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मैं नहीं ढोऊँगा तुम्हारे गेहूँ के बोझ

------पराग पावन--------

मेरी माँ के गर्भ में राख नहीं पला था

न मेरे पिता की धमनियों में बह रही थी

जली हुई चमड़ियों की दुर्गन्ध

पेट्रोल से भी पुरानी घृणा

अब काई की तरह मुझसे चिपककर

मुझे मिट्टी का हिस्सा बना चुकी है

पर ध्यान से देखो मेरी उँगलियों को

ये तुम्हारी ओर उठी हैं

और राजपथ की ओर

और एक धर्मग्रन्थ की ओर

मेरे इशारे में प्रश्न से अधिक प्रतिकार है

मेरी चुप में कैसा अनहद नाद है

ध्यान से सुनो मेरी यह बात

मैं नहीं ढोऊँगा तुम्हारे गेहूँ के बोझ

यह कोई मध्यकालीन युद्ध नहीं

किसी रणक्षेत्र की दुंदुभि नहीं है यह

यह दो हज़ार पचीस का तेरहवाँ अप्रैल है

देश एक उन्मादी गमछे को पताका की तरह पहन चुका है

एक मंत्र को गाली की तरह याद कर चुका है

इस तारीख में सिरविहीन पुलिस है

प्रशासन है जो कल सूरज को

एक खोटे सिक्के में बदल देगा

तुम्हारा है

तुम्हारा सगा शासक

वह अबतक के सन्यास की सबसे बड़ी शर्म है

और मेरे पास पृथ्वी पर इस समय यही इकलौता वाक्य है

ध्यान से सुनो इसे

मैं नहीं ढोऊँगा तुम्हारे गेहूँ के बोझ

देह बिखरने से सपने नहीं बिखर जाते

यही बात संघर्षों के बारे में भी है

तुमने देख होगा पानी हमेशा नीचे की ओर बढ़ता है

और आग हमेशा ऊपर की ओर

पर अन्याय हमेशा बढ़ता है उस ओर

जहाँ कमज़ोरों की झुकी हुई गर्दन होती है

तुमने यह भी देखा होगा

ज़मीन उसकी होती है जो उसे जोत लेता है

घोड़ा उसका जो उसे साध लेता है

पर ताक़त उसकी होती है

जो ताक़तवर की पुतली पर अपने पाँव जमा देता है

उसे अपने क़रीब बुलाता है

और कहता है

ध्यान से सुनो मेरी यह बात

मैं नहीं ढोऊँगा तुम्हारे गेहूँ के बोझ

हम जो तुम्हारा पेट ढ़ो रहे प्राचीन काल से

हमारे देह की बूँदों से गूँथी जा रहीं तुम्हारी रोटियाँ

तुम्हारे चेहरे की चमक

हमारे पीढ़ीगत पसीने की कमाई है

तुम्हारी आवाज़ जो मिथकों के महाशोर से बल पाकर

हमें रौंद रही है घास की तरह

अब बहुत देर तक नहीं गूँजेगी

तुम देख सकते हो

यदि हम मृत्यु और मंजूर में-से

मृत्यु चुन सकते हैं

तो तुम्हें डरना चाहिए

हम और क्या-क्या चुन सकते हैं

मुझे सितारों को कंचों की तरह खेलने जाना है

मेरे सीने और समुद्र में होड़ है

संसद के सिंहद्वार पर प्रश्नवाचक की तरह लटकना है

समय के आईने पर एक पत्थर की तरह गिरना है मुझे

एक लिबिरियाती कविता में गद्य की घुसना है

मेरी विदाई से पहले मेरे निकट आओ

और ध्यान से

बहुत ध्यान से सुनो मेरी यह बात

मैं नहीं ढोऊँगा तुम्हारे गेहूँ के बोझ।

पराग पावन

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