29/01/2025: टैरिफ पर ट्रम्प की भारत पर टेढ़ी नज़र, भाजपा 83% ज्यादा अमीर, सरकारी स्कूल प्राइवेट से बेहतर, शर्जील के सींखचों में 5 साल, डीपसीक का आगमन, इजरायल का होलोकास्ट बताने वाले यहूदी
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आज की सुर्खियां | 29 जनवरी 2025
टैरिफ बहुत लगाते हैं भारत, चीन और ब्राजील : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों को "जबरदस्त टैरिफ लगाने वाले" बताया है, जिससे अमेरिका को नुकसान होता है. उन्होंने कहा है कि वो जल्द ही एक "सही सिस्टम" बनाएंगे जिससे अमेरिका में पैसा आएगा. ट्रम्प ने फ्लोरिडा में एक आयोजन में कहा कि वो उन देशों पर टैरिफ लगाएंगे जो अमेरिका को "नुकसान" पहुंचाते हैं. उन्होंने कहा, "चीन, भारत और ब्राजील जैसे कई देश बहुत टैरिफ लगाते हैं." अवैध प्रवासी भारतीयों को वापस भेजने के मसले के बाद यह दूसरा मुद्दा है, जिसको लेकर अमेरिका का लहज़ा शिकायती हुआ है.
देर से सही ट्रम्प-मोदी की बातचीत : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शपथ लेने के एक सप्ताह से अधिक समय बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ फोन पर बातचीत की. इस दौरान ट्रम्प ने भारत से एक "निष्पक्ष" द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध रखने और अधिक अमेरिकी हथियार खरीदने का आग्रह किया गया. विदेश मंत्रालय के अनुसार, दोनों ने "पश्चिम एशिया और यूक्रेन की स्थिति" पर चर्चा की. जबकि व्हाइट हाउस ने फोन पर हुई बातचीत में कहा कि उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की, यह भी पता चला कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत से कुछ महत्वपूर्ण अनुरोध किए थे. बाद में, पत्रकारों से बात करते हुए, ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने इमिग्रेशन पर भी चर्चा की और मोदी के संभावित यात्रा की तारीख पर भी. उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि भारत "अवैध प्रवासियों को वापस लेने के मामले में सही काम करेगा".
ये एक वीडियो है ट्रम्प और मोदी के बीच के अनौपचारिक और मैत्रीपूर्ण रिश्तों का…
जमानत में कंजूसी क्यों?
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट्स और ट्रायल कोर्ट्स के जमानत देने में संकोच करने पर आलोचना की है. कोर्ट ने ऐसा मौलवी शाद काज़मी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमानत देने से इनकार के आदेश को चुनौती दे रहे हैं. वे 11 महीने से हिरासत में हैं. सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने कहा, "ट्रायल कोर्ट्स कभी भी जमानत देने का साहस नहीं जुटा पातीं, चाहे कोई भी अपराध हो. हालांकि, कम से कम हाई कोर्ट से तो उम्मीद थी कि वह साहस दिखाकर विवेकपूर्ण तरीके से अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करें."
भाजपा की सालाना आमदनी में 83% का इजाफ़ा
109.20 करोड़ कैश, 1627.20 करोड़ का बैंक बैलेंस, 5377.30 करोड़ रुपये एफडी
केंद्र और देश के कई राज्यों में सत्ता की कुर्सी संभाल रही भारतीय जनता पार्टी की सालाना आय में 83% की जबरदस्त वृद्धि हुई है. वित्तीय वर्ष 2022-23 में भाजपा की आय 2360.80 करोड़ रुपये थी, जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 4340.50 करोड़ रुपये हो गई. चुनाव आयोग को सौंपी गई नवीनतम वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार भाजपा को वर्ष 2023-24 में चुनावी बॉन्ड (सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंधित) के जरिए 1685.60 करोड़ रुपये मिले हैं. जबकि 2022-23 में बॉन्ड के माध्यम से 1294.14 करोड़ रुपये मिले थे, जो पार्टी की कुल आय का 61 प्रतिशत था. आंकड़े बताते हैं कि मोदी राज में भाजपा न सिर्फ सबसे अमीर पार्टी बनी हुई है, बल्कि उसके मुकाबले में कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल कोसों दूर हैं. 31 मार्च 2024 तक की स्थिति में भाजपा के पास 109.20 करोड़ नकद, 1627.20 करोड़ का बैंक बैलेंस और 5377.30 करोड़ रुपये का फिक्स्ड डिपॉजिट था. यह कुल राशि 7113.80 करोड़ होती है. खर्चों की बात करें तो भाजपा ने वर्ष 2023-24 में 2211.70 करोड़ रुपये खर्च किए, जो वर्ष 2022-23 के मुकाबले करीब 62% अधिक है. 2022-23 में उसने 1361.70 करोड़ रुपये खर्च किए थे. ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार भाजपा ने कुल खर्च में से 1754 करोड़ रुपये की राशि चुनाव और सामान्य प्रचार पर खर्च की.
भाजपा के बाद चुनावी चंदा और आय के मामले में दूसरा स्थान कांग्रेस का है. वर्ष 2023-24 में कांग्रेस की आमदनी में 170 फीसदी का इजाफा हुआ और वह 452.40 करोड़ से बढ़कर 1225 करोड़ रुपये हो गई. कांग्रेस की बॉन्ड के जरिए प्राप्तियों में भी भारी बढ़ोतरी हुई. वर्ष 2022-23 के 171 करोड़ रुपये के मुकाबले 2023-24 में उसको 828.40 करोड़ रुपये बॉन्ड से प्राप्त हुए. जहां तक कांग्रेस के खर्चों का सवाल है तो 2023-24 में कांग्रेस का खर्च 1025.20 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2022-23 के 467.10 करोड़ रुपये से 120% अधिक है. कांग्रेस ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की 14 जनवरी से 16 मार्च 2024 के बीच निकाली गई ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पर लगभग 49.60 करोड़ रुपये खर्च किए. जबकि न्याय यात्रा पार्ट-1 पर पार्टी ने 71.80 करोड़ की राशि खर्च की थी.
पुणे में फैलती रहस्यमय बीमारी : पुणे में 100 से ज़्यादा गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के मामले दर्ज होने और माना जा रहा है कि एक व्यक्ति की इस बीमारी से मौत होने के बाद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप करने में राज्य के अधिकारियों की मदद करने के लिए शहर में एक उच्च-स्तरीय टीम तैनात की है, जैसा कि स्नेहल मुथा ने रिपोर्ट किया है. सुदीप्तो गांगुली ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अविनाश भोंडवे के हवाले से कहा है कि "जीबीएस के मामलों में अचानक वृद्धि के पीछे का सटीक कारण ज्ञात नहीं है" और यह भी कहा कि जीबीएस एक ऑटो-इम्यून बीमारी है जो संक्रमण के बाद होती है. भोंडवे ने यह भी कहा कि दूषित पानी मामलों में वृद्धि के पीछे एक कारण हो सकता है.
न्यूज18 पर रुबिका लियाकत के कार्यक्रम पर कार्रवाई : न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ने न्यूज18 पर रुबिका लियाकत के एक कार्यक्रम को कोर्ट की कार्यवाही की रिपोर्टिंग पर नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया है. ‘बार एंड बेंच’ की रिपोर्ट के मुताबिक, रुबिका ने दिल्ली शराब नीति मामले में अरविंद केजरीवाल को दोषी ठहराया था और चुनावी बॉन्ड मामले में पीएम मोदी का पक्ष लिया था. अथॉरिटी ने न्यूज18 को कार्यक्रम के विवादित हिस्से को सात दिन में हटाने का आदेश दिया है.
'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' की नॉन - प्रोफिट मान्यता रद्द : टैक्स अधिकारियों ने 'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' (टीआरसी) की गैर-लाभकारी मान्यता रद्द कर दी है. अधिकारियों का कहना है कि "पत्रकारिता कोई सार्वजनिक उद्देश्य पूरा नहीं करती है, इसलिए भारत में इसे गैर-लाभकारी रूप में नहीं किया जा सकता." टीआरसी ने कहा कि इस फैसले से उनके काम करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ेगा और वो कानूनी विकल्पों की तलाश कर रहे हैं ताकि पत्रकारिता को एक सार्वजनिक हित के रूप में बचाया जा सके.
सैमसंग कर्मचारियों की यूनियन को मान्यता : तमिलनाडु सरकार ने सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन को मान्यता दे दी है. फ्रंटलाइन के मुताबिक फैसला सैमसंग के श्रीपेरुम्बदूर प्लांट में कर्मचारियों की लंबी हड़ताल के बाद आया है. पिछले साल सितंबर में शुरू हुई इस हड़ताल में कर्मचारियों ने बेहतर काम करने की स्थिति और ज्यादा वेतन के साथ यूनियन की मान्यता की मांग की थी. इस हड़ताल को सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) का समर्थन मिला था.
श्रीलंका ने अडानी समूह से पवन ऊर्जा परियोजनाओं की लागत कम करने के लिए शुरू की बातचीत : श्रीलंका सरकार ने अडानी समूह से बातचीत शुरू कर दी है ताकि वे उत्तरी प्रांत में दो पवन ऊर्जा परियोजनाओं से बिजली की लागत को कम कर सकें. श्रीलंका ने अडानी समूह की स्थानीय परियोजनाओं की समीक्षा शुरू की है. स्वास्थ्य और मीडिया मंत्री नलिंडा जयतिस्सा ने कहा- 'श्रीलंका सरकार का यह मानना है कि हम कीमतों को कम कर सकते हैं और अडानी के साथ बातचीत पहले ही शुरू हो चुकी है.' बता दें कि पिछले हफ्ते अडानी ने कहा था कि उनकी श्रीलंका सरकार के साथ पावर पर्चेज डील बरकरार है, जबकि एएफपी समाचार एजेंसी ने रिपोर्ट किया था कि इसे रद्द कर दिया गया है.
ग्रामीण इलाकों में शिक्षा में सुधार, सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन प्राइवेट से बेहतर
मंगलवार को जारी की गई नवीनतम वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एसर) में महामारी के कारण हुए सीखने के नुकसान से "पूरी तरह से सुधार" के संकेत मिले हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में तीसरी और पांचवीं कक्षा के छात्रों में बुनियादी पठन और अंकगणितीय कौशल में मज़बूत सुधार हुआ है. सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों की तुलना में ज़्यादा महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिला है. गैर-सरकारी संगठन प्रथम फाउंडेशन द्वारा तैयार की गई है. ‘द प्रिंट’ में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकारी स्कूलों में तीसरी कक्षा के छात्रों का पठन स्तर पिछले एक दशक में सबसे ज़्यादा रहा. 2024 में 23.4% तीसरी कक्षा के छात्र कक्षा 2 स्तर का पाठ पढ़ सकते थे, जबकि 2022 में यह आंकड़ा 16.3% था - यानी सात प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है. इसके अलावा, 2024 का आंकड़ा 2018 के महामारी-पूर्व के आंकड़े 20.9% से भी बेहतर है. निजी स्कूलों में, तीसरी कक्षा के पठन स्तर में सुधार तुलनात्मक रूप से कम रहा, जो केवल दो प्रतिशत अंकों की वृद्धि के साथ 2022 में 33.1% से 2024 में 35.5% हो गया. हालांकि, यह 2018 में 40.6% से कम ही रहा. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बुनियादी घटाव करने में सक्षम तीसरी कक्षा के छात्रों का कुल प्रतिशत 2024 में 33.7% तक बढ़ गया, जो 2022 में 25.9% था और 2018 में महामारी से पहले दर्ज किए गए 28.2% से अधिक है. पांचवीं कक्षा के छात्रों के लिए, 2024 में बुनियादी विभाजन करने में सक्षम बच्चों का अनुपात 2022 में 25.6% से बढ़कर 30.7% हो गया.
सरकारी स्कूलों में सात प्रतिशत अंकों की ज़्यादा वृद्धि देखने को मिली - 2022 में 20.2% और 2018 में 20.9% की तुलना में 2024 में 27.6%. इसके विपरीत, निजी स्कूलों में लगभग चार प्रतिशत अंकों की छोटी वृद्धि हुई, जो 2022 में 43.1% और 2018 में 43.5% से बढ़कर 2024 में 47.5% तक पहुंच गई. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2018 में 6-14 वर्ष की आयु के 65.5% बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित थे, यह आंकड़ा 2022 में बढ़कर 72.9% हो गया, लेकिन 2024 में यह 66.8% पर गिर गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के दौरान सरकारी स्कूलों में बढ़ी हुई नामांकन "पसंद से ज़्यादा ज़रूरत" से प्रेरित थी.
हालांकि, सीखने के स्तर में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी चुनौतियां बाकी हैं. 2024 में तीसरी कक्षा के 27.1% बच्चे कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं, जिसका मतलब है कि 72.9% बच्चे अभी भी धाराप्रवाह रूप से नहीं पढ़ सकते हैं. इसी तरह, 2024 में 33.7% तीसरी कक्षा के छात्र घटाव कर सकते हैं, जिसका मतलब है कि 66.3% बच्चे अभी भी घटाव नहीं कर सकते हैं. एसर 2024 रिपोर्ट है और यह भारत के 605 ग्रामीण जिलों के 17,997 गांवों में 649,491 बच्चों तक पहुंची ग्रामीण घरेलू सर्वेक्षण पर आधारित है.
राणा अय्यूब के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के दिए आदेश
लीगल न्यूज़ वेबसाइट ‘लाइव लॉ’ की खबर है कि दिल्ली की एक अदालत ने पत्रकार राणा अय्यूब के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. यह आदेश एक वकील अमिता सचदेवा द्वारा दायर शिकायत के बाद दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राणा अय्यूब ने 'एक्स' (पहले ट्विटर) पर अपनी पोस्ट के माध्यम से हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया और भारत-विरोधी भावना फैलाने का काम किया. अमिता ने नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें राणा अय्यूब की सोशल मीडिया पोस्ट के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की गई थी. साकेत कोर्ट के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हिमांशु रमन सिंह ने कहा कि प्रथम दृष्ट्या राणा अय्यूब के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना), धारा 295ए (किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से जानबूझकर और दुर्भावना से किया गया कार्य) और धारा 505 (लोगों को भड़काने के लिए बयान) के तहत दंडनीय संज्ञेय अपराध बनते हैं. अदालत ने कहा, 'परिस्थितियों और तथ्यों को देखते हुए, शिकायत में संज्ञेय अपराधों का उल्लेख किया गया है, जिसके लिए एफआईआर दर्ज किया जाना आवश्यक है.' अदालत ने साइबर पुलिस स्टेशन साउथ के एसएचओ को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं. अमिता सचदेवा वही हैं जिनकी आस्था हुसैन की पेंटिंग से आहत हुई थी, और जिनकी याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था. 'हरकारा' के 22 जनवरी के अंक में इस मसले पर हमने विस्तार से लिखा है.
दिल्ली चुनाव से पहले बलात्कार और हत्या का मुजरिम फिर पैरोल पर : बलात्कार और हत्या की सजा काट रहा डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को मंगलवार को एक बार फिर 30 दिन का पैरोल मिला है. इसके बाद सुबह साढ़े पांच बजे वह रोहतक के सनरिया जेल से निकल कर सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा मुख्यालय चला गया. 2020 से अब तक राम रहीम का यह 12वां पैरोल है. पिछले पांच वर्षों में वह पहले ही 275 दिनों के लिए जेल से बाहर रह चुका है. हर चुनाव से पहले पैरोल पर बाहर आने वाले राम रहीम को इस बार दिल्ली चुनाव से आठ दिन पहले रिहा किया गया है. इस पर टिप्पणी करते हुए अकाली दल बादल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने हरियाणा सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा कि जनता सब जानती है.
उत्तराखंड में यूसीसी लागू : उत्तराखंड में सोमवार 27 जनवरी से समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर दी गई. ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है. यूसीसी लागू होने के बाद शादी, तलाक, उत्तराधिकार और विरासत के नियम सभी धर्मों और समुदायों के लिए समान होंगे, विवाह और लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य होगा, विवाह और लिव-इन संबंधों का पंजीकरण ऑनलाइन करने के लिए एक डिजिटल पोर्टल उपलब्ध होगा, द्विविवाह और बहुविवाह पर प्रतिबंध रहेगा.
इंफोसिस के सह-संस्थापक सहित 18 लोगों पर एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज : इंफोसिस के सह-संस्थापक सेनापति क्रिस गोपालकृष्णन, आईआईएससी के पूर्व निदेशक बलराम और 16 अन्य के खिलाफ सोमवार को एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अदालत के निर्देश पर बेंगलुरू में मामला दर्ज किया गया. शिकायतकर्ता दुर्गप्पा आदिवासी बोवी समुदाय से हैं. भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में प्रौद्योगिकी केंद्र में संकाय सदस्य थे. उन्होंने दावा किया कि 2014 में ‘हनी ट्रैप मामले’ में उन्हें झूठा फंसाया गया और बाद में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. दुर्गप्पा ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें जातिवादी गालियाँ और धमकियाँ दी गईं.
महाकुंभ स्पेशल ट्रेन पर ‘भक्तों’ ने किया पथराव, खिड़की तोड़ी : झांसी से प्रयागराज जा रही महाकुंभ के लिए शुरू की गई विशेष ट्रेन पर सोमवार 27 जनवरी की देर रात मध्य प्रदेश के हरपालपुर स्टेशन पर पथराव किया गया. यह हमला तब किया गया, जब महाकुंभ मेला में जाने के लिए प्लेटफॉर्म पर प्रतीक्षा कर रहे भक्तों ने ट्रेन के डिब्बे के दरवाजे बंद पाए और उनके लाख प्रयास के बाद भी इन्हें नहीं खोला गया. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में हमलावरों को ट्रेन पर बड़े-बड़े पत्थर फेंककर ट्रेन में तोड़फोड़ मचाते देखा जा सकता है. पथराव में खिड़की टूट गईं. उत्तर मध्य रेलवे के पीआरओ मनोज कुमार सिंह ने भक्तों से अपील की कि वे एक-दूसरे के साथ सहयोग करें और उनकी भावनाओं का सम्मान करें.
पीएम मोदी ने किया राष्ट्रीय खेलों का उद्घाटन : उत्तराखंड में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों का उद्घाटन मंगलवार 28 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. इसमें 32 खेलों में करीब 10,000 एथलीट हिस्सा लेंगे. 14 फरवरी तक चलने वाले इन खेलों के मुकाबले पहाड़ी राज्य के सात शहरों में आयोजित किए जाएंगे. लगभग 450 स्वर्ण पदक और इतनी ही संख्या में रजत और कांस्य पदक दांव पर हैं.
'सनातन धर्म' टिप्पणी मामले में अदालत से उदयनिधि को राहत : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ सितंबर 2023 में ‘सनातन धर्म को खत्म करने’ वाली टिप्पणी के लिए आपराधिक कार्रवाई की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया. उदयनिधि स्टालिन ने 'सनातन धर्म' की तुलना 'मलेरिया' और 'डेंगू' जैसी बीमारियों से की थी. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने अधिवक्ता बी जगन्नाथ और विनीत जिंदल व गैर सरकारी संगठन सनातन सुरक्षा परिषद की याचिका दायर कर सनातन धर्म पर कोई टिप्पणी करने से रोक लगाने की मांग की थी. शीर्ष अदालत पहले से ही स्टालिन की दायर याचिका पर विचार कर रही है. इसमें उनकी टिप्पणियों के लिए विभिन्न स्थानों पर दर्ज एफआईआर को एक साथ करने का निर्देश देने की मांग की गई है. याचिकाकर्ताओं ने उदयनिधि के साथ डीएमके सांसद ए राजा के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की मांग की थी और सांप्रदायिक टिप्पणियों को रोकने के लिए दिशा-निर्देश की मांग की थी.
गावस्कर अगर कमेंट न करते, तो हम अच्छा खेलते | रोहित शर्मा की शिकायत: ऑस्ट्रेलिया में रोहित शर्मा बल्ले और कप्तानी दोनों मोर्चों पर संघर्ष करते रहे. टीम इंडिया के खराब प्रदर्शन की एक वजह यह भी थी. पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने इसकी तीखी आलोचना की थी. उन्होंने रोहित की बल्लेबाजी के तरीके और कप्तान के रूप में उनकी प्रभावशीलता दोनों पर सवाल उठाए थे. सिडनी टेस्ट से शर्मा की अनुपस्थिति पर भी गावस्कर ने सवाल उठाए थे. रेड-बॉल क्रिकेट में रोहित के भविष्य पर सवाल उठाते हुए उन्होंने सुझाव दिया था कि नेतृत्व परिवर्तन का समय आ गया है.
रोहित शर्मा को मगर यह आलोचना अच्छी नहीं लगी. उन्होंने बीसीसीआई में गावस्कर के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है और टीम के प्रदर्शन के लिए बाहरी कारकों को भी जिम्मेदार ठहराया है. उनका मानना है कि सीरीज में उनके खराब प्रदर्शन में आलोचना का भी योगदान है.
शर्जील इमाम का जुर्म और सज़ा
हिंसा की बात न करने के लिए पांच साल से जेल में
शर्जील इमाम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे के स्नातक, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पीएचडी के उम्मीदवार हैं, जो बिहार के जहानाबाद जिले से हैं. पिछले पांच साल से जेल में बंद हैं. ये तब हो रहा है, जब सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि बेल के मामलों को जल्दी निपटाना चाहिए, खासकर दो हफ्ते के अंदर. लेकिन शर्जील की जमानत याचिका ढाई साल से ज्यादा समय से पेंडिंग है. आर्टीकल 14 में बेतवा शर्मा ने शर्जील इमाम पर एक लम्बा लेख लिखा है.
शर्जील को 2020 में दिल्ली दंगों के "बड़े षड्यंत्र" के मामले में गिरफ्तार किया गया था. सरकार का कहना है कि उन्होंने सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के खिलाफ प्रदर्शनों को भड़काया था. पर उनके वकील का कहना है कि शर्जील ने तो सिर्फ 'चक्का जाम' करने की बात कही थी, हिंसा करने की नहीं.
शर्जील के वकीलों ने उनकी स्पीच के कुछ हिस्से कोर्ट में पढ़कर सुनाए. कहा था, “हम संविधान का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन किसी को मारेंगे नहीं, किसी की प्रॉपर्टी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. हम बस सड़कें जाम करेंगे, लेकिन डरेंगे नहीं क्योंकि हम कुछ गलत नहीं कर रहे हैं.”
सुप्रीम कोर्ट कहती है कि बेल एक नियम है, जेल एक अपवाद. लेकिन शर्जील को गिरफ्तार हुए पांच साल हो गए हैं. जब उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया था, तब वो सीएए के खिलाफ बोल रहे थे. इसके बाद, उनके ऊपर 7 और मामले दर्ज कर दिए गए. उन्हें कई केस में बेल मिल गई है, लेकिन "बड़े षड्यंत्र" वाले मामले में अब तक नहीं मिली है.
उनके वकील, अहमद इब्राहिम ने बताया कि बेल की सुनवाई में कई बार जजों की बेंच बदल गई, जज ट्रांसफर हो गए और मामले को लगातार टाला जाता रहा. 70 सुनवाई हुईं, 7 बेंच बदलीं, और 3 जजों ने खुद को मामले से अलग कर लिया.
बेतवा के मुताबिक शर्जील के ऊपर यूएपीए जैसे सख्त कानून लगाए गए हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. पुलिस ने कोई ऐसा गवाह पेश नहीं किया जो ये कहे कि शर्जील ने हिंसा की योजना बनाई थी. पुलिस ने बस उनकी स्पीच को इस्तेमाल किया, जिसमें उन्होंने भारत के उत्तर-पूर्व को अलग करने की बात कही थी. पर शर्जील के वकील का कहना है कि उनके भाषणों में हिंसा की बात नहीं थी.
शर्जील इमाम को 25 अगस्त 2020 को साजिश के मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा का दोष उन छात्रों और कार्यकर्ताओं पर मढ़ दिया गया था, जिन्होंने सीएए का विरोध किया था. इस विवादास्पद कानून ने भारतीय नागरिकता प्रदान करने का आधार धर्म को बना दिया था.
जिला अदालत द्वारा जमानत से इनकार किए जाने के बाद - गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), 1967 के तहत आतंकवादी कृत्य करने, आतंकवादी कृत्य के लिए धन जुटाने और आतंकवादी कृत्य करने की साजिश जैसे अनुभागों का आह्वान करने वाले मामलों में निचली अदालतों के लिए विशिष्ट, इमाम ने 28 अप्रैल 2022 को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
स्थगन पर स्थगन
इमाम द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में जमानत के लिए जाने के बाद से लगभग तीन वर्षों में, उनके वकील अहमद इब्राहिम ने कहा कि कई बार ऐसा हुआ कि न्यायाधीशों ने बैठक नहीं की और मामले को स्थगित कर दिया, न्यायिक पीठ बदल गई, न्यायाधीशों का तबादला कर दिया गया और वे बिना कोई आदेश दिए चले गए. अभियोजन पक्ष ने स्थगन पर स्थगन की मांग की.
मणिपुर में दर्ज मामले को छोड़कर, जहां उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था, इमाम को छह मामलों में जमानत (नियमित और वैधानिक) मिली और वे साजिश के मामले में जेल में बंद हैं.
इस मामले में अठारह लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है, जिसमें आतंकवाद के अपराधों के अलावा हत्या सहित आईपीसी की 25 धाराओं का भी आह्वान किया गया है. 18 में से 16 मुस्लिम हैं. छह को जमानत मिल गई है. दंगों में मारे गए 50 से अधिक लोगों में से तीन-चौथाई मुस्लिम थे. साजिश के मामले में अन्य आरोपियों, जिनमें उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा, खालिद सैफी और मीरन हैदर शामिल हैं, को भी बिना जमानत या मुकदमे के लगभग चार या पांच साल से जेल में रखा गया है.
शर्जील के भाषणों में सबसे कुख्यात वह था जो उन्होंने 16 जनवरी 2020 को अलीगढ़ में दिया था, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमि भारत को पूर्वोत्तर भारत से अलग करने का आह्वान किया था. यह पंक्ति दिल्ली दंगों पर बनी एक फिल्म के ट्रेलर की शुरुआत में दिखाई देती है, जिसे 25 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने ट्वीट किया था.
अलीगढ़ में दिए गए भाषण के संबंध में 27 नवंबर 2021 को इमाम को जमानत देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा, "... यह निर्विवाद रूप से नोट किया जा सकता है कि, न तो आवेदक ने किसी को हथियार उठाने के लिए बुलाया और न ही आवेदक द्वारा दिए गए भाषण के परिणामस्वरूप किसी हिंसा को उकसाया गया."
जून 2021 में तिहाड़ जेल से आर्टिकल 14 से बात करते हुए, इमाम ने कहा, “मुझे एक मुस्लिम कट्टरपंथी के रूप में चित्रित किया गया, जो एक अनपढ़ भीड़ का नेतृत्व कर रहा है. यदि कोई मेरे भाषणों को पढ़ता है, तो उनमें अहिंसक विरोध के तरीके, अल्पसंख्यक अधिकार और लोकतांत्रिक ढांचे में चुनाव जैसे विषय शामिल हैं.”
इस महीने जमानत के विरोध में लोक अभियोजक अमित प्रसाद की दो दिन की दलीलें सुनने के बाद, न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने 9 जनवरी को कहा कि वे साजिश को नहीं समझ पा रहे हैं और उन्होंने उनसे निष्कर्ष निकालने का आग्रह किया. न्यायमूर्ति चावला ने कहा, “मैं आपसे बहुत ईमानदार रहूंगा. मैंने नोट्स बनाना शुरू कर दिया है. हम आपको खो रहे हैं...हमें एक साफ तस्वीर दीजिए. आपके पास उनके खिलाफ क्या है?” न्यायमूर्ति कौर ने कहा, “आपके अनुसार साजिश क्या थी? साजिशकर्ताओं ने कैसे काम किया. बस इतना ही.”
टेक्नोलॉजी
डीपसीक निगल जाएगा अमेरिकी एआई एप्स को?
एक नई एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) टेक्नोलॉजी ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है. इसका नाम है डीपसीक. ये चीन की एक स्टार्टअप कंपनी ने बनाया है और इसने कम लागत में, चैटजीपीटी और गूगल के जेमिनाइ जैसे बड़े एआई मॉडल्स को टक्कर दे दी है. डीपसीक एक ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म है, मतलब सॉफ्टवेयर डेवलपर इसे अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे एआई में एक नए इनोवेशन की उम्मीद जगी है. अभी तक तो ऐसा लग रहा था कि एआई की दुनिया में सिर्फ अमेरिका की बड़ी-बड़ी कंपनियां ही राज करेंगी. लेकिन डीपसीक के आने से ये बात गलत साबित हो गई है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल वूलड्रिज ने कहा कि, “यह साफ इशारा करता है कि चीन इस क्षेत्र में पीछे नहीं है.” लेकिन कुछ लोग डीपसीक की कुछ बातों को लेकर चिंतित भी हैं. कुछ लोगों ने जब इस एआई से तियानमेन स्क्वायर नरसंहार जैसे संवेदनशील विषयों पर सवाल पूछे, तो इसने जवाब नहीं दिया. ताइवान के बारे में पूछने पर इसने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की राय को दोहराया, कि ताइवान चीन का हिस्सा है.
डीपसीक की प्राइवेसी पॉलिसी में लिखा है कि वो यूजर्स से इकट्ठा की गई जानकारी को चीन में मौजूद सुरक्षित सर्वर पर रखते हैं. ये कंपनी यूजर्स के डेटा का इस्तेमाल अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करने, सार्वजनिक हित में काम करने या अपने यूजर्स के हितों की रक्षा करने के लिए कर सकती है. चीन का राष्ट्रीय खुफिया कानून कहता है कि सभी कंपनियां, संगठन और नागरिक राष्ट्रीय खुफिया प्रयासों का समर्थन करें.
डीपसीक को बनाने वाली कंपनी के संस्थापक, लियांग वेनफेंग का कहना है कि उनका मकसद न तो पैसा गंवाना है और न ही बहुत ज़्यादा मुनाफा कमाना है. वो बस टेक्नोलॉजी में आगे रहना चाहते हैं और पूरे इकोसिस्टम को बढ़ावा देना चाहते हैं.
डीपसीक ने दावा किया है कि उसने ओपन एआई के चैटजीपीटी के बराबर का एआई मॉडल सिर्फ 5.6 मिलियन डॉलर में बना लिया है. जबकि माइक्रोसॉफ्ट, ओपन एआई में 80 बिलियन डॉलर खर्च करने की तैयारी में है.
डीपसीक के आने से बड़े-बड़े टेक अरबपतियों को भी नुकसान हुआ है. जब डीपसीक की खबर आई, तो शेयर बाजार गिर गया और एनवीडिया जैसी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ. एनवीडिया के सीईओ, जेन्सन हुआंग को 20 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का नुकसान हुआ.
लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये सब ज़्यादा प्रतिक्रिया का नतीजा है. उनका कहना है कि अच्छे एआई हार्डवेयर की मांग बनी रहेगी. डीपसीक के आने से लोग थोड़े डरे हुए भी हैं, खासकर पश्चिमी देश. उन्हें डर है कि चीन इस एआई का इस्तेमाल गलत जानकारी फैलाने और लोगों के डेटा को चुराने के लिए कर सकता है. कुछ लोगों का मानना है कि ये चीन का एक हथियार हो सकता है, जिसका इस्तेमाल वो अपनी ताकत दिखाने के लिए कर सकता है.
डीपसीक तेजी से यूके और यूएस में सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाला ऐप बन गया है. इसके प्रभाव ने तकनीकी दुनिया को चौंका दिया है, क्योंकि यह ऐसी एआई सेवाओं को टक्कर दे रहा है जो यूजर्स से अच्छी ख़ासी कीमत अपनी सेवाओं के बदले वसूल रहे थे, मसलन कि चैट जीपीटी या गूगल या जेमिनाई. चीनी ऐप्स ने अमरीकी टेक कंपनियों को हिलाया हुआ है और इस बारे में हमने 'हरकारा' के 28 नवंबर के अंक में भी विस्तार से छापा है.
उदाहरण के तौर पर 'डीपसीक' पर तियानमेन स्क्वायर नरसंहार के बारे में पूछने पर, एआई ने इसे "संवेदनशील" विषय के रूप में वर्गीकृत किया और फिर गोलमोल जवाब दिया, जो कि चीनी सरकार के पक्ष में था. इसी तरह ताइवान के बारे में भी 'डीपसीक' ने चीन के आधिकारिक रुख को ही पेश किया. जैसे टिकटॉक सोशल मीडिया में अमेरिका और यूरोप में एक चुनौती और सरदर्द की तरह आया, क्या डीपसीक यही काम एआई के अखाड़े में करने वाला है? एआई एक्सपर्ट्स का कहना है कि डीपसीक में गलत जानकारी देने का खतरा है. इसका कारण ये है कि एआई मॉडल डेटा पर निर्भर करता है और डेटा में मौजूद पूर्वाग्रहों का भी असर होता है.
ऑशविट्ज के अस्सी साल
यहूदी जो कहते हैं, होलोकास्ट इजरायल कर रहा है फिलीस्तीन और गाज़ा के ख़िलाफ
गौरव नौड़ियाल
पूरा यहूदी समुदाय इजरायल सरकार के फैसलों का समर्थन नहीं करता है. कई यहूदी संगठन, धार्मिक समूह और व्यक्तिगत विचारक, इजरायल की कुछ नीतियों और कार्यों के खिलाफ मुखर रहे हैं और लगातार फिलिस्तीन के समर्थन में नेतन्याहू सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे हैं. इनकी आलोचना अक्सर ऐतिहासिक संदर्भ, धार्मिक विचारधारा और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आधार पर होती है.
यह विरोध 20वीं सदी के शुरुआती वर्षों से देखा जा रहा है, जब इजरायल के निर्माण के लिए ज़ायोनी आंदोलन शुरू हुआ था. धार्मिक यहूदी समूहों, विशेषकर "नेटुरेई कार्टा" जैसे समुदायों ने ज़ायोनी विचारधारा का विरोध किया. उनका मानना है कि यहूदियों के लिए एक राज्य का निर्माण ईश्वर के हस्तक्षेप के बिना मान्य नहीं है. वे मानते हैं कि यहूदी लोग केवल धार्मिक अनुष्ठान और ईश्वर के आदेशों के पालन के माध्यम से ही अपनी पहचान और स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं और उनका उद्देश्य न तो किसी राजनीतिक राज्य का निर्माण करना है और न ही किसी युद्ध में शामिल होना है. जबकि इजरायल, फिलिस्तीन में मचे नरसंहार की ढाल के तौर पर 'प्रॉमिस्ड लैंड' जैसे कपोल-कल्पित शब्दों का इस्तेमाल करता आया है.
नेटुरेई कार्टा का कहना था- ‘हम मानते हैं कि ज़ायोनी विचारधारा यहूदी धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.’ सनद रहे कि नेटुरेई कार्टा एक कट्टरपंथी यहूदी संगठन है, जो इजरायल राज्य के खिलाफ है. उनका मानना है कि यहूदियों को अपनी ज़मीन पर लौटने का अधिकार तभी है जब मसीहा का आगमन होगा. उनका यह बयान व्यापक रूप से चर्चित है- 'इजरायल का अस्तित्व खुदा की इच्छा के खिलाफ है और यह दुनिया भर में यहूदी विरोधी भावना को बढ़ावा देता है.'
ऐसे ही ‘ज्यूइश वॉयस फॉर पीस’ नाम से भी एक संगठन अमेरिका में सक्रिय है और इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष में न्याय और समानता का समर्थन करता है. यह संगठन इजरायल द्वारा फिलीस्तीनियों के खिलाफ किए गए अत्याचारों की आलोचना करता है. वो कहते हैं- ‘हम मानते हैं कि किसी भी समूह को दूसरे के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है.’ ऐसे ही 'ब्रेकिंग द साइलेंस' भी एक संगठन है जो इजरायल सरकार की नीतियों का समर्थन नहीं करता है. यह संगठन पूर्व इजरायली सैनिकों द्वारा चलाया जाता है, जो इजरायली सेना के पश्चिमी तट में किए गए कार्यों का खुलासा करता है. उनका उद्देश्य इजरायल सरकार और सेना की नीतियों के पीछे छिपे सच को उजागर करना है. वो कहते हैं- "हमने जो देखा और किया, उसे दुनिया के सामने लाने का कर्तव्य हमारा है." प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक पीटर बीनार्ट भी फिलिस्तीन के समर्थन में लिखते आए हैं. उन्होंने अपने नए वीडियो में कहा है- "गाज़ा वह है जो तब होता है जब आप एक राज्य को भगवान के रूप में मानते हैं."
ऐसे ही रेबेका विल्कॉमर्स्की जो ‘ज्यूइश वॉयस फॉर पीस’ की पूर्व कार्यकारी निदेशक रही हैं, वो भी फिलिस्तीन के समर्थन में सक्रिय रही हैं. उनका ट्विटर अकाउंट बंद कर दिया गया है. एक अन्य यहूदी नाम पत्रकार और लेखक मैक्स ब्लूमेंथल का भी उभरता है, जिन्होंने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर कई लेख और पुस्तकें लिखी हैं. मैक्स ब्लूमेंथल फिलिस्तीन की आजादी के समर्थक हैं और अक्सर इजराइल की नीतियों की आलोचना करते आए हैं.
इजरायल का समर्थन अक्सर होलोकॉस्ट के इतिहास से जोड़ा जाता है. हालांकि, कुछ यहूदियों का मानना है कि होलोकॉस्ट को इजरायल, अत्याचारों को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करता आया है. 96 साल के प्रसिद्ध यहूदी विचारक और भाषाविद् नोम चॉम्स्की ने इस संदर्भ में कहा था - "होलोकॉस्ट एक भयानक त्रासदी थी, लेकिन इसे फिलिस्तीनियों के खिलाफ अत्याचारों को न्यायोचित ठहराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता." फिलिस्तीन समर्थक आंदोलनों में यहूदियों की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि यहूदी धर्म और इजरायली राष्ट्रवाद दो अलग चीजें हैं.
दुनियाभर में फिलिस्तीन के समर्थक यहूदी और इजरायल समर्थक यहूदी भिड़ते आए हैं. हालांकि, फिलिस्तीन के समर्थन में नारा बुलंद करने वाले यहूदियों का हौसला बरकरार है. इस वीडियो को देंखे एक पारम्परिक यहूदी फिलीस्तीन का झंडा लहरा रहा है, जबकि उससे सवाल किये जा रहे हैं.
…और यहां सुनिए ऑशविट्ज से बचे हुए यहूदी गाजा के पक्ष में क्या कह रहे हैं!
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.