30/04/2025 : चले थे शहीद की मां को डिपोर्ट करने | कनाडा ने ट्रम्प को हराया | पहलगाम के बाद 10 कार्रवाइयों का इंतजार | बांके बिहारी मंदिर ने फिर ठुकरा दी | पेगासस के निशाने पर सवाल
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
देश भर में कश्मीरी छात्रों से हिंसा के 17 मामले दर्ज
कांग्रेस ने पहलगाम पर संसद का विशेष सत्र की मांग की
जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया
10 कार्रवाइयां जो मोदी सरकार ने नहीं कीं
भारत के मानवाधिकार आयोग की रेटिंग घटाने की सिफारिश
दूरदर्शन के पत्रकार अशोक श्रीवास्तव पर तीन एफआईआर दर्ज
शरजील इमाम की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट, क्या एक ही भाषण पर कई राज्यों में मुकदमा चल सकता है?
बीजेपी नेता को न पहचानना डीएसपी को पड़ा भारी, मंगवाई गई माफी
मस्क के स्टारलिंक को अब स्पेस में चुनौती देगा अमेज़न

चले थे शौर्य चक्र विजेता की मां को पाकिस्तान डिपोर्ट भेजने, हल्ले के बाद रुकी कार्रवाई
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मंगलवार को 60 पाकिस्तानी नागरिकों के निर्वासन (डिपोर्ट) की प्रक्रिया शुरू की, जिनमें ज्यादातर पाक अधिकृत कश्मीर के मूल निवासी हैं. लेकिन, इनमें शौर्य चक्र विजेता पुलिसकर्मी मुदासिर अहमद शेख की मां शमीमा अख्तर भी शामिल हैं, जो 45 वर्षों से कश्मीर में रह रही थीं. मुदासिर अहमद मई 2022 में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. वह जम्मू-कश्मीर पुलिस की अंडरकवर टीम का हिस्सा थे और उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था. उनकी मां शमीमा ने अपने पति के साथ मई 2023 में दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से यह सम्मान प्राप्त किया था. मुदासिर के चाचा मोहम्मद यूनुस ने पत्रकारों से कहा, "मेरी भाभी पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से हैं, जो हमारा ही क्षेत्र है. केवल पाकिस्तानियों को डिपोर्ट किया जाना चाहिए.” मुदासिर की शहादत के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने परिवार से मुलाकात की थी, साथ ही लेफ्टिनेंट गवर्नर भी दो बार आए थे. यूनुस ने आगे कहा, "मेरी भाभी 20 साल की उम्र में यहां आई थीं और 45 साल से यहां रह रही हैं. मेरी प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से अपील है कि वे ऐसा न करें." हालांकि, देर रात बारामुला पुलिस ने इस खबर को असत्य और आधारहीन बताया. कहा कि मुदासिर की मां को डिपोर्ट नहीं किया जा रहा है.
देश भर में कश्मीरी छात्रों से हिंसा के 17 मामले दर्ज
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में कश्मीरियों के खिलाफ हिंसक घटनाएँ सामने आईं. मोहाली के रायत-बहरा विश्वविद्यालय के 20 वर्षीय छात्र सनन खुर्शीद जैसे कई कश्मीरी छात्रों को साम्प्रदायिक टिप्पणियों और हमलों का सामना करना पड़ा.
पंजाब के विभिन्न हिस्सों जैसे खरड़, डेरा बस्सी, होशियारपुर, चंडीगढ़ और जालंधर में कश्मीरी छात्रों पर हमले हुए. यूनिवर्सल ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस (लालरू, मोहाली) में गैर-पंजाबी छात्रों के एक समूह ने लोहे की रॉड और चाकू से लैस होकर कश्मीरी छात्रों पर हमला किया. एक कश्मीरी छात्रा के साथ बदसलूकी की गई और उसके बालों से खींचा गया. रायत-बहरा विश्वविद्यालय की नर्सिंग छात्रा उम्मत शबीर ने बताया कि पहलगाम हमले के बाद वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकली. विश्वविद्यालय अधिकारियों ने बढ़ते तनाव के बीच उनकी सुरक्षा की गारंटी देने से इनकार कर दिया.
पिछले छह दिनों में पूरे भारत में 17 मामले सामने आए हैं जहाँ कश्मीरी छात्रों पर हमले हुए. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों को देश के विभिन्न शहरों में रह रहे जम्मू-कश्मीर के निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भेजा. 45 कश्मीरी छात्र-छात्राएँ सोमवार (28 अप्रैल) को पंजाब से कश्मीर लौट आए. हालांकि वे अपने परिवारों के पास सुरक्षित पहुँच गए हैं, लेकिन उनके जल्द अपनी कक्षाओं में लौटने की उम्मीद कम है, जिससे उनका करियर अनिश्चित हो गया है.
कांग्रेस ने पहलगाम पर संसद का विशेष सत्र की मांग की : कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोमवार 28 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनजर सामूहिक संकल्प प्रदर्शित करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया है. विपक्ष के कई अन्य सांसदों ने भी ऐसी ही मांग की है. यह बात ऐसे समय में सामने आई है, जब भाजपा कांग्रेस के सोशल मीडिया अभियान से नाराज है. इसमें पहलगाम हमले पर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि उस समय वह बिहार में चुनाव प्रचार में व्यस्त थे. भाजपा की ओर से कहा गया है कि यह संकेत है कि कांग्रेस पाकिस्तान के साथ खड़ी है. प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में खड़गे ने कहा, “इस समय, जब एकता और एकजुटता आवश्यक है, विपक्ष का मानना है कि संसद के दोनों सदनों का विशेष सत्र जल्द से जल्द बुलाना महत्वपूर्ण है.”
जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया
जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने सोमवार को सर्वसम्मति से पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया और सभी से हिंसा, विभाजनकारी बयानबाजी को खारिज करने और शांति बनाए रखने का आह्वान किया. यह प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर विधानसभा के विशेष सत्र में तीन घंटे की चर्चा के बाद पारित किया गया. सदन ने दो मिनट का मौन भी रखा गया. मुख्यमंत्री ने घटना की निंदा करते हुए और पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाते हुए जो मार्मिक अभिव्यक्ति की, उसने उनके भाषण को न केवल उनके अब तक के सर्वश्रेष्ठ भाषणों में से एक बना दिया, बल्कि संभवतः विधानसभा के रिकॉर्ड में भी दर्ज करा दिया. प्रस्ताव में कहा गया है, “यह सदन पीड़ितों (प्रस्ताव में सभी पीड़ितों के नाम भी शामिल किये गए) और उनके परिवारों के साथ पूरी तरह से एकजुट है. हम उन लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं, जिन्हें अपूरणीय क्षति हुई है और हम उनके दुख को साझा करने और उनकी ज़रूरत की घड़ी में उनका साथ देने के अपने सामूहिक संकल्प की पुष्टि करते हैं.”
10 कार्रवाइयां जो मोदी सरकार ने नहीं कीं
‘द वायर’ ने अपने एक लेख में उन दस बातों को रेखांकित किया है जो पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद मोदी सरकार दरअसल कर सकती थी. सरकार की तरफ से बयान तो कई सारे आए, कुछ कूटनीतिक कार्रवाइयों की बात भी हुई, इंसाफ करने और सज़ा देने के दावे भी हुए, पर ये दस कार्रवाइयां अब भी देखी जानी बाकी है. जिनसे पता चलता कि सरकार इस मामले को लेकर कितनी गंभीर है.
पाकिस्तान की भूमिका का पारदर्शी, प्रमाण-आधारित स्पष्टीकरण : सरकार ने पाकिस्तान आधारित समूहों को हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन पाकिस्तान के राज्य तंत्र को सीधे जोड़ने वाले स्पष्ट सार्वजनिक प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए हैं.
खुफिया और सुरक्षा चूक का स्वतंत्र मूल्यांकन: यद्यपि सरकार ने "सुरक्षा चूक" को स्वीकार किया है, लेकिन इस बात की कोई स्वतंत्र या सार्वजनिक जांच नहीं हुई है कि कैसे एक अत्यधिक सुरक्षित, पर्यटक-बहुल क्षेत्र असुरक्षित छोड़ दिया गया.
केवल कश्मीर नहीं, कश्मीरियों पर भी ध्यान : सरकार का बयान बाहरी दुश्मनों और प्रतिशोध की आवश्यकता पर केंद्रित रहा है. वर्तमान कश्मीर नीति की सीमाओं का ईमानदार आंकलन अनुपस्थित है.
कश्मीरियों की सुरक्षा का आश्वासन : सरकार को स्पष्ट रूप से संवाद करना चाहिए कि भारत भर में रहने वाले और पढ़ने वाले कश्मीरी उंगली उठाने के लिए उचित लक्ष्य नहीं हैं.
राजनीतिक जवाबदेही : पहलगाम हत्याकांड मोदी और शाह से राजनीतिक जवाबदेही की मांग करता है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के बाद से, सभी सुरक्षा मामले उनके प्रत्यक्ष प्राधिकार के तहत केंद्रीकृत कर दिए गए हैं.
पाकिस्तान से निपटने के लिए स्पष्ट, रणनीतिक रोडमैप : भारत की तत्काल प्रतिक्रिया में सिंधु जल संधि को निलंबित करना, वीजा सेवाओं को बंद करना और "कठोरतम प्रतिक्रिया" का वादा शामिल है. फिर भी, दंडात्मक या प्रतीकात्मक उपायों से परे जाने वाली दीर्घकालिक, रणनीतिक नीति की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं है.
शीर्ष नेतृत्व से प्रत्यक्ष संवाद : मोदी और अमित शाह ने बयान दिए हैं और पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी है, लेकिन राष्ट्र के सवालों का संबोधन करने, सरकार के निष्कर्षों की रूपरेखा या जिम्मेदारी लेने के लिए कोई विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई है.
राष्ट्रीय एकता और जवाबदेही के लिए विशेष संसदीय सत्र : उच्च-स्तरीय बैठकें हुई हैं और विपक्षी दलों ने सरकारी कार्रवाइयों के लिए समर्थन व्यक्त किया है, लेकिन एक स्वतंत्र, सार्वजनिक मंच नहीं रहा है, जहां सरकार में राजनीतिक नेताओं को जवाबदेह ठहराया जा सके.
बड़े, कॉर्पोरेट-स्वामित्व वाले मीडिया में संयम और परिप्रेक्ष्य : भारत के कॉर्पोरेट-स्वामित्व वाले बड़े मीडिया का अधिकतर कवरेज तीक्ष्ण, ध्रुवीकृत और सनसनीखेज रहा है, जो सांप्रदायिक कथानकों को बढ़ावा देता है या दोष के खेल पर ध्यान केंद्रित करता है.
मुस्लिम-विरोधी नफरत का अस्वीकरण : आधिकारिक प्रवचन में इस बात की अपर्याप्त पहचान है कि भारत में मुस्लिम-विरोधी बयानबाजी और हिंसा आतंकवादियों के उद्देश्यों की पूर्ति करती है.
विश्लेषण
जिस बैसरन को सरकार ‘कश्मीर का मिनी स्विट्ज़रलैंड’ कहकर प्रचारित कर रही थी, वहां कोई सुरक्षा नहीं थी
'द वायर' में कश्मीर की वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन ने लिखा है कि एकमात्र रास्ता यह है कि भारत और पाकिस्तान दोनों एक कदम पीछे हटें और गैर-जिम्मेदार आरोप-प्रत्यारोप पर रोक लगाने के लिए एक समझौते पर सहमत हों. मेरी याददाश्त में जब से होश संभाला है, जम्मू-कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी में सैन्य उपस्थिति एक सामान्य दृश्य रही है. 1990 के बाद की उग्रवाद की शुरुआत के साथ यह उपस्थिति हर कोने में मजबूत होती गई. ऐसे में यह चौंकाने वाला है कि जिस पहलगाम के बैसरन इलाके को सरकार ‘कश्मीर का मिनी स्विट्ज़रलैंड’ कहकर प्रचारित कर रही थी, वहां कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी.
बैसरन में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय घोड़ा चालक की निर्मम हत्या के दिन न तो आसपास की पहाड़ियों पर सुरक्षा बल थे और न ही उस पगडंडी पर जो वहां तक जाती है. सुरक्षा बलों को घटनास्थल तक पहुंचने में एक घंटे से ज्यादा लग गया, जबकि उससे पहले स्थानीय लोगों ने ही घायलों को बचाया. रिपोर्टों के अनुसार, बैसरन के लिए नियुक्त की गई सीआरपीएफ की एक कंपनी को कुछ महीने पहले ही वहां से हटा लिया गया था.
यह सुरक्षा चूक न केवल गंभीर है, बल्कि यह सरकारी नीतियों की विफलता को उजागर करती है. क्या यह सरकार की अक्षमता का परिणाम है या फिर उस राजनीतिक नैरेटिव का प्रभाव, जिसमें दावा किया जा रहा है कि कश्मीर में अब सब कुछ सामान्य है?
प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह बार-बार कह चुके हैं कि कश्मीर से आतंकवाद खत्म हो चुका है, लेकिन सुरक्षा अधिकारियों के बयान कहीं ज्यादा सावधानीपूर्ण हैं. वे कहते हैं कि "स्थिति नियंत्रण में है." हालांकि, 2019 के बाद की स्थिति को देखें, तो ऐसा लगता है कि सुरक्षा बलों का प्राथमिक फोकस असली खतरों पर नहीं, बल्कि नागरिक निगरानी और नियंत्रण पर रहा है. इसका परिणाम यह हो सकता है कि रणनीतिक प्राथमिकताएं कमजोर पड़ गई हैं और स्थानीय जनता पर अनुचित दबाव बना है.
घटना के कुछ ही घंटों के भीतर, पाकिस्तान पर आरोप लगाए जाने लगे, जबकि न तो जांच पूरी हुई थी, न ही ठोस सबूत सामने आए थे. यह एक घबराहट भरी प्रतिक्रिया थी, जिसने पाकिस्तान को इसे फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन कहने का मौका दे दिया. हालांकि यह सही है कि पाकिस्तान और उसकी एजेंसियों की कश्मीर में लंबे समय से दखलंदाजी रही है, फिर भी बिना जांच के सीधे आरोप लगाना तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता. भारतीय मीडिया ने घटना के तुरंत बाद हमलावरों की तस्वीरें और नाम तक प्रसारित कर दिए, जबकि सुरक्षा बल घटनास्थल पर पहुंचे भी नहीं थे. इससे यह और कठिन हो गया कि सच और झूठ को अलग किया जा सके. भारत और पाकिस्तान के बीच वर्तमान तनातनी के माहौल में सिंधु जल संधि को निलंबित करने और शिमला समझौते को स्थगित करने जैसे कदमों की व्यावहारिकता पर भी सवाल उठते हैं. ये निर्णय सिर्फ प्रतीकात्मक प्रतीत होते हैं और दीर्घकालिक समाधान नहीं देते.
सबसे चिंता की बात यह है कि कश्मीर के भीतर की गई कार्रवाई सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी और आतंकवादियों के घरों को ध्वस्त करना, एक सामूहिक दंड की तरह लगती है. अगर हम मानते हैं कि हमलावर पाकिस्तान से आए थे, तो फिर इतने व्यापक स्तर पर स्थानीय लोगों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि कश्मीर में सक्रिय आतंकियों की संख्या दो अंकों में है और इनमें भी स्थानीय लोग बेहद कम हैं. ऐसे में सैकड़ों गिरफ्तारियां और सामूहिक दंड सरकार की नीति और उसकी सच्चाई पर सवाल खड़े करते हैं. इस तरह की कार्रवाई से कश्मीरी जनता का और अधिक विमुख होना तय है, जो पहले ही वर्षों से असुरक्षा और दमन झेल रही है. यदि पाकिस्तान या चीन ने इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश की, तो यह स्थिति भारत के लिए रणनीतिक रूप से बहुत घातक साबित हो सकती है.
अंततः, भारत और पाकिस्तान दोनों को चाहिए कि वे पीछे हटें, संवाद की पहल करें और कूटनीतिक रास्ते से समाधान की कोशिश करें. भारत को चाहिए कि वह पहले निष्पक्ष जांच करे और यदि पाकिस्तान की संलिप्तता पाई जाती है, तो सबूतों के साथ पाकिस्तान से जवाब मांगे.
‘कश्मीर को नेस्तनाबूद करो’ जैसी उग्र आवाजें सिर्फ विनाश की ओर ले जाएंगी. कश्मीर नीति में जमीनी यथार्थ और मानवीय संवेदनशीलता की जरूरत है, न कि घृणा और युद्धोन्माद की.
बांके बिहारी मंदिर ने फिर ठुकराई हिंदुत्ववादियों की मांग
वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर ने हाल ही में पहलगाम हमले के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के चलते मुस्लिम कामगारों का बहिष्कार करने की दक्षिणपंथी समूहों की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. मंदिर की प्रबंधन समिति के सदस्य और पुजारी ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने इन मांगों को अव्यावहारिक और स्थानीय परंपराओं के विपरीत बताया. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुस्लिम कारीगरों और बुनकरों का यहां गहरा योगदान रहा है. पिछले कई दशकों से वे बांके बिहारी के वस्त्र बुनने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं." गोस्वामी ने कहा कि नगर में हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की लंबी परंपरा रही है और मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाए गए मुकुट और चूड़ियां भगवान को अर्पित की जाती रही हैं. उन्होंने ज़ोर देकर कहा - "वृंदावन में हिंदू और मुस्लिम मिल-जुलकर शांति और सद्भाव से रहते हैं." उनकी इस भावना का समर्थन मंदिर के अन्य पुजारियों और अधिकतर स्थानीय निवासियों ने भी किया.
भारत के मानवाधिकार आयोग की रेटिंग घटाने की सिफारिश
'द वायर' की रिपोर्ट है कि जिनेवा स्थित और संयुक्त राष्ट्र (UN) से संबद्ध ग्लोबल एलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशन्स की सब-कमेटी ऑन एक्रेडिटेशन ने भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की रेटिंग को कैटेगरी 'A' से घटाकर 'B' करने की सिफारिश की है. यह ऐसा पहला मामला है जब भारत के मानवाधिकार आयोग को यह स्तर गंवाना पड़ सकता है. कैटेगरी 'B' रेटिंग का अर्थ है कि कोई संस्था संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1993 में अपनाए गए 'पेरिस सिद्धांतों' का केवल आंशिक रूप से पालन करती है. ये सिद्धांत मानवाधिकार संस्थाओं के लिए न्यूनतम मानकों को निर्धारित करते हैं. सब-कमेटी ने एनएचआरसी को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच में पुलिस अधिकारियों का इस्तेमाल, आयोग में सामान्य सचिव (सेक्रेटरी जनरल) के रूप में किसी नौकरशाह की नियुक्ति की सरकारी शक्ति, भारत में संकुचित होते नागरिक स्पेस पर आयोग की चुप्पी ऐसे मसले हैं, जिससे भारत की रेटिंग घटी है. इस सिफारिश का मतलब यह है कि एनएचआरसी अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कुछ अधिकारों से वंचित हो सकता है, और इसके विश्वसनीयता व स्वतंत्रता पर भी सवाल उठ सकते हैं.
कर्नाटक में मॉब लिंचिंग : मंगलुरु पुलिस ने रविवार को मंगलुरु ग्रामीण पुलिस सीमा के अंतर्गत कुडुपु में एक व्यक्ति पर हमला कर जान से मारने के आरोप में 19 लोगों के खिलाफ मॉब लिंचिंग कर हत्या करने का मामला दर्ज किया है, हालांकि पुलिस को संदेह है कि इसमें कम से कम 25 लोग शामिल थे. इन 19 में से 15 को गिरफ्तार कर लिया गया है. शहर के पुलिस आयुक्त अनुपम अग्रवाल ने बताया कि ऑटोरिक्शा चालक और कुडुपु निवासी 26 वर्षीय टी. सचिन ने हमला शुरू किया था. कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वरा को कोट कर पीटीआई ने लिखा है कि ऐसी खबरें हैं कि वह एक स्थानीय क्रिकेट मैच के दौरान 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगा रहा था, जिस कारण कुछ लोगों ने उसे पीटा. हालांकि पुलिस का कहना है कि मृतक की पहचान नहीं हो पाई है.
केरल में हेडगेवार के नाम पर बवाल : केरल के पलक्कड़ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक केबी हेडगेवार के नाम पर खासा बवाल हो गया. पलक्कड़ नगरपालिका, जो भाजपा शासित चंद स्थानीय निकायों में शामिल है, ने दिव्यांग बच्चों के लिए कौशल विकास केंद्र खोलने और इसका नामकरण हेडगेवार के नाम पर करने का निर्णय लिया है. नगर परिषद की बैठक में विपक्षी दलों के पार्षद "हेडगेवार कौन है?" लिखे प्लेकार्ड लेकर पहुंचे. दोनों पक्षों के बीच झड़प भी हुई.
बीजापुर में मारे गए 3 नक्सलियों की पहचान हुई : पुलिस अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि बीजापुर जिले के कोरागुट्टम पहाड़ी क्षेत्र में 24 अप्रैल को मुठभेड़ के दौरान कथित तौर पर मारे गए तीन नक्सलियों की पहचान हो गई है. उन तीनों की पहचान पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) बटालियन नंबर 01 के हुंगी, सिंटू और शांति के रूप में हुई है. तीनों पर 8 लाख रुपये का इनाम था. इस बीच, सुरक्षा बलों ने नौवें दिन भी बीजापुर जिले में विशेष तलाशी अभियान जारी रखा. इसमें 10,000 से अधिक सुरक्षाकर्मियों ने शीर्ष विद्रोहियों को घेर लिया है और उन्हें एक दूरदराज के गांव की पहाड़ियों में फंसा दिया है.
कश्मीर में आतंकी हमले के बाद 48 पर्यटन स्थल बंद : 'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि कश्मीर में पिछले सप्ताह हुए पर्यटकों पर हमले के बाद सुरक्षा कड़ी करते हुए, सरकार ने मंगलवार से 87 में से 48 पर्यटक स्थलों को आम जनता के लिए बंद कर दिया है. यह जानकारी रॉयटर्स द्वारा देखे गए एक सरकारी आदेश से सामने आई है. भारत ने हमले में शामिल तीन हमलावरों की पहचान की है, जिनमें से दो पाकिस्तानी नागरिक बताए गए हैं. भारत उन्हें "आतंकी" बता रहा है जो मुस्लिम बहुल कश्मीर में हिंसक विद्रोह चला रहे हैं. इधर, पाकिस्तान ने किसी भी भूमिका से इनकार किया है और एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की है.
दूरदर्शन के पत्रकार अशोक श्रीवास्तव पर तीन एफआईआर दर्ज
दूरदर्शन से जुड़े पत्रकार अशोक श्रीवास्तव के खिलाफ 'भारत समाचार' न्यूज़ चैनल के बारे में मानहानि के तीन मुकदमे दर्ज हुए हैं. तीन अलग-अलग जिलों में एफआईआर दर्ज की गई हैं. इन एफआईआर में उन पर आईटी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की मानहानि संबंधी धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है. 'भारत समाचार' उत्तर प्रदेश केंद्रित न्यूज़ चैनल है, जिसका मुख्यालय लखनऊ में स्थित है. चैनल ने शिकायत की थी कि श्रीवास्तव द्वारा सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर ऐसा कंटेंट प्रसारित किया गया, जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है. तीनों एफआईआर अलग-अलग जिलों में दर्ज की गई हैं.
पेगासस सर्वेलेंस
सुरक्षा के लिए स्पाइवेयर का इस्तेमाल गलत नहीं, सवाल है कि किस पर किया गया
"अगर किसी देश के पास स्पाइवेयर है और वह अपनी सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल करता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है. सवाल यह है कि इसका उपयोग किसके खिलाफ किया गया," सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पेगासस जासूसी मामले की सुनवाई के दौरान कहा. एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने रिपोर्ट दी थी कि पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल नंबरों की जासूसी की गई थी.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटेश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि "कोई भी रिपोर्ट जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी हो, उसे हाथ नहीं लगाया जाएगा. लेकिन जो व्यक्ति यह जानना चाहते हैं कि क्या वे इसमें शामिल हैं, उन्हें जानकारी दी जा सकती है.” “हां, व्यक्तिगत आशंकाओं को दूर किया जाना चाहिए, लेकिन रिपोर्ट को सड़कों पर चर्चा का दस्तावेज़ नहीं बनाया जा सकता," बेंच ने टिप्पणी की.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उसे यह देखना होगा कि तकनीकी पैनल की रिपोर्ट को व्यक्तियों के साथ किस हद तक साझा किया जा सकता है.
बेंच ने सुनवाई के दौरान एक बिंदु पर यह सवाल पूछा, "देश द्वारा स्पाइवेयर का उपयोग करने में क्या गलत है? हमें स्पष्ट होना चाहिए : स्पाइवेयर रखने में कोई समस्या नहीं है... इसका उपयोग कुछ के खिलाफ किया जा सकता है... हमें राष्ट्र की सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहिए. हां, यह किसके खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है, यह सवाल है? निश्चित रूप से, अगर यह नागरिक समाज के किसी व्यक्ति के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है... तो इसकी जांच की जाएगी."
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि एक अमेरिकी जिला अदालत का निर्णय है. किसी तीसरे पक्ष ने नहीं, व्हाट्सएप ने स्वयं खुलासा किया है कि हैकिंग हुई थी. एक अन्य वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने भी कहा कि भले ही उनके मुवक्किल का फोन हैक नहीं हुआ हो और वह साफ हो, लेकिन सरकार के पास स्पाइवेयर है या नहीं, यह सवाल बना हुआ है. उन्होंने बेंच के समक्ष कहा, "मूल सवाल यह है कि क्या उनके पास (सरकार) यह स्पाइवेयर है, और क्या उन्होंने इसे खरीदा और इस्तेमाल किया है या नहीं. क्योंकि अगर यह उनके पास है, तो उन्हें आज तक इसका लगातार उपयोग करने से रोकने वाला कुछ भी नहीं है." इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी.
शरजील इमाम की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट
“क्या एक ही भाषण पर कई राज्यों में मुकदमा चल सकता है?”
सुप्रीमकोर्ट ने मंगलवार को पूछा कि क्या जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम पर एक ही भाषण के लिए अलग-अलग राज्यों में राजद्रोह सहित अन्य अपराधों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है? शीर्ष अदालत शरजील इमाम की 2020 की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ उत्तरप्रदेश, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश सहित चार राज्यों में दर्ज कई एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग की थी. ये सभी एफआईआर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में कथित भड़काऊ भाषण देने के आरोप में दर्ज की गई थीं.
सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि एक ही भाषण के लिए देशभर में अलग-अलग मुकदमों का सामना नहीं कराया जा सकता.
दिल्ली पुलिस की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इसका विरोध करते हुए कहा, “उन्होंने बिहार, उत्तरप्रदेश और दिल्ली में अलग-अलग भीड़ को उकसाया. अपराध अलग-अलग हैं. ” इस पर सीजेआई ने कहा, “लेकिन भाषण तो एक ही है. अगर भाषण यूट्यूब आदि पर है, तो वह पूरे भारत में सुना जा सकता है और असर भी एक जैसा होगा. ” उन्होंने इसे “डबल जिओपर्डी” (एक ही अपराध के लिए दो बार मुकदमा चलाना) का मामला बताया.
सीजेआई ने सुझाव दिया कि इन मामलों को दिल्ली स्थानांतरित किया जाना चाहिए. हालांकि, एसवी राजू ने तर्क दिया कि वह अन्य राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं, इसलिए मामलों को एक साथ जोड़ने या ट्रांसफर करने के संबंध में उनके पास पर कोई निर्देश नहीं है. उन्होंने कहा, "राज्य के खिलाफ अपराध एक मुद्दा है और समाज के खिलाफ अपराध अलग है."
सीजेआई ने कहा, "अगर अलग-अलग भाषण होते तो आप सही होते. यहां भाषण एक ही है...अगर आप सहमत हैं, तो अन्य राज्यों में मुकदमे की कार्यवाही स्थगित की जा सकती है." राजू ने अपनी स्थिति दोहराई, जिसके बाद बेंच ने दो सप्ताह बाद के लिए सुनवाई तय की.
बता दें कि शीर्ष अदालत ने 26 मई, 2020 को उत्तरप्रदेश, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश से यह जानना चाहा था कि अगर इमाम के खिलाफ कई एफआईआर के मुकदमे दिल्ली स्थानांतरित किए जाएं तो क्या उन्हें कोई आपत्ति है? सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से भी इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने को कहा था. दिल्ली पुलिस ने इमाम के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था और 28 जनवरी, 2020 को बिहार के जहानाबाद से गिरफ्तार किया था. उन पर जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित भड़काऊ भाषण देने का आरोप था.
पूर्व आईपीएस की जमानत और सजा निलंबन की याचिका खारिज : 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने 1990 के एक हिरासत में मौत के मामले में उम्रकैद की सजा पर जमानत और उसकी निलंबन की मांग की थी. संजीव भट्ट, जो एक व्हिसलब्लोअर हैं, उन्होंने 2002 के गुजरात नरसंहार में नरेंद्र मोदी की भूमिका के खिलाफ गवाही दी थी. न्यायमूर्ति मेहता ने आदेश पढ़ते हुए कहा, “अपीलकर्ता संजीव कुमार भट्ट द्वारा मांगी गई जमानत की प्रार्थनाएं खारिज की जाती हैं. अपील की सुनवाई में तेजी लाने का निर्देश दिया जाता है.” अदालत ने आगे कहा, “हम अपीलकर्ता संजीव कुमार भट्ट को जमानत पर रिहा करने के इच्छुक नहीं हैं. हालांकि, हम यह स्पष्ट करते हैं कि उपरोक्त टिप्पणियां केवल जमानत की याचिका तक सीमित हैं और अपीलकर्ता एवं सह-आरोपियों की अपीलों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.”
बीजेपी नेता को न पहचानना डीएसपी को पड़ा भारी, मंगवाई गई माफी : पूर्व राज्यपाल गणेशी लाल के बेटे मनीष सिंगला सिरसा में सीएम सैनी के कार्यक्रम में शिरकत करने गए थे. सैनी के कार्यक्रम की सिक्योरिटी प्रोटोकॉल के चलते डीएसपी जींद ने बीजेपी नेता मनीष सिंगला को नहीं पहचाना और आगे नहीं आने दिया. इस बात पर मनीष सिंगला नाराज हो गए. इसके बाद उन्होंने डीएसपी जींद को तलब किया और बाकायदा अपने साथ बिठाकर माफी मंगवाई और उसे रिकॉर्ड भी करवाया.
ओवैसी ने मुस्लिमों से की 'बत्ती गुल' करने की अपील : वक़्फ़ संशोधन अधिनियम के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के विरोध के लिए नया तरीका अपनाते हुए मुस्लिमों से अपने घर और प्रतिष्ठानों की बिजली 15 मिनट तक बंद रखने का आह्वान किया था. इसके समर्थन में एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी मुस्लिम समुदाय से 30 अप्रैल को रात 9 बजे 15 मिनट के लिए ब्लैक आउट करने की अपील की है. न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में ओवैसी ने कहा - 'मैं आप सभी से अपील करना चाहता हूं कि वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ 30 अप्रैल को रात 9 बजे से 9.15 बजे तक एआईएमपीएलबी द्वारा ब्लैकआउट विरोध प्रदर्शन के आह्वान का समर्थन करें.’
चीन ने एप्पल को अटकाया तो भारत में संकट में आ गईं कंपनी की योजनाएं
'बिजनेस स्टैंडर्ड' की रिपोर्ट है कि भारत में आईफोन उत्पादन को बढ़ाने की एप्पल की महत्वाकांक्षी योजना को गंभीर झटका लगा है, क्योंकि चीन ने जरूरी निर्माण मशीनरी के निर्यात को मंजूरी देने में देरी कर दी है. यह देरी आगामी आईफोन 17 के लॉन्च पर असर डाल सकती है और भारत में उत्पादन दोगुना करने की एप्पल की रणनीति को पटरी से उतार सकती है, जो चीन पर निर्भरता कम करने और अमेरिका के भारी आयात शुल्क से बचने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था. आईफोन असेंबलिंग के लिए जरूरी उच्च-प्रेसिशन मशीनरी की खेपें रोक दी गई हैं और फिलहाल इस समस्या का कोई स्पष्ट समाधान नहीं दिख रहा है. इसका असर सिर्फ स्मार्टफोन उद्योग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव सुरंग खोदने वाली मशीनों से लेकर सोलर एनर्जी में उपयोग होने वाले उपकरणों तक कई अन्य क्षेत्रों में भी देखा जा रहा है. यह स्थिति दिखाती है कि भारत में आईफोन असेंबलिंग अंतत: चीन पर अधिक निर्भर है. फिर चाहे वह मशीनरी हो, इंजीनियर हों या इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे. भारत को अगला वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने की महत्वाकांक्षा अब एक कठोर हकीकत से टकरा रही है.
कनाडा चुनाव 2025 :
कनाडा ने ट्रम्प को हराया
ट्रूडो की लिबरल पार्टी ने जीता आम चुनाव, मार्क कार्नी बने रहेंगे प्रधानमंत्री
कनाडा में सोमवार को हुए आम चुनाव के नतीजे लगभग साफ हो चुके हैं. मार्क कार्नी के नेतृत्व वाली लिबरल पार्टी ने जीत दर्ज की है और कार्नी प्रधानमंत्री के रूप में लौट रहे हैं. हालांकि, शुरुआती रुझानों और मतगणना के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि लिबरल पार्टी को संसद में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. इस बार के आम चुनाव में मुकाबला लिबरल पार्टी के मार्क कार्नी और कंजरवेटिव पार्टी के पियरे पोइलीवर के बीच था. देशभर में भारी मतदान हुआ, जिसमें कई प्रांतों में मतदाताओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही.
कार्नी, जो पहले बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर रह चुके हैं, ने हाल ही में जस्टिन ट्रूडो की जगह पार्टी की कमान संभाली थी. उनकी अगुवाई में पार्टी ने एक अप्रत्याशित वापसी की है, जिसे विश्लेषक "राजनीतिक पुनर्जन्म" कह रहे हैं. लिबरल पार्टी ने चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीती हैं, लेकिन पूर्ण बहुमत से कुछ सीटें पीछे रह गई है. ऐसे में संभावना है कि कार्नी को सरकार चलाने के लिए अन्य दलों, विशेष रूप से वामपंथी झुकाव वाली पार्टियों का समर्थन लेना पड़ेगा. इस बीच, कंजरवेटिव नेता पियरे पोइलीवर अपनी पारंपरिक सीट तक हार गए, जिससे उनकी पार्टी को झटका लगा है, हालांकि कुल मत प्रतिशत में उन्होंने अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन किया है. एनडीपी (न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी) को इस चुनाव में सबसे बड़ा नुकसान हुआ है. पार्टी अपना आधिकारिक दर्जा तक खो बैठी है और नेता जगमीत सिंह ने इस्तीफा देने की घोषणा की है. यह चुनाव कनाडा की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है. इस चुनाव के सबसे चौंकाने वाले परिणामों में कंजरवेटिव पार्टी के नेता पियरे पोइलीवर की हार रही, जिन्होंने 2004 से अपनी सीट संभाल रखी थी. चुनावी नतीजों के बावजूद उन्होंने अपने पद पर बने रहने की घोषणा की, लेकिन पार्टी में इससे आंतरिक कलह बढ़ सकती है.
विश्लेषण
ट्रम्प और हालात ने लगाया लिबरल पार्टी का बेड़ा पार
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी अक्सर संकटों से निपटने के लिए एक साधारण उसूल दोहराते हैं - "कोई योजना न होने से बेहतर है एक योजना होना." उनका कनाडा के सर्वोच्च पद तक तेज़ी से पहुंचना इस सिद्धांत का प्रमाण माना जा सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी चुनावी जीत किस्मत और हालात के संयोग की देन है, न कि किसी सुनियोजित रणनीति की.
छह महीने पहले तक लिबरल पार्टी बिखराव की स्थिति में थी. अक्टूबर के अंत में करीब दो दर्जन लिबरल सांसदों ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से इस्तीफे की मांग करते हुए पत्र लिखा. पार्टी के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच भी "कोड रेड" नाम की एक याचिका चल रही थी, जिसमें ट्रूडो की नेतृत्व क्षमता पर गुप्त मतदान की मांग की गई थी. कंज़र्वेटिव नेता पियरे पोएलिएवर ने लगातार सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिशें शुरू कर दी थीं, महंगाई और आवास संकट को मुद्दा बनाकर सरकार पर तीखा हमला किया जा रहा था.
लिबरल पार्टी 20 अंकों से पीछे थी और चुनावी विश्लेषकों का कहना था कि कंज़र्वेटिव जीत की संभावना 99% से अधिक है. जब अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन ने कमला हैरिस के लिए रास्ता साफ किया, तो लिबरल पार्टी को उम्मीद थी कि ट्रूडो भी यही करेंगे, लेकिन ट्रूडो हटने को तैयार नहीं थे. डलहौज़ी यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर लॉरी टर्नबुल कहती हैं, "लोग उम्मीद कर रहे थे कि ट्रूडो खुद हटेंगे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे थे." पार्टी के भीतर हताशा गहराने लगी थी. कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं था, न ही कोई नई नीति जो लोकप्रियता वापस दिला सकती.
दिसंबर के अंत में वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने इस्तीफा दे दिया. ट्रूडो उन्हें हटाकर कार्नी को लाने की योजना बना रहे थे, लेकिन कार्नी ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. फ्रीलैंड का तीखा इस्तीफा पत्र पार्टी को और संकट में डाल गया.
उसी समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि अमेरिका को कनाडा को 51वां राज्य बना लेना चाहिए. ट्रम्प ने दावा किया कि यह आर्थिक दबाव से संभव है. राजनीतिक रणनीतिकार पीटर डोनोलो कहते हैं कि अगर यह संकट न होता, तो कार्नी की उम्मीदवारी इतनी मजबूत न लगती. उन्होंने एक उम्मीदवार और एक गोलीकांड पीड़िता का नाम भूलने जैसी गलतियां कीं और केमैन द्वीपों में निवेश को लेकर भी सवाल उठे, लेकिन समय ने कार्नी का साथ दिया. डोनोलो के अनुसार, कार्नी का विशिष्ट अनुभव उन्हें इस समय के लिए उपयुक्त बनाता है. टर्नबुल कहती हैं, "ट्रूडो के हटने का समय एकदम सही था." कार्नी के पास संसद में सीट नहीं थी, इसलिए वे तुरंत चुनाव का औचित्य पेश कर सके. कंज़र्वेटिव पार्टी को कार्नी के खिलाफ लामबंद होने का पर्याप्त समय नहीं मिला.
मस्क के स्टारलिंक को अब स्पेस में चुनौती देगा अमेज़न : ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट है कि फ्लोरिडा से सोमवार को अमेज़न के क्यूपर ब्रॉडबैंड इंटरनेट कॉन्स्टेलेशन के पहले 27 उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया, जिससे लंबे समय से प्रतीक्षित इस परियोजना की शुरुआत हो गई. यह नेटवर्क स्पेसएक्स के स्टारलिंक को टक्कर देगा. अमेज़न की यह परियोजना कुल 3,236 उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजने की है. इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उपभोक्ताओं, व्यवसायों और सरकारों को ब्रॉडबैंड इंटरनेट उपलब्ध कराना है. यह एक $10 बिलियन (करीब 83,000 करोड़ रुपये) की महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसकी घोषणा 2019 में की गई थी. 27 उपग्रह एटलस वी रॉकेट पर सवार होकर कैप कैनावेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से रात 7 बजे (EDT) लॉन्च किए गए. खराब मौसम के कारण 9 अप्रैल को प्रस्तावित लॉन्च को टालना पड़ा था.
स्पेन और पुर्तगाल में बिजली बहाल : 'रॉयटर्स’ की रिपोर्ट है कि स्पेन और पुर्तगाल ने अपने इतिहास के सबसे बड़े बिजली ब्लैकआउट के बाद मंगलवार को धीरे-धीरे बिजली आपूर्ति बहाल कर दी है, लेकिन अधिकारियों ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि इस संकट का कारण क्या था और भविष्य में इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे. ट्रैफिक लाइट्स दोबारा चालू हो गईं, ट्रेन और मेट्रो सेवाएं धीरे-धीरे बहाल हो रही हैं और स्कूल भी फिर से खुल गए हैं. लोगों ने दफ्तर पहुंचने के लिए भारी देरी और अव्यवस्था का सामना किया.
चलते-चलते
विश्व के 1.5 खरब पेड़ों को 'तौलने' वाला उपग्रह
दुनिया के वर्षावन, जिन्हें अक्सर "धरती के फेफड़े" कहा जाता है, अरबों टन कार्बन संग्रहित करते हैं और इस प्रकार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं. लेकिन 1.5 खरब से अधिक पेड़ों के साथ, यह जानना लगभग असंभव था कि वे वास्तव में कितना कार्बन संग्रहित करते हैं - अब तक.
मंगलवार को, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने एक अनूठे उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया, जो एक विशेष रडार प्रणाली का उपयोग करके यह पता लगाएगा कि हरे-भरे पेड़ों के नीचे क्या छिपा है. इस उपग्रह को प्यार से "स्पेस ब्रोली" यानी अंतरिक्ष में छाता नाम दिया गया है, क्योंकि इसमें एक विशाल 12 मीटर व्यास वाला एंटीना है, जो संकेत भेजेगा. यह पी-बैंड रडार का उपयोग करता है जिसमें बहुत लंबी तरंगदैर्ध्य होती है - जिससे यह वनों के अंदर गहराई तक देख सकता है और पेड़ों की छतरी से छिपी शाखाओं और तनों को उजागर कर सकता है. "अधिकतर रडार जो आज अंतरिक्ष में हैं, हिमखंडों की शानदार छवियां लेते हैं, लेकिन जब वे वनों को देखते हैं, तो वे केवल वन के ऊपरी हिस्से, छोटी टहनियां, छोटे पत्ते देखते हैं, वे वनों की गहराई में प्रवेश नहीं करते हैं," एयरबस के भू-विज्ञान प्रमुख डॉ. राल्फ कॉर्डी ने समझाया. "लेकिन हमने पाया कि बहुत लंबी रडार तरंगदैर्ध्य का उपयोग कर पेड़ों और वनों की गहराई तक देख सकते हैं," उन्होंने कहा.
1.2 टन का यह उपग्रह सीटी स्कैन में उपयोग किए जाने वाले दृष्टिकोण के समान एक पद्धति का उपयोग करेगा और बार-बार पास करके पेड़ों के माध्यम से स्लाइस का विश्लेषण करेगा ताकि यह पता चल सके कि कितनी लकड़ी मौजूद है. यही सामग्री ग्रह को गर्म करने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के लिए एक प्रतिनिधि के रूप में उपयोग की जा सकती है. वर्तमान में वैज्ञानिक अलग-अलग पेड़ों को माप रहे हैं और अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के रिमोट सेंसिंग प्रोफेसर मैट डिज्नी के अनुसार यह एक "बड़ी चुनौती" प्रस्तुत करता है. उपग्रह यूके में बनाया गया था और शेफील्ड विश्वविद्यालय के अकादमिक प्रोफेसर शॉन क्वेगन द्वारा पहली बार सोचा गया था, लेकिन उन्होंने कहा कि यह एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास था: "मिशन यूरोप और अमेरिका के कुछ सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों के साथ साझेदारी में दशकों के अत्यधिक नवीन कार्य का परिणाम है."
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