14/05/2025 : सिंदूर पर भाजपा की यात्रा शुरू | शांति पर फिर ट्रम्प का दावा | नफरत की 148 घटनाएं | मुकद्दर का सिकंदर | दिल ऐसे बनता है | एक कश्मीरी का अकेलापन | विराट, रोहित को हिंट
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा!
| निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
4.7 करोड़ साल पुराना जीवाश्म

फैक्ट-चेकर जुबैर ने धमकियां मिलने की शिकायत की
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ सीएनएन का फर्जी ग्राफिक, भारत को भारी नुकसान दिखाया गया
कश्मीर के लोगों का दर्द- 'लोगों के ताबूत जमीन पर उतरे, लेकिन प्रधानमंत्री से संवदेना नहीं आई'
कर्नल सोफिया कुरैशी पर मंत्री के बिगड़े बोल, मोदी की मेहनत पर पानी फेरा
अमरावती की झुग्गी से सीजेआई के पद तक
ज़ेलेंस्की ने कहा वो करेंगे पुतिन का इंतजार!
फ्रांसीसी अभिनेता जेरार्ड डेपार्डियू यौन उत्पीड़न के दोषी करार
पोल्लाची सैक्स कांड में 9 को उम्र कैद, पीड़ितों को 85 लाख
सिंदूर पर बीजेपी की तिरंगा यात्रा, सवालों पर मिट्टी डालने का प्रयोजन!
विपक्ष ने चूंकि इस बार उरी और पुलवामा वाली गलतियां नहीं दोहराईं, बल्कि, पूरी शिद्दत के साथ पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ सरकार के कदमों का समर्थन किया, लिहाजा भाजपा अबकी बहुत होशियारी के साथ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का भी राजनीतिकरण कर रही है. उसने आज 13 मई से देश भर में 11 दिन का एक अभियान शुरू भी कर दिया, जिसे नाम दिया गया है- ‘तिरंगा यात्रा’. भाजपा ने कहा है कि तिरंगा यात्रा एक गैर राजनीतिक प्रयोजन है और इसका उद्देश्य राष्ट्रभक्ति का संदेश फैलाना और ऑपरेशन सिंदूर की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाना है. इसीलिए ये यात्राएं बीजेपी के बैनर के नीचे नहीं, अपितु किसी ‘न्यूट्रल बैनर’ के तले निकाली जाएंगी. यह भी अपने आप में कितना दिलचस्प है कि, इस यात्रा का ऐलान बीजेपी ने किया है, उसी के नेता संबित पात्रा, विनोद तावड़े और तरुण चुघ को इसके समन्वय की जिम्मेदारी दी गई है और केंद्रीय मंत्रियों समेत देश भर के उसके वरिष्ठ नेता जगह-जगह इन यात्राओं का नेतृत्व करेंगे, लेकिन ‘बैनर उसका नहीं होगा.’
सवाल इस बात का है कि जब यात्रा के विचार से लेकर उसका प्रयोजन, आयोजन, संयोजन सबकुछ उसी को करना है, तब ये ‘न्यूट्रल बैनर’ का पाखंड क्यों? असली मकसद क्या है? किसकी राष्ट्रभक्ति में कमी दिखाई पड़ रही है? कौन है, जिसने भारतीय सेनाओं के पराक्रम पर संदेह किया हो? या ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता पर सवाल उठाया हो? विपक्ष या नागरिक समाज में किसी ने सबूत मांगा हो? बिल्कुल नहीं. बल्कि, जो असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, वैसा कहने की हिम्मत तो बीजेपी में भी कोई नहीं दिखा पाया. ऑपरेशन सिंदूर से सीजफायर (7-10 मई) के बीच आईएमएफ ने जब पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर का ऋण मंजूर किया तो ओवैसी ने कहा था, “यह अब इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड नहीं इंटरनेशनल मिलिटेंट फंड बन गया है.” ओवैसी ने पाकिस्तान के खिलाफ और भी तमाम बातें की थीं और भारत के मुकाबले उसकी हैसियत बताई थी. तो, सवाल यही है कि भाजपा को सीजफायर के बाद तिरंगा यात्रा की जरूरत क्यों पड़ रही है? उसको किस बात का डर सता रहा है? क्या वह उन सवालों से भयभीत है, जो उसका और उसकी सत्ता के नेतृत्व का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं.
राजनीतिक प्रेक्षकों की नजर में मकसद उन सवालों को ठंडा करना हो सकता है, जिनके जवाब पहलगाम में आतंकी हमले के बाद खुद मोदी और उनकी सरकार से अपेक्षित बने हुए हैं. भले ही ऑपरेशन सिंदूर में सौ से ज्यादा आतंकी मार दिए गए हों, लेकिन सवाल अब भी जिंदा हैं (पढ़िए “हरकारा” में ही). यही चीज भाजपा को परेशान कर रही है. बिहार विधानसभा का चुनाव आने वाला है. पश्चिम बंगाल में उसकी तैयारी चल रही है. दोनों जगह नुकसान की चिंता होना स्वाभाविक है. तो क्या मान लिया जाना चाहिए कि सवालों को दफन करना ही उद्देश्य है? खासकर ऐसे सवाल, जो खुद मोदी भक्तों, भाजपा और हिंदुत्व के प्रबल समर्थकों को भी विचलित किए हुए हों. वे ‘बहुत कुछ’ की अपेक्षा पाले हुए थे, लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प ने सब गड़बड़ कर दिया? उन्हें बुरा लगा कि मोदी जैसे ‘मजबूत नेता’ के बजाय ट्रम्प के हाथ में सारे सूत्र हैं. ट्रम्प ने ही दुनिया को बताया कि दोनों मुल्क सीजफायर के लिए राजी हो गए हैं. और फिर ट्रम्प का यह वाक्य सबसे ज्यादा साल रहा है कि ‘मेरे धमकाने पर युद्धविराम’ हुआ. सिर्फ इतना ही नहीं, ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान को ‘बराबरी’ का दर्जा दे दिया. चूंकि इस बार विपक्ष ने गलतियां नहीं कीं, इसलिए भाजपा उरी और पुलवामा के बाद पाकिस्तान के खिलाफ की गई कार्रवाई की तरह ‘खुलकर’ सामने नहीं आ पा रही है. याद रहे, उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक का यूपी के विधानसभा चुनावों (2017) में खुलकर श्रेय लिया गया था और फिर 2019 लोकसभा चुनाव में बालाकोट को भुनाने में भी परहेज नहीं किया गया था.
बीजेपी के चुनावी पोस्टरों में सैनिकों की तस्वीरों का इस्तेमाल हुआ था. लेकिन, इस बार राजनीतिक तौर पर भाजपा मुश्किल में है. उरी और पुलवामा के मामले में भारत की कार्रवाई का जवाब पाकिस्तान ने उस तरह से नहीं दिया था, जैसा उसने इस बार ड्रोन और मिसाइल भेजकर किया. अलग बात है कि बहादुर और ताकतवर भारतीय सेनाओं ने उसके हमलों को विफल कर दिया, पर कूटनीतिक स्तर पर वह भारत के बराबर मालूम दिखाई पड़ा. यही वजह रही कि ब्रह्मा चेलानी सरीखे जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट ने भी सरकार के अचानक सीजफायर के फैसले पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि ‘जीत के जबड़े से हार निकाल लाया भारत’. भारत जीत की दहलीज पर था, लेकिन अंत में मन मसोसकर रह गया. चेलानी ने कहा, 'ऑपरेशन सिंदूर 26 हत्याओं का बदला लेने का एक शक्तिशाली प्रतीक था और फिर भी जिस तरह से हमने पाकिस्तान द्वारा दिल्ली पर मिसाइल दागे जाने के बाद इस ऑपरेशन को समाप्त किया, उससे कई सवालों के जवाब नहीं मिले. इतिहास भारत के निर्णय को अच्छी तरह से नहीं देखेगा. उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर' के समापन को रणनीतिक और प्रतीकात्मक चूक बताया, जो जवाब से अधिक सवाल उठाता है. लेकिन भाजपा उन तमाम सवालों पर मिट्टी डालने के उद्देश्य से अपने राजनीतिक अभियान पर निकल पड़ी है, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद उपजे और अभी तक ‘बह रहे’ हैं. देखना होगा, सवाल मिट्टी में मिलते हैं या नहीं.
ट्रम्प ने फिर कहा संघर्ष अमेरिका ने रुकवाया
भारत ने मध्यस्थता और व्यापार के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट की
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को सऊदी अरब के रियाद में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति कायम करने में अमेरिका की भूमिका पर फिर से जोर दिया. उन्होंने कहा कि दोनों देशों से "परमाणु मिसाइलों का व्यापार न करने, बल्कि उन चीजों का व्यापार करने को कहा जिन्हें वे खूबसूरती से बनाते हैं". जबकि भारत ने मंगलवार को ही ट्रम्प के दावों को गलत बताते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की थी.
ट्रम्प ने दावा किया कि उनके प्रशासन ने ‘कुछ ही दिन पहले’ भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए सफलतापूर्वक एक ‘ऐतिहासिक युद्धविराम’ कराया, जिसके लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर व्यापार का उपयोग किया. उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की उपस्थिति में एक विदेश नीति भाषण में यह बात कही.
उन्होंने दोनों देशों के नेताओं को ‘बहुत शक्तिशाली, बहुत मजबूत, अच्छा और होशियार’ बताया और कहा कि ‘यह सब रुक गया’. अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस प्रयास में विदेश मंत्री मार्को रुबियो का विशेष रूप से उल्लेख किया, कहा कि संघर्ष से ‘लाखों लोग मर सकते थे जो छोटा शुरू हुआ था और दिन-ब-दिन बड़ा और बड़ा होता जा रहा था’.
ट्रम्प ने दुनिया में संघर्षों को सुलझाने वाले शांतिदूत के रूप में अपनी भूमिका को दर्शाने के लिए इस घटना का जिक्र किया, और रूस-यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने के अपने प्रयासों पर भी बात की. 22 अप्रैल को पहलगाम, जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह द्वारा किए गए आतंकी हमले से भड़की हिंसा को रोकने की पहली घोषणा ट्रुथ सोशल पर होने के बाद से राष्ट्रपति ट्रम्प लगभग हर दिन भारत-पाकिस्तान संघर्ष को समाप्त करने में अमेरिका की भूमिका का बखान कर रहे हैं.
उन्होंने 'युद्धविराम' शब्द का इस्तेमाल किया और दावा किया कि यह अमेरिकी मध्यस्थता का नतीजा था. हालांकि, भारत ने कहा है कि यह संघर्ष दोनों देशों के बीच बनी ‘समझ’ के परिणामस्वरूप सुलझा.
इसके पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने एक ब्रीफिंग में कहा कि भारत ने भारत-पाकिस्तान युद्धविराम पर राष्ट्रपति ट्रम्प के बयानों पर अपनी स्थिति अमेरिकी अधिकारियों को ‘सौंप दी’ है. जयसवाल ने कहा कि पाकिस्तान ने जब भारत के डीजीएमओ से बातचीत की मांग की, तब युद्धविराम का प्रस्ताव रखा गया, क्योंकि ‘भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी ठिकानों पर प्रभावी हमले किए’ थे. जयसवाल ने कहा कि कश्मीर पर भारत का लंबे समय से रुख है कि यह नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इस रुख में कोई बदलाव नहीं है. "हमारा लंबे समय से राष्ट्रीय रुख है कि जम्मू और कश्मीर के भारतीय केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित किसी भी मुद्दे को भारत और पाकिस्तान द्वारा द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिए," विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा. जयसवाल ने कहा कि एकमात्र लंबित मुद्दा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भारत को वापस करना है.
हेट क्राइम पहलगाम के बाद
नफरत की 184 घटनाएं मुस्लिमों के साथ
'द क्विंट' की रिपोर्ट है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है. ‘एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ (APCR) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, 22 अप्रैल से 8 मई 2025 के बीच भारत में 184 नफरत से जुड़ी घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें कम से कम 316 लोग प्रभावित हुए. उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक घटनाएं (43), उसके बाद महाराष्ट्र (24), उत्तराखंड (24), मध्य प्रदेश (20), और दिल्ली (6) में हुईं. अन्य प्रभावित राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, ओडिशा और असम भी शामिल हैं. एपीसीआर का कहना है कि इन घटनाओं को केवल एक स्वतःस्फूर्त प्रतिक्रिया कहना गलत होगा. ये एक व्यवस्थित पैटर्न का हिस्सा थीं, जो पहले से तैयार नफरत के माहौल का परिणाम थीं.
84 घटनाएं घृणास्पद भाषण (hate speech) से जुड़ी थीं.
64 धमकी और डराने-धमकाने की घटनाएं.
42 उत्पीड़न, 39 हमले, 19 तोड़फोड़, 14 खुली धमकियां, 7 अपशब्द, और 3 हत्याएं दर्ज की गईं.
फैक्ट-चेकर जुबैर ने धमकियां मिलने की शिकायत की : फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर ने बेंगलुरु पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि बेंगलुरु में उनके घर का पता सोशल मीडिया पर लीक होने के बाद उन्हें धमकियां मिल रही हैं. जुबैर ने 12 मई को अपनी शिकायत में कहा कि उनके घर का पता और मोबाइल फोन नंबर सहित उनकी निजी जानकारी लीक हो गई है. अज्ञात लोगों ने उनके घर पर सूअर का मांस भेजने की धमकी दी है. जुबैर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर कहा, ‘मुझे पहले से ही जान का खतरा है.’
उन्होंने लिखा, "यह पहली बार नहीं है. 2023 में इसी व्यक्ति ने मेरे पते पर पोर्क भेजा था और शिपिंग पता ट्विटर पर साझा किया था. मैंने @DCPEASTBCP के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है. मुझे विश्वास है कि @CPBlr @DgpKarnataka कम से कम इस बार इस धमकी को गंभीरता से लेंगे. पिछली बार जब मैंने शिकायत दर्ज कराई थी, तो कुछ महीनों के बाद एफआईआर बंद कर दी गई थी.”
जुबैर ने @Cyber_Huntss सहित उन एक्स हैंडल्स की जानकारी साझा की है, जिन्होंने उनके घर का पता और मोबाइल नंबर लीक किया है.
कश्मीर के लोगों का दर्द- 'लोगों के ताबूत जमीन पर उतरे, लेकिन प्रधानमंत्री से संवदेना नहीं आई'
'आर्टिकल 14' के लिए आयुषि मलिक की रिपोर्ट है कि कश्मीर लोग इस बात से मायूस हैं कि इतने बड़े हादसे के बावजूद प्रधानमंत्री की ओर से संवदेना नहीं आई. 7 मई 2025 को जब पाकिस्तान की ओर से दागे गए गोले जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में रमीज़ खान के घर पर गिरे, तो उनके 12 वर्षीय जुड़वां बच्चे ज़ैन अली और उर्वाह फातिमा की मौत हो गई. रमीज़, जो पेशे से स्कूल में प्रयोगशाला सहायक हैं, गंभीर रूप से घायल हुए और अब जम्मू के सरकारी मेडिकल कॉलेज में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्हें यह भी नहीं बताया गया है कि उनके बच्चे अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनकी पत्नी, उरूसा खान (34), ICU में उनके बिस्तर के पास बैठी हैं और बच्चों को उनके नानी के घर में सुरक्षित होने का बहाना बना रही हैं. उरूसा की बहन मारिया खान ने बताया, “जब भैया (रमीज़) बच्चों के बारे में पूछते हैं, तो दीदी आंसू रोककर कहती हैं-‘वे नानी के घर हैं, ठीक हैं.’” जब रमीज़ ने बच्चों से वीडियो कॉल पर बात करने की इच्छा जताई, तो उरूसा ने नेटवर्क खराब होने का बहाना बना दिया. “उन्हें नहीं पता कि उनके बच्चे मर चुके हैं. हम सब उनके सामने सामान्य व्यवहार करते हैं,”
मारिया ने कहा. अप्रैल की 25 तारीख को ज़ोया और अयान (घर पर पुकारे जाने वाले नाम) ने अपना 12वां जन्मदिन मनाया था. वे हाल ही में पुंछ के क्राइस्ट स्कूल में दाखिल हुए थे. बेहतर शिक्षा के लिए परिवार ने पुंछ शहर में किराए पर घर लिया था.
मारिया ने बताया, “वे हमेशा एक-दूसरे के साथ रहते थे. लड़ते नहीं थे, बस एक-दूसरे को चिढ़ाते रहते थे. जब उन्हें अलग-अलग सेक्शन मिले, तो ज़ोया ने कहा था कि उसका सेक्शन बदल दो, ताकि दोनों साथ रह सकें.” घर में अगर पैसे कम होते, तो ज़ोया अयान को डांट देती थी कि “पापा की सैलरी नहीं आई है, क्यों तंग करते हो?” कभी-कभी दोनों अपनी गुल्लक तोड़कर उसमें से पैसे निकालकर पिता को दे देते थे और कहते-“पापा, ये रख लो, बाद में अपनी सैलरी से वापिस दे देना.” मारिया रोने लगीं. उनके पति सोहैल खान ने उन्हें संभाला. वे भी बच्चों के बहुत करीब थे.
मारिया ने बताया कि 7 मई की सुबह जब बॉर्डर पर गोलाबारी शुरू हुई, तब बच्चों ने अपने मामा आदिल को फोन किया, जो उन्हें लेने आ रहे थे. सुबह 6 बजे के करीब, जब परिवार घर से निकल रहा था, तभी एक गोला घर के पिछले हिस्से में गिरा. ज़ोया की मौके पर ही मौत हो गई. अयान की तलाश पड़ोस में हुई, वो बेहोश था. लोग उसे कार में डालकर अस्पताल लाए लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उसी हमले में रमीज़ के लीवर और पसलियों में चोट आई और अत्यधिक खून बह गया. उन्हें भी अस्पताल लाया गया, जहां वे ICU में हैं. उरूसा कई दिन से न खाना खा रही हैं, न सो रही हैं. उनका वजन 10 किलो तक कम हो गया है. सोहैल बोले, “जो लोग हमारे बच्चों से कभी नहीं मिले, वे भी रो रहे हैं. ये पूरे देश का दर्द है.”
चार दिन की इस लड़ाई में 21 आम नागरिक और 5 सैनिक मारे गए. इनमें बच्चे, महिलाएं, प्रवासी मजदूर, सरकारी कर्मचारी, धर्मगुरु तथा हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी शामिल हैं. फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मई को राष्ट्र को दिए 22 मिनट के संबोधन में किसी भी नागरिक की मौत का ज़िक्र नहीं किया. J&K स्टूडेंट्स एसोसिएशन के संयोजक नासिर खुहेमी ने लिखा- “हमारी ज़िंदगियों की भी कोई अहमियत है.” “15 से अधिक ताबूत जमीन में उतारे गए, लेकिन एक शब्द भी संवेदना का नहीं आया. क्या सीमा पर रहने वाले लोग अदृश्य हैं?”
कर्नल सोफिया कुरैशी पर मंत्री के बिगड़े बोल, मोदी की मेहनत पर पानी फेरा
प्रधानमंत्री मोदी भले ही पाकिस्तान के खिलाफ भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की उपलब्धियां गिनाने में लगे हों, लेकिन मध्यप्रदेश में उनके ही एक मंत्री ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया. राज्य के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह सोमवार को इंदौर के महू के रायकुंडा गांव में आयोजित हलमा कार्यक्रम में पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर अमर्यादित बयान दिया. इसका वीडियो मंगलवार को सामने आया. शाह ने इस कार्यक्रम में कहा- जिन लोगों ने हमारी बेटियों का सिंदूर उजाड़ा, मोदी जी ने उन्हीं की बहन भेजकर उनकी ऐसी की तैसी कर दी. शाह ने कहा, बजाओ इसी बात पर मोदी जी के लिए ताली. मंच पर पूर्व मंत्री ऊषा ठाकुर भी बैठी थीं, जो अपने विवादास्पद बयानों के लिए जानी जाती हैं.
शाह ने यह भी कहा कि उन्होंने कपड़े उतार-उतार कर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा. अब मोदी जी कपड़े तो उतार नहीं सकते, इसलिए उनकी समाज की बहन को भेजा कि तुमने हमारी बहनों को विधवा किया है तो तुम्हारे समाज की बहन आकर तुम्हें नंगा करके छोड़ेगी.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर लिखा- भाजपा की मध्यप्रदेश सरकार के एक मंत्री ने हमारी वीर बेटी कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में बेहद अपमानजनक, शर्मनाक और ओछी टिप्पणी की है. पहलगाम के आतंकी देश को बांटना चाहते थे, पर आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देने में पूरे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान देश एकजुट था. बीजेपी ने पहले पहलगाम में शहीद नौसेना अफसर की पत्नी को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया, फिर विदेश सचिव विक्रम मिसरी की बेटी को तंग किया.
एक कश्मीरी का अकेलापन
'फोर्स इंडिया' के लिए ग़ज़ाला वहाब की रिपोर्ट है कि 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम के बैसरन मैदान में हुए आतंकी हमले ने मोदी सरकार द्वारा 2014 से बुनी गई कश्मीर की सामान्य स्थिति के भ्रम को तोड़ दिया. सरकार का दावा था कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में अलगाववादी भावना समाप्त हो गई है और सामान्य स्थिति लौट आई है. बढ़ती पर्यटक संख्या को सामान्य स्थिति का सबूत बताया गया, लेकिन लेखक इसे सरकारी प्रचार का हिस्सा मानती हैं. गुरेज़ घाटी जैसे अस्थिर क्षेत्रों को भी पर्यटन के लिए खोला गया, जो पहले घुसपैठ और सुरक्षा अभियानों के केंद्र थे. मीडिया ने बिना जांच-पड़ताल के सरकारी दावों को स्वीकार कर लिया. जबकि इन सवालों को नजरअंदाज कर दिया गया-
केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन में कितने कश्मीरी कार्यरत हैं?
कश्मीर कैडर के कितने पुलिस अधिकारियों को घाटी से बाहर भेजा गया है?
खुर्रम परवेज़ जैसे कई नागरिक समाज कार्यकर्ता और पत्रकार क्यों जेल में हैं?
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) अब भी क्यों लागू है?
वहाब ने लिखा है कि पहलगाम हमले को खुफिया विफलता कहना गलत है. कश्मीरी लोगों के हाशिए पर धकेले जाने से यहां के लोग भी मौन असंतोष की ओर बढ़ रहे हैं. स्थानीय नेताओं और पुलिस सेवा के अधिकारियों के अधिकारों को कम करने से सूचना देने वालों और प्राप्तकर्ताओं के बीच विश्वास की कड़ी टूट गई है. हिंदू पुरुषों को मुस्लिम हमलावरों द्वारा निशाना बनाना, हालांकि भयावह है, लेकिन अलग घटना नहीं है. 1990 के दशक में भी हिंदुओं को निशाना बनाया गया था, जिससे उन्हें और उनके परिवारों को घाटी से पलायन करना पड़ा था. 1947 में, जम्मू और कश्मीर के जम्मू और पूंछ प्रभागों के मुसलमानों को महाराजा हरि सिंह के हिंदू और सिख सैनिकों द्वारा जनसांख्यिकीय परिवर्तन लाने के लिए मारा गया था.
अप्रैल 2020 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन आदेश ने गैर-कश्मीरियों को भी डोमिसाइल देने का मार्ग प्रशस्त किया. पिछले दो वर्षों (2023-2025) में, सरकार ने 35.12 लाख डोमिसाइल प्रमाणपत्र जारी किए, जिनमें से 83,742 गैर-राज्य निवासियों को दिए गए. कश्मीरियों के लिए, जनसंख्या प्रोफाइल में छोटा सा बदलाव भी भूमि और सरकारी रोजगार के संदर्भ में बड़े आर्थिक प्रभाव डालेगा.
फरवरी 2024 में घोषित नई आरक्षण नीति के तहत, सरकारी नौकरियों में जनजातीय आबादी के लिए आरक्षण कैप बढ़ा दिया गया है. इसमें गुज्जर-बकरवाल श्रेणी के अलावा, पहाड़ी, पदारी, कोली और गद्दा ब्राह्मणों को भी शामिल किया गया है. इससे आरक्षण पूल 60 प्रतिशत तक बढ़ गया है, जिससे सामान्य श्रेणी में केवल 30 प्रतिशत रिक्तियां बची हैं, जो घाटी के मुसलमानों को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं.
हिंसा की घटना के बाद, कश्मीरियों के लिए स्थिति और भी दर्दनाक हो गई है. भारत के विभिन्न शहरों में कश्मीरी व्यापारियों पर हमले हुए हैं, जिससे उन्हें घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा है. छात्रों को परेशान किया गया है और 'राष्ट्रवाद' परीक्षण के अधीन किया गया है. कश्मीर के भीतर, संदिग्धों के घरों को ध्वस्त कर दिया गया है. 90 लोगों को पीएसए के तहत बुक किया गया है और 2,800 लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है, जिनमें से तीन की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई है.
कश्मीर में एक स्पष्ट डर है, जो हमले की सर्वसम्मति से निंदा से स्पष्ट है. वे अपने जीवन, अपने रोजगार और अपने बच्चों के भविष्य की संभावनाओं के लिए डरे हुए हैं. एक पत्रकार ने कहा, "कश्मीर में मौजूदा मूड युद्ध के लिए है. भारत पाकिस्तान को एक बार में खत्म कर दे. कम से कम, तब यह तलवार हमारे सिर से उठ जाएगी."
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ सीएनएन का फर्जी ग्राफिक, भारत को भारी नुकसान दिखाया गया
'ऑल्ट न्यूज़' की रिपोर्ट है कि हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष के संदर्भ में सोशल मीडिया पर एक सीएनएन के नाम से वायरल इन्फोग्राफिक तेजी से फैल रहा है, जो फैक्ट चेक में फर्जी पाया गया है. इस ग्राफिक में दावा किया गया है कि भारत को पाकिस्तान की तुलना में कहीं अधिक नुकसान हुआ, जिसमें अधिक संख्या में जेट विमान, ड्रोन, वायु रक्षा प्रणाली, सैनिक और आम नागरिक खोने की बात कही गई है. इस ग्राफिक को कई पाकिस्तानी यूज़र्स जैसे @zhao_dashuai, @FM1947PAK, @Defence_PK99, और @_FaridKhan द्वारा ‘एक्स’ पर साझा किया गया. इनमें से कई अकाउंट भारत में प्रतिबंधित हैं, जिससे ये संकेत मिलता है कि वे संभवतः पाकिस्तान से संचालित हो रहे हैं. ग्राफिक फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर भी साझा किया गया. 'ऑल्ट न्यूज़' ने इस ग्राफिक का रिवर्स इमेज सर्च किया, लेकिन सीएनएन की वेबसाइट पर इसका कोई प्रमाण नहीं मिला. कीवर्ड सर्च से भी सीएनएन या किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली. ग्राफिक में कहीं भी डेटा का स्रोत नहीं बताया गया था और 'Gujarat' की गलत स्पेलिंग (Gujrat) थी, जो इसकी विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न करता है. सीएनएन के प्रवक्ता ने 'ऑल्ट न्यूज़' को बताया - “यह छवि पूरी तरह से बनावटी है. सीएनएन ने कभी इस तरह की कोई जानकारी प्रकाशित नहीं की.”
विश्लेषण | डॉ संजय बारू
‘युद्ध सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ को बढ़ावा देते हैं ‘
'द वायर' में संजय बारू ने लिखा है कि किसी भी युद्ध को हथियार आपूर्तिकर्ता नई तकनीक के वास्तविक परीक्षण के अवसर के रूप में देखते हैं. इसलिए जब नई तकनीक विकसित होती है तो उनके परीक्षण के लिए युद्ध भी उपयोगी साबित होते हैं. शांति के समय तकनीक विकसित की जाती है, निवेश होता है और युद्ध के समय उनका परीक्षण होता है और मुनाफा कमाया जाता है. भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे टकराव में, पारंपरिक पश्चिमी आपूर्तिकर्ताओं के हथियारों की तुलना में चीन जैसे नए आपूर्तिकर्ता के नए हथियार अधिक प्रचारित हो रहे हैं. यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका के प्रतिबंधों के डर से चीन अपने हथियारों का प्रदर्शन नहीं कर पाया, लेकिन भारत-पाकिस्तान युद्ध में उसे यह अवसर खुलकर मिल गया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुताओं की शुरुआत के कुछ ही दिनों के भीतर, दुनिया भर के हथियार आपूर्तिकर्ताओं ने वैकल्पिक हथियार प्लेटफॉर्मों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन शुरू कर दिया. सबसे पहले प्रतिक्रिया दी एक एंग्लो-अमेरिकन समाचार एजेंसी, रॉयटर्स ने, जिसने फ्रांसीसी लड़ाकू विमान राफेल के मार गिराए जाने की खबर दी जो अब भारतीय वायुसेना के बेड़े का हिस्सा है. राफेल के निर्माता दसॉल्ट एविएशन के शेयरों में 3.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जिससे शेयर का मूल्य $373.8 से घटकर $362.05 रह गया. इसी समय, चीनी कंपनी चेंगदू एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन, जो पाकिस्तान वायुसेना को J-10C और J-17 लड़ाकू विमान प्रदान करती है, उनके शेयरों में 30% की वृद्धि देखी गई. बताया गया कि चीन निर्मित विमानों ने फ्रांस निर्मित विमान को मार गिराया. इस हथियार बाज़ार में बाज़ी मारने की होड़ में रूस के समर्थकों ने भी प्रचारित किया कि पाकिस्तान के हवाई हमलों को विफल करने में भारत की सफलता का श्रेय रूस की S-400 मिसाइलों को जाता है. वही मिसाइलें जिनकी खरीद पर अमेरिका ने भारत को चेतावनी दी थी और प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी. पाकिस्तान ने भी भारत के विमानों के खिलाफ चीन की PL-15 मिसाइलों की प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया.
जब युद्ध की गतिविधियां तेज़ थीं, तब मीडिया में यह भी रिपोर्ट आई कि भारत को इज़राइली हथियार मिल रहे हैं और पाकिस्तान को तुर्की के हथियार. वहीं अमेरिका के विश्लेषकों ने भारत को याद दिलाना शुरू किया कि उसे अमेरिकी लड़ाकू विमानों की खरीद करनी चाहिए. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने स्पष्ट रूप से भारत को F-35 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया. भारतीय वायुसेना को बड़ी संख्या में लड़ाकू विमान खरीदने हैं और इसमें अमेरिका, फ्रांस, रूस और स्वीडन के बीच प्रतियोगिता चल रही है.
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल की झड़पों में वायुसेना की भूमिका को देखते हुए भारत का यह निर्णय प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ताओं के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित होगा. साल 1961 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहावर ने अमेरिकी जनता को चेतावनी दी थी उस ‘सैन्य-औद्योगिक गठजोड़’ के बारे में जिसकी शक्ति लगातार बढ़ रही थी। उन्होंने चेताया था, “हमें सरकार की परिषदों में सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ द्वारा अनुचित प्रभाव की संभावना के प्रति सतर्क रहना चाहिए. यह शक्ति यदि गलत दिशा में गई तो उसका परिणाम विनाशकारी हो सकता है.” परंतु, इस चेतावनी के बावजूद सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ का वैश्विक विस्तार और प्रभाव लगातार बढ़ता गया. 1961 से 2025 के बीच दर्जनों युद्ध लड़े गए, और लगभग हर युद्ध में दोनों पक्षों को हथियार आपूर्ति करने वाले अमेरिका, यूरोप और रूस ही रहे. चीन ने हाल ही में इस कारोबार में प्रवेश किया है.
दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई यह है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही आयातित हथियारों पर निर्भर हैं. दोनों देशों ने घरेलू रक्षा उत्पादन क्षमताएं विकसित करने की कोशिश की है, परंतु वास्तविक संघर्ष की स्थितियों में दोनों वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं पर ही निर्भर रहते हैं. यही कारण है कि वैश्विक हथियार निर्माता दोनों देशों को लुभाते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका और रूस दोनों ही भारत और पाकिस्तान को हथियार बेचने में संकोच नहीं करते. चीन केवल पाकिस्तान को हथियार बेचता है, जबकि इज़राइल केवल भारत को. फ्रांस वह बेचता है जो कोई भी खरीदने को तैयार हो. यह दिलचस्प और शिक्षाप्रद कहानी मुझे मशहूर पाकिस्तानी अर्थशास्त्री और पूर्व वित्त मंत्री डॉ महबूब उल हक ने सुनाई थी. 1997 में जब मैं इस्लामाबाद में उनके ह्यूमन डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के सम्मेलन में आमंत्रित था, तब उन्होंने यह किस्सा सुनाया. 1980 के दशक के अंत में जब वह बेनज़ीर भुट्टो की सरकार में वित्त मंत्री थे, तब भुट्टो ने उनसे पूछा कि क्या फ्रांस से कुछ लड़ाकू विमान खरीदने के लिए पैसे उपलब्ध हो सकते हैं. हक ने पूछा कि इतनी जल्दी यह आदेश क्यों देना है? भुट्टो ने स्पष्ट रूप से उत्तर दिया - “मुझे पेरिस जाना है। अगर हम कुछ जेट खरीदेंगे तो फ्रांसीसी सरकार मुझे राजकीय यात्रा पर बुलाएगी.”
कुछ ऐसा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस वर्ष मार्च में अमेरिका यात्रा के दौरान हुआ. भारत ने अमेरिका से रक्षा खरीद बढ़ाने की पेशकश की ताकि ट्रंप से बातचीत में माहौल अनुकूल रहे. 2005 में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग समझौता और 2015 में एक नया रक्षा ढांचा समझौता हुआ था. इसके बाद से पिछले दो दशकों में भारत की रक्षा आयातों में अमेरिका की हिस्सेदारी 2006-2010 में लगभग 1% से बढ़कर 2020-2024 में 10% से अधिक हो गई. वहीं रूस की हिस्सेदारी 75% से घटकर 36% रह गई.
पाकिस्तान में भी ऐसा ही बदलाव देखने को मिला. फ्रांस की पाकिस्तान रक्षा बाज़ार में हिस्सेदारी 36% से गिरकर शून्य के करीब पहुंच गई, जबकि चीन की हिस्सेदारी 36% से बढ़कर 81% हो गई. इज़राइल भारत का महत्वपूर्ण स्रोत बना रहा, और तुर्की पाकिस्तान का. तो जब दक्षिण एशिया के ये दो पड़ोसी एक-दूसरे से लड़ते हैं, तब अमेरिकी, फ्रांसीसी, रूसी, चीनी, इज़राइली और तुर्की हथियार निर्माता मुनाफा कमाते हैं.
पिछले दशक में भारत ने ‘आत्मनिर्भरता’ की नीति के तहत घरेलू रक्षा निर्माण को प्रोत्साहित किया है. इससे कुछ हद तक आयात पर निर्भरता कम हुई है, खासकर युद्ध जैसी परिस्थितियों में। भारत अब मिसाइलों और छोटे हथियारों को मिस्र, फिलीपींस, वियतनाम, अर्मेनिया और पोलैंड जैसे देशों को निर्यात भी कर रहा है. ड्रोन निर्माण में भारत ने घरेलू स्तर पर महत्वपूर्ण क्षमताएं अर्जित की हैं. 2017-2018 में भारत ने ड्रोन निर्माण को बढ़ावा देने का प्रयास किया था, जिसका लाभ अब हो रहा है, जब भारतीय ड्रोन सीमा पार कहर बरपा रहे हैं.
विश्लेषण | अपूर्वानंद
भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद मोदी और उनके समर्थकों को धर्मनिरपेक्षता से क्या सीखना चाहिए?
प्रोफेसर अपूर्वानंद ने 'द वायर' में अपने लेख में लिखा है कि मोदी और उनके समर्थकों के लिए यह एक अवसर है आत्मचिंतन का. उन्हें समझना चाहिए कि जब भारत दुनिया में नैतिक ऊंचाई हासिल करता है, तो वह अपनी बहुलतावादी, समावेशी और धर्मनिरपेक्ष छवि के कारण करता है, न कि उग्र राष्ट्रवाद या साम्प्रदायिकता के कारण. उन्होंने लिखा जब कर्नल सोफिया कुरैशी ने कहा— 'मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और उसकी सेना भारत के संवैधानिक मूल्यों की खूबसूरत झलक है.” अब ये शब्द युद्ध के नगाड़ों के शांत हो जाने के बाद भी लंबे समय तक गूंजते रहेंगे.
यह हालिया भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान बोले गए असंख्य बयानों में सबसे महत्वपूर्ण शब्द हैं. बहुत जल्द भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता इन्हें अपने आक्रामक, हिंसक और सांप्रदायिक प्रचार के शोर में दबाने की कोशिश करेंगे.
लेकिन हमें इन्हें विस्मृति में नहीं जाने देना चाहिए. ये शब्द साबित करते हैं कि भारत अपने प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान पर केवल एक दावे के आधार पर श्रेष्ठता साबित कर सकता है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. अब जबकि दोनों देशों ने पीछे हटकर युद्ध को टाल दिया है, एक सवाल रह जाता है : कौन जीता और कौन हारा? दोनों देशों के नेता अपनी-अपनी जनता को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे विजेता हैं. चूंकि जनता ने उन्हें बिना शर्त समर्थन दिया, वे अपने नेताओं के दावों को स्वीकार करने को मजबूर हैं. लेकिन सच्चाई उनके लिए शर्मनाक है.
इस चिंता को एक ओर रखते हुए, हम इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि इस संघर्ष में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को विचारधारा के मैदान में एक निर्णायक पराजय का सामना करना पड़ा है. उनका राष्ट्रवाद का विचार पराजित हो गया है. भारत पाकिस्तान से इसीलिए बेहतर नहीं है कि वह एक हिंदू राष्ट्र बन चुका है, बल्कि इसलिए बेहतर है, क्योंकि भारत का संवैधानिक स्वरूप धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का है.
एक युद्ध होता है हथियारों से और दूसरा युद्ध होता है भाषा से— भाषा जो विचारों की अभिव्यक्ति होती है. जब दो देश आपस में लड़ते हैं, तो वे इसे विचारों के युद्ध में भी बदलना चाहते हैं. दोनों देश यह दावा करते हैं कि वे ऐसे विचार के वाहक हैं, जो दूसरे देश के विचार से श्रेष्ठ है. वे दुनिया के बाकी देशों से समर्थन पाने के लिए यह साबित करना चाहते हैं कि केवल उनके विचार की विजय से ही पूरी दुनिया का कल्याण हो सकता है. जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो उसने यह कहने की ज़रूरत महसूस की कि यूक्रेन नाज़ी विचारधारा को बढ़ावा दे रहा है.
ऐसे समय में सवाल उठता है : कौन-सा देश धर्म का प्रतिनिधित्व करता है, और कौन अधर्म का? तो आज के आधुनिक समय में धर्म क्या है और अधर्म क्या?
पिछले दस दिनों में विचारों और भाषा का युद्ध भी लड़ा गया. इस दौरान भारत की ओर से उसकी सेना बोल रही थी, जबकि देश की राजनीतिक सत्ता ने चुप्पी साधे रखी. लेकिन विदेश सचिव विक्रम मिसरी और सेना की प्रवक्ता कर्नल सोफिया क़ुरैशी तथा विंग कमांडर व्योमिका सिंह द्वारा प्रयुक्त भाषा, 22 अप्रैल से पहले और उसके बाद भारत की राजनीतिक सत्ता के प्रमुखों द्वारा बोले गए शब्दों से बिल्कुल अलग और उसके विपरीत थी.
संघर्ष के तीसरे दिन जब मीडिया से बात करते हुए भारतीय सेना पर मस्जिदों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया, तो कर्नल क़ुरैशी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है. यही कथन उस आरोप का जवाब था कि भारत ने मस्जिदों को निशाना बनाया. वह कहना चाह रही थीं कि भारत किसी भी धार्मिक प्रतीक को निशाना नहीं बना सकता. वह किसी भी धर्म का अपमान नहीं कर सकता.
यह एक वाक्य केवल पाकिस्तान के लिए नहीं कहा गया था. इसे भारत के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को भी ध्यान से सुनना चाहिए. केवल वे ही क्यों – उन सभी समर्थकों को भी यह सुनना चाहिए, जिन्होंने इन्हीं नेताओं को इसलिए चुना था, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि वे भारत की धर्मनिरपेक्ष पहचान को बदल देंगे और इसे एक हिंदू राष्ट्र में बदल देंगे.
2019 के आम चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने गर्व से कहा था कि 2014 के बाद ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द गायब हो गया है. उन्होंने खुद को इस बात की बधाई दी थी कि 2019 के चुनावों में कोई भी राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहनकर लोगों को गुमराह नहीं कर पाया.
योगी आदित्यनाथ, जो मोदी के बाद बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, ने 2017 में कहा था कि ‘सेक्युलर’ शब्द सबसे बड़ा झूठ है.
2023 में, संसद में सरकार द्वारा वितरित संविधान की प्रतियों से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द हटा दिए गए. संविधान से इन्हें हटवाने की कोशिशें बार-बार अदालतों में भी की गईं.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कई बार कह चुके हैं कि संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत कोई पवित्र चीज नहीं है और उसे बदला जा सकता है. जबकि सुप्रीम कोर्ट बार-बार कह चुका है कि संसद कोई भी कानून बनाए, वह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं कर सकता. धर्मनिरपेक्षता इस मूल संरचना का अनिवार्य तत्व है. लेकिन धनखड़ इसे हटाना चाहते हैं.
बीजेपी की मातृसंस्था के तमाम गुरुओं को सबसे ज्यादा नफ़रत जिस एक विचार से है, वह है धर्मनिरपेक्षता. बीजेपी और आरएसएस को नेहरू से सबसे ज्यादा नफ़रत इसलिए है, क्योंकि उन्हें भारत को धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनाने का जिम्मेदार माना जाता है.
आपको याद होगा कि जब उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से रिश्ता तोड़कर कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया था, तो बीजेपी नेताओं ने उनका मज़ाक उड़ाया था कि अब वे ‘धर्मनिरपेक्ष’ हो गए हैं. महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल ने भी तंज कसते हुए कहा था कि ठाकरे अब सेक्युलर बनना चाहते हैं. बीजेपी समर्थक तो ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं.
2014 के बाद बीजेपी समर्थकों ने ‘सेक्युलर’ शब्द को बिगाड़कर ‘सिक्युलर’ कहना शुरू कर दिया – जैसे कि जो भी धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करता है वह बीमार है, या यह विचार ही कोई बीमारी है. यहां आप मूल अंग्रेजी में पूरा लेख पढ़ सकते हैं...
‘मुकद्दर का सिकंदर’
अमरावती की झुग्गी से सीजेआई के पद तक
अमरावती के कांग्रेस नगर इलाके में अपने घर में, जिसकी दीवारें बीआर अंबेडकर की तस्वीरों से सजी हैं, कमलताई अपने आशीर्वाद गिन रही हैं. गद्गद वह पूछती हें, “मेरे बच्चे को तो मुकद्दर का सिकंदर होना ही चाहिए ना.” उनके बेटे जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई 14 मई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने वाले हैं. 84 वर्षीय महिला के सामने यह सवाल उठ रहा है कि क्या वह दिल्ली में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगी. वह कहती हैं, “मी गेलिच पहिजे ना (मुझे निश्चित रूप से जाना चाहिए, है न)?”
अपने बेटे के हस्तलिखित नोट्स, क्लिपिंग्स और कुछ पुरानी तस्वीरों से भरी एक पुरानी फ़ाइल थामे – जिसमें उनके बेटे के जन्म से लेकर सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पद पर उसके उत्थान तक के सफ़र के संकेतों का सावधानीपूर्वक संकलन है.
यह पूर्व स्कूल शिक्षिका कमलताई और न्यायपालिका दोनों के लिए मील का पत्थर है. न्यायमूर्ति गवई दलित समुदाय से भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले दूसरे व्यक्ति होंगे. 2007 में, पूर्व सीजेआई केजी बालाकृष्णन पहले दलित सीजेआई बने और तीन साल तक सेवा की. न्यायमूर्ति गवई का छह महीने का कार्यकाल 23 नवंबर को समाप्त हो रहा है.
1950 में अपनी स्थापना के बाद से सर्वोच्च न्यायालय में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से केवल सात न्यायाधीश ही रहे हैं.
न्यायमूर्ति गवई ने अक्सर संविधान की भावना का हवाला देते हुए स्वीकार किया है कि सकारात्मक कार्रवाई ने उनकी पहचान को कैसे आकार दिया है. उन्होंने अप्रैल 2024 में एक भाषण में कहा था, “यह पूरी तरह से डॉ बीआर अंबेडकर के प्रयासों के कारण है कि मेरे जैसा कोई व्यक्ति, जो नगरपालिका के स्कूल में एक अर्ध-झुग्गी क्षेत्र में पढ़ता था, इस पद को प्राप्त कर सका.”
जब उन्होंने “जय भीम” के नारे के साथ अपना भाषण समाप्त किया, तो न्यायाधीश को भीड़ से खड़े होकर तालियाँ मिलीं.
फ्रांसीसी अभिनेता जेरार्ड डेपार्डियू यौन उत्पीड़न के दोषी करार
‘सीएनएन’ की रिपोर्ट है फ्रांस के पेरिस की एक अदालत ने मंगलवार को 2021 में एक फिल्म सेट पर दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न के दोषी पाए जाने पर 76 वर्षीय जेरार्ड डेपार्डियू को 18 महीने की सशर्त जेल की सजा सुनाई. यह फ्रांसीसी सिनेमा के इस दिग्गज के लिए बड़े सार्वजनिक शर्मिंदगी का क्षण है. जेरार्ड डेपार्डियू को यह सजा साल 2021 में एक फिल्म सेट पर दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न का दोषी पाये जाने पर सुनाई गई है. यह मामला फ्रांस में #MeToo आंदोलन के सबसे चर्चित मुकदमों में से एक माना जा रहा है. डेपार्डियू (76) ने किसी भी तरह की गलत हरकत से इनकार किया है और उनके वकील ने कहा है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे. डेपार्डियू ने अपने करियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया है, जिनमें ‘ग्रीन कार्ड’, ‘द लास्ट मेट्रो’ और ‘सिरानो दे बर्जेराक’ जैसी फिल्में शामिल हैं.
पोल्लाची सेक्स कांड में 9 को उम्र कैद, पीड़ितों को 85 लाख
तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले का एक खूबसूरत कस्बा पोल्लाची छह साल पहले सुर्खियों में आया था जब नौ पुरुषों को 2016 से 2018 के बीच युवतियों और महिलाओं के यौन उत्पीड़न, वीडियो रिकॉर्डिंग और ब्लैकमेलिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया. 13 मई 2025 को कोयंबटूर की महिला अदालत ने सभी नौ आरोपियों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जो उनकी मृत्यु तक जारी रहेगी. अदालत ने तमिलनाडु सरकार को आठ पीड़िताओं को 85 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया.
यह मामला 24 फरवरी 2019 को तब सामने आया जब एक कॉलेज छात्रा ने पोल्लाची ईस्ट पुलिस में शिकायत दर्ज की कि चार पुरुषों ने 12 दिन पहले एक चलती कार में उसका यौन उत्पीड़न किया. 19 वर्षीय छात्रा पहली पीड़िता थी, जिसने इन अपराधियों के खिलाफ आवाज उठाई, जो 2016 से महिलाओं को लालच देकर उनका शारीरिक शोषण कर रहे थे. पुलिस ने जांच शुरू की और आरोपियों के मोबाइल फोन और लैपटॉप की जांच की. इन उपकरणों में कई पीड़िताओं, छात्राओं से लेकर विवाहित महिलाओं तक के यौन उत्पीड़न के वीडियो मिले. अधिकतर अपराध आरोपी के. तिरुनावुक्करसु के चिन्नप्पापलायम स्थित घर में हुए. मामले की गंभीरता को देखते हुए, 2019 में जांच क्राइम ब्रांच-सीआईडी को सौंपी गई, और अप्रैल 2019 में सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली. सीबीआई ने पाया कि मुख्य आरोपी एन. सबरीराजन ने पीड़िताओं को फंसाया. एक पीड़िता का उत्पीड़न 12 फरवरी 2019 को धरपुरम रोड पर एक कार में हुआ, जिसे रिकॉर्ड किया गया और ब्लैकमेल के लिए इस्तेमाल किया गया.
आठ पीड़िताओं ने गवाही दी, जो मध्यम और निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से थीं. गोपनीयता बनाए रखने के लिए कोयंबटूर के संयुक्त न्यायालय परिसर में विशेष कोर्ट रूम बनाया गया. 14 फरवरी 2023 से शुरू हुए मुकदमे में 40 गवाहों की जांच हुई. यह सजा पीड़िताओं के लिए न्याय और समाज के लिए कड़ा संदेश है.
कोहली और रोहित को हिंट मिल गई थी
यह अनुमान लगाया जा रहा था कि बीसीसीआई कोहली को 20 जून 2025 से इंग्लैंड के खिलाफ शुरू होने वाली पांच मैचों की टेस्ट सीरीज में खेलने के लिए राजी करेगा, लेकिन नई रिपोर्ट्स इससे उलट संकेत दे रही हैं. टेलीग्राफ ने दैनिक जागरण की रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि कोहली को टीम में बने रहने के लिए मनाने के बजाय, बीसीसीआई ने उन्हें बताया कि लंबे समय से खराब फॉर्म के कारण टेस्ट टीम में उनकी जगह अनिश्चित है. जागरण ने सूत्र के हवाले से लिखा है, “बीसीसीआई किसी से अनुरोध नहीं करता. खिलाड़ी का फैसला उसकी निजी पसंद है. हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करते.” रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 7 मई को मुंबई में हुई बैठक के दौरान रोहित शर्मा को भी ऐसा ही संदेश दिया गया था.
ज़ेलेंस्की ने कहा वो करेंगे पुतिन का इंतजार!
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने गुरुवार को तुर्की में व्लादिमीर पुतिन के साथ आमने-सामने की बातचीत के लिए इंतज़ार करने की अपनी प्रतिज्ञा को दोहराया है, इसे रूस की शांति की मंशा की एक कसौटी बताया है. मंगलवार को कीव में पत्रकारों से बात करते हुए ज़ेलेंस्की ने कहा कि वह तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन के साथ अंकारा में पुतिन का इंतज़ार करेंगे और यदि पुतिन ने इस्तांबुल में बैठक करने का विकल्प चुना, तो वे वहां भी जाने को तैयार हैं. ज़ेलेंस्की ने कहा, “अगर पुतिन नहीं आते और चालबाज़ी करते हैं, तो यह अंतिम प्रमाण होगा कि वह युद्ध समाप्त नहीं करना चाहते.” सप्ताहांत में पुतिन ने इस्तांबुल में यूक्रेन के साथ सीधी बातचीत का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने कीव और उसके सहयोगियों की ओर से सोमवार तक युद्धविराम पर सहमति देने की मांग को खारिज कर दिया, जिसे न मानने पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी गई थी. वॉशिंगटन तुर्की में होने वाली बातचीत में यूक्रेन की भागीदारी के लिए दबाव बना रहा है, जबकि यूरोपीय देशों का आग्रह है कि पहले रूस को एक महीने के युद्धविराम पर सहमत होना चाहिए.
चलते-चलते
पहली बार वैज्ञानिकों ने दिल बनते देखा
विज्ञान के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल हुई है जहां वैज्ञानिकों ने पहली बार हृदय के निर्माण के क्षण को असाधारण टाइम-लैप्स छवियों में कैद किया है. ‘द गार्डियन’ की इस रिपोर्ट के मुताबिक फुटेज में दिखाया गया है कि चूहे के भ्रूण में हृदय कोशिकाएं विकास के शुरुआती चरण में स्वयं ही हृदय जैसे आकार में संगठित होना शुरू कर देती हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तकनीक जन्मजात हृदय दोषों के बारे में नई जानकारी प्रदान कर सकती है, जो लगभग हर 100 शिशुओं में से एक को प्रभावित करते हैं. गार्डियन द्वारा प्रकाशित ये वीडियो.
"यह पहली बार है जब हम स्तनधारी विकास के दौरान इतने करीब से, इतने लंबे समय तक हृदय कोशिकाओं को देख पाए हैं," यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के अध्ययन के वरिष्ठ लेखक डॉ. केंज़ो इवानोविच ने कहा. "हमें पहले भ्रूण को कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक लंबे समय तक एक डिश में विश्वसनीय रूप से विकसित करना पड़ा, और जो हमने पाया वह पूरी तरह से अप्रत्याशित था."
विकासशील भ्रूणों का फुटेज एडवांस्ड लाइट-शीट माइक्रोस्कोपी नामक तकनीक का उपयोग करके कैप्चर किया गया था. इससे वैज्ञानिकों को भ्रूण को एक विकासात्मक मील के पत्थर के रूप में जाने जाने वाले गैस्ट्रुलेशन से गुजरते हुए ट्रैक करने की अनुमति मिली, जब भ्रूण अलग-अलग कोशिका लाइनों का निर्माण करना शुरू करता है और शरीर के मूल अक्षों की स्थापना शुरू करता है.
जल्द ही, हृदय की मांसपेशियों की कोशिकाएं स्वयं को एक बड़ी ट्यूब में संगठित कर लेती हैं जो बाद में खंडों में विभाजित होकर अंततः दीवारों और कक्षों में बदल जाती हैं. हृदय दोष वाले शिशुओं में, इस प्रक्रिया के दौरान एक छेद बन सकता है.
फ्लोरोसेंट मार्कर का उपयोग करके, टीम ने कार्डियोमायोसाइट्स नामक हृदय की मांसपेशियों की कोशिकाओं को टैग किया, जिससे वे अलग-अलग रंगों में चमकने लगीं. 40 घंटों में हर दो मिनट में स्नैपशॉट कैप्चर किए गए, जिसमें कोशिकाओं को चलते, विभाजित होते और एक आदिम अंग बनाते हुए दिखाया गया. इससे टीम को यह देखने का अवसर मिला कि भ्रूण में हृदय बनाने वाली पहली कोशिकाएं कब और कहां दिखाई दीं.
शोधकर्ताओं ने पाया कि गैस्ट्रुलेशन के शुरुआती दौरान (चूहे के भ्रूण के विकास में लगभग छह दिनों के बाद), केवल हृदय में योगदान देने वाली कोशिकाएं तेजी से उभरीं और अत्यधिक संगठित तरीके से व्यवहार करना शुरू कर दीं. वे यादृच्छिक रूप से चलने के बजाय, विशिष्ट पथों का अनुसरण करने लगीं, चाहे वे वेंट्रिकल्स (हृदय के पंपिंग कक्षों) या एट्रिया (जहां से रक्त शरीर और फेफड़ों से हृदय में प्रवेश करता है) में योगदान दे रही हों.
इवानोविच ने कहा, "हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि कार्डियक फेट डिटरमिनेशन और दिशात्मक सेल मूवमेंट वर्तमान मॉडलों से बहुत पहले भ्रूण में नियंत्रित हो सकते हैं. यह हृदय विकास की हमारी समझ को मूल रूप से बदल देता है, यह दिखाकर कि जो अराजक सेल माइग्रेशन प्रतीत होता है, वह वास्तव में छिपे हुए पैटर्न द्वारा नियंत्रित होता है जो उचित हृदय निर्माण सुनिश्चित करता है."
टीम का कहना है कि इन अंतर्दृष्टियों से जन्मजात हृदय दोषों की समझ और उपचार में प्रगति हो सकती है और रिजेनरेटिव मेडिसिन में उपयोग के लिए प्रयोगशाला में हृदय ऊतक उगाने में प्रगति तेज हो सकती है.
ये निष्कर्ष EMBO जर्नल में प्रकाशित किए गए थे.
पाठकों से अपील-
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.