9 नवंबर, 2024: नोटबंदी की याद, जोमैटो-स्विगी पर बेइमानी का आरोप, यूएपीए का इस्तेमाल बढ़ाने का हुक्म, झारखंड मे ख़तरों का खेल शुरू, एएमयू का बना रहेगा दर्जा, प्राचीन भारत में कार चलाने वाले का चल बसना
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
नोटबंदी की आठवीं बरसी पर ये खूबसूरत संगीत सुनिये एआर रहमान का बनाया हुए सीएटल सिम्फनी के साथ, जिसका शीर्षक है डिमोनेटाइजेशन 2016. शायद रह गया हो आपके सुनने से.
सुर्खियां:
जम्मू और कश्मीर विधानसभा में शुक्रवार को फिर से हंगामा हुआ, जब भाजपा सदस्यों ने राज्य के विशेष दर्जे को बहाल करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव का विरोध किया. इसके परिणामस्वरूप, 12 विपक्षी विधायक, जिनमें लंगेट विधायक शेख़ ख़ुर्शीद भी शामिल थे, उन्हें अध्यक्ष द्वारा सदन से बाहर कर दिया गया. यह विवादित प्रस्ताव पहले ही इस सप्ताह पारित किया गया था, और इसे लेकर भाजपा के नारे "पाकिस्तानी एजेंडा नहीं चलेगा" सुनाई दिए. यह विरोध अब तीसरे दिन में प्रवेश कर चुका है.
गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को राज्य पुलिस बलों से कहा कि वे आतंकवाद विरोधी प्रयासों में गैरकानूनी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) को बिना हिचकिचाहट लागू करें. राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सम्मेलन को संबोधित करते हुए शाह ने आतंकवाद और उसके समर्थन नेटवर्क से लड़ने के लिए एजेंसियों को कानूनी रूप से सक्षम बनाने पर जोर दिया. "आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाली एजेंसियों को जहां भी जरूरत हो, बिना हिचकिचाए यूएपीए लागू करना चाहिए और जांच के लिए एनआईए से सहायता लेनी चाहिए." शाह ने आगे कहा कि एनआईए ने 632 मामले दर्ज किए, 498 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए और 95% मामलों में सजा दिलवाई.
मणिपुर को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उन रिकॉर्डिंग्स के सबूत माँगे हैं, जिनमें मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग्स में वह राज्य के जातीय हिंसा में खुद को शामिल करते हुए सुनाई दे रहे थे. इन रिकॉर्डिंग्स को द वायर की संगीता बरुआ पीशरोटी ने रिपोर्ट किया था. इसमें बीरेन सिंह को यह कहते हुए सुना गया है कि उन्होंने राज्य में बमों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी, यह कहते हुए कि उन्होंने प्रतिबंधित मणिपुरी संगठनों को "सुरक्षा बलों के साथ मिलाने" की योजना बनाई थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता कुकी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट से रिकॉर्डिंग्स की प्रामाणिकता साबित करने के लिए सामग्री प्रस्तुत करने को कहा.
भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग ने जोमैटो और स्विगी को एंटीट्रस्ट कानूनों का उल्लंघन करने के लिए दोषी पाया है. इन कंपनियों ने कुछ विशेष रेस्तरां के साथ "खास करार" किए थे, जिसके बदले उन्हें कम कमीशन दरों पर सेवाएं दी जाती थीं, जबकि स्विगी ने अपने प्लेटफॉर्म पर विशेष रूप से सूचीबद्ध होने वाले रेस्तरां को व्यापार में वृद्धि की गारंटी दी थी. आयोग के अनुसार, ये विशेष अनुबंध "बाजार को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने से रोकते हैं", और छोटे रेस्तरां के लिए अवसरों को सीमित करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं के पास विकल्प कम हो जाते हैं. इसके परिणामस्वरूप, जोमैटो के शेयरों में 3% की गिरावट आई.
जम्मू और कश्मीर में एक और आतंकवादी हमले में किश्तवाड़ में दो रक्षा गार्डों का अपहरण कर हत्या कर दी गई. भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ इस इतवार को रिटायर हो रहे हैं. और उनका कार्यकाल खासा विवादास्पद रहा है. वकील गौतम भाटिया ने इस पर एक लम्बा लेख यहाँ लिखा है, जिसमें स्तुति कम है और कसौटियों पर कसा जाना ज्यादा. दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को विवादास्पद किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ खरीदने की अनुमति दी है. यह आदेश तब दिया गया जब केंद्र सरकार अदालत में इस किताब पर प्रतिबंध लगाने का कोई नोटिफिकेशन प्रस्तुत नहीं कर पाई.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने "आयुर्वेद बायोलॉजी" को राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के नए विषय के रूप में शामिल किया है, जो राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी द्वारा आयोजित की जाती है. यह बदलाव 2024 के दिसंबर से लागू होगा, और इसे जून 2024 में आयोग की 581वीं बैठक में अनुमोदित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया है. यह विषय दिसंबर 2024 से शुरू होने वाली एनईटी परीक्षा में उपलब्ध होगा, जो साल में दो बार जून और दिसंबर में होती है. आयुर्वेद बायोलॉजी के यूजीसी एनईटी पाठ्यक्रम में शामिल होने से आयुर्वेद आधारित कार्यक्रमों के स्नातकों के लिए नए अवसर पैदा होने की संभावना है, जिससे वे जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) और अन्य शैक्षिक या अनुसंधान अवसरों के लिए आवेदन कर सकेंगे. हालांकि विशेषज्ञ इसे शंका की दृष्टि से ही देख रहे हैं.
हाल ही में कनाडा सरकार ने घोषणा की है कि वह देश में प्रवासियों की संख्या में कटौती करने जा रही है. अगले वर्ष नए स्थायी निवासियों की संख्या में लगभग 20% की कमी की जाएगी और कम अस्थायी विदेशी श्रमिकों को कनाडा आने की अनुमति दी जाएगी. यह कटौती ऐसे समय में की जा रही है जब कनाडा के राजनीतिक नेता आवास और स्वास्थ्य देखभाल समस्याओं के लिए प्रवासियों को बढ़ते हुए दोष दे रहे हैं. कंज़र्वेटिव और लिबरल, दोनों दलों के राजनीतिक विमर्श में प्रवास बढ़ने को कनाडा की आवास और स्वास्थ्य देखभाल संकट का मुख्य कारण बताया जा रहा है. सरकार का कहना है कि इस कटौती से कनाडा की जनसंख्या में 0.2% की गिरावट होगी और "आवास, बुनियादी ढांचे, और सामाजिक सेवाओं पर दबाव" कम करने में मदद मिलेगी. कनाडा में लगातार दक्षिण एशियाई प्रवासियों, विशेषकर भारतीयों, के खिलाफ नफरत बढ़ती जा रही है. इसके अलावा, "ग्रेट रिप्लेसमेंट" जैसे सिद्धांत, जो श्वेत लोगों के अल्पसंख्यक बन जाने की चेतावनी देते हैं, भी इस नफरत को भड़काने में भूमिका निभा रहे हैं. टोरंटो में 57 साल के रणेन्द्र लाल बनर्जी को ब्रैम्पटन के हिंदू सभा मंदिर में हुई हिंसक प्रदर्शन के दौरान नफरत भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. उन्हें "पब्लिक इनसाइटमेंट ऑफ हेट्रेड" (नफरत भड़काने का सार्वजनिक अपराध) के तहत आरोपित किया गया है. यह घटना कनाडा के ब्रैम्पटन में स्थित हिंदू सभा मंदिर में हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान हुई, जहां रणेन्द्र बनर्जी पर धार्मिक तनाव को बढ़ावा देने और नफरत फैलाने के आरोप लगाए गए.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए राहत
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार को साल 1967 के अपने उस फ़ैसले को पलट दिया है, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं हो सकता था. सात जजों की संवैधानिक पीठ के बहुमत के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1967 के अजीज बाशा बनाम भारत सरकार के उस फैसले को खत्म कर दिया, जिसमें कहा गया था कि संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा तब मिलेगा, जब उसकी स्थापना उस समुदाय के लोगों ने की हो.. हालांकि, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा या नहीं इसका फ़ैसला शीर्ष न्यायालय की एक रेगुलर बेंच करेगी.
“प्रमोद महाजन की मौत पारिवारिक विवाद से नहीं!’
भाजपा नेता और पूर्व सांसद पूनम महाजन ने ‘आज तक’ के एक कार्यक्रम में अपने पिता की मौत के पीछे बड़ी साजिश का जिक्र किया है. पूनम महाजन ने कहा की मैं ये सब राजनीति के लिए नहीं कह रही हूँ, लेकिन कोई तो कारण है जिससे ये सब साजिश जैसा लगता है. बता दें कि 2006 में भाजपा नेता प्रमोद महाजन की उन्हीं के भाई प्रवीण महाजन ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. पूनम ने अब कहा है कि मेरे पिता प्रमोद महाजन की हत्या की वजह पारिवारिक विवाद नहीं.
मीडिया: मौत दर्ज करने के दुहरे मापदंड'
'द टेलीग्राफ' के लिए आर. राजगोपाल ने एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने जीएन साईबाबा और रतन टाटा की मौत के बहाने मीडिया कवरेज को टटोला है. अपने लेख के जरिये राजगोपाल सवाल उठाते हैं कि रतन टाटा की मृत्यु की व्यापक और विस्तृत कवरेज के मुकाबले, जी.एन. साईबाबा की मृत्यु को टालू तरीके से कवर किया गया, जो दो अलग-अलग बर्ताव को उजागर करता है.
राजगोपाल लिखते हैं- समय की सख्त मांग अक्सर सही कवरेज में रुकावट डालती है, खासकर यदि किसी की मौत देर रात होती है. टाटा के निधन की खबर 11 बजे के बाद आई, जबकि साईबाबा ने रात 8:30 के आसपास अंतिम सांस ली. तो, यह माना नहीं जा सकता कि डेडलाइन ही मौत में भेदभाव का कारण बनी. यह भी नहीं कि साईबाबा के साथ भेदभाव सिर्फ उनकी मृत्यु में ही हुआ. वह अपने जीवन में कई बार इस भेदभाव का शिकार हुए— और हर एक दिन जो उन्होंने अंडा सेल में बिताया. “मैं आठ और आधे साल तक उसी सेल में था, बिना व्हीलचेयर के. शौचालय जाने, नहाने, या खुद को पानी का गिलास लाने के लिए रोज संघर्ष करना पड़ता था,” यह पूर्व अंग्रेजी सहायक प्रोफेसर, जिन्हें जेल में रहते हुए बर्खास्त कर दिया गया था, ने इस वर्ष मार्च में जब उन्हें बरी किया गया, तब कहा था. इस लेख को आप यहाँ अंग्रेजी में पूरा पढ़ सकते हैं.
मस्क का रहेगा ट्रम्प सरकार में जलवा!
नई डोनाल्ड ट्रम्प सरकार में एलन मस्क का प्रभाव स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है. मस्क ट्रम्प कैंपेन का मजबूत हिस्सा रहे. अब जबकि ट्रम्प सुपरबॉस हैं तब मस्क के प्राथमिक क्षेत्रों जैसे अंतरिक्ष, इलेक्ट्रिक वाहन, और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस क्षेत्रों में बढ़ावा देने की संभावना है. मस्क के हितों से जुड़े इन क्षेत्रों का बाजार भी काफी विशाल है; उदाहरण के लिए, वैश्विक ईवी बाजार का अनुमान 2023 में लगभग 561 बिलियन डॉलर है और 2030 तक यह 1.6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. इसी तरह, अंतरिक्ष उद्योग का बाजार 2023 में 546 बिलियन डॉलर था और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है. ट्रंप प्रशासन में इन क्षेत्रों पर नीति में समर्थन मिलने की उम्मीद है.
पुतिन ने की भारत की पैरवी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत के लिए फिर पैरवी की है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि "भारत को वैश्विक महाशक्तियों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था वर्तमान में किसी भी अन्य देश से तेज़ी से बढ़ रही है." सोची में 7 नवम्बर 2024 को वल्दाई डिस्कशन क्लब के पूर्ण सत्र को संबोधित करते हुए पुतिन ने यह भी कहा कि रूस भारत के साथ सभी दिशा में अपने रिश्तों को विकसित कर रहा है और द्विपक्षीय संबंधों में एक बड़ा स्तर का विश्वास है.
झारखंड : ख़तरों का चुनावी खेल शुरू
झारखंड विधानसभा चुनाव में विपक्षी एनडीए और सत्तारूढ़ गठबंधन “इंडिया” दोनों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है. हरियाणा में जीत से उत्साहित भाजपा पूरब के इस राज्य में हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है. यदि वह कामयाब होती है तो बिहार और उड़ीसा सहित पूरब के इन तीनों राज्यों पर उसका कब्जा हो जाएगा. लिहाजा भाजपा का पूरा फोकस आदिवासी वोटों पर है.
झारखंड की जनसंख्या में आदिवासियों की संख्या 26.21% (करीब 80 लाख) है और 81 विधानसभा सीटों में से 28 अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित हैं. यहीं पर भाजपा को समस्या का सामना करना पड़ रहा है. इसी कारण उसने पूर्व सीएम चंपई सोरेन, शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को अपने बेड़े में जोड़ा है. ये सभी विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 में 28 सीटों में से भाजपा केवल 2 सीटें जीत सकी थी, जबकि झामुमो और कांग्रेस ने 25 सीटें जीती (झामुमो 19 और कांग्रेस 6) थीं. यही कारण है कि भाजपा धर्मांतरण, बांग्लादेशी घुसपैठिये, एनआरसी जैसे अपने कोर मुद्दों पर बात कर रही है.
राज्य की कुल आबादी 3 करोड़ 29 लाख के करीब है. इनमें हिंदू 67.83% (2 करोड़ 23 लाख), मुस्लिम 14.53% (47 लाख), सरनावादी 12.52% (37 लाख) और ईसाई 4.3% (12 लाख) हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी रैलियों में रोटी-बेटी-माटी का सवाल उठा रहे हैं. कह रहे हैं कि ये लोग (इंडिया गठंधन) आपकी बेटी, रोटी और माटी छीन रहे हैं.
मोदी की रोटी-बेटी-माटी की बात को झारखंड से ही भाजपा सांसद ने दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में साफ-साफ समझा दिया. कहा,” भाजपा की सरकार बनी तो 60% मुस्लिम, जो फर्जी आधार, वोटर आईडी और पैन कार्ड बनवाकर बस गए हैं, उन्हें झारखंड छोड़कर भागना पड़ेगा. जिन आदिवासी लड़कियों ने मुस्लिम से शादी की है, उनके बच्चों को आदिवासी का दर्जा नहीं देंगे. शादी कर आदिवासियों की जमीनें जबरन छीनी गईं, उन्हें वापस दिलाएंगे. भाजपा इसी एजेंडा पर काम कर रही है. दुबे के कंधों पर संथाल परगना इलाके में भाजपा को जिताने का जिम्मा है, जिसमें 6 जिले आते हैं.
भाजपा दक्षिण छोटानागपुर में आदिवासियों के धर्म परिवर्तन के मुद्दे को भी उठा रही है. इस इलाके की 15 में से 11 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. राज्य भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की जेवीएम ने एक सीट जीती थी, जो अब भाजपा में विलीन हो गई है. इस साल के लोकसभा चुनाव में भाजपा पांच में से कोई भी एसटी सीट नहीं जीत सकी. मरांडी के सलाहकार सुनील तिवारी ने कहा, "भाजपा और आरएसएस आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों के धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हम आदिवासियों को यह बताएंगे कि हेमंत सोरेन सरकार के तहत धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को क्या लाभ मिल रहे हैं. भाजपा उनसे यह पूछेगी कि झारखंड में अधिकांश आईएएस और आईपीएस अधिकारी ईसाई आदिवासी क्यों हैं? क्योंकि सरना आदिवासियों को ठगा गया है."
कांग्रेस के लिए यह चुनाव हरियाणा में हार के बाद अपनी प्रासंगिकता हासिल करने और 2019 के प्रदर्शन को दोहराने के बारे में है, जब पार्टी ने 16 विधानसभा सीटें जीती थीं. दोनों गठबंधनों के पक्ष में एक समेकित वोट बैंक वाले द्विध्रुवी चुनाव में, किसी भी गठबंधन की ओर थोड़ा सा बदलाव खेल को बदल सकता है. यह चुनाव कांग्रेस के लिए अपनी राजनीतिक महत्व को फिर से स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.
उधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) अपने संस्थापक शिबू सोरेन, जिन्हें 'दिशोम गुरु' के नाम से भी जाना जाता है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के करिश्मे पर बहुत अधिक निर्भर कर रही है, जो पार्टी के स्टार प्रचारक हैं. हेमंत सोरेन ने अपनी चुनावी बैठकों में 'मूल निवासी बनाम बहरी (आदिवासी बनाम बाहरी) के मुद्दे को उठाया है, जिससे भाजपा को "बाहरी" पार्टी बताने की कोशिश की जा रही है. जेएमएम ने पूर्व भाजपा नेता लुईस मरांडी और ऐसे अन्य चेहरों को टिकट दिया है, जिन्होंने टिकट नहीं मिलने के कारण भाजपा छोड़ दी थी.
पहली बार महिलाएं भी चुनावी अभियान के केंद्र में हैं. महिला मतदाताओं के महत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 81 सीटों में से 32 सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. दिलचस्प यह है कि सभी 28 अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित सीटों पर महिला मतदाता पुरुषों से अधिक हैं. इसके अलावा, 18 से 19 वर्ष की आयु के पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं में से लगभग 56% महिलाएं हैं. कुलमिलाकर महिलाएं झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि झामुमो सरकार ने 'मैयन सम्मान योजना' शुरू की, जिसके तहत 18 से 60 वर्ष की लगभग 50 लाख महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपए मिलते हैं. इसके अलावा, सरकार 60 से अधिक आयु की महिलाओं और पुरुषों को भी हर महीने 1,000 रुपए की पेंशन दे रही है. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में 'गोगो दीदी' योजना की घोषणा की है, जिसके तहत राज्य की महिलाओं को हर महीने 2,100रुपए देने का वादा किया गया है. भाजपा के इस वादे के बाद, सोरेन ने अपनी आखिरी कैबिनेट बैठक में 'मैयन सम्मान' योजना में वृद्धि की मंजूरी दी, जिसमें महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपए से बढ़ाकर 2,500 रुपए दिए जाएंगे, जो दिसंबर से लागू होगी. कल्पना सोरेन पिछले एक महीने से राज्य के सभी क्षेत्रों में 'मैयन सम्मान यात्रा' के माध्यम से महिला मतदाताओं को टारगेट इसीलिए कर रही हैं.
जेएमएम अपने अभियान में सरना वादियों को भाजपा की कथित असलियत भी बताने में लगा है. सरना धर्म कोड झारखंड के आदिवासी समुदायों की एक बड़ी मांग रही है, जो प्रकृति के देवता की पूजा करते हैं और खुद को सरना के रूप में पहचानते हैं.
सोरेन सरकार ने 2022 में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया और इसे जनगणना में अलग कोड के रूप में शामिल करने के लिए केंद्र को भेजा, लेकिन यह केंद्र के पास लंबित है. वह 2022 में सोरेन सरकार के निवासी विधेयक को भी उजागर करेगी, जिसमें यह प्रावधान है कि यह केवल तभी लागू होगा जब केंद्र इसे नौवें अनुसूची में शामिल करने के लिए संशोधन करेगा, ताकि इसे न्यायिक जांच से बाहर किया जा सके. निवासी विधेयक 1932 की भूमि रिकॉर्ड के आधार पर राज्य में एक स्थानीय को परिभाषित करता है. राज्यपाल ने विधेयक को जेएमएम की अगुवाई वाली सरकार को वापस कर दिया था.
रुक नहीं रहा सोरेन पर सोशल मीडिया का हमला
भारत में नए दौर की सियासत को कुछ वक़्त हो चला है और अब ये सियासत ज्यादा हमलावर होती दिख रही है. हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, फेसबुक और इंस्टाग्राम ने झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और अन्य नेताओं के खिलाफ 'शैडो विज्ञापनों' को प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं किया. इन प्लेटफॉर्म्स पर राजनीतिक विज्ञापनों के लिए कम से कम 2.25 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो भारत के चुनावी कानूनों और प्लेटफॉर्म की नीतियों का उल्लंघन करते हैं. क्या होता है 'शैडो विज्ञापन'? शैडो विज्ञापन वे राजनीतिक विज्ञापन होते हैं, जिन्हें सोशल मीडिया पर बिना पारदर्शिता के चलाया जाता है. यह विज्ञापन सीधे तौर पर किसी खास व्यक्ति या पार्टी का प्रचार करते हैं, लेकिन दिखने में यह तटस्थ या सामान्य लगते हैं. इन विज्ञापनों का मुख्य उद्देश्य वोटरों को गुमराह करना और चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करना होता है.
2024 में, सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इन गुप्त विज्ञापनों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बन गई है. वैश्विक रिपोर्टों के अनुसार, इन विज्ञापनों को नियंत्रित करने में सोशल मीडिया प्लेटफार्म की नाकामी उजागर हुई है, हालाँकि ट्रंप और एलन के मामले को दुनिया कैसे देखेगी, ये सवाल नाकामी से आगे के सवाल खड़े करते हैं.
‘द इलेक्टोरल इंटीग्रिटी प्रोजेक्ट’ ने इस पर एक शोध किया और बताया है कि इस प्रकार के विज्ञापन चुनावी ईमानदारी और लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकते हैं, क्योंकि वे वोटरों को भ्रामक जानकारी प्रदान करते हैं. इस समस्या से निपटने के लिए, कई देशों में चुनावी विज्ञापन की पारदर्शिता बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन गलत और भ्रामक सूचनाओं का प्रभाव अभी भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. भारत के संदर्भ में भी इस रिपोर्ट में चर्चा है और लिखा गया है कि चुनावी वित्त, चुनावों में पैसे के प्रभाव और सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर भारत में बहुत चुनौतियाँ हैं. ये सभी मुद्दे चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी को कमजोर करते हैं, और अक्सर मतदाताओं को गुमराह करने के लिए धन का इस्तेमाल किया जाता है.
संकट में ग्रेट निकोबार
ग्रेट निकोबार द्वीप पर भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. ऐसा वहां भारत सरकार की एक विशाल विकास परियोजना के कारण हो रहा है. भारत सरकार ने इस द्वीप के लिए एक व्यापक बुनियादी ढांचा योजना प्रस्तावित की है, जिसमें एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एयरपोर्ट और संभावित रक्षा सुविधाएं शामिल हैं. इस योजना के अंतर्गत 2050 तक द्वीप की आबादी 8,500 से बढ़कर 6,50,000 होने का अनुमान है, जो इसके पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी दबाव डाल सकता है. इस योजना के आलोचक इसे क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए खतरनाक मानते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र लेदरबैक समुद्री कछुए जैसे संकटग्रस्त वन्यजीवों का आवास है. इसके अलावा, द्वीप पर निवास करने वाले शॉम्पेन आदिवासियों की घुमंतू जीवनशैली पर भी इस विकास से नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना जताई जा रही है.
दर्जियों पर लगेगी औरतों ने नाप लेने पर रोक
उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग ने राज्य में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव दिए हैं. इनमें यह सुझाव भी शामिल है कि पुरुष दर्जी महिलाओं के माप न लें और न ही पुरुष किसी महिला को जिम या योग सत्र के दौरान प्रशिक्षण दें. महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रस्तावित इन दिशा-निर्देशों में यह भी सिफारिश की गई है कि स्कूल बसों में महिला सुरक्षा कर्मी मौजूद रहें और महिलाओं के कपड़ों की दुकानों में महिला कर्मचारी हों. इन सुझावों पर 28 अक्टूबर को लखनऊ में एक बैठक के दौरान चर्चा की गई, जहां आयोग के सदस्यों ने महिलाओं की सुरक्षा के विभिन्न उपायों पर विचार किया.
दीनानाथ बत्रा : आहत आस्था के साथ जी गई जिंदगी
भारत में किताबों की मॉरल पुलिसिंग करने वालों में सबसे बड़ा नाम दीनानाथ बत्रा का गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया.
वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े विद्या भारती के जनरल सेक्रेटरी तो थे ही साथ ही शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास जैसी शैक्षिक कार्यकर्ता संगठनों की स्थापना भी की. हिंदू राष्ट्र के पैरोकार होते हुए उनकी आस्था हर उस किताब और पाठ्यक्रम से आहत होती रही, जिसमें हिदू मान्यताओं पर सवाल और पश्चिम के वैज्ञानिक नजरिये का असर दिखलाई पड़ता था. 97 साल की उम्र में बत्रा के देहावसान पर आरएसएस के पदाधिकारियों में बहुत शोक जताया है. इसमें संघ के प्रधान डॉ. मोहन भागवत और दत्तात्रेय होसबाले शामिल हैं. अपने एक बयान में उन्होंने कहा है, “ वे एक आदर्श शिक्षक और उच्च कोटि के शिक्षाविद थे. शिक्षा क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है. विशेषकर पाठ्यक्रमों में इतिहास की विकृतियों को दूर करने के लिए वे सतत् प्रयत्नशील रहे.”
वह जिंदगी भर भारतीय शिक्षा प्रणाली में ‘अशुद्ध’ और ‘विदेशी विचारों’ को फैलाने वाली किताबों के खिलाफ आवाज उठाते रहे और वे ऐसा तब से करते रहे, जब भारत में हिंदुत्व को लेकर तापमान इतना गर्म नहीं हुआ था, जितना पिछले 10-15 सालों में हुआ.
बत्रा ने बहुत सी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए वकालत की. इनमें प्रमुख रूप से वेंडी डोनिंगर की लिखी ‘द हिंदूज: एन अल्टरनेटिव हिस्टरी’ और एन फ्रैंक की विख्यात किताब ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ शामिल हैं. बत्रा का कहना था कि इन किताबों में भारतीय संस्कृति और धर्म के खिलाफ विचार दिए गए हैं. 2006 में, बत्रा ने द हिंदूज: एन अल्टरनेटिव हिस्टरी के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उनका तर्क था कि पुस्तक भारतीय समाज और संस्कृति के खिलाफ अपमानजनक और अपुष्ट जानकारी फैलाती है. अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन बत्रा ने इस बात पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
2017 में, बत्रा के शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने एनसीईआरटी को पत्र लिखा, जिसमें पाठ्यपुस्तकों से अंग्रेजी, उर्दू और अरबी शब्दों को हटाने की मांग की, साथ ही वामपंथी कवि अवतार सिंह पाश की कविता, मिर्जा गालिब का शेर, रवींद्रनाथ ठाकुर के विचार, चित्रकार एम एफ हुसैन की आत्मकथा के अंश, मुग़ल सम्राटों को 'दयालु' के रूप में प्रस्तुत करने वाली सामग्री, बीजेपी को "हिंदू" पार्टी के रूप में और नेशनल कॉन्फ्रेंस को "धर्मनिरपेक्ष" के रूप में पेश करने वाले संदर्भ, और 1984 के दंगों पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा माफी माँगने के बयान को हटाने की मांग की थी. इसके अलावा उन्होंने गुजरात 2002 के दंगों में "लगभग 2,000 मुसलमानों के मारे जाने" का उल्लेख करने वाले वाक्य को भी हटाने की मांग की थी. बत्रा के न्यास ने यह भी कहा था कि हिंदी की पाठ्यपुस्तकों में यह उल्लेख होना चाहिए कि मध्यकाल के सूफी संत अमीर ख़ुसरो ने "हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई बढ़ाई थी." 2008 में बत्रा ने दिल्ली हाईकोर्ट में एके रामानुजन की थ्री हंड्रेड रामायणाज: फाइव एक्जाम्पल्स एंड थ्री थॉट्स ऑन ट्रांसलेशन को दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास पाठ्यक्रम से हटाने की मांग की थी.
30 मई 2001 को, बत्रा ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को कानूनी नोटिस भेजा. बत्रा का आरोप था कि आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सत्र में पारित एक प्रस्ताव में विद्या भारती के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की गई थीं. उनके अनुसार, प्रस्ताव में यह कहा गया था कि विद्या भारती की पाठ्यपुस्तकों में अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा, जातिवाद, सती और बाल विवाह को भारतीय संस्कृति का हिस्सा बताया गया है.
बत्रा की बदौलत मध्यप्रदेश के स्कूली विद्यार्थियों को दी जाने वाली सेक्स एजुकेशन 2007 में यकायक बंद कर दी गई, जब तब के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य पाठ्यक्रम से सेक्स शिक्षा को हटा दिया. बत्रा का सुझाव था कि इसके स्थान पर योग पढ़ाया जाए. एक तरफ बत्रा दुनिया भर की किताबों को बंद करवाने की जेहाद छेड़े हुए थे, दूसरी तरफ उन्हीं की किताबों को स्कूली बच्चों को पढ़ाने के लिए रखा जा रहा था.
2014 में गुजरात सरकार ने दीनानाथ बत्रा द्वारा लिखी गई छह किताबों को राज्य के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया. इन किताबों में जो चमत्कारिक रहस्योद्धाटन किए गये थे उनमें यह भी था कि प्राचीन भारत में कारों का आविष्कार हुआ था. अभ्यास के तौर पर छात्रों को अखंड भारत का भौगोलिक मानचित्र बनाने को कहा गया था, जिसमें पाकिस्तान, बांगलादेश, अफगानिस्तान आदि देश शामिल थे. बत्रा की छह किताबों को राज्य के 42,000 प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में अनिवार्य पाठ्यक्रम के रूप में शामिल किया गया है.
बत्रा ने दो किताबें औऱ लिखीं. द एनिमीज ऑफ इंडियनाइजेशन: द चिल्ड्रन ऑफ मार्क्स, मैकाले और मदरसा (2001) और "भारतीय शिक्षा का स्वरूप" (2014). बत्रा ने शिक्षा के भारतीयकरण और राष्ट्रवादी नेताओं को "आतंकवादी" के रूप में चित्रित करने के खिलाफ लगभग 15 किताबें लिखीं. बत्रा ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को ‘पश्चिमी विचारधारा’ से प्रभावित बताया और उनके अनुसार, भारतीय बच्चों को अपनी संस्कृति, परंपरा और धर्म के अनुसार शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए. बत्रा ने भारतीय शिक्षा में सुधार की दिशा में कई बार एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में बदलाव की मांग की. उनका आरोप था कि पाठ्यक्रम में हिंदू धर्म, संस्कृति और परंपराओं को तुच्छ रूप में प्रस्तुत किया गया है. 2014 में, बत्रा ने एनसीईआरटी के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने विभिन्न किताबों को बदलने और पाठ्यक्रम में संशोधन की मांग की थी.
बत्रा ने कई फिल्मों और कार्यक्रमों के खिलाफ मुकदमे दायर किए, जिनमें उनका मानना था कि वे हिंदू धर्म या संस्कृति का अपमान कर रहे थे. उदाहरण के लिए, 2017 में, उन्होंने फिल्म 'पद्मावती' के खिलाफ विरोध किया और फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए अदालत में याचिका डाली.
नोटबंदी की आठवीं बरसी याद है?
8 नवम्बर 2016 शाम आठ बजे बहुत ताव के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी. उनका दावा था कि इससे काले धन, भ्रष्टाचार, नकली मुद्रा और आतंकवाद की वित्तीय सहायता पर रोक लगाना था. और कहा कि मुझे जिंदा जला देना अगर 50 दिन में चीजे़ें ठीक नहीं हुईं. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. देश और लोगों पर इसका विनाशकारी असर पड़ा.
नोटबंदी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में अस्थिरता आ गई. खासकर छोटे और मंझले व्यवसायों पर इसका गहरा असर पड़ा, क्योंकि वे नकद लेन-देन पर निर्भर थे. बहुत से व्यवसाय बंद हो गए या ठप हो गए, जिससे बेरोजगारी में वृद्धि हुई और आर्थिक विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.
असंगठित क्षेत्र, कृषि और निर्माण जैसे क्षेत्रों में भारी मंदी देखी गई, क्योंकि इनमें अधिकांश कार्य नगद के माध्यम से होते थे. इस कारण उत्पादन में कमी आई, जिससे जीडीपी में गिरावट आई.
नोटबंदी के कारण असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए. खासकर निर्माण, खुदरा व्यापार और कृषि जैसे क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी हो गई, जिससे रोजगार संकट और भी गहरा हो गया.
नोटबंदी के दौरान किसानों को अपनी फसलें बेचने में समस्याएं आईं, क्योंकि वे आम तौर पर नकद में भुगतान प्राप्त करते थे. बाजारों में नकदी की कमी के कारण उनकी उपज सही मूल्य पर नहीं बिक पाई. किसानों को ऋण चुकाने में भी कठिनाई आई, क्योंकि वे ज्यादातर नकद लेन-देन करते थे.
ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सुविधाएं और डिजिटल माध्यमों का प्रचार कम था, जिससे लोगों को अपनी जमा पूंजी निकालने या बदलने में कठिनाई का सामना करना पड़ा. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हुई.
गरीब वर्ग और दैनिक श्रमिकों को अपनी दैनिक आवश्यकताएं खरीदने में परेशानी का सामना करना पड़ा. राशन दुकानों पर और अन्य आवश्यक वस्तुओं की दुकानों पर नकद की कमी के कारण सामान की खरीदारी में दिक्कतें आईं.
अस्पतालों और क्लिनिकों में नकद भुगतान की समस्या आई, जिसके कारण गरीबों को इलाज में दिक्कतें आईं. स्वास्थ्य क्षेत्र में भी नोटबंदी का प्रभाव महसूस किया गया, क्योंकि कई सेवाएं नकद में उपलब्ध होती हैं.
सरकार ने काले धन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उद्देश्य से नोटबंदी का कदम उठाया था लेकिन यह कदम प्रभावी साबित नहीं हुआ.
नोटबंदी के बाद बैंक शाखाओं और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगीं. एक जगह कैमरे में प्रधानमंत्री की माँ भी लाइन में लगी दिखाई दीं. लोग अपने पुराने नोटों को बदलने और नए नोट प्राप्त करने के लिए घंटों तक लाइन में खड़े रहे, जिससे उन्हें मानसिक और शारीरिक तनाव का सामना करना पड़ा. खासकर बुजुर्गों और महिलाओं को इससे अधिक दिक्कत हुई.
नोटबंदी के पहले कुछ दिनों में एटीएम और बैंकों में कैश की गंभीर कमी हो गई थी. कई क्षेत्रों में तो एटीएम काम नहीं कर रहे थे, जिससे आम जनता को अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा.
छोटे व्यापारी और खुदरा दुकानदार, जो नकद लेन-देन पर निर्भर थे, नोटबंदी से गंभीर रूप से प्रभावित हुए. उनके पास जरूरी नकदी की कमी हो गई, जिससे वे अपनी दैनिक खरीदारी और विक्रय कार्यों को नहीं चला सके.
व्यवसायों के लिए सामान की खरीदारी में कठिनाई आई, क्योंकि वे पुराने नोटों से लेन-देन कर रहे थे और नोटबंदी ने इसे रोक दिया. इसके कारण व्यापारिक गतिविधियां मंद पड़ीं.
नोटबंदी के कारण समाज में व्यापक असंतोष और गुस्सा देखा गया. कई लोग इसे बिना तैयारी और योजना के एक अचानक किया गया निर्णय मानते थे, जिससे उनका जीवन प्रभावित हुआ. इसके कारण सरकार की नीतियों के प्रति अविश्वास और विरोध बढ़ा.
गोदी मीडिया ने 2000 रुपये के नोट को चिप वाला नोट बता कर होशियारी झाड़ी. वह नोट भी अब सरकुलेशन से बाहर कर दिया गया.
…और चलते-चलते नोटबंदी पर रहमान के अलावा एक गाना और है जिसे बनाया है एमसी तोड़फोड़ के साथ जोस नील गोम्स ने-
आज के लिए इतना ही. आप बता सकते हैं अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी हमें. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ.