31/08/2025: नोबेल पर मोदी की ना पर टैरिफ की सज़ा | अमेरिकी अदालत में टैरिफ अवैध करार | रुपया 88 पर लुढ़का, मोदी का उड़ता मज़ाक | हाई बीपी की नई दवा | पाकिस्तानी संगीत | मेटा के फ्रॉड बोट
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
मोदी-ट्रंप रिश्ते: नोबेल पर 'ना' के बाद बढ़ी दूरी, भारत पर 50% टैरिफ़.
अमेरिकी अदालत: अदालत का बड़ा फ़ैसला: ट्रंप के ज़्यादातर टैरिफ़ अवैध.
भारतीय रुपया: डॉलर 88 के पार, रुपया 'वेंटिलेटर' पर?
भारत की विदेश नीति: ट्रंप की फटकार, शी का बुलावा: भारत की विदेश नीति चौराहे पर.
यूक्रेन संकट: ज़ेलेंस्की का दावा: पुतिन से युद्धविराम की बात करेंगे मोदी.
स्वास्थ्य: हाई बीपी के लिए 'गेमचेंजर' दवा को मिली हरी झंडी.
भ्रष्टाचार: AAI अधिकारी गिरफ़्तार, 232 करोड़ की हेराफेरी का आरोप.
2013 मे मोदी ने कहा था रुपया आईसीयू में है.. अब 88 रुपये प्रति डॉलर पर वेंटीलेटर पर?
दंडात्मक अमेरिकी टैरिफ़ की चिंताओं के बीच भारतीय रुपया शुक्रवार को ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर गिर गया और पहली बार 88 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया. जहाँ बाज़ारों में घबराहट का माहौल था, वहीं इंटरनेट पर लोगों ने पुराने ट्वीट्स और वायरल वीडियो निकालकर उन राजनेताओं, मशहूर हस्तियों और गुरुओं का मज़ाक उड़ाया, जो कभी गिरते रुपये की आलोचना करते थे और अब चुप हैं.
रुपया 0.65% की गिरावट के साथ 88.1950 प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ, जो लगभग तीन महीनों में इसकी सबसे बड़ी गिरावट है. सोशल मीडिया पर लोगों ने हास्य और पुरानी यादों का सहारा लिया. एक पोस्ट में, मौजूदा वित्त मंत्री और तत्कालीन विपक्षी नेता निर्मला सीतारमण की 2013 की उस आलोचना को याद किया गया, जब रुपया 62 रुपये प्रति डॉलर पर पहुँच गया था. यूज़र ने लिखा: "अब $1 = ₹88.22. लेकिन कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई विरोध नहीं."
अन्य लोगों ने यूपीए के ख़िलाफ़ नरेंद्र मोदी के एक दशक पुराने तानों को फिर से सामने लाया. 2013 का एक ट्वीट जिसमें मोदी ने रुपये को "आईसीयू में" बताया था, फिर से वायरल हो गया. एक यूज़र ने लिखा: "इस ट्वीट को 12 साल हो गए हैं. मोदी सरकार के 11 साल के अच्छे दिनों के बाद रुपया अब वेंटिलेटर पर है."
अभिनेत्री जूही चावला, अनुपम खेर और अमिताभ बच्चन जैसे सितारे, जो कभी यूपीए के तहत रुपये की गिरावट पर मुखर थे, उनकी मौजूदा चुप्पी पर भी सवाल उठाए गए. योग गुरु रामदेव, जिन्होंने 2013 में कांग्रेस के ख़िलाफ़ "चार्जशीट" जारी की थी, उन्हें भी उनके शब्द याद दिलाए गए. श्री श्री रविशंकर, जिन्होंने कभी दावा किया था कि मोदी के सत्ता में आने पर रुपया 40 प्रति डॉलर तक मज़बूत हो जाएगा, उनका भी मज़ाक उड़ाया गया.
नोबेल पुरस्कार और एक फ़ोन कॉल: कैसे बिगड़े ट्रम्प और मोदी के रिश्ते
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कभी गहरे रहे रिश्ते अब काफ़ी बिगड़ चुके हैं. इसकी मुख्य वजह ट्रम्प के वे दावे हैं जिनमें वे बार-बार कहते रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच 75 साल पुराने सैन्य संघर्ष को "सुलझा" दिया है. यह विवाद जून में एक फ़ोन कॉल के दौरान और गहरा गया, जब ट्रम्प ने मोदी से भी यह उम्मीद जताई कि वे उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करें, ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान करने वाला था. मोदी ने इस बात को सख़्ती से ख़ारिज कर दिया और कहा कि युद्धविराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी. इस असहमति के बाद ट्रम्प ने भारत से आने वाले सामानों पर भारी टैरिफ़ लगा दिए, जो अब कुल मिलाकर 50% तक पहुँच गए हैं, और उन्होंने इस साल भारत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में आने की अपनी योजना भी रद्द कर दी है.
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भारत और अमेरिका के बीच महत्वपूर्ण व्यापार वार्ता चल रही है. इन रिश्तों में आई खटास भारत को अमेरिका के प्रतिद्वंद्वियों, चीन और रूस के क़रीब धकेल सकती है. यह घटना दो बड़े, राष्ट्रवादी नेताओं के बीच व्यक्तिगत अहंकार के टकराव को भी दर्शाती है, जिसका असर दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों पर पड़ रहा है. अमेरिका एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार खो रहा है, वहीं भारत अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने की कोशिश करते हुए अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार से दूर हो रहा है.
17 जून को एक फ़ोन कॉल के दौरान, ट्रम्प ने भारत-पाकिस्तान सैन्य तनाव को समाप्त करने पर गर्व जताया और मोदी से नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन का संकेत दिया. मोदी ने इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया. इसके कुछ ही हफ़्तों बाद, ट्रम्प ने भारतीय आयातों पर 25% का टैरिफ़ लगा दिया और फिर रूसी तेल ख़रीदने पर अतिरिक्त 25% टैरिफ़ और लगा दिया, जिससे कुल टैरिफ़ 50% हो गया. ट्रम्प ने अब अपनी भारत यात्रा भी रद्द कर दी है. भारत में कुछ जगहों पर ट्रम्प को राष्ट्रीय अपमान के स्रोत के रूप में देखा जा रहा है और उनके पुतले भी जलाए जा रहे हैं. दोनों नेताओं के बीच उस फ़ोन कॉल के बाद से कोई बात नहीं हुई है.
यह कहानी दो शक्तिशाली, लोकप्रिय और सत्तावादी नेताओं के अहंकार के टकराव की है. ट्रम्प की नज़र नोबेल पुरस्कार पर थी, लेकिन मोदी के लिए पाकिस्तान के मामले में अमेरिकी मध्यस्थता स्वीकार करना राजनीतिक रूप से असंभव था. मोदी की "मज़बूत नेता" की छवि पाकिस्तान पर सख़्त रुख पर निर्भर करती है. यह स्वीकार करना कि ट्रम्प ने युद्धविराम कराया, घरेलू राजनीति में एक आत्मसमर्पण के तौर पर देखा जाता. ट्रम्प, जो अपने दूसरे कार्यकाल में नेताओं से अपनी प्रशंसा और उपहार की उम्मीद करते हैं, मोदी की इस दृढ़ता को समझ नहीं पाए. भारतीय अधिकारियों ने ट्रम्प के रवैये को "गुंडागर्दी" तक कहा है.
पुतिन से मुलाक़ात से पहले ज़ेलेंस्की का दावा, मोदी युद्धविराम का संकेत देने को तैयार
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अपनी आगामी बैठक में "तत्काल युद्धविराम" का संकेत देने के लिए तैयार हैं. ज़ेलेंस्की का यह बयान मोदी की पुतिन से मुलाक़ात से ठीक दो दिन पहले आया है. प्रधानमंत्री मोदी सात साल में अपनी पहली चीन यात्रा पर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए टियांजिन पहुँच चुके हैं. यहाँ वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पुतिन के साथ महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठकें करेंगे.
ज़ेलेंस्की ने एक पोस्ट में कहा कि उन्होंने मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और यूरोपीय नेताओं के साथ अपनी बातचीत के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि यूक्रेन बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन रूस की ओर से कोई "सकारात्मक संकेत" नहीं मिल रहा है. इसके बजाय, रूस "नागरिक ठिकानों पर क्रूर हमले" कर रहा है, जिनमें दर्जनों लोग मारे गए हैं. ज़ेलेंस्की ने लिखा, "जब हमारे शहरों पर लगातार हमले हो रहे हों, तो शांति पर सार्थक बात करना असंभव है."
उन्होंने यह भी कहा, "हमने शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन से पहले अपनी स्थितियों पर समन्वय किया. भारत शिखर सम्मेलन के मौके पर होने वाली बैठकों के दौरान रूस और अन्य नेताओं को आवश्यक प्रयास करने और उचित संकेत देने के लिए तैयार है." यह मामला तब और जटिल हो गया है जब ट्रम्प ने 15 अगस्त को पुतिन के साथ अलास्का शिखर सम्मेलन के बाद तत्काल युद्धविराम की अपनी मांग छोड़ दी थी.
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पोस्ट में पुष्टि की कि दोनों नेताओं ने संघर्ष और "इसके मानवीय पहलू" पर विचारों का आदान-प्रदान किया और "शांति और स्थिरता बहाल करने के प्रयासों" की समीक्षा की. उन्होंने कहा कि "भारत इस दिशा में सभी प्रयासों को पूरा समर्थन देता है." हालांकि, उनके बयान में चर्चा के बारे में और कोई विवरण नहीं दिया गया. इस बीच, अमेरिका ने रूसी तेल के आयात पर भारत पर दबाव बढ़ा दिया है और दंडात्मक टैरिफ़ लगाया है, जिससे भारतीय सामानों पर कुल शुल्क 50 प्रतिशत हो गया है.
विदेश नीति
भारत की पाकिस्तान नीति 'कूटनीति' नहीं, बल्कि एक बचकानी 'कट्टी नीति' है: आकार पटेल
लेखक, स्तंभकार और एमनेस्टी इंडिया के प्रमुख आकार पटेल ने एक साक्षात्कार में भारत की मौजूदा विदेश नीति, विशेषकर पाकिस्तान के प्रति अपनाए गए रवैये की तीखी आलोचना की है. हरकारा के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत की नीति 'कूटनीति' से ज़्यादा एक बचकानी 'कट्टी नीति' बन गई है, जिसमें हम समस्याओं को सुलझाने के बजाय बातचीत बंद कर देते हैं. इसका सीधा नुकसान भारत की अर्थव्यवस्था और उसके विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षाओं को हो रहा है.
पटेल ने तर्क दिया कि दुनिया का कोई भी देश अपने पड़ोसियों को अलग-थलग करके विकसित नहीं हो पाया है. भारत अपनी बगल में मौजूद पाकिस्तान और बांग्लादेश के 45 करोड़ लोगों के विशाल बाज़ार को नज़रअंदाज़ कर रहा है. यह एक आर्थिक मूर्खता है. विश्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आज भारत से ब्राजील को सामान निर्यात करना पाकिस्तान निर्यात करने से सस्ता पड़ता है, जो हमारी नीतियों की विफलता को दिखाता है.
साक्षात्कार में पटेल ने इस धारणा को भी चुनौती दी कि पाकिस्तान के साथ बातचीत न करने की वजह आतंकवाद है. उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए बताया कि कश्मीर में हिंसा 2001 के अपने चरम से 95% तक कम हो चुकी है. अगर सारा आतंकवाद पाकिस्तान प्रायोजित है, तो यह भी मानना होगा कि इसे कम करने में भी पाकिस्तान का ही हाथ है. उनके अनुसार, आतंकवाद का मुद्दा सरकार द्वारा अपनी 'बात न करने' की नीति को सही ठहराने और घरेलू सांप्रदायिक राजनीति को साधने का एक बहाना मात्र है.
पटेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'व्यक्तिगत कूटनीति' को भी विफल बताया. उन्होंने कहा कि नेताओं से गले मिलने या उनके लिए रैलियां करने से विदेश नीति नहीं चलती. अमेरिका द्वारा रूसी तेल खरीदने पर भारत पर लगाया गया 25% टैरिफ इसका जीता-जागता सबूत है. ट्रंप जैसे 'बुली' नेता जानते हैं कि भारत प्रभावी ढंग से जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा, इसलिए वे उसे निशाना बनाते हैं, जबकि चीन के साथ वे बातचीत का रास्ता अपनाते हैं.
बातचीत का निष्कर्ष यह था कि भारत को अगर आगे बढ़ना है तो उसे अपनी विदेश नीति को व्यक्तिगत करिश्मे से हटाकर संस्थागत और व्यावहारिक बनाना होगा. उसे अपनी अर्थव्यवस्था और गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, भले ही इसके लिए कुछ कड़वे घूँट पीने पड़ें. पटेल के अनुसार, सबसे बड़ी समस्या यह है कि मौजूदा सरकार अपनी गलतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, जिसके बिना सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है.
"ट्रम्प की फटकार, शी का हाथ मिलाना, पुतिन का तेल: भारत की विदेश नीति की परीक्षा"
भारत दशकों से एक ऐसी विदेश नीति पर चलता आया है जिसमें वह किसी एक महाशक्ति के खेमे में शामिल होने के बजाय सभी प्रमुख शक्तियों—अमेरिका, रूस और चीन—के साथ अपने हितों के अनुसार संतुलन बनाकर संबंध बनाए रखता है. लेकिन अब, बदलती वैश्विक परिस्थितियों में यह संतुलन साधना बेहद मुश्किल हो गया है और भारत की विदेश नीति एक चौराहे पर खड़ी है. बीबीसी में प्रकाशित सौतिक बिस्वास के लेख के अनुसार, भारत एक ही समय में दो परस्पर विरोधी समूहों का हिस्सा है. एक तरफ वह अमेरिका के नेतृत्व वाले 'क्वाड' (Quad) का एक महत्वपूर्ण सदस्य है, जिसमें जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं और जिसका मुख्य उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना है. वहीं दूसरी तरफ, वह चीन और रूस के नेतृत्व वाले 'शंघाई सहयोग संगठन' (SCO) का भी सदस्य है, जो अक्सर अमेरिकी हितों के खिलाफ काम करता है. यह दोहरापन भारत की विदेश नीति की जटिलता को दर्शाता है.
इस संतुलन को बनाए रखना अब कई कारणों से चुनौतीपूर्ण हो गया है:
अमेरिका के साथ बिगड़ते संबंध: डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका अब भारत का समर्थक नहीं, बल्कि आलोचक बन गया है. ट्रम्प प्रशासन ने न केवल भारतीय सामानों पर भारी टैरिफ लगाए हैं, बल्कि यूक्रेन युद्ध के बीच रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत की सार्वजनिक रूप से आलोचना भी की है. ट्रम्प की यह फटकार भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है, क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूसी तेल को महत्वपूर्ण मानता है.
चीन के साथ तनावपूर्ण सहजता: 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद से भारत और चीन के संबंध बेहद तनावपूर्ण रहे हैं. इसके बावजूद, भारत चीन के साथ एक व्यावहारिक तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहा है, जिसका संकेत प्रधानमंत्री मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ प्रस्तावित मुलाकात से मिलता है. यह कदम एक तरफ कूटनीतिक जीत की तरह लग सकता है, लेकिन दूसरी तरफ यह भारत की उस मजबूरी को भी दर्शाता है जहाँ उसे अपने सबसे बड़े पड़ोसी और प्रतिद्वंद्वी के साथ संवाद बनाए रखना पड़ रहा है, खासकर तब जब अमेरिका के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हैं.
रूस के साथ स्थायी साझेदारी: पश्चिमी देशों के भारी दबाव और प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को कमजोर नहीं होने दिया है. भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और सैन्य उपकरणों के लिए रूस पर काफी हद तक निर्भर है. रूस से तेल खरीदना न केवल भारत की आर्थिक मजबूरी है, बल्कि यह दुनिया को यह संदेश देने का एक तरीका भी है कि भारत अपनी विदेश नीति के निर्णय स्वतंत्र रूप से लेता है.
विश्लेषकों का मानना है कि भारत की यह "हेजिंग" (hedging) यानी संतुलन साधने की रणनीति कोई आदर्श विकल्प नहीं है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यही सबसे बेहतर विकल्प है. भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं उसकी आर्थिक और सैन्य क्षमताओं से कहीं आगे हैं. ऐसे में किसी एक शक्ति के साथ पूरी तरह से जुड़ जाना उसके लिए आत्मघाती हो सकता है.
भारत को फिलहाल "रणनीतिक धैर्य" का परिचय देना होगा. उसे अमेरिका से मिल रही आलोचना को सहन करना होगा और यह उम्मीद करनी होगी कि यह दौर जल्द ही गुजर जाएगा. साथ ही, उसे चीन और रूस के साथ अपने जटिल संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करते रहना होगा, क्योंकि दोनों देशों के साथ भारत के दीर्घकालिक हित जुड़े हुए हैं. यह भारत की विदेश नीति के लिए एक कठिन परीक्षा का समय है, जहाँ उसे अपनी स्वायत्तता बनाए रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी है.
ट्रम्प के ज़्यादातर टैरिफ़ अदालत में अवैध करार
वॉशिंगटन डीसी की एक संघीय अपील अदालत ने शुक्रवार को एक बड़ा फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी अधिकांश टैरिफ़ नीतियों के साथ अपने राष्ट्रपति पद की शक्तियों का उल्लंघन किया है. अदालत ने 7-4 के बहुमत से दिए गए फ़ैसले में कहा कि अमेरिकी क़ानून "राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल के जवाब में कई कार्रवाइयां करने का महत्वपूर्ण अधिकार देता है, लेकिन इनमें से किसी में भी स्पष्ट रूप से टैरिफ़, शुल्क या कर लगाने की शक्ति शामिल नहीं है."
अदालत ने आगे कहा कि ट्रम्प के कई भारी टैरिफ़ "दायरे, राशि और अवधि में असीमित" हैं और यह उस क़ानून की "स्पष्ट सीमाओं से परे" हैं जिसका उनकी सरकार ने सहारा लिया है. यह फ़ैसला ट्रम्प की टैरिफ़ नीतियों के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका है और इसका मतलब यह है कि अब सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना पड़ सकता है कि क्या राष्ट्रपति के पास अमेरिकी व्यापार नीति को इस तरह बदलने का क़ानूनी अधिकार है.
इस फ़ैसले के तुरंत बाद ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर लिखा, "सभी टैरिफ़ अभी भी प्रभावी हैं." उन्होंने एक लंबी पोस्ट में अपील अदालत पर राजनीतिक पूर्वाग्रह का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "अगर इस फ़ैसले को बने रहने दिया गया, तो यह सचमुच संयुक्त राज्य अमेरिका को नष्ट कर देगा."
यह फ़ैसला ट्रम्प के उन टैरिफ़ को रद्द करता है जो उन्होंने अमेरिका के लगभग सभी व्यापारिक भागीदारों पर लगाए थे. ट्रम्प ने अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (IEEPA) के तहत टैरिफ़ लगाने का दावा किया था, लेकिन छोटे व्यवसायों के एक समूह ने इसे चुनौती दी थी, और अब अदालत ने उनके ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया है. व्हाइट हाउस ने कहा है कि ट्रम्प ने "कांग्रेस द्वारा दी गई टैरिफ़ शक्तियों का क़ानूनी रूप से इस्तेमाल किया" और वे इस मामले में अंतिम जीत की उम्मीद करते हैं.
हाई ब्लड प्रेशर के लिए नई दवा 'गेमचेंजर' साबित हो सकती है
मौजूदा दवाओं से नियंत्रित न होने वाले हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ों के लिए एक नई गोली को डॉक्टर "गेमचेंजर" और "विज्ञान की जीत" बता रहे हैं. दुनिया भर में 1.3 अरब से ज़्यादा लोग उच्च रक्तचाप (Hypertension) से पीड़ित हैं, और उनमें से आधे लोगों का ब्लड प्रेशर मौजूदा इलाजों से नियंत्रित नहीं हो पाता है. ऐसे मरीज़ों को दिल का दौरा, स्ट्रोक, किडनी की बीमारी और जल्दी मौत का ख़तरा बहुत ज़्यादा होता है.
अब, 'बैक्सड्रोस्टैट' (baxdrostat) नामक एक नई दवा ने ट्रायल्स में उन मरीज़ों के ब्लड प्रेशर को काफ़ी कम करने में सफलता दिखाई है जिनका रक्तचाप कई दवाएँ लेने के बावजूद ख़तरनाक रूप से बढ़ा रहता है. BaxHTN अध्ययन के नतीजे, जिसमें दुनिया भर के 214 क्लिनिकों के 796 मरीज़ शामिल थे, मैड्रिड में यूरोपीय सोसायटी ऑफ़ कार्डियोलॉजी कांग्रेस में प्रस्तुत किए गए.
नतीजों से पता चला कि 12 हफ़्तों के बाद, बैक्सड्रोस्टैट लेने वाले मरीज़ों का ब्लड प्रेशर प्लेसबो (दवा के भ्रम में दी जाने वाली निष्क्रिय गोली) लेने वालों की तुलना में लगभग 9-10 mmHg ज़्यादा कम हुआ. यह कमी हृदय संबंधी जोखिम को कम करने के लिए काफ़ी है. इस दवा को लेने वाले लगभग 40% मरीज़ स्वस्थ रक्तचाप के स्तर पर पहुँच गए, जबकि प्लेसबो समूह में यह आँकड़ा केवल 18.7% था.
यह दवा एल्डोस्टेरोन नामक एक हॉर्मोन के उत्पादन को रोककर काम करती है, जो किडनी में नमक और पानी के संतुलन को नियंत्रित करता है. कुछ लोगों में यह हॉर्मोन बहुत ज़्यादा बनता है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. प्रमुख अन्वेषक प्रोफेसर ब्रायन विलियम्स ने कहा, "मैंने किसी दवा से ब्लड प्रेशर में इतनी बड़ी कमी कभी नहीं देखी. यह उन करोड़ों लोगों की मदद कर सकती है जिनका ब्लड प्रेशर नियंत्रित करना मुश्किल है."
232 करोड़ रुपये की हेराफेरी के आरोप में एएआई का वरिष्ठ प्रबंधक गिरफ़्तार
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के एक वरिष्ठ प्रबंधक को 232 करोड़ रुपये की कथित हेराफेरी के आरोप में गिरफ़्तार किया है. एजेंसी ने AAI से मिली शिकायत के आधार पर राहुल विजय नामक अधिकारी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया. आरोप है कि देहरादून हवाई अड्डे पर तैनाती के दौरान, उन्होंने आधिकारिक और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में हेरफेर करके AAI के फंड में धोखाधड़ी और गबन की एक व्यवस्थित योजना बनाई.
CBI ने कहा, "जांच के दौरान यह सामने आया है कि 2019-20 से 2022-23 की अवधि में, आरोपी ने देहरादून हवाई अड्डे पर तैनात रहते हुए, डुप्लिकेट और फ़र्ज़ी संपत्तियाँ बनाकर और कुछ संपत्तियों के मूल्यों को बढ़ाकर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में हेरफेर किया. इसमें नियमित जांच से बचने के लिए एंट्रीज़ में शून्य जोड़ना भी शामिल था."
आरोपी ने इन पैसों को अपने व्यक्तिगत खाते में भेजा. एजेंसी ने आगे कहा, "बैंक लेन-देन के प्रारंभिक विश्लेषण से यह भी संकेत मिलता है कि जमा किए गए फंड को बाद में आरोपी द्वारा ट्रेडिंग खातों में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे सार्वजनिक धन का गबन किया गया." 28 अगस्त को CBI ने जयपुर में आरोपी के आधिकारिक और आवासीय परिसरों पर तलाशी ली और फिर उसे गिरफ़्तार कर लिया.
धनखड़ का पूर्व विधायक पेंशन के लिए आवेदन
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राजस्थान विधान सभा सचिवालय में पूर्व विधायक के तौर पर पेंशन के लिए पुनः आवेदन किया है. राजस्थान के किशनगढ़ से 1993 से 1998 तक कांग्रेस विधायक रहे धनखड़ को 2019 तक विधायक पेंशन मिल रही थी. लेकिन, पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद पेंशन मिलना बंद हो गई थी. फिर वे उपराष्ट्रपति बने. पिछले माह 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था.
“द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, राजस्थान विधानसभा सचिवालय ने उनके आवेदन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. धनखड़, जो पूर्व सांसद भी हैं, अपनी पेंशन उस तारीख से प्राप्त करेंगे जिस दिन उनका उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा स्वीकार हुआ. एक बार विधायक रहे व्यक्ति को 35,000 रुपये प्रति माह पेंशन मिलती है, जो कार्यावधि और उम्र के हिसाब से बढ़ती है.
धनखड़ जैसे सत्तर वर्ष से अधिक आयु के लोगों को 20% की वृद्धि मिलती है, और धनखड़ को पूर्व विधायक के तौर पर 42,000 रुपये प्रति माह पेंशन मिलने की पात्रता है. इसके अलावा, उन्हें उपराष्ट्रपति और पूर्व सांसद के तौर पर मिलने वाली पेंशन भी प्राप्त होगी.
धनखड़ ने इस्तीफे के बाद से सार्वजनिक जीवन से दूरी बनाई हुई है, उनके परिवार ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है. हालांकि, उनके पूरी तरह सार्वजनिक जीवन से हटने के कारण अटकलें लग रही हैं, और विपक्ष ने अचानक इस्तीफा व उनकी अनुपस्थिति पर सवाल उठाए हैं.
बिहार
दावे और आपत्तियों की अंतिम तिथि 15 सितंबर करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा
सुप्रीम कोर्ट सोमवार 1 सितंबर को आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) द्वारा दायर एक अंतरिम याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें बिहार में होने वाले चुनावों के लिए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान 65 लाख से अधिक मतदाताओं को बाहर किए जाने को लेकर दावे और आपत्तियां दाखिल करने की अंतिम तिथि 1 सितंबर से बढ़ाकर 15 सितंबर करने की मांग की गई है. आरजेडी की अर्जी के अनुसार, दावों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. यदि समयसीमा नहीं बढ़ाई गई तो वे असली मतदाता, जिन्हें चुनाव आयोग ने गलती से ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटा दिया है, आने वाले चुनाव में मतदान से वंचित रह जाएंगे.
पंजीकरण के अभाव में हिंदू विवाह अमान्य नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र के अभाव में कोई हिंदू विवाह अमान्य नहीं होता. हाईकोर्ट ने कहा कि जब विवाह पंजीकृत नहीं हुआ है, लेकिन दोनों पक्ष इसके अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत आपसी सहमति से तलाक की कार्यवाही में ट्रायल कोर्ट विवाह प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने पर ज़ोर नहीं दे सकता. यह आदेश पारित करते हुए जस्टिस मनीष कुमार निगम ने आज़मगढ़ पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें विवाह प्रमाणपत्र दाख़िल करने की शर्त से छूट देने की याचिका को खारिज कर दिया गया था.
इस बार मानने वाले नहीं हैं जरांगे, शिवसेना ने भाजपा की चिंताओं को बढ़ाया
मराठा आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल एक बार फिर से महाराष्ट्र की राजनीति में केंद्र बिंदु बनने की कोशिश कर रहे हैं. जरांगे ने शनिवार को मुंबई के ऐतिहासिक आज़ाद मैदान पर अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के दूसरे दिन भी इसे जारी रखा और सरकार को चेतावनी दी कि वह समुदाय के धैर्य की परीक्षा न ले.
“पीटीआई” के अनुसार, जरांगे और उनके हजारों समर्थकों ने रातभर बारिश झेली, मैदान पर कीचड़ से जूझे और बुनियादी सुविधाओं की कमी, खासकर शौचालयों में पानी की कमी को लेकर नाराज़गी जताई.
43 वर्षीय इस कार्यकर्ता ने, जिन्होंने शुक्रवार से अनिश्चितकालीन उपवास शुरू किया था, पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सरकार यह गलतफहमी न फैलाए कि माराठा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे से आरक्षण मांग रहे हैं. उन्होंने कहा, "हम सिर्फ़ इतना मांग रहे हैं कि कुनबी श्रेणी के तहत हमारी पात्रता के आधार पर हमें हमारा उचित हिस्सा मिले."
जरांगे मराठाओं को ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत 10 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि मराठाओं को कुनबी, जो कि एक कृषक जाति है और ओबीसी में शामिल है, के रूप में मान्यता दी जाए ताकि वे सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के पात्र हो सकें. उन्होंने आगाह करते हुए कहा, "हमें राजनीति नहीं करनी है, हमें सिर्फ़ आरक्षण चाहिए. सरकार को मराठा समाज के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए."
उन्होंने आरोप लगाया, "हम ओबीसी का कोटा घटाने की मांग नहीं कर रहे. गलत सूचना मत फैलाइए." साथ ही उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस से अपील की कि गरीब मराठाओं का अपमान न करें. इस बीच जरांगे और सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई बातचीत बेनतीजा रही और कोई प्रगति नजर नहीं आई. जरांगे ने फडणवीस की इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने राज्य सरकार द्वारा गठित समिति के प्रमुख, पूर्व न्यायमूर्ति संदीप शिंदे को उनके साथ वार्ता के लिए भेजा. जरांगे ने कहा, "सरकारी निर्णय जारी करना न्यायमूर्ति शिंदे का काम नहीं है."
इधर, शुभांगी खापरे के अनुसार, जरांगे भाजपा सरकार पर मराठा समाज को “धोखा देने” का आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि वे अब पीछे नहीं हटेंगे, चाहे उन्हें “गोलियों का सामना ही क्यों न करना पड़े.”
भाजपा की चिंताओं को उसके सहयोगी शिवसेना के रुख ने और गहरा दिया है. इस बार शिवसेना ने इस लड़ाई से दूरी बना ली है. पिछले साल, जब लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में भाजपा को झटके लगे थे, तब भाजपा ने उम्मीद लगाई थी कि शिवसेना प्रमुख और उस समय के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, जो खुद मराठा हैं, जरांगे पाटिल का मुकाबला करेंगे और मराठा समाज का खोया हुआ समर्थन वापस दिलाएंगे. लेकिन इस बार हालात अलग हैं. इस हफ्ते जरांगे पाटिल ने देवेंद्र फडणवीस और उनकी माता को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, हालांकि बाद में उन्होंने उसे वापस ले लिया. इसके बावजूद न तो शिंदे और न ही शिवसेना ने मुख्यमंत्री के बचाव में कुछ कहा. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शिवसेना के विधायकों, सांसदों और अन्य नेताओं को निर्देश दिए गए हैं कि वे जरांगे पाटिल के खिलाफ कुछ न बोलें, ताकि आंदोलनकारी नाराज़ न हों.
असम से 33 अवैध प्रवासियों को वापस भेजा
असम ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ चलाए जा रहे अपने अभियान के तहत 33 अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजा है.
“एक्स” पर पोस्ट करते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पुष्टि की कि 33 नए घुसपैठियों को उनके मूल देश वापस भेजा गया है. हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस तारीख को वापस भेजा गया. उन्होंने आगे चेतावनी दी कि राज्य सरकार की घुसपैठ रोकने की कोशिशें आने वाले दिनों में और तेज की जाएंगी. मुख्यमंत्री ने मीडिया को बताया कि यह ‘पुशबैक’ दो मोर्चों पर किया जा रहा है एक, उन लोगों के खिलाफ जो 1971 के बाद आकर राज्य में अवैध रूप से रह रहे हैं, और दूसरा, नए घुसपैठियों के खिलाफ.
विश्लेषण
विजय केलकर, अजय शाह: अब भारत क्या करे?
वैश्वीकरण का वह सुनहरा दौर अब समाप्त हो गया है जिसने 1991 से 2011 तक भारत के आर्थिक विकास को अभूतपूर्व गति दी थी. लेखकों, विजय केलकर और अजय शाह का तर्क है कि भारत की उस सफलता का एक बड़ा कारण पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका की "उदार उपेक्षा" (benign neglect) थी, जो भारत को एक उभरते हुए लोकतांत्रिक देश के रूप में समर्थन देते थे, भले ही भारत ने अपनी संरक्षणवादी नीतियां जारी रखीं. अब यह दौर खत्म हो चुका है, क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका "अमेरिका फर्स्ट" की नीति अपना रहा है और चीन अपनी अनुचित व्यापारिक प्रथाओं से वैश्विक व्यवस्था को बिगाड़ रहा है. उन्होंने लीप ब्ल़ॉग में लम्बा विश्लेषण लिखा है.
इस नई और चुनौतीपूर्ण दुनिया में, लेख भारत के लिए दो-आयामी रणनीति का प्रस्ताव करता है:
पहली रणनीति: बाहरी धुरी
भारत को अब अमेरिका और चीन पर अपनी निर्भरता कम करके "OECD ex-US" (यानी अमेरिका को छोड़कर अन्य विकसित लोकतांत्रिक देश) के साथ अपने संबंधों को रणनीतिक रूप से मजबूत करना चाहिए. इस समूह में यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हैं. भारत को इन देशों के साथ केवल सामान्य मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर ही नहीं, बल्कि "गहरे व्यापार समझौतों" (Deep Trade Agreements - DTAs) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इन समझौतों में केवल टैरिफ कम करना ही नहीं, बल्कि नियमों का सामंजस्य, मानकों का एकीकरण और निवेश के लिए एक सुरक्षित कानूनी ढांचा तैयार करना भी शामिल होगा. ऐसा करने के लिए, भारत को अपनी पुरानी संरक्षणवादी मानसिकता को त्यागना होगा और दुनिया को यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि वह एक गंभीर वैश्विक खिलाड़ी है जो बराबरी के अवसर देने को तैयार है.
दूसरी रणनीति: आंतरिक सुधार
बाहरी दुनिया के साथ सफलतापूर्वक जुड़ने के लिए भारत को अपने घर को व्यवस्थित करना होगा. लेख इसके लिए आठ प्रमुख घरेलू सुधारों पर जोर देता है:
GST प्रणाली में सुधार: निर्यातकों को चुकाए गए सभी अप्रत्यक्ष करों का पूरा रिफंड सुनिश्चित करना.
नियामक सुधार: सभी नियामक संस्थाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना.
न्यायिक प्रणाली में सुधार: अदालती देरी को कम करना ताकि व्यापारिक विवाद तेजी से सुलझ सकें.
शहरी सुधार: शहरों को उत्पादन और नवाचार का केंद्र बनाना.
कृषि सुधार: कृषि क्षेत्र को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त करना.
व्यापक आर्थिक स्थिरता: राजकोषीय अनुशासन और लचीली विनिमय दर बनाए रखना.
वित्तीय क्षेत्र में सुधार: भारतीय कंपनियों के लिए पूंजी की लागत कम करना.
सरकारी संवाद में सुधार: नीति निर्माण में पारदर्शिता और सच्चाई पर जोर देना.
इन सुधारों और नई साझेदारियों के माध्यम से अपनी ताकत बढ़ाने के बाद ही भारत अमेरिका और चीन जैसी बड़ी शक्तियों के साथ प्रभावी ढंग से बातचीत कर पाएगा. यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ है, जिसके लिए साहसिक नेतृत्व और एक स्पष्ट राष्ट्रीय सहमति की आवश्यकता है.
“मेटा” ने टेलर स्विफ्ट, स्कारलेट, ऐनी हैथवे, गोमेज़ समेत कई सेलिब्रिटीज़ फ्लर्टी चैटबॉट बनाए
“मेटा” ने बिना अनुमति के टेलर स्विफ्ट, स्कारलेट जोहानसन, ऐनी हैथवे, सेलेना गोमेज़ समेत कई सेलिब्रिटीज़ के नाम और छवियों का उपयोग कर सोशल मीडिया पर फ्लर्टी चैटबॉट बनाए हैं. “रॉयटर्स” की रिपोर्ट में पता चला है कि इन चैटबॉट्स का निर्माण मेटा के यूजर्स ने मेटा के टूल से किया और कम से कम तीन चैटबॉट्स एक मेटा कर्मचारी ने बनाए, जिनमें दो टेलर स्विफ्ट के "पेरोडी" वाले थे.
इन्हीं चैटबॉट्स ने टेस्ट के दौरान कई बार खुद को असली सेलिब्रिटी बताने के साथ यूजर्स को फ्लर्ट करते हुए मिलने के लिए भी बुलाया. कुछ चैटबॉट्स ने अश्लील और यौन संकेतों वाले फोटोरियलिस्टिक चित्र भी बनाए, जैसे बाथटब में या लिंजेरी पहनकर पैर फैलाए हुए सेलिब्रिटी की तस्वीरें.
इसमें 16 साल के बच्चे वाकर स्कोबेल का भी एक चैटबॉट शामिल था, जिसने एक फोटो बनाई जिसमें वह बिना वस्त्र के था और वह चैटबॉट यूजर को आकर्षक टिप्पणियां भी कर रहा था. ये सभी चैटबॉट्स फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध थे.
मेटा ने बताया कि ये कर्मचारी और यूजर्स के द्वारा बनाए गए चैटबॉट्स कंपनी की नीतियों का उल्लंघन करते थे, जो नग्न या यौन चित्रण को प्रतिबंधित करती है. मेटा ने कथित तौर पर इन्हें हटा दिया है, लेकिन यह मामला प्लेटफॉर्म की मॉनिटरिंग तथा सेलिब्रिटी अधिकारों की सुरक्षा पर विवाद खड़ा करता है.
कलाकार संघों ने इस तरह के डिजिटल अवतारों से कलाकारों की सुरक्षा और उनकी छवि के दुरुपयोग पर चिंता जताई है और AI से जुड़े अधिकारों की स्पष्ट कानूनी सुरक्षा की मांग की है. इस पूरे मामले ने मेटा की AI चैटबॉट टूल के नियंत्रण और कानूनी अनुपालन में खामियों को उजागर किया है.
कैसे ख़त्म हुआ पाकिस्तान में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत ?
मालिनी नायर का स्क्रोल में प्रकाशित लेख इस आम धारणा को चुनौती देता है कि पाकिस्तान में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत (जैसे ख़याल, ठुमरी, ध्रुपद) का पतन केवल इस्लामीकरण या भारत विरोधी भावनाओं के कारण हुआ. लेखक, कबीर अल्ताफ के शोध का हवाला देते हुए तर्क देते हैं कि इस पतन की नींव 1947 में विभाजन के साथ ही रख दी गई थी, जब पाकिस्तान से बड़ी संख्या में धनी हिंदू और सिख अभिजात वर्ग का पलायन हुआ. यही वर्ग शास्त्रीय संगीत का सबसे बड़ा संरक्षक (patron) था—जो न केवल संगीत को समझता था, बल्कि कलाकारों को आर्थिक रूप से समर्थन भी देता था.
नायर के अनुसार, विभाजन से पहले लाहौर जैसे शहर हिंदुस्तानी संगीत के बड़े केंद्र थे, जहाँ 'तकिया मीरासियां' जैसी जगहों पर बड़े-बड़े उस्ताद अपनी कला का प्रदर्शन करते थे. लेकिन जब विभाजन के बाद अमीर हिंदू और सिख व्यापारी, ज़मींदार और पेशेवर भारत चले गए, तो पाकिस्तान में शास्त्रीय संगीत का एक बड़ा दर्शक और समर्थक वर्ग समाप्त हो गया. उनकी जगह जो मुस्लिम शरणार्थी भारत से पाकिस्तान आए, वे आर्थिक रूप से उतने संपन्न नहीं थे और न ही उनमें शास्त्रीय संगीत के संरक्षण की वैसी परंपरा थी. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि ग़ज़ल और कव्वाली जैसी विधाएँ पाकिस्तान में फलती-फूलती रहीं, क्योंकि वे आम लोगों के लिए अधिक सुलभ थीं और उनका कोई स्पष्ट हिंदू धार्मिक जुड़ाव नहीं था. अगर केवल इस्लामीकरण ही एकमात्र कारण होता, तो इन विधाओं पर भी असर पड़ता.
यह सच है कि बाद के वर्षों में इस पतन की गति और तेज हुई. 1971 के युद्ध ने भारत विरोधी भावनाओं को हवा दी, जिससे भारतीय सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े शास्त्रीय संगीत को और हाशिये पर धकेल दिया गया. कलाकारों ने अपने बच्चों को ग़ज़ल या पॉप संगीत जैसे "स्वीकार्य" क्षेत्रों में जाने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया. इसके बाद जनरल ज़िया-उल-हक के शासनकाल में इस्लामीकरण की नीतियों ने ताबूत में आखिरी कील का काम किया, जब कला और संगीत पर सरकारी स्तर पर कठोर प्रतिबंध लगाए गए.
यदि विभाजन के समय संगीत का संरक्षक वर्ग पाकिस्तान से न गया होता, तो शायद यह कला इन राजनीतिक और धार्मिक दबावों का बेहतर तरीके से सामना कर पाती. उस अभिजात वर्ग के जाने से जो सांस्कृतिक और आर्थिक शून्य पैदा हुआ, उसे कभी भरा नहीं जा सका. आज, पाकिस्तान में शास्त्रीय संगीत की विरासत पूरी तरह खत्म तो नहीं हुई है, लेकिन वह मेहदी हसन की ग़ज़लों और नुसरत फतेह अली खान की कव्वालियों जैसे लोकप्रिय रूपों में ही जीवित है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.