निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की दुनिया में यक़ीन या भरोसे की नींव पर ही सारे रिश्ते और व्यवस्थाएं टिकी होती हैं. लेकिन क्या हो जब ये नींव ही हिलने लगे? आज के अंक में हम ऐसी ही कुछ दरारों पर नज़र डालेंगे. हम सुप्रीम कोर्ट के उस कमरे में चलेंगे जहाँ चुनाव आयोग की लिस्ट के 'मुर्दा' ज़िंदा पाए गए. हम बात करेंगे उस चुनावी गिनती के घालमेल की जिस पर सालों से सवाल उठ रहे हैं. हम ये भी देखेंगे कि कैसे दुनिया की दो बड़ी ताक़तें, भारत और अमेरिका, दोस्ती के वादों से तल्ख़ हक़ीक़त तक आ पहुँची हैं. इन सबके बीच, हम सियासत के उस रंगमंच को भी समझेंगे जहाँ ताक़तवर, ख़ुद को सबसे बड़ा पीड़ित दिखाने की कला में माहिर है. और अंत में, ग़ाज़ा से एक ऐसी आवाज़ सुनेंगे, जिसे हमेशा के लिए ख़ामोश कर दिया गया, लेकिन जिसके शब्द आज भी गूंज रहे हैं. तो चलिए, शुरू करते हैं आज का हरकारा.