30/12/2025: ममता ने अमित शाह से इस्तीफ़ा मांगा | बंगाल में 60 एसआईआर मौतेें | यूपी से 2.89 करोड़ नाम कटेंगे? | युद्ध रुकवाने का श्रेय चीन ने भी लिया | खालिदा ज़िया का निधन | सनी लियोन और मथुरा के संत
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
ममता बनाम चुनाव आयोग: ममता बनर्जी ने मतदाता सूची संशोधन को बताया ‘बड़ा घोटाला’, कहा- असली वोटरों के नाम कटे तो दिल्ली में घेराव करेंगे.
बंगाल में मौतें: ड्राफ्ट लिस्ट से नाम कटने के सदमे में बुजुर्ग ने ट्रेन के आगे दी जान, टीएमसी का दावा- अब तक 60 मौतें.
यूपी वोटर लिस्ट: 2.89 करोड़ नाम कटने की आशंका, आयोग ने ड्राफ्ट प्रकाशन की तारीख बढ़ाई.
खालिदा जिया का निधन: बांग्लादेश की पूर्व पीएम नहीं रहीं, पीएम मोदी ने जताया शोक.
रूस-यूक्रेन तनाव: पुतिन के आवास पर ड्रोन हमले का दावा, ज़ेलेंस्की ने नकारा, भारत ने जताई चिंता.
चीन का दावा: कहा- भारत-पाकिस्तान में कराई मध्यस्थता, भारत ने सिरे से नकारा.
गाजियाबाद और बरेली: तलवार बांटने पर 10 गिरफ्तार, बर्थडे पार्टी और होटल में भीड़ की गुंडागर्दी.
डाक सेवा बंद: डेनमार्क में 400 साल पुरानी पोस्टल सर्विस खत्म, अब नहीं बंटेंगी चिट्ठियां.
ममता बनर्जी ने मतदाता सूची संशोधन को बताया ‘बड़ा घोटाला’, कहा- असली वोटरों के नाम कटे तो दिल्ली में चुनाव आयोग का घेराव करेंगे
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में चल रहे मतदाता सूची के ‘विशेष गहन संशोधन’ (एसआईआर) को लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग (ईसी) के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस (TNIE) और द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार को बांकुड़ा जिले में एक रैली को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने चेतावनी दी कि यदि अंतिम मतदाता सूची से एक भी वैध मतदाता का नाम हटाया गया, तो तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) दिल्ली में चुनाव आयोग के कार्यालय का घेराव करेगी. ममता ने इस पूरी प्रक्रिया को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से किया जा रहा एक “बड़ा घोटाला” करार दिया और कहा कि राज्य की जनता इस तरह के उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करेगी.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर तीखा हमला बोलते हुए ममता ने उनकी तुलना महाभारत के ‘दुशासन’ से की. उन्होंने कहा, “एसआईआर का संचालन ‘एआई’ का उपयोग करके किया जा रहा है, यह एक बहुत बड़ा स्कैम है. याद रखिए, केवल आप (अमित शाह) और आपके बेटे ही बचेंगे, बाकी सब परेशान होंगे.” ममता ने दावा किया कि इस प्रक्रिया के कारण राज्य के गरीब लोगों को मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है. उनके अनुसार, एसआईआर प्रक्रिया के तनाव और दौड़भाग के चलते अब तक लगभग 60 लोगों की मौत हो चुकी है. उन्होंने सवाल उठाया कि बुजुर्गों को दस्तावेजों के सत्यापन के लिए बार-बार सुनवाई केंद्रों पर क्यों बुलाया जा रहा है.
अमित शाह द्वारा बंगाल को ‘आतंकवादियों का अड्डा’ बताए जाने पर पलटवार करते हुए ममता ने पूछा, “अगर जम्मू-कश्मीर में कोई आतंकवादी नहीं है, तो पहलगाम की घटना कैसे हुई? क्या आपने पहलगाम हमला करवाया था? दिल्ली में हुए बम धमाके के पीछे कौन था?” ममता ने भाजपा शासित राज्यों में बंगाली प्रवासियों पर हो रहे कथित हमलों की भी आलोचना की और कहा कि भाजपा चुनाव आते ही “सोनार बांग्ला” का वादा करती है, लेकिन वास्तविकता में बंगाली भाषियों को पीटा जाता है.
द टेलीग्राफ के विश्लेषण के अनुसार, ममता बनर्जी की इस आक्रामकता के पीछे ठोस राजनीतिक कारण हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद टीएमसी और भाजपा के बीच वोटों का अंतर करीब 42 लाख था. लेकिन अब राज्य में एसआईआर के शुरुआती चरण के बाद मसौदा सूची से 58 लाख से अधिक नाम हटा दिए गए हैं. इतना ही नहीं, चुनाव आयोग ने 1.66 करोड़ मतदाताओं की ‘जेनुइननेस’ (वास्तविकता) पर संदेह जताया है. टीएमसी के लिए चिंता की बात यह है कि हटाए गए मतदाताओं की संख्या कई सीटों पर उनकी जीत के अंतर से ज्यादा है. कोलकाता और उसके आसपास के जिलों (जैसे बैरकपुर, दमदम, जादवपुर) में जहां टीएमसी मजबूत है, वहां हटाए गए नामों की संख्या जीत के अंतर से काफी अधिक है. यही कारण है कि ममता ने अपनी पार्टी के बूथ लेवल एजेंटों (बीएलए) को निर्देश दिया है कि जब तक असली वोटरों के नाम सूची में वापस नहीं आते, वे सुनवाई केंद्रों पर डटे रहें.
इस बीच, पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस ऑफिसर्स एसोसिएशन ने भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखकर “सिस्टम-ड्रिवन डिलीशन” (बिना मानवीय जांच के कंप्यूटर द्वारा नाम हटाना) पर कड़ी आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाता पंजीकरण अधिकारियों की वैधानिक भूमिका को दरकिनार करती है और मतदाताओं के प्राकृतिक अधिकारों का हनन करती है.
बंगाल: ड्राफ्ट मतदाता सूची में नाम नहीं था, बुजुर्ग ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दी, अब तक 60 मौतें
“पीटीआई” की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में सोमवार को एक बुजुर्ग व्यक्ति ने चलती ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी, 82 वर्षीय दुर्जन माझी का नाम 16 दिसंबर को प्रकाशित ड्राफ्ट (प्रारूप) मतदाता सूची में नहीं आया था, जिसके बाद उन्हें सुनवाई के लिए उपस्थित होने का नोटिस मिला था. उनके बेटे कन्हाई ने बताया कि उन्हें पारा ब्लॉक विकास अधिकारी के कार्यालय में सुनवाई के लिए बुलाया गया था. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले कन्हाई ने कहा कि उनके पिता का नाम 2002 की मतदाता सूची में होने के बावजूद ड्राफ्ट लिस्ट से हटा दिया गया था. कन्हाई के अनुसार, “मेरे पिता ने गणना फॉर्म जमा किया था, लेकिन ड्राफ्ट मतदाता सूची में उनका नाम नहीं था. उनका नाम 2002 की सूची में था. 25 दिसंबर को सुनवाई का नोटिस मिलने के बाद से ही वे बहुत चिंतित और तनाव में थे.”
इस बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विशेष गहन पुनरीक्षण के कारण हो रही मौतों की कड़ी निंदा करते हुए इसे राज्य के गरीब लोगों के लिए “प्रताड़ना” करार दिया. उन्होंने कहा कि इस विवादास्पद प्रक्रिया के कारण अब तक लगभग 60 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. मुख्यमंत्री ने इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से किया जा रहा एक “बड़ा घोटाला” बताया.
उल्लेखनीय है कि राज्य में एसआईआर के शुरुआती चरण के बाद 16 दिसंबर को प्रकाशित ड्राफ्ट रोल (प्रारूप सूची) से 58 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए थे. कुल 7.6 करोड़ मतदाताओं में से, चुनाव आयोग ने लगभग 1.66 करोड़ मतदाताओं की “प्रामाणिकता” पर भी संदेह जताया है, जिन्हें अपने दस्तावेजों के पुन: सत्यापन के लिए सुनवाई हेतु बुलाया गया है.
यूपी में हटाए जा सकते हैं 2.89 करोड़ नाम, ड्राफ्ट मतदाता सूची की तारीख फिर बढ़ाई
चुनाव आयोग द्वारा उत्तरप्रदेश प्रारूप मतदाता सूची के प्रकाशन को बुधवार 31 दिसंबर से टालकर 6 जनवरी करने के बीच, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा प्राप्त अंतिम आंकड़ों से पता चलता है कि मतदाता सूचियों के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के कारण लगभग 2.89 करोड़ मतदाताओं या कुल निर्वाचकों में से 18.70% के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, 27 अक्टूबर से 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू हुए इस अभ्यास में उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक नाम हटाए जाने की संभावना है. तमिलनाडु (15%) और गुजरात (14.5%) इस सूची में दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं. नाम हटाए जाने के मुख्य कारणों में मतदाताओं का मृत होना, स्थानांतरित/अनुपस्थित होना या एक से अधिक स्थानों पर नाम दर्ज होना शामिल है.
यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा ने बताया कि प्रकाशन को इसलिए टाला गया है, क्योंकि ‘युक्तिकरण’ अभ्यास के दौरान 15,030 नए मतदान केंद्र बनाए गए हैं. अब प्रारूप मतदाता सूची 6 जनवरी को प्रकाशित होगी. दावों और आपत्तियों को 6 जनवरी से 6 फरवरी तक स्वीकार किया जाएगा. मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 6 मार्च को होगा.
आंकड़ों का विश्लेषण दिखाता है कि राज्य के शहरी जिलों में नाम कटने की संख्या अधिक है. सबसे ज्यादा प्रभावित शीर्ष 5 जिले इस प्रकार हैं: लखनऊ: 12 लाख नाम (कुल मतदाताओं का 30%), प्रयागराज: 11.56 लाख (24.64%), कानपुर नगर: 9 लाख (25.5%), आगरा: 8.36 लाख (23.25%), गाजियाबाद: 8.18 लाख (28.83%).
ट्रंप के बाद अब चीन का दावा- भारत-पाकिस्तान तनाव में की ‘मध्यस्थता’, भारत ने नकारा
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दावा किया है कि इस वर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के लिए चीन ने “मध्यस्थता” की थी. ‘द टेलीग्राफ’ और ‘पीटीआई’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजिंग में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए वांग यी ने कहा कि चीन ने उत्तरी म्यांमार, ईरान परमाणु मुद्दे और भारत-पाकिस्तान तनाव जैसे हॉटस्पॉट मुद्दों को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका निभाई.
हालांकि, भारत ने इस दावे को खारिज करते हुए अपनी पुरानी स्थिति दोहराई है कि किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है. नई दिल्ली का कहना है कि 7-10 मई, 2025 के बीच हुए संघर्ष (ऑपरेशन सिंदूर) को दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (डीजीएमओ) के बीच सीधी बातचीत के जरिए सुलझाया गया था. विदेश मंत्रालय ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि संघर्ष विराम की शर्तें 10 मई 2025 को डीजीएमओ के बीच फोन पर तय हुई थीं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि मई में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान को चीन द्वारा दिए गए सैन्य समर्थन की काफी आलोचना हुई थी. भारत के उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने आरोप लगाया था कि बीजिंग ने इस संघर्ष को एक “लाइव लैब” के रूप में इस्तेमाल किया और “उधार के चाकू” से दुश्मन को मारने की अपनी प्राचीन रणनीति अपनाई. वांग यी ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि भारत-चीन संबंधों में सुधार की गति अच्छी है और उन्होंने अगस्त में तियानजिन में आयोजित एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी को आमंत्रित किया था.
खालिदा जिया का निधन
बांग्लादेश की राजनीति में एक कद्दावर चेहरा और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की कट्टर प्रतिद्वंद्वी, खालिदा जिया का मंगलवार को 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस और द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, वह लंबे समय से लीवर सिरोसिस, गठिया और डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं. उनके बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान ने बताया, “मेरी माँ अब नहीं रहीं.” उन्होंने ढाका के एवरकेयर अस्पताल में अंतिम सांस ली. खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं और उन्होंने 1991 से 1996 और फिर 2001 से 2006 तक देश का नेतृत्व किया.
खालिदा जिया का निधन बांग्लादेश की राजनीति के उस दौर का अंत है जिसे “दो बेगमों की लड़ाई” के रूप में जाना जाता था. दोनों नेताओं ने व्यक्तिगत त्रासदियां झेली थीं—हसीना के पिता मुजीबुर रहमान की हत्या हुई थी, जबकि खालिदा के पति और पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान एक सैन्य तख्तापलट में मारे गए थे. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और कहा कि भारत-बांग्लादेश संबंधों में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. मोदी ने 2015 की अपनी ढाका यात्रा के दौरान खालिदा जिया के साथ हुई मुलाकात को भी याद किया.
द टेलीग्राफ और द हिंदू ने अपने विश्लेषण में भारत के साथ खालिदा जिया के जटिल संबंधों पर प्रकाश डाला है. खालिदा जिया को अक्सर “भारत विरोधी” नेता का टैग दिया जाता था, क्योंकि उनके शासनकाल में पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी समूहों को बांग्लादेश में पनाह मिली और उन्होंने भारत को ट्रांजिट अधिकार देने का विरोध किया था. हालांकि, उनके करीबी सहयोगियों का कहना है कि यह धारणा पूरी तरह सही नहीं थी. रिपोर्ट के मुताबिक, व्यक्तिगत स्तर पर वह भारतीय नेताओं के साथ गर्मजोशी से मिलती थीं. 2012 में जब वह विपक्ष की नेता के रूप में भारत आई थीं, तो तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी के साथ उनकी मुलाकात काफी लंबी चली थी. प्रणब मुखर्जी के लिए वह विशेष रूप से ढाका से बंगाली मिठाइयां (पाटीशप्टा और पीठे) भिजवाती थीं.
हालांकि, 2013 में जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति के तौर पर बांग्लादेश गए, तो खालिदा जिया ने हड़ताल का हवाला देकर उनसे मिलने से इनकार कर दिया था. इसे भारत के प्रति एक बड़ा कूटनीतिक अपमान माना गया और इसके बाद भारत का झुकाव पूरी तरह से शेख हसीना की ओर हो गया. 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने के बाद खालिदा जिया की राजनीतिक सक्रियता कम हो गई थी. विश्लेषकों का मानना है कि उनकी मौत के बाद अब बीएनपी की कमान पूरी तरह उनके बेटे तारिक रहमान के हाथ में होगी और यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में भारत और बीएनपी के रिश्ते क्या मोड़ लेते हैं. उनका अंतिम संस्कार बुधवार को ढाका में संसद भवन परिसर के सामने किया जाएगा.
‘गैरकानूनी बुलडोजर कार्रवाई’ पर 5 करोड़ का मुआवजा: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने प्रशासन को जारी किया नोटिस
‘मक्तूब मीडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक वाणिज्यिक ढांचे को कथित रूप से गैरकानूनी तरीके से गिराए जाने के मामले में केंद्र शासित प्रदेश (UT) प्रशासन को नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता फारूक अहमद वानी ने अपनी आजीविका के उल्लंघन और संपत्ति के नुकसान के लिए 5 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है.
न्यायमूर्ति राहुल भारती की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रशासन ने “कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना” और मशीनरी का उपयोग करके ढांचे को गिरा दिया. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके पास 2018 का एक वैध समझौता था और प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा “बुलडोजर न्याय” के खिलाफ दिए गए दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया है. हाईकोर्ट ने स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है, जिसका अर्थ है कि वहां किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं होगा. मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी, 2026 को होगी.
असम, त्रिपुरा में 11 गिरफ्तार, बांग्लादेशी आतंकी संगठन से संबंध का आरोप
इस बीच असम स्पेशल टास्क फोर्स ने प्रतिबंधित बांग्लादेशी आतंकी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश की शाखा ‘इमाम महमुदेर काफिला’ से कथित संबंधों के आरोप में 11 लोगों को गिरफ्तार किया है. गुवाहाटी के पुलिस आयुक्त और एसटीएफ प्रमुख पार्थसारथी महंता ने बताया कि केंद्रीय एजेंसियों से मिले खुफिया इनपुट के आधार पर असम के बारपेटा, चिरांग, बक्सा और दरांग जिलों के साथ-साथ त्रिपुरा में भी छापेमारी की गई. एसटीएफ के अनुसार, ये तत्व बांग्लादेश स्थित समूहों के आदेश पर काम कर रहे थे. यह समूह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, विशेष रूप से ‘पूर्वा आकाश’ नामक समूह के माध्यम से भर्ती और संचार करता है. इसमें असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के लोगों को कट्टरपंथी बनाया जा रहा था.
गाजियाबाद के होटल में हिंदू कार्यकर्ता घुसे, पकड़ा जोड़ा; मारे थप्पड़ और मांगा आधार
जो काम पुलिस का होना चाहिए, वो अब “भीड़” (मॉब) कर रही है. ‘मॉब’ द्वारा कानून अपने हाथ में लेने के मामले बढ़ते जा रहे हैं. मंगलवार (30 दिसंबर) को उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद से ऐसी ही खबर आई, जब हिंदू संगठन से जुड़ी भीड़ एक होटल में घुस गई और एक केबिन के अंदर एक जोड़े को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया. ऑनलाइन रिपोर्टों के अनुसार, होटल में घुसने वाले लोग एक हिंदू संगठन से जुड़े थे, हालांकि इस संबंध में अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. जब भीड़ ने जोड़े को केबिन से बाहर खींचा, तब लड़की अर्ध-नग्न अवस्था में थी.
“फ्री प्रेस” के मुताबिक, यह घटना जिले के मोदीनगर इलाके में हुई, जिसे कैमरे में कैद कर लिया गया और इसका वीडियो ऑनलाइन सामने आया है. वायरल क्लिप में भीड़ युवक की पिटाई करते हुए उसका नाम और आधार कार्ड मांगती दिख रही है. युवक ने अपनी पहचान लक्ष्य के रूप में बताई. हालांकि, कार्यकर्ता उसे थप्पड़ मारते रहे और उससे उसका आधार कार्ड मांगते रहे. वीडियो में युवक को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “ऋषभ भैया, आप तो जानते हो मुझे.” हिंदू कार्यकर्ता होटल में क्यों घुसे और जोड़े पर हमला क्यों किया, इसका सटीक कारण अभी पता नहीं चला है.
गाजियाबाद पुलिस ने वायरल वीडियो का संज्ञान लिया है. गाजियाबाद के डीसीपी ग्रामीण ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “उपर्युक्त मामले के संबंध में मोदीनगर के थाना प्रभारी को जांच करने और आवश्यक कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है.”
बरेली: जन्मदिन की पार्टी में ‘लव जिहाद’ का शोर मचाकर गुंडागर्दी, पीड़ित युवती का सवाल- क्या मुझे धर्म देखकर दोस्त चुनने होंगे?
उत्तर प्रदेश के बरेली में मॉरल पुलिसिंग और गुंडागर्दी का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक कैफे में अपना जन्मदिन मना रही 22 वर्षीय नर्सिंग छात्रा और उसके दोस्तों पर दक्षिणपंथी संगठन से जुड़े कथित सतर्कता दल ने हमला कर दिया. घटना शनिवार की है, जब करीब दो दर्जन लोग ‘लव जिहाद’ का आरोप लगाते हुए पार्टी में घुस आए. इस हमले का कारण केवल यह था कि युवती की बर्थडे पार्टी में उसके दो मुस्लिम दोस्त—वाकिब और शान—भी शामिल थे.
पीड़ित युवती ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा, “मैं पिछले चार साल से हॉस्टल में रह रही हूँ. मेरे माता-पिता किसान हैं और वे जानते हैं कि मेरे दोस्त कौन हैं. जब मेरे परिवार को मेरे मुस्लिम दोस्तों से कोई आपत्ति नहीं है, तो ये बाहरी लोग कौन होते हैं मुझे ‘गाइड’ करने वाले?” उसने बताया कि उसने 40 दोस्तों को आमंत्रित किया था, लेकिन केवल 12 ही आए थे. जैसे ही वह केक काटने लगी, हमलावरों ने धावा बोल दिया. उन्होंने विशेष रूप से वाकिब और शान को निशाना बनाया और उन्हें बुरी तरह पीटा. युवती ने आरोप लगाया कि हमलावरों ने उसके और अन्य लड़कियों के साथ भी बदसलूकी की और उनका मोबाइल छीनने की कोशिश की.
हैरानी की बात यह रही कि पुलिस ने शुरुआत में हमलावरों पर कार्रवाई करने के बजाय, शांति भंग की धाराओं में पीड़ित युवकों और कैफे मालिक को ही हिरासत में ले लिया, जिन्हें बाद में जमानत पर रिहा किया गया. अब तक पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन मुख्य आरोपी ऋषभ ठाकुर और दीपक पाठक फरार हैं. आरोप है कि इनके संबंध बजरंग दल से हैं, हालांकि संगठन ने इससे इनकार किया है. इस घटना से युवती गहरे सदमे में है. उसने कहा, “मैं डिप्रेशन में हूँ और डर के मारे घर से बाहर नहीं निकल रही. इस घटना ने पूरे देश में मेरी छवि खराब कर दी है. मुझे समझ नहीं आता कि इन लोगों को दूसरों के निजी जीवन में दखल देने और जज करने का अधिकार किसने दिया?”
दिग्विजय जैसे पुराने दिग्गजों के साथ कांग्रेस खुद को पुनर्जीवित नहीं कर सकती, क्यों?
वयोवृद्ध कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के एक ट्वीट ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में आरएसएस की प्रशंसा करते हुए उन्होंने संकेत दिया कि कांग्रेस को भी आरएसएस की तरह संगठन-निर्माण पर ध्यान देना चाहिए. यह बहस कांग्रेस नेतृत्व, विशेषकर राहुल गांधी को असहज कर सकती है, लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले दोनों संस्थाओं के मूल स्वभाव को समझना आवश्यक है.
“सत्यहिंदी.कॉम” के सह-संस्थापक आशुतोष ने “फ्रीप्रेस जर्नल” में लिखा है कि के.बी. हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना इस विश्लेषण के आधार पर की थी कि हिंदू समाज अपनी असंगठित प्रकृति के कारण सदियों तक गुलाम रहा. इसलिए, उन्होंने एक ऐसी संस्था बनाई जिसकी जीवन रेखा ‘संगठन’ है. यदि आरएसएस से इस संगठनात्मक ढांचे को हटा दिया जाए, तो वह एक शून्य के समान होगा. संगठन ही इसका सभ्यतागत आधार है.
इसके विपरीत, कांग्रेस का जन्म एक अलग उद्देश्य के लिए हुआ था—भारत को गहरी नींद से जगाना और ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध जन-आंदोलन खड़ा करना. कांग्रेस का मुख्य कार्य लोगों के मन से ‘भय’ को निकालना था. जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि गांधी का सबसे बड़ा उपहार ‘अभय’ (निर्भयता) था. गांधी जानते थे कि शक्तिशाली ब्रिटिश राज का मुकाबला केवल संगठन से नहीं, बल्कि जन-जागृति और अहिंसा से किया जा सकता है. कांग्रेस की असली ताकत संगठन नहीं, बल्कि जनता के साथ उसकी ‘संवेदना’ और ‘भावुकता’ रही है.
आरएसएस दशकों तक हाशिए पर रहा और वह तब प्रभावी हुआ जब उसने ‘राम मंदिर’ जैसे भावनात्मक मुद्दों को अपने संगठन से जोड़ा. भाजपा की वर्तमान सफलता केवल संगठन के कारण नहीं, बल्कि मोदी के करिश्मे और भावनात्मक जुड़ाव के कारण है.
आज जो लोग कांग्रेस को आरएसएस की तरह संगठन बनाने की सलाह देते हैं, वे दो बातें भूल रहे हैं: एक- मजबूत संगठन बनने में दशकों लगते हैं, यह रातों-रात संभव नहीं है. और दो- संगठन बनाना कांग्रेस की मूल प्रकृति में ही नहीं है.
आशुतोष के मुताबिक, “यदि कांग्रेस को वर्तमान संकट से उबरना है, तो उसे एक ऐसा मुद्दा पहचानना होगा, जिससे लोगों का भावनात्मक जुड़ाव हो ताकि एक जन-आंदोलन खड़ा किया जा सके; साथ ही, इसे आरएसएस द्वारा निर्मित उस तंत्र के भय से खुद को मुक्त करना होगा, जिसका बाहरी चेहरा मोदी हैं. राहुल गांधी ने उस यात्रा की शुरुआत कर दी है. वे अपने स्वयं के उदाहरण से पार्टी में निर्भयता भरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि यह बहुत लंबे समय तक सत्ता के सुखद आराम में रही है, इसने लड़ने की इच्छाशक्ति खो दी है, और इसके नेतृत्व का एक बड़ा हिस्सा मोदी और शाह से बहुत डरा हुआ है. कांग्रेस को ‘नए खून’ की जरूरत है, जिसका प्रतिनिधित्व ‘अभय’ (निर्भयता) करे, न कि दिग्विजय सिंह जैसे पुराने दिग्गजों की. उनका समय अब बीत चुका है. कांग्रेस पार्टी को यही समझने की जरूरत है.”
आरएसएस ने भारतीय संस्थाओं में इतनी गहरी जड़ें जमाईं, मोदी के जाने के बाद भी ताकतवर बना रहेगा
“द न्यूयॉर्क टाइम्स” में मुजीब मशाल और हरि कुमार ने लिखा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अब केवल एक सामाजिक संगठन नहीं, बल्कि भारत की दिशा तय करने वाली सबसे बड़ी शक्ति बन चुका है. आरएसएस ने भारत की संस्थाओं में इस हद तक पैठ बना ली है और उन्हें अपने साथ मिला लिया है कि इसकी गहरी जड़ें यह सुनिश्चित करेंगी कि पीएम मोदी के जाने के बाद भी यह लंबे समय तक एक शक्तिशाली ताकत बना रहे. यह भारत के समाज, सरकार, अदालतों, पुलिस, मीडिया और शैक्षणिक संस्थानों तक पहुंच चुका है. अपनी रिपोर्ट में वे लिखते हैं कि इस साल के अपने सबसे महत्वपूर्ण भाषण, स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समूह को सम्मानित करने के लिए मंच का उपयोग किया, जिसने उनके जीवन को बदल दिया और जो आज भारत को नया रूप दे रहा है.
अगस्त में लालकिले से दिया गया उनका वह भाषण, आरएसएस के प्रति उनकी अब तक की सबसे सशक्त और सार्वजनिक स्वीकृति थी. आरएसएस ने ही मोदी के व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को उस समय से गढ़ा है जब वे एक छोटे बालक थे. यह इस बात का प्रतिबिंब था कि यह समूह अपनी 100वीं वर्षगांठ के वर्ष में कितनी बड़ी “किंग-मेकर” शक्ति बन गया है.
आरएसएस की शुरुआत 1930 और 1940 के दशक में यूरोप की फासीवादी पार्टियों के राष्ट्रवादी सूत्र से प्रेरणा लेकर, मुस्लिम आक्रमणों और औपनिवेशिक शासन के लंबे इतिहास के बाद हिंदू गौरव के पुनरुद्धार के लिए एक गुप्त गुट के रूप में हुई थी. गांधी की हत्या के आरोप सहित बार-बार लगे प्रतिबंधों के बावजूद, यह समूह दुनिया के सबसे बड़े दक्षिणपंथी संगठन के रूप में विकसित हुआ है.
जब आप मोदी की भारतीय जनता पार्टी को महत्वपूर्ण चुनावों में जीतते हुए देखते हैं, तो आप वास्तव में आरएसएस की राजनीतिक मशीनरी को काम करते हुए देख रहे होते हैं, जहां केंद्रीय समूह पार्टी के उम्मीदवारों के भाग्य और भविष्य को तय करता है. संघ भारत के धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को एक सुदृढ़, ‘हिंदू-प्रथम’ राष्ट्र के रूप में पुनर्निर्मित करने के अपने सपने के करीब पहुंच रहा है. हालांकि, इसके नेता अब अधिक समावेशी होने की बात करते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कट्टरपंथी विचारधारा अक्सर अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा को सामान्य बनाती है. रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी स्वयं संघ के एक प्रचारक रहे हैं और उन्होंने आरएसएस के प्रति अपनी निष्ठा को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है. उन्होंने संघ की तुलना एक “विशाल नदी” से की है जिसकी धाराएं भारतीय जीवन के हर पहलू को छूती हैं. वर्तमान में देश भर में संघ की लगभग 83,000 ‘शाखाएं’ सक्रिय हैं.
गाजियाबाद में तलवारें बांटते वीडियो हुआ वायरल, 10 हिंदुत्ववादी गिरफ्तार
गाजियाबाद के शालीमार गार्डन इलाके में तलवारें बांटने और मुस्लिम विरोधी नारे लगाने के आरोप में हिंदुत्ववादी समूह ‘हिंदू रक्षा दल’ के दस सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है. पुलिस के अनुसार, इस घटना के संबंध में 16 नामजद और 25 से 30 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. सहायक पुलिस आयुक्त अतुल कुमार सिंह ने बताया कि सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद ये गिरफ्तारियां की गईं, जिनमें समूह के सदस्यों को रैली के दौरान तलवारें दिखाते और बांटते हुए देखा गया था. हिंदू रक्षा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी उर्फ पिंकी भैया का नाम भी एफआईआर में दर्ज है, लेकिन वह फिलहाल फरार है.
“मकतूब मीडिया” के मुताबिक, वीडियो में चौधरी को बांग्लादेश के हालिया राजनीतिक घटनाक्रमों का हवाला देते हुए और हिंदुओं को हथियार उठाने के लिए उकसाते हुए सुना जा सकता है. उसने कथित तौर पर कहा कि जिस तरह बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या की गई, उसे देखते हुए हिंदुओं को अपनी रक्षा के लिए तलवारें रखनी चाहिए. एफआईआर के अनुसार, समूह ने हथियारों के साथ मार्च किया और मुस्लिम विरोधी नारे लगाए, जिससे भय का माहौल पैदा हुआ और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित हुई.
मथुरा में सनी लियोन के आने की बात से साधु संत परेशान, शो कैंसिल करना पड़ा
मथुरा में अभिनेत्री सनी लियोन के प्रस्तावित नए साल के कार्यक्रम को संतों और धार्मिक नेताओं के कड़े विरोध के बाद रद्द कर दिया गया है. विरोध करने वालों का कहना था कि ऐसा आयोजन बृज क्षेत्र की धार्मिक परंपराओं के खिलाफ है और इससे भक्तों की आस्था को ठेस पहुंचेगी.
संत समुदाय ने इस पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि मथुरा की पवित्र भूमि पर अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम स्वीकार्य नहीं हैं, क्योंकि यह स्थान करोड़ों भक्तों के लिए गहरा आध्यात्मिक महत्व रखता है.
नमिता वाजपेयी ने सूत्रों के हवाले स लिखा है कि सनी लियोन 1 जनवरी को रात 9 बजे से मथुरा के एक होटल में प्रस्तुति देने वाली थीं. उनके आगमन की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं और लगभग 300 मेहमानों के लिए व्यवस्था की गई थी. कार्यक्रम के लिए प्रवेश टिकटों की कीमतें भी तय कर दी गई थीं, जो 20,000 रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक थीं.
जैसे ही इस कार्यक्रम की जानकारी सामने आई, संतों और धार्मिक नेताओं ने कड़ा ऐतराज जताया. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले के मुख्य याचिकाकर्ता दिनेश फलाहारी ने भी इस आयोजन का विरोध किया.
संत समुदाय के सदस्यों ने सोमवार को विरोध प्रदर्शन किया और आयोजकों के खिलाफ नारेबाजी की. उन्होंने जिलाधिकारी को एक ज्ञापन सौंपकर कार्यक्रम को तत्काल रद्द करने की मांग की. उन्होंने कहा, “ये कार्यक्रम युवाओं को भक्ति मार्ग से भटकाते हैं. सनातन धर्म में नए साल की शुरुआत धार्मिक अनुष्ठानों के साथ होनी चाहिए. लाखों लोग आध्यात्मिक कारणों से मथुरा-वृंदावन आते हैं, और इस तरह के कार्यक्रम शहर की छवि को धूमिल करते हैं.”
कार्यक्रम रद्द होने के बाद होटल मालिक ने कहा कि सनी लियोन नियमित रूप से देश भर में डीजे शो करती हैं और सभी कानूनी नियमों का पालन किया जा रहा था. उन्होंने कहा, “हालांकि, जब संत सहमत नहीं हुए, तो हमारे पास कार्यक्रम वापस लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. “
यह पहली बार नहीं है जब सनी लियोन को मथुरा में विरोध का सामना करना पड़ा है. इससे पहले, संतों ने उनके गाने ‘मधुबन में राधिका नाचे’ का विरोध किया था और उस वीडियो एल्बम पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. 22 दिसंबर, 2021 को रिलीज हुए उस गाने पर कथित तौर पर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए विवाद हुआ था. वृंदावन के संत नवल गिरी महाराज ने इसे हिंदू मान्यताओं का अपमान बताते हुए सरकारी कार्रवाई की मांग की थी. 1960 की फिल्म ‘कोहिनूर’ के मोहम्मद रफी के क्लासिक गाने का रीमिक्स यह गाना कनिका कपूर और अरिंदम चक्रवर्ती द्वारा गाया गया था और गणेश आचार्य द्वारा कोरियोग्राफ किया गया था.
भाजपा पार्षद के पति पर बलात्कार का आरोप, पीड़ित महिला की शिकायत
“मकतूब मीडिया” के अनुसार, मध्यप्रदेश के सतना जिले में पुलिस ने एक महिला द्वारा भाजपा पार्षद के पति पर बलात्कार, हमले का वीडियो बनाने और लगभग छह महीने तक ब्लैकमेल करने का आरोप लगाने के बाद जांच शुरू कर दी है. आरोपी की पहचान अशोक सिंह के रूप में हुई है, जो जिले की एक नगर परिषद में भारतीय जनता पार्टी की पार्षद का पति है.
सतना पुलिस अधीक्षक हंसराज सिंह को सौंपी गई लिखित शिकायत में महिला ने आरोप लगाया कि लगभग छह महीने पहले सिंह ने जबरन उसके घर में घुसकर चाकू की नोक पर उसके साथ बलात्कार किया और अपने मोबाइल फोन पर वीडियो रिकॉर्ड कर लिया. महिला ने दावा किया कि 20 दिसंबर को सिंह ने फिर से उससे संपर्क किया, यौन उत्पीड़न किया और मांगें न मानने पर वीडियो सार्वजनिक करने की धमकी दी. पुलिस एक ऑनलाइन वीडियो की प्रामाणिकता की जांच कर रही है, जिसमें सिंह कथित तौर पर महिला की पुलिस शिकायत की धमकी को खारिज करते हुए कह रहा है, “मेरा क्या होगा? कुछ नहीं होगा. जहां चाहो वहां शिकायत करो.”
यूक्रेन ने पुतिन के आवास पर ड्रोन हमले के रूसी दावे को नकारा, ज़ेलेंस्की बोले- यह शांति वार्ता रोकने की साज़िश है
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में तनाव एक बार फिर चरम पर है. रूस ने आरोप लगाया है कि यूक्रेन ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नोवगोरोड स्थित आवास पर रात भर में 91 लंबी दूरी के ड्रोन से हमला किया. हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने इन आरोपों का खंडन करते हुए इसे “विशुद्ध रूसी झूठ” करार दिया है. ज़ेलेंस्की ने कहा कि क्रेमलिन इस तरह के झूठे आरोप इसलिए लगा रहा है ताकि वह अमेरिका के साथ चल रही शांति वार्ता को पटरी से उतार सके और यूक्रेन पर हमले जारी रखने का बहाना खोज सके.
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने दावा किया कि रूसी वायु रक्षा प्रणाली ने सभी 91 ड्रोनों को मार गिराया और इस हमले में कोई हताहत नहीं हुआ. लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि “कीव शासन अब राज्य प्रायोजित आतंकवाद” पर उतर आया है, इसलिए रूस अपनी वार्ता की शर्तों की समीक्षा करेगा. लावरोव ने कहा कि इस घटना के बावजूद रूस, अमेरिका के साथ बातचीत की प्रक्रिया से पूरी तरह बाहर नहीं निकलेगा.
यह घटनाक्रम तब सामने आया है जब अमेरिका के फ्लोरिडा में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और ज़ेलेंस्की के बीच शांति योजना पर चर्चा हुई थी. ज़ेलेंस्की ने एक साक्षात्कार में कहा कि “2026 में युद्ध समाप्त होने की संभावना है,” लेकिन इसके लिए अमेरिका का समर्थन और पुतिन पर दबाव बनाना जरूरी है. क्रेमलिन के सहयोगी यूरी उशाकोव ने बताया कि पुतिन ने ट्रम्प के साथ फोन पर बात की और उन्हें बताया कि यह हमला शांति वार्ता के तुरंत बाद हुआ, जिससे ट्रम्प “हैरान और नाराज” थे. हालांकि, बाद में ट्रम्प ने पत्रकारों से कहा कि पुतिन ने उन्हें हमले के बारे में बताया था और वे इस पर “बहुत नाराज” हैं, लेकिन जब उनसे सबूत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “हम पता लगाएंगे. हो सकता है हमला न हुआ हो, लेकिन पुतिन ने मुझे बताया कि ऐसा हुआ है.” ज़ेलेंस्की ने जोर देकर कहा कि वह पुतिन पर भरोसा नहीं करते और दुनिया को रूस की इन चालों पर चुप नहीं रहना चाहिए.
पुतिन के आवास पर ‘ड्रोन हमले’ की ख़बर पुष्ट भी नहीं हुआ, पर पीएम मोदी ने जताई चिंता
रूस द्वारा यूक्रेन पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आवास को निशाना बनाने का आरोप लगाने के एक दिन बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, पीएम मोदी ने मंगलवार को ‘एक्स’ पर लिखा, “रूसी संघ के राष्ट्रपति के आवास को निशाना बनाए जाने की खबरों से बेहद चिंतित हूँ. जारी कूटनीतिक प्रयास ही शत्रुता को समाप्त करने और शांति प्राप्त करने का सबसे व्यवहार्य रास्ता है.” हालांकि गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि पुतिन ने उन्हें हमले के बारे में बताया था, लेकिन जब सबूतों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “हम पता लगाएंगे... हो सकता है कि हमला न हुआ हो.” रूस ने हमले का कोई सबूत देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वायु रक्षा प्रणाली ने सभी ड्रोनों को मार गिराया है.
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने सोमवार को दावा किया था कि यूक्रेनी सेना ने पुतिन के नोवगोरोड स्थित आवास पर 91 लंबी दूरी के ड्रोन से हमला किया. उन्होंने इसे “राज्य प्रायोजित आतंकवाद” करार देते हुए कहा कि मास्को अपनी बातचीत की स्थिति की समीक्षा करेगा. हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने इन आरोपों को “पूरी तरह से मनगढ़ंत” बताते हुए खारिज कर दिया. ज़ेलेंस्की ने कहा कि रूस अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टीम के साथ साझा राजनयिक प्रयासों को कमजोर करने के लिए झूठ बोल रहा है.
बांग्लादेश में एक और हिंदू अल्पसंख्यक की लिंचिंग
‘एनडीटीवी’ की रिपोर्ट के अनुसार, दीपू दास और अमृत मंडल के बाद बांग्लादेश में एक और हिंदू व्यक्ति बजेंद्र बिस्वास की कट्टरपंथी भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई, जिससे ढाका में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर नई चिंताएं पैदा हो गई हैं. यह घटना बांग्लादेश में प्रमुख युवा नेता शरीफ ओसमान हादी की हत्या के बाद हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बीच हुई है.
सत्ता से बेदखल की गईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इन हत्याओं के लिए मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की आलोचना की है. उन्होंने सरकार पर गैर-मुस्लिमों के खिलाफ “अकथनीय अत्याचार” करने और “धार्मिक अल्पसंख्यकों को जलाकर मार डालने जैसे भयानक उदाहरण” स्थापित करने का आरोप लगाया है.
ढाका ने हिंदूू उत्पीड़न पर भारत की आलोचनाओं को खारिज किया, उल्टे आरोप लगाया
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने भारत की उन आलोचनाओं को खारिज कर दिया है, जिसमें हाल ही में दो हिंदू पुरुषों की पीट-पीट कर हत्या (लिंचिंग) के बाद देश में “अल्पसंख्यकों के खिलाफ निरंतर शत्रुता” की बात कही गई थी. ढाका ने कहा कि ये आलोचनाएं “तथ्यों को नहीं दर्शातीं.” साथ ही आरोप लगाया कि “छिटपुट आपराधिक घटनाओं को हिंदुओं के व्यवस्थित उत्पीड़न के रूप में चित्रित करने” और “आम भारतीयों को बांग्लादेश और उसके राजनयिक मिशनों के खिलाफ भड़काने” के व्यवस्थित प्रयास किए जा रहे हैं.
जैसे-जैसे यह प्रतिवाद दोनों पक्षों के बीच विवाद के इस मुख्य मुद्दे—बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों के खिलाफ हिंसा—को और गहरा कर रहा है, ढाका पुलिस ने दावा किया कि युवा नेता ओसमान हादी की हत्या के दो ‘मुख्य’ संदिग्ध भारत-बांग्लादेश सीमा पार कर मेघालय भाग गए हैं. हादी के हमलावरों के भारत भाग जाने की अटकलों ने बांग्लादेश की सड़कों पर भारत विरोधी भावनाओं को भड़का दिया था. हालांकि, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने मेघालय पुलिस के एक अनाम अधिकारी और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक अधिकारी के हवाले से इस बात से इनकार किया कि भारत में हादी की हत्या के किसी भी संदिग्ध का पता चला है.
इस कूटनीतिक तनाव और बांग्लादेशियों के बीच गुस्से के माहौल में, भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी जैसे नेताओं के बयानों से स्थिति और बिगड़ सकती है. बांग्लादेश के मैमनसिंह में हिंदू गारमेंट कर्मचारी दीपू दास की लिंचिंग के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने कथित तौर पर कहा कि गाजा में इजरायल के सैन्य अभियान या ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की तर्ज पर ‘सबक सिखाया जाना चाहिए.’ गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इजरायल-हमास युद्ध में 70,000 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, तटीय पट्टी का बड़ा हिस्सा मलबे में तब्दील हो गया है और कुछ जिलों में अकाल की स्थिति पैदा हो गई है, जिसके कारण कुछ विद्वान तेल अवीव के सैन्य अभियान को ‘नरसंहार’ कह रहे हैं.
दीपू दास और राजबाड़ी निवासी अमृत मंडल की हत्या जैसी घटनाओं के खिलाफ भारत के विरोध की धार, उसके अपने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की विभिन्न घटनाओं से भी कमजोर होती है, जैसे कि देहरादून एंजिल और माइकल चकमा का ताज़ा मामला, क्रिसमस के दौरान ईसाइयों पर होने वाले आवर्ती हमले और मुसलमानों के खिलाफ घटनाएं. इसी तरह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की बहिष्कृत बयानबाजी—उनका यह दावा कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है—को केवल ‘वैचारिक रुख’ कहकर टाला नहीं जा सकता, क्योंकि “यह एक इरादे का संकेत देता है, और इसके बाद कार्रवाई होती है. “ सत्तारूढ़ भाजपा के वैचारिक स्रोत माने जाने वाले संगठन के प्रमुख द्वारा इस तरह की घोषणाएं भारतीय अल्पसंख्यकों के लिए एक संकेत हैं कि “वे वास्तव में इस भूमि के नहीं हैं.”
डिजिटल युग का असर: डेनमार्क में 400 साल पुरानी डाक सेवा बंद, अब नहीं बांटे जाएंगे खत
डेनमार्क दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने यह तय किया है कि अब भौतिक डाक न तो आवश्यक है और न ही आर्थिक रूप से व्यवहार्य. ‘सीएनएन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, डेनमार्क की सरकारी डाक सेवा ‘पोस्टनॉर्ड’ (PostNord) ने मंगलवार को अपना आखिरी पत्र वितरित किया, जिसके साथ ही देश में डाक सेवा का 400 साल पुराना इतिहास समाप्त हो गया.
साल 2000 के मुकाबले 2024 में पत्रों के वितरण में 90% से अधिक की गिरावट आई थी. जून से ही देश भर से 1,500 मेलबॉक्स हटा दिए गए थे और उन्हें दान के लिए बेच दिया गया था. अब डेनमार्क के लोग पत्र पोस्ट नहीं कर सकेंगे, बल्कि उन्हें निजी कंपनी डीएओ के माध्यम से पत्र भेजने के लिए दुकानों में बने कियोस्क पर जाना होगा. हालांकि, पोस्टनॉर्ड पार्सल डिलीवरी जारी रखेगा. डेनमार्क एक अत्यधिक डिजिटल देश है जहां सरकारी पत्राचार भी ऑनलाइन होता है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे बुजुर्गों और डिजिटल रूप से असक्षम लोगों को परेशानी हो सकती है.
अपील :
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