28/05/2025: कलेक्टर ने बुलाया मोदी के रोड शो पर फूल बरसाने | सावरकर के सम्मान पर याचिका खारिज | नक्सल मुक्त बस्तर का भविष्य | मंदिर के किवाड़ खुले, लोगों के दिल नहीं | महाबोधि में हिंदू पूजा से विवाद
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
कपिल मिश्रा के खिलाफ मामले पर अदालत ने दिल्ली पुलिस और चुनाव आयोग दोनों को लगाई फटकार
पंचकूला में 7 लोगों की सामूहिक आत्महत्या
भारत ने अभी पछाड़ा नहीं जापान को, नीति आयोग थोड़ा जल्दी में रहा
सरकारी शिक्षक को विदेशी बता डिटेंशन सेंटर से उठा बांग्लादेश सीमा पर धकेलने का आरोप
चीन अब गरीब मुल्कों को दिये कर्ज की वसूली शुरू करेगा
भारत-पाकिस्तान के बीच एक और जंग जारी थी ऑनलाइन, डिजिटल, एआई और सोशल मोर्चे पर
नमक की क़ीमत
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस
सिंदूर के खिलाफ इंस्टा पोस्ट पर छात्रा को गिरफ्तार करने पर हाई कोर्ट सदमे में
55 साल के नेपाली ने माउंट एवरेस्ट की 31वीं बार चोटी पर चढ़कर तोड़ा विश्व रिकॉर्ड
मोदी पर फूल बरसाने कर्नल कुरैशी के परिवार को कलेक्टर ने बुलाया था, बीजेपी नेता ले गई थीं
ऑपरेशन सिंदूर का चेहरा बनीं कर्नल सोफिया कुरैशी की जुड़वां शायना कुरैशी का कहना है कि 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़ोदरा में आयोजित रोड शो में शामिल होने के लिए उनके पूरे परिवार को जिले के कलेक्टर ने बुलाया था. “ऑपरेशन सिंदूर थीम” पर आयोजित इस शो में कुरैशी परिवार ने मोदी पर फूल बरसाए थे. इस तस्वीर को स्वयं मोदी ने भी “एक्स” पर शेयर किया है. शायना, जो अपने माता-पिता और भाई के साथ इस शो में पहुंची थीं, ने “इंडिया टुडे” से बात करते हुए कहा कि उनके परिवार को स्थानीय कलेक्टर ने आमंत्रित किया था. यह भी बताया कि भाजपा की पूर्व विधायक सीमा मोहिले परिवार के संपर्क में थीं और वह हमको वहां (रोड शो में) लेकर गईं. “मेरे पापा तो चल भी नहीं पाते, लेकिन सीमा मैम ने बहुत ख्याल रखा,” शायना ने बताया.
मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह की कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर की गई शर्मनाक टिप्पणी के बारे में शायना ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. उनका कहना था कि हम किसी विवाद में पड़ना नहीं चाहते. हम अपने कामों में व्यस्त रहते हैं. इन बातों पर ध्यान नहीं देते.
उल्लेखनीय है कि विपक्ष, खासतौर पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, आरोप लगा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी “ऑपरेशन सिंदूर” का राजनीतिकरण कर रही है. बिहार विधानसभा के चुनावों को ध्यान में रखकर ऐसा किया जा रहा है. यहां तक कि राजनीतिक लाभ के लिए रेलवे के ई-टिकट पर ऑपरेशन सिंदूर के विज्ञापन छापे जा रहे हैं. इनमें प्रधानमंत्री मोदी के फ़ोटो का इस्तेमाल किया जा रहा है.
सावरकर का सम्मान संरक्षित करने की माँग करने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (27 मई, 2025) को हिंदुत्व विचारक वी.डी. सावरकर के नाम को 1950 के प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग का निवारण) अधिनियम के तहत संरक्षित करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष स्वयं याचिकाकर्ता पंकज फडणवीस ने कहा कि अदालत को उन्हें सावरकर के बारे में कुछ ऐतिहासिक तथ्यों को ठीक करने और गलतफहमियों को दूर करने की अनुमति देनी चाहिए. याचिका में लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) राहुल गाँधी को मुख्य प्रतिवादी बनाया गया था.
मंगलवार को, 65 वर्षीय फडणवीस ने कहा कि उन्होंने वर्षों तक सावरकर पर शोध किया है और उन्हें उनकी विरासत के बारे में स्पष्टता लाने की अनुमति दी जानी चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 51ए के तहत यह उनका मूल कर्तव्य है. "विपक्ष के नेता मेरे मूल कर्तव्यों में बाधा नहीं डाल सकते," उन्होंने प्रस्तुत किया. हालांकि, पीठ ने सवाल किया कि क्या उनके संवैधानिक मूल अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जिसके कारण उन्होंने रिट याचिका के साथ शीर्ष अदालत का रुख किया. "हम इस तरह की रिट याचिकाओं पर विचार नहीं कर सकते. हमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिलता. मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती. याचिका खारिज," मुख्य न्यायाधीश गवई ने दर्ज किया, और मामले को खारिज कर दिया.
विपक्ष के नेता, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हाल ही में सावरकर के खिलाफ उनकी टिप्पणियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी. गांधी ने कथित तौर पर कहा था कि हिंदुत्व विचारक ने अपनी चिट्ठियों में स्वयं को औपनिवेशिक ब्रिटिश अधिकारियों का "सबसे आज्ञाकारी सेवक" बताया था. ये टिप्पणियाँ 2024 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की गई थीं. 24 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने गांधी के खिलाफ उनकी टिप्पणियों के आधार पर दायर शिकायत पर ट्रायल कोर्ट के समन को स्थगित करते हुए, सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ "गैर-जिम्मेदाराना" टिप्पणियों के लिए उनकी आलोचना की थी. पीठ ने चेतावनी दी थी कि यदि गांधी ने ऐसा कृत्य दोहराया तो उन्हें ऐसी अंतरिम राहत नहीं मिलेगी.
विश्लेषण
शुभ्रांशु चौधरी : नक्सल मुक्त बस्तर का आदिवासी भविष्य कैसे बचाएं?
छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन के समापन के बाद अब तीन प्रमुख काम बचे हैं. पहला, कैसे अब बचे हुए हज़ार या उससे कम मूलतः आदिवासी भटके हुए पैदल माओवादी सैनिकों का सामूहिक आत्मसमर्पण कराया जाए. दूसरा, आधी सदी से अधिक समय तक चले इस गृहयुद्ध के पीड़ितों को कैसे न्याय दिलाया जाए और तीसरा, बस्तर के वो इलाक़े जो कई दशक बाद “आज़ाद” होने की कगार पर हैं, उनके विकास के रोडमैप पर गम्भीर चिंतन हो.
माओवादी आंदोलन का समापन मैं इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि सरकार ने उनके मुखिया नंबला केशव राव को पिछले हफ़्ते मार गिराया है. उनके नंबर दो वेणुगोपाल दो हफ़्ते पहले ही बस्तर छोड़कर भाग चुके हैं. माओवादियों के मुख्यालय अबूझमाड़ से लगभग दो हफ़्ते पहले ग्रामीणों ने मुझे फ़ोन कर कहा था, “सोनू दादा (वेणुगोपाल बस्तर के गाँवों में इसी नाम से जाने जाते हैं) भाग रहे हैं”. वेणुगोपाल ही अभय के नाम से पिछले कुछ माह से शांति वार्ता का प्रस्ताव देकर कई पत्र लिख चुके हैं. यह खबर अपुष्ट है पर इकोनोमिक टाइम्स ने भी इस पर खबर की है.
मैं इसलिए भी यह कह रहा हूँ कि छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन समाप्त हो गया है, क्योंकि छत्तीसगढ़ में यह कभी माओवादी आंदोलन था ही नहीं; जैसा यह बंगाल, बिहार और आँध्र (अब तेलंगाना भी) में था. कहते हैं साहित्य राजनीति की मशाल होती है. यानी जिस जगह का जैसा साहित्य होता है, वहाँ की राजनीति भी थोड़े समय बाद उस राह पर चलती है. बंगाल, आंध्र, नेपाल, बिहार जैसी जगहों में जनवादी साहित्य की लम्बी परम्परा रही है, जिसकी परिणति जनवादी राजनीति में देखने को मिलती है. बस्तर में ऐसा कुछ नहीं हुआ.
माओवादी बस्तर में छुपने के लिए आए थे. माओ के सिद्धांत के अनुसार किसी भी युद्ध में जब आप हार रहे हों तो अपनी सेना के बड़े हिस्से को छुपने वाली जगह में शिफ़्ट कर दीजिए और तब तक का इंतज़ार कीजिए, जब तक युद्ध की परिस्थिति बदल ना जाए. आधुनिक माओवादी आंदोलन बंगाल में 1967 में शुरू हुआ और 10 साल से कम समय में ख़त्म हो गया. माओवादियों ने 1977 में जब समीक्षा बैठक की तो उन्होंने आंदोलन को फिर से शुरू करने के पहले एक छिपने की जगह तैयार करने का सोचा. इसके लिए उन्होंने दंडकारण्य को चुना, बस्तर जिसका हिस्सा है.
बहुत कम लोगों को पता है कि बस्तर में माओवादी आंदोलन शुरू करने का श्रेय भाजपा को जाता है. 1990 में जब भाजपा के पहले मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा भोपाल में सत्ता में बैठे ( छत्तीसगढ़ उस समय अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था) तो उन्होंने छत्तीसगढ़ से दो नेताओं को एक गुप्त बैठक के लिए बुलाया. एक थे सीपीआई के सुधीर मुखर्जी और दूसरे कांग्रेस के अरविंद नेताम. भाजपा को यह समझ थी कि बस्तर में उनका कोई ख़ास जनाधार नहीं है और वहाँ कुछ बड़ा करना होगा तो इन दोनों पार्टियों की मदद से ही करना होगा.
इन दोनों के नेतृत्व में थोड़े दिनों में जन जागरण अभियान, एक सरकारी पुलिसिया कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसमें पुलिस ने सीपीआई के लोगों के इशारे पर उन आदिवासियों को परेशान करना शुरू किया, जिसने किसी भी तरह पिछले दस सालों में माओवादियों की मदद की थी. 1980 में 49 माओवादी (7 लोगों के 7 दल) दंडकारण्य में आए थे, इस स्पष्ट आदेश के साथ कि दंडकारण्य में क्रांति नहीं होगी, क्योंकि वहाँ के आदिवासियों में राजनैतिक चेतना नहीं है और हमें उस इलाक़े को एक सुरक्षित छुपने की जगह की तरह विकसित करना है.
पर इन 10 सालों में माओवादियों ने शांतिपूर्ण तरीक़े से जंगल विभाग, व्यापारी और सरकारी अधिकारियों से लड़ाई लड़कर बस्तर के आदिवासियों की ख़ासी मदद की थी. इसलिए जब पुलिस ने जन जागरण अभियान के नाम पर आदिवासियों को परेशान करना शुरू किया, तो आदिवासी सामाजिक नेताओं ने समाज को संदेश दिया कि यदि आप अपने घरों में नहीं रह पा रहे तो यदि आप चाहें तो अपनी सुरक्षा के लिए माओवादियों के साथ जुड़ जाइए. ये अच्छे लोग हैं. इन्होंने पिछले 10 सालों में हमारी बहुत मदद की है, इससे हमारे समाज का भी भला हो सकता है. इस तरह भाजपा का माओवाद समाप्ति का पहला प्रयोग असफल रहा था और बस्तर में माओवाद का जन्म हुआ था.
लगभग ठीक उसी समय पूर्व माओवादी सुप्रीमो गणपति के नेतृत्व में कुछ माओवादी नेताओं, जिनको आंध्र में स्थिति ख़राब होने के कारण वहाँ से बस्तर शिफ़्ट किया गया था, ने अपने पुराने नेता कोंडापल्ली सीतारमैया के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था, जिन्होंने यह कहा था कि बस्तर में क्रांति नहीं होगी. गणपति और नंबला केशव राव जैसे लोगों ने कहा हम आंध्र के हालात सुधरने का कब तक इंतज़ार करेंगे और क्रांति यहीं से होगी और उन्होंने क्रांति की वजह ढूँढ़ना शुरू किया.
भाजपा का माओवाद ख़त्म करने का दूसरा प्रयोग, जिसे इसके कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा ( जो जन जागरण के समय सीपीआई में थे) ने सलवा जुडुम नाम दिया था और भी बुरी तरह असफल हुआ और उसने माओवादी पार्टी को बहुत ताकतवर बना दिया. पर अपने तीसरे प्रयास में इस बार भाजपा बस्तर से माओवाद का समूल नाश करने में पूरी तरह सफल हुई है और उसका श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए. इस प्रयास में बस्तर की आदिवासी जनता ने उनका पूरा साथ दिया है.
कहा जाता है जनयुद्ध वही जीतता है, जनता जिसके साथ होती है. सलवा जुडुम के लगभग 10 साल बाद उन्हीं आदिवासी नेताओं ने अपने समाज को ये कहा कि माओवादी अच्छे लोग हैं, पुलिस से तो बेहतर हैं, वे हमारे साथ रहते हैं, हमारी भाषा बोलते हैं, पर हमारे समाज का इस आंदोलन से लम्बे समय में फ़ायदा नहीं होगा. माओवादी इस संदेश को समझने में चूक कर बैठे.
बस्तर में चली नई शांति प्रक्रिया ने बार-बार बस्तर की जनता के इस आग्रह को माओवादियों के जंगल और शहर में रहने वाले नेताओं के सामने रखा. पर आज वही लोग जो बढ़-चढ़ कर शांति वार्ता के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उनमें से अधिकतर ने इस शांति प्रयास का मखौल उड़ाया और उसे समाप्त करने की पूरी कोशिश की. पिछले काफ़ी समय से बस्तर में दोनों ओर से सिर्फ़ आदिवासियों की ही हत्या हो रही थी, चाहे वे पुलिस के लोग हों, माओवादी हों या बीच के लोग, जिन्हें मुखबिर और माओवादी बोलकर दोनों पक्षों द्वारा मारा गया.
लगभग चार दशक से भी अधिक समय बाद बस्तर शांति के रास्ते आगे बढ़ रहा है. आगे का रास्ता कैसा हो, इसकी राह इंदिरा गांधी ने दिखाई थी. 1980 में इंदिरा गांधी जब फिर से प्रधानमंत्री बनीं तो मध्यप्रदेश के तत्कालीन योजना आयोग के प्रमुख की सलाह पर उन्होंने बस्तर डेवलपमेंट प्लान बनाने का आदेश दिया था. यह अलग कहानी है कि श्रीमती गांधी की हत्या के बाद स्वयं कांग्रेसी सरकारों ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया.
बस्तर डेवलपमेंट प्लान यह कहता है कि बस्तर में प्रमुखत: सिर्फ़ दो चीजों पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. पहला, यह सुनिश्चित किया जाए कि बस्तर के वनवासियों को वनोपज का उचित दाम मिले. दूसरा, यह कोशिश की जाए कि बस्तर का किसान दूसरी फसल उगा सके. बस्तर डेवलपमेंट प्लान लिखने वालों को यह समझ थी कि बस्तर आंध्र, बंगाल और बिहार से अलग है. यहाँ ज़मीन समस्या नहीं है और अगर बस्तर का आदिवासी खुश और व्यस्त है तो वह किसी बाहरी बहकावे में नहीं आएगा.
भाजपा ने पिछले दोनों प्रयासों में कांग्रेस की मदद ली थी, उनको नेतृत्व दिया था . यह उनका बड़प्पन है. क्या तीसरी बार भी वे बस्तर से माओवाद के समूल विनाश के लिए राष्ट्रहित में इंदिरा गांधी की सलाह मानेंगे? हमें डर है कि माओवाद के समापन के बाद एमओयूवाद का उदय होगा, जहां सरकार स्थानीय संवैधानिक विरोधों की उपेक्षा कर माइनिंग आदि के लिए एमओयू करेगी और पिछले पांच दशकों की इस समस्या के पीड़ितों के न्याय के लिए कुछ नहीं करेगी, जिससे कुछ दिन बाद माओवादी उन्हें फिर से बरगला सकें.
शुभ्रांशु चौधरी पत्रकार और सीजीनेट स्वरा के संस्थापक हैं.
कपिल मिश्रा के खिलाफ मामले पर अदालत ने दिल्ली पुलिस और चुनाव आयोग दोनों को लगाई फटकार
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के संबंध में दिल्ली के मंत्री कपिल मिश्रा के ‘आपत्तिजनक बयानों’ के खिलाफ एक मामले में उसके निर्देशों का पालन करने में ‘लापरवाही’ बरतने के लिए दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है. इसके अलावा चुनाव आयोग को भी नसीहत दी.
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने कहा कि वह जांच एजेंसी की ओर से मामले की स्थिति और पर्याप्त स्पष्टीकरण न देने को पुलिस आयुक्त के संज्ञान में लाने के लिए बाध्य हैं. न्यायाधीश ने पहले दिल्ली पुलिस के संबंधित डीसीपी को मामले में माइक्रोब्लॉगिंग साइट ‘एक्स’ से एकत्र सामग्री पर एक विस्तृत रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश दिया था. मिश्रा पर तत्कालीन दिल्ली विधानसभा चुनावों के संबंध में 23 जनवरी, 2020 को अपने ‘एक्स’ हैंडल से आपत्तिजनक बयान पोस्ट करने का आरोप है.
26 मई को पारित एक आदेश में, न्यायाधीश ने उल्लेख किया कि सुनवाई की पिछली तारीख 8 अप्रैल को, संबंधित डीसीपी द्वारा आश्वासन दिया गया था कि ‘एक्स’ से रिपोर्ट प्राप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं. न्यायाधीश ने कहा कि आगे की जांच के निर्देशों का पालन करने के लिए जांच एजेंसी की ओर से कोई भी मौजूद नहीं था. उन्होंने कहा, “इस अदालत ने 20 मार्च, 20 अप्रैल, 10 मई, 15 मई, 1 जून, 1 जुलाई, 11 जुलाई, 22 जुलाई, 2024 और 20 मार्च तथा 8 अप्रैल, 2025 के आदेश-पत्रों के माध्यम से अभियुक्तों के एक्स हैंडल से साक्ष्य एकत्र करने के लिए अथक प्रयास किया, लेकिन “व्यर्थ’.”
उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में, यह 20 मार्च, 2024 से लंबित है, यानी लगभग एक साल. मामले में, दिल्ली पुलिस जांच करने में विफल रहती है या कोई बाधा होती है, तो इसकी सूचना इस अदालत को दी जानी चाहिए.” न्यायाधीश ने दिल्ली पुलिस के पुलिस आयुक्त के कार्यालय से आज के आदेश-पत्र की प्राप्ति की पावती भी मांगी.
विशेष न्यायाधीश जितेंद्र सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है कि वह उम्मीदवारों को ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए माहौल को दूषित करने और दूषित करने’ से रोके. न्यायाधीश ने कहा कि वह मजिस्ट्रेट अदालत से पूरी तरह सहमत हैं कि रिटर्निंग अधिकारी द्वारा दर्ज की गई शिकायत जनप्रतिनिधित्व (आरपी) अधिनियम की धारा 125 (चुनाव के संबंध में वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत अपराध का संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त थी. अदालत ने कहा कि मिश्रा के बयान "धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने का एक बेशर्म प्रयास प्रतीत होता है, जो कि एक ऐसे देश का अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख करता है, जिसे दुर्भाग्य से आम बोलचाल में अक्सर एक विशेष धर्म के सदस्यों को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है.”
पंचकूला में 7 लोगों की सामूहिक आत्महत्या
27 मई, 2025 को पंचकूला, हरियाणा के सेक्टर 27 में एक कार में देहरादून के एक परिवार के सात सदस्यों को मृत पाया गया. मृतकों में प्रवीण मित्तल (41), उनकी पत्नी रीना, उनके तीन नाबालिग बच्चे (12 वर्षीय जुड़वां बेटियां और 14 वर्षीय बेटा), और प्रवीण के माता-पिता देशराज मित्तल और बिमला शामिल थे. कार, जो देहरादून के पंजीकरण नंबर की थी, की खिड़कियां तौलियों से ढकी हुई थीं, जिसने स्थानीय लोगों का ध्यान आकर्षित किया. परिवार के रिश्तेदारों के अनुसार, प्रवीण मित्तल पर लगभग 15 से 20 करोड़ रुपये का कर्ज था. परिवार ने पहले हिसार, देहरादून, खरड़, और पिंजौर में रहने के बाद हाल ही में पंचकूला के साकेतरी में किराए का मकान लिया था. प्रवीण ने एक समय बद्दी में एक फैक्ट्री चलाई थी और पंचकूला में फ्लैट और वाहनों का मालिक था, लेकिन वित्तीय असफलता के कारण सब कुछ छोड़ दिया. उनके ससुर राकेश ने बताया कि परिवार ने उनसे संपर्क तोड़ लिया था. स्थानीय निवासी हर्षित राणा ने कार की ढकी हुई खिड़कियां देखकर पुलिस को सूचित किया. प्रवीण ने हर्षित को बताया कि वे बागेश्वर धाम की हनुमान कथा सुनने आए थे और बच्चे सो गए थे. एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी पुनीत राणा ने बताया कि प्रवीण ने स्वीकार किया कि परिवार ने जहर लिया था और वह पांच मिनट में मर जाएगा. कार में दो हस्तलिखित नोट मिले, एक डैशबोर्ड पर और दूसरा किताबों में, जिसमें प्रवीण ने वित्तीय तनाव को आत्महत्या का कारण बताया और अपने ससुर के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का अनुरोध किया. पंचकूला पुलिस ने पांच टीमों के साथ एक व्यापक जांच शुरू की है. डीसीपी हिमाद्री कौशिक ने बताया कि जहर से आत्महत्या की आशंका है, लेकिन अंतिम पुष्टि पोस्टमॉर्टम और टॉक्सिकोलॉजी रिपोर्ट के बाद होगी. कार में रिस्निया सिरप (रिस्पेरीडोन, एक मानसिक स्वास्थ्य दवा) की बोतल का कवर और सोडियम नाइट्रेट का पाउडर मिला, जिसे जहर के रूप में इस्तेमाल किया गया हो सकता है. पुलिस सीसीटीवी फुटेज, बैंक लेनदेन, और सोशल मीडिया इतिहास की जांच कर रही है. द ट्रिब्यून के लिए शीतल ने इस पर लंबी रिपोर्ट लिखी है.
वैकल्पिक मीडिया से
300 साल बाद मंदिर के किवाड़ खुले, दिलों के नहीं
पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्दवान के गिड़ाग्राम में 13 मार्च 2025 को 130 दलित परिवारों ने 300 साल बाद गिड़ेश्वर शिव मंदिर में प्रवेश किया. भारी पुलिस सुरक्षा में हुई इस ऐतिहासिक घटना ने सदियों पुराने जातीय भेदभाव को चुनौती दी. लेकिन, द मूकनायक के अनुसार, इसके बाद दलितों को सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा. गांव के प्रभावशाली वर्ग ने प्रतिकूल प्रतिक्रिया दी, जिससे तनाव बढ़ा. दलितों का कहना है कि मंदिर प्रवेश ने उन्हें आत्मसम्मान दिया, पर रिश्तों में खटास और धमकियां अब भी जारी हैं. वे संयम बरतते हुए कम संख्या में मंदिर जाते हैं, ताकि तनाव न बढ़े. कुछ ग्रामीण परंपरा टूटने से नाराज़ हैं, लेकिन दलित समुदाय इसे न्याय की बहाली मानता है. इस घटना ने बंगाल की ‘अजाति’ छवि पर सवाल उठाए, क्योंकि गांवों में जातिगत भेदभाव अब भी मौजूद है. गिड़ाग्राम की इस लड़ाई ने अन्य गांवों में भी दलितों को मंदिर प्रवेश के लिए प्रेरित किया.
चौथी अर्थव्यवस्था
भारत ने अभी पछाड़ा नहीं जापान को, नीति आयोग थोड़ा जल्दी में रहा
भई ये तो गज़ब ही है! नीति आयोग के अति उत्साही सीईओ (मुख्य कार्यपालन अधिकारी) बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने “आव देखा न ताव”, सीधे यह दावा कर दिया कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत को 4.187 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित कर दिया है. लेकिन ऐसा लगता है कि सुब्रह्मण्यम और मोदी सरकार के भक्तों की मंडली ने कुछ जल्दबाजी कर दी. हकीकत यह है कि भारत के अगले साल जापान को पीछे छोड़ने का अनुमान है, लेकिन मौजूदा वर्ष 2025 में तो अब भी जापान ही आगे है. खुद नीति आयोग के एक सदस्य ने ऐसा कहा है.
दिलचस्प है कि नीति निर्माता जश्न मना रहे हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी अब भी 130वें स्थान के आसपास है. बांग्लादेश, जिसकी जीडीपी 2014 में भारत की प्रति व्यक्ति आय का सिर्फ 75%थी, आज की तारीख में भारत की बराबरी में आ गया है. प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ विकास दर के बावजूद, भारत का आर्थिक उत्पादन बहुत असमान है, जिससे केवल कुछ लोगों को ही लाभ मिलता है. जापान के बाद भारत का अगला लक्ष्य जर्मनी है, जिसकी भारत के मुकाबले लगभग 50% अधिक जीडीपी है. जापान, जिसको पीछे छोड़ा गया मान लिया गया है, वह भी प्रति व्यक्ति संपत्ति के मामले में भारत से कई गुना आगे है.
आय वितरण और प्रति व्यक्ति वास्तविक संपत्ति में सुधार के बिना, भारत की सकल रैंकिंग में वृद्धि उसके 1.4 अरब नागरिकों के लिए कठोर आर्थिक वास्तविकता को छुपाती है. आधिकारिक रैंकिंग में बदलाव अभी एक साल दूर हो सकता है, यद्यपि मुख्यधारा के मीडिया ने इसे लगभग निश्चित मान लिया है.
फिर भी, किसी राष्ट्र की आर्थिक कहानी केवल उसके कुल जीडीपी से नहीं समझी जा सकती. जब हम लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तो यह विशाल आंकड़ा आम भारतीय के लिए वास्तव में क्या मायने रखता है? इसके पीछे की वास्तविकताएं अक्सर कुल मिलाकर दिखाए गए आंकड़ों से कहीं अधिक जटिल और कठोर होती हैं. “द वायर” में पवन कोराडा ने पांच महत्वपूर्ण बिंदुओं के जरिए बताया है कि भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के भव्य कथानक को लेकर आम हिंदुस्तानी का अनुभव काफी अलग हो सकता है.
इसी बीच, भारत का शुद्ध विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) वित्त वर्ष 2025 में 96.5% गिरकर रिकॉर्ड निचले स्तर 353 मिलियन डॉलर पर आ गया, जो पिछले वर्ष के 10 बिलियन डॉलर से काफी कम है. भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने ताज़ा मासिक बुलेटिन में इस गिरावट का कारण बड़े पैमाने पर फंड वापसी बताया है, क्योंकि निवेशकों ने लाभकारी प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्तावों (IPOs) के माध्यम से निकासी की और भारतीय कंपनियों ने विदेशों में अपने निवेश बढ़ाए.
शुद्ध एफडीआई में यह गिरावट — जो सकल एफडीआई प्रवाह और भारतीय कंपनियों द्वारा बाहरी निवेश तथा विदेशी संस्थाओं द्वारा निकाले गए फंड के बीच का अंतर है — सकल एफडीआई में मजबूत वृद्धि के बावजूद हुई.
इस बीच नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने कहा है कि भारत अभी चौथी अर्थव्यवस्था बना नहीं है, बल्कि 2025 के अंत तक बनने की प्रक्रिया में है. आयोग के सीईओ सुब्रह्मण्यम के दावे पर उन्होंने कहा, “यह एक जटिल सवाल है. मुझे नहीं मालूम कि किसने क्या शब्द इस्तेमाल किए हैं. शायद कोई शब्द छूट गया हो या कुछ और...
इधर, ऑल्ट न्यूज़ के फैक्ट चेकर मोहम्मद ज़ुबैर ने बताया है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का डाटा अब भी भारत को जापान के बाद 5वें स्थान पर दर्शा रहा है.
सरकारी शिक्षक को विदेशी बता डिटेंशन सेंटर से उठा बांग्लादेश सीमा पर धकेलने का आरोप
असम के मोरीगांव जिले के 51 वर्षीय पूर्व सरकारी शिक्षक, जिन्हें 'विदेशी घोषित' किया गया था, को कथित तौर पर भारत-बांग्लादेश सीमा पार कर बांग्लादेश धकेल दिया गया है. खैरुल इस्लाम नाम के इन शिक्षक को शुक्रवार रात उनके घर से पुलिस ने हिरासत में लिया था. बांग्लादेशी पत्रकार मुस्तफिजुर तारा द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक वीडियो में, खैरुल इस्लाम ने दावा किया है कि उन्हें और 13 अन्य 'घोषित विदेशियों' को मंगलवार सुबह भारत के सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा बांग्लादेश में धकेल दिया गया. वीडियो में खैरुल बांग्लादेश के कुरीग्राम जिले के एक मैदान में खड़े दिख रहे हैं. खैरुल ने पत्रकार को बताया कि उन्हें हिरासत केंद्र से जबरदस्ती ले जाया गया और विरोध करने पर उनकी पिटाई भी की गई. उन्होंने दावा किया कि उनके हाथ बांधे गए थे और कुल 14 लोगों को धकेला गया. ये लोग कथित तौर पर दोनों देशों के बीच 'नो मैन्स लैंड' या बांग्लादेश की तरफ फंसे हुए हैं. खैरुल इस्लाम को 2016 में एक ट्रिब्यूनल द्वारा 'विदेशी घोषित' किया गया था, जिसे 2018 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा. वह मटिया डिटेंशन सेंटर में दो साल बिता चुके हैं और फिलहाल उनका मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. उन्हें 23 मई को फिर से हिरासत में लेकर मटिया सेंटर भेजा गया था. खैरुल के परिवार ने वीडियो में उनकी पहचान की पुष्टि की है और कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद यह कार्रवाई कैसे की गई. इस बीच, बीएसएफ ने एक बयान में सीमा पार से घुसपैठ की कोशिश को नाकाम करने की बात कही है, लेकिन 'घोषित विदेशियों' को धकेलने के आरोपों पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इस मामले में आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतजार है.
महाबोधि मंदिर में हिंदू पूजा से भारत की छवि पर असर
बोधगया में महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में बुद्ध पूर्णिमा के दिन कथित तौर पर जबरन हिंदू अनुष्ठान किए जाने की तस्वीर, बहुजन लाइव मैटर के इंस्टाग्राम पेज से साभार.
ट्रिब्यून में कावेरी गिल ने अपने लेख में बौद्ध समाज में हिंदू घुसपैठ की बात की है. हाल ही में, बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भारत सरकार ने बौद्ध धर्म को अपनी सॉफ्ट पावर के रूप में बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए. इसमें राष्ट्रीय संग्रहालय में बुद्ध के अवशेषों के दर्शन और वियतनाम सहित विभिन्न देशों में भेजे गए अवशेषों के प्रति दिखाए गए सम्मान जैसे कार्यक्रम शामिल थे. सरकार ने पिपरहवा अवशेषों को नीलामी से रोककर और वैश्विक बौद्ध समुदाय के लिए उनके धार्मिक महत्व को रेखांकित कर अपने प्रयासों को और पुष्ट किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बौद्ध धर्म को भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण सॉफ्ट पावर उपकरण के रूप में मान्यता दी है, खासकर चीन जैसे देशों के साथ संबंधों और तीर्थाटन के माध्यम से आर्थिक लाभ के संदर्भ में. हालांकि, इस सकारात्मक छवि को बिहार के बोधगया में महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में बुद्ध पूर्णिमा के दिन कथित तौर पर जबरन हिंदू अनुष्ठान किए जाने की घटना से गहरा आघात लगा है. इस घटना को बौद्ध समुदाय द्वारा एक गंभीर अपवित्रीकरण (sacrilege) माना गया है, जिसने भारत और विश्व स्तर पर नाराजगी पैदा की है. यह घटना महाबोधि मंदिर प्रबंधन अधिनियम, 1949 के तहत मंदिर परिसर के प्रबंधन को लेकर दशकों से चल रहे विवाद को उजागर करती है, जिसमें बौद्धों और गैर-बौद्धों के मिश्रण द्वारा प्रबंधन का प्रावधान है. भारतीय और वैश्विक बौद्ध समुदाय इस अधिनियम को रद्द करने और मंदिर का पूर्ण नियंत्रण बौद्धों को सौंपने की मांग कर रहे हैं. लेखक का तर्क है कि इस तरह की घटनाएं भारत की सॉफ्ट पावर को नुकसान पहुंचाती हैं और वैश्विक मंच पर देश की छवि को धूमिल करती हैं, खासकर जब महाबोधि मंदिर बौद्धों के लिए निर्विवाद रूप से सबसे पवित्र स्थल है. भारत को इस मुद्दे को हल करके, मंदिर की पवित्रता को बनाए रखकर और धार्मिक सद्भाव का प्रदर्शन करके अपनी 'विश्व गुरु' की स्थिति को मजबूत करना चाहिए. निष्कर्ष यह है कि एक अस्थिर वैश्विक परिदृश्य में, बौद्ध धर्म भारत के लिए एक महत्वपूर्ण विदेश नीति साधन है, और महाबोधि मंदिर जैसी घटनाओं से उत्पन्न होने वाले सांप्रदायिक विभाजन को रोकना भारत के हित में है ताकि उसकी सॉफ्ट पावर को नुकसान न पहुंचे.
एनएचएआई को 7,190 और पेड़ लगाने का निर्देश : द्वारका एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए 2019 में प्रत्यारोपित किए गए 5,717 पेड़ों में से लगभग 25% मर चुके हैं. वन विभाग ने अब भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को इस घोर विफलता की भरपाई के लिए 7,190 पेड़ लगाने का आदेश दिया है, ताकि ताकि उन पेड़ों की भरपाई की जा सके जो जीवित नहीं रह सके.
अंबानी की जियोहॉटस्टार की रिकार्ड रीच : फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, केवल छह महीनों में, मुकेश अंबानी की जियोहॉटस्टार – जो कि जेम्स मर्डोक के समर्थन से रिलायंस की मीडिया इकाई और डिज्नी इंडिया के बीच विलय से पैदा हुई थी – ने 280 मिलियन से अधिक ग्राहकों तक अपनी पहुंच बना ली है. क्रिकेट के दीवाने और दुनिया की सबसे अमीर लीग पर कब्जा करने से प्रेरित होकर, जियोस्टार अब डिजिटल और टीवी दोनों अधिकारों को नियंत्रित करता है, जो कभी प्रतियोगियों के बीच विभाजित था. इस कदम से भारत के खेल और स्ट्रीमिंग बाजार पर अंबानी की पकड़ मजबूत हुई है, जिससे प्रतिद्वंद्वियों पर लंबी छाया पड़ी है और दुनिया के सबसे शक्तिशाली टाइकून में से एक के तहत मीडिया एकाग्रता के बारे में नए सवाल उठे हैं. इस बीच, शक्ति के एक और समेकन में, जियोहॉटस्टार ने सोनी एंटरटेनमेंट के साथ एक सौदे के माध्यम से आगामी इंग्लैंड-भारत क्रिकेट सीरीज के लिए विशेष डिजिटल अधिकार हासिल किए हैं.
चीन अब गरीब मुल्कों को दिये कर्ज की वसूली शुरू करेगा
चीन इस साल 75 विकासशील देशों से रिकॉर्ड 22 अरब डॉलर का बीआरआई ऋण वसूल करेगा, जो विश्व के सबसे गरीब और कमजोर देश हैं. ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट के अनुसार, चीन अब पूंजी प्रदाता से ऋण वसूलकर्ता बन गया है, क्योंकि 2010 के दशक में बीआरआई ऋणों की राशि नई ऋण राशि से कहीं अधिक है. 2012-2018 में दिए गए ऋणों के चरम के कारण 2025 में ये देश चीन को 22 अरब डॉलर का रिकॉर्ड ऋण चुकाएंगे. रिपोर्ट के अनुसार, चीन को असहनीय ऋणों को पुनर्गठन करने और घरेलू दबाव का सामना करना पड़ रहा है. रिपोर्ट के लेखक राइली ड्यूक ने कहा कि बीआरआई ऋण मध्य-2010 में चरम पर था, और छूट अवधि 2020 की शुरुआत में खत्म होने लगी, जो विकासशील देशों के लिए "कठिन समय" हो सकता है. चीन की विकास साझेदार के रूप में प्रतिष्ठा पर इसका असर देखना बाकी है. मंगलवार को चीनी विदेश मंत्रालय ने रिपोर्ट को कमतर बताते हुए कहा कि कुछ देश चीनी ऋण सहायता के खिलाफ अफवाहें फैला रहे हैं. प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि चीन का निवेश और वित्तपोषण अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं और ऋण स्थिरता के सिद्धांतों के अनुरूप है. बीआरआई, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख पहल, के तहत चीन ने विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर के ऋण दिए हैं. हालांकि, श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर लेने के बाद इन निवेशों को "ऋण जाल" की आलोचना मिली. कोविड-19 महामारी और आर्थिक संकट के बाद कई देश इन परियोजनाओं के ऋण चुकाने में असमर्थ रहे. 120 विकासशील देशों में से 54 में, चीन को ऋण भुगतान पेरिस क्लब (पश्चिमी ऋणदाताओं का समूह) को दिए गए भुगतानों से अधिक है. चीन लाओस, पाकिस्तान, मंगोलिया, म्यांमार, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे सात पड़ोसी देशों का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है.
चीन छोड़ने नहीं जा रहा एपल : लेखक पैट्रिक मैक्गी की पुस्तक ‘एपल इन चाइना : द कैप्चर ऑफ़ द वर्ल्ड्स ग्रेटेस्ट कंपनी’ इसी हफ्ते प्रकाशित हुई है, ठीक ऐसे समय में, जब अमेरिका और चीन 90 दिनों के लिए टैरिफ स्तर कम करने पर सहमत हुए हैं, जिसके तहत चीनी आयातों पर शुल्क 145% से घटकर 30% हो जाएगा. मैक्गी ने एपल पर द फाइनेंशियल टाइम्स के लिए एक रिपोर्ट भी की है- ‘अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते तनाव के बावजूद, एपल जल्द ही चीन नहीं छोड़ेगा, इसके बावजूद कि वह भारत में भी विस्तार कर रहा है, लेकिन एपल के लिए वैश्विक संचालन में चीन के दृढ़ प्रभुत्व की तुलना में भारत एक द्वितीयक केंद्र बना हुआ है. मैक्गी का का तर्क है कि कंपनी ने चीन में प्रतिभा और उपकरणों में अरबों डॉलर का निवेश किया है, साथ ही देश की सत्तावादी सरकार का अब एपल के भाग्य पर किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक प्रभाव है.
भारत-पाकिस्तान के बीच एक और जंग जारी थी ऑनलाइन, डिजिटल, एआई और सोशल मोर्चे पर
पिछले महीने पहलगाम में घातक हमले ने एक तरफ भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष को जन्म दिया तो दूसरी ओर एक और लड़ाई शुरू हो गई – ‘ऑनलाइन सत्य पर’. एआई का उपयोग कर बनाए गए नकली वीडियो, युद्ध के फुटेज को फिर से इस्तेमाल कर बनाए गए और मनगढ़ंत कथानक ‘एक्स’, ‘व्हाट्सएप’, ‘फेसबुक’ और ‘यूट्यूब’ पर जंगल की आग की तरह फैल गए. इससे सीमा के दोनों ओर भय, आक्रोश और भ्रम की स्थिति पैदा हो गई.
सबसे ज़्यादा वायरल ‘हमलों की डिजिटल रूप से गढ़ी गई तस्वीरें’ थीं. एक वायरल एआई-जनरेटेड फर्जी वीडियो में उत्तरी पाकिस्तान के रावलपिंडी स्टेडियम को हमले के बाद मलबे में तब्दील दिखाने का दावा किया गया, जिसे लाखों बार देखा गया. एक अन्य वीडियो में गलत तरीके से कहा गया कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हार स्वीकार कर ली.
वाशिंगटन डीसी में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ऑर्गनाइज्ड हेट के कार्यकारी निदेशक रकीब हमीद नाइक, जिन्होंने सैकड़ों भ्रामक पोस्टों का डेटाबेस संकलित किया, ने कहा, ‘यह इलेक्ट्रॉनिक युद्ध था’. उन्होंने एबीसी न्यूज को बताया, "मुख्य रूप से काल्पनिक दृश्य साक्ष्य का उपयोग सैन्य सफलता की झूठी कहानियां गढ़ने तथा युद्ध और अधिक रक्तपात की मांग करने वाली अति-राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ावा देने के हथियार के रूप में किया गया था. लक्ष्य जनता की राय में हेरफेर करना था. आधुनिक युद्ध में धारणा का युद्ध ही सब कुछ है.”
पहलगाम संकट के दौरान सबसे खतरनाक गलत सूचना प्रवृत्तियों में से एक परिष्कृत डीपफेक का उदय था, जो आमतौर पर सुपरइम्पोज़्ड या हेरफेर किए गए वीडियो, ऑडियो या छवियों के साथ एआई का उपयोग कर बनाया जाता था. एक एआई-जनरेटेड वीडियो में पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता जनरल अहमद शरीफ चौधरी को दो लड़ाकू विमानों के नुकसान की बात स्वीकार करते दिखाया गया था.
पाकिस्तान स्थित एनजीओ डिजिटल राइट्स फाउंडेशन (डीआरएफ) की संस्थापक निगहत दाद ने एबीसी को बताया, “लिप सिंक लगभग परफेक्ट था सिर्फ़ उर्दू जबान और कुछ ऐसे शब्द, जिसका आमतौर पर भारतीय ग़लत उच्चारण करते हैं, उससे यह बात सामने आई. ईमानदारी से कहूं तो यह अब तक मेरे देखे गए सबसे भरोसेमंद डीपफेक में से एक था.” लक्ष्य स्पष्ट था : पाकिस्तानियों का मनोबल गिराना और भारतीय जीत को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना. और उनका मानना है कि यह कामयाब रहा. हज़ारों भारतीय अकाउंट पर शेयर किए जाने वाले इस वीडियो ने मुख्यधारा की खबरों में भी जगह बनाई. दाद ने कहा, “गलत सूचना कथा को बदलने में मदद कर रही है, यह युद्ध जीतने में मदद कर रही है.”
इसी तरह के कई अन्य फेक पोस्ट वायरल वायरल होते रहे. दोनों देशों के समूहों ने बताया कि दुष्प्रचार अभियान एकतरफा नहीं था.
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और स्थानीय मीडिया ने भी कथित तौर पर ब्रिटेन के ‘द डेली टेलीग्राफ’ से एक मनगढ़ंत लेख शेयर किया, जिसमें पाकिस्तान की वायु सेना को ‘आसमान का राजा’ बताया गया, जबकि अखबार ने कभी ऐसा कोई लेख प्रकाशित नहीं किया.
गलत सूचना केवल फ्रिंज अकाउंट से ही नहीं फैली - सत्यापित उपयोगकर्ताओं और यहाँ तक कि मुख्यधारा के मीडिया ने भी असत्यापित सामग्री को बढ़ावा दिया. एक उल्लेखनीय मामले में, कश्मीर में एक पहाड़ी पर नाचते हुए एक जोड़े का वीडियो - जिसे मूल रूप से जोड़े ने खुद पोस्ट किया था - को गलत तरीके से पहलगाम हमले में मारे जाने से पहले ‘अंतिम क्षण’ बताया गया. भारत स्थित टाइम्स नाउ, द डेली न्यूज़ एंड एनालिसिस और कई अन्य चैनलों ने बिना सत्यापन के वीडियो प्रसारित किया. अगले दिन, जोड़े ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया : “अरे दोस्तों, हम जीवित हैं... हमें अपनी मूल पोस्ट हटानी पड़ी, क्योंकि इसने बहुत नफरत फैलाई.” डीआरएफ की एक शोध सहयोगी सारा इमरान ने कहा, “दंपती द्वारा वीडियो का खंडन करने के बाद भी, यह जंगल की आग की तरह फैल गया.”
ऑनलाइन समुदाय में कुछ लोगों ने तो तब भी दुगना विरोध किया जब सारा इमरान ने दुरुपयोग किए गए वीडियो के बारे में उपयोगकर्ताओं को सचेत किया. एक व्यक्ति ने जवाब दिया, “अगर यह मनोवैज्ञानिक रूप से दूसरे पक्ष को चोट पहुँचाता है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह नकली है या नहीं.”
इस दौरान सामुदायिक तथ्य जांचकर्ताओं और एएफपी फैक्टचेक जैसे संगठनों के प्रयासों के बावजूद, गलत सूचना का पैमाना बहुत अधिक था.
नाइक ने कहा, “जांच और सामुदायिक नोटों की प्रणाली बुरी तरह विफल रही, खासकर संघर्ष के दौरान.” अपने शोध में उन्होंने पाया कि ‘एक्स’ केंद्रीय युद्धक्षेत्र के रूप में उभरा है. बड़े पैमाने पर प्रसार के बावजूद, बहुत कम पोस्ट को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर फ़्लैग किया गया या हटाया गया. एबीसी ने मेटा (फ़ेसबुक के मालिक) से भी संपर्क किया, लेकिन प्रकाशन के समय तक उसने जवाब नहीं दिया. नाइक ने एक्स से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. नाइक और दाद ने कहा कि प्लेटफ़ॉर्म मॉडरेशन सिस्टम की ओर से मौन प्रतिक्रिया और भी अधिक परेशान करने वाली थी.
पांवों में आबले, किडनी समस्या और अंधापन ही नहीं, आप तक नमक पहुंचाने में और भी बहुत कुछ झेलता है नमक मजदूर
सूरज की तीखी निगाहों के नीचे तपती हुई ज़मीन हर उस व्यक्ति को झुलसा रही थी, जो बाहर निकलने की हिम्मत करता था. 104 डिग्री फ़ारेनहाइट पर, घनी नम हवा तटीय राज्य में फैल गई, जिसने 16 जिलों को 2024 की गर्मियों तक चलने वाली गर्मी की चपेट में ले लिया.
थूथुकुडी जिले में 34 वर्षीय राम लक्ष्मी और अन्य श्रमिक क्रिस्टल के टुकड़ों जैसी दिखने वाली चीज़ों को इकट्ठा करने में व्यस्त थे. धातु की रेक से चूड़ियाँ टकराते हुए, वे खाना पकाने के लिए ज़रूरी एक चीज़ इकट्ठा कर रहे थे : नमक.
यहाँ, कुछ सबसे गर्म महीनों में, श्रमिक घंटों तक इन कुंडों में टखनों तक पानी में डूबे रहते हैं. दशकों से नमक के कुंडों में काम करने से उनके शरीर पर बहुत बुरा असर पड़ा है. तलवों में चोट, दृष्टि में कमी और त्वचा में जलन के साथ-साथ तीव्र किडनी रोग और उच्च रक्तचाप जैसी पुरानी बीमारियाँ भी होती हैं, जिससे उनके लिए कुंडों के बाहर काम करना लगभग असंभव हो जाता है. जितना ही उनके जीवन की गुणवत्ता में गिरावट जारी है, उतना ही बेहतर कल्याणकारी उपायों के लिए विरोध प्रदर्शन अनसुना कर दिया गया है, जबकि सरकार 307 मिलियन टन नमक उत्पादक होने का दावा करती है.
जब लक्ष्मी ने 13 साल की उम्र में इन कुंडों में काम करना शुरू किया, तो वह प्रतिदिन 60 रुपये कमाती थी. उसे अक्सर नमक के क्रिस्टल पर खड़ा होना पड़ता है, जिससे उसके पैर कट जाते हैं. घाव उसे और अन्य श्रमिकों को मानसून के महीनों में आय के लिए कृषि मजदूरी जैसे अन्य शारीरिक काम करने से रोकते हैं, जब कुंड बंद होते हैं. दर्दनाक होने के अलावा, ये घाव सोडियम युक्त नमकीन पानी को रक्तप्रवाह में प्रवेश करने देते हैं, जिसे किडनी के डॉक्टर और द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, इंडिया के कार्यकारी निदेशक विवेकानंद झा दोहरी मार मानते हैं : बहुत अधिक सोडियम हृदय को पूरे शरीर में रक्त पंप करने के लिए अधिक मेहनत करने के लिए मजबूर करता है और गुर्दे के लिए अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों को छानना अधिक कठिन हो जाता है, जिससे शिथिलता पैदा होती है.
भारत का नमक उत्पादन मुख्य रूप से गुजरात और तमिलनाडु राज्यों पर निर्भर करता है. तटीय भूमि के बड़े हिस्से को समुद्री जल को गिराने के लिए उथले आयतों में विभाजित किया गया है. इन क्षेत्रों में तटबंध या “बांध” बनाए गए हैं, ताकि पानी को रोका जा सके, जो वाष्पित होकर नमक बनाता है. पुरुष इन बांधों का निर्माण करते हैं और नमक को पैक करते हैं, जबकि महिलाएँ ज़्यादातर चट्टी ढोती हैं - थूथुकुडी में 22,000 एकड़ के पैन से ताज़े कटे हुए नमक से भरी बाल्टियाँ. औसतन सात से आठ घंटे काम करने से उन्हें त्वचा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें कामगारों ने अपने हाथों और पैरों में खुजली और सूखापन की शिकायत की है. लक्ष्मी बताती हैं कि भारी चट्टी उठाने से हड्डियाँ और गर्दन की नसें भी थक जाती हैं. लेकिन यहीं तकलीफों की फेहरिस्त खत्म नहीं होती. सूर्य की रोशनी सफ़ेद सतहों से परावर्तित होती है, और उसकी चमक आँखों को परेशान करती है, इतना कि 2023 के एक मेडिकल कैंप सर्वेक्षण में पाया गया कि थूथुकुडी के पाँच पैन के 544 में से 302 श्रमिकों को हल्की से लेकर गंभीर दृष्टि हानि का अनुभव हुआ है. जिस नमक के बिना हम अपनी थाली का भोजन नहीं कर सकते, उसे हम तक पहुंचाने के क्रम में नमक मजदूर क्या क़ीमत अदा करते हैं, इस पर इन दीज टाइम्स ने विस्तार से स्टोरी की है. आप यहां पढ़ सकते हैं.
क्रिकेट में राजनीति : बीसीसीआई ने भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों सेनाओं के प्रमुखों को 3 जून को अहमदाबाद में होने वाले अंतरराष्ट्रीय सितारों से सजी आईपीएल में सफल ऑपरेशन सिंदूर के लिए सेना को सम्मानित करेगी. तीनों सेना प्रमुखों को फाइनल में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है. इस आयोजन के समापन समारोह में उन्हें उनके ‘वीरतापूर्ण प्रयासों’ के लिए सम्मानित किया जाएगा. मंगलवार को बीसीसीआई सचिव देवजीत सैकिया ने मीडिया को दिए बयान में इसकी घोषणा की.
कर्नाटक भाजपा से दो विधायक निष्कासित : भाजपा ने मंगलवार को अनुशासनहीनता के आधार पर विधायक एसटी सोमशेखर और शिवराम हेब्बार को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया. विधानसभा में भाजपा के मौजूदा विधायकों की संख्या अब घटकर 63 रह गई है. सोमशेखर और हेब्बार दोनों ने 2019 में भाजपा का दामन थाम लिया था, जिससे कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार गिर गई थी. विधानमंडल सत्रों के दौरान, वे वॉकआउट में भाग नहीं लेकर या सत्तारूढ़ कांग्रेस के पक्ष में बोलकर पार्टी लाइन का उल्लंघन करते देखे गए. पिछले साल, सोमशेखर ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट किया था, जबकि हेब्बार ने मतदान नहीं किया था.
महिला के साथ अनुचित कृत्य के लिए भाजपा नेता को नोटिस : उत्तर प्रदेश के गोंडा में भाजपा नेता अमर किशोर कश्यप द्वारा एक महिला के साथ ‘अनुचित कृत्य’ करने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है. इसके बाद पार्टी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है और एक सप्ताह के भीतर लिखित स्पष्टीकरण मांगा है. 12 अप्रैल को भाजपा जिला कार्यालय में लगे सीसीटीवी कैमरों के जरिए रिकॉर्ड किए गए वीडियो में, भाजपा गोंडा इकाई के प्रमुख कश्यप महिला के साथ सीढ़ियाँ चढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसके बाद वह महिला के साथ ‘अनुचित व्यवहार’ करते हुए दिखाई देते हैं, सीढ़ियाँ चढ़ने से पहले उसे गले लगाते हैं, जबकि महिला उनके पीछे-पीछे सीढ़ियाँ चढ़ती है.
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वक़्फ़ अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने दिल्ली निवासी निखिल उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी किया और इसे अधिवक्ता हरि शंकर जैन और एक अन्य व्यक्ति की इसी तरह की याचिका के साथ संलग्न कर दिया. वक़्फ़ अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति मसीह की पीठ ने पहले पूछा था कि इतने वर्षों के बाद अब 1995 के अधिनियम को चुनौती क्यों दी जा रही है. याचिकाकर्ता हरि शंकर जैन की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने यह समझाने की कोशिश की कि याचिकाकर्ताओं ने 1995 के अधिनियम को बहुत पहले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और उन्हें उच्च न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा गया था, लेकिन पीठ इससे सहमत नहीं थी. मंगलवार को भी पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से पूछा कि उसे 1995 के अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अभी क्यों विचार करना चाहिए. उपाध्याय ने बताया कि पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना, और जस्टिस संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ - जिसने पूर्व सीजेआई खन्ना की सेवानिवृत्ति के बाद सीजेआई गवई के नेतृत्व वाली पीठ के कार्यभार संभालने से पहले वक़्फ़ (संशोधन) 2025 मामलों की सुनवाई की थी - पहले ही 1995 के अधिनियम को चुनौती देने के मामले को अलग से सुनने के लिए सहमत हो गई थी और 2025 के संशोधनों को चुनौती देने वालों को इस पर अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति दी थी.
सिंदूर के खिलाफ इंस्टा पोस्ट पर छात्रा को गिरफ्तार करने पर हाई कोर्ट सदमे में
ऑपरेशन सिंदूर पर आलोचनात्मक सोशल मीडिया पोस्ट के मामले में गिरफ्तार पुणे की इंजीनियरिंग छात्रा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई. वेकेशन बेंच ने कहा, "यह सदमे जैसा है कि सरकार ने छात्रा को हार्डकोर अपराधी समझ लिया." खदीजा शेख (19), सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी से संबद्ध सिंहगढ़ एकेडमी की छात्रा, ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर पर आलोचनात्मक इंस्टाग्राम स्टोरीज पोस्ट कीं. दो घंटे बाद धमकियों के बाद उसने पोस्ट हटा दीं और माफी मांगी. 9 मई को पुणे पुलिस और एटीएस ने उसे बीएनएस की धाराओं (152, 196, 197, 299, 352, 353) के तहत गिरफ्तार कर लिया. कॉलेज ने उसे निष्कासित कर दिया. जस्टिस गौरी गोडसे और सोमसेखर सुंदरेशन की बेंच ने कहा, "युवा छात्रा की गलती को सुधारने का मौका देने के बजाय सरकार ने उसे अपराधी बना दिया. कॉलेज का रुख भी गलत है. शैक्षणिक संस्थानों का उद्देश्य सुधार होना चाहिए, दंड नहीं." कोर्ट ने छात्रा की तत्काल रिहाई का आदेश दिया और कॉलेज को हॉल टिकट जारी करने को कहा. अतिरिक्त सरकारी वकील पी.पी. काकड़े के "राष्ट्रहित के विरुद्ध पोस्ट" के तर्क पर बेंच ने कहा, "क्या राज्य चाहता है कि छात्र राय व्यक्त करना बंद कर दें? ऐसी कट्टर प्रतिक्रिया युवाओं को और उग्र बनाएगी." छात्रा को शाम तक जेल से रिहा करने और 24 मई से शुरू परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई. निष्कासन का आदेश निलंबित किया गया. कोर्ट ने कहा, "पुलिस अधिकारी उसकी जिंदगी बर्बाद करने पर आमादा थे. कॉलेज ने बिना सुनवाई जल्दबाजी की." छात्रा की वकील फरहाना शाह ने एफआईआर रद्द करने और जमानत की याचिका दायर की थी. छात्रा ने अपनी याचिका में कहा था कि कॉलेज का फैसला मनमाना और उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
चढ़ते-चढ़ते
55 साल के नेपाली ने माउंट एवरेस्ट की 31वीं बार चोटी पर चढ़कर तोड़ा विश्व रिकॉर्ड
कामी रीता मंगलवार को पहाड़ की 8,849 मीटर (29,032 फीट) की चोटी पर पहुंचे, 31 साल पहले 1994 में वे पहली बार चोटी पर पहुंचे थे. अधिकारियों ने बताया कि वह दक्षिण-पूर्व रिज मार्ग से शिखर पर पहुंचे, जबकि उन्होंने 22 सदस्यीय भारतीय सेना दल के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाई, जिसमें 27 अन्य शेरपा भी शामिल थे. अभियान के आयोजक सेवन समिट ट्रेक्स ने कहा, “महान कामी रीता शेरपा को एवरेस्ट पर उनकी 31वीं सफल चढ़ाई पर बहुत-बहुत बधाई, जो इतिहास में किसी भी व्यक्ति द्वारा की गई सबसे अधिक चढ़ाई है.” शेरपा गाइड के बेटे कामी रीता ने पहली बार 1994 में एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी, और तब से लगभग हर साल शिखर पर पहुंचे हैं, सिवाय उन वर्षों के जब अधिकारियों ने पर्वतारोहियों के लिए पहाड़ को बंद कर दिया था. मई 2024 में एक पिछली रिकॉर्ड-तोड़ चढ़ाई के बाद एएफपी समाचार एजेंसी से उन्होंने कहा था कि वह रिकॉर्ड बनाने से विशेष रूप से प्रेरित नहीं थे, और वह ‘बस काम कर रहे थे’. उन्होंने कहा, “मुझे इस बात की अधिक खुशी है कि मेरी चढ़ाई ने नेपाल को दुनिया में पहचान दिलाने में मदद की.” 1953 में एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग नोर्गे के पहली बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद से 8,000 से अधिक लोग इसकी चोटी पर पहुँच चुके हैं.
पाठकों से अपील-
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