29/11/2025: अब भागवत ने महात्मा गांधी पर निशाना साधा | बीएलओ प्रदर्शन | आधार महाराष्ट्र में भी नहीं चलेगा | आईएमएफ का सी ग्रेड | मणिपुर में शांति? | इमरान की जान | सकीना की वापसी | पीओके से व्यापार?
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
भागवत का बयान: गांधी भारत के बारे में गलत थे
गुजरात में बीएलओ का प्रदर्शन: ‘एसआईआर’ के दबाव से शिक्षक परेशान
परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों की एंट्री: सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ी
मोदी की वही पुरानी स्क्रिप्ट: ऑल्ट न्यूज ने पकड़ी ‘रूपक’ की गलती
आधार कार्ड नहीं चलेगा: महाराष्ट्र में जन्म प्रमाण पत्र के लिए नया नियम
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट: एनजीटी ने ‘गोपनीय’ रिपोर्ट देखने से किया इनकार
पंजाब यूनिवर्सिटी में छात्रों की जीत: केंद्र को वापस लेना पड़ा फैसला
केरल में कांग्रेस विधायक पर केस: बलात्कार के आरोपों में पुलिस कार्रवाई
मिशेल की रिहाई के लिए दबाव: ब्रिटिश विदेश मंत्री ने उठाया मुद्दा
एपल की चुनौती: 38 अरब डॉलर के जुर्माने के खिलाफ हाईकोर्ट में दलील
पुतिन की भारत यात्रा: यूक्रेन युद्ध के बीच मोदी से करेंगे मुलाकात
तेलंगाना में बिना आरक्षण पंचायत चुनाव: 3000 करोड़ का फंड बचाने की कोशिश
आईएमएफ ने भारत के डेटा को दी ‘सी’ ग्रेड: जीडीपी आंकड़ों पर सवाल
महाराष्ट्र की कल्याणकारी योजनाएं: ‘लाडकी बहिन’ से बाकी योजनाओं पर असर
असम विधायक की हिरासत रद्द: पुलवामा को ‘साजिश’ बताने पर हुए थे गिरफ्तार
पीओके भारत का हिस्सा: हाईकोर्ट ने कहा, ‘सीमा पार व्यापार इंटर-स्टेट ट्रेड है’
शिमला मस्जिद विवाद: गिराने के आदेश को चुनौती, हिंदू संगठनों का प्रदर्शन
मणिपुर में विस्थापितों का प्रदर्शन: “हमें घर जाने दो,” पुलिस से भिड़े लोग
इमरान खान की मौत की अफवाहें: बहन ने कहा, ‘सरकार जनता का रिएक्शन देख रही है’
नेली हत्याकांड की रिपोर्ट: 40 साल बाद खुला सच, राजनीतिक साजिश पर सवाल
ढाका जेल से सकीना रिहा: लेकिन घर वापसी पर अब भी सस्पेंस
मोहन भागवत ने कहा, “महात्मा गांधी भारत के बारे में गलत थे”
“द टेलीग्राफ” के अनुसार, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि महात्मा गांधी का यह कहना गलत था कि ब्रिटिश शासन से पहले भारत में एकता की कमी थी, उन्होंने तर्क दिया कि यह विचार देश के इतिहास के बजाय औपनिवेशिक शिक्षा से आया है.
भागवत ने शनिवार को नागपुर में एक पुस्तक उत्सव में हिंदी में कहा, “गांधी जी ने हिंद स्वराज में लिखा था कि हम अंग्रेजों से पहले एकजुट नहीं थे, लेकिन यह अंग्रेजों द्वारा हमें सिखाया गया एक झूठा विमर्श है.” उन्होंने कहा कि गांधी की यह टिप्पणी कि “अंग्रेजों के आने से पहले हम एक नहीं थे” औपनिवेशिक शिक्षा से आकार लेती है. उन्होंने कहा, “हमें अंग्रेजों ने सिखाया था.”
भागवत ने कहा कि भारतीय ‘राष्ट्र’ राष्ट्र-राज्यों के गठन से बहुत पहले से अस्तित्व में था और इसे आधुनिक राजनीतिक शब्दावली के माध्यम से नहीं समझा जा सकता है. उन्होंने कहा, “हमारा ‘राष्ट्र’ किसी ‘राज्य’ द्वारा नहीं बनाया गया था. हम हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं. जब कोई राज्य नहीं था, तब भी हम थे. जब हम आज़ाद थे तब भी हम थे, जब हम गुलाम थे तब भी हम थे, और जब केवल एक चक्रवर्ती सम्राट था तब भी हम थे.” उन्होंने कहा कि “राज्य” और “राष्ट्र” के बीच का अंतर अक्सर भ्रम पैदा करता है.
“यदि आप अपने लेखन में ‘राज्य’ शब्द का उपयोग करते हैं... तो आप जो भावना व्यक्त करना चाहते हैं, वह व्यक्त नहीं होगी. वह बिल्कुल अलग भावना है.” उन्होंने इस बारे में भी बात की कि राष्ट्रवाद को कैसे माना जाता है. “लोग मुझसे पूछते हैं, क्या आप राष्ट्रवादी हैं? मैं कहता हूँ, मैं राष्ट्रवादी हूँ. आपको इस बारे में बात करने की आवश्यकता क्यों है? क्या आप अपनी भावनाओं के कारण राष्ट्रवादी हैं, या आप अपनी चेतना के कारण राष्ट्रवादी हैं?”
उनके अनुसार, यह विचार शुद्ध तर्क के माध्यम से संसाधित नहीं किया जा सकता है: “आप इसके लिए कितना तर्क का उपयोग कर सकते हैं? आप बहुत अधिक तर्क का उपयोग नहीं कर सकते. दुनिया में बहुत सी चीजें तर्क से परे हैं. यह तर्क से परे है.”
भागवत ने कहा कि भारत के राष्ट्रत्व की तुलना पश्चिमी मॉडलों से नहीं की जा सकती है और पश्चिमी राजनीतिक विचार संघर्ष-प्रधान वातावरण में विकसित हुए हैं. “एक बार जब एक राय बन जाती है, तो उस विचार के अलावा कुछ भी अस्वीकार्य हो जाता है. वे अन्य विचारों के लिए दरवाजे बंद कर देते हैं और इसे ‘...वाद’ कहना शुरू कर देते हैं.”
उनके अनुसार, यही कारण है कि भारत की सभ्यतागत पहचान को बाहरी लोगों द्वारा “राष्ट्रवाद” का नाम दिया गया था. उन्होंने कहा, “वे राष्ट्रत्व के बारे में हमारे विचारों को नहीं समझते हैं, इसलिए उन्होंने इसे ‘राष्ट्रवाद’ कहना शुरू कर दिया.” “राष्ट्र की हमारी अवधारणा पश्चिमी विचार से अलग है.” भागवत ने कहा कि आरएसएस “राष्ट्रीयता” शब्द को प्राथमिकता देता है. उन्होंने कहा, “राष्ट्र के बारे में अत्यधिक गौरव के कारण दो विश्व युद्ध हुए, यही वजह है कि कुछ लोग राष्ट्रवाद शब्द से डरते हैं.”
मोदी के गुजरात में भी ‘एसआईआर’ से बीएलओ परेशान, धमकी और दबाव के विरोध में प्रदर्शन
चुनाव आयोग की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की कवायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में भी मुसीबत की वजह बन गई है. यही कारण है कि जब अहमदाबाद के खोखरा स्थित डेटा अपलोडिंग केंद्र में प्राथमिक विद्यालय के लगभग 250 शिक्षकों को बूथ-लेवल अधिकारी (बीएलओ) के रूप में नियुक्त किया गया, तो उन्होंने ‘एसआईआर’ के दौरान “धमकी और दबाव” का आरोप लगाते हुए काम रोक दिया और धरना प्रदर्शन किया. शिक्षकों ने आरोप लगाया कि उन्हें कोई उचित मार्गदर्शन या प्रशिक्षण नहीं दिया गया और अधिकारी ‘एसआईआर’ को समय सीमा में पूरा करने के लिए धमकी दे रहे हैं और उन पर अकारण मांगों का दबाव डाला जा रहा है. बीएलओ – विशेषकर महिला बीएलओ – ने कहा कि उनके फ़ोन नंबरों के सार्वजनिक होने से कई बार देर रात दुर्व्यवहार होता है. इसके अलावा, शिक्षकों ने इस बात पर भी जोर दिया कि वे लंबे समय तक काम करने के घंटों के कारण अत्यधिक तनाव में हैं, क्योंकि उन्हें सुबह 7 बजे अपने केंद्र पर पहुंचना होता है, दोपहर की शुरुआत तक फील्ड वर्क करना होता है और दोपहर के भोजन के बाद ड्यूटी पर वापस आना होता है, जिसका कोई निश्चित अंत समय नहीं है. “द इंडियन एक्सप्रेस” में ऋतु शर्मा की रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षकों ने सर्वर आउटेज की ओर भी इशारा किया, जिसकी वजह से उन्हें देर रात तक काम करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा. एक प्रदर्शनकारी ने एक्सप्रेस को बताया, “सर्वर के काम करना शुरू करने पर डेटा एंट्री करने और मैपिंग के लिए नाम अपलोड करने के लिए हमें आधी रात या 1 बजे भी हमारे सीनियर्स से कॉल आते थे. पिछले तीन हफ्तों से हमारे पास परिवार के साथ समय बिताने का कोई समय नहीं है.”
खास बात यह है कि यह ऐसे समय में हो रहा है जब हाल के हफ्तों में पश्चिम बंगाल सहित देश भर में बीएलओ की आत्महत्याओं की खबरें सामने आई हैं. बंगाल में चार मौतें हो चुकी हैं. अधिकारियों ने इन घटनाओं को एसआईआर से जुड़े तनाव और दबाव से जोड़ा है. हालांकि इनमें से कई मामलों में अभी भी जांच चल रही है, लेकिन इन रिपोर्टों ने काम के बोझ, आधिकारिक अपेक्षाओं और व्यापक परिस्थितियों पर चिंताओं को बढ़ा दिया है जिनके तहत बीएलओ चल रहे पुनरीक्षण कार्य को अंजाम दे रहे हैं.
कार्टून | मंजुल
परमाणु क्षेत्र भी कॉर्पोरेट हितों के हवाले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा कि सरकार भारत के परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल देगी, ने इस बात पर गंभीर चिंताएं बढ़ा दी हैं कि एक और रणनीतिक प्रक्षेत्र (डोमेन) कॉर्पोरेट हितों के हवाले किया जा रहा है. “द वायर” के अनुसार, एक कार्यक्रम में मोदी ने कहा कि यह बदलाव “भारत की ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी नेतृत्व को नई ताकत देगा.” उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र के लिए एक मजबूत भूमिका रखी जा रही है, जिससे छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों, उन्नत रिएक्टरों और परमाणु नवाचार में अवसर पैदा होंगे.”
बहरहाल, सरकार अब आगामी शीतकालीन सत्र में परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 में संशोधन करके अनुसंधान और विकास– जो लंबे समय से कॉर्पोरेट प्रभाव से बचे हुए क्षेत्र थे – में भी निजी भागीदारी की अनुमति देने की योजना बना रही है. आलोचकों ने चेतावनी दी है कि इस कदम से सुरक्षा उपाय कमजोर हो सकते हैं और भारत के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक में जन सुरक्षा पर मुनाफे को तरजीह दी जा सकती है.
मोदी का रूपक : नई पगड़ी, पर बात पुरानी
प्रधानमंत्री मोदी रूपक धरने का कोई अवसर नहीं चूकते. उन्हें इसमें महारत हासिल है. वे पुनरावृत्ति की भी परवाह नहीं करते. यह नहीं सोचते कि कोई क्या कहेगा. मसलन, कल शुक्रवार को मोदी कर्नाटक के उडुपी में थे. नए परिधान में. चूंकि बड़ी संख्या में जनता सामने थी, तो उन्होंने मौका देखकर चौका लगाया. लेकिन, ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर ने गुजरात में किसी कार्यक्रम के 20 सितंबर 2025 के एक वीडियो को शेयर करते हुए “एक्स” पर लिखा, “पीएम मोदी ने उडुपी में वही पुरानी स्क्रिप्ट दोहराई.” ज़ुबैर ने 20 सितंबर को भी वीडियो के साथ अपनी पोस्ट में लिखा था-“हेलो मोदीजी, आप सालों से एक ही स्क्रिप्ट रिपिट कर रहे हैं. न्यूज़ चैनल तो यह बताएंगे नहीं, लेकिन आप जनता का मूर्ख बनाना बंद करिए.” कुलमिलाकर पगड़ी नई रहती है, पर बात पुरानी!
महाराष्ट्र में भी आधार स्वीकार्य नहीं
“द हिंदू” के अनुसार, महाराष्ट्र राजस्व विभाग ने घोषणा की है कि देरी से जन्म प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आधार को अब सहायक दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा, और 2023 जन्म और मृत्यु पंजीकरण संशोधन के बाद केवल आधार के आधार पर जारी किए गए सभी प्रमाण पत्र अब रद्द कर दिए जाएंगे. इसी तरह उत्तरप्रदेश सरकार ने भी फैसला सुनाया है कि आधार का उपयोग जन्म प्रमाण पत्र या जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में नहीं किया जा सकता है. अधिकारियों ने “द इंडियन एक्सप्रेस” को बताया कि इसके बजाय, जन्म प्रमाण पत्र, हाई स्कूल की मार्कशीट और अन्य निर्धारित दस्तावेजों का उपयोग किया जाना चाहिए.
ग्रेट निकोबार : एनजीटी सिर्फ पक्षों की दलीलों का उल्लेख करेगी, एचपीसी की रिपोर्ट का नहीं
“हिंदुस्तान टाइम्स” में जयश्री नंदी की रिपोर्ट है कि पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष कोठारी की ग्रेट निकोबार मेगा प्रोजेक्ट के पहलुओं को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रहे राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की पीठ ने फैसला किया है कि वह केवल उन दलीलों का उल्लेख करेगी, जिन्हें मामले में दोनों पक्षों ने रिकॉर्ड पर रखा है – इसका मतलब है कि यह परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी की फिर से जांच करने वाली एक हाई पावर कमेटी (एचपीसी) की रिपोर्ट के उन हिस्सों का उल्लेख नहीं करेगी, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया या कोठारी को उपलब्ध नहीं कराया गया. रिपोर्ट को एक सीलबंद लिफाफे में जमा किया गया था और कोठारी को उपलब्ध नहीं कराया गया था, जिन्होंने इसे चुनौती दी है. कोठारी ने तर्क दिया है कि “सरकार का यह तर्क कि एचपीसी रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह ‘रणनीतिक और राष्ट्रीय महत्व की है और इसमें गोपनीय और विशेषाधिकार प्राप्त जानकारी है’ योग्यता रहित और तथ्यों के विपरीत है.”
पंजाब : केंद्र को छात्रों के आगे झुकना पड़ा
उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने अंततः पंजाब विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में कुलपति द्वारा प्रस्तुत संस्थान के सीनेट चुनावों के लिए एक कार्यक्रम को मंजूरी दे दी, जिससे छात्रों की दूसरी मुख्य मांग पूरी हो गई. चुनाव अगले साल सितंबर और अक्टूबर के लिए निर्धारित किए गए हैं. दरअसल, केंद्र सरकार के विश्वविद्यालय की शासन संरचना को ‘ओवरहाल’ करने के प्रयास का यूनिवर्सिटी में विरोध किया जा रहा था. सरकार ने सीनेट का आकार भी घटा दिया था. कई हफ्तों से विरोध प्रदर्शन चल रहे थे. नितिन जैन के अनुसार, केंद्र को विश्वविद्यालय के पुनर्गठन का इरादा आखिरकार छोड़ना पड़ा और एक हफ्ते के भीतर चार अधिसूचनाएं जारी करना पड़ीं.
केरल में कांग्रेस विधायक पर यौन दुराचार का मामला दर्ज
“द हिंदू” की खबर के अनुसार, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से पीड़िता की मुलाकात के बाद, तिरुवनंतपुरम में पुलिस ने पलक्कड़ से कांग्रेस विधायक राहुल ममकूटाथिल के खिलाफ बलात्कार, धोखे से यौन सहमति प्राप्त करने और एक महिला को गर्भपात के लिए मजबूर करने सहित प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है. हालांकि, कांग्रेस ने ममकूटाथिल को चार माह पहले अगस्त में ही पार्टी से निलंबित कर दिया था, जब उन पर सिलसिलेवार यौन दुराचार का आरोप लगा था, लेकिन अब पार्टी के अंदर और बाहर से मिसाल कायम करने वाली कार्रवाई और विधायक के रूप में उनके इस्तीफे की मांग उठ रही है. इस बीच, कांग्रेस नेता और यूडीएफ संयोजक अडूर प्रकाश ने सीपीएम पर स्थानीय निकाय चुनावों से पहले विपक्षी नेताओं के खिलाफ सनसनीखेज अपराध मामलों को थोपने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि सीपीएम अपने ‘चुनाव-युग की खेल-पुस्तक’ के हिसाब से कार्रवाई कर रही है.
मिशेल की हिरासत को लेकर यूके ने भारत पर दबाव बढ़ाया
ब्रिटिश विदेश मंत्री यवेट कूपर ने इस महीने की शुरुआत में ओटावा में जी7 आउटरीच कार्यक्रम में अपने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर के साथ भारत में ब्रिटिश नागरिक क्रिश्चियन मिशेल की लंबी कैद का मुद्दा उठाया है. यह ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर द्वारा पीएम मोदी के साथ दो बार – पहली बार चेकर में और फिर मुंबई में – यह मुद्दा उठाए जाने के बाद हुआ है. आशीष रे ने ब्रिटिश विदेश कार्यालय के हवाले से कहा, “यूके सरकार हर उचित अवसर पर भारत सरकार के साथ मिशेल के मामले को उठाना जारी रखे हुए है और प्रगति व समाधान के लिए दबाव डाल रही है. हम मामला हल होने तक ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.” रे ने नोट किया कि व्हाइटहॉल के कदम स्टारमर की लेबर सरकार द्वारा मिशेल की लगभग सात साल की हिरासत पर नई दिल्ली पर दबाव बढ़ाने की इच्छा का संकेत देते हैं, जो उसके कंजरवेटिव पूर्ववर्तियों के विपरीत है.
एपल की 38 अरब डॉलर जुर्माने को चुनौती
“रॉयटर्स” की खबर है कि एपल ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया है कि पिछले साल अधिनियमित एक विनियमन जो भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) को जुर्माने की गणना के लिए एक कंपनी के वैश्विक – भारतीय के विपरीत – कारोबार का उपयोग करने की अनुमति देता है, “स्पष्ट रूप से मनमाना, असंवैधानिक, घोर रूप से असंगत और अन्यायपूर्ण” है. इसने आपत्तिजनक मार्ग का उपयोग करके अपनी “अधिकतम जुर्माने की देनदारी” 38 बिलियन (अरब) डॉलर अनुमानित की है. फर्म को टिंडर-स्वामित्व वाली मैच (एमएटीसीएच.ओ) और अन्य भारतीय स्टार्टअप से अविश्वास चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, एक प्रतिस्पर्धा कानून अधिवक्ता ने कहा कि “अदालत को स्पष्ट रूप से निर्धारित विधायी नीति में हस्तक्षेप करने के लिए मनाना मुश्किल होगा.”
रूसी तेल आयात में भारी कमी के बावजूद पुतिन भारत यात्रा पर
भारत और अमेरिका के बीच लगातार जटिल और चुनौतीपूर्ण होते संबंधों के बीच, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 और 5 दिसंबर को भारत की राजकीय यात्रा पर आएंगे. दो दिनी इस यात्रा के दौरान पुतिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करेंगे. रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि यह यात्रा भारत-रूस “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” की संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में समीक्षा करने का अवसर प्रदान करती है. इसमें कहा गया है कि दोनों पक्षों से “एक संयुक्त वक्तव्य अपनाने और अंतर-विभागीय और व्यावसायिक समझौतों की एक विस्तृत शृंखला पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद है”, हालांकि इसमें विवरण नहीं दिया गया.
सबसे खास बात यह है कि पुतिन की यह यात्रा, रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद में कमी करने की पृष्ठभूमि में हो रही है. भारत, दरअसल चीन के बाद रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया था. अमेरिका और यूरोपीय संघ के भारी भरकम शुल्कों का उद्देश्य राष्ट्रपति पुतिन की अथक युद्ध मशीन को फंडिंग के प्राथमिक स्रोत से वंचित करना था. “रॉयटर्स” में निधि वर्मा की रिपोर्ट भी थी कि अगले महीने रूसी तेल का भारतीय आयात तीन साल के निचले स्तर पर पहुंचने वाला है. यह यात्रा ऐसे समय में भी होगी, जब यूक्रेनी बच्चों के अपहरण में कथित भूमिका के लिए पुतिन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का गिरफ्तारी वारंट सक्रिय है, हालांकि नई दिल्ली द्वारा इसे लागू करने की कोई संभावना कभी नहीं थी.
इस बीच “द हिंदू” में सौरभ त्रिवेदी की रिपोर्ट कहती है कि पुतिन की इस यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपने रूसी समकक्ष आंद्रेई बेलौसोव से मुलाकात करेंगे. भारत सतह से हवा में मार करने वाली एस-400 मिसाइल प्रणालियों की समय पर डिलीवरी पर चर्चा करेगा. ये एस400 प्रणाली रूस से खरीदी गई थी और इसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपनी क्षमताओं को साबित भी किया था. इसके साथ ही अतिरिक्त इकाइयां खरीदने की संभावना पर भी विचार करेगा. त्रिवेदी के मुताबिक, भारतीय पक्ष अधिक उन्नत एस-500 प्रणालियों की खरीद की संभावना को समझेगा.
तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग के कोटे के बिना ही पंचायत चुनाव, अन्यथा अनुदान हाथ से चला जाता
तेलंगाना सरकार ने अपनी ग्राम पंचायतों के लंबे समय से लंबित चुनावों को अधिसूचित कर दिया, यह देखते हुए कि पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों के लिए 42% सीटों को आरक्षित करने के उसके प्रयास अभी तक सफल नहीं हुए हैं – इस मामले पर पारित विधेयक केंद्र सरकार के पास लंबित हैं, जबकि उच्च न्यायालय ने एक अध्यादेश पर रोक लगा दी है; यह कोटा सर्वोच्च न्यायालय की 50% की सीमा का उल्लंघन करेगा – और यदि चुनाव वित्तीय वर्ष के अंत तक विलंबित होते तो राज्य सरकार 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वीकृत ₹3,000 करोड़ का अनुदान खोने का जोखिम उठाती. “टाइम्स ऑफ इंडिया” के मुताबिक, मतदान 11 दिसंबर को शुरू होगा, जिसमें राज्य के कुछ निकायों में पिछड़ा वर्ग (बीसी) के लिए कोई आरक्षण नहीं है और अन्य में 27% तक कोटा है.
आईएमएफ ने भारत की जीडीपी और अन्य राष्ट्रीय लेखा डेटा को ‘सी’ ग्रेड दिया, जो दूसरा सबसे निचला ग्रेड है
निगरानी में कुछ हद तक बाधा डालने वाली कमियों के कारण, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत के ‘राष्ट्रीय लेखा’ सांख्यिकी – जिसमें सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) जैसे महत्वपूर्ण माप शामिल हैं– को ‘सी’ ग्रेड दिया है, जो इसकी नियमावली में दूसरा सबसे निचला ग्रेड है. हालांकि ये आंकड़े पर्याप्त आवृत्ति और समयबद्धता पर उपलब्ध हैं और मोटे तौर पर पर्याप्त बारीकी प्रदान करते हैं”, आईएमएफ ने कहा कि कुछ पद्धतिगत कमजोरियां निगरानी में कुछ हद तक बाधा डालती हैं.” इसने 2011-12 के पुराने आधार वर्ष, “उत्पादक मूल्य सूचकांकों की कमी के कारण डिफ्लेटर के लिए डेटा स्रोत के रूप में थोक मूल्य सूचकांकों का उपयोग”, जीडीपी को मापने के लिए ‘उत्पादन’ और ‘व्यय’ दृष्टिकोणों के बीच कभी-कभार ‘काफी बड़े अंतर’, साथ ही “त्रैमासिक राष्ट्रीय लेखा संकलन में उपयोग की जाने वाली मौसमी रूप से समायोजित डेटा की कमी और अन्य सांख्यिकीय तकनीकों में सुधार की गुंजाइश” की ओर इशारा किया.
दिलचस्प यह है कि शुक्रवार को जारी आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जुलाई-सितंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.8% से बढ़कर 8.2% वर्ष-दर-वर्ष बढ़ी है. भले ही मोदी सरकार अपनी आर्थिक कहानी को दोगुना कर रही है, पर इसके पीछे की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है. सुर्खियां बटोरने वाली जीडीपी वृद्धि, जिसका डेटा आईएमएफ स्वयं अस्थिर मानता है. मजेदार बात यह भी है कि भारत के राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी को पिछले साल भी ‘सी’ ग्रेड मिला था.
परन बालकृष्णन लिखते हैं कि विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है तो आगामी तिमाहियों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि धीमी हो सकती है. भारत वाशिंगटन के साथ समझौता करने वाली कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. लिहाजा, सवाल यह भी है कि एक बार जब वाशिंगटन के व्यापार उपायों का पूरा असर शुरू हो जाएगा, तो क्या जीडीपी वृद्धि की यह गति बनी रह सकती है. एचडीएफसी की अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने कहा, “आगे चलकर, टैरिफ का प्रभाव अभी सामने आना बाकी है, क्योंकि फ्रंट-लोडिंग का प्रभाव फीका पड़ जाएगा.” यह भी स्पष्ट नहीं है कि त्योहारी सीज़न में “मांग में उछाल बरकरार रहेगा या नहीं, खासकर यह देखते हुए कि शहरी भर्ती अभी भी अनिश्चित बनी हुई है.”
‘लाडकी बहिन’ से महाराष्ट्र की कल्याणकारी योजनाओं पर दबाव, क्या निकाय चुनावों में फ़र्क पड़ेगा?
महायुति सरकार की ‘लाडकी बहिन’ योजना, जिसके तहत पात्र महिलाओं को प्रति माह ₹1,500 का भुगतान किया जाता है, ने अन्य योजनाओं- जैसे त्योहारों के दौरान रियायती राशन प्रदान करने वाली आनंदाचा शिधा योजना और दोपहर का सस्ता भोजन प्रदान करने वाली शिव भोजन थाली योजना, के तहत भुगतान वितरित करने की उसकी क्षमता को प्रभावित किया है. महाराष्ट्र के पांच जिलों में जिन मतदाताओं से “स्क्रॉल” की तबस्सुम बरनगरवाला ने बात की, उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया, लेकिन क्या इसका राज्य में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों पर कोई असर पड़ेगा? कुछ लोगों ने ‘लाडकी बहिन’ के प्रति गुस्सा व्यक्त किया – जिनमें योजना का लाभ उठाने वाले भी शामिल थे – लेकिन राजनीतिक जानकार हरीश वानखेड़े ने टिप्पणी की कि “विपक्ष द्वारा इस गुस्से को पर्याप्त रूप से उठाया नहीं जा रहा है” और “चुनावों के दौरान वे (सत्तारूढ़ दल) संगठित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि कम से कम कुछ लोगों को योजनाओं से लाभ हो”, जो “लोगों में आशा लाता है और वे उन्हें वोट देना जारी रखते हैं.”
पहलगाम को पुलवामा की तरह बीजेपी की साजिश बताने वाले विधायक की हिरासत रद्द
“मकतूब मीडिया” के मुताबिक, गुवाहटी उच्च न्यायालय ने एआईयूडीएफ के विधायक अमीनुल इस्लाम की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत हिरासत को रद्द कर दिया है और आदेश दिया है कि अगर वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो उन्हें रिहा किया जाए. यह फैसला जम्मू और कश्मीर के पहलगाम और पुलवामा में हुए हमलों को “भाजपा सरकार की एक साज़िश” बताने वाली उनकी टिप्पणी के लिए उनकी गिरफ्तारी के छह महीने से अधिक समय बाद आया है.
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराणा और राजेश माजुमदार की पीठ ने फैसला सुनाया कि इस्लाम की एनएसए हिरासत “दोषपूर्ण हो जाती है” क्योंकि अधिकारियों ने हिरासत के खिलाफ उनके अभ्यावेदन को संभालने में अस्पष्ट देरी की, और क्योंकि उन्हें केंद्र सरकार के समक्ष अपील करने के अधिकार के बारे में तब तक सूचित नहीं किया गया जब तक कि केंद्र ने स्वयं राज्य सरकार को इसकी याद नहीं दिलाई.
असम के ढिंग निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले इस विधायक को 24 अप्रैल को एक राजनीतिक रैली में दिए गए बयानों के लिए गिरफ्तार किया गया था, जहां उन्होंने आरोप लगाया था कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला केंद्र की भाजपा सरकार की “एक साज़िश” था.
अमीनुल इस्लाम ने कहा था, “2019 में, जब पुलवामा हमले में 42 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे, तो मैंने कहा था कि यह 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले देश का ध्रुवीकरण करने के लिए केंद्र द्वारा एक साजिश थी और निष्पक्ष जांच की मांग की थी. “
उन्होंने पहलगाम हमले के इर्द-गिर्द की बातों पर भी सवाल उठाते हुए दावा किया था, “भाजपा कहती रही है कि आतंकवादियों ने गोली मारने से पहले लोगों से पूछा कि वे हिंदू थे या मुस्लिम. लेकिन बचे हुए लोगों और पीड़ितों ने कहा है कि किसी से पूछताछ नहीं की गई, उन पर दूर से गोलीबारी की गई. हमें संदेह है कि पहलगाम में जो हुआ, वह राजनीतिक लाभ के लिए देश भर में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा भड़काने के लिए केंद्र द्वारा इसी तरह की साज़िश है.” इस्लाम को 14 मई को इस मामले में जमानत मिल गई थी, लेकिन उसी दिन उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत हिरासत में ले लिया गया था.
चूंकि पीओके भारत का हिस्सा है, इसलिए सीमा पार व्यापार अंतर-राज्यीय व्यापार है: हाईकोर्ट
“द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) द्वारा विभाजित कश्मीर के दो हिस्सों के बीच के व्यापार को अंतर-राज्यीय व्यापार माना जाएगा, न कि आयात-निर्यात, क्योंकि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) भारत का हिस्सा है.
यह न्यायालय सीमा पार व्यापार से जुड़ी कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था जो 2008 में भारत-पाक ‘विश्वास बहाली के उपायों’ के हिस्से के रूप में शुरू हुआ था. 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा कार बम हमले, जिसमें 40 अर्धसैनिक कर्मी मारे गए थे और जिसने भारत और पाकिस्तान को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया था, के बाद भारत ने इस व्यापार को निलंबित कर दिया था.”
“बार एंड बेंच” के मुताबिक, न्यायमूर्ति संजीव कुमार और न्यायमूर्ति संजय परिहार की खंडपीठ ने सीमा पार व्यापार के टैक्स से जुड़े इस मामले में फैसला सुनाया, “दोनों पक्षों की ओर से उपस्थित विद्वान वकीलों द्वारा इस बात पर विवाद नहीं किया गया है कि वर्तमान में पाकिस्तान के वास्तविक नियंत्रण वाला राज्य का क्षेत्र जम्मू-कश्मीर राज्य के क्षेत्रों का हिस्सा है. इसलिए, वर्तमान मामले में आपूर्तिकर्ताओं का स्थान और माल की आपूर्ति का स्थान तब के जम्मू-कश्मीर राज्य (अब केंद्र शासित प्रदेश) के भीतर था और इसलिए, प्रश्नगत कर अवधि के दौरान याचिकाकर्ताओं द्वारा किया गया सीमा पार व्यापार और कुछ नहीं बल्कि एक अंतर-राज्यीय व्यापार था.”
याचिकाकर्ताओं ने पहले अभ्यावेदनों में इसके विपरीत तर्क दिया था. हालांकि, सुनवाई के दौरान उनके वकील ने स्वीकार किया कि सीमा पार व्यापार की प्रकृति स्पष्ट रूप से इस तथ्य का सुझाव देती है कि यह अंतर-राज्यीय था न कि दो देशों के बीच माल के आयात या निर्यात से जुड़ा व्यापार.”
शिमला की संजौली मस्जिद को गिराने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती, हिंदू संगठनों का विरोध तेज
शिमला में संजौली मस्जिद को गिराने की मांग को लेकर देव भूमि संघर्ष समिति के सदस्यों की भूख हड़ताल दस दिन से जारी है. वहीं, हिमाचल प्रदेश वक्फ बोर्ड ने उच्च न्यायालय का रुख किया है और जिला अदालत के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें दरगाह को अवैध घोषित किया गया था.
“मकतूब मीडिया” के मुताबिक, विवाद 30 अक्टूबर के एक आदेश से उत्पन्न हुआ, जिसमें जिला अदालत ने शिमला नगर आयुक्त न्यायालय के मस्जिद को गिराने के पहले के फैसले को बरकरार रखा था, संरचना को अवैध करार दिया था और निर्देश दिया था कि इसे 30 दिसंबर तक हटा दिया जाए.
एक संगठन मस्जिद को तत्काल सील करने और पानी और बिजली की आपूर्ति काटने पर ज़ोर दे रही है, जबकि दूसरा सतत भूख हड़ताल कर रहा है. वक्फ बोर्ड की याचिका पर उच्च न्यायालय सोमवार को तय करेगा कि याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं. समिति के सदस्यों ने क्षेत्र के मुसलमानों को शुक्रवार की नमाज के लिए मस्जिद न आने की चेतावनी दी थी. तनावपूर्ण माहौल के बावजूद, कुछ श्रद्धालुओं ने नमाज अदा की, और किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली.
मणिपुर: सामान्य स्थिति बहाल हो गई है तो हमें घर क्यों नहीं जाने दे रहे, सुरक्षा बलों से भिड़े लोग
अपने घरों को लौटने की मांग कर रहे सैकड़ों विस्थापित लोगों का शनिवार को मणिपुर के इंफाल पूर्वी जिले में सुरक्षा बलों के साथ टकराव हो गया. विस्थापित लोग, जो मई 2023 में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से विभिन्न राहत शिविरों में रह रहे हैं, जब वे जिले की परिधि पर स्थित ग्वाल्टाबी में अपने घरों की ओर मार्च कर रहे थे, तब सुरक्षा बलों ने उन्हें याइंगंगपोकपी में रोक दिया. जैसे ही स्थिति बिगड़ी, सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के कई गोले दागे.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, प्रदर्शनकारियों में से एक, एस. इबेमचा देवी ने कहा, “सरकार के अनुसार, राज्य में सामान्य स्थिति बहाल हो गई है. फिर, हमें अपने घरों में लौटने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है?”
एक अधिकारी ने कहा कि स्थिति अभी भी तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में बनी हुई है. संगाई महोत्सव 21 नवंबर को शुरू होने के बाद से आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों और सुरक्षा बलों के बीच इस तरह के टकराव कई बार हो चुके हैं.”
बहन ने कहा, इमरान की मौत की अफवाहें जनता की ‘प्रतिक्रिया’ जानने के लिए फैलाई जा रहीं
“पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की मृत्यु की अफवाहें जनता की प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए फैलाई जा रही हैं,” यह आरोप उनकी बहन अलीमा खानम ने लगाया है.
“अरब न्यूज़” की रिपोर्ट के मुताबिक, इमरान की मृत्यु के बारे में बढ़ती अफवाहों के बीच, खान के परिवार ने जेल अधिकारियों से यह साबित करने के लिए सबूत देने की मांग की है कि वह जीवित और स्वस्थ हैं, उनका कहना है कि उन्हें हफ्तों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई है. खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के सदस्य, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा (केपी) प्रांत के मुख्यमंत्री ने पूर्व प्रधान मंत्री से मिलने की अनुमति न मिलने के बाद, रावलपिंडी की केंद्रीय जेल के बाहर, जहां खान कैद हैं, गुरुवार को रात भर धरना प्रदर्शन किया.
क्रिकेटर से नेता बने खान अगस्त 2023 से आरोपों की एक श्रृंखला में जेल में हैं, जिनके बारे में वह कहते हैं कि वे राजनीति से प्रेरित हैं. अदियाला जेल अधिकारियों ने उनकी मृत्यु की अफवाहों का दृढ़ता से खंडन किया है, उनका जोर है कि 73 वर्षीय राजनेता सुविधा के अंदर ही हैं और उनकी शारीरिक स्थिति अच्छी है.
शनिवार को प्रकाशित “इंडिपेंडेंट उर्दू” के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, खानम ने कहा कि उनकी बहन डॉ. उज्मा खान आखिरी बार 4 नवंबर को पूर्व प्रधान मंत्री से मिली थीं. खानम ने कहा कि तब से परिवार को जेल अधिकारियों से उनकी स्थिति के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि जेल अधिकारियों ने खान से मिलने के लिए परिवार के सदस्य या वकील को कुछ मिनटों के लिए भी अनुमति देने के उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया, ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि वह स्वस्थ हैं या नहीं.
खानम ने कहा, “वे ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं? या क्या वे खुद ऐसी खबरें फैला रहे हैं? यह खबर कहां से आई कि उन्हें (खान को) मार दिया गया है? यह खबर कहां से आ सकती है? हम तक कोई खबर नहीं पहुंच सकती.”
उन्होंने कहा, “किसी ने हमें बताया, ‘वे एक परीक्षण चला रहे हैं. वे यह जांचने के लिए एक परीक्षण चला रहे हैं कि लोग कैसी प्रतिक्रिया करते हैं. यह देखने के लिए एक परीक्षण इस तरह किया जाता है कि क्या लोग प्रतिक्रिया नहीं करते हैं, क्या प्रतिक्रिया प्रबंधनीय है, तो वे वास्तव में खान के साथ कुछ कर सकते हैं.” खानम ने कहा कि पिछली बार जब उनकी बहन, डॉ. उज्मा खान, पीटीआई नेता से मिली थीं, तो अलगाव में रखे जाने के बावजूद वह “चुस्त” और “स्वस्थ” थे.
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने भी खान की मृत्यु की अफवाहों को खारिज कर दिया है, उनका जोर है कि पीटीआई नेता स्वस्थ हैं. सनाउल्लाह ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक निजी समाचार चैनल, एआरवाई न्यूज़ को बताया, “डॉक्टरों की एक टीम है जो साप्ताहिक और दैनिक आधार पर उनकी जांच करती है. उनकी दवा, आहार, सुविधाओं और व्यायाम का ध्यान रखती है.”
खान, जिन्हें अप्रैल 2022 में संसदीय वोट के बाद प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया था, ने पाकिस्तान के शक्तिशाली सेना प्रमुख और अपने राजनीतिक विरोधियों की आलोचना की है, उन पर उन्हें सत्ता से दूर रखने के लिए मिलीभगत का आरोप लगाया है. सेना और उनके राजनीतिक विरोधी खान के आरोपों का दृढ़ता से खंडन करते हैं.
इमरान ज़िंदा हैं, फ़ोटो सरकार ने रोका, क्योंकि इससे मुल्क का सीन बदल जाएगा
इस बीच पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से जुड़े सीनेटर खुर्रम जीशान ने दावा किया कि पूर्व पीएम की तस्वीर को इसलिए रोककर रखा गया है, क्योंकि यह ‘पाकिस्तान के पूरे परिदृश्य को बदल सकती है’. उन्होंने साझा किया कि पीटीआई पार्टी के सदस्यों को बताया गया है कि इमरान खान ठीक हैं और वर्तमान में अदियाला जेल में बंद हैं. यह पूछे जाने पर कि जेल में डाले जाने के बाद से इमरान खान की कोई तस्वीर क्यों जारी नहीं की गई है, उन्होंने कहा, “इमरान खान इतने लोकप्रिय हैं कि उनकी एक भी तस्वीर पाकिस्तान के पूरे परिदृश्य को बदल देगी. पाकिस्तान में सत्ताधारी व्यवस्था खुद को खतरे में महसूस कर रही है.”
सुदेशना घोषाल की रिपोर्ट है कि पाकिस्तानी सीनेटर ने शनिवार को एएनआई को बताया, “पीटीआई का नेतृत्व, इमरान खान के परिवार और उनके वकीलों को उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी जा रही है. यह मानवाधिकारों का पूर्ण उल्लंघन है, और उन्हें उनकी (सत्ताधारी व्यवस्था की) शर्तों पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है... हमें गारंटी दी गई है कि वह ठीक हैं और वर्तमान में अदियाला जेल में बंद हैं.”
चार दशक बाद नेली हत्याकांड फिर सुर्खियों में: रिपोर्टों के खुलासे ने उठाए राजनीतिक साज़िश और न्यायिक विफलता पर सवाल
1983 के नेली हत्याकांड, जिसमें लगभग 3,000 मुस्लमानों का क़तल किया गया था, चार दशक बाद एक बार फिर सुर्खियों में है. स्क्रॉल के मुताबिक़ 26 नवंबर को असम सरकार ने अचानक इस हिंसा से जुड़ी दो जांच आयोगों, टीयू मेहता आयोग और तेवारी आयोग, की रिपोर्टें जारी की. ये वे रिपोर्टें थीं जिन्हें लंबे समय से सार्वजनिक नहीं किया जा रहा था. अब यह रिपोर्ट जनता के सामने है, हालाँकि इन दोनों रिपोर्टों के निष्कर्ष एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं. मेहता आयोग का कहना है कि यह हिंसा राजनीतिक भड़कावे की वजह से हुई, जबकि सरकारी तेवारी आयोग ने केवल इस घटना का ब्यौरा दिया है और राजनीती भूमिका को सिरे से नज़रअंदाज़ कर दिया है. इससे सवाल उठता है कि सच किस रिपोर्ट में है और क्या इस तरह के रिपोर्ट्स से यह हादसा बर्दाश्त करने वालों को अब कोई वास्तविक लाभ मिल पाएगा, या उनका उपयोग सिर्फ अगले साल के चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल पैदा करने के लिए होगा.
लेख में बताया गया है कि भारत में बड़े पैमाने पर होने वाली हिंसा को अक्सर “दंगा” कहकर उसकी भीषणता और गंभीरता को छोटा बना दिया जाता है, जबकि असलियत में यह आम तौर पर पूरी योजना के साथ किया गया हमला होता है, जिसका मकसद किसी खास समुदाय को निशाना बनाना और उससे राजनीतिक फायदा उठाना होता है.
हिंसा के बाद सरकारें अक्सर जांच आयोग बनाती हैं, लेकिन इनका उपयोग सच छिपाने के लिए किया जाता है, जैसे आयोग तो बना देना, उसके बाद रिपोर्ट आने में वर्षों लगा देना और अगर रिपोर्ट सत्ता के ख़िलाफ़ हो तो उसे ख़ारिज करदेना. शोधकर्ता बताते हैं कि 1947 से 2023 के बीच भारत में हिंसा की जांच के लिए 47 आयोग बने, लेकिन इन में से 26 आयोगों ने कोई ठोस जानकारी ही नहीं दी. जानकारी को सार्वजनिक करने में सरकारी संस्थाएँ भी अत्यधिक अनिच्छुक रहती हैं.
लेख में उदाहरण दिए गए हैं कि 1984 सिख विरोधी हिंसा पर 11 आयोग बने, लेकिन आज तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि कितने दोषियों को सज़ा मिली. 2002 गुजरात हिंसा में एक आयोग की रिपोर्ट को इसलिए ख़ारिज कर दिया गया क्योंकि उसने कहा था कि साबरमती एक्सप्रेस में आग राजनीतिक दावे से अलग एक दुर्घटना थी. इसी तरह, बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच में 17 साल और 48 एक्सटेंशन लगे, और अंत में सभी आरोपी बरी हो गए. फैसले के कुछ ही महीनों बाद जज को सरकारी पद मिल गया, जिससे न्याय और सत्ता के बीच संबंध पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. लेखक के शोध में यह भी पाया गया कि कई बार जो अधिकारी हिंसा रोकते हैं, उन्हें सज़ा मिलती है और जो हिंसा होने देते हैं, उन्हें पुरस्कार या प्रमोशन मिलता है.
नेली हत्याकांड के संदर्भ में भी यही हुआ. अब तक एक भी दोषी को सज़ा नहीं हुई, जो ज़िंदा बच गए उनसे कहा गया कि वे इस हादसे को भूल जाएँ और आगे बढ़ें. कुछ को तो वर्षों तक उन्हीं लोगों के साथ रहना पड़ा जिन पर हमले का आरोप था. ऐसे में, आज अगर हम मान भी लें कि मेहता आयोग की रिपोर्ट तेवारी आयोग की तुलना में सच के अधिक करीब है, तब भी इसका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं दिखता. जो होना था, वह हो चुका है, और न्याय की प्रक्रिया बहुत पहले ही विफल हो चुकी है.
लेखिका रहील धट्टीवाला का निष्कर्ष है कि जांच आयोग अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सहारा लेकर अलोकतांत्रिक राजनीतिक चालों को छुपाने का तरीका बन गए हैं. कागज़ पर सब कुछ विधि-सम्मत दिखता है, लेकिन सच यह है कि पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता, दोषी बच निकलते हैं, और राजनीति मज़ीद मज़बूत होती जाती है. नेली की रिपोर्टें इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे यह दिखाती हैं कि भारत में हिंसा केवल घटनाओं का सिलसिला नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति बन चुकी है, जिसका सबसे बड़ा नुकसान आम नागरिक झेलते हैं.
ढाका जेल से जमानत पर रिहा हुई सकीना बेगम, लेकिन असम वापसी अब भी अनिश्चित
द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक़ बांग्लादेश में दो महीने से पुलिस हिरासत में रह रहीं सकीना बेगम को 23 नवंबर को ढाका की एक अदालत ने शर्तों के साथ ज़मानत दे दी है. लेकिन ज़मानत मिलने के बावजूद, उनका असम (भारत) वापस लौटना अभी भी स्पष्ट नहीं है, जिससे उनके भविष्य पर कानूनी और प्रशासनिक अनिश्चितता बनी हुई है.
द वायर ने पहले बताया था कि असम में उन्हें “विदेशी” घोषित कर दिया गया था और आरोप है कि प्रशासन ने उन्हें बिना पासपोर्ट या वीज़ा के ग़ैरक़ानूनी रूप से बांग्लादेश की सीमा पार धकेल दिया. इसके बाद उन्हें बांग्लादेश पुलिस ने अवैध प्रवेश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था. बाद में बीबीसी के पत्रकारों की मदद से सकीना अपनी बेटियों से संपर्क कर सकी, जो असम में हैं जिसके बाद से परिवार और ढाका में उनका ख्याल रखने वाले लोग उन्हें भारत लाने की कोशिश कर रहे हैं.
ढाका की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने आदेश दिया कि सकीना को भाषांटेक की रहने वाली जाकिया नाम की महिला की देखरेख में रिहा किया जाए, जिन्होंने उन्हें पहले भी अपने घर में शरण दी थी. ज़मानत की शर्त के अनुसार, सकीना को हर हफ्ते भाषांटेक थाने में हाज़िरी देनी होगी।
सकीना को काशिमपुर जेल (ढाका से लगभग 50 किमी दूर) से चौथे ज़मानत आवेदन की सुनवाई के लिए अदालत लाया गया. उनके वकील रहमतुल्लाह ने अदालत में दलील दी कि जिन धाराओं में उन्हें गिरफ्तार किया गया है, वे ज़मानती हैं. उन्होंने उनकी उम्र को भी आधार बनाकर अदालत से रिहाई की मांग की.
दोपहर में फैसला सुरक्षित रखा गया क्योंकि अदालत यह तय कर रही थी कि सकीना को किसकी अभिरक्षा में छोड़ा जाए और भारत वापस भेजने की प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ेगी.
सुबह उम्मीद थी कि उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाएगा, लेकिन सकीना को वापस जेल ले जाया गया. , वह बार-बार अपनी बेटी के बारे में पूछ रही थीं और देरी से परेशान थीं. आख़िरकार शाम को अदालत ने सभी कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करते हुए उनकी रिहाई का आदेश दिया.
24 नवंबर को जाकिया काशिमपुर जेल पहुँचीं और सभी कागज़ी कार्रवाई पूरी की गई। शाम तक सकीना को उनके सुपुर्द कर दिया गया.
द वायर से बात करते हुए सकीना ने कहा,“अब दिल को सुकून है. मैं अपनी भांजी जाकिया के घर जा रही हूँ. अल्लाह इन्हें, पत्रकारों को और सबको खुश रखे जिन्होंने मेरी मदद की.
भाषांटेक पहुँचने पर माहौल भावनात्मक था, जाकिया की बेटी रो पड़ी और सकीना भी भावुक हो गईं. बाद में उन्होंने वीडियो कॉल पर असम में अपनी बेटियों से बात की. उनकी बेटी रासिया ने सभी का आभार जताया.
अब सबसे बड़ा सवाल: सकीना भारत कैसे और कब लौटेंगी?
हालाँकि सकीना अब जेल से बाहर हैं, लेकिन असम के नलबाड़ी ज़िले में अपने परिवार तक पहुँचने की राह अभी भी अनिश्चित है. उन्हें वापस भारत भेजने की प्रक्रिया क्या होगी?कौन से दस्तावेज़ लगेंगे? कौन-सी एजेंसी मदद करेगी?इन सवालों पर अभी कोई स्पष्ट जवाब नहीं है.
अब जाकिया को मानवाधिकार संस्थाओं और अधिकारियों की मदद से सकीना की वापसी की लंबी कानूनी प्रक्रिया शुरू करनी होगी. सकीना घर लौटने की बेहद इच्छुक हैं, लेकिन स्पष्ट प्रक्रिया न होने की वजह से एक नई चिंता उनके और उनके परिवार के सामने खड़ी है, घर वापसी अभी भी एक दूर का सपना लगता है.
अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.









