30/05/2025 : ममता ने मोदी को लाइव डिबेट के लिए ललकारा | लड़ाकू जहाज़ों की कमी | बृजभूषण जुलूस निकालेगा और उमर खालिद को जमानत नहीं मिलेगी | मेरी आँखे छोटी हैं, मोदी जी! | महाबोधि मुक्ति की बढ़ती माँग
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
मोदी को खुला ख़त : मेरी आँखे छोटी हैं!
पंजाब के तीन नौजवान ईरान के 'तेहरान एयरपोर्ट पर पाकिस्तानी एजेंटों ने किए अगवा'
अपूर्वानंद : क्या प्रोफेसर महमूदाबाद के बाद अशोका यूनिवर्सिटी अगला निशाना है?
कितना सही है दलित सीजेआई के रूप में देखना?
मौसम विभाग को गच्चा दे रही है इस बार की असामान्य बारिश
मई के चार दिन : 2025 में भारत - पाक संकट
'पाकिस्तानी' कहने वाले भाजपा नेता को मुस्लिम महिला आईएएस से माफ़ी मांगनी पड़ेगी
बीफ बेचने के संदेह में दुकानदार की पिटाई
15 सिविल सेवा अधिकारियों पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनवाने का आरोप, जांच शुरू
छत्तीसगढ़ में मौका ए एनकाउंटर से रिपोर्ट
ट्रम्प के टैक्स बिल से मतभेद के बाद अमेरिकी सरकार की भूमिका छोड़ने का ऐलान किया
किताबें जो हर जगह पढ़ने की इज़ाजत है, सिवा कश्मीर के, जहाँ उन्हें जब्त किया जाता है
मोदी के कटाक्षों पर ममता ने लाइव डिबेट के लिए ललकारा, कहा अपनी पत्नी को सिंदूर दो
पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में अभी छह माह से ज्यादा का वक्त है, लेकिन गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच जिस अंदाज़ में वार-पलटवार हुआ, उससे चुनावी सेज सजती मालूम पड़ी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बंगाल सरकार पर भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था की खराबी और क्रूरता का आरोप लगाने के कुछ ही घंटों बाद, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नबन्ना से जोरदार पलटवार किया. उन्होंने मोदी को लाइव टीवी बहस में आमने-सामने आने की चुनौती दी और भाजपा से कहा कि “कल ही चुनाव हो जाएं— हम तैयार हैं.”
बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा, “कृपया याद रखें कि हर महिला सम्मान की हकदार है. वे अपने पतियों से सिंदूर लेती हैं. पीएम मोदी हर किसी के पति नहीं हैं; आप (मोदी) पहले अपनी पत्नी को सिंदूर क्यों नहीं देते? मुझे खेद है कि मुझे इन मामलों में नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन आप हमें ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन बंगाल के नाम पर बोलने के लिए मजबूर करते हैं.”
ममता ने मोदी से कहा, “अगर हिम्मत है तो मेरे साथ लाइव डिबेट में आमने-सामने आइए. जनता फैसला करे.” उनके तेवर तीखे थे. मोदी ने दरअसल, अलीपुरद्वार रैली में तृणमूल कांग्रेस पर सांप्रदायिक अशांति, बेरोजगारी के लिए हमला बोला और उसे “निर्मम सरकार” बताया था. मोदी ने तृणमूल सरकार में “पश्चिम बंगाल को परेशान करने वाले पांच बड़े संकटों” को गिनाया. “पहला है व्यापक हिंसा और कानून-व्यवस्था की स्थिति, जो समाज के ताने-बाने को तोड़ रही है. दूसरा, माताओं और बहनों के बीच बढ़ती असुरक्षा की भावना है, जिसे उनके खिलाफ किए जा रहे जघन्य अपराधों ने और बढ़ा दिया है. तीसरा संकट, युवाओं में बेरोजगारी और रोजगार के अवसरों की कमी के कारण निराशा है, जबकि चौथा- भ्रष्टाचार है, जिसने व्यवस्था को नष्ट कर दिया और राज्य सरकार में जनता का विश्वास खत्म कर दिया. पांचवां संकट- सत्तारूढ़ पार्टी की स्वार्थी राजनीति से उत्पन्न होता है, जो गरीबों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है. मुर्शिदाबाद और मालदा की घटनाएं टीएमसी सरकार की निर्ममता और कानून-व्यवस्था बनाए रखने में उसकी विफलता के स्पष्ट उदाहरण हैं.
इसके जवाब में ममता ने प्रधानमंत्री पर सेना के “ऑपरेशन सिंदूर” का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया और कहा, “आपने इसका नामकरण अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए किया. आज बीजेपी के वोटर भी सेना के समर्थन में हैं, लेकिन प्रधानमंत्री राजनीति की होली खेलने में व्यस्त हैं.” उन्होंने सवाल किए- जब सेना को पहचान की ज़रूरत थी, तब आप कहां थे? अब तक आतंकवादी क्यों नहीं पकड़े गए? आप तो हर बात के लिए विदेश चले जाते हैं, अब सिक्किम भी नहीं जा पा रहे. क्या आप डर गए हैं?"
मोदी की कूटनीतिक चुप्पी पर भी तंज कसा और डोनाल्ड ट्रम्प का जिक्र किया. "आप खुद को वैश्विक नेता कहते हैं, लेकिन जैसे ही अमेरिका बोलता है, आप चुप हो जाते हैं. ये कैसी हैसियत है?" ममता ने भाजपा पर विभाजनकारी मंशा का आरोप भी लगाया. पूछा, "असम से लोग क्यों लाए जा रहे हैं? उत्तर बंगाल अब आप पर भरोसा नहीं करता. वे आपके नाटक को समझ चुके हैं.” मोदी के भ्रष्टाचार के आरोपों पर पहले "अपने घर" की ओर देखने की सलाह दी. उन्होंने कहा, "यहां भ्रष्टाचार पकड़ा जाता है तो हम कार्रवाई करते हैं. लेकिन जब गुजरात या मध्यप्रदेश में कोई पाकिस्तान के लिए जासूसी करते पकड़ा जाता है, तो आपकी सरकार क्या करती है?"
वायु सेना को जहाज़ों की कमी, एयर चीफ मार्शल ने रक्षा सौदों में देरी पर चिंता जताई
भारत के एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने गुरुवार (29 मई) को रक्षा प्रणालियों की खरीद में देरी को लेकर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि कई बार ऐसे अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए जाते हैं, जबकि यह पहले से पता होता है कि ये परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं होंगी.
सीआईआई वार्षिक बिजनेस समिट में एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने कहा, “कई बार हमें अनुबंध पर हस्ताक्षर करते समय ही पता होता है कि ये सिस्टम कभी आएंगे ही नहीं. समय-सीमा एक बड़ा मुद्दा है. मुझे ऐसा कोई भी प्रोजेक्ट याद नहीं है जो समय पर पूरा हुआ हो.” उन्होंने सवाल किया, “ऐसा वादा क्यों करें जो पूरा नहीं किया जा सकता?”
उन्होंने फरवरी 2021 में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ 83 तेजस एमके1ए लड़ाकू विमानों के लिए हुए 48,000 करोड़ रुपये के अनुबंध का हवाला देते हुए कहा कि डिलीवरी मार्च 2024 से शुरू होनी थी, लेकिन आज तक एक भी विमान नहीं मिला है.
एयर चीफ मार्शल ने कहा कि देरी के कारण कई परियोजनाएं प्रभावित हुई हैं. “तेजस एमके1 की डिलीवरी में देरी हो रही है. तेजस एमके2 का प्रोटोटाइप अब तक तैयार नहीं हुआ है. स्टील्थ एएमसीए फाइटर का भी अभी तक कोई प्रोटोटाइप नहीं है. उन्होंने कहा कि “हम केवल भारत में उत्पादन की बात नहीं कर सकते, हमें डिजाइनिंग की भी बात करनी होगी. हमें सेनाओं और उद्योग के बीच विश्वास की जरूरत है. हमें बहुत पारदर्शी होना चाहिए. एक बार जब हम किसी चीज के लिए प्रतिबद्ध हो जाएं, तो उसे पूरा करना चाहिए.
अब भाजपा विधायक ने वायु सेना के जवानों को नालायक बताया, कहा- सोए हुए होंगे
इधर, मध्यप्रदेश के काबीना मंत्री विजय शाह और बीजेपी के राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा के बाद जम्मू के उधमपुर-पूर्व से भाजपा के विधायक रणवीर सिंह पठानिया ने ऑपरेशन सिंदूर और भारतीय वायु सेना को लेकर विवादित बयान दिया है. उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठाए और कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान वायु सेना के जवान सोए हुए होंगे. नालायकी होगी इनकी. कसूर हमारा है, हमने इन लोगों को पलकों पर बैठाया और ये नालायकी कर रहे हैं. भाजपा से सवाल किया जा रहा है कि वायु सेना का अपमान करने वाले अपने विधायक पर वह कब कार्रवाई करेगी?
कार्टून | राजेन्द्र धोड़पकर

1,704 दिन
यौन शोषण आरोपी बृजभूषण जुलूस निकालेगा और उमर खालिद को जमानत नहीं मिलेगी
खालिद के पिता इलियास ने कहा, "उमर, जो दोषी नहीं है, जो दंगों के दौरान दिल्ली में नहीं था, उसे जमानत नहीं दी गई... जघन्य अपराध करने वाले लोगों को या तो गिरफ्तार नहीं किया जाता या तुरंत जमानत पर रिहा कर दिया जाता है."
दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में आरोपी मानवाधिकार कार्यकर्ता और जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद ने बुधवार को बिना किसी सुनवाई के जेल में 1,704 दिन पूरे कर लिए. उमर समेत 18 ने 2020 में नई नागरिकता व्यवस्था के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था. इनमें से नताशा नरवाल, देवांगना कालिता, सफ़ूरा ज़रगर, समेत छह लोग जमानत पर हैं. बाकी सभी जेल में हैं. पुलिस का मानना था कि यहां सांप्रदायिक दंगों को भड़काने की साजिश थी, जिसमें 53 लोगों की जान चली गई थी.
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने उमर खालिद की जेल की तुलना यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोपी पूर्व भाजपा सांसद और कुश्ती प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह की ‘विजय’ रैलियों से करते हुए कहा : "यह उनकी (सिंह की) पूरी तरह से दंडमुक्ति और आत्मविश्वास को दर्शाता है. उनके खिलाफ मुकदमा अब भी चल रहा है. गवाही हो रही है. यह दर्शाता है कि उन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त है. उन्होंने सिंह के बेटे को (संसदीय चुनाव) लड़ने के लिए टिकट दिया... बिलकिस बानो के बलात्कारियों को सम्मानित किया गया. लिंचिंग के आरोपियों को सम्मानित किया जाता है. भाजपा ने अपराध को महिमामंडित करने की संस्कृति बनाई है." श्रीवास्तव ने जोड़ा, "यह उमर के बारे में नहीं है. यह व्यवस्था की विफलता के बारे में है."
उमर पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत हत्या, आतंकवाद, उकसावे और देशद्रोह के आरोप हैं.
कविता श्रीवास्तव ने टेलीग्राफ को बताया कि बिना सुनवाई के किसी व्यक्ति को लगभग पांच साल तक हिरासत में रखना गैरकानूनी है. श्रीवास्तव ने कहा, “उमर ने जमानत के लिए अदालतों का रुख किया है, उसने मुकदमे को नहीं रोका है... चाहे वह उमर हो या (अशोका विश्वविद्यालय के शिक्षक) अली खान महमूदाबाद, उन्हें मुस्लिम होने के कारण निशाना बनाया जाता है, जो मुखर हैं और उनके पास विद्वता है."
वहीं उमर के पिता एस.क्यू.आर. इलियास ने टेलीग्राफ को बताया : “अब तक दिल्ली हाई कोर्ट में जमानत की पांच सुनवाई हो चुकी हैं. जमानत के लिए हमने निचली अदालत, उच्च न्यायालय, फिर सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी लगाई. जहां नौ महीनों में हमें 14 बार स्थगन मिला. फिर हम निचली अदालत में गए. अब हाई कोर्ट में हैं.”
सर्वोच्च न्यायालय में कई स्थगन बचाव पक्ष द्वारा मांगे गए थे, जिसने अंततः अपनी याचिका वापस ले ली. इलियास ने कहा, "उमर, जो दोषी नहीं है, जो दंगों के दौरान दिल्ली में नहीं था, उसे जमानत नहीं दी गई... जघन्य अपराध करने वाले लोगों को या तो गिरफ्तार नहीं किया जाता या तुरंत जमानत पर रिहा कर दिया जाता है."
उन्होंने कहा, "उस पर एक व्हाट्सएप ग्रुप (जिसने सीएए विरोधी प्रदर्शनों की योजना बनाई थी) में शामिल होने का आरोप है. जब उसके वकील ने (निचली) अदालत को बताया कि उसने ग्रुप में किसी भी चर्चा में भाग नहीं लिया, तो अभियोजक ने जवाब दिया कि वह मूक दर्शक था."
यह बताते चलें कि एक तरफ महज व्हाट्सअप ग्रुप में शामिल होने के कारण उमर खालिद को पिछले पांच साल से जमानत नहीं मिल रही है, वहीं बुधवार को दिल्ली की ही एक अदालत ने 2020 दिल्ली दंगे के मामले में 12 ‘हिंदुत्व पुरुषाें’ को इसी आधार पर दोषमुक्त कर दिया है कि व्हाटसअप को ठोस सबूत नहीं माना जा सकता, जिन पर दो मुस्लिमों की हत्या का आरोप था. कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने आरोपी को इन सबको बरी करते हुए कहा, “इस तरह की पोस्ट केवल ग्रुप के अन्य सदस्यों की नजर में हीरो बनने के इरादे से ग्रुप में डाली जा सकती हैं. यह बिना सच्चाई के शेखी बघारने जैसा हो सकता है. इसलिए, जिन चैट पर भरोसा किया गया है, वे यह दिखाने के लिए ठोस सबूत नहीं हो सकते कि आरोपी ने... वास्तव में दो मुस्लिम व्यक्तियों की हत्या की थी. इन चैट का इस्तेमाल अधिक से अधिक सबूत के तौर पर किया जा सकता है.” हरकारा में इसकी रिपोर्ट छपी है, इसे आप यहां पढ़ सकते हैं.
इलियास ने बताया कि अभियोजन पक्ष के सैकड़ों गवाह थे और हजारों पन्नों के कई पूरक आरोपपत्र थे. उन्होंने कहा, "लगभग पांच साल बाद भी अदालत में आरोप तय नहीं किए गए हैं. यह मुकदमा 10-15 साल तक चल सकता है. भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कहते रहे कि जमानत नियम है और उन्होंने कई लोगों को जमानत दी, लेकिन उमर का नाम सूची में नहीं था. हम न्यायपालिका द्वारा जमानत देने से इनकार करने के औचित्य को नहीं समझ सकते... न्यायपालिका को इस बात का एहसास होना चाहिए कि काले कानूनों का इस्तेमाल निर्दोष लोगों को यथासंभव लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखने के लिए किया जा रहा है."
गौरतलब है कि उमर खालिद की रिहाई की मांग लंबे वक्त से चल रही है. उमर के साथ इस मामले में 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में कथित "बड़ी साजिश" केस में 18 लोगों को आरोपी बनाया गया था.
मोदी को खुला ख़त : मेरी आँखे छोटी हैं!
'द वायर' में संगीता बरुआ पिशारोटी ने प्रधानमंत्री मोदी की 'छोटी आंखों' वाली हालिया टिप्पणी के जवाब में एक खुला खत लिखकर, इस टिप्पणी की आलोचना की है. संगीता ने लिखा है-
प्रधानमंत्री जी, मैंने मंगलवार, 27 मई को आपके गृह राज्य गुजरात में दिए गए एक सार्वजनिक भाषण का एक वीडियो देखा. कम से कम इतना तो कह ही सकती हूं कि एक पूर्वोत्तर भारत की नागरिक होने के नाते, आपके "छोटी आंखों" और "ऐसी आंखें जो खुलती ही नहीं" जैसी टिप्पणियों को सुनकर मैं अब तक स्तब्ध हूं.
इससे पहले कि मैं यह बताऊं कि ऐसा क्यों है, मुझे यह अवसर लेने दीजिए कि मैं आपको बताना चाहूं कि गुजरात से बहुत दूर, असम में मेरे पारिवारिक घर में, मेरे स्कूल के दिनों से ही, ड्राइंग रूम की दीवार पर एक गुजराती व्यक्ति की एक बड़ी तस्वीर टंगी हुई है. हर संध्या के समय, जब सूरज डूबता है, मेरे पिता उस फोटो फ्रेम पर अगरबत्ती लगाते हैं - ठीक वैसे ही जैसे वे घर में लगी अन्य देवी-देवताओं की तस्वीरों पर पूजा-अर्चना करते हुए मंत्रोच्चार करते हैं.
मुझे गर्व है यह कहने में कि हमारे परिवार में जिन गुजराती को पूजा जाता है, वे और कोई नहीं बल्कि महात्मा - महात्मा गांधी हैं.
मेरे पिता, जो अब 93 वर्ष के हैं, आज भी यह रोज़ की परंपरा निभाते हैं. वे किसी भी नए मेहमान को यह बताना नहीं भूलते कि महात्मा गांधी ने 1921 में जब पहली बार असम यात्रा की थी, तब उन्होंने हमारे इस सौ साल पुराने पुश्तैनी घर में कुछ समय बिताया था. मेरे दादा उस समय ऊपरी असम के उस कस्बे के पहले कुछ लोगों में थे, जिन्होंने विदेशी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए महात्मा गांधी के आह्वान पर कांग्रेस की सदस्यता ली थी. संगीता ने आगे अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि उनके दादा ने रानी गैदिनल्यू की रिहाई के लिए बर्मा उच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ा था, जो असम के एक स्वतंत्रता सेनानी थे.
पत्र में उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वे इस प्रकार के नस्लीय भेदभावपूर्ण शब्दों का प्रयोग न करें, क्योंकि इससे पूर्वोत्तर भारत के लोगों में असुरक्षा और भेदभाव की भावना उत्पन्न होती है. यहां आप उनका पूरा खत अंग्रेजी में पढ़ सकते हैं.
पंजाब के तीन नौजवान ईरान के 'तेहरान एयरपोर्ट पर पाकिस्तानी एजेंटों ने किए अगवा'
'द वायर' की रिपोर्ट है कि पंजाब के होशियारपुर, नवांशहर और संगरूर ज़िलों से ताल्लुक रखने वाले तीन युवक, जो "डंकी रूट" के ज़रिए ऑस्ट्रेलिया जाने के इरादे से अपने गांवों से निकले थे, उन्हें ईरान के तेहरान एयरपोर्ट पर कथित तौर पर पाकिस्तानी एजेंटों ने अगवा कर लिया, ऐसा उनके परिवारों ने आरोप लगाया है. गायब हुए युवकों की पहचान जसपाल सिंह, अमृतपाल सिंह और हुसनप्रीत सिंह के रूप में हुई है. ये तीनों युवक 1 मई, 2025 को ईरान पहुंचे थे और उसी दिन से लापता हैं. परिवारजनों के अनुसार, करीब 12 दिन पहले युवकों की आखिरी बार अपने परिजनों से बातचीत हुई थी, जिसके बाद से उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया है. तीनों युवकों को पाकिस्तानी "डंकरों" (अवैध रूट से विदेश ले जाने वाले एजेंटों) द्वारा बुरी तरह पीटा गया और उनके शरीर पर गहरे ज़ख्म आए हैं. बताया जा रहा है कि इन कथित पाकिस्तानी एजेंटों ने तीनों युवकों को छोड़ने के बदले में प्रति व्यक्ति ₹18 लाख की फिरौती मांगी है.
इंडिया ब्लॉक की पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर पर संसद के विशेष सत्र की मांग : पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के बाद भारत के सामूहिक संकल्प को व्यक्त करने के लिए बहुपक्षीय प्रतिनिधिमंडल विदेश में हैं. वहीं विपक्षी दल के सदस्य पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद के घटनाक्रमों, जिसमें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भी शामिल है, पर चर्चा के लिए संसद के विशेष सत्र की मांग करने पर काम कर रहे हैं. बुधवार को राज्यसभा में टीएमसी के संसदीय नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, “हम, जो पार्टियां भाजपा से लड़ रही हैं, संसद के विशेष सत्र की मांग पर एक साथ काम कर रही हैं और आगे बढ़ रही हैं.” गौरतलब है कि पिछले महीने, पहलगाम आतंकी हमले के बाद विशेष सत्र की मांग करते हुए केंद्र सरकार को कम से कम चार पत्र लिखे गए थे.
विश्लेषण
अपूर्वानंद : क्या प्रोफेसर महमूदाबाद के बाद अशोका यूनिवर्सिटी अगला निशाना है?
द वायर के लिए लिखे लेख में दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक अपूर्वानंद आशंका जाहिर करते हैं कि चूंकि हिंदुत्व संगठन अशोका विश्वविद्यालय को उसी संदेह की दृष्टि से देखते हैं, जिस दृष्टि से वे कभी जेएनयू को देखते थे – उदारवादी विचारों को बढ़ावा देना और आलोचनात्मक मानसिकता वाले लोगों को तैयार करना, जिन्होंने अक्सर हिंदू राष्ट्रवाद को चुनौती दी है, इसलिए इनके निशाने पर अब अशोका यूनिवर्सिटी है.
अब, यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि अली खान महमूदाबाद का इस्तेमाल अशोका यूनिवर्सिटी को घेरने और निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है, जबकि अली खान खुद इस विवाद का केंद्र बिंदु बने हुए हैं, इस प्रकरण को विश्वविद्यालय को नियंत्रित करने या यहां तक कि उसे खत्म करने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. क्या इसे पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया जाएगा? क्या इसका हश्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) जैसा होगा, जिसकी बौद्धिक जीवंतता खत्म हो जाएगी और यह अपने पूर्व स्वरूप की छाया मात्र रह जाएगा?
इस आशंका के पीछे एक अच्छा कारण है, क्योंकि इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राज्य संस्थाओं से जुड़े संगठन अशोका यूनिवर्सिटी पर समन्वित हमले में एक साथ आए हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, “अलग-अलग घटनाओं में अशोका यूनिवर्सिटी के दो स्नातक छात्रों की कैंपस में मौत के लगभग तीन महीने बाद, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने हरियाणा के शिक्षा सचिव और हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को नोटिस जारी कर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है.” यहां पढ़ें पूरा लेख.
विश्लेषण
कितना सही है दलित सीजेआई के रूप में देखना?
द टेलीग्राफ में अर्ध्य सेनगुप्ता ने हमारी साझा समझ और मानसिकता पर सवाल रखे हैं.
जब भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार संभाला, तो सुर्खियाँ उनके न्यायिक रिकॉर्ड या उनकी पेशेवर क्षमता के बारे में नहीं थीं. उन्हें लगभग सार्वभौमिक रूप से दूसरे दलित और पहले बौद्ध सीजेआई के रूप में संदर्भित किया गया था. यह आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि उच्च जाति के हिंदू पुरुषों के वर्चस्व वाले न्यायाधीशों की बिरादरी में अल्पसंख्यक सीजेआई दुर्लभ हैं, लेकिन दलित मुख्य न्यायाधीश होने का क्या मतलब है, जब डीवाई चंद्रचूड़ और यूयू ललित को मुख्य रूप से ब्राह्मण मुख्य न्यायाधीशों के रूप में नहीं देखा जाता है और एस. खन्ना को खत्री मुख्य न्यायाधीश नहीं माना जाता है? टेलीग्राफ के लिए अर्घ्य सेनगुप्ता लिखते हैं, “निश्चित रूप से भूषण गवई का दलित सीजेआई के रूप में होना मायने रखता है, लेकिन जो बात समान रूप से मायने रखती है, वह यह है कि एक ऐसे बिंदु पर पहुंचना, जब जस्टिस गवई को उनके गैर-दलित पूर्ववर्तियों की तरह एक और सीजेआई के रूप में संदर्भित किया जाएगा.”
गवई की दलित पहचान को उजागर करना न्यायपालिका के विविधता के साथ जटिल संबंधों का प्रतीक है. विविधता एक अच्छा दृष्टिकोण है, लेकिन कृपया इसे बहुत अधिक न बढ़ाएँ. जब पूर्व सीजेआई एन.वी. रमना के कार्यकाल के दौरान तीन महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई थी, तो इस तथ्य का बहुत अधिक उपयोग किया गया था, लेकिन उस समय से किसी महिला की नियुक्ति नहीं की गई है. जब दलित न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है तो जाति को उजागर किया जाता है, लेकिन जब अन्य कम प्रतिनिधित्व वाली हिंदू जातियों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है, तो उनकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत कम सुना जाता है. धार्मिक अल्पसंख्यकों और छोटे उच्च न्यायालयों के प्रतिनिधियों के लिए, विविधता एक दोधारी तलवार है. जब केएम जोसेफ की नियुक्ति रोक दी गई थी, तो केरल के दूसरे ईसाई न्यायाधीश को सिफारिश पर पुनर्विचार करने का कारण बताया गया था, लेकिन जब न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह मुस्लिम समुदाय से संबंधित उच्च-प्रतिष्ठित न्यायाधीशों की सूची में शामिल हुए, जिन्हें उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा किए बिना या बहुत कम कार्यकाल के बाद सीधे सर्वोच्च न्यायालय में लाया गया था, तो कोई सवाल नहीं पूछा गया. आखिरकार, अनौपचारिक रूप से, सर्वोच्च न्यायालय में हमेशा कम से कम एक 'मुस्लिम सीट' रही है, लेकिन अगर प्रतिनिधित्व उद्देश्य है, तो क्या यह उनकी आबादी के अनुपात में कम से कम चार मुस्लिम न्यायाधीश नहीं होना चाहिए?
मौसम विभाग को गच्चा दे रही है इस बार की असामान्य बारिश
एक ऐसे साल में जब भारत भीषण गर्मी की लहरों के लिए तैयार था, मई 2025 में हुई अभूतपूर्व बारिश ने देश को चौंका दिया. सामान्य से लगभग दोगुनी या 85.7% अधिक बारिश हुई. मध्य भारत में इस महीने (27 मई तक) सामान्य से पाँच गुना बारिश हुई है. वहीं दक्षिण भारत में 2.5 गुना का आंकड़ा पार कर गया है. दक्षिण-पश्चिम मानसून 24 मई को केरल पहुंचा, जो सामान्य से आठ दिन पहले और 2009 के बाद सबसे जल्दी आया. देश के अधिकतर हिस्से मार्च और अप्रैल में भीषण गर्मी की चपेट में रहे थे और उम्मीद थी कि मई में यह और भी बदतर हो जाएगा.
घटना के बाद, देश के अधिकतर हिस्सों में कोई महत्वपूर्ण या लंबे समय तक चलने वाली गर्मी की लहर नहीं देखी गई, जबकि मौसम विभाग यह मान रहा था कि इस बार भीषण गर्मी पड़ने वाली है और उसने बारिश का भी अनुमान नहीं लगाया था, मगर इसके बजाय, गरज के साथ भारी बारिश हुई, यहाँ तक कि ओलावृष्टि भी हुई. इससे अधिकतम तापमान नीचे आ गया और भारत भीषण मई से बच गया.
हालांकि, बेमौसम बारिश के कारण तमिलनाडु, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात और अन्य राज्यों में बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान हुआ. अब, जबकि देश खरीफ की बुवाई के लिए तैयार है, क्या मई की बारिश किसी भी तरह से दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित या कम करेगी? भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक एम. महापात्रा ने नकारात्मक उत्तर दिया और इंडियास्पेंड से कहा, “दीर्घकालिक, मौसमी वर्षा मई की वर्षा पर निर्भर नहीं है. कोई 1:1 संबंध नहीं है.” आईएमडी ने इस वर्ष मानसून के मौसम के ‘सामान्य से अधिक’ होने का अनुमान लगाया है. मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आईएमडी ने अनुमान लगाया कि मानसून विशेष रूप से दक्षिणी और मध्य भारत में सामान्य से अधिक, उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से कम रहेगा. वास्तव में जून के महीने में सामान्य से 8% अधिक वर्षा का अनुमान है (दोनों पूर्वानुमान 4% की त्रुटि के मार्जिन के साथ). पिछले साल भी, जबकि भारत का मानसून 6% अधिशेष पर समाप्त हुआ था पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों, पंजाब, बिहार में कम वर्षा हुई, जबकि गुजरात और राजस्थान में अधिक वर्षा हुई.
एक्सप्लेनर
मई के चार दिन : 2025 में भारत - पाक संकट
प्रेम पण्णिकर ने अपने सब्सटैक पेज पर भारत-पाक संघर्ष के चार दिनों पर एक स्वतंत्र रिपोर्ट के सारांश निकाले हैं. पेश है उसका हिंदी सारांश. हमने कल के हरकारा में भी इसका जिक़्र किया था. आज थोड़ा विस्तार से.
अल्बानी विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के असोसियेट प्रोफेसर और "द डिफिकल्ट पॉलिटिक्स ऑफ पीस : राइवलरी इन मॉडर्न साउथ एशिया" के लेखक क्रिस्टोफर क्लैरी ने हाल के भारत-पाक संघर्ष का सबसे गहरा विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जो मैंने देखा है. इसे पढ़ें — यह आपके समय और ध्यान के योग्य है. त्वरित संदर्भ के लिए, यहाँ मुख्य निष्कर्ष हैं :
सैन्य नवाचार और पहली बार का उपयोग
भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध पहली बार क्रूज़ मिसाइलों (ब्रह्मोस, स्कैल्प-ईजी) का उपयोग किया.
पाकिस्तान ने अभूतपूर्व संख्या में छोटी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों (फतह-I, फतह-II) और सशस्त्र ड्रोन का उपयोग किया.
ड्रोन युद्ध पहली बार भारत-पाकिस्तान संघर्ष में शामिल हुआ, जिसमें आक्रामक और रक्षात्मक दोनों ड्रोन ऑपरेशन शामिल थे.
संघर्ष ने स्टैंडऑफ सटीक हथियारों, एंटी-रेडिएशन ड्रोन और डिकॉय के बढ़ते उपयोग को उजागर किया.
एस-400 सहित भारत की वायु और मिसाइल रक्षा प्रणालियों ने हमलों को निष्प्रभावी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
रणनीतिक परिणाम
भारत ने पाकिस्तान भर में स्टैंडऑफ हमलों के माध्यम से वायु श्रेष्ठता प्रदर्शित की, कम नुकसान के साथ.
पाकिस्तान ने संभवतः 7 मई को कई भारतीय विमान गिराए, संभावित रूप से चीनी प्रणालियों जैसे HQ-9 और PL-15 का उपयोग करके.
भारतीय प्रतिशोध, विशेष रूप से 9-10 मई को, पाकिस्तानी क्षेत्र में गहरे तक पहुंचा, संवेदनशील सैन्य क्षेत्रों के पास तक.
पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल हमलों से कम दिखाई देने वाला नुकसान हुआ; भारत की बहुस्तरीय रक्षा प्रभावी साबित हुई.
कश्मीर में तनाव वृद्धि और भूमि युद्ध
कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तीव्र तोपखाना, मोर्टार और छोटे हथियारों की गोलाबारी वापस आई, जिससे संघर्ष की अधिकतर हताहतें (50+ मौतें) हुईं.
किसी भी पक्ष द्वारा LoC को फिर से खींचने या चौकियों पर कब्जा करने का कोई प्रयास नहीं हुआ, जो तनाव नियंत्रण का संकेत देता है.
युद्ध की धुंध और गलत सूचना
दोनों पक्षों से भारी गलत सूचना ने तथ्यों को धुंधला कर दिया, हालांकि भारत सार्वजनिक रूप से अधिक संयमित था.
सोशल मीडिया, राष्ट्रवादी प्रेस और अपारदर्शी सैन्य ब्रीफिंग ने वास्तविक नुकसान के आकलन और इरादों को अस्पष्ट कर दिया.
वास्तव में क्या हुआ था, इस पर सहमति अब भी कुहासे में है और संकट से सीखने के लिए महत्वपूर्ण है.
रणनीतिक और राजनीतिक सबक
दोनों पक्षों ने मापी गई वृद्धि दिखाई, लेकिन कभी-कभी एक-दूसरे के कार्यों को गलत समझा, जिससे अनपेक्षित प्रतिक्रियाएं हुईं.
परमाणु बलों की उपस्थिति के बावजूद परमाणु संकेत दबे हुए थे.
यह संकट भविष्य की सैन्य खरीदारी को तेज़ करेगा, विशेष रूप से ड्रोन और मिसाइल रक्षा क्षेत्रों में.
तनाव कम करने में अमेरिकी भूमिका
संयुक्त राज्य अमेरिका ने केंद्रीय राजनयिक भूमिका निभाई, विशेष रूप से विदेश मंत्री मार्को रुबियो और उप-राष्ट्रपति जेडी वांस के उच्च-स्तरीय सहयोग के माध्यम से.
संकट कूटनीति ने 10 मई को युद्धविराम में मध्यस्थता की. पाकिस्तान ने अपने अंतिम हमलों के प्रभाव का पूरा आकलन करने से पहले ही इसे स्वीकार कर लिया हो.
भविष्य की वार्ता की "रुबियो पेशकश" को दोनों पक्षों के अनुकूल बनाया गया था, हालांकि भारत ने युद्धविराम से आगे किसी समझौते से इनकार किया.
यह संघर्ष क्यों महत्वपूर्ण है
यह परमाणु हथियार वाले देशों के बीच गंभीर शत्रुता का दुर्लभ मामला है, जो परमाणु छाया के तहत आधुनिक पारंपरिक संघर्ष में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है.
यह संघर्ष वैश्विक पर्यवेक्षकों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से चीनी मूल के हथियारों (J-10, HQ-9, PL-15) के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में.
यह भविष्य के भारत-पाकिस्तान संकटों के लिए एक टेम्प्लेट प्रदान करता है, जिसमें उच्च दांव, छोटे प्रतिक्रिया समय और अधिक जटिल तनाव वृद्धि के रास्ते हैं.
'चार दिवसीय संघर्ष' तकनीकी रूप से परिष्कृत, राजनीतिक रूप से नियंत्रित और कूटनीतिक रूप से सुलझाया गया एक लगभग-युद्ध था. लेकिन युद्ध की धुंध, जानबूझकर अस्पष्टता से जटिल, का मतलब है कि सच्चाई अभी भी अपारदर्शी है और विवादित बनी हुई है — और अगली बार, यदि कोई अगली बार है, तो तनाव की सीढ़ी तेज़ी से और आगे तक चढ़ाई जा सकती है.
फिर से — सारांश पर मत जाइए; पूरा दस्तावेज़ पढ़ें, यह आपके लिए उपयोगी है.
हेट स्पीच
'पाकिस्तानी' कहने वाले भाजपा नेता को मुस्लिम महिला आईएएस से माफ़ी मांगनी पड़ेगी
कर्नाटक हाई कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता एन रविकुमार के बयान को खारिज कर दिया कि कलबुर्गी जिले की डिप्टी डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर फौजिया तरन्नुम (आईएएस) ‘पाकिस्तानी’ हैं. रविकुमार ने अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामले को खारिज करने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया, क्योंकि उन्होंने टिप्पणी की थी कि डिप्टी कमिश्नर ‘शायद पाकिस्तान से आई हैं’. रिपोर्टों के अनुसार, रविकुमार ने 24 मई को कलबुर्गी में जिला प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा था, "कलबुर्गी डीसी कार्यालय ने भी अपनी स्वतंत्रता खो दी है. डीसी मैडम भी कांग्रेस की बातों को सुन रही हैं. मुझे नहीं पता कि डीसी पाकिस्तान से आई हैं या यहां आईएएस कार्यालय हैं."
बार एंड बेंच के अनुसार, न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज ने संकेत दिया कि रविकुमार को भाजपा नेता कुंवर विजय शाह की हाल ही में की गई आलोचना से सीख लेनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने हाल ही में सांप्रदायिक बयान दिया था. हाई कोर्ट ने कहा, "मध्य प्रदेश में क्या हुआ? आप भी यही चाहते हैं? हम नहीं चाहते कि ये बयान दिए जाएँ. आपने देखा है कि मध्य प्रदेश और सुप्रीम कोर्ट (कुंवर विजय शाह मामले का हवाला देते हुए) में क्या हुआ? आप (रविकुमार) इस तरह के बयान नहीं दे सकते! आपने डिप्टी कमिश्नर के खिलाफ क्या बयान दिया? हम सिर्फ़ वही बताएँगे जो मध्य प्रदेश में हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, बस इतना ही. इतना ही काफी है... संबंधित महिला से माफ़ी माँगिए, उनसे माफ़ी स्वीकार करवाइए, इसे रिकॉर्ड में दर्ज करवाइए, फिर हम इस पर विचार करेंगे." शाह ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर मीडिया ब्रीफिंग का नेतृत्व करने वालों में से एक कर्नल सोफिया कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहा था, क्योंकि वह मुस्लिम हैं.
इस बीच, रविकुमार के वकील ने न्यायालय को बताया कि उन्होंने अपनी टिप्पणी के लिए पहले ही माफी मांग ली है और गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान करने का आग्रह किया है. राज्य के वकील ने आश्वासन दिया कि जब तक रविकुमार जांच में सहयोग करते हैं, उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा.
इस बीच, द हिंदू की खबर है कि एक कांग्रेस एमएलसी समूह ने गुरुवार को राज्यपाल थावरचंद गहलोत से मुलाकात की और आईएएस अधिकारी और कलबुर्गी की डिप्टी कमिश्नर फौजिया तरन्नुम के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए भाजपा एमएलसी एन. रविकुमार के खिलाफ संवैधानिक और कानूनी कार्रवाई की मांग करते हुए उनसे तत्काल हस्तक्षेप की मांग की. उन्होंने मंत्री प्रियांक खड़गे के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए विधान परिषद में विपक्ष के नेता चलवाडी नारायणस्वामी के खिलाफ भी राज्यपाल से कार्रवाई की मांग की. याचिका में कहा गया है, "एमएलसी ने कैबिनेट मंत्री प्रियांक खड़गे की तुलना कुत्ते से की."
बीफ बेचने के संदेह में दुकानदार की पिटाई
पुलिस ने गुरुवार को बताया कि उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के विजय नगर इलाके में कथित तौर पर गौमांस बेचने के आरोप में कुछ लोगों ने एक व्यक्ति की पिटाई कर दी. उन्होंने कहा कि दुकान से एकत्र किए गए मांस के नमूने फोरेंसिक जांच के लिए भेजे गए हैं. डेक्कन हेराल्ड ने पुलिस के हवाले से बताया कि मामले में शिकायतकर्ता विजय नगर निवासी 15 वर्षीय लड़का है, जिसने दावा किया कि उसने बुराड़ी के कौशिक एन्क्लेव निवासी चमन कुमार (44) की दुकान से उसने मांस खरीदा. बाद में उसे संदेह हुआ कि यह गाय का मांस है. संदिग्ध गाय के मांस की बिक्री की बात फैलने के बाद, विभिन्न संगठनों के सदस्य कुमार की दुकान के बाहर इकट्ठा हुए और उसके साथ मारपीट की.
15 सिविल सेवा अधिकारियों पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनवाने का आरोप, जांच शुरू
केंद्र सरकार ने 15 सिविल सेवकों के खिलाफ जांच शुरू की है, जिन पर फर्जी या संदिग्ध आरक्षण प्रमाण पत्र का उपयोग कर पद हासिल करने का आरोप है. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने संबंधित राज्य सरकारों को पत्र लिखकर इन अधिकारियों की जाति, आय और विकलांगता दस्तावेजों का गहन सत्यापन करने का अनुरोध किया है. 22 सिविल सेवा अधिकारियों के बारे में सवाल उठाए गए थे, जिनमें से डीओपीटी ने सत्यापन के लिए 15 का चयन किया है. इस समूह में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से दो-दो आईएएस अधिकारी और ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल से एक-एक अधिकारी शामिल हैं. इसमें गृह मंत्रालय में सेवारत दो आईपीएस अधिकारी, राजस्व विभाग में एक आईआरएस अधिकारी और विदेश मंत्रालय में एक आईएफएस अधिकारी भी शामिल हैं.
पुणे स्थित आरटीआई कार्यकर्ता विजय कुंभार द्वारा की गई कई शिकायतों के बाद जांच का आदेश दिया गया था, जिन्होंने यूपीएससी चयन में अनियमितताओं और उचित सत्यापन की कमी को उजागर किया था. जांच के दायरे में आने वाले अधिकतर अधिकारियों का चयन 2015 और 2023 के बीच हुआ था. द प्रिंट द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, जांच के दायरे में आने वाले प्रमाण पत्र ओबीसी, एससी, एसटी, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूबीडी) जैसी श्रेणियों से संबंधित हैं. कुंभार ने द प्रिंट से कहा, "जो वास्तव में उस सीट का हकदार था, वह अब बाहर हो गया है, क्योंकि किसी और ने कागज पर झूठ लिखा था. यह केवल तकनीकी त्रुटि नहीं है, यह जनता के विश्वास का उल्लंघन है.”
वैकल्पिक मीडिया
महाबोधि महाविहार मुक्ति के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन
द मूकनायक के मुताबिक बोधगया के महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए चल रहे आंदोलन को मजबूत करने हेतु 6-7 जून को नई दिल्ली में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. अखिल भारतीय बौद्ध मंच के तत्वावधान में 13 मई को बोधगया में हुई बैठक में राष्ट्रीय समिति के गठन का निर्णय लिया गया था. इस आंदोलन के तहत 5 जून को जंतर मंतर पर विशाल जन प्रदर्शन भी होगा. सम्मेलन में देशभर के बौद्ध भिक्षु, विद्वान और धम्म कार्यकर्ता भाग लेंगे. इसका उद्देश्य महाबोधि महाविहार की मुक्ति के साथ-साथ भगवान बुद्ध के शांति और करुणा के संदेश को वैश्विक स्तर पर प्रसारित करने की रणनीति तैयार करना है. राष्ट्रीय बौद्ध संगठन समन्वय समिति ने सभी धम्म अनुयायियों और बौद्ध संगठनों से इस ऐतिहासिक अवसर पर सहभागिता का आग्रह किया है.
छत्तीसगढ़ में मौका ए एनकाउंटर से रिपोर्ट
द लेंस का रिपोर्टर बप्पी राय बस्तर के उन जंगलों मे जाकर उस जगह से रिपोर्ट लेकर आया जहां नक्सली नेता बासवराजू की हत्या हुई थी. वह जगह, आसपास के रहवासियों के बयान, छूटा हुआ सामान देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुठभेड़ किस तरह की हुई रही होगी.
ट्रम्प के टैक्स बिल से मतभेद के बाद अमेरिकी सरकार की भूमिका छोड़ने का एलान किया
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट है कि कभी खुद को राष्ट्रपति का "पहला दोस्त" बताने वाले मस्क ने अब ट्रम्प से कुछ दूरी बना ली है और कहा है कि वह सरकारी कामकाज छोड़कर अपनी कंपनियों पर ध्यान देना चाहते हैं. इलोन मस्क ने सोशल मीडिया पर घोषणा की है कि वह ट्रम्प प्रशासन में अपनी भूमिका से हट रहे हैं. व्हाइट हाउस ने बुधवार शाम इसकी पुष्टि की कि यह प्रक्रिया शुरू हो गई है. एक व्हाइट हाउस अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि मस्क प्रशासन से जा रहे हैं यह सच है और उनका "ऑफबोर्डिंग" (पदत्याग की प्रक्रिया) बुधवार रात से शुरू हो जाएगा. व्हाइट हाउस के अधिकारियों के अनुसार, मस्क और ट्रम्प के रिश्ते अब भी ठीक हैं, लेकिन मस्क वॉशिंगटन की राजनीति से निराश नजर आ रहे हैं. इससे यह सवाल उठता है कि क्या ट्रम्प और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के बीच बना गठबंधन अब कमजोर हो रहा है? इलोन मस्क ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घरेलू नीति पर हमला करते हुए कहा कि इससे राष्ट्रीय घाटा और बढ़ेगा. उन्होंने प्रशासन के अधिकारियों से यह शिकायत भी की कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) डेटा सेंटर बनाने का एक लाभदायक सौदा उनकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी को दे दिया गया. इसके साथ ही मस्क ने अब तक ट्रम्प की राजनीतिक टीम को दिए जाने वाले 100 मिलियन डॉलर (करीब 830 करोड़ रुपये) के वादे को भी पूरा नहीं किया है. मस्क 2024 के चुनाव में सबसे बड़े ज्ञात राजनीतिक दानदाता थे. उन्होंने ट्रम्प के सलाहकारों से कहा था कि वह 2026 के मध्यावधि चुनावों से पहले ट्रम्प से जुड़े संगठनों को 100 मिलियन डॉलर देंगे, लेकिन मई के अंत तक भी यह पैसा अब तक नहीं आया है. मस्क ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं दी. हालांकि, बुधवार रात को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने पहली बार आधिकारिक तौर पर यह पुष्टि की कि वह सरकारी कर्मचारी के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त कर रहे हैं और उन्होंने ट्रम्प को "अपव्यय घटाने का अवसर देने के लिए धन्यवाद" कहा.
उन्होंने लिखा— “@DOGE का मिशन समय के साथ और मजबूत होगा, क्योंकि यह सरकार के भीतर एक जीवनशैली बन जाएगा.” यह उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिसिएंसी (डॉज) नामक अपनी टीम के बारे में कहा. हालांकि मस्क अब राजनीति से हट रहे हैं, लेकिन उनके खर्च कटौती कार्यक्रम के तहत जो स्टाफ विभिन्न सरकारी विभागों में तैनात किया गया था, उसकी मौजूदगी अब भी महसूस की जा रही है. मस्क ने हाल के दिनों में यह स्वीकार किया है कि उन्होंने राजनीति पर बहुत अधिक समय दिया और इसके चलते उन्हें और उनकी कंपनियों की छवि को नुकसान उठाना पड़ा.
मस्क ने अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी कर्मचारियों से साप्ताहिक कार्य रिपोर्ट की मांग की थी, जिसे न देने पर इस्तीफा माना जाता था. इस नीति के कारण कई संघों और कर्मचारियों ने विरोध किया था. इसके अलावा, मस्क ने कुछ सरकारी एजेंसियों को समाप्त करने की भी बात की थी, जिससे और विवाद उत्पन्न हुए थे. अमेरिका में मस्क की नीतियों के चलते बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुए. हालांकि मस्क ने अपने कार्यकाल के अंत में ट्रम्प का धन्यवाद किया और डॉज की सफलता की कामना की, लेकिन उनकी यह पहल व्यापक आलोचना का कारण बनी हुई है.
गार्डियन की रिपोर्ट है कि ट्रम्प से उनकी कोई अंतिम बातचीत नहीं हुई, एक सूत्र के अनुसार जिन्होंने बताया कि यह फैसला “वरिष्ठ स्टाफ स्तर पर” लिया गया था. इलोन मस्क, जो दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं, ने ट्रम्प द्वारा उन्हें दी गई अभूतपूर्व सरकारी शक्तियों का बचाव किया है, जिससे उन्होंने संघीय सरकार के कुछ हिस्सों को खत्म करने का प्रयास किया था. ट्रम्प प्रशासन में उनका विशेष सरकारी कर्मचारी के रूप में 130 दिन का कार्यकाल लगभग 30 मई को समाप्त हो रहा था. इस सप्ताह भर मस्क यह संकेत दे रहे थे कि वे वॉशिंगटन छोड़ रहे हैं और अब अपने व्यवसायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं. उन्होंने ट्रंप के प्रमुख टैक्स बिल की आलोचना करते हुए कहा कि यह "बहुत महंगा" है और उनके द्वारा सरकार को अधिक कुशल बनाने के प्रयासों को कमजोर करता है.
मंगलवार को वॉशिंगटन पोस्ट से बातचीत में मस्क ने कहा- “संघीय नौकरशाही की स्थिति मेरी सोच से कहीं ज्यादा खराब है. मुझे पता था कि समस्याएं हैं, लेकिन वॉशिंगटन डीसी में चीजों को सुधारने की कोशिश वाकई एक कठिन लड़ाई है.” उन्होंने यह भी कहा कि डॉज को ट्रम्प व्हाइट हाउस में "बलि का बकरा" बना दिया गया था -हर गलत चीज़ के लिए उसी को दोषी ठहराया गया. मस्क के ट्रम्प प्रशासन में कुछ कैबिनेट स्तर के अधिकारियों से निजी मतभेद भी हुए थे. उन्होंने व्हाइट हाउस के ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो को सार्वजनिक रूप से “मूर्ख” कहा, क्योंकि नवारो ने अमेरिका और यूरोप के बीच “शून्य शुल्क” की मस्क की मांग को खारिज कर दिया था.
राजनीति से उनकी हालिया नाराज़गी का एक कारण यह भी था कि उन्होंने विस्कॉन्सिन में एक न्यायिक उम्मीदवार के लिए $25 मिलियन खर्च किए थे, फिर भी वह हार गया. ट्रम्प और डॉज ने मिलकर संघीय सिविल सेवा में 2.3 मिलियन कर्मचारियों में से लगभग 12% (करीब 2.6 लाख) की कटौती की, जो या तो नौकरी से निकाले गए, बायआउट लिया या प्रारंभिक सेवानिवृत्ति के लिए मजबूर किए गए. मस्क की राजनीतिक गतिविधियों के कारण विरोध प्रदर्शन हुए और कुछ निवेशकों ने मस्क से ट्रम्प के सलाहकार पद से हटकर टेस्ला पर ज्यादा ध्यान देने की मांग की. पिछले साल ट्रम्प के राष्ट्रपति अभियान और अन्य रिपब्लिकन उम्मीदवारों को समर्थन देने के लिए मस्क ने लगभग $300 मिलियन खर्च किए थे, लेकिन उन्होंने इस महीने की शुरुआत में कहा कि अब वह अपनी राजनीतिक फंडिंग में भारी कटौती करेंगे.
चलते-चलते
किताबें जो हर जगह पढ़ने की इज़ाजत है, सिवाय कश्मीर के, जहाँ उन्हें जब्त किया जाता है
आर्टिकल 14 की रिपोर्ट है कि श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर में अधिकारियों ने फरवरी 2025 में कम से कम तीन पुस्तक दुकानों पर छापे मारे और विवादास्पद इस्लामी विद्वान व जमात-ए-इस्लामी (JeI) के संस्थापक मौलाना अबुल आला मौदूदी द्वारा लिखी गई किताबें जब्त कीं. 13 फरवरी की दोपहर श्रीनगर के व्यावसायिक केंद्र लाल चौक में आम दिनों की तरह ही व्यापार चल रहा था. एक प्रमुख पुस्तक विक्रेता और उसके कर्मचारी लंच खत्म कर ग्राहकों को अटेंड करने ही वाले थे कि चार लोग सिविल कपड़ों में दुकान में दाखिल हुए. उनके हाथों में कुछ किताबों की एक सूची थी. “उन्होंने हमसे पूछा कि ये किताबें हमारे पास हैं या नहीं". बुकस्टोर के मालिक ने बताया, "हम जवाब भी नहीं दे पाए थे कि उन्होंने दुकान से सभी ग्राहकों को बाहर निकाल दिया और सामने व पीछे के दरवाज़े बंद कर दिए. उन्होंने खुद को पुलिस बताया. हम डर गए और बिना सवाल किए सहयोग करने लगे.” उन लोगों ने ज़मीन पर एक चादर बिछाई और स्टाफ को आदेश दिया कि सूची में दी गई किताबों की सभी प्रतियां लाकर जमा करें. "उन्होंने कहा कि उन्हें ऊपर से निर्देश मिले हैं कि सूची में दी गई सभी किताबें जब्त की जाएं," बुकस्टोर मालिक ने कहा. जब्त की गई किताबें इस्लामी विचारक मौलाना अबुल आला मौदूदी द्वारा लिखी गई थीं, जो जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक थे. यह संगठन दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में सक्रिय है.
अधिकारियों का दावा है कि उनके पास इस बात की "विश्वसनीय खुफिया जानकारी" थी कि इन दुकानों में गुप्त रूप से ऐसी साहित्यिक सामग्री बेची जा रही थी जो प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी के विचारों को बढ़ावा देती है. हालांकि, विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि इन छापों का असल मकसद क्या था, क्योंकि जिन किताबों को जब्त किया गया है वे औपचारिक रूप से प्रतिबंधित नहीं हैं. जब्त की गई किताबें कश्मीर से बाहर प्रकाशित हुई थीं, और ये देश के अन्य राज्यों में और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर अब भी उपलब्ध हैं. भारत सरकार ने इसके जम्मू-कश्मीर चैप्टर पर 2019 में प्रतिबंध लगाया था, यूएपीए, 1967 के तहत, यह आरोप लगाते हुए कि संगठन की गतिविधियां देश की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ हैं, और यह जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा देता है. मौलाना मौदूदी की धर्मनिरपेक्षता के विरोध और राजनीतिक इस्लाम में विश्वास की विचारधारा ने उनकी किताबों को कश्मीर में अलगाववादी सोच के साथ जोड़ दिया है, जिससे वे लंबे समय से राज्य की नीतियों के खिलाफ मानी जाती हैं. इस घटना को लेकर न तो स्थानीय प्रशासन की ओर से, न ही पुलिस की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने आया है.
पाठकों से अपील-
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