29/04/2025 : पाकिस्तान के बाजू में खड़ा हुआ चीन | 7वीं की नई किताब में कुंभ मेला | गोदी मीडिया का दुष्प्रचार | पुतिन को जश्न चाहिए | राफेल का रास्ता साफ | 16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल बैन |
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा!
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
‘राज्य में सुरक्षा की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की नहीं, लेकिन मैं अपनी ड्यूटी में फेल’ : उमर
झेलम में पानी बढ़ा देख घबराए पाकिस्तानी
पहलगाम की सड़कों पर पसरा सन्नाटा, उजड़े व्यापार के बीच से ग्राउंड रिपोर्ट
‘वीज़ा’ के कारण पाकिस्तान के बनिस्बत भारतीय छात्रों को ज्यादा नुकसान
एलओसी पर लगातार गोला-बारूद का शोर
नेहा सिंह राठौर और मेडुसा दोनों पर राजद्रोह का मामला, पहलगाम हमले पर पूछ लिए थे सवाल
दलित ईसाइयों या मुस्लिमों को अनुसूचित जाति सूची में जोड़ने का विरोध
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ अधिनियम को चुनौती देने वाली नई याचिका पर विचार से किया इनकार
गोदी मीडिया का दुष्प्रचार जारी, अब मुस्लिम आईपीएस अधिकारी को बताया 'आतंकी'
वामपंथियों में विभाजन का एबीवीपी को मिला फायदा, जेएनयू में पसारे पांव
गौतम अडानी की तलाश जारी
ईडी के दफ्तर में आग और रिकॉर्ड जल जाने का पुराना 'दस्तावेजी' नाता
दिल्ली दंगे: 2020 की साजिश केस पर मजिस्ट्रेट ने पुलिस के दावों पर उठाए सवाल
₹63,000 करोड़ रुपये के 26 राफेल-एम लड़ाकू विमानों के लिए रास्ता साफ
72 घंटे का पूर्ण युद्धविराम, क्योंकि पुतिन को द्वितीय विश्व युद्ध विजय का जश्न मनाना है!
काबुल में हुई तालिबान से भारत की बातचीत, अफगानियों ने बुलाए निवेशक
35 गेंदों में सैकड़ा: वैभव सूर्यवंशी का ताबड़तोड़ प्रदर्शन
चीन ने पहलगाम आतंकी हमले पर पाकिस्तान की "निष्पक्ष जांच" की मांग दोहराई
पहलगाम हमले के बाद चीन, पाकिस्तान के साथ एक बार फिर से खुलकर खड़ा नजर आया है. ड्रैगन ने पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाकर ‘निष्पक्ष जांच’ की बात कही है. 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि चीन ने पहलगाम आतंकी हमले की "त्वरित और निष्पक्ष जांच" की मांग और भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान के संप्रभुता और सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए अपने सर्वकालिक सहयोगी पाकिस्तान को समर्थन व्यक्त किया है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रविवार को पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार से टेलीफोन पर बातचीत की है. रिपोर्ट के अनुसार डार ने वांग यी, जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य भी हैं, उन्हें ‘कश्मीर क्षेत्र में एक आतंकी हमले’ के बाद पाकिस्तान और भारत के बीच हालिया तनाव की जानकारी दी. अपनी ओर से वांग ने कहा कि चीन घटनाक्रम पर करीबी नजर बनाए हुए है और जोर दिया कि आतंकवाद से मुकाबला पूरी दुनिया की साझा जिम्मेदारी है. साथ ही उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान के दृढ़ प्रयासों के प्रति बीजिंग के निरंतर समर्थन को दोहराया. रिपोर्ट में वांग यी के हवाले से कहा गया है, "एक मजबूत मित्र और सर्वकालिक रणनीतिक सहयोगी भागीदार के रूप में, चीन पाकिस्तान की वैध सुरक्षा चिंताओं को पूरी तरह समझता है और उसकी संप्रभुता तथा सुरक्षा हितों की रक्षा के प्रयासों का समर्थन करता है." वांग ने आगे कहा, "चीन त्वरित और निष्पक्ष जांच का समर्थन करता है और मानता है कि संघर्ष भारत या पाकिस्तान के मूलभूत हितों के लिए लाभकारी नहीं है, न ही यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अच्छा है." चीन ने आशा जताई कि दोनों पक्ष संयम बरतेंगे, एक-दूसरे के प्रति कदम बढ़ाएंगे और मिलकर स्थिति को शांत करने का प्रयास करेंगे.
भारत-पाकिस्तान और चीन की भूमिका : क्या चीन भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव की स्थिति में भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है? मान अमन सिंह चीना बताते हैं कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान चीन ने कैसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दबाव बनाकर भारत पर रणनीतिक तनाव बढ़ाने की कोशिश की. 'इंडियन एक्सप्रेस; में अपने लेख में उन्होंने लिखा है - "यह गौर करने योग्य है कि लद्दाख में चीन के साथ आमना-सामना 2020 में शुरू हुआ, जो 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में भारतीय हवाई हमलों के केवल एक साल बाद हुआ था. इसलिए, वर्तमान स्थिति में भी यह संभव है कि चीनी सेना (PLA) चुप नहीं बैठेगी और पाकिस्तान पर बने दबाव को कम करने के लिए एलएसी पर भारतीय ठिकानों को डराने-धमकाने का प्रयास करेगी."
‘राज्य में सुरक्षा की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की नहीं, लेकिन मैं अपनी ड्यूटी में फेल’ : उमर
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पहलगाम हमले की कड़ी निंदा
जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने पहलगाम में हुए क्रूर आतंकी हमले पर गहरा सदमा और पीड़ा व्यक्त की है. सोमवार को विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर इस नृशंस कृत्य की कड़ी निंदा की और साम्प्रदायिक सौहार्द को भंग करने व विकास में बाधाएं डालने वाले इरादों को परास्त करने के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त किया. प्रस्ताव में कहा गया कि यह हमला कश्मीरियत के मूल्यों, संविधान में निहित सिद्धांतों और जम्मू-कश्मीर तथा भारत की लंबे समय से चली आ रही एकता, शांति और सौहार्द की भावना पर सीधा प्रहार है.
इस बीच भावुक कर देने वाले भाषण में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जिनके पास पर्यटन विभाग का प्रभार भी है, ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा, हालांकि, लोगों की चुनी हुई सरकार की जिम्मेदारी नहीं है (केंद्र के अधीन है), लेकिन मुख्यमंत्री, पर्यटन मंत्री की हैसियत से मैंने पर्यटकों को बुलाया था. मेजबान होने के नाते उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना मेरी बुनियादी जिम्मेदारी थी. लेकिन उन्हें सुरक्षित नहीं भेज पाया. उन्होंने कहा, "पीड़ितों के परिवारों से माफी मांगते समय मैं खुद को असहाय महसूस कर रहा हूं." उन्होंने पहलगाम हमले को पिछले दो दशकों में सबसे भयानक घटनाओं में से एक बताया.
अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि यह राजनीतिक अवसरवाद का समय नहीं है. कुछ सदस्यों द्वारा राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग को खारिज करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि वह इस त्रासदी का इस्तेमाल राजनीतिक मांगों के लिए नहीं करेंगे. परोक्ष रूप से केंद्र को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा, "जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की नहीं है. लेकिन मैं इस मौके का इस्तेमाल राज्य का दर्जा मांगने के लिए नहीं करूंगा. मैं अभी राज्य का दर्जा कैसे मांग सकता हूँ? मैं सस्ती राजनीति में विश्वास नहीं करता. क्या मुझे उन 26 जानों की कोई कदर नहीं है, जो गईं, और मैं अब केंद्र के पास राज्य का दर्जा मांगने चला जाऊँ?" नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने यह भी कहा कि इस तरह की राजनीति करना शहीदों के बलिदान का अपमान होगा.
कार्टून
(साभार : मंजुल)
16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल बैन, बीबीसी, एपी-रॉयटर्स पर भी निगाह
केंद्र सरकार ने 16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें प्रमुख हैं- डॉन न्यूज़, समा टीवी, एआरवाई न्यूज़ और जियो न्यूज़. इन चैनलों पर भारत, उसकी सेना और सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ भड़काऊ, सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील, झूठी और भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप है. गृह मंत्रालय की सिफारिश पर यह कार्रवाई पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद की गई है, जिसमें 26 लोगों की जान गई थी.
इतना ही नहीं, सरकार ने इस मामले में बीबीसी से भी संपर्क किया है. एक सूत्र ने बताया कि जब ‘बीबीसी इंडिया’ ने अपनी एक रिपोर्ट में आतंकवादियों को "मिलिटेंट्स" कहा, तो केंद्र सरकार ने विदेश मंत्रालय के माध्यम से चैनल प्रमुख जैकी मार्टिन से चर्चा कर अपनी कड़ी आपत्ति जताई और अपनी चिंताओं से अवगत करा दिया. अब विदेश मंत्रालय का एक्सपी डिवीजन बीबीसी की आगे की रिपोर्टिंग की निगरानी करेगा."
इसी तरह की चिंताएं अमेरिकी समाचार एजेंसी एपी (एसोसिएटेड प्रेस) और ब्रिटेन स्थित समाचार एजेंसी रॉयटर्स को भी व्यक्त की गई हैं. विदेश मंत्रालय आगे भी रिपोर्टिंग की निगरानी करेगा और अगर किसी रिपोर्ट में स्थिति की गंभीरता को कम करके दिखाया गया या तथ्यात्मक रूप से गलत जानकारी दी गई तो संबंधित पक्षों को सूचित करेगा.
झेलम में पानी बढ़ा देख घबराए पाकिस्तानी : 'द डॉन' की खबर है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (या 'आज़ाद कश्मीर') के मुज़फ़्फ़राबाद के पास झेलम नदी में पानी के बहाव में अचानक वृद्धि के कारण स्थानीय निवासियों में यह आशंका फैल गई कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय पक्ष द्वारा जानबूझकर बाढ़ लाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, पाकिस्तानी अधिकारियों ने जल्दबाज़ी में सफाई दी कि यह वृद्धि संभवतः बर्फ पिघलने के कारण हुई है.
वैकल्पिक मीडिया
पहलगाम की सड़कों पर पसरा सन्नाटा, उजड़े व्यापार के बीच से ग्राउंड रिपोर्ट
पत्रकार अजीत अंजुम ने आतंकी हमले के बाद सुर्खियों में छाए पहलगाम की सड़कों का जायजा लिया है कि वहां आखिर इस हमले के बाद कैसा माहौल है. पहलगाम में पिछले तीन दिनों में स्थानीय व्यापारियों ने अलग-अलग ढंग से घटना के विरोध में प्रदर्शन किया है. इन दिनों गर्मियों में जो होटल सैलानियों से पैक होते थे, वहां सन्नाटा पसरा हुआ है. पहलगाम की सड़कें पर्यटक विहीन हो गई हैं. स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि धंधे में नफा-नुकसान चलता रहता है, लेकिन जो जानें गई हैं वो नहीं जानी चाहिए थी. व्यापारियों का कहना है कि दुनिया में सबसे ज्यादा सुरक्षा हमारी जमीन पर है. हर गली और कूचे में सेना के बंकर हैं. हादसे वाली जगह के पास ही बेस कैंप है, लेकिन फिर भी ये दुखद हादसा हुआ है. व्यापारियों ने कहा कि उन्हें पहलगाम से गई डेड बॉडियां ताउम्र पीछा करेंगी. व्यापारियों ने कहा कि बार-बार कश्मीरियों से राष्ट्रभक्ति का सुबूत मांगा जाता है, लेकिन ये किसी गुजाराती और असमी से नहीं पूछा जाता है. हम थक गए हैं...इससे अब दुख होता है. देखिए ये रिपोर्ट...
Pahalgam के इन युवाओं की आवाज आपको झकझोर देगी #pahalgamattack
‘वीज़ा’ के कारण पाकिस्तान के बनिस्बत भारतीय छात्रों को ज्यादा नुकसान
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान द्वारा वीज़ा रद्द करने की कार्रवाई की जा रही है. इससे कई छात्र भी प्रभावित होंगे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये कदम दोनों पक्षों पर समान रूप से प्रभाव डालेंगे. संसद में पिछले साल रखे गए केंद्र सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019-20 से 2023-24 के बीच कुल 1,968 भारतीय छात्रों ने पाकिस्तानी संस्थानों में दाखिला लिया, जबकि 2017-18 और 2021-22 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में औसतन 26 पाकिस्तानी छात्र पढ़ रहे थे. “द टेलीग्राफ” में बसंत कुमार मोहंती की रिपोर्ट के अनुसार सरकार या शैक्षणिक जगत में कोई इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं दे सका कि यह अंतर क्यों है? भारतीय छात्र क्या पढ़ने के लिए पाकिस्तान की तरफ आकर्षित हुए?
एलओसी पर लगातार गोला-बारूद का शोर : जम्मू-कश्मीर के पुंछ और कुपवाड़ा जिलों में पाकिस्तानी सैनिकों ने बिना किसी उकसावे के गोलीबारी की, जो नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्षविराम उल्लंघन जारी रखने का संकेत है, सेना के अधिकारियों ने सोमवार को कहा. यह लगातार चौथी रात थी जब पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर छोटे हथियारों से गोलीबारी की. यह घटनाएं पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच बढ़े तनाव के बीच हुईं. एक रक्षा प्रवक्ता ने कहा, "27-28 अप्रैल की रात के दौरान, पाकिस्तान सेना की चौकियों ने कुपवाड़ा और पुंछ जिलों के सामने वाले क्षेत्रों में नियंत्रण रेखा पार से बिना उकसावे के छोटे हथियारों से गोलीबारी शुरू की." भारतीय सैनिकों ने तुरंत और प्रभावी ढंग से जवाब दिया, उन्होंने जोड़ा. किसी के हताहत होने की कोई सूचना नहीं है. पाकिस्तानी सेना ने गुरुवार रात भी नियंत्रण रेखा के विभिन्न भारतीय ठिकानों पर गोलीबारी की थी, इसके अलावा 25-26 अप्रैल और 26-27 अप्रैल की रातों को भी ऐसी घटनाएं हुईं, जिनका हर बार भारतीय सेना ने उचित उत्तर दिया.
नेहा सिंह राठौर और मेडुसा दोनों पर राजद्रोह का मामला, पहलगाम हमले पर पूछ लिए थे सवाल
(साभार)
'यूपी में का बा' से देशभर में प्रसिद्धि पाने वाली गायिका के खिलाफ एक शिकायत मिलने के बाद कि उन्होंने ऐसी सामग्री पोस्ट की जो 'एक विशेष समुदाय को निशाना बनाती है और राष्ट्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचा सकती है', लखनऊ पुलिस ने बीएनएस के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. दिलचस्प यह है कि राठौर के खिलाफ पुलिस ने धारा 152 लगाई है. शिकायत लखनऊ के हजरतगंज थाने में बीएनएस की धारा 152 समेत कई अन्य धाराओं के तहत दर्ज की गई है. बीएनएस की धारा स्पष्ट रूप से तो देशद्रोह का उल्लेख नहीं करती है, जैसा औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में निर्दिष्ट किया गया था, मगर नई आपराधिक संहिता धारा 152 के तहत देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने के समान आरोपों से निपटती है.
नेहा ने पहलगाम की घटना के बाद सुरक्षा और खुफिया विफलता के लिए केन्द्र सरकार को आड़े हाथ लिया था. वो लगातार अपने एक्स पर सरकार की अब भी आलोचना कर रही हैं और उन्होंने खुद के लिए यह कहते हुए वकील मांगा है कि अब उनके पास पैसे नहीं बचे हैं. उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर का जवाब यह पूछकर दिया है- "अगर आप नहीं चाहते कि मैं सवाल पूछूं, तो जाकर विपक्ष में बैठिए."
शिकायतकर्ता अभय प्रताप सिंह ने कहा, “गायिका और कवयित्री नेहा सिंह राठौर ने अपने एक्स हैंडल @nehafolksinger का उपयोग करते हुए कुछ आपत्तिजनक पोस्ट किए, जो राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं और धर्म के आधार पर एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ भड़काने का बार-बार प्रयास किया.” वहीं राठौर का कहना है कि सरकार उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ‘वास्तविक मुद्दों’ से ध्यान भटकाना चाहती है.
सोमवार (28 अप्रैल को ‘एक्स’ पर पोस्ट वीडियो में नेहा ने कहा, “पहलगाम हमले के जवाब में सरकार ने अब तक क्या किया है? मेरे खिलाफ एफआईआर? अगर हिम्मत है तो जाओ, आतंकवादियों के सिर लेकर आओ. अपनी विफलताओं के लिए मुझे दोष देने की कोई जरूरत नहीं है... यह लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सवाल पूछे जाएंगे. अगर आप नहीं चाहते कि मैं सवाल पूछूं, तो विपक्ष में जाकर बैठ जाओ.”
मेडूसा पर भी शिकंजा : लखनऊ विश्वविद्यालय की हिंदी प्रोफेसर डॉ. माद्री काकोती जो @dr.medusssa हैंडल के जरिए अक्सर सरकार की आलोचना पर वीडियो प्रकाशित करती हैं, उन्हें भी सूचित किया गया कि लखनऊ पुलिस ने उनके खिलाफ राजद्रोह के मामले में एफआईआर दर्ज की है. उनके खिलाफ ये मामला दो वीडियो (यहां और यहां देखें) और एक ट्वीट को लेकर किया गया है. बहरहाल नए भारत में तो अब आलोचना और सवाल उछालना ही पुलिस की नज़र में राजद्रोह का कृत्य है, इन मामलों को देखकर तो प्रथमदृष्ट्या ऐसा ही लोगों को लग रहा है.
दलित ईसाइयों या मुस्लिमों को अनुसूचित जाति सूची में जोड़ने का विरोध
'द हिंदू' की खबर है कि राजस्थान में स्थित अनुसूचित जाति सरकारी कर्मचारियों के एक संघ ने अब न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली आयोग से यह कहते हुए पत्र लिखा है कि दलित ईसाइयों और मुस्लिमों को अनुसूचित जाति (एससी) सूची में जोड़ने से उनके अधिकारों और लाभों में कमी आ सकती है. उनका कहना है कि अगर यह बदलाव “राजनीतिक कारणों” से किए जाते हैं, तो इससे एससी समुदायों के मौजूदा अधिकारों और लाभों में कमी हो सकती है. जयपुर स्थित डॉ. अंबेडकर अनुसूचित जाति अधिकारी कर्मचारी मंच (एजेएके) ने आयोग के अध्यक्ष, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन को पत्र लिखकर कहा है कि वे एससी सूची में नए समूहों को जोड़ने के खिलाफ हैं, जैसे कि दलित ईसाई और मुस्लिम. इस संगठन ने आयोग से इस मामले में बैठक का अनुरोध किया और कहा कि वे आशा करते हैं कि आयोग उनके पक्ष में खड़ा रहेगा और देश में मौजूदा अनुसूचित जाति समुदायों के हितों, अधिकारों और लाभों की रक्षा करेगा. एजेएके ने अपने पत्र में कहा, “समय-समय पर राज्य सरकारें और केंद्रीय सरकार संविधान का उल्लंघन करती आ रही हैं और राजनीतिक लाभ के लिए अनुसूचित जातियों की सूची में बदलाव करती रही हैं.” एजेएके के अध्यक्ष श्रीराम चोरड़िया ने हिंदू से कहा कि इस तरह के बदलाव से देश के कुछ हिस्सों में “मणिपुर जैसी” स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं और उनका मानना है कि सरकार का “छिपा हुआ उद्देश्य” अनुसूचित जाति लोगों को विभाजित करना है.
पत्र में एजेएके ने उत्तराखंड में 2013 और 2014 में अनुसूचित जाति सूची में समुदायों को जोड़ने का उदाहरण देते हुए कहा कि यह अनुच्छेद 341 का उल्लंघन है, जो केवल संसद को अनुसूचित जातियों की सूची में बदलाव करने का अधिकार देता है. दलित ईसाई और मुस्लिम दशकों से यह तर्क दे रहे हैं कि धर्म बदलने से जाति भेदभाव समाप्त नहीं हुआ है और वे एससी स्थिति की मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर पिछले 20 वर्षों से सुनवाई कर रहा है. वर्तमान में केवल वे समुदाय जो हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म का पालन करते हैं, उन्हें एससी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है. आयोग को रिपोर्ट पेश करने के लिए शुरू में दो वर्ष का समय दिया गया था, लेकिन अक्टूबर 2024 में इसकी अवधि बढ़ा दी गई. अब आयोग से इस मुद्दे पर रिपोर्ट इस वर्ष अक्टूबर तक आने की उम्मीद है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है, आयोग और सुप्रीम कोर्ट दोनों को. सरकार का तर्क है कि दलित ईसाई और मुस्लिमों को एससी सूची से बाहर रखना सही था और यह इस्लाम और ईसाई धर्म के “विदेशी उत्पत्ति” का हवाला देती है.
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ अधिनियम को चुनौती देने वाली नई याचिका पर विचार से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि वह इस मुद्दे पर ‘सैकड़ों’ याचिकाओं पर विचार नहीं कर सकता.
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता सैयद अलो अकबर के वकील से कहा कि वे लंबित पांच मामलों में हस्तक्षेप आवेदन दायर करें, जिन पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए 5 मई को सुनवाई होगी.
सीजेआई ने कहा, “आप इसे वापस लें. हमने 17 अप्रैल को एक आदेश पारित किया था. इसमें कहा गया था कि केवल पांच याचिकाओं पर ही सुनवाई होगी.” उन्होंने कहा, “यदि याचिकाकर्ता चाहे तो उसे सलाह दी जाती है कि वह लंबित याचिकाओं में आवेदन दायर कर सकता है.”
17 अप्रैल को, पीठ ने अपने समक्ष कुल याचिकाओं में से केवल पांच पर सुनवाई करने का फैसला किया और मामले का शीर्षक रखा : “वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के संबंध में”. एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), कर्नाटक राज्य एयूक्यूएएफ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अनवर बाशा (वकील तारिक अहमद द्वारा प्रतिनिधित्व), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद सहित लगभग 72 याचिकाएं कानून के खिलाफ दायर की गईं हैं. तीन वकीलों को नोडल वकील नियुक्त करते हुए पीठ ने वकीलों से आपस में तय करने को कहा कि कौन बहस करने जा रहा है. याचिकाकर्ताओं को सरकार के जवाब की सेवा के पांच दिनों के भीतर केंद्र के जवाब पर अपने प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई थी. पीठ ने कहा, “हम स्पष्ट करते हैं कि अगली सुनवाई (5 मई) प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम आदेश के लिए होगी.”
7वीं की नई किताब में कुंभ मेले पर भी पाठ
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 7 के लिए अपनी सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में बड़ा बदलाव किया है. पहले, कक्षा 7 के छात्रों को इतिहास, भूगोल और सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन के लिए अलग-अलग किताबें पढ़नी पड़ती थीं. अब परिषद ने इन तीनों विषयों को "सामाजिक विज्ञान" शीर्षक के अंतर्गत समाहित कर दिया है और इसके लिए दो भागों में "एक्सप्लोरिंग सोसाइटी - इंडिया एंड बियॉन्ड” नामक नई पाठ्यपुस्तक निर्धारित की है.
इतिहास की पुरानी किताब में 7वीं सदी ईस्वी से शुरू होने वाली घटनाओं, दिल्ली सल्तनत और मुग़ल साम्राज्य के उदय को शामिल किया गया था, लेकिन 'एक्सप्लोरिंग सोसाइटी' के भाग 1 की शुरुआत 1900 ईसा पूर्व से होती है और यह गुप्त साम्राज्य के पतन तक जाती है. “द हिंदू” में मैत्री पोरेचा की रिपोर्ट के अनुसार एक अध्याय में कुंभ मेले पर भी एक अनुभाग शामिल है. जहां पुरानी पाठ्यपुस्तक में फारसी इतिहासकार मिनहाज-ए-सिराज, मुगल सम्राट बाबर और 14वीं शताब्दी के उस कवि का उल्लेख था जिसने 'हिंदुस्तान' और 'हिंद' शब्दों का प्रयोग किया था, वहीं नई पाठ्यपुस्तक में 'भारत' और 'इंडिया' शब्दों की उत्पत्ति पर चर्चा की गई है. भाग 2, जो कक्षा 7 के पाठ्यक्रम के दूसरे हिस्से को कवर करेगा, अभी तक जारी नहीं हुआ है.
फेक न्यूज
गोदी मीडिया का दुष्प्रचार जारी, अब मुस्लिम आईपीएस अधिकारी को बताया 'आतंकी'
मीडिया की बात करें तो दुष्प्रचार बदस्तूर जारी है. एक शर्मनाक घटना में दक्षिणपंथी प्रचारक सुशांत सिन्हा ने पंजाब के एडीजीपी और वीरता पुरस्कार प्राप्त आईपीएस अधिकारी फैयाज फारूकी को हाल ही में अपने यूट्यूब वीडियो में झूठे ढंग से आतंकवादी ग़ाज़ी बाबा के रूप में पेश किया है. उन्होंने फारूकी की तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए उसे ग़ाज़ी बाबा, जो 2001 के भारतीय संसद हमले का मास्टरमाइंड था और जिसे 2003 में बीएसएफ ने मार गिराया था, उसके रूप में दिखाया. चौंकाने वाली बात यह है कि न तो आईपीएस एसोसिएशन और न ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अधीन काम कर रही संबंधित संस्थाएं इस घोर मानहानि के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया दे रही हैं.
वामपंथियों में विभाजन का एबीवीपी को मिला फायदा, जेएनयू में पसारे पांव : वामपंथी छात्र समूहों के बीच गठबंधन न हो पाने का सबसे ज्यादा फायदा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को मिला, उसने वामपंथियों के पारंपरिक गढ़ दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अपने पांव पसार लिये हैं. इसने एक दशक में पहली बार केंद्रीय पैनल की सीट जीती है, वह भी 46 काउंसलर पदों में से सबसे ज्यादा 24 पर कब्जा कर लिया है. वहीं कांटे के मुकाबले में ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट फेडरेशन (डीएसएफ) गठबंधन ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर जीत हासिल की तो वहीं संयुक्त सचिव का पद भी एबीवीपी के खाते में गया. अध्यक्ष (नीतीश कुमार) और महासचिव (मुंतेहा फातिमा) पर आइसा के उम्मीदवार जीते हैं तो वहीं उपाध्यक्ष (मनीषा) का पद डीएसएफ के खाते में गया है. संयुक्त सचिव (वैभव मीणा) के पद पर एबीवीपी की जीत हुई है. सारे पदों पर शुरू से ही एबीवीपी ने बढ़त बना रखी थी. अंतिम राउंड में मुश्किल से आइसा-डीएसएफ गठबंधन तीन पदों पर आगे निकल पाया.
गौतम अडानी की तलाश जारी :अमेरिका में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC), जिसने पिछले वर्ष गौतम अडानी और सागर अडानी पर आरोप तय किए थे, अब भी इन प्रभावशाली भारतीय व्यापारियों को अदालत का समन देने की कोशिश कर रहा है. यह स्थिति तब है, जब मोदी सरकार ने गुजरात सरकार को समन सौंपने में मदद करने का निर्देश दिया था, बावजूद इसके अब तक समन सौंपा नहीं जा सका है.
चुनौतीपूर्ण हैं डेटा की तुलना : हिमांशु, पीटर लैंजौ और फिलिप शिरमर ने विश्लेषण कर बताया है कि भारत के घरेलू उपभोग और व्यय सर्वेक्षण (HCES) के डेटा से गरीबी के बारे में पता चलता है. साथ ही यह भी कि किस तरह की प्रमुख चुनौतियां नवीनतम परिणामों की ऐतिहासिक डेटा से तुलना करने में आती हैं. वे बताते हैं कि सर्वेक्षण के डिज़ाइन, कार्यप्रणाली और व्यापक आर्थिक परिवर्तनों में बदलाव प्रत्यक्ष तुलना को मुश्किल और संभावित रूप से भ्रामक बनाते हैं. ये परिवर्तन गरीबी में कमी के रुझानों को विकृत कर सकते हैं या असमानताओं को बढ़ा सकते हैं.
शराब पीने से रोकने पर हेड कांस्टेबल को पीटा, बचाने आए पुलिसकर्मियों से कहा - ‘तुम हिंदू भाई हो, हट जाओ’
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पर कुछ युवकों ने जीआरपी (सरकारी रेलवे पुलिस) के हेड कांस्टेबल दौलत खान की पिटाई कर दी. उसकी वर्दी फाड़ दी. गालियां दीं और जब जीआरपी थाने के दूसरे जवान उसे बचाने आए तो उनसे कहा, “तुम हिंदू भाई हो, हट जाओ.” यह घटना शनिवार की देर रात 2 बजे की है. आरोपी युवक स्टेशन परिसर में एक गाड़ी में शराब पी रहे थे. हेड कांस्टेबल दौलत खान ने जब उन्हें दारू पीने से रोका तो उन्होंने मारपीट शुरू कर दी. सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल हो गया. अनेक लोगों ने इसे “एक्स” पर शेयर किया है. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है.
राजस्थान सरकार के कला केंद्र ने आरएसएस की आपत्ति के बाद समलैंगिक थीम पर आधारित नृत्य कार्यक्रम रद्द किया, बताया भारतीय मूल्यों के खिलाफ : जयपुर के सरकारी जवाहर कला केंद्र (जेकेके) ने समलैंगिक संबंधों पर आधारित एक नृत्य प्रस्तुति को दी गई अनुमति को संगठनों और व्यक्तियों द्वारा उठाई गई आपत्तियों का हवाला देते हुए रद्द कर दिया, क्योंकि ऐसा करना ‘भारतीय मूल्यों’ के अनुरूप नहीं होगा. शो के निर्देशक जैनिल मेहता ने दीप मुखर्जी को बताया कि जेकेके ने उन्हें आरएसएस की सांस्कृतिक शाखा संस्कार भारती का एक पत्र भी दिखाया, जिसमें तर्क दिया गया था, “स्वतंत्रता के नाम पर अत्यधिक व्यक्तिवादी और अनियंत्रित विचारों को बढ़ावा दिया जा रहा है. प्रेम के नाम पर, पूरा प्रोडक्शन युवाओं को अनुशासनहीनता और सामाजिक मूल्यों से विमुख होने का संदेश देता है…”
मेहता ने कहा कि जेकेके में अपने शो के आयोजन के लिए उन्होंने अपना पक्ष रखा, लेकिन केंद्र की एक समिति ने बताया कि ऐसा करना भारतीय संस्कृति के खिलाफ होगा. शो शनिवार को अपनी निर्धारित तिथि पर हुआ, लेकिन एक अलग स्थान पर.
ईडी के दफ्तर में आग और रिकॉर्ड जल जाने का पुराना 'दस्तावेजी' नाता
मुंबई के बल्लार्ड एस्टेट स्थित क़ैसर-ए-हिंद भवन में कल सुबह प्रवर्तन निदेशालय के चौथी मंजिल स्थित कार्यालय में आग लग गई, जो टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार लगभग दस घंटे तक चलती रही. अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि आग से "कार्यालय के बुनियादी ढांचे पर गंभीर असर" पड़ा है और इससे जुड़े उच्च-प्रोफ़ाइल जांचों, जिनमें नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के मामले शामिल हैं, उससे संबंधित दस्तावेजों के नुकसान की आशंका पैदा हो गई थी. हालांकि, एजेंसी ने बयान जारी कर कहा है कि उसके सभी साक्ष्य दस्तावेज डिजिटाइज़ किए गए हैं और आरोपपत्रों (चार्जशीट्स) की मूल प्रतियां संबंधित अदालतों के पास सुरक्षित हैं. "इसलिए, जांच या मुकदमे की कार्यवाही में किसी प्रकार की बाधा की आशंका नहीं है,". बहरहाल, वसुंधरा श्रीनेत ने भारतीय सरकारी भवनों और कार्यालयों में लगने वाली आग पर एक उपयोगी थ्रेड साझा किया है.
कृष्ण जन्मभूमि विवाद ; केंद्र और एएसआई को पक्षकार बनाना उचित : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले में कोई त्रुटि नहीं पाई, जिसमें केंद्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को उन मुकदमों में पक्षकार बनाया गया था, जो हिंदू उपासकों द्वारा मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग को लेकर दायर किए गए हैं. ये उपासक उस स्थल को भगवान कृष्ण का जन्मस्थान बताते हैं.
सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली दो न्यायाधीशों की बेंच ने कहा, “एक बात स्पष्ट है. हिंदू वादियों को मूल वाद में संशोधन की अनुमति दी जानी चाहिए.” इस बेंच में जस्टिस संजय कुमार भी शामिल थे. बेंच 5 मार्च 2025 के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद कमेटी की अपील पर सुनवाई कर रही थी. हाईकोर्ट के आदेश में हिंदू पक्ष को अपनी याचिका में संशोधन करने और केंद्र तथा एएसआई को पक्षकार बनाने की अनुमति दी गई थी. हिंदू पक्ष ने एएसआई को पक्षकार बनाने की मांग करते हुए कहा था कि मस्जिद एएसआई के अधीन है और इसलिए पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप संरक्षण अधिनियम 1991 के दायरे से बाहर है, जो 15 अगस्त 1947 को किसी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को संरक्षित रखने का प्रावधान करता है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने अजमेर शरीफ दरगाह के सीएजी ऑडिट पर रोक लगाई : दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को अजमेर शरीफ दरगाह के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा किए जा रहे ऑडिट पर रोक लगा दी. जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा, “मैं ऑडिट पर रोक लगाने के पक्ष में हूं... उनका (दरगाह वकील) दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है. उनका कहना है कि उन्हें अपना पक्ष रखने का अधिकार है, लेकिन यह अवसर इसलिए नहीं आया, क्योंकि सीएजी ऑडिट की शर्तें पूरी नहीं की हैं... बेहतर होगा कि आप अपना हाथ रोक लें.” न्यायालय ने मामले को आगे के विचार के लिए 7 मई को सूचीबद्ध किया है, जब सीएजी के वकील ने निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा.
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की याचिका की नामंजूर, डीएमके नेता सेंथिल बालाजी की जमानत नहीं की रद्द : द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) नेता सेंथिल बालाजी ने रविवार को तमिलनाडु में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार से मंत्री पद छोड़ दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें दी गई जमानत को रद्द नहीं करने का फैसला किया. शीर्ष अदालत ने 23 अप्रैल को बालाजी से पूछा था कि वह अपना कैबिनेट पद बरकरार रखना चाहते हैं या चल रहे मामले में जमानत पर रहना चाहते हैं. डीएमके नेता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने फैसला लेने के लिए सोमवार तक का समय मांगा था. सोमवार को जस्टिस एएस ओका और ए जी मसीह की पीठ को सूचित किया गया कि बालाजी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. इस पर ध्यान देते हुए पीठ ने कहा कि इसलिए उनकी जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी के लिए कथित नकदी घोटाले में 26 सितंबर, 2024 को बालाजी को यह देखते हुए जमानत दे दी थी कि मामले में मुकदमा के जल्द शुरू होने की संभावना नहीं है और वह पहले ही एक साल से अधिक समय हिरासत में बिता चुके हैं. जमानत मिलने के महज तीन दिन बाद, 29 सितंबर, 2024 को, उन्हें डीएमके सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में बहाल कर दिया गया था.
दबंगों ने दलित युवक के शव का अंतिम संस्कार रोका : मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में सोमवार को दबंगों ने दलित युवक के शव का अंतिम संस्कार करने से रोक दिया. जिससे पीड़ित लोग नाराज हो गए और उन्होंने शव को सड़क पर रखकर चक्काजाम के बाद पथराव किया. यह घटना लीलदा गांव की है. आरोप है कि रावत समाज के लोगों ने अपने खेत में अंतिम संस्कार करने पर आपत्ति जताई. जाटव समाज की महिलाओं का कहना था कि उनकी श्मशान भूमि रेलवे ने ले ली है, जिससे उनके पास अंतिम संस्कार के लिए जगह ही नहीं बची.
फ्रांस से ₹63,000 करोड़ रुपये के 26 राफेल-एम लड़ाकू विमानों के लिए रास्ता साफ, समझौता औपचारिक रूप से हुआ पूरा
'द हिंदू' की खबर है कि भारत और फ्रांस ने 28 अप्रैल को लगभग ₹63,000 करोड़ रुपये मूल्य के 26 राफेल-एम लड़ाकू विमानों के लिए अंतर-सरकारी समझौता (आईजीए) औपचारिक रूप से संपन्न कर लिया. यह सौदा नौ सेना भवन में एक औपचारिक समारोह के दौरान संपन्न हुआ, जिसमें रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह, नौसेना के उप प्रमुख वाइस एडमिरल कृष्ण स्वामीनाथन और भारत में फ्रांस के राजदूत थिएरी माथू मौजूद थे. आईजीए के साथ-साथ कई व्यावसायिक समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए. भारत और फ्रांस ने नौसैनिक शक्ति को मजबूत करने के लिए ₹63,000 करोड़ के 26 राफेल-एम विमानों के सौदे को अंतिम रूप दिया. इससे पहले, फ्रांस के रक्षा मंत्री को इस सौदे पर हस्ताक्षर के लिए भारत आना था, लेकिन निजी कारणों से उनकी यात्रा स्थगित कर दी गई. इसलिए दोनों देशों के मंत्रियों ने यह आईजीए दूरस्थ (रिमोट) रूप से हस्ताक्षरित किया, जैसा कि पहले 'द हिंदू' ने रिपोर्ट किया था. भारतीय नौसेना वर्तमान में दो विमानवाहक पोत संचालित कर रही है, रूस से प्राप्त आईएनएस विक्रमादित्य और स्वदेशी रूप से निर्मित आईएनएस विक्रांत, जिसे सितंबर 2022 में कमीशन किया गया था. ये दोनों पोत रूस से खरीदे गए 45 मिग-29के जेट विमानों का उपयोग करते हैं. हालांकि, मिग-29के की कम उपलब्धता दर और उनके सेवा जीवन के समाप्ति के करीब होने के कारण, नौसेना ने दोनों विमानवाहक पोतों से संचालन योग्य एक नए लड़ाकू विमान की तलाश शुरू कर दी थी. मूल योजना 54 विमानों की थी और इसमें दो प्रतियोगी शामिल थे. दसॉल्ट एविएशन का राफेल-एम और बोइंग का एफ-18 सुपर हॉर्नेट. अंततः राफेल-एम को तकनीकी रूप से उपयुक्त घोषित किया गया. बाद में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी ट्विन इंजन डेक-आधारित फाइटर (TEDBF) विकसित करने के प्रस्ताव के बाद संख्या घटाकर 26 कर दी गई.
रिपोर्ट
दिल्ली दंगे : 2020 की साजिश केस पर मजिस्ट्रेट ने पुलिस के दावों पर उठाए सवाल, तत्काल कारण स्पष्ट नहीं, सांप्रदायिक मंशा का प्रमाण भी नदारद
'आर्टिकल 14' के लिए बेतवा शर्मा की रिपोर्ट है कि साल 2020 के दिल्ली दंगों में मजिस्ट्रेट के आदेश ये दिखाते हैं कि पुलिस की पूरी जांच काल्पनिक सिद्धांतों, संदिग्ध धारणाओं और पूर्वाग्रहों पर आधारित थी. दिल्ली दंगों के बाद पुलिस द्वारा दर्ज साजिश मामले (एफआईआर 59) में, राउज एवेन्यू कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) वैभव चौरसिया ने 1 अप्रैल 2025 को आदेश जारी करते हुए पुलिस की जांच पर गंभीर सवाल उठाए. चौरसिया ने कहा कि पुलिस के आरोप “कई अनुमान” और “अटकलों” पर आधारित हैं, जिनमें “अनेक त्रुटियां” हैं. उन्होंने पुलिस चार्जशीट को “राय आधारित” और “अकादमिक शब्दजाल में लिपटी” बताते हुए कहा कि तथ्यों की बजाय धारणाओं को प्रस्तुत किया गया है. यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि तीन साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी पुलिस पर आतंकवाद और विरोध के बीच की रेखा धुंधली करने का आरोप लगाया था, लेकिन अब पहली बार किसी निचली अदालत के जज ने पुलिस के साजिश के दावे को चुनौती दी है.
पुलिस के दावे पर सवाल
चौरसिया ने पाया कि पुलिस की चार्जशीट यह नहीं स्पष्ट करती कि दंगों का "तत्काल कारण" क्या था. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि विरोध कर रहे लोगों (जो नागरिकता संशोधन कानून, CAA का विरोध कर रहे थे) के खिलाफ सांप्रदायिक भावना का कोई सबूत नहीं है. पुलिस ने अदालत में एफआईआर 59 का हवाला देते हुए कहा कि दंगों के लिए कपिल मिश्रा नहीं, बल्कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी जिम्मेदार थे. मगर मजिस्ट्रेट ने पाया कि मिश्रा ने ही "दूसरी तरफ मुस्लिम" कहकर भीड़ को सांप्रदायिक नजरिए से देखा, जबकि प्रदर्शनकारियों के बीच कोई हिन्दू विरोधी संदेश नहीं था.
कपिल मिश्रा के खिलाफ जांच का आदेश
मामला तब उठा जब मोहम्मद इलियास नामक व्यक्ति ने दिल्ली के कानून मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 23 फरवरी 2020 को मिश्रा ने मुस्लिम और दलित समुदाय के ठेले और दुकानों को नुकसान पहुंचाया था. चौरसिया ने पुलिस को मिश्रा के खिलाफ आगे जांच करने का आदेश दिया. मगर पुलिस ने इस आदेश को सत्र न्यायालय में चुनौती दी और 9 अप्रैल 2025 को जज कावेरी बावेजा ने इस आदेश पर रोक लगा दी.
अदालत में पुलिस का रवैया
मजिस्ट्रेट ने यह भी कहा कि पुलिस का विरोधियों के खिलाफ आतंकवाद कानून (UAPA) का इस्तेमाल “कल्पना” और “सिद्धांतों” पर आधारित है, न कि ठोस सबूतों पर. पुलिस ने प्रदर्शन स्थलों पर मुस्लिम महिलाओं की उपस्थिति को "चालाकी" बताकर दंगे भड़काने की साजिश करार दिया था, लेकिन मजिस्ट्रेट ने कहा कि यह दलील "विश्वास करने योग्य नहीं" है क्योंकि कोई भी समुदाय जो हिंसा की साजिश कर रहा हो, अपने समुदाय की महिलाओं को जोखिम में नहीं डालेगा.
दंगे किसने भड़काए?
कपिल मिश्रा के 23 फरवरी 2020 को दिए गए भाषण का जिक्र करते हुए मजिस्ट्रेट ने कहा कि यह "चेतावनी नहीं बल्कि अल्टीमेटम" था. मिश्रा ने पुलिस को धमकी दी थी कि अगर सड़कें खाली नहीं हुईं तो वह और उनके समर्थक खुद सड़कों पर उतरेंगे. पुलिस आयुक्त वेद प्रकाश सुर्या, जो मिश्रा के बगल में मौजूद थे, उनसे भी पूछताछ करने का आदेश दिया गया. वहीं दूसरी तरफ, जिन लोगों पर दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया (जैसे उमर खालिद और शरजील इमाम), उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सांप्रदायिक या हिंसक भाषण का सबूत अदालत में प्रस्तुत नहीं किया जा सका. उमर खालिद का भाषण तो दंगों से एक हफ्ते पहले महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था और उसमें भी कुछ भी सांप्रदायिक नहीं था.
कानून का दोहरा मापदंड
वरिष्ठ वकील शाहरुख आलम ने कहा कि मजिस्ट्रेट के अवलोकनों से यह स्पष्ट होता है कि कानून का उपयोग पक्षपाती ढंग से किया गया. एक समुदाय के खिलाफ सख्ती, जबकि दूसरे समुदाय के नेताओं (जैसे मिश्रा) के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई.
विश्लेषण
प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को हरकतों की कीमत चुकाने का संकल्प लिया, लेकिन उनके बारे में क्या जो देश के भीतर सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाते हैं?
'द वायर' में जम्मू-कश्मीर कैडर के एक पूर्व आईएएस अधिकारी और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने लिखा है कि प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को उसकी हरकतों की कीमत चुकाने का संकल्प लिया है, लेकिन उनके बारे में क्या जो देश के भीतर सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाते हैं? उन्होंने लिखा - एक मुस्लिम कश्मीरी मित्र ने 22 अप्रैल को बैसरन, पहलगाम के चरागाहों में, अमरनाथ तीर्थ यात्रा मार्ग पर स्थित एक अत्यधिक सुरक्षित माने जाने वाले पर्यटन स्थल पर हुई त्रासदी के भयावह दृश्यों की प्रतिक्रिया में फेसबुक पर लिखा - "पल भर में, कश्मीर यात्रा का एक संजोया सपना एक दुःस्वप्न में बदल गया. एक पत्नी अपने पति के निर्जीव शरीर के पास दुःख से बैठी है. उनके साझा सपने, शायद एक टूटी हुई कड़ी को जोड़ने का प्रयास, जीवन की रोजमर्रा की भागदौड़ से निकली एक कठिनाई से अर्जित राहत या वर्षों की बचत से संभव हुई एक बहुप्रतीक्षित यात्रा, एक अजनबी की निर्दयी गोली से मिटा दिए गए. जिस आतंकवादी ने गोली चलाई, वह एक ऐसा अनजान साया था जिसे उनके जीवन की कहानी, न कोई मित्रता थी न दुश्मनी. उसने एक पल में उन्हें निशाना बनाया, पत्नी के हृदय में ऐसा घाव छोड़ दिया जिसे समय भी नहीं भर सकता. निर्दोष पर्यटक की जान लेने वाली वह गोली पत्नी की आत्मा में हमेशा के लिए धंसी रह जाएगी. इस निर्मम भाग्य के मोड़ में, एक अनजान व्यक्ति की नफ़रत ने उसे शाश्वत दुःख से जोड़ दिया, एक ऐसा घाव जिसे कोई न्याय भर नहीं सकता." फेसबुक पर इस पोस्ट की प्रतिक्रियाएं सभी सकारात्मक और पीड़ितों के प्रति सहानुभूति भरी थीं. कश्मीरियों ने भी इस घटना पर गहरी निंदा व्यक्त की, यह कहते हुए कि उनके घर में ऐसा होना भयावह है. हत्यारों ने, जिनकी अब तक पहचान नहीं हो पाई है, अपनी पहचान स्पष्ट रूप से घोषित करते हुए, अपने असहाय शिकारों से "अल्लाह" का नाम लेने को कहा. इससे यह समझने के लिए न तो विशेष सूझबूझ चाहिए थी और न खुफिया रिपोर्ट कि इस हमले का उद्देश्य भारतीय समाज में विभाजन पैदा करना था. और फिर, मेरे मित्र के शब्दों में, "दुखद लेकिन सौभाग्य से भी, कल पहलगाम हमले में मारे गए लोगों में एक मुसलमान का नाम भी है - स्थानीय निवासी सैयद आदिल हुसैन, जो एक घायल हिंदू महिला की मदद कर रहे थे, जब आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गए." और आदिल का स्वयं का त्रासद भाग्य, एक पढ़ा-लिखा, सुंदर युवक, जो अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था और पर्यटकों के लिए घुड़सवारी का काम करता था, ने मेरे मित्र को यह पुकारने पर मजबूर कर दिया, "इसे हिंदू बनाम मुसलमान का मुद्दा मत बनाइए." लेकिन क्या यह पुकार व्यर्थ जाएगी?
अपेक्षाकृत और उचित रूप से, हमारे प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने इस भीषण नरसंहार के लिए तुरंत पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जिसमें 26 निर्दोष लोग मारे गए. पाकिस्तान की प्रतिक्रिया इनकार की रही. पाकिस्तान के पूर्व संघीय कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अहमद बिलाल सूफी ने 25 अप्रैल को डॉन अखबार में एक पत्र में अपने देश का पक्ष रखते हुए लिखा - "भारत के कब्जे वाले कश्मीर में पहलगाम की जघन्य घटना के बाद, पाकिस्तान ने तुरंत और स्पष्ट शब्दों में खुद को दोषियों से अलग कर लिया." लेकिन उन्होंने आगे यह आपत्ति भी जताई, "भारत अब भी यह दावा कर रहा है कि यह घटना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान राज्य द्वारा रची गई थी, हालांकि इस दावे का कोई प्रमाण सार्वजनिक रूप से साझा नहीं किया गया या पाकिस्तान को प्रदान नहीं किया गया. स्पष्ट है कि भारत दुर्भावनापूर्ण इरादे से काम कर रहा है."
माफ कीजिए श्री सूफी, मैं एक साधारण भारतीय नागरिक के रूप में, जिसने अच्छे और बुरे समय में कश्मीरी लोगों की सेवा की है, अपनी सरकार या कश्मीरियों से खुफिया स्रोतों से सबूत जुटाने की अपेक्षा नहीं करता कि यह "जघन्य घटना" कहां से उत्पन्न हुई. अब जो बाकी है वह सिर्फ अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना है और पाकिस्तान सरकार केवल भारत सरकार के साथ सहयोग करके ही अपनी स्थिति सुधार सकती है, अन्यथा यह संलिप्तता का स्पष्ट मामला बन जाएगा.
लेकिन हमारा अपना आंतरिक रवैया क्या रहा, पाकिस्तान की निंदा करने के अलावा? मेरे एक अन्य मित्र और सामाजिक कार्यकर्ता राजा मुजफ्फर भट ने मुझे ईमेल के जरिए ये सवाल भेजे हैं - "पहलगाम हत्याकांड के बाद, कश्मीरी मुसलमान फिर से अलग-थलग और खतरे में महसूस कर रहे हैं. छात्र, व्यापारी अलग-अलग भारतीय शहरों से वापस लौट रहे हैं... पिछले छह वर्षों से हमने न तो सड़कों पर प्रदर्शन किया, न हड़तालें कीं, स्कूल खुले रहे, कारोबार अच्छी तरह चल रहा था, फिर अब हमें क्यों दोष दिया जा रहा है? इतनी सुरक्षा मौजूद होने के बावजूद (1,300 से अधिक सुरक्षाकर्मी), सुरक्षा एजेंसियों से कोई सवाल क्यों नहीं किया जा रहा?"
लेकिन मैं यह जोड़ना चाहूंगा कि जिन लोगों ने पहलगाम में पर्यटकों की मेजबानी की थी, उनके अनुसार हत्याकांड के समय न बाइसरण में और न ही पहलगाम की गलियों में कोई सुरक्षा बल दिखाई दे रहे थे. उस भयावह क्षण में कश्मीरियों घुड़सवारों, टैक्सी चालकों, रसोइयों और रेस्तरां मालिकों ने ही आतंकित पर्यटकों को श्रीनगर हवाई अड्डे तक पहुंचाया, वह भी बिना कोई शुल्क लिए. जबकि एयरलाइंस, हमेशा की तरह, बिना किसी मानवीय संवेदना के संकटग्रस्त यात्रियों से बढ़ा हुआ किराया वसूल रही थीं. और अब हम एक ऐसा सुरक्षा उल्लंघन झेल रहे हैं जिसके दूरगामी परिणाम राष्ट्रीय रक्षा की व्यापक अवधारणा पर पड़ सकते हैं. फिर भी कोई जवाबदेही नहीं?
प्रधानमंत्री जी, आपने सही कहा कि पाकिस्तान को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. लेकिन क्या उन लोगों का भी कुछ दोष नहीं, जिन्होंने भारतीयों के एक वर्ग को दूसरे वर्ग के खिलाफ भड़काया है? ऐसे समय में, जब हम सभी भारतीयों को एकजुट होकर आपके साथ खड़ा होना चाहिए, क्या वे लोग सह-आरोपी नहीं हैं?
आपकी केंद्र सरकार द्वारा सीधे प्रशासित एक केंद्र शासित प्रदेश में इतनी बड़ी सुरक्षा विफलता पर अब तक एक भी शब्द क्यों नहीं बोला गया?
72 घंटे का पूर्ण युद्धविराम, क्योंकि पुतिन को द्वितीय विश्व युद्ध विजय का जश्न मनाना है!
रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मई में यूक्रेन के साथ युद्ध में तीन दिवसीय पूर्ण युद्धविराम घोषित किया है, ताकि द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ की विजय की 80वीं वर्षगांठ को चिह्नित किया जा सके. क्रेमलिन ने कहा कि यह 72 घंटे का युद्धविराम 8 मई की शुरुआत से लेकर 10 मई के अंत तक लागू रहेगा और यूक्रेन से भी इसमें शामिल होने का आह्वान किया. क्रेमलिन ने अपने बयान में कहा, "इस अवधि के दौरान सभी सैन्य गतिविधियां निलंबित रहेंगी. रूस का मानना है कि यूक्रेनी पक्ष को भी इस उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए." क्रेमलिन ने यह भी कहा कि यदि युद्धविराम के दौरान यूक्रेनी पक्ष की ओर से कोई उल्लंघन होता है, तो रूसी सशस्त्र बल "उचित और प्रभावी" प्रतिक्रिया देंगे. पुतिन की घोषणा के जवाब में, यूक्रेन ने तत्काल एक माह के युद्धविराम की मांग की है.
काबुल में हुई तालिबान से भारत की बातचीत, अफगानियों ने बुलाए निवेशक
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि अफगानिस्तान के लिए भारत के प्रभारी अधिकारी आनंद प्रकाश ने तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात कर राजनीतिक तथा व्यापारिक मुद्दों पर चर्चा की. यह बैठक 27 अप्रैल को हुई. भारत ने अब तक अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है और वह काबुल में एक वास्तव में समावेशी सरकार के गठन की वकालत कर रहा है, साथ ही यह भी जोर दे रहा है कि अफगान भूमि का उपयोग किसी भी प्रकार की आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं होना चाहिए. काबुल में हुई इस बैठक में कार्यवाहक विदेश मंत्री ने भारत के साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों के विस्तार पर जोर दिया, टोलो न्यूज ने रिपोर्ट किया. अफगान प्रवक्ता के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि मुत्ताकी ने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ाने पर बल दिया और कहा कि भारतीय निवेशकों को अफगानिस्तान में निवेश के अवसरों का लाभ उठाना चाहिए. प्रकाश की यह यात्रा, जो विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान डिवीजन के संयुक्त सचिव हैं, उस समय हो रही है जब पहलगाम आतंकी हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा है. इस बीच दुबई बैठक के एक दिन बाद तालिबान ने कहा अफगानिस्तान भारत के लिए "कोई खतरा नहीं". यह स्पष्ट नहीं है कि क्या पहलगाम आतंकी हमले का मुद्दा प्रकाश और मुत्ताकी की बातचीत में उठा या नहीं. भारत अफगानिस्तान में चल रहे मानवीय संकट से निपटने के लिए वहां निर्बाध मानवीय सहायता प्रदान करने की भी लगातार वकालत करता रहा है. जून 2022 में, भारत ने काबुल स्थित अपने दूतावास में एक "तकनीकी टीम" की तैनाती कर अफगानिस्तान में अपना राजनयिक उपस्थिति पुनः स्थापित की थी.
इज़राइल अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुपालन की व्यवस्था को नष्ट करने पर आमादा : आईसीजे
'द गार्डियन' की खबर है कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में सुनवाई के दौरान कहा कि इज़रायल अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए ढांचे को नष्ट करने पर तुला हुआ प्रतीत होता है, जिसका प्रभाव फ़िलिस्तीन से कहीं आगे तक गूंजेगा. हेग में पांच दिन तक चलने वाली इस सुनवाई की शुरुआत में यह चेतावनी दी गई, जो इज़रायल के भविष्य के लिए संयुक्त राष्ट्र में उसकी स्थिति के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत, गाज़ा में 50 दिन से अधिक समय से जारी पूर्ण नाकेबंदी के बीच, फ़िलिस्तीनियों के प्रति इज़रायल के मानवीय दायित्वों पर सलाहकारी राय देने के लिए दर्जनों देशों और संगठनों की दलीलें सुनेगी. इज़रायल खुद इन सुनवाई में हिस्सा नहीं ले रहा है, लेकिन उसने मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, जिसमें पिछले अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के साथ सभी सहयोग समाप्त करने के अपने निर्णय को हमास द्वारा उसमें कथित घुसपैठ के चलते आवश्यक बताया है. फ़िलिस्तीनी राज्य की वकील ब्लिन्ने नी घ्रालै ने इज़रायल की कार्रवाइयों को “शांति प्रिय राज्य” के आचरण के विपरीत बताया. उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध, संयुक्त राष्ट्र और उसके अधिकारियों, संपत्तियों और परिसरों पर हमले, संगठन के कार्यों में जानबूझकर बाधा और संयुक्त राष्ट्र की एक पूर्ण सहायक संस्था को नष्ट करने का प्रयास, ये सभी "संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में अभूतपूर्व" हैं. उन्होंने कहा कि ये कार्रवाइयां "इज़रायल द्वारा अपने चार्टर दायित्वों तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के शासन की मूल भावना का मौलिक अस्वीकरण" हैं. उन्होंने कहा कि इज़राइल ने सभी रास्तों को बंद कर दिया है और राफा को, जहां कभी लगभग 15 लाख विस्थापित फ़िलिस्तीनी शरण लिए हुए थे, एक "महाविनाश के बाद का परिदृश्य" बना दिया है. उन्होंने कहा, “रिपोर्टों के अनुसार, इज़राइल राफा के 75 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, जो गाज़ा के पांचवें हिस्से के बराबर है, उसको अपने तथाकथित बफर ज़ोन में स्थायी रूप से मिलाने की योजना बना रहा है." इसके साथ ही समुद्री नाकेबंदी के चलते गाज़ा और उसके निवासियों को दुनिया से पूरी तरह काट दिया गया है.
चलते-चलते
35 गेंदों में सैकड़ा : 14 साल के वैभव सूर्यवंशी का ताबड़तोड़ प्रदर्शन
जब आप एक छोटे बच्चे को ईशांत शर्मा, मोहम्मद सिराज, प्रसिद्ध कृष्णा, वाशिंगटन सुंदर और फिरकी के बेताज बादशाह राशिद खान को छक्के-चौके उड़ाते सुनें तो आपके ज़ेहन में सबसे पहले यही बात आएगी कि लगता है वीडियो गेम की बात हो रही है. मगर सच हो तो दांतों तले अंगुलियां पक्का दबा लेंगे आप. कुछ ऐसा ही हुआ 28 अप्रैल की रात. एक 14 साल 32 दिन के लड़के ने इन दिग्गज गेंदबाजों पर 11 छक्के और सात चौके जड़ दिये और महज 35 गेंद पर अपना शतक पूरा कर लिया और 17 गेंद पर 50. इसी के साथ वह लड़का इस सीजन का सबसे तेज अर्धशतक लगाने वाला बना तो आईपीएल में सबसे कम गेंद पर शतक बनाने वाला भारतीय बल्लेबाज. ओवरऑल टी-20 के यूनिवर्सल बॉस क्रिस गेल (30 गेंद) के बाद दूसरे.
बात हो रही है आधुनिक क्रिकेट के वंडर बॉय वैभव सूर्यवंशी की. उन्होंने अपने तीसरे आईपीएल मैच तक आते-आते धड़ाधड़ आईपीएल रिकॉर्ड बुक में ऐसे नाम दर्ज कराया है कि कई तो टूटने मुश्किल हो जाएंगे. डेब्यू मैच में छक्के से अपना आईपीएल स्कोरिंग शुरू करने वाले वैभव की झोली में सबसे कम उम्र का लिस्ट ‘ए’ क्रिकेटर समेत पहले से ही कई रिकॉर्ड हैं. मगर सबसे कम उम्र के आईपीएल खिलाड़ी और नीलामी में शामिल होने वाले वैभव के लिए सबकुछ रॉयल रोडवेज की तरह बना-बनाया नहीं था. न तो उनका बैकग्राउंड साउंड था और न ही कोई क्रिकेटीय पृष्ठभूमि. वैभव के पिता संजीव सूर्यवंशी ने अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए कड़ी तपस्या की है. बेटे के करियर के लिए उन्होंने अपना कारोबार छोड़ दिया यहां तक कि जमीन भी बेचनी पड़ी. बचपन में घर के बाहर ही नेट लगाकर उसे अभ्यास करवाया करते थे. लेकिन एक बात तो तय है कि उन्होंने भी यह नहीं सोचा होगा कि महज 12-13 साल की उम्र में उनका बेटा स्टार बन जाएगा. ‘अर्थ’ को छोड़ दें तब भी इन अर्थों में भी ‘वैभव’ की कहानी परी सरीखी ही है.
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