29/12/2025: अरावली और बलात्कारी नेता की जमानत पर रोक | गिग वर्करों के मसले और हड़ताल | अंकिता हत्याकांड में भाजपा नेता का नाम | कांग्रेस क्या करे? | भाजपा के इरादे और देश की उदासीनता पर आकार पटेल
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
देहरादून में नफरत का शिकार हुआ त्रिपुरा का छात्र. खुद को बताया इंडियन. भीड़ ने ‘मोमो’ कहकर ले ली जान.
चुनाव आयोग का यू-टर्न. सुप्रीम कोर्ट में जिसे खराब बताया. उसी सॉफ्टवेयर को 12 राज्यों में फिर कर दिया लागू.
31 दिसंबर की रात फीका पड़ सकता है जश्न. हड़ताल पर जा रहे हैं गिग वर्कर्स. 10 मिनट डिलीवरी के खिलाफ बिगुल.
अंकिता भंडारी हत्याकांड में नया मोड़. टीवी एक्ट्रेस ने किया भाजपा के बड़े नेता ‘गट्टू’ के नाम का खुलासा.
अरावली पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी. केंद्र के 100 मीटर वाले नियम पर लगाई रोक.
बलात्कारी विधायक कुलदीप सेंगर की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट का ब्रेक. कहा. विधायक भी पब्लिक सर्वेंट होता है.
नकली ‘जस्टिस चंद्रचूड़’ बनकर महिला से ठगे पौने चार करोड़. डिजिटल अरेस्ट का नया खौफनाक चेहरा.
और कश्मीर में एक साल की हुई भारत की पहली ‘जीन-एडिटेड’ भेड़ ‘तरमीम’. वैज्ञानिकों ने दी अच्छी खबर.
देहरादून में त्रिपुरा के छात्र की हत्या
उसने कहा वह इंडियन है. उन्होंने उसे मोमो कहा और मार डाला
देहरादून में मारे गए त्रिपुरा के 24 वर्षीय एमबीए छात्र के भाई ने विस्तार से बताया है कि कैसे उन पर हमला करने वाले लोगों ने उन्हें ‘चिंकी’ कहकर संबोधित किया था. उसे ‘मोमो’ और ‘चीनी’ भी कहा गया. एक ने पूछा क्या यहां पोर्क लेने आए हो. उसने जवाब भी दिया, “मैं इंडियन हूं, चीनी नहीं हूं. कैसे साबित करूं.” लेकिन दरिंदों ने एक नहीं सुनी.
पश्चिम त्रिपुरा जिले के नंदननगर निवासी 24 वर्षीय एंजेल चकमा ने देहरादून के एक अस्पताल में 17 दिनों तक संघर्ष करने के बाद 26 दिसंबर को दम तोड़ दिया था. पुलिस के अनुसार, उसके सिर और पीठ पर धारदार हथियारों और कड़े (धातु के कंगन) से गंभीर चोटें आई थीं. सोमवार को सामने आए एक वीडियो में, जो स्पष्ट रूप से घटना के बाद कार के अंदर रिकॉर्ड किया गया था (जब एंजेल जीवित था और आईसीयू में था), उसका छोटा भाई माइकल हमले से पहले की घटनाओं का क्रम बता रहा है.
“द टेलीग्राफ ऑनलाइन” के अनुसार, माइकल ने वीडियो में कहा, “वहां मैं, मेरा भाई और हमारे दो दोस्त थे. हम अपना सामान लेने गए थे. वहां हमने लोगों का एक समूह देखा, वे नशे में थे, जब हम अपनी बाइक से लौट रहे थे, तो वे मुझे गालियां देने लगे, मुझे ‘चिंकी’ कहने लगे और मेरा मज़ाक उड़ाने लगे.”
माइकल ने बताया कि जब उसने उनसे गाली देने का कारण पूछा, तो उन्होंने हमला कर दिया. उसने कहा, “मुझे नहीं पता कि यह पहले से योजनाबद्ध था या नहीं, लेकिन उन्होंने सीधे मुझ पर हमला किया. मेरा भाई मुझे बचाने आया.” हमले का वर्णन करते हुए उसने बताया कि आरोपियों ने उसे कड़े से मारा और उसके भाई की रीढ़ के पास चाकू मार दिया. यह घटना 9 दिसंबर को सेलाकुई इलाके में हुई थी.
मृतक के पिता, जो मणिपुर में तैनात एक बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) जवान हैं, ने आरोप लगाया कि पुलिस ने शुरुआत में शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया था. वरिष्ठ अधिकारियों और छात्र संघ के हस्तक्षेप के बाद ही एफआईआर दर्ज की गई. अब तक पांच आरोपियों को पकड़ा गया है, जिनमें दो किशोर शामिल हैं. मुख्य आरोपी, जो नेपाल का निवासी बताया जा रहा है, अभी भी फरार है. उत्तराखंड पुलिस ने उस पर 25,000 रुपये के इनाम की घोषणा की है.
इस बीच लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसे एक “भयानक नफरत भरा अपराध” करार दिया. उन्होंने कहा कि नफरत रातों-रात पैदा नहीं होती, बल्कि जहरीली सामग्री और गैर-जिम्मेदाराना विमर्श के जरिए इसे वर्षों से युवाओं के मन में भरा जा रहा है. उन्होंने भाजपा नेतृत्व पर नफरत फैलाने और इसे सामान्य बनाने का आरोप लगाया.
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ‘एक्स’ पर लिखा कि त्रिपुरा के एक गौरवान्वित भारतीय छात्र को ‘चीनी’ और ‘मोमो’ जैसे शब्दों से अपमानित किया गया और अंततः उसकी हत्या कर दी गई. उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में नस्लवाद बढ़ रहा है और पूर्वोत्तर के लोगों के साथ होने वाला यह भेदभाव खत्म होना चाहिए. केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि ऐसी घटनाएं केवल पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ ही नहीं, बल्कि किसी भी भारतीय के खिलाफ नहीं होनी चाहिए. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मृतक के पिता तरुण प्रसाद चकमा से फोन पर बात की और इसे एक “खेदजनक घटना” बताया. उन्होंने दोषियों को कठोरतम सजा दिलाने का आश्वासन दिया.
चुनाव आयोग का बड़ा यू-टर्न: सुप्रीम कोर्ट में ख़राब बताए जाने के बाद भी बिना प्रोटोकॉल के एसआईआर के बीच में ही एल्गोरिदम लागू किए
सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी देने के महज़ आठ दिन बाद कि उनका ‘डी-डुप्लीकेशन सॉफ़्टवेयर’ (वोटर लिस्ट से दोहरे नाम हटाने वाला सॉफ़्टवेयर) इस्तेमाल करने लायक नहीं है और उसमें कई खामियां हैं, भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने अचानक 12 राज्यों में इसे फिर से सक्रिय कर दिया है.
“द रिपोटर्स कलेक्टिव” के लिए आयुषी कर और हर्षिता मनवानी की जांच में सामने आया है कि आयोग ने ऐसा करते समय उस स्थापित और सख़्त प्रोटोकॉल को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया है, जो इस सॉफ़्टवेयर के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए बनाया गया था. पहले की प्रक्रिया एक अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया थी, जिसका मक़सद यह सुनिश्चित करना था कि फ़र्ज़ी वोटर्स को हटाने के चक्कर में कहीं असली वोटर्स का नाम न कट जाए. लेकिन अब चुनाव आयोग ने बिना किसी लिखित निर्देश, मैन्युअल या ‘स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर’ (एसओपी) के, न केवल पुराने सॉफ़्टवेयर को, बल्कि एक दूसरे नए ‘एल्गोरिदम’ को भी लागू कर दिया है.
“रिपोटर्स कलेक्टिव” ने उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में एक दर्जन से ज़्यादा चुनाव अधिकारियों से बात की और ज़िला स्तर पर दी जा रही ट्रेनिंग में भी हिस्सा लिया. जांच में पाया गया कि:
बिना नियम के सॉफ़्टवेयर: जिस सॉफ़्टवेयर को कोर्ट में ‘डिफेक्टिव’ माना गया था, उसे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के चौथे हफ़्ते में अचानक चालू कर दिया गया.
वोटर्स को नोटिस नहीं: पुराने नियमों के मुताबिक, नाम काटने से पहले वोटर को नोटिस देना और सुनवाई का मौक़ा देना ज़रूरी था. लेकिन नए सिस्टम में बीएलओ (बूथ लेवल अफ़सर) को ऐप पर संदिग्ध वोटर्स की लिस्ट दी जा रही है और अधिकारी अपने ‘विवेक’ और ‘कॉमन सेंस’ से फैसला ले रहे हैं.
86 लाख लोग ‘अनमैप्ड’: एसआईआर प्रक्रिया में अब तक 11 राज्यों में 86.46 लाख लोगों को ‘अनमैप्ड’ मार्क किया गया है और 3.7 करोड़ नाम ड्राफ़्ट लिस्ट से हटा दिए गए हैं.
दूसरा सॉफ़्टवेयर और ‘मैपिंग’ का खेल
आयोग ने एक और सॉफ़्टवेयर तैनात किया है जो वोटर्स को ‘मैप’ करता है. इसके तहत मौजूदा वोटर्स को 2002-2004 की पुरानी वोटर लिस्ट से लिंक किया जा रहा है.
अगर कोई वोटर उस दो दशक पुरानी लिस्ट में अपने माता-पिता या रिश्तेदार को नहीं ढूँढ पाता, तो उसे ‘अनमैप्ड’ माना जाएगा.
इस सॉफ़्टवेयर में ‘लॉजिकल डिस्क्रिपेंसी’ (तार्किक विसंगति) पकड़ने का सिस्टम है. मसलन, अगर वोटर और उसके पिता की उम्र में 18-45 साल का अंतर नहीं है, तो सॉफ़्टवेयर उसे संदिग्ध मान लेगा.
यह सब कुछ बिना किसी लिखित आदेश के हो रहा है. उत्तर प्रदेश में अधिकारियों को दिसंबर के अंत में (डेडलाइन से कुछ दिन पहले) अचानक संदिग्ध वोटर्स की लिस्ट मिली, जिससे भारी हड़बड़ी मच गई.
आयोग ने इन सॉफ़्टवेयर्स के इस्तेमाल के लिए न तो जनता को कोई जानकारी दी है और न ही अपने अधिकारियों को कोई लिखित नियमावली सौंपी है.
हरकारा डीपडाइव | भारत का पहला डिजिटल ‘सत्याग्रह’
‘थर्टी फर्स्ट’ को लॉग इन नहीं करने वाले हैं गिग वर्कर्स… आपका खाना शायद न आए
क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप अपने फोन पर एक बटन दबाते हैं और 10 मिनट में जादू की तरह सामान आपके दरवाजे पर आ जाता है, तो उसके पीछे किसकी सांसें फूल रही होती हैं? किसकी जान दांव पर लगी होती है?
नया साल आने वाला है. 31 दिसंबर की रात जश्न की रात होगी. लोग पार्टियों में होंगे, केक कटेंगे, बिरयानी ऑर्डर होगी. लेकिन इस बार शायद वो डिलीवरी बॉय आपकी घंटी न बजाए. भारत के करीब सवा करोड़ गिग वर्कर्स में से एक बड़ा हिस्सा हड़ताल पर जाने की तैयारी कर रहा है. 25 दिसंबर को जो हुआ, वो महज़ एक ट्रेलर था. असली फिल्म 31 दिसंबर को रिलीज़ होने वाली है.
“हरकारा” ने बात की शेख सलाउद्दीन से. वो तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन के प्रेसिडेंट हैं और खुद भी एक ड्राइवर हैं. उनकी बातें सुनकर आपको अपने फोन में मौजूद उन रंग-बिरंगे ऐप्स—ज़ोमैटो, स्विगी, ब्लिंकिट, अमेज़न—को देखने का नज़रिया बदल जाएगा.
पार्टनर नहीं, डिजिटल गुलाम : कंपनियां इन्हें ‘पार्टनर’ कहती हैं. सुनने में अच्छा लगता है. पर सलाउद्दीन बताते हैं कि यह कैसी पार्टनरशिप है. “बाज़ार बढ़ रहा है, महंगाई बढ़ रही है, लेकिन हमारा पे-आउट गिरता जा रहा है. पहले एक ऑर्डर के 80 रुपये मिलते थे, फिर 60 हुए, 40 हुए और अब 15-20 रुपये पर आ गए हैं. कई बार तो 5-7 रुपये ही मिलते हैं. क्या पार्टनरशिप में एक पार्टनर अमीर होता जाता है और दूसरा सड़क पर आ जाता है?”
10 मिनट की जानलेवा दौड़ : सबसे डरावना पहलू है ‘10 मिनट डिलीवरी’ का जुनून. सलाउद्दीन पूछते हैं, “क्या 10 मिनट में ग्रोसरी या खाना न आने से किसी की जान चली जाएगी? लेकिन उस 10 मिनट के चक्कर में डिलीवरी वर्कर की जान ज़रूर जा रही है.”
हवा में ज़हर घुला है, कोहरा है, सड़कें जाम हैं. लेकिन एल्गोरिदम को इससे मतलब नहीं. अगर आप लेट हुए, तो पेनाल्टी लगेगी. अगर कस्टमर ने रेटिंग कम दी, तो आपकी आईडी ब्लॉक हो जाएगी. आईडी ब्लॉक होने का मतलब है—बेरोज़गारी. और इसके खिलाफ अपील करने की कोई जगह नहीं है. यह एक ऐसा ‘डिजिटल कोर्ट’ है जहां सिर्फ सज़ा मिलती है, सुनवाई नहीं होती.
अमिताभ बच्चन और ‘कुली’ का विरोधाभास: सलाउद्दीन ने बातचीत में एक बहुत दिलचस्प और चुभने वाली बात कही. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, जिन्होंने ‘कुली’ फिल्म में मज़दूरों का रोल कर शोहरत पाई, आज वो इन कंपनियों के लिए विज्ञापन कर रहे हैं. वो नौजवानों को कह रहे हैं कि “आ जाओ, जुड़ जाओ, इलेक्ट्रिक व्हीकल ले जाओ.” सलाउद्दीन कहते हैं, “अगर बच्चन साहब मेरी गाड़ी में बैठेंगे तो मैं उनसे पूछूंगा—सर, आपने मज़दूर बनकर ही नाम कमाया था, आज आप उन्हीं मज़दूरों को बरगलाने वाले ऐड क्यों कर रहे हैं? क्या आप हमारे हक के लिए हमारे कंधे पर हाथ रखेंगे?” एक्सीडेंट होने पर क्या होता है? सलाउद्दीन बताते हैं कि कंपनियों ने ‘बल्क इंश्योरेंस’ ले रखा है. लेकिन इसमें पेंच है. अगर आप ‘ऑन-ड्यूटी’ हैं, तभी क्लेम मिलेगा. अगर आप लॉग-आउट करके चाय पी रहे हैं या घर लौट रहे हैं और हादसा हो गया, तो आप भगवान भरोसे हैं. और हां, इंश्योरेंस का क्लेम मिलेगा या नहीं, यह भी आपकी ‘रेटिंग’ (गोल्ड, सिल्वर, ब्रॉन्ज़) तय करती है. यानी आपकी सुरक्षा भी आपके स्टार्स पर निर्भर है.
यह भारत का पहला एल्गोरिदम-ड्रिवन ‘डिजिटल सत्याग्रह’ है. सलाउद्दीन कहते हैं, “हम कोई तोड़-फोड़ नहीं करेंगे, कोई नारा नहीं लगाएंगे. हम बस अपना फोन बंद करेंगे और पार्क में बैठेंगे, घर पर बैठेंगे. हम भी न्यू ईयर मनाएंगे.” अगर 31 दिसंबर को लाखों वर्कर्स ने लॉग-इन नहीं किया, तो उन कंपनियों के शेयर बाज़ार हिल जाएंगे जो इन वर्कर्स के खून-पसीने पर टिकी हैं. एक अर्थशास्त्री ने सलाउद्दीन को फोन करके कहा भी कि आपकी हड़ताल से शेयर मार्केट पर असर पड़ रहा है. सलाउद्दीन का जवाब था— “मार्केट उनका है, पर मेहनत हमारी है.”तो इस 31 तारीख को अगर आपका ऑर्डर लेट हो, या कैंसिल हो जाए, तो उस डिलीवरी पार्टनर को कोसने से पहले एक बार सोचिएगा. वो शायद अपनी गरिमा और अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है—खामोशी से, अपना फोन स्विच ऑफ करके.
बरेली: बजरंग दल का बर्थ डे पार्टी में उपद्रव, मारपीट, ‘लव जिहाद’ के नारे; 5 गिरफ्तार
बरेली पुलिस ने एक कैफे में हुई घटना के संबंध में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है और एक नाबालिग को संरक्षण में लिया है. आरोप है कि शनिवार को बजरंग दल के सदस्यों ने एक जन्मदिन की पार्टी में घुसकर मेहमानों के साथ मारपीट की और वहां मौजूद दो मुस्लिम लड़कों पर “लव जिहाद” का आरोप लगाते हुए नारेबाजी की. प्रेमनगर पुलिस द्वारा जारी प्रेस नोट के अनुसार, कुछ लोगों का समूह कैफे में घुस गया, कर्मचारियों और ग्राहकों के साथ गाली-गलौज की, उनके साथ मारपीट की, तोड़फोड़ की और विरोध करने पर जान से मारने की धमकी दी.
कैफे मालिक की शिकायत के आधार पर, भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर (केस नंबर 532/25) दर्ज की गई. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और वीडियो के आधार पर आरोपियों की पहचान की और प्रिंस सिंह (19), आकाश (21), आशीष उर्फ पारस जौहरी (26), मृदुल उर्फ मनीष दुबे और दीपक (19) को गिरफ्तार किया. हालांकि, मुख्य आरोपी ऋषभ ठाकुर अभी भी फरार है. पूछताछ में गिरफ्तार आरोपियों ने कथित तौर पर स्वीकार किया कि उन्होंने ऋषभ ठाकुर और दीपक पाठक के कहने पर कैफे में हंगामा और तोड़फोड़ की थी.
दूसरी ओर, बरेली में बजरंग दल के सदस्य आर्यन चौधरी ने दावा किया कि इस घटना में संगठन शामिल नहीं था. उन्होंने पुलिस पर “हिंदुओं और बजरंग दल को निशाना बनाने” का आरोप लगाया.
पीड़िता की चाची अनीता गंगवार ने ‘मकतूब’ से बात करते हुए कहा कि मुख्य आरोपी, जो खुद को बजरंग दल का बता रहे थे, अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं. उन्होंने पुलिस पर नरम धाराएं लगाने का आरोप लगाया और कहा, “इन गुंडों के खिलाफ ऐसी सजा होनी चाहिए जो दूसरों के लिए मिसाल बने. ये समाज के लिए खतरा हैं. पुलिस हमारी अलग से शिकायत दर्ज नहीं कर रही है और कह रही है कि इसे कैफे मालिक की शिकायत में ही जोड़ दिया जाएगा.”
स्थानीय कैफे में आयोजित इस जन्मदिन की पार्टी में 10 छात्र (6 लड़कियां और 4 लड़के) शामिल थे. इनमें से केवल दो लड़के मुस्लिम थे, बाकी सभी हिंदू थे. पीड़िता के अनुसार, यह सहपाठियों के बीच एक निजी जश्न था. पार्टी शुरू होने के कुछ ही देर बाद, दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं का समूह कैफे में घुस आया और हिंदू लड़कियों के साथ मुस्लिम लड़कों की मौजूदगी पर सवाल उठाते हुए मारपीट शुरू कर दी. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में इन लोगों को लड़कियों के साथ बदसलूकी करते और उनके दोस्तों को बेरहमी से पीटते हुए देखा जा सकता है.
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आकार पटेल : बीजेपी विचारधारा चाहती क्या है? अल्पसंख्यक भारतीयों- मुसलमानों और ईसाइयों- को सताना और नुक़सान पहुँचाना चाहती है, बस..
इरादे को उदासीनता का साथ मिल गया है.
इरादा ज़मीन कब्ज़ाना चाहता है, और उदासीनता कहती है- “ठीक है, हम एडजस्ट कर लेंगे.” यहाँ ‘इरादा’ भारतीय जनता पार्टी का वह संकल्प है जिससे वो अपनी विचारधारा को लागू करना चाहती है. पार्टी के पास सरकार की ताक़त है और उन बहुत सारे भारतीयों का समर्थन भी जो इस विचारधारा को लागू होते देखना चाहते हैं. हक़ीक़त में यह संख्या अल्पमत में है, जैसा कि हर चुनाव ने दिखाया है. लेकिन यह ‘इरादे’ से लैस है.
उदासीनता हम बाक़ी लोगों की- जो बहुमत में हैं- एक कमज़ोरी है कि हम इसका विरोध नहीं कर पा रहे. उम्मीद, यहाँ तक कि उन लोगों से भी जो इस ख़तरे को समझते हैं, यह है कि सरकार द्वारा पैदा की गई समस्याओं को ‘चेक्स एंड बैलेंसेज’ से सुलझाया जाएगा- कि विपक्ष, संसद और न्याय व्यवस्था इस समस्या को संभाल लेंगे. लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है, और यह नया साल जिसमें हम दाख़िल हो रहे हैं, दिखाएगा कि वे ऐसा नहीं कर सकते.
जो लोग इस मामले में नए हैं, उनके लिए: बीजेपी की विचारधारा आख़िर चाहती क्या है? यह अल्पसंख्यक भारतीयों- मुसलमानों और ईसाइयों- को सताना और नुक़सान पहुँचाना चाहती है, बस इतना ही. इस विचारधारा का कोई ऊँचा मक़सद नहीं है और यह अपने ही देशवासियों के पीछे पड़ने के अलावा कुछ नहीं देती. यह नफ़रत के रूप में ज़िंदा है और नफ़रत के रूप में ही खुद को ज़ाहिर करती है. यह भावना कभी ख़त्म नहीं होती, यह खुद को रिन्यू कर सकती है और लड़ने के लिए हमेशा नए मैदान ढूँढ लेती है. नया साल, 2026, भी यही दिखाएगा. 2025 में हम उसी रास्ते पर चलते रहे जो हमने एक दशक से भी पहले चुना था. राजस्थान वह आठवां राज्य बन गया जिसने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शादी पर रोक लगा दी. यह सितंबर में हुआ, तीन महीने पहले. सितंबर 1935 में, जर्मनी ने यहूदियों और ईसाइयों के बीच शादी पर बैन लगाया था. इन रिश्तों को “नस्ल को दूषित करना” (रेस डिफाइलमेंट) कहा गया था, जिससे दुनिया दहल गई थी. भारत ने यह काम बड़ी चालाकी से नाम दिए गए क़ानूनों के ज़रिए किया है जो वही नतीजा हासिल करते हैं. यह क़ानून एक नौकरशाह को यह तय करने की ताक़त देता है कि कोई बालिग़ अपना धर्म बदल सकता है या नहीं. इस क़ानून के दूसरे प्रावधान उन नियमों को और सख़्त करते हैं जो बीजेपी पिछले कुछ सालों में ऐसे ही क़ानूनों के ज़रिए लाई है.
इस ‘इरादे’ की पहली झलक 2018 के उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ़ रिलीजन एक्ट में दिखी थी. इस क़ानून में एक नई चीज़ थी. इसका मक़सद धर्मांतरण को अपराध बनाकर अंतरधार्मिक शादियों को रोकना है, लेकिन यह उन लोगों को छूट देता है जो अपने ‘पुश्तैनी धर्म’ में वापस आना चाहते हैं. इस शब्द को परिभाषित नहीं किया गया, लेकिन पाठकों को यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि इसका क्या मतलब है.
यह क़ानून पास हुआ और लागू भी हुआ. अदालतों से कोई रोक-टोक नहीं. ‘इरादे’ ने इसे नोट किया और और ज़्यादा ज़मीन हथियाने की कोशिश की. ऐसे ही क़ानून 2019 में हिमाचल प्रदेश, 2020 में उत्तर प्रदेश, 2021 में मध्य प्रदेश और गुजरात, और 2022 में हरियाणा और कर्नाटक में आए. ध्यान दें कि कर्नाटक में सरकार बदल गई लेकिन क़ानून वही है. इरादा हमेशा उदासीनता पर भारी पड़ेगा. राजस्थान आठवां राज्य बना और यह आख़िरी नहीं होगा.
तेज़ दिमाग़ वाले पाठक देखेंगे कि कैसे कुछ ही सालों में यह जगह तेज़ी से घेर ली गई, जबकि किसी भी चीज़ को पलटा नहीं गया. यही कहानी ‘बीफ़’ के मुद्दे पर दोहराई गई. बीफ़ रखने को अपराध मानने वाले पहले क़ानून 2015 में आए (महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी सरकारों द्वारा). इन क़ानूनों और इनके आस-पास की चर्चा ने हिंसा की एक नई श्रेणी पैदा की: बीफ़ लिंचिंग. एक पत्रकार के तौर पर मेरे दशकों के अनुभव में, मैंने इससे पहले ‘बीफ़ लिंचिंग’ जैसी कोई चीज़ नहीं सुनी थी, लेकिन अब यह काम इतना आम हो गया है कि ‘नॉर्मल’ लगता है. हमारे आस-पास अंतहीन हत्याएं हो रही हैं और उदासीनता ने उनके साथ एडजस्ट कर लिया है, ‘इरादे’ के लिए जगह बना दी है.
गुजरात, जो एक लैबोरेट्री (प्रयोगशाला) था और अब एक फैक्ट्री बन चुका है, ने 2017 में एक क़ानून पास किया जिसमें गो-हत्या के लिए उम्रक़ैद की सज़ा है. यह एक आर्थिक अपराध है, लेकिन किसी भी व्हाइट-कॉलर क्राइम में उम्रक़ैद नहीं होती. जो लोग अरबों चुराते हैं उन्हें सुधरने का मौक़ा दिया जाता है, जैसा कि हम अपने सामने होते देख रहे हैं.
कुछ हफ़्ते पहले, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि वह उन आरोपियों के ख़िलाफ़ केस वापस लेना चाहती है जो पहली कुख्यात लिंचिंग- सितंबर 2015 में अख़लाक़ की हत्या- में शामिल थे, क्योंकि ‘इंसाफ़’ करना शायद अपमानजनक है. जज ने बहादुरी से इसे मना कर दिया और दशक पुराना मुक़दमा जारी रहेगा, लेकिन हमें एक ऐसे देश में जो आमतौर पर उदासीनता से चलता है, साहस के इक्का-दुक्का कामों पर निर्भर रहना पड़ता है. केंद्र की सत्ता से 20 करोड़ भारतीय मुसलमानों का पूरी तरह बाहर होना आज उतना ही सामान्य है जितना कि एक ऐसे देश में हो सकता है, जहाँ भेदभाव क़ानूनी हो. भारतीय बस अपने कंधे उचका देते हैं.
‘इरादा’ ईसाइयों के सालाना त्योहार (क्रिसमस) में हिंसक बाधा डालेगा और हम बाक़ी लोग बस देखते रहेंगे. असहमति जताना और एक्शन लेना एक ही बात नहीं है. ‘इरादा’ हिंसक कार्रवाई करता है जबकि ‘उदासीनता’ अपना सेलफोन निकालकर वीडियो रिकॉर्ड करती है. सिर्फ़ एक धर्म के तलाक़ को अपराध बनाने वाला क़ानून 2019 में आया, और बाक़ी सभी के लिए यह एक सिविल मामला बना रहा. नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) से सिर्फ़ एक धर्म को बाहर रखने वाला क़ानून भी 2019 में आया. एक ऐसा क़ानून जो एक धर्म के भारतीयों को गुजरात में प्रॉपर्टी खरीदने और किराए पर लेने से रोकता है- जहाँ विदेशी भी ले सकते हैं- उसे 2019 में और सख़्त किया गया. हमें बताया जाता है कि भारत, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद से लड़ने में सबसे आगे था, लेकिन आज हम अपने ही देश में इसे होता देखकर कंफर्टेबल (सहज) हैं. अगर हम कंफर्टेबल नहीं होते, अगर हमें गुस्सा आता, तो हम इसके बारे में कुछ करते. कश्मीरी कालीन बेचने वाले की लिंचिंग और बांग्लादेशी फेरीवाले की लिंचिंग भी अब बीफ़ लिंचिंग में शामिल हो गई है और हम जड़ बने हुए हैं.
इरादा नरम नहीं पड़ेगा क्योंकि इरादा कुछ हासिल करना चाहता है; उदासीनता बस यह चाहती है कि उसे डिस्टर्ब न किया जाए.
यह नया साल, एक बार फिर, उसी इरादे और उसी उदासीनता को दोहराएगा.
अंकिता भंडारी हत्याकांड में भाजपा के बड़े नेता का नाम आया; उन्हें भट्टू, फट्टू और गट्टू कहा जाता था
उत्तराखंड के एक रिसॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट की हाई-प्रोफाइल हत्या से जुड़े रहस्यमयी “वीआईपी” के रूप में भाजपा के वरिष्ठ नेता दुष्यंत कुमार गौतम का नाम आने पर, पूर्व राज्यसभा सदस्य ने मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी है. एक अभिनेत्री ने उन पर ये आरोप लगाए हैं.
सितंबर 2022 में 19 वर्षीय रिसेप्शनिस्ट की हत्या कर उसे नहर में फेंक दिया गया था. आरोप है कि उसने हरिद्वार के पास वनंतरा रिसॉर्ट में एक वीआईपी मेहमान का “मनोरंजन” करने से इनकार कर दिया था. रिसॉर्ट के मालिक और तत्कालीन भाजपा नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य, रिसॉर्ट के मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर के साथ इस हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. विनोद आर्य को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है.
“द टेलीग्राफ” में पीयूष श्रीवास्तव की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता के एक दोस्त द्वारा पुलिस और ट्रायल कोर्ट को बताए गए “वीआईपी” की पहचान एक रहस्य बनी हुई थी. यह स्थिति तब बदली जब उर्मिला सनवर नामक एक टेलीविजन अभिनेत्री ने वीडियो पोस्ट किए. उर्मिला, जो खुद को एक पूर्व भाजपा विधायक द्वारा प्रताड़ित बताती हैं, ने दावा किया कि कई भाजपा नेता—जिन्हें “भट्टू”, “फट्टू” और “गट्टू” कहा जाता था—रिसॉर्ट में महिला कर्मचारियों का शोषण करते थे.
इसके बाद सोशल मीडिया पर छद्म नामों से किए गए पोस्ट में दावा किया गया कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तराखंड के प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम ही “गट्टू” हैं, जिन्हें खुश करने का आदेश रिसेप्शनिस्ट को दिया गया था. उत्तराखंड पुलिस ने शनिवार को कहा कि उसने उर्मिला के वायरल वीडियो के आधार पर दो प्राथमिकी दर्ज की हैं और जांच कर रही है. शुक्रवार को कई स्थानीय टीवी चैनलों ने उर्मिला का एक वीडियो साक्षात्कार प्रसारित किया, जिसमें उन्होंने हत्या से जुड़े “वीआईपी” की पहचान गौतम के रूप में की.
गौतम, जिन्हें उत्तराखंड में आरएसएस-भाजपा का प्रमुख नीति-निर्धारक माना जाता है, ने मानहानि के मुकदमे की धमकी दी और जांच की मांग की. मीडिया को जारी एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा: “मैंने मुख्यमंत्री के सचिव (शैलेश बगौली) को पत्र लिखकर मेरे खिलाफ लगे आरोपों की जांच कराने को कहा है. अगर आरोप सच पाए गए तो मैं सामाजिक और राजनीतिक जीवन छोड़ दूंगा.”
उन्होंने आगे कहा, “मैं चाहता हूं कि वे इस मामले में मेरी संलिप्तता साबित करें, अन्यथा मैं उन सभी पर मानहानि का मुकदमा दायर करूंगा जिन्होंने इतने गंभीर आरोप लगाए हैं... मेरा नाम लेने वाली महिला की जांच होनी चाहिए. उसके पास मौजूद सभी तथाकथित सबूतों को बरामद कर उनकी जांच की जानी चाहिए.”
इस बीच, कांग्रेस गुरुवार से पूरे उत्तराखंड में धरना प्रदर्शन कर रही है और उस “वीआईपी” की गिरफ्तारी और उन पर कार्रवाई की मांग कर रही है.
उर्मिला सनवर के दावे: उर्मिला ने पिछले हफ्ते दावा किया था कि हरिद्वार के ज्वालापुर से तत्कालीन भाजपा विधायक सुरेश राठौर ने पहली पत्नी के जीवित होने के बावजूद उनसे झूठ बोलकर शादी की थी. इसके बाद भाजपा ने राठौर को निलंबित कर दिया था. हालांकि, राठौर ने उर्मिला के खिलाफ ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कराया है. उन्होंने पत्रकारों से कहा, “वह मेरी पत्नी नहीं है बल्कि मुझे ब्लैकमेल कर रही है... मैं उसे ₹50 लाख पहले ही दे चुका हूँ.”
उर्मिला ने आरोप लगाया है कि भाजपा उन्हें गिरफ्तार करवा सकती है या उनकी हत्या करवा सकती है. उन्होंने कहा, “मेरे पास इस बात के सबूत हैं कि उस रात रिसॉर्ट में कौन सा वीआईपी आने वाला था. राठौर ने मुझे बताया था कि वह गट्टू था.”
उर्मिला ने साक्षात्कार में बताया कि वह राठौर को छोड़ना चाहती थी, लेकिन एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने उन्हें 2022 में टिकट दिलाने का वादा करके रोक लिया था. अंततः टिकट राठौर को मिला और वे हार गए. उर्मिला ने आगे कहा, “मैं पुलिस को सबूत सौंपने के लिए तैयार हूँ, लेकिन उन्हें अपने पास सुरक्षित रखने के बाद ही...”
अरावली की परिभाषा पर सुप्रीम कोर्ट का यू-टर्न: 100 मीटर वाले नियम पर रोक, बनेगी नई कमेटी
अरावली की पहाड़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस ‘100 मीटर’ वाली परिभाषा पर रोक लगा दी है, जिसे उसने पहले मान लिया था. इस परिभाषा के तहत अरावली का दायरा सिमट रहा था और खनन का खतरा बढ़ गया था.
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत ने कहा, “हम यह ज़रूरी समझते हैं कि पुरानी कमेटी की सिफारिशों और कोर्ट के निर्देशों को अभी ठंडे बस्ते में रखा जाए. यह रोक नई कमेटी के गठन तक जारी रहेगी.” कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई 21 जनवरी तय की है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” ने 23 दिसंबर को रिपोर्ट किया था कि कैसे सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 100 मीटर वाले नियम को स्वीकार कर लिया था, जबकि कोर्ट की अपनी ही पैनल ने इसका विरोध किया था.
अब सीजेआई ने उन अहम मुद्दों को रेखांकित किया है जिनकी जांच नई विशेषज्ञ समिति करेगी:
छोटी पहाड़ियों का बाहर होना: सीजेआई ने “द इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट का हवाला देते हुए चिंता जताई कि राजस्थान की 12,081 पहाड़ियों में से सिर्फ 1,048 पहाड़ियाँ ही 100 मीटर की ऊंचाई वाले नियम में फिट बैठती हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर यह सही है, तो एक बड़ी वैज्ञानिक जांच की ज़रूरत है.
500 मीटर की दूरी का पेंच: सरकार की परिभाषा में उन पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा नहीं माना गया था जो एक-दूसरे से 500 मीटर से ज्यादा दूर हैं. कोर्ट ने पूछा है कि क्या इससे अरावली की पूरी शृंखला को खतरा नहीं होगा?
खनन का असर: कोर्ट ने यह भी साफ़ करने को कहा है कि जिन इलाकों को अरावली से बाहर कर दिया जाएगा, वहां खनन होने से संरक्षित पहाड़ियों पर क्या असर पड़ेगा.
पर्यावरण वकील ऋत्विक दत्ता ने कहा कि नया आदेश साबित करता है कि पिछला फैसला जल्दबाजी में लिया गया था और सरकार का जवाब भरोसेमंद नहीं था.
बलात्कारी पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर को जमानत देने पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें उन्नाव रेप केस के दोषी और पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा को सस्पेंड करते हुए उसे ज़मानत दी गई थी. चीफ जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने कहा, “हम इस आदेश पर रोक लगा रहे हैं. दोषी को रिहा नहीं किया जाएगा.” कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता को अलग से याचिका दायर करने की ज़रूरत नहीं है और अगर उसे कानूनी मदद चाहिए, तो सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमिटी उसे मुहैया कराएगी.
“लाइव लॉ” के मुताबिक मामला यह था कि दिल्ली हाई कोर्ट ने माना था कि सेंगर ‘पब्लिक सर्वेंट’ (लोक सेवक) की परिभाषा में नहीं आते, इसलिए उन पर पोक्सो एक्ट की धाराएं उस तरह लागू नहीं होतीं. सीबीआई की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि हाई कोर्ट का यह तर्क गलत है. उन्होंने कहा, “पॉक्सो एक्ट में पब्लिक सर्वेंट का मतलब वो व्यक्ति है, जो बच्चे पर अपना प्रभुत्व रखता हो. सेंगर उस वक़्त एक पावरफुल विधायक था.” चीफ जस्टिस ने भी चिंता जताई कि अगर विधायकों को पब्लिक सर्वेंट नहीं माना गया, तो यह खतरनाक होगा. सेंगर अभी एक और मामले (पीड़िता के पिता की हत्या) में भी सज़ा काट रहा है.
जालसाज ने ‘जस्टिस चंद्रचूड़’ बनकर महिला से ₹3.75 करोड़ ठगे
डिजिटल अरेस्ट घोटालों के एक नए और जटिल रूप में, पश्चिमी मुम्बई की एक 68 वर्षीय महिला से जालसाजों ने 3.75 करोड़ रुपये की ठगी की. इन जालसाजों ने एक फर्जी वर्चुअल कोर्ट सुनवाई आयोजित की थी, जिसमें एक व्यक्ति ने स्वयं को “जस्टिस चंद्रचूड़” बताया था.
निताशा नातू की रिपोर्ट के अनुसार, आमतौर पर खाकी वर्दी (पुलिस के वेश) में किए जाने वाले धोखे से आगे बढ़कर, इन स्कैमर्स ने पीड़िता से “अपने जीवन पर एक निबंध” लिखवाया. जबकि मुख्य साजिशकर्ता अभी भी फरार हैं, साइबर पुलिस ने गुजरात के एक 46 वर्षीय व्यक्ति को गिरफ्तार किया है, जिसके बैंक खाते में ठगी गई राशि का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ था. पुलिस का कहना है कि वास्तविक कॉल करने वाले अक्सर देश के बाहर से काम करते हैं, जहां भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों का पहुंचना कठिन होता है.
महिला की मुसीबत 18 अगस्त को शुरू हुई जब उसे “कोलाबा पुलिस स्टेशन” से एक कॉल आया, जिसमें दावा किया गया कि उसका बैंक खाता 6 करोड़ रुपये के मनी लॉन्ड्रिंग मामले से जुड़ा है. शिकायतकर्ता ने स्पष्ट किया कि वह ऐसा कोई बैंक खाता संचालित नहीं करती है, लेकिन कॉलर ने पहले से ही उसे एक “केस नंबर” और उसके मामले के विवरण वाला एक पत्र सौंप दिया था.
अपनी निर्दोषता “सिद्ध” करने के लिए, उसे अत्यधिक दबाव वाली रणनीति का सामना करना पड़ा. उसे मामले का विवरण किसी को भी बताने से मना किया गया और गिरफ्तारी की धमकी दी गई. महिला ने निर्देशों के अनुसार अपने बैंक विवरण स्कैमर्स को दे दिए. उसे “24 घंटे की निगरानी” में रखा गया और उसका केस “सीबीआई” को सौंपा जाना बताया गया. “ऑफिसर एस के जायसवाल” ने कमान संभाली और उसके चरित्र का मूल्यांकन करने के लिए उसे अपने जीवन के बारे में 2-3 पन्नों का निबंध लिखने को कहा. उसने कहा कि वह उसकी मासूमियत के प्रति आश्वस्त है और आश्वासन दिया कि उसे जल्द ही जमानत मिल जाएगी. इसके तुरंत बाद “जस्टिस चंद्रचूड़” के सामने उसकी सुनवाई की व्यवस्था की गई.
सुनवाई वीडियो कॉल पर शुरू हुई और न्यायिक पोशाक पहने एक व्यक्ति सामने आया, जिसने स्वयं को “जस्टिस चंद्रचूड़” बताया. उसने महिला से उसके मनी लॉन्ड्रिंग मामले के बारे में विवरण मांगा और जब महिला ने खुद को निर्दोष बताया, तो उसने उसकी “जमानत खारिज” कर दी. उससे जांच के लिए अपनी पूरी संपत्ति जमा करने और अपने सभी म्यूचुअल फंड भुनाने के लिए कहा गया. अगस्त और अक्टूबर के बीच उसने स्कैमर्स को 3.75 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए. लेकिन जब उसे कोई पैसा वापस नहीं मिला, तब उसने पुलिस से संपर्क किया.
जेल से छूटने के बाद दोषी हत्यारे ने 19 वर्षीय बेटी के साथ दुष्कर्म किया
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक व्यक्ति, जिसे 14 साल की सजा काटने के बाद दो महीने पहले ही जेल से रिहा किया गया था, को अपनी 19 वर्षीय बेटी के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. आरोपी एक दोषी हत्यारा है, जिसे पीड़िता की शिकायत के बाद पुलिस ने व्यक्ति को फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
“टाइम्स न्यूज नेटवर्क” के अनुसार, 19 वर्षीय पीड़िता अपने माता-पिता से अलग रहती है, क्योंकि उसकी माँ भी पिता से अलग रहती है. करीब 15 दिन पहले पीड़िता अपने पिता के घर रहने गई थी. पीड़िता ने आरोप लगाया कि वहां लगभग 12 से 15 दिनों के प्रवास के दौरान, उसके पिता ने उसे बार-बार डराया-धमकाया और उसके साथ दुष्कर्म किया. बार-बार होने वाले इन हमलों से व्यथित होकर पीड़िता शुक्रवार को पुलिस स्टेशन पहुंची और अपनी आपबीती सुनाई.
शाहीन मलिक का अकेलापन: 16 साल की लड़ाई के बाद तेज़ाब हमलावरों को मिली आज़ादी
क्रिसमस की पूर्व संध्या पर दिल्ली की एक कोर्ट ने एसिड अटैक पीड़िता शाहीन मलिक को एक ऐसा ‘तोहफा’ दिया जिसने उन्हें तोड़कर रख दिया. जिस गैंग ने उन पर तेज़ाब फेंका था, उसे कोर्ट ने बरी कर दिया. प्रिया रामानी ने अपने सब्सटैक पेज पर विस्तार से लिखा है.
शाहीन उस वक़्त 26 साल की थीं जब 2009 में उनके बॉस और उसकी पत्नी ने साजिश रची और उन पर एसिड फिंकवाया. उनका आधा चेहरा जल गया और एक आंख हमेशा के लिए चली गई. 16 साल तक उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ी. प्रिया रमानी अपनी रिपोर्ट में लिखती हैं कि शाहीन ने अपना दर्द भुलाकर ‘ब्रेव सोल्स फाउंडेशन’ नाम का एनजीओ शुरू किया. यह संस्था एसिड अटैक पीड़ितों को अपना चेहरा न छुपाने और ज़माने की नज़रों का सामना करने की हिम्मत देती है. शाहीन कहती हैं, “बलात्कार पीड़िता को कोई पहचान नहीं सकता, लेकिन एसिड अटैक का निशान हमेशा चेहरे पर रहता है. लोग अभी भी भेदभाव करते हैं.”
शाहीन का कहना है, “मुझे हमलावरों की आंखों में कभी पछतावा नहीं दिखा.” यह फैसला उनके लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन वे हार मानने वालों में से नहीं हैं. वे एसिड की खुलेआम बिक्री पर रोक लगाने के लिए फिर से कोर्ट जाने की तैयारी कर रही हैं.
पुणे में फिर साथ आए चाचा-भतीजे
महाराष्ट्र की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ आया है. “द इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ में होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए अजित पवार की एनसीपी और शरद पवार की एनसीपी (एसपी) ने हाथ मिला लिया है. हालांकि, दोनों गुट इसे सिर्फ एक ‘स्थानीय गठबंधन’ बता रहे हैं, लेकिन इसने दोनों पार्टियों के विलय की चर्चा छेड़ दी है. यह गठबंधन बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए किया गया है. दरअसल, बीजेपी ने पुणे में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है ताकि वह अपना विस्तार कर सके. यह अजित पवार के लिए खतरे की घंटी थी, क्योंकि बीजेपी के मज़बूत होने का मतलब गठबंधन में उनकी हैसियत कम होना है. वहीं, शरद पवार गुट के लिए यह अस्तित्व बचाने की लड़ाई है. रोहित पवार ने कहा, “यह गठबंधन सिर्फ दो नगर निगमों तक सीमित है और स्थानीय कार्यकर्ताओं की इच्छा पर किया गया है.” लेकिन जानकारों का मानना है कि अगर यह प्रयोग सफल रहा, तो आगे जिला परिषद चुनावों में भी यह मॉडल अपनाया जा सकता है.
‘नकली आईएएस’ : स्टाफ और काफिले पर हर माह 5 लाख खर्च करता था, दर्जनों के साथ करोड़ों की ठगी
गोरखपुर पुलिस ने बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले 27 साल के गौरव कुमार सिंह उर्फ ललित किशोर को गिरफ्तार किया है, जो खुद को 2022 बैच का आईएएस अधिकारी बताता था. हिंदू में अमरनाथ तिवारी की रिपोर्ट के मुताबिक ललित का रहन-सहन ऐसा था कि कोई भी धोखा खा जाए. वह नीली बत्ती वाली गाड़ी में चलता था और उसने 10-15 लोगों का स्टाफ रखा हुआ था. वह अपने बॉडीगार्ड्स को 30 हज़ार और अपने पीए (साले) को 60 हज़ार रुपये महीना सैलरी देता था. पुलिस के मुताबिक, वह हर महीने अपने काफिले पर करीब 5 लाख रुपये खर्च करता था. हैरानी की बात यह है कि उसके घर (सीतामढ़ी) में घोर गरीबी है. उसके पिता मोची थे और भाई मज़दूरी करते हैं. परिवार का कहना है कि ललित ने उन्हें कभी एक पैसा नहीं दिया. वह 15 साल की उम्र में एक लड़की को लेकर भाग गया था, जिसे वह ट्यूशन पढ़ाता था. ललित ने 40 से ज़्यादा लोगों से करोड़ों रुपये ठगे हैं. उसे तब पकड़ा गया जब एक ठेकेदार, जिससे उसने 5 करोड़ रुपये लिए थे, ने पुलिस को टिप दी. उसके पास से कई फर्जी आईडी और एआई से बनाई गई तस्वीरें मिली हैं, जिनमें उसने असली अफसरों के चेहरों पर अपना चेहरा लगा रखा था.
पार्श्वकथा: ग्वालियर में ब्राह्मण वकील के साथ वक्त बिताना क्यों डरा गया
“स्क्रॉल” में अनंत गुप्ता की ताज़ा रिपोर्ट पत्रकारिता की नैतिकता और व्यक्तिगत पहचान (जाति) के बीच के संघर्ष को दर्शाती है. यह दिखाती है कि कैसे ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ बातचीत में किसी मुद्दे पर असली विचार सामने आते हैं. अनंत रिपोर्टिंग के अपने अनुभव को साझा करते हुए लिखते हैं- ग्वालियर की तंग गलियों में वकील अनिल मिश्रा की एसयूवी में पीछे बैठे हुए, मैं और मेरी सहकर्मी कृतिका उनके एकतरफा संवाद के मूक दर्शक बने हुए थे. हम वहां मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ में डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने से जुड़े विवाद को कवर करने पहुंचे थे.
मिश्रा उन सवर्ण वकीलों के समूह का हिस्सा थे, जिन्होंने तकनीकी आधारों का हवाला देकर प्रतिमा स्थापना पर रोक लगवा दी थी. साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कानूनी बारीकियों पर बात की, लेकिन कार के निजी माहौल में उनका असली चेहरा सामने आ गया. उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “यह मूर्ति ग्वालियर के आसपास कहीं नहीं लगेगी, शौचालय में भी नहीं.” उनकी बातों का जातिवादी अर्थ स्पष्ट था.
उस दिन ‘भीम आर्मी’ ने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था, जिसके कारण पुलिस ने शहर को किले में तब्दील कर दिया था. जब हमें अदालत परिसर में प्रवेश करने और फोटो लेने में दिक्कत हुई, तो मिश्रा ने मदद की पेशकश की. अपनी यात्रा के दौरान वे गर्व से बताते रहे कि कैसे ग्वालियर की ऊंची जातियों ने अम्बेडकरवादी दावों का मुकाबला किया है. उन्होंने 2018 की हिंसक जातिगत झड़पों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि उस हिंसा का डर ही दलित आंदोलन को एक सीमा के बाद रोक देगा.
मिश्रा ने सामाजिक न्याय की राजनीति की तुलना ‘अश्वमेध यज्ञ’ के घोड़े से करते हुए कहा, “हमने उनके यज्ञ का घोड़ा पकड़कर बांध दिया है.” बातों-बातों में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जिस चबूतरे पर प्रतिमा लगनी थी, वहां उन्होंने जबरन तिरंगा फहरा दिया है. जब हम अदालत पहुंचे, तो वह झंडा वहां मौजूद था, जबकि बाबा साहब की प्रतिमा शहर से दूर एक कारखाने में धूल फांक रही थी.
सबसे परेशान करने वाली बात यह थी कि मिश्रा ने हमारे सामने इतने खुलकर अपने विचार क्यों रखे? मुलाकात की शुरुआत में ही उन्होंने हमारी जाति पूछी थी और यह जानकर सहज हो गए थे कि हम भी सवर्ण पृष्ठभूमि से हैं. शायद उन्होंने यह मान लिया था कि हमारी पृष्ठभूमि के कारण हमारे विचार भी उनके जैसे ही होंगे. हालांकि हमने उनकी बातों का समर्थन नहीं किया, पर उस समय विरोध भी नहीं किया, जिससे उनकी इस धारणा को बल मिला होगा.
शाम को अदालत घुमाते समय उन्होंने पुलिस के मना करने के बावजूद हमें वीडियो रिकॉर्ड करने में मदद की, जिसके लिए हमने उनका आभार व्यक्त किया. लेकिन दिल्ली लौटते समय मेरी अंतरात्मा इस द्वंद्व और बेचैनी से भरी थी कि क्या मुझे उस समय चुप रहना चाहिए था? यह सवाल आज भी मुझे परेशान करता है.
भारत-पाक सीजफायर में भूमिका के लिए रिकी गिल को सम्मान
भारतीय मूल के अमेरिकी अधिकारी रिकी गिल को ‘नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल’ के प्रतिष्ठित अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. उन्हें यह अवॉर्ड इस साल भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर समझौते में भूमिका निभाने के लिए दिया गया है. यह अवॉर्ड अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने दिया.
यह खबर इसलिए अहम है क्योंकि भारत सरकार लगातार यह कहती रही है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर द्विपक्षीय बातचीत का नतीजा था और इसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी. विदेश मंत्री एस. जयशंकर कई बार साफ कर चुके हैं कि भारत पाकिस्तान के मुद्दों पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता. रिकी गिल अभी अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष सहायक हैं. उनका जन्म न्यू जर्सी में हुआ था.
“हम शांति के बेहद करीब हैं”: ज़ेलेंस्की से मुलाकात के बाद ट्रंप का बड़ा बयान
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की से मुलाकात के बाद कहा है कि रूस और यूक्रेन “पहले से कहीं ज़्यादा शांति समझौते के करीब” हैं. ट्रंप ने दावा किया कि 95% मुद्दों पर सहमति बन चुकी है. ज़ेलेंस्की ने बताया कि वे ट्रंप के शांति प्लान पर जनमत संग्रह कराने को तैयार हैं, लेकिन उनकी शर्त है कि रूस कम से कम 60 दिनों के लिए सीजफायर करे, ताकि लोग बिना डर के वोट कर सकें. हालांकि, असली पेंच डोनबास इलाके को लेकर फंसा है. ट्रंप का प्लान मांग करता है कि यूक्रेन को कुछ क्षेत्रीय समझौते करने होंगे, जिसे ज़ेलेंस्की के लिए स्वीकार करना मुश्किल है. ट्रंप ने मीटिंग से दो घंटे पहले पुतिन से भी फोन पर बात की. पुतिन के सलाहकार ने कहा कि दोनों नेताओं को लगता है कि डोनबास पर फैसला जल्द होना चाहिए.
विश्लेषण
नितिन पाई : कांग्रेस एक भरोसेमंद राजनीतिक विकल्प कैसे बन सकती है
संवैधानिक तंत्र को सही ढंग से चलाने के लिए एक भरोसेमंद विपक्ष का होना बेहद ज़रूरी है.
मेरे पुराने दोस्त संजय कृष्णन ने एक पश्चिमी लोकतंत्र (जहाँ वो रहते हैं) की राजनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वहाँ की लिबरल पार्टी दलदल में फंसी हुई है. जितना ज़ोर वो खुद को बचाने के लिए लगाती है, उतना ही गहरा वो कीचड़ में धंसती जाती है. उन्हें एक अलग रणनीति की ज़रूरत थी. भारत में भी सीन कुछ-कुछ ऐसा ही है. यहाँ विपक्षी पार्टियां अलग-अलग दिन अलग-अलग चीज़ों पर इतना शोर मचाती हैं कि यह समझना मुश्किल हो जाता है कि वो असल में किस चीज़ के खिलाफ हैं, और यहाँ तक कि वो किस चीज़ के साथ हैं.
सबसे पहले, एक डिस्क्लेमर: मैं न तो चुनावी राजनीति का विशेषज्ञ हूँ और न ही हमारे rajहमारी पॉलिटिकल पार्टीज़ की अंदरूनी राजनीति का एनालिस्ट. सच कहूँ तो मुझे इनमें ज़्यादा दिलचस्पी भी नहीं है और मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कि किस नेता या किस गुट की किस्मत कहाँ जा रही है. मैं बस कुछ ऑब्ज़र्वेशन्स दे रहा हूँ और साल के अंत में थोड़ी ‘विशफुल थिंकिंग’ कर रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि भारत को एक ऐसे राजनीतिक विकल्प की ज़रूरत है जो पूरी संवैधानिक व्यवस्था का बैलेंस बनाए रखे, और जिसके पास अगले चुनाव में पावर में आने का एक ‘रियल चांस’ हो.
पिछले दो सालों में इंडियन नेशनल कांग्रेस की बदलती हुई पोज़िशन्स को देखकर मैं हैरान हूँ. वो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से सीधा ‘कास्ट सेंसस’ (जाति जनगणना) के मुद्दे पर कैसे पहुँच गए? पहला वाला (भारत जोड़ो) हाल के सालों की बांटने वाली राजनीति को सुधारने का एक अच्छा तरीका था, जो भारतीयों को देशभक्ति और बहुलवादी (प्लूरिज्म) के झंडे तले जोड़ रहा था. लेकिन दूसरा वाला (कास्ट सेंसस) भारत को जाति के आधार पर बांटता है, और उन हज़ारों मीलों की मेहनत पर पानी फेर देता है जो उनके नेता ने बस दो साल पहले चलकर तय की थी. पार्टी अपना केस चाहे कितनी भी सफाई से पेश करे, देश का हॉरिजॉन्टल (आड़ा) बंटवारा भी उतना ही बंटवारा है जितना कि वर्टिकल (खड़ा).
मैं इतना नहीं जानता कि मैं यह डायग्नोस कर सकूँ कि कांग्रेस अपनी लीडरशिप की गहरी धारणाओं को एक स्पष्ट राष्ट्रीय राजनीतिक एजेंडे में क्यों नहीं बदल पा रही — एक ऐसा एजेंडा जिसे पूरी पार्टी ऑर्गनाइज़ेशन का सपोर्ट हो. मुझे जो दिखता है वो एक भटकी हुई पार्टी है जो रोज़ हज़ारों विवादों के पीछे भागती है, बस बिना सोचे-समझे हर उस काम का विरोध करती है जो सरकार करती है, और पार्टी नेता हर मौके पर बस नाराज़गी और गुस्सा जताते रहते हैं. इन सबका कुल जमा-जोड़ लोगों में कॉन्फिडेंस पैदा नहीं करता. सिर्फ इसलिए नहीं कि बीजेपी की आइडियोलॉजी ज़्यादा स्पष्ट है और उनके पास चुनाव जीतने की ज़बरदस्त मशीन है, बल्कि इसलिए भी कि वो आसानी से वो सारे पॉपुलर काम कर सकती है जो कांग्रेस कहती है कि वो पावर में आने पर करेगी.
यूरोप और अमेरिका के बारे में लिखते हुए मार्क लियोनार्ड कहते हैं कि “न्यू राइट (दक्षिणपंथी) के पास नैरेटिव है, सोशल बेस है, पॉलिसी एजेंडा है और आगे बढ़ने के लिए कम्यूनिकेशन चैनल्स भी हैं.” भारत में यह स्थिति पिछले करीब 15 सालों से है. विपक्षी पार्टियों के पास साथ आने और कामयाबी का मसाला तैयार करने के लिए यह वक़्त काफ़ी होना चाहिए था.
फिर भी, इतनी भारी इन्वेस्टमेंट और अच्छे चुनावी नतीजों के बावजूद, ‘भारत जोड़ो’ को एक वैकल्पिक नैरेटिव के न्यूक्लियस (केंद्र) के तौर पर छोड़ दिया गया. कास्ट सेंसस के अंजाम कांग्रेस के लिए अनप्रिडिक्टेबल होंगे, जैसा कि कर्नाटक में उनके अनुभव ने दिखाया है. कोटा और रिज़र्वेशन का पॉलिसी एजेंडा शायद कुछ राज्यों में काम कर जाए, लेकिन यह बाकी देश में समर्थकों और डोनर्स को पार्टी से दूर करने की कीमत पर आएगा. रोज़ाना के नए विवादों के पीछे भागने से कम्यूनिकेशन चैनल्स थक चुके हैं, जिससे एनर्जी वेस्ट होती है और मेन नैरेटिव हल्का पड़ जाता है.
जैसा कि भारत जोड़ो के असर ने दिखाया, लोग एकता, देशभक्ति और संघवाद (फेडरलिज़्म) की बात सुनना चाहते हैं. कोई भी राजनीतिक विकल्प जो नई दिल्ली में पावर में आना चाहता है, उसे इसे खुले दिल से अपनाना होगा. इसे एक साझा राष्ट्रीय पहचान के आस-पास अपना सोशल बेस बनाना चाहिए, न कि ‘इस जाति के खिलाफ वो जाति’ करके. इसे पॉलिटिकल लाइफ में हिंदू धर्म के साथ कंफर्टेबल होना चाहिए और इसके असली बहुलवादी (प्लूरलिस्टिक) स्वरूप को बढ़ावा देना चाहिए. इसे सेक्युलरिज़्म का पालन करना चाहिए, लेकिन यह मानते हुए कि सेक्युलरिज़्म सरकार पर लागू होता है, व्यक्तियों और समाज पर नहीं. इकोनॉमी के मोर्चे पर, इसे इन्फ्रास्ट्रक्चर में पब्लिक इन्वेस्टमेंट और प्राइवेट सेक्टर कंपीटिशन के ज़रिए विकास (ग्रोथ) को बढ़ावा देना चाहिए.
एक ऐसा लिबरल नेशनलिस्ट राजनीतिक एजेंडा बनाना मुमकिन है जो बीजेपी से काफ़ी अलग हो और एक भरोसेमंद राजनीतिक विकल्प का आधार बन सके. राष्ट्रवाद, प्लूरलिज़्म के साथ. ग्रोथ, कंपीटिशन के साथ. डेवलपमेंट, सोशल सिक्योरिटी के साथ. राष्ट्रीय ताक़त, फेडरलिज़्म के साथ. बस अपने एजेंडे पर टिके रहने का जज़्बा और डिसिप्लिन होना चाहिए, बिना फालतू की चीज़ों के पीछे भागे. वोटर का भरोसा जीतने के लिए पार्टी को कई इलेक्शन साइकल्स तक अपनी लाइन पर कायम रहना पड़ेगा. एक मुद्दे से दूसरे मुद्दे पर, एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक कूदना यह दिखाता है कि आप डेटा एनालिस्ट्स पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा कर रहे हैं. आज वोटर को लगता है कि कांग्रेस या तो पर्सनालिटीज़ के बारे में है या फिर जाति के जोड़-तोड़ के बारे में, और उससे आगे कुछ नहीं.
अगर कांग्रेस को एक क्रेडिबल पॉलिटिकल विकल्प बनना है तो उसे बदलना होगा. यह कैसे होगा, यह मुख्य रूप से उनके मेंबर्स, सपोर्टर्स और नेताओं का काम है. फिर भी, संसद में वो कैसा व्यवहार करते हैं, यह पब्लिक इंटरेस्ट का मुद्दा है. मैं एक शोर मचाने वाले विपक्ष के बजाय एक ज़्यादा ‘क्रिएटिव’ विपक्ष देखना चाहूँगा. मैं ऐसे प्रवक्याओं को देखना चाहूँगा जो कॉन्फिडेंट और इंस्पायरिंग हों, न कि हमेशा शिकायत करने वाले.
दलदल से निकलने का तरीका थोड़ा अजीब होता है. जब मैंने Perplexity (AI) से पूछा कि कैसे, तो उसने कहा कि शांत रहो, धीरे-धीरे हिलो और उन भारी चीज़ों को फेंक दो जो तुम्हें नीचे खींच रही हैं. ऊपर रहने के लिए गहरी सांस लो. फिर किसी मज़बूत सहारे को ढूंढो. ज़ाहिर है, इनमें से कुछ भी आसान नहीं है, लेकिन शुरुआत वहाँ से की जा सकती है कि कम से कम हालात को और बिगाड़ना बंद किया जाए.
दक्षिण में बुढ़ापा और उत्तर में भीड़; राज्यों के बीच आबादी और उम्र का अंतर गहरी खाई पैदा कर रहा है
दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के नाते, भारत किस तरह से बढ़ रहा है, इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है. “डेटा फॉर इंडिया” की रुक्मिणी एस. का विश्लेषण बताता है कि भारत के राज्यों के बीच आबादी और उम्र का अंतर एक गहरी खाई पैदा कर रहा है, जो देश की राजनीति और अर्थशास्त्र के लिए चुनौती बन सकती है. इसकी रिपोर्ट स्क्रोल में प्रकाशित हुई है.
तीन बड़े बदलाव जो भारत को बांट रहे हैं:
1. प्रजनन दर में भारी अंतर:
ऐतिहासिक रूप से भारत के दक्षिणी और पश्चिमी राज्य (जैसे केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र) अमीर रहे हैं और वहां महिलाओं की शिक्षा और सेहत बेहतर है. इस वजह से इन राज्यों ने ‘रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी’ (2.1 बच्चे प्रति महिला) का लक्ष्य बहुत पहले हासिल कर लिया है.
दूसरी तरफ़, उत्तर और पूर्वी भारत (बिहार, यूपी) के ग़रीब राज्य इस मामले में दशकों पीछे हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश में अभी भी जन्म दर ऊंची है. नतीजा यह है कि भारत के हर तीन में से एक बच्चा (14 साल से कम) इन्हीं दो राज्यों में रहता है. बिहार में बच्चों की आबादी 2036 तक कम नहीं होगी, जबकि दक्षिण में यह घटनी शुरू हो गई है.
2. भारत के भीतर एक ‘जनरेशन गैप’:
दक्षिण भारत तेज़ी से बूढ़ा हो रहा है, जबकि उत्तर भारत अभी भी जवान है.
आंकड़ों के मुताबिक, 2030 के मध्य तक तमिलनाडु भारत का सबसे ‘बुज़ुर्ग’ राज्य बन जाएगा.
एक दिलचस्प तथ्य यह है कि 40 साल की उम्र में, एक औसत तमिल पुरुष एक औसत बिहारी पुरुष से 12 साल बड़ा होगा.
केरल में 60 साल से ऊपर के बुज़ुर्गों का अनुपात बिहार या यूपी के मुक़ाबले दोगुना है. इसका मतलब है कि दक्षिण भारत को भविष्य में ‘पेंशन’ और ‘केयर इकोनॉमी’ पर ज़्यादा खर्च करना होगा, क्योंकि वहां काम करने वाले हाथ कम हो रहे हैं.
3. पलायन की हक़ीक़त:
आम धारणा के विपरीत, एक राज्य से दूसरे राज्य में होने वाला पलायन बहुत ज़्यादा नहीं है. ज़्यादातर लोग अपने ही ज़िले या राज्य के भीतर ही पलायन करते हैं. जो लोग पलायन करते भी हैं, उनमें महिलाओं की संख्या ज़्यादा है जो शादी की वजह से जगह बदलती हैं. इसलिए, अमीर राज्यों में बाहर से आने वाले मज़दूरों की संख्या इतनी नहीं है कि वह वहां की गिरती आबादी को बैलेंस कर सके.
संघीय ढांचे पर असर:
यह जनसांख्यिकीय असंतुलन दो बड़े राजनीतिक विवादों को जन्म दे रहा है:
पैसों का बंटवारा: दक्षिणी राज्यों का कहना है कि 15वें वित्त आयोग का फॉर्मूला उन्हें सज़ा दे रहा है. उन्होंने आबादी कंट्रोल की और विकास किया, लेकिन टैक्स का बंटवारा आबादी के आधार पर होने से उन्हें कम पैसा मिल रहा है और यूपी-बिहार को ज़्यादा.
संसदीय सीटें (परिसीमन): संविधान के मुताबिक, लोकसभा सीटों का बंटवारा आबादी के हिसाब से होना चाहिए. 2026 के बाद जब परिसीमन होगा, तो कम आबादी वाले दक्षिणी राज्यों की सीटें कम हो सकती हैं और उत्तर भारत की सीटें बढ़ सकती हैं. दक्षिणी राज्य इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे राष्ट्रीय राजनीति में उनकी आवाज़ कमज़ोर हो जाएगी.
लेखिका का मानना है कि भारत इस ‘डेमोग्राफिक डिलेमा’ (जनसांख्यिकीय दुविधा) को कैसे सुलझाता है, इसी पर देश के लोकतंत्र का भविष्य टिका होगा.
भारत की पहली जीन-एडिटेड भेड़ ‘तरमीम’ एक साल की हुई, अपनी बहनों के मुकाबले बेहतर ग्रोथ
भारत की पहली ‘जीन-एडिटेड’ (जीन संपादित) भेड़ हाल ही में एक साल की हो गई है और उसे विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि वह बिल्कुल स्वस्थ है.
“बीबीसी” में गीता पांडेय की रिपोर्ट के मुताबिक, इस भेड़ का जन्म पिछले साल 16 दिसंबर को कश्मीर में हुआ था. इसका नाम ‘तरमीम’ रखा गया है, जो एक अरबी शब्द है और जिसका मतलब होता है ‘संशोधन’ या ‘एडिटिंग’. तरमीम को श्रीनगर की ‘शेर-ए-कश्मीर एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी’ में एक प्राइवेट बाड़े में उसकी जुड़वा बहन के साथ रखा गया है. खास बात यह है कि उसकी जुड़वा बहन जीन-एडिटेड नहीं है.
यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने इसे बनाने के लिए क्रिस्पर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया. यह एक बायोलॉजिकल सिस्टम है जो डीएनए को बदलने में मदद करता है. आसान भाषा में कहें तो यह वैज्ञानिकों को एक कैंची की तरह काम करने की इजाजत देता है, जिससे जीन के उन हिस्सों को काट दिया जाता है जो कमज़ोरी या बीमारी का कारण बनते हैं.
रिसर्चर डॉ. सुहैल मागरे ने बताया, “हमने गर्भवती भेड़ों से भ्रूण निकाले और एक खास जीन - जिसे मायोस्टैटिन जीन कहा जाता है - को एडिट किया. यह जीन मांसपेशियों की ग्रोथ को रोकता है.” इसके बाद भ्रूण को लैब में दो-तीन दिन रखने के बाद एक दूसरी मादा भेड़ के गर्भ में डाल दिया गया. 150 दिन बाद मेमनों का जन्म हुआ. डॉ. मागरे ने कहा, “हमारा मकसद भेड़ में मांसपेशियों को बढ़ाना था और मायोस्टैटिन जीन को हटाकर हम इसमें कामयाब रहे.”
इस प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर प्रोफ़ेसर रियाज़ शाह ने तरमीम के एक साल का होने पर उसका हेल्थ अपडेट दिया. उन्होंने कहा, “वह अच्छी तरह बढ़ रही है. उसके शारीरिक मानक सामान्य हैं. तरमीम की मांसपेशियों में अपनी नॉन-एडिटेड जुड़वा बहन के मुकाबले लगभग 10% की बढ़ोतरी देखी गई है. उम्र के साथ इसके और बढ़ने की उम्मीद है.”
इस प्रोजेक्ट पर आठ सदस्यों की टीम ने सात साल तक मेहनत की. शुरुआत में कई असफलताएं मिलीं, लेकिन दिसंबर 2024 में बड़ी कामयाबी मिली. टीम ने 7 आईवीएफ प्रोसीजर किए, जिनसे 5 मेमने पैदा हुए, लेकिन जीन-एडिटिंग केवल एक (तरमीम) में सफल रही.
वैज्ञानिक इस सफलता से काफी उत्साहित हैं. यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर प्रोफ़ेसर नज़ीर अहमद गनई का कहना है कि कश्मीर में मटन की भारी मांग है (सालाना 60,000 टन), लेकिन उत्पादन आधा ही है. जीन-एडिटिंग से भेड़ का वजन 30% तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे कम जानवरों से ज्यादा मीट मिल सकेगा. हालांकि, इसके कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए अभी सरकार की मंज़ूरी की ज़रूरत होगी.
जीन-एडिटिंग और जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएमओ) जीवों में फर्क होता है. जीन-एडिटिंग में उसी जीव के मौजूद जीन में बदलाव किया जाता है, जबकि जीएमओ में बाहरी जीन डाला जाता है. अमेरिका और चीन जैसे देश इस तकनीक का इस्तेमाल खेती और जानवरों को बेहतर बनाने के लिए कर रहे हैं. भारत में भी कृषि मंत्रालय ने इस साल चावल की दो जीन-एडिटेड किस्मों को मंज़ूरी दी है.
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