31/03/2025 : बेचैनी वाली ईद | हिंदू कैलेंडर के कन्फ्यूज़न | बिना कैडर वाले 'माओवादियों' का समर्पण | मोदी नागपुर पंहुचे | सोशल मीडिया पर सरकारी धौंस | केरल ने कैसे की इतनी तरक्की |
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा !
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
दलित छात्र रामदास का निलंबन खतरनाक मिसाल
100 से 200 करोड़ कीमत वाले 25 घर बिके
मणिपुर सहित 3 पूर्वोत्तर राज्यों में अफस्पा 6 माह के लिए बढ़ाया
कैथोलिक बिशप्स वक़्फ़ बिल के समर्थन में
एक बिजलीघर के दो शिलान्यास
काल भैरव पीते रहेंगे, पर उज्जैन के लोग नहीं
पहले जेलेंस्की से गुस्सा, अब पुतिन से नाराज़ हैं ट्रम्प
भूकंप से हुई तबाही एशिया में एक सदी से अधिक समय में नहीं देखी गई'
इसलिए बेचैनियों से भरी है इस बार की ईद?
सोमवार को ईद होगी. रविवार को चांद दिखने के साथ यह तय हो गया है. लेकिन मुस्लिमों के सबसे बड़े त्योहार से पहले कुछ ऐसे आदेश, ऐसी घटनाएं घटी हैं, जो बेचैन कर सकती हैं. जैसे मेरठ से आई खबर की वहां सड़क पर नमाज पढ़ने वाले मुस्लिमों के पासपोर्ट और लाइसेंस रद्द कर दिये जाएंगे. हरियाणा में ईद की सामान्य छुट्टी इसलिए नहीं दी जाएगी, क्योंकि 31 मार्च वित्तीय साल का आखिरी दिन है. वहीं दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में भाजपा नेताओं ने मांग की है कि नवरात्रि के दौरान मांस की दुकान बंद रखी जाए. रमजान के बाद आने वाली ईद मीठी ईद होती है, वहीं दक्षिणपंथी समूह देवभूमि संघर्ष समिति के विरोध प्रदर्शन की धमकी के बाद हिमाचल प्रदेश की राजधानी के स्कूलों में ईद समारोह से जुड़े कार्यक्रमों को रद्द कर दिया गया है. उत्तर प्रदेश में चल रहे चैत्र नवरात्र के मौके पर अवैध बूचड़खाने बंद रहेंगे. उत्तर प्रदेश के संभल में पुलिस ने रमजान के आखिरी शुक्रवार (अलविदा) की नमाज सड़कों और छतों पर पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था और ड्रोन के जरिये इसकी निगरानी की थी. ये कुछ उदाहरण हैं. इस बार ईद से पहले ऐसी कई खबरें आई, जो परेशान करने के लिए काफी है. क्या ऐसे में खुशी का पर्यायवाची ईद मुसलमान इत्मीनान और तसल्ली से मना पाएंगे.
महाराष्ट्र के बीड में मस्जिद में विस्फोट, दो गिरफ्तार : महाराष्ट्र के बीड में रविवार को एक मस्जिद में विस्फोट होने से उसके भीतरी हिस्से को नुकसान पहुंचा है. पुलिस के अनुसार, जियोराई तहसील के अर्धा मसला गांव में सुबह करीब 2.30 बजे हुए इस विस्फोट में कोई घायल नहीं हुआ है. पुलिस ने बताया कि किसी ने मस्जिद में जिलेटिन की छड़ें रख दी थी. इस मामले में पुलिस ने विजय राम गव्हाने (22) और श्रीराम अशोक सागड़े (24) को गिरफ्तार किया है. ये दोनों बीड के जियोराई तालुका के निवासी हैं.
इस बीच मुंबई पुलिस को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ईद के दौरान संभावित हिंदू-मुस्लिम दंगों की चेतावनी मिली है. इसके मद्देनजर पुलिस ने गश्त बढ़ा दी है.
भारतीय राज्य मुसलमानों की हर गतिविधि को अपराधी कृत्य की तरह पेश कर रहा है
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर अपूर्वानंद ने राज्य और पुलिस प्रशासन की तरफ से ईद किस तरह मनाएं, इस पर आए फरमानों की पड़ताल की है. वह इन फरमानों और कृत्यों के आलोक में स्पष्ट करते हैं कि आज के भारतीय राज्य मुसलमानों की हर गतिविधि को अपराधी कृत्य की तरह पेश कर रहे हैं. वह कहीं मकान ख़रीदे, कोई दुकान खोले, चूड़ी बेचने के लिए गलियों में फेरी करे, पढ़ाई करे, प्रतियोगिता परीक्षा में सफल हो, सब कुछ हिंदुओं का हिस्सा छीनने की आपराधिक साज़िश है. पूरा लेख आप यहां पढ़ सकते हैं.
कार्टून | मंजुल

50 कथित माओवादियों का समर्पण, ज्यादातर कैडर के नहीं
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में रविवार (30 मार्च, 22025) को 50 कथित माओवादियों ने सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण किया, जिनमें से 14 के सिर पर कुल 68 लाख रुपये का इनामी घोषणा थी. पुलिस महानिरीक्षक (बस्तर रेंज) पी. सुंदरराज ने बताया कि बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण के मामले में यह सबसे बड़ा आंकड़ा है. उन्होंने कहा कि पिछले महीने भी बीजापुर में 26 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था. बीजापुर, बस्तर क्षेत्र के सात जिलों में से एक है और नक्सल हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित रहा है. सुंदरराज ने बताया कि वित्तीय सहायता की राशि माओवादी संगठन में व्यक्ति की रैंक और भूमिका पर निर्भर करती है. इस बार आत्मसमर्पण करने वाले 50 लोगों में से अधिकांश सशस्त्र कैडर नहीं थे, बल्कि इनमें दूरदराज के गाँवों में रहकर कथित रूप से भूमिगत माओवादियों को समर्थन देने वाले लोग शामिल थे. उन्होंने कहा कि यह आत्मसमर्पण माओवाद-प्रभावित घने इलाकों में सुरक्षा अभियानों और नए कैंप स्थापित करने का भी परिणाम है. उल्लेखनीय है कि इस साल के पहले तीन महीनों में बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों द्वारा 118 माओवादी मारे गए हैं, जिनमें से अधिकांश बीजापुर में थे. गौरतलब है कि गुरुवार को छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने 18 माओवादियों को मार गिराया, जिनमें से 17 सुकमा और एक बीजापुर में थे.
प्रधानसेवक बनने के 10 साल बाद प्रचारक अपने मुख्यालय पहुंचा
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी रविवार को पहली बार भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के नागपुर स्थित मुख्यालय केशवकुंज पहुंचे. बतौर पीएम अपने पहले दौरे के लिए उन्होंने खासतौर पर आज “गुड़ी पड़वा-नव संवत्सर” का दिन चुना. संघ की स्थापना का भी यह सौवाँ वर्ष है. संघ मुख्यालय में करीब चार घंटे बिताए और कहा कि 100 साल पहले राष्ट्रीय चेतना के जिस बीज को बोया गया था, वह आरएसएस के रूप में वटवृक्ष बनकर खड़ा है. उन्होंने संदेश लिखकर डॉ. हेडगेवार और गुरु गोलवलकर को श्रद्धांजलि भी दी. “द प्रिंट” में मानसी फड़के और पूर्वा चिटनीस की रिपोर्ट कहती है कि केशव कुंज पहुंचने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं. लेकिन राजनीतिक रूप से मोदी की इस यात्रा का काफी महत्व है. क्योंकि पिछले साल भाजपा और संघ के रिश्तों के बीच मनमुटाव की खबरें आई थीं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो कहा भी था कि “अब हम (पार्टी) सक्षम हैं और हमें संघ की जरूरत नहीं है.” माना जाता है कि 2024 के आम चुनावों के पहले नड्डा के इस बयान को संघ ने गंभीरता से लिया था. इसीलिए चुनाव नतीजों में जब भाजपा “400 पार” के अपने नारे से काफी पीछे (240) रह गई तो कइयों ने माना कि संघ के हाथ पीछे खींच लेने के कारण ऐसा हुआ. अब भी पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव लटका पड़ा है. नड्डा की जगह नए व्यक्ति की तलाश की जा रही है. जानकार बताते हैं कि इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के बीच मतैक्य बन नहीं पा रहा है. संघ चाहता है इस बार उसकी पसंद की भी परवाह की जाए. इसी चक्कर में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव टलता जा रहा है, और नड्डा “एक व्यक्ति-एक पद” के पार्टी के कथित सिद्धांत के विपरीत केंद्रीय मंत्री की कुर्सी पर भी बने हुए हैं. बतौर अध्यक्ष उनका कार्यकाल लगातार बढ़ाना पड़ रहा है. “मिंट” में गुलाम जिलानी की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि मोदी ने पहले प्रधानमंत्री के रूप में संघ मुख्यालय जाकर भारतीय राजनीति के इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया. हालांकि “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में पीटीआई के हवाले से लिखा है कि मोदी दूसरे पीएम हैं, उनके पहले वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी संघ मुख्यालय गए थे. लेकिन तब वाजपेयी के दौरे के पूर्व किसी को हिरासत में नहीं लिया गया था. इस बार मोदी की यात्रा के पूर्व पृथक विदर्भ राज्य की मांग करने वाली समिति के दर्जन भर कार्यकर्ता हिरासत में ले लिए गए. पुलिस को अंदेशा था कि ये कार्यकर्ता मोदी को काले झंडे दिखा सकते हैं. पाकिस्तान के अखबार “डॉन” ने भी मोदी की इस यात्रा को कवर किया है. अखबार ने लिखा, “पिछले चुनाव में फिर से निर्वाचित होने के बाद संघ मुख्यालय में मोदी का यह पहला दौरा था. मोदी समेत भारतीय जनता पार्टी के कई शीर्ष नेताओं ने आरएसएस में अपने करियर की शुरुआत की थी. आरएसएस के लाखों सदस्य पैरामिलिटरी ड्रिल और शाखा आयोजित करते हैं. यह संगठन भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए अभियान चलाता है — न कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र, जैसा कि इसके संविधान में वर्णित है — और आलोचक इस पर सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हैं.”
मोदी, अमित, जय… पर आलोचना को सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स से हटाने को कहा सरकार ने
केंद्र सरकार ने अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों में खुलासा किया है कि गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) को भेजे गए 30% नोटिस केंद्रीय मंत्रियों और सरकारी एजेंसियों से संबंधित थे. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उनके पुत्र जय शाह, गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लक्षित करने वाली सामग्री शामिल थी. पिछले एक साल में, सरकार ने 1.1 लाख से अधिक कंटेंट हटाने के निर्देश दिए, जिनमें डीपफेक, बाल यौन शोषण, वित्तीय धोखाधड़ी और "भ्रामक जानकारी" वाले पोस्ट थे.
अमित शाह का अंबेडकर बयान : 17 दिसंबर 2024 को राज्यसभा में अंबेडकर को लेकर शाह के विवादास्पद बयान ("अंबेडकर का नाम लेना फैशन बन गया है...") के बाद I4C ने ‘एक्स’ को 81 पोस्ट हटाने के नोटिस भेजे. इनमें कांग्रेस नेताओं के पोस्ट भी थे, जिनमें शाह की टिप्पणियों को "घृणित" बताया गया. सरकार ने दावा किया कि ये पोस्ट "संदर्भ से काटकर गलत सूचना फैलाते हैं."
मोदी पर व्यंग्य : एक पोस्ट में प्रधानमंत्री मोदी के "हर पांच साल में हिसाब देने" के वादे का मजाक उड़ाया गया था, जिसे उपयोगकर्ता ने स्वयं हटा दिया.
जय शाह का बचाव : गृह मंत्रालय ने पिछले साल ‘एक्स’ से जय शाह को लक्षित करने वाली सामग्री हटाने के लिए दो बार नोटिस जारी किए.
I4C के दस्तावेजों से पता चलता है कि सरकार "वीआईपी को बदनाम करने के प्रयास" को रोकने के नाम पर आलोचनात्मक आवाज़ों को दबा रही है. हालांकि, सरकार का तर्क है कि यह कदम "गलत सूचना और साइबर अपराधों" से निपटने के लिए जरूरी है.
यह मामला सरकारी निगरानी बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच चल रही बहस को उजागर करता है. जहां एक ओर साइबर सुरक्षा और गलत सूचना के खतरों को देखते हुए ऐसे नोटिस जरूरी हैं, वहीं दूसरी ओर, इनके दुरुपयोग से लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरा भी है.
I4C के नोटिस आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) के तहत जारी किए गए, जो प्लेटफॉर्म्स को 36 घंटे के भीतर सामग्री हटाने का निर्देश देते हैं. अनुपालन न करने पर प्लेटफॉर्म की मध्यस्थ छूट (कानूनी सुरक्षा) खत्म हो सकती है. ‘एक्स’ ने अदालत में I4C के नोटिस को "सेंसरशिप" बताते हुए चुनौती दी, लेकिन केंद्र ने दलील दी कि ये केवल "सूचनात्मक नोटिस" हैं. व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स ने सरकार के 83,000+ अकाउंट बंद करने के अनुरोधों का तेजी से जवाब दिया, जबकि ‘एक्स’ ने अप्रैल 2023 से सरकारी नोटिसों का विवरण प्रकाशित करना बंद कर दिया था.
दलित छात्र रामदास का निलंबन खतरनाक मिसाल : लगभग 30 मानवाधिकार समूह, छात्र, शिक्षक और पत्रकार मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) के पीएचडी छात्र रामदास प्रीति शिवनंदन की तत्काल बहाली और उनके खिलाफ सभी राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोपों को वापस लेने की मांग की. शनिवार 29 मार्च को मुंबई मराठी पत्रकार संघ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एकत्रित हुए, संगठनों ने इस बात पर जोर दिया कि शैक्षणिक संस्थान ऐसा होना चाहिए, जहां विविध आवाजें सुनी जाएं, जहां हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाया जाए और जहां लोकतंत्र पनपे. अप्रैल 2024 में, टीआईएसएस ने दलित छात्र रामदास पर ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों’ का आरोप लगाते हुए निलंबित कर दिया था. इसमें संसद मार्च में उनकी भागीदारी और संबोधन का हवाला दिया गया था. इसमें भाजपा की शिक्षा नीतियों की आलोचना की गई थी और सभी के लिए शिक्षा की मांग की गई थी. इसे 16 छात्र संगठनों के संयुक्त मंच यूनाइटेड स्टूडेंट्स ऑफ इंडिया ने आयोजित किया था. रामदास ने टीआईएसएस से अपनी मास्टर और एमफिल दोनों डिग्री पूरी की और पिछले दिनों एमए में प्रवेश के लिए टीआईएसएस द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा में टॉपर रहे हैं. वर्तमान में वह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप (एनएफएससी) के प्राप्तकर्ता हैं, जो उनके पीएचडी के दौरान यूजीसीनेट परीक्षा में उनके प्रदर्शन को मान्यता देता है.
हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन से 6 की मौत : रविवार 30 मार्च को कुल्लू में मणिकरण गुरुद्वारा पार्किंग के पास पेड़ उखड़ने से छह लोगों की मौत हो गई और पांच घायल हो गए. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में हुए इस बड़े हादसे के वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए, जिसमें देखा जा सकता है कि पेड़ की टहनियाँ कारों पर गिर गईं और वे कुचल गईं.
उत्तर प्रदेश : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 582 जजों का तबादला किया : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़े प्रशासनिक फेरबदल के तहत 582 न्यायिक अधिकारियों का तबादला कर दिया है. इनमें 236 अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, 207 सिविल जज (सीनियर डिवीजन) और 139 सिविल जज (जूनियर डिवीजन) शामिल हैं. न्यायाधीशों को तत्काल नए पदस्थापन स्थान पर कार्यभार ग्रहण करने को कहा गया है.
आर्थिक असमानता
100 से 200 करोड़ कीमत वाले 25 घर बिके
“द इंडियन एक्सप्रेस” में जॉर्ज मैथ्यू की यह रिपोर्ट इस निष्कर्ष को और पुख्ता बनाती है कि भारत में “आर्थिक असमानता” तेजी से बढ़ रही है. यानी अमीर, और अमीर हो रहा है तथा गरीब, और गरीब. रिपोर्ट के अनुसार, भारत का लग्ज़री रियल एस्टेट बाजार अभूतपूर्व उछाल का अनुभव कर रहा है. 2024 में, 25 अल्ट्रा-लग्ज़री घरों की बिक्री हुई, जिनकी कीमत प्रति घर ₹100-200 करोड़ से अधिक थी और कुल मूल्य ₹3,652 करोड़ रहा, जो पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया. 2025 के पहले दो महीनों में ही चार अल्ट्रा-लग्ज़री घरों की बिक्री हुई, जिनकी संयुक्त कीमत ₹850 करोड़ रही. यानी प्रति घर 200 करोड़ रुपये से ज्यादा. यह वृद्धि पिछले वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय है. 2023 में ₹2,259 करोड़ मूल्य के 14 अल्ट्रा-लग्ज़री घर बिके थे और 2022 में ₹1,583 करोड़ मूल्य के 10 घरों की बिक्री हुई थी. पिछले तीन वर्षों में मुंबई और दिल्ली एनसीआर जैसे प्रमुख महानगरों में ₹100 करोड़ या उससे अधिक कीमत वाले कुल 49 अल्ट्रा-लग्ज़री घर बिके हैं. यह उछाल उच्च नेट-वर्थ व्यक्तियों और संपन्न खरीदारों की बढ़ती मांग को दर्शाता है.
मणिपुर सहित 3 पूर्वोत्तर राज्यों में अफस्पा 6 माह के लिए बढ़ाया : केंद्र सरकार ने हिंसाग्रस्त मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (AFSPA) को 6 माह के लिए बढ़ा दिया है. राज्य के 13 पुलिस थाना क्षेत्रों को छोड़कर शेष पूरे राज्य में यह 1 अप्रैल से छह माह के लिए लागू रहेगा. केंद्र सरकार ने मणिपुर के हालात की समीक्षा करने के बाद यह फैसला किया है. राष्ट्रपति शासन के बावजूद राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में अब भी सुधार नहीं हुआ है. सिर्फ मणिपुर ही नहीं, पूर्वोत्तर के राज्य नगालैंड के आठ जिलों और राज्य के पांच अन्य जिलों के 21 पुलिस थाना क्षेत्रों तथा अरुणाचलप्रदेश के तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग जिलों तथा नामसाई जिले के तीन पुलिस थाना क्षेत्रों में भी AFSPA छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है.
सुपरफास्ट ट्रेन पटरी से उतरी, एक मरा : ओडिशा के कटक में रविवार को बेंगलुरु-कामाख्या सुपरफास्ट एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने के कारण एक यात्री की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए. यह हादसा दिन में 11.54 बजे निरगुंडी स्टेशन के पास हुआ. ट्रेन बेंगलुरु से कामाख्या जा रही थी.
कैथोलिक बिशप्स वक्फ बिल के समर्थन में : “द इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (केसीबीसी) ने राज्य के सांसदों से वक्फ संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान करने का अनुरोध किया है. भाजपा, केरल में ईसाई समुदाय के करीब आने की कोशिश कर रही है, लिहाजा उसने काउंसिल के इस रुख की सराहना की है. ‘केसीबीसी’, केरल में कैथोलिक बिशप्स का एक शक्तिशाली संगठन है, जिसमें सायरो-मलाबार, लैटिन और सायरो-मलंकारा चर्च शामिल हैं.
एक बिजलीघर के दो शिलान्यास : छत्तीसगढ़ में आज प्रधानमंत्री ने उसी पावर प्लांट का शिलान्यास किया, जो कांग्रेस के राज में पहले ही हो चुका था. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस पर सोशल मीडिया पर भी अपनी टिप्पणी की है. कांग्रेस ने कहा कि कोरबा में छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जनरेशन कंपनी के 1320 मेगावाट के दो सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट बनाने का निर्णय भूपेश सरकार के समय 25 अगस्त 2022 को लिया गया था इसके लिए वित्तीय स्वीकृति के बाद इसका शिलान्यास भी 30 जुलाई 2023 को हो चुका था.
एक्सप्लेनर
केरल कैसे बाहर निकला गुरबत के गड्ढे से
भारत के 28 राज्यों में केरल एक अनूठा उदाहरण है, जिसने गरीबी से समृद्धि तक का सफर तय किया. 1970 तक यहाँ की औसत आय भारत के औसत का दो-तिहाई थी, लेकिन आज यह राष्ट्रीय औसत से 50-60% आगे है. इस चमत्कारी बदलाव के पीछे स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देने वाली 'केरल मॉडल' की भूमिका रही है. केरल ने आर्थिक पिछड़ेपन के बावजूद 1970 के दशक से ही साक्षरता, स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा में शीर्ष स्थान बनाए रखा. यहाँ जनसंख्या वृद्धि दर भी भारत के अन्य हिस्सों से कम रही. नोबेल विजेता अमर्त्य सेन और अर्थशास्त्री ज्याँ द्रेज़ ने इस मॉडल की सराहना करते हुए इसे "सीमित संसाधनों में जीवन की गुणवत्ता सुधारने वाला" बताया. एयोन वेबसाइट पर मानव विकास की उपलब्धियों, राजनीतिक प्रयोग, वैश्विक प्रवासन और आर्थिक पुनरुत्थान से सजी केरल की जटिल कहानी को, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में आर्थिक इतिहास के प्रोफेसर तीर्थंकर रॉय और केरल राज्य योजना बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य के. रवि रमन ने टटोलने की कोशिश की है.
1990 के उदारीकरण से पहले, जब भारत आर्थिक नीतियों पर बहस कर रहा था, केरल ने तीन मूलभूत सिद्धांत दिए : पहला, आय वृद्धि अकेले विकास का पैमाना नहीं. दूसरा, शिक्षा, स्वास्थ्य और लंबी उम्र ज़्यादा महत्वपूर्ण. तीसरा, सरकारी हस्तक्षेप से ही स्कूल-अस्पताल संभव.
ये सबक मिलाकर "केरल मॉडल" बने, जो नवउदारवादी मॉडल के विकल्प के रूप में उभरा. 1990 के बाद, केरल की औसत आय भारत के औसत से आगे निकल गई. हालांकि, मानव विकास के मामले में यह वृद्धि उतनी प्रभावशाली नहीं थी, क्योंकि भारत ने केरल को पकड़ लिया था. इस आय वृद्धि के पीछे के कारणों को अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं गया है. अर्थशास्त्रियों का ध्यान अब तक कल्याणकारी नीतियों पर रहा है, लेकिन आय में हुए इस उलटफेर से पता चलता है कि निजी निवेश का एक नया पैटर्न उभर रहा है, जिसे केवल बुनियादी स्वास्थ्य और साक्षरता में प्रगति से नहीं समझा जा सकता.
लेख में केरल के सफलता के चार स्तंभ बताए गये हैं. एक तो सदियों पुराने व्यापारिक रिश्तों और खाड़ी देशों में प्रवास ने अर्थव्यवस्था को गति दी. दूसरा मसालों से लेकर रबर तक, प्राकृतिक संसाधनों ने आधार बनाया. तीसरा, कुशल जनशक्ति और उच्च साक्षरता ने सेवा क्षेत्र को बढ़ावा दिया. चौथा वामपंथी प्रभाव के कारण भूमि सुधारों और मज़दूर हितैषी नीतियों ने समानता बढ़ाई.
1956 में भूमि सुधार हुआ और ज़मींदारी उन्मूलन से भूमिहीनों को ज़मीन मिली, मगर कृषि निवेश घटा. 1970-80 के दशकों में खाड़ी प्रवास शुरू हुआ और लाखों केरलवासियों ने विदेशों में रोज़गार ढूँढा और रेमिटेंस इकोनॉमी ने निर्माण एवं पर्यटन को जन्म दिया. 1990 के उदारीकरण के बाद: निजी निवेश ने शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन क्षेत्र खोले. वामपंथी सरकारों ने भी पूँजी के प्रति रवैया नरम किया.
काल भैरव पीते रहेंगे, पर उज्जैन के लोग नहीं : उज्जैन समेत मध्य प्रदेश के 17 धार्मिक शहरों में शराब का विक्रय नहीं किया जाएगा. चूंकि इन धार्मिक शहरों में उज्जैन भी सम्मिलित है और यहां के प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर में शराब (मदिरा) का भोग लगाने की प्रचीन पूजन-परंपरा है, इसलिए अब भक्तों को इसके लिए फिलहाल बाहर से शराब लानी पड़ेगी. हालांकि उज्जैन के कलेक्टर ने काल भैरव को मदिरा भोग की पूजन-परंपरा के महत्व के तर्क पर मंदिर के सामने वाली दुकान संचालित होने देने का अनुरोध शासन को पत्र लिखकर किया है. जिन शहरों में नया कायदा लागू होगा उनमें उज्जैन के अलावा ओंकारेश्वर, महेश्वर, मंडलेश्वर, मंदसौर, ओरछा, मैहर, चित्रकूट, दतिया, अमरकंटक, सलकनपुर, पन्ना, मंडला, मुलताई, बरमान कला, लिंगा, कुंडलपुर हैं.
पहले जेलेंस्की से गुस्सा, अब पुतिन से नाराज़ हैं ट्रम्प
एनबीसी न्यूज के साथ शनिवार को टेलीफोनिक साक्षात्कार में ट्रम्प ने चेतावनी दी कि यदि पुतिन यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने की वार्ता में सहयोग नहीं करते हैं, तो वे रूसी तेल पर अतिरिक्त टैरिफ लगा सकते हैं.
"मैं बहुत नाराज हूँ… जब पुतिन ने ज़ेलेंस्की की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना शुरू किया, क्योंकि यह सही दिशा में नहीं जा रहा है, समझे?" ट्रम्प ने "मीट द प्रेस" की होस्ट क्रिस्टन वेलकर को दिए साक्षात्कार में कहा. वेलकर ने रविवार को इस चर्चा के बारे में विस्तार से बताया.
जब पूछा गया कि क्या वे इस सप्ताह पुतिन से बात करेंगे, यदि रूसी नेता "सही काम करते हैं", तो ट्रम्प ने कहा, "हाँ". उन्होंने यह भी बताया कि पुतिन को उनके गुस्से के बारे में पता है. ट्रम्प की यह तीखी आलोचनात्मक भाषा, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के प्रति उनके अपने शब्दों और युद्धग्रस्त देश में चुनाव की माँग के उनके आह्वान के साथ स्पष्ट विरोधाभास दिखाती है.
ट्रम्प ने पुतिन के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने यूक्रेन में "नए नेतृत्व" की आवश्यकता जताई थी. "लेकिन नये नेतृत्व का मतलब है कि लंबे समय तक कोई समझौता नहीं होगा, है न?" ट्रम्प ने कहा. अमेरिकी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी कि यदि समझौता नहीं हुआ तो इसके परिणामस्वरूप सैकंडरी टैरिफ लगाए जा सकते हैं.
"अगर रूस और मैं यूक्रेन में खून-खराबा रोकने पर समझौता नहीं कर पाते, और अगर मुझे लगता है कि यह रूस की गलती है — हालाँकि शायद न हो — लेकिन अगर मुझे लगा कि रूस जिम्मेदार है, तो मैं रूस से निकलने वाले सभी तेल पर सेकंडरी टैरिफ लगा दूँगा," उन्होंने कहा.
उन्होंने चेतावनी दी कि रूस पर और सख्त प्रतिबंध "इस रूप में होंगे कि यदि आप रूस से तेल खरीदते हैं, तो आप अमेरिका में व्यापार नहीं कर सकेंगे."
भारत का सरदर्द बढ़ेगा : रूस और उसके साथ व्यापार करने वाले देशों पर टैरिफ बढ़ाने की यह धमकी भारत के लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकती है. यदि पुतिन इस दबाव में नहीं झुकते और ट्रम्प अपनी इस धमकी पर अमल करते हैं, तो भारत अमेरिका में व्यापार करने में अक्षम हो जाएगा, क्योंकि रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. CREA (सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर) की एक रिपोर्ट के अनुसार, युद्ध की शुरुआत से 2 मार्च 2025 तक भारत ने रूस से 205.84 अरब यूरो मूल्य का जीवाश्म ईंधन खरीदा. इसमें 112.5 अरब यूरो (121.59 अरब अमेरिकी डॉलर) कच्चे तेल के लिए खर्च किए गए, जिसे पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन में परिष्कृत किया जाता है, और 13.25 अरब यूरो कोयले के लिए.भारत, जो अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 85% से अधिक आयात पर निर्भर है, ने 2022-23 (अप्रैल 2022 से मार्च 2023) में 232.7 अरब अमेरिकी डॉलर और 2023-24 में 234.3 अरब अमेरिकी डॉलर कच्चे तेल के आयात पर खर्च किए.
कटाक्ष
त्रिभुवन : अपने महान केलैंडरों को लेकर इतना कन्फ्यूज़न आखिर क्यों
जब से मैंने होश संभाला है, तब से यही सुनता रहा हूँ कि आज चैत्रशुक्ल प्रतिपदा है और आज से नवरात्रा आरंभ हो रहे हैं; लेकिन कुछ साल से देख रहा हूँ कि जैसे ही रुपए को डॉलर धोबीपाट लगाता है तो भाई साहब नव वर्ष की शुभकामनाएं देने आ जाते हैं. आज भी आए. यह उनका बड़प्पन है. बोले, बधाई हो. मैंने पूछा, किसकी? बोले हिन्दू नव वर्ष की!
मैंने पूछा : भाई साहब, आपका जन्मदिन कब है? बोले, भूल गए. आपने बधाई दी थी 5 मार्च को. आपके पिता जी का? तो कहा : 19 फरवरी और पूछा कि दादाजी का तो कहा : एक अप्रैल. मैंने कहा फर्स्ट अप्रैल ही न तो वे थोड़ा सकुचाए.
मैंने कहा कि तो फिर वर्ष तो वही हुआ न! आप किस वर्ष की बधाई दे रहे हैं? बोले, भाई साहब मजाक मत करो. आप नहीं जानते कि आज हिन्दू संवत्सर है और आज से ही भारतीय नव वर्ष शुरू हुआ है. यह कौन-सा है? तो कहने लगे, 2082वां.
मैंने कहा, आप इसके आगे लगा एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ या दस या इसी तरह आगे बढ़ती किसी संख्या को शायद भूल रहे हैं? वे कहने लगे, नहीं-नहीं. यह 2082 ही है.
मैंने उन्हें याद सॉरी, स्मरण दिलाया, आप ख़ुद सॉरी स्वयं ही तो पिछले दिनों कह रहे थे कि सनातन सभ्यता सृष्टिकाल से चली आ रही है. तो इतनी कतर-ब्योंत क्यों? मैंने कटी-फटी हालत वाला ऋग्वेद उठाकर कहा कि दस हजार साल से अधिक पुराना तो इसे म्लेच्छ इतिहासकार ही बताते हैं.
मैंने कहा, विकृत ईसाई संस्कृति वालों का यह 2025वां साल चल रहा है और हिन्दू संवत्सर मात्र 2082वां ही? क्या हम इन म्लेच्छों के वर्ष से केवल-मात्र-सिर्फ़ 57 साल पीछे? क्या आप महान् सनातन संस्कृति को उन ईसाइयों से सिर्फ़ 57 साल पुराना बता रहे हैं?
वे रीढ़ को सीधी तानते हुए गर्वित भाव से आईफोन 16 प्रोमैक्स में ग्रोक से कुछ पूछने लगे. मैंने उन्हें कहा कि होली 13 को और धुलंडी 14 को थी. वह बोले, हाँ. मैंने उन्हें स्मरण करवाया, 14 को राम-राम करते समय आपने अपने बच्चों और मुझे समझाया था कि आज फाल्गुन खत्म हो गया है और कल से चैत्र शुरू हो जाएगा. तो आधा महीना बीतने के बाद यह अचानक नया साल महीने के बीच से कैसे शुरू हो गया?
वे सोच में डूब गए और कहने लगे कि ऐसा ही होता है. ऐसा ही होता है. आप काल गणना के माहात्म्य को नहीं जानते. मैंने कहा, तभी तो मैं पूछ रहा हूँ. वह ग्रोक पर डीप सर्च करने लगे. मैंने कहा, यह बताएं कि आज कौन-सा दिन है? वह बोले, प्रतिपदा यानी प्रथमा. और परसों? वे कहने लगे कि आप तो बेबात ही मीन-मेख निकालते हैं. मैंने कहा, फिर भी. वे बोले, चतुर्थी. तो तृतीया? बोले, वह कल द्वितीया के साथ है.
मैंने पूछा कि तो सरकार एक दिन काम करने वाले कर्मचारियों को दो दिन का वेतन देगी? या महीने में एक दिन का काट लेगी? वे बोले, फरवरी में तो 28 ही होते हैं. किसी में 30 तो किसी में 31 भी. मैंने कहा, लेकिन भाई साहब, उन म्लेच्छों को तो गणना आती नहीं न!
वह बोले, विवाद आप बहुत करते हैं. है तो यह 2082 ही. मैंने उन्हें फिर याद दिलाया कि दो साल पहले आपने ही अपने श्रीमुख से बताया था कि हम इस समय वर्तमान ब्रह्मा के इक्यावनवें वर्ष में सातवें मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध के अठ्ठाईसवें वर्ष में हैं. तो इस सृष्टि को 15 नील, 55 खरब, 21 अरब, 97 करोड़, 19 लाख, 61 हज़ार, 627 वर्ष हो गए तो फिर 2082 कहां से आ गया?
भाई साहब बोले, तुम्हें सिर्फ हिंदुओं से प्रॉब्लम है. उन मुसलमानों से नहीं, जो हर समय चांद पर चढ़े रहते हैं. मैंने कहा कि प्रभु आप सूर्य से उतरिए और कुपित मत होइए. मैं तो बस यह कह रहा था कि ये म्लेच्छों के सेंचुरी, ईयर, मिनट, सेकंड छोड़कर क्या हमें मनवंतर के हिसाब से नहीं चलना चाहिए. स्कूलों में बच्चों को भी काष्ठा, कला, मुहूर्त, दिवस, अयन, तॄसरेणु, त्रुटि, वेध, लावा, निमेष, नाड़ी आदि का ज्ञान हो और इलॉन मस्क के बजाय हम ही मंगल पर उन यात्रियों से भरा अपना यान सीधे उतारें, जिन्हें अमेरिका ने हमारे वक्ष पर उतार दिया था! भाई साहब बोले, आप बहुत तीक्ष्ण व्यंग्य करते हैं!
इस बीच उनके फोन की घंटी बजी तो उसमें जटाटवीगलज्जलप्रवाह पावितस्थलेगलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम् गूंजने लगा. बातचीत हो गई तो मैंने उनके समक्ष जिज्ञासा व्यक्त की कि आप भक्त तो भगवान् राम के हैं, लेकिन आपने लगा रखा है राक्षसराज रावण की भाषा में शिव तांडव!
वे और उनके साथ आए मित्र जोर से हंसे और बोले, तुम दुष्ट राक्षस कुल के ही हो पक्के! मैं तुम्हें बहुत जानता हूँ.
उनके साथ आए भाई साहब बोले, देखिए विषयांतर मत कीजिए. यह भारतीय संवत्सर है और यह आज प्रारंभ हुआ है. मैंने भाई साहब से उदयपुर वाले पंडित हरिश्चंद्र शास्त्री जी के हवाले से पूछा कि अगर यह भारतीय संवत्सर है तो क्या पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार आदि में भी जो संवत्सर अप्रैल, मई या अन्य महीनों में लागू होता है, वह कोई लेफ्टिस्ट या कांग्रेसी संवत्सर है?
अब वे चकराए और उन्होंने संवत्सर की स्थिति समझने के लिए ग्रोक की शरण गही. ग्रोक ने जो बताया, उसे उन्होंने फटाफट स्क्रीन से आउट किया और बोले, पंजाब वाले तो बेवजह ही मकर संक्रांति से यह करते हैं.
मैं उनसे फिर पूछता हूँ कि अभी मोदी जी की सरकार ने 22 मार्च, 2025 से जो शक संवत् 1947 का नया दिन मनाया था, वह क्या था? और अभी जो ज्योतिष में प्रचलित शक संवत् 13-14 अप्रैल को शुरू होगा, वह क्या है?
भाई साहब के साथ आए सज्जन मेरी बातें सुनकर बहुत क्रोधावेशित से थे, फोन दिखाते हुए कहने लगे, देखिए देखिए, यह बहुत विद्वान लेखक हैं. इनका वाट्सऐप देखो. इन्होंने लिखा है : बारहस्तपत्य सिद..द्धांत...मैंने कहा कि वार्हस्पत्य सिद्धार्थी. वे बोले, हाँ-हाँ वही. मैंने उनसे कहा कि लेकिन वह तो हरिश्चंद्र शास्त्रीजी बता रहे हैं कि 10 मई से शुरू होगा. वह बोले, आप बुरा मत मानना लेकिन आप बहुत दुष्ट हो. हर बात में कुतर्क करते हो. वह बहुत गुस्से में आकर बोले, आप तो कम्युनिस्ट हो और आप तो नव सवंत्सर मत ही मनाओ, आप तो मुसलमानों वाले हिजड़ी साल को मान लो!
मैंने कहा, भाई साहब वह हिज्री होता है. वह बोले, हाँ वही मान लो. 354 दिन वाला. और उन्होंने जोर से ठहाका लगाया. हंसते-हंसते वे थोड़ा धीमे हुए. सामने अलमारी में किताबें देख बोले, आपके यहां तो महाभारत भी है. बहुत अशुभ है!
मैंने उनसे कहा, आपने तो पढ़ रखी होगी. वह बोले, खूब. पूछो क्या पूछते हो?
मैंने कहा, पांडवों को तेरह साल का वनवास मिला था, लेकिन वे अपने वनवास की अवधि पूरी होने से पहले ही लौट आए थे. क्यों?
वे ग्रोक से कुछ सर्च करके कहने लगे, अरे ये कहानी भगवान श्रीकृष्ण जी की अद्भुत प्रतिभा और रणनीति की है. आजकल आप कौमनष्ट लोग जिसे लूनर ईयर कहते हैं, ये उसी का कमाल है. पांडवों को कुल 13 वर्ष (12 + 1) का बनबास मिला था.
वे ग्रोक से पढ़ते हुए बोले, कौरवों ने कीचक बध के बाद पांडवों की पहचान पर संदेह किया तो दुर्योधन ने दावा किया कि पांडवों ने 13 सौर वर्ष पूरे नहीं किए और उन्हें फिर से बनबास भेजा जाए.
इस पर भगवान् श्रीकृष्ण ने पांडवों के पक्ष में यह तर्क दिया कि बनबास की अवधि चंद्र वर्ष के आधार पर गिनी जानी चाहिए, न कि सौर वर्ष के आधार पर.
अब वे मोबाइल देखते और मुझे बताते : एक चंद्र वर्ष में 12 चंद्र मास होते हैं और प्रत्येक चंद्र मास 29.5 दिनों का होता है. इस तरह एक चंद्र वर्ष में कुल 354 या 355 दिन होते हैं. वे बुदबुदाए तीन सौ चौ..पन!
लेकिन उन्होंने जब देखा कि मेरा ध्यान उधर नहीं है तो कहने लगे : श्रीकृष्ण ने पांडवों के फेवर में यह तर्क निकाला. दुष्ट दुर्योधन ने बनबास के तेरह साल तो तय किए थे, लेकिन यह तय नहीं किया था कि ये साल सौर वर्ष के होंगे या चंद्रवर्ष के.
वे मुझे बता रहे थे कि भारत की प्राचीन परंपरा में चंद्र वर्ष का चलन आम था. इसलिए पांडवों ने 13 चंद्र वर्ष पूरे कर लिए थे, जो सौर वर्ष के हिसाब से 13 साल से कुछ महीने कम बैठते हैं. श्रीकृष्ण ने सभा में यह तर्क रखा कि चंद्र वर्ष के हिसाब से 13 साल पूरे हो चुके हैं और पांडव अब स्वतंत्र हैं. उनकी गणना और नीतिज्ञता से कौरवों का दावा खारिज हो गया. और वे प्रफुल्ल हो गए.
इस पर मैंने उनके सामने खीर का कटोरा रखते हुए कहा कि आपको नव वर्ष के साथ-साथ पूर्व संध्या पर ईद भी मुबारक हो और यह भी मुबारक हो कि प्राचीन भारत में हिज्री सन् चलता था और उसे भगवान् श्रीकृष्ण की मान्यता थी, जबकि कौरव उस संवत्सर पर विश्वास करते थे, जिसकी आप आज बधाई दे रहे हैं!
इस पर भाई साहब बहुत मुस्कुराते हुए गरजे, तुम साले वामपंथी, म्लेच्छ! हरामी!!! हमारी संस्कृति पर प्रश्न उठाते रहते हो. गंदे, नीच इन्सान!
खीर के दो खाली कटोरे रखते हुए दोनों ने विदाई ली. मैं उन्हें सीऑफ करने जा रहा था. भाई साहब के साथ आए दोस्त ने उनके कान में फुसफुसाते हुए कहा, कितने हरामी होते हैं ये लोग! अपनी बात को कंदूक की तरह नीचे ही नहीं गिरने देते!!!
मैंने उन्हें विदा करते हुए कहा, भाई साहब कंदूक नहीं, कंदुक! भाई साहब कहने लगे, काश, मेरे पास बंदूक होती!
(त्रिभुवन कवि, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)
भूकंप से हुई तबाही 'एशिया में एक सदी से अधिक समय में नहीं देखी गई'
'द गार्डियन' की खबर है कि रेड क्रॉस अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि घातक 7.7 तीव्रता के भूकंप के बाद म्यांमार एक मानवीय संकट का सामना कर रहा है. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज (आईएफआरसी) ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा - "म्यांमार में हम जो देख रहे हैं, वह विनाश का ऐसा स्तर है जो एशिया में पिछले सौ वर्षों में नहीं देखा गया.' एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए आईएफआरसी के क्षेत्रीय निदेशक अलेक्जेंडर माथेऊ ने एक अलग बयान में कहा- 'यह सिर्फ एक आपदा नहीं है; यह मौजूदा कमजोरियों के ऊपर एक जटिल मानवीय संकट है. इस आपदा की तीव्रता बहुत अधिक है और सहायता की तत्काल आवश्यकता है.' आईएफआरसी ने 100 मिलियन स्विस फ़्रैंक (लगभग 943 करोड़ भारतीय रुपये) की आपातकालीन अपील शुरू की है, जिससे 1 लाख लोगों को जीवनरक्षक राहत और शुरुआती पुनर्वास सहायता दी जाएगी. देश के सबसे प्रभावित इलाकों में स्थानीय निवासियों ने कहा कि अब तक सरकारी सहायता बहुत कम पहुंची है, जिससे लोगों को अपने दम पर संघर्ष करना पड़ रहा है. म्यांमार की सैन्य जुंटा सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मदद के लिए दुर्लभ अपील जारी की है. भारत, चीन और थाईलैंड ने म्यांमार को राहत सामग्री और बचाव दल भेजे हैं, साथ ही मलेशिया, सिंगापुर और रूस से भी सहायता और कर्मी पहुंचे हैं. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि एक सैन्य परिवहन विमान, जिसमें खोज और बचाव दल भी शामिल था, भेजा गया है. यह विमान स्वच्छता किट, कंबल, खाद्य पैकेट और अन्य आवश्यक सामान लेकर गया है. अधिकारियों के अनुसार, चार और विमान कर्मियों और उपकरणों के साथ भेजे जा रहे हैं, जिनमें एक फील्ड अस्पताल भी शामिल है, साथ ही दो नौसेना जहाज भी सहायता के लिए भेजे जा रहे हैं. यहां तस्वीरों में देखें भूकंप के बाद की भयावहता.
चलते चलते
विनोद जी विपुलता के बजाय थोड़ेपन के आग्रही हैं
अशोक वाजपेयी ने अपने कॉलम कभी-कभार में विनोद कुमार शुक्ल पर लिखा है. वाजपेयी विनोद कुमार शुक्ल के लम्बे समय से गवाह रहे हैं और साथ ही कई तरह से उनके सफर के भागीदार भी. पूरा लेख द वायर हिंदी में पढ़ा जा सकता है.. पर उसका यह अंश पढ़े जाने लायक है.. जिन्होंने विनोद कुमार शुक्ला को पढ़ा हो उनके लिए भी, न पढ़ा हो उनके लिए भी.
विनोद जी एक अदम्य अर्थ में हमारे इस बेहद बड़बोले, बेसुरे नायकों से आक्रांत समय में अनायकता के गाथाकार और गायक हैं- मंद लय में, बहुत कमबोले. वे कस्बाई ज़िंदगी के रोज़मर्रापन में रसी-बसी अपनी कविता और कथा दोनों में केंद्र में रखते हैं अनायक-साधारण को, जो भले ‘एक दूसरे को नहीं जानते’ पर ‘साथ चलने को जानते’ हैं.
विनोद जी एक विचित्र अर्थ में निरे समकालीन को ही अपना उपजीव्य बनाते हैं- ऐसे समकालीन को जिसमें न मिथकीय अनुगूंजें हैं, न इतिहास की कोई सजीव स्मृति. शायद उन्हें आधुनिक के बजाय, इस संदर्भ में, उत्तर-आधुनिक कहना अधिक उपयुक्त है.
‘अपने मूल निवास का यही तिलिस्म है’ यह पहचान सकने वाले विनोद जी विपुलता के बजाय थोड़ेपन के आग्रही हैं : ‘थोड़े से में रहकर/थोड़े से को देखकर/थोड़े से लोगों से मिलकर/थोड़े समय में पूरा समय/मेरा सब पड़ोस में रखा मिला जाएगा.’
हमारे समय में भीड़ को लगातार जनता का समतुल्य बनाया जा रहा है. उसके बरक़्स विनोद जी कहते हैं :
‘भीड़ से जनता घटा दो/तो जनता अकेली एक बचती./मैं जनता से जाकर मिलता तो/गिनती में दो होता/सड़क पर दोनों के दो के जुलूस में मिलते/लोगों के सुख-दुख की बात करते/भीड़ के हल्ले में/कभी ज़ोर से नारों में बात करते.’ वे यहीं नहीं रुकते.
अन्यत्र वे कहते हैं : ‘मैं अकेला नहीं/मुझमें लोगों की भीड़ इकट्ठी है/मुझे ढूंढ़ो मत/मैं सब लोग हो चुका हूं/मैं सबके मिल जाने के बाद/आख़िरी में मिलूंगा या नहीं मिलूंगा/मेरे बदले किसी और से मिल लेना.’
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के संकट का उन्हें मान है. वे कहते हैं : ‘एक आदिवासी/कहीं भी आदिवासी नहीं/चलते-चलते/राह के एक पेड़ के नीचे खड़ा हुआ नहीं/दूर चलते-चलते/दूसरे पेड़ के नीचे, थककर भी बैठा नहीं,/जंगल से बाहर हुआ आदिवासी/एक पेड़ के लिए भी आदिवासी नहीं.’
अपने बुढ़ापे की छवि वे इस तरह उकेरते हैं : ‘चलने-फिरने में इतने धीमे हो गए/कि छोटा घर बड़ा लगता/हम आस-पास होते/एक-दूसरे को वहीं ढूंढ़ते और वहीं मिल जाते’.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.
हरकारा ला हर अंक शानदार। - अरुण आदित्य