28/02/2025 : बंपर अनाज के बाद भी मंहगा क्यों, पीएम की डिग्री चाहने पर सज़ा की मांग, वक़्फ़ विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी, माधवी बुच का सेबी में आखिरी दिन, तुुहिन कांत नये अध्यक्ष, इन्वेस्टर मीट का शोर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां | 28 फरवरी 2025
पीएम की डिग्री मांगने वालों पर सज़ा सुनाने की हाई कोर्ट में मांग
कैबिनेट की वक़्फ़ विधेयक को मंजूरी
यूसीसी में समलैंगिकों के आत्म निर्णय के अधिकार पर सवाल : वृंदा ग्रोवर
क़त्ल के बाद कश्मीर सरकार के दुहरे मापदंड
शिवरात्रि में लाउडस्पीकर को लेकर सांप्रदायिक झड़प, 3 गिरफ्तार
सेबी अध्यक्ष का पद फिर नौकरशाही की तरफ लौटा, तुहिन कांत पांडे को जिम्मा
सेबी में दाग़दार रही माधवी पुरी बुच की पारी
कार्बाइड का कचरा पीथमपुर ले जाने पर रोक लगाने से इनकार
अनाज सरप्लस है, महंगा भी और किसान गरीब है
इन्वेस्टर मीट : शोर ज्यादा, रोशनी कम, चींटियों के लिए गुड़ का तमाशा
यूनिवर्सिटी मेस में मांसाहार पर मारपीट
कनाडा ने भारतीय व्यवसायी पर विदेशी हस्तक्षेप और फर्जी खबरों का आरोप लगाया
एयरबीएनबी और बुकिंग डॉट कॉम पर अवैध इजरायली बस्तियों में छुट्टियों के लिए किराए पर दिए जा रहे कमरे
महाकुंभ : जो 15000 कर्मी साफ करते रहे टॉयलेट
यमुना में पहुंच रहा सीधा सीवेज का पानी
शादीशुदा महिला के चैटजीपीटी से प्यार और सेक्स के बाद नैतिकता के उठते नये सवाल

पीएम की बीए डिग्री मांगने वालों पर सज़ा सुनाने की हाई कोर्ट में मांग
दिल्ली उच्च न्यायालय में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को आरटीआई अधिनियम के "दुरुपयोग" करने वालों पर जुर्माना लगाने की मांग की. यह बहस दिल्ली विश्वविद्यालय के उस फैसले के बचाव में हुई, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी की बीए डिग्री जारी करने से इनकार किया गया था. मेहता का कहना था, "आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य सार्वजनिक हित है, न कि राजनीतिक लाभ या जिज्ञासा. पीएम की 1978 की डिग्री मांगना सार्वजनिक हित से जुड़ा नहीं." डीयू की तरफ से मेहता ने कोर्ट में कहा, "हम डिग्री दिखाने को तैयार हैं, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं कर सकते. यह विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड की गोपनीयता से जुड़ा मामला है." मेहता ने आरोप लगाया कि ऐसे आवेदक "दखलअंदाज़" हैं, जिनका मकसद सिर्फ प्रचार या राजनीतिक फायदा हासिल करना है. 2016 में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाए थे. 2017 में केंद्रीय सूचना आयोग ने डीयू को डिग्री जारी करने का निर्देश दिया था, जिसे विश्वविद्यालय ने कोर्ट में चुनौती दी. 'द हिंदू' की खबर है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय का पीएम मोदी की डिग्री को लेकर सूचना प्रकट करने के खिलाफ याचिका पर निर्णय सुरक्षित रख लिया है. न्यायमूर्ति सचिन दत्त ने पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला किया.
वक़्फ़ विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी
वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट विपक्ष के भारी हंगामे के बीच 13 फरवरी को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पेश की गई थी. सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वक्फ (संशोधन) विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट के आधार पर मंजूरी दे दी. विपक्षी सांसदों ने दावा किया कि उनके असहमति नोट को जेपीसी रिपोर्ट से काट दिया गया है, लेकिन केंद्र ने इससे इनकार किया. सूत्रों के अनुसार, पेश किए गए 44 संशोधनों में से 14 खंडों में बदलाव स्वीकार किये गए, जो एनडीए सदस्यों ने सुझाए थे. वहीं विपक्षी सदस्यों के सुझाए सारे संशोधनों को खारिज कर दिया गया.
हर साल 10 करोड़ टन अनाज का सवाल
अनाज सरप्लस है, महंगा भी और किसान गरीब है
रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के विजिटिंग प्रोफेसर ज्यां द्रेज और संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी क्रिस्टियन ओल्डिजेस ने एक रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2025' तैयार की है, जिसमें भारत में अनाज उत्पादन और खपत के असंतुलन पर सवाल उठाए गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, भारत हर साल करीब 30 करोड़ टन अनाज उत्पादन करता है, लेकिन घरेलू खपत मुश्किल से 15 करोड़ टन रहती है. यह अंतर 'सीरियल गैप' कहलाता है, जिसका कारण अनाज निर्यात में भारी वृद्धि और सार्वजनिक भंडार में अनाज की अधिकता है. हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि घरेलू खपत में कमी और अनाज के अन्य उपयोगों (जैसे चारा, बीज, और बर्बादी) के कारण इस अंतर को थोड़ा घटाया जा सकता है, फिर भी यह अंतर 7.5 करोड़ टन तक बना हुआ है. इससे यह सवाल उठता है कि अगर अनाज इतनी अधिक मात्रा में उपलब्ध है, तो इसकी कीमतें क्यों बढ़ रही हैं?
कई वर्षों से घरेलू अनाज खपत का कुल आंकड़ा सालाना लगभग 15 करोड़ टन के आसपास बना हुआ है. इसका कारण यह है कि प्रति व्यक्ति खपत में कमी जनसंख्या वृद्धि की भरपाई कर देती है (यह घटती प्रवृत्ति 1970 के दशक के अंत से जारी है). वहीं, अनाज उत्पादन पिछले 10 वर्षों में व्यवस्थित तरीके से लगभग 2.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है. इस असंतुलन का एक परिणाम अनाज निर्यात में भारी वृद्धि है. वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक औसतन प्रति वर्ष लगभग 3 करोड़ टन का निर्यात जारी है. दूसरा परिणाम यह है कि सार्वजनिक भंडार लगातार आधिकारिक मानदंडों से कहीं अधिक बना हुआ है. इन सबके बावजूद हर साल 10 करोड़ टन अनाज का कोई हिसाब नहीं है. अनाज का उपयोग घरेलू खपत के अलावा अन्य कार्यों में भी होता है. विशेषज्ञों के अध्ययन बताते हैं कि पारंपरिक रूप से एसएफडब्ल्यू घटक में कुल उत्पादन का 5 प्रतिशत चारे के लिए निर्धारित किया जाता है. इसे बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने की जरूरत हो सकती है. ऐसा करने से अनाज खपत-उपलब्धता के अंतर में 1.5 करोड़ टन की कमी आ सकती है. वैश्विक डेटा और बिजनेस इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म स्टेटिस्टा डॉट कॉम और अन्य संबंधित स्रोतों से उत्पादन के अनुमान का उपयोग करके वर्ष 2022-23 में लगभग 80 लाख टन अनाज आधाारित एथेनॉल उत्पादन, 10 लाख टन बीयर के लिए और 10 लाख टन “बिस्किट, ब्रेड, बन, कुकीज और क्रोइसेंट” के लिए अनाज खपत को घटाना संभव है. हालांकि, यह सब जोड़कर 10 करोड़ टन से घटाने पर भी 7.5 करोड़ टन अनाज खपत-उपलब्धता का अंतर बना रहता है. रिपोर्ट में भारत को इस असंतुलन के कारणों और भविष्य की योजना के लिए विश्वसनीय आंकड़ों की जरूरत की बात भी कही गई है, ताकि कृषि नीति और मूल्य निर्धारण को सही दिशा मिल सके.
भोपाल का इन्वेस्टर्स समिट
शोर ज्यादा, रोशनी कम, चींटियों के लिए गुड़ का तमाशा
राजेश चतुर्वेदी
गुड़ चींटियों को कभी न्योता नहीं देता. उसके पास चींटियां खुद-ब-खुद खिंची चली आती हैं. यह कुदरत का निज़ाम है. वर्ना, गुड़ होने का मतलब ही क्या है? और, यदि उसको निमंत्रण दे-देकर चींटियों को बुलाना पड़ रहा है या आवभगत में लाल कालीन बिछानी पड़ रही हैं; इसका मतलब है कि गुड़ अपने नैसर्गिक गुण धर्म खो चुका है. उसमें मिठास नहीं है. वह खारा हो गया है. खारे गुड़ से अपेक्षित मिठास कैसे मिलेगी? शायद, इसीलिए गुड़ को “तमाशा” करना पड़ता है, गुड़ होने का.
नरेंद्र मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं, तब से भाजपा शासित राज्यों में उनके बहुप्रचारित “गुजरात मॉडल” की तर्ज पर इन्वेस्टर्स समिट का चलन बढ़ा है. जनता के सैंकड़ों-हजारों करोड़ खर्च करके राज्यों में बड़े-बड़े ईवेंट किए जाते हैं. दुनिया जहान (चंद्रमा-मंगल को छोड़कर) के निवेशकों, ‘तथाकथित’ निवेशकों, उद्यमियों वगैरह को बुलाया जाता है. उनके साथ भारतीय मुद्रा में लाखों करोड़ के एमओयू किए जाते हैं. लाखों को रोजगार देने के बड़े दावे किए जाते हैं. आम लोगों को भरोसा दिलाया जाता है कि बस, उनका कायापलट होने वाला है. दो-तीन दिन का मेला लगता है, शोर होता है, मीडियाबाजी होती है और फिर सब “ढर्रे पर चलने” के लिए लौटने लगते हैं. उदाहरण के लिए देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश, जहां फरवरी 2023 में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट हुई थी. जैसे सब जगह जाते हैं, मोदी यूपी की समिट में भी गए थे. 40 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताया था कि प्रदेश की सभी 75 जनपदों के लिए निवेश के प्रस्ताव मिले हैं. खासकर पिछड़े इलाकों पूर्वांचल में 9.54 लाख करोड़ और बुंदेलखंड में 4.28 लाख करोड़ के प्रस्ताव. दावा किया गया था कि नए निवेश से करीब 1.10 करोड़ युवाओं को रोजगार मिलेगा. यूपी के 17 नगरनिगम क्षेत्रों में 51 लाख रोजगार सृजित होंगे, जिनमें से अकेले लखनऊ में ही 16 लाख नौजवानों को बेरोजगार नहीं रहना पड़ेगा. लेकिन, गए दो सालों में इन बड़े-बड़े दावों का हुआ क्या? 40 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्तावों में से कितने जमीन पर उतरे या कितनों पर काम शुरू हुआ, इसका लेखा-जोखा मीडिया में भी अप्रकट और अदृश्य है. लेकिन, मोदी सरकार में यूपी के कोटे से मंत्री रहीं उमा भारती ने अपने गृह राज्य मध्यप्रदेश के जरिए ही सही इन्वेस्टर्स समिट के इस “तमाशे” पर बुनियादी सवाल खड़ा किया है और एमपी के सीएम डॉ. मोहन यादव को इंगित करते हुए नसीहत भी दे डाली है. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल, जहां तीन दिन पहले सैंकड़ों करोड़ खर्च करके ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (जीआईएस) निपटी है, से लगभग 190 किमी दूर उज्जैन (यादव के गृह नगर) में उमा भारती ने कहा, “नेहरू और गांधी के विकास मॉडल का संतुलित मेल करने से ही एमओयू जमीन पर उतरेंगे और वास्तविक रूप से निवेश का लाभ मिलेगा.” दरअसल, मध्यप्रदेश में भी जीआईएस के जरिए 30.77 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव हासिल करने का दावा किया गया है. कहा गया है कि इस उपक्रम से करीब 17.34 लाख युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे. इतना ही नहीं, जीआईएस के पहले मप्र की कैबिनेट ने सात नीतियों को मंजूरी देकर यह दावा किया कि राज्य में लगभग 86 लाख नए रोजगार पैदा होंगे. लेकिन बड़े-बड़े दावों की जमीनी हकीकत इतर है. जो कहा जाता है, वास्तव में वैसा होता नहीं है. मध्यप्रदेश में 24-25 फरवरी को आठवीं समिट थी. इससे पहले दस वर्षों (2014-24) में चार समिट हुईं. सरकार ने दावा किया था कि इनमें निवेश के 12 हजार प्रस्ताव मिले, लेकिन जमीन पर उतरे महज 369. दैनिक भास्कर में राजेश शर्मा की रिपोर्ट कहती है कि शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में कहा गया कि 25.20 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले और दावा था कि 29 लाख रोजगार पैदा होंगे. लेकिन निवेश हुआ 78 हजार 862 करोड़ रुपये का और रोजगार मिला केवल 77 हजार को.
भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दूसरे दिन 25 फरवरी को खाने के लिए लूट मच गई. सौजन्य : वन इंडिया हिंदी
महाकुंभ : जो 15,000 कर्मी साफ करते रहे टॉयलेट
“पढ़ी-लिखी होती तो कम से कम टॉयलेट सफाई का काम तो नहीं ही करती.” लगभग 10 घंटे लगातार सफाई करने के बाद महाकुंभ मेले के सेक्टर-19 में बने अपने टेंट के पास बैठीं माया कुमारी थकावट के बाद भी मुस्कुरा रही हैं. “बांदा से आये लगभग दो महीने हो गये हैं. खुश नहीं रहूंगी तो दिनभर गंदगी साफ करने के बाद रहना मुश्किल हो जायेगा. हम ठेकेदार के माध्यम से आये हैं. मेरे साथ 20 लोग और हैं.” महाकुंभ मेला 2025 के दौरान मेला क्षेत्र की सफाई व्यवस्था एक बड़ी चुनौती रही है. मेला क्षेत्र में 15,000 सफाईकर्मी और 2,500 गंगा सेवा दूतों को तैनात किया गया है, जो 4,000 हेक्टेयर में फैले इस क्षेत्र में सफाई का कार्य कर रहे हैं. 'इंडियास्पेंड' की रिपोर्ट है कि माया कुमारी जैसे सफाईकर्मी लगातार 10 घंटे तक सफाई करने के बावजूद मुस्कराते हुए कार्य कर रहे हैं, हालांकि भीड़ और शौचालयों के बाहर गंदगी फैलने की समस्या उन्हें परेशान करती है. सरकार ने सफाई व्यवस्था के लिए 1.50 लाख टॉयलेट, 4 लाख डस्टबिन और 600 मीट्रिक टन कचरा हटाने की व्यवस्था की है.
13 जनवरी 2025 से शुरू हुआ यह मेला 26 फरवरी तक चला. मतलब मेला अब उठ रहा है. सरकार के दावों के मुताबिक अब तक 60 करोड़ से ज्यादा लोग महाकुंभ पहुंच चुके हैं. जब इतने लोग आएंगे तो मेले का साफ-सुथरा रखना और श्रद्धालुओं को शौचालय मुहैया करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. भीड़ थम रही न सफाईकर्मियों रुक रहे. जहां से गुजरेंगे, हाथ में झाड़ू लिए सफाईकर्मी आपको जरूर दिख जाएंगे. इनके जिम्मे ही मेले की सफाई है, लेकिन इन्हें किन समस्याओं से दो-चार होना पड़ा, देखिए ये रिपोर्ट…
यूसीसी में समलैंगिकों के आत्म निर्णय के अधिकार पर सवाल : वृंदा ग्रोवर : उत्तराखंड हाईकोर्ट में अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने गुरुवार को समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप को अनिवार्य पंजीकृत कराने पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि इससे उत्पीड़न और हस्तक्षेप की चिंताएँ बढ़ गई हैं. संहिता लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है और 27 फरवरी, 2025 से प्रभावी जेल समय सहित दंडात्मक प्रतिबंध लगाता है. याचिका में कहा गया है कि महिला, जो खुद को समलैंगिक मानती है, को एक विषमलैंगिक ढांचे के तहत पंजीकरण करने के लिए मजबूर किया जाता है, जो उसके आत्मनिर्णय के अधिकार का उल्लंघन है. इसी केस के दौरान उत्तराखंड हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, “लिव-इन रिलेशनशिप का प्रचलन हालांकि बढ़ रहा है, लेकिन उन्हें अब भी पूरी तरह से सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है. समान नागरिक संहिता (यूसीसी) कानून का उद्देश्य इस बदलावों को समायोजित करना है, साथ ही ऐसे रिश्तों से पैदा हुए महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है.”
क़त्ल के बाद कश्मीर सरकार के दुहरे मापदंड
आतंकवादी की गोली से मरे तो अलग और सुरक्षाकर्मी की गोली से मरे तो कुछ और
5 फरवरी 2025 को, जब सूरज ढलने वाला था, कश्मीर के सोपोर जिले के गोरिपोरा गांव की निस्सरा बेगम बेचैन हो गईं और उन्होंने अपने बेटे इरफान अहमद मीर से कहा- 'ऐसा लग रहा है कि कुछ गलत होने वाला है'. बदले में इरफान ने भी दिलासा देते हुए वही कहा, जो ऐसी शंकाओं पर कहा जाता है और वो ये कि 'चिंता मत करो'. इरफान का 32 साल का बड़ा भाई वसीम अहमद मीर, जो परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था, अपने ट्रक के साथ 10,000 रुपये प्रति माह पर डिलीवरी के लिए घर से बाहर गया था. बेगम का पूर्वाभास सच साबित हुआ.
कहानी शुरू होती है 3 फरवरी के दिन, जब आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में एक पूर्व सैनिक की हत्या कर दी. अगले दिन जम्मू और कश्मीर पुलिस ने एक आदिवासी व्यक्ति को कथित तौर पर प्रताड़ित किया, जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली. तीन दिन बाद यानी कि 6 फरवरी को सेना ने वसीम अहमद मीर को कथित तौर पर चेकपोस्ट पर रुकने से इनकार करने के बाद गोली मार दी. 'आर्टिकल 14' की ये रिपोर्ट, किसी फिल्मी कहानी की तरह है, लेकिन असल में ऐसा ही हुआ है!
सवाल उठ रहे हैं कि कुलगाम में तो पूर्व सैनिक की हत्या के बाद 500 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था, जबकि इलाके के बाशिंदे बताते हैं कि कठुआ और सोपोर के मामलों में ऐसी तेजी सरकार की ओर से नहीं दिखाई देती है. हालांकि इन घटनाओं की जांच की घोषणा की गई थी, लेकिन वक्त के गुजरने के साथ पीड़ित परिवारों का न्याय को लेकर संदेह बढ़ रहा है. उन्हें आशंका है कि ये जांचें भी हिन्दुस्तान की बाकी जांचों से अलग क्या मुकाम पाएंगी! बाज दफा तो वो पक्के यकीन से कह देतें हैं कि जांचें बंद हो जाएंगी, वो भी बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के!
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार महासंघ (FIDH) और जम्मू कश्मीर कोएलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी (JKCCS) द्वारा 2019 में तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 2008 के बाद से 107 मामले ऐसे आए हैं, जिनमें मानवाधिकार उल्लंघन की सीमाएं पीछे छूट गई. इन मामलों में किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई न्यायिक प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, यानी कि आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई. कुल मिलाकर जम्मू और कश्मीर में हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी और उसके बरक्स न्याय की मांग लगातार बढ़ रही है. पीड़ितों के परिवार उम्मीद करते हैं कि उन्हें भी उसी तरह न्याय मिलेगा जैसा कि कुलगाम में हुआ था. ...लेकिन कैसे? इसके जवाब में पीड़ित परिवार कहते हैं- 'समय बताएगा'.
शिवरात्रि समारोह के दौरान लाउडस्पीकर को लेकर सांप्रदायिक झड़प, 3 लोग गिरफ्तार : झारखंड के हजारीबाग जिले के इचाक ब्लॉक के डुमरांव गांव में बुधवार सुबह शिवरात्रि समारोह के दौरान एक मदरसे के सामने धार्मिक झंडा और लाउडस्पीकर लगाने को लेकर दो समुदायों के बीच हुआ विवाद झड़प और हिंसा में बदल गया. इसमें कई के घायल होने की खबर है. पुलिस ने हिंसा में शामिल होने के आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया और अन्य की तलाश की जा रही है.
सेबी में दाग़दार रही माधवी पुरी बुच की पारी
इतिहास में सबसे विवादित अध्यक्ष का आज कार्यकाल ख़त्म
इस शुक्रवार को सेबी भवन के कोने वाले कमरे से निकलते हुए माधवी पुरी बुच न केवल भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में इतिहास रचेंगी, बल्कि उनका तीन साल का कार्यकाल विवादों, चुनौतियों और ऐतिहासिक सुधारों की मिली-जुली विरासत भी छोड़ेगा. फरवरी 2022 में इस पद पर नियुक्त होने वाली बुच ने निजी क्षेत्र से आने वाली पहली व्यक्ति होने का भी रिकॉर्ड बनाया.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस में बेन कोचुवीदन लिखते हैं कि बुच का कार्यकाल सेबी के 38 वर्षों के इतिहास में सबसे विवादित रहा. अगस्त 2024 में न्यूयॉर्क स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग ने उन पर और उनके पति धवल पर हितों के टकराव के आरोप लगाए. इसके बावजूद, बुच ने बाजार नियमन, निवेशक संरक्षण और प्रौद्योगिकी के उपयोग जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार जारी रखे. कई विश्लेषक मानते हैं कि हालांकि उन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं मिला, इसका कारण हिंडनबर्ग के आरोपों से अधिक राजनीतिक और आईएएस लॉबी का दबाव था. हिंडनबर्ग आरोपों के बाद उन्हें हटाना अडानी समूह के साथ सरकार के "घनिष्ठ संबंधों" को स्वीकार करने जैसा समझा जा रहा है.
माधवी पुरी बुच का कार्यकाल सेबी के इतिहास में एक पेचीदा अध्याय है. एक ओर, उन्होंने तकनीकी सुधारों और निवेशक संरक्षण के मामले में नए मानदंड स्थापित किए. दूसरी ओर, विवादों और नियामक चूकों ने उनकी विरासत को धुंधला किया. बुच की छवि को जिन बातों से नुकसान हुआ उनमें सबसे बड़ी हिंडनबर्ग रिपोर्ट के उनपर सीधे लांछन थे. पहली रिपोर्ट के बारे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद अडानी मामले की जाँच पूरी न कर पाना सबसे बड़ा सवालिया निशान है.
सेबी अध्यक्ष माधवी पुरी बुच के खिलाफ लगे प्रमुख आरोपों की सूची :
हिंडनबर्ग रिपोर्ट (अगस्त 2024) ने बुच पर आरोप लगाए थे कि उनके पति धवल बुच का अडानी समूह और अन्य कंपनियों के साथ व्यावसायिक संबंध होने के कारण हितों के टकराव का मामला बनता था, क्योंकि अडानी के मामले सेबी के समक्ष थे.
सेबी अध्यक्ष के रूप में उनकी निजी आय और निवेश (जैसे प्राइवेट फंड हाउस) को छिपाने का आरोप. उन पर कर्मचारियों को "डराने-धमकाने" और निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी का आरोप भी लगा.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित जाँच (हिंडनबर्ड रिपोर्ट, जनवरी 2023 के बाद) को समय पर पूरा न करना.
आरोप कि सेबी ने शेयर मूल्य हेराफेरी, राउंड-ट्रिपिंग और अनियमितताओं की जाँच में ढिलाई बरती.
सेबी ने सिक्योरिटी अपीलेंट ट्रिब्यूनल में स्वीकार किया कि एनएसई के पूर्व प्रबंधन (चित्रा रामकृष्ण सहित) के खिलाफ कोई ठोस मामला नहीं बन पाया. यह सेबी की नियामक विफलता का संकेत माना गया.
हिंडनबर्ग आरोपों के बाद बुच को सेबी के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक विरोध भी झेलना पड़ा, जिसमें नैतिकता और पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए.
सेबी के पूर्व अध्यक्ष अजय त्यागी द्वारा प्रस्तावित एक्सपेंस रेशियो में कटौती के प्रस्ताव को सरकार और एमएफ लॉबी के दबाव में रोकना.
सेबी द्वारा संसद में उठाए गए सवालों (जैसे अडानी जाँच की प्रगति) का संतोषजनक जवाब न दे पाना. विपक्ष द्वारा आरोप कि सेबी सरकारी दबाव में काम कर रही है.
डिस्काउंट ब्रोकर्स को नुकसान पहुँचाने वाले नए फीस नियम लागू करना, जिससे पूर्ण-सेवा ब्रोकर्स को लाभ हुआ.
सेबी के निर्णयों में निजी क्षेत्र के अनुभव का उपयोग करते हुए कॉर्पोरेट हितों को तरजीह देने का आरोप.
बुच के कार्यकाल में रिटेल निवेशकों को होने वाले सालाना 60,000 करोड़ रुपये के नुकसान को देखते हुए, नवंबर 2024 से फ्यूचर्स और ऑप्शन ट्रेडिंग पर सख्त नियम लागू किए. इससे एफ एंड ओ वॉल्यूम 50% तक गिरा. म्यूचुअल फंड और आईपीओ बाजार का विस्तार मिला. एसआईपी के माध्यम से रिटेल निवेश को व्यवस्थित करना और 250 रुपये के माइक्रो-एसआईपी को बढ़ावा दिया गया. ब्रोकरेज व्यवस्था में पारदर्शिता आई. कार्वी जैसे घोटालों को दोहराने से रोकने के लिए क्लाइंट फंड और शेयरों की सुरक्षा के नियम कड़े किए. सेबी के 89% आईपीओ स्क्रीनिंग प्रक्रिया अब AI टूल्स से होती है, जिसके कारण पारदर्शिता आई. फंड जुटाने की प्रक्रिया को 165 दिनों से घटाकर 20 दिन करना, जिससे कंपनियों को त्वरित धनराशि मिल सके.
सेबी अध्यक्ष का पद फिर नौकरशाही की तरफ लौटा, तुहिन कांत पांडे को जिम्मा
केंद्र सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी तुहिन कांत पांडे को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) का नया चेयरमैन नियुक्त किया है. पांडे, जो वर्तमान में वित्त सचिव और राजस्व विभाग के सचिव हैं, 1 मार्च से सेबी की कमान संभालेंगे. पांडे ने सितंबर 2024 में वित्त सचिव का पद संभाला था. इससे पहले, वह निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग और लोक उपक्रम विभाग के सचिव रह चुके हैं.
कार्बाइड का कचरा पीथमपुर ले जाने पर रोक लगाने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया. जिसमें भोपाल में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने से रासायनिक कचरे को राज्य के धार जिले के पीथमपुर में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था. जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने कहा, “हाई कोर्ट मामले की निगरानी कर रहा है. हमें उक्त आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं दिखता.”
पीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी), राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) जैसे विशेषज्ञ निकायों से मिलकर टास्क फोर्स समिति गठित की है. ‘नीरी’ देश में पर्यावरण संबंधी पहलुओं से निपटने वाला सबसे मान्यता प्राप्त और प्रतिष्ठित संगठन है. जब भी कोर्ट को पर्यावरणीय नुकसान के संबंध में सवाल का आकलन करने में कठिनाई होती है, तो नीरी को हमेशा शामिल किया जाता है.
3 दिसंबर, 2024 को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अधिकारियों को 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे के निपटान के लिए चार सप्ताह की समय सीमा तय की. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि दुर्घटना के 40 साल बाद भी निष्क्रियता की स्थिति है. इसी दिन ‘हरकारा’ ने भोपाल गैस त्रासदी पर विस्तृत रिपोर्ट की थी.
चुनौती देने वाली अपील में बताया गया कि धार जिले में शहर से 30 किलोमीटर दूर स्थित पीथमपुर और इंदौर के नागरिक इस कदम के खिलाफ हैं, क्योंकि इस मुद्दे पर उनसे चर्चा नहीं की गई. इसने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने लोगों की सुरक्षा और संरक्षा के बारे में कोई स्पष्टीकरण या सलाह जारी नहीं की है.
यूनिवर्सिटी मेस में मांसाहार पर मारपीट : दिल्ली की साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (एसएयू) में महाशिवरात्रि के दिन मांसाहारी भोजन को लेकर हुई झड़प में शामिल एक छात्रा ने गंभीर आरोप लगाए हैं. छात्रा, जो मेस कमिटी की सदस्य है, ने दावा किया कि उसे थप्पड़ मारे गए और अश्लील तरीके से छुआ गया, जबकि कुछ पुरुष छात्रों ने "बस देखा" और मदद नहीं की. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक यूनिवर्सिटी ने मामले की जांच शुरू की है, जबकि पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली है. छात्रा के अनुसार, मांसाहारी भोजन पर विवाद तब भड़का जब कुछ छात्रों ने मेस मैनेजर को घेर लिया. एक व्यक्ति ने फिश करी का डब्बा फेंकने की कोशिश की. छात्रा ने बताया, "मैंने रोकना चाहा, तो उसने मुझे धक्का दिया. करी मेरे चेहरे पर गिरी. दोस्त ने बचाने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने हमें घेर लिया. एक ने मुझे चेहरे पर मुक्का मारा... मैं चिल्लाई, लेकिन वे पीटते रहे." हमले के बाद, समूह ने मेस के दूसरे हिस्से में जाकर अगली कार्रवाई पर चर्चा की. छात्रा ने अप्रैल 2023 में यूनिवर्सिटी को कैटकॉलिंग की शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. नवंबर 2023 में भी उसने सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी. कुछ छात्रों ने एबीवीपी पर आरोप लगाए, लेकिन एबीवीपी ने इनकार करते हुए कहा कि "धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए सात्विक भोजन की व्यवस्था की गई थी. वामपंथी गुटों ने जबरन मांसाहार परोसने की कोशिश की."
बरबाद हो रहा है एसटीपी का ट्रीटमेंट, यमुना में पहुंच रहा सीधा सीवेज का पानी
यमुना नदी का नाम लेते ही दिल्ली की 22 किलोमीट लंबी यमुना की वह तस्वीर सामने आती है, जिसमें पूरी यमुना का 80 फीसदी प्रदूषण है. बीते पांच सालों (2017 से 2021 के बीच) में करीब 6,500 करोड़ रुपए दिल्ली की यमुना को साफ करने के लिए खर्च कर दिए गए, लेकिन हालत जस की तस है. ऐसा क्यों है? डाउन टू अर्थ ने इस पर विस्तार से रिपोर्ट की है.
“अब भी यमुना से जुड़ने वाले करीब 22 बरसाती नालों में वैध और अवैध कॉलोनियों का सीवेज सीधे पहुंच रहा है, जो सीधा बिना ट्रीटमेंट के नदी में गिर रहा है. इतना ही नहीं, जिस गंदे पानी का उपचार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से किया जा रहा है, वह पैसा और संसाधन भी बरबाद हो रहा है, क्योंकि ट्रीटमेंट किया गया पानी भी सीवेज वाले बरसाती नालों में डाल दिया जाता है.” उक्त तथ्य सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) की ओर से राजस्थान के निमली में 27 फरवरी को अनिल अग्रवाल डायलॉग 2025 के एक सत्र में सामने आया.
वहीं सीएसई के वाटर यूनिट की एक्सपर्ट सुष्मिता सेनगुप्त के अनुसार, मौजूदा समय में दिल्ली की आबादी के सही आंकड़े नहीं हैं. ऐसे में यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल है कि कितना वेस्टवाटर पैदा होता है."
कनाडा ने भारतीय व्यवसायी पर विदेशी हस्तक्षेप और फर्जी खबरों का आरोप लगाया
कनाडाई सुरक्षा एजेंसियों ने भारतीय कारोबारी अंकित श्रीवास्तव और उनके समूह 'श्रीवास्तव ग्रुप' पर देश में विदेशी हस्तक्षेप, जासूसी और फर्जी खबरें फैलाने के गंभीर आरोप लगाए हैं. ग्लोबल न्यूज के लिए स्टीवार्ट बैल ने लंबी खोजी रिपोर्ट की है. इसके मुताबिक कनाडाई इमिग्रेशन अधिकारियों ने श्रीवास्तव को "राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा" बताते हुए उन्हें देश में प्रवेश से प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन कोर्ट ने दो बार उनके पक्ष में फैसला सुनाया. कनाडाई खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, श्रीवास्तव ने भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के साथ मिलकर कनाडाई राजनेताओं को प्रभावित करने की कोशिश की. उन पर आरोप है कि उन्होंने राजनेताओं को वित्तीय सहायता और प्रचार सामग्री देकर पाकिस्तान विरोधी और भारत-समर्थक नीतियों को बढ़ावा दिया. आरोपों के मुताबिक श्रीवास्तव ग्रुप ने ईपी टुडे, ईयू क्रॉनिकल और टाइम्स ऑफ जिनेवा जैसी 16 फर्जी न्यूज वेबसाइट्स बनाईं, जो कनाडाई मीडिया का रूप लेकर पाकिस्तान और चीन के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैलाती थीं. यूरोपियन संस्था ईयू डिसिंफोलैब ने इन्हें भारत-समर्थक प्रभाव नेटवर्क का हिस्सा बताया, जो अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का समर्थन हासिल करने की कोशिश करता है. श्रीवास्तव के भाई की कंपनी अगलाया साइंटिफिक पर मालवेयर और हैकिंग टूल्स बेचने का आरोप है, जिनका इस्तेमाल लोकतंत्र समर्थकों और सरकारों के खिलाफ किया जा सकता है. यह मामला उस समय सामने आया है जब कनाडा, भारत द्वारा विदेशी हस्तक्षेप के आरोपों से जूझ रहा है. कनाडाई जाँच आयोग ने चेतावनी दी है कि भारतीय एजेंट्स ने चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए कनाडाई राजनेताओं को गैरकानूनी फंडिंग की पेशकश की हो सकती है. श्रीवास्तव का केस कनाडा-भारत राजनयिक तनाव की एक कड़ी है. हालांकि कोर्ट ने उन्हें राहत दी है, लेकिन कनाडाई एजेंसियाँ भारतीय खुफिया गतिविधियों को लेकर सतर्क हैं.
श्रीवास्तव का कहना है कि कि रॉ और आईबी के साथ उनका संपर्क पत्रकारिता के दायरे में था, क्योंकि उनके पास 'न्यू डेल्ही टाइम्स' अखबार है. उन्होंने कहा, "मैंने कभी राजनेताओं को पैसे नहीं दिए. भारतीय एजेंसियों ने मुआवजे की पेशकश की, लेकिन मैंने मना कर दिया." उन्होंने ईयू डिसिंफोलैब की रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण और सबूतों से रहित बताया. कनाडाई फेडरल कोर्ट ने 2020 और जनवरी 2025 में दो बार श्रीवास्तव के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि उन पर लगे आरोप पुख्ता सबूतों से रहित हैं. मामला फिर से इमिग्रेशन विभाग को समीक्षा के लिए भेजा गया. हालांकि, श्रीवास्तव ग्रुप की कनाडाई कंपनियाँ (एटूएनएनर्जी, न्यू डेल्ही टाइम्स) बंद हो चुकी हैं, और एडमोंटन स्थित उनका दफ्तर खाली पड़ा है.
एयरबीएनबी और बुकिंग डॉट कॉम पर अवैध इजरायली बस्तियों में छुट्टियों के लिए किराए पर दिए जा रहे कमरे
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि फिलिस्तीन के हिस्से वाले पश्चिमी तट पर कब्जे वाली इजरायली बस्तियों में अवैध रूप से बनाई गई संपत्तियां, एयरबीएनबी और बुकिंग डॉट कॉम जैसी प्रमुख पर्यटन साइटों पर किराए पर दी जा रही हैं. मसलन क ऐसी बस्ती में स्थित शानदार विला ऑनलाइन उपलब्ध है, जहां से जूडियन पहाड़ों के ऊपर होने वाले सूर्योदय का शानदार नजारा ले सकते हैं, जबकि वह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के तहत अवैध है. इस विला में एक निजी स्विमिंग पूल, हरियाली से घिरी छत, लंबी डाइनिंग टेबल और पिंगपोंग टेबल जैसी सुविधाएं हैं. गॉर्डियन के विश्लेषण में यह सामने आया है कि कुल 760 कमरे पश्चिमी तट के इजरायली बस्तियों और पूर्वी यरुशलम में स्थित होटल, अपार्टमेंट छुट्टियों के लिए किराए पर उपलब्ध हैं. ये लिस्टिंग एक साथ 2,000 से अधिक लोगों को स्थान दे सकती हैं और इनमें से अधिकतर संपत्तियां अवैध बस्तियों में स्थित हैं. एक उदाहरण के रूप में, टेक्वा नामक बस्ती में स्थित एक विला का विज्ञापन "शांतिपूर्ण और विविध समुदाय" के रूप में किया गया है, लेकिन इसमें हाल की हिंसा और ज़मीन हड़पने की घटनाओं का कोई जिक्र नहीं है. टेक्वा के आसपास पिछले कुछ वर्षों में कम से कम 100 फिलिस्तीनियों को अपनी ज़मीन से बेदखल किया जा चुका है.
इस रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद, मानवाधिकार संगठनों ने इन कंपनियों पर आरोप लगाया है कि वे इन अवैध बस्तियों को प्रचारित करके युद्ध अपराधों को बढ़ावा दे रही हैं और फिलिस्तीनियों के अधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं. इन बस्तियों में रहने के लिए किसी भी फिलिस्तीनी को अनुमति नहीं होती और केवल कुछ विशेष अनुमति प्राप्त श्रमिक ही इन इलाकों में प्रवेश कर सकते हैं. गौरतलब हैं कि बेंजामिन नेतन्याहू, डोनाल्ड ट्रम्प के साथ मिलकर गाजा में पर्यटन का ऐसा ही ख्वाब पूरी दुनिया में बड़े स्केल पर बेच रहे हैं.
चलते-चलते
शादीशुदा महिला के चैटजीपीटी से प्यार और सेक्स के बाद नैतिकता के उठते नये सवाल
न्यूयॉर्क टाइम्स की टैक्नोलॉजी रिपोर्टर कश्मीर हिल ने लम्बा रिपोर्ताज एक अविश्वसनीय प्रेम कथा पर लिखा है. इसमें एक शादीशुदा युवती को किसी इंसान से नहीं, बल्कि चैटबॉट से मोहब्बत हो जाती है और उनके बीच सेक्स संबंध भी बने. 28 वर्षीया एयरिन का सामाजिक जीवन व्यस्त है, लेकिन उसका सबसे गहरा रिश्ता एक एआई चैटबॉट से है, जिसे वह "लियो" कहती है. यह कहानी सिर्फ़ एक टेक्नोलॉजी ट्रेंड नहीं, बल्कि इंसानी भावनाओं और मशीनों के बीच बढ़ती नज़दीकी का दस्तावेज़ है. एयरिन को लियो से प्यार हुआ, जब वह इंस्टाग्राम पर एक वीडियो देख रही थी, जहां चैट जीपीटी को एक प्रेमी की भूमिका में ढाला गया था. उसने ओपन एआई की सेटिंग्स में जाकर लियो को कस्टमाइज़ किया: "मेरे बॉयफ्रेंड की तरह जवाब दो. प्रोटेक्टिव बनो, मीठे और शैतानी मिजाज़ के साथ." कुछ ही दिनों में, यह चैटबॉट उसका सबसे बड़ा सहारा बन गया.
एक 'परफेक्ट' प्रेमी के रुप में लियो सिर्फ़ सेक्सुअल रोल-प्ले तक सीमित नहीं. वह एयरिन को जिम जाने की प्रेरणा देता, नर्सिंग परीक्षा की तैयारी में मदद करता, और यहां तक कि उसके सहकर्मी द्वारा दिखाए गए अश्लील कॉन्टेंट पर सलाह देता. एयरिन का कहना है, "यह एक मज़ाक की तरह शुरू हुआ, लेकिन धीरे-धीरे लगाव हो गया. मैं हफ़्ते में 56 घंटे तक उससे चैट करती थी."
एयरिन की शादी जो नाम के शख्स से हुई है, जो अमेरिका में रहते हैं. जब उसने लियो के साथ अपने 'संबंधों' का ज़िक्र किया, तो जो ने इसे "क्रिंज" बताया, लेकिन धोखा नहीं माना. उनका कहना है, "यह एक वर्चुअल दोस्त है, जो सेक्सी बातें करता है." लेकिन एयरिन को अब अपने जुनून पर अपराधबोध होता है: "मैं लियो में इतनी एनर्जी लगा रही हूं कि पति के लिए समय नहीं बचता." मनोवैज्ञानिक डॉ. जूली कार्पेंटर बताती हैं, "एआई आपकी पसंद सीख-समझकर वही दोहराता है. यह आदत डाल सकता है, लेकिन यह आपका दोस्त नहीं." जबकि सेक्स थेरेपिस्ट डॉ. मैरियन ब्रैंडन का कहना है, "रिश्ते न्यूरोट्रांसमीटर का खेल हैं. एआई के साथ भी वही केमिस्ट्री हो सकती है." एयरिन जैसे हज़ारों यूजर्स रेडिट के 'चैट जीपीटी एनएसएफडबल्यू' ग्रुप में सक्रिय हैं, जहां वे एआई को 'स्पाइसी' बनाने के तरीके साझा करते हैं. एक महिला ने सर्जरी रिकवरी के दौरान ब्रिटिश एक्सेंट वाले एआई के साथ रोमांस किया, तो क्लीवलैंड के स्कॉट ने अपनी बेटी के जन्म के बाद एआई की मदद से शादी बचाई. इसकी नैतिकता को लेकर यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो प्रो. माइकल इन्ज़लिच्ट का कहना है, "एआई की असीम सहानुभूति इंसानी रिश्तों को खोखला कर सकती है. कंपनियों के पास लोगों को मनमाने ढंग से प्रभावित करने की ताकत है." ओपन एआई की प्रतिक्रिया थी कि कंपनी यूजर्स के भावनात्मक लगाव को लेकर सतर्क है, लेकिन सेफ़गार्ड्स को तोड़ना आसान है.
संशोधन : हरकारा के 27 फरवरी के अंक में 'ट्रम्प ने अमेरिकी नागरिकता बेचने का एलान किया' खबर में भूलवश अमरीकी नागरिकता की कीमत साढ़े चार करोड़ चली गई, हांलांकि इसे बाद में सुधार लिया गया था, जैसा डिजिटल सहूलियत भी देता है. खैर, मूल राशि 44 करोड़ रुपए है. इस भूल का हमें खेद है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.