30/07/2025: बात सिंदूर की, कोसा मोदी ने कांग्रेस को | राहुल ने ट्रम्प को झूठा कहने के लिए मोदी को ललकारा | पहलगाम के हमलावर | भारत चीन की तरफ जाए या ट्रम्प की | असम का बेदखली अभियान |
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
मोदी के भाषण में पाकिस्तान 40, कांग्रेस 21, नेहरू 9, सिंदूर 16 बार. 29 बार वाले ट्रम्प के बारे में 0. चीन एक बार कांग्रेस को कोसने के लिए.
राहुल ने कहा, मोदी में हिम्मत है तो ट्रम्प को झूठा कह कर बताएं, 'आत्मसमर्पण' और 'छवि' के लिए राष्ट्रीय हित की बलि देने का आरोप
पहलगाम के दोषी तीनों पाकिस्तानी आतंकी मुठभेड़ में मारे गए : अमित शाह
ओवैसी का सवाल: केवल 29 फाइटर स्क्वाड्रन क्यों?
चीन ने एक इंच भी भारतीय क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया: रिजिजू
जब यह मालूम था, हजारों पर्यटक आते हैं, तो कोई सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं था : प्रियंका
पहलगाम के बाद आगे का रास्ता
भारत चीन की तरफ जा रहा है या ट्रम्प के?
भारत-चीन तनाव में कमी, पर पेशेवर वीजा पर अनिश्चितता
प्रतीक सिन्हा के मुताबिक बीजेपी की आईटी सेल सबसे संगठित और प्रभावी
राज्य विधेयकों पर देरी का मामला: सुप्रीम कोर्ट में अब समयसीमा तय करने के अधिकार पर बहस
बिहार वोटर लिस्ट मामला: 'मृत घोषित' लोग जीवित निकले तो तुरंत दखल देगा सुप्रीम कोर्ट
विवादों के बीच मणिपुर में मतदाता सूची संशोधन की तैयारी
असम में बड़े बेदखली अभियान में 2,000 से अधिक परिवार निशाने पर
अडाणी ने ऑस्ट्रेलिया में ₹1.83 लाख करोड़ देने का वादा तो किया, लेकिन दिया नहीं
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दक्षिण अफ्रीका ने भारत को और चीते भेजने पर रोक लगाई
पहली बार: माइक्रोसॉफ्ट ने रूस समर्थित भारतीय रिफाइनर पर लगाई पाबंदी
अधिकारियों और धर्म पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार सबसे ज्यादा निशाने पर
यूक्रेन पर रातभर हमलों में 25 की मौत, ट्रम्प ने रूस को दी युद्धविराम के लिए नई समयसीमा
£150 में खरीदी गई साल्वाडोर डाली की पेंटिंग की कीमत अब ₹30 लाख तक
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस
मोदी के भाषण में पाकिस्तान 40, कांग्रेस 21, नेहरू 9, सिंदूर 16 बार. 29 बार वाले ट्रम्प के बारे में 0. चीन एक बार कांग्रेस को कोसने के लिए.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को जब संसद में ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बात की, तो अपनी स्टाइल में धूम धड़ाका करने की बहुत कोशिश की, पर ख़ासा पनीला भाषण दिया. इसमें पाकिस्तान का जिक्र 40 बार किया, फिर कांग्रेस को पानी पी पीकर 21 बार कोसा, नेहरू को 9 बार. सिंदूर का नाम 16 बार लिया. और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का जिक्र शून्य बार किया, जो अब तक 29 बार कह चुके हैं कि भारत और पाकिस्तान जैसी परमाणु शक्तियों के बीच जंग उन्होंने रुकवाई, और जिनके लिए भारत के प्रधानमंत्री होते हुए मोदी चुनाव प्रचार कर चुके थे. आपको उनका नारा याद ही होगा, अबकी बार ट्रम्प सरकार! चीन शब्द का इस्तेमाल एक बार हुआ, वह भी कांग्रेस को कोसने के लिए. यह 'अक्साई चीन' के संदर्भ में आया. भाषण में शोर ज्यादा था, रौशनी कम.
जिन सवालों के जवाबों की मोदी से उम्मीद की जा सकती है, पर अपेक्षा नहीं थी कि वे देंगे, वे उन्होंने नही दिये.
उन्होंने नही बताया कि पहलगाम हमले करने वाले आतंकवादी कैसे आये, कौन थे, कैसे गये?
उन्होंने नहीं बताया कि इस सुरक्षा चूक और सुरक्षा खामी का जिम्मेदार कौन है? और उन पर क्या कार्रवाई की गई?
उन्होंने नहीं बताया कि कश्मीर कैसे सामान्य हो गया.
ये भी नहीं बताया कि जब पर्यटकों के सुरक्षा बंदोबस्त नहीं थे, तो वे वहां कैसे जाने दिये गये.
उन्होंने नही बताया कि भारत के कितने जंगी जहाज गिरे? कितने राफाल थे? कितना नुक्सान हुआ?
मोदी ने नहीं बताया कि चीनी जहाजों के स्टॉक सिंदूर के बाद क्यों बढ़े और भारत द्वारा इस्तेमाल किये गये राफेल के स्टॉक क्यों गिरे.
उन्होंने उन सवालों के जवाब नहीं दिये जो विपक्ष और विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार उठा रहे हैं.
वे कह रहे हैं कि उन्होंने अपना लक्ष्य शत प्रतिशत हासिल कर लिया.
न उन्होंने इस संघर्ष में चीन की भूमिका की बात की, न ट्रम्प की.
उन्होंने नहीं बताया कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर को इसके बाद क्यों तरक्की मिली, और क्यों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उन्हें दो घंटे लम्बे लंच पर बुलाकर युद्ध रोकने के लिए धन्यवाद दिया, जैसा कि राहुल गांधी ने अपने ताबड़तोड़ भाषण में कहा.
बाकी उन्होंने हालिया सैन्य कार्रवाई, जिसे 'ऑपरेशन सिंदूर' कोडनेम दिया गया है, को भारत के लिए एक ऐतिहासिक जीत और राष्ट्र की एकता एवं सैन्य शक्ति को एक श्रद्धांजलि बताया. उन्होंने कहा कि संसद का यह सत्र 140 करोड़ भारतीयों के लिए "विजय का उत्सव" है—एक ऐसी जीत जो "सिंदूर की सौगंध" को पूरा करने और आतंकी हेडक्वार्टर को नेस्तनाबूद करने का जश्न मनाती है. प्रधानमंत्री के भाषण में विपक्ष एवं पाकिस्तान दोनों को एक कड़ा संदेश दिया गया.
उन्होंने भांति भांति तरीकों से ये बताने की कोशिश की पाकिस्तान के सारे आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने का दावा किया. और रहा सहा समय यह बताने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री के कदमों पर सवाल करने वाला विपक्ष दरअसल भारत नहीं पाकिस्तान की तरफ है. हालांकि भारत की सामरिक टैक्नोलॉजी की उन्होंने भूरि भूरि प्रशंसा की. अपना भाषण समाप्त करते हुए, प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि "ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है. ऑपरेशन सिंदूर जारी है". प्रधानमंत्री के संबोधन का एक प्रमुख पहलू ऑपरेशन की सफलता में आत्मनिर्भरता की भूमिका थी. उन्होंने कहा कि पहली बार दुनिया ने 'आत्मनिर्भर भारत' की ताकत देखी, क्योंकि 'मेड इन इंडिया' ड्रोन और मिसाइलों ने पाकिस्तान के हथियारों की कमजोरियों को उजागर कर दिया. उन्होंने थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच सहज तालमेल की प्रशंसा की, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इसने पाकिस्तान का मनोबल तोड़ दिया. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि 9 मई को, पाकिस्तान ने लगभग 1,000 मिसाइलों और सशस्त्र ड्रोनों से एक बड़ा हमला किया, जिन्हें भारत की उन्नत वायु रक्षा प्रणाली द्वारा हवा में ही बेअसर कर दिया गया, जो पिछले एक दशक में राष्ट्र की तैयारी का प्रमाण है. उन्होंने बताया कि कैसे, अंतिम भारतीय जवाबी हमले के बाद, पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत को फोन करके हमले रोकने की गुहार लगाई थी.
लेकिन, मोदी ने अपने जवाब में न तो ट्रम्प का नाम लिया और न ही यह कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति झूठ बोल रहे हैं. बल्कि, सीधा उत्तर देने के बजाय ट्रम्प के दावे का “सामान्यीकरण” करते हुए कहा कि-“दुनिया के किसी भी नेता ने पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई रोकने के लिए नहीं कहा. किसी भी देश ने भारत को अपनी सुरक्षा में कार्रवाई से नहीं रोका. संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 देशों में से केवल तीन देशों ने पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया. मोदी ने बताया, “9 मई की मध्य रात्रि अमेरिका के उप राष्ट्रपति (जेडी वांस) ने मुझसे बात करने का प्रयास किया, वे घंटे भर से कोशिश कर रहे थे, लेकिन सेना के साथ मेरी बैठक चल रही थी. बैठक के बाद मैंने उपराष्ट्रपति को फोन किया. उन्होंने मुझसे कहा कि पाकिस्तान बहुत बड़ा हमला करने वाला है. मेरा जवाब था- यदि पाकिस्तान का यह इरादा है तो उसे बहुत महंगा पड़ेगा. पाकिस्तान हमला करेगा तो हम बड़ा हमला करके जवाब देंगे. गोली के उत्तर में गोले.” मोदी ने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है और पाकिस्तान ने अगर दुस्साहस की कल्पना की तो उसे करारा जवाब दिया जाएगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोलते हुए उन पर सशस्त्र बलों पर सवाल उठाकर और हमलों का सबूत मांगकर देश का मनोबल गिराने का आरोप लगाया. उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा को दोहरा रहा है. उन्होंने इतिहास का जिक्र करते हुए पिछली कांग्रेस सरकारों, विशेषकर प्रधानमंत्री नेहरू के अधीन, को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी बड़ी चूकों के लिए दोषी ठहराया. उन्होंने अक्साई चिन के नुकसान, 1971 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने का मौका गंवाने और सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर को एक "बहुत बड़ा धोखा" करार दिया. उन्होंने कहा कि इस संधि ने भारत की नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को दे दिया, यह एक ऐसा निर्णय है जिसे अब निलंबित कर दिया गया है क्योंकि "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते".
उन्होंने यह साफ करने की जरूरत नहीं समझी कि जो वह सिंधु के बारे में कह रहे हैं, वही समीकरण ब्रह्मपुत्र को लेकर चीन के साथ है, जो ऐन भारत के सिरे पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बना रहा है.
वीर रस से भरे भाषण में तथ्यों और जरूरी सवालों के जवाबों की कमी रही. जिसकी अब देश को अब आदत हो चुकी लगती है.
राहुल ने कहा, मोदी में हिम्मत है तो ट्रम्प को झूठा कह कर बताएं, 'आत्मसमर्पण' और 'छवि' के लिए राष्ट्रीय हित की बलि देने का आरोप
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में अपने एक जोरदार भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर तीखा हमला बोला. उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले और विशेष रूप से 'ऑपरेशन सिंदूर' को संभालने के तरीके को लेकर सरकार को घेरा. संसद से रिपोर्ट के अनुसार, गांधी ने सरकार पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सैन्य रणनीति से समझौता करने और प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत छवि को राष्ट्रीय सुरक्षा से ऊपर रखने का आरोप लगाया.
अपना भाषण "क्रूर, हृदयहीन हमले" की निंदा के साथ शुरू करते हुए, जिसे "पाकिस्तानी राज्य" द्वारा आयोजित किया गया था, गांधी ने शहीदों के परिवारों से मिलने के भावुक क्षणों को साझा किया. इसके बाद उन्होंने 1971 के युद्ध और हालिया "ऑपरेशन सिंदूर" के बीच एक स्पष्ट अंतर बताया. उन्होंने तर्क दिया कि किसी भी सैन्य कार्रवाई को सफल होने के लिए दो चीजों की आवश्यकता होती है: पूर्ण राजनीतिक इच्छाशक्ति और सशस्त्र बलों के लिए अभियान की पूरी स्वतंत्रता, जिन्हें उन्होंने "टाइगर" कहा. 1971 के युद्ध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी सातवें बेड़े के सामने भी अटूट राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई और जनरल मानेकशॉ को पूरी स्वतंत्रता और समय दिया, जिसके परिणामस्वरूप एक ऐतिहासिक जीत हुई.
इसके विपरीत, उन्होंने आरोप लगाया कि "ऑपरेशन सिंदूर" तत्काल आत्मसमर्पण की कहानी थी. रक्षा मंत्री के बयान का हवाला देते हुए, गांधी ने सरकार की कार्रवाइयों पर गंभीर सवाल उठाए. गांधी ने कहा, "रात 1:35 बजे, आपने पाकिस्तान को फोन किया और उन्हें बताया कि हमने गैर-सैन्य ठिकानों पर हमला किया है और हम तनाव नहीं बढ़ाना चाहते." "आपने सीधे पाकिस्तान को बता दिया कि आपके पास लड़ने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है ही नहीं. आपने उन्हें बताया कि हमने आपको एक थप्पड़ मारा है, लेकिन हम आपको दूसरा थप्पड़ नहीं मारेंगे. यह 30 मिनट में तत्काल आत्मसमर्पण था."
गांधी ने सरकार के सैन्य निर्देशों पर और सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि भारतीय वायु सेना को पाकिस्तान में हाथ बांधकर भेज दिया गया. उन्होंने दावा किया कि सरकार ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को बताया कि वह उनके सैन्य बुनियादी ढांचे, जिसमें वायु रक्षा प्रणाली भी शामिल है, पर हमला नहीं करेगी. उन्होंने कहा, "आपने हमारे पायलटों से कहा कि जाओ और पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली का सामना करो, जबकि उन्हें उसे बेअसर करने की अनुमति नहीं थी." उन्होंने दावा किया कि राजनीतिक नेतृत्व द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध के कारण भारतीय विमानों का नुकसान हुआ. उन्होंने प्रधानमंत्री के साहस को सीधे तौर पर चुनौती दी और उनसे बार-बार पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को युद्धविराम कराने के उनके दावों के लिए सार्वजनिक रूप से "झूठा" कहने के लिए कहा. गांधी ने चुनौती दी, "अगर उनमें इंदिरा गांधी जैसा साहस है, तो वे यहां खड़े होकर कहें कि डोनाल्ड ट्रम्प झूठे हैं." “यदि इंदिरा गांधी के मुकाबले 50 प्रतिशत भी दम है तो प्रधानमंत्री यहां सदन में बोल दें कि ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं. कहें कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारा एक भी फाइटर जेट नहीं गिरा”, राहुल ने चुनौती के लहजे में कहा.
कांग्रेस नेता ने सरकार की विदेश नीति को भी ध्वस्त कर दिया और पाकिस्तान को अलग-थलग करने के उसके दावों को विफल बताया. उन्होंने "नए सामान्य" (new normal) पर सवाल उठाते हुए कहा कि पहलगाम हमले के बाद किसी भी एक देश ने नाम लेकर पाकिस्तान की निंदा नहीं की, केवल आतंकवाद की सामान्य रूप से निंदा की. उन्होंने पहलगाम हमले के कथित मास्टरमाइंड, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मुनीर के अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ दोपहर के भोजन करने की कूटनीतिक शर्मिंदगी पर प्रकाश डाला. गांधी ने एक गंभीर रणनीतिक चिंता भी जताई, जिसमें कहा गया कि भारत अब दो-मोर्चे वाले युद्ध का नहीं, बल्कि एक "एकीकृत मोर्चे" का सामना कर रहा है, जहां चीन और पाकिस्तान सैन्य और तकनीकी रूप से एक हो गए हैं. उन्होंने कहा, "सरकार ने सोचा कि वे पाकिस्तान से लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें अचानक एहसास हुआ कि वे चीन और पाकिस्तान से लड़ रहे हैं," जो युद्धक्षेत्र की महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर रहे थे.
इसके पहले राहुल गांधी ने कहा था कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हमें यह तो बताया कि दुनिया के सभी देशों ने आतंकवाद की निंदा की, मगर यह नहीं बताया कि पहलगाम के बाद किसी भी देश ने पाकिस्तान की निंदा क्यों नहीं की, इसका मतलब है कि दुनिया हमारी तुलना पाकिस्तान से कर रही है. हमारे रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री कह रहे हैं कि हमने पाकिस्तान को सबक सिखा दिया है.
राहुल ने कहा कि पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकवाद का मास्टरमाइंड जनरल मुनीर ट्रम्प के साथ लंच कर रहा है. वह वहां बैठा है, जहां हमारे प्रधानमंत्री नहीं जा सकते. सारे प्रोटोकॉल तोड़कर अमेरिकी राष्ट्रपति उस व्यक्ति को लंच पर आमंत्रित कर रहा है, जो भारत में आतंकवाद का मास्टरमाइंड है. और हमारे प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं कहा. “प्रधानमंत्री ने नहीं बोला कि मिस्टर ट्रम्प, आपकी हिम्मत कैसे हुई उसे अपने ऑफिस आमंत्रित करने की,” मेज ठोंकते हुए राहुल ने कहा. “इतना ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने बयान में बताया कि मैंने मुनीर को युद्ध में आगे नहीं बढ़ने और इसे ख़त्म करने के लिए धन्यवाद देने हेतु लंच पर आमंत्रित किया था. किस बात का धन्यवाद? और ऐसे व्यक्ति (जनरल मुनीर) का धन्यवाद, जिसने पहलगाम को अंजाम दिया, जो भारत में आतंकवाद का मास्टरमाइंड है. उसे अमेरिका द्वारा खाने पर बुलाया जा रहा है. यह आज का न्यू नॉर्मल है,” राहुल ने जोड़ा. उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने पूरी की पूरी शक्ति आतंकवादियों के हाथ में दे दी है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर जारी है और सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान ने हरकत की तो युद्ध हो जाएगा. यह आज की हकीकत है.
राहुल ने कहा कि जब डीजीएमओ स्तर की बातचीत हो रही थी, तब सामने आया कि पाकिस्तान को चीन से लाइव डेटा मिल रहा था. लेकिन, कल (सोमवार) की पूरी बहस में रक्षा मंत्री ने एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया. चीन और पाकिस्तान का सैन्य फ्यूजन, बहुत खतरनाक हो सकता है. हमें ऐसा पीएम नहीं चाहिए जिसके अंदर सेना का उसी तरह इस्तेमाल करने का साहस न हो, जैसा किया जाना चाहिए. हमें ऐसा पीएम चाहिए, जो सेना और वायु सेना को आजादी दे, जैसा इंदिरा गांधी ने किया था. उन्होंने कहा कि देश प्रधानमंत्री की इमेज, उनकी राजनीति और जनसंपर्क की कवायद से कहीं ऊपर है.
अपने समापन भाषण में, गांधी ने प्रधानमंत्री पर अपनी छवि बचाने के लिए सशस्त्र बलों का एक उपकरण के रूप में उपयोग करने का आरोप लगाया. उन्होंने आरोप लगाया, "इस अभ्यास का लक्ष्य प्रधानमंत्री की छवि को बचाना था, क्योंकि पहलगाम के लोगों का खून उनके हाथों पर है." उन्होंने प्रधानमंत्री से यह समझने का आग्रह किया कि राष्ट्र और सशस्त्र बल उनकी व्यक्तिगत छवि, राजनीति और पीआर से ऊपर हैं. उन्होंने अंत में कहा, "अपने छोटे राजनीतिक लाभ के लिए सशस्त्र बलों और राष्ट्रीय हित का बलिदान न करें."
पहलगाम के दोषी तीनों पाकिस्तानी आतंकी मुठभेड़ में मारे गए : अमित शाह
इस बीच, गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया कि तीन पाकिस्तानी आतंकवादी, जो 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले में शामिल थे, सोमवार को श्रीनगर के पास डल झील क्षेत्र के दाछिगाम में मारे गए. इन आतंकियों को सुरक्षाबलों ने लगभग दो महीने चले “महादेव” ऑपरेशन के तहत ढूंढ निकाला और मुठभेड़ में मार गिराया. अमित शाह ने बताया कि ये तीनों, सुलैमान (लश्कर कमांडर), अफगान और जिब्रान, वही आतंकवादी थे, जिन्होंने बैसरन घाटी में 25 पर्यटकों और एक घोड़े वाले की गोली मारकर हत्या की थी. इनकी पहचान फॉरेंसिक जांच और प्रत्यक्षदर्शियों से कराई गई. उनके पास से बरामद हथियारों की बैलिस्टिक जांच भी हुई, जिससे यह पुष्टि हो गई कि इन्हीं हथियारों से पहलगाम में निर्दोष नागरिकों की हत्या की गई थी. उन्होंने कहा कि सोमवार रात को तीन आतंकवादियों से बरामद की गई राइफलों की जांच चंडीगढ़ फोरेंसिक लैब में करवाई गई, और मंगलवार सुबह 4 बजे रिपोर्ट पॉजिटिव आई.
शाह ने कहा कि आतंकवादियों से दो पाकिस्तानी वोटर आईडी और पाकिस्तान में बने चॉकलेट के पैकेट बरामद हुए हैं. उन्होंने यह भी बताया कि आतंकवादियों के पास जो हथियार थे, वे “पश्चिमी पड़ोसी” से आए थे. शाह ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 1,055 लोगों से 3,000 घंटे तक पूछताछ की है, जिसकी रिकॉर्डिंग की गई है.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने मंगलवार को श्रीनगर में तीन आतंकियों की मुठभेड़ में मौत की जांच शुरू कर दी है. इनमें पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड सुलेमान उर्फ आसिफ भी शामिल है. एनआईए की टीम ने श्रीनगर पुलिस नियंत्रण कक्ष (PCR) पहुंचकर शवों की पहचान की. सोमवार को सेना के पैरा कमांडोज़ ने श्रीनगर के हरवन इलाके के मुलनार में मुठभेड़ में तीनों आतंकियों को ढेर किया. इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन महादेव' नाम दिया गया था. आतंकियों की लोकेशन एक सैटेलाइट फोन सिग्नल से ट्रेस हुई थी.
ओवैसी का सवाल: केवल 29 फाइटर स्क्वाड्रन क्यों?
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में देश की रक्षा तैयारियों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि भारत के पास सिर्फ़ 29 लड़ाकू स्क्वाड्रन क्यों हैं, जबकि स्वीकृत संख्या 42 है. उन्होंने इसकी तुलना पाकिस्तान (25) और चीन (50+) से की है. ओवैसी ने सरकार पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देश में मौजूद एकता और सहमति का उपयोग न कर पाने का आरोप भी लगाया है. उन्होंने यह भी पूछा कि क्या भारत भविष्य में हथियारों की खरीद में उनका 'सोर्स कोड' प्राप्त करेगा या नहीं.
चीन ने एक इंच भी भारतीय क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया: रिजिजू
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में कहा कि 1962 के युद्ध के बाद से चीन ने अरुणाचल प्रदेश या किसी अन्य भारतीय क्षेत्र में एक इंच भी जमीन पर कब्जा नहीं किया है. उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के आरोपों का खंडन किया. रिजिजू ने कहा, "यह जरूरी है कि तथ्य स्पष्ट किए जाएं. जो क्षेत्र चीन के नियंत्रण में है, वह पहले से या 1962 युद्ध के दौरान ही चला गया था."
जब यह मालूम था, हजारों पर्यटक आते हैं, तो कोई सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं था : प्रियंका
कांग्रेस सांसद और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी बहस के दौरान मोदी सरकार पर हमला किया. कहा- जब यह मालूम था कि पहलगाम के बैसरन घाटी में हजारों पर्यटक आते हैं, बावजूद इसके वहां कोई एक सुरक्षा कर्मी मौजूद नहीं था. उन्होंने पूछा कि क्या किसी सरकारी एजेंसी को यह जानकारी नहीं थी कि इस तरह का नृशंस आतंकवादी हमला होने वाला है और पाकिस्तान में एक साजिश रची जा रही है? क्या नागरिकों की सुरक्षा प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी नहीं है? “कल, रक्षा मंत्री ने एक घंटे भाषण दिया, जिसमें उन्होंने आतंकवाद, देश की सुरक्षा के बारे में चर्चा की और साथ ही इतिहास का पाठ भी पढ़ाया. लेकिन एक बात रह गई - 22 अप्रैल, 2025 को जब 26 लोग अपने परिवारों के सामने मारे गए, तो यह हमला कैसे हुआ, और क्यों हुआ?,” प्रियंका ने कहा.
उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह के कार्यकाल के दौरान दिल्ली और मणिपुर दंगों जैसे बड़े कांडों का भी जिक्र किया और कहा कि इस सरकार में जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है, उनके लिए सब कुछ राजनीति और प्रचार है.
पहलगाम हमले के बाद पर्यटन पर असर का आकलन नहीं
पर्यटन के चरम मौसम के दौरान हुए पहलगाम हमले के बाद इस रिसॉर्ट शहर से पर्यटकों का पलायन शुरू हो गया था, और रिपोर्टों के अनुसार इस महीने की शुरुआत में भी वहां कई दुकानें बंद रहीं. जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, लेकिन इसके बावजूद, केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने इस क्षेत्र पर निर्भर स्थानीय लोगों पर हमले के प्रभाव का कोई आकलन नहीं किया है. यह जानकारी मंत्री गजेंद्र शेखावत ने कल लोकसभा में दी. जब उनसे हमले के बाद पर्यटकों का विश्वास बहाल करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में पूछा गया, तो शेखावत ने सिर्फ देशभर में पर्यटन के लिए की गई पहलों की एक सामान्य सूची पेश कर दी.
विश्लेषण | जनरल हरिंदर सिंह
पहलगाम के बाद आगे का रास्ता
पहलगाम में हुआ आतंकी हमला केवल एक घटना नहीं, बल्कि भारत की आतंकवाद-रोधी रणनीति की कमजोरियों पर एक कठोर टिप्पणी है. इस हमले के बाद केवल जवाबी कार्रवाई या घरेलू आक्रोश को शांत करना काफी नहीं है. आवश्यकता एक ऐसी व्यापक और दूरदर्शी रणनीति की है जो न केवल भविष्य के हमलों को रोके, बल्कि आतंकवाद के पूरे तंत्र को ही पंगु बना दे. सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व सैन्य खुफिया महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह (सेवानिवृत्त) के विश्लेषण के अनुसार, इसका समाधान दो प्रमुख स्तंभों पर टिका है: जमीन पर भौतिक प्रभुत्व को फिर से स्थापित करना और सुरक्षा बलों के ढांचे में एक मूलभूत सुधार लाना.
रणनीति का पहला और सबसे महत्वपूर्ण पहलू है मजबूत क्षेत्र प्रभुत्व (Robust Area Domination). आधुनिक युद्धकला में तकनीक, ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी पर निर्भरता काफी बढ़ गई है. ये उपकरण निगरानी के लिए निस्संदेह महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे जमीन पर सैनिकों की भौतिक उपस्थिति का विकल्प नहीं हो सकते. आतंकवाद-रोधी अभियानों में सफलता का सबसे बड़ा सूत्र सैनिकों की जमीनी पकड़ होती है. जब गश्ती दल लगातार घूमते हैं और संवेदनशील इलाकों में अस्थायी चौकियां स्थापित होती हैं, तो यह आतंकवादियों के लिए किसी भी गतिविधि को अंजाम देना लगभग असंभव बना देता है. लेफ्टिनेंट जनरल सिंह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि यदि पहलगाम में सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी भी तैनात होती, तो शायद यह हमला कभी होता ही नहीं. इस दृष्टि से, यह हमला तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता और भौतिक प्रभुत्व की उपेक्षा के कारण हुई एक बड़ी सुरक्षा चूक थी.
दूसरा महत्वपूर्ण सुधार सुरक्षा बलों का संरचनात्मक 'रीसेट' (Structural Reset) है. जम्मू-कश्मीर में दशकों से तैनात बल, विशेष रूप से राष्ट्रीय राइफल्स (RR), जो आतंकवाद-रोधी अभियानों की रीढ़ रही है, अब अपनी कार्यप्रणाली में अनुमानित (predictable) हो गई है. समय के साथ, इस पर कई गैर-जरूरी कार्यों का बोझ भी डाल दिया गया है, जिससे इसकी मुख्य भूमिका प्रभावित हुई है. लेफ्टिनेंट जनरल सिंह एक क्रांतिकारी बदलाव का सुझाव देते हैं: राष्ट्रीय राइफल्स को एक अधिक उपयोगी और फुर्तीले बल में बदलना, जिसे विशेष बलों (Special Forces) के बराबर कौशल और तकनीक से लैस किया जाए. इसके अलावा, बल में अधिकारियों के एक स्थायी कैडर पर विचार करना इसकी कार्यात्मक भूमिका और प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है. इसी तरह, विशेष बलों के अत्यधिक उपयोग ने उन्हें योजना और संचालन में पीछे धकेल दिया है. जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ जैसे स्थानीय बलों को भी अपनी भूमिकाओं को अधिक जोश और स्पष्टता के साथ फिर से निभाना होगा ताकि वे सुरक्षा ग्रिड का एक प्रभावी हिस्सा बन सकें.
इस पूरी तस्वीर में पाकिस्तान के इरादों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. भारत की जवाबी कार्रवाइयां भले ही कुछ समय के लिए abschreckend हों, लेकिन पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में अपनी आकांक्षाओं को नहीं छोड़ेगा. वह लगातार अपनी रणनीति विकसित कर रहा है और अब उसका ध्यान स्थानीय आबादी के कट्टरपंथीकरण (radicalisation) पर अधिक केंद्रित होने की संभावना है, ताकि सुरक्षा बलों के लिए एक शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाया जा सके.
अंततः, निष्कर्ष यह है कि स्थायी समाधान केवल श्रेष्ठ खुफिया जानकारी और जमीन पर निर्विवाद परिचालन प्रभुत्व स्थापित करके ही पाया जा सकता है. लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह (सेवानिवृत्त) के अनुसार, लक्ष्य सिर्फ आतंकवादियों को मारना नहीं, बल्कि उनके और उनके ओवरग्राउंड वर्कर्स (जमीनी मददगारों) के मन में असुरक्षा की एक गहरी भावना पैदा करना है. यह एक मनोवैज्ञानिक युद्ध है जिसे जीतना अनिवार्य है. यह लक्ष्य दो दशक पहले हासिल किया गया था, और अब इसे नए तरीकों और आधुनिक तकनीक के साथ फिर से हासिल करने का समय आ गया है.
विश्लेषण | सुशांत सिंह
भारत चीन की तरफ जा रहा है या ट्रम्प के?
ऐतिहासिक रूप से भारत दबाव के आगे झुकने वाला देश नहीं रहा है और उसने सदैव "गुटनिरपेक्षता" और "रणनीतिक स्वायत्तता" के सिद्धांतों को प्राथमिकता दी है. लेकिन हाल के दिनों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है, जहाँ भारत ने 1962 के युद्ध के बाद से अब तक चीन के सामने सबसे अधिक रियायतें दी हैं. पिछले कुछ महीनों में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर तक, भारत के शीर्ष अधिकारियों ने चीन का दौरा किया है और चीनी उकसावों के बावजूद संबंधों को सामान्य बनाने पर जोर दिया है. इस रणनीतिक बदलाव का मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सत्ता में वापसी और उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीति है, जिसने भारत से उसका रणनीतिक कवच छीन लिया है. नई दिल्ली का आकलन स्पष्ट है: वाशिंगटन के अनिश्चित समर्थन पर दांव लगाने की तुलना में बीजिंग के साथ तालमेल बिठाने की कीमत कम है, जिससे भारत की स्वायत्तता चीन के सामने एक व्यावहारिक समर्पण में बदल रही है. सुशांत सिंह ने फॉरेन पॉलिसी में इसका विस्तृत विश्लेषण किया है.
चीन की बढ़ती आक्रामकता और उस पर भारत की चुप्पी कई घटनाओं में स्पष्ट दिखती है. मई में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीन द्वारा पाकिस्तान को खुफिया जानकारी देने के बावजूद भारत ने सार्वजनिक रूप से चीन का नाम लेने से परहेज किया. लद्दाख सीमा पर, जहाँ 2020 में गलवान की झड़प हुई थी, चीनी सेना अभी भी भारतीय सैनिकों की आवाजाही को रोकती है, फिर भी भारत अब सीमा पर पुरानी "यथास्थिति की बहाली" की मांग करने के बजाय संबंधों में "सकारात्मक प्रगति" की बात कर रहा है. इसी तरह, चीन ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदले और दलाई लामा के जन्मदिन पर भारत को तिब्बत के मामले में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी, जिस पर भारत ने normalization की प्रक्रिया को बचाने के लिए चुप्पी साध ली. आर्थिक मोर्चे पर भी चीन ने भारत में फॉक्सकॉन के चीनी इंजीनियरों को वापस बुलाकर और महत्वपूर्ण आयातों पर कस्टम क्लीयरेंस सख्त करके दबाव बनाया, लेकिन भारत ने जवाबी कार्रवाई के बजाय केवल "स्थिति की निगरानी" करने का विकल्प चुना. विडंबना यह है कि एक तरफ चीन दबाव बना रहा है, वहीं दूसरी तरफ भारत का नीति आयोग चीनी निवेश को आकर्षित करने के लिए नियमों में ढील देने पर विचार कर रहा है.
भारत के इस रुख परिवर्तन के पीछे ट्रम्प की नीतियां हैं, जिन्होंने अमेरिका को एक भरोसेमंद साझेदार से एक अप्रत्याशित देश में बदल दिया है. ट्रम्प ने भारत समेत सभी देशों से आयात पर 10% टैरिफ लगा दिया है, रूसी तेल खरीदने पर भारत जैसे देशों पर भारी सेकेंडरी टैरिफ की धमकी दी है, और पाकिस्तानी सेना प्रमुख की मेजबानी करके एवं कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश करके भारत और पाकिस्तान को एक ही पलड़े में तौल दिया है. इसके अलावा, ट्रम्प प्रशासन अपने सहयोगियों पर रक्षा खर्च बढ़ाने का दबाव बना रहा है और क्वैड जैसे रणनीतिक गठबंधन को कमजोर कर द्विपक्षीय सौदों को प्राथमिकता दे रहा है. इन कदमों ने भारत को यह महसूस कराया है कि अमेरिका अब भारत और चीन के बीच किसी भी बड़े टकराव में उसका साथ नहीं देगा.
सुशांत के मुताबिक भारत चीन के सामने इसलिए नहीं झुक रहा है कि वह चीनी खतरों को कम आंकता है, बल्कि इसलिए कि वह अमेरिकी समर्थन के बिना चीन का विरोध करने की भारी कीमत चुकाने को तैयार नहीं है. यह एक मजबूरी से जन्मी यथार्थवादी राजनीति है, जहाँ भारत कम दर्दनाक निर्भरता को चुन रहा है. चीन के साथ रिश्तों में कम से कम उसकी लक्ष्मणरेखाएं तो स्पष्ट हैं, जबकि ट्रम्प के अमेरिका में कोई निश्चितता नहीं है. विडंबना यह है कि ट्रम्प ने वह काम कर दिखाया है जो चीन वर्षों से नहीं कर सका: उन्होंने भारत के लिए रणनीतिक प्रतिरोध की तुलना में व्यावहारिक समर्पण को एक सस्ता विकल्प बना दिया है. भारत का यह कदम दुनिया के उन सभी देशों के लिए एक चेतावनी है जो चीनी महत्वाकांक्षा को संतुलित करने के लिए अमेरिकी ताकत पर निर्भर थे.
भारत-चीन तनाव में कमी, पर पेशेवर वीजा पर अनिश्चितता
भारत और चीन के बीच तनाव कम हो रहा है और नई दिल्ली ने चीनी नागरिकों को फिर से पर्यटक वीजा जारी करना शुरू कर दिया है. हालांकि, पेशेवर वीजा के मोर्चे पर प्रगति कब और कैसे होगी, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है. अलीशा सचदेव सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट करती हैं कि इसका असर इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता बीवाईडी (BYD) जैसी कंपनियों पर पड़ रहा है, जिनके अधिकारियों को भारत आने की अनुमति न मिलने के कारण कोलंबो, काठमांडू और सिंगापुर में बैठकें करनी पड़ीं. वह यह भी बताती हैं कि यह "उदासीनता आपसी है" - भारतीय नागरिकों को भी चीन की यात्रा के लिए पेशेवर वीजा प्राप्त करने में परेशानी हो रही है.
नेपाल में इलेक्ट्रिक वाहनों की क्रांति, चीनी कंपनियों का दबदबा: लिडिया डीपिलिस की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में पिछले एक साल में बिकने वाले सभी यात्री वाहनों में से 76% इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) थे, और इस बाजार पर चीनी कंपनियों का दबदबा है. यह काठमांडू द्वारा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने, अपनी जलविद्युत संसाधनों का लाभ उठाने और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों का परिणाम है. EVs की बाजार हिस्सेदारी के मामले में नेपाल विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर पहुंच गया है, लेकिन अभी भी कुछ बाधाएं हैं, जैसे राजनीतिक अस्थिरता के बीच एक ठोस दीर्घकालिक नीति और दोपहिया वाहनों व सार्वजनिक परिवहन का विद्युतीकरण.
फैक्ट चेक
प्रतीक सिन्हा के मुताबिक बीजेपी की आईटी सेल सबसे संगठित और प्रभावी
‘ऑल्ट न्यूज़’ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने स्क्रोल से बातचीत में भारत में गलत सूचना (मिसइन्फॉर्मेशन), झूठी सूचना (डिसइन्फॉर्मेशन) और सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर गंभीर मुद्दे उठाए. यह बातचीत एक मानहानि के मुकदमे के बाद हुई, जो एक प्रमुख मीडिया संगठन ने ऑल्ट न्यूज़ के खिलाफ दायर किया है.
प्रतीक ने बताया कि कोविड-19 के दौरान एक मीडिया संगठन की गलत रिपोर्टिंग को ऑल्ट न्यूज़ ने उजागर किया था, जिसके बाद उस संगठन ने उनके खिलाफ मानहानि का केस दायर किया. विडंबना यह है कि यह संगठन खुद एक फैक्ट-चेकिंग यूनिट चलाता है. उन्होंने इसे एक विडंबनापूर्ण स्थिति बताया, जहां सच बोलने वालों को निशाना बनाया जा रहा है.
प्रतीक ने मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉर्मेशन में अंतर समझाया. मिसइन्फॉर्मेशन अनजाने में फैलाई गई गलत जानकारी है, जैसे पुरानी तस्वीर को गलत संदर्भ में दिखाना. वहीं, डिसइन्फॉर्मेशन जानबूझकर झूठ फैलाना है, जिसमें इरादा होता है. उन्होंने कहा, "भारत में मिसइन्फॉर्मेशन का बड़ा हिस्सा अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों के खिलाफ है, जो सामाजिक नफरत को बढ़ाता है."
सोशल मीडिया, खासकर व्हाट्सएप को गलत सूचना फैलाने का सबसे बड़ा मंच बताया गया. प्रतीक ने कहा, "व्हाट्सएप पर 24x7 प्रचार होता है. यह पहले के डोर-टू-डोर प्रचार से कहीं आसान है." उन्होंने बीजेपी की आईटी सेल को सबसे संगठित और प्रभावी बताया, जो न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं, बल्कि कॉर्पोरेट्स और पॉलिटिकल कंसल्टेंसी के साथ मिलकर काम करती है. उन्होंने बीजेपी की सफलता के पीछे तीन कारण बताए. पहला जल्दी शुरूआत (2014 से पहले से सोशल मीडिया पर सक्रियता), दूसरा वित्तीय संसाधनों की प्रचुरता और तीसरा वैचारिक एकजुटता, जो संदेश को प्रभावी बनाती है.
प्रतीक ने चिंता जताई कि सोशल मीडिया ने भारत में नफरत भरे भाषण को अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ा दिया है. उन्होंने उदाहरण दिया, जैसे "राइस बैग" जैसे शब्दों का प्रचलन, जो पहले नहीं सुने जाते थे. श्रद्धा वालकर हत्याकांड जैसे मामलों को चुनिंदा तरीके से उछालकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत भड़काई गई. उन्होंने कहा, "लगातार मिसइन्फॉर्मेशन से किसी समुदाय को डीह्यूमनाइज किया जाता है, जिससे नफरत भरे भाषण को सामाजिक स्वीकार्यता मिलती है."
प्रतीक और उनके सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को लगातार ट्रोलिंग, फोन नंबर लीक और आपराधिक मुकदमों का सामना करना पड़ता है. ज़ुबैर ने 23 दिन जेल में बिताए और उनके खिलाफ अभी भी कई केस चल रहे हैं. प्रतीक ने बताया कि उनकी मां, जो ऑल्ट न्यूज़ की निदेशक हैं, को भी सोशल मीडिया पर नफरत का सामना करना पड़ता है. इसके बावजूद वे कहते हैं, "ट्रोलिंग को हम मैनेज कर लेते हैं, लेकिन रोज़ मृत शरीरों की तस्वीरें देखना (जैसे इज़रायल-फिलिस्तीन मामले में) मानसिक रूप से सबसे मुश्किल है."
प्रतीक ने केमब्रिज एनालिटिका जैसे मामलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि सोशल मीडिया डेटा का इस्तेमाल न केवल उत्पाद बेचने, बल्कि राजनीतिक प्रचार और वोटर मनोविज्ञान को प्रभावित करने के लिए होता है. उन्होंने चेतावनी दी कि प्राइवेसी की अनदेखी लोकतांत्रिक अधिकारों को खतरे में डाल सकती है.
राज्य विधेयकों पर देरी का मामला: सुप्रीम कोर्ट में अब समयसीमा तय करने के अधिकार पर बहस
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह सहमति दी कि राष्ट्रपति द्वारा दायर उस संदर्भ याचिका की सुनवाई में सबसे पहले तमिलनाडु और केरल राज्यों की आपत्तियों पर विचार किया जाएगा. दोनों राज्यों ने इस याचिका की स्वीकार्यता को चुनौती दी है. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की गैरहाजिरी में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि 19 अगस्त से सुनवाई की शुरुआत इन दोनों राज्यों की आपत्तियों से होगी. तमिलनाडु और केरल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल, ए.एम. सिंघवी और पी. विल्सन कोर्ट के समक्ष यह तर्क रखेंगे कि राष्ट्रपति द्वारा भेजा गया यह संदर्भ उत्तर दिए बिना ही लौटा दिया जाना चाहिए. गौरतलब है कि यह राष्ट्रपति संदर्भ उस सवाल को लेकर है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए किसी राज्य द्वारा भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा निर्धारित करे या नहीं. तमिलनाडु और केरल का तर्क है कि यह संविधान की बुनियादी संरचना से जुड़ा एक राजनीतिक प्रश्न है और इस पर कोर्ट की राय लेना उचित नहीं है. ऐसे मे यह देखना अहम होगा कि क्या संविधान पीठ इस संदर्भ को सुनवाई योग्य मानती है या इसे बिना किसी उत्तर के वापस भेजती है.
बिहार वोटर लिस्ट मामला: 'मृत घोषित' लोग जीवित निकले तो तुरंत दखल देगा सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने निर्वाचन आयोग को दो टूक कहा कि यदि सूची में 'बड़ी संख्या में अपवर्जन' (mass exclusions) पाए गए, तो अदालत कार्रवाई करने में हिचकिचाएगी नहीं.
याचिकाकर्ताओं ने इस विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया की आलोचना करते हुए इसे 'नागरिकता छंटनी' जैसा बताया. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता प्रशांत भूषण की ओर से पेश याचिकाकर्ताओं की बात सुनते हुए न्यायमूर्ति बागची ने कहा, "जिन 15 लोगों को निर्वाचन आयोग मृत कहता है, उन्हें जीवित रूप में हमारे सामने लाइए... हम इस पर गौर करेंगे."
यह मौखिक टिप्पणी उस संदर्भ में आई जब विपक्षी दलों और 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स' जैसे गैर-सरकारी संगठनों ने आशंका जताई कि बिहार की मसौदा मतदाता सूची से 65 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया है, जिसमें अधिकांश के बारे में कहा गया है कि वे या तो मृत हैं या स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब बिहार में मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया को लेकर व्यापक बहस और संदेह का माहौल बना हुआ है.
विवादों के बीच मणिपुर में मतदाता सूची संशोधन की तैयारी
चुनाव आयोग संघर्षग्रस्त मणिपुर में कुछ ही महीनों के भीतर मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराने की योजना बना रहा है. यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब राज्य जातीय आधार पर बंटा हुआ है और वहां हिंसा की छिटपुट घटनाएं जारी हैं, यहाँ तक कि बफर ज़ोन के आर-पार शवों को ले जाना भी मुश्किल है. भाजपा ने इस कदम का बचाव किया है. हालांकि, सौरभ रॉय बर्मन बताते हैं कि त्रिपुरा में पार्टी का रुख अलग है. वहां, उसकी सहयोगी पार्टी टिपरा मोथा राज्य में SIR की मांग कर रही है, लेकिन भगवा पार्टी एक नाजुक संतुलन साधने की कोशिश कर रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा का समर्थन आधार राज्य के बंगाली हिंदू हैं, जबकि टिपरा मोथा ने आदिवासी लोगों की ओर से जनसांख्यिकीय बदलाव की चिंताओं को उठाया है.
असम में बड़े बेदखली अभियान में 2,000 से अधिक परिवार निशाने पर
असम सरकार ने मंगलवार को पूर्वी असम के गोलाघाट जिले में अब तक के सबसे बड़े बेदखली अभियानों में से एक शुरू किया है, जिसमें 2,000 से अधिक बंगाली मुस्लिम परिवारों को निशाना बनाया गया है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों का लक्ष्य उरिआमघाट क्षेत्र में रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट के भीतर लगभग 15,000 बीघा (लगभग 4,900 एकड़) भूमि को खाली कराना है, जहां लगभग 2,700 परिवार, जिनमें मुख्य रूप से बंगाली मूल के मुस्लिम हैं, रह रहे थे. एक जिला अधिकारी के अनुसार, वन विभाग ने इलाके को नौ ब्लॉकों में बांटकर निवासियों को सात दिन का बेदखली नोटिस जारी किया था, और इस अभियान के लिए 1,500 से अधिक कर्मियों को तैनात किया गया है.
पहलगाम हमले के बाद असम में गिरफ्तार 90% से अधिक आरोपी मुस्लिम : रोकिबुज ज़मान के विश्लेषण से पता चलता है कि पहलगाम हमले के बाद असम में आतंकी आरोपों या सोशल मीडिया पोस्ट के लिए हिरासत में लिए गए 90% से अधिक लोग मुस्लिम पुरुष थे. अभियुक्तों में एक 19 वर्षीय युवक भी शामिल है, जिसे "पाकिस्तान एक सामान्य देश है" कहने के लिए गिरफ्तार किया गया था.
प्रज्वल रेवन्ना केस: 30 जुलाई को आ सकता है पहला फैसला
पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ बलात्कार और यौन शोषण के चार मामलों में से एक में ट्रायल पूरा हो चुका है और अदालत ने 30 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा है. यह मामला एक 48 वर्षीय महिला से जुड़ा है जो उनके फार्महाउस में घरेलू सहायिका के रूप में काम करती थी. आरोप है कि उसे दो बार दुष्कर्म का शिकार बनाया गया और मोबाइल फोन पर वीडियो रिकॉर्ड किया गया. SIT ने मामले में 1632 पेज की चार्जशीट दाखिल की है, जिसमें 113 गवाह हैं.
अडाणी ने ऑस्ट्रेलिया में ₹1.83 लाख करोड़ देने का वादा तो किया, लेकिन दिया नहीं
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि अडाणी की ऑस्ट्रेलियाई संपत्तियां मजबूत राजस्व के बावजूद नियमित रूप से सालाना घाटा दिखाती हैं, जिसका एक कारण संबंधित पक्षों को किए गए बड़े भुगतान हैं. ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में खदान से कोयला निकालना शुरू किए तीन साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन भारतीय समूह अडाणी ने अब तक अपनी ऑस्ट्रेलियाई परियोजना से कोई कॉरपोरेट टैक्स नहीं चुकाया है और टैक्स विशेषज्ञों का कहना है कि वह शायद “कभी एक पैसा भी टैक्स नहीं चुकाएगा.”
एक दशक पहले अडाणी ने वादा किया था कि वह ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था में $22 बिलियन ₹1.83 लाख करोड़ टैक्स और रॉयल्टी के रूप में निवेश करेगा. कोयला कंपनी का समर्थन करने वाले उद्योग समूहों ने यह भी दावा किया था कि यह विवादित परियोजना स्कूलों, अस्पतालों और बुनियादी ढांचे के लिए लगभग सौ वर्षों तक फंड उपलब्ध कराएगी.
हालांकि गार्डियन के विश्लेषण में पता चला है कि एबॉट प्वाइंट पोर्ट, जिसे अडाणी की एक इकाई द्वारा 99 साल की लीज़ पर 2011 से चलाया जा रहा है, ने भी मुश्किल से टैक्स चुकाया है. 10 वर्षों में सिर्फ एक बार टैक्स दिया गया — वो भी केवल $4 मिलियन (लगभग ₹33 करोड़ 40 लाख) से कम.
हालांकि अडाणी को ऑस्ट्रेलियाई संपत्तियों से मजबूत राजस्व मिलता है, फिर भी हर साल घाटा दिखाया जाता है. इसका बड़ा कारण है संबंधित पार्टियों को ब्याज और लीज़ खर्चों के रूप में भारी भुगतान और कोयले के खनन से निर्यात तक की पूरी श्रृंखला में अन्य अडाणी इकाइयों को सेवाओं के लिए भुगतान.
सेंटर फॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेट टैक्स अकाउंटेबिलिटी एंड रिसर्च के मुख्य विश्लेषक जेसन वार्ड कहते हैं — "मेरे अनुसार यह कंपनी इस तरह से बनाई गई है कि यह कभी भी कागज़ों पर लाभ नहीं दिखाएगी और एक भी टैक्स नहीं चुकाएगी."
मार्च 2025 में अडाणी की कोयला परियोजना की रिपोर्ट में $1.27 बिलियन (लगभग ₹1.06 लाख करोड़) का राजस्व दर्ज किया गया, लेकिन विभिन्न खर्चों के बाद $461.7 मिलियन (लगभग ₹38.54 अरब) का घाटा दिखाया गया, जिससे टैक्स योग्य लाभ शून्य रहा.
टिम बकली, जो पहले इन्वेस्टमेंट बैंकर रह चुके हैं, कहते हैं - “अगर अब टैक्स नहीं दे रहे, तो कब देंगे? आदानी की संरचना इतनी जटिल और अपारदर्शी है कि यह कभी टैक्स नहीं देगा.”
गुजरात दंगा: पहचान परेड न होने पर हाईकोर्ट से तीन दोषी बरी
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात हाईकोर्ट ने 2002 के मुस्लिम विरोधी जनसंहार के दौरान दंगा करने के लिए 2006 में दोषी ठहराए गए तीन लोगों को बरी कर दिया है. अदालत ने टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (पहचान परेड) की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए और अदालत में की गई पहचान की विश्वसनीयता पर संदेह व्यक्त करते हुए यह फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष का गवाह यह नहीं बता सका कि उसने 100 से अधिक लोगों की भीड़ में अभियुक्तों की पहचान कैसे की और न ही उनकी व्यक्तिगत भूमिका स्पष्ट की.
दक्षिण अफ्रीका ने भारत को और चीते भेजने पर रोक लगाई: श्रुति तोमर की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका ने भारत को चीतों के नए ट्रांसलोकेशन पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है. यह फैसला पहले भेजे गए चीतों की स्वास्थ्य स्थितियों की समीक्षा होने तक लागू रहेगा. अधिकारियों ने बताया कि केन्या द्वारा चीते देने से इनकार करने के बाद यह कदम उठाया गया है.
बराले की नियुक्ति रद्द : चौतरफा आलोचना से घिरने के बाद, हरियाणा सरकार ने विकास बराला की राज्य के वकील के रूप में विवादास्पद नियुक्ति को रद्द कर दिया है. बराला पर चंडीगढ़ में एक महिला का पीछा करने और उसका अपहरण करने की कोशिश करने का आरोप है.
दिव्या देशमुख बनीं नई चेस ग्रैंडमास्टर : भारत को एक नई चेस ग्रैंडमास्टर मिल गई है. 19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने कोनेरू हम्पी को हराकर 2025 FIDE महिला विश्व कप का खिताब जीत लिया है.
पहली बार: माइक्रोसॉफ्ट ने रूस समर्थित भारतीय रिफाइनर पर लगाई पाबंदी : रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, रूस समर्थित भारतीय रिफाइनर नायरा एनर्जी ने अमेरिकी टेक दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट द्वारा आईटी सेवाएं निलंबित करने के बाद घरेलू फर्म रेडिफ.कॉम की सेवाएं ली हैं. नायरा पर हाल ही में यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगाए थे. नायरा ने सोमवार को कहा कि उसने सेवाओं को वापस लेने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ मामला दायर किया है. ब्लूमबर्ग के सूत्रों ने बताया कि पिछले मंगलवार से माइक्रोसॉफ्ट ने नायरा के लिए सेवाएं निलंबित कर दी थीं, और कर्मचारियों के आउटलुक ईमेल और टीम्स मैसेजिंग खाते काम नहीं कर रहे थे.
ओडिशा: अब स्कूलों में भगवा पहचान पत्र, शिक्षा पर सियासत : 2025-26 शैक्षणिक वर्ष से, ओडिशा के प्राथमिक विद्यालय के छात्रों को भगवा रंग के पहचान पत्र दिए जाएंगे. ओडिशा स्कूल शिक्षा कार्यक्रम प्राधिकरण (OSEPA) द्वारा जारी यह निर्देश कक्षा I से VIII तक के छात्रों को प्रभावित करेगा. अधिकारियों का दावा है कि यह "सुरक्षा बढ़ाने" के लिए है, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि असली लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल बैग भी सत्तारूढ़ पार्टी के रंग से मेल खाएं. भगवा रंग की बसों और रीब्रांडेड स्कूल किट अभियान के बाद, माझी सरकार राज्य को एक बड़ा राजनीतिक पोस्टर बनाने पर तुली हुई है.
प्रेस फ्रीडम
अधिकारियों और धर्म पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार सबसे ज्यादा निशाने पर
सार्वजनिक अधिकारियों, धार्मिक मामलों और विरोध प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग करना भारत में पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगने के तीन सबसे आम कारण थे. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU), दिल्ली द्वारा सह-लिखित एक अध्ययन में यह बात सामने आई है. 2012-2022 तक 427 पत्रकारों के खिलाफ दर्ज 423 आपराधिक मामलों के विश्लेषण के आधार पर यह पाया गया कि डेटासेट में शामिल कम से कम 40% पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. रिपोर्ट में पाया गया कि छोटे शहरों के या हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में काम करने वाले पत्रकार सबसे अधिक प्रभावित हुए. बड़े शहरों में 24% घटनाओं में पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया, जबकि छोटे शहरों में यह आंकड़ा 58% तक पहुंच गया.
सैमसंग की गिरावट: वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में भारत से सैमसंग के स्मार्टफोन निर्यात में साल-दर-साल लगभग 20% की गिरावट आई. उद्योग विशेषज्ञ इस गिरावट का श्रेय प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) लाभों की समाप्ति को देते हैं. इन निर्यात-लिंक्ड प्रोत्साहनों के खत्म होने से सैमसंग के लिए अपनी निर्यात प्रतिस्पर्धा बनाए रखना मुश्किल हो गया है, खासकर वियतनाम और चीन जैसे देशों की तुलना में भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण की लागत अधिक होने के कारण.
यूक्रेन पर रातभर हमलों में 25 की मौत, ट्रम्प ने रूस को दी युद्धविराम के लिए नई समयसीमा
(बिलेंके की वह जेल, जो ज़ापोरिझिया क्षेत्र पर हुए आठ हमलों में से एक में सीधे निशाने पर आई.)
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि रूस ने मंगलवार तड़के यूक्रेन पर महीनों में सबसे घातक रात्री हमला किया, ठीक एक दिन बाद जब डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि वे रूस को युद्ध समाप्त करने की दिशा में प्रगति के लिए “10 या 12 दिन” की नई समयसीमा दे रहे हैं, नहीं तो नए प्रतिबंध लगाए जाएंगे. यूक्रेनी अधिकारियों ने बताया कि देशभर में हुए रूसी हमलों में कम से कम 25 लोग मारे गए, जिनमें एक 23 वर्षीय गर्भवती महिला और दर्जनों से अधिक कैदी शामिल हैं। देशभर में लगभग 100 लोग घायल हुए हैं. मंगलवार को राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने ट्रम्प की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति हाल की कड़ी भाषा का स्वागत किया और कहा कि सिर्फ सख्त कदम ही मास्को को नरसंहार रोकने पर मजबूर कर सकते हैं. उन्होंने टेलीग्राम पर लिखा, “रूसी हमलों में हमारे लोगों की हर हत्या, हर स्ट्राइक, जब लंबे समय से संघर्षविराम हो सकता था यदि रूस ने मना न किया होता – यह सब दिखाता है कि मास्को को बेहद कठोर, वास्तव में कष्टदायक, और इसलिए उचित तथा प्रभावी प्रतिबंधों के दबाव में लाया जाना चाहिए. उन्हें शांति के लिए मजबूर किया जाना चाहिए.” सोमवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के साथ बातचीत के दौरान ट्रम्प ने कहा कि वह पहले तय की गई 50 दिन की समयसीमा को घटाकर “लगभग 10 या 12 दिन” कर रहे हैं, क्योंकि पुतिन के रुख से वे निराश हैं.
ट्रम्प ने कहा, “हमें लगा था कि यह कई बार सुलझ गया है, लेकिन फिर राष्ट्रपति पुतिन किसी शहर जैसे कीव पर रॉकेट दाग देते हैं और किसी नर्सिंग होम में ढेर सारे लोगों को मार देते हैं. सड़कों पर लाशें पड़ी रहती हैं और मैं कहता हूं कि यह तरीका नहीं है. तो देखते हैं अब क्या होता है.”
ज़ापोरिझिया की जेल पर हमला
ज़ापोरिझिया क्षेत्र में बेलेंके कस्बे की एक जेल पर हमला आठ हमलों में से एक था. यूक्रेन के न्याय मंत्रालय ने कहा कि जेल पर चार ग्लाइड बम गिरे. पुलिस के अनुसार, 16 कैदियों की मौत हुई और 43 घायल हुए. पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने मंगलवार को कहा कि रूस नागरिक ठिकानों को निशाना नहीं बना रहा है और क्रेमलिन “यूक्रेन के चारों ओर के संघर्ष को हल करने और अपने हितों की रक्षा के लिए शांति प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध” है.
हालांकि, ज़ेलेंस्की ने कहा, “यह एक जानबूझकर किया गया हमला था, लक्ष्य बनाकर किया गया, दुर्घटनावश नहीं. रूसियों को यह मालूम न हो, ऐसा हो नहीं सकता कि वे इस दंड कॉलोनी में नागरिकों को निशाना बना रहे थे. कई लोग मारे गए, 43 घायल हैं, जिनमें कुछ की हालत गंभीर है.”
विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन अब भी अधिकतम रणनीतिक लक्ष्यों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं और उन्हें लगता है कि वे पश्चिमी देशों को थका सकते हैं, क्योंकि ट्रम्प प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि यूक्रेन को समर्थन देना उसकी शीर्ष विदेश नीति प्राथमिकता नहीं है. अब कीव को उम्मीद है कि ट्रम्प की सख्त भाषा के बाद कोई ठोस कार्रवाई होगी – जैसे रूस पर नए प्रतिबंधों का पैकेज और यूक्रेन के लिए सैन्य व खुफिया समर्थन की निरंतरता.
चलते-चलते
£150 में खरीदी गई साल्वाडोर डाली की पेंटिंग की कीमत अब ₹30 लाख तक
ब्रिटेन के कैम्ब्रिज में हुई एक घर की सफाई (हाउस क्लीयरेंस) नीलामी में सिर्फ £150 (करीब ₹16,000) में खरीदी गई एक असामान्य पेंटिंग की कीमत अब £20,000 से £30,000 (लगभग ₹25-30 लाख) आंकी गई है. यह पेंटिंग किसी और की नहीं, बल्कि मशहूर स्पेनिश कलाकार साल्वाडोर डाली की निकली. यह पेंटिंग 1966 में बनाई गई ‘Vecchio Sultano’ है, जो डाली की उस अधूरी सीरीज़ का हिस्सा थी जिसे उन्होंने ‘अरबियन नाइट्स’ (हजारों कहानियों की किताब) पर आधारित किया था.
चेफ़िन्स नीलामी हाउस के अनुसार, यह जलरंग (वॉटरकलर) और फेल्ट-टिप से बनी मिश्रित मीडिया की कलाकृति, एक “पुराने सुल्तान” को दर्शाती है. पेंटिंग को 23 अक्टूबर को नीलाम किया जाएगा.
चेफ़िन्स की फाइन आर्ट विशेषज्ञ गैब्रिएल डाउनी ने बताया कि डाली को मूरिश संस्कृति से गहरा लगाव था और वे खुद को उसी वंश का मानते थे. यह पेंटिंग उसी रुचि का प्रमाण है.
डाली ने इतालवी प्रकाशक रिजोली के लिए 500 चित्र बनाने का संकल्प लिया था, लेकिन केवल 100 बनाए और फिर प्रोजेक्ट को छोड़ दिया. इन 100 में से 50 चित्र रिजोली के पास रहे जो या तो नष्ट हो गए या गुम और शेष 50 चित्र डाली के संरक्षकों अल्बरेटो परिवार के पास रहे, जिन्हें उनकी बेटी क्रिस्टीना (जो डाली की गॉडडॉटर भी थीं) ने विरासत में पाया.
इस पेंटिंग को दो साल पहले 60 वर्षीय एक प्राचीन वस्तु व्यापारी (नाम बदला गया) ने उस समय खरीदा जब वह सिर्फ डाली के हस्ताक्षर से आकर्षित हुए. नीलामी में कोई खास रुचि नहीं दिखाई गई और सिर्फ एक अन्य बोलीदाता था, जो £150 पर हार मान गया.
बाद में, उन्होंने सॉदबीज़ की एक पुरानी बिक्री सूची (कैटलॉग) प्राप्त की, जिसमें यह चित्र डाली के नाम से सूचीबद्ध था. उन्होंने तुरंत चेफ़िन्स से संपर्क किया, जिन्होंने पेंटिंग की प्रमाणिकता की पुष्टि के लिए डाली विशेषज्ञ निकोलस डेशार्नेस से राय ली.
विशेषज्ञ डेशार्नेस ने पुष्टि की कि यह असल डाली पेंटिंग है, हालांकि यह उनकी पारंपरिक शैली से हटकर है. उन्होंने कहा, “लोग डाली से अतियथार्थवादी चित्रों की उम्मीद करते हैं, लेकिन यह भी डाली की ही रचना है.” अब यह पेंटिंग लाखों की कीमत में बिकने को तैयार है और यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि कला की दुनिया में कभी-कभी किस्मत का बड़ा हाथ होता है.
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