29/07/2025: मोदी संसद में नहीं दिखे, सिंदूर पर बहस शुरू | आधार, वोटर आईडी माना जाएगा एसआईआर के लिए | ट्रम्प 27वीं बार, जयशंकर का इंकार | कटहल में नशा ? | जब जंगल पंहुचा इंटरनेट
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
एसआईआर के लिए आधार, वोटर आईडी चलेगा
बिहार की मतदाता सूची प्रक्रिया पर संकट: दस्तावेज़ों की मांग, भ्रम और बहिष्करण का खतरा
कुत्ते के नाम से जारी हुआ आवास प्रमाण पत्र
बिहार में 70 हजार करोड़ का घपला? सीएजी की रिपोर्ट पर बवाल, कहां गए
जस्टिस वर्मा इन-हाउस जांच मामला: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा - जब जांच असंवैधानिक थी तो उन्होंने उसे स्वीकार क्यों किया?
कर्नल सोफिया कुरैशी को “आतंकियों की बहन” कहने वाले भाजपा मंत्री विजय शाह की ‘ऑनलाइन माफ़ी’ को सुप्रीम कोर्ट का अस्वीकार
श्रीनगर में तीन आतंकी मारे गए, पहलगाम में भूमिका की जांच
सिंधु जल संधि पर विदेश मंत्रालय के हाथ से बात लगभग निकल चुकी थी
पहले दिन मोदी नहीं आए
इधर, ट्रम्प का 27वीं बार दावा- ‘अगर मैं नहीं होता तो भारत-पाकिस्तान अब भी युद्ध कर रहे होते’
पी. चिदंबरम ने कहा - "पहलगाम हमले में पाकिस्तानी संलिप्तता का कोई सबूत नहीं"
सरकार के पास सीएए आवेदनों का हिसाब नहीं
शुभमन गिल ने टेस्ट सीरीज़ में चार शतक, इतिहास
गुड़गांव पुलिस ने बांग्लाभाषी प्रवासी मज़दूरों को रिहा किया, दस अब भी हिरासत में
कटहल खाकर ब्रेथ एनालाइज़र टेस्ट में फेल
मेघालय में 2 नये मेंढक मिले, जो टेडपोल नहीं बनते
नन की गिरफ्तारी पर विवाद, परिवार ने जबरन धर्मांतरण के आरोपों को खारिज किया
"जब मैं घर पहुंचा, तो हम बस रोते रहे. हमने मुश्किल से बात की; हम कई घंटों तक बस रोते रहे"
एयर इंडिया का विमान डीजीसीए ने किया ग्राउंड
एयर इंडिया की मेंटेनेंस में लापरवाही पर सवाल
अब बाराबंकी के मंदिर में भगदड़, दो की मौत
एडिनबरा विश्वविद्यालय का ‘खोपड़ी कक्ष’: नस्लीय विज्ञान की जटिल विरासत पर एक नजर
जब जंगल पहुंचा इंटरनेट: अमेज़न की एक जनजाति की बदलती दुनिया
बिहार
एसआईआर के लिए आधार, वोटर आईडी चलेगा
वकील राकेश द्विवेदी से जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि "पिछले आदेश में आधार और मतदाता परिचय पत्र (एपिक) को स्वीकार करने का अच्छा सुझाव दिया गया है. फिलहाल, इन दोनों दस्तावेजों (आधार और एपिक) को सही माना जा सकता है, क्योंकि ये प्रमाणित दस्तावेज़ हैं. इसलिए आप इन दोनों दस्तावेजों के साथ आगे बढ़ें."
“द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नकली दस्तावेजों के मामले को अलग-अलग प्रकरण की तरह देखा जा सकता है, क्योंकि "पृथ्वी पर कोई भी दस्तावेज नकली हो सकता है." जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि "बड़ी संख्या में दस्तावेजों को खारिज नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि बड़ी संख्या में शामिल किया जाना चाहिए."
याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग ने आधार और एपिक को मानने के मामले में कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग द्वारा दाखिल जवाबी हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने इन दोनों दस्तावेजों को अस्वीकार नहीं किया है. शंकरनारायणन ने जवाब दिया कि "व्यवहार में, जमीन पर, वे इन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं." तो, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "ऐसा लगता है कि उनकी स्थिति यह है कि जिन दस्तावेजों की सूची में प्रारंभ में आधार शामिल नहीं था, वह पूरी सूची नहीं है, और इस कोर्ट के निर्देश या सलाह के बाद, ये दस्तावेज भी स्वीकार किए जाएंगे."
चुनाव आयोग के वकील द्विवेदी ने कहा: "जहां तक राशन कार्ड का सवाल है, हमें इसे स्वीकार करने में दिक्कत है (बड़ी संख्या में फर्जीवाड़े के कारण). एपिक कार्ड की बात की जाए तो पूर्व-भरा हुआ नामांकन फॉर्म एपिक नंबर शामिल करता है. एपिक को माना जा रहा है, लेकिन क्योंकि मतदाता सूची सुधारी जा रही है, इसलिए एपिक निर्णायक नहीं हो सकता, क्योंकि यह एक विशेष गहन पुनरीक्षण है."
जस्टिस बागची ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति आधार के साथ नामांकन फॉर्म जमा करता है तो चुनाव आयोग इसे ध्यान में ले सकता है और आवश्यक होने पर उसके बाद नोटिस भी जारी कर सकता है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि "शायद हजार में एक मामले में, आपको एपिक कार्ड भी नकली मिल सकता है, जिसे मामले-दर-मामला देखा जाएगा." उन्होंने यह भी कहा कि "इस ज़मीन पर कोई भी दस्तावेज नकली हो सकता है, आधार भी. लेकिन फिलहाल, ये दोनों दस्तावेज (आधार और एपिक) प्रमाणित दस्तावेज हैं, इसलिए इन्हें सही माना जाता है. इसलिए आप इन दोनों दस्तावेजों के साथ आगे बढ़ें." द्विवेदी ने कहा कि चुनाव आयोग आधार को अनुमति दे रहा है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि आधार अधिनियम की धारा 9 के तहत, यह अपने आप में नागरिकता का प्रमाण नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि नामांकन फॉर्म में आधार का उल्लेख है.
बिहार की मतदाता सूची प्रक्रिया पर संकट: दस्तावेज़ों की मांग, भ्रम और बहिष्करण का खतरा
'कैरेवन' के लिए सागर और सिब्तैन हैदर की रिपोर्ट है कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर आम नागरिकों में भारी असमंजस और आक्रोश है. खासकर दलित, अल्पसंख्यक और विस्थापित तबकों को बिना पूर्व सूचना के दस्तावेज़ों की लंबी सूची देकर प्रक्रिया में शामिल किया जा रहा है, जबकि कई लोगों के पास वे दस्तावेज़ उपलब्ध ही नहीं हैं.
24 जून को आयोग ने अचानक नोटिस जारी कर 25 जून से SIR की शुरुआत कर दी. न तो जनता को ठीक से सूचित किया गया और न ही बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर्स) को उचित प्रशिक्षण मिला. कई ग्रामीण इलाकों में बीएलओ पहुंचे ही नहीं, और जहां पहुंचे भी, वहां लोगों को बताया गया कि आधार और वोटर आईडी मान्य नहीं हैं, बल्कि 11 अलग-अलग प्रकार के दस्तावेज़ों की मांग की गई, जिनमें जमीन के कागज़, मैट्रिक प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, पासबुक आदि शामिल हैं.
लोगों का कहना है कि वे 2003 से वोट डालते आ रहे हैं. उनका नाम पहले से वोटर लिस्ट में है, फिर भी अब उनसे नागरिकता और पहचान साबित करने को कहा जा रहा है. एक व्यक्ति ने सवाल उठाया- “सरकार ने आधार कार्ड बनवाया, अब वही मान्य नहीं? फिर बनाया क्यों गया था?”
बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो बाढ़, विस्थापन या गरीबी के कारण दस्तावेज़ नहीं जुटा पाए हैं. खासतौर पर दलित समुदाय, मुसलमान, प्रवासी मजदूर और अनपढ़ लोग इस प्रक्रिया से बाहर हो सकते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि यह जानबूझकर किया जा रहा है. “यह सिर्फ मुस्लिमों के वोट काटने के लिए हो रहा है,” एक नागरिक ने कहा.
कुत्ते के नाम से जारी हुआ आवास प्रमाण पत्र

बिहार में 70 हजार करोड़ का घपला? सीएजी की रिपोर्ट पर बवाल, कहां गए
बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सीएजी (भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने राज्य की वित्तीय व्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर लेखांकन की कमियों को उजागर किया है. सीएजी रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 70,877.61 करोड़ रूपये के अधूरे दस्तावेजों के बिना यह सुनिश्चित करना असंभव है कि ये फंड अपने नियत कार्यों में सही तरीके से खर्च हुए हैं या नहीं. इस रिकॉर्ड के अभाव में धन के गबन, भ्रष्टाचार और फंड के अन्यायपूर्ण उपयोग का खतरा बना हुआ है. साथ ही, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि “विस्तृत समाश्रित बिल" जो "अकाट्य व्यय बिल" के विरुद्ध जमा होना आवश्यक हैं, उनके भी 9,205.76 करोड़ रूपये के बिल लंबित हैं, जो वित्तीय अनुशासन का उल्लंघन है और धोखाधड़ी का खतरा बढ़ाता है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में हिमांशु हर्ष ने सीएजी रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि 31 मार्च 2024 तक, 49,649 उपयोग प्रमाणपत्र, जिनका कुल मूल्य 70,877.61 करोड़ रूपये है, बिहार के महालेखा परीक्षक (लेखांकन और अधिकारों) को प्रस्तुत नहीं किए गए थे. ये प्रमाणपत्र यह सुनिश्चित करते हैं कि आवंटित संसाधनों का उपयोग नियत उद्देश्य के लिए हुआ है.
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, उपयोग प्रमाणपत्रों का प्रस्तुत नहीं किया जाना बिहार ट्रेजरी कोड के नियम 271(ई) का उल्लंघन है, जो विभागों को वित्तीय वर्ष के 18 महीनों के भीतर ये दस्तावेज जमा करने का निर्देश देता है. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि बिहार सरकार ने राष्ट्रीय लेखांकन मानकों का पालन नहीं किया.
राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से सीएजी की ताजा रिपोर्ट बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकती है. विपक्षी दलों ने रिपोर्ट के आधार पर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाना शुरू कर दिए हैं.
बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मोदी-नीतीश सरकार के दौरान 70,000 करोड़ का घोटाला हुआ है और सीएजी ने इस चोरी को उजागर किया है. उन्होंने इसे सृजन घोटाले के समान बताया और कहा कि अब इसे दिल्ली से पटना तक सम्हालने की कोशिशें तेज हो गई हैं. कांग्रेस प्रवक्ता ज्ञान रंजन गुप्ता ने कहा, "बिहार में गिरते हुए पुल, पेपर लीक, मिडडे मील योजना में अनियमितताएं और सड़कों पर गड्ढे साफ़ तौर पर दिखाते हैं कि बिहार की डबल इंजन सरकार करदाताओं के पैसे की मलाई उठा रही है. सीएजी रिपोर्ट ने साबित किया है कि बिहार की डबल इंजन सरकार 50% कमीशन लेकर ठेकों का आवंटन कर रही है. अगर सीएजी पिछले 18 सालों का आडिट करे तो दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला उजागर होगा.
जस्टिस वर्मा इन-हाउस जांच मामला: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा - जब जांच असंवैधानिक थी तो उन्होंने उसे स्वीकार क्यों किया?
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और ए.जी. मसीह की पीठ ने पूछा, “जब आपको यह प्रक्रिया असंवैधानिक लगती है, तो आपने उसे स्वीकार ही क्यों किया? क्या उस समय आपको अनुकूल परिणाम की उम्मीद थी?” यह प्रश्न उस समय सामने आया जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस समय उठाए गए कदम, जिसमें ‘जली हुई करेंसी’ के दृश्य और ऑडियो सार्वजनिक करना शामिल था, ने जस्टिस वर्मा को जनता की नजरों में दोषी बना दिया.
कपिल सिब्बल सिब्बल ने कहा — “पहले दिन से ही उन्हें दोषी बना दिया गया. जनता में हंगामा हुआ, मीडिया में नाम आया, आरोप लगे और जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई. वह पहले दिन से ही सार्वजनिक रूप से दोषी ठहरा दिए गए.”
उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अंतर्गत आती है और यह प्रक्रिया जजेस इंक्वायरी एक्ट के तहत होनी चाहिए थी, न कि किसी इन-हाउस प्रक्रिया के माध्यम से.
सिब्बल ने कहा कि एक वर्तमान हाईकोर्ट न्यायाधीश से संबंधित संवेदनशील सामग्री को सार्वजनिक करना और उसके आचरण पर चर्चा करना संविधान के अनुच्छेद 121 का उल्लंघन है. “संसद में भी न्यायाधीशों पर चर्चा तभी हो सकती है जब सिद्ध दुराचार हो. यहां तो उन्हें पहले ही दोषी ठहरा दिया गया.” उन्होंने ‘दुराचार’ के आरोप को भी चुनौती दी और कहा कि “अगर किसी बाहरी कमरे में नकद मिला, तो न्यायाधीश के व्यवहार का उससे क्या लेना-देना? यह कभी सिद्ध नहीं हुआ कि पैसा उनका था.” सिब्बल ने कहा कि न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया अब राजनीतिक रंग ले चुकी है.
इस पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “पर हटाने की प्रक्रिया तो वैसे भी राजनीतिक होती है.” सिब्बल ने जवाब दिया, “हां, लेकिन संसद के अंदर, बाहर नहीं.”
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि “तुरंत सवाल क्यों नहीं उठाए? आपने ये सारे मुद्दे उसी समय क्यों नहीं उठाए, जब आपने जांच समिति की प्रक्रिया को स्वीकार किया?”
सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि मई में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना अवैध था.
इस पर न्यायालय ने कहा कि “राष्ट्रपति को भेजना, जो कि नियुक्तिकर्ता हैं, या प्रधानमंत्री को भेजना, जो मंत्री परिषद के मुखिया हैं — इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है. इससे यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि मुख्य न्यायाधीश संसद को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं.” अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल को जांच समिति की रिपोर्ट रिकॉर्ड पर लाने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई 30 जुलाई को तय की.
कर्नल सोफिया कुरैशी को “आतंकियों की बहन” कहने वाले भाजपा मंत्री विजय शाह की ‘ऑनलाइन माफ़ी’ को सुप्रीम कोर्ट का अस्वीकार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के मंत्री कुंवर विजय शाह को कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ "आतंकवादियों की बहन" वाली टिप्पणी के बाद उचित माफी न मांगे जाने पर फटकार लगाई. जस्टिस सूर्यकांत ने शाह के वकील से कहा, “इस तरह की ऑनलाइन माफी का क्या मतलब है? यह आदमी हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहा है...यह वही बयान है जो उसने पहले दिन दिया था...यह रिकार्ड में कहां है? ऑनलाइन माफीनामा उनकी मंशा को दर्शाता है, इससे हमें उनकी सद्भावना पर और भी ज्यादा शक होता है."
“लाइव लॉ” की खबर के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच शाह द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. पहली, जिसमें मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस स्वत: संज्ञान आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें उनकी कर्नल सोफिया कुरैशी को "आतंकवादियों की बहन" कहने वाली टिप्पणी के संदर्भ में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया था; दूसरी, 15 मई के हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ जिसमें संबंधित बेंच ने शाह के खिलाफ दर्ज एफआईआर से असंतुष्टि जताई और कहा कि जांच निष्पक्ष रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए वह इसकी निगरानी करेगा.
शाह की ओर से सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर ने कोर्ट को अवगत कराया कि शाह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की जा रही जांच में सहयोग कर रहे हैं. परमेश्वर ने यह भी जोड़ा कि माफी पत्र सोमवार तक रिकॉर्ड पर पेश कर दिया जाएगा. जब उन्होंने बताया कि एसआईटी ने शाह का बयान दर्ज किया है, तो जस्टिस सूर्यकांत ने कोर्ट में मौजूद एसआईटी सदस्य से यह सवाल किया कि शाह का बयान दर्ज करना, उन लोगों के बजाय जिन्हें पीड़ित या आहत किया गया, किस महत्व का है?
"उनका बयान दर्ज करना इतना महत्वपूर्ण क्यों है? जिन लोगों के साथ ज्यादती हुई है, उनका बयान दर्ज किया जाना चाहिए," जस्टिस सूर्यकांत ने कहा. इसके बाद, बेंच ने एसआईटी सदस्य से पूछा कि जांच पूरी करने के लिए कितना समय लगेगा? इस पर एसआईटी सदस्य ने बताया कि जांच विधिक सीमा 90 दिनों के भीतर पूरी कर ली जाएगी, जो 13 अगस्त को समाप्त हो रही है. उन्होंने यह भी अवगत कराया कि एसआईटी ने 27 लोगों के बयान दर्ज किए हैं और कुछ वीडियो क्लिप्स की जांच की है. इसलिए, बेंच ने इस मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को सूचीबद्ध की.
इस बीच कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर द्वारा दायर एक अन्य याचिका, जिसमें शाह को मंत्री पद से हटाने की मांग की गई थी, भी अदालत के समक्ष सूचीबद्ध थी. हालांकि इस याचिका को खारिज कर दिया गया, लेकिन याची को उपयुक्त मंच पर जाने की स्वतंत्रता दी गई. साथ ही, अदालत ने एसआईटी को निर्देश दिया कि वह याचिका में उठाए गए घटनाक्रमों की जांच करे और उनके संबंध में एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करे.
श्रीनगर में तीन आतंकी मारे गए, पहलगाम में भूमिका की जांच
सेना ने बताया कि उसने सोमवार को श्रीनगर के लिडवस इलाके में "ऑपरेशन महादेव" के दौरान तीन आतंकवादियों को मार गिराया. मारे गए आतंकवादियों की 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले में, संभावित भूमिका की जांच की जा रही है. चिनार कॉर्प्स के एक सेना प्रवक्ता ने कहा कि लिडवस में ऑपरेशन के दौरान आतंकवादियों ने गोलीबारी की. लिडवस दो तरफ से घने जंगलों से घिरा हुआ है और यह डचीगाम वन क्षेत्र के ऊपरी हिस्से में स्थित है. लेकिन तीनों आतंकी मार दिए गए.
पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग की नई किताब
सिंधु जल संधि पर विदेश मंत्रालय के हाथ से बात लगभग निकल चुकी थी
विदेश मंत्रालय 2016 में पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर बातचीत के दौरान लगभग “मामला हाथ से खो बैठा था”, जब विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की विश्व बैंक के साथ तनातनी हो गई थी. यह दावा पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग, जो 2014-2017 तक विश्व बैंक में भारत द्वारा नियुक्त कार्यकारी निदेशक रहे, ने अपनी नई पुस्तक में किया है. पुस्तक में पहली बार बताया गया है कि किस तरह मोदी सरकार और विश्व बैंक अध्यक्ष जिम किम के बीच किशनगंगा जलविद्युत परियोजना को लेकर तनाव पैदा हुआ था.
मुख्य विवाद यह था कि विश्व बैंक, जिसकी भारत-पाकिस्तान के बीच विवादों में भूमिका सीमित है, वह पाकिस्तान की मांग के अनुसार “मध्यस्थता न्यायालय” (कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन) नियुक्त करेगा या भारत की इच्छा अनुसार “तटस्थ विशेषज्ञ” नियुक्त करेगा.
अपनी पहली किताब में वित्त मंत्रालय से अपनी असमय विदाई का विवादास्पद ब्यौरा देने के बाद, गर्ग ने अपनी नई पुस्तक “नो, मिनिस्टर: नेविगेटिंग पॉवर, पॉलिटिक्स एंड ब्यूरोक्रेसी विथ ए स्टीली रिजॉल्व” में विदेश मंत्रालय पर निशाना साधा है. उन्होंने लिखा है कि 2016 में सिंधु जल समझौता वार्ता की प्रारंभिक प्रक्रिया में उन्हें एक तरफ कर दिया गया था. वे यह भी दावा करते हैं कि उन्हें “इस मामले से दूर रहने” के लिए कहा गया था और सिर्फ उन्हीं बैठकों में भाग लेने को कहा गया था, जिनका नेतृत्व भारत के उप-मिशन प्रमुख तरणजीत संधू (बाद में अमेरिका में भारत के राजदूत, अब राजनीति में सक्रिय) करते थे.
संसद में पहलगाम / सिंदूर
पहले दिन मोदी नहीं आए
अमित शाह ने लोकसभा में ट्रम्प को दूसरे देश का व्यक्ति बताया और विदेश मंत्री जयशंकर को ट्रम्प से ज्यादा विश्वसनीय
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले को हुए लगभग 100 दिन बीत चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार जिम्मेदार आतंकवादियों को गिरफ्तार करने में नाकाम रही है. पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर 16 घंटे की बहस में विपक्ष की तरफ से शुरुआत करते हुए कांग्रेस के उप नेता गोगोई ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह को इस सुरक्षा चूक की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, जिसकी वजह से यह हमला हुआ. उन्होंने कहा, “देश और पीड़ित परिवार यह जानना चाहता है कि आतंकवादियों को पकड़ने में सरकार असमर्थ कैसे रही, आतंकवादियों को छिपाने और सूचना देने वाले कौन थे, और 100 दिन बाद भी सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है. उन्होंने कहा कि “आज आपके पास ड्रोन हैं, पेगासस और सुरक्षा बल हैं, इसके बावजूद आप आतंकवादियों को आप पकड़ नहीं सके. यह कैसी व्यवस्था है?”
गोगोई ने कहा, “अमित शाह जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के पीछे छिप नहीं सकते. यदि इस मामले में किसी को जिम्मेदारी लेना चाहिए तो वे हैं गृह मंत्री.” उन्होंने आतंकवादी हमले के बाद पहलगाम नहीं जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी आलोचना की. कहा- हमले के बाद मोदी बिहार में एक सरकारी कार्यक्रम में गए और वहां उन्होंने एक राजनीतिक रैली को संबोधित किया. अगर हमले के बाद किसी ने पहलगाम का दौरा किया, तो वह हैं हमारे नेता राहुल गांधी.” गोगोई ने दावा किया कि यह हमला पाकिस्तान द्वारा किया गया था, लेकिन इसके पीछे चीन की साजिश थी. “मैं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से पूछना चाहता हूं जब आप चीन को लाल आंख दिखाने का दावा करते हो तो आपने अपने भाषण में चीन की चर्चा क्यों नहीं की?”
ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान मोदी आज लोकसभा में उपस्थित नहीं थे. और, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बार-बार किये जा रहे इस दावे पर चुप्पी बनाए रखी कि भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम उन्होंने कराया था. लेकिन, राजनाथ ने नई दिल्ली का यह रुख बार-बार दोहराया कि संघर्ष तब ही समाप्त हुआ, जब भारत ने अपने उद्देश्य को हासिल कर लिया. उन्होंने कहा, “यह कहना या मानना कि 'ऑपरेशन किसी दबाव में रोका गया था', निराधार और पूरी तरह गलत है.” उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग यह पूछ रहे हैं कि भारत ने कितने फाइटर जेट खोए, वे यह नहीं पूछते कि पाकिस्तान ने कितने विमान गंवाए. साथ ही उन्होंने दावा किया कि “जिन आतंकवादियों ने हमारे बहनों-बेटियों का सिंदूर मिटाया था, उन्हें हमारी फौज ने अच्छी तरह से सजा दी है.”
बहस के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी पहली बार स्पष्ट करते हुए कहा कि “22 अप्रैल (पहलगाम आतंकी हमले का दिन) से 17 जून (जब मोदी-ट्रम्प के बीच जी-7 शिखर सम्मेलन को लेकर बात हुई), के बीच किसी भी दिन प्रधानमंत्री मोदी और ट्रम्प के बीच फोन पर कोई बातचीत नहीं हुई.” जयशंकर ने ट्रम्प के उस दावे को खारिज कर दिया कि ट्रेड का दबाव बनाकर ट्रम्प ने संघर्षविराम करवाया. जयशंकर ने कहा, “किसी भी बातचीत में, किसी भी स्तर पर अमेरिका से ट्रेड का लिंक नहीं किया गया.” जयशंकर ने बताया कि आतंकवाद को जवाब देने में पाकिस्तान ने ही संघर्षविराम का प्रस्ताव दिया, और भारत ने केवल सैन्य चैनल (डीजीएमओ) के ज़रिए उस पर विचार किया.
विपक्ष के विरोध के बीच अमित शाह ने जयशंकर का बचाव करते हुए विपक्ष पर तंज कसा कि वे ‘किसी दूसरे देश के व्यक्ति पर विश्वास कर रहे हैं, अपने ही मंत्री की बजाय.’ उन्होंने कहा, “क्या आप अपने ही विदेश मंत्री पर विश्वास नहीं करेंगे?” दूसरे देश के व्यक्ति यानी डोनाल्ड ट्रम्प.
इधर, ट्रम्प का 27वीं बार दावा- ‘अगर मैं नहीं होता तो भारत-पाकिस्तान अब भी युद्ध कर रहे होते’
विदेश मंत्री जयशंकर लाख कहें कि ट्रम्प की मध्यस्थता से भारत-पकिस्तान के बीच संघर्ष विराम नहीं हुआ, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति मानने को तैयार नहीं हैं. ट्रम्प सोमवार को 27वीं बार फिर दावा किया कि उनकी बदौलत ही दोनों मुल्कों के बीच लड़ाई रुकी. उन्होंने कहा, “भारत-पाकिस्तान अभी भी एक-दूसरे से युद्ध कर रहे होते, यदि उनका हस्तक्षेप नहीं होता.”ट्रम्प ने सोमवार को यह बयान स्कॉटलैंड में टर्नबेरी गोल्फ कोर्स पर यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के साथ वार्ता शुरू करने से पहले दिया. दोहराया कि उन्होंने व्यापार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया ताकि मई की शुरुआत में नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच लड़ाई बंद हो जाए, जो आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या के बाद हुई थी. उन्होंने कहा, "अगर मैं नहीं होता, तो अभी छह बड़े युद्ध चल रहे होते. भारत, पाकिस्तान से लड़ रहा होता."
पी. चिदंबरम ने कहा - "पहलगाम हमले में पाकिस्तानी संलिप्तता का कोई सबूत नहीं"
'द क्विंट' को दिए गए एक इंटरव्यू में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने एक साक्षात्कार में केंद्र की मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए पहलगाम आतंकी हमले को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने सरकार द्वारा हमलावरों के पाकिस्तान से आने के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा, “आप यह क्यों मानते हैं कि वे पाकिस्तान से आए थे? इसका कोई सबूत नहीं है.” चिदंबरम ने यह भी कहा कि “घरेलू आतंकवादियों” की भूमिका की संभावना को बिना ठोस प्रमाण के खारिज नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान भारत को हुए नुकसान को छिपा रही है. चिदंबरम के अनुसार, “किसी भी सैन्य अभियान में हताहतों को स्वीकार करना युद्ध का अभिन्न हिस्सा है.” उनके इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी प्रवक्ताओं ने कांग्रेस पर “आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्त नीति को कमजोर करने” का आरोप लगाया और कहा कि ऐसे बयानों से देश की सुरक्षा नीति को नुकसान पहुंचता है. हालांकि, चिदंबरम अपने बयान पर अडिग रहे. उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि देश में सवाल पूछना देशद्रोह नहीं है और अगर सच्चाई सामने लाने के लिए सरकार से जवाब मांगा जाए तो उसे राष्ट्रविरोधी गतिविधि नहीं माना जा सकता. बहरहाल, जहां विपक्ष सरकार से पारदर्शिता की मांग कर रहा है, वहीं सत्तारूढ़ दल इस पर राष्ट्रभक्ति बनाम राष्ट्रविरोध की बहस को और तेज़ करने में जुट गया है.
सरकार के पास सीएए आवेदनों का हिसाब नहीं
गृह मंत्रालय का कहना है कि उसके पास नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के तहत अपनी ही वेबसाइट पर आए आवेदनों का कोई हिसाब-किताब नहीं है. द हिंदू अखबार ने सूचना के अधिकार के तहत मंत्रालय से पूछा था कि उसके पोर्टल पर कितने लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया और कानून लागू होने के बाद से कितनों को इसका लाभ मिला. मंत्रालय ने यह जानकारी देने से इनकार कर दिया. केंद्रीय सूचना आयोग ने भी मंत्रालय के इस इनकार को सही ठहराया है. द हिंदू के लिए विजेता सिंह और अरूण दीप की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया ने इस महीने की शुरुआत में फैसला सुनाया कि मंत्रालय का जवाब - कि मांगी गई जानकारी "जैसी चाहिए वैसी नहीं रखी जा रही है" - "खुद ही सब कुछ साफ करता है". इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, पत्रकारों में से एक ने कहा, "... हमने जो पूछा था वह बहुत सीधा था: आपको अपनी वेबसाइट पर कितने CAA आवेदन मिले, जिसे आप खुद चलाते हैं?".
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर डेटा देने से गृह मंत्रालय के इनकार को केंद्रीय सूचना आयोग ने सही ठहराया है. द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब अखबार ने मंत्रालय के पोर्टल पर आए CAA आवेदनों की संख्या जाननी चाही, तो मंत्रालय ने कहा कि वह इस तरह से डेटा नहीं रखता. इस जवाब के खिलाफ अखबार की अपील पर मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया ने मंत्रालय के पक्ष में फैसला दिया. विजिता सिंह और अरूण दीप ने रिपोर्ट किया है कि सामरिया ने मंत्रालय के जवाब को "आत्म-व्याख्यात्मक" माना. यह मामला सरकार द्वारा अपनी ही प्रमुख योजनाओं के आंकड़े रखने में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है. हालांकि मंत्रालय डेटा प्रदान करने से इनकार कर रहा है, लेकिन सीएए के लाभार्थियों की संख्या को लेकर अलग-अलग दावे किए गए हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने दिसंबर 2019 में कहा था कि "लाखों और करोड़ों" लोग सीएए से लाभान्वित होंगे. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 2 अप्रैल, 2025 को राज्यसभा में कहा कि "हजारों को नागरिकता दी गई". पश्चिम बंगाल के एक भाजपा सांसद ने कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में अनुमानित 1 लाख लाभार्थियों में से 100 से भी कम लोगों को सीएए के तहत नागरिकता मिली है. सीएए नियम 11 मार्च, 2024 को अधिसूचित किए गए थे, ताकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई समुदायों के undocumented सदस्यों को नागरिकता प्रदान की जा सके.
कार्टून / मंजुल
शुभमन गिल ने टेस्ट सीरीज़ में चार शतक, इतिहास
भारतीय क्रिकेट टीम के युवा कप्तान शुभमन गिल ने इंग्लैंड के खिलाफ मौजूदा टेस्ट सीरीज़ में चार शतक लगाकर इतिहास रच दिया है. वे ऐसा करने वाले भारत के केवल तीसरे बल्लेबाज़ बन गए हैं. उनसे पहले यह कारनामा सुनील गावस्कर (वेस्टइंडीज़ के खिलाफ 1971 और 1978-79 में) और विराट कोहली (ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2014-15 में) कर चुके हैं.
इतना ही नहीं, गिल अब उन गिने-चुने कप्तानों की सूची में भी शामिल हो गए हैं जिन्होंने एक टेस्ट सीरीज़ में चार शतक लगाए हों. उनसे पहले डॉन ब्रैडमैन (भारत के खिलाफ 1947-48 में) और सुनील गावस्कर ही यह उपलब्धि हासिल कर पाए थे. यह प्रदर्शन गिल को न सिर्फ तकनीकी रूप से परिपक्व बल्लेबाज़ के रूप में स्थापित करता है, बल्कि एक प्रेरक कप्तान के रूप में भी उनकी पहचान को मजबूत करता है.
गुड़गांव पुलिस ने बांग्लाभाषी प्रवासी मज़दूरों को रिहा किया, दस अब भी हिरासत में
'द वायर' की रिपोर्ट है कि गुड़गांव में असम और पश्चिम बंगाल के बांग्लाभाषी प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लेने के कुछ दिनों बाद रिहा कर दिया है. हिरासत में लिए गए प्रवासियों की संख्या सैकड़ों में थी, जिनमें कूड़ा बीनने वाले, सफाईकर्मी और घरेलू सहायक शामिल थे. लेकिन प्रशासन ने दस लोगों को ‘बांग्लादेशी नागरिक’ बताते हुए रिहा नहीं किया है.
गुड़गांव पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) संदीप कुमार ने पुष्टि की कि दस लोगों को छोड़कर बाकी सभी को रिहा कर दिया गया है. उनका दावा है कि ये दस लोग बांग्लादेश से आए बिना दस्तावेज वाले अवैध प्रवासी हैं और उनके देश वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. उन्होंने कहा, ‘हिरासत में अब सिर्फ दस लोग बचे हैं, जिनकी पहचान बांग्लादेशी नागरिकों के रूप में हुई है.’ हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि कुल कितने लोगों को हिरासत में लिया गया था और बाद में रिहा किया गया.
जब 'द वायर' ने पूछा कि किन आधारों पर इन दस लोगों को अवैध प्रवासी माना गया जबकि बाकी को रिहा कर दिया गया, तब संदीप कुमार ने बताया, ‘इन दस लोगों के पास कुछ दस्तावेज हैं जो साबित करते हैं कि वे बांग्लादेश से हैं.’ यह पूछे जाने पर कि क्या अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान और निर्वासन की यह मुहिम आगे भी जारी रहेगी या तेज़ की जाएगी, उन्होंने जवाब दिया, ‘सत्यापन चल रहा है, और सिर्फ़ उन्हीं को उठाया जाएगा जो बेहद संदिग्ध हैं.’ जब पूछा गया कि जो ‘सैकड़ों लोग’ पहले हिरासत में लिए गए और फिर उन्हें रिहा किया गया, क्या वे भी ‘बेहद संदिग्ध’ थे, तब कुमार ने इस आंकड़े पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह संख्या कहां से आई, और बताया कि अभियान जारी है और फिलहाल कोई आधिकारिक आंकड़ा साझा नहीं किया जा सकता.
रिहाई की प्रक्रिया के बारे में उन्होंने कहा, ‘हमने उन जिलों के प्रशासन से संपर्क किया जिनके बारे में हिरासत में लिए गए लोगों ने दावा किया था कि वे वहां के निवासी हैं. संबंधित जिलों के अधिकारियों द्वारा उनकी नागरिकता की पुष्टि के बाद हमने उन्हें रिहा कर दिया.’ यह रिहाइयां विपक्षी नेताओं और नागरिक समाज की ओर से इस कार्रवाई की आलोचना और लगातार सवाल उठाए जाने के बीच हुई है.
गुड़गांव में हुई इस कार्रवाई को ‘भाषाई आतंकवाद’ बताते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक्स पर लिखा कि वह इन ‘डबल इंजन की सरकारों द्वारा बंगालियों पर किए जा रहे भयानक अत्याचारों’ को देखकर स्तब्ध हैं. उन्होंने कहा, ‘आप क्या साबित करना चाहते हैं? यह बेहद अमानवीय और भयावह है. हम इसे सहन नहीं करेंगे.’ एक वीडियो संदेश में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस अभियान की तुलना ‘नाजी जर्मनी में जीने’ से की.
कटहल खाकर ब्रेथ एनालाइज़र टेस्ट में फेल
केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (KSRTC) के कई ड्राइवर हाल ही में रुटीन ब्रेथ एनालाइज़र टेस्ट में फेल हो गए, जबकि उन्होंने शराब का सेवन नहीं किया था. ड्राइवरों ने अपने सीनियर्स से कहकर खून की जांच करवाने की मांग की. जांच में सामने आया कि उन्होंने डिपो में अपने एक साथी के द्वारा लाया गया मीठा कटहल खाया था, जिससे उनकी सांस में एल्कोहल की झूठी मात्रा दर्ज हुई. बाकायदा एक व्यक्ति जिसकी पहले रीडिंग सामान्य दर्ज की गई, उसे कटहल खिलाकर जांच की गई तो रीडिंग बहुत हाई आई. बाद में किए गए ब्लड टेस्ट और विस्तृत विश्लेषण से पुष्टि हुई कि फल में मौजूद किण्वित तत्वों के कारण यह ग़लत नतीजा आया.
पश्चिम बंगाल की ओबीसी सूची बनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटाई : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के पिछले महीने के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों की एक नई सूची बनाने के प्रयासों को रोक दिया गया था. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने उच्च न्यायालय के फैसले को "आश्चर्यजनक" और "प्रथम दृष्टया गलत" बताया. उन्होंने उच्च न्यायालय के इस तर्क से असहमति जताई कि आरक्षण के मामलों में विधायी भागीदारी अनिवार्य है. राज्य सरकार ने पिछले साल मई में उच्च न्यायालय द्वारा लाखों ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द किए जाने के बाद एक नई ओबीसी सूची बनाने का फैसला किया था.
मेघालय में 2 नये मेंढक मिले, जो टेडपोल नहीं बनते
मेघालय में सीधे विकसित होने वाले मेंढकों की दो नई प्रजातियों की खोज की गई है. इनमें से एक का नाम लोकप्रिय खासी चावल-और-मांस व्यंजन के नाम पर 'रोरचेस्टेस जादो' रखा गया है, और दूसरे का नाम खासी शब्द 'फ्रॉग' का उपयोग करते हुए 'रोरचेस्टेस जैकोइड' रखा गया है. ये अनोखे उभयचर टैडपोल चरण को छोड़कर सीधे छोटे मेंढकों के रूप में अंडे से निकलते हैं.
नन की गिरफ्तारी पर विवाद, परिवार ने जबरन धर्मांतरण के आरोपों को खारिज किया
छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा तस्करी और कुछ आदिवासी महिलाओं के जबरन धर्मांतरण के आरोप में दो ननों सहित तीन लोगों को गिरफ्तार करने के कुछ दिनों बाद, महिलाओं के परिवार के सदस्यों में पुलिस के दावे का खंडन किया है. परिजनों का कहना है कि महिलाएं अपनी मर्जी से ननों और एक व्यक्ति के साथ नारायणपुर से गई थीं और वे निर्दोष हैं. हालांकि, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सोमवार (28 जुलाई, 2025) को गिरफ्तारी का समर्थन करते हुए कहा कि "प्रलोभन के माध्यम से, गिरफ्तार व्यक्तियों द्वारा मानव तस्करी और धर्मांतरण में शामिल होने का प्रयास किया जा रहा था". इस गिरफ्तारी के खिलाफ सोमवार को दिल्ली से लेकर केरल तक व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए.
द न्यूज मिनट (टीएनएम) की रिपोर्ट के अनुसार, नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस, और नारायणपुर के सुकमन मंडावी को 25 जुलाई को एक स्थानीय बजरंग दल के सदस्य रवि निगम द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद गिरफ्तार किया गया था. रायपुर आर्चडायसिस के फादर सेबेस्टियन पूमट्टम के अनुसार, नन महिलाओं को घरेलू काम के लिए आगरा के कॉन्वेंट में रखने के लिए साथ ले जा रही थीं.
द हिंदू से फोन पर बात करते हुए, दो महिलाओं की बहनों ने जबरन धर्मांतरण के दावों को खारिज कर दिया और कहा कि उन्होंने खुद नौकरी के लिए आगरा ले जाने की सहमति दी थी. एक महिला की बड़ी बहन ने कहा, "हमारे माता-पिता अब जीवित नहीं हैं और मैंने अपनी बहन को ननों के साथ भेजा ताकि वह आगरा में नर्सिंग की नौकरी कर सके. नन निर्दोष हैं. यहां तक कि लड़के [मंडावी] को भी फंसाया जा रहा है, हमने अपनी बहनों को उसके साथ भेजा था". एक अन्य महिला की छोटी बहन ने भी ननों की रिहाई की मांग की और कहा कि उसका परिवार पांच साल पहले ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया था. इस घटनाक्रम के बाद, तीनों परिवारों ने 26 जुलाई को नारायणपुर पुलिस को एक लिखित बयान दिया कि वे जानते थे कि महिलाओं को नौकरी के लिए ले जाया जा रहा है.
मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामला 2006
"जब मैं घर पहुंचा, तो हम बस रोते रहे. हमने मुश्किल से बात की; हम कई घंटों तक बस रोते रहे"
मौत की सज़ा से लेकर बेगुनाही तक: एहतेशाम सिद्दीकी की 19 साल लम्बी कहानी
नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी यार्ड के अंदर बना 80 वर्ग फुट का एक छोटा सा कमरा लगभग एक दशक तक 42 वर्षीय एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी का "घर" था. 2006 के मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में जब 2015 में एक विशेष मकोका (MCOCA) अदालत ने सिद्दीकी सहित पांच लोगों को मौत की सज़ा और सात को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई, तो उन्हें नागपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया. लगभग 19 साल सलाखों के पीछे बिताने के बाद, 21 जुलाई को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सभी 12 लोगों को बाइज़्ज़त बरी कर दिया, जिसके बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. द वायर में शांता सुकन्या ने इस पर लम्बी रिपोर्ट लिखी है.
सिद्दीकी अपने एक दशक लंबे एकांत कारावास को एक ऐसी जगह के रूप में वर्णित करते हैं जहाँ वे "सुरक्षित" महसूस करते थे. वे कहते हैं, "मौजूदा राजनीतिक माहौल में, खासकर जब हम पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा हो, तो जेल में सुरक्षित रहने का यही एकमात्र तरीका था". भारत में एकांत कारावास असंवैधानिक है, लेकिन सिद्दीकी बताते हैं कि यह एक आम प्रथा है. उन्होंने कहा, "जैसे ही किसी व्यक्ति को मौत की सज़ा दी जाती है, जेल अधिकारी उन्हें फांसी यार्ड में स्थानांतरित कर देते हैं". फांसी यार्ड में आने वाले नए कैदियों को कानूनी प्रक्रिया समझाना, सलाह देना और उन्हें शांत करना एहतेशाम जैसे दूसरे कैदियों का कर्तव्य बन गया था. वे याद करते हैं, "लगभग सभी को अंततः उच्च न्यायालयों में उनकी अपीलों में बरी कर दिया गया".
सिद्दीकी का यह अवलोकन भारतीय न्यायिक प्रणाली पर हुए अध्ययनों से मेल खाता है. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी-दिल्ली की "प्रोजेक्ट 39A" की रिपोर्ट ने लंबे समय से यह स्थापित किया है कि निचली अदालतों द्वारा दी गई मौत की सज़ाएं अक्सर उच्च न्यायालयों में आजीवन कारावास में बदल जाती हैं या कई मामलों में बरी होने में समाप्त होती हैं. सिद्दीकी शिंदे परिवार के पांच लोगों के साथ अपनी बातचीत को याद करते हैं, जिन्हें एक बलात्कार और हत्या के मामले में निचली अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. सिद्दीकी कहते हैं, "वे मुझसे अपने मामले के बारे में पूछते रहते थे, और मैं उन्हें विश्वास दिलाता रहता था कि वे जल्द ही बाहर आ जाएंगे. यह साधारण सी बात उन्हें बहुत खुश कर देती थी".
सिद्दीकी कहते हैं कि उन्हें और उनके साथियों को इसी उम्मीद ने जीवित रखा कि एक दिन उनका बेगुनाह साबित होना तय है. वे पूछते हैं, "आखिर न्याय हमसे कब तक बचता?". जेल में उन्होंने जीवन के दो छोर देखे: मुंबई की आर्थर रोड जेल में लगातार शारीरिक यातना और नागपुर में बेहतर भोजन और रहने की स्थिति. सिद्दीकी ने इस समय का सदुपयोग किया. जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तब वे कॉलेज ड्रॉपआउट थे, लेकिन जेल में रहते हुए उन्होंने 20 से ज़्यादा डिग्रियां हासिल कीं, जिनमें कई मास्टर, बैचलर और डिप्लोमा शामिल हैं. उन्होंने एमबीए, अंग्रेजी साहित्य, समाजशास्त्र, और वित्तीय प्रबंधन में मास्टर डिग्री हासिल की है.
पढ़ाई के अलावा, वे लिखते भी थे. उनकी किताब, "हॉरर सागा", जो उनके जेल जीवन और अधूरे मुकदमे का विवरण देती है, पिछले साल प्रकाशित हुई थी. उन्होंने जेल में सबूत इकट्ठा करने और सरकारी प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तकों तक पहुंचने के लिए लगभग 6,000 सूचना का अधिकार (RTI) आवेदन भी दायर किए.
21 जुलाई को जब उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी किया, तो उनकी रिहाई के आदेश तुरंत तामील किए गए. रिहाई के बाद से हर अनुभव "नया" लगता है. नागपुर से मुंबई के लिए उड़ान भरने का अनुभव साझा करते हुए वे हंसते हुए कहते हैं कि उनके सह-अभियुक्त मोहम्मद अली शेख की खुशी का ठिकाना नहीं था और वे लगातार बातें कर रहे थे. एहतेशाम को डर था कि कहीं उनका उत्साह लोगों का ध्यान न खींच ले.
इस पूरी यात्रा में उनकी पत्नी सबीना उनकी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरीं. 2006 में गिरफ्तारी के समय उनकी शादी को एक साल से भी कम हुआ था. सिद्दीकी कहते हैं, "इन 19 वर्षों में, मैंने उसे कई बार कहा होगा कि यह एक अंतहीन इंतज़ार हो सकता है और अगर वह तलाक चाहे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी. लेकिन वह अडिग रहीं. वह मेरे साथ खड़ी रहीं, और मेरे माता-पिता ने उनकी अपनी बेटी की तरह देखभाल की". वे सबीना को अपनी कहानी का "असली हीरो" कहते हैं. अपने घर जौनपुर लौटने का अनुभव बेहद भावुक था. वे कहते हैं, "जब मैं घर पहुंचा, तो हम बस रोते रहे. हमने मुश्किल से बात की; हम कई घंटों तक बस रोते रहे". भविष्य अभी भी "अनिश्चित" दिखता है, लेकिन अभी के लिए, वह कहते हैं कि वह उन कई कहानियों को लिखने पर ध्यान देना चाहते हैं जिन्हें उन्होंने इतने सालों से अपने अंदर सुरक्षित रखा है.
एयर इंडिया का विमान डीजीसीए ने किया ग्राउंड
एयर इंडिया के एक विमान को नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने तत्काल प्रभाव से परिचालन से हटा दिया है. वजह: विमान की आपातकालीन स्लाइड प्रणाली की अनिवार्य जांच समय सीमा से अधिक हो चुकी थी, जिसकी जानकारी डीजीसीए को एक नियमित ऑडिट के दौरान मिली. नागर विमानन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोळ ने सोमवार को राज्यसभा में इस मामले की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि “जैसे ही डीजीसीए को ऑडिट में यह चूक सामने आई, विमान को तुरंत ग्राउंड कर दिया गया और जरूरी सुधार पूरा होने तक उसके उड़ान पर रोक लगा दी गई.” इसके साथ ही डीजीसीए ने एयर इंडिया और उसके जिम्मेदार कर्मियों के खिलाफ अपनी प्रवर्तन नीति के तहत कार्रवाई शुरू कर दी है. यह सवाल डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने उठाया था. उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि जून 2025 में फ्लाइट-171 की दुर्घटना से पहले कुछ विमान बिना अनिवार्य सुरक्षा जांच के उड़ान भर रहे थे, और अगर हां, तो डीजीसीए की जवाबदेही तय की गई या नहीं. इसके जवाब में मंत्री ने यह भी कहा कि वर्ष 2022 में ICAO (अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन) ने भारत में डीजीसीए की निगरानी व्यवस्था की समीक्षा की थी, जिसमें भारत का प्रभावी क्रियान्वयन स्कोर 85.65 प्रतिशत दर्ज किया गया था.
एयर इंडिया की मेंटेनेंस में लापरवाही पर सवाल
एयर इंडिया की फ्लाइट 171 के दुर्घटनाग्रस्त होने और हालिया मेंटेनेंस में लापरवाहियों के चलते सरकार ने गंभीर चिंता जताई है. केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री, मंत्रालय के सचिव और डीजीसीए प्रमुख ने हाल ही में टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन से मुलाकात कर एयर इंडिया के सेफ्टी विभागों के अधिकारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति देने पर बल दिया. अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया कि इन विभागों को महज़ "बलि का बकरा" न बनाया जाए, बल्कि उन्हें समय पर फैसले लेने की पूरी स्वतंत्रता दी जाए. एयर इंडिया के इन मेंटेनेंस संबंधी मामलों में एक बड़ा सवाल सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी AI Engineering Services Limited (AIESL) की भूमिका पर भी उठा है, जो टाटा समूह द्वारा अधिग्रहण के दौरान एयर इंडिया के साथ शामिल नहीं की गई थी. यह कंपनी अब भी एयर इंडिया के विमानों की इंजीनियरिंग सेवाएं देती है.
वरिष्ठ पत्रकार अरिंदम मजूमदार की रिपोर्ट के अनुसार, AIESL की रिकॉर्ड-रखरखाव प्रणाली पहले से ही सवालों के घेरे में रही है. एक इंजीनियर ने बताया, “जब टाटा समूह ने एयर इंडिया की बागडोर संभाली, तब इंजीनियरिंग विभाग को एकाएक कई तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा. विमानों में उड़ान के लिए क्लियरेंस मिलने के बावजूद तकनीकी खामियां आ रही थीं, क्योंकि पूर्वानुमानात्मक मेंटेनेंस की कोई व्यवस्थित व्यवस्था नहीं थी.” इस पूरे प्रकरण ने एयर इंडिया और उससे जुड़ी मेंटेनेंस एजेंसियों की जवाबदेही और DGCA की निगरानी प्रक्रिया को एक बार फिर से कटघरे में खड़ा कर दिया है. एयरलाइन की सुरक्षा के लिए उठाए जाने वाले कदमों को लेकर अब सरकार और नियामक एजेंसियों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है.
अब बाराबंकी के मंदिर में भगदड़, दो की मौत
'हिन्दुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट है कि उत्तर प्रदेश में बाराबंकी ज़िले के अवसानेश्वर मंदिर में सोमवार तड़के मची भगदड़ में दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 38 अन्य घायल हो गए. रिपोर्ट के मुताबिक बाराबंकी के हैदरगढ़ क्षेत्र में अवसानेश्वर मंदिर में बंदरों ने बिजली के तार को खींच लिया, जिससे टिन शेड गिर गया और मंदिर परिसर में भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई. इस अफरातफरी वाली घटना में दो लोगों की मौत हो गई और 32 अन्य घायल हो गए. सावन के तीसरे सोमवार को तड़के श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए मंदिर में एकत्र हुए थे. त्रिवेदीगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में इलाज के दौरान दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई. इनमें से एक की पहचान मुबारकपुरा गांव के 22 वर्षीय प्रशांत के रूप में हुई और दूसरे की पहचान रमेश कुमार के रूप में हुई. अधिकारियों ने बताया कि कुल 10 घायलों को त्रिवेदीगंज सीएचसी लाया गया, जिनमें से पांच को उच्च चिकित्सा केंद्रों के लिए रेफर कर दिया गया. अन्य 26 घायलों का हैदरगढ़ सीएचसी में इलाज चल रहा है. बाराबंकी के ज़िलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने बताया कि जलाभिषेक के दौरान बंदरों ने बिजली का तार क्षतिग्रस्त कर दिया, जिससे मंदिर परिसर में लगे तीन टिन शेड में करंट आने लगा. इससे मंदिर में अफरातफरी मच गई और भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई.
यह घटना हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर जाने वाले सीढ़ी मार्ग पर मची भगदड़ में कम से कम छह लोगों की मौत के ठीक एक दिन बाद हुई है. पुलिस का कहना है कि बिजली का करंट लगने की अफवाह के कारण यह हादसा हुआ था.
धार्मिक भगदड़ों के न रुकते सिलसिले
बीते जून महीने में ओडिशा के पुरी में मची भगदड़ में कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई थी और 50 से ज़्यादा लोग घायल हो गए थी.
मई महीने में गोवा के शिरगांव गांव स्थित श्री लैराई देवी मंदिर के उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 6 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य लोगों के घायल हुए थे. इस घटना की असल वजह भारी संख्या में लोगों का एकत्रित होना और भीड़ नियंत्रण के लिए प्रशासन की ओर से पर्याप्त इंतजाम नहीं होना बताया गया था.
हाथरस में भोले बाबा के कार्यक्रम में भगदड़ में 121 लोगों की भी मौत हाल ही के कुछ समय पूर्व दर्ज की गई थी.
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के महाकुंभ मेले में मौनी अमावस्या के दिन (29 जनवरी) हुई भगदड़ में कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 लोग घायल हो गए थे. हालांकि बाद में मीडिया रिपोर्ट में कम से कम 82 लोगों के मरने की पुष्टि की गई थी.
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 15 फरवरी की रात मची भगदड़ में कम से कम 18 लोगों के मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे.
एडिनबरा विश्वविद्यालय का ‘खोपड़ी कक्ष’: नस्लीय विज्ञान की जटिल विरासत पर एक नजर

सैकड़ों खोपड़ियाँ, एक-दूसरे से गाल से गाल सटी हुई, ऊँचे महोगनी फ्रेम वाले कांच के अलमारियों में करीने से रखी हैं। ज़्यादातर पर धुंधले, उखड़ते लेबल हैं, कुछ पर पेंट किए गए कैटलॉग नंबर. एक में सुनहरे दांत हैं, तो एक में अब भी त्वचा के अवशेष. यह है - एडिनबरा विश्वविद्यालय का ‘स्कल रूम या खोपड़ी कक्ष’.
द गार्डियन के लिए हाना डेव्लिन और सेवेरीन कैरेल की रिपोर्ट के अनुसार. एडिनबरा विश्वविद्यालय के एनाटॉमिकल म्यूज़ियम में लगभग 1,500 मानव खोपड़ियों का एक विशाल संग्रह है, लेकिन यह केवल वैज्ञानिक जिज्ञासा का केंद्र नहीं, बल्कि एक गहरे और विवादास्पद अतीत का गवाह भी है. इनमें से कई खोपड़ियां स्वयंसेवकों द्वारा दान की गई थीं, कुछ स्कॉटलैंड में फांसी पर चढ़ाए गए हत्यारों की थीं, जबकि कई अन्य खोपड़ियां सैन्य अभियानों या उपनिवेशवाद के क्रूर दौर में दुनिया भर के स्वदेशी लोगों से छीनकर स्कॉटलैंड लाई गईं. सैकड़ों खोपड़ियां फ्रेनोलॉजी (phrenology) में रुचि रखने वाले लोगों ने इकट्ठा की थीं, जो यह मानती थी कि खोपड़ी का आकार और उसकी बनावट व्यक्ति की बुद्धि और स्वभाव को तय करती है. इस छद्म विज्ञान का इस्तेमाल नस्लीय भेदभाव को सही ठहराने के लिए बड़े पैमाने पर किया गया.
“मुलाटो” भाइयों की दुखद कहानी इस संग्रह की सबसे दर्दनाक कहानियों में से एक दो भाइयों की है, जिनकी खोपड़ियां आज भी विश्वविद्यालय में मौजूद हैं. वे एडिनबरा में पढ़ाई के दौरान मारे गए थे. विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड से पता चलता है कि वे जॉर्ज रिचर्ड्स (21 वर्षीय चिकित्सा छात्र) और रॉबर्ट ब्रूस (18 वर्षीय धर्मशास्त्र छात्र) थे. दोनों भाई अफ्रीकी और यूरोपीय मिश्रित नस्ल (जिन्हें उस समय ‘मुलाटो’ कहा जाता था) के थे और बारबाडोस में जन्मे थे. उनके पिता एक एडिनबरा-शिक्षित डॉक्टर थे जो ग़ुलामों के मालिक भी थे. यह माना जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद, एडिनबरा फ्रेनोलॉजिकल सोसायटी ने नस्लीय अध्ययन के नाम पर उनकी खोपड़ियों को हासिल कर लिया. विश्वविद्यालय की डिकॉलोनाइज़ेशन रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है, “इन दोनों को ‘मुलाटो’ के रूप में देखे जाने से ही फ्रेनोलॉजिस्टों की रुचि जागी, क्योंकि यह मिश्रित नस्लीय श्रेणी उन्हें आकर्षित और उलझाए रखती थी.”
फ्रेनोलॉजी: एक नस्लवादी छद्म विज्ञान एडिनबरा फ्रेनोलॉजिकल सोसायटी की स्थापना 19वीं सदी में वकील जॉर्ज कॉम्ब और उनके भाई, डॉक्टर एंड्रू कॉम्ब ने की थी. उन्होंने खोपड़ियों की बनावट के आधार पर बुद्धि और नैतिकता का एक पदानुक्रम बनाया, जिसमें यूरोपीय श्वेत पुरुष को सबसे ऊपर रखा गया. उनकी पुस्तक "The Constitution of Man" दुनिया भर में बेस्टसेलर बनी और इस सिद्धांत ने नस्लीय श्रेष्ठता की भावना को बढ़ावा दिया. हालांकि एडिनबरा के कई डॉक्टरों ने फ्रेनोलॉजी को ‘अवैज्ञानिक’ कहकर खारिज कर दिया, पर उनमें से कई यह मानते थे कि नस्लों के बीच बौद्धिक अंतर जैविक रूप से तय होते हैं. प्रोफेसर अलेक्जेंडर मोनरो III जैसे शिक्षक अपनी कक्षाओं में पढ़ाते थे कि “काले व्यक्ति की खोपड़ी, और फलस्वरूप मस्तिष्क, यूरोपीय से छोटा होता है.”
खोपड़ियों की घर वापसी की जटिल राह आज, विश्वविद्यालय अपने इस अतीत का सामना कर रहा है और इन अवशेषों को उनके मूल समुदायों को वापस करने की कोशिश कर रहा है. एनाटॉमी विभाग के वर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर टॉम गिलिंगवॉटर कहते हैं, "हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि इनमें से कुछ खोपड़ियां जानबूझकर नस्लीय तुलना के लिए लाई गई थीं. हम इससे मुंह नहीं मोड़ सकते.” हालांकि, वापसी की प्रक्रिया बेहद जटिल है. प्रोफेसर गिलिंगवॉटर बताते हैं कि कई मामलों में यह साबित करने के लिए फोरेंसिक सबूत पर्याप्त नहीं हैं कि कोई खोपड़ी निश्चित रूप से किस व्यक्ति की है. वे कहते हैं, “मैं कभी ऐसी स्थिति में नहीं रहना चाहूंगा जहां मैं किसी परिवार को अवशेष लौटाऊं और बाद में पता चले कि वे उसके नहीं थे.”
अब तक 100 से अधिक खोपड़ियां उनके मूल स्थानों पर लौटाई जा चुकी हैं, पर हर मामला सालों की मेहनत, विश्वास बहाली और कभी-कभी वंशज समुदायों के बीच के राजनीतिक तनावों को सुलझाने की मांग करता है. कई खोपड़ियों की पहचान शायद कभी नहीं हो सकेगी. प्रोफेसर गिलिंगवॉटर स्वीकार करते हैं, "यही बात मुझे रात में जगाए रखती है. इस वक़्त, हम इतना ही कर सकते हैं कि हम उनका ध्यान रखें, उन्हें इज़्ज़त से रखें. हम उन्हें देखभाल और सम्मान दे सकते हैं — हर एक को, उसके अपने व्यक्तित्व के साथ.”
चलते-चलते
जब जंगल पहुंचा इंटरनेट: अमेज़न की एक जनजाति की बदलती दुनिया

द गार्डियन के लिए जॉन रीड और डैनियल बायासेट्टो की रिपोर्ट के अनुसार ब्राज़ील की जावारी घाटी में, कभी बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटी हुई कोरूबो जनजाति अब इंटरनेट, सौर ऊर्जा और बिस्किट जैसी चीज़ों की ओर आकर्षित हो रही है. इस बदलाव का उनकी सेहत, संस्कृति और भविष्य पर क्या असर पड़ेगा, यह अभी भी अनिश्चित है. “पूरा बंदर पक जाए, इतना बड़ा धातु का बर्तन चाहिए,” ज़ुज़ु कहते हैं. एक समय था जब उनका समुदाय मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाता था, लेकिन अब "सफेद लोगों" द्वारा लाए गए हल्के धातु के बर्तन उनके जीवन का एक अहम हिस्सा बन गए हैं.
कोरूबो जनजाति का इतिहास हिंसा और प्रतिरोध से भरा है. 19वीं सदी के अंत में रबर के व्यापारी और 20वीं सदी में लकड़ी के तस्कर उनकी ज़मीनों में घुसे. अमेज़न की अन्य जनजातियों के विपरीत, कोरूबो ने धनुष-बाण की जगह हथेली की लकड़ी से बने डंडों से उनका सामना किया. इस लगातार हिंसा के कारण ब्राज़ील की राष्ट्रीय आदिवासी नींव (फ़ुनाई) ने 1996 में पहली बार उनसे आधिकारिक संपर्क स्थापित किया. ज़ुज़ु याद करते हैं, “हम अपने मालोका (सामुदायिक घर) में थे, जब सफेद लोग आए और हमारे बुज़ुर्गों को मार डाला. इसलिए हमने बदला लिया और मछुआरों को मार दिया.”
संपर्क स्थापित होने के एक दशक बाद, उनके जीवन में नई बीमारियाँ, नई सामग्रियाँ और बाहरी दुनिया की झलकियाँ आ चुकी हैं. ज़ुज़ु के भाई ट्सिट्सोपी बताते हैं कि हर बार इलाज के लिए शहर जाना एक नई बीमारी को न्योता देने जैसा है. वे चाहते हैं कि सरकार गांवों में ही स्थायी डॉक्टर और दवाखाना बनाए. पिछले साल ही, कोरूबो समुदाय के चार शिशुओं की मौत हो गई, जिसका मुख्य कारण फ्लू और निमोनिया जैसे सामान्य संक्रमण थे, जिनसे लड़ने के लिए उनके शरीर तैयार नहीं हैं.
बाहरी दुनिया के संपर्क में आने से उनकी आर्थिक आदतें भी बदल रही हैं. सरकारी नौकरियों और आर्थिक मदद से अब कोरूबो लोग मोबाइल, चावल, बिस्किट, और नाव जैसी चीज़ें खरीदने लगे हैं. उन्हें नोट गिनने में कठिनाई होती है, इसलिए वे नोटों पर बने जानवरों की तस्वीरों (जैसे 50 रियाल के नोट पर बना जगुआर) से उनकी कीमत पहचानते हैं. दो गांवों में अब इंटरनेट भी पहुंच चुका है और उनकी मांग है, “जब कोई अस्पताल जाता है, तो हमें जानना होता है कि वह ठीक है या नहीं. इसके लिए मोबाइल चाहिए, और अब हम स्टारलिंक भी चाहते हैं.”
इस बदलाव का असर युवा पीढ़ी पर सबसे ज़्यादा दिख रहा है. एक शिक्षिका बताती हैं कि इंटरनेट के कारण युवा अब शिकार और खेती जैसे पारंपरिक कामों से दूर हो रहे हैं. हालांकि, वे यह भी मानती हैं कि इस जनजाति की सांस्कृतिक शक्ति अद्भुत है.
इस बदलाव को लेकर विशेषज्ञ चिंतित हैं. 84 वर्षीय नृविज्ञानी सिडनी पोसूएलो, जिन्होंने कोरूबो से पहला संपर्क स्थापित किया था, चेतावनी देते हैं, "संपर्क के बाद का जीवन दुःखों से भरा होता है. वही लोग, जिन्होंने इन्हें मारा, अब इनके जीवन पर हुकूमत चला रहे हैं. यही कारण है कि बाकी अछूती जनजातियों को अकेला छोड़ देना चाहिए.” शहर से एक बड़ा भगोना और कुछ फल लेकर ज़ुज़ु और ट्सिट्सोपी जंगल की ओर लौट जाते हैं, एक ऐसी दुनिया में जहां इंटरनेट है, मोबाइल है, पर भविष्य को लेकर गहरे सवाल भी हैं. यह रिपोर्ट ‘द गार्डियन’ और ब्राज़ीली अख़बार 'ओ ग्लोबो' की साझेदारी में प्रकाशित हुई है.
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