30/09/2025: प्राइमटाइम पर भाजपा नेता ने राहुल की हत्या की धमकी दी | बंदूक की नोंक पर बात नहीं करेगा लद्दाख | कारगिल हीरो पर सीआरपीएफ गोली, कर्फ्यू में अंत्येष्टि | मोदी ने क्रिकेट में सिंदूर घुसेड़ा
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियाँ
राहुल गांधी को गोली मारने की धमकी
लद्दाखी नेताओं ने गृह मंत्रालय से बातचीत ठुकराई
विजय की रैली में भगदड़ में अव्यवस्था के लिए विजय की पार्टी को जिम्मेदार ठहराया.
असम में नागरिकता का नया नियम
बरेली में गिरफ्तारियां और इंटरनेट शटडाउन
प्रशांत किशोर ने कमाई का खुलासा किया
गोगोई ने असम के मुख्यमंत्री पर गायक जुबिन गर्ग की मौत के मामले में उंगली उठाई
हॉकी ओलंपियन मोहम्मद शाहिद का घर ध्वस्त कर दिया गया
पीओके में अधिकारों की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और हड़ताल
मोदी ने क्रिकेट मैच को “ऑपरेशन सिंदूर” बताया और इटली की पीएम मेलोनी की आत्मकथा को “मन की बात” कहा.
भाजपा नेता ने की राहुल की हत्या की बात!
“तो राहुल गांधी के सीने पर भी गोली लगेगी”, पिंटू महादेवन के खिलाफ मामला
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर गोली चलाने की कथित टिप्पणी के लिए केरल पुलिस ने भाजपा नेता पिंटू महादेवन के खिलाफ मामला दर्ज किया है. यह टिप्पणी उन्होंने एक टेलीविजन बहस के दौरान की थी. “द हिंदू” के अनुसार, केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव श्रीकुमार सी.सी. की शिकायत के आधार पर, त्रिशूर में पेरामंगलम पुलिस ने सोमवार (29 सितंबर, 2025) को एफआईआर दर्ज की. महादेवन ने कथित तौर पर यह टिप्पणी 26 सितंबर, 2025 को नेपाल में हाल ही में हुए ‘जेन-जी’ के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों पर एक टेलीविजन बहस के दौरान की थी.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, कांग्रेस ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर महादेवन के खिलाफ “तत्काल और सख्त” कानूनी कार्रवाई की मांग की है. पार्टी ने कहा, “बीजेपी ने सभी हदें पार कर दी हैं. यह कोई अचानक की टिप्पणी या अतिशयोक्ति नहीं है. यह न्याय की लड़ाई में हर भारतीय के साथ खड़े होने वाले नेता के लिए एक खतरनाक और सोची-समझी मौत की धमकी है.” कांग्रेस ने पूछा कि क्या यह राहुल गांधी के खिलाफ रची जा रही किसी बड़ी और भयावह साजिश का हिस्सा है? क्या बीजेपी हिंसा और मौत की धमकियों की राजनीति का समर्थन करती है?
बीजेपी, आईटी सेल और अमित मालवीय, सब मौन!
आश्चर्य की बात यह है कि इस मामले में अब तक भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया देखने में नहीं आई है. आमतौर पर सूक्ष्मदृष्टि रखने वाला पार्टी का आईटी सेल और उसके मुखिया अमित मालवीय भी मौन हैं, जो राहुल गांधी को लेकर “अति संवेदनशील” रवैया अपनाता है. केंद्र सरकार या गृह मंत्रालय की तरफ से भी कांग्रेस की चिंताओं और सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया है. याद रहे कि पिछले दिनों राहुल गांधी की सुरक्षा में तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने उन पर सुरक्षा प्रोटोकॉल तोड़ने का आरोप लगाया था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर बिना सूचना दिए राहुल गांधी की विदेश यात्राओं पर आपत्ति की थी. सीआरपीएफ ने राहुल को अलग से लिखे पत्र में कहा था कि इस तरह की चूक से उनकी ‘ज़ेड प्लस’ श्रेणी की सुरक्षा कमजोर पड़ सकती है और उन्हें खतरे का सामना करना पड़ सकता है.
बंदूक की नोक़ पर बातचीत नहीं: लद्दाखियों ने गृहमंत्रालय से बातचीत ठुकराई
लद्दाख में 24 सितंबर को राज्य के दर्जे की मांग को लेकर हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन और उसके बाद हुई पुलिस फायरिंग में चार लोगों की मौत के बाद से तनाव बना हुआ है. कर्फ्यू के साये में सुरक्षा तैनाती के बीच एक पूर्व सैनिक का अंतिम संस्कार किया गया, वहीं स्थानीय नेताओं ने केंद्र के साथ बातचीत रद्द कर दी है. गृह मंत्रालय ने कहा है कि बातचीत के दरवाज़े खुले हैं.
किले में तब्दील हुआ लेह, पूर्व सैनिक का अंतिम संस्कार
द प्रिंट के लिए सूरज सिंह बिष्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लेह की सड़कें सोमवार को एक किले में तब्दील हो गईं, जब कारगिल युद्ध में लड़ने वाले पूर्व सैनिक त्सेवांग थारचिन का अंतिम संस्कार किया गया. थारचिन उन चार लोगों में शामिल थे, जो 24 सितंबर को राज्य के दर्जे की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान सुरक्षाकर्मियों की गोलीबारी में मारे गए थे. उनकी अंतिम यात्रा के दौरान सड़कों पर कांटेदार तार की बाड़ें और दंगा रोधी उपकरणों से लैस सुरक्षाकर्मी तैनात थे. उनकी वर्दी में तस्वीर, मालाओं से सजी, तिरंगे के बगल में रखी गई थी. यह नज़ारा पिछले दिन मारे गए दो अन्य युवकों, 25 वर्षीय स्टैनज़िन नामग्याल और 24 वर्षीय जिग्मेत दोरजे के शांत अंतिम संस्कार से बिल्कुल अलग था. 46 वर्षीय त्सेवांग थारचिन लद्दाख स्काउट्स का हिस्सा थे और उन्होंने कारगिल में जंग लड़ी थी. उनकी अंतिम यात्रा से पहले, श्मशान घाट की ओर जाने वाले किंग सिंगे नामग्याल चौक को पूरी तरह से सुरक्षा घेरे में ले लिया गया था.
‘बंदूक की नोक पर बातचीत नहीं’, केंद्र के साथ बैठक रद्द
द हिंदू और द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व सैनिक त्सेवांग थारचिन के अंतिम संस्कार के तुरंत बाद, लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) ने 30 सितंबर को दिल्ली में गृह मंत्रालय (MHA) के अधिकारियों के साथ प्रस्तावित बातचीत रद्द कर दी. LAB के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, “बातचीत बंदूक की नोक पर नहीं हो सकती.” नेताओं ने सरकार और मीडिया के एक वर्ग पर लद्दाखियों को “राष्ट्र-विरोधी” कहने, “विदेशी तत्वों” के साथ मिलीभगत और “पाकिस्तान के साथ संबंध” होने जैसे निराधार आरोप लगाने का हवाला दिया. LAB के अध्यक्ष और पूर्व सांसद थुपस्तन छेवांग ने कहा, “जब तक शांति बहाल नहीं हो जाती, हम बातचीत फिर से शुरू नहीं करेंगे.” नेताओं ने 24 सितंबर की हिंसा के लिए केंद्र सरकार की देरी को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि इसने लद्दाख को “प्रेशर कुकर” में बदल दिया. उनकी मुख्य मांगों में पुलिस फायरिंग में मारे गए चार लोगों की मौत की न्यायिक जांच, हिरासत में लिए गए लगभग 50 युवाओं की रिहाई और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) को हटाना शामिल है.
लेह एपेक्स बॉडी के अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमने सर्वसम्मति से तय किया है कि लद्दाख में जब तक शांति बहाल नहीं होती, हम किसी भी बातचीत में भाग नहीं लेंगे. बंदूक की नोंक पर कोई बात नहीं हो सकती.” एलएबी के सह अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने तो कहा है, “केंद्र सरकार लद्दाख में शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने के लिए गोदी मीडिया की मदद से एक टूलकिट बनाने की कोशिश कर रही है,” जैसा कि जहांगीर अली ने अपनी रिपोर्ट में बताया है.
छेवांग ने कहा, “हम गृह मंत्रालय, केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन और प्रशासन से डर, दुख और गुस्से के माहौल को दूर करने के लिए कदम उठाने का आग्रह करेंगे.” इस बीच, कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने भी सोमवार को वांगचुक और 24 सितंबर की हिंसा के बाद लेह में हिरासत में लिए गए अन्य लोगों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग की. अलायंस ने केंद्र को चेतावनी दी कि लद्दाख को राज्य का दर्जा और अन्य मुख्य मांगों को पूरा करने में उसकी विफलता हिमालयी क्षेत्र के लोगों को “अलग-थलग” कर रही है.
केडीए सदस्य सज्जाद कारगिल ने कहा कि राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांगों पर कोई बातचीत नहीं होगी. कारगिल ने कहा, “ऐसे समय में जब देश कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, लद्दाख जैसे संवेदनशील क्षेत्र के लोगों के साथ ऐसा व्यवहार लोगों के बीच अलगाव और असुरक्षा की भावना को बढ़ाएगा. सरकार को बुद्धिमत्ता का उपयोग करना चाहिए और लोगों के साथ समझदारी से पेश आना चाहिए. जिस तरह से गोलियां चलाई गईं, और कई लोग घायल हुए, उसकी कुछ जवाबदेही होनी चाहिए. यह एक बड़ा उदाहरण है कि हमें लोकतंत्र की आवश्यकता क्यों है.”
उन्होंने सरकार के रुख पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की, “जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लोकतंत्र को भारतीयों के ‘डीएनए’ में होने की बात करते हैं, तो लद्दाख द्वारा लोकतंत्र की मांग करने में क्या गलत था?”
कारगिल ने कहा, “सीआरपीएफ ने हमें निराश किया है. चीन सीमा पर हमारे 20 जवान शहीद हुए, लेकिन सरकार ने चीनी सेना पर गोली चलाने की इजाजत नहीं दी. यह किस तरह की सरकार है, जिसने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया?”
केडीए नेता ने हिंसा की निष्पक्ष न्यायिक जांच और प्रशासन से जवाबदेही की मांग की, खासकर यह देखते हुए कि प्रशासन ने संभावित अशांति की पहले से खुफिया जानकारी होने का दावा किया था.
उन्होंने पूछा, “जब आपके पास जानकारी थी. आपने निवारक उपाय क्यों नहीं किए? आपको गोली क्यों चलानी पड़ी?” उन्होंने कहा, “जो लोग उपवास स्थल पर विरोध कर रहे थे, वे अंत तक शांतिपूर्ण थे. यह बाहर हुआ. इसीलिए हम एक निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं.”
कारगिल ने स्वीकार किया कि वांगचुक की गिरफ्तारी ने क्षेत्र के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा दिया है. उन्होंने कहा, “बहुत कम लोग लद्दाख के संघर्षों के बारे में जानते थे, लेकिन सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद, यह मुद्दा और लद्दाख की मांगें देश के हर घर तक पहुंच गई हैं. “
उन्होंने देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों में वृद्धि की भविष्यवाणी करते हुए कहा, “पहले, विरोध केवल लद्दाख में था; अब आप देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन देखेंगे.” कारगिल ने कहा, “लद्दाख के लोगों के बीच अलगाव, विश्वासघात की भावना बढ़ रही है. लद्दाख के लोग इस देश की ताकत हैं. उन्हें दीवार की ओर नहीं धकेला जाना चाहिए.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, LAB और KDA द्वारा बातचीत रद्द करने की घोषणा के बाद, गृह मंत्रालय (MHA) ने एक बयान जारी कर कहा कि सरकार लद्दाख के मामलों पर बातचीत के लिए हमेशा तैयार है. MHA ने कहा, “हम लद्दाख पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) या ऐसे किसी भी मंच के माध्यम से LAB और KDA के साथ चर्चा का स्वागत करना जारी रखेंगे.” मंत्रालय ने यह भी कहा कि HPC के माध्यम से संवाद तंत्र ने अब तक “अच्छे परिणाम” दिए हैं, जिसमें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण बढ़ाना, पहाड़ी परिषदों में महिला आरक्षण प्रदान करना और स्थानीय भाषाओं की सुरक्षा शामिल है. बयान में यह भी कहा गया कि लद्दाख में 1800 सरकारी पदों पर भर्ती की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है.
सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. आंगमो ने सोमवार को दो फोटो “एक्स” पोस्ट की. इसमें एक में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरी में यूनुस के साथ सोनम वांगचुक नजर आ रहे हैं. इस पोस्ट में गीतांजलि ने लिखा, “अगर सम्मानीय पीएम के यूनुस से मिलना ठीक है, तो भारत के शिक्षक और प्रवर्तक सोनम वांगचुक के मिलने में क्या समस्या है?”
क्या हैं लद्दाख के लोगों की मांगें?
लद्दाख के नागरिक समाज समूह मुख्य रूप से चार प्रमुख मांगें कर रहे हैं: लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपाय, स्थानीय युवाओं के लिए नौकरी आरक्षण और एक लोक सेवा आयोग की स्थापना, और क्षेत्र के लिए दो संसदीय सीटों की मांग. 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर बिना विधायिका वाला केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था, जिसके बाद से ये मांगें तेज़ हो गई हैं.

टैरिफ की मार अमेरिका के पेरेंटिंग पर: एक अन्य ख़बर के अनुसार, अगर भारतीय दवा निर्यातों पर कोई टैरिफ़ लगाया जाता है, तो अमेरिका में गर्भनिरोधक गोलियों की क़ीमत में काफ़ी वृद्धि हो सकती है. प्लान्ड पेरेंटहुड (Planned Parenthood) के अनुसार, वहाँ इनकी क़ीमत फ़िलहाल 50 डॉलर से कम है. सिम्फनी हेल्थ डेटा के ब्लूमबर्ग विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले साल अमेरिका में दी गई सभी गर्भनिरोधक गोलियों में से दो-तिहाई सिर्फ़ दो भारतीय कंपनियों - ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स और ल्यूपिन द्वारा बनाई गई थीं.
विजय की रैली में भगदड़ के लिए पुलिस ने उनकी पार्टी को ज़िम्मेदार ठहराया
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तमिलनाडु के करूर में शनिवार को अभिनेता से नेता बने विजय की रैली में हुई भगदड़ में मरने वालों की संख्या बढ़कर 41 हो गई है. द न्यूज़ मिनट ने चश्मदीदों का हवाला देते हुए घटना के पीछे के कारणों पर रिपोर्ट की है: कई समर्थक जो घंटों से विजय का इंतज़ार कर रहे थे, जो कि देरी से पहुँचे थे, शनिवार शाम तक उनके करूर पहुँचने तक डिहाइड्रेशन और थकावट से गिर पड़े. भीड़, जिसे उनके काफ़िले के लिए रास्ता बनाने के लिए पीछे धकेल दिया गया था, उन्हें देखने की कोशिश में आस-पास की अस्थायी इमारतों, पेड़ों और ट्रांसफार्मरों पर चढ़ गई. इससे भी मदद नहीं मिली कि विजय अपनी गाड़ी के टिंटेड शीशों के पीछे से दिखाई नहीं दे रहे थे. जब टिन की छतें और शाखाएं जिन पर वे खड़े थे, कथित तौर पर ढह गईं, तो “अफ़रा-तफ़री मच गई क्योंकि समर्थक घबराहट में भागने लगे, जिससे पुलिस को बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठियों का इस्तेमाल करना पड़ा”. कुल मिलाकर चार बार भगदड़ मची, जिसमें एक तब हुई जब विजय उस इलाक़े से निकलने लगे थे.
इस बीच, करूर पुलिस ने इस घटना के लिए विजय की पार्टी ‘तमिलगा वेट्री कषगम’ को ज़िम्मेदार ठहराया है. राज्य सरकार द्वारा गठित और मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अरुणा जगदीशन की अध्यक्षता वाले एक जांच आयोग ने कल अपनी जांच शुरू कर दी है.
विदेशियों को निर्वासित करने के लिए असम सरकार की नई एसओपी
असम कैबिनेट ने इस महीने की शुरुआत में विदेशियों को निर्वासित करने के लिए एक नई ‘मानक संचालन प्रक्रिया’ (SOP) को मंज़ूरी दी है. इसके तहत, एक बार जब अधिकारी किसी को संदिग्ध बिना दस्तावेज़ वाले विदेशी के रूप में पहचानते हैं, तो उनके पास यह साबित करने के लिए सिर्फ दस दिन का समय होगा कि वे भारतीय नागरिक हैं या नहीं. यदि ऐसा व्यक्ति ‘संतोषजनक ढंग’ से ऐसा करने में विफल रहता है, तो एक ज़िला आयुक्त 24 घंटे के भीतर उनके निष्कासन का आदेश दे सकता है. रोकिबुज़ ज़मान बताते हैं कि यह एसओपी असम सरकार को विदेशी न्यायाधिकरणों (foreigners’ tribunals) और विदेशियों को निर्वासित करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के अपने निर्देशों को दरकिनार करने की अनुमति देती है, जो किसी व्यक्ति की नागरिकता को उनके अनुमानित गृह देश से सत्यापित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं. विद्वान अंगशुमन चौधरी भविष्यवाणी करते हैं कि एसओपी “ज़िला आयुक्तों के लिए अपने प्रशासनिक प्रदर्शन को ज़्यादा से ज़्यादा ‘विदेशियों’ की पहचान करके दिखाने के लिए एक प्रोत्साहन-आधारित रास्ता बनाएगी... बंगाली मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अधिकारों से वंचित करने की इस नौकरशाही व्यवस्था का पूरा खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा.”
सरकार के ‘गोपनीय’ सहयोग पोर्टल के समर्थन वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को एक्स देगा चुनौती
सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी एक्स (X) के ग्लोबल गवर्नमेंट अफेयर्स हैंडल ने पोस्ट किया है कि वह विवादास्पद सहयोग वेबसाइट के साथ केंद्र सरकार की योजनाओं को बरकरार रखने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ अपील करेगा, जिसे उसने एक “गोपनीय ऑनलाइन पोर्टल” कहा है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शबाना बनाम जीएनसीटी ऑफ़ दिल्ली और अन्य मामले की दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान सहयोग के निर्माण का ख़ुलासा किया था. अदालत ने यह गौर किया था कि तत्काल मामलों को संबोधित करने के लिए इंटरनेट मध्यस्थों और क़ानून प्रवर्तन प्राधिकरणों के बीच वास्तविक समय में बातचीत की आवश्यकता है, जिसे द हिंदू के एक संपादकीय में “बैक डोर सेंसर” कहा गया था.
प्लेटफ़ॉर्म ने सोमवार को कहा कि यह आदेश “लाखों पुलिस अधिकारियों को एक गोपनीय ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से मनमाने ढंग से कंटेंट हटाने के आदेश जारी करने की अनुमति देगा”. एक्स ने दावा किया कि “इस नए सिस्टम का क़ानून में कोई आधार नहीं है” और यह “भारतीय नागरिकों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है”. यह ध्यान देने योग्य है कि एक्स एकमात्र बड़ी टेक कंपनी है जो सहयोग पोर्टल के साथ एकीकृत नहीं है. माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, मेटा और लिंक्डइन पहले से ही इसमें मौजूद हैं. मार्च में, उसने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था कि वह इस पोर्टल पर शामिल नहीं होगी.
आई लव मुहम्मद
बरेली हिंसा: इंटरनेट सेवाओं पर रोक बढ़ी, पुलिस की कड़ी निगरानी जारी
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, बरेली में हाल ही में हुई हिंसा के सिलसिले में पुलिस ने सोमवार को इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के प्रमुख और इस्लामी धर्मगुरु तौकीर रज़ा खान के एक करीबी सहयोगी को हिरासत में लिया है. यह हिंसा ‘आई लव मुहम्मद’ अभियान के समर्थन में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई थी. पुलिस ने कहा कि नदीम नाम के आरोपी ने शुक्रवार (26 सितंबर) को विरोध प्रदर्शन के माध्यम से एक बड़े आंदोलन की साजिश रची थी. पुलिस के अनुसार, “नदीम ने व्हाट्सएप के माध्यम से 55 लोगों को बुलाया, जिन्होंने फिर लगभग 1,600 लोगों की भीड़ जुटाई.“
पुलिस ने 27 सितंबर को श्री खान सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया था. बरेली जिले के विभिन्न पुलिस थानों में दस एफआईआर दर्ज की गई हैं और हिंसा के सिलसिले में कम से-कम 39 लोगों को हिरासत में लिया गया है. अधिकारियों ने बरेली में किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए कड़ी निगरानी बनाए रखी है. एहतियात के तौर पर शहर और पड़ोसी इलाकों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
अधिकारियों ने सोमवार को बताया कि बरेली में इंटरनेट सेवाओं का निलंबन एक और दिन के लिए बढ़ा दिया गया है. अब इंटरनेट सेवाएं मंगलवार (30 सितंबर) की मध्यरात्रि तक निलंबित रहेंगी. 26 सितंबर को जुमे की नमाज़ के बाद हिंसा भड़क गई थी, जब प्रशासन ने श्री खान के इस्लामिया मैदान में इकट्ठा होने के आह्वान की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. इस पर विपक्ष ने पुलिस की कार्रवाई को पक्षपाती बताते हुए सरकार पर हमला बोला है. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज आलम ने कहा, “जिस तरह से पुलिस एक पक्ष ले रही है और एक विशेष समुदाय को अपराधी बना रही है, वह पुलिस की भूमिका में एक बड़े बदलाव का प्रतीक है.”
पिछले साल कपड़े के बैनर पर लिखा था- ‘आई लव मोहम्मद’, तो किसी ने आपत्ति नहीं जताई
ईद मिलाद-उन-नबी की पूर्व संध्या पर कानपुर में एक सामान्य सजावट के रूप में जो शुरू हुआ, वह तीन सप्ताह से अधिक समय तक खिंचकर हाल के दिनों के सबसे विस्फोटक धार्मिक विवादों में से एक बन गया है. 4 सितंबर को कानपुर के सैयद नगर इलाके में लगाया गया –“आई लव मोहम्मद” लिखा एक साधारण रोशनी वाला बैनर, उत्पीड़न, प्राथमिकी, हिरासत, गिरफ्तारी, इंटरनेट शटडाउन, राजनीतिक खींचतान और उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र तक फैले विरोध प्रदर्शनों की लहर का कारण बन गया है.
सप्ताहांत में इसका तात्कालिक केंद्र बिंदु यूपी का बरेली था, जहां मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना तौकीर रज़ा खान द्वारा शुक्रवार की नमाज़ के बाद बुलाए गए विरोध प्रदर्शन ने हिंसा का रूप ले लिया, जिसके बाद पुलिस कार्रवाई, हिरासत, गिरफ्तारी और इंटरनेट बंद कर दिया गया. इस विवाद ने तब से राजनीतिक, कानूनी और सांप्रदायिक आयाम ले लिए हैं, जिससे धार्मिक अभिव्यक्ति, संवैधानिक अधिकारों और कानून-व्यवस्था के प्रबंधन पर सवाल खड़े हो गए हैं.
असद रिज़वी ने अपनी लंबी रिपोर्ट में बताया है कि बरेली में हुई हिंसा ने जल्द ही एक राजनीतिक आयाम ले लिया. उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 27 सितंबर को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इन गड़बड़ियों की निंदा करते हुए इसे “सामाजिक सद्भाव को बाधित करने का एक सुनियोजित प्रयास” बताया. मौलाना तौकीर रज़ा का नाम लिए बिना, उन्होंने कहा, “मौलाना यह भूल गए थे कि सत्ता में कौन है.” समाजावादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सरकार की प्रतिक्रिया की आलोचना में लिखा, “सरकार सद्भाव और सद्भावना से काम करती है, न कि लाठीचार्ज से.”
आरोपियों का कहना है कि बैनर उनकी धार्मिक भावना को दर्शाता था और नियमानुसार था. आरोपियों में से एक, मोहम्मद सिराज ने “द वायर” को बताया, “पुलिस हमें परेशान कर रही है. वे हमें कोई हिंदू बैनर फाड़ते हुए वीडियो, फोटो या सीसीटीवी फुटेज क्यों नहीं दिखा रहे हैं? कुछ भी गैर-कानूनी नहीं हुआ, और नामजद आरोपियों में से कई जुलूस में मौजूद भी नहीं थे.”
उन्होंने कहा, “पिछले साल, हमने कपड़े के बैनर पर यही संदेश प्रदर्शित किया था, और किसी ने आपत्ति नहीं जताई थी. इस साल, हमने एक लाइट बोर्ड का उपयोग किया, और अचानक लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया. मुझे समझ नहीं आता क्यों?”
प्राथमिकी में नामित नमाज़ पढ़ने वाले एक स्थानीय शबनूर आलम ने बताया, “पुलिस ने मुझसे मुस्लिम भीड़ को लाइट बोर्ड हटाने के लिए राजी करने में मदद करने को कहा. मैंने उनसे बात की, और वे सहमत हो गए. मेरी यही एकमात्र भूमिका थी. मुझे समझ नहीं आता कि मेरा नाम प्राथमिकी में क्यों है.”
आलम ने यह भी दावा किया कि उनके पास पैगंबर के जन्मदिन पर सजावट के लिए आधिकारिक अनुमति थी. उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है. संविधान इसकी अनुमति देता है. इसके बावजूद, पुलिस ने हमारे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है.”
हिंदू संगठनों से जुड़े स्थानीय कार्यकर्ता वकील मोहित बाजपेयी ने भी बैनर लगाने पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, “मुझे ‘आई लव मोहम्मद’ पाठ पर कोई आपत्ति नहीं है. संविधान के तहत सभी धर्मों को समान अधिकार हैं.” “हालांकि, बैनर को एक ऐसी जगह पर लगाया गया था जहां आमतौर पर हमारा राम नवमी बैनर, झंडा और गेट प्रदर्शित होता है. हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन नई जगहों पर नई परंपराएं शुरू नहीं की जानी चाहिए. मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है.”
पीके को पैसा कहां से मिलता है? 3 साल में 241 करोड़ कमाए, 99 करोड़ जन सुराज को दान दिए
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने सोमवार को खुलासा किया कि उन्होंने पिछले तीन सालों में बिजनेस कंसल्टिंग के ज़रिए 241 करोड़ रुपये कमाए, जिसमें से लगभग 51 करोड़ रुपये टैक्स के रूप में चुकाए और करीब 99 करोड़ रुपये अपनी पार्टी ‘जन सुराज’ को दान कर दिए. पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यह जानकारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा उनकी पार्टी की फंडिंग पर सवाल उठाए जाने के कुछ दिनों बाद दी.
किशोर ने कहा कि उन्होंने पहले एक सलाहकार के रूप में अपनी सेवाओं के लिए कोई पैसा नहीं लिया था, लेकिन “जब हमने बिहार अभियान शुरू किया, तो हमने फैसला किया कि अब हम एक शुल्क लेंगे क्योंकि हमें समाज के लिए पैसे की ज़रूरत है.” उन्होंने कहा, “तो, 2021 से, जिसने भी प्रशांत किशोर से मदद मांगी है, जिसने भी हमसे सलाह मांगी है... मैं एक शुल्क लेता हूं.” उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने पहले आंकड़े इसलिए सार्वजनिक नहीं किए क्योंकि ‘हमारे सनातन धर्म में दान किए गए धन पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए’.
उल्लेखनीय है कि 2021 में राजनीतिक परामर्श से बाहर निकलने के महीनों बाद, किशोर ने 2 अक्टूबर 2022 को ‘जन सुराज पदयात्रा’ शुरू की, जिसमें अगले दो वर्षों में बिहार के हजारों गांवों को कवर किया गया. 2 अक्टूबर 2024 को उन्होंने अपनी पार्टी ‘जन सुराज’ लॉन्च की.
जुबिन की मौत पर गौरव गोगोई ने सीएम हिमंत पर उंगली उठाई, ‘मुख्य आरोपियों को बचा रहे हैं’
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर गायक जुबिन गर्ग की मौत के मामले में मुख्य संदिग्धों, श्यामकानु महंत और सिद्धार्थ शर्मा को उनके “बीजेपी लिंक” के कारण बचाने का आरोप लगाया है. जुबिन गर्ग का 19 सितंबर को सिंगापुर में निधन हो गया था, जहां वह नॉर्थ ईस्ट इंडिया फेस्टिवल में परफॉर्म करने गए थे. सिंगापुर और असम में हुई दो ऑटोप्सी में किसी भी तरह की गड़बड़ी का खुलासा नहीं हुआ है. हालांकि, कई हलकों से आरोप लगे हैं कि इसमें जुबिन गर्ग के मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा और फेस्टिवल के आयोजक श्यामकानु महंत समेत कई लोग शामिल हो सकते हैं.
गौरव गोगोई, जो लोकसभा सांसद भी हैं, ने कहा, “मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की भूमिका बहुत संदिग्ध है. जुबिन की मौत को दस दिन बीत चुके हैं, हमें अभी भी नहीं पता कि उनका मैनेजर कहां है और मुख्य कार्यक्रम (एनई फेस्ट) का आयोजक कहां है. इन 2 लोगों को जुबिन गर्ग की मौत से पहले के आखिरी कुछ घंटों की सबसे गहरी जानकारी है.” उन्होंने आरोप लगाया कि असम पुलिस “न्याय” की मांग करने वाले लोगों को पीट रही है, लेकिन दो मुख्य संदिग्धों को छूट दे रही है.
रिपोर्ट के मुताबिक, श्यामकानु असम राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त और पूर्व डीजीपी भास्कर ज्योति महंत के छोटे भाई हैं. उनके एक और भाई, नानी गोपाल महंत, सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के शिक्षा सलाहकार थे. बाद में उन्होंने गौहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति का पद संभाला. गोगोई ने कहा, “मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह उन्हें 6 अक्टूबर तक पुलिस के सामने पेश होने की अनुमति दे रहे हैं. यह वीआईपी ट्रीटमेंट क्यों? क्या इसलिए कि मैनेजर के बीजेपी से करीबी संबंध हैं? या इसलिए कि श्यामकानु महंत के दिल्ली और दिसपुर में बीजेपी के मंत्रियों के साथ बहुत करीबी संबंध हैं?”
सड़क चौड़ी करने के लिए हॉकी ओलंपियन मोहम्मद शाहिद का वाराणसी स्थित घर तोड़ा गया
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी में सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत रविवार को ओलंपियन हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद के पैतृक घर का एक हिस्सा ध्वस्त कर दिया गया. इस कदम पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार पर निशाना साधा और इसे “शर्मनाक” और “देश की खेल विरासत को मिटाने का प्रयास” बताया.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने एक्स पर लिखा, “पद्म श्री मोहम्मद शाहिद का घर बीजेपी सरकार ने जमींदोज कर दिया. यह सिर्फ एक घर नहीं था, बल्कि देश की खेल विरासत का एक प्रमाण था.” वहीं, आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी बीजेपी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा, “यह शर्मनाक है कि ओलंपियन मोहम्मद शाहिद का परिवार, जिन्होंने भारत को गौरव दिलाया, हाथ जोड़कर अपने घर को तोड़ने के लिए सिर्फ एक दिन की मोहलत मांग रहा था. लेकिन बीजेपी सरकार की बुलडोजर राजनीति में न तो इंसानियत बची है और न ही देश के नायकों का सम्मान.”
हालांकि, दिवंगत हॉकी खिलाड़ी की पत्नी परवीन ने संपर्क करने पर कहा कि उन्हें विध्वंस पर “कोई आपत्ति नहीं” है क्योंकि उन्हें इसके लिए मुआवजा मिल चुका है. उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि उनके दिवंगत पति की यादों को जीवित रखने के लिए उसी कचहरी इलाके में एक स्मारक बनाया जाए. उन्होंने बताया कि संपत्ति के नौ दावेदारों में से दो को छोड़कर बाकी सभी को मुआवजा मिल गया है.
लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधिकारियों ने कहा कि चार मंजिला घर का केवल एक हिस्सा गिराया गया और निवासियों को मुआवजा दिया गया था. अधिकारियों ने यह भी कहा कि चूंकि मोहम्मद शाहिद सहित कई निवासियों के पास ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं था, इसलिए उन्हें केवल उस पर बने घरों के लिए मुआवजा दिया गया, न कि भूखंडों के लिए. परवीन ने भी पुष्टि की कि परिवार के पास ज़मीन के मालिकाना हक़ के कागज़ात नहीं थे. PWD के अधिशासी अभियंता केके सिंह ने कहा, “परियोजना में कचहरी से आशापुर तक 9.325 किलोमीटर सड़क का चौड़ीकरण शामिल है. केवल 325 मीटर का हिस्सा बचा है जहां लगभग 70 घर थे. इनमें से 47 के निवासियों ने पूरा मुआवजा स्वीकार कर लिया है.”
‘बहुत हो गया’: पीओके में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन, सुधारों की मांग
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में अवामी एक्शन कमेटी (AAC) द्वारा सोमवार को “शटर-डाउन” और “व्हील-जाम” हड़ताल शुरू करने के बाद अशांति फैल गई. हाल के इतिहास में सबसे बड़े माने जा रहे इन विरोध प्रदर्शनों ने इस्लामाबाद को भारी सुरक्षा तैनात करने और भीड़ को रोकने के प्रयास में पूरे क्षेत्र में इंटरनेट का उपयोग बंद करने के लिए मजबूर किया है.
एएसी, जिसने हाल के महीनों में लगातार प्रभाव प्राप्त किया है, दूरगामी राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की मांग कर रहा है. उसके 38-सूत्रीय चार्टर के केंद्र में PoK विधानसभा में पाकिस्तान में रहने वाले कश्मीरी शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 सीटों को खत्म करना है. प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि ये सीटें स्थानीय प्रतिनिधित्व को कमजोर करती हैं. अन्य मांगों में रियायती आटा, मंगला जलविद्युत परियोजना से जुड़े समान बिजली शुल्क और इस्लामाबाद द्वारा बहुत पहले किए गए सुधारों को लागू करना शामिल है.
एएसी नेता शौकत नवाज़ मीर ने मुज़फ़्फ़राबाद में प्रदर्शनकारियों से कहा, “हमारा अभियान किसी भी संस्था के खिलाफ नहीं है, बल्कि हमारे लोगों को 70 से अधिक वर्षों से वंचित उनके मौलिक अधिकारों के लिए है.” उन्होंने चेतावनी दी, “बहुत हो गया. या तो अधिकार दो या लोगों के गुस्से का सामना करो.” सरकार ने व्यापक सुरक्षा उपायों के साथ प्रतिक्रिया दी है. पंजाब प्रांत से हजारों अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया गया है, साथ ही इस्लामाबाद से 1,000 पुलिस कर्मियों को भेजा गया है. यह सुरक्षा तैनाती एएसी प्रतिनिधियों, पीओके प्रशासन और संघीय मंत्रियों के बीच मैराथन वार्ता के विफल होने के बाद हुई है.
उमर खालिद मामले पर चंद्रचूड़ के दावों पर फिर उठे सवाल
आर्टिकल-14 के लिए बेतवा शर्मा की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा कार्यकर्ता उमर खालिद मामले पर दिए गए बयानों पर फिर से सवाल उठाए गए हैं. इस सप्ताह एक इंटरव्यू के दौरान, लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी ने पूर्व सीजेआई से पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट लगातार कहता रहा है कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’, तो उमर खालिद को पांच साल तक बिना जमानत या मुकदमे के जेल में क्यों रखा गया.
इस पर पूर्व सीजेआई का जवाब, जिसमें उन्होंने ‘फोरम शॉपिंग’ के ‘गंभीर खतरे’ की बात की (जिसका अर्थ है कि वादी एक अनुकूल बेंच हासिल करने या किसी विशेष न्यायाधीश से बचने की कोशिश करते हैं), और सुप्रीम कोर्ट में केस आवंटन की मानक प्रक्रिया को दोहराया, उसे रिपोर्ट में भ्रामक बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बार फिर, पूर्व मुख्य न्यायाधीश - शायद जानबूझकर - मुद्दे से भटक गए, इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि कैसे फोरम शॉपिंग न्यायिक निरंतरता में एक गहरी खराबी को दर्शाती है.
रिपोर्ट में जस्टिस बेला त्रिवेदी को मामले के आवंटन पर चिंता व्यक्त की गई है, जिनके पास जमानत देने का एक खराब ट्रैक रिकॉर्ड है. जस्टिस त्रिवेदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की सरकार में कानून सचिव के रूप में कार्य कर चुकी हैं. उमर खालिद की जमानत याचिका को जस्टिस त्रिवेदी को आवंटित किया गया था, जिससे प्रक्रियात्मक चिंताएं पैदा हुईं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूर्व सीजेआई का यह कहना कि ‘बेला त्रिवेदी को मामला नहीं सुनना चाहिए क्योंकि वह कानून सचिव थीं, यह कहना पूरी तरह से गलत है’, भ्रामक है. लेखक का कहना है कि उन्होंने जस्टिस त्रिवेदी की पृष्ठभूमि, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर उनके न्यायिक रिकॉर्ड, वकीलों की चिंताओं और मामले के आवंटन के साथ प्रक्रियात्मक मुद्दों पर ध्यान दिया था.
अंत में, रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी भी निष्पक्ष न्यायिक जांच से पता चलेगा कि यह “बड़ी साजिश” का मामला कमजोर सबूतों और अनुमानों पर टिका है, जिसका उद्देश्य सीएए-विरोधी आंदोलन को बदनाम करना, मुस्लिम कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना और उमर खालिद को खलनायक बनाना है.
मोदी ने क्रिकेट में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ घुसेड़ा, मेलोनी की आत्मकथा को अपनी ‘मन की बात’ कहा
देश में, प्रधानमंत्री मोदी ने क्रिकेट मैच की तुलना “खेल के मैदान पर ऑपरेशन सिंदूर” से की, जिसमें “नतीजा एक ही होता है”, यानी “भारत जीतता है”. इस पर यह बताया गया है कि कुछ लोग, विशेष रूप से वे जिनके नाम पर उक्त ऑपरेशन का नाम रखा गया है, प्रधानमंत्री के ‘जीत’ के इस पैमाने से सहमत नहीं हो सकते हैं.
इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी ने इतालवी प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी की आत्मकथा के भारतीय संस्करण की प्रस्तावना लिखी है और अपने ख़ास अंदाज़ में, उन्होंने इसे आंशिक रूप से अपने बारे में बना दिया. उन्होंने समझाया कि मेलोनी की जीवन कहानी अनिवार्य रूप से “उनकी ‘मन की बात’” है. क्योंकि स्वाभाविक रूप से, इटली की धुर-दक्षिणपंथी नेता की आत्मकथा को भी केवल मोदी के अपने रेडियो मोनोलॉग के चश्मे से ही समझा जा सकता है. यहीं नहीं रुकते हुए, उन्होंने मेलोनी की जमकर तारीफ़ की, उन्हें “प्रेरणादायक और ऐतिहासिक” कहा, और - एक से अधिक बार - दावा किया कि उनकी यात्रा भारतीयों के साथ गहराई से मेल खाती है. यह एक अजीब मेल है: एक यूरोपीय नेता की व्यक्तिगत चढ़ाई स्पष्ट रूप से एक अरब से अधिक भारतीयों की आकांक्षाओं को आईना दिखाती है, जिनके अपने संघर्षों को मोदी शायद ही कभी इतना बढ़ावा देते दिखते हैं. शायद, बेरोज़गारी, महंगाई या देश में असहमति की रोज़मर्रा की हक़ीक़तों के बजाय एक चमचमाती इतालवी आत्मकथा में ‘भारत की कहानी’ खोजना ज़्यादा आसान है.
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