30/03/2025 : ब्रांड योगी के 8 सवाल | 16 नक्सली मारे गये | जलती नकदी को लेकर सुलगते सवाल | सुनीता विलियम्स कौन से बेटी तक | प्लेसमेंट में आईआईटी ढीला | बाबा लोगों का यौन शोषण | बच्चे और बॉलीवुड
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
कॉमेडियन के खिलाफ तीन और एफआईआर दर्ज
“जियो और जीने दो” के सिद्धांत पर प्रज्ञा ठाकुर के सम्मान को अनुमति
बेटे की चाहत में मार डाली दो बेटियां
17 साल बाद, सीबीआई कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की पूर्व जज को किया बरी
पौड़ी के किसान ने उगा ली गुच्छी मशरूम, कीमत 30 से 40 हजार रुपये किलो
सुकमा मुठभेड़ में 16 नक्सली ढेर, भारी मात्रा में हथियार, विस्फोटक बरामद, दो जवान घायल
'सीजी खबर' की एक रिपोर्ट है कि सुकमा जिले के केरलापाल इलाके में चल रहे नक्सल विरोधी अभियान में अब तक 16 नक्सलियों के शव बरामद हुए हैं. यह अभियान 28 मार्च से जारी है, जब जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की संयुक्त टीम ने नक्सलवादियों की उपस्थिति की सूचना पर ऑपरेशन शुरू किया. 29 मार्च को सुबह 8 बजे से नक्सलवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ लगातार जारी है. सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ स्थल से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद किए हैं, जिनमें एके-47, एसएलआर, इंसास राइफल, पॉइंट 303 राइफल, रॉकेट लॉन्चर, बीजीएल लॉन्चर और विस्फोटक पदार्थ शामिल हैं. मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की पहचान की जा रही है, और सुरक्षा बलों ने इस ऑपरेशन में अभी और नक्सलियों के मारे जाने या घायल होने की संभावना जताई है. इस ऑपरेशन के दौरान, डीआरजी के दो जवान घायल हो गए हैं. हालांकि, घायल जवानों की स्थिति सामान्य बताई जा रही है और वे खतरे से बाहर हैं. मुठभेड़ स्थल के आस-पास के इलाके में फिलहाल गश्त और सर्चिंग अभियान जारी है. डीआरजी और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम ने 28 मार्च को नक्सलियों की उपस्थिति के बारे में जानकारी मिलने के बाद ऑपरेशन शुरू किया था.
कॉमेडियन के खिलाफ तीन और एफआईआर दर्ज
'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि कॉमेडियन कुणाल कामरा के खिलाफ महाराष्ट्र में डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में तीन और एफआईआर दर्ज की गई हैं. कामरा ने अपने एक शो में शिंदे को ‘गद्दार’ कहकर संबोधित किया था, जिससे विवाद खड़ा हो गया. नई एफआईआर महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में दर्ज की गईं और शुक्रवार को आगे की जांच के लिए इन्हें खार पुलिस स्टेशन को सौंप दिया गया. इससे पहले, खार पुलिस पहले ही कामरा के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कर चुकी है और उन्हें दो बार पूछताछ के लिए समन भेज चुकी है. गौरतलब है कि शुक्रवार को, मद्रास हाई कोर्ट ने कामरा को 7 अप्रैल तक अंतरिम अग्रिम जमानत दे दी थी. पहली एफआईआर शिवसेना विधायक मुरजी पटेल की शिकायत पर दर्ज की गई थी. वहीं, तीन नई एफआईआर शिवसेना के कार्यकर्ताओं—मयूर बोर्से (नासिक), संजय भुजबल (बुलढाणा) और सुनील जाधव (नंदगांव, नासिक) ने दर्ज करवाई हैं. शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि कामरा ने डिप्टी सीएम शिंदे की “नैतिक छवि को ठेस पहुंचाई” और उनके बयान “राजनीतिक दलों के बीच नफरत पैदा करने” वाले थे. नई एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353(1)(b), 353(2) (सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने वाले बयान) और 356(2) (मानहानि) के तहत दर्ज की गई हैं. इस बीच, कामरा ने सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया है कि वह अपने बयान के लिए माफी नहीं मांगेंगे और उन्होंने सरकार व मंत्रियों की आलोचना वाले नए वीडियो भी साझा किए हैं.
जज के जलते हुए घर के सच पर सुलगते सवाल
जस्टिस वर्मा के जले स्टोर रूम से कथित तौर पर मिले 15 करोड़ रुपये का राज जानने के लिए तीन जजों की बनी आंतरिक कमिटी के सामने कुछ सुलगते सवाल हैं और सच पर से पर्दा उठाने के लिए उन्हें इनके हल तलाशने होंगे.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है कि दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर 14 मार्च की देर रात आग लगने की सूचना पाकर जब पुलिस और दमकलकर्मी मौके पर पहुंचे तो वहां कार से कोई रहस्यमयी महिला भी पहुंची थी? उस महिला ने पुलिस वालों से मीठी-मीठी बातें कर स्टोर रूम तक जाने की अनुमति हासिल कर ली थी, जहां से कथित अधजले रुपये मिले थे. अगर ऐसा है तो वह वह महिला कौन है? और पुलिस वालों ने उसे स्टोर रूम तक जाने की अनुमति क्यों दी थी?
इस घटना की तमाम तरह की जानकारियां सामने आ चुकी हैं और वीडियो भी मौजूद है, मगर वह अधजले-अजले नोट कहां चले गए, यह भी अब तक रहस्य बना हुआ है? बताया जाता है कि मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों और फायर ब्रिगेड के कर्मियों को स्टोर रूम में नोटों की चार-पांच बोरियां दिखी थीं. उन्हें हटा दिया गया है, तो किसने हटाया?
कुछ पूरी तरह से बचे नोट भी थे, उन्हें आग लगने की घटना के अगले दिन यानी 14 मार्च की रात की अगलगी के अगले दिन 15 मार्च की सुबह किसी ने हटाया था. उसे किसने हटाया था. यह भी अब तक रहस्य बना हुआ है. वहां से अगले दिन, जब पुलिसकर्मी और दमकलकर्मी वापस चले तो क्या वहां नोटों के बचे और अधजले गट्ठर थे. अगर थे तो नोटों की बोरियां या कुछ-कुछ जले नोटों के गट्ठर कहां गायब हो गए. उन्हें किसने हटाया. इस बीच पुलिसकर्मियों और दमकलकर्मियों की किसी से कोई बात हुई. किसके मोबाइल से वीडियो रिकॉर्ड किया गया? पुलिसकर्मी या दमकलकर्मी ने अपने मोबाइल से वीडियो रिकॉर्ड किया तो वो किस मोबाइल से किया गया? क्या ये वीडियो वहां से किसी को भेजे भी गए? अगर भेजा गया तो किसको?
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर में यह भी है कि पूरे नोटों में से नोट का सिर्फ एक हिस्सा जला, पूरा कैश नहीं. पुलिस सर्किल में यह माना जा रहा है कि पहले पहुंचे पांच पुलिसकर्मियों के जब्त आठ फोनों से इसका सुराग मिल सकता है. इससे यह भी पता चल सकता है कि वीडियो फुटेज और मैसेजेस किसी को भेजे गए हैं या नहीं अथवा डिलीट या टेम्पर किया गया है या नहीं.
अग्निशमन विभाग की तरफ से तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक वहां पुलिस वाले और फायर सर्विस के कर्मचारी 2 घंटे तक रहे थे, जबकि आग मामूली थी. यह भी रहस्य है कि आग मामूली थी तो फिर वहां करीब 2 घंटे तक पुलिसकर्मी और दमकलकर्मी क्या कर रहे थे. पहले यह खबर भी आई थी कि 20-25 मिनट में ही ये लोग निकल गए थे.
यह भी अभी तक स्पष्ट नहीं है कि जो वीडियो बनाया गया था, वह किसने बनाया था. पुलिस, फायरकर्मी या किसी अन्य ने. क्या सिर्फ एक ने वीडियो बनाया था. बनाई गई वीडियो में यह भी दिख रहा है कि एक और मोबाइल से वीडियो बनाया जा रहा है, वह कहां है? इसके अलावा आजकल सबके पास मोबाइल होता है और जिज्ञासावश कई लोग वीडियो बना लेते हैं तो अगर वे वीडियो बने तो वह कहां है?
इस बीच हुआ यह कि 14 तारीख की रात को आग लगी थी 15 तारीख की सुबह सारा कुछ वहां से हटा दिया गया था. यह तो दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें भी लिखा है. यही जस्टिस वर्मा अपनी सफाई में कह रहे हैं कि हमारे घर का कोई आदमी वहां नहीं था. जब आग बुझाई जा रही थी, सुरक्षा के लिए उन्हें कह दिया गया- आप थोड़ी दूर हट जाइए, वो दूर थे. वहां नोट नहीं था. बाद में आग बुझने के बाद जब हमारे घर के लोग और स्टाफ ने जाकर देखा तो वहां कोई भी करेंसी जली, अधजली या बिना जली नहीं थी. इसलिए यह साजिश है. इस तरह की बहुत सारी बात जस्टिस वर्मा अपने बचाव में कह चुके हैं.
इसके अलावा 14 तारीख को आग लगी 12 दिन बाद कमरे को सील किया गया. तो सवाल यह भी उठता है कि सील करने में 12 दिन क्यों लगे. और 12 दिन बाद वहां क्या मिलेगा? वहां न मलबा है, न जले-अधजले या अजले नोट हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पांच बोरियां वीडियो में भी दिख रही है. कुछ नीचे नोट रखे हैं. बोरियां रैक पर हैं. अग्निशमन कर्मचारी जलते नोटों के बंडल को नीचे गिरा रहा है. तो नोट कितने थे इसकी ऑफिशियल रिपोर्ट या रसीद क्यों नहीं फाइल की गई? रसीद होनी चाहिए. उसका सीजर रिपोर्ट होना चाहिए. पंचनामा बनना चाहिए. यह सब क्यों नहीं हुआ.
यह भी कहा जा रहा है कि बाहर से नोटों की बोरी को लाकर डालना संभव नहीं है, क्योंकि बंगले की सुरक्षा सीआईएसएफ कर रही थी. वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता है. बिना अपॉइंटमेंट के बड़े से बड़ा आदमी भी कैंपस में दाखिल नहीं हो सकता तो बाहर से पांच बोरियां लाकर उनके कमरे में कोई रख दे यह संभव नहीं है.
आमतौर पर क्राइम सीन को तुरंत प्रोटेक्ट प्रिजर्व किया जाता है. सील किया जाता है, ताकि सबूत नष्ट ना हो. सबूत से छेड़छाड़ ना हो. पुलिस का सबसे पहला एक्शन यही होता है कि घटनास्थल को सील करो.
बताया जाता है कि दिल्ली पुलिस फायर सर्विस, दिल्ली फायर सर्विस, एनडीएमसी और सीपीडब्ल्यूडी से जुड़े 25 अधिकारियों कर्मचारियों की एक लिस्ट बनाई गई है, जिनसे कमेटी पूछताछ कर सकती है. उनसे यह भी पूछा जा सकता है कि जस्टिस वर्मा के यहां इतनी बड़ी मात्रा में कैश मिलने की खबर के बाद उन्होंने बड़े अधिकारियों को इसकी तुरंत जानकारी क्यों नहीं दी. दी तो कब दी.
यह भी रहस्य बना हुआ है कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने इतनी देर से दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को इसकी जानकारी क्यों दी. घटना के करीब 16 घंटे बाद 15 तारीख को शाम 4:50 बजे.
कुछ रहस्य तो तब खुलेंगे, जब चीफ जस्टिस दिल्ली हाईकोर्ट ने जो चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट को जो रिपोर्ट सौंपी है, जब उसके प्रकाशिति हिस्से में से काले किये गये तीन पैराग्राफ में क्या लिखा है, यह सार्वजनिक होगा. संभावना है कि उसमें कुछ अहम सुराग और नाम हो सकते हैं.
रिपोर्ट में दो बयान हिंदी में हैं. पहले बयान में कहा गया है कि कमरे में आग के काबू में आने के बाद चार अजली बोरियां मिली हैं, जिनके अंदर भारतीय मुद्रा भरे होने के अवशेष मिले हैं. दूसरे बयान में लिखा है कि घर के सुरक्षा गार्ड के अनुसार अगले दिन सुबह कमरे से मलबा और अन्य आंशिक रूप से जले हुए सामान को हटा दिया गया. सामान हटा दिया गया, जब पुलिस कमिश्नर को पता चला तो उन्होंने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया. एक अहम सवाल यह भी है.
विश्लेषण
आठ साल बाद बदल गया है योगी का ब्रांड
राजेश चतुर्वेदी
चार दिन पहले की बात है. क्या हिंदी और क्या ही अंग्रेजी, मीडिया में हर तरफ उत्तरप्रदेश की योगी सरकार के 8 वर्ष पूरे होने की खबरें छाई हुई थीं. यकीनन, क्षेत्रीय भाषाओं का मीडिया भी पीछे नहीं रहा होगा. कोई आश्चर्य नहीं, पड़ोसी नेपाल (जहां की सियासत में योगी एक किरदार बने हुए हैं) के अखबारों में भी योगी आदित्यनाथ और उनके नेतृत्व वाली यूपी सरकार की महिमा का बखान करने वाली खबरें रही हों. देश में तो उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से पश्चिम, 8 वर्षीय कार्यकाल पर योगी की प्रेस कॉन्फ्रेंस की ‘एकतरफा’ वाहवाही वाले समाचारों ने हर तरह के बंधन तोड़ दिए. कहीं कोई सवाल नहीं, सवालों की चर्चा भी नहीं. मसलन, “द हिंदू” में मयंक कुमार ने योगी आदित्यनाथ के हवाले से लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा और 25 करोड़ लोगों के सामूहिक प्रयासों से उत्तरप्रदेश 'श्रम शक्ति पुंज' से भारत के 'अर्थ शक्ति पुंज' में बदलने के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है. राज्य वही है, लेकिन पिछले आठ वर्षों में इसको लेकर “धारणा” पूरी तरह बदल गई है. आज पूरे देश ने राज्य की सुशासन, सुरक्षा, समृद्धि और सनातन संस्कृति के क्षेत्र में बदली हुई छवि को स्वीकार किया है.” अंग्रेजी के प्रतिष्ठित अखबार “द इंडियन एक्सप्रेस” में तो स्वयं योगी ने लिखा, “किन्तु, अपनी ध्येय यात्रा में हम कभी रुके नहीं, किसी चुनौती के सम्मुख, कभी झुके नहीं' — पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ये शब्द मेरी सरकार की पिछले आठ वर्षों की अडिग प्रतिबद्धता को पूरी तरह व्यक्त करते हैं. हमने 25 करोड़ नागरिकों की सुरक्षा, समृद्धि और उत्थान सुनिश्चित करने का मिशन अपनाया है.” “द इंडियन एक्सप्रेस” में ही मौलश्री सेठ की रिपोर्ट भी कहती है कि अपनी दूसरी पारी में ‘बुलडोज़र बाबा’ योगी आदित्यनाथ ‘विकास पुरुष’ बनने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने महाकुंभ की “सफलता” को राज्य की वित्तीय स्थिति के प्रोत्साहन से जोड़ते हुए एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित किया है. कुलमिलाकर, प्रधानमंत्री मोदी जिस “आलोचना को लोकतंत्र की आत्मा” बताते रहे हैं, उसको कहीं जगह मिली हो, दिखाई नहीं पड़ता. ऐसा लगता है कि “जतनपूर्वक” हर तरफ “गुडी-गुडी” तस्वीर ही रखी या रखवाई गई. अन्यथा, हजार-दो हजार महीने पुरानी बात नहीं है, जब हमने कोरोनाकाल में गंगा किनारे रेत में दफनाई गईं थोक लाशों की तस्वीरें देखी थीं. यूपी के उन्नाव, फतेहपुर, कानपुर आदि से भयावह दृश्य सामने आए थे. कहा गया था कि यह तो पुरानी परंपरा है- रेत में दफनाने और गंगा में बहाने की. लेकिन गंगा किनारे पैदा हुए पत्रकार दिलीप सिंह ने चार बरस पहले लिखा था, “मैं गंगा किनारे ही पैदा हुआ हूं. यहीं बड़ा हुआ हूं, लेकिन मैंने अपनी पूरी जिंदगी में आज तक ऐसा दर्दनाक नजारा पहले कभी नहीं देखा. मैं उत्तर प्रदेश के उन्नाव स्थित उस गंगा घाट के किनारे हूं, जहां एक साथ 500 से ज्यादा लाशें दफन हैं. ये लाशें हिंदुओं की हों या मुसलमानों की... कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हैं तो इंसानों की ही.” राज्य में हालात इतने भयानक थे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य में ऑक्सीजन की कमी से मौत के लिए ‘जेनोसाइड’ या ‘जनसंहार’ शब्द का इस्तेमाल किया था और इसे ‘आपराधिक कृत्य’ बताया था. “अगर आप मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अप्रैल के शुरुआती दिनों की ट्विटर टाइमलाइन देखें तो वो बंगाल और केरल में चुनावी भाषणों और यात्राओं की तस्वीरों से भरी हुई है. ये वो वक्त था, जब राज्य में कोरोना तेजी से लोगों की जान ले रहा था,” बकौल बीबीसी में विनीत खरे की रिपोर्ट. ताज्जुब इस बात का है कि कोविड-19 के दौरान राज्य के भयावह हालात योगी सरकार के 8 वर्षीय कालखंड का ही हिस्सा हैं, लेकिन उसकी जवाबदेही और जिम्मेदारी को लेकर न तो पहले कोई सवाल नज़र आए और न ही इस बार भी. कम से कम एक यह सवाल तो है ही कि क्या यूपी में गंगा किनारे थोक में शवों को दफनाने की परंपरा बंद हो गई या फिर मीडिया ने ही अदृश्य या गुप्त कारणों से “गंगा और उसके किनारों” पर ध्यान देना बंद कर दिया?
ज्ञात नहीं कि, चार दिन पूर्व योगी जब अपने आठ साल के कार्यकाल की उपलब्धियां गिना रहे थे, यूपी की पूरी आबादी (25 करोड़) को उपलब्धियों का श्रेय दे रहे थे और सनातन संस्कृति के क्षेत्र में बदली हुई छवि की बात कर रहे थे, तब उनसे “दोहरेपन” पर सवाल किया गया कि नहीं? दोहरापन यह कि “80-20” और “बंटेंगे तो कटेंगे” जैसे “आग्नेय” नारों के जनक तो वह खुद हैं, फिर उनके मुंह से 25 करोड़ (जिनमें मुसलमान भी हैं) की बात क्या सचमुच समावेशी नजरिए की द्योतक है या फिर किसी फ़ौरी जरूरत ने उन्हें ऐसा कहने के लिए विवश किया है? धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण का भाजपा का सियासी एजेंडा किसी से छिपा हुआ नहीं है. योगी ही थे, जिन्होंने यूपी के 2022 के विधानसभा चुनावों को “अस्सी-बीस” की लड़ाई बताकर साफ-साफ राज्य की धार्मिक संरचना की तरफ संकेत किया था, क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या करीब 20% है. लेकिन, इन दिनों वह एक और काम कर रहे हैं- उपर्युक्त अपने दोनों विवादास्पद नारों का मतलब समझाने का. यह मतलब कि अगले चुनाव (2027) में विपक्ष और भाजपा के बीच कोई मुकाबला नहीं होगा. 80 फीसदी सीटें बीजेपी गठबंधन की आएंगी और 20 फीसदी विपक्ष की. ऐसे ही “बंटेंगे तो कटेंगे” का आशय, एकता से ही देश अखंड रहेगा, सुरक्षित रहेगा. सनातन धर्म सुरक्षित रहेगा. हम सुरक्षित हैं तो हर जाति, मत, मजहब, सम्प्रदाय, पंथ सुरक्षित रहेगा. तो, ऐसा वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकार को ध्यान में रखकर किसी योजना के तहत स्वयं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को तुष्ट करने के लिए कर रहे हैं या फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इशारे पर अपनी “समावेशी छवि” गढ़ने की दिशा में भी उन्होंने निवेश शुरू किया है? असलियत जो भी हो, पर दोनों नारों पर उनके स्पष्टीकरण की विश्वसनीयता पर अतीत का उनका यह बयान, कि “वो एक मारेंगे तो हम सौ मारेंगे”, सवाल उठाता है. उनके प्रथम कार्यकाल में सीएए से संबंधित मामलों में 1000 नागरिकों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाया गया. जहां तक फ्री स्पीच का सवाल है तो राज्य में कई पत्रकारों पर आपराधिक मामले दर्ज किए गए और हमला हुआ. बीते आठ सालों में कितनी सरकारी भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लीक हुए? मनरेगा की कितनी मजदूरी बाकी है? भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था में योगी के ड्रीम प्रोजेक्ट इन्वेस्ट यूपी के सर्वेसर्वा अभिषेक प्रकाश ने कमीशनखोरी की हिम्मत कैसे कर ली? महिलाओं के साथ अपराधों में राज्य के आंकड़े क्या कह रहे हैं? प्रयागराज महाकुंभ भगदड़ में मारे गए श्रद्धालुओं के परिजनों को अब तक मृत्यु प्रमाण पत्र तक नहीं मिला है और उन्हें दो माह बाद भी 25 लाख के मुआवजे का इंतजार क्यों करना पड़ रहा है? कितनों के घर बुलडोज़र चला? कितनों को एनकाउंटर में मारा गया? बिना न्यायिक प्रक्रिया का सामना किए कितने गाड़ी पलटने से चले गए? इनमें कौन किस वर्ग का था? सुप्रीम कोर्ट अगले माह अप्रैल में पूजा स्थल अधिनियम, 1991 पर सुनवाई करने वाला है, फिर गड़े मुर्दे क्यों उखाड़े जा रहे हैं? खुदाई की बातें क्यों की जा रही हैं? लेकिन, ऐसे कई सवालों के बरक्स मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लगातार 8 वर्ष पूरे करने का रिकॉर्ड बना चुके योगी पर शायद, एक अलग “रंग” छाया है. वह राहुल गांधी को “नमूना” बता रहे हैं और एमके स्टालिन को ज्ञान बांट रहे हैं. अपने ताज़ा वीडियो ‘नया भारत’ में “छोटा फेंटा” का जिक्र करने वाले स्टैन्डअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के बहाने योगी ने एक तरह से सार्वजनिक चेतावनी जारी कर दी कि अभिव्यक्ति की आजादी को जन्म सिद्ध अधिकार नहीं समझना चाहिए. लोनी (गाजियाबाद) के भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर से बेहतर भला कौन समझ सकता है, जिन्हें योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ बोलने के लिए शोकाज़ नोटिस थमा दिया गया है. गुर्जर ने अपनी ही पार्टी की सरकार के बारे में कहा था, “उत्तरप्रदेश में अब तक की यह भ्रष्टतम सरकार है. अफसर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गुमराह कर जनता का पैसा लूट रहे हैं.”
“जियो और जीने दो” के सिद्धांत पर प्रज्ञा ठाकुर के सम्मान को अनुमति
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक हिंदू संगठन को विराट हिंदू संत सम्मेलन आयोजित करने की अनुमति दी है, जिसमें 2008 के मालेगांव बम विस्फोट की आरोपी और पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर को "हिंदू वीर पुरस्कार" से सम्मानित किया जाएगा.
शिक्षा पर भारत का खर्च भूटान और मालदीव से भी कम, आइआईटी में भी लुढ़के प्लेसमेंट
'द वायर' की रिपोर्ट है कि एक संसदीय स्थायी समिति ने यह नोट किया है कि आईआईटी में प्लेसमेंट में “असामान्य गिरावट” आई है. कई बी.टेक पाठ्यक्रमों में प्लेसमेंट 2023-24 में 2021-22 की तुलना में 10 प्रतिशत अंक से अधिक कम हो गए हैं. कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने शिक्षा पर भारत के खर्च की ओर भी ध्यान दिलवाया है, जो अन्य सार्क देशों मसलन भूटान और मालदीव से भी बेहद कम है. साथ ही समिति ने उन राज्यों को सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत धन जारी न करने को “अनुचित” करार दिया है, जिन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को स्वीकार नहीं किया, जिनमें केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि इन राज्यों को जारी न किए गए फंड की राशि काफी अधिक है. इसमें पश्चिम बंगाल का ₹1,000 करोड़, केरल का ₹859.63 करोड़ और तमिलनाडु का ₹2,152 करोड़ रुपये रोक दिया गया है, जिसका असर अंतत: लाखों छात्रों पर पड़ रहा है. समिति ने इस पर गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह निर्णय तर्कसंगत नहीं है. समिति ने 26 मार्च को संसद में स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग तथा उच्च शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय की अनुदान मांगों पर 363वीं और 364वीं रिपोर्ट पेश की है.
आईआईटी प्लेसमेंट में गिरावट : समिति ने कहा कि आईआईएम को छोड़कर, आईआईटी और आईआईआईटी में 2021-22 और 2023-24 के बीच प्लेसमेंट में असामान्य गिरावट देखी गई है. रिपोर्ट में 23 आईआईटी के आंकड़े दिए गए हैं, जिनके अनुसार बी.टेक पाठ्यक्रमों में प्लेसमेंट में 10 प्रतिशत अंक से अधिक की गिरावट दर्ज की गई. समिति ने यह भी कहा कि एनआईटी में भी प्लेसमेंट पैकेज की औसत राशि में गिरावट आई है. हालांकि, इस संबंध में सटीक आंकड़े नहीं दिए गए. समिति ने सुझाव दिया कि शिक्षण पद्धतियों में सुधार और उद्योग व शिक्षा के बीच की खाई को पाटने के लिए अनिवार्य शिक्षक विकास कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए.
शिक्षा पर भारत का कम खर्च : रिपोर्ट में कहा गया कि 2025-26 के बजट अनुमान (BE) में 2024-25 की तुलना में 6.9% और संशोधित अनुमान (RE) 2024-25 की तुलना में 16.28% की वृद्धि हुई है. समिति ने सिफारिश की कि सरकार को शिक्षा पर खर्च बढ़ाना चाहिए क्योंकि एनईपी 2020 ने भी जीडीपी के 6% तक सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की वकालत की थी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2014-15 से लेकर 2021-22 तक भारत का शिक्षा पर कुल खर्च जीडीपी के प्रतिशत के रूप में असंगत रहा है. इसके विपरीत, भूटान ने 2022 में अपनी GDP का 7.47% और मालदीव ने 4.67% शिक्षा पर खर्च किया, जबकि भारत ने केवल 4.12% खर्च किया. समिति ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि शिक्षा पर खर्च को बढ़ाकर इसे स्थिर बनाए और एनईपी 2020 के अनुसार 6% के लक्ष्य तक पहुंचाया जाए.
'कौन सुनीता?' से 'बेटी सुनीता' तक मोदी के यू-टर्न की कहानी और गुजरात के चुनाव
यह घटना 2007 की है. गुजरात मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स अपने गृह राज्य की यात्रा करना चाहती थीं. 'द वायर' के लिए दीपल त्रिवेदी की रिपोर्ट है कि वो अपने पिता के साथ निजी यात्रा पर गुजरात पहुंचीं, लेकिन तब विलियम्स को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से ठंडा रवैया मिला. जब उनसे सुनीता विलियम्स के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कथित रूप से कहा, "कौन सुनीता?" और उन्हें राज्य अतिथि का दर्जा नहीं दिया गया. यही उनकी आखिरी गुजरात यात्रा थी. हालांकि, दिल्ली में उन्हें गर्मजोशी से स्वागत मिला. सोनिया गांधी ने न केवल उनसे मुलाकात की, बल्कि उनके सम्मान में उचित आतिथ्य भी प्रदान किया.
हरेन पंड्या और सुनीता विलियम्स का संबंध : दिलचस्प बात यह है कि नरेंद्र मोदी सुनीता विलियम्स को पहले से जानते थे. उन्होंने उन्हें स्नेहपूर्वक "सुनी" कहकर पुकारा था. दरअसल, विलियम्स गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या की ममेरी बहन थीं. हरेन पंड्या की मां और सुनीता विलियम्स के पिता दीपक पंड्या सगे भाई-बहन थे. 2007 में हरेन पंड्या का नाम फिर चर्चा में आया. वह पहले नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाते थे, लेकिन बाद में उनके साथ मतभेद हो गए थे. साल 2003 में एक सुबह की सैर के दौरान उनकी हत्या कर दी गई थी. उनके पिता विट्ठलभाई पंड्या ने इसे राजनीतिक हत्या बताते हुए नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया था.
जब सुनीता विलियम्स 2007 में गुजरात आईं, तो वह अहमदाबाद के नेहरू नगर क्षेत्र में हरेन पंड्या की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने गईं. उस समय उनकी विधवा जागृति पंड्या और उनके समर्थकों ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था. हालांकि, 2016 में जागृति पंड्या ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) जॉइन कर ली और उसके बाद उन्होंने हरेन पंड्या की हत्या के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलना बंद कर दिया. गौरतलब है कि गोधरा कांड के बाद 2002 में हुए दंगों के दौरान हरेन पंड्या ने कथित रूप से नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उन्होंने 2002 की मई में एक गुप्त गवाही दी थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि 27 फरवरी, 2002 की रात को मोदी ने अपने निवास पर एक बैठक बुलाई थी, जिसमें पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया गया था कि वे हिंदुओं की "भावनाओं को प्रकट होने दें" और ज्यादा दखल न दें. हरेन पंड्या ने एक पत्रिका को बताया था कि यदि उनकी पहचान सार्वजनिक हुई, तो उनकी हत्या हो सकती है. 2003 में उनकी हत्या के बाद, यह आरोप और भी गंभीर हो गया.
अब सुनीता विलियम्स पर मोदी सरकार का बदलता रुख : 2007 में जिन्हें "कौन सुनीता?" कहकर खारिज कर दिया गया था, वही सुनिता विलियम्स अब भारत की "बेटी" घोषित की जा रही हैं. हाल ही में, नरेंद्र मोदी ने उनके लिए एक भावनात्मक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा - "आप हजारों मील दूर हैं, फिर भी हमारे दिलों के करीब हैं. भारत के लोग आपकी अच्छी सेहत और सफलता के लिए प्रार्थना कर रहे हैं. हम आपकी वापसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं और आपको भारत में सम्मानपूर्वक आमंत्रित करना हमारे लिए गर्व की बात होगी." अब कयास लगाए जा रहे हैं कि 2025 या 2026 में उन्हें गुजरात में भव्य स्वागत मिलेगा, क्योंकि 2027 में वहां विधानसभा चुनाव होने हैं.
पाठकों से अपील
गरीबों को निशाना बनाता था गुरुओं का गिरोह, धनवर्षा की लालच में यौन शोषण, बलि का खेल
मेरठ से स्वयंभू गुरु के अनुष्ठान्न के जो वीडियो आए हैं, वे भयानक हैं. एक स्वयंभू ‘गुरु’ या ‘कार्यकर्ता’, जिसे ‘मीडिया’ के रूप में जाना जाने वाले एक शक्तिशाली गिरोह ने चुना है- तांत्रिक अनुष्ठान ‘क्रिया’ करता था. इसका उद्देश्य ‘धन वर्षा’ था. हालांकि, इसकी आड़ में, युवतियों का खुलेआम शोषण किया जा रहा था. शुक्रवार को, सम्भल पुलिस ने ऐसे 14 लोगों को गिरफ्तार किया. सभी इस संगठित सिंडिकेट का हिस्सा थे. गिरोह में शामिल चार सदस्य तथाकथित ‘गुरु’ हैं. इनमें आगरा के यमुना ब्रिज रेलवे स्टेशन के रेलवे स्टेशन मास्टर रघुबीर सिंह (45), पप्पू लाल, राघवेंद्र दयाल (तीनों आगरा के) और फिरोजाबाद के सोनू सिंह शामिल हैं.
संभल की एसपी अनुकृति शर्मा ने कहा, “आरोपियों के मोबाइल फोन में पीड़ितों की सैकड़ों वीडियो और तस्वीरें थीं. 18 से 22 वर्ष की आयु के युवा पुरुषों और महिलाओं को उनके नाम, उम्र, ऊंचाई, वजन, शारीरिक माप और यहां तक कि महिलाओं के मामले में अंतिम मासिक धर्म की तारीख प्रदर्शित करने वाली तख्तियां पकड़े हुए वीडियोग्राफ किया गया था. उनके साथ उल्लू, कछुए और अन्य तस्करी किए गए वन्यजीवों की तस्वीरें थीं, जो जानवरों की बलि का संकेत देती हैं.” महिलाएं वाराणसी, एटा, मथुरा, फिरोजाबाद जैसे विभिन्न जिलों की थीं. जांच एजेंसियों के अनुसार, गिरोह सबसे गरीब लोगों को अपना शिकार बनाता था. कूट भाषा में, वे लड़कियों को ‘आर्टिकल’, ‘समान’ या ‘टमाटर’ कहते थे. किसी लड़की को चुने जाने के लिए, उसे एक विशिष्ट मानदंड पूरा करना होता था. उसे कुंवारी होना चाहिए, कम से कम 5 फीट 5 इंच लंबी होनी चाहिए, और उसके शरीर पर निशान, चोट या यहां तक कि टैटू भी नहीं होना चाहिए. उसका रोमांटिक या यौन संबंधों का कोई इतिहास नहीं होना चाहिए. उसका चेहरा जितना सुंदर होगा, उसका शरीर उतना ही परिपूर्ण होगा, धन की संभावना उतनी ही अधिक होगी. एक बार लड़की का चयन हो जाने के बाद, उसे यौन शोषण सहित अनुष्ठानों के अधीन किया जाता था. सिंडिकेट ने सीमित वित्तीय संसाधनों और शिक्षा वाले परिवारों को निशाना बनाया, क्योंकि वे आसान चारा होते हैं. गिरोह ने इन्हें फांसने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क किया. पीड़ितों को झूठे वादों के साथ लुभाया. एक वीडियो में कथित तौर पर एक नग्न महिला के बगल में जमीन पर अनुष्ठान सामग्री के साथ नोटों से भरे बक्से दिखाए गए हैं, जिसका चेहरा कपड़े से ढका हुआ है. लालच यह था कि अगर अनुष्ठान सफल हो जाएगा तो नोटों से भरे बक्से 'कहीं से भी प्रकट हो जाएंगे. पुलिस सूत्रों के अनुसार, ऐसे कई वीडियो हैं, जिनमें इन लड़कियों को "गुरु" द्वारा यौन शोषण करते देखा जा सकता है.
बेटे की चाहत में मार डाली दो बेटियां
राजस्थान के सीकर जिले के नीम का थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति पर अपनी पांच महीने की जुड़वां बेटियों की हत्या करने का आरोप लगा है. सीकर के अतिरिक्त एसपी रोशन मीणा ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया कि आरोपी अशोक यादव को उसी रात गिरफ्तार कर लिया गया था. पुलिस ने शनिवार को बताया कि आरोपी के बेटा पैदा करने की चाहत ने इस जघन्य अपराध को अंजाम देने का ख्याल पैदा किया. पुलिस के अनुसार आरोपी अपनी पत्नी अनीता को जुड़वां बेटियां होने पर ताने मारता था और उसके परिवार के अन्य लोग भी ऐसा ही करते थे. 27 मार्च को इसी बात को लेकर घर में एक और बहस हुई, जिसकी जानकारी अनीता ने स्थानीय मीडिया को दी. "उस दिन मैं अपनी बेटियों को दूध पिला रही थी, तभी मेरी सास ने फिर से ताने मारना शुरू कर दिया. मेरा पति कमरे में आया और मुझ पर चिल्लाने लगा. जब मैंने उससे पूछा कि मैं क्या करूं, तो उसने कहा कि वह इस समस्या को खत्म कर देगा. उसने एक बेटी को उठाया और उसका सिर ज़मीन पर पटक दिया. जब मैंने चीखना शुरू किया, तो उसने दूसरी बेटी के साथ भी वही किया. मैं मदद के लिए दौड़ी लेकिन बेहोश हो गई," अनीता ने बताया. इसके बाद ससुराल वालों ने अनीता की बहन को, जो उसी कॉलोनी में रहती थी, बुलाया और उससे घर पर रुकने के लिए कहा, जबकि वे बच्चों को अस्पताल ले जाने की बात कहकर निकल गए. उन्होंने दावा किया कि बच्चे "पिता की गोद से गिर गए थे", पुलिस ने बताया. शाम को जब अनीता को होश आया, तो उसे बताया गया कि उसके बच्चे बच नहीं सके और उन्हें पास के कब्रिस्तान में दफना दिया गया. इसके बाद अनीता और उसके परिवार ने पुलिस को सूचना दी.
17 साल बाद, सीबीआई कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की पूर्व जज को किया बरी
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को सेवानिवृत्त जज जस्टिस निर्मल यादव को 2008 के एक मामले में बरी कर दिया है, जिसमें उनके लिए कथित तौर पर भेजा गया 15 लाख रुपये नकद का एक पैकेट गलती से एक अन्य जज, जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर पहुंच गया था. उस समय, जस्टिस यादव (सेवानिवृत्त) पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की मौजूदा जज थीं. विशेष सीबीआई जज अल्का मलिक की अदालत ने शनिवार को अंतिम आदेश सुनाया. मामले में अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया गया. जस्टिस यादव (सेवानिवृत्त) ने अपने अंतिम बयान में कहा, "मैंने कोई अपराध नहीं किया और पूरे मुकदमे के दौरान मेरे खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया." मामला 13 अगस्त 2008 का है, जब जस्टिस कौर के आवास पर एक क्लर्क ने 15 लाख रुपये नकद वाला एक पैकेट प्राप्त किया. यह पैकेट कथित रूप से जस्टिस यादव के लिए था, लेकिन उनके और जस्टिस कौर के नामों की समानता के कारण गलती से उनके घर पहुंच गया. जस्टिस कौर ने तुरंत पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और चंडीगढ़ पुलिस को सूचित किया. इसके बाद, 16 अगस्त 2008 को एफआईआर दर्ज की गई. हालांकि, 10 दिन बाद, तत्कालीन यूटी प्रशासक, जनरल (सेवानिवृत्त) एस एफ रोड्रिग्स ने यह मामला सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया, जिसने 28 अगस्त 2008 को एक नई एफआईआर दर्ज की. जस्टिस यादव ने सीबीआई के इस कदम को चुनौती दी, लेकिन वे असफल रहीं. मार्च 2011 में भारत के राष्ट्रपति कार्यालय ने अभियोजन की अनुमति दी, जिसके बाद सीबीआई ने उसी महीने आरोपपत्र दाखिल किया. मुकदमे के दौरान, अभियोजन पक्ष ने 84 गवाहों को सूचीबद्ध किया, लेकिन केवल 69 गवाहों से पूछताछ की गई. इस साल फरवरी में, हाईकोर्ट ने सीबीआई को चार हफ्तों के भीतर 10 गवाहों से दोबारा पूछताछ करने की अनुमति दी और ट्रायल कोर्ट को अनावश्यक स्थगन से बचने के निर्देश दिए. अंततः, अदालत ने जस्टिस यादव सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया.
ह्यूस्टन विश्वविद्यालय ने हिंदू धर्म पाठ्यक्रम को लेकर गलत बयानी के दावों पर प्रतिक्रिया दी
ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी ने हिंदू धर्म पर अपने पाठ्यक्रम के बारे में कहा है कि यह पाठ्यक्रम धार्मिक अध्ययन के अकादमिक अनुशासन पर आधारित है. इसमें ‘कट्टरपंथ’ जैसी विशिष्ट शब्दावली का उपयोग किया जाता है. विश्वविद्यालय ने आगे कहा कि कट्टरपंथ का अध्ययन निर्णय या पूर्वाग्रह का कार्य नहीं है, बल्कि यह समझने का एक तरीका है कि धर्म कैसे विकसित होते हैं. यह बयान "लिव्ड हिंदू रिलीजन" नामक पाठ्यक्रम के बारे में एक छात्र की शिकायत के जवाब में आया. यूनिवर्सिटी ने एक बयान में कहा, “हम अकादमिक स्वतंत्रता को महत्व देते हैं. शिक्षण में जटिल और कभी-कभी चुनौतीपूर्ण विषयों का पता लगाने की अनुमति देना भी शामिल है. यूनिवर्सिटी आमतौर पर व्यक्तिगत व्याख्यानों की समीक्षा नहीं करता है, विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम की निगरानी करता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह स्थापित अकादमिक और शैक्षणिक मानकों को वह पूरा करे. यह पाठ्यक्रम धार्मिक अध्ययन के अकादमिक अनुशासन पर आधारित है. इसमें विशिष्ट शब्दावली - जैसे 'कट्टरपंथ' - का उपयोग विश्लेषणात्मक उपकरण के रूप में किया जाता है, ताकि ईसाई, इस्लाम, बौद्ध और हिंदू धर्म में निहित धार्मिक आंदोलनों सहित विभिन्न परंपराओं में धार्मिक आंदोलनों को समझा जा सके. इन अकादमिक शब्दों का अर्थ सार्वजनिक या राजनीतिक प्रवचन में उनके उपयोग से भिन्न हो सकता है, जिससे कभी-कभी गलतफहमी पैदा होती है.”
ह्यूस्टन विश्वविद्यालय के ऑनलाइन ‘लाइव्ड हिंदू धर्म पाठ्यक्रम’ ने विवाद को जन्म दिया था. विश्वविद्यालय ने अपने बयान में समझाया कि धार्मिक अध्ययनों में, कट्टरवाद एक ऐसे आंदोलन को संदर्भित करता है, जो धर्म के 'सच्चे' या मूल संस्करण को संरक्षित करने का दावा करता है, जो अक्सर आधुनिक परिवर्तनों की प्रतिक्रिया में शास्त्र, हठधर्मिता या विचारधाराओं की सख्त, अनैतिहासिक, शाब्दिक व्याख्या करता है. इसने यह भी कहा कि कट्टरवाद का अध्ययन निर्णय या पूर्वाग्रह का कार्य नहीं है, बल्कि यह समझने का एक तरीका है कि धर्म कैसे विकसित होते हैं और प्रवचन विश्लेषण के माध्यम से पहचान करते हैं. पाठ्यक्रम अकादमिक रूपरेखाओं को लागू करता है, ताकि विश्लेषण किया जा सके कि हिंदू धर्म, हिंदू देवताओं का सम्मान करने वालों का धर्म, अन्य विश्व धर्मों की तरह, ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों में कैसे विकसित हुआ है. प्रोफेसरों को पाठ्यक्रम की सामग्री को वर्तमान घटनाओं से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जब तक कि यह संतुलित तरीके से किया जाता है, जो पाठ्यक्रम की सामग्री की समझ में सुधार करता है. उदाहरण के लिए, भारत में हिंदू राष्ट्रवाद के राजनीतिक उदय पर चर्चा करना यह समझने का एक हिस्सा है कि आधुनिक दुनिया में धर्म और धार्मिक प्रवचन कैसे काम करते हैं, लेकिन यह समग्र रूप से हिंदू धर्म की आलोचना नहीं है.
एक्स पर एक प्रवासी हिंदुओं के एक समूह ने लिखा था, “ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर हिंदू पहचान को गलत बता रहे हैं, इसे राजनीति और धार्मिक चरमपंथ से जोड़ रहे हैं. 90% से अधिक मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समूह खुद को भारतीय होने पर गर्व महसूस करते हैं ओर हमारे विश्वविद्यालयों में क्या पढ़ाया जा रहा है?!”
सीबीआई ने अदालत को बताया आरजी कर घटना सामूहिक बलात्कार नहीं : सीबीआई ने शुक्रवार को कलकत्ता हाईकोर्ट को बताया कि उसने अपनी जांच और उपलब्ध विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह से निष्कर्ष निकाला है कि कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना सामूहिक बलात्कार का मामला नहीं था.
ये दलीलें पीड़िता के माता-पिता द्वारा मामले में आगे की जांच की मांग करने वाली याचिका में दी गईं. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता से अपनी शिकायतों के निवारण के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा.
पौड़ी के किसान ने उगा ली गुच्छी मशरूम, कीमत 30 से 40 हजार रुपये किलो
विश्व की सबसे महंगी मशरूम में से एक गुच्छी मशरूम को उगाने में भारत ने सफलता हासिल कर ली है. ‘ईटीवी भारत’ की एक रिपोर्ट है कि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोट ब्लॉक स्थित फल्दाकोट के नवीन पटवाल ने विश्व की सबसे महंगी मशरूम में से एक गुच्छी मशरूम को उत्तराखंड में उगाकर नया मुकाम हासिल किया है. नवीन पटवाल ने बताया कि, साल 2022 में उन्होंने गुच्छी मशरूम किस्म को उगाने का प्रयास किया. लेकिन कई बार असफल हुए. करीब 2 साल की मेहनत और स्टडी के बाद उन्होंने दिसंबर 2024 में फिर से इसकी शुरुआत की और करीब 3 महीने बाद ही इसमें परिणाम आने शुरू हो गए. उन्होंने बताया कि इस गुच्छी मशरूम को कम तापमान वाले स्थान पर उगाया जा सकता है. गुच्छी मशरूम की पूरी साइकल 90 दिन की होती है. उन्होंने अपने 100 स्क्वायर मीटर पॉलीहाउस में करीब 100 किलो मशरूम उगाया है. वह भविष्य में इसे बड़े स्तर पर करना चाहते हैं. नवीन पटवाल ने कहा कि, पौड़ी जिले में जिस तरह से पलायन हो रहा है, उसे रोकने के लिए उनकी एक शुरुआत है. गुच्छी मशरूम की कीमत भारत में 30 से 40 हजार रुपए प्रति किलोग्राम है. चीन और फ्रांस में गुच्छी मशरूम का उत्पादन सबसे ज्यादा स्तर पर होता है. नवीन पटनायक बीटेक की पढ़ाई करने के बाद साल 2007 से मशरूम के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. उनके उत्तराखंड के हरिद्वार और रुड़की में ऑयस्टर और बटन मशरूम समेत अलग-अलग किश्म के मशरूम के प्लांट हैं.
चलते-चलते :
बच्चों के दिमाग को दूषित कर रहा बॉलीवुड
(साल 2018 में आई फिल्म पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी की भूमिका में रणवीर सिंह. क्रेडिट: भंसाली प्रोडक्शंस/वायकॉम18 मोशन पिक्चर्स.)
‘स्क्रोल’ के लिए अनंत गुप्ता की रिपोर्ट है कि पिछले दो दशकों से अधिक समय तक एक स्कूल शिक्षिका ने देखा कि जैसे-जैसे उनके छात्रों की विज्ञान और प्रौद्योगिकी में रुचि बढ़ी, वैसे-वैसे उनका इतिहास में आकर्षण कम होता गया. अंततः, उन्होंने इस बात से समझौता कर लिया कि बच्चे उनके विषय को "नीरस" कहने लगे हैं. लेकिन जब 14 फरवरी को देशभर में थिएटरों में हिंदुत्व-प्रधान इतिहास को नाटकीय रूप से प्रस्तुत करने वाली बॉलीवुड फिल्म ‘छावा’ रिलीज़ हुई, तो उनकी छात्रों की उत्साही प्रतिक्रिया ने उन्हें चौंका दिया. हालांकि, यह रुचि इतिहास की विकृत प्रस्तुति के कारण उत्पन्न हुई थी. उन्होंने अपने छात्रों को कहते सुना, जब उन्होंने इसे कक्षा में चर्चा के दौरान उठाया- "पहली बार हमने औरंगज़ेब को जीवंत देखा. मैम, क्या मुगलों ने यही हमारे देश के साथ किया था?"
छावा फिल्म दूसरे मराठा राजा संभाजी और 17वीं शताब्दी के अंत में मुगल साम्राज्य के खिलाफ उनके युद्धों की कहानी बताती है. इसमें संभाजी के अत्याचार और क्रूरता से भरे वध को चित्रित किया गया है, जिससे नागपुर में घातक दंगे तक भड़क उठे. शिक्षिका ने महसूस किया कि उनके छात्र मुगल सम्राट औरंगज़ेब की कथित क्रूरता से प्रभावित हो गए हैं, इसलिए उन्होंने उन्हें एक संपूर्ण राजवंश के बारे में केवल एक फिल्म के आधार पर निष्कर्ष निकालने से सावधान किया.
"अकबर पहले मुगल शासक थे, जिन्होंने हिंदुओं के लिए तीर्थ कर माफ कर दिया था," उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि मुगल राजवंश का इतिहास बहुत विविध था. फिर भी, कुछ नौंवी कक्षा के छात्र, जो फिल्म से प्रभावित थे, अगले ही दिन स्कूल में "जय भवानी" और "जय श्री राम" के नारे लगने लगे. "यह देखकर मैं वाकई चौंक गई, इतनी कम उम्र में बच्चे इस तरह की फिल्मों से इतनी गहराई से प्रभावित हो रहे हैं."
फिल्मों का बच्चों के दिमाग पर प्रभाव
स्क्रोल ने मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और दिल्ली के आठ शिक्षकों से बात की कि कैसे ऐसी फिल्में उनके इतिहास पढ़ाने के तरीके को प्रभावित कर रही हैं. अधिकांश शिक्षकों ने स्वीकार किया कि वे ऐतिहासिक रूप से गलत फिल्मों के नकारात्मक प्रभाव के सामने खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं. कुछ शिक्षकों ने कहा कि वे इस प्रभाव का मुकाबला करने के लिए नए तरीकों को अपना रहे हैं, लेकिन भारतीय शिक्षा प्रणाली का पाठ्यक्रम उनके रास्ते में बाधा बनता है. अधिकांश भारतीय स्कूलों में, मध्यकालीन इतिहास को 10 से 14 वर्ष की उम्र के बीच पढ़ाया जाता है. यह वह समय है जब हिंदुत्व समर्थकों का ध्यान इस पर केंद्रित रहता है, क्योंकि इस दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर मुस्लिम शासकों का शासन था. हाल के वर्षों में, बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं ने इस कालखंड का चुनिंदा उपयोग किया है और इसे हिंदुत्व के अनुकूल बनाने की कोशिश की है. हालांकि, शिक्षकों का कहना है कि इस आयु वर्ग के बच्चे ऐतिहासिक घटनाओं को समझने के लिए आवश्यक आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित नहीं कर पाते. जब तक वे जटिल ऐतिहासिक घटनाओं में रुचि लेना शुरू करते हैं, तब तक उनका पाठ्यक्रम आधुनिक युग की ओर बढ़ जाता है, और शिक्षक उनके सवालों के जवाब देने के लिए समय नहीं निकाल पाते. नतीजतन, बच्चे ऐतिहासिक तथ्यों और हिंदुत्व-प्रधान फिल्मों के प्रभाव के बीच अंतर करने की क्षमता विकसित नहीं कर पाते.
ऑनलाइन माध्यमों का प्रभाव : बॉलीवुड फिल्मों के अलावा, सोशल मीडिया भी बच्चों के ऐतिहासिक दृष्टिकोण को विकृत करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है. एक शिक्षिका, जिन्होंने पिछले साल दक्षिण दिल्ली के एक स्कूल से सेवानिवृत्ति ली, ने कहा कि ऑनलाइन गलत जानकारी की बाढ़ से निपटना कठिन हो गया है. उन्होंने कहा - "अगर टिकटॉक और इंस्टाग्राम रील्स पर लगातार गलत कहानियां चल रही हैं, तो बच्चे उन्हें सच मानने लगेंगे, छात्रों में इतनी परिपक्वता नहीं होती कि वे समझ सकें कि यह सब गलत है." उन्होंने यह भी देखा कि हाल के वर्षों में छात्रों में ऐतिहासिक घटनाओं को काले और सफेद रंगों में देखने की प्रवृत्ति बढ़ गई है.साथ ही उन्होंने कहा - 'पहले के छात्र अधिक खुले दिमाग के होते थे, आज के छात्र मानते हैं कि अतीत में जो कुछ भी हुआ वह गलत था. वे मुझसे बहस करते हैं.'
शिक्षकों की कोशिशें और उनकी सीमाएं : बेंगलुरु के एक कैम्ब्रिज इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाने वाली भावना जैन अपने छात्रों को फिल्म देखने के बाद तार्किक विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करती हैं. "हम फिल्म में दिखाए गए तथ्यों, मिथकों और कल्पनाओं को तोड़कर देखते हैं," उन्होंने कहा. "तब छात्र इसे अधिक तार्किक रूप से समझ सकते हैं और इससे प्रभावित नहीं होते." दिल्ली की शिक्षिका संयुक्ता निनान ने महसूस किया कि 2016 की फिल्म मोहनजोदड़ो ने सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में गलत धारणाएं फैलाईं, इसलिए उन्होंने अपने छात्रों को हरियाणा में खुदाई स्थल पर ले जाना शुरू किया, ताकि वे वास्तविक प्रमाण देख सकें. हालांकि, अधिकांश भारतीय स्कूलों में शिक्षकों को यह स्वतंत्रता नहीं मिलती. 2023 में, एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम से विभाजन पर आधारित अध्याय हटा दिया. कोलकाता की एक शिक्षिका, सुकन्या मुखर्जी ने महसूस किया कि वह इस विषय की अनदेखी नहीं कर सकतीं, इसलिए उन्होंने अपने छात्रों को विभाजन पीड़ितों की वीडियो गवाही दिखाई. हालांकि, कुछ अभिभावकों को यह रास नहीं आया.
इतिहास की गिरती लोकप्रियता : विडंबना यह है कि राजनीति और सिनेमा में इतिहास चाहे जितना महत्वपूर्ण बन जाए, स्कूलों में यह एक अलोकप्रिय विषय बनता जा रहा है. "आज के तकनीकी युग में, माता-पिता अतीत को समझने का महत्व नहीं देखते," एक शिक्षिका ने कहा. भावना जैन ने कहा कि अब कक्षा में भी विषयों की "हीनता" की भावना देखी जा सकती है. "ह्यूमैनिटीज के छात्रों को नीचा दिखाया जाता है और मज़ाक उड़ाया जाता है. कक्षा में यह विभाजन साफ़ देखा जा सकता है."
बहरहाल इतिहास और वास्तविकता के बीच की खाई को पाटने के लिए शिक्षकों को नई रणनीतियां अपनाने की जरूरत है, लेकिन जब तक शिक्षा प्रणाली में सुधार नहीं किया जाता, तब तक बॉलीवुड की विकृत ऐतिहासिक फिल्मों का प्रभाव बच्चों के दिमाग को प्रभावित करता रहेगा.
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