8 नवंबर, 2024: कश्मीर असेंबली में हाथापाई, कनाडा की आँच आस्ट्रेलिया में, तालिबान से जुड़ते तार, पटना जाना बैंकाक से महंगा, महाराष्ट्र की बदलती बिसात, दीवाली पर बाज़ार फीका, ट्रम्प का क्या करे दुनिया..
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
सुर्खियां :
जम्मू-कश्मीर की नई सरकार की चुनौतियाँ कम नहीं हो पा रही हैं. विधानसभा सत्र के दौरान गुरुवार को विधायकों के बीच जमकर हाथापाई हुई. दरअसल, लेंगेट से विधायक खुर्शीद अहमद शेख ने सदन में आर्टिकल 370 की वापसी का बैनर लहराया. बैनर पर लिखा था, 'हम अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली और सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई चाहते हैं. भाजपा विधायक और विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने इसका विरोध किया. विपक्षी सदस्य नारेबाजी करने लगे. बस फिर क्या था नेताजी ने एक दूसरे का कॉलर पकड़ लिया और चलने लगे लात-घूंसे और विधानसभा बन गई मछली बाज़ार... बिलकुल ऐसा ही हुआ तभी तो स्पीकर को कहना ही पड़ गया कि भैया ये विधानसभा है, कोई मछली बाज़ार नहीं!
ऑस्ट्रेलिया ने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर से कनाडा में एक सिख के मारे जाने में भारत का हाथ होने को लेकर अपनी चिंता साझा की है. वहाँ की विदेशमंत्री पेनी वोंग ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले सिख समुदाय के लिए उनका साफ संदेश है कि ऑस्ट्रेलिया में सभी लोगों को सुरक्षित और सम्मानित रहने का अधिकार है चाहे वे जो भी हों. वोंग ने कहा कि हम कनाडा की न्यायिक प्रक्रिया की इज़्जत करते हैं.. हमने अपनी राय भारत को बता दी है कि न्याय व्यवस्था, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सभी देशों की संप्रभुता को लेकर हमारी एक सैद्धांतिक स्थिति है, जो जैसा कि आप हमसे उम्मीद करते हैं, हमने भारत से साझा की है. जयशंकर ने कहा कि कनाडा ने अपने आरोपों को लेकर कोई सबूत नहीं दिये. इस बीच कनाडा के ब्रैम्पटन में एक हिंदू मंदिर के पुजारी को सस्पेंड कर दिया गया क्योंकि वह 3 नवम्बर को हुई झड़प के दौरान ‘हिंसक उत्तेजना’ फैला रहा था. हिंदू सभा मंदिर ने यह फैसला अपने बयान में जाहिर किया, जिसमें पुजारी राजेन्द्र प्रसाद की विवादित प्रदर्शन में कथित भूमिका का हवाला था. इस बयान में हिंदू सभा मंदिर के अध्यक्ष मधुसूदन लामा ने कहा कि रविवार की घटना के बाद मंदिर फौरी कार्रवाई कर रहा है. उधर भारत में भारतीय काउंसलेट ने लाइफ सर्टिफेक्ट जारी करने के लिए कैम्प इस बिना पर रद्द कर दिये हैं कि सुरक्षा एजेंसियां इसके आयोजकों को जरूरी सुरक्षा दे पाने में असमर्थ हैं. भारत के विदेश मंत्रालय के अधिकारी जेपी सिंह इस बीच कई तस्वीरों में काबुल में तालिबान के ओहदेदारों से मिलते दिखलाई दिये.
21 अक्टूबर 2024 को भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने घोषणा की कि भारत-चीन सीमा विवाद सुलझ गया है. इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार ने कोई आधिकारिक बयान या मीडिया ब्रीफिंग नहीं की. मिसरी ने बस यह बताया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्त की व्यवस्था पर समझौता हो गया है. हालांकि, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे "सकारात्मक विकास" कहा और आगे की प्रक्रिया के लिए बैठकें होने की बात कही. यह विवाद 2020 से जारी था, जिसमें कई भारतीय सैनिकों की जान भी गई थी. हालांकि, 'द कैरेवन' के लिए की गयी सुशांत सिंह की रिपोर्ट बताती है कि भारत-चीन सीमा विवाद का हल भारत के बजाय प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक हितों के लिए अधिक लाभकारी हो सकता है.
मप्र के खुरई से भाजपा विधायक और पूर्व गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कॉल डीटेल्स निकालकर पुलिसकर्मियों पर दबाव बनाने का आरोप लगाया है. उन्होंने उप मुख्यमंत्री और सागर जिले के प्रभारी मंत्री राजेंद्र शुक्ला के सामने यह मुद्दा उठाया. बुधवार को जिला योजना समिति की बैठक में ये मुद्दा उस वक़्त गरमा गया जब पूर्व गृह मंत्री के आरोप के जवाब में एसपी ने कहा कि ये हमारे अधिकार में नहीं है. इस पर भूपेंद्र सिंह भड़क गए और उन्होंने दो टूक कह दिया कि सफाई मत दीजिए, मैं पुलिस की कार्यशैली को अच्छे से जानता हूँ.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुछ छात्रों ने जेएन मेडिकल कॉलेज में प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति रतन टाटा के सम्मान में आयोजित एक श्रद्धांजलि सभा का विरोध किया. उन्होंने टाटा कंपनी पर गाजा में हो रहे कथित जनसंहार में शामिल होने का आरोप लगाया. छात्र कार्यक्रम में घुसकर विरोध करना चाहते थे, लेकिन प्रॉक्टोरियल टीम ने उन्हें रोक दिया. इस दौरान नोक-झोंक भी हुई. छात्र हाथों में तख्ती लिए हुए थे, जिन पर लिखा था कि रतन टाटा इजरायल को रक्षा उपकरण आपूर्ति करने के लिए जिम्मेदार थे और इस वजह से गाजा में बच्चों की जान चली गई.
एक साल पहले अख़बारों ने जम्मू कश्मीर में कीमती धातु लीथियम का भंडार ढूंढ लेने की खबर को प्रमुखता से छापा था, लेकिन अब ये भंडार खयाली पुलाव जैसा साबित हो रहा है. भारत ने पिछले साल कश्मीर में एक बड़े लीथियम भंडार की खोज की घोषणा की थी, जिससे देश की ऊर्जा आवश्यकताओं में आत्मनिर्भरता की उम्मीद बढ़ी थी. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस खोज पर अत्यधिक आशावाद था और लिथियम के व्यावसायिक उत्पादन में कई कठिनाइयां हैं, जैसे कि पर्यावरणीय चिंताएँ और तकनीकी चुनौतियाँ. लीथियम की खोज भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बाज़ार के लिए राहत वाली खबर थी पर अब मामला मुश्किल लग रहा है.
राजसमंद जिले के भीम थाना क्षेत्र में जातिगत भेदभाव की एक गंभीर घटना सामने आई है, जहाँ एक अनुसूचित जाति (एससी) के सालवी परिवार को अंतिम संस्कार करने के दौरान ऊंची जाति के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा. द मूकनायक में प्रकाशित खबर के मुताबिक दलित परिवार को प्रशासन द्वारा आवंटित श्मशान भूमि का उपयोग करने से रोके जाने के बाद तनाव उत्पन्न हो गया. पुलिस हस्तक्षेप के बावजूद स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. पुलिस की दखल, सख्ती और समझाईश के बाद जाब्ते की मौजूदगी में शव को दफनाया गया. इस मामले में एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है.
डिजिटल इकोनॉमी पर इंटरनेट शटडाउन का साया: मणिपुर के कई सारे दुख हैं उनमें से एक है इंटरनेट शटडाउन. मणिपुर में लगातार इंटरनेट शटडाउन से व्यवसाय, शिक्षा और डिजिटल विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट बंद होने से डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों में रुकावट आती है और निवेशक भी हिचकिचाते हैं. इस राज्य में टेक हब बनने के लिए लगातार इंटरनेट सुविधा और एक डिजिटल-हितैषी वातावरण की जरूरत है, जो कि युवाओं के लिए दुर्लभ सा हो गया है.
पटना जाने से सस्ता हुआ बैंकॉक पहुंचना! कोलकाता से पटना, दरभंगा, रांची या गोरखपुर जैसे शहरों के लिए छठ पूजा के मौसम में उड़ानें महंगी हो गई हैं. कोलकाता में बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग रहते हैं, जिनकी घर वापसी के कारण हवाई यात्रियों की मांग बढ़ जाती है. निजी उड़ान कंपनियों ने इस मौके का फायदा उठाया और टिकट की कीमतें आसमान छूने लगीं. कई शहरों से तो पटना पहुँचना, भारत से बैंकॉक पहुँचने से भी ज्यादा महंगा हो गया.
महाराष्ट्र तय करेगा- मोदी खुद के बॉस हैं या नहीं!
राजेश चतुर्वेदी
23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने वाले हैं और सभी की नज़रें नतीजों पर हैं. इस परिणाम से यह तय होगा कि आने वाले महीनों और वर्षों में देश की राजनीति का रुख क्या रहने वाला है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हरियाणा में अनपेक्षित जीत से बूस्टर डोज़ मिला है, वहीं अतिआत्मविश्वास से भरी कांग्रेस अच्छा ख़ासा मौका गंवा चुकी है. यदि भाजपा महाराष्ट्र और झारखंड में एकतरफा जीत हासिल करती है, तो विपक्ष फिर से दयनीय हालत में पहुँच जाएगा. विपक्ष के नेता राहुल गांधी को यह समझने के लिए संघर्ष करना होगा कि क्या गलत हुआ? विपक्षी दलों की यह सोच गहरी निराशा में बदल जाएगी कि मोदी का समय बीत चुका है और विपक्ष के इंडिया गठबंधन को फिर से ताज़ा हवा की जरूरत होगी.
डेक्कन क्रॉनिकल में सुनील गाताडे ने लिखा है कि कांग्रेस पार्टी एकता का नारा दोहराती रहती है, लेकिन अपने सहयोगियों को खुश रखने के लिए उसे कोई रणनीति नहीं मिल पा रही है. अगले साल की शुरुआत में दिल्ली और अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों के परिणाम भारतीय राजनीति की दिशा तय करेंगे और यह दिखाएंगे कि क्या कांग्रेस पार्टी अपने सहयोगियों के साथ मजबूत गठबंधन बना भी सकती है अथवा नहीं. पिछले तीन लोकसभा चुनावों में यह पहली मर्तबा हुआ कि मोदी भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं दिला पाए, इसलिए उनके लिए यह एक बड़ी परीक्षा है. उन्हें इस महीने यह साबित करना होगा कि संसदीय चुनाव में उनकी पार्टी का औसत प्रदर्शन महज एक अपवाद था और वह फिर से जीत की राह पर हैं.
झारखंड में, भाजपा को लगता है कि उनके पास जीतने वाला गठबंधन है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले गठबंधन इंडिया के साथ चल रही लड़ाई में उन्हें ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. यह चुनाव परिणाम भारतीय राजनीति की दिशा तय करेंगे और यह दिखाएंगे कि क्या मोदी अपने सहयोगियों के साथ मजबूत गठबंधन बना सकते हैं या नहीं.
महाराष्ट्र में विपक्ष ने लोकसभा चुनाव में गहरी पैठ बनाई है, जिससे यह राज्य भाजपा के लिए जीतना मुश्किल हो गया है. लोकसभा की 48 सीटों में से 31 पर विपक्ष की जीत प्रधानमंत्री के लिए निजी तौर पर राजनीतिक झटके से अधिक है. महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने 18 रैलियों को संबोधित किया, लेकिन भाजपा-आधिकृत महायुति को केवल 17 सीटें मिलीं, जो पिछले आम चुनावों के मुकाबले 41 सीटों से 24 कम हैं. महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के नतीजे ब्रांड मोदी को खंडित करते हैं और प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री अमित शाह द्वारा की गई सियासत को गलत ठहराते हैं.
आखिरी समय में बड़े-बड़े लाभ देने के अलावा महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने कुछ खास नहीं किया है. अगर विपक्षी महा विकास आघाड़ी अपनी रणनीति सही बनाती है, तो यह सरकार के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है. हालांकि मोदी-शाह की जोड़ी विपक्ष के वोटों को बांटने के लिए हर संभव तरीके अपना रही है और उन्हें इसके लिए संसाधनों की कमी नहीं है. महा विकास आघाड़ी में सीट बंटवारे को लेकर दिखी परेशानी विपक्षी दलों के अंदरूनी मतभेदों को दर्शाती है, जो यह महसूस करते हैं कि उन्हें जीतने का मौका है.
सही है या गलत, पर महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में यह महसूस किया जा रहा है कि विपक्ष की महा विकास आघाड़ी में उद्धव ठाकरे की शिव सेना और सत्तारूढ़ महायुति में अजीत पवार की एनसीपी तमाम वजहों से अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाली हैं. ऐसे में शरद पवार का सितारा ऊंचाई पर है, जिससे वह अपने भतीजे को नियंत्रित रख सकते हैं. राज ठाकरे की अकेले चुनाव लड़ने की योजना और प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी की रणनीति सरकार की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जो विपक्ष के वोटों को काटने के लिए है. “वोट कटवा” की भारी मांग है. ऐसा कहा जाता है कि ईडी और सीबीआई भी ऐसे कई खिलाड़ियों को “सही” रास्ते पर रखने में मदद कर रहे हैं.
महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम का राष्ट्रीय महत्व होगा. यह तय करेगा कि नरेंद्र मोदी खुद फिर से अपने बॉस हैं या नहीं. हरियाणा में हैट्रिक से उन्हें लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलने के बाद फिर से आत्मविश्वास जरुर मिला है, लेकिन हरियाणा को असामान्य माना गया है. कुलमिलाकर महाराष्ट्र का चुनाव किसी के लिए भी केकवाक नहीं है.
सुले बोल रही हैं, अजीत पवार के साथ लड़ाई असली
इस बीच सांसद सुप्रिया सुले ने कहा है कि अजित पवार के साथ लड़ाई असली है और समझौते की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि उन्होंने अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ी थी. बारामती लोकसभा सदस्य सुप्रिया सुले ने “द हिंदू पोल एरीना” में यह भी कहा कि शरद पवार राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे. अजित पवार की ओर से समझौते की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर सुप्रिया ने कहा कि ऐसे प्रयास केवल मतदाताओं के साथ होंगे.
सुप्रिया सुले ने कहा, "शरद पवार राजनीति में जीने के लिए खाते हैं, पीते हैं और सांस लेते हैं. यह उनका टॉनिक है. पवार साहब ने दरअसल चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है. सुले ने आगे कहा, "अजित पवार चाहते थे कि शरद पवार संन्यास ले लें, क्योंकि वे गठबंधन चाहते थे, जिसे शरद पवार करने के लिए तैयार नहीं थे".
जरंगे का यू टर्न क्या कमाल करेगा?
इधर मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरंगे पाटिल के उम्मीदवार नहीं उतारने के फैसले से महाराष्ट्र के चुनावी समीकरण रोचक हो गए हैं. पाटिल के इस फैसले से भाजपा की संभावनाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं. यह एक आश्चर्यजनक यू-टर्न है जिसकी विभिन्न लोगों द्वारा अलग-अलग व्याख्या की जा सकती है. इस फैसले से पहले, पाटिल ने महायुति गठबंधन के खिलाफ "बदला" लेने की कसम खाई थी, जिसने माराठा समुदाय को आरक्षण देने से इनकार कर दिया था. उन्होंने जलना जिले के अंतरवाली-सराती में पत्रकारों को बताया, "मैंने अपने समुदाय को बता दिया है कि यह हमारा परिवारिक व्यवसाय नहीं है; हमें गलत दिशा में ले जाया जा सकता है."
लॉरेंस बिश्नोई कैसे बन रहा है सोशल मीडिया का सितारा
लॉरेंस बिश्नोई भारत के सबसे खतरनाक गैंगों में से एक का मास्टरमाइंड कैसे बना और इसका भविष्य पर क्या असर हो सकता है? कैसे लॉरेंस बिश्नोई इतना बड़ा गैंगस्टर बन जाता है? 'द वायर' के लिए आलीशान जाफरी ने पड़ताल की है. इस पर चिंताएं उठती हैं कि कानून प्रवर्तन कैसे ऐसे अपराधियों से मुकाबला करे जो सिस्टम में काम करने में माहिर हो चुके हैं. जब सोशल मीडिया पर गैंगस्टर "कूल" बन जाते हैं, तो जनता की प्रतिक्रिया क्या होती है? क्या यह सिर्फ बिश्नोई तक सीमित है या कई अन्य लोग भी इसी रास्ते पर हैं? ये सवाल भारत में अपराध और उसके प्रति सार्वजनिक नजरिए पर गहरा प्रभाव डाल रहे हैं और अब इन्हीं सवालों की पड़ताल देखिए ये रिपोर्ट…
दीवाली में उठा नहीं बाज़ार, खपत में 50% की गिरावट
जापानी ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने कहा है कि इस साल त्योहारों के दौरान खपत की विकास दर 15% तक घटकर आधा हो गई है. हालांकि, यह आंकड़ा विश्लेषकों द्वारा किए गए "अनुमानित आकलन" पर आधारित है. 2023 में यह आंकड़ा 32% और 2022 में 88% था, जो आर्थिक मंदी के संकेत के रूप में देखा जा सकता है. नोमुरा के अनुसार, ‘उपलब्ध आँकड़ों से पता चलता है कि त्योहारों के मौसम में रिटेल (ऑफलाइन और ऑनलाइन) बिक्री में वृद्धि हुई है, लेकिन समग्र विकास दर धीमी रही है." हालांकि, उम्मीद है कि नवंबर और दिसंबर में आने वाला शादी का मौसम कमजोर बिक्री को कुछ राहत और बढ़ावा दे सकता है.
रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण इलाकों और दूसरे / तीसरे पाये के शहरों में त्योहारों की मांग स्थिर रही, वहीं महानगरों में मांग कमजोर रही, जिससे समग्र त्योहारों के खपत पर मिलेजुले प्रभाव पड़े. नोमुरा ने कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स द्वारा जताए गए अनुमान को भी उद्धृत किया, जिसमें बताया गया कि 2024 में खुदरा बिक्री की वृद्धि 13.3% तक घटने की संभावना है, जबकि पिछले साल यह 36.4% थी. ब्रोकरेज ने बताया कि वाहन बिक्री में 14% की वृद्धि के बावजूद, पैसेंजर व्हीकल और मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहन के आंकड़े 2024 में कमजोर रहे हैं.
हाल ही में, वित्त मंत्रालय ने भी शहरी मांग में धीमी वृद्धि का संकेत दिया था. पैसेंजर वाहन बिक्री में गिरावट और एयरलाइंस यात्री ट्रैफिक में सुस्ती जैसी अन्य संकेतक भी कमजोर हो रहे हैं. कई एफएमसीजी कंपनियों ने भी हाल के समय में शहरी मांग की कमजोरी को लेकर चिंता जताई है. नोमुरा को लगता है कि शहरी मांग की यह कमजोरी जारी रहेगी.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि रुचि और खपत में जो वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में देखी गई, वह शहरी क्षेत्रों से बेहतर रही. एफएमसीजी बिक्री में पहली तिमाही में ग्रामीण क्षेत्रों में 5.2%. की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि पिछले साल यह 4% थी. इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्रों में ऑटो बिक्री में भी 2% की वृद्धि हुई है, विशेषकर तीन पहिया और पैसेंजर व्हीकल्स की बिक्री में वृद्धि देखी गई. नोमुरा ने यह भी कहा कि महामारी के बाद जो इकट्ठा हुई डिमांड थी, अब वह खत्म होती जा रही है.
तेलंगाना में जाति जनगणना शुरू
तेलंगाना में जाति जनगणना शुरू तो हो गई है, पर लोगों को यह मुद्दा कितना अपील करता है, अभी साफ नहीं हुआ है. ख़ास तौर पर कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा बना कर लोकसभा में उतरी थी और इसकी हवा भी बनी थी, पर राज्यों के चुनावों में खास तौर हिंदी पट्टी में इसका असर नहीं हुआ. यह भी बहुत साफ नहीं है कि जाति जनगणना से होगा क्या? किस तरह से आबादी के मुताबिक समुदायों को उनका हक और हिस्सा मिलेगा. बहरहाल, अगले तीन दिनों तक गणनाकार घरों पर स्टिकर चिपकाएंगे और सर्वेक्षण 9 नवंबर से शुरू होगा. इस सर्वेक्षण का उद्देश्य राज्य के प्रत्येक घर की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, जाति और शैक्षिक स्थिति का आकलन करना है. पिछड़े वर्ग कल्याण मंत्री पोनम प्रभाकर ने बुधवार को हैदराबाद के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) कार्यालय में तेलंगाना के घर-घर सर्वेक्षण की शुरुआत की. मंत्री ने बताया कि पिछली जाति जनगणना 1931 में हुई थी. हालांकि 2021 में टाल दी गई जनगणना अब केंद्र सरकार 2025 में करने और उसके आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा नये सिरे से तय करने की बात कर रही है, पर उसमें जाति जनगणना की बात साफ नहीं है.
हरियाणा, अमेरिका के चुनावों में क्या समानता है
हरियाणा के विधानसभा और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों के बीच क्या समानता है? हालांकि दोनों के बीच क्या ही तुलना की जा सकती है पर फिर भी.
ओपिनियन और एक्जिट पोल्स दोनों जगह गलत साबित हुए.
मुख्यधारा का मीडिया और चुनावी विशेषज्ञों का सारा ज्ञान औंधे मुँह गिरा.
जाति, समुदाय, क्षेत्र, डेमोग्राफिक, लोगों का गुस्सा, आंदोलन कुछ भी वोट दिलाने में तो काम आया पर जीत-हार तय करने में नहीं.
दोनों चुनावों के बाद मीडिया, सर्वेक्षक, विशेषज्ञ बताने लगे कि ऐसा नहीं वैसा हो गया.
लोकतंत्र की जमीन कहाँ खिसकी, उसके नियम कहाँ कैसे बदल गये, पता ही नहीं चला.
फिर सब बाद में पूछ रहे हैं कि ये कैसे हो गया? कुछ लोग हंस रहे होते हैं, कुछ सर पीट रहे होते हैं. अगले चुनावों तक.
लोकतंत्र में ये एक हाल का ट्रेंड है. सिद्ध तौर पर जो कमज़ोर और जनविरोधी उम्मीदवार समझे जाते हैं, जीत रहे हैं.
बहरहाल, कमला हैरिस ने बहुत ही शानदार चुनाव लड़ा. सिवा इजराइल के फिलीस्तीन में जनसंहार के मुद्दे पर हैरिस की बैटिंग मजबूत रही. हालांकि ट्रम्प के बयानों में इस्लामोफोबिया साफ दिखलाई देता रहा. हैरिस की डेमोक्रेटिक पार्टी का कैम्पेन सबको साथ लेकर चलने को लेकर था, जिसमें औरतों और मध्य वर्ग की खासी परवाह थी. वह पूरे वक्त मुद्दों को लेकर केन्द्रित रही. ट्रम्प के साथ हुए प्रेसिडेंशियल डिबेट में हैरिस ने ट्रम्प को इस कदर धोया, कि अगली बार डिबेट में वह आने से ही मुकर गया. इसके मुकाबले ट्रम्प का चुनाव प्रचार नफरत के जहर, विभाजनकारी, घिनौना और दुनिया भर की बकवास से भरा हुआ था. पर अड़तालीस घंटे भी नहीं हुए हैं कि अमेरिका अब ट्रम्प को सही ठहरा रहा है.
लोकतंत्र इसलिए एक दिलचस्प व्यवस्था है. आखिरकार अमेरिका ने ट्रम्प को आँख खोल कर दोबारा चुना है. उनके भी कुछ अरमान होंगे. पर इस सबका दुनिया पर क्या असर पड़ेगा, वह देखने की बात है.
पहले तो यह देखना चाहिए कि ट्रम्प की जीत पर कौन लोग खुश हैं ? भारत के प्रधानमंत्री की झूठी बधाई न सिर्फ वाइरल हो गई, बल्कि एक चैनल ने उसे सच मान कर प्रसारित भी कर दिया. हालांकि आधिकारिक तौर पर बधाई प्रधानमंत्री ने दी, पर उनके अलावा लपक कर बधाई देने वालों में बीबी नेतन्याहू, व्लादिमीर पुतिन, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान, तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तय्यिप एरदोगान शामिल थे और ब्राजील के निवर्तमान राष्ट्रपति जायर बोलसानारो.
मोदी जी को छोड़ दें तो ज्यादातर नेताओं को तानाशाही प्रवृत्तियों वाले कड़क राजनेता के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने अपने देश के लोगों के वोट पाने के लिए डर और नफरत, धर्मांधता, काल्पनिक गौरवशाली अतीत, अल्पसंख्यक विरोधी, मीडिया पर शिकंजा और क्रोनी पूंजीवाद का सहारा लिया है. इनमें से बोलसीनारो अब सत्ता से बाहर हैं और उन्होंने भी ट्रम्प के नक्शे कदम पर राजधानी पर लोगों से हमला करवा दिया था.
पुतिन के रूस के बारे में तो कहना ही क्या, जब यूक्रेन पर हमला पिछले 2022 को हुआ था और अभी भी चल रहा है. पुतिन के खिलाफ खड़े होने वाले नेता नेवाल्नी की जेल में रहस्यमय मौत हुई. नेतन्याहू के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में फिलीस्तीन के खिलाफ नरसंहार के मामले चल रहे हैं, और इस समय तेल अवीव में सड़क पर उनके खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं. तुर्की और हंगरी का भी यही हाल है. लोकतंत्र का ये नया सांचा है, जिसे खास तौर पर दक्षिणपंथी विचारधारा ने मुकम्मल कर लिया है.
ट्रम्प के चुने जाने से पूरी दुनिया के लोकतंत्र पर फर्क पड़ेगा. और सिर्फ लोकतंत्र पर नहीं-
दुनिया यह देखना चाहती है कि ट्रम्प रूस को यूक्रेन से कैसे बाहर कर सकते हैं या फिर जंग में यूक्रेन की जीत कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं.
यह भी इजराइल का फिलीस्तीन के गाज़ा में नरसंहार, लेबनान पर हमला, और मध्य-पूर्व में बढ़ते तनाव को ट्रम्प किस तरह से प्रभावित करेंगे. इन दोनों बातों पर हजारों लोगों की जिंदगियाँ तात्कालिक तौर पर निर्भर हैं.
ट्रम्प ने ये चुनाव ही शरणार्थियों के साथ सख्ती से पेश आने की बात पर जीता है. यह नीति विकासशील देशों से शरणार्थियों के प्रवाह को प्रभावित कर सकती है.
ट्रम्प फिर से अपनी "अमेरिका फर्स्ट" नीति को लागू करेंगे, जिससे वैश्विक सहयोग और मल्टीलेटरल संगठनों (जैसे यूएन, नाटो, पेरिस जलवायु समझौता) के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता कम हो सकती है.
ट्रम्प पहले भी नाटो देशों से यह मांग कर चुके हैं कि वे अपनी सुरक्षा के लिए ज्यादा खर्च करें और यह दबाव जारी रह सकता है.
ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान कई देशों के साथ टैरिफ वॉर छेड़े, विशेष रूप से चीन के साथ. आयात कर बढ़ाकर अमेरिका के स्थानीय उद्याेग को बचाना ट्रम्प अभियान का बड़ा हिस्सा था, जिसपर ज्यादातर अर्थशास्त्री असहमत थे. अब वह होगा. टैरिफ के मामले में वह भारत पर भी तंज करते रहे हैं. वह करों में कटौती, व्यापार समझौतों में बदलाव, और आंतरिक उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति अपना सकते हैं. लेकिन, इसके साथ ही वह कर्ज और आर्थिक असमानताओं को बढ़ा सकते हैं.
ट्रम्प की व्यापार नीति चीन के खिलाफ सख्त रही थी, और यह नीति फिर से चीन के साथ अमेरिका के व्यापार संबंधों में टकराव पैदा कर सकती है. इस संघर्ष से वैश्विक सप्लाई चेन्स और उत्पादकता पर असर पड़ सकता है.
ट्रम्प ने पहले पेरिस जलवायु समझौते से हाथ झाड़कर अमेरिका को बाहर कर लिया था, और आशंका है कि वह ऐसा फिर से कर सकते हैं. यह वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.
रूस और चीन के साथ संबंध अब अमेरिका के रिश्ते कैसे होंगे, यह देखने वाली बात है. यह अमेरीकियों और पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकता है जो उन्हें प्रतिद्वंद्वियों की तरह देखते हैं.
ट्रम्प के रुख से ईरान के साथ तनाव बढ़ सकता है, जबकि सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के साथ अमेरिका के रिश्ते और मजबूत हो सकते हैं. पिछली बार ट्रम्प का पूर्व में ईरान के साथ न्यूक्लियर समझौते से बाहर निकलने का निर्णय विवादास्पद था. उनके फिर से राष्ट्रपति बनने पर, ईरान, उत्तर कोरिया, और अन्य न्यूक्लियर पावर के साथ अमेरिका के नीतिगत दृष्टिकोण में बदलाव आ सकता है.
ट्रम्प लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर सकते हैं. जिससे लोकतांत्रिक मूल्य और न्यायपालिका पर सवाल उठ सकते हैं. इसका असर दुनिया भर के लोकताँत्रिक देशों पर पड़ेगा.
अमेरिका के लोग किस तरह से इस सदमे से गुजर रहे हैं उसके लिए जिमी किमेल का यह शो दिलचस्प है. किमेल पूरे चुनाव के दौरान पानी पी पी के ट्रम्प की आलोचना करते रहे और अब भी कर रहे हैं. ट्रम्प ने किमेल के खिलाफ पोस्ट भी किया था. पर किमेल यहाँ ट्रम्प से कह रहे हैं कि अगर उन्हें जेल भेजा जाए तो कमला हैरिस को समर्थन देने वाली टेलर स्विफ्ट के साथ:
जर्मनी में सियासी उलटफेर
जर्मनी में गजब का राजनीतिक तमाशा चल रहा है. दरअसल चांसलर ओलाफ शोल्ज़ ने अचानक अपने वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडनर को बर्खास्त कर दिया. बस फिर क्या था! क्रिश्चियन लिंडनर सरकार से बाहर आते ही अपने समर्थकों को भी साथ ले आये और जर्मनी की गठबंधन सरकार टूट गई. इससे यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था राजनीतिक अस्थिरता में फंस गई है. इस कदम से तीन-पक्षीय गठबंधन में महीनों से चल रहे कड़वे अंतर्विरोध सामने आए, जिसने सरकार की लोकप्रियता घटाई. लिंडनर की बर्खास्तगी के कुछ घंटों बाद, एफडीपी ने अपने बाकी मंत्रियों को भी कैबिनेट से हटा लिया, जिससे यह कमजोर गठबंधन समाप्त हो गया.
जमानती वारंट जारी होने के बाद बोली प्रज्ञा ठाकुर- 'जिन्दा रही तो जाऊंगी कोर्ट'
मालेगांव ब्लास्ट मामले में अदालत ने भाजपा नेता प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है.अदालत ने यह वारंट इसलिए जारी किया क्योंकि प्रज्ञा ठाकुर बार-बार पेशी के आदेश का पालन नहीं कर रही थीं. भाजपा नेता प्रज्ञा ने इसके बाद X पर लिखा- कांग्रेस का टॉर्चर सिर्फ ATS कस्टडी तक ही नहीं मेरे जीवन भर के लिए मृत्यु दाई कष्ट का कारण हो गए. ब्रेन में सूजन, आँखों से कम दिखना, कानो से कम सुनना, बोलने में असंतुलन स्टेरॉयड और न्यूरो की दवाओं से पूरे शरीर में सूजन एक हॉस्पिटल में उपचार चल रहा है. जिंदा रही तो कोर्ट अवश्य जाउंगी. पूर्व में भी प्रज्ञा ठाकुर का कोर्ट की पेशियों में न जाने को लेकर सूचनाएं आती रही हैं और हर दफा उनकी सेहत का हवाला दिया गया, लेकिन कई दफा उन्हें पूर्व में सार्वजानिक कार्यक्रमों में क्रिकेट खेलते और गरबा करते हुए देखा गया है.
झुंड से बिछड़कर बाघ की सरहद में दाखिल हुआ हाथी का बच्चा गांव वालों ने बचाया
मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में 10 हाथियों की मौत के बाद, दो साल की मादा हाथी अपनी मां की तलाश में 7-8 दिन तक हरे-भरे पहाड़ों, खेतों और गांवों में भटकती रही. उसकी माँ उन 10 हाथियों में से एक थी, जिन्होंने फंगस संक्रमित कोदो अनाज खाने के कारण जान गंवाई थी. हाथी का बच्चा थका हुआ था और जब जोर-जोर से वो अपने झुंड को ढूंढते हुए चिल्लाने लगा, तब गांववालों का ध्यान उस पर गया. हाथी के बच्चे को 70-80 किमी ट्रैक करने के बाद बाघों के इलाके से रेस्क्यू किया गया है.
गर्मी ने निगले दुनिया के 500 ट्रिलियन घंटे!
आप अक्सर सुने होंगे कि हीटवेव से लोगों की मौत हो गई, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यही हीट वेव लोगों की जान ही नहीं आर्थिकी पर भी संकट खड़े करती है. साल 2023 में अत्यधिक गर्मी के कारण दुनिया भर में 500 ट्रिलियन (खरब) से अधिक कार्य घंटे खो गए. विशेष रूप से कृषि, निर्माण और बाहरी क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों पर इसका गंभीर असर पड़ा. गर्मी के प्रभाव ने उत्पादकता में गिरावट और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को जन्म दिया, जिससे अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ा. यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के कारण श्रमिकों पर बढ़ते दबाव को उजागर करता है.
'पेटीकोट कैंसर'!
होता तो कम है, पर 'पेटीकोट कैंसर' की चेतावनी दी गई है. असल में साड़ी के नीचे पहने जाने वाले पेटीकोट के कसकर बंधे नाड़े से भी कैंसर हो सकता है. इसे मार्जोलिन अल्सर कहा जाता है, जो एक आक्रामक प्रकार का स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा है. यह अक्सर पुराने जलने के घाव, न भरने वाले घाव, या शिरा अल्सर जैसे स्थानों पर विकसित हो सकता है.
मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए लेनी होगी सरकार की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि सार्वजनिक सेवकों पर मनी लांड्रिंग के मामले में मुकदमा चलाने के लिए सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197(1), जो सरकारी कर्मियों के खिलाफ अपराध के मामले में सरकार से पूर्व स्वीकृति लेना अनिवार्य बनाती है, का प्रावधान धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) पर भी लागू होगा. न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें आईएएस अधिकारी बिभु प्रसाद आचार्य और अदित्यनाथ दास के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई से पहले स्वीकृति आवश्यक बताई गई थी, जो पूर्व आंध्र प्रदेश सीएम जगन मोहन रेड्डी के साथ धन शोधन के आरोपों का सामना कर रहे हैं.
चलते-चलते: ठेकुआ खाइएगा!
भारत के बिहार, यूपी और झारखण्ड जैसे राज्यों समेत देशभर के कई इलाकों में इस वक़्त लोग छठ का उत्सव मना रहे हैं. छठ की बात, छठ के व्यंजनों के बिना अधूरी है और जब व्यंजन का जिक्र होगा तब जेहन में 'ठेकुआ खाइएगा' की एक परिचित आवाज जरूर गूँज ही जाएगी.
...तो आज चलते-चलते में पेश है छठ पर्व पर लोगों के सबसे चहेते व्यंजन ठेकुआ की 5 करारी रेसेपी…
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