लड़ाई हमेशा से हिंदी को ‘शुद्ध’ करने, उसे विदेशीपन से मुक्त करने, और उसमें शामिल होने वाली बोलियों को सीमित करने की रही है.
अपूर्वानंद : आख़िर हम कौन सी हिंदी बोलते हैं?
लड़ाई हमेशा से हिंदी को ‘शुद्ध’ करने, उसे विदेशीपन से मुक्त करने, और उसमें शामिल होने वाली बोलियों को सीमित करने की रही है.