6 नवंबर, 2024 : कैसे याद करेंगे चंद्रचूड़ को, सरकार नहीं झपट सकती निजी संपत्ति, पवार को याद आया रिटायरमेंट, यूपी में चलते रहेंगे मदरसे, सलमान को मिलती धमकियां, कमला का गांव, ट्रम्प का प्रोजेक्ट
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
सुर्खियां…
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सभी निजी संपत्तियों को सरकार द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता, केवल वे संसाधन जिनका सार्वजनिक उपयोग है, ऐसी सम्पत्तियों को ही सरकार अधिग्रहित कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि समाजवादी अवधारणा में किसी भी संपत्ति को निजी नहीं माना गया है. समाजवादी अवधारणा संपत्ति पर सभी का हक मानती है, लेकिन हमारे यहां संपत्ति हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए रखते हैं. हम उस संपत्ति को व्यापक समुदाय के लिए ट्रस्ट में भी रखते हैं. यही सतत विकास की प्रक्रिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले पर अपना निर्णय सुनाया, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित किया गया था. अपने आदेश में, अदालत ने इस कानून को "संवैधानिक" माना और स्पष्ट किया कि इस अधिनियम के तहत चलने वाले मदरसे आगे भी कार्य करते रहेंगे. हाई कोर्ट ने मदरसों पर 2004 में बने यूपी सरकार के कानून को असंवैधानिक करार दिया था. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने यह फैसला सुनाया है. इस निर्णय ने मदरसों के संचालन को एक कानूनी आधार प्रदान किया है और इससे छात्रों के शिक्षा अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा रही है. शरद पवार ने इशारों-इशारों में अपने रिटायरमेंट की बात कर दी है. ये बात उस वक़्त हो रही है जब महाराष्ट्र चुनावों में डूबा हुआ है. बारामती क्षेत्र में एक बैठक को संबोधित करते हुए शरद पवार ने कहा कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे और नई पीढ़ी को आगे लाने का कार्य करेंगे. उन्होंने कहा कि वह राज्यसभा में हैं, लेकिन 1.5 साल बाद इस पर विचार करेंगे कि आगे क्या करना है. पवार ने यह भी बताया कि उन्होंने 14 बार चुनाव लड़ा है और हर बार जीत हासिल की, लेकिन अब वह शक्ति की इच्छा नहीं रखते और सामाजिक कार्यों में लगे रहेंगे. सलमान खान न हुए, मोहल्ले का बंटू हो गए! हाँ कुछ ऐसा ही है. जब से लॉरेंस विश्नोई का नाम बाबा सिद्दीक़ी की हत्या में उछला है, तब से पॉपुलर सिने स्टार सलमान खान की जान पर बनी हुई है. कोई भी कहीं से भी फोन कर सलमान खान को धमकी भेज दे रहा है. सलमान खान को मंगलवार सुबह फिर लॉरेंस के नाम से धमकी मिली. मुंबई कंट्रोल रूम में आए मैसेज में कहा गया कि अगर सलमान खान काले हिरण का शिकार करने पर बिश्नोई समाज की मंदिर जाकर माफी नहीं मांगते या 5 करोड़ रुपए नहीं चुकाते तो उनकी जान जा सकती है. दैनिक भास्कर ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से लिखा है कि धमकी देने वाले आरोपी को पुलिस ने कर्नाटक से गिरफ्तार कर लिया है.
कैसे याद रखा जाएगा सीजेआई चंद्रचूड़ को
गौरव नौड़ियाल
न्याय अपने आप में दुर्लभ सा शब्द लगने लगता है, जब आप एक विशाल देश के मुख्य न्यायाधीश को भगवान भरोसे किसी मुकदमे पर ‘न्याय’ करने की बात स्वीकारते हुए पाते हैं! इस स्वीकारोक्ति के बाद तो बस एक ही बात रह जाती है और वह यह कि नागरिक आगे बढ़ें और अपने सुप्रीम कोर्ट के गेट पर इस इबारत को चस्पा कर दें- ‘हमारे यहां भगवान भरोसे मुकदमों पर फैसले सुनाए जाते हैं!’ इससे कम से कम वकीलों की महंगी फीस का इंतज़ाम करने के बजाय, जज साहब के 'फेवरेट गॉड' का प्रसाद ग्रहण कर पीड़ित लंबित मुकदमों से शायद जल्द मुक्त हो जाएं.
सीजेआई के इस सुपरहिट इन्वेंशन से भारत में न्याय क्रांति ही हो जाए, या फिर इस फॉर्मूले से उमर खालिद जैसे नौजवानों को भी जेल में शायद कम वक़्त गुजारना पड़े. कुछ तो लाभ देश को इस इन्वेंशन का मिले, जिसमें भगवान खुद बताएं कि 'न्याय' किसे देना है और किसे नहीं! इससे कोर्ट का वक़्त लम्बी जिरहों से नष्ट नहीं होगा... सीधे, कालिंग भगवान जी सर्विस और चट्ट से मिल जाए इंस्टेंट न्याय. नूडल से भी फ़ास्ट इंस्टेंट न्याय. यही टैगलाइन उस इबारत के नीचे लिखी जाए, जहाँ भगवान भरोसे न्याय की बात लिखी हो! वाह क्या ख्याल है मेरा, इस ख्याल को वहां लिखा जाए, जहाँ सीजेआई का इतिहास दर्ज हो.. भारत में तो कम से कम इन दिनों ऐसा ही हो रहा है. सीजेआई को इतिहास में अमर होने की मानो छटपटाहट सी हो रही हो... मानो वो न्याय के इतिहास में महान बनने से जरा चूक रहे हों और इस महानता को पाने के लिए जनता का समर्थन चाह रहे हों!
इन दिनों सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ अपने रिटायरमेंट से पहले कई किस्म की बातें कर रहे हैं, कभी सीनियर जजों को याद दिलवा रहे हैं कि बहस ना करो, हम ही मुख्य न्यायाधीश हैं तो कभी डील होने न होने की कहानियां बांच रहे हैं.
डील कैसे होती है.... न ये बात भारत के मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट तौर पर बताई है और न मुझे पता है कि ताकतवर लोगों के बीच डील कैसे होती है! हालांकि मेरे पास डील करने वाले हिमालय के एक चरवाहे की कहानी जरूर है...इस कहानी से आप डील कैसे होती है, उसका अंदाजा तो लगा ही सकते हैं!
कहानी है मंगल सिंह की...मंगल सिंह सुदूर मध्य हिमालय की पहाड़ियों पर एक उदास गांव का निवासी था! घर में तीन जवान नकारा बेटे थे... एक रोज मंगल सिंह को पता चला कि उसका कोई रिश्तेदार दिल्ली में बड़ा बाबू बन गया है! मंगल सिंह की बांछे खिल गई...लेकिन फिर वो उदास हो गया! कैसे बात बढ़ाई जाए... उसने अपने नारंगी के पेड से 40 दाणी नारंगी बटोरी और एक कट्टा बांधकर, रिश्तेदार से अपने नकारा बेटों के मार्फत डील करने पहुंच गया. रिश्तेदार ने कहा किसी से न कहना, ख्वामख्वाह फजीहत होगी.. मंगल सिंह ने डील कर ली थी.... हर सीजन दो कट्टा नारंगी के बदले बड़े बेटे की गार्ड की नौकरी पक्की! कहते हैं मंगल सिंह ने इस डील को मरते दम तक निभाया और अपने नारंगी फाॅर्मूले से ही बाकी के दो बेटों को भी सेट कर दिया. हालांकि, मंगल सिंह ने खुद कभी नहीं बताया कि उसकी डील का राज क्या था, लेकिन जानने वाले जान ही जाते हैं!
खैर, सीजेआई तो कम से कम नारंगी के कट्टे के बदले किसी डील करने की बात तो नहीं ही कर रहे होंगे....तभी वो प्रधानमंत्री से निजी आवास पर हुई मुलाकात के बाद हुई किरकिरी पर कह रहे हैं कि 'सच तो यह है, जैसा मैंने कहा, इस तरह की बातचीत के दौरान सौदे कभी नहीं होते. इसलिए कृपया हम पर विश्वास करें. हम वहां कोई सौदा करने के लिए नहीं हैं.' राम जानें.... क्योंकि इन दिनों तो सुप्रीम कोर्ट के अहम मुकदमें पर राम का ही प्रभाव ज्यादा है, बनिस्पत तथ्यों, तर्कों और कानून की परिभाषा के.
भारत के 50 वें मुख्य न्यायाधीश को लोग कैसे याद रखेंगे? ये सवाल भी न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटाकर, भूखे-नंगे भारतीयों को न्याय की नई परिभाषा समझाने वाले न्यायमूर्ति को सालता है. तभी तो सीजेआई ने हिंदुस्तान की अवाम से साफ कह दिया कि कैसे उन्होंने अपने आराध्य ईश्वर की मदद से, अपने आराध्य ईश्वर के मंदिर पर फैसला सुनाते हुए, सिर्फ अपने आराध्य ईश्वर की सुनी और अल्लाह मियां के लिए न्याय मांग रहे अल्लाह मियां के पैरोकारों को अपने आराध्य ईश्वर की मदद से ‘न्याय के पन्नों’ पर ‘यही मेरे भगवान की मर्जी है!’ सरीखा जजमेंट देकर समेट दिया... हर ओर अब यही बात हो रही है. सीजेआई को इतिहास में दर्ज करने को मानों भारत लालायित हो उठा है....
भारत के एक सीनियर वकील दुष्यंत दवे ने तो करन थापर के साथ बातचीत में यह आशा व्यक्त की कि इतिहास न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को याद न रखे और उनकी विरासत को जल्द से जल्द भुला दिया जाए. दवे ने मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ द्वारा दिए गए निर्णयों, उनकी सूची के प्रभारी के रूप में प्रदर्शन, उनके प्रशासनिक आदेशों, अदालत के बाहर के व्यवहार और मीडिया के ध्यान के लिए उनकी निरंतर चाहत, उनके न्यायाधीश के रूप में असफलताओं और मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्याय प्रशासन और न्यायिक प्रणाली में सुधार करने में उनकी विफलताओं पर सवालों का जवाब दिया.
बात भी सही है! न्याय, न्यायाधीश की आस्था और रूचि की नींव पर टिका हो, तब तर्कशील लोगों को न्याय की देवी की आंखों से पट्टी निकालकर कूड़ेदान में फेंक देने वाले न्यायाधीश का जरूर जयघोष करना चाहिए, क्योंकि कम से कम अब नंगी आंखों से न्याय की देवी, ईश्वर की शरण में गए न्यायाधीश को देख तो सकेगी..! क्या पता एक रोज उठकर न्याय की देवी खुद ही अपनी आंखों पर पट्टी बांध ले... उसे ऐसा कर लेना चाहिए ताकि अपनी नाकारा संतानों को फिट करने की चाह में नारंगी का कट्टा लेकर डील करने आ रहे, किसी मंगल सिंह को देखकर शर्मसार न होना पड़े!
सीजेआई कई और संदेहों को साफ़ कर इतिहास के पन्नों में जाना चाहते हैं, ताकि कल को कोई ये न कह सके कि मी-लार्ड ये क्या किया! मुख्य न्यायाधीश ने एक कार्यक्रम में कहा, "परंपरागत रूप से, न्यायिक स्वतंत्रता को कार्यपालिका से स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया गया था. न्यायपालिका से स्वतंत्रता का मतलब अब भी सरकार से स्वतंत्रता है. लेकिन न्यायिक स्वतंत्रता के संदर्भ में यह एकमात्र बात नहीं है. स्वतंत्र रहने के लिए, एक न्यायाधीश को यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे अपने विवेक के अनुसार निर्णय लें, बेशक, वह विवेक कानून और संविधान द्वारा मार्गदर्शित होता है." ...बिलकुल यही बात तो देश चाहता है कि न्यायधीश कानून और संविधान द्वारा मार्गदर्शन पाएं, न कि आराध्य ईश्वर को ढूंढने लगें.
बहरहाल, चंद्रचूड़ की कथा फिलवक्त समाप्त करते हैं और मंगल सिंह पर लौटते हैं... वही मंगल सिंह जो डील करने का उस्ताद बन गया था! एक रोज उसका पडोसी उसके पास आया और अपने बेटे के हिस्से का न्याय उसने मंगल सिंह से माँगा... पडोसी ने डील करने के उस्ताद मंगल सिंह को एक कट्टा नारंगी का लाकर भी दिया. मंगल सिंह उस उदास गाँव के इतिहास में महान बनने का ख्याल लेकर चल पड़ा. मंगल सिंह की कथा खूब रोमांचित करने वाली रही, लेकिन एक रोज इसी डील ने उसकी जान ले ली. मंगल सिंह नारंगी के कट्टे के साथ उफनती नदी पार नहीं कर पाया और विचारों के भंवर के बीच ही फंसकर नदी में बह गया.. अपनी आखिरी डील में जब मंगल को महान बन जाना था, वो एक मामूली सी उफनती पहाड़ी नदी की धारा में बह गया. जब वो कट्टा नदी में बहकर एक दूसरे गाँव की सरहद से टकराया तो बच्चों ने उन गलगली नारंगियों से स्वाद का न्याय नहीं मांगा, उन्होंने ढलवा पहाड़ों पर नारंगी का फुटबॉल बनाकर खेला. उस उदास गाँव ने मंगल सिंह का यही इतिहास लिखा.
न वो नारंगी का कट्टा बचा पाया, न खुद को और न अपने डील करने की कहानी को ही बचा सका! तब से मंगल सिंह नारंगी के कट्टे से डील का फार्मूला दे गया, जो पीढ़ी दर पीढ़ी और परिष्कृत हो गया! मुझे यकीन है मंगल सिंह की कहानी उतनी मशहूर तो नहीं ही हो पाएगी, जितनी CJI चंद्रचूड़ की न्याय के इतिहास में हो गई! कोई ये कहानी उन्हें सुना दे... जो इतिहास में अपना काम ठीक से न करने के बावजूद अमरता की चाहत में इन दिनों डोल रहे हैं और लोगों को याद दिलवा रहे हैं कि भूलो मत मैं कौन हूँ!
टाइगर की खातिर मोगली की भूमि पर "रात्रि चौपालें"
‘द जंगल बुक’ के मोगली की भूमि कहा जाने वाला पेंच टाइगर रिजर्व इन दिनों "रात्रि चौपालों" का साक्षी बना हुआ है. बफर जोन के 100 से ज्यादा गांवों में बड़ी-बड़ी स्क्रीन लगाकर लघु फिल्मों और डॉक्यूमेंट्रीज़ (वृत्त चित्र) के जरिए ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को कई चीजें सिखाई जा रही हैं. जैसे जंगल में बाघ का क्या महत्व है, वन्य जीवन और वनों का संरक्षण करने की जरूरत क्यों है, बाघ के जानवरों और इंसानों पर हमला करने की क्या वजह होती है, जब भी किसी बाघ से सामना हो तो क्या करना चाहिए और क्या नहीं. "द न्यू इंडियन एक्सप्रेस" के मुताबिक स्थानीय नेता भी इन चौपालों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, हालांकि वे सियासत पर बात नहीं करते. सिर्फ जंगलों और बाघों पर ही उनका फोकस होता है.
बांधवगढ़ : कोदो खाने से हुई हाथियों की मौत
मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में 10 हाथियों की मौत के कारण का खुलासा हो गया है. पिछले हफ्ते तीन दिनों के भीतर ये दसों हाथी एसिडयुक्त कोदो बाजरा खाने के कारण मरे थे। दैनिक भास्कर के अनुसार फोरेंसिक रिपोर्ट मध्यप्रदेश सरकार को प्राप्त हो गई है, जिसमें कहा गया है कि कोदो बाजरा में साइक्लोपियाजोनिक एसिड पाया गया है. हालांकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कोदो कुटकी आदिवासी समाज के लिए महत्वपूर्ण मिलेट की तरह सदियों से रहा है. इस बीच राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है. वहीं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने आरोप लगाया है कि हाथियों को जहर देकर मारा गया है. उन्होंने वन मंत्री रामनिवास रावत और वन विभाग को भी जिम्मेदार ठहराया है। बता दें कि रावत लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे और वह विजयपुर सीट से विधानसभा उप चुनाव लड़ रहे हैं.
लेबनान : इजरायली हमलों में 3,000 से अधिक की मौत
लेबनान में स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच 13 महीने से जारी युद्ध में मरने वालों की संख्या 3,000 से अधिक हो चुकी है. इस संघर्ष का असर न केवल सैनिकों पर बल्कि आम नागरिकों पर भी गंभीर रूप से पड़ा है. अस्पतालों की पानी की टंकियों को भी निशाना बनाया जा रहा है, जिससे स्वास्थ्य सुविधाओं पर भारी दबाव बन गया है और मरीजों और उनके तीमारदारों के सामने पेयजल का संकट खड़ा हो गया.
पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं, जिससे स्वतंत्र पत्रकारिता प्रभावित हो रही है, और स्थानीय और विदेशी पत्रकारों को गंभीर जोखिम उठाना पड़ रहा है. आम नागरिक भी हमलों की चपेट में हैं, जिससे भय और अनिश्चितता का माहौल बन गया है. इसके अलावा, जैतून की फसल भी इस संघर्ष की चपेट में आई है, जो लेबनान के ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. फसलों की तबाही से किसानों की आजीविका पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिससे वे आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.
इस युद्ध ने लेबनान के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सुविधाओं और अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुंचाई है. लोग विस्थापित हो रहे हैं, और सामान्य जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
फिलिस्तीन: जारी है नरसंहार
लेबनान ही नहीं फिलिस्तीन के गाँवों और शहरों में भी इजरायल ने नरसंहार जारी रखा हुआ है. गाज़ा में इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में अब तक की स्थिति बेहद गंभीर है. हाल ही में, इज़राइली हमलों में 54 फिलिस्तीनियों की मौत हुई है, जो गाज़ा में नागरिकों पर जारी हमलों का ताज़ा उदाहरण है. इस वर्ष के संघर्ष में हजारों लोगों की जान गई है और अधिकांश मृतक नागरिक हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.
अब तक के कुछ प्रमुख आंकड़े और महत्वपूर्ण बिंदु:
मृतकों की संख्या: पिछले महीनों के हमलों में अब तक 11,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें 4,500 से अधिक बच्चे हैं. वहीं, लगभग 25,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिससे अस्पतालों पर भारी दबाव बढ़ा है.
घरों का विनाश: कई आवासीय इमारतें और आधारभूत ढांचे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. इसके कारण हजारों परिवार बेघर हो गए हैं, और आपातकालीन सेवाओं के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं बचे हैं.
मानवीय संकट: गाज़ा में बिजली, पानी, और भोजन जैसी बुनियादी सुविधाओं की गंभीर कमी है. चिकित्सा सुविधाओं पर भी संकट गहरा रहा है, और घायलों को इलाज के लिए पड़ोसी देशों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
आर्थिक प्रभाव: संघर्ष के कारण फिलिस्तीनी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है. व्यापारिक क्षेत्र और बुनियादी ढांचे को नुकसान ने स्थानीय निवासियों के रोजगार और आजीविका को प्रभावित किया है.
बढ़ता तनाव और वैश्विक प्रतिक्रियाएं: संयुक्त राष्ट्र सहित कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने इस संकट को गंभीरता से लिया है और संघर्ष विराम की मांग की है. वहीं, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि गाज़ा की स्थिति मानवीय संकट का उदाहरण है और सभी पक्षों को इस संकट का समाधान निकालना चाहिए.
अंतरिक्ष का मलबा समेटेगा जापान, बनाया लकड़ी का सेटेलाइट
जापान ने दुनिया का पहला लकड़ी से बना सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजा है. यह अनोखा उपग्रह क्योटो यूनिवर्सिटी और जापानी लकड़ी की कंपनी सुमितोमो फॉरेस्ट्री के सहयोग से विकसित किया गया है. इसका नाम "लिग्नोसेट" है, और इसका निर्माण पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को कम करने के उद्देश्य से किया गया है. लकड़ी के उपयोग से सैटेलाइट का धरती की ओर लौटने पर जलना और कम हानिकारक तत्वों का उत्सर्जन करना संभव होगा, जो कि परंपरागत धातु वाले सैटेलाइट्स की तुलना में पर्यावरण के लिए बेहतर है. इस सैटेलाइट का एक उद्देश्य यह भी है कि इससे अंतरिक्ष में बढ़ रहे मलबे की समस्या को हल किया जा सके. सैटेलाइट में बर्च (बेटुला) नामक पेड़ की विशेष रूप से तैयार की गई लकड़ी का उपयोग हुआ है, जिसे विभिन्न अंतरिक्षीय स्थितियों में टिकाऊ साबित किया गया है. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य यह समझना भी है कि क्या लकड़ी अंतरिक्ष में विकिरण और तापमान के चरम पर प्रभावी रह सकती है.
(टाकाओ दोई, जो एक पूर्व जापानी अंतरिक्ष यात्री और क्योटो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, ने अपने प्रयोगशाला में "लिग्नोसेट" का इंजीनियरिंग मॉडल दिखाया. यह मॉडल दुनिया के पहले लकड़ी से बने सैटेलाइट का प्रतीक है, जो जापान द्वारा अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है. दोई ने यह मॉडल 25 अक्टूबर, 2024 को क्योटो यूनिवर्सिटी में एक इंटरव्यू के दौरान दिखाया. Credit: Reuters Photo)
रामचंद्र गुहा: भारत में पर्यावरणवाद का भविष्य कैसा हो!
दुनियाभर में कुछ सालों में पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर जिस किस्म की चिंता देखी गयी हैं, भारत भी इस मामले में अछूता नहीं है. रामचंद्र गुहा ने अपनी नयी किताब में इसी मसले को एड्रेस किया है. उनकी नवीनतम पुस्तक 'स्पीकिंग विद नेचर' में वे दस प्रमुख व्यक्तित्वों का प्रोफाइल प्रस्तुत करते हैं जिन्होंने भारतीय संदर्भ में पर्यावरण के बारे में तब लिखा, जब यह चर्चा मुख्यधारा में नहीं थी. गुहा का यह कार्य न केवल इन शुरुआती पर्यावरणीय समर्थकों पर प्रकाश डालता है, बल्कि यह इस पर भी महत्वपूर्ण चर्चा शुरू करता है कि वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों का भारत को कैसे सामना करना चाहिए. पत्रकार हृदयेश जोशी के साथ न्यूज़लॉन्ड्री के लिए हुई एक बातचीत में गुहा ने अपने विचार साझा किए कि भारत में पर्यावरणवाद का भविष्य कैसा होना चाहिए.
अमेरिका चुनाव: गोरों में ट्रम्प का खौफ!
डोनाल्ड ट्रम्प जीतेंगे या कमला हैरिस और अमेरिकन्स से हार जाएंगे, इसके नतीजे जल्द सामने होंगे, लेकिन ट्रम्प के लौटने का डर अमेरिका से बाहर भी देखा जा रहा है. ट्रम्प ने अपने पिछले कार्यकाल में जिस किस्म की सियासत को अमेरिका में हवा दी, उससे अमेरिका का एक बड़ा बुद्धिजीवियों का धड़ा ही नहीं, उनकी प्रेस ही नहीं बल्कि दूर ब्रिटेन तक में खौफ है. ब्रिटिश राजनेता और ब्रेक्जिट पार्टी के पूर्व नेता, नाइजल फराज, ने सुझाव दिया कि यदि 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कमला हैरिस जीतती हैं, तो डोनाल्ड ट्रंप को परिणाम स्वीकार कर लेना चाहिए और आगे का जीवन बिना किसी विवाद के बिताना चाहिए. फराज का कहना था कि अगर ट्रंप हार जाते हैं, तो उन्हें इसे "खेल की भावना" से स्वीकार करना चाहिए और "गोल्फ खेलने" पर ध्यान देना चाहिए. फराज ने ट्रंप को सलाह दी कि हार की स्थिति में, उन्हें देश में एकता बनाए रखने के लिए पीछे हटना चाहिए. यह टिप्पणी ट्रंप के समर्थकों के बीच की उस सोच का विरोध करती है, जिसमें चुनावी परिणाम को स्वीकार नहीं करने की प्रवृत्ति देखी जाती है. फराज ने माना कि ट्रंप की भूमिका और योगदान महत्वपूर्ण रही है, लेकिन लोकतंत्र में परिणाम को स्वीकार करना भी एक महत्वपूर्ण कदम है.
पूरा प्लान तैयार है ट्रम्प सरकार का…क्या है प्रोजक्ट 2025?
निधीश त्यागी
कमला हैरिस के कैम्पेन और डेमोक्रेटिक पार्टी ने सबसे ज्यादा हमले प्रोजेक्ट 2025 को लेकर किये हैं, जो ट्रम्प से जुड़े लोगों द्वारा तैयार विवादास्पद मसविदा है, जिसके तहत ट्रम्प के जीतने के बाद अमेरिका में लागू किया जाएगा.
प्रोजेक्ट 2025, हेरिटेज फाउंडेशन के नेतृत्व में एक विवादास्पद पहल है, जिसका उद्देश्य दक्षिणपंथी राष्ट्रपति प्रशासन के लिए तैयारी करना है. इसका मुख्य लक्ष्य राजनीतिक नियुक्तियों का एक नेटवर्क तैयार करना है जो एक रूढ़िवादी एजेंडा को लागू कर सकें और साथ ही "डीप स्टेट" नौकरशाही प्रणाली का सामना कर सकें. इस परियोजना की आलोचना हुई है. बाद में ट्रम्प ने हालांकि कहा कि वे प्रोजेक्ट 2025 की सारी बातों से सहमत नहीं, पर कुछ से हैं. और उन्होंने इसके नेतृत्व से सीधा संबंध होने के बावजूद इससे दूरी बना ली है. हालांकि अमेरिकी मीडिया में लगताार छपता रहा है कि इस प्रोग्राम को चलाने वाले बहुतेरे लोग ट्रम्प के साथ काम कर चुके हैं और उनके करीबी है, लेकिन वीडियो में वक्ताओं और ट्रम्प के बीच कई संबंध हैं. इनमें से ज़्यादातर ने ट्रंप के प्रशासन के दौरान व्हाइट हाउस, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, नासा, प्रबंधन और बजट कार्यालय, यूएसएआईडी और न्याय, आंतरिक, राज्य, होमलैंड सुरक्षा, परिवहन और स्वास्थ्य और मानव सेवा विभागों में काम किया है.
एक अन्य वक्ता ने ट्रंप के 2024 के रनिंग मेट जे.डी. वेंस के सीनेट कार्यालय में काम किया है. सुलिवन, विभाग के न्याय कार्यक्रमों के कार्यालय के प्रभारी पूर्व डीओजे कार्यवाहक सहायक अटॉर्नी जनरल, जो अरबों अनुदान निधि की देखरेख करते हैं, तीन अलग-अलग वीडियो में दिखाई देते हैं. लेविट, जो "द आर्ट ऑफ़ प्रोफेशनलिज्म" नामक एक प्रशिक्षण वीडियो में हैं, ने ट्रंप के पहले राष्ट्रपति पद के दौरान व्हाइट हाउस प्रेस कार्यालय में काम किया था और अब उनके पुनर्निर्वाचन अभियान के लिए राष्ट्रीय प्रेस सचिव हैं.
इस प्रोग्राम के केन्द्र में अब तक अप्रकाशित दर्जनों वीडियो हैं जिन्हें प्रो पब्लिका साइट ने प्रकाशित किया है.
परियोजना का एक प्रमुख घटक प्रेसिडेंशियल एडमिनिस्ट्रेशन अकादमी है, जिसमें 14 घंटे से अधिक की वीडियो सामग्री शामिल है, जिसे शासन रणनीतियों में भविष्य की नियुक्तियों को प्रशिक्षित करने और सरकारी नौकरशाही को नेविगेट करने के तरीके के लिए डिज़ाइन किया गया है. वीडियो में राजनीतिक सलाह से लेकर जलवायु परिवर्तन, लिंग पहचान और नस्लीय समानता जैसे विषयों पर अपना रूख स्पष्ट किया गया हैं. उदाहरण के लिए, एक रूढ़िवादी कार्यकर्ता बेथानी कोज़मा का तर्क है कि जलवायु परिवर्तन "लोगों को नियंत्रित करने की एक चाल" है, जबकि अन्य वक्ता सरकार में ट्रांसजेंडर पदों को समाप्त करने और पब्लिक स्कूलों से महत्वपूर्ण नस्ल सिद्धांत को हटाने का आह्वान करते हैं.
यह परियोजना सरकारी नीति और संरचना में आमूल परिवर्तन लागू करने की रणनीतियों पर भी जोर देती है, जैसे शिक्षा विभाग को समाप्त करना, मेडिकेयर को कम करना, डीओजे पर राष्ट्रपति के नियंत्रण का विस्तार करना और गर्भपात अधिकारों को सीमित करना. वीडियो में बोल रहे वक्ता, जिनमें से कई ने ट्रम्प के लिए काम किया है, राजनीतिक नियुक्तियों की भूमिकाओं को प्रबंधित करने, नौकरशाही से बचने और उदार विरोध के साथ संभावित संघर्षों से बचने के बारे में सलाह देते हैं. ऐसी ही एक सलाह है कि रूढ़िवादी आधार तक प्रभावी ढंग से पहुंचने के लिए रूढ़िवादी आउटलेट के पक्ष में मुख्यधारा के मीडिया को दरकिनार कर दिया जाए.
हालांकि ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से इस परियोजना से दूरी बना ली है, लेकिन इसके कई योगदानकर्ताओं के उनके प्रशासन से घनिष्ठ संबंध हैं, जिससे पता चलता है कि प्रोजेक्ट 2025 वास्तव में भविष्य के संभावित ट्रम्प प्रशासन के लिए जमीनी कार्य कर रहा है. आलोचकों का तर्क है कि परियोजना का नीतिगत एजेंडा सत्तावादी और चरमपंथी है, जबकि समर्थक इसे संघीय सरकार के नियंत्रण को फिर से हासिल करने और रूढ़िवादी प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए एक जरूरी प्रयास के रूप में देखते हैं. परियोजना के भीतर हाल के नेतृत्व परिवर्तनों के बावजूद, रूढ़िवादी नियुक्तियों का एक कैडर बनाने का इसका मुख्य मिशन बरकरार है.
उसी वीडियो में, कोज़मा अस्पष्ट लिंग निर्धारण की अवस्था को "बुराई" कहती हैं. एक अन्य वक्ता, केटी सुलिवन, जो ट्रम्प के तहत न्याय विभाग में एक कार्यवाहक सहायक अटॉर्नी जनरल थीं, राष्ट्रपति जो बिडेन के प्रशासन द्वारा कार्यकारी कार्यों पर निशाना साधती हैं, जिसने पूरे संघीय सरकार में लिंग सलाहकार पदों का सृजन किया. बिडेन ने एक आदेश में लिखा, लक्ष्य "लिंग या लिंग पहचान की परवाह किए बिना समान अधिकारों और अवसरों को आगे बढ़ाना" था. सुलिवन कहते हैं, "उस स्थिति को समाप्त किया जाना चाहिए, साथ ही सभी टास्क फोर्स, सभी वेबसाइटों से सभी इक्विटी योजनाओं को हटाया जाना चाहिए, और आंतरिक और बाहरी नीति दस्तावेजों और अनुदान आवेदनों में भाषा का पूर्ण पुनर्लेखन किया जाना चाहिए."
ट्रम्प ने प्रोजेक्ट 2025 से खुद को दूर करने की कोशिश की है, यह झूठा दावा करते हुए कि उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता और उन्हें "कोई पता नहीं है कि इसके पीछे कौन है." वास्तव में, उन्होंने हेरिटेज फाउंडेशन के अध्यक्ष केविन रॉबर्ट्स के साथ एक निजी जेट पर उड़ान भरी, जो प्रोजेक्ट 2025 का नेतृत्व करता है. और हेरिटेज फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में 2022 के भाषण में, ट्रम्प ने कहा, "यह एक शानदार समूह है और वे इस बात की नींव रखेंगे और विस्तार से योजना बनाएंगे कि हमारा आंदोलन क्या करेगा और आपका आंदोलन क्या करेगा जब अमेरिकी लोग हमें अमेरिका को बचाने के लिए एक विशाल जनादेश देंगे."
प्रशिक्षण वीडियो की समीक्षा से पता चलता है कि 36 में से 29 वक्ताओं ने ट्रम्प के लिए किसी न किसी क्षमता में काम किया है - उनकी 2016-17 की संक्रमण टीम में, प्रशासन में या उनके 2024 के पुनर्निर्वाचन अभियान में. ऐसा प्रतीत होता है कि ये वीडियो 2025 परियोजना के नेता पॉल डैन्स के दो सप्ताह पहले इस्तीफा देने से पहले रिकॉर्ड किए गए थे, और परियोजना की वेबसाइट पर उनका संदर्भ दिया गया है. हेरिटेज फाउंडेशन ने डैन्स के इस्तीफे के समय एक बयान में कहा कि वह परियोजना 2025 के नीति-संबंधी कार्य को समाप्त कर देगा, लेकिन "सभी स्तरों - संघीय, राज्य और स्थानीय - के नीति निर्माताओं के लिए एक कार्मिक तंत्र बनाने के लिए उसके सामूहिक प्रयास जारी रहेंगे."
“हिडन मीनिंग: द मॉन्स्टर्स इन द एटिक” शीर्षक वाला एक वीडियो, कथित वामपंथी कोड शब्दों और पक्षपाती भाषा पर 50 मिनट की चर्चा है, जिसके बारे में भविष्य के नियोक्ताओंं को पता होना चाहिए और उसे जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए. उस वीडियो में, कोज़मा कहती हैं कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने जलवायु परिवर्तन को वैश्विक स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा बताया है, जो, उनके अनुसार, यह दर्शाता है कि कैसे यह मुद्दा “संघीय सरकार के हर हिस्से में घुसपैठ कर चुका है.” फिर वह दर्शकों को बताती हैं कि वह जलवायु परिवर्तन को जनसंख्या नियंत्रण में संलग्न होने के लिए केवल एक आवरण के रूप में देखती हैं. “मैं उन लोगों के बारे में सोचती हूँ जो नहीं चाहते कि आप बच्चे पैदा करें क्योंकि”— यहाँ वह हवा में उद्धरण देती हैं — “पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है.” वह आगे कहती हैं, “यह लोगों को नियंत्रित करने के उनके अंतिम लक्ष्य का हिस्सा है.”
बाद में वीडियो में, ट्रम्प के अधीन पूर्व कार्यवाहक सहायक अटॉर्नी जनरल केटी सुलिवन, सार्वजनिक शिक्षा से तथाकथित क्रिटिकल रेस थ्योरी को हटाने की वकालत करती हैं, बिना यह बताए कि संघीय सरकार इसे कैसे पूरा करेगी. (प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पाठ्यक्रम आमतौर पर राज्य और स्थानीय स्तर पर निर्धारित किए जाते हैं, संघीय सरकार द्वारा नहीं.) सुलिवन कहती हैं, "इस देश के हर एक पब्लिक स्कूल में क्रिटिकल रेस थ्योरी और लिंग विचारधारा के हानिकारक सिद्धांतों को पाठ्यक्रम से हटा दिया जाना चाहिए." (फोन पर संपर्क करने पर, सुलिवन ने प्रोपब्लिका को अपने प्रेस प्रतिनिधि से संपर्क करने के लिए कहा और फोन काट दिया. प्रतिनिधि ने कोई जवाब नहीं दिया.)
प्रोपब्लिका को हासिल एक अलग वीडियो में, हेरिटेज फाउंडेशन के एक आर्थिक नीति विशेषज्ञ डेविड बर्टन, सूचना और विनियामक मामलों के कार्यालय नामक एक अस्पष्ट लेकिन प्रभावशाली एजेंसी के महत्व पर चर्चा करते हैं. ट्रम्प प्रशासन ने आर्थिक, राजकोषीय और पर्यावरणीय मुद्दों पर विनियमन को वापस लेने में मदद करने के लिए ओआईआरए का उपयोग किया. बिडेन के तहत, ओआईआरए ने नए नियमों की समीक्षा करने और उन्हें आकार देने में अधिक आक्रामक रुख अपनाया, जिसमें आवास भेदभाव से निपटने, तथाकथित बंदूकों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने और नए ईंधन लक्ष्य निर्धारित करने के प्रयास शामिल थे. प्रोजेक्ट 2025 वीडियो में बर्टन भविष्य के राजनीतिक नियुक्तियों से ओआईआरए में काम करने का आग्रह करते हैं और तर्क देते हैं कि कार्यालय को तथाकथित प्रशासनिक राज्य, यानी संघीय एजेंसियों पर लगाम लगाने के रूढ़िवादी लक्ष्य की सेवा में "अपने कर्मचारियों के स्तर में काफी वृद्धि करनी चाहिए" जो नए नियम बनाते और जारी करते हैं. बर्टन कहते हैं, "पूरी संघीय सरकार की नियामक कार्रवाइयों को पर्याप्त रूप से नियंत्रित करने के लिए पचास लोग पर्याप्त नहीं हैं." "ओआईआरए (OIRA) उन कुछ सरकारी एजेंसियों में से एक है जो अन्य एजेंसियों की नियामक महत्वाकांक्षाओं को सीमित करती है." (बर्टन ने एक संक्षिप्त साक्षात्कार में पुष्टि की कि वह वीडियो में दिखाई दिए और ओआईआरए के कर्मचारियों के स्तर का विस्तार करने का समर्थन किया.)
कमला हैरिस के नाना के गांव में खास हलचल नहीं!!
कुछ घंटों के बाद अमेरिका के चुनावी नतीजे भी आने शुरू हो जाएंगे. यह पता लग जाएगा कि कमला हैरिस कामयाब होती हैं या उनके प्रतिद्वंद्वी डोनल्ड ट्रंप? लेकिन हैरिस के पुरखों के गांव में कोई खास हलचल नहीं है. लोगों की सांसें रुकी पड़ी हों, ऐसी बात तो कतई नहीं है. तमिलनाडु का थुलेसिंद्रपुरम आमतौर पर शांत ही रहता है. "इंडियन एक्सप्रेस" ने इसी गांव के 80 वर्षीय एन. कृष्णमूर्ति के हवाले से कहा है कि कमला हैरिस अगर राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाती हैं, तब ही वे लोग खुशी मनाएंगे. चुनाव नतीजों के पहले प्रार्थनाओं के बारे में भी पक्की जानकारी नहीं है. एक्सप्रेस की इसी रिपोर्ट में कृष्णमूर्ति, जो स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त हैं, यह भी कहते हैं कि इस गांव से कमला हैरिस का कनेक्शन तब पता चला, जब वह उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनी गई थीं. "कमला के दादा यहां कुछ समय रहे थे, इसके बाद वे मद्रास और फिर अफ्रीका चले गए. उनकी मां का यहां सीमित संपर्क हो सकता है. वह शायद यहां आई हों, लेकिन कमला तो कभी नहीं," उन्होंने कहा.उन्होंने याद किया कि यह संबंध लगभग 15 साल पहले फिर से जीवित हुआ था, जब कमला की मौसी डॉ. सरला गांव आईं और कमला के नाम पर 5,000 रुपये दान किए, जिसके बाद उनका नाम एक मंदिर की शिला पर खुदवाया गया. जब हैरिस को बाइडन के चुनावी साथी के रूप में चुना गया, तो एक गांववाले ने उनका नाम देखा, जिससे उनके परिवार के बारे में दिलचस्पी जागी. "यह कोई 100 साल पुरानी कहानी है. थुलेसिंद्रपुरम गांव में कभी ब्राह्मणों के 40 परिवार रहते थे, लेकिन अब 10 से 15 बचे हैं. यदि कमला चुनाव जीत जाती हैं तो मुमकिन है कि गांव में कुछ पटाखे चलाए जाएं, क्योंकि कइयों के पास दिवाली का स्टॉक बचा है," कृष्णमूर्ति ने कहा.
कमला हैरिस के नाना के गांव में भले ही चुनाव नतीजों को लेकर खास उत्सुकता न हो, पर सोशल मीडिया पर अपनी-अपनी शैली में उनका समर्थन करने वाले दिखाई दे रहे हैं. मसलन, पीटीआई ने X पर एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें नेवादा लास वेगास की रहने वाली एक महिला कह रही है," मैं संयोग से भारत में हूं, इसलिए कमला हैरिस के नाना के गांव आई हूं. क्योंकि यहां पूजा होने वाली है. हमारे लिए जीत बहुत जरूरी है. हम अमेरिका के लिए कई सारी अच्छी चीजें चाहते हैं. देखें . और ऑस्ट्रेलियन ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन ने कुछ इस तरह से किया इसका कवरेज
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शाहिद फरीदी ने तंज करते हुए पान मसाला ब्रांड कमला पसंद को जोड़ते हुए ट्विटर या एक्स पर कहा - “ब्रेकिंग न्यूज: डोनल्ड ट्रम्प ने भारतीय सेलिब्रिटीज पर अमेरिकी चुनाव में दखलंदाजी का आरोप लगाया”
चलते - चलते: अब कभी नहीं फूटेगा 'बिहार की कोकिला' के कंठ से संगीत!
पद्मभूषण और पद्मश्री से सम्मानित 'बिहार की कोकिला' नाम से मशहूर गायिका शारदा सिन्हा नहीं रहीं. 72 साल की उम्र में शारदा सिन्हा ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में आख़िरी सांस ली. उन्होंने छठ गीतों को लोकप्रियता दी. इसे एक संयोग ही कहिये कि उनकी मौत की खबर ऐसे वक़्त में आयी है जब यूपी और बिहार में छठ पर्व मनाया जा रहा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताते हुए कहा है, ''शारदा सिन्हा के छठ महापर्व पर सुरीली आवाज़ में गाए मधुर गाने बिहार और उत्तर प्रदेश समेत देश के सभी भागों में गूंजा करते हैं. उनके निधन से संगीत के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है.''
शारदा सिन्हा के कुछ मशहूर गीत:
7- सामा खेले चलली भौजी संग सहेली
शारदा सिन्हा के कुछ अन्य लोकप्रिय गीत आप इस Jukebox में भी सुन सकते हैं.
आज के लिए इतना ही. आप बता सकते हैं अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी हमें. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ.
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