30/06/2025 | रथयात्रा में भगदड़ से 3 मौतें, 50 घायल | तो कम होता ऑपरेशन सिंदूर में नुकसान | ज़ी न्यूज़, न्यूज़18 पर एफआईआर | अडानी और अमेरिकी समन | महाराष्ट्र में बैकफुट पर 'हिंदी' | सैंडल स्कैंडल
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
पुरी में जगन्नाथ की रथयात्रा उत्सव में भगदड़ से 3 श्रद्धालुओं की मौत, 50 घायल; मुख्यमंत्री ने मांगी माफी
उत्तरकाशी में भूस्खलन, 2 मजदूरों की मौत, चारधाम यात्रा स्थगित
ऑपरेशन सिंदूर में भारत के नुकसान का कारण सैन्य ठिकानों पर हमले की रोक: नौसेना अधिकारी
पुंछ के शिक्षक को आतंकवादी बताया था, ज़ी न्यूज़, न्यूज़18 और अन्य पर एफआईआर का आदेश
नई जनगणना, राज्यों से कहा- 31 दिसंबर तक कर लें अपनी सीमाओं में बदलाव
भारत सरकार ने अदाणी समूह को समन अब तक नहीं सौंपा, इंतजार में हैं अमेरिकी
बढ़ते विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का फैसला वापस लिया
बिहार में मतदाता सूची का “विशेष गहन परीक्षण"
राजस्थान: 'जाति' मालूम होने पर सलून में आदिवासी युवकों के साथ
आरबीआई ने दरवाज़ा तो खोला, लेकिन बाजार में नहीं है निवेश की भूख
आकार पटेल | जन संघ की उत्पत्ति
अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले के बाद शुरू हुई "बिल्ली-चूहे की दौड़", अब यूरेनियम कहां है, कोई नहीं जानता
रूस के हमले में यूक्रेनी F-16 क्रैश, ज़ेलेंस्की ने अमेरिका से एयर डिफेंस मांगा
सैंडल स्कैंडल: प्राडा के ब्रांड पर कोल्हापुरी चप्पल की छाप
बेंगलुरु में प्राचीन संस्कृत नाटक को मिला नया जीवन, दुनिया की सबसे पुरानी जीवित नाट्य परंपरा कू्डीयाट्टम में हुआ ‘मृच्छकटिकम्’ का मंचन
पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा में भगदड़ से 3 की मौत, 50 घायल; मुख्यमंत्री ने मांगी माफी
'टेलिग्राफ' की रिपोर्ट है कि रविवार तड़के ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा उत्सव के दौरान श्री गुंडिचा मंदिर के पास मची भगदड़ में कम से कम तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई और करीब 50 अन्य घायल हो गए. मृतकों में दो महिलाएं भी शामिल हैं. पुरी के जिलाधिकारी सिद्धार्थ एस. स्वैन ने बताया कि यह हादसा सुबह करीब 4 बजे उस समय हुआ जब भारी संख्या में श्रद्धालु रथयात्रा के दौरान दर्शन के लिए मंदिर के पास एकत्र हुए थे. घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है. स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार, 6 की हालत गंभीर है, जिनमें से एक को कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर किया गया है और पांच अन्य ICU में हैं. अधिकारियों के मुताबिक, 6 लोग अब भी बेहोश हैं.
भगदड़ उस वक्त हुई जब पूजा सामग्री ले जा रहे दो ट्रक भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों के रथों के पास अत्यधिक भीड़ में पहुंच गए. श्रद्धालु 'पहुड़ा' अनुष्ठान (जिसमें रथ पर विराजमान देवताओं के मुखावरण हटाए जाते हैं) के दर्शन के लिए सुबह से ही मंदिर के बाहर बड़ी संख्या में जुटे थे. मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर हादसे के लिए माफी मांगी और सभी जगन्नाथ भक्तों से क्षमा याचना की. उन्होंने कहा — "महाप्रभु के दर्शन की तीव्र इच्छा के कारण जो भगदड़ व अफरातफरी मची, उससे यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई. मैं और मेरी सरकार सभी भक्तों से क्षमा याचना करते हैं. दिवंगत श्रद्धालुओं के परिजनों को हमारी संवेदनाएं."
उत्तरकाशी में भूस्खलन से 2 मजदूरों की मौत, चारधाम यात्रा स्थगित
उत्तरकाशी में भारी बारिश के कारण सिलाई बैंड के पास एक श्रमिक शिविर में भूस्खलन हो गया, जिससे दो मजदूरों की मौत हो गई और 7 मजदूर लापता हो गए. इस घटना के बाद चारधाम यात्रा को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया है.
प्रशासन के अनुसार, यह हादसा शनिवार देर रात सिलाई बैंड के पास, यमुनोत्री नेशनल हाईवे पर पालीगाड़ से 4-5 किमी आगे हुआ. श्रमिक शिविर में कुल 19 मजदूर थे, जिनमें से 10 को सुरक्षित निकाल लिया गया. ये सभी मजदूर इलाके में एक होटल के निर्माण कार्य में लगे थे. अधिकारियों के अनुसार, तेज बारिश के कारण बड़ा भूस्खलन हुआ, जिससे यमुनोत्री हाईवे का करीब 10-12 मीटर हिस्सा बह गया. गढ़वाल कमिश्नर विनय शंकर पांडे ने चारधाम यात्रा को एक दिन के लिए स्थगित करने की घोषणा की है. यात्रा को फिर से शुरू करने का निर्णय सोमवार को मौसम और सड़क की स्थिति की समीक्षा के बाद लिया जाएगा.
ऑपरेशन सिंदूर में भारत के नुकसान का कारण सैन्य ठिकानों पर हमले की रोक: नौसेना अधिकारी
'हिन्दुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट है कि भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ हालिया सैन्य टकराव के पहले दिन कुछ लड़ाकू विमान इसलिए खोए क्योंकि सरकार ने शुरुआती चरण में भारतीय सेनाओं को पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमला करने से रोका था. यह जानकारी इंडोनेशिया में भारत के रक्षा अताशे और नौसेना अधिकारी कैप्टन शिव कुमार ने 10 जून को जकार्ता में एक सेमिनार के दौरान दी.
एक इंडोनेशियाई विशेषज्ञ के दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पांच फाइटर जेट तीन राफेल, एक मिग-29 और एक सुखोई-30 — तथा एक ड्रोन और दो S-400 लॉन्चर गंवाए, कुमार ने कहा, “मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि भारत ने इतने विमान खोए, लेकिन यह सही है कि हमने कुछ विमान खोए और ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने हमें सैन्य ठिकानों और एयर डिफेंस सिस्टम को निशाना न बनाने का निर्देश दिया था.”
कुमार ने बताया कि प्रारंभिक नुकसान के बाद भारत ने रणनीति बदली और पाकिस्तान पर पूर्ण हवाई वर्चस्व स्थापित कर लिया. “हमने पहले उनकी वायु सुरक्षा प्रणाली को दबाया और फिर नष्ट किया (SEAD और DEAD). इसी कारण हमारे सभी मिसाइल हमले — सतह से हवा और सतह से सतह — सफल रहे. 8, 9 और 10 मई को भारत को पूर्ण हवाई नियंत्रण प्राप्त था.”
हालांकि, भारतीय दूतावास ने इस बयान को “संदर्भ से हटकर” बताया और कहा कि कुमार के बयान का उद्देश्य यह बताना था कि भारतीय सशस्त्र बल लोकतांत्रिक राजनीतिक नेतृत्व के अधीन काम करते हैं और ऑपरेशन सिंदूर गैर-उत्तेजक था, जिसका उद्देश्य केवल आतंकी ढांचों को निशाना बनाना था.
इससे पहले, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने 31 मई को सिंगापुर में कहा था कि 7 मई को हुए विमान नुकसान रणनीतिक गलतियों के कारण हुए थे, जिन्हें जल्दी सुधारा गया और फिर भारतीय वायुसेना ने गहराई तक सटीक हमले किए.
इंडोनेशियाई विशेषज्ञ टॉमी टमटोमो ने सेमिनार में दावा किया कि भारत ने तीन राफेल विमान AWACS कनेक्टिविटी टूटने के कारण खोए, लेकिन पाकिस्तान को छह फाइटर जेट, दो AWACS और एक सैन्य ट्रांसपोर्ट प्लेन का नुकसान हुआ. इस पर भारतीय वायुसेना के एअर मार्शल ए.के. भारती ने 11 मई को बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तान के कुछ अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों को गिराया और उस पर तकनीकी जांच जारी है. उन्होंने यह भी स्वीकारा कि भारत को भी युद्ध में नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन सभी पायलट सुरक्षित लौटे.
कर्नल सोफिया के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने वाले मंत्री को काम मिला
मध्यप्रदेश के जनजातीय मामलों के मंत्री कुंवर विजय शाह, जिन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर गटरछाप भाषा में टिप्पणी कर विवाद खड़ा किया था, की मुख्यधारा में वापसी हो गई है और मंत्री होने के नाते उनको काम मिलना शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रविवार को उन्हें देवास जिले की खिवनी वाइल्डलाइफ सेंचुरी भेजकर पहला काम सौंपा, जहां बेदखली की कार्रवाई से गुस्साए स्थानीय आदिवासियों ने प्रदर्शन किया था. याद रहे, शाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एसआईटी जांच कर रही है. शाह सार्वजनिक रूप से तब से नदारद थे, जब उनके खिलाफ 11 मई को महू (इंदौर) में कर्नल कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहने पर एफआईआर दर्ज हुई थी. बाद में सुप्रीम कोर्ट व मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने उन्हें फटकारा था.
दरअसल, 23 जून को वन विभाग ने खिवनी अभयारण्य की 82 हेक्टेयर भूमि से 'अवैध अतिक्रमण' हटाने की कार्रवाई की थी, जिसमें आदिवासी परिवारों के कच्चे मकान तोड़े गए थे. इसके बाद आदिवासी समुदायों ने 'मनमाने विस्थापन' का विरोध किया. इस मामले में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी दखल दिया और वह रविवार को प्रभावित आदिवासी परिवारों को अपने साथ मुख्यमंत्री यादव के पास ले गए. बहरहाल, वन विभाग और आदिवासियों से जुड़े इस विवाद के बहाने विजय शाह को काम सौंप दिया गया, जिसका शायद उन्हें इंतज़ार था.
पुंछ के शिक्षक को आतंकी बताया था, ज़ी न्यूज़, न्यूज़18 और अन्य पर एफआईआर का आदेश
जम्मू-कश्मीर की एक अदालत ने पुंछ के एक इस्लामिक मदरसे के शिक्षक को झूठा 'पाकिस्तानी आतंकवादी' करार देने के लिए ज़ी न्यूज़, न्यूज़18 और अन्य अज्ञात संपादकों व एंकरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. यह मामला उस शिक्षक की भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के दौरान मौत के बाद सामने आया था.
उप न्यायाधीश शफीक अहमद की अदालत ने शनिवार (28 जून) को कहा कि आरोपियों की माफी “उनकी गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग से हुई गलती को ठीक नहीं करती”, खासकर उस समय जब जम्मू-कश्मीर में तनाव चरम पर था और भारत ने पाकिस्तान व पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया था.
अदालत ने पुलिस को भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 353(2) (सार्वजनिक उपद्रव), 356 (मानहानि) और 196(1) (धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाना) के साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 (कंप्यूटर का बेईमानी या धोखाधड़ी से इस्तेमाल) के तहत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए.
“द वायर” के मुताबिक, यह कवरेज कारी मोहम्मद इकबाल की मौत के बाद की गई थी, जो पुंछ जिले के जामिया जिया-उल-उलूम (राज्य के सबसे बड़े इस्लामिक मदरसों में से एक) में शिक्षक थे. इकबाल की 7 मई की सुबह पाकिस्तान की गोलाबारी में उस समय मौत हो गई थी, जब वे छात्रों के लिए राशन लेने गए थे.
कुछ राष्ट्रीय मीडिया चैनलों ने इकबाल को “पाकिस्तानी आतंकवादी” और प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़ा बताया था, और उनकी मौत को सुरक्षा बलों की “सफलता” बताया था. रिपब्लिक वर्ल्ड ने उन्हें “शीर्ष LeT कमांडर”, सीएनएन न्यूज़18 ने “लश्कर आतंकवादी”, जबकि ज़ी न्यूज़ ने उन्हें “आतंकवादी” कहा था.
अदालत ने कहा, “माफी सजा के निर्धारण में कुछ राहत दे सकती है, लेकिन जब संज्ञेय अपराध सामने आ जाए तो पुलिस की कानूनी जिम्मेदारी एफआईआर दर्ज करने की बनी रहती है.” अदालत ने पुलिस को निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध जांच के निर्देश दिए हैं और पुंछ थाना प्रभारी को सात दिन में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है.
अदालत ने यह भी कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता “संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है”, लेकिन यह स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है — जैसे मानहानि, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता. अदालत ने कहा, “स्थानीय धार्मिक मदरसे के मृत शिक्षक को बिना किसी पुष्टि के 'पाकिस्तानी आतंकवादी' कहना, खासकर भारत-पाक संघर्ष के दौरान, केवल पत्रकारिता की गलती नहीं मानी जा सकती.”
अदालत ने मीडिया हाउसों को “नैतिक और संवैधानिक दायित्व” की याद दिलाई कि उनकी रिपोर्टिंग “सटीक, निष्पक्ष और सत्यापित” होनी चाहिए. अदालत ने कहा, “प्रेस की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि वे मानहानिकारक या भ्रामक सामग्री प्रकाशित करें, और जब ऐसा आचरण व्यक्तियों या समाज को गंभीर नुकसान पहुंचाए, तो उसे कानून के अनुसार संबोधित किया जाना चाहिए.”
अदालत ने माना कि आरोपियों की भ्रामक रिपोर्टिंग से मृतक के परिवार को दुख पहुंचा, मदरसे की प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ और जम्मू-कश्मीर की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची.
नई जनगणना, राज्यों से कहा- 31 दिसंबर तक कर लें अपनी सीमाओं में बदलाव
भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने राज्यों को सूचित किया है कि भारत की 16वीं जनगणना का पहला चरण 1 अप्रैल 2026 से शुरू होगा. इस चरण में देश के हर घर की स्थिति, संपत्ति, और सुविधाओं की जानकारी डिजिटल माध्यम से एकत्र की जाएगी. इसके बाद, दूसरा चरण—जनसंख्या गणना—1 फरवरी 2027 से शुरू होगा, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और अन्य विवरण जुटाए जाएंगे. इस बार जाति आधारित गणना भी होगी. कुल 34 लाख से अधिक गणनाकर्मी और पर्यवेक्षक इस कार्य में जुटेंगे. नागरिकों को मोबाइल ऐप्स के जरिए स्वयं-गणना की सुविधा भी मिलेगी.
मार्च 2027 में जनगणना पूरी होने के बाद, दिसंबर 2027 तक लिंग-वार डेटा जारी कर दिया जाएगा. पहली बार पूरी तरह डिजिटल माध्यम से जनगणना की जाएगी, जिसमें मोबाइल ऐप्स का उपयोग होगा और नागरिकों को स्वयं भी जानकारी भरने का विकल्प मिलेगा. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने 'द हिंदू' को बताया कि पहले चरण की तारीखें और पूछे जाने वाले प्रश्नों की अधिसूचना बाद में राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी. रजिस्ट्रार जनरल ने राज्यों को यह भी सूचित किया है कि प्रशासनिक सीमाएं 31 दिसंबर तक फ्रीज कर दी जाएंगी और यदि पुलिस थानों, तहसीलों या जिलों की सीमाओं में कोई बदलाव करना है, तो वह इस तारीख से पहले किया जाना चाहिए.
अडानी को अमेरिका से समन पकड़ा नहीं रही भारत सरकार
'द वायर' की रिपोर्ट है कि अमेरिकी सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) ने 27 जून को न्यूयॉर्क की एक संघीय अदालत को सूचित किया कि भारत सरकार ने अब तक गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी को समन सौंपने की प्रक्रिया पूरी नहीं की है, जबकि इस संबंध में लगभग छह महीने पहले अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत पहली बार संपर्क किया गया था. 27 जून को दायर अपनी तीसरी स्टेटस रिपोर्ट में SEC ने कहा कि उसने भारत के विधि और न्याय मंत्रालय से हेग कन्वेंशन के अनुच्छेद 5(ए) के तहत मदद मांगी थी ताकि अडानी बंधुओं को समन और शिकायत पत्र सौंपे जा सकें. साथ ही, अडानी पक्ष के वकीलों को सीधे भी नोटिस और वेवर रिक्वेस्ट भेजे गए थे. हालांकि, अब तक इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है कि भारतीय प्राधिकरणों ने समन सौंपे हैं या नहीं. SEC ने रिपोर्ट में लिखा— "अप्रैल स्टेटस अपडेट के बाद से, SEC ने भारत के विधि मंत्रालय से समन सौंपने के प्रयासों के संबंध में संपर्क किया है, लेकिन SEC को समझ है कि संबंधित भारतीय न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा अब तक सेवा नहीं की गई है."
SEC ने अपनी पिछली अप्रैल रिपोर्ट में बताया था कि भारत के विधि मंत्रालय ने अमेरिकी अनुरोध को स्वीकार कर उसे संबंधित न्यायिक अधिकारियों को भेज दिया है. यह मामला नवंबर 2024 में दर्ज क्रिमिनल और सिविल कार्रवाइयों से जुड़ा है. बता दें कि अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट ने गौतम अदाणी, सागर अदाणी, अदाणी ग्रीन एनर्जी के पूर्व CEO विनीत जैन, भारतीय कंपनी Azure Power के दो पूर्व अधिकारी और कनाडा की पेंशन फंड संस्था CDPQ के तीन पूर्व अधिकारियों पर 2020 से 2024 के बीच 250 मिलियन डॉलर (करीब ₹2,000 करोड़) की रिश्वत भारतीय सरकारी अधिकारियों को देने का आरोप लगाया था. यह रिश्वत कथित तौर पर सोलर एनर्जी कॉन्ट्रैक्ट्स हासिल करने के लिए दी गई.इन आपराधिक कार्रवाइयों के समानांतर, SEC ने अमेरिकी संघीय प्रतिभूति क़ानूनों के तहत एंटी-फ्रॉड प्रावधानों के उल्लंघन को लेकर अदाणी बंधुओं के खिलाफ सिविल मुक़दमा दायर किया था.
हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का फैसला वापस
महाराष्ट्र सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का फैसला वापस ले लिया है. यह निर्णय राजनीतिक विरोध के बाद लिया गया. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दोनों उपमुख्यमंत्रियों के साथ रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस फैसले की घोषणा की. उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे ने ठाकरे बंधुओं (उद्धव और राज) को करीब ला दिया और वे अगले माह 5 जुलाई को मार्च निकालकर मंच साझा करने वाले थे.
फडणवीस ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तीन-भाषा फॉर्मूले के क्रियान्वयन के लिए शिक्षाविद् और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक नई विशेषज्ञ समिति बनाई जाएगी. सरकार इस नई समिति की रिपोर्ट का इंतजार करेगी, जिसके बाद ही यह तय किया जाएगा कि तीन-भाषा फॉर्मूला किस कक्षा से लागू किया जाए. फडणवीस ने जोर देकर कहा, "हमारी नीति के केंद्र में मराठी और मराठी छात्र हैं. हमारी भाषा नीति हमेशा मराठी-केंद्रित रहेगी.
कार्टून

विश्लेषण
‘एनआरसी’ लागू करने के लिए कहीं चुनाव आयोग का इस्तेमाल तो नहीं
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का “विशेष गहन परीक्षण" बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है. चुनाव आयोग द्वारा चुनाव से कुछ ही महीने पहले उठाए गए इस कदम से इसकी व्यावहारिकता पर सवाल खड़े हो गए हैं. यह चिंता भी बनी है कि कहीं यह कवायद बड़े पैमाने पर मतदाताओं को वंचित करने, उनको मतदाता सूची से निकालने के लिए तो नहीं की जा रही. और, एनआरसी लागू करने के लिए कहीं चुनाव आयोग का इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा.
“द वायर” में श्रावस्ती दासगुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आयोग के “विशेष गहन परीक्षण" के कारण उन सभी मौजूदा मतदाताओं को अपनी और अपने माता-पिता की नागरिकता का प्रमाण देना होगा, जो 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे. रिपोर्ट के मुताबिक, इस कदम की पृष्ठभूमि में भाजपा द्वारा अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के मतदाता सूची में नाम दर्ज होने के आरोप हैं. कांग्रेस ने भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मतदाता हेरफेर के आरोप लगाए हैं.
2003 से पहले पंजीकृत मतदाताओं को नागरिक माना जाएगा: चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश के अनुसार, 2003 की मतदाता सूची को नागरिकता का प्रमाण माना जाएगा, जब तक कि कोई अन्य जानकारी न हो. जो लोग 2003 के बाद पंजीकृत हुए हैं, उनकी स्थिति अनिश्चित है. हालांकि, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि इस कवायद से गरीब, ग्रामीण, प्रवासी और कम पढ़े-लिखे लोगों के मताधिकार छिन सकते हैं. साथ ही, आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेज कई लोगों के पास नहीं होंगे.
पारदर्शिता और पहुंच का सवाल : मतदाता सूची संशोधन के लिए जरूरी फॉर्म ऑनलाइन उपलब्ध हैं, लेकिन ग्रामीण और कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए इन्हें डाउनलोड करना मुश्किल हो सकता है. प्रवासी मजदूरों के लिए भी यह चुनौतीपूर्ण है.
राजनीतिक प्रतिक्रिया : बिहार के विपक्षी दलों ने इस कदम को "सत्ता द्वारा मतदाताओं को सूची से हटाने की चाल" बताया है. लिहाजा, वे चुनाव आयोग से मिलने जा रहे हैं.
आयोग का तर्क: चुनाव आयोग का कहना है कि यह कवायद मतदाता सूची में गलतियों को दूर करने, अवैध मतदाताओं को हटाने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है.
वैकल्पिक मीडिया
राजस्थान: 'जाति' मालूम होने पर सलून में आदिवासी युवकों के साथ भेदभाव
'द मूकनायक' की रिपोर्ट है कि राजस्थान के जालोर जिले के करड़ा थाना क्षेत्र में जातिगत भेदभाव और हिंसा का एक दुखद मामला सामने आया है. भील समुदाय के कई युवकों ने आरोप लगाया है कि सेवाड़ा स्टेशन स्थित एक हेयर सैलून के दुकानदार ने उनके साथ जातिगत अपमान और मारपीट की. पीड़ितों ने पुलिस में शिकायत दी है. पीड़ित दिनेश कुमार (निवासी दुठया) ने बताया कि 27 जून को वह अपने भाई दशरथ कुमार और रिश्तेदारों के साथ सुधामाता जी के दर्शन करने गए थे. शाम करीब 4:30 बजे वे सेवाड़ा स्टेशन पर बाल कटवाने के लिए एक हेयर सैलून पहुंचे. दुकानदार ने पहले उन्हें आधे घंटे इंतजार कराया, फिर उनकी जाति पूछी. जब पीड़ितों ने बताया कि वे भील समुदाय से हैं, तो दुकानदार ने उन्हें "नीच जाति के कीड़े" बताते हुए गालियां दीं और बाल काटने से मना कर दिया. आरोप है कि दुकानदार ने पीड़ितों को धक्के देकर बाहर निकाला और गौतम नामक युवक के साथ मारपीट की. इस घटना के बाद स्थानीय SC/ST संगठनों ने आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.
आरबीआई ने दरवाज़ा तो खोला, लेकिन बाजार में नहीं है निवेश की भूख
'ब्लूमबर्ग' की खबर है कि भारत के नए रिजर्व बैंक गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कम ब्याज दरों और आसान लोन नियमों के ज़रिये परियोजना वित्त पोषण के लिए रास्ता साफ़ किया है. फिर भी बड़े उद्योगपति कर्ज़ लेने से झिझक रहे हैं. निजी क्षेत्र की निवेश योजनाएं तीन साल के न्यूनतम स्तर पर हैं. बैंकों की औद्योगिक क्षेत्र में लोन हिस्सेदारी एक दशक में आधी हो गई है और अब यह घटकर सिर्फ 11% रह गई है. 1% से 1.25% तक लोन पर प्रोविजन की शर्त रखकर आरबीआई ने जोखिम कम किया है, लेकिन मांग फिर भी नहीं दिख रही. टाटा, रिलायंस और जेएसडब्ल्यू जैसी बड़ी कंपनियां या तो संकट में हैं या कानूनी अड़चनों से जूझ रही हैं. केवल अदाणी समूह अगले पांच साल में सालाना $15–20 बिलियन खर्च करने की योजना पर अडिग दिख रहा है. इसकी एक वजह सरकार की ओर से सड़क और जल परियोजनाओं का धीमा संचालन भी है, जिससे कांट्रैक्टर्स भी उधारी लेने से बच रहे हैं. अमेरिकी टैरिफ नीति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, जो कि 9 जुलाई के बाद नई शर्तें सामने आ सकती हैं.
विश्लेषण
आकार पटेल | 75 साल पहले जब आरएसएस ने तय किया राजनीतिक दल बनाने की जरूरत है
हमने कुछ दिन पहले आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ मनाई. एक और वर्षगांठ, इस बार 75वीं, अपेक्षाकृत अनदेखी रह गई. यह भारतीय जनसंघ के गठन की थी, और इसके अस्तित्व में आने के कारणों की.
5 मई 1950 को, एसपी मुखर्जी ने उस पार्टी के एजेंडे की घोषणा की, जो बनाई जा रही थी, जिसका आठ सूत्रीय कार्यक्रम था. ये थे: 1) संयुक्त भारत; 2) पाकिस्तान के प्रति तुष्टिकरण के बजाय पारस्परिकता; 3) एक स्वतंत्र विदेश नीति; 4) शरणार्थियों का पुनर्वास; 5) वस्तुओं का बढ़ा हुआ उत्पादन और उद्योग का विकेंद्रीकरण; 6) एकल भारतीय संस्कृति का विकास; 7) सभी नागरिकों को समान अधिकार और पिछड़े वर्गों का सुधार; 8) पश्चिम बंगाल और बिहार की सीमाओं का पुनर्समायोजन.
मुखर्जी के अलावा, जो हिंदू महासभा से थे, जनसंघ की संरचना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आई, और आज भी पार्टी निश्चित रूप से मातृ संस्था की एक सहायक संस्था बनी हुई है. आरएसएस राजनीति में क्यों उतरा? कहानी दिलचस्प है. जनसंघ का आधिकारिक इतिहास, जो भाजपा द्वारा कुछ साल पहले प्रकाशित किया गया था, इसे इस तरह बताता है.
दिसंबर 1947 में दिल्ली में आरएसएस रैली ने बड़ी भीड़ खींची और हिंदू राजकुमारों, व्यापारियों और अन्य हिंदू संगठनों के नेताओं को भी आकर्षित किया. आरएसएस के अनुसार, यह लोकप्रियता कुछ ऐसी चीज थी जिसने कांग्रेस, विशेषकर नेहरू को चिंतित कर दिया. 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या ने कांग्रेस को आगे बढ़ने का अवसर दिया. उसने गांधी की हत्या के तीन दिन बाद 2 फरवरी को आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया. आरएसएस प्रमुख गोलवलकर को अहसास हो गया था कि गांधी की हत्या के विवरण सामने आने के बाद आरएसएस मुसीबत में पड़ जाएगा. उन्होंने तुरंत कार्रवाई की. हत्या के दिन, 30 जनवरी 1948 को, उन्होंने आरएसएस शाखाओं को तेरह दिनों के लिए गतिविधियां स्थगित करने के लिए तार भेजे. उसी दिन उन्होंने नेहरू, पटेल और देवदास गांधी को भी शोक संदेश के साथ तार भेजा: “इस क्रूर घातक हमले और महानतम व्यक्तित्व की दुखद हानि पर स्तब्ध.” अगले दिन उन्होंने फिर से नेहरू को पत्र लिखा जिसमें अपना सदमा व्यक्त किया और गोडसे को “किसी विचारहीन विकृत आत्मा” के रूप में संदर्भित किया, जिसने “पूज्य महात्माजी के जीवन का गोली से अचानक और भयानक अंत करने का जघन्य कृत्य किया था.” उन्होंने हत्या को अक्षम्य और राजद्रोह का कार्य बताया.
उस दिन उन्होंने पटेल को भी लिखा: “मेरा हृदय अत्यधिक पीड़ा से भरा है. इस अपराध को करने वाले व्यक्ति की निंदा करने के लिए शब्द खोजना कठिन है…” आरएसएस को गैरकानूनी घोषित करने वाली सरकारी अधिसूचना में कहा गया था: “आरएसएस के प्रकट लक्ष्य और उद्देश्य हिंदुओं की शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक भलाई को बढ़ावा देना और उनके बीच भाईचारे, प्रेम और सेवा की भावनाओं को बढ़ावा देना है… हालांकि, सरकार ने खेद के साथ देखा है कि व्यवहार में आरएसएस के सदस्य अपने प्रकट आदर्शों पर कायम नहीं रहे हैं. संघ के सदस्यों द्वारा अवांछनीय और यहां तक कि खतरनाक गतिविधियां की गई हैं (जिन्होंने) आगजनी, डकैती, लूटपाट और हत्या से जुड़ी हिंसक कार्रवाइयों में लिप्त होकर अवैध हथियार और गोला-बारूद एकत्र किया है. वे लोगों को आतंकवादी तरीकों का सहारा लेने और आग्नेयास्त्र एकत्र करने के लिए उकसाने वाले पर्चे वितरित करते पाए गए हैं… जिससे सरकार के लिए संघ से इसकी कॉर्पोरेट क्षमता में निपटना अनिवार्य हो गया है.” गोलवलकर को 3 फरवरी को 20,000 स्वयंसेवकों के साथ गिरफ्तार किया गया. आरएसएस का कहना है कि वह इस बात से स्तब्ध था कि कोई राजनीतिक पार्टी और कोई राजनीतिक नेता उसके पक्ष में बोला या बचाव में खड़ा नहीं हुआ. प्रतिबंध डेढ़ साल से कुछ कम समय तक रहा. आरएसएस से संविधान तैयार करने को कहे जाने के बाद इसे हटा लिया गया. यह लिखा गया और प्रस्तुत किया गया.
प्रतिबंध 11 जुलाई 1949 को हटा लिया गया. इसके तुरंत बाद, आरएसएस ने अपने मुख-पत्र ‘द ऑर्गनाइजर’ में राजनीति में प्रवेश पर बहस शुरू की. ऑर्गनाइजर ने केआर मलकानी सहित आरएसएस कार्यकर्ताओं के लेख प्रकाशित किए, जिन्होंने लिखा कि संघ को “न केवल अपनी रक्षा के लिए, बल्कि गैर-भारतीय और भारत विरोधी राजनीति को रोकने के लिए” और “राज्य मशीनरी के माध्यम से भारतीयता को आगे बढ़ाने के लिए” राजनीति में भाग लेना चाहिए. इन कारणों से, संघ को “पूरी नागरिकता की राष्ट्रीय सांस्कृतिक शिक्षा के लिए एक आश्रम के रूप में जारी रहना चाहिए, लेकिन इसे अपने आदर्शों को अधिक प्रभावी बनाने और इनकी शीघ्र प्राप्ति के लिए एक राजनीतिक शाखा विकसित करनी चाहिए.”
मलकानी ने कहा कि नई पार्टी “प्राचीन मूल्यों की पुनरुत्थानवादी होगी क्योंकि यह अपने लक्ष्यों में भविष्यवादी होगी” और इसे “विदेशी मूल्यों, दृष्टिकोण और तरीकों पर निर्भर न रहने” के लिए कहा जाएगा और “हिंदुस्तान में इस पुनर्गठन का सिद्धांत केवल हिंदुत्व हो सकता है.” आर्य समाज के आरएसएस कार्यकर्ता बलराज मधोक ने लिखा कि संघ को “देश की राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं के संबंध में देश को नेतृत्व देना चाहिए” क्योंकि यह “संघ के अस्तित्व के लिए ही महत्वपूर्ण था.”
मुखर्जी ने 19 अप्रैल 1950 को संसद में अपने बयान में कहा कि उन्होंने “बंगाल के विभाजन के पक्ष में जनमत बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी.” इसके हिस्से के रूप में उन्होंने “पूर्वी पाकिस्तान (बाद में, बांग्लादेश) के हिंदुओं को आश्वासन दिया कि यदि वे भविष्य की पाकिस्तान सरकार के हाथों पीड़ित होते हैं… तो स्वतंत्र भारत मूक दर्शक नहीं रहेगा.”
जैसा कि हम 2025 के भारत में अपने चारों ओर जो कुछ हो रहा है, उसे पढ़ते और आकलन करते हैं, 75 साल पहले के दृष्टिकोण से और उन घटनाओं के माध्यम से ऐसा करना शिक्षाप्रद है, जिन्होंने भाजपा के गठन का नेतृत्व किया जैसा कि हम इसे जानते हैं.
श्रीलंका ने 8 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया
'टेलिग्राफ' की रिपोर्ट है कि श्रीलंकाई नौसेना ने रविवार को आठ भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया और उनका ट्रॉलर जब्त कर लिया. इन पर द्वीप राष्ट्र के जलक्षेत्र में अवैध रूप से मछली पकड़ने का आरोप है. यह जानकारी एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई. गिरफ्तारी मन्नार के उत्तर में एक तलाशी अभियान के दौरान की गई. नौसेना की ओर से जारी बयान में कहा गया कि गिरफ्तार किए गए आठों मछुआरों और उनके ट्रॉलर को कानूनी कार्रवाई के लिए मन्नार के मत्स्य निरीक्षक कार्यालय को सौंपा जाएगा. भारत और श्रीलंका के मछुआरों को अक्सर गलती से एक-दूसरे के समुद्री क्षेत्र में प्रवेश करने पर गिरफ्तार किया जाता है. यह मुद्दा भारत और श्रीलंका के बीच एक संवेदनशील विषय रहा है. कई बार श्रीलंकाई नौसेना के जवानों द्वारा भारतीय मछुआरों पर गोली चलाने और उनकी नौकाएं जब्त करने की घटनाएं भी सामने आई हैं, जिनमें उन पर श्रीलंकाई समुद्री क्षेत्र में अवैध रूप से घुसने का आरोप लगाया गया. पाक जलसंधि, जो तमिलनाडु को श्रीलंका से अलग करती है, दोनों देशों के मछुआरों के लिए मछली पकड़ने का एक समृद्ध क्षेत्र है और यही इलाका अक्सर विवाद का कारण बनता है.
ईरान के नुकसान और यूरेनियम के बारे में अनुमान ज्यादा हैं, तसदीक कम
22 जून को अमेरिका और इज़राइल ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों – फोर्दो, नतांज़ और इस्फहान पर भारी बमबारी की. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि ये ठिकाने "मिटा दिए गए" हैं. हालांकि 'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि अब संयुक्त राष्ट्र की परमाणु एजेंसी (IAEA) यह तय नहीं कर पा रही है कि ईरान का समृद्ध यूरेनियम नष्ट हुआ है, मलबे में दबा है या कहीं छुपा दिया गया है. IAEA के पूर्व प्रमुख निरीक्षक ओली हेनोनेन का कहना है कि बचे हुए यूरेनियम की तलाश "बहुत लंबी और थकाऊ" होगी. मलबे के नीचे, विस्फोट से बिखरे या जानबूझकर छुपाए गए अंशों को ढूंढना बेहद कठिन होगा.
IAEA प्रमुख ग्रोसी ने कहा कि ईरान ने 13 जून (इज़राइली हमले से एक दिन पहले) उन्हें बताया था कि "सामग्री को सुरक्षित करने के उपाय किए जा रहे हैं" - यानी कुछ यूरेनियम शायद पहले ही हटा लिया गया हो. सैटेलाइट तस्वीरों में हमले से पहले ट्रकों की कतारें दिखीं, जो संकेत देती हैं कि कुछ यूरेनियम गुप्त स्थानों पर ले जाया गया. बता दें कि IAEA के निरीक्षकों को हमले के बाद से ईरान में प्रवेश नहीं मिला है. ईरान की संसद ने IAEA से सहयोग न करने का प्रस्ताव पास किया है. विशेषज्ञों का मानना है कि “अगर ईरान ने सच्चाई नहीं बताई, तो कभी पता नहीं चलेगा कि वह यूरेनियम कहां गया.” अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रोसी ने कहा है कि ईरान संभवतः "कुछ ही महीनों" में हथियार-स्तर के संवर्धित यूरेनियम का उत्पादन करने में सक्षम हो सकता है.
क्या दांव पर है?
ईरान के पास 400 किलो से अधिक 60% शुद्धता वाला यूरेनियम था, जो अगर 90% तक समृद्ध किया जाए तो 9 परमाणु बमों के लिए पर्याप्त है.
फोर्दो जो सबसे गहरा भूमिगत केंद्र है, उसे बड़े बमों से निशाना बनाया गया. अंदर कितना नुकसान हुआ, साफ नहीं है.
नतांज एक छोटा संयंत्र था, जो अमेरिकी हमले में पूरी तरह नष्ट हो गया.
इसफाहन, जहां संवेदनशील यूरेनियम भंडारण था, वहां सुरंगों के प्रवेश द्वार को नुकसान हुआ.
अगर ईरान ने जानबूझकर यूरेनियम छुपाया है, तो IAEA को वर्षों लग सकते हैं इसकी पुष्टि में.
IAEA केवल घोषित ठिकानों की जांच कर सकती है, गुप्त ठिकानों की नहीं.
ईरान के पास अज्ञात स्थानों पर अतिरिक्त सेंट्रीफ्यूज (यूरेनियम समृद्ध करने वाली मशीनें) हो सकती हैं.
रूस के हमले में यूक्रेनी एफ-16 क्रैश, ज़ेलेंस्की ने अमेरिका से एयर डिफेंस मांगा
यूक्रेन पर रूस का एक बड़ा हवाई हमला हुआ जिसमें यूक्रेनी वायुसेना का एक F-16 लड़ाकू विमान क्रैश हो गया. यूक्रेनी वायुसेना के अनुसार, पायलट ने सात दुश्मन टारगेट मार गिराए, लेकिन आख़िरी टारगेट को गिराते वक्त विमान क्षतिग्रस्त हो गया और वह क्रैश हो गया. पायलट को ईजेक्ट करने का समय नहीं मिला, जिससे उसकी भी इस हादसे में मौत हो गई है. यह हमला शनिवार रात हुआ जिसमें रूस ने 500 से ज़्यादा ड्रोन और मिसाइलें दागीं. यूक्रेन ने बताया कि यह उनका तीसरा F-16 नुकसान है. राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने अमेरिका और पश्चिमी देशों से एयर डिफेंस सिस्टम की मदद मांगी है. हमले में यूक्रेन के कई शहरों को नुकसान हुआ है और 12 लोग घायल हुए हैं. राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने हमले के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा - "मास्को तब तक नहीं रुकेगा, जब तक उसके पास इतनी ताक़त है कि वह ऐसे हमले कर सके. यूक्रेन को अपनी एयर डिफेंस मजबूत करनी होगी. यही लोगों की जान बचा सकता है." उन्होंने अमेरिका से Patriot मिसाइल सिस्टम की मांग दोहराई और कहा कि यूक्रेन इसे खरीदने को तैयार है. उन्होंने अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों से राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने की अपील की है.
सैंडल स्कैंडल: प्राडा के ब्रांड पर कोल्हापुरी चप्पल की छाप
इटली के फैशन रनवे पर एक जोड़ी सैंडल ने भारत में हलचल मचा दी है. लक्ज़री ब्रांड प्राडा ने हाल ही में मिलान फैशन शो में एक नई चमड़े की सैंडल डिज़ाइन पेश की, जो भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों से मेल खाती है. 'रॉयटर्स' के लिए ध्वनि पंड्या, अर्पण चतुर्वेदी और एलिसा अंजोलिन की रिपोर्ट है कि इसके बाद भारतीय कारीगरों और नेताओं ने यह कहते हुए विरोध दर्ज किया कि इस डिज़ाइन की भारतीय जड़ों को कोई श्रेय नहीं दिया गया. असल में कोल्हापुर, महाराष्ट्र की पारंपरिक चप्पलें, जिनकी डिज़ाइन की जड़ें 12वीं सदी तक जाती हैं, की हूबहू झलक प्राडा की नई सैंडलों में दिख रही थी. विवाद बढ़ने के बाद आखिरकार अब प्राडा के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी प्रमुख और ब्रांड के मालिकों के बेटे लोरेंजो बर्टेली ने शुक्रवार को महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स को एक पत्र लिखकर इस "सैंडल स्कैंडल" पर सफाई दी और भारतीय विरासत को मान्यता दी. लोरेंजो बर्टेली ने लिखा- "हम मानते हैं कि ये सैंडल पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित फुटवियर से प्रेरित हैं, जिनकी विरासत सदियों पुरानी है". यह पत्र महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से भेजी गई शिकायत के जवाब में लिखा गया था, जो 3,000 कोल्हापुरी कारीगरों का प्रतिनिधित्व करता है.
प्राडा ने कहा कि सैंडल अभी डिज़ाइन के प्रारंभिक चरण में हैं और यह निश्चित नहीं है कि इन्हें बाज़ार में उतारा जाएगा. फिर भी कंपनी ने भारतीय कारीगरों से सार्थक संवाद के लिए भविष्य में बैठकें आयोजित करने की बात कही है. प्राडा की प्रवक्ता ने भी एक बयान में इस डिज़ाइन की प्रेरणा को भारत से बताया और कहा कि ब्रांड ने हमेशा हस्तकला, विरासत और डिज़ाइन परंपराओं का सम्मान किया है.
हालांकि, भारत में अधिकांश लोगों के लिए प्राडा के उत्पाद पहुंच से बाहर हैं. जहां एक तरफ प्राडा की पुरुषों की चमड़े की सैंडल की कीमत $844 (लगभग ₹70,000) से शुरू होती है, वहीं कोल्हापुरी चप्पलें सड़क किनारे दुकानों में ₹1,000 (लगभग $12) में मिल जाती हैं. हालांकि, भारत का लक्ज़री बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है. अमीर तबका लुई विटन के बैग, लैम्बॉर्गिनी कारें और महंगे घड़ियां व घर खरीद रहा है.
वहीं दूसरी ओर, भारतीय शिल्प और संस्कृति भी अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों की डिज़ाइनों में दिखने लगी है. ज्वेलरी ब्रांड बुलगारी ने एक $16,000 की मंगलसूत्र डिज़ाइन पेश की थी, जो पारंपरिक भारतीय विवाहित महिलाओं की पहचान है.
| चलते-चलते
दुनिया की सबसे पुरानी जीवित नाट्य परंपरा कू्डीयाट्टम में हुआ शूद्रक के ‘मृच्छकटिकम्’ का मंचन
उज्जयिनी की गलियों में एक चर्चित गणिका वसंतसेना का राजा के अभद्र साले और उसके गुंडों द्वारा पीछा किया जा रहा है. वह एक सद्गुणी, किंतु दरिद्र और बहुपत्नीधारी ब्राह्मण चारूदत्त के घर शरण लेती है, जिससे वह प्रेम करती है. वह अगली भेंट सुनिश्चित करने के लिए अपना आभूषण एक बालक की मिट्टी की गाड़ी में रख छोड़ती है, लेकिन उसकी दासी का प्रेमी उस गहनों को चुरा लेता है और चारूदत्त पर चोरी का झूठा आरोप लगता है.
घटनाक्रम में कई नाटकीय मोड़ आते हैं. राजा का अपदस्थ होना, वसंतसेना का मरा समझा जाना लेकिन जीवित निकला जाना, चारूदत्त को फांसी से ऐन मौके पर बचाया जाना और इस बीच तूफ़ानी रातें व हाथी युद्ध भी दिखाए गए हैं.
‘स्क्रोल’ के लिए मालिनी नायर की रिपोर्ट है कि बेंगलुरु के रंगशंकरा थिएटर में अगले सप्ताह शूद्रक के प्रसिद्ध संस्कृत नाटक मृच्छकटिकम् (छोटी मिट्टी की गाड़ी) का मंचन कू्डीयाट्टम शैली में किया जाएगा. यह इस नाटक का कू्डीयाट्टम में पहला प्रयोग है. इसे विद्वान और नाट्य-निर्देशक जी. वेणु ने निर्देशित किया है. दस अंकों वाले इस नाटक को करीब दो घंटे की प्रस्तुति में समेटा गया है.
पिछले दो हज़ार वर्षों से शूद्रक का एक्शन से भरपूर संस्कृत नाटक ‘मृच्छकटिक’ (अर्थात ‘छोटी मिट्टी की गाड़ी’) प्रेम, षड्यंत्र, अपराध, व्यंग्य, जाति और वर्गगत असमानताओं, राजनीति और मानवीय दुर्बलताओं से बुनी गई अपनी कथावस्तु के कारण पाठकों और रंगप्रेमियों को समान रूप से आकर्षित करता आया है. यह नाटक अक्सर शेक्सपीयर की भव्यता और मोलीयर की तीक्ष्ण व्यंग्य भावना का संयोजन कहा जाता है और अपने प्राचीन कालखंड के बावजूद इसकी लोकप्रियता आज भी बनी हुई है.
यह पारंपरिक संस्कृत नाटकों जैसा नहीं है जिसमें देवी-देवता, अप्सराएं, मिथक और राजसी चरित्र होते हैं. इसके पात्र जुआरी, ठग, कामुक, मद्यप, लालची शासक, कपटी प्रेमी, भिक्षु और पुरोहित हैं. यह न तो किसी वन में घटित होता है, न राजमहल में और न ही किसी स्वर्गलोक में — बल्कि एक प्राचीन भारतीय नगर की हलचल भरी सड़कों और गलियों में रचा-बसा है. और उस समय की सामाजिक यथार्थता के अनुरूप, केवल पांच अभिजात पात्र संस्कृत बोलते हैं; बाक़ी सभी पात्र उस समय की उपभाषाओं जैसे प्राकृत में संवाद करते हैं.
मृच्छकटिक के पात्र न तो पूर्णतः सज्जन हैं और न ही खलनायक — वे श्वेत-श्याम खाँचों में नहीं बँधते. जैसा कि संस्कृत विद्वान विलियम राइडर ने 1905 में अपने अंग्रेज़ी अनुवाद की भूमिका में लिखा, शूद्रक के पात्र “विश्वनागरिक” हैं — जिनका दृष्टिकोण स्थानीय नहीं, बल्कि सार्वभौमिक है.
जब से लगभग दो सौ साल पहले ओरिएंटलिस्ट विद्वानों ने इस नाटक की खोज की, तब से वसंतसेना और चारूदत्त की इस कथा ने पूरी दुनिया की यात्रा की है और इसे कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित किया गया है. यह एक लोकप्रिय पटकथा रही है — इसे देसी और पश्चिमी ओपेरा में रूपांतरित किया गया है, और कई भाषाओं में फिल्मों के रूप में प्रस्तुत किया गया. इनमें सबसे प्रसिद्ध रूपांतरण गिरीश कर्नाड की भव्य फिल्म ‘उत्सव’ है.
कू्डीयाट्टम कलाकार कपिला वेणु (वसंतसेना) कहती हैं कि यह भूमिका उन्हें इसलिए मुक्त करती है, क्योंकि वसंतसेना पारंपरिक स्त्री छवि में बंधी नहीं है. वह समृद्ध है, बुद्धिमती है और उसकी अपनी इच्छा शक्ति है. "जब मैं सीता या शकुंतला का अभिनय करती हूं तो मुझे ‘लज्जा’ दिखानी पड़ती है, लेकिन वसंतसेना के साथ मैं हर समय सिर ऊंचा रख सकती हूं.”
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.