकी बातों को सुनते हैं, न कि आपके रूप या पृष्ठभूमि पर ध्यान देते हैं.'
टिकटॉक के 170 मिलियन अमेरिकी उपयोगकर्ताओं ने इन ऐप्स में वह विशेषताएं पाईं, जो टिकटॉक को इतना लोकप्रिय बनाती हैं. शियाओहोंगशू, जिसे चीन में "रेड" के नाम से जाना जाता है, जल्दी ही अमेरिका के एप्पल ऐप स्टोर पर सबसे अधिक डाउनलोड किया जाने वाला ऐप बन गया, इसके बाद लेमन 8 का नंबर आया. हालांकि, अमरीका बाजार की इस रेस की दिशा को अपने पक्ष में बदलने को बेताब नजर आ रहा है. असल में अमेरिका में टिकटॉक को 19 जनवरी तक बाइटडांस से अलग करने का निर्देश दिया गया था, अन्यथा इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंधित किया जाना था. हालांकि ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दूसरे दिन इस कानून के लागू होने में 75 दिनों की देरी का आदेश दिया. ट्रम्प ने कहा कि वह चाहते हैं कि अमेरिका टिकटॉक के जॉइंट वेंचर में 50% हिस्सेदारी रखे.
कैसे काम करता है यह मॉडल? ये ऐप्स उपयोगकर्ताओं की पसंद और आदतों को समझते हैं और उनसे मेल खाती सामग्री दिखाते हैं. उपयोगकर्ताओं को लगातार नई चीजों और उत्पादों से जोड़े रखते हैं. ऐप्स पर शॉपिंग इन्फ्लुएंसर्स लाइव स्ट्रीम के जरिए उत्पाद बेचते हैं.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ:
YPulse की मुख्य सामग्री अधिकारी मैरीले ब्लिस के अनुसार, टिकटॉक ने "सामग्री को लोकतांत्रिक" किया, जो इसे अन्य ऐप्स से अलग बनाता है.
हांगकांग की चीनी यूनिवर्सिटी के उपभोक्ता अनुसंधान केंद्र की निदेशक मैंडी हू ने कहा- 'टिकटॉक का एल्गोरिदम इतना प्रभावशाली है कि यह न केवल एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बना, बल्कि एक शक्तिशाली ई-कॉमर्स मॉडल भी तैयार किया'.
टेक जर्नलिस्ट रयान ब्रोडरिक का कहना है कि चीनी प्लेटफॉर्म ई-कॉमर्स से प्रभावित हैं, जबकि अमेरिकी प्लेटफॉर्म पारंपरिक टीवी और समाचार उद्योगों के विस्तार के रूप में विकसित हुए हैं. वे पूरी तरह से अलग खेल खेल रहे हैं.
टिकटॉक का भविष्य और चीनी ऐप्स पर खतरा : अमेरिका में टिकटॉक पर संभावित बैन अन्य चीनी प्लेटफॉर्म जैसे लेमन8 और शियाओहोंगशू को भी प्रभावित कर सकता है. जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर मिल्टन म्यूलर का मानना है कि टिकटॉक बैन का तर्क एक 'स्लिपरी स्लोप' की ओर इशारा करता है, जिससे अन्य चीनी वेबसाइट्स और प्लेटफॉर्म भी प्रभावित हो सकते हैं. यह अमेरिका में 'ग्रेट फायरवॉल' जैसा प्रभाव डाल सकता है.
चीनी ऐप्स की बढ़त का कारण : चीन में सरकार ई-कॉमर्स को आर्थिक विकास का एक प्रमुख इंजन मानती है और इसे प्रोत्साहित करती है. इसके विपरीत पश्चिम में सोशल मीडिया कंपनियां "एल्गोरिदम की नशे की लत डिजाइन" या हानिकारक सामग्री दिखाने के लिए ज्यादा निगरानी का सामना करती हैं.
पश्चिमी ऐप्स क्यों छूट रहे हैं पीछे? पश्चिमी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मुख्य रूप से विज्ञापन राजस्व पर निर्भर हैं. इनका फोकस उपयोगकर्ताओं द्वारा फॉलो किए गए अकाउंट्स पर होता है, जबकि चीनी ऐप्स नई सामग्री और खोज को बढ़ावा देते हैं.
पश्चिमी कंपनियों की कोशिशें
मेटा ने इंस्टाग्राम रील्स के माध्यम से टिकटॉक की कार्यक्षमता को दोहराने की कोशिश की, लेकिन यह "प्रामाणिकता की कमी" के लिए आलोचना का शिकार हुआ.
अमेजन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सोशल सामग्री को सफलतापूर्वक एकीकृत करने में विफल रहे.
यूट्यूब ने हाल ही में दक्षिण पूर्व एशिया में एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ साझेदारी करके शॉपिंग फीचर्स की खोज की.
टिकटॉक की खरीद को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प की चर्चा तेज़, अगले 30 दिनों में फैसला संभव
टिकटॉक की अमेरिका में दीवानगी का अंदेशा इस बात से लगाना और आसान हो जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टिकटॉक की खरीद को लेकर कई पक्षों से चर्चा कर रहे हैं. ‘रायटर्स’ की खबर है कि व्हाइट हाउस ऑरेकल और अमेरिकी निवेशकों की मदद से टिकटॉक का संचालन संभालने की योजना बना रहा है. हालांकि, बाइटडांस जो कि टिकटॉक की मूल कंपनी है, अपनी हिस्सेदारी बनाए रखना चाहती है. अगले 30 दिनों में अमेरिका में टिकटॉक के भविष्य पर अंतिम निर्णय की उम्मीद की जा रही है. शनिवार को फ्लोरिडा की उड़ान के दौरान एयर फ़ोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा था, 'मैंने टिकटॉक को लेकर कई लोगों से बात की है और इसमें बड़ी दिलचस्पी दिखाई जा रही है. 30 दिनों में इस पर निर्णय लिया जा सकता है.' ट्रम्प ने कहा कि कांग्रेस ने टिकटॉक को खरीदने या बंद करने के लिए 90 दिनों का समय दिया है. उन्होंने कहा कि अगर हम टिकटॉक को बचा पाते हैं, तो यह एक अच्छी बात होगी. गौरतलब है कि व्हाइट हाउस एक डील पर काम कर रहा है, जिसमें ऑरकेल और अन्य अमेरिकी निवेशकों को शामिल किया जाएगा. खबर है कि बाइटडांस अपने इस मुनाफे वाले ब्रांड टिकटॉक में अपनी हिस्सेदारी को बनाए रखेगा, लेकिन डेटा संग्रहण और सॉफ़्टवेयर अपडेट की ज़िम्मेदारी ऑरकेल संभालेगा. ऑरकेल ने टिकटॉक के अमेरिकी यूजर्स का डेटा सुरक्षित रखने के लिए 2022 में एक समझौता भी किया था. और डीडब्ल्यू हिंदी के इस एक्सप्लेनर में देखिए कि कैसे टेक दिग्गज आमने-सामने आ गए हैं!
पश्चिमी सूडान के अस्पताल पर ड्रोन हमला, 70 की मौत, 19 घायल
पश्चिमी सूडान के घिरे हुए शहर अल-फशेर के मुख्य अस्पताल पर हुए ड्रोन हमले में 70 लोगों की मौत हो गई और 19 अन्य घायल हो गए हैं. यह जानकारी रविवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख ने दी. डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडहेनॉम घेब्रेयेसस ने कहा कि हमला शुक्रवार को हुआ और इस दौरान अस्पताल में मरीजों का इलाज चल रहा था.
किताब पर चर्चा
एक्टिविस्ट का स्मृतिलेखा : जो व्यक्तिगत है, राजनीतिक है…
‘द हिन्दू’ द्वारा आयोजित संवाद ‘लिट् फॉर लाइफ’ के तहत मशहूर संगीतकार एंड विचारक टीएम कृष्णा ने सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय से उनकी किताब ‘पर्सनल इज़ पोलिटिकल : एन एक्टिविस्ट्स मेमॉयर’ को लेकर तमाम सामाजिक, राजनीतिक और नारीवादी मुद्दों पर दिलचस्प बातचीत की
प्रगति सक्सेना
दोनों ही अपने क्षेत्रों में सम्मानित नाम हैं और एक-दूसरे को करीब बीस वर्षों से जानते हैं. वे लगातार अपने समाज और राजनीति से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करते रहे हैं. कृष्णा ने बातचीत की शुरुआत में अरुणा रॉय से ‘व्यक्तिगत’ और ‘राजनीतिक’ के फर्क और समानता पर सवाल पूछा.
अरुणा ने कहा कि जो व्यक्तिगत होता है, वह राजनीतिक भी होता है लेकिन इसकी हद हमें खुद तय करनी होती है. उन्होंने एक सरल सी मिसाल दी अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की- उनका नाम अरुणा आसफ अली के नाम पर रखा गया. यह उनके माता-पिता और उनकी राजनीतिक विचारधारा के बारे में बहुत कुछ बताता है. उनका बचपन में जिस तरह का लालन पालन हुआ- उसका उनके राजनीतिक विचार पर सामाजिक काम पर असर पड़ा. लेकिन यह ‘पर्सनल’ कहाँ ख़त्म होता है और ‘पोलिटिकल’ कहाँ- यह हमें खुद तय करना होता है.
‘आइडेंटिटी’ पर पूछे गए सवाल पर एक बार फिर उन्होंने कहा कि हम अक्सर बहुत बड़े ‘ग्रे’ एरिया में काम कर रहे होते हैं – जहाँ एक तरफ वे नारीवादी हैं, दूसरी तरफ मजदूरों-किसानों के हक़ की लड़ाई में शामिल हैं और तीसरी सच्चाई ये है कि वे एक सुविधा संपन्न परिवार से संबंध रखती हैं. तो यह परिस्थिति, प्राथमिकता और सामूहिक फैसले पर निर्भर करता है कि वे एक स्थिति में किस तरह का व्यवहार करें. मसलन, अगर वे श्रमिकों के लिए एक विरोध प्रदर्शन में हैं और अचानक खबर आए कि एक महिला का बलात्कार हो गया है- तो वे क्या करेंगी? बेशक वे उस महिला की मदद के लिए दौड़ेंगी.
ग्रामीण महिलाओं और मजदूरों के साथ काम करने से पहले उनके परिवेश का एक अंग बनने के लिए अरुणा ने काफी संघर्ष किया. एक दलित स्त्री और अपनी मित्र नरुती का हवाला देते हुए बताया कि हमारे समाज में उस स्तर पर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के क्या मायने हैं.
एक आई इ एस अफसर के तौर पर भी उन्हें ‘सेक्सिस्ट’ बर्ताव का सामना करना पडा. लेकिन इससे उनका निश्चय और दृढ हुआ कि महिलाओं के हकों के लिए लड़ना ज़रूरी है. जो महिलाएं ऐसा कर रही थीं, वो अपने अधिकारों को लेकर सामान्य से अधिक ‘आक्रामक’ थीं. “क्योंकि अक्सर नारीवादी सोच को मज़ाक समझ कर उस पर हंस दिया जाता है.” कहा तो यह उन्होंने मज़ाक में, लेकिन यह एक सच्चाई है जिस पर कृष्णा ने भी हामी भरी.
अरुणा ने ‘डेटा प्रोटेक्शन बिल’, सूचना के अधिकार के साथ खिलवाड़, सर्विलांस जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बात करते हुए ‘धार्मिक’ और सांप्रदायिक’ होने के फर्क को बहुत सरलता से बताया. “हमारे देश में करीब 98 फ़ीसदी लोग ऐसे हैं जो किसी ना किसी ईश्वर पर आस्था रखते हैं. गांधी जी इस बात को समझते थे कि हम लोगों की आस्था ‘विश्वास करने के विचार’ पर है. इसलिए, सरल शब्दों में धार्मिक होने का मतलब है अपने भगवान की पूजा करना, जबकि सांप्रदायिक होने का मतलब है, यह मानना कि सिर्फ वही तरीका है भगवान को पूजने का!”
एक अन्य सवाल पर अरुणा का कहना था कि जब भी वे अनिश्चय की स्थिति में होती हैं तो वे सामूहिक मत पर भरोसा करती हैं और यही एक लोकतान्त्रिक तरीका भी है.
टीएम कृष्णा का मानना था कि खुद पर संदेह करना या अनिश्चय की स्थिति में होना एक अच्छी बात है. इसे हम विमर्श से ख़त्म कर सकते हैं और विमर्श हमें एक बेहतर चेतनता की तरफ ले जाता है.
युवाओं को सन्देश देते हुए अरुणा ने कहा कि उन्हें किसी रोल मॉडल की अपेक्षा खुद अपनी भूमिका तय करनी चाहिए और हिंसा से भरे हमारे आज के समाज में अहिंसा के लिए अहिंसात्मक तरीकों से काम करना चाहिए. हमारा संविधान और गांधीजी के विचार इस अर्थ में हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे.
आज प्रतिरोध ज़ाहिर करने के रास्ते और विकल्प कम हो चुके हैं, सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन भी विकल्प नहीं बचा है- ऐसे में बात करना ज़रूरी है, किसी भी मंच पर लोगों का आपस में संवाद, बहस, विमर्श करना ज़रूरी है, ताकि लोकतंत्र की आत्मा को बचा कर रखा जा सके, अरुणा ने आग्रह किया.
ऑशविट्ज़ : 80 साल बाद भी मानवता के लिए सबक
ऑशविट्ज़ से दूर जाने का रास्ता इतिहास को याद रखने से शुरू होता है. आज से 80 साल पहले मानव इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक ऑशविट्ज़ को खत्म कर दिया गया था. ऑशविट्ज़ एक कुख्यात नाजी कंसंट्रेशन और डेथ कैंप था, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान एडॉल्फ हिटलर की नाजी सरकार ने पोलैंड के एक इलाके में स्थापित किया था. यह कैंप नरसंहार का केंद्र था. लगभग 10 लाख यहूदी, 1 लाख पोलिश, 25 हजार रोमा और अन्य समूहों के हजारों लोग यहां मारे गए. कैदियों को गैस चैंबर्स, भुखमरी, बीमारी और अमानवीय परिस्थितियों में मौत के घाट उतारा गया.
नाजी जर्मनी ने करीब 60 लाख यहूदियों को होलोकॉस्ट के दौरान पूरे यूरोप में मारा था. होलोकॉस्ट 1933 से 1945 के बीच हुआ, जब एडोल्फ हिटलर के नेतृत्व में नाजियों ने यहूदियों और अन्य अल्पसंख्यकों को जर्मनी और उसके कब्जे वाले क्षेत्रों से मिटाने की साजिश रची थी. कुख्यात कंसंट्रेशन कैंप मसलन ऑशविट्ज़, ट्रेबलिंका और डचाऊ जैसे शिविर तब मौत की फैक्ट्रियां बन गए थे. "फाइनल सॉल्यूशन" जैसे नारों के साथ नाजी सरकार ने यहूदियों को पूरी तरह खत्म करने की योजना बनाई और उन्हें यातनाएं दी. 27 जनवरी 1945 को सोवियत सेना ने ऑशविट्ज़ शिविर से कैदियों को मुक्त कर दिया था. बाकी अब बदरंग इतिहास है और ढेर सारा सबक!
खैर, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी इस अवसर पर कहा, "होलोकॉस्ट की भयावहता हमें याद दिलाती है कि नफरत और पूर्वाग्रह के खिलाफ लड़ाई कभी खत्म नहीं होती. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी त्रासदी दोबारा न हो." हालांकि, इन्हीं नेतन्याहू को आईसीसी ने गाजा में नरसंहार का अपराधी माना गया है. नेतन्याहू के कार्यकाल में 46 हजार से भी ज्यादा फिलिस्तीनियों को मौत के घाट उतारा गया है, ऐसे में नेतन्याहू का बयान विरोधाभाष ही ज्यादा पैदा करता है. नेतन्याहू ने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) का नाम लेकर आलोचना की और इसे यहूदी विरोध का उदाहरण बताया. आईसीसी ने पिछले साल नेतन्याहू और अन्य इजरायली अधिकारियों पर गाजा में मानवता के खिलाफ अपराधों का आरोप लगाया था. इतना ही नहीं नेतन्याहू ने गाजा स्थित हमास को "नए नाज़ी" करार दिया और इसे यहूदी विरोध और आतंक का सबसे बड़ा उदाहरण बताया. उन्होंने कहा कि सभ्य समाज को यहूदी विरोधी भावनाओं और आतंकवादी संगठनों के खिलाफ मिलकर लड़ना चाहिए. खैर, नरसंहार का एक घोषित अपराधी की ओर से नरसंहार पर ज्ञान देना हास्यास्पद ही ज्यादा दिखता है.
बहरहाल, आशविट्ज़ के खत्म होने के 80 साल के अवसर पर विश्व के विभिन्न नेताओं और संगठनों ने महत्वपूर्ण बयान जारी किए हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अपने संदेश में कहा, "होलोकॉस्ट मानव इतिहास का एक काला अध्याय है और हमें इसे कभी नहीं भूलना चाहिए. यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम नफरत, असहिष्णुता और भेदभाव के खिलाफ लगातार खड़े रहें."
स्मृतियां नाजुक होती हैं
'द गार्डियन' ने भी इस मौके पर अपने एडिटोरियल में लिखा— एक दशक पहले 300 होलोकॉस्ट बचे लोग ऑशविट्ज़ के नाजी मौत शिविर की मुक्ति का स्मरण करने के लिए एकत्रित हुए थे. सोमवार को इसके 80वें वर्ष पर केवल 50 लोग इकट्ठा होंगे. 97 वर्षीय एस्तेर सेनोट, जो अब भी जीवित हैं, उन्होंने अपनी मरती हुई बहन फेनी से किया वादा निभाना जारी रखा है. फेनी की आखिरी इच्छा थी कि एस्तेर यह बताए, "हमारे साथ क्या हुआ... ताकि इतिहास हमें न भूल सके." इस वर्ष ऑशविट्ज़ संग्रहालय ने राजनेताओं के भाषणों पर प्रतिबंध लगाया है. यह फैसला पोलैंड में होलोकॉस्ट स्मरण पर होने वाले राजनीतिक विवादों से बचने के लिए किया गया है. इस बार समारोह में कोई रूसी प्रतिनिधि नहीं होगा, हालांकि अतीत में व्लादिमीर पुतिन ने इसमें भाग लिया था. पोलैंड के उप-विदेश मंत्री ने सुझाव दिया था कि अगर इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू समारोह में आए, तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के वारंट के कारण गिरफ्तार किया जा सकता है. हालांकि, पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने कहा कि नेतन्याहू को सुरक्षित भागीदारी की अनुमति होगी.
चलते-चलते
ऑशविट्ज के 80 साल : क्या से क्या हो गया
पूरी दुनिया में यहूदियों के नरसंहार के सबसे क्रूरतम होलोकास्ट और ऑशविट्ज़ के 80 साल सोमवार को पूरे हुए. और पूरी दुनिया में उसे बहुत दुख, करुणा, खेद के साथ याद किया जा रहा है. पर हम आज उस मक़ाम पर भी हैं, जिन यहूदियों के साथ तब ज्यादतियां हुईं थी, उनके मुल्क इजराइल ने हिटलर से भी ज्यादती हैवानियत फिलिस्तीन के लोगों के साथ दिखाई है और दुनिया के ताकतवर देशों ने या तो उनके साथ सीधे या परोक्ष रूप से हिस्सेदारी की है- हथियार और पैसे देकर, चुप रह कर, या फिर अनदेखा कर. हम मानवीयता के संकटतम समय में यह सब होता देख रहे हैं. अपनी या दूसरों की गलतियों से सबक न सीख जघन्यताओं का इतिहास दुहरा रहे हैं. हो सके तो स्टीवन स्पीलबर्ग की प्रसिद्ध फिल्म ‘शिंडलर्स लिस्ट’ का यह संगीत सुनिये. अच्छा लगे तो इस फिल्म का पूरा संगीत इस प्लेलिस्ट से सुनिये, जो उस बेहतरीन फिल्म को न देखते हुए भी सुनने के लिए जॉन विलियम्स की शानदार रचना है. हो सके तो अपने भीतर उस चीज़ को थोड़ा टटोलिए, जिसका नाम करुणा है. जिसकी दुनिया में इस वक्त हर इंसान को सबसे ज्यादा जरूरत है. ख़ास तौर पर उन्हें जो हिंसा और नरसंहार को जायज ठहराने में लगे हैं.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.