31/01/2025 : भगदड़ मची दो जगह बताई एक, जामताड़ा के फ्रॉडिये जीनियस, वक़्फ़ विधेयक पर विवाद जारी, मस्क और लोकतंत्र, सावरकर पर अरुण शौरी की किताब, जासूस के गाँव में खलबलाता गुस्सा
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आज की सुर्खियां | 31 जनवरी 2025
संगम का तो पता चल गया, पर झूंसी का “सच” हटा दिया गया : लल्लनटॉप ने वृहस्पतिवार को सुबह 11 बजे यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड कर दावा किया कि प्रयागराज महाकुंभ में मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात एक नहीं, बल्कि दो स्थानों पर भगदड़ मची थी. अभिनव पांडे ने अपनी इस रिपोर्ट में प्रत्यक्षदर्शियों, मौके पर तैनात अमले की जुबानी बताया कि जेसीबी और ट्रैक्टर से “दूसरी” भगदड़ का “भयंकर सच” हटा दिया गया. पांडे के मुताबिक संगम के अलावा झूंसी में भी भगदड़ मची थी, लेकिन यह सवाल है कि प्रशासन इस बात को क्यों नहीं बता रहा है? इतनी संख्या में जूते चप्पल बिखरे पड़े हैं कि गिनती नहीं की जा सकती. ट्रालियों में भरकर वस्त्र ले जाए जा रहे हैं. मंजर को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कितनी भयावह रही होगी झूंसी में भगदड़ की तस्वीर!
योगी आदित्यनाथ ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला? इधर, ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने “एबीपी गंगा” से बात करते हुए बुनियादी सवाल खड़ा किया है. उन्होंने पूछा है, “उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला? क्यों छुपाते रहे दिन भर? उन्होंने कहा, “हिंदू धर्म में यह नियम है कि जब परिवार में कोई मर जाता है, विशेषकर ऐसी घटनाओं में, भोजन नहीं करता है कोई. हम कल एक दिन उपवास नहीं रख सकते थे, उनके लिए जो चले गए? आपने उससे हमको वंचित कर दिया. हमको आपने ऐसा आभास करा दिया कि अफवाह चल रही है, कोई मौत नहीं हुई है. इतना बड़ा धोखा संत समाज के साथ? इतना बड़ा धोखा सनातनियों के साथ, हम लोगों के साथ! इन लोगों ने ऐसा क्यों किया? यही पीड़ा ज्यादा है कि आपने देश और सनातनियों के सामने झूठ क्यों बोला? झूठा मुख्यमंत्री. क्या कारण है? इतनी बड़ी जब घटना हो गई थी, तो आप क्यों छुपा रहे थे? तो इस बात की पीड़ा ज्यादा है. जो घटना हुई, वह तो हो गई. लेकिन इन्होंने छुपाने का प्रयास किया. पूरे दिन छिपाए रहे. शाम को बताया. दुनिया बता रही थी, आपको पूरे दिन पता ही नहीं था. आज हम लोगों के मन में जो सबसे बड़ी पीड़ा है, वह यह है कि हमारा मुख्यमंत्री झूठा है. इस बात की पीड़ा है कि हमारे साथ घटना घटती है और वह हमीं से छुपा लेता है. और जो मृतात्मा हैं, उनके प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए उपवास तक रखने का मौका नहीं दिया इस व्यक्ति ने!”
महानगरों में मैनुअल स्कैवेंजिंग पर लगाई तत्काल रोक : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद समेत प्रमुख महानगरों में मैनुअल स्कैवेंजिंग और हाथ से सीवर सफाई पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया. नगर आयुक्तों और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को दो सप्ताह में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया. जस्टिस सुधांशु धूलिया और अरविंद कुमार की पीठ ने कहा, "हमारे पहले के आदेश के बावजूद लोगों की मौतें जारी हैं. अब समय आ गया है कि सख्त निर्देश जारी किए जाएं." कोर्ट ने इस प्रथा को "अमानवीय" बताते हुए महानगरों में इसे तुरंत बंद करने पर जोर दिया. अधिकारियों को चेतावनी दी गई कि वे इस आदेश की अवहेलना न करें.
राजस्थान हाई कोर्ट ने लिव इन रिश्तों से जुड़े झमेलों को निपटाने के लिए आदेश जारी किया है. जो लिव-इन में रहने वाले लोगों को अक्सर उनके परिवार वाले परेशान करते हैं. फिर वे कोर्ट जाते हैं सुरक्षा मांगने. कोर्ट में इतने सारे केस देखकर, जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने एक नया तरीका निकाला है. उन्होंने कहा है कि हर जिले में एक सरकारी दफ्तर होगा जो लिव-इन रिश्तों को रजिस्टर करेगा. अगर किसी को कोई परेशानी है तो वो वहाँ जाकर शिकायत कर सकता है, चाहे वह पार्टनर हो या उनसे पैदा हुआ बच्चा. उन्होंने ये भी कहा है कि एक ऑनलाइन वेबसाइट बनेगी जहाँ लोग अपनी परेशानी बता सकते हैं. अब सबको कोर्ट के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे.
निझ्झर हत्याकांड से भारत को क्लीनचिट नहीं : कनाडा ने गुरुवार 30 जनवरी 2025 को उस समाचार रिपोर्ट को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि कनाडाई जांच आयोग को खालिस्तानी कार्यकर्ता हरजीत सिंह निझ्झर की हत्या में ‘कोई विदेशी संबंध’ नहीं मिला है. उन्होंने भारत का हाथ होने की आशंका 28 जनवरी, 2025 को प्रकाशित अंतिम रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि उन्होंने चीन, रूस, ईरान, भारत और पाकिस्तान सहित कई देशों द्वारा हस्तक्षेप के प्रयास की जांच की थी और उन्होंने दावा किया था कि भारतीय राजनयिक और ‘प्रॉक्सी एजेंट’ गलत सूचना फैला रहे थे और कनाडाई राजनेताओं को वित्त पोषित कर रहे थे. भारत के विदेश मंत्रालय (एमईए) ने 28 जनवरी को ही रिपोर्ट को खारिज कर बयान जारी कर दिया था. टीवी18 की रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा की जांच ने निज्जर की हत्या पर भारत के रुख को सही साबित किया. रिपोर्ट में 'किसी विदेशी राज्य से कोई निश्चित संबंध नहीं मिले हैं, जिसके लिए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खुले तौर पर भारत पर आरोप लगाया था.' इसी तरह, मोजो न्यूज की संपादक बरखा दत्त ने ट्वीट किया है कि खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय हाथ होने का आरोप कनाडा जांच आयुक्त मैरी जोसी को नहीं मिले हैं तो ट्रूडो ने बिना किसी सबूत के देश की संसद में यह मुद्दा क्यों उठाया?
वाशिंगटन के आसमान मे जहाज और चॉपर टकराए, कोई नही बचा
वाशिंगटन डी.सी. के रोनाल्ड रीगन नेशनल एयरपोर्ट के पास, एक अमेरिकी एयरलाइंस के कमर्शियल जेटलाइनर और एक अमेरिकी सेना के ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर के बीच मध्य-हवा में टक्कर हुई, जिसके बाद दोनों विमान पोटोमैक नदी में गिर गए. 'वॉशिगटन पोस्ट' के अनुसार, विमान में 60 यात्री और 4 क्रू सदस्य सवार थे, जबकि हेलीकॉप्टर में तीन सेवा सदस्य थे. दुर्घटना के बाद, बचाव दल ने कई शवों को नदी से बाहर निकाला है, लेकिन अभी तक किसी के जीवित मिलने की सूचना नहीं है. फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, यह टक्कर रात लगभग 9 बजे हुई, जब विमान वाशिंगटन नेशनल एयरपोर्ट की ओर बढ़ रहा था. दुर्घटना के कारण रीगन नेशनल एयरपोर्ट पर उड़ानों में व्यवधान उत्पन्न हुआ और कई आपातकालीन दल मौके पर मौजूद थे. रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने कहा कि पेंटागन और सेना ने इस घटना की जांच शुरू कर दी है. यह घटना 1982 में हुई एयर फ्लोरिडा फ्लाइट 90 की दुर्घटना की याद दिलाती है, जब एक विमान पोटोमैक नदी में ऐसे ही गिर गया था.
जासूस विकास यादव के गाँव में खलबलाता गुस्सा
‘द वायर’ के लिए अंकित राज, श्रुति शर्मा और आशुतोष भारद्वाज ने रॉ के उस अधिकारी विकास यादव के गांव प्रणपुरा जाकर हाल चाल जाना है, जिससे भारत सरकार ने एक तरह से अपना पीछा छुड़ा लिया है. गाँववालों का कहना है कि यादव अपनी मर्जी से अमेरिका नहीं गए थे. सरकारी आदेश पर गए थे और काम पूरा कर लौट आए. उनका सवाल है– "पन्नू को भारत ने पहले ही आतंकवादी घोषित कर दिया था, तो फिर अब सरकार अपने ही सैनिक के खिलाफ कार्रवाई क्यों कर रही है?" गाँव में यादव परिवार की प्रतिष्ठा देशभक्तों के रूप में है. यादव के पिता राम सिंह यादव, सीमा सुरक्षा बल में थे और 2007 में त्रिपुरा में डीएसपी के पद पर रहते हुए दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी. यादव का बड़ा भाई अजय यादव हरियाणा पुलिस में कार्यरत है. गाँव के एक बुजुर्ग, शिशराम, इस परिवार को 'देशभक्तों का परिवार' बताते हैं. गांव के लोग कटाक्ष करते हैं – "मोदी का नाम दुनिया में गूंजता है… अब क्या हुआ? क्या वे अमेरिका से डर गए?" गाँववालों को इस बात की भी नाराज़गी है कि अगर सरकार विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान से वापस ला सकती थी, तो अपने ही अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई क्यों कर रही है? यादव की संभावित गिरफ्तारी पर पूछे गए सवाल पर गांव के लोग कहते हैं- "अगर ऐसा हुआ, तो विद्रोह होगा." फिलहाल यादव का भविष्य अनिश्चित है.
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार की अपील ठुकराई : ‘लाइव लॉ’ की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर पत्रकार रूपेश कुमार की एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय ने पत्रकार को जमानत देने से इनकार कर दिया था. यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत दर्ज किया गया था और इसमें उनके प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से कथित संबंध होने का आरोप लगाया गया था.
चंडीगढ़ : चुनाव में क्रॉस वोटिंग, भाजपा की हरप्रीत कौर बबला मेयर चुनी गईं : चंडीगढ़ नगर निगम में आप-कांग्रेस गठबंधन के बहुमत हासिल होने के बावजूद भाजपा उम्मीदवार हरप्रीत कौर बबला को चंडीगढ़ के मेयर का चुनाव जीत गईं. ऐसा तीन पार्षदों की क्रॉस वोटिंग के कारण हुआ है. वहीं कांग्रेस की जसप्रीत सिंह बंटी ने सीनियर डिप्टी मेयर और तरुणा मेहता ने डिप्टी मेयर के चुनाव में जीत हासिल की.
पन्ना की सीमेंट फैक्ट्री में हादसा, 5 मजदूरों की मौत, कई घायल : मध्यप्रदेश के पन्ना में जेके सीमेंट फैक्ट्री में गुरुवार को अचानक प्लांट के निर्माणाधीन हिस्से का स्लैब गिर गया, जिससे कई मजदूर इसकी चपेट में आ गए. इस हादसे में 5 मजदूरों की मौत हो गई, जबकि करीब 30 मजदूर घायल हो गए. जेके सीमेंट फैक्ट्री पन्ना के सिमरिया थाना क्षेत्र के ग्राम पगरा में स्थित है.
बलात्कार के आरोप में कांग्रेस सांसद राकेश राठौड़ गिरफ्तार : उत्तर प्रदेश के सीतापुर से कांग्रेस सांसद राकेश राठौड़ को गुरुवार को बलात्कार के एक मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बुधवार को राठौड़ की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी.
सदन में बोले गए (अप)शब्दों पर कानूनी मामला : बेलगावी में राज्य परिषद के अंदर कांग्रेस विधायक लक्ष्मी हेब्बलकर के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ्तार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक सीटी रवि ने गुरुवार को कर्नाटक हाईकोर्ट में कहा कि विधान परिषद में विधायकों द्वारा बोले गए शब्दों के लिए उन्हें किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से 'पूर्ण संरक्षण' दिया जाता है. इसलिए मामले को रद्द किया जाए. इसके बाद कोर्ट ने शिकायतकर्ता लक्ष्मी हेब्बलकर को नोटिस जारी कर कहा, ‘‘हमें संविधान के अनुच्छेद 194 (3) की व्याख्या करनी होगी. इसके व्यापक निहितार्थ हैं और हम इस पर तुरंत फैसला नहीं करेंगे.” इस मुद्दे पर कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी भी की, “मुद्दा यह है कि क्या विधानमंडल में कुछ भी ऐसा कहा या किया जा सकता है, जिसका विधानमंडल में चर्चा किए जाने वाले मुद्दे से कोई संबंध न हो, क्या उसे भी छूट मिल सकती है?”
डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ धमकियां और भारत पर संभावित असर : हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत सहित कई देशों के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने की चेतावनी दी है. 'इंडियन एक्सप्रेस' में रवि दत्ता मिश्रा की रिपोर्ट है कि यह कदम अमेरिका-भारत व्यापारिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है, खासकर फार्मास्युटिकल और उपभोक्ता वस्तुओं (कंज्यूमर गुड्स) के क्षेत्रों में. भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) है, यानी भारत अमेरिका को निर्यात अधिक करता है और आयात कम. इसके अलावा अमेरिकी व्यापार नीति से मिलने वाले अमेरिकी डॉलर के जरिए भारत को अपविदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत बनाए रखने में मदद मिलती है. ऐसे में अगर ट्रम्प प्रशासन भारत के निर्यात पर नए टैरिफ लगाता है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए झटका साबित हो सकता है.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवाओं का निर्यातक है और अमेरिका इसका सबसे बड़ा बाजार है. अगर ट्रम्प प्रशासन टैरिफ बढ़ाता है या दवाओं की खरीद पर कोई प्रतिबंध लगाता है तो भारतीय दवा कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं पर भी असर पड़ सकता है. भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है. वीजा नियमों में सख्ती और आयात शुल्क बढ़ाने से इस क्षेत्र में भी असर पड़ सकता है.
'डीके बॉस' को ढूंढ़ने निकले तो तीन मिले जामताड़ा में
झारखंड के जामताड़ा जिले में पुलिस ने एक संगठित साइबर अपराध गिरोह का पर्दाफाश किया है, जिसके छह सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है. इस सिंडेकेट का सफाया असल में एक दिलचस्प नाम की वजह से हुआ, जो है- 'डीके बॉस'. झारखंड के जामताड़ा जिले में दिसंबर 2024 के मध्य में साइबर धोखाधड़ी के एक मामले की जांच के दौरान, आईपीएस अधिकारी राघवेंद्र शर्मा को "डीके बॉस" नामक एक संदिग्ध का नाम मिला, जिसने उनका ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने याद किया, "मुझे याद है कि मैंने एक अन्य मामले में भी यही नाम देखा था." आगे की जांच में पता चला कि "डीके बॉस" एक साइबर अपराध सिंडिकेट का संचालन कर रहा था, जो सरकारी योजनाओं और बैंक सेवाओं की नकल और धोखाधड़ी करने वाले मोबाइल एप्लिकेशन बनाता था. गिरफ्तार किए गए छह अपराधियों में से चार का पहले से साइबर अपराध का इतिहास रहा है. उन पर देशभर में 415 साइबर अपराध मामलों में शामिल होने और लगभग 11 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने का आरोप है. 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि ये अपराधी फर्जी एंड्रॉइड ऐप्स (एपीके फाइल्स) बनाकर लोगों को ठगते थे. इन ऐप्स में पीएम किसान योजना, पीएम फसल बीमा योजना, भारतीय स्टेट बैंक, केनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, एक्सिस बैंक और एनपीसीआई इंटरनेशनल जैसे नामों का उपयोग किया जाता था. ये फर्जी ऐप्स मैलवेयर से संक्रमित होते थे, जो उपयोगकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी चुराने में सक्षम थे. गिरफ्तार आरोपियों के पास से लगभग 2,700 पीड़ितों के बैंक खाते की जानकारी और 2.78 लाख संदेश भी मिले हैं, जिनमें व्हाट्सएप ओटीपी, फोनपे लॉग-इन ओटीपी और बैंक लेनदेन से संबंधित संदेश शामिल हैं. पुलिस ने बताया कि ये अपराधी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके मैलवेयर विकसित करते थे और चैटजीपीटी जैसे टूल्स का इस्तेमाल करते थे. वे इन फर्जी ऐप्स को 20-25 हजार रुपये में अन्य साइबर अपराधियों को भी बेचते थे. इस गिरोह की गिरफ्तारी के बाद, जामताड़ा पुलिस ने गृह मंत्रालय और झारखंड तकनीकी सहायता टीम से मदद मांगी है, ताकि इस मामले की गहन जांच की जा सके और अन्य संबंधित अपराधियों को पकड़ा जा सके.
वक़्फ़ विधेयक
जेपीसी रिपोर्ट स्पीकर को, कर्नाटक वक़्फ़ बोर्ड और विपक्ष ने कहा मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 की रिपोर्ट गुरुवार 30 जनवरी को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंप दी. इस मौके पर जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल और समिति सदस्य निशिकांत दुबे, तेजस्वी सूर्या, संजय जायसवाल और अन्य मौजूद रहे. विपक्षी सांसदों में से कोई इस मौके पर उपस्थित नहीं था. जेपीसी ने 655 पन्नों की रिपोर्ट को 15/11 वोट से बुधवार को स्वीकार किया था. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके और एआईएमआईएम सहित समिति के विपक्षी सांसदों ने विधेयक पर आपत्ति जताई. उन्होंने असहमति नोट पेश करते हुए कहा कि प्रस्तावित परिवर्तन संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षित “मुसलमानों की धार्मिक आस्था पर प्रहार करते हैं.” हालांकि यह अभी तय नहीं है कि विधेयक इसी बजट सत्र में पेश किया जाएगा या नहीं.
इस बीच कर्नाटक राज्य वक़्फ़ बोर्ड ने वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक के अधिकतर प्रावधानों पर गंभीर आपत्तियां जताई है. इनमें बोहरा और आग़ाखानी मुसलमानों को अलग बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देना, प्रबंधन में गैर-मुसलमानों को शामिल करना और पांच साल से कम समय से इस्लाम का पालन करने वाले मुसलमानों को अपनी संपत्ति दान करने की अनुमति नहीं देना आदि शामिल है.
विवादास्पद विधेयक की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष अपने विचार साझा करते हुए बोर्ड ने तर्क दिया कि मूल अधिनियम में सरकार की ओर से सुझाये गये संशोधन संविधान के विरुद्ध हैं. यहां तक कि मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करते हैं. बोर्ड ने कहा कि बोहरा और आग़ाखानी मुसलमानों को सुन्नी और शिया मुसलमानों के मौजूदा वक़्फ़ बोर्ड के अलावा अलग-अलग वक़्फ़ बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देने का कदम ‘शरारतपूर्ण और विभाजनकारी’ प्रकृति का है. यह वक़्फ़ को एकीकृत करने के मूल उद्देश्य के विपरीत है और यह कदम निश्चित रूप से ‘पेंडोरा बॉक्स’ को खोल देगा और अधिक विवादों और मुकदमों को खुला निमंत्रण देगा.
कर्नाटक बोर्ड ने केंद्रीय और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने और इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त करने पर भी गंभीर आपत्ति जताई. कर्नाटक बोर्ड को लगता है कि यह सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 16(5) के विरुद्ध है, जो केवल किसी विशेष धर्म या संप्रदाय को मानने वाले व्यक्ति को ही उसके धार्मिक संस्थानों या उसके शासी निकाय से जुड़े अधिकारी के रूप में अनुमति देता है.
बोर्ड ने कहा कि संशोधन तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि समान प्रकृति के सभी अन्य धार्मिक निकायों का प्रतिनिधित्व उनके अपने धर्म के संबंधित सदस्यों द्वारा किया जाता है. बोर्ड न यह भी कहा कि सरकार की ‘मज़बूती और पसंद’ के अनुसार मनमाने ढंग से सदस्यों के नामांकन को लागू करेगा. कर्नाटक बोर्ड ने एक और चिंता जताई, जो सिर्फ पाँच वर्षों से ज्यादा समय से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक़्फ़ को समर्पित करने से संबंधित है. इसने तर्क दिया कि संशोधन मौलिक अधिकारों का ‘गंभीर उल्लंघन’ है. बोर्ड का यह कहना है, ‘जन्मजात मुस्लिम और इस्लाम अपनाने वाले व्यक्ति के बीच कोई अंतर नहीं हो सकता. संपत्ति का मालिक अपनी पसंद के अनुसार संपत्ति का उपयोग करने की स्वतंत्रता रखता है. इस संशोधन का उद्देश्य उसकी धार्मिक स्वतंत्रता पर बंधन लगाना है. इस प्रावधान के दुरुपयोग होने की आशंका ज्यादा है.’ कर्नाटक बोर्ड उस प्रावधान का भी विरोध किया, जिसमें कहा गया है कि वक़्फ़ के रूप में घोषित किसी भी सरकारी संपत्ति को वक़्फ़ नहीं माना जाएगा. इसने दावा किया कि संशोधन ‘दुर्भावनापूर्ण इरादे और परोक्ष उद्देश्य’ से प्रेरित है, ताकि मुस्लिम समुदाय को सरकारी संपत्ति के रूप में लेबल किए जाने की आड़ में वक़्फ़ संपत्तियों से वंचित किया जा सके.
किताब
सावरकर ने गाँधी को 'पागल' और 'चलता फिरता प्लेग' कहा था : अरुण शौरी
भारतीय पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी और राजनेता अरुण शौरी ने हाल ही में 'द न्यू आइकन: सावरकर एंड द फैक्ट्स' नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर के बारे में कई महत्वपूर्ण और विवादास्पद तथ्यों को उजागर किया है, जो सावरकर के अनुयायियों और आलोचकों, दोनों के लिए रुचिकर हो सकते हैं. मसलन गांधी के बारे में सावरकर के विचारों पर 'द वायर' के लिए करण थापर से बातचीत में शौरी कहते हैं कि सावरकर हमेशा गांधी के बारे में अफवाह उड़ाते रहे. सावरकर ने गांधी को 'पागल' और 'चलता फिरता प्लेग' तक करार दिया था. शौरी ने बताया है कि सावरकर गोमांस भक्षण के विरोधी नहीं थे और उन्होंने महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बारे में भी ऐसे ही गलत बयान दिए थे. सावरकर ने अंग्रेजों के सामने एक से ज्यादा बार नाक रगड़ कर, माफियां मांग कर रियायतें हासिल की थीं. उन्होंने ब्रिटिश वायसराय से हिंदू महासभा को वायसराय की कार्यकारी परिषद में शामिल करने का अनुरोध किया था और हिटलर की नीतियों की प्रशंसा की थी. इन तथ्यों के माध्यम से शौरी ने सावरकर के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को सामने लाने का प्रयास किया है, जो इतिहास के इस महत्वपूर्ण व्यक्तित्व को समझने में सहायक हो सकते हैं. खासकर ऐसे वक्त में जब भारत की सत्ता सावरकर के विचारों को स्थापित करने में ताकत लगाती नजर आती हो. शौरी ने बताया कि सावरकार ‘गौ पालन’ के पक्ष में थे न कि ‘गौ पूजन’ के पक्षधर, हालांकि आज ये विचार उनके अनुयायियों ने बदल दिया है. साथ में सावरकर के उस झूठे दावे पर भी दिलचस्प चर्चा हुई है, जिसमें वह सुभाष चंद्र बोस को आईएनए बनाने की सलाह देने की अफवाह उड़ाते थे.
लोकतंत्र चौराहे पर
क्या मस्क अमेरिका की तरह अब यूरोपीय देशों के चुनावों को प्रभावित करेंगे?
अटलांटिक में एन एपलबॉम ने एक लेख लिखा है “यूरोप्स इलोन मस्क प्राब्लम”. इस लेख में इस बात का आकलन है कि जिस तरह पैसे और प्रभुत्व के जरिये अमेरिका में चुनाव को प्रभावित किया गया है, क्या उसी तरह यूरोपीय देशों में भी क्या लोकतंत्र को भी पटरी से उतारा जा सकता है. लोकतंत्र को अपनी सुरक्षा का इंतजाम खुद करना पड़ता है. अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर फेक न्यूज परोसना, पैसे के खुले खेल से खरीदफरोख़्त, आस्थाओं को भड़काना, अराजक भीड़तंत्र अपनाना और हिंसा की तरफ लोगों को धकेलना लोकतंत्र के लिए ऐसा ख़तरा है, जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इस लेख के जरिये हम अपने भीतर और आसपास भी, चाहे तो देख सकते हैं.
एपलबॉम बताती हैं, “अमेरिकी चुनावों में एक अमीर व्यक्ति मतदाताओं को 10 लाख डॉलर के चेक बांट सकता है. कंपनियाँ और लोग गुप्त रूप से वित्त पोषित "डार्क मनी" नॉनप्रॉफिट संगठनों का उपयोग करके सुपर पीएसी (राजनीतिक एक्शन कमेटियों) को असीमित धन दान कर सकते हैं, और यह पैसा विज्ञापन अभियानों पर खर्च किया जा सकता है. पॉडकास्टर्स, पक्षपाती, या कोई भी व्यक्ति किसी उम्मीदवार के बारे में झूठी और भड़काऊ बातें फैला सकता है. वे इन झूठों को ऑनलाइन विज्ञापनों के माध्यम से और बढ़ा सकते हैं. कोई भी विशेष अदालत या चुनाव नियम इस गलत जानकारी को रोक नहीं सकते, खासकर तब जब यह मतदाताओं तक पहुँच चुकी हो. पिछले एक दशक में जनता ने इतना कुछ देख और सुन लिया है कि अब उन्हें इसकी परवाह नहीं रह गई है. अमेरिकी चुनाव अब एक राजनीतिक लास वेगास (जुए का अड्डा) बन चुके हैं: यहाँ कुछ भी हो सकता है.”
लेकिन दूसरे देशों में चुनाव इस तरह नहीं चलाए जाते. ब्रिटेन में, राजनीतिक पार्टियों को प्रति उम्मीदवार 54,010 पाउंड से अधिक खर्च करने की अनुमति नहीं है. जर्मनी और कई अन्य यूरोपीय देशों में, राज्य राजनीतिक पार्टियों को वित्तीय सहायता देता है, ताकि वे अमीर दानदाताओं पर निर्भर न रहें और भ्रष्ट न हों. पोलैंड में, चुनाव से पहले के हफ्तों में अदालतें मानहानि के मामलों को तेजी से सुलझाती हैं, ताकि लोग झूठ फैलाने से बचें.
यह सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं है. कई लोकतंत्रों में सरकारी या सार्वजनिक मीडिया होता है, जो सभी पक्षों को समान समय देने के लिए बाध्य होता है. कई देश राजनीतिक दान को पारदर्शी बनाते हैं, और दानदाताओं के नाम ऑनलाइन रजिस्टर में सूचीबद्ध होते हैं. कई देश राजनीतिक विज्ञापनों पर सीमाएं लगाते हैं. कुछ देश नफरत भरे भाषण के खिलाफ कानून बनाते हैं और उन्हें तोड़ने वालों पर मुकदमा चलाते हैं.
इन कानूनों का उद्देश्य निष्पक्ष बहस के लिए सही माहौल बनाना, व्यवस्था में विश्वास जगाना और जीतने वाले उम्मीदवारों में आत्मविश्वास पैदा करना है. कई लोकतंत्र मानते हैं कि पारदर्शिता जरूरी है—मतदाताओं को यह जानना चाहिए कि उनके उम्मीदवारों को कौन फंड कर रहा है और सोशल मीडिया पर राजनीतिक संदेशों के लिए कौन पैसा खर्च कर रहा है. कुछ जगहों पर, इन नियमों का एक बड़ा लक्ष्य है: लोकतंत्र विरोधी चरमपंथ को रोकना, जो पिछले कुछ समय में यूरोपीय लोकतंत्रों को प्रभावित कर चुका है.
लेकिन कब तक लोकतंत्र इन लक्ष्यों को पूरा कर पाएंगे? आज हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ अमेरिकी और चीनी ऑलिगार्क्स द्वारा नियंत्रित एल्गोरिदम लाखों लोगों तक पहुँचने वाले संदेशों और छवियों को चुनते हैं; जहाँ क्रिप्टो योजनाओं की मदद से पैसा गुप्त बैंक खातों के जरिए आसानी से घूम सकता है; और जहाँ यह डार्क मनी सोशल मीडिया अकाउंट्स को बढ़ावा देकर जनमत को प्रभावित कर सकती है. ऐसी दुनिया में, चुनाव नियमों को कैसे लागू किया जा सकता है? अगर आप अल्बानिया या यहाँ तक कि यूनाइटेड किंगडम हैं, तो क्या आप अभी भी सार्वजनिक बहस के अपने मापदंड तय कर सकते हैं? या क्या अब आपको भी लास वेगास बनने के लिए मजबूर होना पड़ेगा?
इलोन मस्क अमेरिका के बाद अब ब्रिटेन से लेकर जर्मनी तक खुलेआम एक खास तरह के नेताओं, पार्टियों और विचारधारा की अपने प्लेटफॉर्म के जरिए हवा बनाने की कोशिश में हैं.
इलोन मस्क द्वारा एक्स (पूर्व में ट्विटर) का उपयोग करके झूठी जानकारी फैलाने और यूके, जर्मनी और अन्य जगहों पर चरमपंथी राजनेताओं को बढ़ावा देने के मामले में ये सवाल और भी गंभीर हो जाते हैं. चुनावों की अखंडता और गलत जानकारी से मुक्त बहस की संभावना को टिकटॉक और मार्क ज़करबर्ग की कंपनी मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और थ्रेड्स के मालिक) भी चुनौती दे रहे हैं. टिकटॉक का कहना है कि वह भुगतान किया गया कोई राजनीतिक विज्ञापन स्वीकार नहीं करता. मेटा ने जनवरी में घोषणा की कि वह अमेरिका में फैक्ट चैकिंग छोड़ रहा है, लेकिन यूरोपीय कानूनों का पालन करना जारी रखेगा. लेकिन ज़करबर्ग की नीतियों में बदलाव से पहले भी, ये वादे खोखले थे. मेटा की सामग्री प्रबंधन प्रणाली कभी पारदर्शी नहीं रही. कोई नहीं जानता कि फेसबुक का एल्गोरिदम क्या प्रमोट कर रहा है और क्यों.
मस्क के निजी एक्स अकाउंट के 21.2 करोड़ से अधिक फॉलोअर्स हैं, जो उन्हें दुनिया भर में समाचार एजेंडा तय करने की शक्ति देता है. और समाचार का ही क्यों, विचार, राय, विमर्श का भी.
सच तो यह है कि कोई नहीं जानता कि क्या कोई प्लेटफॉर्म वास्तव में राजनीतिक फंडिंग नियमों का पालन करता है, क्योंकि चुनाव अभियान के दौरान और बाद में ऑनलाइन क्या हो रहा है, इसकी पूरी निगरानी करना मुश्किल है. रोमानिया में, एक चुनाव से पहले 18 महीनों में टिकटॉक पर 1 मिलियन डॉलर से अधिक खर्च किए गए थे, जो एक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए थे, जिन्होंने दावा किया कि उन्होंने कुछ भी खर्च नहीं किया. इस मामले को सुलझाने के लिए एक रोमानियाई अदालत ने चुनाव के पहले दौर को रद्द कर दिया, जिससे रोमानियाई लोकतंत्र को नुकसान पहुँचा.
यह सब नया नहीं है. गुप्त राजनीतिक फंडिंग शीत युद्ध के दौरान भी होती थी, और रूसी सरकार ने इस प्रथा को जारी रखा है. प्रेस मुगल जिनकी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं, वे भी नए नहीं हैं. रूपर्ट मर्डोक, एक ऑस्ट्रेलियाई जिनके पास अमेरिकी नागरिकता है, ने लंबे समय तक यूके की राजनीति में अपनी मीडिया कंपनियों के माध्यम से बड़ी भूमिका निभाई है.
पर सोशल मीडिया न केवल कहीं अधिक लोगों तक पहुँचता है, बल्कि यह कानूनी व्यवस्था से बाहर भी काम करता है. अमेरिकी कानून सेक्शन 230 के तहत, इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स को प्रकाशक नहीं माना जाता है. इसका मतलब है कि फेसबुक और एक्स को उनके प्लेटफॉर्म पर दिखाई जाने वाली सामग्री के लिए वही कानूनी जिम्मेदारी नहीं है, जो द वॉल स्ट्रीट जर्नल या सीएनएन की होती है. इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका ने एक ऐसा सूचना माहौल बनाया है, जिसे अन्य देशों को स्वीकार करना पड़ता है, और इससे धोखाधड़ी वाली चुनावी प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है.
ब्राजील ने पिछले साल इस पैटर्न को तोड़ा, जब एक जज ने मस्क से ब्राजील के कानूनों का पालन करने की मांग की और एक्स को तब तक के लिए ऑफलाइन कर दिया जब तक वे वहां का कानून का पालन नहीं करते. यूके, जर्मनी और फ्रांस जैसे कई यूरोपीय देशों ने भी कानून पारित किए हैं, जो प्लेटफॉर्म्स को उनकी कानूनी व्यवस्था के अनुरूप बनाने के लिए मजबूर करते हैं.
यूरोपीय संघ के पास अभी भी इन टेक कंपनियों को नियंत्रित करने की शक्ति है. डिजिटल सर्विसेज एक्ट के तहत, यूरोपीय संघ इंटरनेट कंपनियों को विनियमित कर सकता है, जुर्माना लगा सकता है, और चरम स्थितियों में उन पर प्रतिबंध लगा सकता है. लेकिन क्या यूरोपीय संघ इस शक्ति को बनाए रख पाएगा? कुछ अमेरिकी ऑलिगार्क्स यूरोपीय संस्थानों को कमजोर करना चाहते हैं, क्योंकि वे नियंत्रित नहीं होना चाहते. जल्द ही, यूरोपीय संघ और अन्य लोकतंत्रों को अमेरिका के साथ अपने गठबंधन और अपने चुनावों को बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रखने के बीच चयन करना पड़ सकता है.
टिकटॉक वीडियो से नाराज पिता ने बेटी को शूट किया : अमेरिका से हाल ही में अपने परिवार को पाकिस्तान वापस लाने वाले अनवर-उल-हक नामक व्यक्ति ने अपनी 15 वर्षीय बेटी की गोली मारकर हत्या कर दी. 'द गार्डियन' की खबर है कि अनवर-उल-हक को अपनी बेटी के टिकटॉक वीडियो, पहनावे और लाइफस्टाइल से आपत्ति थी. शुरुआत में आरोपी ने पुलिस को गुमराह करने के लिए कहा था कि अज्ञात हमलावरों ने उसकी बेटी की हत्या कर दी, लेकिन बाद में उसने अपना जुर्म कबूल लिया.
जो स्टूडेंट हमास के समर्थन में थे, उनके वीज़ा रद्द करेगा अमेरिका : ‘द टाइम्स ऑफ इजरायल’ की खबर है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने एक नए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत ‘सभी हमास समर्थकों’ के स्टूडेंट वीज़ा को 'तुरंत' रद्द करने का प्रावधान किया गया है. इजरायल के अखबारों ने इसे अपने देश की जीत के तौर पर पेश किया है. ट्रम्प प्रशासन ने इस कदम को अमेरिकी परिसरों और सड़कों पर बढ़ती यहूदी-विरोधी घटनाओं से निपटने की दिशा में एक बड़ा फैसला बताया है. इस आदेश की आलोचना करते हुए कई मानवाधिकार संगठनों ने कहा कि यह फैसला अमेरिकी संविधान के तहत स्वतंत्र अभिव्यक्ति (फ्री स्पीच) के अधिकारों का उल्लंघन करता है.
खतरनाक प्रवासियों को ग्वांतानामो में रखेंगे ट्रम्प : 'द गार्डियन' की खबर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ग्वांतानामो बे में एक विशाल डिटेंशन सेंटर तैयार करने के निर्देश दिए हैं. इस केंद्र में 30,000 तक अवैध प्रवासियों को रखने की योजना बनाई जा रही है, जिन्हें अमेरिका से निर्वासित किया जाएगा. ट्रम्प ने कहा कि यह केंद्र उन "सबसे खतरनाक आपराधिक अवैध प्रवासियों" को हिरासत में रखने के लिए होगा, जिन्हें अमेरिका से बाहर भेजा जा रहा है. उन्होंने दावा किया है कि कुछ प्रवासी इतने खतरनाक हैं कि हम उनके देश पर भरोसा नहीं कर सकते, इसलिए हम उन्हें ग्वांतानामो भेजेंगे.
इजरायल- हमास कैदियों की अदला-बदली : अल जजीरा की खबर है कि इजरायल ने 110 फिलीस्तीनी कैदियों को रिहा किया है, जिनमें 30 बच्चे शामिल हैं. इधर, हमास और फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद गाजा में 8 बंधकों को मुक्त करेंगे, जिनमें 5 थाई नागरिक और 3 इजरायली शामिल हैं. यह कैदियों की अदला-बदली का तीसरा चरण है. शांति समझौते के बीच ही खबर आई है कि वेस्ट बैंक के तम्मुन शहर में इजरायली हवाई हमले में करीब 10 फिलीस्तीनियों की मौत हो गई है. इस बीच गाजा में 5 लाख से अधिक फिलीस्तीनी देश के उत्तरी भाग की ओर लौटे, जहां जरूरी सहायता के इंतजार में पहले से हजारों लोग जुटे हुए हैं. इजरायल ने UNRWA (संयुक्त राष्ट्र फिलीस्तीनी शरणार्थी एजेंसी) को पूर्वी यरुशलम, गाजा और वेस्ट बैंक में प्रतिबंधित कर दिया और यह प्रतिबंध गुरुवार से लागू हो गया है.
चलते-चलते
कनाडा के कैथोलिक स्कूलों में पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही थी बच्चों से बर्बरता
प्रगति सक्सेना
वर्ष 2024 में रिलीज़ हुई डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘शुगरकेन’ पश्चिम के दर्शकों को ना सिर्फ निस्तब्ध कर गई बल्कि उपनिवेशवाद ने धर्म और सभ्यता के नाम पर देसी जनजातियों को किस तरह कुचला- इसके हृदयस्पर्शी चित्रांकन की अमिट छाप भी छोड़ गई. इस डाक्यूमेंट्री को इस वर्ष ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित भी किया गया है. हाल के वर्षों में कनाडा के सेंट जोसेफ मिशन रेजिडेंशियल स्कूल के परिसर में करीब 215 अनाम कब्रें मिलीं तो विलियम्स लेक फर्स्ट नेशन की छोटे से देशज समुदाय में कुछ खलबली हुई जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि बरसों से जमी मौन की मोटी परत के नीचे कुछ ऐसा दर्दनाक है जो कहे-सुने से परे है.
गन्ने के खेतों के करीब स्थित यह कैथोलिक स्कूल 1891 में खोला गया था – वहाँ के देशज समुदायों को उपनिवेश में सम्मिलित करने के मकसद से ताकि सांस्कृतिक और सभ्यता के स्तर पर ये समुदाय ब्रिटिश उपनिवेश के अनुकूल और समस्तर हो जाएँ. कैथोलिक चर्च द्वारा संचालित इस रेजिडेंशियल स्कूल में सांस्कृतिक और धार्मिक अनुकूलन के नाम पर बच्चों के साथ किस तरह का बर्ताव होता था – इसकी कलई इन अनाम कब्रों का इन्वेस्टिगेशन करने पर खुलती चली गई. शार्लीन बेलु को इस मामले की तहकीकात का ज़िम्मा सौंपा गया. 1981 में बंद हो चुके इस स्कूल से पढ़े कुछ बच्चे या उनके परिवार के सदस्य आज इस इलाके के नामचीन लोगों में से हैं. जैसे जैसे शार्लीन बेलु वहाँ के लोगों से बात करती हैं- तो शोषण, प्रताड़ना और यौन शोषण की एक वीभत्स कहानी उघड़ती जाती है. फिल्म को निर्देशित किया है जुलियन नॉइज़कैट और एमिली कैसी ने. नॉइज़कैट के पिता खुद इस स्कूल में पढ़े थे और उस अत्याचार के पीड़ित थे जो देशज बच्चों पर किया गया था. हम चीफ रिक गिल्बर्ट से भी मिलते हैं जिनकी तीन पीढ़ियाँ इस शोषण और अत्याचार की शिकार हुईं - उनकी माँ, दादी और वे खुद. लेकिन उनका खुद पर और इंसानियत पर भरोसा नहीं टूटा.
यह बात आहत और हैरान करने वाली है कि इन इंटरव्यूज से पहले इस भयावह स्कूल के सर्वाइवर बिलकुल चुप रहे और उन्होंने इस गहरी पीड़ा और दमन का अपने समुदाय में भी किसी से ज़िक्र नहीं किया. बेशक उन दर्दनाक अनुभवों ने इन सर्वाइवर्स की पीढ़ियों को प्रभावित किया जिसके दाग उनकी स्मृति और शख्सियत पर आज भी बरकरार हैं. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और संगीत उतना ही प्रभावशाली है जितना इसके विजुअल्स और धीरे-धीरे खुलते इंटरव्यूज. एक विक्टिम जब उसी संस्था के एक अधिकारी के सामने बैठ कर अपने दर्दनाक अनुभवों को साझा करता है – तो आप उस रोंगटे खड़े कर देने वाली पीड़ा को नज़दीक से देख पाते हैं.
और भी दुखद बात ये है कि ये अत्याचारी कोई और नहीं बल्कि धर्म के ठेकेदार ही थे. एक सर्वाइवर महिला इंटरव्यू के दौरान कहती भी है- कि “वह सब (दुष्कर्म) पाप था, लेकिन जो हमें ये बता रहे थे कि यह पाप है, वही ये काम कर भी रहे थे.” उपनिवेशों में चर्च के हाथों हुए अत्याचारों की कहानियां नयी नहीं हैं. लेकिन यह अत्याचार बच्चों पर किया गया, जिनमे कुछ मारे गए, कुछ ने आत्महत्या कर ली और जो शेष रहे वो उम्र भर एक सन्नाटे में जीने को विवश हो गए. यह फिल्म एक मद्धम लेकिन सशक्त स्वर से इसी सन्नाटे को तोडती है. देशज समुदायों की प्रतिभा और श्रेष्ठता को स्वीकार करने और सराहने के लिए यह ज़रूरी है कि उनके साथ सभ्यता और धर्म के नाम पर हुए अत्याचारों, हिंसा और दमन को परत दर परत उधेड़ा जाए. यह निर्देशक की निजी यात्रा भी है- एक संवेदनशील, नाज़ुक सा भावनात्मक सफर, जिस दौरान वह एक तरह से अपने पिता की पूरी कहानी जानना चाहता है ताकि इसका उसके पिता और उनके समुदाय पर एक कथार्टिक असर हो.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.