13 जनवरी 2025 : असम राइफल्स कैम्प पर भीड़ का हमला, ट्रम्प की शरण में जकरबर्ग, नदी जोड़ने से उखड़ती बसावटें, बॉलीवुड पीछे छूटा क्षेत्रीय सिनेमा से, ढाका भारत से नाखुश, आईफ़ोन फैक्ट्रियों में चीनी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
13 जनवरी 2025 | आज की सुर्खियाँ
असम राइफल्स कैम्प पर भीड़ का हमला : मणिपुर के नागा-बहुल जिले के कासोम खुल्लेन ब्लॉक के ग्रामीणों ने असम राइफल्स की 40वीं बटालियन के अस्थायी कैंप पर हमला कर उसे ध्वस्त कर दिया. यह घटना 11 जनवरी को हुई, जिसके बाद असम राइफल्स ने कैंप को खाली कर दिया. ग्रामीणों ने कैंप पर धावा बोलते हुए उसे तोड़ दिया, हालांकि इस घटना के पीछे के कारणों का खुलासा अभी नहीं हुआ है. इस क्षेत्र में हालिया हिंसा और तनावपूर्ण स्थिति के चलते सुरक्षा बलों की तैनाती और उनके कैंप अक्सर विवादों में रहे हैं. मणिपुर में जातीय और सांप्रदायिक तनाव के बीच ऐसी घटनाएं कानून व्यवस्था की चुनौती को और जटिल बना रही हैं. प्रशासन ने फिलहाल स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं. मणिपुर में हाल के महीनों में लगातार हिंसा और तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है. इस घटना ने सुरक्षा बलों और स्थानीय निवासियों के बीच बढ़ते असंतोष को एक बार फिर उजागर किया है.
(असम राइफल्स के जवान पहरा देते हुए |साभार: पीटीआई)
खदान में अब भी फंसे 5 मजदूर :असम के दीमा हसाओ जिले के उमरंगसो में रविवार को भी बचाव अभियान जारी रहा, जहां कोयला खदान में फंसने के बाद कम से कम और पांच मजदूरों की मौत होने का संदेह है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि टास्क फोर्स नौसेना के गोताखोर फंसे हुए मजदूरों की तलाश जारी रखे हुए हैं. शनिवार को कोयला खदान से तीन मजदूरों के शव बरामद किए गए. इससे पहले एक और मजदूर का शव बरामद किया गया था. इन मजदूरों के शव की पहचान कर ली गई है.
ठग ने 7,640 करोड़ रुपये टैक्स चुकाने की पेशकश की : ठग सुकेश चंद्रशेखर ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर वित्त वर्ष 2024-2025 के लिए ₹22,410 करोड़ (लगभग 2.7 बिलियन डॉलर) की अपनी विदेशी आय घोषित करने की पेशकश की है. सुकेश ने कहा कि वह भारत में चल रही आयकर वसूली कार्यवाही और लंबित अपीलों का निपटारा करने को तैयार है और वह भारतीय टैक्स योजना के तहत इस आय पर ₹7,640 करोड़ कर चुकाना चाहता है. उसने यह भी कहा है कि उसकी संपत्ति ‘कानूनी रूप से अर्जित’ है और अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग कानूनों के अनुरूप है. सुकेश 200 करोड़ रुपये के धन शोधन मामले में मुख्य आरोपी हैं और वह तिहाड़ जेल में बंद है.
नागवार गुजरी सुब्रमण्यम की बात : श्रम नीति के क्षेत्र में काम करने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध संगठन दत्तोपंत ठेंगड़ी फाउंडेशन (डीटीएफ) ने लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के अध्यक्ष एस सुब्रह्मण्यन की 90 घंटे के कार्य सप्ताह की वकालत की निंदा की है. डीटीएफ ने एक विज्ञप्ति में कहा है कि काम के घंटे बढ़ाकर 90 घंटे प्रति सप्ताह करने का विचार श्रमिकों के कल्याण और कार्य-जीवन संतुलन के बारे में गंभीर चिंताएँ पैदा करता है. डीटीएफ ने यह भी कहा कि श्रम का शोषण करने वाले प्रस्ताव मानव पूंजी को कमजोर करते हैं और निष्पक्ष श्रम प्रथाओं के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं.
सीरिया पर चर्चा: पश्चिमी, अरब अधिकारी जुटे: सऊदी अरब की राजधानी रियाद में पश्चिमी देशों और मध्य पूर्व के शीर्ष राजनयिक और विदेश मंत्री सीरिया के भविष्य पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए हैं. यह बैठक पिछले महीने राष्ट्रपति बशर अल-असद के सत्ता से हटाए जाने के बाद पहली क्षेत्रीय वार्ता है. सीरिया के नए विदेश मंत्री असद हसन अल-शैबानी, जो बार-बार दशकों पुराने प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहे हैं, शनिवार शाम को रियाद पहुंचे. इस सम्मेलन में सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन, इराक, जॉर्डन, लेबनान और तुर्किये के विदेश मंत्री शामिल हैं. साथ ही, अमेरिका के अंडर सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जॉन बास, जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बैरबॉक और ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड लैमी भी हिस्सा ले रहे हैं.
गाजा: 5 दिनों में इजरायल ने 70 बच्चों को मारा : गाजा के नागरिक रक्षा एजेंसी ने दावा किया है कि बीते पांच दिनों में इजरायल की कार्रवाई में कम से कम 70 फिलिस्तीनी बच्चों की मौत हुई है. उत्तर गाजा के जबालिया क्षेत्र में एक स्कूल पर इजरायली हमले में कम से कम आठ लोगों की जान गई, जिनमें कई बच्चे शामिल थे. यह स्कूल उन फिलिस्तीनियों के लिए शरण स्थल बना हुआ था, जिन्हें जबरन विस्थापित किया गया था. इजरायल ने कतर में संघर्षविराम और कैदियों की अदला-बदली के लिए वरिष्ठ वार्ताकारों को भेजा है. इनमें मोसाद और शिन बेट जैसी प्रमुख सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुख शामिल हैं. गाजा में बढ़ती हिंसा और मासूमों की मौत ने वैश्विक स्तर पर चिंता और आक्रोश को जन्म दिया है.
ट्रम्प की शपथ में जयशंकर जाएंगे : भारत सरकार की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर 20 जनवरी को अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे.
सैकिया बीसीसीआई के सचिव और भाटिया कोषाध्यक्ष : देवजीत सैकिया और प्रभतेज सिंह भाटिया को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का क्रमशः सचिव और कोषाध्यक्ष चुना गया है. रविवार (12 जनवरी) को बीसीसीआई की विशेष आम बैठक (एसजीएम) में 10 मिनट के भीतर दोनों का निर्विरोध चुनाव किया गया. असम के रहने वाले सैकिया बोर्ड के वर्तमान संयुक्त सचिव हैं और जय शाह के आईसीसी चेयरमैन बन जाने के बाद से सचिव का काम भी देख रहे थे. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बन जाने के बाद आशीष शेलार ने कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उनकी जगह चुने गए भाटिया छत्तीसगढ़ के हैं और उन्होंने एक सभासद के रूप में काम किया है.
ढाका ने भारतीय उच्चायुक्त को तलब किया : बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने रविवार 12 जनवरी को सीमा पर तनाव को लेकर भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को तलब किया. ढाका ने भारत पर आरोप लगाया है कि वह द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन कर भारत-बांग्लादेश सीमा पर पांच स्थानों पर बाड़ लगाने की कोशिश कर रहा है. इस कारण सीमा पर तनाव और अशांति पैदा हुई है’. हाल ही में सुनामगंज में बीएसएफ की ओर से एक बांग्लादेशी नागरिक की हत्या का जिक्र कर विदेश सचिव ने कहा कि बांग्लादेश सरकार हत्या की इन घटनाओं पर कड़ी नाराजगी जताती है और भारतीय अधिकारियों से कार्रवाई की मांग करती है.
विचार : संस्कृति के चार संकट
अपने लम्बे भाषण में मेहता संस्कृति की स्थापनाओं और विभाजन रेखाओं की तरफ हमारा ध्यान ले जाते हैं. संस्कृति पर एकाधिकार, पहचान के सवाल, संस्कृति की राजनीति, दक्षिणपंथियों का दबदबा, हीनभावना की अभिव्यक्तियां, राष्ट्रवाद के कारक, आधुनिकता के विखंडन, विखंडन के प्रबंधन, आचरण की अनुुपस्थिति के कारण ये संकट हमारी नागरिकता और लोकतंत्र पर किस तरह असर डाल रहा है, इसकी पड़ताल है. और सिर्फ राजनीति विज्ञान के अध्येताओं के लिए, हर उस व्यक्ति के लिए एक जरूरी बात है, जो भारत की राजनीति, समाज और नागरिकता की पेचीदगियों को लेकर निजी और साझा व्यग्रता को महसूस करते हैं.
प्रताप भानु मेहता ने 30 दिसंबर को संस्कृति के चार संकट पर भाषण दिया, जिसका सिरा उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की संस्कृति के चार अध्याय से निकाला था. उन्होंने दिनकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू के पत्राचार का हवाला दिया और नेहरू के मोहम्मद इकबाल के साथ पत्राचार का भी. मौका था पत्रकार - संपादक वेद प्रताप वैदिक की सालगिरह पर आयोजित समारोह का. मेहता ने कहा कि रामधारी सिंह दिनकर अपनी किताब ‘संस्कृति के चार अध्याय’ में भारत की सांस्कृतिक विरासत पर एक तरह का मनन करते हैं. उन्होंने इस विरासत को चार अलग-अलग संदर्भों में देखने की कोशिश की; हिंदुत्व के लिहाज़ से, हिंदुत्व के विरोध के लिहाज़ से, इस्लाम और भारतीय संस्कृति के रिश्ते के लिहाज़ से और फिर यूरोपीय और भारतीय संस्कृति के रिश्ते के लिहाज़ से. दिनकर की यह पुस्तक जब नए संस्करण में वापस प्रकाशित हुई तो उन्होंने इस पर भी विचार किया कि आधुनिकता के संदर्भ में भारत की सांस्कृतिक विरासत है के सामने क्या-क्या चुनौतियां प्रस्तुत होंगी और उन्होंने यह एक तरह से संदेश देने की कोशिश की थी कि इन चुनौतियों के संदर्भ में भारतीय संस्कृति को बड़ी सावधानीपूर्वक और कुशलतापूर्वक आधुनिकता की प्रक्रिया से गुजरना होगा.
मेहता ने अपने भाषण में भारत पर एकाधिकार और अनेकाधिकार की दलील देने वालों को भारत के लिए संकट बताया यह कहते हुए कि दोनों ही मर्म की तरफ ध्यान नहीं दे रहे होते हैं.
उनका पूरा भाषण ही उन बारीकियों के आस पास था, जिसके साथ नेहरू दुनिया, लोकतंत्र और प्रवृत्तियों को देख रहे थे. मेहता ने दिनकर की किताब पर जवाहरलाल नेहरू की भूमिका में दर्ज एक वाक्य से अपनी बात की शुरुआत की . वह वाक्य था, “भारत में बसने वाले बसने वाली कोई भी जाति यह दावा नहीं कर सकती कि भारत के समस्त मन और विचारों का एकाधिकार उसके पास है उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान रहा है और अगर हम इस बुनियादी सत्य को नहीं मानेंगे तो हम भारत को नहीं समझ पाएंगे.” मेहता ने अपनी बात की जमीन जमाने के लिए जो दूसरा वाक्य चुना वह नेहरू और मोहम्मद इक़बाल के बीच की ख़तोखिताबत से लिया गया था, जिसमें दोनों के बीच अहमदिया मसले और इस्लाम को लेकर बातचीत हो रही थी. नेहरू का यह वाक्य था, “ ऐसा क्यों है कि जब भी कल्चर के मसले सियासत में आते हैं, तो रिएक्शनरी (प्रतिक्रियावादी) उसकी अगुवाई करने लगते हैं.” मेहता ने कहा कि यह बड़ा गहन सवाल है और नेहरू का कोई भी लेखन देख लीजिए, एक तरह से उनको हमेशा यह भय लगा रखा था कि अगर संस्कृति या सांस्कृतिक विषयों को राजनीति में लाया जाएगा तो वह हमेशा प्रतिक्रियावादी रूप लेंगे और आज जो मैं थोड़ा सा चिंतन आपके सामने कुछ पेश करना चाहता हूं वह इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश है कि नेहरू ने ऐसा क्यों सोचा.. क्या यह गहन सत्य वे जानते थे कि संस्कृति का राजनीतिकरण, उसका मक़सद कुछ भी हो और वह कहीं से भी उत्पन्न हो) वह कहीं न कहीं प्रतिक्रियावादी रूप ले ही लेता है, रिएक्शनरी हो ही जाता है.
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नदी जोड़ने का सपना, दिल तोड़ने की हक़ीकत
देश का पहली नदी जोड़ो परियोजना मध्य प्रदेश के पन्ना से शुरू हो रही है, जिसका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 दिसंबर को शिलान्यास पत्थर रखा. पर पत्थर तो पन्ना और छतरपुर के वे लोग अपनी छाती पर रखने वाले हैं, जिनके गाँव डूब में आने वाले हैं, और जिनके पास विस्थापन के अलावा विकल्प नहीं. और उनके पुनर्वास और मुआवजे को लेकर भी समस्याएं हैं. विंध्य फर्स्ट की अंजलि द्विवेदी ने इस मामले मे पन्ना के जंगलों में जाकर वहाँ के रहने वाले आदिवासियों से बात की है..
ज़करबर्ग ने ट्रम्प से गुहार लगाई..बचाओ यूरोपीय जुर्मानों से
मेटा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क ज़करबर्ग ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका के आने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा अमेरिकी टेक कंपनियों पर अविश्वास नियमों के उल्लंघन और अन्य उल्लंघनों के लिए लगाए जा रहे जुर्माने को रोकने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए.
पॉडकास्ट 'जो रोगन एक्सपीरियंस' में ज़करबर्ग ने कहा, "मुझे लगता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए यह एक रणनीतिक लाभ है कि हमारे पास दुनिया की सबसे मजबूत कंपनियों में से कई हैं, और मुझे लगता है कि अमेरिकी रणनीति का हिस्सा होना चाहिए कि इसकी रक्षा की जाए." उन्होंने आगे कहा, "और यह उन चीजों में से एक है जिसके बारे में मैं राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ आशावादी हूं." ज़करबर्ग ने दावा किया कि ट्रम्प केवल अमेरिका को जीतते देखना चाहते हैं.
ज़करबर्ग ने शिकायत की कि यूरोपीय संघ ने यूरोप में काम कर रही अमेरिकी टेक कंपनियों को पिछले दो दशकों में कानूनी उल्लंघनों के लिए 30 अरब डॉलर से अधिक का जुर्माना भरने के लिए मजबूर किया है. पिछले नवंबर में, मेटा को विज्ञापन सेवा प्रदाताओं पर अनुचित व्यापारिक शर्तें लगाने के कारण यूरोपीय संघ के अविश्वास नियमों का उल्लंघन करने के लिए 797 मिलियन यूरो का जुर्माना लगाया गया था. ज़करबर्ग ने यूरोपीय आयोग द्वारा प्रतिस्पर्धा नियमों के आवेदन को अमेरिकी टेक कंपनियों पर "लगभग एक टैरिफ" बताया और कहा कि निवर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन स्थिति से निपटने में विफल रहा है.
ज़करबर्ग ने कहा कि "अगर कोई अन्य देश किसी ऐसे उद्योग के साथ गड़बड़ कर रहा था जिसकी हमें परवाह थी, तो अमेरिकी सरकार शायद उन पर दबाव डालने का कोई तरीका ढूंढ लेती, लेकिन मुझे लगता है कि यहां जो हुआ वह बिल्कुल विपरीत है." उन्होंने कहा, "अमेरिकी सरकार ने कंपनियों के खिलाफ एक तरह का हमला किया, जिससे यूरोपीय संघ को अन्य सभी स्थानों पर अमेरिकी कंपनियों पर मनमानी करने की छूट मिल गई."
रोगन के पॉडकास्ट पर ज़करबर्ग की उपस्थिति के कुछ ही दिनों बाद मेटा ने घोषणा की कि वह अपने तीसरे पक्ष के तथ्य-जांच कार्यक्रम को समाप्त कर देगा और एक तथाकथित सामुदायिक नोट्स मॉडल पर आगे बढ़ेगा. इस कदम को व्यापक रूप से ज़करबर्ग द्वारा आने वाले ट्रंप प्रशासन के साथ मेलजोल बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. इसके साथ ही, मेटा ने यह भी कहा कि वह अपने विविधता, इक्विटी और समावेशन (डीईआई) कार्यक्रमों को भी समाप्त कर देगा.
ईयू ने जकरबर्ग के दावों को झूठा बताया
दूसरी ओर, यूरोपीय संघ की शीर्ष तकनीकी अधिकारी हेना विर्कुनन ने ज़करबर्ग के इस दावे को गलत बताया कि यूरोपीय संघ सेंसरशिप को संस्थागत बना रहा है. उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि यह सच नहीं है. यूरोप में भाषण की स्वतंत्रता हमारे मौलिक मूल्यों में से एक है और इसका हमारे डिजिटल सेवा अधिनियम में भी सम्मान और सुरक्षा की जाती है." उन्होंने जोर देकर कहा कि ज़करबर्ग का यह कहना कि यूरोप में नवप्रवर्तन करना मुश्किल हो रहा है, "भ्रामक" है.
विर्कुनन ने कहा कि वे एलोन मस्क के एक्स प्लेटफॉर्म द्वारा यूरोपीय संघ के सोशल मीडिया नियमों का उल्लंघन करने के मामले में चल रही जांच का दायरा बढ़ाने पर भी विचार करेंगी. उन्होंने मस्क द्वारा आगामी चुनाव में धुर-दक्षिणपंथी पार्टी 'अल्टरनेटिव फॉर ड्यूशलैंड' (एएफडी) के लिए जर्मनों से वोट करने के बार-बार आग्रह करने पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ के पास भाषण की स्वतंत्रता है लेकिन मस्क को एक्स पर अपनी राय व्यक्त करते समय डिजिटल सेवा अधिनियम का पालन करना होगा.
यह टकराव ज़करबर्ग के उस कदम के बाद आया है, जहां उन्होंने आने वाले राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रति सद्भावना दिखाने के लिए अपने फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम और डीईआई प्रोग्राम को बंद कर दिया है. यूरोपीय संघ के अधिकारी इसे अमेरिकी टेक कंपनियों द्वारा ट्रम्प प्रशासन के साथ पक्षपात करने का प्रयास मान रहे हैं.
यह स्पष्ट है कि यूरोपीय संघ और अमेरिकी टेक कंपनियों के बीच तनाव बढ़ रहा है. यह देखना बाकी है कि क्या आने वाले ट्रंप प्रशासन की तरफ से हस्तक्षेप होता है और इसका क्या परिणाम होता है.
वैश्विक संवाद के अपहरण में इलोन मस्क का हाथ
पीटर पोमेरांटसेव ने 'द गार्डियन' में लिखा है कि नीति पर सार्वजनिक बहस कैसे हो, जब X के मालिक और अन्य लोग, जिनका एकमात्र उद्देश्य खुद को फायदा पहुंचाना है, बढ़ती ध्रुवीकरणकारी प्रभाव डाल रहे हैं? हमारे समाज में एक-दूसरे से कैसे बातचीत करनी चाहिए, बहस करनी चाहिए, और फैसले लेने चाहिए? नेता किसी एक मुद्दे पर ध्यान क्यों केंद्रित करते हैं और कार्रवाई करते हैं, जबकि दूसरे को अनदेखा कर देते हैं? प्राचीन एथेंस में, अगोरा (सभा स्थल) हुआ करता था, जहां नागरिक मुद्दों पर बहस करते और निर्णय लेते थे. 20वीं सदी की शुरुआत में, जॉन रीथ ने बीबीसी की परिकल्पना की, ताकि यह एक ऐसा स्थान बने जहां राष्ट्र लोकतंत्र, तर्क और बहस जैसे मूल्यों को साझा कर सके.
अब, हमारे पास इलोन मस्क हैं – दक्षिण अफ्रीकी-कनाडाई-अमेरिकी अरबपति, जो हमारे राजनीतिक मंच को एक वीडियो गेम की तरह मानते हैं, जिसे वह ट्रम्प के फ्लोरिडा क्लब में बैठकर खेल सकते हैं. पिछले हफ्ते उन्होंने अपनी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर विवादास्पद बयान दिए. पहले, उन्होंने 'सेफगार्डिंग मिनिस्टर' जेस फिलिप्स को "बलात्कार नरसंहार का समर्थक" कहा और प्रधानमंत्री कीर स्टारमर पर "ब्रिटेन के बलात्कार में मिलीभगत" का आरोप लगाया. ये अपमानजनक टिप्पणियां 211 मिलियन फॉलोअर्स तक पहुंचीं और सरकार की नीतियों पर प्रभाव डाला. इसके बाद सरकार ने ग्रूमिंग गैंग्स पर राष्ट्रीय जांच की मांग कर दी, जबकि इससे पहले लंबे समय तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया. यह एलन मस्क का पहला हस्तक्षेप नहीं है. पिछले साल इंग्लैंड में नस्लीय दंगों के दौरान उन्होंने सवाल उठाया कि स्टारमर सभी जातियों की सुरक्षा क्यों नहीं कर रहे. उनकी सोशल मीडिया साइट ने गलत जानकारी और दक्षिणपंथी प्रचार को बढ़ावा दिया. प्रश्न यह है कि क्या हमारा आधुनिक अगोरा (जनता का मंच) अब लोकतंत्र के लिए काम करता है?
डिजिटल युग और सार्वजनिक संवाद
जर्मन दार्शनिक जुर्गन हैबरमास ने 18वीं सदी के ब्रिटेन को आधुनिक सार्वजनिक संवाद का जन्मस्थान माना, लेकिन यह संवाद कभी भी पूरी तरह लोकतांत्रिक नहीं था. इंटरनेट के शुरुआती दिनों में, यह लगा कि हर कोई अपने विचार सीधे व्यक्त कर सकता है. लेकिन सोशल मीडिया ने इसे बदल दिया. अब, एल्गोरिद्म यह तय करता है कि आप क्या देखेंगे और क्यों. एलन मस्क और मार्क जुकरबर्ग जैसे अरबपति इन एल्गोरिद्म का उपयोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए करते हैं. मस्क, जो स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं बन सकते, सोशल मीडिया पर अपना "डिजिटल साम्राज्य" बनाते दिखते हैं. सोशल मीडिया कंपनियों को यह बताना चाहिए कि वे कैसे काम करती हैं. हमें जानने का अधिकार है कि हमारा डेटा कैसे इस्तेमाल हो रहा है और क्या कोई विचार दबाया जा रहा है. यूरोपीय संघ ने इस दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन अमेरिका अभी पीछे है.
ऐसे ऑनलाइन मंच बनाए जाएं जो नफरत और झूठ को बढ़ावा देने के बजाय रचनात्मक संवाद को प्रोत्साहित करें. सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित प्लेटफार्म या मुनाफा कमाने वाले सोशल मीडिया पर टैक्स लगाकर नागरिक मंच विकसित किए जा सकते हैं. उन्होंने पत्रकारिता को लेकर भी लिखा कि इस दौर में केवल तथ्य देने तक सीमित नहीं रहना चाहिए. इसे उन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, जो लोगों को गलत सूचना और साजिशों की ओर खींचते हैं. मीडिया को समुदाय की समस्याओं का समाधान और लोगों को जोड़ने का माध्यम बनना होगा.
भारत की आईफ़ोन फैक्ट्रियों में चीनी कर्मियों का भेजना बंद
ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन ने भारत में अपनी एपल आईफ़ोन फैक्ट्रियों में चीनी कर्मचारियों के नए रोटेशन को रोक दिया है और इसके बजाय ताइवानी श्रमिकों को भेज रही है. इसके साथ ही, चीन में विशेष विनिर्माण उपकरणों की खेप को भी रोक दिया गया है, जिससे भारत में अगली पीढ़ी के आईफ़ोन के उत्पादन में बाधा आ सकती है.
सूत्रों के अनुसार, फॉक्सकॉन ने यह निर्णय भारत में एपल के उत्पादन को चीन से दूर करने की कोशिश के तहत लिया है. दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु और कर्नाटक में स्थित फॉक्सकॉन की फैक्ट्रियां इस समय आईफ़ोन का उत्पादन कर रही हैं. कुछ सूत्रों ने बताया कि चीन सरकार ने श्रमिकों की तैनाती और उपकरणों के निर्यात पर रोक लगाने का आदेश दिया है. एक सूत्र ने कहा, "वर्तमान में, उपकरणों और जनशक्ति को भारत जाने की अनुमति नहीं है. और भारत के पास उपकरणों का उत्पादन करने की तकनीक नहीं है."
हालांकि, फॉक्सकॉन ने संभावित प्रभाव को कम करने के लिए चीनी कर्मचारियों के स्थान पर ताइवानी कर्मचारियों को भेजना शुरू कर दिया है, जिनकी यात्रा पर कोई असर नहीं पड़ा है. इसके साथ ही, चीन में अपने कारखानों में अर्ध-तैयार आईफ़ोन उत्पादों का उत्पादन भी बढ़ा दिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में अंतिम असेंबली से पर्याप्त स्मार्टफोन का उत्पादन हो सके. यह घटनाक्रम एपल के लिए एक झटका है, जो चीन से उत्पादन को दूर करने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, भारत में उत्पादन अभी भी चीनी श्रमिकों और चीन से विशेष मशीनरी पर निर्भर करता है. विश्लेषकों का मानना है कि चीन सरकार इस कदम के माध्यम से भारत की मैन्युफैक्चरिंग में बढ़ती ताकत को रोकने की कोशिश कर रही है.
चलते-चलते : क्षेत्रीय सिनेमा ने पीछे छोड़ा बॉलीवुड को..
ग्रोथ और दर्शकों के लिहाज से 2024 में क्षेत्रीय सिनेमा ने बॉलीवुड और हॉलीवुड की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है. वहीं, हिंदी सिनेमा के लिए बीता साल चुनौतीपूर्ण रहा. वर्ष 2023 में हिंदी फिल्मों ने 5 हजार 380 करोड़ रूपए का कलेक्शन किया था, जो 2024 में 13% घटकर 4 हजार 679 करोड़ रूपए पर आ गया. ओरमैक्स मीडिया बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सिनेमा के लिए कुल बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 11 हजार 833 करोड़ रूपए रहा, जो 2023 में हासिल किए गए रिकॉर्ड 12 हजार करोड़ रूपए से 3% की गिरावट को दर्शाता है. हिंदू बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदी फिल्मों ने 2024 में कुल बॉक्स ऑफिस का केवल 40% योगदान दिया, जबकि वर्ष 2023 में यह आंकड़ा 44% था.
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