29/10/2025 : राहुल बिहार वापस, मोदी पर हमला | जंगल राज का प्रेत | गांवों में पीके की अपील कम | क्लाउड सीडिंग फेल | गाज़ा पर फिर इजरायली हमला | गणित की पढ़ाई में राष्ट्रवाद घुसेड़ना
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
वोट के लिए नाचेंगे मोदी, बिहार में राहुल गांधी का तीखा हमला
बिहार का चुनावी मूड, नीतीश लोकप्रिय, तेजस्वी पर विरासत का बोझ, मोदी अब भी सबसे मज़बूत
दो दशक बाद भी लालू के साये में तेजस्वी, क्या ‘जंगल राज’ का टैग मिटा पाएंगे
प्रशांत किशोर का ज़मीनी असर फ़ीका, ग्रामीण मतदाता नहीं करना चाहते वोट बर्बाद
आईआईएम में अध्यक्षों की नियुक्ति पर केंद्र की चुप्पी, हाईकोर्ट के आदेश की भी अनदेखी
दिल्ली में प्रदूषण से जंग, पहली बार क्लाउड सीडिंग, पर विशेषज्ञ जता रहे चिंता
बंगाल में मनरेगा फिर शुरू होगा, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका की खारिज
केंद्रीय सूचना आयोग में खाली पद, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिया दो हफ़्ते में भरने का भरोसा
संजीव भट्ट को झटका, जेल बदलने की याचिका खारिज
आयुष्मान भारत योजना पर संकट, अस्पतालों का करोड़ों का भुगतान अटका
अमेरिकी टैरिफ का असर, भारत के झींगा निर्यात में भारी गिरावट
लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ सकती है वायुसेना, अपग्रेड में देरी बन रही वजह
म्यांमार के स्कैम हब से 500 भारतीय लौटेंगे घर
कनाडा में पंजाबी कारोबारी की हत्या, गैंग का दावा, परिवार का इनकार
सपनों का देश अमेरिका, हथकड़ी में लौटे युवा, ‘डंकी’ रूट की दर्दनाक हक़ीक़त
नई श्रम नीति में मनुस्मृति का हवाला, काम को बताया ‘राजधर्म’
सोनम वांगचुक की हिरासत पर सवाल, पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
गणित के पाठ्यक्रम में ‘राष्ट्रवाद’ की घुसपैठ पर विशेषज्ञों ने जताई चिंता
जामिया के स्थापना दिवस पर ‘अखंड भारत’ और ‘संस्कृत क़व्वाली’ को लेकर विवाद
ट्रम्प का नया दावा, भारत-पाक को दी थी 250% टैरिफ की धमकी
बिहार लौटते ही राहुल का सीधा हमला, ‘आप मोदी से नाचने को कहेंगे तो...’
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बुधवार को बिहार में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की. मुज़फ़्फ़रपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए, कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला. उन्होंने दावा किया कि “उन्हें सिर्फ़ वोट चाहिए” और आरोप लगाया कि वह चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया न्यूज़ डेस्क की रिपोर्ट के अनुसार, राहुल गांधी ने कहा, “उन्हें सिर्फ़ आपका वोट चाहिए. अगर भीड़ में से 200 लोग वोटों के बदले पीएम मोदी को मंच पर नाचने के लिए कहें, तो नाच शुरू हो जाएगा. पीएम मोदी मंच पर भरतनाट्यम करने लगेंगे.”
प्रधानमंत्री के यमुना किनारे छठ पूजा करने के बयान पर तंज कसते हुए राहुल ने इस कृत्य का मज़ाक उड़ाया. उन्होंने कहा, “उन्होंने एक नाटक रचा और भारत की सच्चाई दिखाई... यमुना में गंदा पानी है. अगर कोई उसे पी ले तो या तो बीमार हो जाएगा या मर जाएगा... लेकिन मोदी ने एक नाटक रचा. उन्होंने वहां एक छोटा सा तालाब बनवाया... वे आपको चुनाव के लिए कुछ भी दिखाएंगे... पीछे से एक पाइप लगाया जाता है. उसमें साफ़ पानी डाला जाता है... समस्या यह हुई कि किसी ने पाइप की तस्वीर ले ली.”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राहुल ने “वोट चोरी” के अपने आरोप को दोहराया और भाजपा पर लोकतंत्र को नष्ट करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “वे आपके वोट चुराने में लगे हुए हैं. क्योंकि वे इस चुनाव की बीमारी को खत्म करना चाहते हैं. मैं आपको बता रहा हूं, उन्होंने महाराष्ट्र में चुनाव चुराए, उन्होंने हरियाणा में चुनाव चुराए, और वे बिहार में भी पूरी कोशिश करेंगे.”
कांग्रेस नेता ने आर्थिक नीतियों को लेकर भी पीएम मोदी पर निशाना साधा और उन पर नोटबंदी और जीएसटी के ज़रिए छोटे व्यवसायों को कुचलने का आरोप लगाया. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, “आपके फ़ोन के पीछे क्या लिखा है, बताइए. मेड इन चाइना. नरेंद्र मोदी जी ने नोटबंदी और जीएसटी लागू करके सभी छोटे व्यवसायों को नष्ट कर दिया है. हम कहते हैं कि यह मेड इन चाइना नहीं, मेड इन बिहार होना चाहिए. मोबाइल, शर्ट, पैंट - ये सब बिहार में बनने चाहिए और बिहार के युवाओं को उन कारखानों में रोज़गार मिलना चाहिए. हम ऐसा बिहार चाहते हैं.”
राहुल ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी नहीं बख्शा और दावा किया कि वह सिर्फ़ एक “चेहरा” हैं, जबकि भाजपा पीछे से तार खींच रही है. “नीतीश जी के चेहरे का इस्तेमाल हो रहा है. रिमोट कंट्रोल बीजेपी के हाथ में है. आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि वहां सबसे पिछड़े लोगों की आवाज़ सुनी जाती है,” उन्होंने कहा.
इसके जवाब में, भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए उन्हें “स्थानीय गुंडा” करार दिया और उन पर मतदाताओं का मज़ाक उड़ाने तथा ग़रीबों का अपमान करने का आरोप लगाया.
विश्लेषण: पाँच धारणाएं जो हावी हैं
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को घोषित होंगे, लेकिन ज़मीनी स्तर पर अभियान की गति छठ उत्सव के कारण थोड़ी धीमी पड़ गई है. इसके साथ ही, चुनाव प्रचार का तरीक़ा भी ज़मीन से हटकर सोशल मीडिया पर केंद्रित हो गया है. द हिंदू में प्रकाशित अमरनाथ तिवारी के विश्लेषण के अनुसार, इस गहन प्रचार के बीच मतदाताओं की बातचीत में कुछ प्रमुख विषय उभरे हैं.
पहला, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अभी भी दूसरे राजनीतिक नेताओं की तुलना में अधिक लोकप्रिय दिखते हैं, लेकिन उनकी गिरती सेहत एक चर्चा का विषय है, खासकर पुरुष मतदाताओं के बीच. सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ‘दस हज़ारी’ योजना, जिसके तहत ‘जीविका दीदियों’ को ₹10,000 दिए जाते हैं, ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल की है. नीतीश कुमार ने लंबे समय से महिलाओं के लिए एक जाति-निरपेक्ष वोट बैंक बनाने की कोशिश की है. महिला मतदाता हर जगह इस योजना की बात करती हैं और नीतीश कुमार के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करती हैं.
दूसरा, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव को अपने माता-पिता के 1990 से 2005 तक के शासन के दौरान “बिहार में अराजकता” का टैग विरासत में मिला है. NDA के नेता RJD के “कुशासन” के वर्षों को लेकर उन पर निशाना साधते रहे हैं. हालांकि, 36 साल के तेजस्वी युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रिय हैं. वे कहते हैं, “वह युवा हैं, और उन्होंने 17 महीनों के दौरान साबित कर दिया है कि वह जो कहते हैं, उसका मतलब वही होता है.”
तीसरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी भी राज्य के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सभी आयु समूहों के बीच सबसे लोकप्रिय नेता हैं. मतदाता मोदी को एक “मज़बूत नेता” के रूप में देखते हैं जो “सख्त हैं, और साथ ही समाज के हर वर्ग का ध्यान रखते हैं.”
चौथा, कांग्रेस पार्टी, जो 1990 में लालू प्रसाद के सत्ता में आने के बाद राज्य में राजनीतिक कोमा में चली गई थी, ने राहुल गांधी की 14-दिवसीय, 1,300 किलोमीटर लंबी ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ की सफलता के साथ आख़िरकार अपनी लय पा ली है. पार्टी मुख्यालय सदाकत आश्रम में लंबे समय बाद चहल-पहल देखी जा रही है.
पांचवां, पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा स्थापित नई जन सुराज पार्टी (JSP) के लिए ज़मीनी स्तर पर समर्थन की कमी स्पष्ट हो गई है. सोशल मीडिया और कुछ पारंपरिक मीडिया में प्रचार के बावजूद, ज़मीन पर पार्टी में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई देती है. एक मतदाता ने कहा, “यह (JSP) केवल सोशल मीडिया पर अच्छा कर रही है. यह एक अति-प्रचारित प्रचार है.”
पिता, पुत्र और ‘जंगल राज’ का साया
77 साल की उम्र में लगातार स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लालू प्रसाद अब सक्रिय राजनीति के केंद्र में नहीं हैं, लेकिन वे पार्टी के शुभंकर बने हुए हैं, जो RJD को बचाए भी रखते हैं और उस पर बोझ भी डालते हैं. द हिंदू में प्रकाशित शोभना नायर और अमित भेलारी के विस्तृत लेख के अनुसार, दो दशक बीत चुके हैं जब लालू का शासन समाप्त हुआ था, लेकिन “जंगल राज” का आरोप आज भी RJD का पीछा नहीं छोड़ रहा है.
“जंगल राज” शब्द की उत्पत्ति के कई क़िस्से हैं. एक संस्करण में, लालू प्रसाद खुद अपनी आत्मकथा में बताते हैं कि यह शब्द तब आया जब उन्होंने पटना गोल्फ कोर्स को शेरों के लिए सफारी पार्क में बदलने की कोशिश की थी. दूसरा और शायद ज़्यादा लोकप्रिय संस्करण यह है कि यह शब्द पहली बार अगस्त 1997 में पटना उच्च न्यायालय द्वारा इस्तेमाल किया गया था, जब अदालत ने राज्य में खराब नागरिक परिस्थितियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि बिहार में “जंगल राज” है.
लालू प्रसाद ने चारा घोटाले के आरोपों के बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया था. अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के वंशवाद के विरोध से करने वाले लालू ने अंततः अपना ही एक वंश स्थापित किया. उन्होंने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव पर तरजीह देते हुए अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना.
तेजस्वी का राजनीति में प्रवेश क्रिकेट में अपना करियर बनाने की कोशिश के बाद हुआ. 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव पहली बार था जब तेजस्वी ने स्वतंत्र रूप से अभियान का नेतृत्व किया. उन्होंने “जंगल राज” की आलोचना से पार्टी को दूर करने के लिए अभियान के पोस्टरों से लालू की तस्वीरें भी हटा दी थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैलियों में तेजस्वी को “जंगल राज का युवराज” कहा था.
RJD मुख्य रूप से एक मुस्लिम-यादव (M-Y) पार्टी की अपनी पहचान से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही है. तेजस्वी ने इसे “BAAP” पार्टी (बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी और पुअर) के रूप में फिर से परिभाषित करने की कोशिश की है. 2025 के बिहार चुनाव में, RJD युवा तेजस्वी यादव और 74 वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच एक अंतर बनाने की कोशिश कर रही है. सवाल यह है कि क्या RJD के ये छोटे-छोटे क़दम उसे चुनावी परिदृश्य में अपनी स्थिति फिर से हासिल करने में मदद करेंगे.
ग्रामीण मतदाता ‘पीके’ पर अपना वोट बर्बाद करने को तैयार नहीं
ग्रामीण बिहार में, प्रशांत किशोर एक ऐसे शख्स बने हुए हैं, जिसकी परीक्षा अभी नहीं हुई है और जो कभी भी बदल सकता है. लिहाजा एक अपरीक्षित शख्स पर मतदाता अपना वोट बर्बाद करने को तैयार नहीं हैं. दूसरी ओर, राज्य के शहरों में, जन सुराज पार्टी के प्रमुख के विचार को कुछ सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, खासतौर पर उन लोगों के बीच जो एनडीए से परे विकल्प तलाश रहे हैं, लेकिन जो महागठबंधन को वोट देने में असहज हैं. “द हिंदू” में शोभना नायर लिखती हैं कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जेएसपी) के चमकीले पीले पोस्टर बिहार के परिदृश्य पर छाए हुए हैं, जो लोगों से उनके बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा और नौकरियों के लिए वोट करने का आग्रह कर रहे हैं. पार्टी का नारा — “गरीबी से निकलने का रास्ता, हर घर स्कूल का बस्ता” — कई लोगों के साथ गूंजता है. लेकिन संदेशवाहक, न कि संदेश, “परीक्षा” के दायरे में है.
जेएसपी ने बिहार विधानसभा की 243 में से 240 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. किशोर खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, उनका मानना है कि उनकी नई पार्टी एक ही सीट पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करने का जोखिम नहीं उठा सकती.
दिल्ली-कोलकाता राजमार्ग पर रेडीमेड गारमेंट्स की दुकान चलाने वाले 36 वर्षीय ब्रजेश कुमार कुशवाहा, नीतीश कुमार सरकार और विपक्षी महागठबंधन के बारे में लंबी-लंबी राय तुरंत दे देते हैं, लेकिन जब उनसे प्रशांत किशोर के बारे में राय पूछी जाती है तो वह हिचकिचाते हैं. वह कहते हैं, “अभी दूर की बात है.” कुशवाहा की टिप्पणियों के अलग-अलग रूप ग्रामीण इलाकों में सुनने को मिलते हैं. दरअसल, अभी किशोर परीक्षण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. लोग उन पर अपना वोट बर्बाद करने को तैयार नहीं हैं. कई लोग अगले विधानसभा चुनाव तक इंतजार करना चाहते हैं. देखना चाहते हैं कि क्या किशोर और उनकी पार्टी अगले चुनाव तक प्रासंगिक बने रहते हैं? अभी तो हाल कुछ ऐसा है कि लोगों में जेएसपी के चुनाव चिन्ह और उम्मीदवारों के नाम याद रखने की क्षमता भी कम दिखाई पड़ती है. इसके विपरीत, किशोर का दावा है कि कई दशकों में पहली बार, बिहार में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, हालांकि ग्रामीण मतदाता पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं, उनका कहना है कि यह मुकाबला द्विध्रुवीय ही है.
दरअसल, मतदाता की राय की प्रबलता उसकी अपनी विचारधारा पर निर्भर करती है. सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन के समर्पित मतदाताओं की राय अधिक मजबूत है. गुड़गांव में सुरक्षा गार्ड रणधीर यादव त्योहारों और चुनाव के लिए घर लौट आए हैं. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुखर समर्थक यादव, सांस लेने के लिए भी नहीं रुकते और घोषणा करते हैं कि “प्रशांत किशोर भाजपा की बी-टीम हैं.” मुजफ्फरपुर जिले के कुरहनी में एक फार्मेसी चलाने वाले मदन प्रसाद सिंह राजपूत खुद को “202% भाजपा समर्थक” बताते हैं. किशोर के बारे में कहते हैं, “वह सब हवा में हैं; 4 नवंबर को बुलबुला फूट जाएगा.”
अलबत्ता, प्रशांत किशोर के लिए कुछ राहत की खबर शहरी इलाकों से मिल सकती है, क्योंकि उनके विचार को शहरी मतदाताओं के बीच कुछ सकारात्मक समर्थन मिला है. खासकर जिन लोगों को विकल्प की तलाश है. पेशा और जाति से हलवाई (पारंपरिक मिठाई बनाने वाले) संतोष कुमार गुप्ता इस छठ के मौसम में स्थानीय दुकानों को लड्डू की आपूर्ति करके अच्छा कारोबार कर रहे हैं. गया के पंचानपुर में, दूध वाली मीठी चाय की चुस्की के बीच, वह अपनी नवीनतम डिलीवरी का हिसाब निपटाते हैं. वह केंद्र में भाजपा सरकार द्वारा अग्रणी जातियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण शुरू करने से बहुत नाखुश हैं. वह धीरे से कहते हैं, “आज, एक अन्य पिछड़ा वर्ग/आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के छात्र को प्रवेश पाने के लिए सामान्य श्रेणी के छात्र से अधिक अंक प्राप्त करने पड़ते हैं.” वह कहते हैं, “बदलाव आवश्यक है.” क्या राजद बदलाव का माध्यम बन सकता है? उनका जवाब एक ज़ोरदार “नहीं” है. गुप्ता कहते हैं, “प्रशांत किशोर ने विभिन्न राजनीतिक दलों में काम किया है, उन्हें राजनीति की अच्छी समझ है और अगर आप उन्हें बोलते हुए सुनें, तो वह बहुत ही तर्कसंगत बात करते हैं.”
35 वर्षीय अनिल कुमार गया रेलवे स्टेशन पर एक छोटा होटल चलाते हैं. वह चंद्रवंशी समुदाय से हैं, जो ईबीसी श्रेणी के अंतर्गत आता है. वह खुद को एक समर्पित भाजपा मतदाता घोषित करते हैं, लेकिन राज्य में पार्टी के मौजूदा नेतृत्व से बहुत निराश हैं. सुबह के अखबार की सुर्खियों को पढ़ते हुए वह कहते हैं, “भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है.” लेकिन, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को वोट देना एक ऐसी छलांग है, जिसे वह लेने को तैयार नहीं हैं. उनके लिए किशोर “अधिक परिचित” हैं.
कार्टून | राजेन्द्र धोड़पकर
हाईकोर्ट ने 6 माह पूर्व दिया था आदेश, पर केंद्र ने नियुक्त नहीं किया आईआईएम काशीपुर में अध्यक्ष, दर्ज़न भर बी-स्कूलों की यही दशा
भाषणों में बातें तो अक्सर बहुत बड़ी-बड़ी की जाती हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं किया जाता. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 6 माह पहले केंद्र सरकार को आईआईएम काशीपुर के लिए एक नियमित अध्यक्ष नियुक्त करने का निर्देश दिया था, लेकिन केंद्र व्यवस्था करने में विफल रहा है. “द टेलीग्राफ” के अनुसार, हाईकोर्ट ने शिक्षा मंत्रालय को कार्रवाई करने के लिए चार महीने का भरपूर समय दिया था. इस समय सीमा को बीते भी दो माह हो चुके हैं, मगर कोई प्रगति नहीं हुई है. आईआईएम काशीपुर बिना नियमित अध्यक्ष के चल रहा है, और यह अकेला नहीं है– आईआईएम कलकत्ता सहित लगभग एक दर्जन प्रमुख बी-स्कूल (बिजनेस स्कूल) अभी भी महत्वपूर्ण नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं. केंद्र की उदासीनता इस बात का प्रमाण है कि वह उच्च शिक्षा शासन व्यवस्था– या स्वयं अदालतों के अधिकार को कितना कम महत्व देता है.
जानकारी के अनुसार, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने 17 अप्रैल को शिक्षा मंत्रालय के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता सुखविंदर सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर अध्यक्ष की नियुक्ति का आदेश पारित किया था. सिंह का तर्क था कि आईआईएम के अध्यक्ष का कार्यकाल चार साल से अधिक नहीं हो सकता और संदीप सिंह का आईआईएम काशीपुर के अध्यक्ष के रूप में पांच साल से अधिक समय तक बने रहना, नियमों का उल्लंघन है. बसंत कुमार मोहंती की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार दो साल से एक दर्जन आईआईएम के अध्यक्षों की नियुक्ति पर रोक लगाए बैठी है. अप्रैल में कोर्ट का आदेश आने के बाद आईआईएम कलकत्ता के एक संकाय सदस्य ने कहा था, “आईआईएम कलकत्ता और कई अन्य आईआईएम में अध्यक्ष की नियुक्ति के मुद्दे पर सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है. अब अदालत के आदेश के कारण उसे अध्यक्षों की नियुक्ति करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.” मगर, आदेश के 6 माह बाद भी सरकार इस मामले में पूरी तरह खामोश है. एक आईआईएम निदेशक ने कहा था कि प्रभारी निदेशक और अध्यक्ष महत्वपूर्ण निर्णय लेने में हिचकिचाते हैं, जिससे संस्थान के विकास को नुकसान पहुंचता है.
नई दिल्ली में पहली बार “क्लाउड सीडिंग”, साथ में विशेषज्ञों की चेतावनियां
बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपनी तरह के पहले प्रयास में, प्रशासन ने मंगलवार को नई दिल्ली में “क्लाउड सीडिंग” का प्रयोग किया, जिसका उद्देश्य बारिश कराना और शहर के जहरीले धुंध (स्मॉग) को साफ करना था. वायु गुणवत्ता मॉनिटरों के अनुसार, राजधानी के कुछ इलाकों में बारिश को बढ़ावा देने और हवा से प्रदूषकों को हटाने के लिए एक विमान ने बादलों में रसायन का छिड़काव किया. मगर, हवा की गुणवत्ता अभी भी “बहुत खराब” श्रेणी में बनी हुई है.
क्लाउड सीडिंग – मौसम संशोधन की एक विधि है जो बारिश को प्रेरित करने के लिए बादलों में रसायन छोड़ती है – का उपयोग पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात जैसे शुष्क क्षेत्रों में किया जाता रहा है, हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि क्लाउड सीडिंग का प्रभाव सीमित रहता है और इसका धुंध के अंतर्निहित कारणों पर असर नहीं होता है. विशेषज्ञ इस तथ्य से भी आगाह करते हैं कि ‘क्लाउड सीडिंग’ के दीर्घकालिक प्रभावों पर शोध सीमित है. “द हिंदू” में दो विशेषज्ञों ने लिखा है कि नवीनतम योजना “विज्ञान के दुरुपयोग और नैतिकता की अनदेखी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.”
दिल्ली में ज़हरीले धुएं से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश का प्रयोग क्यों विफल हुआ
दिल्ली के अधिकारियों ने मंगलवार को शहर के बिगड़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराने का एक क्लाउड सीडिंग परीक्षण किया, जो असफल रहा. बीबीसी न्यूज़, दिल्ली से अभिषेक डे की रिपोर्ट के अनुसार, यह विज्ञान बादलों में बदलाव करके बारिश कराने की प्रक्रिया है. क्लाउड सीडिंग आमतौर पर बादलों में सिल्वर आयोडाइड जैसे छोटे कणों को दागकर बारिश पैदा करने के लिए की जाती है. दुनिया भर में इस तकनीक का इस्तेमाल होता है, लेकिन विशेषज्ञ इसे वायु प्रदूषण नियंत्रण के दीर्घकालिक उपाय के रूप में इसकी प्रभावशीलता पर संदेह जताते हैं.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर और दिल्ली सरकार की एक टीम ने यह परीक्षण तब किया, जब शहर घने धुंध में लिपटा हुआ था. हालांकि, 53 वर्षों में यह पहला प्रयास हवा में नमी की कमी के कारण “पूरी तरह से सफल नहीं” हो सका. पिछले दो हफ़्तों से दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 300 से 400 के बीच बना हुआ है, जो स्वीकार्य सीमा से लगभग 20 गुना ज़्यादा है. मंगलवार को अधिकारियों ने एक सेसना विमान का उपयोग करके वातावरण में सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड युक्त फ़्लेयर्स छोड़े.
आईआईटी कानपुर ने एक बयान में कहा कि बारिश न होने के बावजूद, मंगलवार के प्रयोग से पार्टिकुलेट मैटर में एक मापने योग्य कमी आई है, “यह दर्शाता है कि सीमित नमी की स्थिति में भी, क्लाउड सीडिंग वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए योगदान कर सकती है.” हालांकि, संस्थान के निदेशक मणींद्र अग्रवाल ने बीबीसी हिंदी को बताया कि यह दिल्ली की स्थायी प्रदूषण समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता. अग्रवाल ने कहा, “सफलता का एक पैमाना यह है कि क्या बारिश होती है, जो निश्चित रूप से नहीं हुई. बादलों में नमी की मात्रा बहुत कम थी. हम निकट भविष्य में अपने प्रयास जारी रखेंगे.”
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिरसा ने संवाददाताओं को बताया कि आने वाले हफ़्तों में बादलों में नमी का स्तर बढ़ने के बाद इस परीक्षण को दोहराए जाने की संभावना है. भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के अनुसार, दिल्ली का पहला क्लाउड-सीडिंग प्रयोग 1957 में किया गया था, जिसके बाद 1972 में एक और प्रयास हुआ. वे प्रयोग सूखे के प्रबंधन के लिए थे, जबकि यह प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्लाउड सीडिंग का पहला स्वदेशी प्रयास था.
जलवायु परिवर्तन और स्थिरता विशेषज्ञ अविनाश मोहंती ने 2023 में बीबीसी को बताया था कि क्लाउड सीडिंग से AQI कितना कम हो सकता है, इस पर पर्याप्त अनुभवजन्य साक्ष्य नहीं हैं. “हम यह भी नहीं जानते कि इसके प्रभाव क्या हैं क्योंकि अंत में आप प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बदलने की कोशिश कर रहे हैं और इसकी सीमाएं होना तय है.” विश्व स्तर पर क्लाउड सीडिंग के मिश्रित परिणाम मिले हैं. चीन ने ओलंपिक की मेज़बानी से पहले बारिश को प्रबंधित करने में अपनी सफलता का दावा किया है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात में पिछले साल दुबई में आई बाढ़ के बाद इस तकनीक पर सवाल उठाए गए थे.
बंगाल में ‘मनरेगा’ फिर से शुरू करने का हाईकोर्ट का आदेश बरकरार, केंद्र की याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी. उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को 1 अगस्त, 2025 से पश्चिम बंगाल में मनरेगा को फिर से शुरू करने का आदेश दिया था. उच्च न्यायालय ने कहा था कि ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम– जिसके लिए सरकार ने कथित भ्रष्टाचार के आधार पर पश्चिम बंगाल को फंड रोक दिया था – “ऐसी स्थिति की परिकल्पना नहीं करता है, जहां योजना को अनंतकाल तक ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा.” न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने उच्च न्यायालय के 18 जून के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है.
अपने आदेश में, उच्च न्यायालय ने कहा था कि केंद्र, पश्चिम बंगाल में योजना के कार्यान्वयन के दौरान कोई अनियमितता न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष शर्तें, प्रतिबंध और नियम लगाने के लिए पूरी तरह से सशक्त है, जो अन्य राज्यों में नहीं लगाए गए हैं. उच्च न्यायालय ने कहा था, “अदालत का प्रयास पश्चिम बंगाल राज्य में योजना को लागू करना है, जिसे पिछले लगभग तीन वर्षों से स्थगित रखा गया है.”
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, दो-तीन सप्ताह में भर देंगे केंद्रीय सूचना आयोग की रिक्तियां
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि केंद्रीय सूचना आयोग की रिक्तियों को “दो या तीन” सप्ताह में भरा जाएगा. इस समय आयोग में कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं है और उसकी स्वीकृत अधिकतम 10 की संख्या के मुकाबले केवल दो सूचना आयुक्त हैं. “द हिंदू” की खबर के अनुसार, याचिकाकर्ताओं अंजलि भारद्वाज, अमृता जौहरी और लोकेश बतरा का प्रतिनिधित्व करते हुए, अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि हालांकि, सरकार को सर्च कमेटी के सदस्यों और आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को सार्वजनिक करना होगा, लेकिन “शॉर्टलिस्टिंग के मानदंड भी प्रदान नहीं किए गए हैं और शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवार भी ज्ञात नहीं हैं.
संजीव भट्ट की जेल ट्रांसफर न करने वाली याचिका खारिज
पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को एक और कानूनी झटका लगा है, जिसमें गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल ही में उनकी पत्नी द्वारा उनकी पालनपुर जेल से बाहर किसी अन्य जेल में स्थानांतरण को रोकने वाली याचिका को खारिज कर दिया. खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि जेल स्थानांतरण मांगने का भट्ट का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है. गुजरात सरकार का तर्क है कि हिरासत में मौत के एक मामले में आजीवन कारावास की सज़ा पाए भट्ट को अपनी सज़ा राजकोट सेंट्रल जेल में काटनी होगी.
अस्पतालों का बकाया भुगतान में देरी, कहीं फेल न हो जाए ‘आयुष्मान भारत’
“द गार्डियन” में अमृत ढिल्लों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुचर्चित “आयुष्मान भारत योजना” की सफलता को खतरे में बताया है. अपनी रिपोर्ट में ढिल्लों ने लिखा है कि योजना की सफलता खतरे में है, क्योंकि अस्पतालों को भुगतान किए जाने वाले बकाया में देरी हो रही है. केरल राज्य में ही 4 अरब रुपये के दावे लंबित हैं.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने लंबित बिलों पर चिंता व्यक्त की है. आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा कहते हैं कि “सरकार को इस योजना के माध्यम से मतदाताओं के बीच बहुत राजनीतिक सद्भावना मिली है, लेकिन इसकी कीमत अस्पताल चुका रहे हैं.” डॉक्टरों और नर्सों का वेतन, दवाइयां, बिजली, आईटी सिस्टम जैसे खर्चों को अस्पताल वहन कर रहे हैं, जबकि उन्हें महीनों तक प्रतिपूर्ति नहीं मिलती. इससे गंभीर नकद प्रवाह (कैश फ़्लो) की समस्या पैदा हो गई है. बिलों का भुगतान दो सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए, लेकिन वे चार से छह महीने या उससे अधिक समय तक नहीं आते हैं. अक्सर देरी जटिल कागजी कार्रवाई, मामूली विसंगतियों या गलत छपाई जैसे तुच्छ मुद्दों पर दावों के खारिज होने या देरी होने के कारण होती है. फर्जी मरीजों के लिए झूठे दावे और बढ़ाए गए बिल जैसी बड़ी मात्रा में धोखाधड़ी भी होती है, जिससे आवेदनों की जांच में अधिक समय लगता है.
हरियाणा राज्य में स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि जब ₹5 अरब के बिलों का भुगतान नहीं किया गया तो 650 निजी अस्पतालों ने आयुष्मान के मरीजों को भर्ती या इलाज करने से मना कर दिया. इस गतिरोध का मतलब था कि मरीजों को भुगतना पड़ा. आलोचक यह भी बताते हैं कि सरकार द्वारा किए गए भुगतान 2021 से मुद्रास्फीति (महंगाई) की गति के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं.
इस रिपोर्ट में योजना की तमाम खूबियां भी गिनाई गई हैं, मसलन- योजना ने पहली बार करोड़ों भारतीयों के लिए अस्पताल में इलाज कराना संभव बना दिया है, जो अन्यथा इलाज के विनाशकारी खर्च से डरते थे. लेकिन मोदी सरकार द्वारा योजना के लिए किए गए भव्य दावों और वास्तविकता के बीच बड़ा अंतर है, और योजना के व्यवहार्य बने रहने के लिए बकाया भुगतान के मुद्दे को सुलझाना आवश्यक है.
ट्रम्प टैरिफ का भारत के झींगा निर्यात पर असर: सितंबर में 75% गिरावट
अमेरिका द्वारा 50% टैरिफ (आयात शुल्क) लगाए जाने के बाद, भारत से समुद्री उत्पादों का अमेरिका को निर्यात कम हो गया है, जो पारंपरिक रूप से भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य रहा है. निर्यातकों ने सितंबर में शिपमेंट में साल-दर-साल 75% की गिरावट का अनुमान लगाया है.
“द फाइनेंशियल एक्सप्रेस” की रिपोर्ट है कि फिलहाल, सितंबर के देश-विशिष्ट निर्यात के आधिकारिक आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन निर्यातकों का कहना है कि अमेरिका को समुद्री उत्पादों के निर्यात में गिरावट (जिसकी कुल हिस्सेदारी 35% थी) वित्त वर्ष 2026 में समग्र शिपमेंट को कम कर सकती है. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के सह-संस्थापक, अजय श्रीवास्तव ने कहा, “27 अगस्त से अमेरिका द्वारा भारत के शिपमेंट पर लगभग 60% के प्रभावी शुल्क लगाए जाने के बाद, चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में झींगा निर्यात में गिरावट आने की उम्मीद है.”
‘जीटीआरआई’ के अनुसार, अप्रैल-अगस्त 2025-26 के दौरान मछली, क्रस्टेशियंस (झींगा आदि) का निर्यात बढ़कर $2.7 बिलियन हो गया, जो साल-दर-साल 15% से अधिक की वृद्धि थी. लेकिन अमेरिका को शिपमेंट केवल 2.7% बढ़कर $859 मिलियन हुआ, जिसमें शुल्क के कारण निर्यात में यह धीमी वृद्धि देखी गई. रेटिंग फर्म ‘क्रिसिल रेटिंग्स’ ने कहा है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के कारण, वर्तमान वित्त वर्ष में भारत के झींगा निर्यात की मात्रा में 15% से 18% की गिरावट आने की उम्मीद है.
अगले दशक में भारत को लड़ाकू स्क्वाड्रनों की कमी का सामना करना पड़ सकता है
ऐसी ख़बरों के बीच कि वायु सेना अपने कई सुखोई Su-30MKI को ‘सुपर सुखोई’ में अपग्रेड करने की फाइल को सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति के पास भेजने में तेजी लाने की कोशिश कर रही है, राहुल बेदी से बात करने वाले पूर्व सैनिकों के एक वर्ग ने चेतावनी दी है कि यदि यह परियोजना जल्द ही शुरू नहीं होती है, तो भारत को अगले दशक में केवल 25 लड़ाकू स्क्वाड्रन (42 की स्वीकृत शक्ति के मुकाबले) के साथ काम चलाना पड़ सकता है, और यदि ऐसा होता है तो वह पाकिस्तान और चीन से और पीछे रह जाएगा, जो अपनी लड़ाकू क्षमता के आधुनिकीकरण और अधिष्ठापन में लगातार आगे बढ़ रहे हैं.
“द वायर” में बेदी ने लिखा है कि, 80 Su-30MKI को अपग्रेड करने की योजना को पहली बार 2006 में प्रस्तावित किया गया था – जिसके बाद यह लालफीताशाही में उलझ गई और दिल्ली के अंततः विफल रहे भारत-रूस पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान कार्यक्रम के दौरान पीछे धकेल दी गई – यह गाथा “इस बात का एक अध्ययन है कि नौकरशाही जड़ता किसी भी दुश्मन की मिसाइल से ज़्यादा तेज़ी से राष्ट्रीय क्षमता को कैसे मंद कर सकती है.
म्यांमार स्कैम हब पर कार्रवाई के बाद 500 भारतीयों को थाईलैंड से वापस लाएगा भारत
थाईलैंड के प्रधानमंत्री ने बुधवार को कहा कि म्यांमार के एक स्कैम हब (धोखाधड़ी केंद्र) पर कार्रवाई के बाद सीमा पार भागे 500 भारतीय नागरिकों को भारत वापस भेजा जाएगा. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 के तख्तापलट के बाद शुरू हुए गृह युद्ध के दौरान म्यांमार की ढीली-ढाली शासित सीमा पर ऐसे बड़े परिसर फले-फूले हैं, जहां इंटरनेट धोखेबाज़ लोगों को रोमांस और व्यापार के झांसे में फंसाते हैं.
पिछले हफ़्ते, सबसे कुख्यात केंद्रों में से एक - केके पार्क - पर छापे मारे गए, जिसके बाद सैकड़ों लोग सीमा पार नदी के रास्ते थाईलैंड के माई सॉट शहर में भाग गए. यह उथल-पुथल एएफपी की एक जांच के बाद हुई, जिसमें फरवरी में एक बहुप्रचारित कार्रवाई के बावजूद सीमा पर स्कैम केंद्रों पर तेज़ी से निर्माण का खुलासा हुआ था.
थाई प्रधानमंत्री अनुतिन चार्नवीराकुल ने संवाददाताओं से कहा, “लगभग 500 भारतीय माई सॉट में हैं. भारत सरकार उन्हें सीधे वापस ले जाने के लिए एक विमान भेजेगी.” इन धोखाधड़ी केंद्रों में काम करने वाले कई लोगों का कहना है कि उनकी तस्करी की गई थी, हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि कुछ कर्मचारी आकर्षक वेतन प्रस्तावों के लिए स्वेच्छा से भी जाते हैं. अनुतिन ने यह नहीं बताया कि भारतीय नागरिकों के साथ अपराधियों या पीड़ितों के रूप में व्यवहार किया जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि म्यांमार की सेना लंबे समय से स्कैम केंद्रों की अनदेखी करती रही है, जिससे उसके सहयोगी मिलिशिया को फ़ायदा होता है.
कनाडा में पंजाबी कारोबारी की हत्या, बिश्नोई गैंग का दावा; बेटे ने कहा- ‘कोई धमकी नहीं मिली थी’
कनाडा में पंजाबी व्यवसायी और परोपकारी दर्शन सिंह साहसी की हत्या की ज़िम्मेदारी लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के सदस्य गोल्डी ढिल्लों द्वारा कथित रूप से लिए जाने के बावजूद, उनके परिवार ने बुधवार को इस बात से इनकार किया कि उन्हें कोई धमकी भरी कॉल मिली थी. साहसी, जो कभी लुधियाना के राजगढ़ गांव में किसान थे, ने कनाडा में हज़ारों लोगों को रोज़गार देने वाली एक बहुराष्ट्रीय कपड़ा-रीसाइक्लिंग फर्म की स्थापना की.
द इंडियन एक्सप्रेस में दिव्या गोयल की रिपोर्ट के अनुसार, अज्ञात हमलावरों ने सोमवार सुबह ब्रिटिश कोलंबिया के एबॉट्सफ़ोर्ड में उनके घर के पास गोली मारकर उनकी हत्या कर दी, जब वह काम पर जाने के लिए अपने पिक-अप ट्रक में बैठ रहे थे. सोशल मीडिया पर एक अपुष्ट पोस्ट में, ढिल्लों ने साहसी की हत्या की ज़िम्मेदारी लेते हुए दावा किया कि उन्होंने “उनकी रंगदारी की मांगों को नज़रअंदाज़ किया था.”
फ़ोन पर द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, साहसी के छोटे बेटे, जिन्होंने अपना नाम नहीं बताने का अनुरोध किया, ने रंगदारी के दावों से इनकार किया. उन्होंने कहा, “हम अभी भी जवाब ढूंढ रहे हैं. हम ऐसी सभी बातों से पूरी तरह इनकार करते हैं. मेरे पिता या हमारे परिवार में किसी को भी किसी गैंगस्टर आदि से कोई धमकी, रंगदारी या फिरौती की कॉल नहीं आई. मेरे पिता को मारने से किसी को, बिल्कुल किसी को कोई फ़ायदा नहीं होता. वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने हमेशा समाज को वापस दिया.”
बेटे ने कहा, “अगर उन्हें ऐसी कोई धमकी मिली होती, तो उन्होंने हमसे साझा किया होता. उस दिन उनके व्यवहार में या उनके आस-पास कुछ भी असामान्य नहीं था. पुलिस मामले की जांच कर रही है, और हम चल रही जांच के दौरान कोई बयान नहीं देना चाहेंगे.” साहसी के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं.
कर्ज़, नौकरियां और अग्निवीर: अमेरिका से निर्वासित ‘डंकी’ युवाओं की हक़ीक़त
अवैध आप्रवासियों के ख़िलाफ़ चल रही कार्रवाई के बीच, अमेरिकी सरकार ने 54 भारतीय युवाओं को, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, न्यूयॉर्क-दिल्ली की एक नागरिक उड़ान से निर्वासित कर दिया है. वे सभी हथकड़ियों में थे जब वे वापस लौटे. द वायर के लिए कुसुम अरोड़ा की रिपोर्ट के अनुसार, ये सभी ‘डंकी’ रूट (ज़मीन, समुद्र और हवाई मार्गों से एक अवैध यात्रा) का उपयोग करके अमेरिका पहुंचे थे.
निर्वासित लोगों में से अधिकांश हरियाणा से हैं, इसके बाद पंजाब, आंध्र प्रदेश, गुजरात और गोवा का स्थान है. वे 26 अक्टूबर को घर पहुंचे. इनमें से कई को या तो अमेरिका में काम करते समय इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) के अधिकारियों ने गिरफ़्तार कर लिया था या वे डिटेंशन सेंटरों में बंद थे. कई लोग इस खेप में निर्वासित होने से पहले लगभग आठ से 11 महीने तक हिरासत में रहे.
नवीनतम खेप में निर्वासित लगभग सभी युवाओं की कहानी एक जैसी है - ‘डंकी’ रूट, कर्ज़ और संकट. इनमें हरियाणा के करनाल ज़िले के पोपड़ा गांव का हसन (21) भी था, जो 26 अक्टूबर, 2025 को निर्वासित होने से पहले 11 महीने तक डिटेंशन सेंटर में रहा. हसन के चाचा ने बताया कि उन्होंने 1.5 एकड़ कृषि भूमि बेची और 45 लाख रुपये का इंतज़ाम किया था.
एक अन्य युवा, जशनदीप सिंह को फ्लोरिडा में काम करते समय गिरफ़्तार किया गया था. उसने अमेरिका जाने के लिए 55 लाख रुपये खर्च किए थे. एक किसान नेता ने केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को भी एक प्रमुख कारण बताया, जो अधिक युवाओं को किसी भी तरह से विदेश जाने के लिए प्रेरित कर रही है. BKU (शहीद भगत सिंह) के प्रवक्ता तेजवीर सिंह अंबाला ने कहा, “जब सेना में कोई गुंजाइश नहीं बची तो युवाओं का भटकना स्वाभाविक था. पहले सेना में नौकरी सुरक्षा सुनिश्चित करती थी, लेकिन अग्निपथ योजना के तहत यह सब गायब है.”
नई श्रम नीति के मसौदे में मनुस्मृति का ज़िक्र
केंद्र सरकार की मसौदा श्रम नीति ने मनुस्मृति और अन्य प्राचीन ग्रंथों का हवाला देने के लिए विवाद खड़ा कर दिया है. द टेलीग्राफ़ में बसंत कुमार मोहंती की रिपोर्ट के अनुसार, इस मसौदे में श्रम को ‘राजधर्म’ कहा गया है, एक ऐसी धारणा जिसे विशेषज्ञ श्रमिकों के अधिकारों के साथ टकराव में पाते हैं.
श्रम मंत्रालय द्वारा तैयार की गई मसौदा राष्ट्रीय श्रम और रोज़गार नीति में कहा गया है कि सामाजिक मानदंड श्रम को एक पवित्र और नैतिक कर्तव्य मानते हैं जो सामाजिक सद्भाव, आर्थिक कल्याण और सामूहिक समृद्धि को बनाए रखता है. मसौदे में कहा गया है, “प्राचीन ग्रंथ जैसे मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, नारदस्मृति, शुक्रनीति और अर्थशास्त्र ने इस लोकाचार को राजधर्म की अवधारणा के माध्यम से व्यक्त किया, जिसमें संप्रभु के न्याय, उचित मज़दूरी और श्रमिकों को शोषण से बचाने के कर्तव्य पर ज़ोर दिया गया.”
विशेषज्ञों और ट्रेड यूनियनों ने हिंदू धर्मग्रंथों को संदर्भ के रूप में उपयोग करने के लिए केंद्र की नई श्रम नीति की आलोचना की है, जबकि उचित मज़दूरी, नौकरी की सुरक्षा और श्रमिकों के अधिकारों जैसे प्रमुख मुद्दों की अनदेखी की है. CPI से संबद्ध ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने आरोप लगाया कि मसौदा नीति ट्रेड यूनियनों के साथ परामर्श के बिना तैयार की गई है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के एक संकाय सदस्य प्रदीप शिंदे ने कहा कि मज़दूरी, श्रमिकों के अधिकार और शोषण से सुरक्षा आधुनिक अवधारणाएं हैं जो पिछली दो शताब्दियों में औद्योगीकरण और पूंजीवाद के उदय के बाद सामने आईं. उन्होंने कहा, “प्राचीन काल में, यह जजमानी व्यवस्था थी, और श्रमिकों के कोई अधिकार नहीं थे. हिंदू ग्रंथों द्वारा प्रचारित श्रम की अवधारणा का महिमामंडन करना जाति-आधारित श्रम विभाजन को फिर से लागू करने का एक प्रयास है.”
सोनम वांगचुक की हिरासत ‘अवैध और मनमानी’, पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील
प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत उनकी हिरासत सार्वजनिक व्यवस्था या सुरक्षा की वास्तविक चिंताओं पर आधारित नहीं है, बल्कि “घोर अवैधता और मनमानी” से ग्रस्त है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 52 वर्षीय वांगचुक की पत्नी ने अपनी संशोधित याचिका में यह बात कही है.
याचिका में कहा गया है, “हिरासत का आदेश घोर अवैधता और मनमानी से ग्रस्त है, क्योंकि यह बासी, अप्रासंगिक और बाहरी FIR पर निर्भर करता है. जिन पांच FIR पर भरोसा किया गया है, उनमें से तीन साल 2024 की हैं, जिनका सितंबर 2025 में वांगचुक की हिरासत से कोई निकट, जीवंत या तर्कसंगत संबंध नहीं है. इसके अलावा, पांच में से चार FIR, जिनमें से तीन ‘अज्ञात व्यक्तियों’ के ख़िलाफ़ दर्ज हैं, में वांगचुक का नाम नहीं है.”
बुधवार की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन वी अनजारिया की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी और निर्देश दिया कि संशोधित प्रति एक सप्ताह के भीतर दायर की जाए. इसके बाद प्रतिवादियों को अपना संशोधित जवाबी हलफ़नामा दायर करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है. मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी.
अंगमो की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि हिरासत आदेश की वैधता को चुनौती देने वाली संशोधित याचिका में अतिरिक्त आधार शामिल किए गए हैं.
विश्लेषण | सीपी राजेन्द्रन
गणित में घुसेड़ा जाना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद !
यह लेख सीपी राजेंद्रन ने हिंदू में लिखा है. वे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़, बेंगलुरु में एक एडजंक्ट प्रोफ़ेसर हैं. उसके प्रमुख अंश.
यूजीसी का स्नातक गणित पाठ्यक्रम का मसौदा, एक राष्ट्रवादी विचारधारा का ऊपर से थोपा हुआ फ़ैसला लगता है. अगस्त में, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के हिस्से के तौर पर गणित समेत नौ विषयों के लिए अंडरग्रेजुएट पाठ्यक्रम का मसौदा जारी किया. अगले महीने, 900 भारतीय गणितज्ञों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए, जिसमें यूजीसी से गणित के इस मसौदा पाठ्यक्रम को वापस लेने की माँग की गई.
उन्होंने तर्क दिया कि यह ‘गंभीर ख़ामियों से भरा है’ जो छात्रों के अकादमिक और करियर की संभावनाओं को नुक़सान पहुँचा सकती हैं. उन्होंने मुख्य विषयों के सीमित कवरेज, एप्लाइड मैथ की अनदेखी, और ऐच्छिक पाठ्यक्रमों (elective courses) के ख़राब तरीक़े से तैयार किए गए डिज़ाइन को लेकर चिंताएँ जताईं. उन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों से जुड़े एक राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने के बारे में भी अपनी आपत्तियाँ ज़ाहिर कीं — मसौदा पाठ्यक्रम में काल गणना (पारंपरिक भारतीय समय गणना), भारतीय बीजगणित (Indian algebra), शुल्ब सूत्र (अग्निकुंड के माप के सिद्धांत) जैसे कोर्स शामिल हैं.
NEP और इस मसौदा पाठ्यक्रम के प्रमुख प्रमोटरों में से एक मंजुल भार्गव हैं, जो 2014 में फील्ड्स मेडल जीत चुके हैं और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने 4 सितंबर को नई दिल्ली में एक भाषण में कहा, “यह दूसरी संस्कृतियों या सभ्यताओं को नीचा दिखाने या कम आँकने की कोशिश नहीं है. हर सभ्यता ने गणित में महत्वपूर्ण योगदान दिया है जिन पर हम गर्व कर सकते हैं. हमें अपने योगदान को अपनाना चाहिए और उन पर गर्व करना चाहिए. यह मौजूदा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा का काम करता है”. उन्होंने तर्क दिया कि ‘पश्चिमी गणित’ के समर्थक अक्सर ग़ैर-पश्चिमी सभ्यताओं के विशाल योगदान को कम करके आँकते हैं. ऐसा करके, वे गणित - जिसे सार्वभौमिक और वस्तुनिष्ठ माना जाता है - का इस्तेमाल इन बुनियादी योगदानों को सांस्कृतिक रूप से हाशिए पर डालने के लिए एक औज़ार के रूप में करते हैं.
हालाँकि इस आलोचना में कुछ हद तक सच्चाई है, लेकिन यह एक अहम सवाल खड़ा करता है: क्या हम गणित को एक राष्ट्रवादी साँचे में ज़बरदस्ती ढालकर वैसी ही ग़लती नहीं कर रहे हैं. इस विषय के टीचिंग सिलेबस में एक अकेली ‘भारतीय’ वंश-परंपरा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इसके सार्वभौमिक चरित्र को भी उतनी ही समस्याजनक तरीक़े से तोड़ना-मरोड़ना पड़ता है, जिसमें एक सांस्कृतिक योगदान को चुनिंदा रूप से उजागर किया जाता है, जबकि दूसरों की अनिवार्य भूमिका को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. यह दृष्टिकोण उसी औपनिवेशिक तर्क को दोहराता है जिसका यह विरोध करना चाहता है.
यह सच है कि गणित का सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ बिना किसी शक के सांस्कृतिक है, लेकिन इसके कथनों की सच्चाई सार्वभौमिक है. यह प्रस्ताव कि 2 + 2 = 4 होता है, कोई ‘पश्चिमी’ सच नहीं है; यह एक गणितीय सत्य है, जो इसे खोजने या इस्तेमाल करने वाली संस्कृति से स्वतंत्र है. इस लिहाज़ से, भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों का प्रोजेक्ट, जो गणितीय योगदान को ख़ास तौर पर एक ही सभ्यता की विरासत से जुड़ा हुआ और उसकी सांस्कृतिक श्रेष्ठता के सबूत के तौर पर उजागर करना चाहते हैं, वही ग़लती करता है जो वे पश्चिमी उपनिवेशवादी करते थे, जिन पर वे अक्सर आरोप लगाते हैं. दोनों ही कोशिशों का मक़सद गणित पर सांस्कृतिक रूप से एकाधिकार करना है, जो एक वस्तुनिष्ठ, सार्वभौमिक रूप से सुलभ सत्य की खोज के रूप में इसकी हैसियत को कमज़ोर करता है.
इस तरह, कई आलोचकों को इस बात की चिंता है कि एक राष्ट्रवादी या पुनरुत्थानवादी एजेंडा, ऐतिहासिक सटीकता और अकादमिक कठोरता पर हावी हो सकता है. डर यह है कि यह कहानी ‘भारत ने ही सबसे पहले सब कुछ खोजा’ वाली बन सकती है, जो न सिर्फ़ ऐतिहासिक रूप से ग़लत है, बल्कि वैज्ञानिक जाँच की भावना के लिए भी नुक़सानदेह है. राजनेता अक्सर इस चिंता को और हवा देते हैं. उदाहरण के लिए, सत्ताधारी पार्टी के एक राजनेता ने हाल ही में एक स्कूल में घोषणा की कि एक हिंदू देवता अंतरिक्ष में जाने वाले पहले व्यक्ति थे; यह इस तरह की छद्म-वैज्ञानिक घोषणाओं की एक जारी श्रृंखला का हिस्सा है.
गणितीय विचार की नींव एक महाद्वीपों के पार चले प्रयास से उभरी. इसे बेबीलोनियन, मिस्र, भारतीय, चीनी, अरबी, फ़ारसी और यूनानी जैसी संस्कृतियों के बीच लेन-देन और आदान-प्रदान से आकार मिला. हड़प्पा के निवासियों द्वारा छोड़ी गई इमारतों, पानी की सुविधाओं और जलसेतुओं के अवशेषों में, जो वेदों की रचना से भी पहले के हैं, इंजीनियरिंग गणित को एक स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है. इसलिए, कॉलेज स्तर के सिलेबस में गणितीय विचारों को एक अलग ‘वैदिक’ श्रेणी तक सीमित करना अ-ऐतिहासिक और शैक्षणिक रूप से ग़लत है. शुरुआती फ़ॉर्मूलों में स्वाभाविक रूप से अपरिपक्व विचार और वैज्ञानिक तरीक़ों से मेल न खाने वाली धारणाएँ शामिल थीं, जो दुनिया की एक अधूरी समझ को दर्शाती हैं. हालाँकि इस विकास का अध्ययन समाजशास्त्रीय या धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से करना मूल्यवान है, लेकिन ऐसे किसी भी टीचिंग मॉड्यूल में गणितीय विचार के सभी प्रमुख प्राचीन स्कूलों को शामिल किया जाना चाहिए और उनकी आपसी संवाद की प्रकृति पर ज़ोर देना चाहिए; इसे आधुनिक गणित के सिलेबस के साथ मिलाया नहीं जाना चाहिए.
पारंपरिक शिक्षाशास्त्र और सामग्री में प्रशिक्षित, ज़्यादातर गणित शिक्षकों के पास इंडोलॉजी (भारत-विद्या) में वह ट्रेनिंग नहीं है जो आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के प्राचीन भारतीय गणित ग्रंथों को एक वस्तुनिष्ठ नज़रिए से पढ़ाने के लिए ज़रूरी है. क्या वे छात्रों को विचारधारा के पूर्वाग्रह से मुक्त ट्रेनिंग दे पाएँगे. छात्रों को सिर्फ़ ऐतिहासिक गणित की एक ही धारा से, उसकी सभी कमियों के साथ, सांस्कृतिक श्रेष्ठता स्थापित करने के एक साधन के रूप में परिचित कराना, उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय करना है. यह दृष्टिकोण बड़ी तस्वीर को धुँधला कर देता है: कि गणित एक सार्वभौमिक मानवीय उपलब्धि है, जिसे सदियों और महाद्वीपों में सहयोगात्मक प्रयासों से निखारा गया है. यह भी साफ़ नहीं है कि इस स्टडी कंपोनेंट से छात्रों को कौन से मापने योग्य गणितीय कौशल मिलेंगे जो उन्हें एक मानक पाठ्यक्रम से नहीं मिलेंगे. क्या यह उनकी समस्या-समाधान क्षमताओं, तार्किक तर्क और विश्लेषणात्मक कौशल में सुधार करेगा, और उन्हें ऐसी दुनिया में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा जिस पर AI, मशीन लर्निंग और डेटा साइंस का दबदबा होगा.
यह पहल शिक्षा प्रणाली पर एक राष्ट्रवादी विचारधारा को ऊपर से थोपने जैसी लगती है. यह बहस अब सिर्फ़ इस बारे में नहीं है कि क्या पढ़ाया जाता है, बल्कि शिक्षा के उद्देश्य और लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में वैज्ञानिक तर्क की सुरक्षा के बारे में है.
जामिया में ‘अखंड भारत’ और ‘संस्कृत क़व्वाली’ पर छात्र संगठनों का विरोध
जामिया मिल्लिया इस्लामिया का 105वां स्थापना दिवस समारोह विवादों में घिर गया है. कई छात्र संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर 29 अक्टूबर से 3 नवंबर तक आयोजित होने वाले छह दिवसीय समारोह के कुछ कार्यक्रमों पर गहरी चिंता व्यक्त की है, जिन्हें वे विश्वविद्यालय की धर्मनिरपेक्ष और समावेशी परंपरा के विरुद्ध मानते हैं. विवाद का सबसे बड़ा केंद्र 1 नवंबर को होने वाला ‘म्यूजिक एंड डांस परफॉर्मेंस – अखंड भारत’ कार्यक्रम है. छात्र संगठनों का कहना है कि ‘अखंड भारत’ की अवधारणा उस विभाजनकारी विचारधारा से जुड़ी है जो जामिया के सह-अस्तित्व और आपसी सम्मान जैसे संस्थापक मूल्यों के ठीक विपरीत है. द वायर हिंदी से बातचीत में, कार्यक्रम की संयोजक डॉ. हरप्रीत कौर जस ने कहा कि इस बार उनका ध्यान ‘लोक’ पर है. जब उनसे कार्यक्रम के नाम में ‘अखंड भारत’ जोड़ने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘यह सरकार की नीति है, जिसे क्लब के संयोजक और अन्य सदस्यों को मानना पड़ता है. यह सिर्फ़ मेरा निर्णय नहीं है.’
‘अखंड भारत’ की अवधारणा ऐतिहासिक रूप से हिंदुत्व विचारधारा से जुड़ी रही है, जो भारत को एक अविभाजित हिंदू राष्ट्र के रूप में देखती है, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देश शामिल हैं. छात्र संगठनों का तर्क है कि यह विचारधारा जामिया की स्थापना की धर्मनिरपेक्ष दृष्टि के विरुद्ध है.
एक और विवादास्पद कार्यक्रम 2 नवंबर को दिल्ली पुलिस द्वारा आयोजित ‘एक शाम शहीदों के नाम’ शीर्षक से एक गायन कार्यक्रम है. छात्र संगठनों ने कहा है कि वे संगीत कला का सम्मान करते हैं, लेकिन 15 दिसंबर 2019 की उन घटनाओं को नहीं भूल सकते जब दिल्ली पुलिस ने जामिया परिसर में घुसकर छात्रों पर हमला किया था. उनका कहना है कि पुलिस को आमंत्रित करना उन छात्रों की पीड़ा की अनदेखी करना है जो आज भी उन घटनाओं से पीड़ित हैं.
इसके अतिरिक्त, 30 अक्टूबर को विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित ‘संस्कृत क़व्वाली’ पर भी आपत्ति जताई गई है. छात्रों ने इसे सांस्कृतिक चोरी और क़व्वाली की मूल सूफ़ी परंपरा को ‘ब्राह्मणवादी’ रूप देने का प्रयास बताया है. बयान में कहा गया है, ‘क़व्वाली एक आध्यात्मिक कला है, जिसकी जड़ें उर्दू-फ़ारसी काव्य परंपरा और सूफ़ी भक्ति में हैं. इसे ‘संस्कृत क़व्वाली’ में बदलना एक सोची-समझी कोशिश है.’
छात्र संगठनों ने प्रशासन से जामिया के ऐतिहासिक धर्मनिरपेक्ष और समावेशी मिशन के प्रति वफादार रहने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि स्थापना दिवस को विश्वविद्यालय की विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देना चाहिए.
इन आपत्तियों के बावजूद, विश्वविद्यालय एक भव्य आयोजन की तैयारी कर रहा है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह सात वर्षों में पहला और अब तक का सबसे बड़ा ‘तालिमी मेला’ होगा. छह दिवसीय इस कार्यक्रम में शैक्षणिक व्याख्यान, सेमिनार, क़व्वाली, मुशायरा, नुक्कड़ नाटक, प्रदर्शनियां और खेल आयोजन शामिल होंगे. समापन समारोह 3 नवंबर को होगा, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना मुख्य अतिथि होंगे.
अब बोले ट्रम्प, मैंने 250% टैरिफ की धमकी दी थी
“टाइम्स ऑफ इंडिया” के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस बार दावा किया है कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम के लिए दोनों देशों को 250% टैरिफ लगाने की धमकी दी थी. एपीईसी सीईओ के लिए आयोजित एक दोपहर भोज में ट्रम्प ने कहा, “मैंने प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया. मैंने कहा, हम आपके साथ व्यापार समझौता नहीं कर सकते. उनने कहा- नहीं, नहीं, हमें व्यापार समझौता करना होगा. मैंने कहा, नहीं, हम नहीं कर सकते. आप पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू कर रहे हैं. हम ऐसा नहीं करने जा रहे हैं. और फिर मैंने पाकिस्तान को फोन किया. टैरिफ के लिए चेतावनी देने के लिए, मैंने कहा कि मैं प्रत्येक देश पर 250% टैरिफ लगाने जा रहा हूं, जिसका अर्थ है कि आप कभी व्यापार नहीं कर पाएंगे. दूसरे शब्दों में, 250% पर आप कुछ भी नहीं बेच सकते हैं.”
गाज़ा पर फिर हमला, 104 फ़लस्तीनियों की मौत
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, गाज़ा पर रात भर हुए इसराइली हवाई हमलों में कम से कम 104 फ़लस्तीनियों की मौत हो गई, जिनमें बच्चे भी शामिल थे. यह हमला अमेरिका की मध्यस्थता वाले युद्धविराम के लिए अब तक की सबसे गंभीर चुनौती और संघर्ष विराम शुरू होने के बाद से सबसे घातक दिन प्रतीत होता है. गाज़ा के नागरिक सुरक्षा एजेंसी के अनुसार, दो साल के युद्ध के सबसे खूनी हमलों में से एक इन हमलों में कम से-कम 35 बच्चे मारे गए और 200 लोग घायल हुए.
गाज़ा में नागरिक सुरक्षा के एक निदेशक डॉ. मोहम्मद अल-मुघिर ने द गार्डियन को बताया, “इन हमलों में इंसान कैंप नामक एक कैंसर रोगी शिविर को भी निशाना बनाया गया.” इस संख्या की पुष्टि पांच गाज़ा अस्पतालों से मिली रिपोर्टों के आधार पर एएफ़पी (Agence France-Presse) द्वारा की गई है. बेंजामिन नेतन्याहू ने मंगलवार शाम को फ़लस्तीनी उग्रवादियों और इसराइली सैनिकों के बीच गोलीबारी के बाद इन हमलों का आदेश दिया. नेतन्याहू ने युद्धविराम के हमास द्वारा उल्लंघन पर चर्चा के लिए एक आपात बैठक बुलाई, जबकि इसराइली सरकार में धुर-दक्षिणपंथी नेता युद्ध फिर से शुरू करने की मांग कर रहे थे. इस बमबारी के बाद हमास, जिसने बंदूक हमले की ज़िम्मेदारी से इनकार किया, ने एक अन्य बंधक के अवशेषों को सौंपने की योजना में देरी कर दी.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को कहा कि कुछ भी युद्धविराम को ख़तरे में नहीं डालेगा, लेकिन अगर इसराइली सैनिक मारे जाते हैं तो इसराइल को “जवाबी हमला करना चाहिए”. उन्होंने कहा, “उन्होंने एक इसराइली सैनिक को मार डाला. इसलिए इसराइलियों ने जवाबी हमला किया. और उन्हें जवाबी हमला करना चाहिए.”
हालांकि, मंगलवार रात के हमले ने एक ऐसे युद्धविराम की सभी कमज़ोरियों को उजागर कर दिया जो शुरू से ही हिंसा से ग्रस्त रहा है. नवीनतम हमलों से पहले, गाज़ा के मीडिया कार्यालय ने इसराइल पर युद्धविराम शुरू होने के बाद से 80 उल्लंघन करने का आरोप लगाया था, जिसमें 97 फ़लस्तीनी मारे गए और 230 घायल हुए. गाज़ा नागरिक सुरक्षा के प्रवक्ता महमूद बसल ने स्थिति को “विनाशकारी और भयानक” बताते हुए हमलों को “युद्धविराम समझौते का स्पष्ट और घोर उल्लंघन” कहा.
युद्धविराम समझौते के तहत, जो 10 अक्टूबर को लागू हुआ, हमास को जल्द से जल्द सभी इसराइली बंधकों के अवशेष लौटाने होंगे. बदले में, इसराइल प्रत्येक इसराइली के लिए 15 फ़लस्तीनी शव सौंपने पर सहमत हुआ है. इस बीच, इसराइली सेना ने एक फुटेज प्रकाशित किया, जिसमें उसने दावा किया कि हमास के सदस्य एक शव को फिर से दफ़ना रहे थे ताकि रेड क्रॉस के लिए “एक झूठी खोज का मंचन” किया जा सके. इस ख़बर ने इसराइलियों को नाराज़ कर दिया है, और धुर-दक्षिणपंथी मंत्रियों ने हमास पर हमला बोलते हुए नेतन्याहू से युद्ध फिर से शुरू करने का आह्वान किया ہے.
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