28/06/2025: बिहार मतदाता सूची पर रायता थोड़ा और फैला | संविधान चाहिए या मनुस्मृति, राहुल ने पूछा | बचत घटी, कर्ज बढ़ा भारतीयों पर | चीन के बाद अब भारत से बड़ी डील करेगा अमेरिका | हवाई हादसे पर कई सवाल
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
बिहार मतदाता सूची पर बवाल, विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग को भाजपा का मुखौटा बताया
होसबोले की मांग पर विपक्ष का तीखा हमला, राहुल बोले- ‘ये संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहते हैं’
आनंद तेलतुंबडे : मोदी के 11 वर्ष : गणतांत्रिक मूल्यों से बुना सामाजिक ताना-बाना बिखरा
भारतीय घरों की बचत घटी, कर्ज़ बढ़ा : रिपोर्ट
पानी मिला डीज़ल, मप्र के सीएम के काफिले की 19 गाड़ियां खराब हो गईं
सम्भल में मुहर्रम से पहले 900 से अधिक लोगों पर पाबंदियां
लिव-इन रिलेशनशिप मिडिल क्लास के स्थापित कानून के खिलाफ : हाईकोर्ट
पीसीआई और देशभर के पत्रकार संगठनों ने सरकार को लिखा पत्र, डीपीडीपी एक्ट के प्रावधानों पर जताई चिंता
जातिगत भेदभाव से तंग मैनिट के प्रोफेसर ने मोदी से पूछा, क्या संविधान एसटी समुदाय की रक्षा नहीं करता?
गर्भवती महिलाओं और बच्चों को दिए जाने वाले पोषण आहार को सड़े अनाज से और पैरों से कुचलकर तैयार किया गया! वीडियो हुआ वायरल
ट्रम्प का दावा: अमेरिका-चीन व्यापार समझौता हुआ ‘फाइनल’, भारत से भी होगी बड़ी डील
ट्रम्प से भारत को कोई रियायत नहीं मिली
चंद्रचूड़ को वन नेशन, वन इलेक्शन से कोई एतराज नहीं
बांग्लादेश में जबरन धकेले गए असम के दो बुज़ुर्ग भारतीय नागरिक भारत लौटे, कहा- 'बंदूक की नोक पर पार करवाई सीमा'
यूएन जांचकर्ताओं को एयर इंडिया हादसे की जांच में शामिल होने से रोका, अब उठ रहे हैं सवाल
ब्रिटेन में बड़ा जासूसी खुलासा: क्या MI6 में दो दशक तक छिपा रहा रूस का जासूस?
बिहार मतदाता सूची पर बवाल, विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग को भाजपा का मुखौटा बताया
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए जा रहे मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” अभियान ने खासा विवाद खड़ा कर दिया है. विपक्षी दलों को शक है कि सरकार का इरादा पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने का है. चुनाव आयोग से दो चिट्ठियां मिलने के बाद शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस मामले में खुलकर सामने आ गईं. उन्होंने बताया कि उन्हें चुनाव आयोग से दो लंबी चिट्ठियां मिली हैं. इन चिट्ठियों के मुताबिक, आयोग अब उन मतदाताओं से घोषणा पत्र मांग रहा है, जो 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए हैं. इसमें उन्हें अपने माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र नागरिकता के प्रमाण के तौर पर जमा करने होंगे.
ममता बनर्जी ने कहा, “चुनाव आयोग भाजपा का मुखौटा बन गया है. मुझे चुनाव आयोग की इस कार्रवाई का कारण समझ नहीं आ रहा है, न ही इन तारीखों के चयन का कोई औचित्य दिखता है. यह किसी घोटाले से कम नहीं है. मैं आयोग से स्पष्टता चाहती हूं कि क्या वे बैकडोर से एनआरसी लागू करने की कोशिश कर रहे हैं. वास्तव में, यह एनआरसी से भी ज्यादा खतरनाक लग रहा है. उन्होंने कहा, "वे वैध युवा मतदाताओं के नाम हटाना चाहते हैं. कई माता-पिता अपने जन्म प्रमाणपत्र नहीं दिखा पाएंगे. वे बंगाल के प्रवासी मजदूरों, छात्रों, ग्रामीणों और अशिक्षित मतदाताओं को निशाना बना रहे हैं. यह "खतरनाक खेल" चल रहा है और यह लोकतंत्र के लिए "चिंताजनक" है.
इस बीच समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ममता का समर्थन करते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख द्वारा भाजपा को लेकर जताई गई किसी भी चिंता को गंभीरता से लेना चाहिए. विपक्षी दलों को सतर्क हो जाना चाहिए. भाजपा बैकडोर से कुछ भी कर सकती है.
बिहार, जहां इस सप्ताहांत से विशेष पुनरीक्षण शुरू होने की संभावना है, के राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "चुनाव आयोग ने अचानक विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा कर दी है. इसका मतलब है कि फरवरी में प्रकाशित मतदाता सूची, जिसमें हाल ही में नाम जोड़े और हटाए गए थे, अब उसे दरकिनार कर दिया गया है." तेजस्वी ने सवाल उठाया कि चुनाव से केवल दो महीने पहले यह प्रक्रिया क्यों शुरू की गई है और क्या 25 दिनों में आठ करोड़ लोगों की नई सूची बनाना संभव है? उन्होंने यह भी कहा कि जिन दस्तावेजों की मांग की जा रही है, वे गरीबों के पास नहीं हैं. वहीं, कांग्रेस ने भी इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है. पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने चुनाव आयोग पर प्रधानमंत्री मोदी की कठपुतली की तरह काम करने का आरोप लगाया और कहा कि इससे बिहार और देशभर में लाखों लोग अपने वोटिंग अधिकार से वंचित हो जाएंगे.
“द इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक, चुनाव आयोग के इस अभियान के तहत लगभग 80,000 बूथ लेवल अधिकारी घर-घर जाकर राज्य के 7.8 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं को दो-दो फॉर्म वितरित करेंगे. चुनाव आयोग ने मंगलवार को इस विशेष पुनरीक्षण की घोषणा की थी, जो बुधवार से शुरू होकर 30 सितंबर को मतदाता सूची के प्रकाशन के साथ समाप्त होगा. विधानसभा चुनाव नवंबर में होने हैं. पिछली बार ऐसा गहन पुनरीक्षण 2003 में हुआ था. उसके बाद हर साल लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले केवल नाम जोड़ने और हटाने का काम होता रहा है. इस बार पूरी सूची नए सिरे से तैयार की जाएगी.
चुनाव आयोग के अनुसार, तेजी से हो रहे शहरीकरण, लगातार पलायन, नए युवा मतदाताओं की पात्रता, मृत्यु की सूचना न मिलना और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होना, इन कारणों से गहन पुनरीक्षण जरूरी हो गया है.
होसबोले की मांग पर विपक्ष का तीखा हमला, राहुल बोले- ‘ये संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहते हैं’
आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबोले की 'धर्मनिरपेक्ष' और ‘समाजवादी’ शब्द को संविधान की प्रस्तावना से हटाने की मांग पर विपक्षी दलों की तरफ से शुक्रवार को काफी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संघ पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “आरएसएस का नकाब फिर उतर गया है. संविधान उन्हें इसलिए चुभता है क्योंकि वह समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है."
राहुल ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "आरएसएस-बीजेपी संविधान नहीं चाहते, वे मनुस्मृति चाहते हैं. वे जनता और गरीबों के अधिकार छीनकर उन्हें फिर से गुलाम बनाना चाहते हैं. उनका असली एजेंडा संविधान जैसे शक्तिशाली हथियार को छीनना है. आरएसएस को यह सपना देखना बंद करना चाहिए, हम कभी उन्हें सफल नहीं होने देंगे. हर देशभक्त भारतीय संविधान की रक्षा अपनी आखिरी सांस तक करेगा."
दरअसल, आरएसएस के सरकार्यवाह होसबोले ने कहा था कि संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जबरन जोड़े गए थे, लिहाजा इन्हें संविधान से हटा देना चाहिए.
कांग्रेस सांसद और पार्टी के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने भी कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने 25 नवंबर 2024 को इसी मुद्दे पर फैसला दिया था, जिसे अब होसबोले उठा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में 42वें संविधान संशोधन (जिसके तहत 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द जोड़े गए थे) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था. शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि ये शब्द अब व्यापक रूप से स्वीकार किए जा चुके हैं और 'हम भारत के लोग' इनके अर्थ को बिना किसी संदेह के समझते हैं.
राजद अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आरएसएस को देश का सबसे बड़ा जातिवादी और नफरती संगठन बताते हुए कहा, “इनकी इतनी हिम्मत नहीं कि संविधान और आरक्षण की तरफ़ आंख उठाकर देख सकें. अन्यायी चरित्र के लोगों के मन व विचार में लोकतंत्र एवं बाबा साहेब के संविधान के प्रति इतनी घृणा क्यों है?”
आनंद तेलतुंबडे : मोदी के 11 वर्ष : गणतांत्रिक मूल्यों से बुना सामाजिक ताना-बाना बिखरा
“द वायर” में प्रकाशित अपने लेख में प्रोफेसर आनंद तेलतुबंडे ने मोदी सरकार के ग्यारह वर्षों के कार्यकाल की मीमांसा की है.
पिछले महीने जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में 11 साल पूरे किए, तो एक क्षणिक उत्साह देखने को मिला. उनके समर्थकों ने इसे "नए भारत" के निर्माण के रूप में प्रस्तुत किया. लेकिन इसी दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा भारत को पाकिस्तान के साथ जोड़ना, संघर्षविराम का श्रेय लेना, और अवैध भारतीय प्रवासियों को हथकड़ी और बेड़ियों में सार्वजनिक रूप से पेश करना, इन सब पर मोदी की चुप्पी ने उनकी सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए. यह दौर, जिसमें एक महाद्वीप-आकार का देश भू-राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक होता गया, मोदी के कार्यकाल की पहचान बन गया है.
तेलतुबंडे के अनुसार, आर्थिक असफलताओं और कूटनीतिक गलतियों पर बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन सबसे गंभीर नुकसान भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को हुआ है. देश की बहुलतावादी सोच का क्षरण और सामाजिक दरारों का गहरा होना स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. 2014 से पहले और अब के सामाजिक संकेतकों की तुलना करने पर, सांप्रदायिक बहुसंख्यकवाद, बौद्धिकता-विरोध और संस्थागत भेदभाव में तेज़ वृद्धि दिखती है. तीन शताब्दियों की आधुनिकता, स्वतंत्रता संग्राम की समता की भावना और संविधान में निहित गणतांत्रिक मूल्यों से बुना गया सामाजिक ताना-बाना बिखर गया है.
सांप्रदायिकता और लोकतांत्रिक स्थान का संकुचन
यूपीए शासन (2011–2014) के दौरान सालाना औसतन 600 सांप्रदायिक घटनाएं होती थीं, जो मोदी के कार्यकाल में (2017–2022) बढ़कर 1,000 से अधिक हो गईं.
गौ-हत्या के नाम पर हिंसा के मामले 2014–2024 के बीच 300 से अधिक हो गए.
हेट स्पीच के मामले पांच गुना बढ़े, और पुलिस की कमजोर प्रतिक्रिया तथा राजनीतिक समर्थन ने इन्हें और बढ़ावा दिया.
भारत की प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग 2014 में 140 से गिरकर 2024 में 161 हो गई.
देशद्रोह के मामले (2014 से पहले सालाना 25) 160% बढ़कर 70 से अधिक हो गए.
विश्वविद्यालयों में इतिहास और असहमतिपूर्ण विचारों का दमन बढ़ा है.
अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों की स्थिति
मुस्लिम सांसदों की संख्या 2009 में 30 से घटकर 2024 में 24 हो गई, और पहली बार मोदी कैबिनेट में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है.
धर्मांतरण विरोधी कानून अब 12 राज्यों में लागू हैं.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और NRC ने नागरिकता की परिभाषा को हिंदू पहचान के इर्द-गिर्द केंद्रित कर दिया है.
दलितों के खिलाफ अपराध 2013 में 39,000 से बढ़कर 2022 में 50,900 हो गए.
आदिवासी अधिकारों में भी कटौती हुई है; वन भूमि का हस्तांतरण और विस्थापन बढ़ा है.
सांस्कृतिक और शैक्षिक परिदृश्य
हिंदी को थोपने की कोशिशों के खिलाफ पूर्वोत्तर और तमिलनाडु में विरोध हुआ.
क्षेत्रीय संस्कृतियों की जगह राज्य-प्रायोजित हिंदू त्योहारों को बढ़ावा मिला.
वैज्ञानिक अनुसंधान के बजट में कटौती और छद्म विज्ञान को बढ़ावा मिला.
नई शिक्षा नीति (2020) में संस्कृत और "भारतीय ज्ञान प्रणाली" को बढ़ावा दिया गया, जबकि आलोचनात्मक सोच को नजरअंदाज किया गया.
मानवीय कार्यों का अपराधीकरण और नफरत का सामान्यीकरण
20,000 से अधिक एनजीओ के लाइसेंस रद्द किए गए.
ईसाई मिशनरियों और अल्पसंख्यक क्षेत्रों में मानवीय कार्यों को "राष्ट्र-विरोधी" बताया गया.
मुसलमानों के खिलाफ घृणा और भेदभाव अब आम हो गया है, चाहे वह आवास में भेदभाव हो या "बुलडोजर न्याय."
इन प्रवृत्तियों को मिलाकर देखें तो यह केवल सामाजिक अनुबंध का टूटना नहीं, बल्कि उसका पुनर्लेखन है. जहां पहले संवैधानिक मूल्य जैसे धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और बहुलता प्रमुख थे, वहीं अब बहुसंख्यक वर्चस्व, असहिष्णुता और असमानता का बोलबाला है.
भारतीय घरों की बचत घटी, कर्ज़ बढ़ा : रिपोर्ट
'इंडियास्पेंड' के लिए विजय जाधव की रिपोर्ट है कि बीते एक दशक में भारतीय परिवारों की बचत और कर्ज़ लेने के तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव देखा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक जहां पारंपरिक जमा योजनाएं अब भी सबसे लोकप्रिय बचत माध्यम बनी हुई हैं, वहीं शेयर बाजार, सरकारी बॉन्ड, पेंशन और लघु बचत योजनाओं में निवेश की प्रवृत्ति भी बढ़ी है. रिपोर्ट बताती है कि कोविड महामारी के बाद गरीब परिवारों, खासकर शहरी गरीबों ने रोजमर्रा के खर्चों के लिए कर्ज़ लेना शुरू किया. ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी साहूकारों से कर्ज़ लेने की प्रवृत्ति बनी हुई है. इसके अलावा भारतीय परिवार अब वित्तीय बचत की बजाय ज़मीन-जायदाद और सोने जैसी भौतिक संपत्तियों की ओर ज्यादा झुकाव दिखा रहे हैं. आरबीआई की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 में भारतीय घरों ने ₹63,397 करोड़ मूल्य के सोने-चांदी के आभूषण खरीदे.
वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में कर्ज़ और अंधाधुंध खर्च की रफ्तार अब आर्थिक संकेतकों से मेल नहीं खा रही है. अगर यह रुझान जारी रहा तो यह घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.
2023-24 के अंत तक भारतीय घरों के पास कुल वित्तीय परिसंपत्तियां ₹320 लाख करोड़ थीं, जबकि कुल देनदारियां ₹121 लाख करोड़ तक पहुंच गईं. यानी कर्ज़ अब कुल संपत्तियों के 55% तक पहुंच गया है, जो पिछले 50 वर्षों में सबसे ऊंचा स्तर है.
2022-23 में एक औसत भारतीय परिवार ने ₹1 लाख की बचत की लेकिन ₹53,000 का कर्ज़ भी जोड़ा. इस अवधि में बचत की रफ्तार धीमी रही जबकि कर्ज़ तेजी से बढ़ा.
बैंक अब भी सबसे बड़े कर्ज़दाता हैं, लेकिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) से लिए जा रहे कर्ज़ों में 10 वर्षों में दस गुना तक बढ़ोतरी हुई है. 2013-14 में NBFC का हिस्सा केवल 2% था, जो 2022-23 में 21% तक पहुंच गया.
बचत के तरीके बदले:
जमा योजनाओं की हिस्सेदारी 10 साल में 56% से गिरकर 41% रह गई.
शेयर और बॉन्ड में निवेश बढ़कर 9% तक पहुंचा.
पेंशन व भविष्य निधि में हिस्सेदारी 15% से बढ़कर 21% हो गई.
बलात्कारी का जमानत 7 जुलाई तक बढ़ाई: गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कारी बाबा आसाराम को दी गई अस्थायी जमानत 7 जुलाई तक बढ़ा दी है. आसाराम 2013 के बलात्कार के इस मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है. उसे 28 मार्च को तीन महीने की अस्थायी जमानत दी गई थी, जो 30 जून को समाप्त होने वाली थी.
पानी मिला डीज़ल, मप्र के सीएम के काफिले की 19 गाड़ियां खराब हो गईं
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के काफिले की 19 गाड़ियां गुरुवार देर रात उस समय खराब हो गईं, जब काफिला एक पेट्रोल पंप पर ईंधन भरवाने रुका, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि वहां दिये जा रहे डीजल में पानी मिला हुआ है. इसके बाद प्रशासन ने पेट्रोल पंप को सील कर दिया. कुछ गाड़ियां पेट्रोल पंप से निकलकर हाईवे पर कुछ दूरी तक ही जा पाईं और वहीं बंद हो गईं, जबकि बाकी गाड़ियां पेट्रोल पंप से निकल ही नहीं सकीं. इस घटना पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कटाक्ष करते हुए “एक्स” पर लिखा,”गनीमत है मुख्यमंत्री जी के स्टेट प्लेन में नहीं डाल दिया.”
सम्भल में मुहर्रम से पहले 900 से अधिक लोगों पर पाबंदियां
उत्तरप्रदेश के सम्भल जिले में मुहर्रम से पहले शांति बनाए रखने और किसी भी संभावित अशांति को रोकने के लिए प्रशासन ने 900 से अधिक लोगों के खिलाफ पाबंदियां लगाई हैं. जिला अधिकारी राजेंद्र पेंसिया ने शुक्रवार को बताया कि ये कदम शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया गया है. इसके तहत बीएनएसएस की धारा 163 लागू की गई है, जो आपात स्थिति में मजिस्ट्रेट को आदेश जारी करने की शक्ति देती है. डीएम ने बताया, अब तक 900 से ज्यादा लोगों को एहतियाती कार्रवाई के तहत पाबंद किया गया है और बाकी की जांच अभी जारी है. जो भी व्यक्ति सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने या विवाद की कोशिश करेगा, उस पर भी इसी तरह की पाबंदियां लगाई जाएंगी. गड़बड़ी करने पर उनकी जमानत जब्त कर ली जाएगी.
नफरत की हिंसा पर हरकारा डीपडाइव
भारत में नफरत पर आधारित हिंसा और भाषण केवल छिटपुट घटनाएं नहीं हैं, बल्कि यह एक सुनियोजित और सफल परियोजना का रूप ले चुकी हैं. यह विश्लेषण "हरकारा डीप ड्राइव" की एक रिपोर्ट पर आधारित है, जो सत्तारूढ़ दल के 11 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों के बीच इस अनदेखे पहलू को उजागर करती है. एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) की एक हालिया रिपोर्ट इस गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डालती है. रिपोर्ट के अनुसार, जून 2024 से जून 2025 के बीच देश में हेट क्राइम की 947 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 602 शारीरिक हिंसा और 345 हेट स्पीच के मामले थे. चिंताजनक बात यह है कि इस हिंसा में 25 लोगों की जान गई और सभी मृतक मुस्लिम समुदाय से थे. रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि भारत के अल्पसंख्यक, विशेषकर मुसलमान और ईसाई, इस संगठित हिंसा के मुख्य शिकार हैं. रिपोर्ट में हेट क्राइम और राजनीति के बीच एक गहरा संबंध उजागर किया गया है. आंकड़ों के अनुसार, हेट स्पीच देने वालों में भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के सदस्यों की संख्या सबसे अधिक है. चुनावी राज्यों में इन घटनाओं में वृद्धि देखी जाती है, जो इसे चुनावी ध्रुवीकरण की एक रणनीति के रूप में दर्शाती है. यह रिपोर्ट इस सवाल को जन्म देती है कि क्या यह नफरत की हिंसा एक प्रकार का आतंकवाद है जो देश के सामाजिक ताने-बाने और संवैधानिक मूल्यों के लिए खतरा बन गया है. देखिये हमारा ये वीडियो.
लिव-इन रिलेशनशिप मिडिल क्लास के स्थापित कानून के खिलाफ : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप का विचार भारतीय मिडिल क्लास समाज के "स्थापित कानून के खिलाफ" है. यह टिप्पणी जस्टिस सिद्धार्थ ने उस समय की, जब वे एक ऐसे व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिस पर शादी का झांसा देकर एक महिला का यौन शोषण करने का आरोप था.
कोर्ट ने इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या पर भी असंतोष जताया और कहा, "सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने के बाद ऐसे मामलों की बाढ़ आ गई है. ये मामले इसलिए आ रहे हैं, क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप का विचार भारतीय मिडिल क्लास समाज के स्थापित कानून के खिलाफ है. "
कोर्ट ने यह भी कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप से महिलाओं को असमान रूप से नुकसान होता है. पुरुष ऐसे संबंधों के टूटने के बाद आगे बढ़ जाते हैं और शादी भी कर लेते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए ब्रेकअप के बाद जीवनसाथी ढूंढना मुश्किल हो जाता है.
पीसीआई और देशभर के पत्रकार संगठनों ने सरकार को लिखा पत्र, डीपीडीपी एक्ट के प्रावधानों पर जताई चिंता
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI) ने देशभर के 21 पत्रकार संगठनों और 1,000 से अधिक पत्रकारों व फोटो जर्नलिस्टों के साथ मिलकर डेटा संरक्षण कानून यानी डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट, 2023 के प्रावधानों पर गंभीर आपत्ति जताई है. पीसीआई का कहना है कि यह कानून पत्रकारों के काम करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव को सौंपे गए एक संयुक्त ज्ञापन में पीसीआई और अन्य प्रेस संगठनों ने मांग की है कि प्रिंट, ऑनलाइन और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कार्यरत पत्रकारों के पेशेवर काम को डीपीडीपी एक्ट के दायरे से बाहर रखा जाए.
केरल के स्कूलों में ज़ुम्बा पर विवाद : केरल के स्कूलों में शिक्षा विभाग द्वारा नशा विरोधी अभियान के तहत शुरू किए गए हाई-एनर्जी फिटनेस प्रोग्राम 'ज़ुम्बा डांस' का कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है. उनका कहना है कि यह कार्यक्रम नैतिक मूल्यों के खिलाफ है. जबकि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के का मानना है कि नृत्य और एरोबिक गतिविधियों का मिश्रण बच्चों में तनाव कम करने और युवाओं में नशे की प्रवृत्ति रोकने में मदद करेगा.
| वैकल्पिक मीडिया
जातिगत भेदभाव से तंग मैनिट के प्रोफेसर ने मोदी से पूछा, क्या संविधान एसटी समुदाय की रक्षा नहीं करता?
'द मूकनायक' की रिपोर्ट है कि मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNNIT) इलाहाबाद में सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि पिछले आठ सालों से उनके साथ जातिगत भेदभाव, संस्थागत उपेक्षा और प्रशासनिक दमन की घटनाएं हो रही हैं. उनका यह सवाल दिल दहला देने वाला है - "क्या भारत का संविधान अनुसूचित जनजाति के नागरिकों की रक्षा नहीं करता? क्या आदिवासियों को न्याय और समानता के संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है?" डॉ. नायक का यह मार्मिक पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. अम्बेडकरवादी इस बात पर सहमति जाहिर करते हैं कि संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद प्रतिष्ठित संस्थानों में ST शिक्षकों को अक्सर व्यवस्थागत पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है.
डॉ. नायक, जो इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं, ने 30 नवंबर 2012 को ST कोटे के तहत MNNIT अलाहाबाद में अपनी सेवाएं शुरू की थीं. वर्षों तक उन्होंने छात्रों के बीच अपनी शिक्षण क्षमता के लिए प्रशंसा अर्जित की, लेकिन उनका कहना है कि 2017 से उनके साथ लगातार जातिगत भेदभाव, पेशेवर रूप से बाधा डालने और प्रशासनिक उपेक्षा की घटनाएं हो रही हैं.
जनवरी 2025 में जब उनके सामान्य और SC वर्ग के साथियों को एसोसिएट प्रोफेसर (AGP 9500) के पद पर पदोन्नति मिली, तो उनकी पदोन्नति को बिना किसी ठोस कारण के रोक दिया गया. उनका आरोप है कि 2018-2019 के दौरान उन्हें जानबूझकर पीएचडी छात्र आवंटन और शोध संसाधनों से वंचित रखा गया, जबकि उनके कुछ सहकर्मियों को, जिनमें से कुछ प्रभावशाली जातियों से थे, केवल दो साल में पांच छात्र आवंटित किए गए.
गर्भवती महिलाओं और बच्चों को दिए जाने वाले पोषण आहार को सड़े अनाज से और पैरों से कुचलकर तैयार किया गया! वीडियो हुआ वायरल
मध्य प्रदेश के रीवा जिले से एक शर्मनाक और गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है. 'द मूकनायक' की रिपोर्ट है कि पहाड़िया स्थित टेक होम राशन (THR) प्लांट में गर्भवती महिलाओं, बच्चों और किशोरियों को दिए जाने वाले पूरक पोषण आहार को गंदे और सड़े हुए अनाज से तैयार किया जा रहा है. इस पूरे कृत्य का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें एक युवक खुले पैरों से अनाज को रौंदते हुए मशीन में डालता दिखाई दे रहा है. यह पोषण आहार जिले की सभी 100 से अधिक आंगनवाड़ियों में सप्लाई किया जाता है, जहां इसका उपयोग गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं, 6 महीने से 6 साल तक के बच्चों और 11 से 14 वर्ष की शाला त्यागी किशोरियों को पोषण देने के लिए किया जाता है. रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल ने वीडियो पर संज्ञान लेते हुए कहा, "पहाड़िया THR प्लांट से जुड़ी गंभीर शिकायत सामने आई है। मैंने जिला पंचायत सीईओ को मौके पर जाकर निरीक्षण करने और जांच रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं. जांच के आधार पर सख्त कार्रवाई की जाएगी."
ट्रम्प का दावा: अमेरिका-चीन व्यापार समझौता हुआ ‘फाइनल’, भारत से भी होगी बड़ी डील
'फायनेंशियल टाइम्स' की रिपोर्ट है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका और चीन ने एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यह कथित समझौता लंदन और जिनेवा में हुई बैठकों के बाद सामने आया है, जिनका उद्देश्य वैश्विक व्यापार युद्ध को कम करना था. ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में बजट विधेयक के प्रचार कार्यक्रम के दौरान कहा, “हमने कल ही चीन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.” हालांकि उन्होंने इस संबंध में कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी. व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा कि अमेरिका और चीन ने जिनेवा में हुए समझौते को लागू करने के लिए एक रूपरेखा पर सहमति बनाई है. यह वही बातचीत थी जो मई में हुई थी, जब दोनों देशों ने 90 दिनों तक एक-दूसरे पर लगाई गई टैरिफ (शुल्क) में कटौती का समझौता किया था. हालांकि उस समय दुर्लभ खनिजों के निर्यात और अमेरिका की निर्यात नियंत्रण नीति को लेकर मतभेद के कारण समझौता अटक गया था.
यूएस-चाइना बिजनेस काउंसिल के अध्यक्ष शॉन स्टीन ने कहा, “अगर यह समझौता अमेरिका-चीन व्यापार में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करता है तो यह दोनों देशों की जनता के लिए बड़ी जीत होगी.” चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि लंदन में हुई बातचीत में तय रूपरेखा समझौते की पुष्टि दोनों पक्षों ने कर दी है. मंत्रालय ने यह भी कहा कि नियंत्रित वस्तुओं के निर्यात के लिए अनुमतियाँ कानून के अनुसार दी जाएंगी और अमेरिका चीन पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाएगा, लेकिन इस पर ज्यादा विवरण नहीं दिया गया. यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब ट्रम्प प्रशासन 9 जुलाई की "प्रतिस्पर्धात्मक टैरिफ" की समय सीमा से पहले कई देशों के साथ व्यापार समझौतों को अंतिम रूप देना चाहता है. अप्रैल में घोषित इन टैरिफ को 90 दिनों के लिए घटाकर 10% किया गया था, ताकि देशों को बातचीत का समय मिल सके.
अब तक सिर्फ ब्रिटेन ही अमेरिका के साथ स्थायी व्यापार समझौते पर पहुंचा है. चीन को 10% टैरिफ की छूट दी गई है, लेकिन अमेरिका अब भी सभी चीनी उत्पादों पर 20% अतिरिक्त शुल्क बरकरार रखे हुए है, यह कहते हुए कि चीन फेंटेनिल (एक घातक ड्रग) के रासायनिक अवयवों के निर्यात को नियंत्रित करने में असफल रहा है. इसके अलावा, अमेरिका अब सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवा, एयरोस्पेस पार्ट्स, तांबा और खनिज क्षेत्रों में भी वैश्विक टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है.
ट्रम्प से भारत को कोई रियायत नहीं मिली
इधर, भारत को डोनाल्ड ट्रम्प से कोई रियायत नहीं मिली. 'द इकोनोमिस्ट' की रिपोर्ट है कि भारत और अमेरिका के बीच संभावित "मिनी-डील" पर बातचीत लगातार खिंचती जा रही है. शुरुआत में उम्मीद थी कि भारत जल्दी एक अंतरिम समझौता कर लेगा जिससे कुछ शुल्क कम होंगे और आगे के लिए रास्ता खुलेगा, लेकिन जैसे-जैसे 9 जुलाई (ट्रम्प की टैरिफ डेडलाइन) नज़दीक आ रही है, बातचीत में गतिरोध बढ़ गया है.
अमेरिका चाहता है कि भारत उसके जेनेटिकली मोडिफाइड कृषि उत्पादों (जैसे मक्का और सोयाबीन) को स्वीकार करे, लेकिन मोदी सरकार के लिए यह राजनीतिक रूप से जोखिम भरा है, क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय किसान इससे प्रभावित होंगे. देशी उद्योगपतियों और हिंदुत्ववादी संगठनों का भी विरोध है, जो विदेशी कंपनियों को रियायत देने के खिलाफ हैं.
भारत को शक है कि ट्रम्प भविष्य में फिर से टैरिफ बढ़ा सकते हैं, इसलिए वह किसी भी समझौते में गारंटी और पुनः वार्ता का विकल्प चाहता है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को जल्दबाज़ी में समझौता नहीं करना चाहिए. जैसा कि पूर्व भारतीय व्यापार वार्ताकार अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “व्यापार युद्ध कोई असली युद्ध नहीं है - कोई बम नहीं गिरा रहा. आत्मसमर्पण मत कीजिए.”
चंद्रचूड़ को वन नेशन, वन इलेक्शन से कोई एतराज नहीं: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कथित तौर पर इस कानून की जांच कर रही संसदीय समिति को लिखित में कहा है कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करते हैं, क्योंकि "अलग-अलग समय पर होने वाले चुनावों को मूल संविधान की विशेषता नहीं माना जा सकता, और इसकी एक अपरिवर्तनीय विशेषता तो बिल्कुल भी नहीं." शोभना नायर की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह भी विचार व्यक्त किया कि एक साथ चुनाव होने से ज़रूरी नहीं कि क्षेत्रीय मुद्दों पर राष्ट्रीय स्तर के मामलों को प्राथमिकता मिले, क्योंकि मतदाता "भोले" नहीं हैं और उन्हें आसानी से बहकाया नहीं जा सकता. हालांकि, वे यह ज़रूर मानते हैं कि इस चिंता पर विधायी ध्यान देने की ज़रूरत है कि राष्ट्रीय दल अपने क्षेत्रीय समकक्षों को हाशिए पर डाल सकते हैं, लेकिन यह चिंता इन दोनों विधेयकों के बिना भी पहले से ही मौजूद है. उनका 11 जुलाई को संसदीय पैनल से मिलने का कार्यक्रम है.
अंबेडकर की प्रतिमा को लेकर हाईकोर्ट में बवाल: जबलपुर में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अंबेडकर की प्रतिमा की प्रस्तावित स्थापना को लेकर हुए विवाद ने जातीय आधार पर तनाव को फिर से भड़का दिया है और इसने राजनीतिक रंग भी लेना शुरू कर दिया है. इस साल की शुरुआत में उच्च न्यायालय के एक रजिस्ट्रार ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सुरेश कैत द्वारा प्रतिमा के लिए दी गई मंजूरी के बारे में लिखा था, लेकिन सवर्ण वकीलों ने कहा है कि कुछ वकीलों ने कैत को एक 'फर्जी ज्ञापन' पेश करके यह हरी झंडी हासिल की, जिस पर बार एसोसिएशन के कई सदस्यों के हस्ताक्षर नहीं थे. कैत दलित हैं. अनंत गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिमा स्थापना को लेकर हुए इस विवाद में, अंबेडकरवादियों द्वारा अपनी जातिगत पहचान जताने की प्रतिक्रिया में कुछ सवर्ण वकीलों ने भी अपनी जातीय पहचान पर जोर दिया है; भीम आर्मी भी इस मामले में कूद पड़ी है और प्रतिमा स्थापित करने की मांग कर रही है; और कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियां भी इसमें शामिल हो गई हैं.
क्लास जाते बच्चों को रोकने के लिए बाउंसर? देश भर में और खासकर दिल्ली में अभिभावक निजी स्कूलों द्वारा वसूली जा रही "असहनीय" फीस वृद्धि के खिलाफ मुखर हो गए हैं. कई अभिभावक इस बात से भी चिंतित हैं कि दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका द्वारा बढ़ी हुई फीस का भुगतान न करने वाले परिवारों के छात्रों को गार्ड और बाउंसरों के जरिये क्लास में आने से रोकने का फैसला एक गलत मिसाल कायम करेगा. कुछ अभिभावकों की मांग है कि स्कूलों के वित्तीय खातों का सालाना ऑडिट किया जाए ताकि अभिभावकों को पता चले कि वे किस चीज के लिए भुगतान कर रहे हैं, और दिल्ली में अभिभावकों ने मांग की है कि निजी स्कूलों की फीस को और सख्ती से विनियमित करने वाले एक प्रस्तावित कानून में उनकी प्रतिक्रिया को भी शामिल किया जाए. यह निकिता यादव की रिपोर्ट है.
बांग्लादेश में जबरन धकेले गए असम के दो बुज़ुर्ग भारतीय नागरिक भारत लौटे, कहा- 'बंदूक की नोक पर पार करवाई सीमा'
उफ़ा अली (68 वर्ष) और शोना भानु (59 वर्ष) को पुलिस ने मई में गिरफ्तार कर मटिया डिटेंशन सेंटर में रखा और फिर रात के अंधेरे में सीमा पार बांग्लादेश भेज दिया गया. उन्हें बीएसएफ कैंप में बांग्लादेशी टका दिया गया और बंदूक की नोक पर सीमा पार करने को मजबूर किया गया. 'स्क्रोल' के लिए रोकिबुज जमान और राघव कक्कड की रिपोर्ट है कि असम सरकार ने मई 2025 से अब तक 300 से ज़्यादा लोगों को "घोषित विदेशी" बताकर बांग्लादेश में जबरन धकेल दिया है. इनमें ज़्यादातर बंगाली मूल के मुस्लिम हैं, जिन्हें पीढ़ियों से भारत में रहने के बावजूद विदेशी माना जा रहा है. शोना भानु का निर्वासन सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित किया था और उफ़ा अली का नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) में है, इसके बावजूद उन्हें बांग्लादेश भेजा गया. राज्य सरकार ने पुष्टि की है कि विदेशी न्यायाधिकरणों के आदेश पर लोगों को "पुश बैक" किया जा रहा है, जबकि इन न्यायाधिकरणों पर भेदभाव और त्रुटिपूर्ण निर्णयों के आरोप हैं.
यूएन जांचकर्ताओं को एयर इंडिया हादसे की जांच में शामिल होने से रोका, अब उठ रहे हैं सवाल
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र की विमानन एजेंसी इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइजेशन (आईसीएओ) के विशेषज्ञ को एयर इंडिया की भीषण विमान दुर्घटना की जांच में शामिल होने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. गौरतलब है कि 12 जून को अहमदाबाद में एयर इंडिया की अहमदाबाद-लंदन फ्लाइट एक छात्रावास के मेस पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसमें करीब 270 लोग मारे गए. यह पिछले एक दशक की सबसे भीषण विमान दुर्घटना मानी जा रही है. आईसीएओ ने स्वयं भारत को इस हादसे में मदद देने का प्रस्ताव भेजा था, जबकि आमतौर पर ऐसी स्थिति में देश ही आईसीएओ से सहायता मांगते हैं. इससे पहले 2014 में मलेशियाई विमान के गिरने और 2020 में यूक्रेनी विमान के ईरान में गिराए जाने के मामलों में आईसीएओ को बुलाया गया था. हालांकि इस बार आईसीएओ ने केवल पर्यवेक्षक की भूमिका के लिए जांचकर्ता भेजने की पेशकश की थी, जिसे भारत ने अस्वीकार कर दिया है.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दावा किया कि भारत आईसीएओ के सभी प्रोटोकॉल का पालन कर रहा है, और मीडिया को जरूरी जानकारी दी गई है. हालांकि, आलोचकों का कहना है कि सरकार ने अब तक सिर्फ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की है और उसमें भी सवाल लेने से इनकार किया गया.
संसदीय समिति की बैठक 8 जुलाई को: 12 जून को अहमदाबाद में एयर इंडिया के विमान हादसे और हालिया महीनों में उत्तराखंड में हुए कई हेलिकॉप्टर हादसों के बाद देश की नागरिक उड्डयन सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट है कि इन परिस्थितियों को देखते हुए, संसद की स्थायी समिति (परिवहन, पर्यटन और संस्कृति) की बैठक 8 जुलाई को बुलाई गई है, जिसमें नागरिक उड्डयन सचिव समीर कुमार सिन्हा पैनल को ब्रीफ करेंगे. बैठक का मुख्य उद्देश्य भारत की समग्र नागरिक उड्डयन सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करना है. लगातार हो रहे हादसों के बाद से ही सरकार और जांच एजेंसियों की पारदर्शिता व तत्परता को लेकर सवाल उठे हैं.
ब्रिटेन में बड़ा जासूसी खुलासा: क्या MI6 में दो दशक तक छिपा रहा रूस का जासूस?
(लंदन के साउथ बैंक पर स्थित MI6 (ब्रिटेन की विदेशी गुप्तचर एजेंसी) की इमारत. फोटो साभार: फ्रैंक बैरन/द गार्डियन)
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी MI6 में एक वरिष्ठ अधिकारी के रूस के लिए डबल एजेंट होने के संदेह पर MI5 ने 20 साल तक चला एक बेहद संवेदनशील और खतरनाक ऑपरेशन चलाया. इस गुप्त मिशन का नाम था — ऑपरेशन वेडलॉक. MI5 ब्रिटेन की घरेलू खुफिया एजेंसी है. इस ऑपरेशन में 35 से अधिक अधिकारी शामिल थे. डबल एजेंट की तुलना किम फिलबी से की गई, जो 1950 के दशक में सोवियत यूनियन के लिए जासूसी करने वाले कुख्यात MI6 डबल एजेंट थे. 1990 के दशक में CIA ने MI6 को अलर्ट किया कि उसका एक वरिष्ठ अधिकारी रूस को गोपनीय जानकारियां लीक कर रहा है. MI5 की टीमें यूरोप, एशिया और मध्य पूर्व तक गईं. एक मिशन में तो टीम CIA के सेफहाउस में ठहरी और बिना मेज़बान देश की जानकारी के वहां ऑपरेट किया, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ था.
जांच के दौरान डबल एजेंट के आरोपी अधिकारी के घर में घुसकर कैमरे व माइक लगाए गए. एक MI5 कार में टिश्यू बॉक्स में छुपाया गया कैमरा इस्तेमाल हुआ. टीमें वैंड्सवर्थ के एक नकली सिक्योरिटी ऑफिस से ऑपरेट कर रही थीं, जबकि एक अधिकारी को ऑपरेशन की ब्रीफिंग किसी चर्च में दी गई, जो कि MI5 के मुख्यालय थेम्स हाउस से दूर था. हालांकि, इस लंबी जांच के बावजूद MI5 के हाथ ठोस सबूत नहीं मिले कि वह अधिकारी रूस के लिए जासूसी कर रहा था. अधिकारी के कुछ व्यक्तिगत व्यवहारों पर चिंताजनक संकेत जरूर मिले, लेकिन वे जासूसी से जुड़े नहीं थे. अधिकारी 2015 तक MI6 छोड़ चुका था. एक MI5 सूत्र ने कहा— “अगर वह आदमी दोषी नहीं था, तो इसका मतलब है कि MI6 में कोई मोल (mole) अब भी मौजूद हो सकता है.”
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