29/05/2025 : आतंकियों का पता नहीं, पर सिंदूर लेकर आपके घर आएगी भाजपा | खेल के मैदान में राष्ट्रवाद का छौंक | अमेरिकी अदालत में दावा, जंग व्यापार की धमकी से रुकी | 15 सवाल पीएमओ, विदेश मंत्रालय के लिए
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
माधवी बुच के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें लोकपाल खानविलकर ने खारिज कीं
बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों को भारत से वापस भेजने की कार्रवाई तेज़, एयरफोर्स के विमान से
160 लोगों को अगरतला भेजा गया
पॉक्सो मामला हटने के बाद पूर्व कुश्ती प्रमुख बृज भूषण के ‘रोड शो’ ने जनआक्रोश को भड़काया
मणिपुर में नई सरकार बनाने का दावा पेश, बीजेपी ने स्पीकर को दिल्ली तलब किया
हत्या के मामलों में व्हाट्सएप चैट को ठोस सबूत मानने से अदालत का इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह के खिलाफ हाईकोर्ट में चल रही कार्यवाही बंद की
क्या है रिश्ता? जिसने बीजेपी को 60% चंदा दिया, उसे मिल गया काम, सुप्रीम कोर्ट सख्त, पुन: टेंडर के लिए कहा
'हम कॉपीराइट के मामले में नहीं पड़ते' कहने वाले यूट्यूब ने आखिर क्यों बदली एक शख्स के लिए अपनी नीति?
आतंकियों का सुराग नहीं पर क्रिकेट के मैदान से लेकर वोटरों के घरों तक सिंदूर की सियासत
एक महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी पहलगाम के चार आतंकवादियों का कोई सुराग भले ही नरेन्द्र मोदी की सरकार नहीं दे पाई हो, पर उसने उसके बाद किये ऑपरेशन सिंदूर पर सियासत जरूर शुरू कर दी है. घर-घर मोदी की शक्ल में अब घर-घर सिंदूर भेजने की तैयारी है. भारतीय जनता पार्टी “ऑपरेशन सिंदूर” को राजनीतिक रूप देने में लगी है. इसी रणनीति के तहत वह मोदी सरकार की 11वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश के हर घर में “सिंदूर” भेजने की योजना बना रही है. यह कार्यक्रम 9 जून को शुरू किया जाएगा. पिछली बार इसी तारीख को मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. यह कार्यक्रम महीने भर चलेगा. इस दौरान पार्टी के सभी लोकसभा सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्रों में 15-20 किमी पैदल चलेंगे, वहीं मंत्रियों को हफ्ते में 20-25 किमी की पदयात्रा कर जनसंपर्क करना होगा.
मगर दिलचस्प यह है कि पार्टी ने अपने सांसद रामचंद्र जांगड़ा द्वारा पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए महिलाओं के पतियों के बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी को लेकर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, माफी मांगने की बात तो बहुत दूर की है. यही स्थिति मध्यप्रदेश के काबीना मंत्री विजय शाह के मामले में है, जिन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ शर्मनाक टिप्पणी कर प्रधानमंत्री मोदी के नाम तालियां बजवाई थीं. और, उनकी टिप्पणी को हाईकोर्ट ने “गटर की भाषा” करार दिया था. पार्टी ने उन्हें मंत्री पद पर कायम रखा है.
इसके विपरीत, “ऑपरेशन सिंदूर” को राजनीतिक जामा पहनाने का आलम यह है कि 31 मई को भोपाल में होने वाले महिला सशक्तीकरण सम्मेलन में, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी भी बोलेंगे, 620 महिलाएं 'सिंदूरी' साड़ियों के परिधान में मंच और मंच के बाहर पानी, भोजन और पार्किंग सहित सभी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी संभालेंगी. अहिल्या बाई होल्कर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम की थीम “सिंदूर” को रखा गया है. प्रदेश भर से लगभग 1 लाख महिलाएं इस कार्यक्रम में आएंगी. व्यापक पैमाने पर पार्टी तैयारी करने में लगी है.
सिंदूर के नाम पर मज़ाक़ उड़ना भी शुरू
व्यापक पैमाने पर इस बीच बीजेपी के कथित “घर-घर” सिंदूर अभियान पर तंज़ भी कसे जाने लगे हैं. उत्तरप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि “मोदी जी आप की रगों में सिंदूर बह रहा है, लेकिन जिसकी मांग भर कर लाए, उसको घर पर नहीं रख पाये. अजय राय, वाराणसी में पिछला लोकसभा का चुनाव मोदी के खिलाफ लड़े थे और वोटों की गिनती के दौर में एक समय 6 हजार वोटों से आगे हो गए थे.
लोक गायिका और राजनीतिक व्यंग्यकार नेहा सिंह राठौर ने “एक्स” पर लिखा- “मैं बिहार और पूरे देश की महिलाओं से कहूंगी, जब भी भाजपा वाले सिंदूर लेकर आपके घर आयें तो आप लोग बाहर न निकलें…आप लोग बंद दरवाज़े के पीछे से ही डांट दीजिएगा और बताइयेगा कि किसी पराए मर्द के हाथ का सिंदूर नहीं लिया जाता है.
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी ऑपरेशन सिंदूर पर तंज कसते हुए कहा कि यह असल में ऑपरेशन वोट बैंक है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री रैलियों में समय दे सकते हैं, कपड़े दिन में चार बार बदल सकते हैं, लेकिन पहलगाम हमले की पीड़ित महिलाओं से मिलने का समय नहीं निकाल पाए. उन्होंने पीएम मोदी से तीन सवाल पूछे – हमलावर आतंकवादी पहलगाम तक कैसे पहुंचे, अब तक मारे क्यों नहीं गए, और क्या ट्रंप के दबाव में सीजफायर घोषित किया गया?
जब खेल में घुसेड़ा जाए राष्ट्रवाद का छौंक
टेलीग्राफ ने ईपीएल फाइनल में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिये हिटलर के ओलंपिक को “प्रोपेगेंडा टूल” बनाने से जोड़ा
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड, जिसने पहलगाम हमलों के बाद कहा था कि भारत अब आगे पाकिस्तान के खिलाफ नहीं खेलेगा, ने खेलों में राष्ट्रवाद का संचार करने का फैसला किया है. इसके तहत बोर्ड ने तीनों सेनाओं के प्रमुखों को 3 जून को होने वाले इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के फाइनल में आमंत्रित किया है, ताकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान उनकी वीरता भरे प्रयासों के प्रति आभार जताया जा सके.
हालांकि, यह फैसला चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि इतिहास गवाह है कि खेल और कूटनीति का मेल पहले भी होता रहा है. खेल अक्सर कूटनीतिक सफलताओं का केंद्र रहे हैं, कभी संघर्ष का कारण बने हैं, तो कभी “प्रचार” से लेकर मेल-मिलाप तक का जरिया बने हैं.
“द टेलीग्राफ” में शुभरूप दास शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 1936 के बर्लिन ओलंपिक का सबसे कुख्यात उदाहरण आज भी मौजूद है, जब जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने ओलंपिक खेलों को आर्य श्रेष्ठता, नाजी विचारधारा और राइख (जर्मन साम्राज्य) की शक्ति को बढ़ावा देने के लिए एक “प्रोपेगेंडा टूल” (प्रचार उपकरण) में बदल दिया था. उस शासन ने यहूदी खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया और इस आयोजन का इस्तेमाल भविष्य के संघर्ष के लिए "आध्यात्मिक लामबंदी" के हिस्से के रूप में किया. प्रसिद्ध सिनेमेटोग्राफर लेनी रीफेनस्टाल की तकनीकी दक्षता ने इन खेलों को एक भव्य तमाशे में बदल दिया. लेकिन अश्वेत अमेरिकी एथलीट जेसी ओवेन्स द्वारा चार स्वर्ण पदक जीतना नस्लीय श्रेष्ठता के सिद्धांत के लिए एक शक्तिशाली प्रतिवाद बन गया.
दो साल पहले, बेनिटो मुसोलिनी की इटली ने 1934 फीफा विश्व कप की मेज़बानी इसी उद्देश्य से की थी—इस टूर्नामेंट का इस्तेमाल राष्ट्रवादी जोश भड़काने और अपनी विस्तारवादी नीतियों के लिए समर्थन जुटाने के लिए किया गया था. यह आयोजन इटली की आक्रामक विदेश नीति के निर्माण के साथ मेल खाता था, जिसमें इथियोपिया पर आक्रमण की तैयारियां भी शामिल थीं.
बीजिंग द्वारा 2012 ओलंपिक और क़तर द्वारा 2022 फीफा विश्व कप की मेज़बानी ने दिखाया कि किस तरह देश ऐसे खेल आयोजनों का उपयोग अपनी वैश्विक छवि और सॉफ्ट पावर को बढ़ाने के लिए करते हैं, भले ही श्रम अधिकारों और मानवाधिकारों के रिकॉर्ड को लेकर विवाद रहे हों.
दक्षिण अफ्रीका द्वारा 2010 फीफा विश्व कप की मेज़बानी पोस्ट-अपार्थेड (रंगभेद के बाद) एकता और वैश्विक समुदाय में पुनः एकीकरण को दिखाने का प्रयास था, जिसमें खेल के ज़रिए राष्ट्रीय मेल-मिलाप को बढ़ावा दिया गया.
खेल ने वहां भी पुल बनाए हैं, जहां बातचीत नाकाम रही थी. “पिंग-पोंग डिप्लोमेसी” 1971 में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच इसका स्वर्ण मानक बनी. अमेरिकी टेबल टेनिस टीम को चीन के निमंत्रण, जो 1949 में माओ ज़ेदोंग के सत्ता में आने के बाद पहली बार दिया गया था, ने दशकों की राजनयिक चुप्पी तोड़ी और राष्ट्रपति निक्सन की ऐतिहासिक यात्रा तथा दोनों देशों के संबंधों के सामान्यीकरण का मार्ग प्रशस्त किया.
क्रिकेट ने भी उपमहाद्वीप में इसी तरह की राजनयिक भूमिका निभाई है. 1987 में, पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक़ ने भारत में एक टेस्ट मैच में शिरकत की, जिसे दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए सद्भावना के इशारे के रूप में देखा गया. दो परमाणु संपन्न पड़ोसियों को क्रिकेट पवेलियन साझा करते देखना, शांति का राजनीतिक संदेश था. 2004 में इस खेल ने दोनों देशों को फिर एक साथ लाने में भूमिका निभाई. भारत की क्रिकेट टीम ने कारगिल युद्ध के पांच साल बाद पाकिस्तान का दौरा किया. इस रोमांचक श्रृंखला ने दोनों देशों को कम से कम कुछ वर्षों के लिए शांति के करीब ला दिया.
बेसबॉल डिप्लोमेसी भी इसी राह पर चली, जब 2016 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने हवाना में एक प्रदर्शनी मैच में भाग लिया. यह मैच 1950 के दशक के अंत से चली आ रही शत्रुता के बाद अमेरिका-क्यूबा संबंधों में सुधार का प्रतीक था. 2018 शीतकालीन ओलंपिक में उत्तर और दक्षिण कोरिया ने एक संयुक्त झंडे के तहत भाग लिया, जो कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव कम करने के लिए एक राजनयिक प्रयास था—शायद 1940 के दशक के बाद पहली बार.
आज का आईपीएल इस परंपरा में निरंतरता और विकास दोनों का प्रतिनिधित्व करता है. जबकि क्रिकेट ने हमेशा उपमहाद्वीप में राजनीतिक महत्व रखा है— भारत-पाकिस्तान का हर मुकाबला आज भी एक प्रकार का प्रतिनिधि संघर्ष बना रहता है— मगर सैन्य नेतृत्व की औपचारिक भागीदारी अब एक नई प्रगति है. अंतरराष्ट्रीय सितारों और प्रबल क्षेत्रीय वफादारियों के मिश्रण के साथ यह टूर्नामेंट भारत का सबसे प्रभावशाली सॉफ्ट पावर निर्यात बन गया है. और, “ऑपरेशन सिंदूर” की टाइमिंग ने एक खेल प्रतियोगिता (आईपीएल) के फाइनल को राष्ट्रीय संकल्प में तब्दील करने का समकालीन संदर्भ प्रदान कर दिया है. लेकिन, इसका प्रतीकवाद इससे भी गहरा है. बीसीसीआई ने खुद को खेल राष्ट्रवाद के अग्रणी के तौर पर स्थापित किया है, और भारत में क्रिकेट के धर्म जैसे दर्जे का लाभ उठाया है. बोर्ड की हालिया मुखरता—भारतीय खिलाड़ियों को पाकिस्तान दौरे की अनुमति न देना, पाकिस्तानी आपत्तियों के बावजूद चैंपियंस ट्रॉफी के वेन्यू बदलवाने का दबाव बनाना—यह दिखाता है कि क्रिकेट अब भू-राजनीतिक प्रभाव का औजार बन चुका है. आईपीएल फाइनल में सैन्य सम्मान यह संकेत देता है कि यह रुख न केवल जारी रहेगा, बल्कि और तीव्र होगा. जब 3 जून को नरेंद्र मोदी स्टेडियम में सेना प्रमुख अपनी सीटों पर बैठेंगे, वे एक परंपरा में भाग लेंगे, जो प्राचीन ओलंपिया से लेकर आधुनिक अहमदाबाद तक फैली है. आईपीएल फाइनल का सीधा प्रसारण 3 जून को कई नेटवर्क्स पर होगा, जिसमें समापन समारोह में पारंपरिक मनोरंजन के साथ सैन्य सम्मान भी शामिल रहेगा.
अमेरिकी सरकार का अब अदालत में बयान : ट्रम्प की व्यापार की बात ने रुकवाया भारत-पाक युद्ध
अमेरिकी प्रशासन के शीर्ष व्यापार अधिकारी ने संघीय न्यायालय में एक औपचारिक बयान में दावा किया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की शुल्क नीति ने भारत और पाकिस्तान के बीच इस महीने "पूर्ण पैमाने का युद्ध" टालने में प्रोत्साहन का काम किया. अधिकारी ने चेतावनी दी है कि कार्यकारी शक्तियों को सीमित करना क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. हालांकि ट्रम्प ने अब तक सोशल मीडिया या सार्वजनिक भाषणों में व्यापार को दबाव के रूप में इस्तेमाल करने की बात कही थी, यह पहली बार है जब यह दावा किसी ने 'शपथ के तहत' किया है.
भारत का विरोध स्पष्ट : भारत सरकार ने ट्रम्प के इस दावे का विरोध किया है कि अमेरिकी व्यापारिक रियायतों की पेशकश से भारत-पाकिस्तान युद्धविराम संभव हुआ. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि नई दिल्ली और वाशिंगटन के शीर्ष नेताओं के बीच बातचीत हुई थी, लेकिन व्यापार पर कोई चर्चा नहीं हुई.
जबकि पाकिस्तान ने युद्धविराम कराने में वाशिंगटन की भूमिका को स्वीकार किया है, भारत का रुख यह है कि भारतीय और अमेरिकी वार्ताकारों के बीच आधिकारिक फोन कॉल में व्यापार का कभी जिक्र नहीं हुआ.
न्यायालय में दिया गया बयान : अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड डब्ल्यू. लटनिक का यह बयान छोटी कंपनियों द्वारा दायर मुकदमे के जवाब में आया है. ये कंपनियां अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय में वैश्विक 10% शुल्क और विशिष्ट देशों पर अतिरिक्त शुल्क का विरोध कर रही हैं. लटनिक ने तर्क दिया कि ऐसे उपाय "विदेशी सरकारों को संकेत देते हैं कि आर्थिक शिकार, व्यापारिक हेराफेरी या नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे आचरण के गंभीर परिणाम होंगे".
चार दिन की लड़ाई के बाद, जो आधी सदी में भारत-पाकिस्तान के बीच सबसे भीषण संघर्ष था और जिसमें परमाणु धमकियां भी शामिल थीं, ट्रम्प ने 10 मई को दोनों देशों के बीच "पूर्ण और तत्काल युद्धविराम" की घोषणा की थी. लटनिक ने अदालत में कहा : "उदाहरण के लिए, भारत और पाकिस्तान - दो परमाणु शक्तियां जो 13 दिन पहले युद्ध संचालन में शामिल थीं - ने 10 मई 2025 को एक अस्थायी युद्धविराम पर सहमति जताई. यह युद्धविराम केवल राष्ट्रपति ट्रम्प के हस्तक्षेप के बाद संभव हुआ, जिन्होंने पूर्ण पैमाने के युद्ध से बचने के लिए दोनों देशों को अमेरिका के साथ व्यापारिक पहुंच की पेशकश की." उन्होंने चेतावनी दी कि राष्ट्रपति की शक्ति को सीमित करने वाला फैसला "भारत और पाकिस्तान को राष्ट्रपति ट्रम्प की पेशकश की वैधता पर सवाल उठाने पर मजबूर कर सकता है, जिससे पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है."
8 बार!
10 मई से अब तक, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत को कमजोर करने वाले और नई दिल्ली की राजनयिक सीमाओं को पार करने वाले गंभीर दावे आठ बार किए हैं.. फिर भी, मोदी सरकार ने कोई आधिकारिक खंडन जारी नहीं किया है.. तनावपूर्ण संबंधों के बीच, विदेश सचिव विक्रम मिसरी वाशिंगटन की तत्काल यात्रा कर रहे हैं और उम्मीद है कि वे इस बारे में चर्चा करेंगे कि ट्रम्प प्रशासन भारत के साथ अपने संबंधों को कैसे संभाल रहा है.
राफेल के बारे में फ्रांसीसी सेना से पहली टिप्पणी
फ्रांसीसी सशस्त्र बलों ने पहली बार आधिकारिक रूप से उन दावों पर टिप्पणी की है जिनमें कहा गया था कि भारत ने पाकिस्तान के साथ हाल की संघर्ष में एक राफेल लड़ाकू विमान खो दिया था. चीनी मीडिया आउटलेट फीनिक्स टीवी की पूछताछ के जवाब में, एक फ्रांसीसी सैन्य प्रवक्ता ने कहा, "स्पष्ट रूप से, हम इस उच्च-तीव्रता वाले युद्धक उपयोग से यथासंभव फीडबैक प्राप्त करने जा रहे हैं, जिसमें कुछ रिपोर्टों के अनुसार, स्पष्ट रूप से कई सौ विमान शामिल थे. इसलिए हम स्पष्ट रूप से इन घटनाओं पर यथासंभव बारीकी से नज़र रख रहे हैं. लेकिन आज मुख्य बात जो हम देख सकते हैं वह यह है कि राफेल 20 साल से सेवा में है, 20 साल का युद्धक उपयोग, और यदि यह सच है कि कोई नुकसान हुआ है, तो यह इस लड़ाकू विमान की लड़ाई के दौरान पहली हानि होती."
भारत ने सोचा पर हमला जारी क्यों नहीं रखा?
क्रिस्टोफर क्लेरी अल्बानी विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं और वाशिंगटन, डीसी में स्टिमसन सेंटर के दक्षिण एशिया कार्यक्रम के नॉनरेजिडेंट फेलो हैं. द इंडिया केबल के अनुसार दावों और जवाबी दावों के धुंध को भेदने के प्रयास में क्रिस्टोफर क्लैरी ने भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिवसीय संघर्ष का एक व्यापक विवरण लिखा है. उनके पेपर में लड़ाई के राजनीतिक और रणनीतिक परिणामों का भी विश्लेषण किया गया है और उनके निष्कर्षों को उजागर करना महत्वपूर्ण है:
"9-10 मई को जब संघर्ष में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई, सैन्य दबाव और अंतरराष्ट्रीय बीच-बचाव के दोहरे असर के साथ-साथ पाकिस्तान को लगा कि उसने जवाबी कार्रवाई कर दी है और अपनी ताकत भी दिखा दी है. और तब उसे लगा कि अब इस संकट को रोकने का विकल्प चुनना चाहिए. पाकिस्तान की तरफ से लगातार की डीजीएमओ स्तर की कॉल्स से ये साफ भी है. पर अगर भारत को वास्तव में लग रहा था कि उसके पास निर्णायक सैन्य बढ़त है तो नई दिल्ली आगे बढ़ने का विकल्प चुन सकती थी. शायद ऐसा करने पर विचार भी किया गया. फिर भी भारत ने जाहिर तौर पर यह हिसाब लगाया कि कि आगे और हमले करने के राजनीतिक फायदे एक महंगे और खतरनाक संकट के निरंतर बने रहने के लायक नहीं थे. दोनों पक्षों ने अमेरिका की मध्यस्थता वाले युद्धविराम को स्वीकार कर लिया. हालांकि. युद्धविराम शांति नहीं है. अगला संकट आएगा." क्लैरी का महत्वपूर्ण पेपर यहाँ पढ़ें.
विश्लेषण
कृष्णा प्रसाद : विदेश मंत्रालय को कवर करने वाले पत्रकारों को पीएमओ और विदेश मंत्रालय में अपने व्हाट्सएप एडमिन से पूछने चाहिए ये 15 सवाल
यह लेख आउटलुक के पूर्व संपादक कृष्णा प्रसाद के सब्सटैक पेज द नेटपेपर से लेकर अनुवाद किया गया है. जो न सिर्फ आज की राजनीति, भारत बल्कि पत्रकारिता मे चल रहे संकट को भी रेखांकित करता है.
लगभग बिना किसी गंभीरता के, सांसदों की 'ग्लोबल यात्रा' जवाबदेही से बचने का एक अभ्यास लगती है. सेवारत सांसदों, अब सेवारत न रहे राजदूतों और कुछ चुने हुए सेवकों का यह करदाताओं के पैसे से वित्तपोषित 'ढोंग का दौरा' – संसद में पहलगाम नरसंहार की गहन जांच से नरेंद्र मोदी सरकार को बचाने के लिए एक ढाल के रूप में – आपके सामने स्क्रीन पर चल रहा है.
सबसे पहले, सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का एक ग्रुप फोटो, जो अनिच्छा से इस महान भूमि से आंखों में आंसू लिए प्रस्थान कर रहा है, ट्वीट किया जाता है. फिर, जब वे अपने गंतव्यों पर उतरते हैं, तो उनकी टीमों का, जो 'देश सेवा' करने के लिए भारतीय दूतावास या वाणिज्य दूतावास में लंगड़ाते हुए प्रवेश कर रही हैं, एक बिना संपादित वीडियो जारी किया जाता है. चूंकि सावरकर, हेडगेवार और गोलवलकर की मूर्तियाँ अभी तक 33 गंतव्यों में स्थापित नहीं की गई हैं, सांसदों को दूसरे दिन महात्मा गांधी की मूर्ति पर माल्यार्पण करना पड़ता है, क्योंकि इन सभी राष्ट्रों ने रिचर्ड एटनबरो की फिल्म देखी हुई लगती है और उन्हें पता है कि ऐसे शख्स (और वह भी गुजरात का) इस धरती पर चले थे. सांसदों का मुख्य कार्य – राष्ट्रों को पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के प्रायोजन और भारत की इस पर शून्य सहनशीलता के बारे में समझाना – अब तक दूतावास/वाणिज्य दूतावास में 20 फुट लंबी मेज पर बैठने और मुख्य रूप से प्रवासी दर्शकों को संबोधित करने तक ही सीमित लगता है, जो संदिग्ध रूप से ऐसा लगता है कि वे नियमित रूप से देसी समोसे के मज़े लेने के आदी हैं.
अगर तारे अनुकूल होते हैं, जैसा कि कनिमोझी की टीम के लिए हुआ, तो उन्हें कम ऊंचाई वाली छत वाले कमरों में ऐसे लोगों से मिलने का मौका मिलता है जिनका पदनाम "नेशनल असेंबली की विदेश नीति समिति के अध्यक्ष" या "प्रधानमंत्री कार्यालय में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए राज्य सचिव/राष्ट्रीय समन्वयक" जैसा कुछ होता है. इसके बीच कहीं न कहीं कोई न कोई सांसद एएनआई या पीटीआई को इस गौरवशाली मिशन के नेक उद्देश्यों के बारे में बताता रहता है.
अगर यह असदुद्दीन ओवैसी होते हैं, जो जय पांडा के समूह में हैं, तो भाजपा के दो-टूक गोडसे भक्तों, कट्टरपंथियों और बॉट्स को क्षण भर के लिए मुसलमानों की देशभक्ति समझ में आती है. अगर शशि थरूर बोल रहे होते हैं, तो हर कोई बिल्कुल पक्का समझ रहा होता है कि टमेसिस शब्द का क्या अर्थ है.
इसके अंत में, एक घिसी-पिटी प्रेस विज्ञप्ति जारी होती है. अगर आप भाग्यशाली होते हैं, जैसे सुप्रिया सुले की टीम, तो आपको कतर में दूसरे पृष्ठ की खबर मिलती है. अगर आप नहीं होते हैं, जैसे जय पांडा की टीम (ऊपर उल्लिखित), तो आप बहरीन में पृष्ठ 13 पर होते हैं, पाकिस्तान का हल्का-सा उल्लेख भी नहीं. कभी-कभी, यह पृष्ठ को जीवंत करने के लिए सिर्फ एक फोटो कहानी हो सकती है, जैसा थरूर के मामले में हुआ.
चलें अगले देश!
लंबी बात को छोटा करें तो, यह 'ग्लोबल यात्रा' – जिसका भुगतान भारत के सभी नागरिकों द्वारा किया गया है, जिन्होंने जीएसटी दिया है, यानी हर किसी ने – इसका इच्छित दृश्य प्रभाव बहुत कम या बिल्कुल नहीं हो रहा है. निश्चित रूप से, इसका बहुत सारा अदृश्य प्रभाव हो रहा है, जैसे : संसद से बचना; विपक्ष को तोड़ना; पार्टियों को विभाजित करना; "बी टीम" को वैधता देना; लोगों की आँखों में धूल झोंकना. सबसे ऊपर, अथक कवरेज वह तमाशा बना रहा है, जिसके लिए इसका इरादा था, लेकिन इसमें जवाबदेही बिल्कुल नहीं है. लेकिन, अब तक के मामूली रिटर्न को देखते हुए, विदेश मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय का तो जिक्र ही क्या, को बहुत कुछ स्पष्ट करने की आवश्यकता है.
यहाँ कुछ सवाल दिए गए हैं जो विदेश मंत्रालय और पीएमओ से पूछे जाने चाहिए.
कितने नाममात्र या कार्यकारी प्रमुखों – राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, राजाओं, अमीरों, आदि – ने सांसदों के प्रतिनिधिमंडलों को अपना समय और ध्यान दिया है? क्यों नहीं?
कौन से देश हैं जिन्होंने प्रमुख निर्णय लेने वालों, जैसे विदेश मंत्री और वाणिज्य मंत्री, रक्षा मंत्री और रक्षा प्रमुख, को सांसदों की टीमों के लिए उपलब्ध कराया?
उन देशों में कौन से प्रभावशाली विपक्षी नेता थे जिनसे सांसदों की टीमों ने संपर्क किया और लुभाने की कोशिश की, ताकि भारत के मामले के लिए स्थायी द्विदलीय समर्थन बनाया जा सके?
पहलगाम नरसंहार में पाकिस्तान के हाथ होने का अकाट्य प्रमाण क्या है, फोटो, वीडियो और ऑडियो इंटरसेप्ट्स के रूप में प्रतिनिधिमंडल अपने साथ ले जा रहे हैं, या यह सब सिर्फ बातें, बयानबाजी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य है?
क्या टीमों को चीन और तुर्की के चार दिवसीय झड़प में पाकिस्तान के स्पष्ट समर्थन के बारे में दुनिया को बताने के लिए सशक्त किया गया है? या यह निषिद्ध है? क्यों?
इन देशों में कितने गैर-भारतीय मूल के प्रमुख समाचार मीडिया के संपादक, पत्रकार और स्तंभकारों से सांसदों ने व्यक्तिगत रूप से मिलकर भारत के मामले पर उन्हें समझाने का प्रयास किया है?
क्या 33 देशों में से किसी भी प्रमुख समाचार पत्र ने किसी भी सात सांसदों की टीम के प्रमुख के साथ आमने-सामने का साक्षात्कार प्रकाशित किया है?
सांसदों और पूर्व राजदूतों द्वारा अंग्रेजी और अन्य भाषा के समाचार पत्रों में कितने ऑप-एड लेख प्रकाशित करवाए गए हैं? या, क्या पीएमओ और भाजपा आईटी सेल का यह उत्कृष्ट कौशल केवल भारतीय समाचार पत्रों के लिए आरक्षित है?
क्या किसी टीम के प्रमुख या सदस्य ने उन देशों के प्रमुख सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के साथ पॉडकास्ट या साक्षात्कार के लिए बातचीत की है?
कितने टीवी समाचार चैनलों पर प्रतिनिधिमंडलों के एक या अधिक सदस्य प्राइमटाइम चर्चाओं में शामिल हुए हैं?
सांसदों ने इन देशों में किन-किन थिंक टैंकों से मुलाकात की? उनकी पहचान कैसे की गई? क्या केवल उन्हीं को आमंत्रित किया गया जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से विदेश मंत्रालय की मेहमाननवाज़ी का आनंद लिया है?
क्या सांसदों ने किसी विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित किया, या उन देशों के स्थानीय बुद्धिजीवियों के किसी अड्डे पर गए?
इन देशों में किन कॉरपोरेट्स को सांसदों ने आतंकवाद के प्रायोजन के कारण पाकिस्तान के साथ व्यापार न करने के लिए मना किया?
51 सांसदों के बोर्डिंग, रहने, यात्रा और अन्य खर्चों में विदेश मंत्रालय का कुल कितना बिल आया है? और अंत में,
इन देशों में सांसदों द्वारा बहुत पैसा खर्च करके जाने का क्या मतलब है, यदि विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश सचिव भी उन्हीं देशों का दौरा कर रहे हैं या उनसे बात कर रहे हैं?
संक्षेप में, दुनिया को भारत की बात समझाने के लिए सिर्फ कोरी बातों और फोटो सेशन से ज्यादा की आवश्यकता है. जय हिन्द !
ऑडियंस कहां है डेलिगेशन का?
इस बीच पूर्व मेजर जनरल बीएस धनोआ ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा है, “भारत-पाक के बीच हुई हालिया झड़प पर भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों की पहुंच के बारे में दिखाए जा रहे विभिन्न क्लिपों के बारे में मैंने जो एक बात नोटिस की है, वह यह है कि जिन लोगों को संबोधित किया जा रहा है, उन्हें कभी नहीं दिखाया जाता है.” उन्होंने आगे कहा : “क्या यह जानबूझकर किया जा रहा है या मैं इसे बहुत ज़्यादा समझ रहा हूँ?
माधवी बुच के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें लोकपाल खानविलकर ने खारिज कीं
नई दिल्ली : ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाले लोकपाल ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की पूर्व अध्यक्ष माधवी पुरी बुच के खिलाफ दायर भ्रष्टाचार की शिकायतों को खारिज कर दिया है. लोकपाल ने अपने 116 पेज के आदेश में स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार का कोई भी प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए "कोई आधार नहीं है". बुच पर आरोप थे कि उन्होंने सेबी प्रमुख के तौर पर अडानी समूह को अनुचित लाभ पहुंचाया. हालांकि, लोकपाल ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कई महत्वपूर्ण कारण गिनाए हैं.
लोकपाल के आदेश के अनुसार, शिकायतकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोप भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आवश्यक विशिष्टता और कानूनी तत्वों को पूरा नहीं करते. आदेश में कहा गया है कि कई आरोप 7 साल की वैधानिक समय सीमा से बाहर हैं, और कुछ तो माधवी बुच के सार्वजनिक सेवक बनने के कार्यकाल से भी पहले के हैं. लोकपाल ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित मामलों में सेबी की नियामक कार्रवाई में कोई विफलता नहीं पाई है. ऐसे में, 'क्विड प्रो क्वो' यानी बदले में लाभ का सवाल ही नहीं उठता. आदेश में कहा गया कि अखबारी रिपोर्ट जैसे सबूत कानूनी तौर पर मान्य नहीं हैं.
लोकपाल ने शिकायतकर्ताओं के "दुर्भावनापूर्ण इरादे" पर गंभीर सवाल उठाए. आदेश में उल्लेख किया गया है कि शिकायतकर्ताओं ने अवैध रूप से प्राप्त दस्तावेजों का उपयोग किया और कार्यवाही की गोपनीयता का उल्लंघन किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि शिकायतें आधारहीन थीं और केवल मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए दायर की गई थीं. लोकपाल ने सख्त लहजे में कहा कि शिकायतकर्ता "गंदे हाथों" के साथ आए थे. लोकपाल ने अपने आदेश में शिकायतकर्ताओं को कार्यवाही के दौरान प्रस्तुत मौखिक और दस्तावेजी सबूतों को सार्वजनिक न करने का भी निर्देश दिया है.
बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों को भारत से वापस भेजने की कार्रवाई तेज़, एयरफोर्स के विमान से 160 लोगों को अगरतला भेजा गया
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि बांग्लादेश की आपत्ति के बावजूद भारत सरकार ने बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजने की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है. रविवार, 25 मई को भारतीय वायु सेना (IAF) के एक विशेष विमान के ज़रिए 160 अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को गाज़ियाबाद से अगरतला भेजा गया, जहां से उन्हें ज़मीन के रास्ते बांग्लादेश भेजा गया. इन प्रवासियों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, जिन्हें पिछले सप्ताह दिल्ली पुलिस द्वारा बाहरी दिल्ली में एक विशेष अभियान के तहत हिरासत में लिया गया था. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, यह कदम भारत सरकार की उस नीति के अनुरूप है, जिसके तहत अवैध प्रवासियों को लंबी क़ानूनी प्रक्रिया का इंतज़ार किए बिना सीधे उनके देश वापस भेजा जा रहा है. गृह मंत्रालय (एमएचए) ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने इलाक़ों में बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों की पहचान और निष्कासन की प्रक्रिया तेज़ करें. इस अभियान के तहत, पिछले एक महीने में 500 से अधिक प्रवासियों को बांग्लादेश सीमा के पार भेजा जा चुका है.
4 मई को गुजरात से पकड़े गए 300 प्रवासियों को, 17 मई को राजस्थान से 140 लोगों को और 23 अप्रैल को दिल्ली से 80 प्रवासियों को कोलकाता के रास्ते सीमा तक ले जाया गया. गिरफ्तारी से सीमा तक पहुंचने के बीच अवैध प्रवासियों को दिल्ली के बक्करवाला और इंदरलोक डिटेंशन सेंटरों में रखा जाता है. इधर बांग्लादेश सेना के सैन्य संचालन निदेशालय के निदेशक ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद नाज़िम-उद-दौला ने सोमवार को ढाका में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “पुश-इन (Push-in) अस्वीकार्य हैं. बीजीबी इस स्थिति को अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल के तहत संभाल रही है और ज़रूरत पड़ी तो सेना हस्तक्षेप करेगी.” भारत के विदेश मंत्रालय (एमईए) ने 22 मई को जानकारी दी थी कि भारत ने बांग्लादेश से 2,369 अवैध प्रवासियों की राष्ट्रीयता की पुष्टि करने को कहा है, जिनमें से कुछ मामले पिछले पांच वर्षों से लंबित हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 10 मई को कहा कि सरकार अब "क़ानूनी निर्वासन प्रक्रिया" की बजाय "पुश-बैक" नीति अपना रही है, ताकि घुसपैठ को प्रभावी ढंग से रोका जा सके.
पॉक्सो मामला हटने के बाद पूर्व कुश्ती प्रमुख बृज भूषण के ‘रोड शो’ ने जनआक्रोश को भड़काया

पूर्व डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह ने पॉक्सो केस से राहत मिलने के बाद अयोध्या में रोड शो निकाला.
भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के पूर्व प्रमुख और पूर्व भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो मामले में करीब दो साल पहले दायर की गई रद्दीकरण रिपोर्ट को स्वीकार करने के दिल्ली की एक अदालत के फैसले ने व्यापक आलोचना को जन्म दिया है. इस बीच, सिंह अब भी छह महिला पहलवानों द्वारा दायर यौन उत्पीड़न मामले में आरोपों का सामना कर रहे हैं.
अदालत के फैसले पर सोशल मीडिया पर आक्रोश फैल गया, जिसमें कई लोगों ने आरोप लगाया कि सिंह ने पीड़िता और उसके परिवार को धमकाया था, यह दावा पहले पहलवान विनेश फोगट और साक्षी मलिक ने अपनी पिछली प्रेस कॉन्फ्रेंस में उठाया था. व्यापक जनाक्रोश को दर्शाते हुए एक व्यक्ति ने लिखा, “कौन केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा समर्थित ऐसे गुंडे से मुकाबला करने की हिम्मत करेगा?” पत्रकार सबा नकवी ने एक्स पर लिखा, “उन सभी पुरुषों को बधाई जो छेड़छाड़ और उत्पीड़न से बच निकलते हैं. यह एक ट्रेंडसेटिंग मामला है!” वहीं पहलवान विनेश फोगाट ने लिखा, “लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार भी तुम्हारा है, तुम झूठ को सच लिख दो, अख़बार भी तुम्हारा है! हम इसकी शिकायत करते तो कहाँ करते, सरकार तुम्हारी है, गवर्नर भी तुम्हारा है!!”
वहीं बजरंग पूनिया ने ट्वीट किया : "बृजभूषण सिंह पॉक्सो एक्ट में बरी होने के बाद रोड शो कर रहा है और अपनी जीत दिखा रहा है, जबकि अभी 6 महिला पहलवानों के केस कोर्ट में चल रहे हैं. जब महिला पहलवान आंदोलन पर बैठी थीं, उसी समय ही नाबालिग महिला पहलवान बृजभूषण के दबाव में पीछे हट गई थी, जबकि एक बार वह बृजभूषण के ख़िलाफ़ गवाही दे चुकी थी. बृजभूषण अभी भी बाक़ी 6 महिला पहलवानों पर लगातार दबाव बना रहा है कि वे भी अपने केस वापिस लें. क्योंकि उसे सेक्सुअल हरासमेंट की पीड़िताओं को झुकाकर दोबारा रोड शो निकालकर अपनी ताक़त दिखाने का मन कर रहा होगा. कई बार लगता है कि आज भी क़ानून राज गुंडों के सामने बौना है.”
2020 दिल्ली दंगे
हत्या के मामलों में व्हाट्सएप चैट को ठोस सबूत मानने से अदालत का इंकार
2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली में मुस्लिम विरोधी दंगों से जुड़े मुस्लिम पुरुषों की हत्या के पांच मामलों में, दिल्ली की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि व्हाट्सएप चैट को ‘ठोस सबूत’ नहीं माना जा सकता, यह कहते हुए कि वे केवल ‘एक पुष्ट सबूत’ के रूप में काम कर सकते हैं. सभी पांच मामलों में, जहां वही 12 ‘हिंदुत्व पुरुष’ शामिल हैं, अभियोजन पक्ष ने मुख्य सबूत के रूप में व्हाट्सएप चैट पर बहुत अधिक भरोसा किया. कई खोजी रिपोर्टों और दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया था कि शहर में हिंसा के दौरान मुसलमानों की हत्या और उनकी संपत्तियों की तोड़फोड़ की योजना बनाने के लिए ‘कट्टर हिंदू एकता’ नाम का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया था. कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने आरोपी को बरी करते हुए कहा, “इस तरह की पोस्ट केवल ग्रुप के अन्य सदस्यों की नजर में हीरो बनने के इरादे से ग्रुप में डाली जा सकती हैं. यह बिना सच्चाई के शेखी बघारने जैसा हो सकता है. इसलिए, जिन चैट पर भरोसा किया गया है, वे यह दिखाने के लिए ठोस सबूत नहीं हो सकते कि आरोपी ने... वास्तव में दो मुस्लिम व्यक्तियों की हत्या की थी. इन चैट का इस्तेमाल अधिक से अधिक सबूत के तौर पर किया जा सकता है.” इससे पहले, अदालत ने 30 अप्रैल को एक अन्य फैसले में कहा था कि हाशिम अली नामक व्यक्ति की हत्या से संबंधित एक मामले में हत्या का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था और बाद में 12 आरोपियों को बरी कर दिया था. इस बीच, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में भाग लेने वाले मुस्लिम छात्र और कार्यकर्ता बिना जमानत या मुकदमे के जेल में सड़ रहे हैं.
मणिपुर में नई सरकार बनाने का दावा पेश, बीजेपी ने स्पीकर को दिल्ली तलब किया
मणिपुर में 10 विधायकों ने बुधवार को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया. इनमें भाजपा के आठ व एनपीपी और निर्दलीय मिलाकर दो विधायक हैं. दसों विधायकों ने दावा किया है कि उनके पास 44 विधायकों का समर्थन है.
राज्यपाल से मुलाकात के बाद भाजपा विधायक थोकचोम राधेश्याम ने कहा, 'कांग्रेस को छोड़कर 44 विधायक मणिपुर में सरकार बनाने के लिए तैयार हैं. नई सरकार के गठन का विरोध करने वाला कोई नहीं है. मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष सत्यव्रत ने 44 विधायकों से मुलाकात की है.
दूसरी तरफ, विधानसभा अध्यक्ष सत्यव्रत केंद्रीय नेतृत्व के बुलावे पर दिल्ली रवाना हो गए हैं. कहा जा रहा है कि भाजपा हाईकमान जल्द ही सरकार बनाने पर फैसला दे सकता है. मणिपुर में 60 विधानसभा सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 31 है.
सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह के खिलाफ हाईकोर्ट में चल रही कार्यवाही बंद की
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में शर्मनाक टिप्पणी करने वाले मध्यप्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह के खिलाफ राज्य के हाईकोर्ट में चल रही कार्यवाही को बंद करने का निर्देश दिया है. बता दें कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शाह की टिप्पणी का स्वतः संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ एफआईआर का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज भी हो गई थी, जिसके खिलाफ ही शाह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में ही शाह को फटकार लगाई थी और एसआईटी से जांच कराने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी एसआईटी ने बुधवार को स्टेटस रिपोर्ट पेश की.
रिपोर्ट की स्थिति को देखने के बाद, शीर्ष अदालत ने यह देखा कि जांच प्रारंभिक चरण में है, साथ ही यह तथ्य भी जोड़ा कि शाह का मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया है. मामले में गवाहों के बयान भी दर्ज किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जांच जारी रहे, और फिर एक स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए. तब तक अंतरिम आदेश जारी रहेगा.”
गौरतलब है कि विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ 12 मई को इंदौर जिले के रैकुंडा गांव में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में टिप्पणी की थी. इसके बाद, उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराओं 152, 196(1)(बी), और 197 के तहत एफआईआर दर्ज की गई. शाह अपनी टिप्पणी के लिए तीन बार माफी मांग चुके हैं. लेकिन भाजपा सरकार में उनका मंत्री पद अब भी बरकरार है.
मस्जिद के सचिव की हत्या, 15 के खिलाफ एफआईआर : मंगलवार को मंगलुरु के पास बंटवाल तालुक के कुरियाला गांव के इरा कोडी में जामा मस्जिद के सचिव और पेशे से ड्राइवर अब्दुल रहमान की जघन्य हत्या के सिलसिले में 15 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. एफआईआर में दीपक, सुमित और 13 अन्य लोगों के नाम हैं और उन पर धारा 103, 109, 118(1), 118(2), 190, 191(1), 191(2) और 191(3) के तहत मामला दर्ज किया गया है. मौके पर मौजूद किसी राहगीर के शोर मचाने पर हमलावर घातक हथियारों के साथ मौके से भाग गए. बुधवार की सुबह रहमान के अंतिम संस्कार में सैकड़ों लोग जुटे थे.
क्या है रिश्ता? जिसने बीजेपी को 60% चंदा दिया, उसे मिल गया काम, सुप्रीम कोर्ट सख्त, पुन: टेंडर के लिए कहा
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) को सख्त निर्देश जारी करते हुए सुझाव दिया है कि वह सामूहिक रूप से लगभग 14,000 करोड़ रुपये की लागत वाली दो प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए फिर से निविदाएं आमंत्रित करे, अन्यथा उसे मौजूदा प्रक्रिया पर रोक का सामना करना पड़ेगा. 26 मई को यह चेतावनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) लिमिटेड की अपील पर सुनवाई के दौरान आई, जिसने मुंबई एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट और रोड टनल प्रोजेक्ट के लिए बोली लगाने से अपनी तकनीकी अयोग्यता को चुनौती दी थी, जहां हैदराबाद स्थित मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एमईआईएल) सबसे कम (एल1) बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी थी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति एजी मसीह की दो-न्यायाधीशों वाली पीठ की अध्यक्षता करते हुए, एलएंडटी को बाहर रखे जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया. सीजेआई गवई ने एलएंडटी की स्थापित साख पर प्रकाश डालते हुए टिप्पणी की, “बोली लगाने वाले के नाम से ही यह विश्वास करना मुश्किल है कि उसे केंद्र सरकार द्वारा सेंट्रल विस्टा के निर्माण के लिए चुना गया है.” उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एमएमआरडीए का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को निर्देश दिया कि वे ‘इस बारे में निर्देश लें कि क्या आप फिर से टेंडर करने के इच्छुक हैं, अन्यथा हम रोकेंगे.” एलएंडटी ने 20 मई को बॉम्बे हाईकोर्ट के दो आदेशों को चुनौती दी है, जिसमें परियोजनाओं को आवंटित करने से पहले तकनीकी अयोग्यता के कारणों को न बताने के एमएमआरडीए के फैसले को बरकरार रखा गया था. एलएंडटी ने तर्क दिया कि यह एक मनमानी और गैर-पारदर्शी प्रक्रिया थी, जिसके कारण एमईआईएल को काफी अधिक लागत पर एल1 घोषित किया गया. एलएंडटी ने दावा किया कि एमईआईएल की तुलना में रोड टनल प्रोजेक्ट (अनुमानित 8,000 करोड़ रुपये) के लिए इसकी बोली लगभग 2,521 करोड़ रुपये कम थी और एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट (अनुमानित 6,000 करोड़ रुपये) के लिए 609 करोड़ रुपये कम थी. सुनवाई के दौरान, सीजेआई गवई ने इसमें शामिल जनहित पर जोर दिया, जब रोहतगी ने तर्क दिया कि "यदि आप अयोग्य ठहराए जाते हैं तो पैसे का सवाल ही नहीं उठता’’, तो CJI ने जवाब दिया, "यदि यह जनहित का मामला है तो पैसे का सवाल भी उठता है... बेहतर होगा कि आप निर्देश लें. जनता का पैसा बच जाएगा." उन्होंने आगे जोर दिया, "हम पारदर्शिता के युग में हैं... यदि यह मनमाना है, तो व्यक्ति को चुनौती देने का अवसर मिलना चाहिए." एमएमआरडीए के वकील ने कहा कि एलएंडटी की अयोग्यता के लिए ‘अच्छे कारण’ थे और निविदा खंड में ‘अनावश्यक चुनौतियों’ से होने वाली देरी को रोकने के लिए पुरस्कार के बाद कारणों को साझा करने की अनुमति दी गई थी. रोहतगी ने कहा, "हम अयोग्यता के कारण बताएंगे."
एलएंडटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने महत्वपूर्ण लागत अंतर को उजागर किया और अन्य बोलीदाताओं के प्रोफाइल पर संकेत देते हुए कहा, "बाकी दो के नाम मेरे नाम से अधिक महत्वपूर्ण हैं... उनके नाम बहुत दिलचस्प हैं."
एमईआईएल के प्रोफाइल से विवाद और बढ़ गया है. हैदराबाद स्थित फर्म, जिसका मूल्य 67,500 करोड़ रुपये है, चुनावी बांड की एक प्रमुख खरीदार रही है. भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि एमईआईएल ने 966 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे, जिसमें से लगभग 60% (लगभग 584 करोड़ रुपये) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को गए थे.
वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड, एसईपीसी पावर और एवी ट्रांस प्राइवेट लिमिटेड जैसी सहयोगी कंपनियों के माध्यम से चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मेघा समूह का कुल दान 1,232 करोड़ रुपये है, जो इसे देश के सबसे बड़े राजनीतिक दानदाताओं में से एक बनाता है.
यूट्यूब
'हम कॉपीराइट के मामले में नहीं पड़ते' कहने वाले यूट्यूब ने आखिर क्यों बदली एक शख्स के लिए अपनी नीति?
इन दिनों भारत में यूट्यूब की नीतियों के चलते कॉपीराइट स्ट्राइक के जरिए अवैध वसूली का एक नया कारोबार फल-फूल रहा है. यूट्यूब ने शुरुआत में दावा किया कि वह ऐसे विवादों में "न्यायाधीश" की भूमिका नहीं निभाता, केवल कानूनी नोटिस की प्रक्रिया पूरी करता है. हालांकि अब नए सबूत सामने आए हैं, जो बताते हैं कि यूट्यूब वास्तव में कुछ मामलों में हस्तक्षेप करता है और "फेयर यूज़" की समीक्षा करता है. 'द रिपोटर्स कलेक्टिव' की जांच में यह सामने आया है कि कम से कम एक मामले में यूट्यूब ने एएनआई के टेकडाउन नोटिस को चुनौती दी और एजेंसी से ‘फेयर यूज़’ पर विचार करने को कहा है. इससे यह सवाल खड़ा होता है कि यूट्यूब किन मामलों में हस्तक्षेप करता है और बाकी को क्यों छोड़ देता है. ये ऐसे समय में सामने आया है, जब समाचार एजेंसी एएनआई यूट्यूबर्स पर कॉपीराइट स्ट्राइक के जरिए कार्रवाई कर रही है और यूट्यूब ने कहा है कि वह कॉपीराइट विवादों में न्यायाधीश की भूमिका नहीं निभाता. यह विवाद सामग्री मालिक और कथित उल्लंघनकर्ता के बीच सुलझाया जाना चाहिए. यूट्यूब को अब भारत में अपनी तीन-स्ट्राइक नीति और समीक्षा प्रक्रिया को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.
एक मामले में, जब यूट्यूबर रामित वर्मा को एएनआई ने 14 वीडियो पर कॉपीराइट स्ट्राइक भेजी, तो यूट्यूब ने एएनआई से सवाल पूछे, फेयर यूज़ के तहत वीडियो की वैधता पर विचार किया और अंततः रामित के वीडियो को हटाने से इनकार कर दिया. हालांकि यूट्यूब ने रामित के पक्ष में फैसला लिया, लेकिन उसने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह ऐसे मामलों में निर्णय कैसे लेता है. अन्य यूट्यूबर्स को इसी तरह के मामलों में राहत नहीं मिली, जिससे यूट्यूब की नीति को लेकर सवाल उठने लगे हैं. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, कई प्रमुख यूट्यूबर्स ने सार्वजनिक रूप से एएनआई की कॉपीराइट स्ट्राइक की नीति को 'जबरन वसूली' करार दिया. भारत के कॉपीराइट नियमों के तहत यदि कोई व्यक्ति मौलिक रूप से नया कंटेंट बना रहा है और उसमें किसी कॉपीराइटेड सामग्री का बहुत ही छोटा हिस्सा इस्तेमाल करता है, तो उसे ‘फेयर यूज़’ की छूट प्राप्त होती है. यूट्यूबर मोहक मंगल ने दावा किया कि एएनआई ने उनसे 48 लाख रुपये की मांग की, अन्यथा उनके चैनल को बंद करने की चेतावनी दी गई थी. अन्य यूट्यूबर्स ने भी इसी तरह के दावे किए. एएनआई ने पहले अपने रुख का बचाव करते हुए द कलेक्टिव को बताया था - “यह ज़बरदस्ती नहीं है, बल्कि संपत्ति की वैध सुरक्षा है.” यूट्यूब के नियमों के अनुसार, यदि किसी चैनल पर 90 दिनों के भीतर तीन कॉपीराइट उल्लंघन के दावे हो जाएँ, तो वह चैनल सात दिनों के भीतर बंद कर दिया जाता है. इस वजह से कंटेंट क्रिएटर्स को एएनआई को भारी रकम चुकानी पड़ती है.
भारत के कॉपीराइट कानून पुराने
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भारत के कॉपीराइट कानूनों को पुराना बताया है. उनका यह बयान एक यूट्यूबर द्वारा एक समाचार एजेंसी पर उसकी सामग्री के इस्तेमाल को लेकर लगाए गए आरोपों की पृष्ठभूमि में आया है. पवन खेड़ा ने अपने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर लिखा, “भारत का कॉपीराइट एक्ट डिजिटल युग के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पाया है. कॉपीराइट एक्ट, 1957 की धारा 52 आलोचना, टिप्पणी और समाचार के लिए 'फेयर डीलिंग' की अनुमति देती है, लेकिन कानून अब भी अस्पष्टता में फंसा हुआ है.
खेड़ा ने पूछा कि आखिर “फेयर यूज़” क्या है? इसकी सीमा क्या है? उन्होंने कहा कि इस अधिनियम में आखिरी बार संशोधन यूपीए-2 सरकार ने 2012 में किया था. तब से बीजेपी नासमझ और उदासीन रही है. वे डिजिटल इंडिया' जैसे चमकदार नारे बेचने में व्यस्त रहे, जबकि डिजिटल स्पेस को लोकतांत्रिक बनाने के लिए जरूरी बुनियादी सुधारों की अनदेखी की गई है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.