29/09/2025: लद्दाख में बढ़ता आक्रोश | मित्र देशों पर आकार पटेल | विपक्ष की सक्रियता पर श्रवण गर्ग | फेसबुक और नफ़रत की फैक्ट्री | अलग पड़ता इज़राइल | बदबूदार जूतों पर रिसर्च को अवार्ड
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
वांगचुक हिरासत: पत्नी को बात करने नहीं दी गई, NSA पर सवाल
लद्दाख में आक्रोश: गिरफ्तारियां, पुलिस पर बर्बरता के आरोप
धारा 370 और लद्दाख: ‘संरक्षण’ हटने पर चिंता, बेरोजगारी बढ़ी
भारत की विदेश नीति: दोस्त कौन? पटेल ने रिश्तों पर उठाए सवाल
करूर त्रासदी: विजय रैली में भगदड़, कुप्रबंधन ने ली जान
एशिया कप भारत ने जीता
यौन उत्पीड़न आरोपी: चैतन्यानंद आगरा से गिरफ्तार
सीजेआई की मां संघ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि
फेसबुक का ‘कट्टरता’ इंजन: दक्षिणपंथी विचारों का प्रसार
इज़राइल अलग-थलग: गाज़ा युद्ध से वैश्विक निंदा बढ़ी
यूक्रेन पर हमला: रूस का बड़ा हवाई हमला, चार की मौत
बीसीसीआई अध्यक्ष: मिथुन मन्हास चुने गए
इगनोबेल विजेता: बदबूदार जूतों पर भारतीय शोध को सम्मान
गीतांजलि जे आंगमो / लद्दाख
अभी तक उनसे बात नहीं करने दी गई, ‘पत्नी से ज़्यादा, मुझे एक भारतीय के रूप में अत्यधिक पीड़ा’
मशहूर जलवायु कार्यकर्ता और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत गिरफ्तार करने और जल्दबाजी में लद्दाख से बाहर ले जाने के दो दिन बाद, उनकी पत्नी गीतांजलि जे. आंगमो ने “द वायर” को बताया है कि उन्हें अभी तक अपने पति से बात नहीं करने दी गई है.
आंगमो ने कहा, “उन्हें ले जाए हुए दो दिन बीत चुके हैं. जब उन्हें (26 सितंबर को) उनके पैतृक गाँव से हिरासत में लिया गया, जो लेह से 60 किलोमीटर दूर है, तब मैं संस्थान (हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख या एचआईएएल) में थी. मुझे फोन पर सूचित किया गया कि उन्हें जोधपुर (राजस्थान) ले जाया जा रहा है, और इंस्पेक्टर ने वादा किया था कि वह यह सुनिश्चित करेंगे कि जोधपुर पहुंचते ही मैं उनसे बात कर सकूं. लेकिन मुझे अभी तक वह फ़ोन कॉल नहीं आया है.”
जोधपुर जेल के “अधिकारियों” के हवाले से कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, वांगचुक को एक “एकांत कोठरी” में रखा जाएगा, जिसकी सीसीटीवी से लगातार निगरानी की जाएगी. आंगमो के पास यह पुष्टि करने का कोई तरीका नहीं है कि वांगचुक को जेल में किस स्थिति में रखा गया है, लेकिन उन्होंने दोहराया, “वह एक गांधीवादी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. इसीलिए वह सत्याग्रह, पदयात्राएं, सब कुछ शांतिपूर्ण ढंग से कर रहे थे. इसके बजाय, अधिकारियों ने ही उन्हें खींचकर दूर किया; उन्होंने दिल्ली में भी ऐसा ही किया था.”
“25 सितंबर को भी, यह युवा नहीं थे जिन्होंने हिंसा की, यह केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल था, जिसने इसे शुरू किया. लद्दाखी युवा सबसे शांतिप्रिय और शरीफ होते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “आज, उनकी पत्नी से ज़्यादा, मुझे एक भारतीय के रूप में अत्यधिक पीड़ा हुई है, क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जो हमारे देश को गौरव दिला रहे थे; अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रशंसित शिक्षाविद, आविष्कारक, जलवायु कार्यकर्ता, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए काम करने में समर्पित कर दिया. वह एक सच्चे देशभक्त हैं, जिन्होंने भारतीय सेना की रहने की स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए काम किया और लोगों को चीनी किताबें पढ़ने और चीनी उत्पादों का उपयोग करने से हतोत्साहित किया.”
“और फिर भी, उन्हें राष्ट्र-विरोधी कहा जाता है और एनएसए के तहत आरोपित किया जाता है. हम जानते थे कि वे असुविधा पैदा करने के लिए कुछ ऐसा ही करेंगे (उन्हें लद्दाख से बहुत दूर ले जाना). देश के सबसे अच्छे वकील उनका बचाव करेंगे, लेकिन उन पर भारत-विरोधी होने का आरोप लगाना वास्तव में उनके बारे में कम और हमारे नेताओं की अंतरात्मा के बारे में ज़्यादा बताता है.”
यह कहते हुए कि उन्होंने वांगचुक के साथ जिन संस्थानों की सह-स्थापना की है, चाहे वह एचआईएएल हो या स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख, उन्हें राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची की उनकी अटल मांग के आलोक में “पिछले चार वर्षों से परेशान किया जा रहा है,” आंगमो ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि जब वह 2024 में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिली थीं, तो मंत्री ने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा एचआईएएल की भूमि आवंटन फ़ाइल को रोक दिया गया है.
उन्होंने कहा, “मुझे मंत्री ने बताया था कि एचआईएएल और सोनम वांगचुक सब एक जैसे हैं और जब तक वह छठी अनुसूची के लिए लड़ते रहेंगे, तब तक आपकी फ़ाइल रुकी रहेगी.”
उन्होंने आगे कहा, “केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की एक तथ्य-खोज टीम ने हमसे मुलाकात की और हर वित्तीय विवरण की जांच की; हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है. वास्तव में, मैं और सोनम हर साल अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से इन संस्थानों में पैसा लगाते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि सामाजिक कार्य ऐसे ही किया जाना चाहिए. “
चुनाव और गिरफ्तारी : महत्वपूर्ण रूप से, आंगमो ने यह भी आरोप लगाया है कि वांगचुक को इसलिए भी गिरफ्तार किया गया क्योंकि अक्टूबर में लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव होने वाले हैं. उन्होंने कहा, “लोग इन चुनावों में बीजेपी को वोट नहीं देंगे, क्योंकि उसने पहले (लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का) वादा किया था और उसे पूरा नहीं कर रही है. लेकिन इन चुनावों से पहले वांगचुक को गिरफ्तार करने से पार्टी के लिए यह और भी मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इससे लोगों का लड़ने का संकल्प कमज़ोर नहीं, बल्कि मज़बूत होगा. वह उनकी आवाज़ थे, वह उनके प्रतिनिधि थे; इससे मदद नहीं मिलेगी.” उन्होंने यह भी कहा, “उस संकल्प का एक संकेत 2024 के संसदीय चुनावों में देखा गया; बीजेपी वह सीट (लद्दाख निर्वाचन क्षेत्र) हार गई थी.” यह भी संकेत दिया गया है कि वांगचुक का पिछले फ़रवरी में पाकिस्तान में एक जलवायु सम्मेलन में भाग लेने के कारण ‘पाकिस्तानी कनेक्शन’ है. आंगमो ने कहा, “वह सेमिनार संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा आयोजित किया गया था. वह वहां भारत का गौरव थे. वास्तव में, मंच पर, उन्होंने कॉप26 में ‘मिशन लाइफ’ (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी, उन्हें थोड़ा भी पता नहीं था कि जल्द ही उन पर पाकिस्तान के साथ होने का आरोप लगाया जाएगा... यह अत्यंत दर्दनाक है.”
उन्होंने आगे कहा: “मैं उनके साथ गई थी क्योंकि मैं एक सत्र में मुख्य वक्ता थी. लेकिन मैं भी उस परिवार से हूं, जिसकी जड़ें विभाजन से पहले पाकिस्तान में थीं. मैं कभी उस देश में नहीं गई थी; मैं वहां इसलिए भी गई क्योंकि मैं देखना चाहती थी कि मेरा परिवार कहां से था.”
जब उनसे पूछा गया कि इस आरोप के बारे में वांगचुक को कैसा महसूस हुआ होगा, तो गीतांजलि ने जवाब दिया, “मुझे नहीं लगता कि वह ऐसे दबावों के सामने झुकने के लिए इतने कमज़ोर हैं; वह अपने काम की आलोचना या प्रशंसा से कभी दुखी या उत्साहित नहीं होते हैं; उन्होंने कभी भी अपने काम के लिए प्रशंसा नहीं खोजी है. वह चुपचाप भारत की महानता के लिए; बेहतर जलवायु शमन के लिए काम करना जारी रखते हैं. यह उन्हें तोड़ नहीं पाएगा; वह परवाह किए बिना काम करते रहेंगे. इसीलिए वह कई अन्य लोगों से अलग हैं.”
लद्दाख में मनमानी गिरफ्तारियों पर आक्रोश, पुलिस स्टेशन ‘बीजेपी ऑफिस जैसा लगा’
लद्दाख में छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे की मांग को लेकर हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा की जा रही कथित मनमानी गिरफ्तारियों और हिरासत को लेकर भारी आक्रोश है. द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, लेह के निवासी अपने प्रियजनों की गिरफ्तारी से नाराज़ और चिंतित हैं. पद्मा डोल्केस अपने भाई सोनम छोसफेल की गिरफ्तारी से बेहद गुस्से में हैं, जिन्हें पीठ और घुटने की समस्या है. उन्होंने बताया कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के जवानों ने उनके भाई को पकड़ा, ज़मीन पर हाथ नीचे करके लेटने का आदेश दिया और कथित तौर पर उनकी पिटाई की. बाद में उनके हाथों की जांच कर दावा किया गया कि वह पत्थरबाज़ी में शामिल थे.
छोसफेल उन लगभग 50 लोगों में से हैं, जिन्हें बुधवार को लेह शहर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़पों के सिलसिले में लद्दाख पुलिस ने हिरासत में लिया है. इन झड़पों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की गोलीबारी में कम से कम चार नागरिक प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी. लेह के एक होटल मालिक लोबज़ैंग रिनचेन ने द वायर को बताया कि पुलिस और अर्धसैनिक बल बुधवार रात उनकी संपत्ति में घुस आए और जब उन्हें पुलिस स्टेशन बुलाया गया तो उन्हें लगा जैसे वह “पुलिस स्टेशन में नहीं, बल्कि बीजेपी कार्यालय में हैं”. उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने उन्हें चेतावनी दी कि “बीजेपी कार्यकर्ताओं को लेकर एक चार्टर्ड विमान लद्दाख आएगा और मेरे होटल और घर को जला देगा”, जिसके बाद उनकी बुरी तरह पिटाई की गई.
नागरिक समाज, कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं ने चेतावनी दी है कि एक शांतिपूर्ण आंदोलन को “बदनाम” करने और रोकने के लिए मनमाने उपायों का इस्तेमाल लद्दाख में स्थिति को और खराब कर सकता है, जहां रविवार को पांचवें दिन भी कर्फ्यू जारी रहा. लद्दाख बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद शफी लस्सू ने कहा, “कई निर्दोष लोगों को सड़कों से उठाया गया है. इन मनमाने उपायों से मदद नहीं मिलेगी, बल्कि स्थिति और खराब होगी.” इस बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रविवार को आरोप लगाया कि लद्दाख के लोगों, संस्कृति और परंपराओं पर बीजेपी और आरएसएस द्वारा हमला किया जा रहा है. पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “लद्दाखी लोगों ने एक आवाज़ मांगी. बीजेपी ने 4 नौजवानों की हत्या करके और सोनम वांगचुक को जेल में डालकर जवाब दिया. हत्याएं बंद करो. हिंसा बंद करो. डराना-धमकाना बंद करो. लद्दाख को एक आवाज़ दो. उन्हें छठी अनुसूची दो.” जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जो लद्दाख के लिए राज्य के दर्जे की मांग का मुख्य चेहरा हैं, को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लेकर राजस्थान की जोधपुर जेल में रखा गया है.
‘हम आर्टिकल 370 को कोसते थे, लेकिन इसने हमारी रक्षा की; अब लद्दाख पूरे भारत के लिए खुल गया है’
लेह एपेक्स बॉडी (एबीएल) के सह-अध्यक्ष और लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के प्रमुख चेरिंग दोरजे लकरूक क्षेत्र से जुड़े मामलों पर सरकार के साथ एक प्रमुख वार्ताकार हैं. जम्मू और कश्मीर के पूर्ववर्ती राज्य में मंत्री रह चुके लकरूक ने “द इंडियन एक्सप्रेस” से बात की और बताया कि हालिया विरोध प्रदर्शन हिंसक क्यों और कैसे हो गए, साथ ही उन मुद्दों पर भी बात की जिन्हें लद्दाख के लोग हल कराना चाहते हैं.
लकरूक ने कहा कि, “हम आर्टिकल 370 को कोसते थे, क्योंकि यह हमारे यूटी (केंद्र शासित प्रदेश) बनने की राह में एक बाधा था. लेकिन इसने 70 सालों तक हमारी रक्षा की. हमारी ज़मीन पूरी तरह सुरक्षित थी. अब लद्दाख पूरे भारत के लिए खोल दिया गया है. हमारे पास कोई सुरक्षा कवच नहीं है.”
दीप्तिमान तिवारी के साथ एक इंटरव्यू में लकरूक ने कहा कि शिक्षित युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं. कई युवा संविदा पर काम कर रहे हैं, जिसे उन्होंने ‘गुलामी’ बताया. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने बहुत मुश्किल से अपनी शिक्षा पूरी की है, उन्हें नौकरियां नहीं मिल रही हैं. कुछ ठेके पर हैं, लेकिन वह लगभग गुलामी है. परिषदें लगभग निष्क्रिय हैं.” लद्दाख के लोग अब राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. विरोध प्रदर्शनों का मुख्य कारण बेरोज़गारी और केंद्र शासित प्रशासन द्वारा स्थानीय लोगों की ज़मीन और पारंपरिक कानूनों में कथित हस्तक्षेप है.
आकार पटेल | कूटनीतिक भटकाव
आइए, हम भारत के मित्र देशों की लिस्ट बनाएं!
“ईश्वर अपने चमत्कार करने के लिए रहस्यमयी तरीक़ों से काम करता है,” ऐसा एक भजन है जो मैंने स्कूल में पढ़ा था. या शायद यह पी.जी. वुडहाउस की किसी किताब की लाइन थी, मुझे ठीक से याद नहीं. लेकिन कोई बात नहीं, मुद्दा यह है कि चमत्कार आमतौर पर हम नश्वर इंसानों की जानकारी के बिना होते हैं. ऊपर वाली शक्तियां काम कर रही होती हैं.
कुछ ऐसा ही भारत की विदेश नीति में हो रहा है. इस क्षेत्र में बड़ी-बड़ी चीज़ें हासिल की गई हैं, कम से कम सरकारी प्रचार और टेलीविज़न मीडिया के अनुसार तो यही लगता है (जो कि माना जा सकता है कि एक ही चीज़ है), लेकिन ब्यौरे किसी को साफ़-साफ़ पता नहीं हैं.
एक ऐसे हफ़्ते में हमारी जीत को समझने के लिए जब संयुक्त राष्ट्र अपनी महासभा आयोजित कर रहा था, मैंने सोचा कि अपने दोस्तों की एक सूची बनाना उपयोगी हो सकता है. एक विदेश नीति पंचनामा, अगर आप चाहें तो, ताकि हम बेहतर ढंग से समझ सकें कि न्यू इंडिया दुनिया में असल में कहाँ खड़ा है.
अपने पड़ोस से शुरू करें तो, मैं बता सकता हूँ कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते ख़राब हैं. असल में, हम शायद उनके साथ ‘युद्ध’ में हैं क्योंकि उनके ख़िलाफ़ हमारा बेहद सफल सैन्य अभियान रुका हुआ है, लेकिन अभी ख़त्म नहीं हुआ है. और ‘युद्ध’ शब्द को कोट्स में इसलिए रखा गया है क्योंकि हमने असल में उनके साथ युद्ध की घोषणा नहीं की है. लेकिन अब यह सामान्य बात है.
बांग्लादेश को भी हमें खाते के डेबिट साइड में रखना होगा. वह मांग कर रहा है कि हम उनकी प्रधानमंत्री को वापस लौटा दें ताकि उन पर मुक़दमा चलाया जा सके, और हमने अब तक ऐसा करने से इनकार कर दिया है. उसके नेता चाहते हैं कि सार्क को फिर से ज़िंदा किया जाए और उन्होंने इसे निष्क्रिय, अगर ख़त्म नहीं तो, बनाने के लिए भारत को दोषी ठहराया है. हमारी सरकार ने बांग्लादेशियों के ख़िलाफ़ जिस भाषा का इस्तेमाल किया है, वह पब्लिक डोमेन में है, और हाल के एशिया कप ने हमें यह दिखा दिया है कि कितने भारतीय उनके खिलाड़ियों को किस नज़र से देखते हैं. इसी सरकार ने 2022 में अग्निपथ योजना के साथ भारतीय सेना में नेपालियों की भर्ती बंद कर दी, जिससे 200 साल पुराना एक रिश्ता टूट गया. 2015 में नेपालियों के ख़िलाफ़ भारत द्वारा भड़काई गई नाकाबंदी आज भी उन्हें चुभती है.
श्रीलंका ने ग़ाज़ा नरसंहार को ख़त्म करने की मांग करने में हमसे ज़्यादा हिम्मत दिखाई. सरकार के प्रशंसकों ने कुछ समय पहले मालदीव के बहिष्कार की मांग की थी क्योंकि हम उनसे नाराज़ थे (मुझे याद नहीं कि क्यों), और यह साफ़ नहीं है कि इस समय हम उनके दोस्त हैं या नहीं.
अपने नेताओं के निर्देश पर अपने चीनी टेलीविज़न तोड़ने के बाद, अगर भारतीयों को यह नहीं पता कि हमारे रिश्तों की मौजूदा स्थिति क्या है, तो उन्हें माफ़ किया जा सकता है. कोई नहीं जानता. अफ़ग़ानिस्तान के प्रति हमारा रवैया हाल में नरम हुआ है, यह समझाए बिना कि कल तक जिस तालिबान को हम राक्षस बताते थे, वह आज स्वीकार्य क्यों है. ईरान का तेल हमने लगभग आठ साल पहले ट्रम्प के आदेश पर ख़रीदना बंद कर दिया था, लेकिन वे अब भी हमारे तीर्थयात्रियों को स्वीकार करते हैं.
डोनाल्ड ट्रम्प, जिनके लिए हमने दो बड़ी रैलियाँ कीं, जिनके लिए हमने अपना कॉर्पोरेट टैक्स घटाया, जिनके लिए हमने अमेरिकी चुनावों में दख़ल दिया, उन्होंने पाकिस्तान (19%) और बांग्लादेश (20%) पर जो टैरिफ़ लगाए, वो हम पर लगाए गए टैरिफ़ (25%) से कम थे. फिर उन्होंने हम पर और 25% टैरिफ़ लगा दिया. फिर उन्होंने H1B वीज़ा के लिए 100,000 डॉलर और जोड़ दिए. अब उन्होंने फ़ार्मा पर एक और टैरिफ़ लगा दिया है. यह कहना सुरक्षित है कि अमेरिका हमारा दोस्त नहीं है. लेकिन इज़राइल है. बाक़ी दुनिया भले ही नेतन्याहू के नरसंहार को सही ठहराने वाले भाषण से उठकर चली गई हो, लेकिन भारत ने तालियाँ बजाईं.
तुर्की और अज़रबैजान दुश्मन हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान के दोस्त हैं. पूरा अफ़्रीकी महाद्वीप (54 में से 53 देश, पुराने स्वाज़ीलैंड को छोड़कर सभी) चीन के बेल्ट एंड रोड कार्यक्रम का हिस्सा हैं और यह कहना सुरक्षित है कि अब हमारा उन पर ज़्यादा प्रभाव नहीं है और उन्हें हमारी कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है. यही हाल मध्य एशिया और आसियान देशों का है, और उन्हीं कारणों से. आसियान के साथ भारत का व्यापार चीन के साथ होने वाले व्यापार का 10% है, और अफ़्रीका के साथ एक चौथाई.
हमने रूस के साथ एक लेन-देन का रिश्ता रखा है, उसे सिर्फ़ हथियारों और अब तेल के स्रोत के रूप में इस्तेमाल करते हुए, और बदले में वे अब हमें एक ग्राहक के रूप में देखते हैं, दोस्त के रूप में नहीं, सहयोगी तो दूर की बात है. ज़बरदस्ती का स्नेह प्रदर्शन, जिसमें हम माहिर हैं, इस स्थिति को नहीं बदल सकता. अरब देशों की जनता के बीच, इज़राइल को गले लगाने के कारण भारत ने अपनी ज़मीन खो दी है. हो सकता है कि इससे अरब देशों के साथ रिश्तों पर ज़्यादा असर न पड़े, लेकिन वैश्विक मामलों में एक लगातार हाशिए पर जाते खिलाड़ी के तौर पर, जो अमेरिका और चीन से लातें खाने का आदी हो, अब अरब के तानाशाह भी हमें अलग नज़र से देखते हैं.
इज़राइल पर यूरोप का रुख़ बदला है, और मूल्यों के मामले में, हम उस धर्मनिरपेक्ष, उदारवादी व्यवस्था से दूर चले गए हैं, जिसकी ओर यूरोप को अपने युवाओं के कारण लौटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. हार्डवेयर और पुर्ज़ों के लिए रूस पर हमारी लंबी निर्भरता का यह भी मतलब है कि हम यूरोप के इस पागलपन भरे विश्वास का साथ नहीं दे सकते कि रूस पोलैंड और जर्मनी को जीतने निकला है.
ब्राज़ील, हमारे ब्रिक्स सहयोगी, ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देने में वह रीढ़ की हड्डी दिखाई है जो अब हमारे पास नहीं है. 2014 के बाद के हमारे आत्म-प्रचार के दौर में हमारे पास गले मिलना और शब्द थे, बहुत सारे शब्द, लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमारे पास वे भी नहीं हैं. भारत के इतिहास में ऐसा कोई क्षण नहीं आया जब वह दुनिया में इतना दिशाहीन, इतना भ्रमित रहा हो कि वह किसके पक्ष में है और किसके ख़िलाफ़, और इतना अपमानित हुआ हो.
इससे पाठकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि क्यों वैश्वीकरण, जी20 नेतृत्व और विश्वगुरु और बाकी सब बातों के बारे में सालों तक बात करने के बाद, आज हमें आत्मनिर्भरता पर भाषण दिया जा रहा है. हम इस स्थिति को न्यू न्यू इंडिया कह सकते हैं.
लेखक एमनेस्टी इंडिया के प्रमुख और स्तंभकार हैं.
संयुक्त राष्ट्र में भारत ने पाकिस्तान को ‘आतंकवाद का केंद्र’ बताया, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया को लंबे समय से जारी अभ्यास की स्वीकारोक्ति कहा
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की उस प्रतिक्रिया को “लंबे समय से जारी सीमा पार आतंकवाद के अभ्यास की स्वीकारोक्ति” बताया, जो उसने विदेश मंत्री एस जयशंकर के एक भाषण पर दी थी. जयशंकर ने अपने संबोधन में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले किसी देश का नाम नहीं लिया था, लेकिन पाकिस्तान ने फिर भी जवाब दिया. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के द्वितीय सचिव रेंटाला श्रीनिवास ने ‘राइट ऑफ रिप्लाई’ का प्रयोग करते हुए कहा, “यह बहुत कुछ कहता है कि जिस पड़ोसी का नाम नहीं लिया गया, उसने फिर भी प्रतिक्रिया दी और सीमा पार आतंकवाद के अपने लंबे समय से जारी अभ्यास को स्वीकार किया.”
श्रीनिवास ने पाकिस्तान की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, “पाकिस्तान की प्रतिष्ठा खुद बोलती है. आतंकवाद में उसके फिंगरप्रिंट कई भौगोलिक क्षेत्रों में इतने स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. यह न केवल अपने पड़ोसियों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक खतरा है.” उन्होंने आगे कहा, “कोई भी तर्क या झूठ ‘टेररिस्तान’ के अपराधों को कभी सफेद नहीं कर सकता.” जब पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने दोबारा बोलने की कोशिश की, तो श्रीनिवास हॉल से बाहर चले गए. अपनी ‘राइट ऑफ रिप्लाई’ में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने भारत पर आतंकवाद के बारे में “दुर्भावनापूर्ण आरोपों” से “पाकिस्तान को बदनाम करने” की कोशिश करने का आरोप लगाया, जबकि जयशंकर ने आतंकवाद के मुद्दे पर बात करते हुए अपने संबोधन में देश का नाम नहीं लिया था. पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने दावा किया कि भारत के आरोप “झूठ दोहराने का जानबूझकर किया गया प्रयास” थे.
विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को बताया था कि “प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी हमलों का पता उसी एक देश से चलता है.” पाकिस्तान का नाम लिए बिना, उन्होंने एक “पड़ोसी जो वैश्विक आतंकवाद का केंद्र है” का उल्लेख किया और कहा कि भारत स्वतंत्रता के बाद से इस चुनौती का सामना कर रहा है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उन देशों की निंदा करने का आग्रह किया जो आतंकवाद को नीति के रूप में अपनाते हैं, औद्योगिक पैमाने पर केंद्र संचालित करते हैं और आतंकवादियों का महिमामंडन करते हैं. उन्होंने आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने, व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने और “पूरे आतंकवाद पारिस्थितिकी तंत्र पर अथक दबाव” डालने का आह्वान किया. जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की नामित आतंकवादियों की सूची “अपने नागरिकों से भरी पड़ी है.” अपने 16 मिनट के संबोधन में, जयशंकर ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना विश्व निकाय को बताया कि “भारत ने अपने लोगों को आतंकवाद से बचाने के अपने अधिकार का प्रयोग किया और इस साल अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले के बाद उसके आयोजकों और अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया.” भारत के तीन स्तंभों - आत्मनिर्भरता, आत्मरक्षा और आत्मविश्वास - पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “जब व्यापार की बात आती है, तो गैर-बाजार प्रथाओं ने नियमों और व्यवस्थाओं को तोड़-मरोड़ कर पेश किया... हम अब इसके परिणामस्वरूप टैरिफ में अस्थिरता और अनिश्चित बाजार पहुंच देखते हैं” - यह ट्रंप प्रशासन के भारत सहित अन्य देशों पर उच्च टैरिफ लगाने के कदमों का एक परोक्ष संदर्भ था.
करूर भगदड़: खराब भीड़ प्रबंधन और चेतावनियों की अनदेखी ने ली 40 से ज़्यादा जानें
शनिवार रात को करूर के वेलुसामीपुरम में तमिलगा वेट्री कझगम (TVK) प्रमुख और अभिनेता विजय की सार्वजनिक रैली में हुई भगदड़ एक ऐसी त्रासदी थी, जिसका अंदेशा पहले से ही था. खराब भीड़ प्रबंधन और पार्टी द्वारा केवल 10,000 लोगों के आने की उम्मीद जैसे कई कारक इस बड़ी घटना के लिए ज़िम्मेदार थे, जिसमें 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी ने ज़िला पुलिस को दिए गए अनुमति पत्र में कहा था कि उन्हें 10,000 की भीड़ की उम्मीद है, लेकिन विजय की एक झलक पाने के लिए इससे कहीं ज़्यादा लोग उमड़ पड़े. इनमें कम से कम आठ बच्चे भी शामिल थे, जिन्हें पुलिस के निर्देशों के अनुसार कार्यक्रम में नहीं होना चाहिए था. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, आयोजन स्थल पर 50,000 से ज़्यादा लोग इकट्ठा हो गए थे.
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि भीड़ तब बेकाबू हो गई जब वेलुसामीपुरम में पहले से मौजूद लोगों के साथ नमक्कल और परमथिवेलुर क्षेत्रों के समर्थकों के साथ विजय का जुलूस भी शामिल हो गया. कार्यक्रम उसी स्थान पर आयोजित किया गया था जहां AIADMK महासचिव एडप्पादी के. पलानीस्वामी ने पिछले गुरुवार को प्रचार किया था. हालांकि यह घोषणा की गई थी कि अभियान दोपहर 3.30 बजे से 4 बजे के बीच होगा, लेकिन नमक्कल से आए विजय शाम 5.45 बजे के आसपास पहुंचे और उन्होंने शाम 7 बजे के करीब बोलना शुरू किया. भीड़ में धक्का-मुक्की के कारण बिजली की आपूर्ति बाधित हो गई और लाइटें बंद हो गईं. लाउडस्पीकर भी बंद हो जाने से लोग विजय को सुनने के लिए और करीब आने लगे. इस प्रक्रिया में, उन्होंने एक-दूसरे को धक्का दिया, जिससे कई लोग गिर गए और यह दुखद हादसा हो गया.
सूत्रों ने बताया कि बैठक स्थल पर पार्टी के कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करने के लिए कोई मौजूद नहीं था. कथित तौर पर पार्टी ने भीड़ को प्रबंधित करने के लिए किसी विशेष पदाधिकारी या टीम को नामित नहीं किया था. इस बीच, TVK नेता विजय करूर से तिरुचि हवाई अड्डे लौटे और शनिवार रात करीब 10.15 बजे अपने चार्टर्ड विमान से चेन्नई के लिए उड़ान भर गए. दो हफ़्ते पहले त्रिची में विजय की रैली भी अव्यवस्थित थी, जहां पांच घंटे की देरी के कारण गंभीर ट्रैफिक जाम लग गया था. पिछली दो रैलियों में भीड़ को संभालने में हुई कठिनाइयों के बाद, पार्टी ने 26 सितंबर की रैली से पहले कार्यकर्ताओं के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए थे, जिसमें बच्चों को न लाने, अभिनेता की झलक पाने के लिए बिजली के खंभों पर न चढ़ने और उनके प्रचार वाहन का पीछा न करने जैसी बातें शामिल थीं. हालांकि, नमक्कल और करूर में इन निर्देशों का सख्ती से पालन नहीं किया गया. यह भी गौर करने वाली बात है कि TVK ने रैलियों के लिए पुलिस द्वारा लगाई गई अनुचित शर्तों के खिलाफ इस महीने की शुरुआत में मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
इस त्रासदी के बाद, TVK के शीर्ष नेताओं, जिनमें बुसी आनंद (राज्य महासचिव), जीआर निर्मल कुमार (राज्य उप महासचिव), और मथियालगन (करूर पश्चिम ज़िला सचिव) शामिल हैं, के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. एक TVK समर्थक ने कहा, “करूर में दुखद घटना खराब भीड़ नियंत्रण और अपर्याप्त पुलिस तैनाती के कारण हुई. 30,000 से अधिक लोगों के लिए केवल कुछ सौ पुलिस अधिकारी थे. सड़कें बहुत संकरी थीं और जब पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठियों का इस्तेमाल किया तो तनाव बढ़ गया.”
17 छात्राओं के यौन उत्पीड़न का आरोपी चैतन्यानंद आगरा से गिरफ्तार, पांच दिन की रिमांड पर भेजा
17 छात्राओं के यौन उत्पीड़न के आरोपी चैतन्यानंद सरस्वती को रविवार तड़के आगरा से गिरफ्तार कर लिया गया. दिल्ली पुलिस के अनुसार, 62 वर्षीय यह व्यक्ति अपने खिलाफ 4 अगस्त को प्राथमिकी दर्ज होने के बाद राजधानी से भाग गया था. खुफिया जानकारी पर कार्रवाई करते हुए, पुलिस की एक टीम ने उसे आगरा के ताजगंज इलाके के एक होटल में खोज निकाला और तड़के लगभग 3:30 बजे गिरफ्तार कर लिया.
चैतन्यानंद ने 27 सितंबर को शाम लगभग 4 बजे ‘पार्थसारथी’ नाम से होटल में बुकिंग कराई थी और उसे कमरा नंबर 101 दिया गया था. वह पूरी रात कमरे में ही रहा. पुलिस ने उसके पास से एक आईपैड और तीन फ़ोन बरामद किए हैं. इनमें से एक फ़ोन में कैंपस और हॉस्टल के सीसीटीवी फुटेज का एक्सेस था, जिसके माध्यम से वह छात्राओं की गतिविधियों पर नजर रखता था.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, चैतन्यानंद और उसके सहयोगियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से निकटता का झूठा प्रचार किया था. उसके सहयोगियों ने कथित तौर पर विभिन्न लोगों को फोन करके यह दावा किया था कि धर्मगुरु के पीएमओ से संबंध हैं, जिससे उसे अधिकारियों से बचने के दौरान समर्थन और सहयोग हासिल करने में मदद मिली.
गिरफ्तारी से बचने के दौरान, आरोपी कथित तौर पर उत्तरप्रदेश के वृंदावन, मथुरा और आगरा में लगातार जगहें और होटल बदलता रहा और यात्रा के लिए टैक्सियों का इस्तेमाल किया. पकड़े जाने से बचने के लिए वह सस्ते होटलों में रुका.
चैतन्यानंद को रविवार को ही दिल्ली की एक अदालत में पेश किया गया, जहां पुलिस की मांग पर ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने उसको पांच दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया. गिरफ्तारी के दौरान, पुलिस ने उसके पास से फर्जी विजिटिंग कार्ड बरामद किए, जिनमें संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और ब्रिक्स के साथ उसके जुड़ाव का झूठा दावा किया गया था.
हरकारा डीपडाइव
श्रवण गर्ग: राहुल गांधी ने जिस तरह बिसात को बदला है, इसमें कांग्रेस और विपक्ष कहां है?
देश में जहां केंद्र सरकार की रणनीतियाँ लगातार उल्टे मुंह गिरती दिख रही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ज्यादातर दांव विफल हो रहे हैं, ऐसे में विपक्ष की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. जनता में परेशानी और बेचैनी के बावजूद विपक्ष एक तरह से अनुपस्थित दिखाई पड़ रहा है. वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग और निधीश त्यागी ने ‘हरकारा डीप डाई’ पर इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की.
श्रवण गर्ग ने अपनी बातचीत को दो हिस्सों में बांटा. पहले में उन्होंने बताया कि राहुल गांधी ने देश के लिए क्या किया है, भले ही उन्हें इसका एहसास न हो. राहुल गांधी ने देश में एक नई तरह की जिज्ञासा पैदा की है. उनकी सुरक्षा को लेकर हाल के महीनों में जिस तरह की चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं, वह भारतीय राजनीति में अभूतपूर्व है. राजीव गांधी के बाद यह पहली बार है कि किसी विपक्षी नेता की सुरक्षा को लेकर ऐसी सार्वजनिक चिंता देखी जा रही है.
दत्त के अनुसार, राहुल गांधी ने देश के राजनीतिक विमर्श को नरेंद्र मोदी-केंद्रित होने से बदल दिया है. जहां पहले हमारा पूरा समय और ध्यान नरेंद्र मोदी पर ही केंद्रित रहता था, वहीं अब राहुल गांधी ने उस लाइमलाइट को थोड़ा खींच लिया है. लोग अब अपना समय राहुल गांधी पर भी खर्च कर रहे हैं, जिससे देश का एकतरफा चल रहा ‘माइंड स्पेस’ विभाजित हुआ है. मोदी जी को शायद इस बात का दुख भी होगा कि लोग अब उन्हीं के बारे में क्यों नहीं सोचते.
2022 के बाद मोदी जी की वह मोनोपोली टूट गई है, जिसका वे 2014 से 2022 तक आनंद ले रहे थे. हम इतिहास और देश को मोदी जी के चश्मे से देखने लगे थे, उनकी हर बात को लोकतंत्र और देशभक्ति की परिभाषा मानने लगे थे. यह स्थिति 5 जून 2024 तक चली, जब तक देश मोदी जी को ही देश समझता रहा. मोदी जी इतने आत्मविश्वासी हो गए थे कि 2024 के चुनाव के बीच में उन्होंने आरएसएस को भी चुनौती दे डाली.
राहुल गांधी ने हम लोगों को एक तरह के बंधन से मुक्त किया है, विचारों और सोच में थोड़ी आजादी दिलाई है, और हमें निडर बनाया है. उन्होंने दिखाया है कि खतरे मोल लिए जा सकते हैं. 2020 के दिल्ली दंगों के बाद से उमर खालिद, स्टेन स्वामी और भीमा कोरेगांव जैसे मामलों में बंद लोगों पर लोगों का ध्यान गया है, जिसकी चिंता पहले कभी नहीं की गई थी. यह अचानक से नहीं हुआ, बल्कि राहुल गांधी के प्रयासों का नतीजा है.
निधीश त्यागी ने इस बात पर जोर दिया कि देश का माइंड स्पेस तेजी से बदला है. जहां पहले मोदी के समर्थक सकारात्मक बातें करते थे, वहीं अब वे रक्षात्मक हो गए हैं और उनके नकारात्मक पहलुओं को माफ करने लायक नहीं समझते. इससे राहुल गांधी की बातें अधिक प्रभावी हो रही हैं, जबकि मोदी समर्थक अधिक क्रूर और शोरगुल वाले होते जा रहे हैं.
हालांकि, बातचीत का दूसरा हिस्सा राहुल गांधी को लेकर चिंताएं व्यक्त करता है. श्रवण गर्ग ने इस बात पर प्रकाश डाला कि राहुल गांधी कहीं मोदी की तरह ही एक ‘अवतार’ तो नहीं बनते जा रहे हैं, जिसे वे नापसंद करते हैं. उन्होंने अन्य विपक्षी नेताओं को राहुल गांधी के सामने छोटा कर दिया है, जिससे वे सहमे हुए प्रतीत होते हैं. विपक्षी नेता अब हाशिए पर आ गए हैं और विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा, यह सवाल अब उठना ही बंद हो गया है, क्योंकि यह एक स्वीकृत तथ्य बन गया है कि राहुल गांधी ही यह तय कर रहे हैं कि मोदी से लड़ने के उपकरण क्या होंगे.
यह स्थिति बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस की अत्यधिक सीटों की मांग में परिलक्षित होती है, जबकि संगठनात्मक रूप से कांग्रेस उन सीटों के काबिल नहीं है. महागठबंधन के घटक दल भी राहुल गांधी के बिना आगे बढ़ने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं.
एक और चिंताजनक पहलू यह है कि राहुल गांधी ने जहां विपक्ष से अपना कद बहुत ऊंचा कर लिया है, वहीं वे विपक्ष का नेतृत्व भी नहीं कर रहे हैं. न तो सामने से और न ही पीछे से. हाल के दिनों में उनकी ममता, उद्धव या अखिलेश से किसी सार्वजनिक मुलाकात या इंडिया ब्लॉक की कोई मीटिंग नहीं देखी गई है.
निधीश त्यागी ने कहा कि राहुल गांधी की हाल की राजनीति लोगों की नब्ज पकड़ पा रही है, लेकिन हमारा मौजूदा राजनीतिक ढांचा लोगों और राहुल गांधी दोनों को विफल कर रहा है. विपक्ष ही नहीं, कांग्रेस भी उस चुनौती को बड़े पैमाने पर संबोधित करने में विफल रही है. राहुल गांधी की यात्राएं बड़ी खबरें बनती हैं, लेकिन क्या वे सिर्फ एक घटना हैं या एक सतत राजनीतिक अभियान का हिस्सा? पार्टी और अन्य नेताओं को इस अभियान को आगे बढ़ाना होगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
दत्त ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में केवल कांग्रेस ही एक राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी है, जबकि अन्य सभी क्षेत्रीय हैं. इस नाते कांग्रेस की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि यदि राहुल गांधी अनुपस्थित होते हैं, तो यह पूरे विपक्ष की अनुपस्थिति के समान है.
श्रवण गर्ग ने राहुल गांधी की असफलता के संभावित कारण पर भी बात की. उन्होंने कहा कि राहुल ने दूसरों के मुकाबले अपना कद इतना बड़ा कर लिया है कि अब लोग उनके साथ खड़े होने से डरते हैं. पार्टी के भीतर भी लोग उनसे सुरक्षित दूरी बनाए रखते हैं. राहुल गांधी क्राउड के साथ चलते हैं, लेकिन अकेले चलते हैं. उनके साथ अनजाने चेहरे होते हैं, जबकि प्रियंका या सोनिया गांधी के साथ उनका सहज स्तर अलग है. यहां तक कि पार्टी के अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रति उनकी इज्जत का कारण भी उनकी दलित पृष्ठभूमि या अनुभव हो सकता है.
एक समय कांग्रेस में G23 जैसा असंतुष्ट समूह सक्रिय था, जो अब पूरी तरह गायब हो गया है. राहुल गांधी के साथ मंच पर कोई बड़ा नेता नहीं दिखता. वे अक्सर अकेले ही फ्रेम में होते हैं, जैसा कि मोदी जी के बारे में कहा जाता था. कर्नाटक में उनके महादेवपुरा और आलंद के प्रस्तुतीकरण में कोई स्थानीय कांग्रेसी नेता या उम्मीदवार मौजूद नहीं था, केवल शिकायतकर्ता ही थे.
सबसे बड़ी चिंता यह है कि यदि देश में विपक्ष विफल होता है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? क्या राहुल गांधी यह कहकर हाथ खड़े कर देंगे कि वे विपक्ष के नेता नहीं हैं? क्या वे कांग्रेस को उन राज्यों में मजबूत कर रहे हैं, जो कभी उसके गढ़ थे, जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड? ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
दत्त ने अपनी बातचीत को समाप्त करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने हमें मुक्ति दिलाई, हमारे विचारों से मोदी का प्रभाव कम किया, हमें निडर बनाया और सरकार को रक्षात्मक स्थिति में ला दिया है. लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में मजबूत क्या हो रहा है, देश के अलावा? क्या राहुल से लोग कुछ कहने या उन्हें गलत बताने से डर रहे हैं? क्या वे अपनी मर्जी के मालिक हो गए हैं, क्योंकि विपक्ष में और देश में भी कोई नहीं है जो उन्हें चुनौती दे सके?
जब ऐसी स्थितियाँ आती हैं, तो सरकार वांगचुक जैसे कार्यकर्ताओं को लेह से उठाकर जोधपुर में डाल देती है, उनके पाकिस्तान कनेक्शन ढूंढने लगती है. यदि लेह जैसे आंदोलनों की भ्रूण हत्या हो जाती है, तो इसका दोष किस पर जाएगा? राहुल गांधी ने मणिपुर से यात्रा शुरू की, लेकिन मणिपुर में अब क्या? उत्तराखंड में छात्रों के साथ जो हो रहा है, उसके लिए कौन नेता है? हरीश रावत जैसे पुराने नेता अब प्रभावी नहीं हैं.
यह चिंता का विषय है कि जब राहुल गांधी महत्वपूर्ण क्षणों में साउथ अमेरिका की यात्रा पर निकल जाते हैं, तो बीजेपी का मीडिया सेल सक्रिय हो जाता है. निधीश त्यागी ने कहा कि राहुल गांधी की राजनीति में ‘लूज स्ट्रैंड्स’ दिखते हैं, जहां अच्छी पहल के बाद वह कहीं बीच में ही रह जाती है. कांग्रेस के पास मुसलमानों, लद्दाख, मणिपुर या उत्तराखंड के छात्रों के मुद्दों पर कोई स्पष्ट नीतिगत प्रतिक्रिया व्यवस्था नहीं दिखती. देश के 18-19 करोड़ लोगों की तकलीफ पर भी कोई बात नहीं होती. यह एक कमजोर डैशबोर्ड की निशानी है.
सारी जवाबदेही एक व्यक्ति की नहीं हो सकती. विपक्ष एक टीम की तरह काम करता हुआ नहीं दिख रहा है. क्षेत्रीय पार्टियों में राष्ट्रीय सोच का अभाव है, जो पहले होता था. यह स्थिति दक्षिण भारत में कुछ अलग है, जहां के नेता राष्ट्रीय मुद्दों पर स्टैंड लेते दिखते हैं. यह देश के लिए गंभीर बात है कि राजनीतिक दल और प्रणाली लोगों के मुद्दों को लगातार विफल कर रहे हैं, और इसमें सिर्फ सत्ता पक्ष को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि कहीं न कहीं विपक्ष के भीतर भी कुछ ऐसा है जो ठीक से प्रबंधित नहीं हो पा रहा है.
आरएसएस का मुख्य अतिथि के तौर पर सीजेआई गवई की मां को न्यौता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की मां, कमलताई आर. गवई को महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले में अक्टूबर की शुरुआत में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है. यह कार्यक्रम विजयादशमी और संगठन की शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमरावती के श्री दादासाहेब गवई चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्ष कमलताई आर. गवई ने ज़िले में होने वाले इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सहमति दे दी है.
आरएसएस द्वारा भेजे गए निमंत्रण पत्र में लिखा है, “हमारे हिंदू समाज में, विजयादशमी का पवित्र त्योहार वीरता और शक्ति के जागरण का उत्सव है. इस पवित्र अवसर पर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य 100 वर्ष पूरे कर लेगा. विश्व शांति और मानव कल्याण के उद्देश्य से, हिंदू समाज के साथ संघ की यात्रा जारी है…”. निमंत्रण पत्र के अनुसार, डॉ. कमलताई आर. गवई 5 अक्टूबर को अमरावती में आयोजित होने वाले इस समारोह में मुख्य अतिथि होंगी.
यह कार्यक्रम RSS की अमरावती महानगर इकाई द्वारा अमरावती के किरण नगर इलाके में श्रीमती नरसम्मा महाविद्यालय मैदान में आयोजित किया जा रहा है. कार्यक्रम में वरिष्ठ RSS नेता जे. नंदकुमार मुख्य वक्ता होंगे. कमलताई गवई की इस कार्यक्रम में उपस्थिति को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि वह न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति की मां हैं और उनका एक सार्वजनिक समारोह में RSS के मंच पर आना कई संदेश देता है.
भारत ने एशिया कप जीता, पाकिस्तान को हराया
रविवार को 147 रन का टारगेट भारतीय टीम ने 20वें ओवर की चौथी बॉल पर हासिल कर लिया. रिंकू सिंह ने चौका लगाकर भारत को जीत दिलाई. तिलक वर्मा 69 रन बनाकर नाबाद लौटे. दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में भारत ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी चुनी. पाकिस्तान की टीम 19.1 ओवर में 146 रन के स्कोर पर ऑलआउट हो गई. कुलदीप यादव ने सबसे ज्यादा 4 विकेट हासिल किए. जबकि जसप्रीत बुमराह, वरुण चक्रवर्ती और अक्षर पटेल ने 2-2 विकेट. पाकिस्तान से साहिबजादा फरहान ने सबसे ज्यादा 57 रन बनाए.
फेसबुक के ‘साधारण’ ग्रुप्स में कैसे पनप रहे हैं चरम दक्षिणपंथी विचार: द गार्डियन की पड़ताल
द गार्डियन द्वारा की गई एक विस्तृत जांच से पता चला है कि ब्रिटेन में चरम दक्षिणपंथी फेसबुक ग्रुप्स का एक नेटवर्क लाखों ब्रितानियों को नस्लवादी और चरमपंथी दुष्प्रचार के संपर्क में ला रहा है और यह “कट्टरता का इंजन” बन गया है. एक साल तक चली इस डेटा-आधारित जांच में पाया गया कि ये समूह, जो अक्सर सेवानिवृत्ति की उम्र के आम लोगों द्वारा चलाए जाते हैं, अप्रवासन-विरोधी और नस्लवादी भाषा का गढ़ हैं, जहां ऑनलाइन नफरत पर कोई रोक-टोक नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समूह एक ऐसा ऑनलाइन वातावरण बनाते हैं जो लोगों को पिछले साल की गर्मियों में हुए दंगों जैसी चरम कार्रवाइयों के लिए कट्टरपंथी बना सकता है.
राफेल हर्नांडेस, ऐलेना मोरेसी, रॉबिन विंटर और पामेला डंकन की रिपोर्ट के अनुसार, द गार्डियन ने नेटवर्क के तीन सबसे बड़े सार्वजनिक समूहों से 51,000 से अधिक टेक्स्ट पोस्ट का विश्लेषण किया. इसमें पाया गया कि सैकड़ों पोस्ट गलत सूचनाओं और षड्यंत्र के सिद्धांतों से भरे थे, जिनमें चरम दक्षिणपंथी विचार, नस्लवादी गालियों का इस्तेमाल और श्वेत राष्ट्रवाद के सबूत थे. जांच में कई प्रमुख विषय सामने आए. पहला, मुख्यधारा की संस्थाओं के प्रति गहरा अविश्वास था, जहां राजनेताओं को “देशद्रोही” और “गद्दार” बताया जाता था, और पुलिस, न्यायपालिका व मीडिया को नियंत्रित या पक्षपाती कहा जाता था. दूसरा, अप्रवासियों को बलि का बकरा बनाना एक आम बात थी, जिसमें उन्हें “अपराधी”, “परजीवी”, “आदिम” और “जूँ” जैसी अमानवीय भाषा का इस्तेमाल करके व्यवस्थित रूप से बदनाम किया जाता था.
तीसरा विषय “मूलनिवासी” पहचान का था, जिसमें पोस्ट करने वाले खुद को “स्वदेशी”, “ब्रिटिश”, “श्वेत” और “ईसाई” के रूप में देखते थे, जिन्हें खतरे में माना जाता था और यह कहा जाता था कि ब्रितानी अब “दोयम दर्जे के नागरिक” बन गए हैं. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सामाजिक मनोविज्ञान के प्रोफेसर सैंडर वैन डेर लिंडेन ने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करना इतिहास में फासीवादियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली विधियों की याद दिलाता है. कट्टरता पर शोध करने वाली डॉ. जूलिया एबनर ने चेतावनी दी कि जब एक समूह के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता एक बाहरी समूह से अस्तित्व के खतरे की भावना के साथ जुड़ जाती है, तो चरमपंथी विचारधाराएं खतरनाक हो सकती हैं.
जांच में यह भी पाया गया कि इन समूहों में गलत सूचनाएं और षड्यंत्र सिद्धांत भी खूब फैलाए जाते हैं, जैसे कि जलवायु संकट का खंडन और “ग्रेट रिसेट” जैसी थ्योरी. विशेषज्ञों के अनुसार, अप्रवासन जैसे मुद्दों पर आम सहमति का माहौल अधिक चरम “नेताओं” द्वारा षड्यंत्रों को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. फेसबुक की मूल कंपनी मेटा ने द गार्डियन द्वारा विश्लेषण किए गए तीन समूहों की समीक्षा की और एक प्रवक्ता ने पुष्टि की कि सामग्री ने उसकी घृणित आचरण नीति का उल्लंघन नहीं किया है. यह जांच इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे चरम दक्षिणपंथी विचार अब केवल 4chan या टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म तक सीमित नहीं हैं, बल्कि फेसबुक जैसे मुख्यधारा के प्लेटफॉर्म पर भी पनप रहे हैं.
कूटनीति से लेकर फुटबॉल तक, वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ रहा है इज़राइल
गाज़ा में जारी युद्ध और मानवीय संकट के कारण इज़राइल वैश्विक मंच पर तेज़ी से अलग-थलग पड़ता जा रहा है, जिसका असर आर्थिक, सांस्कृतिक और खेल के मैदानों तक पहुंच गया है. सीएनएन की रिपोर्टर लॉरेन केंट लिखती हैं कि गाज़ा शहर पर ज़मीनी हमले की घोषणा और कतर की धरती पर हमास नेतृत्व के खिलाफ अभूतपूर्व हमले के बाद से इज़राइल की अंतरराष्ट्रीय निंदा बढ़ गई है. पिछले हफ़्ते, संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र जांच ने पहली बार यह निष्कर्ष निकाला कि इज़राइल ने गाज़ा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार किया है, जिसे इज़राइली सरकार ने खारिज कर दिया है.
आर्थिक मोर्चे पर, इज़राइल के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार यूरोपीय संघ ने इज़राइल के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौते को आंशिक रूप से निलंबित करने के लिए प्रतिबंधों का प्रस्ताव दिया है. दुनिया के सबसे बड़े सॉवरेन वेल्थ फंड, नॉर्वे ने गाज़ा में बिगड़ते मानवीय संकट के कारण इज़राइल में अपने पोर्टफोलियो के कुछ हिस्सों को बेचने की घोषणा की. इसके अलावा, फ्रांस, इटली, नीदरलैंड, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों ने गाज़ा में इज़राइल के आचरण पर आंशिक या पूर्ण हथियार प्रतिबंध लगा दिया है. इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खुद इस महीने की शुरुआत में स्वीकार किया था कि इज़राइल “एक तरह के अलगाव” का सामना कर रहा है.
मनोरंजन और संस्कृति के क्षेत्र में भी इज़राइल को झटके लग रहे हैं. आयरलैंड, नीदरलैंड और स्पेन सहित कई यूरोपीय देशों के प्रसारकों ने कहा है कि अगर इज़राइल को 2026 में यूरोविज़न सांग कॉन्टेस्ट में भाग लेने की अनुमति दी जाती है तो वे इसका बहिष्कार करेंगे. हॉलीवुड में, ओलिविया कोलमैन, एम्मा स्टोन और एंड्रयू गारफील्ड सहित हज़ारों फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं ने इज़राइली फिल्म संस्थानों के साथ काम न करने का संकल्प लिया है. खेल जगत भी इससे अछूता नहीं है. इज़राइल-प्रीमियर टेक टीम की भागीदारी के विरोध में एक बड़ी बाइक रेस का अंतिम चरण रद्द कर दिया गया. वहीं, इज़राइली मीडिया में यह डर जताया जा रहा है कि इज़राइल को यूरोपीय फुटबॉल प्रतियोगिताओं से निलंबित किया जा सकता है.
इज़राइल के खिलाफ इस आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिक्रिया ने रंगभेद के दौर में दक्षिण अफ्रीका पर लगाए गए दबाव से तुलना को जन्म दिया है. इज़राइल के पूर्व राजदूत इलान बारूक ने सीएनएन को बताया कि यूरोविज़न और फुटबॉल टूर्नामेंट बहुत लोकप्रिय हैं, और इन पर दबाव का असर ज़रूर पड़ेगा, जैसा कि दक्षिण अफ्रीका के मामले में हुआ था. इस बीच, कनाडा, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसे कई पश्चिमी देशों ने फिलिस्तीनी राज्य को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी है, जिससे संयुक्त राष्ट्र में भी इज़राइल पर कूटनीतिक दबाव बढ़ा है. हालांकि, इन सब के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका अभी भी इज़राइल के साथ मजबूती से खड़ा है.
रूस का यूक्रेन पर युद्ध के सबसे बड़े हवाई हमलों में से एक, चार की मौत, दर्जनों घायल
रूस ने रविवार तड़के यूक्रेन भर के ठिकानों पर 600 से ज़्यादा ड्रोन और मिसाइलें दागीं, जो युद्ध के सबसे बड़े हवाई हमलों में से एक था. सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के मुताबिक, रात भर हुए इन हमलों के दौरान कीव में कम से कम चार लोग मारे गए. स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि राजधानी और आसपास के क्षेत्र में 42 लोग और दक्षिणी यूक्रेन के ज़ापोरिज्जिया में 31 लोग घायल हुए. रविवार सुबह भी यूक्रेनी राजधानी के ऊपर ड्रोन मार गिराए जा रहे थे.
यूक्रेनी वायु सेना के अनुसार, फरवरी 2022 में रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण की शुरुआत के बाद से यह तीसरा सबसे बड़ा हमला था. वायु सेना ने कहा कि रूस ने 595 ड्रोन और 48 मिसाइलें दागीं, जिनमें दो बैलिस्टिक मिसाइलें और शक्तिशाली क्रूज़ मिसाइलें शामिल थीं. वायु सेना ने दावा किया कि हवाई सुरक्षा ने 43 क्रूज़ मिसाइलों और अधिकांश ड्रोनों को मार गिराया या निष्क्रिय कर दिया. इस भीषण बमबारी के बीच, पोलैंड ने रविवार सुबह अपने हवाई क्षेत्र में लड़ाकू विमानों को भेजा. पोलैंड की सेना ने कहा, “ये उपाय निवारक प्रकृति के हैं और इनका उद्देश्य हवाई क्षेत्र को सुरक्षित करना और नागरिकों की रक्षा करना है.”
रूसी ड्रोन और मिसाइल हमलों ने पूरे यूक्रेन में हवाई हमले के अलर्ट को सक्रिय कर दिया. कीव में आवासीय इमारतों और बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया गया. यूक्रेन के राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ एंड्री यरमक ने इसे “नागरिकों के खिलाफ युद्ध” कहा. कीव में मारे गए लोगों में एक 12 वर्षीय लड़की भी शामिल थी. ज़ेलेंस्की ने कहा कि राजधानी में कार्डियोलॉजी संस्थान की इमारत क्षतिग्रस्त हो गई, जहां दो लोगों की मौत हुई. जवाब में, रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसकी सेना ने यूक्रेन में सैन्य उद्योगों और हवाई क्षेत्रों के खिलाफ “बड़े पैमाने पर हमला” किया है. ज़ेलेंस्की ने शनिवार को कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ एक “बहुत अच्छी बैठक” के दौरान अमेरिकी हथियार प्रणालियों को खरीदने के लिए एक “मेगाडील” आगे बढ़ी है, जिसकी कीमत 90 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है.
मिथुन मन्हास बीसीसीआई के नए अध्यक्ष
दिल्ली के पूर्व कप्तान मिथुन मन्हास को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में रविवार को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया. इस प्रकार, 45 वर्षीय मन्हास बोर्ड के 37वें अध्यक्ष बन गए. उन्होंने रोजर बिन्नी का स्थान लिया, जिन्होंने पिछले महीने 70 वर्ष की आयु होने के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था.
“पीटीआई” के अनुसार, 1997-98 से 2016-17 के बीच 157 प्रथम श्रेणी, 130 लिस्ट ए और 55 आईपीएल मैच खेलने वाले इस पूर्व ऑलराउंडर का नाम इस महीने की शुरुआत में नई दिल्ली में बोर्ड के शक्तिशाली सदस्यों की अनौपचारिक बैठक के बाद सहमति से चुना गया था. मन्हास ने प्रथम श्रेणी मैचों में 27 शतकों के साथ 9714 रन और लिस्ट ए मैचों में 4126 रन का प्रभावशाली रिकॉर्ड बनाया है.
बदबूदार जूतों पर भारतीय स्टडी ने जीता इगनोबेल पुरस्कार, जानिए क्या है यह दिलचस्प शोध
लगभग हर घर में जूतों की एक जोड़ी ऐसी होती है जिसकी गंध को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होता है. इसी सार्वभौमिक समस्या को दो भारतीय शोधकर्ताओं ने विज्ञान का विषय बना दिया. उन्होंने यह अध्ययन किया कि बदबूदार जूते शू रैक के उपयोग के हमारे अनुभव को कैसे आकार देते हैं, और इस शोध के लिए उन्हें इग नोबेल(Ig Nobel) पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जो मज़ेदार लेकिन आविष्कारशील वैज्ञानिक प्रयासों के लिए दिया जाने वाला एक व्यंग्यात्मक पुरस्कार है. बीबीसी के इंडिया संवाददाता सौतिक बिस्वास की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के पास शिव नादर विश्वविद्यालय में डिज़ाइन के सहायक प्रोफेसर विकास कुमार (42) और उनके पूर्व छात्र सार्थक मित्तल (29) ने इस विचार पर काम किया.
मित्तल ने अक्सर देखा कि उनके हॉस्टल के गलियारों में कमरे के बाहर जूते रखे रहते थे. शुरुआत में उनका विचार छात्रों के लिए एक आकर्षक शू रैक डिज़ाइन करना था, लेकिन जल्द ही उन्हें असली समस्या का पता चला - यह जगह की कमी नहीं, बल्कि जूतों से आने वाली बदबू थी. दोनों ने विश्वविद्यालय के छात्रावासों में 149 छात्रों का सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण में पता चला कि आधे से ज़्यादा लोग अपने या किसी और के जूतों की बदबू से शर्मिंदा महसूस कर चुके थे. इसके बाद दोनों शोधकर्ताओं ने विज्ञान का रुख किया. उन्हें पता था कि इस गंध का कारण ‘काइटोकोकस सेडेंटेरियस’ नामक बैक्टीरिया है जो पसीने वाले जूतों में पनपता है. उनके प्रयोगों से पता चला कि पराबैंगनी (अल्ट्रावॉयलेट) प्रकाश की एक छोटी सी बौछार इन रोगाणुओं को मार सकती है और बदबू को खत्म कर सकती है.
उन्होंने एक ऐसे शू रैक का प्रोटोटाइप तैयार किया जिसमें UVC लाइट लगी हो, जो न केवल जूते रखती है बल्कि उन्हें कीटाणुरहित भी करती है. प्रयोग के लिए, उन्होंने विश्वविद्यालय के एथलीटों द्वारा पहने गए जूतों का इस्तेमाल किया. अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ 2-3 मिनट का UVC उपचार बैक्टीरिया को मारने और दुर्गंध को खत्म करने के लिए पर्याप्त था. हालांकि, ज़्यादा देर तक प्रकाश डालने से जूते का रबर जलने लगता था. यह शोध 2022 में प्रकाशित हुआ था, लेकिन इग नोबेल पुरस्कार समिति ने खुद इसे खोजा और शोधकर्ताओं से संपर्क किया. श्री कुमार ने कहा, “हमें इस पुरस्कार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. यह एक पुराना पेपर था... इग नोबेल टीम ने बस हमें ढूंढ निकाला, हमें फोन किया, और यह अपने आप में आपको हंसाता है और सोचने पर मजबूर करता है.” इस वर्ष के अन्य इग नोबेल विजेताओं में गायों पर पेंटिंग करके मक्खियों को भगाने वाले जापानी जीवविज्ञानी और पास्ता सॉस के रहस्यों की खोज करने वाले भौतिकी शोधकर्ता शामिल हैं.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.