एक नोबेल की चाह !
संदिग्ध चाल, चोले,चरित्र वाले ट्रम्प को भारत-पाक मध्यस्थता के लिए नोबेल पुरस्कार चाहिए और पाकिस्तान ने दे भी दिया
निधीश त्यागी
हम एक बेइंतहा दिलचस्प दुनिया में रह रहे हैं. एक ऐसे व्यक्ति को नोबेल शांति पुरस्कार का हकदार माना जा रहा है, जिसने एक झटके में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, वहां के उद्योग, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी सेवाएं, वाणिज्य को तहस नहस कर दिया. जो न रूस यूक्रेन के बीच जंग रुकवा सका, जो न इजराइल को गाजा को जमींदोज करने से नहीं रोक सका, जो इजरायल और ईरान के बीच जंग रुकवाने को लेकर बयान तो देता दिखलाई दे रहा है, पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं. उधर मनमाने टैरिफ लगाकर उसने दुनिया के हर उस देश को जो अमेरिका के साथ आर्थिक संबंध में अजीब पसोपेश में डाल दिया. पहले देखते हैं नोबेल शांति पुरस्कार मिलता किन लोगों को है. और एक ऐसा देश उन्हें नामांकित कर रहा है, जो बहुत सी बातों के लिए दुनिया में जाना जाता है, पर शांति शब्द उसमें कहीं दिखलाई नहीं पड़ता.
पाकिस्तान ने कहा है कि वह हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष को सुलझाने में मदद के लिए डोनाल्ड ट्रंप की नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सिफारिश करेगा. शनिवार को घोषित इस कदम के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हमला करने में इज़राइल के साथ शामिल होने पर विचार कर रहे हैं.पाकिस्तान ने एक बयान में कहा. "राष्ट्रपति ट्रंप ने इस्लामाबाद और नई दिल्ली दोनों के साथ मजबूत राजनयिक संलग्नता के माध्यम से महान रणनीतिक दूरदर्शिता और शानदार राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया. जिससे तेजी से बिगड़ती स्थिति में कमी आई". "यह हस्तक्षेप एक वास्तविक शांतिदूत के रूप में उनकी भूमिका के प्रमाण के रूप में खड़ा है". सरकारें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए लोगों को नामांकित कर सकती हैं. वाशिंगटन की ओर से तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. भारत सरकार के एक प्रवक्ता ने टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया.
नोबेल पुरस्कार के मूल सिद्धांत : नोबेल पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की इच्छा के अनुसार उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने "मानवता की सबसे बड़ी भलाई" में योगदान दिया हो. नोबेल शांति पुरस्कार विशेष रूप से उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा दिया हो, शांति सम्मेलनों का आयोजन किया हो या उन्हें आगे बढ़ाया हो, सेनाओं को कम करने या समाप्त करने में योगदान दिया हो. नोबेल पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं से उच्च नैतिक आचरण की अपेक्षा की जाती है, व्यक्तिगत जीवन में गरिमा और सत्यनिष्ठा आवश्यक मानी जाती है, न्यायालयीन दोषसिद्धि एक गंभीर बाधा है.
डोनल्ड ट्रम्प का इतिहास
25 से महिलाओं द्वारा 1970 के दशक से यौन दुराचार के आरोप
ई. जीन कैरोल मामले में न्यायालय द्वारा यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया गया
$88 मिलियन से अधिक की हर्जाना राशि
एक्सेस हॉलीवुड टेप में अनुचित टिप्पणियां
अमेरिकी इतिहास में पहले पूर्व राष्ट्रपति जो अपराधी सिद्ध हुए
कंपनी पर $1.6 मिलियन का जुर्माना (जनवरी 2025)
कर धोखाधड़ी और दस्तावेज़ जालसाजी के आरोप
समाज में विभाजनकारी व्यक्तित्व
महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में विवादास्पद इतिहास
न्याय प्रणाली के साथ चल रहे कानूनी विवाद
अंतर्राष्ट्रीय संधियों से पीछे हटना
जलवायु परिवर्तन समझौतों से बाहर आना
सामाजिक तनाव में वृद्धि
न्यायिक दोषसिद्धि: 34 आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया जाना
नैतिक मानदंडों का उल्लंघन: नोबेल पुरस्कार की गरिमा के विपरीत आचरण
सामाजिक विभाजन: एकता की बजाय विभाजन को बढ़ावा देने का इतिहास
इन्हीं ट्रम्प ने ट्रुथ सोशल में लिखा है, मुझे यह रिपोर्ट करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि मैंने, राज्य सचिव मार्को रूबियो के साथ मिलकर, लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो और रवांडा गणराज्य के बीच उनके युद्ध में एक अद्भुत संधि की व्यवस्था की है. यह युद्ध बेहद हिंसक खूनखराबे और मौतों के लिए कुख्यात था, जो अधिकांश अन्य युद्धों से भी ज़्यादा था, और दशकों से चल रहा था. रवांडा और कांगो के प्रतिनिधि दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने के लिए सोमवार को वाशिंगटन में होंगे. यह अफ्रीका के लिए एक महान दिन है और, स्पष्ट कहूँ तो, दुनिया के लिए भी एक महान दिन! मुझे इसके लिए नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, सर्बिया और कोसोवो के बीच युद्ध रुकवाने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, मिस्र और इथियोपिया के बीच शांति बनाए रखने के लिए (एक विशाल इथियोपियाई बांध, जिसे बेवकूफी से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वित्तपोषित किया गया था, नील नदी में बहने वाले पानी को काफी कम कर देता है) नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, और मध्य पूर्व में अब्राहम समझौते (Abraham Accords) करवाने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा - जिसमें, यदि सब ठीक रहा, तो और भी देश जुड़ेंगे और जो "युगों" में पहली बार मध्य पूर्व को एकजुट करेगा! नहीं, मुझे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, चाहे मैं कुछ भी कर लूँ, चाहे वह रूस/यूक्रेन हो या इज़राइल/ईरान, चाहे उनका परिणाम कुछ भी हो. लेकिन जनता को पता है, और मेरे लिए बस यही मायने रखता है!
पाकिस्तान की सुपात्रता
पाकिस्तान का रिकॉर्ड आजादी के बाद से ही चिंताजनक रहा है. देश का अधिकांश इतिहास सैन्य शासन के अधीन रहा है, जहां 2013 में पहली बार संवैधानिक सत्ता हस्तांतरण हुआ. 1997 के आतंकवाद विरोधी कानून की व्यापक आलोचना हुई है क्योंकि इसके तहत बिना आरोप के हिरासत में रखा जा सकता है और निष्पक्ष सुनवाई के बिना सजा दी जा सकती है. बलूचिस्तान में जबरन गुमशुदगी की समस्या गंभीर है, जहां 2001 से 2017 के बीच लगभग 528 बलूच लापता हो गए. पाकिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा एक व्यापक समस्या है. ह्यूमन राइट्स वॉच की 2009 की रिपोर्ट के अनुसार, 70-90% महिलाओं और लड़कियों ने किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना किया है. घरेलू हिंसा के कारण सालाना लगभग 5,000 महिलाओं की मृत्यु होती है. 1998 से 2003 के बीच ऑनर किलिंग के 4,000 से अधिक मामले सामने आए. 2023 में बाल अधिकार संगठन साहिल ने बाल शोषण के 1,630 मामले दर्ज किए, जिनमें से 59% लड़कियों के साथ हुए.
पाकिस्तान पर भारत में प्रॉक्सी युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया जाता है. मुख्य रूप से आतंकवादी और उग्रवादी समूहों को समर्थन देकर इस क्षेत्र को अस्थिर करने का काम किया जाता है, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में. 1980 के दशक से ही लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे समूह, जिन्हें कथित तौर पर पाकिस्तान की अंतर-सेवा खुफिया एजेंसी (आईएसआई) का समर्थन प्राप्त है, भारत में हमले करते रहे हैं. इन हमलों में 2008 के मुंबई हमले (लश्कर-ए-तैयबा द्वारा) और 2019 के पुलवामा हमले (जैश-ए-मोहम्मद द्वारा) शामिल हैं. ये समूह पाकिस्तानी भूमि से संचालित होते हैं और प्रशिक्षण शिविरों तथा फंडिंग के प्रमाण मिले हैं. भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों में, जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्रालय की 2023 की रिपोर्ट भी शामिल है, पाकिस्तान की इन समूहों को सुरक्षित ठिकाने प्रदान करने की भूमिका का उल्लेख किया गया है, जबकि आधिकारिक तौर पर इनकार किया जाता है. इस रणनीति का उद्देश्य कश्मीर में विद्रोह को भड़काना और अस्थिरता पैदा करना है. 1989 से अब तक इस क्षेत्र में 40,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है. जून 2025 के हालिया सोशल मीडिया पोस्ट्स में सीमा पार आतंकवाद की जारी चिंताओं को उजागर किया गया है. यह स्थिति दोनों देशों के बीच तनाव का एक निरंतर स्रोत बनी हुई है और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती है.
धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है. अहमदी मुस्लिम, ईसाई, हिंदू और शिया समुदाय गंभीर भेदभाव और हिंसा का सामना करते हैं. 1984 का अहमदी विरोधी अध्यादेश अहमदियों को अपना धर्म पालन करने से रोकता है और इसके उल्लंघन पर तीन साल तक की सजा हो सकती है. ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग होता रहता है. प्रतिवर्ष लगभग 1,000 ईसाई और हिंदू लड़कियों को जबरन इस्लाम में धर्मांतरित किया जाता है. 2013 में सताए जाने के कारण लगभग 1,000 हिंदू परिवार भारत भाग गए. पाकिस्तानी सरकार कठोर कानूनों और मनमानी गिरफ्तारियों के माध्यम से विरोधी आवाजों का दमन करती है. 2024 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने विरोध प्रदर्शनों के दमन, विपक्षी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और प्रतिबंधात्मक शांतिपूर्ण सभा और सार्वजनिक व्यवस्था अधिनियम के अधिनियमन की रिपोर्ट दी. सेना नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए गुप्त कार्यवाही करती है. पत्रकारों के विरुद्ध हिंसा, सेंसरशिप और आलोचकों को चुप कराने के लिए ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग होता रहता है.
बलूचिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर जैसे संघर्ष क्षेत्रों में सेना की भूमिका विशेष रूप से चिंताजनक है. बलूचिस्तान में आतंकवाद विरोधी उपायों के नाम पर मनमानी गिरफ्तारियां और जबरन गुमशुदगी की घटनाएं होती रहती हैं. 2025 की संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति की रिपोर्ट में इन प्रथाओं पर चिंता व्यक्त की गई है. अगस्त 2023 में सुरक्षा बलों ने हरनई, बलूचिस्तान में शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोलियां चलाईं, जिसमें एक की मृत्यु हुई और सात घायल हुए. पाकिस्तान को तहरीक-ए-तालिबान, अल-कायदा और बलूचिस्तान मुक्ति सेना जैसे समूहों से गंभीर आतंकवादी खतरे का सामना करना पड़ा है. 2013 में सांप्रदायिक हिंसा में 400 से अधिक शिया मारे गए. बलूचिस्तान में संघर्ष के कारण व्यापक विस्थापन हुआ है, जहां 2008 में 500,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए और 2009 में 1.4 मिलियन लोग प्रभावित हुए.
2024 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने नोट किया कि पाकिस्तान की मानवाधिकार स्थिति में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ है. न्यायेतर हत्याएं, यातना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध जारी हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ईशनिंदा संबंधी न्यायेतर हत्याओं और विपक्षी सदस्यों की गिरफ्तारी की रिपोर्ट दी. जून 2025 के सोशल मीडिया रिपोर्ट्स में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की फायरिंग और एक ईसाई बच्चे की हत्या जैसी घटनाओं का उल्लेख है. अफगान शरणार्थियों के साथ पाकिस्तान का व्यवहार आलोचना का विषय रहा है. 2023 में "अवैध विदेशी प्रत्यावर्तन योजना" के तहत 315,100 से अधिक अफगानों को जबरन वापस भेजा गया. 2024 में 220,000 से अधिक अफगानों को निर्वासित किया गया, जिनमें से 88% ने गिरफ्तारी का डर बताया.