28/04/2025 : लोग लौटने शुरू | हमले की जमीन | कश्मीर की 80% बुकिंग रद्द | हमले के सांप्रदायिक रंग | दलित क्यों नहीं बनते बौद्ध | ट्रम्प का असली मास्टर स्ट्रोक | हबीब साहब की डिग्री
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
पाकिस्तान ने निष्पक्ष जांच के लिए रूस, चीन, ईरान को शामिल करने को कहा
आसिम अली : आतंकवादी हमले को सांप्रदायिक रंग देना
सिद्धार्थ वरदराजन : सरकार अपनी नाकामयाबी पर उठे सवालों से बचने की कोशिश कर रही है
आकार पटेल : ट्रम्प का असली मास्टरस्ट्रोक
कनाडा में कार टक्कर हमले में 11 लोग मारे गए
“मेरे पास नाटक में हबीब साहब की डिग्री है”
‘पाकिस्तान में अब मेरा कोई नहीं है!’
पचास साल भारत में रहने के बाद भी अपनों से बिछड़ने का दर्द
ओडिशा के बलांगीर में रहने वाली 56 वर्षीय शारदा कुकरेजा के जीवन में अचानक अंधेरा छा गया है. भारत सरकार के एक फैसले से उनका परिवार बिखर जाने वाला है. शारदा का जन्म 1970 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सुक्कुर शहर में हुआ था. 18 वर्ष की उम्र में वह अपने परिवार के साथ 60 दिन के वीज़ा पर भारत आई थीं और फिर कभी वापस नहीं गईं. ओडिशा के कोरापुट में आने के बाद उनकी शादी भारतीय नागरिक महेश कुकरेजा से हुई. तब से 35 साल बीत चुके हैं. आज शारदा के दो बच्चे हैं - एक बेटा और एक बेटी, दोनों विवाहित हैं और उनके पोते-पोती भी हैं. पूरा परिवार भारतीय नागरिक है, लेकिन शारदा अभी तक भारतीय नागरिकता नहीं पा सकी हैं. उनके बेटे के अनुसार, "हम हर साल नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन किसी अजीब कारण से यह हर बार खारिज हो जाता है."
पहलगाम आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने सभी पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश जारी किया है. ओडिशा पुलिस ने शारदा को भी नोटिस दिया है कि वह भारत छोड़ देंगी या फिर कानूनी कार्रवाई का सामना करें. "मैं नहीं जानती कि हम पाकिस्तान में कहां रहते थे. मेरे बच्चे यहां विवाहित हैं और बस गए हैं. मैं अपने परिवार को कैसे छोड़ सकती हूं? मैं एक भारतीय हूं. मैंने यहां एक भारतीय के रूप में जीवन बिताया है. हमारा पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं है. वहां से जुड़ी सिर्फ धुंधली यादें हैं," शारदा ने आंसू भरी आंखों से कहा.
"कृपया सरकार से कहें कि मुझे मेरे परिवार से अलग न करें. मैं मोदी सरकार से अपील करती हूं कि मुझे वापस न भेजें," उन्होंने पत्रकारों से कहा.
अटारी वाघा बॉर्डर पर दोनों तरफ से आवाजाही
अपनों से बिछड़ने का ग़म साफ दिख रहा था दोनों देशों के अजीजों पर
(अमृतसर के पास अटारी-वाघा सीमा पर अपने देश लौट रहे पाकिस्तानियों के पासपोर्ट की जांच करता सुरक्षाकर्मी. साभार: पीटीआई )
पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंध और बिगड़ गए, जब नई दिल्ली ने इस्लामाबाद के खिलाफ वीजा रद्द करने सहित कई उपायों की घोषणा की. पिछले चार दिनों में 537 पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा सीमा के रास्ते पाकिस्तान गए और 14 राजनयिकों-अधिकारियों समेत कुल 850 भारतीय पंजाब स्थित अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान से वतन लौटे हैं. मगर इस दौरान साझे रिश्ते और साझी विरासत का दर्द दोनों देशों के नागरिकों में साफ दिखा. अमृतसर जिले में अटारी सीमा पर वाहनों की कतार लग गई, क्योंकि पाकिस्तानी नागरिकों को अपने देश जाने की जल्दी थी. पाकिस्तानी नागरिकों को विदाई देने उनके कई भारतीय रिश्तेदार और दोस्त आए थे. दोनों देशों के नागरिकों में अपने अजीजों से बिछड़ने की कसक उनके चेहरों पर साफ-साफ झलक रहा था. गमगीन और अश्रुपूरित माहौल में आते-जाते देख रहे थे. सबकी आंखें समंदर बनी हुई थी.
सरिता और उनका परिवार 29 अप्रैल को होने वाली एक रिश्तेदार की शादी के लिए भारत आए थे. वह, उनका भाई और उनके पिता पाकिस्तानी हैं, जबकि उनकी मां भारतीय नागरिक है. सरिता ने हुलसकर बताया, “हमलोग नौ साल बाद भारत आए थे. वे (अटारी के अधिकारी) हमें बता रहे हैं कि वे मेरी मां को साथ नहीं जाने देंगे. मेरे माता-पिता की शादी 1991 में हुई थी. वे कह रहे हैं कि भारतीय पासपोर्ट धारकों को अनुमति नहीं दी जाएगी. कहते-कहते सरिता बिलख पड़ी थी. ऐसा ही कुछ हाल वहां मौजूद हर किसी के चेहरे पर देखी जा सकती थी.
अधिकारियों ने बताया कि पड़ोसी देश के नागरिकों की 12 श्रेणियों की अल्पकालिक वीजा की समय सीमा रविवार को समाप्त हो गई. अधिकारियों ने कहा कि कुछ पाकिस्तानी शायद हवाईअड्डों के जरिए भी भारत छोड़ गए होंगे. जिन 12 श्रेणियों के वीजा धारकों को रविवार तक भारत छोड़ना था, वे हैं - वीजा ऑन अराइवल, बिजनेस, फिल्म, पत्रकार, ट्रांजिट, कॉन्फ्रेंस, पर्वतारोहण, छात्र, आगंतुक, समूह पर्यटक, तीर्थयात्री और समूह तीर्थयात्री. हालांकि, दीर्घकालिक और राजनयिक या आधिकारिक वीजा रखने वालों को इस आदेश से छूट दी गई है. भारत ने भी इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से अपने रक्षा अताशे को भी वापस बुला लिया है.
हमले के लिए जमीन तैयार कर रहा भारत
पिछले सप्ताह पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दर्जन से अधिक विश्व नेताओं से फोन पर बातचीत की है. राजधानी नई दिल्ली में 100 से अधिक देशों के राजनयिक विदेश मंत्रालय में ब्रीफिंग के लिए पहुंचे हैं. लेकिन मोटे तौर पर यह प्रयास पाकिस्तान के साथ भारत के खतरनाक टकराव को कम करने के लिए मदद जुटाने के लिए नहीं, अपितु नई दिल्ली, अपने पड़ोसी और चिर-प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए आधार तैयार करती दिख रही है. मोदी ने वादा किया है कि "ऐसी सज़ा दी जाएगी जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते."
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि आतंकवादी हमले के पांच दिन बाद भारत ने आधिकारिक तौर पर किसी भी समूह को इस नरसंहार का जिम्मेदार नहीं ठहराया है और पाकिस्तान को इसके पीछे बताने के अपने दावे को साबित करने के लिए सार्वजनिक रूप से बहुत कम सबूत पेश किए हैं. जबकि पाकिस्तानी सरकार ने इसमें शामिल होने से इनकार किया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय में राजनयिकों को दी गई ब्रीफिंग में, भारतीय अधिकारियों ने पाकिस्तान द्वारा भारत को निशाना बनाने वाले आतंकवादी समूहों को दिए गए पिछले समर्थन के “पैटर्न” का उल्लेख किया है. उन्होंने हमले के दोषियों को पाकिस्तान से जोड़ने वाली तकनीकी खुफिया जानकारी का संक्षिप्त उल्लेख किया है, जिसमें उन दोषियों के चेहरे की पहचान वाला डेटा भी शामिल है, जिनके पाकिस्तान से संबंध होने की बात कही गई है. राजनयिक अधिकारियों ने कहा है कि उनकी जांच अभी जारी है.
विश्लेषकों और राजनयिकों का कहना है कि अब तक की प्रस्तुतियों के पूरी तरह से निर्णायक नहीं होने के दो संभावित कारण हो सकते हैं : या तो भारत को पाकिस्तान पर हमला करने से पहले आतंकवादी हमले के बारे में और जानकारी जुटाने के लिए अधिक समय चाहिए, या फिर-एक ऐसे समय में जब विश्व मंच पर विशेष रूप से अराजकता है-भारत को अपने किसी भी संभावित कदम के लिए किसी को भी सफाई देने की कोई खास आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है.
परमाणु हथियारों से लैस भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य टकराव, तेजी से बढ़ने वाले ऐसे जोखिम को जन्म देता है जिसे नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है. लेकिन भारत किसी भी वैश्विक दबाव से अपनी प्रतिक्रिया को सीमित करने के लिए बाध्य नहीं है, और हाल के वर्षों में अपनी कूटनीतिक और आर्थिक शक्ति के बढ़ने के साथ, वह अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन करने में और आगे बढ़ गया है.
ईरान और सऊदी अरब की सरकारों ने दोनों पक्षों से बातचीत की है, और ईरान के विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से मध्यस्थता की पेशकश की है. संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने संयम और संवाद की अपील की है. लेकिन प्रमुख शक्तियां, जिनमें अमेरिका भी शामिल है, अन्य संकटों में उलझी हुई हैं. विश्लेषकों का कहना है कि भारत, कई देशों द्वारा न्याय की उसकी कोशिशों के समर्थन को, किसी भी कदम के लिए हरी झंडी मान रहा है. ट्रम्प प्रशासन के अधिकारियों ने भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का जोरदार समर्थन किया है. राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वह भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ मित्रवत हैं, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से मतभेद रहे हैं.
लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वॉशिंगटन मौजूदा टकराव में कितनी सक्रियता से शामिल होगा. अपने कार्यकाल के तीन महीने बाद भी ट्रम्प ने भारत के लिए अभी तक कोई राजदूत नियुक्त नहीं किया है, जो यह दर्शाता है कि दक्षिण एशिया उनकी प्राथमिकताओं की सूची में कहां है. भले ही संयुक्त राज्य अमेरिका या अन्य शक्तियां इस संघर्ष में खुद को शामिल करने की कोशिश करें, उनका प्रभाव सीमित हो सकता है. भारत और पाकिस्तान कश्मीर को लेकर कई युद्ध लड़ चुके हैं और नई दिल्ली इस विवाद को केवल पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय मुद्दा मानती है.
वॉशिंगटन की प्रारंभिक प्रतिक्रिया ट्रम्प प्रशासन के प्रथम कार्यकाल के दौरान 2019 में कश्मीर पर हुए बड़े तनाव के दौरान अपनाए गए रुख के समान रही है, जैसा कि जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज़ के सीनियर फेलो डैनियल मार्की ने कहा. उस टकराव की शुरुआत एक हमले से हुई थी जिसमें दर्जनों भारतीय सुरक्षा बल मारे गए थे. उस समय व्हाइट हाउस ने भारत के प्रति समर्थन का संकेत दिया था. ट्रम्प प्रशासन ने भारत द्वारा पाकिस्तान पर सीमा पार हवाई हमले के बाद ही संयम के लिए राजनयिक दबाव बढ़ाया था. उस हमले की क्षति को लेकर विवाद था. इसके बाद, जब पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की, तो दोनों देशों के बीच डॉगफाइट हुई और एक भारतीय जेट को मार गिराया गया. पायलट को बंदी बना लिया गया. मार्की ने कहा कि उस असफल प्रतिक्रिया की भरपाई के लिए, इस बार सभी संकेत भारत की ओर से "कुछ शानदार" करने की इच्छा को दर्शाते हैं. पाकिस्तान ने भारत के किसी भी हमले का मुकाबला करने और उससे भी आगे जाने की कसम खाई है. मार्की के अनुसार, "यह बदले की कार्रवाई का चक्र तेजी से आगे बढ़ सकता है. भारत कश्मीर में आतंकवाद को पाकिस्तान के समर्थन को आधार बनाकर जवाबी सैन्य कार्रवाई का मामला बना रहा है. हालांकि, भारत ने अब तक निजी कूटनीतिक चर्चाओं में भी ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किए हैं, जिससे इस रणनीति पर सवाल उठे हैं. एक राजनयिक ने निजी तौर पर पूछा है कि क्या केवल पिछले पैटर्न के आधार पर एक परमाणु-सशस्त्र पड़ोसी के साथ युद्ध करना उचित है?
भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन ने कहा कि 2019 और 2016 में कश्मीर में हुए आतंकवादी हमलों के बाद मोदी के पास पाकिस्तान पर जवाबी हवाई हमले जैसी सैन्य कार्रवाई के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं थे. हालांकि, मेनन ने कहा कि दोनों विरोधी मुल्कों के बीच यह टकराव नियंत्रण से बाहर होने की संभावना कम है. “मैं खास चिंतित नहीं हूं, क्योंकि दोनों ही पक्ष "प्रबंधित शत्रुता की स्थिति" में बहुत खुश हैं,” मेनन ने कहा.
पाकिस्तान ने निष्पक्ष जांच के लिए रूस, चीन, ईरान को शामिल करने को कहा
पाकिस्तान ने हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले की जांच के लिए रूस, चीन और ईरान का समर्थन मांगा है. रूसी सरकारी समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती को दिए गए एक साक्षात्कार में, पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा, "मुझे लगता है कि रूस, चीन या यहां तक कि पश्चिमी देश भी इस संकट में बहुत ही सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं. वे एक जांच टीम बना सकते हैं जिसे यह पता लगाने का काम सौंपा जाए कि भारत या श्री मोदी झूठ बोल रहे हैं या सच कह रहे हैं."
पहलगाम में मंगलवार को हुए इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे. यह 2019 के पुलवामा हमले के बाद कश्मीर घाटी में सबसे घातक हमला है. प्रतिबंधित पाकिस्तानी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी द रेजिस्टेंस फ्रंट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी अंतरराष्ट्रीय जांच का प्रस्ताव रखा है. आसिफ ने कहा, "आइए पता लगाएं कि अपराधी और इस घटना का कर्ता कौन है. भारत में, कश्मीर में, बातें या खाली बयानों का कोई प्रभाव नहीं होता. कुछ सबूत होने चाहिए कि पाकिस्तान शामिल है या इन लोगों को पाकिस्तान द्वारा समर्थन दिया गया था. ये सिर्फ बयान हैं, खाली बयान और कुछ नहीं."
इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (27 अप्रैल, 2025) को कहा कि पहलगाम हमले के "अपराधियों और षड्यंत्रकारियों" को "कठोरतम जवाब" दिया जाएगा.
मॉस्को स्थित एक स्वतंत्र अमेरिकी विश्लेषक एंड्रयू कोरीब्को ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों ने आश्चर्यजनक रूप से दो आत्म-छवि को नुकसान पहुंचाने वाले दावे किए हैं. उन्होंने अपने न्यूजलेटर में लिखा कि डिप्टी पीएम और विदेश मंत्री इशाक डार ने टिप्पणी की थी कि जो लोग हमले को अंजाम दे रहे थे, वे "स्वतंत्रता सेनानी" हो सकते हैं, जबकि रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अल जजीरा मीडिया को बताया कि यह एक "झूठा फ्लैग ऑपरेशन" हो सकता है.
कोरीब्को के अनुसार, "ये परिदृश्य अलग अलग हैं और बौद्धिक रूप से अपमानजनक हैं, और तथ्य यह है कि शीर्ष पाकिस्तानी अधिकारी अपनी कहानी सही नहीं बता सकते. लगता है कि वे अपने पक्ष की मिलीभगत को अनाड़ी तरीके से छिपाने की कोशिश कर रहे हैं."
ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियन के साथ एक फोन कॉल में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत-पाकिस्तान तनाव को कम करने में मदद करने के लिए ईरान की तत्परता का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान क्षेत्र में शांति चाहता है और यदि ईरान इस संबंध में कोई भूमिका निभाना चाहता है, तो इस्लामाबाद इसका स्वागत करेगा.
पहलगाम हमले पर टिप्पणियों के कारण 25 गिरफ़्तार : पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर टिप्पणियों के कारण देश में 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तारी मुख्य रूप से सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हुई हैं. अकेले असम में अब तक 16 गिरफ्तारियां हुई हैं. गिरफ्तार किए गए लोगों में एक विधायक, एक पत्रकार, छात्र, एक वकील और सेवानिवृत्त शिक्षक शामिल हैं.
कश्मीर में 80% पर्यटकों की बुकिंग रद्द
राज्य के व्यापारियों को कचोट रहा है अपनी धरती पर बेगुनाहों के मारे जाने का दर्द
पहलगाम आतंकी हमले ने कश्मीर के पर्यटन उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है. 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम आतंकी हमले के बाद हजारों पर्यटकों ने कश्मीर में अपनी छुट्टियां बीच में ही छोड़ दी हैं और विशेष उड़ानों और ट्रेनों से वापस चले गए हैं. कश्मीर होटल एसोसिएशन (केएचए) ने शनिवार को श्रीनगर में कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के मद्देनजर कश्मीर आने वाले पर्यटकों की 80% बुकिंग रद्द कर दी गई है.
केएचए के चेयरमैन मुश्ताक चाया ने कहा, “बुकिंग कैंसिलेशन हुए, हम समझ सकते हैं. जो हुआ, उसे देखते हुए यह स्वाभाविक है.” उन्होंने जोर देकर कहा, “जम्मू-कश्मीर में पर्यटन से जुड़े लोगों के कारोबार को हुए नुकसान से वह चिंतित नहीं हैं. दुख इस बात का है कि यह घटना हमारी धरती पर हुई. कश्मीर के लोगों ने इस कृत्य की निंदा की है. सभी लोग विरोध में शामिल हुए और बंद का आयोजन किया, जो पहली बार हुआ. वक़्त सबसे अच्छा मरहम है.”
वहीं कश्मीर में पर्यटन कारोबार के पहुंचे नुकसान से राज्य के बाहर के भी व्यापारी दुखी हैं. मुंबई स्थित पूजा हॉलिडेज के प्रमुख सतीश वैश्य ने कश्मीर में पर्यटन को समर्थन दिया. वैश्य ने श्रीनगर में संवाददाता सम्मेलन में कहा, “कश्मीर में पर्यटन में वृद्धि और मंदी के दौर लगातार आते रहते हैं. 2010 की कठिन घटनाओं के बाद 2014 में बाढ़ आई. फिर 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने से यहां के पर्यटन को नुकसान पहुंचा. हमने 2019 में पुलवामा हमले के बाद ‘कश्मीर का बहिष्कार’ अभियान देखा. हालांकि, हमने हमेशा ‘कश्मीर से प्यार करो, कश्मीर को बढ़ावा दो’ अभियान का समर्थन किया है. मुझे उम्मीद है कि पर्यटन फिर से बढ़ेगा.”
व्यापारियों ने हमले की निंदा : इस बीच, जाविद अहमद टेंगा की अध्यक्षता में कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार को राजभवन में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात की और “निर्दोष नागरिकों पर पहलगाम में हुए भीषण हमले की व्यापारिक समुदाय की निंदा व्यक्त की.” केसीसीआई प्रतिनिधिमंडल ने एलजी से कहा, “इस जघन्य हमले ने कश्मीर की आत्मा को गहरा घाव दिया है और हर नागरिक को तोड़ दिया है और हम सबको शोक संतप्त कर दिया है. यह समय व्यापार घाटे पर चर्चा करने का नहीं है. केसीसीआई हर निर्दोष व्यक्ति की जान जाने के दर्द को गहराई से महसूस करता है. ये दुखद मौतें आर्थिक विचारों से परे हैं और समाज और साझा मानवता के दिल पर चोट करती हैं.” केसीसीआई ने पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों के परिवारों से मिलने और उनके साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए एक यात्रा की सुविधा के लिए एलजी से समर्थन मांगा.
केसीसीआई ने कश्मीरी छात्रों, व्यापारियों और केंद्र शासित प्रदेश के बाहर रहने वाले अन्य लोगों को निशाना बनाए जाने पर भी चिंता व्यक्त की. उद्योग निकाय ने जम्मू-कश्मीर में शांति और प्रगति के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और इस वर्ष अमरनाथ यात्रा की सफलता के लिए पूर्ण समर्थन की पेशकश की.
विश्लेषण | राजनीति
आसिम अली : आतंकवादी हमले को सांप्रदायिक रंग देना
‘टेलीग्राफ’ के लिए राजनीतिक शोधकर्ता आसिम अली ने अपने लेख में पहलगाम हमले के बाद निकलते सियासी मतलबों को रेखांकित किया है. उसका सारांश.
जब किसी देश पर आतंकवादी हमला होता है, तो राजनीतिक नेतृत्व आमतौर पर दो प्रकार की प्रतिक्रिया देता है - सुरक्षा-केंद्रित और पहचान-केंद्रित. पहली में सैन्य और खुफिया कार्रवाई शामिल होती है, जबकि दूसरी में समुदाय के मूल मूल्यों की पुनः पुष्टि की जाती है.
नॉर्वे के 2011 के हमले के बाद, प्रधानमंत्री ने "खुले, सहिष्णु और समावेशी समाज" के मूल्यों की रक्षा का संकल्प लिया. मनमोहन सिंह ने 2008 के मुंबई हमलों के बाद कहा था कि हमलावरों का मकसद "हमारे धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को अस्थिर करना" था. पहलगाम हमले पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि "दुश्मनों ने भारत की आत्मा पर हमला किया है", लेकिन "भारत की आत्मा" के मूल्यों को परिभाषित नहीं किया.
इस बीच, मुख्यधारा का मीडिया, भाजपा नेता और सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी खाते हमले को 'हिंदू पीड़ितों' बनाम 'मुस्लिम आतंकवादियों' के सांप्रदायिक द्विभाजन के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. हमलावरों द्वारा हिंदू पहचान की जांच के बाद पर्यटकों की हत्या की गई, यह सबसे प्रमुख विशेषता बनाई जा रही है.
राजनीतिक वैज्ञानिक मरे एडेलमैन के अनुसार, अधिकतर लोगों के लिए राजनीति टेलीविजन, अखबारों और चर्चाओं द्वारा निर्मित मानसिक छवियों की एक शृंखला है. सत्तावादी विचारधारा के प्रचारक राजनीतिक घटनाओं को मिथकीय संघर्षों में बदलने में माहिर होते हैं, जिनमें 'मित्र' और 'शत्रु' प्रतीकात्मक रूप से निर्मित होते हैं.
समाचार चैनलों ने सांप्रदायिक कोडित और सरकार-समर्थक नारों के साथ ग्राफिक बैनर प्रदर्शित किए. इस परिदृश्य में "भारत" प्रतीक किसी सभ्यतागत मूल्य के लिए नहीं, बल्कि 'हिंदू भारत' के लिए एक कोड के रूप में प्रयोग किया जा रहा है.
इस सांप्रदायिक कथा में स्थानीय कश्मीरियों द्वारा पीड़ितों को दी गई सहायता के लिए कोई स्थान नहीं है. न ही मीडिया केंद्रीय नेतृत्व से सुरक्षा और खुफिया विफलता का हिसाब मांग रहा है. जिम्मेदारी विभिन्न लक्षित समूहों (धर्मनिरपेक्षता, संवैधानिक अधिकार, मुसलमान, कश्मीरी, विपक्ष, सुप्रीम कोर्ट) पर डाली जा रही है - किसी पर भी, सिवाय उस राजनीतिक नेतृत्व के जो पर्यटकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था.
समाचार चैनलों का सांप्रदायिक संदेश दर्शकों के क्रोध को दर्शाने के लिए नहीं है, बल्कि एक ऐसे क्रोधित सांप्रदायिक विषय को बनाने और बनाए रखने के लिए है जो अस्पष्ट 'मुस्लिम' दुश्मन से बदला लेने की मांग करे. वर्तमान शासन का आधार 2002 के गुजरात दंगों में देखा जा सकता है, जहां इस राजनीतिक प्रयोग को पूर्णता तक पहुंचाया गया था.
इस संदर्भ में, शासक अभिजात वर्ग का हिंदू दक्षिणपंथी अतिवाद और पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवादियों का इस्लामवादी अतिवाद दर्पण-छवियां हैं जो एक-दूसरे को प्रतिबिंबित और मजबूत करते हैं.
विश्लेषण | रणनीति
सिद्धार्थ वरदराजन : सरकार अपनी नाकामयाबी पर उठे सवालों से बचने की कोशिश कर रही है
‘द वायर’ के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन का यह लेख बताता है कि नरेंद्र मोदी सरकार 22 अप्रैल को पहलगाम, कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद अपनी सुरक्षा और राजनीतिक विफलताओं पर उठ रहे सवालों से बचने की कोशिश कर रही है. वरदराजन का तर्क है कि सरकार ने पिछले पांच वर्षों में दावा किया कि अनुच्छेद 370 हटाने और पाकिस्तान में 'सर्जिकल स्ट्राइक' करने से आतंकवाद का खतरा कम हो गया है. लेकिन, पहलगाम हमला इन दावों को गलत साबित करता है. सरकार ने 'सामान्य स्थिति' दिखाने के लिए पर्यटकों को एक असुरक्षित और दुर्गम स्थान पर बिना पर्याप्त सुरक्षा के इकट्ठा होने दिया. लेखक के अनुसार, सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए दो तरकीबें अपना रही है:
पहला, देशभक्ति का सवाल है. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बयान का हवाला देते हुए कहा गया है कि सरकार ने नागरिकों पर ही पर्याप्त देशभक्त न होने का आरोप लगाया है, ताकि विफलता का दोष उन पर मढ़ दिया जाए.
दूसरा सामूहिक दंड है. सरकार कथित आतंकवादियों के परिवारों के घर गिरा रही है, जो इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीनियों पर अपनाई जाने वाली सामूहिक दंड की रणनीति जैसा है. यह न केवल गैरकानूनी है बल्कि अपने ही नागरिकों (बुजुर्गों, बच्चों, महिलाओं) को बेघर करना है.
यह कार्रवाई भेदभावपूर्ण है. सिद्धार्थ तुलना करते हैं कि कैसे कश्मीर में आतंकी हमले के आरोपियों (जिनमें से कई के नाम भी पुलिस ने नहीं बताए हैं) के घर तुरंत गिरा दिए गए, जबकि मालेगांव (2006, 2008) आतंकी धमाकों की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर (जिन्हें बाद में भाजपा ने सांसद बनाया) या अन्य हिंदुत्व आरोपियों के घर कभी नहीं गिराए गए.लेख में जोर दिया गया है कि सभ्य राष्ट्रों में कानून का शासन होता है, जहां व्यक्ति दोष साबित होने तक निर्दोष माना जाता है और सजा केवल अदालत द्वारा दोषसिद्धि के बाद ही दी जाती है. घरों को गिराना केवल 'दिखावटी न्याय' है, जो जनता को यह विश्वास दिलाने के लिए किया जाता है कि कार्रवाई हो रही है, जबकि असल में अपराधी पकड़ से बाहर हो सकते हैं.
वरदराजन छत्तीसिंहपोरा (2000) नरसंहार और उसके बाद हुए पतरीबल फर्जी मुठभेड़ का उदाहरण देते हैं, जहां असली आतंकवादी कभी पकड़े नहीं गए और जांच को भटकाने के लिए निर्दोषों को मार दिया गया.
जब सरकार वास्तविक जांच, सबूत जुटाने और कानूनी प्रक्रिया के बजाय दिखावटी और गैर-कानूनी तरीकों (जैसे घर गिराना) को चुनती है, तो इससे आतंकवादियों और उनके आकाओं को ही फायदा होता है और देश की सुरक्षा कमजोर होती है. यह तरीका न्याय सुनिश्चित करने के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हानिकारक है.
विश्लेषण | सांप्रदायिकता
हरीश खरे : गृहयुद्ध के उकसावे को नाकाम करना सबसे बड़ी चुनौती
'द वायर' में हरीश खरे ने लिखा है कि आज असली चुनौती है कि हम "राजनीतिक इच्छाशक्ति" जैसे खोखले नारों से आगे बढ़ें. अगर पाकिस्तान हमें "हम" बनाम "वे" के गृहयुद्ध में धकेलने में सफल हो गया, तो यह हमारी सबसे बड़ी हार होगी. यही असली परीक्षा है. अब देखना है कि हमारी राष्ट्रीय नेतृत्व क्षमता इस जाल को काटने का विवेक रखती है या नहीं. पहलगाम में हुए नरसंहार के बाद बदले और राष्ट्रवादी जोश की मांगें फिर से उभर आई हैं, लेकिन इस शोर के पीछे एक गहरी चुनौती छिपी है. क्या भारत के नेता साम्प्रदायिक टूटन को रोकने और पाकिस्तान के बिछाए रणनीतिक जाल में फंसने से बच सकेंगे? व्हाट्सएप ग्रुपों में बदले की पुकार वाली भड़काऊ पोस्टों की बाढ़ देखकर साफ है कि सरकार एक कठिन परीक्षा में है. हिंदू-मुस्लिम विभाजन की रेखाओं पर गृहयुद्ध के उकसावे से कैसे बचा जाए. उदाहरण के लिए एक भड़काऊ संदेश देखें, जो सैकड़ों में से एक है -
श्रद्धांजलि
आज से शुरू करो जो उन्होंने किया,
नाम पूछो, पेट पर लात मारो,
नाम पूछो, काम से निकालो,
नाम पूछो, सामान मत खरीदो,
नाम पूछो, टैक्सी कैंसिल करो,
नाम पूछो, और पूरी तरह से बहिष्कार करो.
एक-दो हफ्ते की परेशानी होगी,
लेकिन नतीजे बहुत अच्छे आएंगे.
यह पहली बार नहीं है जब ऐसी उकसावे वाली बातें भारतीय राज्य की समझदारी की परीक्षा ले रही हैं. पर इस बार चुनौती और भी बड़ी है, क्योंकि मौजूदा सरकार ने खुद को 56-इंच गहरे गड्ढे में फंसा लिया है. बरसों से भाजपा ने गैर-भाजपा सरकारों पर पाकिस्तान के खिलाफ "इच्छाशक्ति" की कमी का आरोप लगाया है. अब उसी कसौटी पर खुद को साबित करने का दबाव है, कम से कम "बालाकोट" जैसी कोई कार्रवाई दोहराने का.
पाकिस्तान अगर भारत की जवाबी कार्रवाई का कैसे उत्तर देगा, इसकी चिंता फिलहाल सत्ताधारी वर्ग को नहीं है. पाकिस्तान को "दर्द" देना एक भावनात्मक संतोष का जरिया बन गया है. कारगिल युद्ध के बाद से भाजपा ने सैनिक बलिदान को बार-बार चुनावी लाभ में बदलने की कोशिश की है. अब फिर से आतंकी हमले के बाद समर्थन जुटाने के लिए आक्रामक रुख अपनाने का दबाव बढ़ा है.
लेकिन असली समस्या यह है: तीन-चार आतंकवादी अगर हमें साम्प्रदायिक उन्माद में धकेल सकते हैं, हर गांव और कस्बे को संघर्षभूमि बना सकते हैं, तो वे अपने मकसद में सफल हो जाएंगे, भारत को कमजोर करना. एक सामाजिक रूप से बंटा हुआ देश कभी भी महानता हासिल नहीं कर सकता.
सौभाग्य से, मुस्लिम समुदाय ने इस बार भी परिपक्वता दिखाई है. तमाम पुराने दुख-दर्द के बावजूद कश्मीरियों ने भी इस हमले की एकजुट होकर निंदा की है. मुस्लिम संगठनों और व्यक्तियों ने हमलावरों को खुलकर कोसा है. इसके बावजूद, यह आशंका बनी रहती है कि गैर-जिम्मेदार मीडिया कुछ कट्टर मौलवियों के बयानों को उछालकर साम्प्रदायिक ज़हर फैला सकता है.
वैसे भी, हमारा सामाजिक सौहार्द हमेशा से नाजुक रहा है और पिछले एक दशक में यह और कमजोर हुआ है. संघ ने "हिंदू एकता" का आह्वान करते हुए जातीय विभाजनों को मिटाने का प्रयास किया है. मोहन भागवत का हालिया बयान - "एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान" भी इसी दिशा का संकेतक है. पर इस एकता का आधार अक्सर किसी "शत्रु" के खिलाफ एकजुटता को बनाया गया है.
भाजपा की चुनावी रणनीति, खासकर उत्तर प्रदेश में, मुसलमानों को राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने पर केंद्रित रही है. "बटेंगे तो कटेंगे" जैसे नारे इसी सोच के परिचायक हैं. अब "पहलगाम" भी इसी चुनावी व्याख्यान का हिस्सा बनाया जा सकता है.
सपा सांसद सुमन पर करणी सेना ने फेंका टायर
रविवार 27 अप्रैल को अलीगढ़ और दिल्ली के बीच जीटी रोड पर गभाना टोल बूथ पर समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के काफिले पर करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने तब टायर फेंका, जब वह पीड़ित दलितों से मिलने जा रहे थे. पुलिस ने बताया कि हमले के कारण टोल प्लाजा पर धीमी गति से चल रहे कई वाहनों के बीच टक्कर हो गई. हमले की आशंका के मद्देनजर मौके पर पुलिस बल तैनात किया गया था. सुमन ने बताया कि वे बुलंदशहर जिले के सोहाना गांव जा रहे थे, जहां पिछले कुछ दिनों में दलितों के खिलाफ अत्याचार की खबरें सामने आई थीं. मगर उन्हें पुलिस ने बुलंदशहर की सीमा (आगरा) पर ही रोक लिया और सोहना गांव नहीं जाने दिया. वहीं से वापस भेज दिया.
झुग्गियों में लगी भीषण आग में दो बच्चों की मौत, 800 झुग्गियां जलकर खाक : रविवार 27 अप्रैल की सुबह रोहिणी के सेक्टर 17 में एक झुग्गी समूह में 800 से अधिक झुग्गियों में भीषण आग लगने से ढाई साल और पांच साल के दो बच्चों की मौत हो गई और पांच लोग घायल हो गए. दमकलकर्मियों ने तीन घंटे की मेहनत के बाद आग पर काबू पा लिया गया, लेकिन आग बुझाने का काम अब भी जारी है.
मंदिर शुद्धीकरण वाले आहूजा बीजेपी से निष्कासित : भाजपा ने रविवार को राजस्थान के पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा को पार्टी से निष्कासित कर दिया. यह कदम उन पर ‘अनुशासनहीनता’ साबित होने के बाद उठाया गया है. आहूजा ने दरअसल, दलित नेता एवं राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता टीकाराम जूली के अलवर के एक मंदिर में जाने के बाद गंगाजल से उसका ‘शुद्धीकरण’ किया था.
तमिलनाडु के विवादास्पद दो मंत्रियों का इस्तीफा : तमिलनाडु सरकार के वरिष्ठ मंत्री वी. सेंथिल बालाजी और के. पोनमुडी ने रविवार को इस्तीफा दे दिया. ऐसा सरकार की स्थिरता दिखाने के प्रयास के तौर पर किया गया है, क्योंकि डीएमके सरकार लगातार विवादों और न्यायिक जांच के घेरे में थी. सुप्रीम कोर्ट ने सेंथिल बालाजी को निर्देश दिया था कि वह या तो अपने मंत्री पद पर बने रहें या फिर मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अपनी जमानत को सुरक्षित रखें. वहीं, पोनमुडी को धार्मिक प्रतीकों और महिलाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियों के कारण आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था.
जेएनयू में भगवा परचम, नेपथ्य में गया लेफ्ट : जेएनयू की राजनीति बदल गई है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ चुनाव 2025 में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए वामपंथ के गढ़ में भगवा लहराया है. एबीवीपी ने 42 काउंसलर सीटों में से 23 पर कब्जा जमाया है. केंद्रीय पैनल के अध्यक्ष पद पर भी उनके प्रत्याशी शिखा स्वराज आइसा-डीएसएफ के प्रत्याशी नितीश कुमार से थोड़े ही वोटों से खबर लिखे जाने तक पीछे चल रहे थे. बहरहाल, यह जीत जेएनयू की छात्र राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत दे रही है.
मप्र में भाजपा विधायकों और सरकार के बीच तनाव बढ़ा : मध्यप्रदेश में भाजपा विधायकों के एक समूह और पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. भाजपा विधायक स्थानीय मुद्दों को लेकर सार्वजनिक रूप से प्रशासन की आलोचना कर रहे हैं. पिछले कुछ दिनों में, विधायक प्रीतम लोधी (पिछोर), विजयपाल सिंह (सोहागपुर) और प्रदीप पटेल (मऊगंज) विभिन्न मुद्दों पर सरकार के खिलाफ मुखरता के साथ सामने आए हैं. “द इंडियन एक्सप्रेस” में आनंद मोहन जे के अनुसार विधायकों के विरोधी स्वर ऐसे समय में सामने आए हैं, जब राज्य भाजपा अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया के तहत आंतरिक बदलावों से गुजर रही है. यह नवंबर 2024 के उपचुनाव के महज छह महीने बाद हो रहा है, जिसमें भाजपा ने बुधनी सीट बरकरार रखी थी, लेकिन विजयपुर कांग्रेस के हाथ चली गई थी. भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “इससे मुख्यमंत्री मोहन यादव पर राज्य इकाई में एकता बनाए रखने का दबाव भी बढ़ गया है.”
फैक्ट चैक
रंगे हाथों अफवाह उड़ाता दबोचा गया प्रसार भारती का पत्रकार : प्रसार भारती के युद्धोन्मादी वरिष्ठ पत्रकार जो कि राजनीतिक एवं सामरिक मामलों के विश्लेषक खुद को 'एक्स' पर बताते हैं, उन्होंने एक पोस्ट में पटाखा फैक्टी में हुए विस्फोट का वीडियो शेयर करते हुए दावा किया कि भारतीय सेना ने लीपा घाटी में पाकिस्तानी सेना का गोला बारूद डिपो उड़ा दिया है. हालांकि, उनका झूठ पकड़ा गया. ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर ने प्रमोद सिंह के ट्वीट के प्रिंट शॉट के साथ पाकिस्तान के अखबार का प्रिंट शॉट भी शेयर करते हए अपनी पोस्ट में लिखा है - "आप प्रमोद सिंह जो प्रसार भारती में वरिष्ठ पत्रकार हैं, आपको व्हाट्सएप पर मिली गलत जानकारी साझा करने से बचना चाहिए."
मुस्लिम महिला के साथ दुर्व्यवहार मामले में सांप्रदायिक एंगल नहीं : हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था. इसमें 10-12 युवकों का एक समूह बुर्का पहनी एक मुस्लिम महिला को घेरे हुए है. भीड़ में कई लोगों के हाथ में मोबाइल फोन थे और उनका कैमरा चालू था. महिला भीड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश करती है, तभी सफेद कुर्ता पायजामा पहने एक अधेड़ उम्र का आदमी पीछे से उसका हिजाब खींचता हुआ दिखाई देता है. यूजर्स का दावा है कि यह घटना मुजफ्फरनगर की है, जहां हिंदू युवकों ने एक मुस्लिम महिला का बुर्का उतार दिया और उसके बाल खींचकर उसके कपड़े उतारने की कोशिश की. एक्स यूजर @Entidoto, @INDStoryS, जो कई मौकों पर गलत और भ्रामक जानकारी फैलाते हुए पाया गया है के साथ फेसबुक यूजर शाह अल्वी ने भी इसी दावे के साथ वीडियो शेयर किया है.
वायरल दावों से संबंधित शब्दों का इस्तेमाल कर कीवर्ड सर्च करने पर पता चला कि यह घटना 14 अप्रैल, 2025 की है. वह महिला एक फाइनेंस कंपनी में काम करती थी. वह सचिन नामक फर्म के एक अन्य कर्मचारी के साथ एक जगह से पैसे लेकर लौट रही थी, तभी मुजफ्फरनगर के खालापार की दर्जी गली में करीब 10 लोगों के एक समूह ने उन्हें रोक लिया हमला किया. पुरुषों ने जबरन महिला का बुर्का उतारने की कोशिश की और उसे थप्पड़ भी मारे. नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट में भी यही विवरण दिया गया था. इस लेख में आगे बताया गया कि स्थानीय लोगों ने किसी तरह दोनों को बचाया और उन्हें अपने साथ ले गए. महिला महिला पुलिस अधिकारियों के साथ थाने गई और शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद वीडियो के आधार पर पुलिस ने आरोपियों की पहचान की और छह को गिरफ्तार किया. उनकी पहचान सरताज, शादाब, उमर, अर्श, शोएब और शमी के रूप में हुई.
संक्षेप में कहें तो पीड़िता और महिला के साथ दुर्व्यवहार करने वाले आरोपी दोनों ही मुस्लिम हैं. लेकिन, इस घटना को सांप्रदायिक दावों के साथ गलत तरीके से शेयर किया गया.
विश्लेषण
आकार पटेल : ट्रम्प का असली मास्टरस्ट्रोक
क्या अहम मामले पर असरदार योजना लद्धड़ तरीके से लागू की जा सकती है?
डोनाल्ड ट्रम्प अपने टैरिफ युद्धों के परिणामों से इतने आश्चर्यचकित क्यों हैं? संयुक्त राज्य अमेरिका का कहना है कि व्यापार में पूरी दुनिया ने उसे लूटा है और इसकी वह भरपाई चाहता है.
यह लूट इसलिए हुई क्योंकि मजबूत डॉलर के कारण अमेरिका उतना निर्यात नहीं कर पाता जितना वह आयात करता है. और डॉलर स्थायी रूप से मजबूत है, क्योंकि पूरी दुनिया इसका उपयोग करती है और इसकी मांग लगातार बनी रहती है. इस प्रकार अमेरिका अपने सहयोगियों सहित अधिकांश देशों के साथ उच्च व्यापार घाटे को बनाए रखने के लिए मजबूर है, जो अपनी घरेलू कंपनियों को सब्सिडी देकर और अपनी मुद्राओं को कृत्रिम रूप से कम रखकर अमेरिका को 'धोखा' देते हैं.
और फिर अमेरिका दुनिया भर में सैन्य अड्डे बनाए रखने और युद्ध लड़ने के द्वारा दुनिया की सुरक्षा पर भी खरबों खर्च करता है. दुनिया को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नए सीमा शुल्कों को बिना प्रतिशोध के स्वीकार करके और अमेरिका से अधिक चीजें खरीदकर, जिनमें रक्षा उपकरण भी शामिल हैं, अमेरिका को पैसे देने चाहिए. उन्हें अमेरिका में फैक्ट्रियों में भी निवेश करना चाहिए - या वे सीधे अमेरिकी खजाने को पैसा भेज सकते हैं.
मोटे तौर पर यह, वह योजना है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया के सामने पेश किया है. भरपाई की मांग करते हुए. यह उचित है या नहीं - या तथ्यों पर आधारित है या नहीं - यह एक अलग मामला है. अमेरिका का व्यापार घाटा उसके बजट घाटे और अधिक खर्च से जुड़ा हुआ है, जिसके लिए अंतर को पूरा करने के लिए विदेशों से पूंजी की आवश्यकता होती है.
हालांकि दुनिया ने अमेरिका से अपनी सीमाओं के बाहर सैन्य अड्डे स्थापित करने के लिए नहीं कहा है. अमेरिका किस पर हमला करता है और किसका बचाव करता है, यह किसी वैश्विक सहमति पर आधारित नहीं है, बल्कि अमेरिका का अपना मूल्यांकन है, जिसे वह अकेले करता है. लेकिन वह सब, जैसा कि मैंने कहा, अलग बहस है.
मौजूदा मुद्दा यह है: क्या एक महत्वपूर्ण मामले पर सक्षम योजना अक्षम तरीके से क्रियान्वित की जा सकती है? और यह, निश्चित रूप से, एक महत्वपूर्ण मामला है. टैरिफ योजना के लक्ष्य हैं: मैन्यूफैक्चरिंग को फिर से अमेरिका वापस लाना; चीन पर निर्भरता को कम करना या अलग करना; एक ही समय में डॉलर के सापेक्ष मूल्य को कम करना जबकि इसकी आरक्षित मुद्रा की स्थिति को बनाए रखना; टैरिफ से अरबों कमाना जो कर कटौती पर खर्च किए जाएंगे; और बजट को संतुलित करना - संक्षेप में अमेरिका को फिर से महान बनाना. यह एक गंभीर मामला है और इसके लिए गंभीर योजना और सावधानीपूर्वक क्रियान्वयन की आवश्यकता थी.
अफसोस की बात है कि, अमेरिकी टैरिफ योजना किसी ठोस स्वरूप के बजाय ठहराव, वापसी और छूट के साथ अलग अलग समय बदलते हुए सामने आई है. ये बदलाव उन घटनाओं द्वारा मजबूर किए गए थे जिनकी आलोचकों ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी. नतीजा अराजकता की शक्ल में दिख रहा है.
अमेरिकी व्यापार नेटवर्क देखते हुए, यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी दिन टैरिफ के साथ सटीक स्थिति क्या है, इसके बारे में वास्तव में किसी को भी पक्का पता नहीं है. अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कांग्रेस के निर्वाचित सदस्यों के समक्ष बयान दे रहा है और उसे नहीं पता कि व्हाइट हाउस में उन्हीं मुद्दों पर यू-टर्न हो गया है जिन पर वह सवालों का जवाब दे रहा है. खजाना सचिव (वित्त मंत्री के समकक्ष) द्वारा दिए गए बयान वाणिज्य सचिव द्वारा दिए गए बयानों के विपरीत हैं.
ट्रम्प टाइम पत्रिका को बताते हैं कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्हें बातचीत के लिए फोन किया है. जाहिर तौर पर बाजारों को शांत करने के लिए जो घबराए हुए हैं. चीनी तुरंत एक बयान जारी करते हैं कि यह झूठ है और बाजार फिर से कमजोर हो जाते हैं.
इतनी अकल तो किसी भी प्लान बनाने वाले को होगी कि बाकी देश इस तरह के फैसलों पर जवाबी कार्रवाई करेंगे. 24 अप्रैल को, वाशिंगटन पोस्ट ने एक शीर्षक प्रकाशित किया जिसमें लिखा था 'दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों के निर्यात पर चीन के प्रतिबंधों से अमेरिकी एजेंसियां चौंक गईं'. रिपोर्ट में कहा गया है कि 'सैन्य ड्रोन, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक कारों और अधिक बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले दुर्लभ पृथ्वी निर्यात पर बीजिंग के प्रतिबंधों ने संघीय एजेंसियों में खलबली मचा दी है.'
चीन के पलटवार में चौंकाने और खलबली मचाने वाली बात तभी हो सकती है जब टैरिफ वार शुरू करने वाले ने इस पहलू के बारे में और उसके नतीजों के बारे में पहले से सोचा ही न हो. योजनाकारों को न केवल इसकी अपेक्षा करनी चाहिए थी बल्कि परिणामों का विस्तार से अध्ययन भी करना चाहिए था.
जैसे-जैसे रोज नया पागलपन सामने आता जा रहा है, यह अभी भी साफ नहीं है कि अमेरिका इससे हासिल करने क्या निकला है. यदि इरादा वास्तव में मुक्त व्यापार है, तो मैन्यूफैक्चरिंग कम लागत वाले देशों से अमेरिका में कैसे आ जाएगा? यदि आईफोन, जूते, वस्त्र, स्टील और सेमी-कंडक्टर का निर्माण अमेरिका वापस लाया जाता है और आयात कम किया जाता है, तो टैरिफ से ज्यादा राजस्व नहीं आएगा और घाटा बना रहेगा. इस नजरिये से दोनों समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता है.
यदि लक्ष्य चीन से अलग होना है क्योंकि वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका को पीछे छोड़ने की स्थिति में है, तो बातचीत के लिए उससे विनती करने का क्या मतलब है?
ये ऐसे सवाल हैं जिन्हें पूरी कवायद करने से पहले पूछा जाना चाहिए था. उन्हें नहीं पूछा गया, सिवाय आलोचकों द्वारा जिन्हें 'नफरत करने वाले' या 'राष्ट्र-विरोधी' के रूप में खारिज कर दिया गया था जो अमेरिका को फिर से महान बनने से रोकने के लिए दृढ़ थे.
उस शुरूआती सवाल पर लौटते हैं. जिसका जवाब है नहीं. एक महत्वपूर्ण मामले पर सक्षम योजना को अक्षम तरीके से क्रियान्वित करना संभव नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि गंभीरता से बनाई गई कोई भी योजना परिणामों की अपेक्षा करेगी और ख़ास तौर पर नकारात्मक परिणामों की. अमेरिका जिस तरह का अगंभीर नजरिया अपना रहा है, वह न केवल उसके अमल पर दिखलाई दे रहा है. हर तरह से, उसका समर्थन करने वालो तक, उसकी योजना बनाने वालों तक.. सब घटिया साबित हो रहे हैं.
साफ मतलब है कि इसे बनाने में बहुत कम सोच-विचार किया गया है. और इस चिंता पर बहुत कम ध्यान दिया गया है कि जैसा सोचा था, उस तरीके से काम नहीं कर सकता है. और शायद नाकामयाब भी हो सकता है.
यह घटिया काम और घटिया सोच है. जो अमल के वक्त अपनी अफरातफरी के माध्यम से खुद को साबित किये जा रही है. मास्टरस्ट्रोक दरअसल यह है.
कनाडा में कार टक्कर हमले में 11 लोग मारे गए
'द गार्डियन' की खबर है कि वैंकूवर में हाल ही में एक कार-रैमिंग हमला हुआ, जिसमें 11 लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए. यह हमला वैंकूवर के एक सड़क उत्सव, "लापू लापू डे" में हुआ, जो सैकड़ों लोगों के इकट्ठा होने के साथ चल रहा था. यह घटना शाम को उस समय हुई जब उत्सव समाप्त होने वाला था, लेकिन सड़क पर अभी भी कई लोग मौजूद थे. वैंकूवर के अंतरिम पुलिस प्रमुख स्टीव राय ने रविवार को संवाददाताओं से कहा कि कार चढ़ाकर हमला करने में 11 मौतों की पुष्टि हो चुकी है और आने वाले दिनों में मृतकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है. राय ने कहा कि दर्जनों लोग घायल हुए हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है. पीड़ितों को वैंकूवर मेट्रो क्षेत्र के नौ अस्पतालों में एम्बुलेंस के माध्यम से भेजा गया है. पीड़ितों में पुरुष और महिला दोनों हैं और "युवा लोग" भी इनमें शामिल हैं, जैसा कि राय ने बताया. लापू लापू डे महोत्सव, जहां सैकड़ों लोग एकत्रित थे, का समापन रात 8 बजे (पीटी) निर्धारित था, लेकिन उस समय भी सड़क पर सैकड़ों लोग मौजूद थे. उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने शहर और महोत्सव आयोजकों से परामर्श किया था और यह निर्धारित किया था कि महोत्सव में भारी पुलिस उपस्थिति की आवश्यकता नहीं थी. अब पुलिस शहर अधिकारियों के साथ मिलकर इस घटना की योजना बनाने से जुड़ी सभी परिस्थितियों की समीक्षा करेगी.
समाज
क्यों नहीं अपनाया बहुसंख्य दलितों ने बौद्ध धर्म ?
'द प्रिंट' के लिए वैभव वानखेडे ने बौद्ध धर्म में धर्मांतरण के न फैलने की वजहों को आठ बिंदुओं में टटोला है. अक्टूबर 2022 में आम आदमी पार्टी नेता राजेंद्र पाल गौतम की उपस्थिति में एक बड़े धर्मांतरण कार्यक्रम में जब डॉ. आंबेडकर द्वारा बताए गए 22 प्रतिज्ञाओं का पालन किया गया, तो यह बड़ा राजनीतिक विवाद बन गया. इनमें एक प्रतिज्ञा थी - "मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर में विश्वास नहीं करूंगा और न ही उनकी पूजा करूंगा. मैं राम और कृष्ण में भी विश्वास नहीं करूंगा, न ही उनकी पूजा करूंगा." धार्मिक धर्मांतरण व्यक्तिगत स्वतंत्रता की लड़ाई है और स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ती है.
डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने कहा था, "मैं हिंदू के रूप में जन्मा हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं." और उन्होंने अपने शब्दों पर अमल भी किया. 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में आंबेडकर ने पांच लाख से अधिक दलितों के साथ हिंदू धर्म का परित्याग कर बौद्ध धर्म को अपनाया. यह सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक क्रांति का ऐलान था. फिर भी सत्तर साल बाद, यह आंदोलन एक लहर बनकर नहीं फैला. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बौद्ध आबादी मात्र 0.7% है और उनमें से लगभग 90% महाराष्ट्र में बसे आंबेडकरवादी दलित हैं. तो ऐसा क्यों हुआ?
आठ बिंदुओं में समझें :
आंबेडकर के बाद नेतृत्व का अभाव : आंबेडकर की मृत्यु धर्म परिवर्तन के कुछ हफ्तों बाद हो गई थी. उनके बाद आंदोलन दिशाहीन हो गया. दलित राजनीति चुनावी लाभ या हिंदू धर्म के भीतर जातीय पहचान पर केंद्रित हो गई, न कि धार्मिक परिवर्तन पर.
आर्थिक असुरक्षा और सामाजिक बहिष्कार का डर : दलित समुदाय आज भी आर्थिक रूप से कमजोर है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के अनुसार, दलितों के पास भूमि, शिक्षा और पूंजी की पहुंच काफी कम है. धर्म परिवर्तन का मतलब सामाजिक बहिष्कार, रोज़गार छिन जाना या हिंसा झेलना हो सकता है.
हिंदू धर्म की आत्मसात करने की शक्ति : हिंदू धर्म ने बुद्ध को विष्णु के अवतार के रूप में स्वीकार कर लिया, आंबेडकर को एक राष्ट्रनायक के रूप में पेश किया, लेकिन उनके क्रांतिकारी विचारों को कमजोर कर दिया. भाजपा के अधिकतर जमीनी कार्यकर्ता भी वंचित तबकों से आते हैं. उच्च जातियां नेतृत्व करती हैं, जबकि नीची जातियों को काम के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
बौद्ध धर्म के बुनियादी ढांचे की कमी : बौद्ध धर्म के पास हिंदू धर्म जैसा मंदिर नेटवर्क, अनुष्ठानिक जीवन, या शैक्षणिक संस्थान नहीं हैं. महाराष्ट्र के बाहर बौद्ध धर्म लगभग अदृश्य है.
हिंदुत्व और राज्य का विरोध : धर्म परिवर्तन अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है. कई राज्यों में धर्म परिवर्तन के लिए सरकारी अनुमति लेनी पड़ती है. हिंदुत्व के बढ़ते प्रभाव के कारण, दलित धर्मांतरितों को "राष्ट्रद्रोही" या "विदेशी एजेंट" कहा जाता है.
मानसिक दासता और आंतरिक जातिवाद : सदियों की गुलामी ने जाति व्यवस्था को बहुत गहरे भीतर बसा दिया है. धर्म परिवर्तन के बावजूद, पुराने त्योहारों, अनुष्ठानों, और मंदिरों से भावनात्मक लगाव बना रहता है. बौद्ध धर्म का कोई "पवित्र ग्रंथ", "पवित्र महीना" या "केवल एक पूजा स्थल" नहीं है, जिससे कई लोगों को इसका ढांचा अपरिचित और अजनबी लगता है.
संचार और कथा की कमी : बौद्ध आंदोलन ने आम लोगों की भावनाओं को छूने वाला कोई लोकप्रिय माध्यम नहीं बनाया. न टीवी पर, न फिल्मों में, न ही संगीत में बौद्ध पहचान को चमकाया गया.
शहरी गतिशीलता और बदलती प्राथमिकताएं : शहरों में शिक्षित दलितों के लिए जाति कम दिखाई देती है. रोज़गार, आरक्षण और शिक्षा से मिली सामाजिक स्थिति ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि धर्म परिवर्तन अब आवश्यक नहीं.
चलते-चलते
“मेरे पास नाटक में हबीब साहब की डिग्री है”
नया थियेटर के लिए चरणदास चोर में रानी की भूमिका करने वालीं पूनम तिवारी ने द टेलीग्राफ की परोमिता सेन से लम्बी बात की है. जिन्होंने उनका काम देखा है, उनके मुरीद हैं. उनके अभिनय, गाने और नाचने के. वे बताती हैं, “जब पाँच साल की थी तभी मुझे मंच का प्यार हो गया. माँ नाचा कलाकार थीं, और मैं अपने छोटे भाई की देखभाल के लिए उनके साथ जाती थी. आठ साल की उम्र से ही मैंने नाचा परफॉर्म करना शुरू कर दिया”. वे अब साठ की हो गई हैं.
पूनम को हबीब तनवीर साहब ने एक प्रदर्शन में देखा और उनके पिता से कहा कि उन्हें नया थिएटर में काम करने के लिए दिल्ली भेज दें. तब वह महज 13 साल की थीं. पिताजी मानने को तैयार नहीं थे, लेकिन पूनम की मौसी फीटा बाई मरकाम, जो "चरणदास चोर" में रानी का किरदार निभाती थीं, ने उन्हें समझाया.
“नया थिएटर में मैंने रंगमंच की कला सीखी और "हबीबसाब से डिग्री" हासिल की. नाचा और थिएटर में बहुत फर्क है. नाचा में, हम कहीं से भी प्रवेश कर सकते थे और अपनी मर्जी से गा-नाच सकते थे. थिएटर में, मंच पर प्रवेश करने का सही तरीका, कहां खड़े होना है, कितना चलना है, कहां से बाहर निकलना है - सब कुछ सीखना पड़ता था.” धीरे-धीरे वह एक मज़बूत कलाकार बन गई और आखिरकार "चरणदास चोर" में रानी का किरदार निभाने लगी. और फिर पूनम ने चरणदास चोर के किरदार के लिए मशहूर दीपक विराट तिवारी से शादी कर ली. “मैं गरीब और वंचित समुदाय से थी और वह बिलासपुर के ब्राह्मण परिवार से, सरकारी नौकरी वाले. दीपक बहुत मददगार पति थे. वे हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते. 2008 में वे पैरालाइज्ड हो गए और 2021 में उनका निधन हो गया.” उनके चार बच्चे थे - दो बेटे, दो बेटियां. सभी ने कलाएँ सीखीं, लेकिन कॉलेज नहीं जा पाए. छोटा बेटा सूरज बहुत प्रतिभाशाली था, लेकिन मंच पर तबला बजाते हुए उसे दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसा. अब वह अपने आठ साल के पोते का पालन-पोषण करती हैं, कहती हैं, “ कभी-कभी थक जाती हूँ, लेकिन फिर भी रंग छत्तीसा के साथ प्रदर्शन जारी रखती हूँ. जब भी कोई बुलाता है, हम दौड़े चले आते हैं. भगवान का हुकुम है, हबीबसाब का आशीर्वाद है. इसीलिए हम अब भी मंच पर काम कर रहे हैं.”
पाठकों से अपील
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.