रुपया तब आईसीयू में था, अब कहाँ? यूक्रेन ने पकड़ा कोरियाई फौजी, ईसाइयों पर हमले बढ़े, केरल में एथलीट से यौन शोषण, हत्यारों-बलात्कारियों को जमानत, आंदोलनकारियों को नहीं, आतंकी हिंसा पाकिस्तान में बढ़ी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ : 12/01/ 2025
विवादित सरंचना को मस्जिद मत कहो: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि यदि शास्त्रों और पुरातात्विक साक्ष्यों से यह साबित होता है कि सम्भल की शाही जामा मस्जिद से पहले वहां भगवान कल्कि को समर्पित एक हरि हर मंदिर मौजूद था, तो मुस्लिम समुदाय को "सम्मानजनक तरीके से" मस्जिद को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि "किसी भी विवादित संरचना" को मस्जिद नहीं कहना चाहिए. उन्होंने कहा कि जिस दिन हम उसे मस्जिद कहना बंद कर देंगे, लोग वहां जाना भी बंद कर देंगे. उन्होंने कहा कि यदि किसी की आस्था को चोट पहुंचाकर मस्जिद जैसी कोई संरचना बनाई जाती है, तो यह किसी भी तरह से इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है. ऐसी जगहों पर किसी भी तरह की पूजा भगवान को स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने कहा कि इस्लाम में पूजा के लिए किसी भी तरह की संरचना अनिवार्य नहीं है, लेकिन सनातन धर्म में है.
उन्होंने कहा, "अगर हरि हर मंदिर के सबूत हैं, अगर आस्था के शास्त्रीय प्रमाण हैं और यदि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वहां सबूत पाता है, तो मुझे लगता है कि अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता के बिना, इस्लाम के अनुयायियों को सनातन धर्म के अनुयायियों को सम्मानपूर्वक यह कहना चाहिए, 'यह तुम्हारा है, तुम अपनी संपत्ति की देखभाल करो और श्री हरि विष्णु के 10वें अवतार का भव्यता से स्वागत करो.'" उन्होंने मुस्लिम समुदाय से संभल में कथित तौर पर हरि हर मंदिर को गिराने के संबंध में "अपनी गलतियों को स्वीकार करने" और "सनातन धर्म के प्रतीकों के रास्ते में अनावश्यक बाधाएं नहीं डालने" का भी आग्रह किया. उन्होंने कहा कि इससे देश में सांप्रदायिक सद्भाव की एक नई लहर आएगी.
5 साल में 62 लोगों ने किया यौन शोषण, 6 गिरफ्तार : 'द मूकनायक' की एक रिपोर्ट है कि पुलिस ने पथानामथिट्टा ज़िले की 18 वर्षीय दलित लड़की द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद दो एफआईआर दर्ज की हैं और छह लोगों को गिरफ्तार किया है. लड़की ने आरोप लगाया है कि पिछले पांच वर्षों में लगभग 62 लोगों ने उसका यौन शोषण किया. पथानामथिट्टा के पुलिस अधीक्षक वी.जी. विनोद कुमार ने पुष्टि की कि मामले दो पुलिस थानों में दर्ज किए गए हैं. उन्होंने कहा, “एक मामले में हमने पांच व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है और दूसरे मामले में एक व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है. विवरणों की पुष्टि के बाद और भी मामले दर्ज किए जाएंगे। जांच का नेतृत्व एक डिप्टी पुलिस अधीक्षक कर रहे हैं.” यह चौंकाने वाली घटना केरल महिला समाख्या सोसायटी के स्वयंसेवकों द्वारा की गई एक नियमित क्षेत्रीय यात्रा के दौरान सामने आई. जिला स्तर की एथलीट इस लड़की ने स्वयंसेवकों के सामने अपनी दर्दनाक घटनाओं को साझा किया, जिन्होंने बाद में ज़िले की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) को सूचित किया. पथानामथिट्टा सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष एडवोकेट एन. राजीव ने कहा कि मामला 15 दिन पहले समिति के समक्ष आया था. उन्होंने कहा, “मैंने लड़की से उसकी मां के साथ समिति के सामने उपस्थित होने को कहा. परामर्श सत्र के दौरान, उसने एक मनोवैज्ञानिक के सामने खुलकर बताया कि वह 13 साल की उम्र से यौन शोषण का सामना कर रही थी.”
दूर रहने पर भी पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार: 'द टेलीग्राफ' की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि पत्नी पति के साथ रहने के आदेश (यौनिक अधिकारों की बहाली) का पालन नहीं करती है, तो भी उसे पति से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है, बशर्ते उसके पास ऐसा करने के लिए वैध और पर्याप्त कारण हों. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस मुद्दे पर फैसला दिया कि क्या वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश प्राप्त करने वाला पति अपनी पत्नी को भरण-पोषण देने से मुक्त हो सकता है, यदि पत्नी इस आदेश का पालन नहीं करती और वैवाहिक घर वापस नहीं जाती. पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर कोई सख्त और पक्के नियम लागू नहीं किए जा सकते और यह मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(4) के तहत, पत्नी द्वारा वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन न करना, क्या उसे भरण-पोषण से वंचित करने के लिए पर्याप्त है. इस पर उच्च न्यायालयों की राय अलग-अलग और विरोधाभासी रही है. मामला झारखंड के एक जोड़े से जुड़ा है, जिनका विवाह 1 मई 2014 को हुआ और वे अगस्त 2015 में अलग हो गए. पति ने रांची की पारिवारिक अदालत में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की. पत्नी ने लिखा कि पति ने उसे दहेज के रूप में ₹5 लाख की मांग को लेकर मानसिक प्रताड़ना दी. पत्नी ने यह भी कहा कि उसे घर में शौचालय का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी और खाना पकाने के लिए लकड़ी और कोयला इस्तेमाल करना पड़ता था.मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और पारिवारिक अदालत के आदेश को बहाल करते हुए पति को निर्देश दिया कि वह ₹10,000 प्रति माह पत्नी को भरण-पोषण के रूप में दे. पीठ ने यह भी कहा कि पत्नी को बुनियादी सुविधाएं न देना उसके उत्पीड़न का संकेत है. अदालत ने भरण-पोषण को अगस्त 3, 2019 (जब याचिका दायर की गई थी) से प्रभावी मानते हुए, बकाया राशि को तीन समान किश्तों में चुकाने का निर्देश दिया.
मेटा और अन्य कंपनियों द्वारा विविधता कार्यक्रमों में कटौती : मेटा प्लेटफ़ॉर्म्स ने हाल ही में अपने विविधता, समानता और समावेशन (DEI) कार्यक्रमों को समाप्त करने की घोषणा की है, जो डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद के दूसरे कार्यकाल से पहले की गई है. इस निर्णय के तहत, मेटा ने भर्ती, प्रशिक्षण और आपूर्तिकर्ता चयन में DEI से संबंधित गतिविधियों को बंद कर दिया है. कंपनी की मुख्य विविधता अधिकारी, मैक्सिन विलियम्स अब एक्सेसिबिलिटी और एंगेजमेंट पर कार्य करेंगी. यह कदम अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के विश्वविद्यालय प्रवेश में नस्ल को ध्यान में रखने के खिलाफ फैसले के बाद उठाया गया है, जिससे अमेरिका में DEI प्रयासों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है. मेटा ने हाल ही में अपने बाहरी तथ्य-जांच कार्यक्रम को भी समाप्त किया है और मुक्त भाषण को बढ़ावा देने के लिए एक भीड़-स्रोत तथ्य-जांच प्रणाली अपनाई है. मेटा के इस निर्णय के साथ ही, अन्य प्रमुख कंपनियां जैसे मैकडॉनल्ड्स, वॉलमार्ट, फोर्ड, और अमेज़न भी अपने DEI कार्यक्रमों में कटौती कर रही हैं, जो अमेरिका में बदलते कानूनी और राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है.
अगर रुपया 2013 में आईसीयू में था.. तो मोदी जी ने उसे कहाँ पहुंचाया है?
2014 में जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो एक डॉलर 58.58 रुपये का था. तब दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और कामयाब अर्थशास्त्री ने कहा था कि भारत का रुपया आईसीयू में है. यह अर्थशास्त्री हारवर्ड नहीं हार्ड वर्क यूनिवर्सिटी से तप कर निकला था और जो भी बोलता था, ओजस्वी ही हुआ करता था.
गिरते रुपये को देखकर इस अर्थशास्त्री का कलेजा मुंह को आता था. दारुण हो जाती थी आवाज़. राष्ट्र सम्मान हिलोरें मारता था.
शुक्रवार को डॉलर 86.17 रुपये हो गया इसी अर्थशास्त्री की सुपुर्दारी में. तब रुपये के बहाने नरेन्द्र मोदी तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खिल्ली उड़ा रहे थे. आज रुपया उनकी उड़ा रहा है. इकोनॉमी की भैंस पानी में तो पहले से थी, पर अब वह गहरे दलदल और भंवर में जा रही है. भैंस का मानना है यही अच्छे दिन और अमृत काल है. हिंदू राष्ट्र यही है.
2013 में जब डॉलर 60 रुपये के पार गया था, तो अभिनेत्री जूही चावला ने ट्वीट किया था, "शुक्र है, मेरी अंडरवियर का नाम 'डॉलर' है. अगर 'रुपया' होता तो यह गिरता ही रहता."
आज जब डालर 86 पार हो गया है, तो यह उन बयानों को फिर से देखने का वक्त है, जो तब के मोदी जी ने देश से ऐसी ऐंठ, कॉन्फीडेंस और ज्ञानी भाव से कहे थे कि अच्छे खासे लोग उनकी बात को सच मान बैठे थे. ये वी़डिया अभी भी नरेन्द्र मोदी के ऑफिशियल यू ट्यूब चैनल पर विराजमान है.
'इस सरकार में रुपया गिरता ही गया' : 28 फरवरी, 2014 को कर्नाटक में एक रैली में मोदी ने कहा था, “हमारा रुपया लड़खड़ा रहा है. इसका मूल्य लगातार गिर रहा है. अटल जी के सरकार में रुपया 40-45 था. इस सरकार में यह 62, 65, 70... होता गया. आयात बढ़ता गया और निर्यात घटता गया.”
'रुपया अस्पताल में, आईसीयू में भर्ती' : 2013 में मोदी ने कहा था, “हमने कहा था 100 दिन में महंगाई कम करेंगे. क्या हुआ? पेट्रोल का क्या हुआ? गैस, पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ रहे हैं या नहीं? रुपया अस्पताल में है, ICU में भर्ती है. सरकार कहती है रुपया ठीक हो जाएगा, लेकिन क्या हुआ? वे फैसले नहीं ले पा रहे हैं.”
'रुपया गिरता है तो दुनिया फायदा उठाती है' : 20 अगस्त, 2013 को मोदी ने कहा, “अगर नेतृत्व दिशाहीन है, तो संकट गहरा हो जाता है. दिल्ली में बैठे लोग न देश की रक्षा की चिंता कर रहे हैं, न रुपये के गिरने की. वे सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं. इसलिए रुपया डॉलर का मुकाबला नहीं कर पा रहा है. सरकार इसे रोकने में पूरी तरह विफल रही है.”
'सरकार और रुपये में मुकाबला, किसका मूल्य तेजी से गिर रहा है' : 30 जुलाई, 2013 को मोदी ने कहा, “आज रुपया इतनी तेजी से गिर रहा है, जैसे सरकार और रुपये में मुकाबला हो. आजादी के समय 1 डॉलर 1 रुपये के बराबर था. अटल जी के समय 42 रुपये हो गया. इस सरकार ने 60 रुपये कर दिया.”
रुपया कमजोर हो रहा है, क्योंकि दिल्ली में बैठे लोग भ्रष्टाचार में व्यस्त हैं' : 14 जुलाई, 2013 को मोदी ने ट्वीट किया था, "रुपया कमजोर नहीं हो रहा, क्योंकि इसका आकार बदल गया है. यह इसलिए हो रहा है क्योंकि दिल्ली में बैठे लोग भ्रष्टाचार में व्यस्त हैं."
मुख्यधारा के अख़बार और चैनलों को तो चुप ही रहना था, पर लोगों को याद रहा. तृणमूल नेता नीलांजन दास ने मोदी के पुराने भाषणों का एक वीडियो डाला. उन्होंने लिखा, "रुपया डॉलर के मुकाबले 85.5 के निचले स्तर पर आ गया है. मोदी रुपये के गिरने को राजनीतिक विफलता मानते हैं."
सोशल मीडिया पर कई मीम और कार्टून वायरल हो रहे हैं. एक ग्राफ में रुपये की गिरावट और मोदी के योगासन दिखाए गए हैं.
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा, "विदेशी निवेशकों ने 2025 में 2 अरब डॉलर निकाल लिए हैं. यह दिखाता है कि भारत की आर्थिक हालत खराब है." उन्होंने यह भी कहा कि निवेशकों का भरोसा कम हो रहा है. उन्होंने कहा कि रुपया डॉलर के मुकाबले गिर रहा है, जिससे जोखिम बढ़ रहा है.
सीपीएम ने भी एक कार्टून साझा किया, जिसमें मोदी को 1 रूपए के सिक्के के साथ गिरते हुए दिखाया गया है. कई यूजर्स ने लेखक चेतन भगत और उपदेशक श्रीश्री रविशंकर के दशक पुराने ट्वीट्स को तंज़ के रूप में साझा किया. भगत ने 2013 में गिरते रूपए पर एक भद्दा मजाक किया था. उन्होंने ट्वीट किया था : “रुपया 60 पर. यह अराजकता है. आर्थिक संकट के करीब. लेकिन, सरकार चुप है.” जब मोदी सत्ता में आए, तब रविशंकर ने ट्वीट किया था : “यह जानकर ‘ताजगी’ मिलती है कि अगर मोदी सत्ता में आते हैं तो रुपया 40/- प्रति डॉलर पर मजबूत होगा. लेखक रवि नायर ने पोस्ट साझा करते हुए पूछा : “डबल श्री @गुरुदेव, आज भारतीय रूपए की अमेरिकी डॉलर के मुकाबले क्या कीमत है? आप आजकल कितनी ‘ताजगी’ महसूस कर रहे हैं?” कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी लिखा, “ डॉ. मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल में जब एक डॉलर की कीमत 58-59 रूपए थी, तब नरेंद्र मोदी जी रूपए की कीमत को सरकार की आबरू से जोड़ते थे. वह कहते थे, मुझे सब मालूम है. किसी देश की करेंसी ऐसे गिर नहीं सकती....” आज वह खुद प्रधानमंत्री हैं और रूपए की गिरावट के सारे रिकॉर्ड टूट चुके हैं. उन्हें देश की जनता को जवाब देना चाहिए.
यूक्रेन ने रूस में जिंदा पकड़े कोरियाई फौजी
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने शनिवार को घोषणा की कि यूक्रेनी सैनिकों ने रूस के कूर्स्क क्षेत्र में दो उत्तर कोरियाई सैनिकों को पकड़ा है. दोनों उत्तर कोरिया से जुड़े युद्ध में पहली बार जिंदा पकड़े गए सैनिक हैं. जेलेंस्की ने ट्विटर पर लिखा, "हमारे सैनिकों ने कूर्स्क क्षेत्र में उत्तर कोरियाई सैन्यकर्मियों को पकड़ा है. दो सैनिक घायल होने के बावजूद जीवित हैं और उन्हें कीव लाया गया है, जहां वे अब यूक्रेनी सुरक्षा सेवा (SBU) से संवाद कर रहे हैं."

यूक्रेनी और पश्चिमी आंकड़ों के अनुसार, कूर्स्क क्षेत्र में लगभग 11,000 उत्तर कोरियाई सैनिक तैनात हैं, जहां पिछले साल अगस्त में यूक्रेनी बलों ने सीमा पार कर हमला किया था. पिछले सप्ताह, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने बताया था कि दिसंबर के अंतिम सप्ताह में कूर्स्क में 1,000 से अधिक उत्तर कोरियाई सैनिक मारे गए या घायल हुए थे.जेलेंस्की ने कहा, "यह आसान काम नहीं था. रूसी सैनिक और अन्य उत्तर कोरियाई सैनिक आमतौर पर अपने घायलों को मार डालते हैं ताकि उत्तर कोरिया की भागीदारी के सबूत मिटा सकें."

यूक्रेनी सुरक्षा सेवा द्वारा जारी एक वीडियो में दिखाया गया कि एक सैनिक को 9 जनवरी को यूक्रेनी विशेष बलों ने और दूसरे को पैराट्रूपर्स ने पकड़ा. वीडियो में दोनों सैनिक बंक बिस्तरों पर दिखाए गए हैं, एक के चेहरे पर चोट है जबकि दूसरे का पैर टूट चुका है. दोनों सैनिकों से संवाद कोरियाई भाषा के अनुवादकों के माध्यम से किया जा रहा है, जो दक्षिण कोरियाई खुफिया एजेंसी के सहयोग से हो रहा है.
यह घटना यूक्रेन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि यह उत्तर कोरियाई सैनिकों को पहली बार जिंदा पकड़ने की स्थिति है. इसी दौरान, यूक्रेनी सेना ने कूर्स्क क्षेत्र में एक और आक्रमण शुरू कर दिया है, जहां उन्होंने रूस के सैन्य ठिकानों पर सटीक हमले किए हैं. कूर्स्क में संघर्ष अब भी तेज है, और यूक्रेन की रणनीति है कि यह युद्धक्षेत्र रूस के अन्य क्षेत्रों जैसे डोनेट्स्क और दक्षिणी यूक्रेन में सैनिकों की तैनाती को रोक सके.
'एसोसिएट प्रेस' की खबर है कि रूस के तांबोव क्षेत्र में यूक्रेनी ड्रोन हमले में कम से कम 7 लोग घायल हुए हैं. यह हमला रूस के विभिन्न क्षेत्रों में हुए बड़े पैमाने पर ड्रोन हमलों का हिस्सा है. रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेनी ड्रोन ने रात भर में रूस के 7 क्षेत्रों पर हमले किए, जिनमें तांबोव क्षेत्र भी शामिल है. इन हमलों में कई लोग घायल हुए हैं और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा है. रूस के रक्षा मंत्रालय ने बताया कि वायु रक्षा प्रणालियों ने कुछ ड्रोन को मार गिराया, लेकिन कुछ ड्रोन अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में सफल रहे.
ईसाइयों पर 2024 में 834 हमले.. 2023 की तुलना में 100 ज्यादा
भारत में ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है.2024 में ऐसी 834 घटनाएं हुईं. 2023 में 734 घटनाएं हुई थीं. यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम ने कहा कि हर दिन दो से अधिक ईसाई निशाना बनाए जा रहे हैं.यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (UCF) ने नए आंकड़े जारी किए हैं. ये हमले कई तरह के होते हैं. चर्चों पर हमले होते हैं. प्रार्थना सभाओं पर भी हमले होते हैं. झूठे आरोप भी लगाए जाते हैं. जबरन धर्मांतरण के मामले बनाए जाते हैं. भाजपा शासित राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून हैं. इनका इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के खिलाफ होता है.
यूसीएफ के मुताबिक 2014 से ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं और जब से मोदी सरकार बनी है, तब से घटनाएं अधिक हो रही हैं. 2024 में सबसे ज़्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश में हुईं. यहां 209 मामले दर्ज हुए. छत्तीसगढ़ में 165 मामले सामने आए. कई मामलों में पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं होती क्योंकि पीड़ित पुलिस के पास जाने से डरते हैं. उन्हें लगता है पुलिस हमलावरों का साथ देगी.
यूसीएफ के अनुसार कई बार पीड़ितों पर ही एफआईआर दर्ज होती है और हमलावर बच जाते हैं. पुलिस पीड़ितों को चुप रहने के लिए कहती है. पुलिस कहती है कि मामला दर्ज करने से हमलावर और उग्र हो सकते हैं. हाशिए पर रहने वाले लोग ज़्यादा शिकार होते हैं. 2024 के दिसंबर में 73 घटनाएं दर्ज हुईं. 25 मामलों में पीड़ित अनुसूचित जनजाति के थे. 14 दलित थे. 9 घटनाओं में महिलाएं पीड़ित थीं. हिंदुत्व कार्यकर्ता झूठे धर्मांतरण के मामले बनाते हैं. वे हाशिए के लोगों को निशाना बनाते हैं. आरोप है कि लोग जबरन धर्मांतरण कराते हैं. कई मामले अदालत में खारिज हो गए हैं.
दिसंबर 31, 2024 को ईसाई नेताओं ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से अपील की. उन्होंने हिंसा रोकने की मांग की. क्रिसमस के आसपास कई घटनाएं हुई थीं. पहले भी ऐसी अपील की गई है. यह देखना बाकी है कि सरकार इस पर ध्यान देगी या नहीं. प्रधानमंत्री मोदी ने क्रिसमस पर ईसाई नेताओं के साथ कार्यक्रम में भाग लिया. उन्होंने दूसरे देशों में हुई हिंसा की बात की. उन्होंने भारत में हिंसा पर कुछ नहीं कहा. जॉन दयाल ने कहा कि मोदी की कथनी और करनी में फर्क है. विपक्ष ने भी प्रधानमंत्री की आलोचना की है. टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि चर्च को कड़े सवाल पूछने चाहिए.
बलात्कारी बाबाओं और हत्यारों को जमानत, पर आंदोलनकारियों को नहीं..
क्या कहता है यह भारत की अदालतों के बारे में ?
बलात्कारी बाबा आसाराम जमानत पर हैं. हरियाणा और पंजाब में जब चुनाव आते हैं, हत्या और बलात्कार का मुजरिम गुरमीत राम रहीम मुँह उठाकर जेल से बाहर आ जाता है, और राजनेता उसके चरणों में आकर बैठ जाते हैं. हाल ही में बेंगलुरू शहर की एक अदालत ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के आरोपी शरद भाऊसाहेब कालासकर को जमानत दी, जैसा कि कानूनी मामलों की वेबसाइट लाइव लॉ ने शुक्रवार को रिपोर्ट किया.
पर अगर आरोपी छात्र या अध्यापक आंदोलनकारी हो, तो भारतीय अदालतों से जमानत की उम्मीद करना मुश्किल ही नहीं बल्कि…
हालांकि भारत का सुप्रीम कोर्ट पिछले साल अगस्त में बोल रहा था, "जमानत नियम है, जेल अपवाद है", यहां तक कि विशेष कानूनों जैसे कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी.
टेलीग्राफ ने इस संदर्भ मे एक मुकम्मल रिपोर्ट की है, जिसमें रेखांकित किया गया है कि
देश भर की अदालतों ने पिछले एक साल में कुछ लोगों को जमानत दी, जबकि कुछ अन्य को अदालतों ने बार-बार जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं या केवल मामूली अंतरिम राहत दी.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्वयंभू बाबा आसाराम बापू को दो महीने की अंतरिम जमानत दी. आसाराम गुजरात में 2013 के बलात्कार मामले और राजस्थान में एक नाबालिग के बलात्कार के मामले में जेल में थे. "वह अपनी मृत्यु शय्या पर हैं. अपराध चाहे जैसा हो, जब आरोपी की स्वास्थ्य स्थिति की बात आती है, तो राज्य और अदालत पर जिम्मेदारी आती है. उन्हें यह सुविधा मिलनी चाहिए, हम या आप पर कोई दोष नहीं आएगा," सुप्रीम कोर्ट ने कहा. पर यही मापदंड फादर स्टैन स्वामी के लिए लागू नहीं किया गया. उन्हें तो ठीक से पानी पीने के लिए स्ट्रा उपलब्ध करवाने की भी इजाजत भी नहीं दी गई.
अक्टूबर 2024 में, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख और बलात्कार दोषी गुरमीत राम रहीम सिंह को पैरोल पर रिहा किया गया. यह उनके चार वर्षों में 15वीं पैरोल थी. उनका रिहाई हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ.
गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में पुलिस ने तर्क किया कि उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य के भाषणों ने सीएए और एनआरसी, बाबरी मस्जिद, ट्रिपल तलाक और कश्मीर जैसे मुद्दों पर सामान्य संदर्भ के बाद डर का माहौल पैदा किया. उनकी जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए पुलिस ने कहा कि फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ी यूएपीए मामले में यह बयान दिए गए थे. "शरजील इमाम और उमर खालिद के भाषणों में एक समान पैटर्न दिखता है... यह लोगों में डर पैदा करता है," विशेष सरकारी वकील अमित प्रसाद ने कहा. न्यायाधीश ने जमानत याचिका पर निर्णय को लंबित रखा, और अदालत ने मामले की सुनवाई 21 जनवरी को तय की है. दिल्ली पुलिस की विशेष सेल ने 14 सितंबर 2020 को खालिद को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था. उन्होंने 18 दिसंबर 2024 को अंतरिम जमानत प्राप्त की, चार साल से अधिक समय जेल में बिताने के बाद. खालिद पिछले शुक्रवार को फिर से जेल लौट गए. उनकी बहन की शादी के लिए दिसंबर 2022 में उन्हें एक समान अंतरिम राहत दी गई थी. शरजील इमाम, जो जामिया मिलिया इस्लामिया और आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र हैं, 28 जनवरी 2020 से जेल में हैं, उन्हें शाहीन बाग आंदोलन में शामिल होने के कारण गिरफ्तार किया गया था. रिपोर्ट्स के अनुसार, इमाम की जमानत याचिका 60 बार लिस्ट की गई है. वह तिहाड़ जेल में हैं, जैसे खालिद भी.
31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद नामक एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह मनाना था. अगले दिन पुणे में हिंसा भड़क उठी. पुलिस का कहना था कि प्रतिबंधित समूहों के एक्टिविस्टों के भाषणों ने इस हिंसा को बढ़ावा दिया.
प्रोफेसर-एक्टिविस्ट शोमा सेन, वरवारा राव, श्रमिक संघ की नेता सुधा भारद्वाज कुछ ऐसे आरोपी हैं जिन्हें कई बार जमानत याचिकाओं के खारिज होने के बाद भी जेल में रखा गया.
एक अन्य आरोपी, फादर स्टैन स्वामी, कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद जेल में ही निधन हो गए. उन्हें मेडिकल जमानत देने से इनकार कर दिया गया, जबकि उन्हें पार्किंसंस की गंभीर बीमारी थी, और उन्हें पानी पीने के लिए भी सिप्पर कप का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी गई. इसके अलावा, शैक्षणिक जी.एन. साईबाबा, जो मई 2014 में गिरफ्तार हुए थे, वे व्हीलचेयर पर थे और शारीरिक रूप से विकलांग थे. उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट से दो बार बरी किया गया था. पहली बार दोषमुक्ति का सुप्रीम कोर्ट ने निलंबन कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट की एक अन्य बेंच ने उन्हें फिर से बरी किया. इस बार, सुप्रीम कोर्ट ने बरी करने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जब महाराष्ट्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील की. राज्य ने उन्हें जून 2024 में जेल से रिहा किया. इसके तीन महीने बाद उनका निधन हो गया.
पाकिस्तान : आतंकवादी हिंसा 70% बढ़ी
पाकिस्तान में सुरक्षा परिदृश्य तेजी से बदल रहा है. पाक इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज की ओर से संकलित आंकड़ों के अनुसार, देश में पिछले साल की तुलना में 2024 में आतंकवादी हिंसा की घटनाओं में 70% की वृद्धि हुई है. इस दौरान कुल 521 आतंकवादी हमले दर्ज किए गए हैं. यह तेज वृद्धि दो प्रमुख समूहों की बढ़ती ताकत को उजागर करती है- तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी.
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ही अपने वैचारिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय एकमात्र समूह नहीं हैं. अन्य गुटों का भी अशांति में योगदान है. हालांकि यह भी देखा जा रहा है कि छोटे समूह इन दो प्रमुख संगठनों के अधीन होते जा रहे हैं.
धार्मिक रूप से प्रेरित समूहों के क्षेत्र में, अन्य महत्वपूर्ण गुटों में हाफिज गुल बहादुर समूह, लश्कर-ए-इस्लाम और इस्लामिक स्टेट-खोरासन शामिल हैं. ये समूह खैबर पख्तूनख्वा में हिंसक गतिविधियों को अंजाम देते हैं. 2024 में, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने सुरक्षा बलों, गैर-बलूच श्रमिकों, खनिकों और चीनी नागरिकों को निशाना बनाकर कई हाई-प्रोफाइल आतंकवादी हमले किए हैं. 2024 में दर्ज किए गए सभी हमलों में से 59% से अधिक ने सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से संबंधित कर्मियों, वाहनों, काफिलों और सुविधाओं को निशाना बनाया है.
पेरिस जाते जाते पाकिस्तान एयरलाइंस का यू - टर्न
पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) ने हाल ही में 'पेरिस, हम आ रहे हैं' शीर्षक से एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें एक विमान को एफिल टॉवर की ओर उड़ते हुए दिखाया गया है. यह विज्ञापन सोशल मीडिया पर साझा होते ही विवादों में घिर गया, क्योंकि कई उपयोगकर्ताओं ने इसे 9/11 आतंकवादी हमलों की याद दिलाने वाला बताया. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं ने इस विज्ञापन की आलोचना करते हुए कहा कि यह संवेदनहीन और असंवेदनशील है. कई लोगों ने इसे '9/11' हमलों से जोड़कर देखा, जहां विमान न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकराए थे. इस तुलना के चलते विज्ञापन पर मीम्स और टिप्पणियों की बाढ़ आ गई. PIA ने इस प्रतिक्रिया के बाद विज्ञापन को हटा लिया और माफी जारी की. एयरलाइन के प्रवक्ता ने कहा कि उनका उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं था, और वे भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए अपने विपणन अभियानों की समीक्षा करेंगे.
गोमांस पर बैन के बाद, गौपालक, मांस व्यापारी और होटल व्यवसायी संकट में
असम के किसान, गाय चराने वाले, मांस व्यापारी और रेस्तराँ मालिक समेत सभी समुदाय आर्थिक संकट में हैं. इसकी वजह मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 4 दिसंबर 2024 को मवेशियों को मारने और धार्मिक स्थलों के आसपास बेचने पर लगाया प्रतिबंध बढ़ा दिया है. इतना ही नहीं सार्वजनिक रूप से गोमांस खाने और परोसने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. असम उन 20 भारतीय राज्यों में से एक है, जो गोमांस के वध और उपभोग पर आंशिक या पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाते हैं.
पूर्वी असम के धेमाजी जिले के सिरमपुरिया गाँव के एक अनुसूचित जनजाति के 33 वर्षीय हिंदू किसान सचिन कुली के तीन बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं. वह इनके शिक्षा का खर्च उठाने के लिए अपने स्वस्थ बैल को बेचने का फ़ैसला किया. मगर उन्हें 20,000 रुपये मूल्य के बैल के लिए कम में भी ग्राहक नहीं मिल रहे हैं. वह कहते हैं, ‘बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें तत्काल कुछ पैसे की जरूरत है. मैं संकट में हूं’.
बैल के ग्राहक कम होने की वजह के पीछे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा का 4 दिसंबर 2024 को लागू किया गया यह कानून है, जिसमें मवेशियों के वध पर आंशिक प्रतिबंध और गैर-मुस्लिम क्षेत्रों में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, साथ में सार्वजनिक रूप से खाने या बेचने पर राज्यव्यापी प्रतिबंध को भी बढ़ा दिया है.
असम की राजधानी के हाटीगांव क्षेत्र के एक करीब आठ साल से इस काम को कर रहे मुस्लिम मांस व्यापारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘अपनी गोमांस की दुकान पर बेकार बैठे हैं. कोई ग्राहक नहीं है. गुज़ारा करना मुश्किल हो गया है. मुझे अपने परिवार का भरण-पोषण करना है, और इस दुकान के लिए हर महीने 6,000 रुपये का किराया देना है’. व्यापारी ने कहा, ‘मैं प्रतिदिन 60 किलोग्राम से अधिक गोमांस बेचता था. अब मैं मुश्किल से 20 किलोग्राम बेच पा रहा हूँ’.
प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से भारत के छठे सबसे गरीब राज्य में मवेशी-व्यापार और गोमांस खाने पर प्रतिबंध ने अर्थव्यवस्था में हलचल पैदा कर दी है. 2021 के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, इसका असर हिंदुओं पर भी उतना ही पड़ रहा है, जितना मुसलमानों, ईसाइयों और आदिवासियों पर.
विश्व बैंक की 2017 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के एक तिहाई से ज़्यादा लोग गरीबी में जी रहे हैं. राज्य नियमित रूप से राष्ट्रीय पोषण, सामाजिक और आर्थिक संकेतकों में सबसे निचले पायदान पर दिखाई देता है. हालाँकि केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के अनुसार, 2023 में गरीबी दर घटकर लगभग 19% रह गई है.
कुली बताते हैं, ‘हमारे समुदाय और हमारे क्षेत्र के कई बच्चे इसलिए स्कूल जा पाते हैं, क्योंकि उनका परिवार आजीविका के लिए मवेशी बेचते हैं’.
असम में पशुओं के सामान्य वध पर प्रतिबंध लगाने वाले 2021 के कानून के अनुसार, जो मवेशी कमज़ोर हैं या 14 साल से ज़्यादा उम्र के हैं, उन्हें आधिकारिक प्रमाणीकरण के बाद ही मारा जा सकता है. इस कानून के अनुसार, ‘स्वीकृत स्थानों’ को छोड़कर, मवेशियों का राज्य के भीतर और बाहर परिवहन भी प्रतिबंधित है. सरमा के कड़े प्रतिबंध के बाद, एक महीने से भी कम समय में, मवेशियों और गोमांस का व्यापार ठप हो गए. असम मवेशी संरक्षण अधिनियम-2021, उन क्षेत्रों में भी मवेशियों के वध और गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है, जहाँ हिंदू, जैन और सिख बहुसंख्यक हैं या जो मंदिर या वैष्णव मठ के 5 किलोमीटर के दायरे में हैं.
मुख्यमंत्री सरमा ने 4 दिसंबर को इस कानून को और कड़ा कर दिया है. सरमा ने 2021 में राज्य विधानसभा में स्वीकृत कानून का हवाला देते हुए कहा, ‘हमने पहले असम में गायों की रक्षा के लिए एक विधेयक पेश किया था और सफल रहे. आगे बढ़ते हुए अब फैसला किया है कि राज्य के किसी भी होटल या रेस्तरां में गोमांस नहीं परोसा जाएगा. इसे किसी भी सार्वजनिक समारोह या किसी सार्वजनिक स्थान पर भी नहीं परोसा जाएगा’.
इस कानून पर प्रतिक्रिया देते हुए गाय चरवाहों, मांस विक्रेताओं और होटल मालिकों ने बताया कि 2021 के प्रतिबंध के बाद से मुनाफ़ा पहले ही कम हो गया है या गायब हो गया है. आलोचकों और विशेषज्ञों ने कहा कि इस प्रतिबंध से मवेशियों के व्यापार पर निर्भर रहने वाले हज़ारों लोग और भी ज़्यादा प्रभावित होंगे. पश्चिमी असम के धुबरी शहर की राजनीतिशास्त्री परवीन सुल्ताना ने कहा, ‘पूरे भारत में मुद्दे बहुत सांप्रदायिक रंग ले रहे हैं. इसलिए, यह प्रतिबंध कोई नई बात नहीं है’. उन्होंने कहा, ‘राज्य की पूरी आर्थिक व्यवस्था मवेशियों पर निर्भर है. सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं, गैर-मुस्लिम पशुपालक भी इस प्रतिबंध से प्रभावित होंगे’.
भारत में, 28 में से 20 राज्यों में गोहत्या और गोमांस की बिक्री को नियंत्रित करने वाले कई कानून हैं.
ये कानून हर राज्य में अलग-अलग हैं. 2019 में, ‘इंडिया स्पेंड’ ने पशुधन अर्थव्यवस्था पर ऐसे कानूनों के प्रतिकूल प्रभावों की रिपोर्ट की. 2022 में, ‘आर्टिकल 14’ ने बताया कि कैसे उत्तर प्रदेश के पशु वध प्रतिबंध ने कई लोगों को मांस व्यापार से बाहर कर दिया. अब केवल आठ राज्यों में गोहत्या वैध है. इनमें केरल, गोवा, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा शामिल हैं.
गायें, जिनमें से अधिकतर स्थानीय नस्ल की हैं, असम में पशुधन का एक बड़ा हिस्सा हैं. राज्य की 2019 की पशुधन जनगणना के अनुसार, असम में पशुधन मवेशियों में 60% तक सिर्फ गाय हैं.
आर्टिकल14 ने असम के तीन मंत्रियों से टिप्पणी मांगी, जिनमें प्रवक्ता, जनसंपर्क, मुद्रण और स्टेशनरी, जल संसाधन, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री पीयूष हजारिका, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और सिंचाई विभाग के मंत्री अशोक सिंघल और सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग और आवास और शहरी मामलों के मंत्री जयंत मल्लाबरुआ शामिल हैं, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला.
2018 में, नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया था. इसमें जस्टिस जे चेलमेश्वर ने विशेष रूप से निजता में खाने-पीने की स्वतंत्रता को शामिल किया था. यह बात चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर फैजान मुस्तफा ने कही.
विशेषज्ञों ने कहा कि असम में किसान और चरवाहे अक्सर शादी, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल के लिए आपातकालीन पूंजी जुटाने के लिए मवेशियों का उपयोग करते हैं. वह इसका उपयोग बीमा की तरह करते हैं. इस प्रतिबंध से उनका जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होगा. किसान कुली कहते हैं, ‘गोमांस पर प्रतिबंध लगाने का मतलब अप्रत्यक्ष रूप से हमें प्रतिबंधित करना है. यह हमारी आजीविका को खत्म कर रहा है’.
कानूनी सहायता, तथ्य-खोज राष्ट्र-विरोधी नहीं: लखनऊ की एक विशेष एनआईए अदालत ने 2018 के कासगंज हिंसा मामले में फैसला सुनाते हुए मानवाधिकार संगठनों और गैर सरकारी संगठनों पर विवादास्पद टिप्पणियां कीं. अदालत ने यूएपीए के तहत आरोपी व्यक्तियों को कानूनी सहायता प्रदान करने और तथ्य-खोज में शामिल होने के लिए उनकी मंशा पर सवाल उठाया. अदालत ने सुझाव दिया कि उनकी फंडिंग की जांच की जानी चाहिए और न्यायिक प्रक्रिया में उनके हस्तक्षेप को रोका जाना चाहिए. अदालत ने यह भी कहा कि मुस्लिम हितों की वकालत करने वाले एनजीओ आरोपियों को कानूनी सहायता देकर 'अवांछनीय तत्वों' के मनोबल को बढ़ावा दे रहे हैं.
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने अदालत की टिप्पणियों पर कड़ी आपत्ति जताई. पीयूसीएल ने कहा कि अदालत को संगठनों को सुने बिना उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी. पीयूसीएल ने कहा कि तथ्य-खोज, कानूनी सहायता और वित्तीय सहायता प्रदान करना राष्ट्र-विरोधी गतिविधि नहीं है. पीयूसीएल ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जनहित याचिकाओं में अपनी भूमिका को भी उजागर किया है और बताया कि उसने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया है. पीयूसीएल ने विदेशी फंडिंग के आरोपों का खंडन किया और कहा कि यह सदस्यों के योगदान से संचालित होता है. पीयूसीएल ने कहा कि उसने कासगंज मामले में कोई तथ्य-खोज रिपोर्ट तैयार नहीं की और न ही कोई वित्तीय सहायता प्रदान की. पीयूसीएल ने अदालत की टिप्पणियों को हटाने की मांग की है.
एक मुसलमान हिंदुस्तानी औरत का 75 साल लम्बा सफ़र
कड़वी कॉफी के नये अंक में प्रोफेसर अपूर्वानंद से अपनी किताब ए ड्रॉप इन द ओशन के बारे में सैयदा हामिद की बातचीत. इस लम्बी बातचीत में सुनिये सैयदा हामिद से भारत की आज़ादी से अब तक के सफर के बारे में. सैयदा इसमें बता रही हैं आज़ाद भारत में एक मुसलमान की तरह बड़ा होने, दिल्ली के स्कूल- कॉलेज के बारे में, मुस्लिम समुदाय के नेताओं का देशप्रेम, विभाजन, और उनकी तकलीफें और उम्मीदों के बारे में. एक चश्मदीद गवाही के हलफिया बयान की तरह. साथ में कॉलेज के दिनों में एक जवान से लड़के का यूनिवर्सिटी बस में अक्सर बैठना, जो अमिताभ बच्चन निकले. बाद में सैयदा के चाचा, लेखक और फिल्मकार ख्वाज़ा अहमद अब्बास ने बच्चन को सात हिंदुस्तानी में पहला ब्रेक दिया.
चलते-चलते : बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के कानून!
मोबाइल फोन और टैबलेट के बच्चों द्वारा उपयोग को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच, दुनिया भर के देश स्कूलों और घरों में इस समस्या से निपटने के लिए विचार कर रहे हैं. द गार्डियन के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया और स्पेन जैसे देश इस दिशा में कानून बना रहे हैं, तो वहीं फ्रांस, इटली और जर्मनी जैसे देश स्कूलों में फोन के इस्तेमाल को लेकर नियम बना रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया से प्रतिबंधित करने का कानून पास किया है. इसका उद्देश्य बच्चों को बाहरी गतिविधियों में शामिल करना है. स्पेन सोशल मीडिया अकाउंट खोलने की उम्र 14 से बढ़ाकर 16 करने की योजना बना रहा है और माता-पिता को बच्चों के फोन पर डिफ़ॉल्ट रूप से नियंत्रण स्थापित करने का भी सुझाव दिया है. बार्सिलोना में एक पहल के तहत माता-पिता बच्चों को 16 साल की उम्र तक फोन न देने पर सहमत हुए हैं.
फ्रांस ने बच्चों को 13 साल की उम्र तक स्मार्टफोन उपयोग करने से रोकने और 18 साल तक पारंपरिक सोशल मीडिया से दूर रखने की सिफारिश की है. इटली ने स्कूलों में स्मार्टफोन और टैबलेट के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं जर्मनी में शिक्षक फोन को जब्त कर सकते हैं, लेकिन कुछ शिक्षक डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए उपकरणों का उपयोग करते हैं. जर्मन बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि 11 साल से कम उम्र के बच्चों को स्मार्टफोन नहीं देना चाहिए.
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