28/03/2025 : एक तिहाई जीडीपी अमीरों के पास | हर 5वां अमीर देश छोड़ने को आतुर | स्कूल छोड़ रहे हैं बच्चे | अमित शाह के खिलाफ नोटिस खारिज | ट्रम्प का टैरिफ वॉर कार बाज़ार में शुरू
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
दो माह बाद भी, भगदड़ के मृतकों के परिजनों को 25 लाख की प्रतीक्षा
मंदिर में कन्हैया के जाने के बाद 'धुलाई’
इमिग्रेशन विधेयक पास
तमिलनाडु विधानसभा में वक़्फ़ विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित
इतना हंगामा क्यों है एडोलसेंस वेब सीरीज पर
अरबपतियों के पास भारत की जीडीपी का एक तिहाई, हर पांचवा अमीर देश छोड़ने की ताक में
284 भारतीय अरबपतियों की कुल संपत्ति देश की जीडीपी का एक तिहाई है, एक रिपोर्ट में गुरुवार को कहा गया. गौतम अडानी, जो गुजरात के अहमदाबाद में स्थित समूह का नेतृत्व करते हैं, अपनी संपत्ति में 1 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि के साथ वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी कमाई करने वाले बनकर उभरे हैं. उनकी कुल संपत्ति अब 8.4 लाख करोड़ रुपये हो गई है. हुरुन ग्लोबल रिच लिस्ट में बताया गया है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी की संपत्ति 13 प्रतिशत की गिरावट के बाद ₹8.6 लाख करोड़ हो गई है. हालांकि, उनकी 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की दौलत ने उन्हें एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति का खिताब पुनः हासिल करने में मदद की है. अडानी, जिन्होंने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अपनी संपत्ति में एक बड़ी गिरावट का सामना किया था, ने पिछले साल अपनी संपत्ति में 13 प्रतिशत की वृद्धि देखी है.
भारत से हर पांचवा अमीर कटने के फिराक़ में : कोटक बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के हर पाँच 'अल्ट्रा-हाई नेट वर्थ' व्यक्तियों में से एक विदेश जाने की योजना बना रहा है. पेशेवर वर्ग, विशेषकर 36-40 और 61+ आयु वर्ग के लोग, उद्यमियों की तुलना में अधिक पलायन को तैयार हैं. 2028 तक देश में अल्ट्रा-अमीरों की संख्या 4.3 लाख तक पहुँचने का अनुमान है. यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब भारत की कुल संपत्ति और अमीरों की आबादी तेजी से बढ़ रही है.
मंदिर में कन्हैया के जाने के बाद 'धुलाई : 'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि बिहार के सहरसा जिले में एक मंदिर के कथित तौर पर धोए जाने की घटना ने राजनीतिक बहस छेड़ दी है. कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार के दौरे के बाद ग्रामीणों द्वारा मंदिर धोने का वायरल वीडियो सामने आने के बाद कांग्रेस ने सवाल किया कि क्या गैर-भाजपाई समर्थकों को "अछूत" समझा जाएगा, जबकि भाजपा ने इसे कन्हैया की राजनीति के "खिलाफ जनता की प्रतिक्रिया" बताया. कन्हैया कुमार भूमिहार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो एक उच्च जाति है. कन्हैया की यात्रा 16 मार्च को पश्चिम चंपारण से शुरू हुई और 31 मार्च को किशनगंज में समाप्त होगी. कन्हैया कुमार ने अपनी "पलायन रोको, नौकरी दो" यात्रा के तहत बंगांव गांव स्थित मां दुर्गा मंदिर का दौरा किया और वहां से संबोधन दिया. उनके जाने के बाद एक वीडियो में कुछ लोगों को मंदिर को पानी से धोते हुए देखा गया.
सीबीआई के लिए नए कानून की वकालत : आठ राज्यों ने सीबीआई को अपने क्षेत्राधिकार में मामलों की जांच के लिए प्रदत्त सामान्य सहमति चूंकि वापस ले ली है, लिहाजा एक संसदीय समिति ने नए कानून को लागू करने का सुझाव दिया है, ताकि देश की प्रमुख जांच एजेंसी बिना राज्यों की सहमति के मामलों की जांच कर सके. “डेक्कन हेराल्ड” में शेमिन जॉय की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ बीजेपी सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि आठ राज्यों द्वारा सामान्य सहमति को वापस लेने से सीबीआई की भ्रष्टाचार की जांच करने की क्षमता गंभीर रूप से सीमित हो गई है. समिति का मानना है कि एक नया कानून बनाया जा सकता है, जो सीबीआई को राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से संबंधित मामलों के लिए राज्य की सहमति के बिना व्यापक जांच शक्तियाँ प्रदान करे. इस कानून को बनाने में राज्य सरकारों के विचार भी लिए जाने चाहिए. कानून को इस प्रकार से तैयार किया जाना चाहिए कि यह राज्य की सुरक्षा से समझौता न करे.
जस्टिस वर्मा के तबादले को रोकने की मांग को लेकर सीजेआई से मुलाकात की : छह हाई कोर्ट बार एसोसिएशनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना से जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक जांच शुरू करने और इलाहाबाद हाई कोर्ट में उनके ट्रांसफर को रद्द करने का आग्रह किया है. इलाहाबाद, लखनऊ, मध्य प्रदेश (जबलपुर), गुजरात, कर्नाटक और केरल के हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सीजेआई से मिलकर अपनी बात रखी. बार और बेंच से बात करते हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा कि सीजेआई खन्ना ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा, हालांकि कोई वादा नहीं किया है." इस बीच, नकदी विवाद मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार 28 मार्च को सुनवाई होगी. अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा की याचिका में कहा गया है कि उक्त न्यायाधीश का तबादला करने के बजाय उन पर आपराधिक आरोप लगाए जाने चाहिए.
‘एक परिवार’ था ही नहीं, फिर भी धनखड़ ने अमित शाह के खिलाफ नोटिस खारिज किया
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कांग्रेस सांसद जयराम रमेश द्वारा गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ दिए गए विशेषाधिकार नोटिस को खारिज कर दिया. यह नोटिस अमित शाह द्वारा सोनिया गांधी पर "पूर्वनियोजित तरीके से उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से लगाए गए निराधार आरोपों" के संदर्भ में दिया गया था.
अमित शाह ने संसद में कहा था, "कांग्रेस के शासनकाल में ‘एक परिवार’ ने फंड को नियंत्रित किया. कांग्रेस अध्यक्ष इस समिति और सरकारी कोष का हिस्सा थे. हम जनता को क्या जवाब देंगे? वे सोचते हैं कि कोई पढ़ता नहीं, कोई ध्यान नहीं देता." यह बयान पीएम-केयर्स फंड (एनडीए सरकार द्वारा शुरू) और प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (कांग्रेस शासनकाल में शुरू) की तुलना करते हुए दिया गया था.
धनखड़ ने कहा कि शाह ने अपने दावे का समर्थन करने के लिए 1948 की एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया था कि एनपीएमआरएफ (प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष) "प्रधानमंत्री, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष, उप प्रधानमंत्री और अन्य सदस्यों की एक समिति द्वारा प्रबंधित किया जाएगा." यह दस्तावेज़, निश्चित रूप से, कहीं भी "परिवार" का उल्लेख नहीं करता है, जो कि रमेश के विशेषाधिकार प्रस्ताव का मुख्य बिंदु था. 1948 में कांग्रेस अध्यक्ष बी.पी. सीतारमैया थे, हालांकि जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. जब इसे पहली बार 1948 में स्थापित किया गया था, उस समय समिति के अन्य सदस्यों में "टाटा ट्रस्ट के एक प्रतिनिधि और उद्योग के एक अन्य प्रतिनिधि शामिल थे, जिन्हें भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ द्वारा चुना गया था.
इंडिया ब्लॉक ने बिरला को 8 बिंदुओं का पत्र सौंपा, कई मुद्दों पर चिंता : लोकसभा में स्पीकर ओम बिरला द्वारा सदन को अचानक स्थगित करने और विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत सदस्यों को "संसद के उच्च मानकों और गरिमा बनाए रखने" के लिए व्यवहार करने की सलाह देने के एक दिन बाद, गुरुवार को इंडिया गठबंधन दलों के प्रतिनिधिमंडल ने बिरला से मुलाकात की और कई मुद्दों पर चिंता व्यक्त की, जिसमें बिरला द्वारा सदन के बाहर दिए गए बयान का "राजनीतिकरण" भी शामिल है. प्रतिनिधिमंडल ने बिरला को एक पत्र सौंपा, जिसमें आठ मुख्य बिंदुओं का उल्लेख किया गया है. इनमें "लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति न होना", "विपक्ष के नेता को बोलने का अवसर न देना", और "कार्य सलाहकार समिति के निर्णयों की अनदेखी" शामिल हैं. अन्य मुद्दों में "स्थगन प्रस्तावों की उपेक्षा और अस्वीकृति", "निजी सदस्यों के बिल और प्रस्तावों की अनदेखी", "बजट और मांगों पर चर्चा में प्रमुख मंत्रालयों को बाहर रखना", "नियम 193 के तहत चर्चा की कमी" (जो बिना मतदान के तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों पर चर्चा की अनुमति देता है), और "विपक्षी सदस्यों के माइक्रोफोन बंद करना" शामिल है.
लोकसभा में इमिग्रेशन विधेयक पास : लोकसभा ने गुरुवार को इमिग्रेशन और विदेशी विधेयक, 2025 को पारित कर दिया. इस पर हुई बहस का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जो लोग व्यापार, शिक्षा और निवेश के लिए भारत आते हैं, उनका स्वागत है, लेकिन जो सुरक्षा के लिए खतरा बनते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून देश की सुरक्षा को मजबूत करेगा, अर्थव्यवस्था और व्यापार को बढ़ावा देगा, साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों को प्रोत्साहित करेगा. शाह ने यह भी कहा कि विधेयक यह सुनिश्चित करेगा कि भारत आने वाले हर विदेशी के बारे में देश को अद्यतन जानकारी प्राप्त हो. हालांकि, विपक्ष के सांसदों ने दावा किया कि इस विधेयक के कुछ प्रावधान इमिग्रेशन अधिकारियों को "मनमानी शक्तियां" देते हैं, लिहाजा इसे विस्तृत परीक्षण के लिए जेपीसी को भेजा जाना चाहिए. लेकिन, विपक्ष की मांग और उनके विभिन्न संशोधनों को खारिज कर विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया
चीन के साथ कैलाश यात्रा और उड़ानों पर चर्चा : भारत और चीन ने बीजिंग में हुई वार्ता में कैलाश-मानसरोवर यात्रा की शुरुआत और सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने पर प्रगति की. हालाँकि, चीन के बयान में यात्रा का जिक्र नहीं था. यह बैठक द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की पृष्ठभूमि में हुई.
गाडलिंग और जगताप की जमानत याचिकाओं पर स्थगन बरकरार : सुप्रीम कोर्ट ने वकील सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता ज्योति जगताप की जमानत याचिकाओं की सुनवाई टाल दी. एनआईए ने महेश राउत को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत को चुनौती दी है, जिस पर अदालत ने स्टे लगा रखा है. न्यायमूर्ति एमएम सुंद्रेश और राजेश बिंदल की पीठ मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय करेगी.
दो माह बाद भी, भगदड़ के मृतकों के परिजनों को 25 लाख की प्रतीक्षा
प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान हुई दुखद भगदड़ में मारे गए 30 लोगों (सरकारी आंकड़ा) के शोक संतप्त परिवारों को दो माह बाद भी अब तक मुआवजा नहीं मिला है. उत्तरप्रदेश सरकार के वादे के अनुसार 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना था. “द इंडियन एक्सप्रेस” की खबर है कि आदित्यनाथ सरकार की ओर से आश्वासन मिलने के बावजूद, पीड़ितों के परिजनों को अनिश्चितता में छोड़ दिया गया है, क्योंकि पीड़ितों की सूची या मुआवजे की स्थिति पर कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं दी गई है. परिवारों को बार-बार विभिन्न अधिकारियों के पास भेज दिया जाता है. कई परिवारों को मृतकों के मृत्यु प्रमाण पत्र भी प्रदान नहीं किए गए हैं. परिवारों का कहना है कि उन्हें मुआवजे या दस्तावेज़ीकरण के संबंध में कोई आधिकारिक सूचना प्राप्त नहीं हुई है. मुआवजे की प्रतीक्षा करने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं है.
कठुआ में 3 जवान शहीद : जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में गुरुवार को 3 जवान शहीद हो गए. तीन जवान घायल भी हुए हैं. इनमें जम्मू-कश्मीर पुलिस के दो और सेना का एक जवान शामिल है. दो आतंकियों के भी मारे जाने की खबर है. मुठभेड़ वाली जगह पर चार आतंकियों के सक्रिय होने की खबर मिली थी. सर्च ऑपरेशन अब भी जारी है.
चीतों पर लोगो ने पत्थर मारे : मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में नामीबियाई चीता 'ज्वाला' और उसके चार शावकों पर ग्रामीणों ने पत्थरबाजी की, जब वे एक बछड़े का शिकार करने लगे. वन अधिकारियों ने बताया कि चीता परिवार सुरक्षित है. विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि चीतों का प्राकृतिक विस्थापन मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा सकता है.
मोदी की यूनुस को चिट्ठी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पत्र लिखकर बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री प्रो. यूनुस और बांग्लादेश के लोगों को 26 मार्च को उनके स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी है. 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर रहमान ने 1971 में पाकिस्तान से देश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी. इस दिन को भारतीय सेना बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में अपनी भूमिका को याद करने के लिए विजय दिवस के रूप में मनाता है. उन्होंने लिखा, “हम शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए अपनी साझा आकांक्षाओं और एक-दूसरे के हितों और चिंताओं के प्रति पारस्परिक संवेदनशीलता के आधार पर इस साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.” यह पत्र ऐसे समय में आया है, जब भारत-बांग्लादेश संबंध अशांत दौर से गुजर रहा है. बांग्लादेश अपदस्थ प्रधान मंत्री शेख हसीना को निर्वासित करने की मांग कर रहा है और भारतीय नेता बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं.
धोखाधड़ी के कारण अमेरिका ने किये भारत में 2,000 वीजा अपॉइंटमेंट रद्द : भारत में अमेरिकी दूतावास ने एक्स पर घोषणा की है कि कांसुलर टीम इंडिया ने बुधवार को 2,000 वीजा अपॉइंटमेंट रद्द कर दिए हैं, जो बॉट्स का उपयोग करके बुक किए गए थे. पिछले साल, अमेरिकी दूतावास ने एक आंतरिक जांच की और 30 एजेंटों की सूची तैयार की, जिन्होंने आवेदकों के लिए वीजा सुरक्षित करने के लिए जाली दस्तावेज जमा करके अमेरिकी सरकार को ‘धोखा’ दिया. मामले की जांच चल रही है. वीजा नियुक्तियों को रद्द करना ट्रम्प प्रशासन की ओर से 'डंकी' मार्ग सहित अवैध तरीकों से देश में प्रवेश करने वाले लोगों पर कार्रवाई के तुरंत बाद हुआ है. दो महीने पहले डोनाल्ड ट्रम्प ने पदभार संभालने के बाद अमेरिकी प्रशासन ने सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के वादे के तहत हजारों लोगों को निर्वासित किया था.
शिक्षा
दो वर्षों में स्कूल नामांकन में गिरावट, प्राथमिक स्तर पर 8% की कमी
देश ने 2023-24 में स्कूलों में बच्चों के नामांकन में चिंताजनक गिरावट दर्ज की है, विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर, जहां 2021-22 की तुलना में बच्चों की संख्या में लगभग आठ प्रतिशत की कमी रही. यह जानकारी गुरुवार को संसद में प्रस्तुत की गई.
लोकसभा में जनजातीय लोगों के जीवन स्तर पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में, केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने बताया कि प्राथमिक स्तर पर जनजातीय छात्रों का सकल नामांकन अनुपात (ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो-जीईआर) 2021-22 में 103.4 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 97.1 प्रतिशत हो गया. इसके मुकाबले, सभी समुदायों के छात्रों का जीईआर 2021-22 में 100.13 प्रतिशत से तेजी से घटकर 2023-24 में 91.7 प्रतिशत हो गया. जबकि कक्षा 9-10 के माध्यमिक स्तर पर, जनजातीय छात्रों का जीईआर 2021-22 में 78.1 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 76.9 प्रतिशत हो गया. उधर, पीएम नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में 54 प्राइमरी स्कूलों को बंद कर दिया गया है. “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में दिलीप सिंह क्षत्रिय की खबर है कि पिछले दो वर्षों में राज्य के 33 जिलों में 54 सरकारी प्राथमिक स्कूलों को छात्रों के नामांकन में भारी गिरावट के कारण बंद कर दिया गया है.
यह जानकारी विधानसभा में शिक्षा मंत्री द्वारा कांग्रेस विधायक किरीट पटेल (पाटन) के सवाल के जवाब में दी गई, जिससे राज्य में गहराते शिक्षा संकट का पता चला.
स्कूलों में नियमित उपस्थिति जरूरी, अन्यथा 12वीं बोर्ड में बैठने की अनुमति नहीं
इधर, सीबीएसई के अधिकारियों ने कहा कि स्कूलों में नियमित उपस्थित न पाए जाने वाले छात्रों को कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षाओं में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी. डमी स्कूलों पर अपनी कार्रवाई जारी रखते हुए, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) परीक्षा उपनियमों में संशोधन करने पर विचार कर रहा है, ताकि ऐसे छात्रों को बोर्ड परीक्षा देने से रोका जा सके. इन छात्रों को राष्ट्रीय ओपन स्कूल संस्थान (एनआईओएस) की परीक्षा देनी होगी. सीबीएसई ने स्पष्ट किया है कि यदि छात्र नियमित स्कूलों में उपस्थित नहीं होते हैं या बोर्ड के निरीक्षण में अनुपस्थित पाए जाते हैं, तो उन्हें बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इसके अलावा, बोर्ड ने 75% उपस्थिति अनिवार्य कर दी है ताकि छात्र परीक्षा के लिए पात्र हो सकें.
तमिलनाडु विधानसभा में वक़्फ़ विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित
तमिलनाडु सरकार ने 27 मार्च को राज्य विधानसभा में केंद्र सरकार के वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया, जिसमें कहा गया कि यह विधेयक ‘राजनीतिक हस्तक्षेप की अनुमति देने और धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने’ का प्रयास है. संसद में विधेयक को पूरी तरह से वापस लेने की मांग करने वाले प्रस्ताव को ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) सहित राज्य की लगभग सभी पार्टियों के समर्थन से पारित किया गया. इस प्रस्ताव का विरोध सिर्फ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने किया और वह सदन से वॉकआउट कर गई. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा, “हम इस विधेयक का विरोध कई कारणों से कर रहे हैं. यह विधेयक केंद्र सरकार के नियंत्रण को बढ़ाता है, जबकि राष्ट्रीय और राज्य वक़्फ़ बोर्डों के अधिकार को कम करता है. यह उनकी स्वायत्तता के खिलाफ है. विधेयक के लागू होने से पहले या बाद में जिस वक़्फ़ भूमि को सरकारी संपत्ति घोषित किया गया है, वह वक़्फ़ बोर्ड की नहीं रहेगी, जिससे सरकार को ऐसी संपत्तियों को फिर से वर्गीकृत करने का अधिकार मिल जाएगा.”
स्टालिन ने कहा, “विधेयक में कहा गया है कि केवल वे लोग ही वक़्फ़ बोर्ड बना सकते हैं, जो पांच साल या उससे अधिक समय से इस्लाम का पालन कर रहे हैं, जिससे यह चिंता पैदा होती है कि गैर-मुस्लिमों द्वारा बनाए गए वक़्फ़ बोर्ड अमान्य हो जाएंगे. केंद्र सरकार दो मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग बोर्ड बनाने का प्रयास कर रही है. विधेयक का उद्देश्य वक़्फ़ बोर्ड और अध्यक्ष पद के लिए चुनाव प्रक्रिया को रद्द करना भी है. इसमें यह भी अनिवार्य किया गया है कि बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम होने चाहिए. यह मुस्लिम धार्मिक प्रशासन में हस्तक्षेप है."
सीएम ने आगे कहा, “विधेयक का उद्देश्य वक़्फ़ अधिनियम की धारा 40 को निरस्त करना है, जिससे बोर्ड की संपत्ति की पहचान करने की शक्ति अमान्य हो जाएगी, तथा उक्त शक्ति केंद्र सरकार को हस्तांतरित हो जाएगी. यह संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है. केंद्र सरकार ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़’ श्रेणी को हटाने की भी योजना बना रही है, जो दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर संपत्तियों को वक्फ संपत्ति के रूप में मान्यता देने की परंपरा को समाप्त कर देगी. यह भी कहा गया है कि वक़्फ़ संपत्तियों पर ‘सीमा अधिनियम’ नामक सीमाओं का एक क़ानून लागू किया जाएगा. अंत में, ट्रस्ट और सार्वजनिक दान को अब वक़्फ़ नहीं माना जाएगा.”
सीएम ने यह भी बताया, “प्रस्तावित विधेयक के लिए संयुक्त संसदीय समिति में डीएमके समेत सभी विपक्षी दलों ने उपरोक्त चिंताओं को दर्ज कर लिया है. लेकिन समिति ने विपक्ष के सुझाव को खारिज कर दिया है." उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि इस विधेयक के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराना जरूरी है, जिसका उद्देश्य मुसलमानों को धोखा देना है.
यतनाल को वक़्फ़ पर बयानबाजी भारी पड़ी, भाजपा ने निकाला
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बसनगौड़ा पाटिल यतनाल को अनुशासनहीनता के बार-बार मामलों का हवाला देते हुए बुधवार को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है. यतनाल ने दिसंबर 2023 में आरोप लगाया था कि कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान येदियुरप्पा सरकार के तहत 40,000 करोड़ रुपये की अनियमितताएँ हुईं थी. हाल ही में यतनाल ने वक़्फ़ विधेयक में संशोधन के संबंध में एक जन जागरूकता अभियान का प्रस्ताव रखा था.
शर्जील ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया : शर्जील इमाम ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान दिसंबर 2019 में जामिया में हुई हिंसा के लिए अपने खिलाफ आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है. न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने गुरुवार को इमाम की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
मध्य प्रदेश में बेरोजगार के लिए नया नाम
मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार अब शहरों, जिलों, सड़कों और योजनाओं के नाम बदलने से भी आगे बढ़ गई है. अब राज्य ने बेरोज़गार युवाओं का नाम बदल दिया है. मध्य प्रदेश के बेरोजगार अब बेरोजगार नहीं रहे, वह अब ‘आकांक्षी युवा’ हो गए हैं. इस पर विवाद होने पर मध्य प्रदेश के कौशल विकास मंत्री गौतम टेटवाल ने नए शब्द का बचाव किया. उन्होंने कहा, “रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगार लोगों की संख्या वास्तविक संख्या से अलग है. अगर कोई बेटा अपने पिता की दुकान पर काम करता है और रोजगार कार्यालय में पंजीकृत है, तो वह बेरोजगार नहीं है. बिना किसी स्थायी काम के 12,646 रुपये प्रति माह से कम कमाने वाला व्यक्ति बेरोजगार माना जा सकता है, लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसी स्थिति नहीं है.” कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल ने बेरोजगारों के नाम बदलने की आलोचना करते हुए कहा, "सरकार ने पहले जुलाई में 33 लाख बेरोजगार लोगों की सूचना दी थी. अब, यह वास्तविक आंकड़े साझा करने से बचती है, क्योंकि उसे विरोध का डर है. संकट को हल करने के बजाय, वे बस इसका नाम बदल रहे हैं."
4 अमेरिकी सैनिकों समेत पानी में डूबा मिला वाहन : 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि चार अमेरिकी सैनिकों के लापता होने के बाद उनका वाहन लिथुआनिया में पानी में डूबा हुआ पाया गया है. अमेरिकी सेना ने बताया है कि सैनिकों की तलाश अभी भी जारी है. ये सैनिक जनरल सिल्वेस्ट्रास झ़ुकाउसकस प्रशिक्षण मैदान में एक सैन्य अभ्यास के दौरान लापता हो गए थे.
दक्षिण कोरिया जल रहा है, 37,000 लोग हटाए गये : 'द गार्डियन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण कोरिया में अधिकारियों को अब तक की सबसे भीषण प्राकृतिक आग आपदा का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें जंगल की आग एक दिन में दोगुनी हो गई है. देश के उत्तर ग्योंगसांग प्रांत में कम से कम 26 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों इमारतें नष्ट हो गई हैं. देश के आपदा प्रमुख ने इस घटना को वैश्विक तापमान वृद्धि की "कठोर वास्तविकता" करार दिया है. सूखे मौसम और तेज़ हवाओं के कारण नुकसान और अधिक बढ़ गया है. 36,000 हेक्टेयर (88,960 एकड़) से अधिक भूमि जल चुकी है या अब भी जल रही है. यह आग मध्य उइसेओंग काउंटी से शुरू हुई थी और अब यह दक्षिण कोरिया के इतिहास की सबसे बड़ी जंगल की आग बन गई है. लगभग 37,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है. कार्यवाहक राष्ट्रपति हान डक-सू ने इसे "राष्ट्रीय संकट" करार देते हुए कहा, "जंगल की आग के अभूतपूर्व तेज़ी से फैलने के कारण देश गंभीर स्थिति में है. कई वृद्ध लोग, विशेष रूप से नर्सिंग अस्पतालों में रहने वाले, खतरे में हैं."
ज़ेलेंस्की का संघर्ष : ट्रम्प के अपमान और पुतिन के निशाने के बाद टाइम पत्रिका के कवर पर
वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की, यूक्रेन के राष्ट्रपति, ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ हुई तनावपूर्ण बैठक और युद्ध की वर्तमान स्थिति पर टाइम मैग़जीन से अपने विचार साझा किए. यह बैठक, जो फरवरी 2025 में हुई, यूक्रेन के लिए निर्णायक साबित हुई, क्योंकि ट्रम्प ने ज़ेलेंस्की पर "कमज़ोर" और "खतरनाक" होने का आरोप लगाते हुए उन्हें विश्व युद्ध-III का जुआरी बताया.
ज़ेलेंस्की ने ट्रम्प को प्रभावित करने के लिए यूक्रेनी युद्धबंदियों की हृदयविदारक तस्वीरें भेंट कीं, जिससे ट्रम्प नाराज़ हो गए. उनका इरादा ट्रम्प को मानवीय संवेदना से जोड़ना था, लेकिन बातचीत विवाद में बदल गई. ट्रम्प ने यूक्रेन को सैन्य सहायता रोक दी, जिससे यूक्रेनी सेना को रूसी हमलों का पूर्वानुमान लगाने में दिक्कत हुई. हालांकि, ज़ेलेंस्की का मानना है कि उन्होंने यूक्रेन की "गरिमा" की रक्षा की.
मोश्चुन गाँव का महत्व : 2022 में यहाँ हुए युद्ध ने कीव को रूसी कब्ज़े से बचाया. तीन साल बाद, इसकी वर्षगांठ पर आयोजित समारोह में ज़ेलेंस्की ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी, लेकिन यह प्रोपेगैंडा और वास्तविकता के बीच की रेखा को धुंधला करता नज़र आया.
यूक्रेन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन बरकरार रहा. चेक राष्ट्रपति पेट्र पावेल जैसे सहयोगियों ने यूक्रेन को लाखों तोपखाने के गोले दान किए. पावेल मानते हैं कि युद्ध का अंत कोरिया या बर्लिन दीवार जैसे "जमे हुए संघर्ष" की तरह हो सकता है.
ज़ेलेंस्की का "शांति फॉर्मूला" (रूसी सेना की पूर्ण वापसी, युद्ध अपराधियों पर मुकदमा) अब धराशायी हो चुका है. ट्रम्प के दबाव में उन्हें केवल 5 बिंदुओं वाली नई योजना पेश करनी पड़ी, जिसमें नाटो में शामिल होने और खनिज संसाधनों तक अमेरिकी पहुँच शामिल है. ट्रम्प ने रूस को G-7 में वापस लाने और यूक्रेन के नाटो प्रवेश को रद्द करने की बात की, जिसे ज़ेलेंस्की "हिटलर को राजनीतिक अलगाव से मुक्त करने" के बराबर बताते हैं.
सैन्य संकट तब पैदा हुआ जब अमेरिकी सहायता रुकने से यूक्रेन को रूसी हमलों की जानकारी मिलनी बंद हो गई, जिसका सीधा असर कुर्स्क क्षेत्र में हार के रूप में दिखा. ट्रम्प से टकराव के बावजूद, यूक्रेन में ज़ेलेंस्की की लोकप्रियता 70% तक पहुँच गई. अमेरिकी जनता का बहुमत भी पुतिन पर अविश्वास और यूक्रेन के नाटो प्रवेश का समर्थन करता है.
ज़ेलेंस्की का मानना है कि ट्रम्प अब भी पुतिन को कमज़ोर समझने की भूल कर रहे हैं. वे अमेरिकी जनता से सीधे अपील करने और ट्रम्प को रूस के प्रति सख्त बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालाँकि, शांति वार्ता में रूस की बढ़ती माँगें (यूक्रेनी सेना का विघटन, सरकार का पतन) और ट्रम्प की रियायतें यूक्रेन की संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा हैं.
ज़ेलेंस्की की लड़ाई अब केवल युद्ध मैदान तक सीमित नहीं—यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जटिल दांव-पेंच और एक राष्ट्र की गरिमा की रक्षा की कहानी है. जैसा कि वे कहते हैं: "हमारी जीत का विश्वास कोई हमसे ज़्यादा नहीं करता."
टैरिफ जंग का बिगुल ट्रम्प ने कार बाज़ार में बजाया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 3 अप्रैल से अमेरिका में आयातित कारों और ऑटो पार्ट्स पर 25% का अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की है. इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन बढ़ाना है, लेकिन वैश्विक ऑटो उद्योग और उपभोक्ताओं पर इसके गंभीर आर्थिक प्रभाव होने की आशंका जताई जा रही है. ट्रम्प का दावा है कि टैरिफ़ से अमेरिकी नौकरियां बढ़ेंगी. यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स यूनियन ने इसका समर्थन किया. हालांकि, अतंरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि व्यापार युद्ध से कनाडा और मैक्सिको की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा.
टेस्ला इस नीति से कम प्रभावित होने वाली कंपनियों में शुमार है, क्योंकि इसकी अधिकांश उत्पादन क्षमता अमेरिका में ही स्थित है. हालांकि, टेस्ला के शेयर दिसंबर 2023 के मुकाबले 40% गिर चुके हैं, और सीईओ इलोन मस्क ने चेतावनी दी है कि चीन, दक्षिण कोरिया व मैक्सिको से आयातित पार्ट्स की लागत बढ़ने से कारों की कीमतें प्रभावित होंगी. विश्लेषकों के अनुसार, टेस्ला अमेरिकी बाजार में लाभान्वित हो सकती है, क्योंकि टैरिफ़ के बाद मध्यम वर्ग की क्रॉसओवर कारों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी.
पर फोर्ड, जनरल मोटर्स (GM), और स्टेलांटिस (क्रिसलर-डॉज की मातृ कंपनी) के शेयरों में 2% से 7% तक गिरावट दर्ज की गई. जापानी और जर्मन कार निर्माता (टोयोटा, होंडा, फ़ोक्सवैगन, बीएमडबल्यू) के शेयर भी लुढ़के. जर्मनी के अर्थमंत्री रॉबर्ट हाबेक ने टैरिफ़ को "मुक्त व्यापार के लिए खतरा" बताया.
यूरोपीय संघ में जर्मनी और फ्रांस ने अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिशोधी टैरिफ़ लगाने की बात कही. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने इसे "समय की बर्बादी" बताया. कनाडा के नये प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने टैरिफ़ को "सीधा हमला" कहा और जवाबी कार्रवाई का संकेत दिया. दक्षिण कोरिया की हुंडई ने अमेरिका में $21 बिलियन के निवेश की घोषणा कर ट्रम्प को खुश किया, पर व्यापार मंत्री ने चिंता जताई. उधर चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, "टैरिफ़ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता."
गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, अमेरिका में आयातित कारों की कीमत $5,000 से $15,000 तक बढ़ सकती है. एंडरसन इकोनॉमिक ग्रुप के अनुमान में, कनाडा-मैक्सिको से आयातित पार्ट्स पर टैरिफ़ से प्रति कार लागत $4,000 से लेकर $10,000 बढ़ेगी. मेक्सिको और कनाडा से अमेरिका को क्रमश: 25 लाख और 11 लाख कारों का आयात होता है. इनमें से अधिकांश मॉडल्स महंगे होकर बाजार से बाहर हो सकते हैं. अमेरिकी ऑटो पार्ट्स निर्यात ($35.8 बिलियन मेक्सिको, $28.4 बिलियन कनाडा) प्रभावित होने से 5.5 लाख कर्मचारियों के रोजगार को खतरा. यूएस-मैक्सिको-कनाडा (USMCA) करार के तहत फिलहाल कनाडा-मैक्सिको के पार्ट्स पर टैरिफ़ निलंबित, लेकिन मई तक नई व्यवस्था लागू होगी.
विश्लेषण
टॉम पेपिन्स्की : आग लगी हो लोकतंत्र में तो क्या कुछ किया जा सकता है?
टॉम पेपिन्स्की, कॉर्नेल विश्वविद्यालय अमेरिका में सरकार और लोक नीति के वॉल्टर एफ. लाफेबर प्रोफेसर तथा ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में गैर-निवासी वरिष्ठ फेलो हैं. वे वैश्विक राजनीतिक-आर्थिक प्रणालियों के अंतर्संबंधों का अध्ययन करते हैं, विशेषकर दक्षिणपूर्व एशिया पर. सामाजिक वर्गीकरण और सामाजिक विज्ञान में तर्क-निर्माण उनकी शोध के प्रमुख विषय हैं. वे जर्नल ऑफ़ ईस्ट एशियन स्टडीज़ के संपादक और दक्षिणपूर्व एशिया रिसर्च ग्रुप के सह-संस्थापक भी हैं. यह लेख उनकी वेबसाइट से अनुदित है, जो भारत और दूसरे धसकते लोकतंत्रों के लिए भी काम का हो सकता है.
पत्रकारिता. उच्च शिक्षा. संघीय नौकरशाही. गैर-लाभकारी संगठन. सेना. और अब वकील लोग! अमेरिका भर में इस समय इन और अन्य प्रतिष्ठित पेशेवर संस्थानों के लोगों के बीच एक ही बातचीत हो रही है. करियर पेशेवर अच्छी तरह जानते हैं कि ट्रम्प प्रशासन ने उनकी संस्थाओं पर अपनी माँगें मनवाने के लिए भारी दबाव डाला है- कुछ माँगें कानूनी हैं, कई नहीं ताकि वे संघीय फंड तक पहुँच बनाए रख सकें और और दंड से बच सकें.
इस पल की गंभीरता और किसी भी संस्था (कोलंबिया विश्वविद्यालय, एनबीसी न्यूज, पॉल वीस) के खिलाफ मुकदमों व दबाव के व्यवस्थागत प्रभाव को समझते हुए, ये प्रोफेशनल कौम अपने मालिकों, प्रशासकों, वरिष्ठों और संस्थापक साझीदारों से नेतृत्व और मार्गदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं. कुछ प्रमुख संस्थानों से सिद्धांतवादी नेतृत्व के सकारात्मक संकेत मिले हैं, जैसे प्रिंसटन विश्वविद्यालय के अध्यक्ष जोनाथन आइसग्रबर का हालिया में ‘द अटलांटिक’ में प्रकाशित लेख, जिसमें उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी पर ट्रम्प के हमले की निंदा की, या सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स का न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर दुर्लभ सार्वजनिक बयान.
लेकिन मुख्य रूप से, पत्रकारिता, उच्च शिक्षा, सेना और कानूनी पेशे के नेता ज़्यादातर चुप हैं. और इसलिए ये बातचीत इन सवालों के साथ खामोशी से, निजी तौर पर, डिनर टेबल पर, ग्रुप चैट में, दरवाज़े बंद और फ़ोन बंद करके जारी है. जो सवाल हैं- "क्या प्रशासन हमें और हमारे [मेरे पेशे के] सदस्यों को निशाना बनाएगा? क्या हमारे नेता [मेरे पेशे] की रक्षा करेंगे अगर वे हमारी संस्था पर आक्रमण करें?"
यह नागरिक समाज के लिए एक सामूहिक कार्रवाई का संकट है. यह उन कार्यकर्ताओं या आंदोलन नेताओं का तीव्र संकट नहीं है, जो पूर्व और वर्तमान सभी राष्ट्रपति प्रशासनों की नीतियों के विरोध में सबसे आगे काम करते हैं. बल्कि, यह उन मध्यवर्ती संस्थानों का संकट है जो अमेरिका के भीतर नागरिक समाज के कामकाज को सक्षम बनाते हैं—जिसे मैं गहन नागरिक समाज (डीप सिविल सोसाइटी)कहता हूँ. ये हैं:
कानूनी पेशा, जो नागरिकों को उनकी माँगें रखने और अधिकारों की रक्षा के लिए संसाधन देता है;
शैक्षणिक क्षेत्र, जो युवाओं को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में करियर के लिए तैयार करता है;
पत्रकार, जो सबसे शक्तिशाली राजनेताओं और ओलीगार्क्स के साथ-साथ गरीबों और हाशिए के लोगों को कवर करते हैं;
संघीय कर्मचारी, जो कांग्रेस द्वारा पारित कानूनों को ईमानदारी से लागू करते हैं;
सुरक्षा क्षेत्र, जो देश-विदेश में नागरिकों और निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.
सोशल मीडिया और प्रशासन के प्रचारकों की इस निरंतर धुन के बावजूद कि ये संस्थान "वोक" (जागरूकता) से ज़हरीले हो गए हैं और कट्टरपंथियों के कब्ज़े में हैं, गहन नागरिक समाज अपने स्वभाव से मूल रूप से रूढ़िवादी है. ये ऐसी संस्थाएँ हैं जहाँ पद, हैसियत और वरिष्ठता को स्वाभाविक और उचित माना जाता है. ये ऐसी संस्थाएँ हैं जहाँ पेशेवर और प्रशासनिक कर्मचारी अपने सार्वजनिक मिशन और ज़िम्मेदारी में विश्वास करते हैं. गहन नागरिक समाज के सार्वजनिक और निजी पक्षों के बीच असंख्य कड़ियाँ हैं—उन्नत शोध को समर्थन देने वाले संघीय फंड से लेकर सैन्य अधिकारियों और कानूनी पेशे के बीच पेशेवर रिश्ते तक. अकादमिक लोग सेना से सलाह लेते हैं क्योंकि दोनों पक्ष मानते हैं कि अमेरिकी सैन्य शक्ति का उपयोग समझदारी, न्यायसंगत और प्रभावी ढंग से होना चाहिए. नौकरशाह पत्रकारों को गोपनीय जानकारी देते हैं क्योंकि वे एक-दूसरे को जानते और सम्मान करते हैं.
वर्तमान समय की हैरान करने वाली बात यह है कि इतने सारे जुड़ाव और साझी चिंताओं के बावजूद, गहन नागरिक समाज की सामूहिक दुर्दशा को सार्वजनिक मान्यता नहीं मिली है. यह दो अर्थों में एक सामूहिक कार्रवाई समस्या है:
1. पहला, हर क्षेत्र के भीतर, व्यक्ति सामूहिक प्रतिक्रिया के मूल्य को पहचानते हैं, लेकिन खुलकर सामने आने से डरते हैं. कानून फर्में किसी "एलीट फर्म" का इंतज़ार कर रही हैं जो प्रशासन के खिलाफ सिद्धांतवादी रुख अपनाएगी. उच्च शिक्षा अधिक "आइसग्रबर्स" का इंतज़ार कर रही है.
2. दूसरा, यह समस्या इसलिए भी सामूहिक है क्योंकि पत्रकारिता से लेकर सुरक्षा क्षेत्र तक—हर क्षेत्र दूसरों के नेतृत्व से मज़बूत होता है. एक कानूनी पेशा जो झुकने से इनकार करता है, वह किसी भी प्रशासन के लिए पत्रकारों और शिक्षकों को निशाना बनाना मुश्किल बना देता है. एक सेना जो अवैध आदेश मानने से इनकार करती है, वह नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों को डराएगी नहीं. और इसी तरह आगे.
सामूहिक कार्रवाई की समस्याओं को दूर करना कुख्यात रूप से कठिन है. यह विशेष रूप से उन रूढ़िवादी संस्थानों के लिए मुश्किल है जो पहल करने पर वास्तविक परिणामों का सामना करते हैं. सामूहिक व्यवहार को प्रोत्साहित करने का एक तरीका उन लोगों को चुनिंदा प्रोत्साहन देना है जो संगठन और जुटाने का काम करते हैं. इस संदर्भ में, इसका मतलब है सार्वजनिक नेतृत्व. एक ऐसा प्रोत्साहन प्रशंसा है. कुछ कानून फर्मों, प्रशासकों और नौकरशाहों को मार्शल पेटेन (समर्पण करने वाला) के रूप में याद किया जाएगा. कुछ को चार्ल्स डी गॉल (प्रतिरोध का प्रतीक) के रूप में.
सामूहिक कार्रवाई पर काबू पाने का दूसरा तरीका है इसके ढांचे को ही खारिज कर देना. व्यक्तिगत इंसेटिव या प्रोत्साहन वास्तविक हैं, लेकिन सामूहिक प्रोत्साहन भी उतने ही वास्तविक हैं. जैसा कि कई लोगों ने सालों से कहा है—"हम साथ टिकेंगे या अलग-अलग गिरेंगे." गहन नागरिक समाज खंडित और व्यक्तिवादी है; वर्तमान क्षण हमारे साझे भाग्य और साझी ताकत की सामूहिक पहचान पर आधारित एक सामूहिक प्रतिक्रिया की माँग करता है. तो ऐसा ही हो.
पुस्तक चर्चा : नेहरू पर किताबें
'उनकी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, उपलब्धियों को कमतर आंका जाता है'
'द हिंदू' के लिए जिया उल सलाम ने अपने लेख में लिखा है कि पिछले एक दशक से नेहरू सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए आलोचना का प्रमुख निशाना रहे हैं. साल 2014 में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी माधव गोडबोले ने 'द गॉड हू फेल्ड : एन एसेसमेंट ऑफ जवाहर लाल नेहरूज लीडरशिप' नामक पुस्तक में नेहरू की धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की नीतियों पर सवाल उठाए. गोडबोले का मानना था कि नेहरू की कुछ नीतियाँ "मुसलमानों को खुश करने वाली" थीं. हाल के वर्षों में कई अन्य पुस्तकों में नेहरू को आज के भारत की लगभग हर समस्या के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है. हालांकि, इतिहासकार अदित्य मुखर्जी की नई किताब 'नेहरूज इंडिया : पास्ट, प्रेजेंट एंड फ्यूचर' में नेहरू के योगदान को उनके समय की परिस्थितियों के संदर्भ में समझने का प्रयास किया गया है. इतिहासकार इरफान हबीब ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है- "छोटे दिमाग वाले लोग नेहरू के नाम को संस्थानों से हटा सकते हैं, लेकिन जब तक सत्य और तर्क का महत्व है, नेहरू और उनका कार्य भुलाए नहीं जा सकते."
धर्मनिरपेक्षता की नींव : स्वतंत्रता के बाद देश सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहा था. 16 अगस्त 1947 को लाल किले से अपने भाषण में नेहरू ने स्पष्ट किया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा, न कि पाकिस्तान की तरह एक ‘हिंदू राष्ट्र’. उन्होंने कहा, "यह गलत है कि इस देश में किसी एक धर्म या समुदाय का शासन होगा. झंडे के प्रति निष्ठा रखने वाले सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होंगे." यह सिद्धांत 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम तक बना रहा.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण : नेहरू का वैज्ञानिक चिंतन आज के नेताओं के उलट था, जो पौराणिक कथाओं को विज्ञान बताते हैं. मुखर्जी लिखते हैं, "आज कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए गोबर, गोमूत्र और अवैज्ञानिक तरीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है." मुखर्जी स्पष्टवादी हैं और लिखते हैं, "आज नेहरू को देश की हर समस्या-विभाजन, पाकिस्तान, चीन, कश्मीर, गरीबी, शिक्षा संकट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. यहां तक कि सड़क के गड्ढों के लिए भी!" शशि थरूर ने 2003 में ही लिखा था : "नेहरूवाद का आकर्षण कम हो गया है. उनकी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, उपलब्धियों को कम करके आंका जाता है." मुखर्जी नेहरू को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर बताते हैं, जिन्होंने 1940 में कहा था- "प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब केवल वही छापना नहीं है, जो हमें पसंद है. एक तानाशाह भी ऐसी 'स्वतंत्रता' दे सकता है."
चलते चलते
इतना हंगामा क्यों है एडोलसेंस वेब सीरीज पर
"एडोलसेंस" वर्तमान समय का सबसे चर्चित शो होने के साथ-साथ एक युगांतकारी कृति भी है. 13 मार्च को रिलीज़ हुई यह नेटफ्लिक्स सीमित शृंखला किशोर इंटरनेट संस्कृति, स्त्री-विरोधी मानसिकता और पीढ़ीगत अंतर को दर्शाती है और इसे जबरदस्त सराहना मिली है. निर्देशक फिलिप बारंटिनी ने 'स्क्रोल' के लिए नंदिनी रामनाथ से बातचीत में कहा- "लोगों का शो को पसंद करना एक बात है, लेकिन इसका लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ना, उनकी सोच बदलना, विशेष रूप से उनके बच्चों या भाई-बहनों को लेकर..."
"एडोलसेंस" को जैक थॉर्न और स्टीफन ग्राहम ने लिखा है. इसमें चार एपिसोड हैं, जो 13 वर्षीय जैमी की कहानी के इर्द-गिर्द घूमते हैं, जिसे अपनी सहपाठी केटी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है. जैमी (ओवेन कूपर) खुद को निर्दोष बताता है, लेकिन पुलिस को उस पर शक है. जैमी के माता-पिता एडी (स्टीफन ग्राहम) और मांडा (क्रिस्टीन ट्रेमार्को) उसके अपराधी होने की संभावना, सामाजिक बहिष्कार और अपनी परवरिश पर सवालों से जूझते हैं. जैमी के स्कूल में जांचकर्ताओं को "इंसेल" (महिलाओं से द्वेष रखने वाले ऑनलाइन समुदाय) मानसिकता के संकेत मिलते हैं. सोशल मीडिया के जहरीले प्रभाव इस कहानी में अहम भूमिका निभाते हैं. यूके में विशेष रूप से यह शो अत्यधिक सराहा गया है. प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने इसे स्कूलों में दिखाने का समर्थन किया है. इसकी बेबाक प्रस्तुति और अनूठी कहानी कहने के अंदाज ने इसे प्रशंसा दिलाई है. निर्देशक बारंटिनी और सिनेमैटोग्राफर मैथ्यू लुईस ने इसे एक-टेक में फिल्माया, जिससे इसका प्रभाव और बढ़ गया. बारंटिनी इससे पहले "बॉयलिंग पॉइंट" (2021) फिल्म बना चुके हैं, जिसे इसी शैली में शूट किया गया था. बारंटिनी ने बताया कि यह शो किशोरों पर सोशल मीडिया के जहरीले प्रभावों को उजागर करता है. "जब मैं बड़ा हो रहा था, हमारे पास फोन, सोशल मीडिया या इंटरनेट नहीं था, लेकिन अब बच्चों के लिए सबसे खतरनाक जगह उनका खुद का कमरा बन गया है और यह भयानक है." लेखक जैक थॉर्न ने इंसेल संस्कृति और मैनोस्फीयर पर गहन शोध किया. शो में विशेष रूप से जैमी और उसकी काउंसलर ब्रियोनी (एरिन डोहर्टी) के बीच तीसरे एपिसोड में होने वाली बातचीत इस विषय को उजागर करती है. बारंटिनी ने कहा, "हम चाहते थे कि यह शो महज़ एक नाटक न लगे, बल्कि यह दर्शकों को वास्तविकता का अनुभव कराए." शो में केटी के परिवार और दोस्तों की प्रतिक्रिया को सीधे तौर पर नहीं दिखाया गया. बारंटिनी ने कहा कि पारंपरिक नाटकों में अक्सर पीड़ित और अपराधी दोनों पक्षों की कहानी दिखाई जाती है, लेकिन "एडोलसेंस" अपराधी के परिवार पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाने पर केंद्रित है. उन्होंने कहा, "हम चाहते थे कि केटी पूरे शो में एक उपस्थिति बनी रहे. इसलिए हमने उसकी आवाज़ को बैकग्राउंड म्यूजिक में इस्तेमाल किया." "एडोलसेंस" सिर्फ एक शो नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश है.
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